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''अपनीही कहानी,अपनीही जुवानी''
''आज मैअपने कार्य कीप्रसंसा स्वर्ं करता हूँ ''
आज मैआप लोगों को ''प्रथमशिक्षणसंस्थान'' के अंतगयत ''USAID'' प्रोग्रामके कार्ोंके अनुभवोंसे अवगत
करा रहा हूँ । जोकक मेरे जीवनका सवायधिक महत्त्वपणयऔरप्रभाविालीरहा। ऐसेकार्ों में व्र्क्ततर्दि एक बार
सफलताप्राप्तकर ले तो स्वाभाववक हैकक उसे अपनेपर गवय होना ही चादहए। 'USAID'' प्रोग्राम के तहत मुझे
उत्तर - प्रिेिके उन्नावजनपि के असोहा ब्लॉक में ३ गांवों में बच्चों कोपढ़ाने कीक्जम्मेिारी प्राप्तहुई। प्रत्र्ेक
गांव के सरकारीप्राथशमक ववद्र्ालर्में कक्षा३,४,व ५ के बच्चोंके साथ २०-२० दिनोंके िो-िोलर्निंगकैं प
संचाशलतककर्े। हमारे द्वाराप्रत्र्ेक गांव में ४०-४०दिनबच्चोंके साथ शिक्षणकार्य ककर्ागर्ा । हमारे द्वारा
रोज़ानाककर्ेजाने वाले कार्यर्नम्नशलखितहैं-
1. बच्चों कोपढ़ाने हेतुघरों,जंगलों र्ा िेतोंसे ववद्र्ालर्लानाव अशभभावकों सेबातचीतकरना।
2. स्वर्ंसेववर्ोंके सहर्ोग से ववद्र्ालर्में अलग -अलगस्तरानुसारसमहों में शिक्षणकार्यकरना ।
3. शिक्षकोंसे बच्चोंकी शिक्षासे सम्बंधितचचायएंकरना।
4. शिक्षणकार्य समापनकरने के पश्चातपुनः समुिार्में अशभभावकों सेबच्चोंकी शिक्षासे सम्बंधितचचायएं
करना।
5. छोटे -छोटे समहोंमें गोष्ठी करना। क्जसमेअपने ववचारोंकोउनके समक्ष रिनाऔर बेहतर सुझावों हेतु
सानुरोितापवयक आग्रहकरना।
6. समुिार्के लोगों के सामनेकु छ बच्चोंकी करके दििाना। इसके अर्तररततऔरअन्र् कई प्रकारके कार्य
ककर्ेजाते थे। ककसी- ककसीदिनककर्ेगए । जैसे-शिक्षासम्बंधितिीवारोंपरलेि , रैली , बड़ी मीदटंग,िाममें
रात कोहोम ववक्जट ,ज्र्ािाकमजोरक्स्थर्तवालेबच्चोंके साथ उनके घर पर अलगसे पढ़ाना आदि ।
अब मैं इनमे से एक गांव िंकरिेड़ाके कार्ों काक्जक्र करंताहूँ । अत्र्धिक प्रफु ल्लल्लतातोतबहुई जब
लगभगसभी बच्चेपढ़ना सीि गए । पररणामोंको पाकरस्वर्ं भीववश्वासनहीं हो रहा थाकक र्े सब हमारे
माध्र्म से ही संभव हुआ । तर्ंकक पहले लगभग85 % बच्चे िब्िोंकोभी नहीं पढ़ पाते थे । परन्तुआज क्स्थर्त
लगभग95% बच्चेपढ़ना सीि चुके थे । मेरे मन में अनेक सवाल उमड़नेलगे मेरी अंतरात्मासेजानने के शलए।
कक **तर्ा र्ह सफलता मैंने अके लेही प्राप्तकी है ? ,**तर्ा मैं इस र्ोग्र् हूँ भी र्ा नहीं ?,**र्दि मैं र्ोग्र्हूँ तो
र्ही बहुत पहले तर्ों नहीं ककर्ा?आदि तरह के प्रश्नो ने मुझमे उथलता- पुथलतामचारािीथी। लेककनिार्ि
र्े मेरा सोचनाबबलकु लगलत थातर्ंकक इसमेतो बहुतों का र्ोगिानप्राप्तहुआ । जैसे-हमारीशिक्षा-प्रशिक्षण
,उच्चतमस्तरीर्दििार्निेि ,स्वर्ंसेववर्ोंकासहर्ोग,ववद्र्ालर्ीशिक्षकोंकासहर्ोग,अशभभावकों का
