1. कु छ बाते चलती भागती िजनदगी मे यूँ होती है िक उनहे भुलाना मुिशकल होता है | हमारे आस पास जो भी
घटता है ,हम उस से पभािवत होते है |
िफलमे समाज का आईना होती है इस िवषय पर मतभेद हो सकते है पर कोई भी िफलम अपने वक और समाज से
कट कर नही बन सकती.
जरा याद कीिजये अना के समथरन esa o fujHk;k ds fy, balkQ dh xqgkj yxkrs gq ,
कै डल माचर का आइिडया ‘रं ग दे बसनती’ िफलम ने हमे िदया िक हाँ हम भी दुिनया बदल सकते है. हम अपनी
िफलमो को भले ही बहत गमभीरता से न लेते हो लेिकन सामािजक पिरवतरन मे इनकी एक बडी भूिमका रही है.
लोगो की मानिसकता बदल ne ka काम िफलमो के दारा बेहतरीन तरीके से होता है. हमारे समाज और उसमे
होने वाली घटनाएँ हमेशा िफलमो के के द मे रही है . आजादी से पहले जब छु आ छू त पर बात करना मुिशकल था
‘अछू त कनया’ जैसी िफलम ने बडे साथरक तरीके से इस समसया को लोगो के सामने रखा लोगो मे जागरकता भी
िफलम की ही देन है।
िसनेमा समाज का आईना है तो समाज भी इस से कही भीतर तक जुडा हआ है |agar kaha jaye ki aaj
hamari personality films se hi prerit hai to galat nai hoga.. hamare kapde, bolchal, rehan-
sahan, sab par films ka prabhav dikhta hai. युवाओ मे फै शन को िफलमो ने ही बढावा िदया है। आज
का युवावगर िफलमी दुिनया की चमक-दमक मे सवयं के मूलयो व आदशो को खोता जा raha hai िफर इंसानी
िफतरत जलदी से बुरी बातो को िदमाग मे िबठा लेती है | aaj kal ki filme sab logon ke liye nahi
hoti hai .िहसा, अशीलता इतयािद की भरभार के कारण युवा इससे पभािवत हए है।
हमे चािहए िक ऐसी िफलमे देखे जो हमारे जान को बढाएँ और अचछी बाते िसखाएँ। िफलमो का िवषय केत
िवशाल है इसिलए इसके पभाव भी बहत ही सशक होता है।