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गु व कायालय ारा तुत मािसक ई-प का अग त- 2011
ी नवकार मं नव ह शांित तो
विभ न चम कार जैनमं पयू षण का मह व
घंटाकण महावीर गौतम कवली महा व ा
े
सव िस महायं ( ावली)
जब महावीर ने एक राखी पू णमा का
योितषी को कहां मह व
तु हार व ा स ची है ?
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2. FREE
E CIRCULAR
गु व योितष प का अग त 2011
संपादक िचंतन जोशी
गु व योितष वभाग
संपक गु व कायालय
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
फोन 91+9338213418, 91+9238328785,
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प का तुित िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी
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GURUTVA KARYALAY
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3. अनु म
राखी पू णमा वशेष
राखी पू णमा का मह व 6 राखी पू णमा से जु ड पौरा णक कथाएं 8
ज मा मी वशेष
कृ ण क मुख म
े ांड दशन 10 ा रिचत कृ ण तो 16
कृ ण मरण का मह व 11 ीकृ णा कम ् 17
ी कृ ण का नामकरण सं कार 12 कृ ण क विभ न मं
े 19
ीकृ ण चालीसा 13 कृ ण मं 20
व प ीकृ त ीकृ ण तो 14 ीकृ ण बीसा यं 21
ाणे र ीकृ ण मं 15
पयु षण वशेष
ी नवकार मं (नम कार महामं ) 22 महावीरा क- तो म ् 33
विभ न चम कार जैन मं 24 महावीर चालीसा 34
जैन धम क चौबीस तीथकार
े क जीवन का
े
28 पयू षण का मह व 36
सं ववरण
जब महावीर ने एक योितषी को कहां तु हार व ा
दे वदशन तो म ् 31 38
स ची है ?
ी मंगला क तो (जैन) 32 घंटाकण महावीर सव िस महायं 41
अथ नव ह शांित तो (जैन) 32 गौतम कवली महा व ा (
े ावली) 45
थायी लेख
संपादक य 4 अग त-2011 मािसक त-पव- यौहार 57
ज म वार से य व 40 अग त 2011 - वशेष योग 63
वा तु िस ांत 42 दन क चौघ डये
े 64
ह तरे खा ान 44 दन क होरा - सूय दय से सूया त तक 65
मािसक रािश फल 50 ह चलन अग त -2011 66
अग त 2011 मािसक पंचांग 55
हमारे उ पाद
जैन धमक विश यं ो क सूची
े 29 YANTRA LIST 70
सव काय िस कवच 30 GEM STONE 72
रािश र 54 सूचना 74
सव रोगनाशक यं /कवच 67 हमारा उ े य 76
मं िस कवच 69 मं िस साम ीयां पु संखया: 35,37,39.48.49,60,61
4. संपादक य
य आ मय
बंधु/ ब हन
जय गु दे व
र ाबंधन- राखी पू णमा भाई-बहन क बच िन वाथ
े ेम का बंधन। भारतीय पंचांग क अनुशार
े ावण मास क शु ल
े
प क पू णमा क दन राखी पू णमा का
े योहार मनाया जाता ह इस दन बहन अपने भाई या धमभाई क हाथ पर
े