सहर्ोग एवं बच्चोंका भी र्ोगिानमहत्त्वपणयरहा । परन्तुआश्चर्यचककतकरनेवाली बाततो र्े थी जो बच्चे4
सालोंमें नहीं सीि पार्े वही आज 40-50 दिन में उससेककतनाअत्र्धिक सीि गए।
िुरूआतके दिनोंमें मुझे लगा कक िार्ि र्हां पर कार्यकरना अत्र्ंतमुक्श्कलहोगा । परन्तुमुझे
उपर्ुयततववशभन्नतरीकोंसे लगातार प्रोत्साहनव उत्साहशमलतागर्ा और मैंने दहम्मतव िैर्यबनार्े रिा।
इस गांव की क्स्थर्तकोिेितेहुएमैं हमेिा धचंतनकरताऔर अपनीअधग्रम रणनीर्तर्ोंके बारे में सोचतारहता
। प्रत्र्ेक दिन लगभगिोबार तो प्रत्र्ेक घर में पहुूँचताही था। गांव के शलएमैं अपनापरा समर् िेतारहा । कभी
-कभीनकारात्मक भावनाओंकाभीमुझ पर प्रहार होता था। मुझेलज्जा सीमहसस होती थीकक गांव के लोगोंसे
ज्र्ािा तोमैं इनकी गशलर्ों में भ्रमणकरताहूँ । परन्तुऐसे मौके पर जरूरतथीमुझे अपनेआपकोसमझाने की।
मैंने समझा कक मैं कोई बुरा कामर्ा अपने व्र्क्ततगतस्वाथय के शलए तो नहीं हूँ ,मैं तो सवयजनदहत व
कल्लर्ाणकारीकार्यहेतुहूँ । मेरी र्ही सकारात्मक सोच नेमुझेसंभाल शलर्ा। कु छ ही दिनोंमें मुझेगांव का
बच्चा-बच्चाजाननेलगा। िीरे -िीरे ग्रामवासीमेरे शिक्षणकार्ोंको िेिने कीलालसासे ववद्र्ालर्तक आने
लगे और मेरा हृिर् उनके उत्साहवियक ,सम्मानपणय,प्रेरणािार्कवप्रोत्साहनस्वरूपक िब्िोंकोसुनकर
अथाहसुि की अनुभर्तकर गिगि हो जाता। मेरा कार्यके प्रर्तजोि और उत्तेजनाएंबढ़तीही गर्ी । शिक्षण
कार्य समापनके पश्चातजब मैं गुजरता थातो कोई पतानहीं रहताथा कक मैं आज वापस आवासपर जापाउूँ गा
कक नहीं । तर्ंकक गांव के प्रत्र्ेक व्र्क्तत अपने-अपनेघर रोकने के शलएउत्सादहतरहतेथे । मैं भी क्जतनाबच्चों
से प्र्ार करताथाउससेज्र्ािा बुजुगों के साथ बैठकर बातचीतकरना। मेरी ऐसीववचारिारणाने ही मुझेगांव
के बुजुगोंसे िोस्तीकराई ।
अब तो क्जतनामैबच्चोंके शलएधचंर्ततरहता , उससेकहींज्र्ािा गांव के लोग मेरे शलए।लोग मेरे बारे
में सोचकर हैरान थे कक आज के जमाने में भी इस तरह के इंसान होते हैं । जो हमारे गांव के
शलए तर्ा -तर्ा कर रहा है । ऐसा उनका सोचना र्ा कहना बबलकु ल वाक्जब ही था ,तर्ंकक मैं बच्चों
को पढ़ाने हेतु जंगलों र्ा िेतों से बच्चों को ऐसे रास्तों से मोटरसाइककल पर बैठाकर लाता था क्जन
रास्तों पर िार्ि स्थानीर् र्नवाशसर्ों ने साइककल भी नहीं चलाई होगी ।
अब तो गांव में ऐसी लहर िौड़ी कक जैसे आज के जमाने में लोग ककसी नेता ,अशभनेता र्ा
ककसी महात्मा के िीवाने हो जाते हैं ,उसी तरह हमारे साथ भी कु छ ऐसा ही था। क्जस रास्ते से मुझे
गांव जाना होता था ,उस रास्ते पर लोग मेरी पहले से ही राह र्नहार रहे होते थे । लोगों से ही पता
चला कक अपने िेतों में बैठकर काम कर रहे लोग भ्रमवि ककसी की गाड़ी की आवाज़ सुनकर
अशभवािन करने हेतु (चाहे िर से सांके र्तक रूप से ही ) बार -बार िड़े होकर िेिते ।अत्र्धिक
भावुकतावि हम भी ऐसे लोगों के िेत पर ही बातचीत के शलए कु छ समर् िेते थे । लोग मुझे
उपहार स्वरुप (प्रत्र्ेक दिन कोई न कोई ) िाने की चीज र्ा अन्र् कोई वस्तु भेंट करते थे । क्जस
ककसी के घर कोई भी कार्यक्रम होता तो मुझे सक्म्मशलत करना किावप नहीं भलते और उनके र्हां
ररश्तेिारों से भी र्नमंत्रण पत्र दिलवाते थे ।
मुझे इतना आिर व ख़ुिी जीवन में कभी नहीं शमली । मेरी अंतरात्मा संकोच करती और
मुझे ववश्वास नहीं होता कक मैं इतने अत्र्धिक सम्मान का हक़िार हूँ भी र्ा नहीं । तर्ंकक कु छ तो
बुजुगय लोग भी मेरे चरण स्पिय के शलए जब झुकते तो मैं िमय से पानी - पानी हो जाता । कु छ लोगों
ने तो मुझे ,मेरे ही सामने िेवता और भगवान िब्ि का प्रर्ोग ककर्ा ,तब तो मै सन्न रह जाता ।
जैसे मै कोई महात्मा हूँ और मैंने लोगों के ह्रिर् में ज्ञान की ज्र्ोर्त जगाई हो ,ऐसे ही तबज्जो िेते
थे । हाूँ , र्ह सब िार्ि मेरी िाशमयक प्रवृवत्त,अध्र्ात्म ज्ञान में रूधच होने, बुजुगों का आिर करने ,
र्नस्वाथय भाव से अच्छा कार्य करने के कारण हो रहा था । र्ानी लोगों के अनुरूप ही मैं अपनी
ववचार-िारा बनाकर बातचीत करता था । सभी लोग मेरी बात मानकर अपने बच्चों से घरेलु काम
कम करते , पढाई के बारे में ज्र्ािा सोचने लगे । सबसे बेहि सोचनीर् है कक वे लोग भी उतना
ही मानते थे ,क्जनके बच्चे भी िसरे स्कलों में पढ़ते थे । वे भी चाहते थे कक र्दि हम हमेिा पढ़ते
रहें तो अपने बच्चों को प्राइवेट स्कलों से र्नकालकर र्हीं पढ़ाएंगे ।
एक समर् तो ऐसा भी आर्ा कक ग्रामवाशसर्ों ने ववचार ववमिय करके मुझे सिैव के शलए
उस गांव को शिक्षक्षत करते रहने हेतु अपना र्नजी ववद्र्ालर् िोलने के शलए स्थान व क्जतना मै
पाता हूँ उसका िोगुना िेने ,रहने हेतु जगह िेने का प्रस्ताव रिा । क्जसको सुनते ही मई हतका -
बतका रह गर्ा । मैंने उस गोष्ठी में लोगों को समझार्ा कक आज आप लोग र्े सब भावुकतावि कह
रहे हैं बाि में, मै जो कमाकर घर चला रहा हूँ वह भी मुझसे छीन जार्ेगा । आज के ज़माने में
कौन ककसका होता है ,लोग अपने सगे सम्बक्न्िर्ों के भी नहीं होते । क्जन गुणों की िार्तर आप
मुझे जो कु छ भी मन रहे हैं वो सब ''प्रथम संस्था '' की ही िेन है । उसी की छात्र छार्ा में अपना
व्र्क्ततत्व संवरा है ,मेरे शलए अन्निाता के साथ -साथ बेहतर जीवन जीने की कला िाता है ''प्रथम ''
और कहा कक-'' इसमें आपका भी कोई िोष नहीं है कु छ सांसाररक स्वभाववकताएं जो मनुष्र् को ऐसे
ताने-बाने में उलझती हैं ।