राखी बाँधती ह। भारतीय सं कृ ित म आज क भौितकतावाद समाज म भोग और
े वाथ म िल व म भी ायः
सभी संबंध म िनः वाथ और प व होता ह।
भारतीय सं कृ ित सम मानव जीवन को समुचे मानव समाज को महानता क दशन कराने वाली सं कृ ित ह।
े
भारतीय सं कृ ित म ी को कवल मा
े उपभोग का साधन न समझकर उसका पूजन करने वाली महान सं कृ ित ह।
क तु आजका पढा िलखा आधुिनक य अपने आपको सुधरा हु वा मानने वाले तथा पा ा य सं कृ ित का
अंधा अनुकरण करक,
े ी को समानता दलाने वाली खोखली भाषा बोलने वाल को पेहल भारत क पारं प रक सं कृ ित
को पूण समझ लेना चा ह क पा ा य सं कृ ित से तो कवल समानता दलाई हो परं तु भारतीय सं कृ ित ने तो
े ी का
दे वी प म पूजन कया ह।
पुराणो म उ लेख ह।
'य नाय तु पू य ते रम ते त दे वताः।
भावाथ: जहाँ ी पूजी जाती है , उसका स मान होता है , वहाँ दे व रमते ह- वहाँ दे व का िनवास होता है ।' ऐसा भगवान
मनु का वचन है ।
राखी बांधने क परं परा कई युग से चली आरह ह इस का प उ लेख वेद म है क दे व और असुर सं ाम म
दे व क वजय ाि क कामना क िनिम
े दे व इं ाणी ने ह मत हारे हु ए इं क हाथ म ह मत बंधाने हे तु राखी बाँधी थी
े
उसी काल से दे वताओं क वजय से र ाबंधन का योहार शु हु आ। अिभम यु क र ा क िनिम कतामाता ने अिभम यु को
े ुं
राखी बाँधी थी।
र ाबंधन पव पुरो हत ारा कया जाने वाला आशीवाद कम भी माना जाता है । ये ा ण ारा यजमान के
दा हने हाथ म र ासू के प म बाँधा जाता है ।
॥कृ णम ् व दे जग गु ॥
ज मा मी भगवान ीकृ ण क ज म का पव ह।
े
भगवान ीकृ ण क म हमा अनंत व अपार ह। ीकृ ण क नाम क म हमा ला वणन करते हु वे ी शु दे वजी कहते
ह।
सकृ मनः कृ णापदार व दयोिनवेिशतं त ु णरािग यै रह।
न ते यमं पाशभृ त त टान ् व नेऽ प प य त ह चीणिन कृ ताः॥
भावाथ: जो मनु य कवल एक बार
े ीकृ ण क गुण म
े ेम करने वाले अपने िच को ीकृ ण क चरण कमल म
े
लगा दे ते ह, वे पाप से छट जाते ह, फर उ ह पाश हाथ म िलए हु ए यमदू त क दशन
ू े व न म भी नह ं हो सकते।
5. ीकृ ण क कसी अनोखी म हमा ह ।
ै
भगवान ीकृ ण क भ ो क व य म उ लेख िमलता ह। क ..
े े
श यासनाटनाला ीडा नाना दकमसु।
न वदु ः स तमा मानं वृ णयः कृ णचेतसः॥
भावाथ: ीकृ ण को अपना सव व समझने वाले भ ीकृ ण म इतने त मय रहते थे क सोते, बैठते, घूमते, फरते,
बातचीत करते, खेलते, नान करते और भोजन आ द करते समय उ ह अपनी सुिध ह नह ं रहती थी।
य ह कारण ह क ीकृ ण क भ म ेमरस से डू बे भ ो को अपने जीवन म सभी बाधाओं एवं क से मु
िमलती ह एवं अनंत सुख क ाि होती ह।
जैनम जयित शाशनम
जैन धम म पयु षण पव का वशेष मह व है । जैन सं दाय म पयु षण पव को सव े पव माना जाता है ।
जैन श द का अथजैन श द " जन" से बना है । जसका अथ है एसा पु ष जसने सम त भोग वृ य पर
अंकश कर िलया ह। अथात ् जसने अपने मन और सांसा रक इ छाओं पर िनयं ण कर िलया हो।
ू
जैन धम क 24 तीथकर इ ह ं वशेष गुण से प रपूण थे, अत: इन 24 क तीथकर क पदिच ो पर चलने वाले
े े े
धम क अनुयायी को जैन धिम कहा जाता ह।
े
जैन अनुयाियय का कहना ह क जैन धम का उ म एवं इितहास अना दकाल और सनातन है । सामा यत: एसा
भी मानाजाता है क जैन धम का मूल उन ाचीन पंरपराओं म रहा होगा, जो आय क आगमन से पूव इस दे श म
े
चिलत थीं। मूलत:जैन धम का उ म भारत म हु वा ह। भारत क साथ ह समय क साथ-साथ फलता हु वा
े े े ायः आज
व क हर दे श म जैन धम क मं दर एवं अनुयायी पाये जाते ह।
े े
जैन मुिनय क मत से उका मु य मं
े ह नवकार महामं जैन जसम अनेक कार क िस समा हत ह एवं
इस मं का योग य अपने विभ न काय उ े श क पूित हे तु एवं व क सम त जीवो क आ म क याण हे तु
े े
कर सकता ह। यो क नवकार महामं अ यंत भावशाली मं ह। य द पूण िन ा व ा से नवकार मं का जप
कयी जाये तो यहं मं साधक को त काल फल दान करने म पूण समथ ह। य हं कारण ह क जैन धम क अनुयायी
े
नवकार मं का जप करता ह।
जैन मुिनय क मत अनुशार नवकार महामं
े अथवा नम कार महामं क मा यम से परमे ी भगव त क
े
आराधना क जाती है उन भगव त म तप, याग, संयम, वैरा य इ या द सा वक गुण होते ह। जैन धम के मुख
नवकार मं क मा यम से अ रहं त, िस , आचाय, उपा याय और साधु, इन पाँच भगवंत को परम इ
े माना ह। इसिलये
इनको नमन करने क विध को नवकार महामं अथवा नम कार महामं कहा जाता है ।
जस कार हं द ू धम क पौरा णक शा
े एवं धम ंथो म मानव जीवन क क याण व उ नित हे तु विभ न
े
मं , तो , तुित, यं ो आ द का उ लेख िमलता ह उसी तरह जैन धम म भी वशेष मं ो, तो , तुित, यं इ या द
का उ लेख कया गया ह। जसे अपना कर या जसके योग से साधारण मनु य अपने काय उ े य क पूित कर
सफलता ा कर सकता ह।
सभी जैन बंधु/बहनो को गु व कायालय प रवार क और से…
॥िम छामी दु क म ् ॥
िचंतन जोशी
6. 6 अग त 2011
राखी पू णमा का मह व
िचंतन जोशी
र ाबंधन- र ाबंधन अथात ् ेम का बंधन। र ाबंधन के हजारो वष पूव हमारे पूव जो न भारतीय सं कृ ित
दन बहन भाई क हाथ पर राखी बाँधती ह। र ाबंधन क
े े म र ाबंधन का उ सव शायद इस िलये शािमल कया
साथ ह भाई को अपने िनः वाथ ेम से बाँधती है । यो क र ाबंधन क तौहार को
े प रवतन क उ े य
े
भारतीय सं कृ ित म आज के भौितकतावाद से बनाया गया हो?