हमारे कार्यक्रम अवधि पणय होने के पश्चात अंत में सभी के सहर्ोग से एक मेला
कार्यक्रम का आर्ोजन ककर्ा गर्ा । क्जसमे उस गांव के अर्तररतत आस -पास के लोगों ने भी
प्रर्तभाग ककर्ा । सभी ने ककसी न ककसी तरह (आधथयक ,िारीररक व मानशिक रूप ) से महत्वपणय
र्ोगिान दिर्ा । र्े दिन मेरा वहां से वविाई का था । बच्चों के शलए पुरष्कार और सभी के शलए
शमष्ठान की व्र्वस्था थी । मेरे मन में ख्र्ाल आ रहा था कक मैंने इस गांव का बहुत नमक िार्ा
है आज हम शमष्ठान से अंत कर रहे हैं । कु छ बच्चों के कार्यक्रम ,प्रर्तर्ोधगताएूँ ,व सभी से बातचीत
होने के पश्चात अंत में अशभभावकों ,बच्चों , शिक्षकों सभी ने बेहि िुःि प्रकट ककर्ा । कु छ लोगों
ने तो मेरा दिल भी िहला दिर्ा तर्ंकक क्जस व्र्क्तत ने कभी रोना तो सीिा ही नहीं उसकी वविाई
अश्रु िारा बहाकर की जा रही थी ।आज भी उस गांव से बच्चे ,अशभभावक और शिक्षक जब भी
संपकय सत्र के माध्र्म से बातचीत करते हैं तो भावुकता के बढ़ते उनसे शमलने की व्र्ाकु लता सताने
लगती है ।
इस तरह हमारे लक्ष्र् की प्राक्प्त हुई । जोकक -
1. समुिार् में पररवतयन ।
2. ववद्र्ालर् में पररवतयन ।
3. बच्चों के िैक्षखणक क्स्थर्त में पररवतयन ।
र्े हमारे कार्य के लक्ष्र् हैं । मुझे गवय है अपने द्वारा ककर्े गए कार्ों पर कक मै कु छ हि
तक तीनों लक्ष्र्ों को प्राप्त कर सका ।

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  • 1. ''अपनीही कहानी,अपनीही जुवानी'' ''आज मैअपने कार्य कीप्रसंसा स्वर्ं करता हूँ '' आज मैआप लोगों को ''प्रथमशिक्षणसंस्थान'' के अंतगयत ''USAID'' प्रोग्रामके कार्ोंके अनुभवोंसे अवगत करा रहा हूँ । जोकक मेरे जीवनका सवायधिक महत्त्वपणयऔरप्रभाविालीरहा। ऐसेकार्ों में व्र्क्ततर्दि एक बार सफलताप्राप्तकर ले तो स्वाभाववक हैकक उसे अपनेपर गवय होना ही चादहए। 'USAID'' प्रोग्राम के तहत मुझे उत्तर - प्रिेिके उन्नावजनपि के असोहा ब्लॉक में ३ गांवों में बच्चों कोपढ़ाने कीक्जम्मेिारी प्राप्तहुई। प्रत्र्ेक गांव के सरकारीप्राथशमक ववद्र्ालर्में कक्षा३,४,व ५ के बच्चोंके साथ २०-२० दिनोंके िो-िोलर्निंगकैं प संचाशलतककर्े। हमारे द्वाराप्रत्र्ेक गांव में ४०-४०दिनबच्चोंके साथ शिक्षणकार्य ककर्ागर्ा । हमारे द्वारा रोज़ानाककर्ेजाने वाले कार्यर्नम्नशलखितहैं- 1. बच्चों कोपढ़ाने हेतुघरों,जंगलों र्ा िेतोंसे ववद्र्ालर्लानाव अशभभावकों सेबातचीतकरना। 2. स्वर्ंसेववर्ोंके सहर्ोग से ववद्र्ालर्में अलग -अलगस्तरानुसारसमहों में शिक्षणकार्यकरना । 3. शिक्षकोंसे बच्चोंकी शिक्षासे सम्बंधितचचायएंकरना। 4. शिक्षणकार्य समापनकरने के पश्चातपुनः समुिार्में अशभभावकों सेबच्चोंकी शिक्षासे सम्बंधितचचायएं करना। 