समाज म भोग और वाथ म िल व म भी ायः बहन ारा राखी हाथ पर बंधते ह भाई क
सभी संबंध म िनः वाथ और प व होता ह। बदल जाए। राखी बाँधने वाली बहन क ओर वह वकृ त
भारतीय सं कृ ित सम मानव जीवन को महानता न दे ख, एवं अपनी बहन का र ण भी वह
े वयं
क दशन कराने वाली सं कृ ित ह। भारतीय सं कृ ित म
े करे । ज से बहन समाज म िनभय होकर घूम सक।
े
ी को कवल मा
े भोगदासी न समझकर उसका पूजन वकृ त एवं मानिसकता वाले लोग उसका मजाक
करने वाली महान सं कृ ित ह। उड़ाकर नीच वृ वाले लोगो को दं ड दे कर सबक िसखा
क तु आजका पढा िलखा आधुिनक य अपने सक ह।
े
आपको सुधरा हु वा मानने वाले तथा भाई को राखी बाँधने से पहले बहन
पा ा य सं कृ ित का अंधा उसक म त क पर ितलक करती
े
अनुकरण करक,
े ी को ह। उस समय बहन भाई के
समानता दलाने वाली म त क क पूजा नह ं
खोखली भाषा बोलने वाल अ पतु भाई क शु
े वचार
को पेहल भारत क और बु को िनमल करने
पारं प रक सं कृ ित को पूण हे तु कया जाता ह, ितलक
समझ लेना चा ह क लगाने से प रवतन क
पा ा य सं कृ ित से तो कवल
े अ ुत या समाई हु ई होती
समानता दलाई हो परं तु भारतीय ह।
सं कृ ित ने तो ी का पूजन कया ह। भाई क हाथ पर राखी बाँधकर बहन
े
एसे ह नह ं कहाजाता ह। उससे कवल अपना र ण ह नह ं चाहती, अपने साथ-साथ
े
'य नाय तु पू य ते रम ते त दे वताः। सम त ी जाित क र ण क कामना रखती ह, इस क साथ
े े
भावाथ: जहाँ ी पूजी जाती है , उसका स मान होता है , हं अपना भाई बा श ुओं और अंत वकार पर वजय ा
वहाँ दे व रमते ह- वहाँ दे व का िनवास होता है ।' ऐसा करे और सभी संकटो से उससे सुर त रहे, यह भावना भी
भगवान मनु का वचन है । उसम िछपी होती ह।
भारतीय सं कृ ित ी क ओर भोग क से न वेद म उ लेख है क दे व और असुर सं ाम म दे व
दे खकर प व से, माँ क भावना से दे खने का आदे श क वजय ाि क कामना क िनिम दे व इं ाणी ने ह मत
े
दे ने वाली सव े भारतीय सं कृ ित ह ह। हारे हु ए इं क हाथ म ह मत बंधाने हे तु राखी बाँधी थी। एवं
े
7. 7 अग त 2011
दे वताओं क वजय से र ाबंधन का योहार शु हु आ। र ाबंधन का एक मं भी है, जो पं डत र ा-सू
अिभम यु क र ा क िनिम
े कतामाता ने उसे राखी बाँधी
ुं बाँधते समय पढ़ते ह :
थी। येन ब ो बली राजा दानवे ो महाबलः।
इसी संबंध म एक और कवदं ती
ं िस है क
तेन वां ितब नािम र े माचल माचलः॥
दे वताओं और असुर क यु
े म दे वताओं क वजय को लेकर
भ व यो र पुराण म राजा बिल ( ीरामच रत मानस क बािल
े
कछ संदेह होने लगा। तब दे वराज इं ने इस यु
ु म मुखता
नह ) जस र ाबंधन म बाँधे गए थे, उसक कथा अ सर
ं
से भाग िलया था। दे वराज इं क प ी इं ाणी ावण पू णमा
उ ृ त क जाती है । बिल क संबंध म व णु क पाँचव अवतार
े े
क दन गु
े बृ ह पित क पास गई थी तब उ ह ने वजय क
े े (पहला अवतार मानव म राम थे) वामन क कथा है क बिल
िलए र ाबंधन बाँधने का सुझाव दया था। जब दे वराज इं से संक प लेकर उ ह ने तीन कदम म तीन लोक म
रा स से यु करने चले तब उनक प ी इं ाणी ने इं के सबकछ नाप िलया था। व तुतः दो ह कदम म वामन