5. छोटे -छोटे समहोंमें गोष्ठी करना। क्जसमेअपने ववचारोंकोउनके समक्ष रिनाऔर बेहतर सुझावों हेतु सानुरोितापवयक आग्रहकरना। 6. समुिार्के लोगों के सामनेकु छ बच्चोंकी करके दििाना। इसके अर्तररततऔरअन्र् कई प्रकारके कार्य ककर्ेजाते थे। ककसी- ककसीदिनककर्ेगए । जैसे-शिक्षासम्बंधितिीवारोंपरलेि , रैली , बड़ी मीदटंग,िाममें रात कोहोम ववक्जट ,ज्र्ािाकमजोरक्स्थर्तवालेबच्चोंके साथ उनके घर पर अलगसे पढ़ाना आदि । अब मैं इनमे से एक गांव िंकरिेड़ाके कार्ों काक्जक्र करंताहूँ । अत्र्धिक प्रफु ल्लल्लतातोतबहुई जब लगभगसभी बच्चेपढ़ना सीि गए । पररणामोंको पाकरस्वर्ं भीववश्वासनहीं हो रहा थाकक र्े सब हमारे माध्र्म से ही संभव हुआ । तर्ंकक पहले लगभग85 % बच्चे िब्िोंकोभी नहीं पढ़ पाते थे । परन्तुआज क्स्थर्त लगभग95% बच्चेपढ़ना सीि चुके थे । मेरे मन में अनेक सवाल उमड़नेलगे मेरी अंतरात्मासेजानने के शलए। कक **तर्ा र्ह सफलता मैंने अके लेही प्राप्तकी है ? ,**तर्ा मैं इस र्ोग्र् हूँ भी र्ा नहीं ?,**र्दि मैं र्ोग्र्हूँ तो र्ही बहुत पहले तर्ों नहीं ककर्ा?आदि तरह के प्रश्नो ने मुझमे उथलता- पुथलतामचारािीथी। लेककनिार्ि र्े मेरा सोचनाबबलकु लगलत थातर्ंकक इसमेतो बहुतों का र्ोगिानप्राप्तहुआ । जैसे-हमारीशिक्षा-प्रशिक्षण ,उच्चतमस्तरीर्दििार्निेि ,स्वर्ंसेववर्ोंकासहर्ोग,ववद्र्ालर्ीशिक्षकोंकासहर्ोग,अशभभावकों का
  • 2. सहर्ोग एवं बच्चोंका भी र्ोगिानमहत्त्वपणयरहा । परन्तुआश्चर्यचककतकरनेवाली बाततो र्े थी जो बच्चे4 सालोंमें नहीं सीि पार्े वही आज 40-50 दिन में उससेककतनाअत्र्धिक सीि गए। िुरूआतके दिनोंमें मुझे लगा कक िार्ि र्हां पर कार्यकरना अत्र्ंतमुक्श्कलहोगा । परन्तुमुझे उपर्ुयततववशभन्नतरीकोंसे लगातार प्रोत्साहनव उत्साहशमलतागर्ा और मैंने दहम्मतव िैर्यबनार्े रिा। इस गांव की क्स्थर्तकोिेितेहुएमैं हमेिा धचंतनकरताऔर अपनीअधग्रम रणनीर्तर्ोंके बारे में सोचतारहता । प्रत्र्ेक दिन लगभगिोबार तो प्रत्र्ेक घर में पहुूँचताही था। गांव के शलएमैं अपनापरा समर् िेतारहा । कभी -कभीनकारात्मक भावनाओंकाभीमुझ पर प्रहार होता था। मुझेलज्जा सीमहसस होती थीकक गांव के लोगोंसे ज्र्ािा तोमैं इनकी गशलर्ों में भ्रमणकरताहूँ । परन्तुऐसे मौके पर जरूरतथीमुझे अपनेआपकोसमझाने की। मैंने समझा कक मैं कोई बुरा कामर्ा अपने व्र्क्ततगतस्वाथय के शलए तो नहीं हूँ ,मैं तो सवयजनदहत व कल्लर्ाणकारीकार्यहेतुहूँ । मेरी र्ही सकारात्मक सोच नेमुझेसंभाल शलर्ा। कु छ ही दिनोंमें मुझेगांव का बच्चा-बच्चाजाननेलगा। िीरे -िीरे ग्रामवासीमेरे शिक्षणकार्ोंको िेिने कीलालसासे ववद्र्ालर्तक आने लगे और मेरा हृिर् उनके उत्साहवियक ,सम्मानपणय,प्रेरणािार्कवप्रोत्साहनस्वरूपक िब्िोंकोसुनकर