ु पी
हाथ म र ाबंधन बाँधा था, जससे इं वजयी हु ए थे। व णु ने सबकछ नाप िलया था और फर तीसरे कदम,जो
ु
बिल क िसर पर रखा था, उससे उसे पाताल लोक पहु ँचा दया
े
अनेक पुराण म ावणी पू णमा को पुरो हत ारा
था। लगता है र ाबंधन क परं परा तब से कसी न कसी प
कया जाने वाला आशीवाद कम भी माना जाता है । ये ा ण
म व मान थी।
ारा यजमान क दा हने हाथ म बाँधा जाता है ।
े
पुराण म ऐसी भी मा यता है क मह ष दु वासा ने संपूण ाण ित त 22 गेज शु
ह के कोप से बचने हे तु र ाबंधन क यव था द थी।
ट ल म िनिमत अखं डत
महाभारत युग म भगवान ीकृ ण ने भी ऋ षय को पू य
मानकर उनसे र ा-सू बँधवाने को आव यक माना था ता क
ऋ षय क तप बल से भ
े क र ा क जा सक।
े
शिन तैितसा यं
ऐितहािसक कारण से म ययुगीन भारत म र ाबंधन शिन ह से संबंिधत पीडा क िनवारण हे तु
े
का पव मनाया जाता था। शायद हमलावर क वजह से
वशेष लाभकार यं ।
मू य: 550 से 8200
म हलाओं क शील क र ा हे तु इस पव क मह ा म इजाफा
े
हु आ हो। तभी म हलाएँ सगे भाइय या मुँहबोले भाइय को GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR
र ासू बाँधने लगीं। यह एक धम-बंधन था।
PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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आशीवाद कम भी माना जाता है । ये ा ण ारा gurutva_karyalay@yahoo.in,
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यजमान क दा हने हाथ म बाँधा जाता है ।
े http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
8. 8 अग त 2011
राखी पू णमा से जु ड पौरा णक कथाएं
व तक.ऎन.जोशी
वामनावतार कथा कर दया कतु बिल अपने वचन से न फरे और तीन पग
ं
भूिम दान कर द ।
अब वामन प म भगवान व णु ने एक पग म वग
और दू सरे पग म पृ वी को नाप िलया। तीसरा पैर कहाँ रख?
बिल क सामने संकट उ प न हो गया। य द वह अपना वचन
े
नह ं िनभाता तो अधम होता। आ खरकार उसने अपना िसर
भगवान क आगे कर दया और कहा तीसरा पग आप मेरे
े
िसर पर रख द जए। वामन भगवान ने वैसा ह कया। पैर
रखते ह वह रसातल लोक म पहु ँ च गया।
जब बाली रसातल म चला गया तब बिल ने अपनी
भ क बल से भगवान को रात- दन अपने सामने रहने का
े
वचन ले िलया और भगवान व णु को उनका ारपाल बनना
पड़ा। भगवान क रसातल िनवास से परे शान क य द वामी
े
रसातल म ारपाल बन कर िनवास करगे तो बैकठ लोक का
ुं
या होगा? इस सम या क समाधान क िलए ल मी जी को
े े
नारद जी ने एक उपाय सुझाया। ल मी जी ने राजा बिल के
पास जाकर उसे र ाब धन बांधकर अपना भाई बनाया और
उपहार व प अपने पित भगवान व णु को अपने साथ ले
आयीं। उस दन ावण मास क पू णमा ितिथ थी यथा र ा-
पोरा णक कथा क अनुशार एकबार सौ य
े पूण कर
लेने पर दानवो क राजा बिल क मन म
े े वग ाि क बंधन मनाया जाने लगा।
इ छा बल हो गई तो इ का िसंहासन डोलने लगा। इ
आ द दे वताओं ने भगवान व णु से र ा क ाथना क ।
मंगल यं से ऋण मु
भगवान ने वामन अवतार लेकर ा ण का वेष धारण कर मंगल यं को जमीन-जायदाद क ववादो को
े
िलया और राजा बिल से िभ ा मांगने पहु ँ च गए। भगवान हल करने क काम म लाभ दे ता ह, इस क अित र
े े
व णुने बिल से तीन पग भूिम िभ ा म मांग ली। य को ऋण मु हे तु मंगल साधना से अित शी
लाभ ा होता ह। ववाह आ द म मंगली जातक
बिल क गु शु दे वजी ने ा ण प धारण कए हु ए
े
क क याण क िलए मंगल यं
े े क पूजा करने से
ी व णु को पहचान िलया और बिल को इस बारे म सावधान
वशेष लाभ ा होता ह।
ाण ित त मंगल यं के पूजन से
9. 9 अग त 2011
भ व य पुराण क कथा
भ व य पुराण क एक कथा क अनुसार एक बार
े
दे वता और दानव म बारह वष तक यु हु आ पर तु दे वता
वजयी नह ं हु ए। इं हार क भय से दु:खी होकर दे वगु
े
बृ ह पित क पास वमश हे तु गए। गु बृ ह पित क सुझाव पर
े े
इं क प ी महारानी शची ने ावण शु ल पू णमा क दन
े
विध- वधान से त करके र ासू तैयार कए
और वा तवाचन क साथ ा ण क उप थित म इं ाणी ने
े
वह सू इं क दा हनी कलाई म बांधा जसक फल व प
े
इ स हत सम त दे वताओं क दानव पर वजय हु ई।
र ा वधान क समय िन न जस मं
े का उ चारण कया
गया था उस मं का आज भी विधवत पालन कया जाता है :
"येन ब ोबली राजा दानवे ो महाबल: ।
तेन वामिभब नािम र े मा चल मा चल ।।"
इस मं का भावाथ है क दानव क महाबली राजा
े
बिल जससे बांधे गए थे, उसी से तु ह बांधता हू । हे र े!
ँ
(र ासू ) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। महाभारत म ह र ाबंधन से संबंिधत कृ ण और ौपद का
यह र ा वधान वण मास क पू णमा को ातः एक और वृ ांत िमलता है । जब कृ ण ने सुदशन च से
काल संप न कया गया यथा र ा-बंधन अ त व म
िशशुपाल का वध कया तब उनक तजनी म चोट आ गई।
आया और वण मास क पू णमा को मनाया जाने लगा।
ौपद ने उस समय अपनी साड़ फाड़कर उनक उँ गली पर
महाभारत संबंधी कथा प ट बाँध द । यह ावण मास क पू णमा का दन था।
महाभारत काल म ौपद ारा ी कृ ण को तथा ीकृ ण ने बाद म ौपद क चीर-हरण क समय
े े
क ती ारा अिभम यु को राखी बांधने क वृ ांत िमलते ह।
ु े उनक लाज बचाकर भाई का धम िनभाया था।।
सर वती कवच एवं यं
उ म िश ा एवं व ा ाि क िलये वंसत पंचमी पर दु ल भ तेज वी मं श
े ारा पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य
यु सर वती कवच और सर वती यं के योग से सरलता एवं सहजता से मां सर वती क कृ पा ा कर।
मू य:280 से 1450 तक
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10. 10 अग त 2011
कृ ण क मुख म
े ांड दशन
िचंतन जोशी
य द आपको लगता ह मने िम ट खाई ह, तो वयं मेरा
मुख दे ख ले। माँ ने कहा य द ऐसा है तो तू अपना मुख
खोल। लीला करने क िलए बाल कृ ण ने अपना मुख माँ
े
क सम
े खोल दया। यशोदा ने जब मुख क अंदर दे खते
े
ह उसम संपूण व दखाई पड़ने लगा। अंत र , दशाएँ,
प, पवत, समु , पृ वी,वायु, व ुत, तारा स हत वगलोक,
जल, अ न, वायु, आकाश इ या द विच संपूण व
एक ह काल म दख पड़ा। इतना ह नह , यशोदा ने
ं
उनक मुख म
े ज क साथ
े वयं अपने आपको भी दे खा।
इन बात से यशोदा को तरह-तरह क तक- वतक
े