अथाहसुि की अनुभर्तकर गिगि हो जाता। मेरा कार्यके प्रर्तजोि और उत्तेजनाएंबढ़तीही गर्ी । शिक्षण कार्य समापनके पश्चातजब मैं गुजरता थातो कोई पतानहीं रहताथा कक मैं आज वापस आवासपर जापाउूँ गा कक नहीं । तर्ंकक गांव के प्रत्र्ेक व्र्क्तत अपने-अपनेघर रोकने के शलएउत्सादहतरहतेथे । मैं भी क्जतनाबच्चों से प्र्ार करताथाउससेज्र्ािा बुजुगों के साथ बैठकर बातचीतकरना। मेरी ऐसीववचारिारणाने ही मुझेगांव के बुजुगोंसे िोस्तीकराई । अब तो क्जतनामैबच्चोंके शलएधचंर्ततरहता , उससेकहींज्र्ािा गांव के लोग मेरे शलए।लोग मेरे बारे में सोचकर हैरान थे कक आज के जमाने में भी इस तरह के इंसान होते हैं । जो हमारे गांव के शलए तर्ा -तर्ा कर रहा है । ऐसा उनका सोचना र्ा कहना बबलकु ल वाक्जब ही था ,तर्ंकक मैं बच्चों को पढ़ाने हेतु जंगलों र्ा िेतों से बच्चों को ऐसे रास्तों से मोटरसाइककल पर बैठाकर लाता था क्जन रास्तों पर िार्ि स्थानीर् र्नवाशसर्ों ने साइककल भी नहीं चलाई होगी । अब तो गांव में ऐसी लहर िौड़ी कक जैसे आज के जमाने में लोग ककसी नेता ,अशभनेता र्ा ककसी महात्मा के िीवाने हो जाते हैं ,उसी तरह हमारे साथ भी कु छ ऐसा ही था। क्जस रास्ते से मुझे गांव जाना होता था ,उस रास्ते पर लोग मेरी पहले से ही राह र्नहार रहे होते थे । लोगों से ही पता चला कक अपने िेतों में बैठकर काम कर रहे लोग भ्रमवि ककसी की गाड़ी की आवाज़ सुनकर अशभवािन करने हेतु (चाहे िर से सांके र्तक रूप से ही ) बार -बार िड़े होकर िेिते ।अत्र्धिक भावुकतावि हम भी ऐसे लोगों के िेत पर ही बातचीत के शलए कु छ समर् िेते थे । लोग मुझे उपहार स्वरुप (प्रत्र्ेक दिन कोई न कोई ) िाने की चीज र्ा अन्र् कोई वस्तु भेंट करते थे । क्जस ककसी के घर कोई भी कार्यक्रम होता तो मुझे सक्म्मशलत करना किावप नहीं भलते और उनके र्हां ररश्तेिारों से भी र्नमंत्रण पत्र दिलवाते थे ।
  • 3. मुझे इतना आिर व ख़ुिी जीवन में कभी नहीं शमली । मेरी अंतरात्मा संकोच करती और मुझे ववश्वास नहीं होता कक मैं इतने अत्र्धिक सम्मान का हक़िार हूँ भी र्ा नहीं । तर्ंकक कु छ तो बुजुगय लोग भी मेरे चरण स्पिय के शलए जब झुकते तो मैं िमय से पानी - पानी हो जाता । कु छ लोगों ने तो मुझे ,मेरे ही सामने िेवता और भगवान िब्ि का प्रर्ोग ककर्ा ,तब तो मै सन्न रह जाता । जैसे मै कोई महात्मा हूँ और मैंने लोगों के ह्रिर् में ज्ञान की ज्र्ोर्त जगाई हो ,ऐसे ही तबज्जो िेते थे । हाूँ , र्ह सब िार्ि मेरी िाशमयक प्रवृवत्त,अध्र्ात्म ज्ञान में रूधच होने, बुजुगों का आिर करने , र्नस्वाथय भाव से अच्छा कार्य करने के कारण हो रहा था । र्ानी लोगों के अनुरूप ही मैं अपनी ववचार-िारा बनाकर बातचीत करता था । सभी लोग