एक बार बलराम स हत वाल बाल खेल रह थे होने लगे। या म व न दे ख रह हू ँ ! या दे वताओं क
खेलते-खेलते यशोदा क पास पहु ँ चे और यशोदाजी से कहा
े कोई माया ह या मेर बु ह यामोह ह या इस मेरे
माँ! कृ ण ने आज िम ट खाई ह। यशोदा ने कृ ण के कृ ण का ह कोई वाभा वक भावपूण चम कार ह।
हाथ को पकड़ िलया और धमकाने लगी क तुमने अ त म उ ह ने यह ढ़ िन य कया क अव य ह
िम ट य खाई! यशोदा को यह भय था क कह ं िम ट इसी का चम कार है और िन य ह ई र इसके प म
खाने से कृ ण कोई रोग न लग जाए। माँ क डांट से अवत रत हु एं ह। तब उ ह ने कृ ण क तुित क उस
कृ ण तो इतने भयभीत हो गए थे क वे माँ क ओर श व प पर को म नम कार करती हू ँ । कृ ण ने
आँख भी नह ं उठा पा रहे थे। तब यशोदा ने कहा तूने जब दे खा क माता यशोदा ने मेरा त व पूण तः समझ
एका त म िम ट य खाई! िम ट खाते हु ए तुजे िलया ह तब उ ह ने तुरंत पु नेहमयी अपनी श प
बलराम स हत और भी वाल ने दे खा ह। कृ ण ने कहा- माया बखेर द जससे यशोदा ण म ह सबकछ भूल
ु
िम ट मने नह ं खाई ह। ये सभी लोग झुठ बोल रहे ह। गई। उ ह ने कृ ण को उठाकर अपनी गोद म उठा िलया।
भा य ल मी द बी
सुख-शा त-समृ क ाि क िलये भा य ल मी द बी :- ज से धन ि , ववाह योग, यापार
े
वृ , वशीकरण, कोट कचेर क काय, भूत ेत बाधा, मारण, स मोहन, ता
े क बाधा, श ु भय,
चोर भय जेसी अनेक परे शािनयो से र ा होित है और घर मे सुख समृ क ाि होित है , भा य
ल मी द बी मे लघु ी फ़ल, ह तजोड (हाथा जोड ), िसयार िस गी, ब ल नाल, शंख, काली-
सफ़द-लाल गुंजा, इ
े जाल, माय जाल, पाताल तुमड जेसी अनेक दु ल भ साम ी होती है ।
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11. 11 अग त 2011
कृ ण मरण का मह व
िचंतन जोशी
ी शुकदे वजी राजा पर त ् से कहते ह- श यासनाटनाला ीडा नाना दकमसु।
सकृ मनः कृ णापदार व दयोिनवेिशतं त ु णरािग यै रह। न वदु ः स तमा मानं वृ णयःकृ णचेतसः॥
न ते यमं पाशभृ त त टान ् व नेऽ प प य त ह भावाथ: ीकृ ण को अपना सव व समझने वाले भ
चीणिन कृ ताः॥ ीकृ ण म इतने त मय रहते थे क सोते, बैठते, घूमते,
भावाथ: जो मनु य कवल एक बार
े ीकृ ण क गुण म
े फरते, बातचीत करते, खेलते, नान करते और भोजन
ेम करने वाले अपने िच को ीकृ ण क चरण कमल
े आ द करते समय उ ह अपनी सुिध ह नह ं रहती थी।
म लगा दे ते ह, वे पाप से छट जाते ह, फर उ ह पाश
ू
वैरेण यं नृ पतयः िशशुपालपौ -
हाथ म िलए हु ए यमदू त क दशन
े व नम भी नह ं हो
शा वादयो गित वलास वलोकना ैः।
सकते।
याय त आकृ तिधयः शयनासनादौ
त सा यमापुरनुर िधयां पुनः कम॥
्
अ व मृ ितः कृ णपदार व दयोः
भावाथ: जब िशशुपाल, शा व और पौ क आ द राजा
णो यभ ण शमं तनोित च।
वैरभाव से ह खाते, पीते, सोते, उठते, बैठते हर व ी
स व य शु ं परमा मभ ं
ह र क चाल, उनक िचतवन आ द का िच तन करने के
ानं च व ान वरागयु म॥
्
कारण मु हो गए, तो फर जनका िच ी कृ ण म
भावाथ: ीकृ ण क चरण कमल का
े मरण सदा बना
अन य भाव से लग रहा है , उन वर भ क मु
े
रहे तो उसी से पाप का नाश, क याण क ाि , अ तः
होने म तो संदेह ह या ह?