मेरी बात मानकर अपने बच्चों से घरेलु काम कम करते , पढाई के बारे में ज्र्ािा सोचने लगे । सबसे बेहि सोचनीर् है कक वे लोग भी उतना ही मानते थे ,क्जनके बच्चे भी िसरे स्कलों में पढ़ते थे । वे भी चाहते थे कक र्दि हम हमेिा पढ़ते रहें तो अपने बच्चों को प्राइवेट स्कलों से र्नकालकर र्हीं पढ़ाएंगे । एक समर् तो ऐसा भी आर्ा कक ग्रामवाशसर्ों ने ववचार ववमिय करके मुझे सिैव के शलए उस गांव को शिक्षक्षत करते रहने हेतु अपना र्नजी ववद्र्ालर् िोलने के शलए स्थान व क्जतना मै पाता हूँ उसका िोगुना िेने ,रहने हेतु जगह िेने का प्रस्ताव रिा । क्जसको सुनते ही मई हतका - बतका रह गर्ा । मैंने उस गोष्ठी में लोगों को समझार्ा कक आज आप लोग र्े सब भावुकतावि कह रहे हैं बाि में, मै जो कमाकर घर चला रहा हूँ वह भी मुझसे छीन जार्ेगा । आज के ज़माने में कौन ककसका होता है ,लोग अपने सगे सम्बक्न्िर्ों के भी नहीं होते । क्जन गुणों की िार्तर आप मुझे जो कु छ भी मन रहे हैं वो सब ''प्रथम संस्था '' की ही िेन है । उसी की छात्र छार्ा में अपना व्र्क्ततत्व संवरा है ,मेरे शलए अन्निाता के साथ -साथ बेहतर जीवन जीने की कला िाता है ''प्रथम '' और कहा कक-'' इसमें आपका भी कोई िोष नहीं है कु छ सांसाररक स्वभाववकताएं जो मनुष्र् को ऐसे ताने-बाने में उलझती हैं । हमारे कार्यक्रम अवधि पणय होने के पश्चात अंत में सभी के सहर्ोग से एक मेला कार्यक्रम का आर्ोजन ककर्ा गर्ा । क्जसमे उस गांव के अर्तररतत आस -पास के लोगों ने भी प्रर्तभाग ककर्ा । सभी ने ककसी न ककसी तरह (आधथयक ,िारीररक व मानशिक रूप ) से महत्वपणय र्ोगिान दिर्ा । र्े दिन मेरा वहां से वविाई का था । बच्चों के शलए पुरष्कार और सभी के शलए शमष्ठान की व्र्वस्था थी । मेरे मन में ख्र्ाल आ रहा था कक मैंने इस गांव का बहुत नमक िार्ा है आज हम शमष्ठान से अंत कर रहे हैं । कु छ बच्चों के कार्यक्रम ,प्रर्तर्ोधगताएूँ ,व सभी से बातचीत होने के पश्चात अंत में अशभभावकों ,बच्चों , शिक्षकों सभी ने बेहि िुःि प्रकट ककर्ा । कु छ लोगों ने तो मेरा दिल भी िहला दिर्ा तर्ंकक क्जस व्र्क्तत ने कभी रोना तो सीिा ही नहीं उसकी वविाई अश्रु िारा बहाकर की जा रही थी ।आज भी उस गांव से बच्चे ,अशभभावक और शिक्षक जब भी संपकय सत्र के माध्र्म से बातचीत करते हैं तो भावुकता के बढ़ते उनसे शमलने की व्र्ाकु लता सताने लगती है ।
  • 4. इस तरह हमारे लक्ष्र् की प्राक्प्त हुई । जोकक - 1. समुिार् में पररवतयन । 2. ववद्र्ालर् में पररवतयन । 3. बच्चों के िैक्षखणक क्स्थर्त में पररवतयन । र्े हमारे कार्य के लक्ष्र् हैं । मुझे गवय है अपने द्वारा ककर्े गए कार्ों पर कक मै कु छ हि तक तीनों लक्ष्र्ों को प्राप्त कर सका ।