करण क शु , परमा मा क भ और वैरा ययु
ान- व ान क ाि अपने आप ह हो जाती ह। एनः पूव कृ तं य ाजानः कृ णवै रणः।
जहु व ते तदा मानः क टः पेश कृ तो यथा॥
पुंसां किलकृ ता दोषा यदे शा मसंभवान।
्
भावाथ: ीकृ ण से े ष करने वाले सम त नरपितगण
सवा ह रत िच थो भगवा पु षो मः॥
अ त म ी भगवान के मरण के भाव से पूव संिचत
भावाथ:भगवान पु षो म ीकृ ण जब िच म वराजते
पाप को न कर वैसे ह भगव ू प हो जाते ह, जैसे
ह, तब उनके भाव से किलयुग क सारे पाप और
े य,
पेश कृ त के यान से क ड़ा त ू प हो जाता है, अतएव
दे श तथा आ मा क दोष न
े हो जाते ह।
ीकृ ण का मरण सदा करते रहना चा हए।
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12. 12 अग त 2011
ी कृ ण का नामकरण सं कार
िचंतन जोशी
वसुदेवजी क ाथना पर यदु ओं क पुरो हत महातप वी गगाचायजी
े ज नगर पहु ँ चे। उ ह दे खकर नंदबाबा
अ यिधक स न हु ए। उ ह ने हाथ जोड़कर णाम कया और उ ह व णु तु य मानकर उनक विधवत पूजा क ।
इसक प ात नंदजी ने उनसे कहा आप क या मेरे इन दोन ब च का नामकरण सं कार कर द जए।
े ृ
इस पर गगाचायजी ने कहा क ऐसा करने म कछ अड़चन ह। म यदु वंिशय का पुरो हत हू,ँ य द म तु हारे
ु
इन पु का नामकरण सं कार कर दू ँ तो लोग इ ह दे वक का ह पु मानने लगगे, य क कस तो पहले से ह
ं
पापमय बु वाला ह। वह सवदा िनरथक बात ह सोचता है । दू सर ओर तु हार व वसुदेव क मै ी है ।
अब मु य बात यह ह क दे वक क आठवीं संतान लड़क नह ं हो सकती य क योगमाया ने कस से यह
ं
कहा था अरे पापी मुझे मारने से या फायदा है ? वह सदै व यह सोचता है क कह ं न कह ं मुझे मारने वाला अव य
उ प न हो चुका ह। य द म नामकरण सं कार करवा दू ँ गा तो मुझे पूण आशा ह क वह मेरे ब च को मार
डालेगा और हम लोग का अ यिधक अिन करे गा।
नंदजी ने गगाचायजी से कहा य द ऐसी बात है तो कसी एका त थान म चलकर विध पूव क इनके
जाित सं कार करवा द जए। इस वषय म मेरे अपने आदमी भी न जान सकगे। नंद क इन बात को सुनकर
गगाचाय ने एका त म िछपकर ब चे का नामकरण करवा दया। नामकरण करना तो उ ह अभी ह था, इसीिलए
वे आए थे।
गगाचायजी ने वसुदेव से कहा रो हणी का यह पु गुण से अपने लोग क मन को
े स न करे गा। अतः
इसका नाम राम होगा। इसी नाम से यह पुकारा जाएगा। इसम बल क अिधकता अिधक होगी। इसिलए इसे लोग
बल भी कहगे। यदु वंिशय क आपसी फट िमटाकर उनम एकता को यह
ू था पत करे गा, अतः लोग इसे संकषण भी
कहगे। अतः इसका नाम बलराम होगा।
अब उ ह ने यशोदा और नंद को ल य करक कहा- यह तु हारा पु
े येक युग म अवतार हण करता
रहता ह। कभी इसका वण ेत, कभी लाल, कभी पीला होता है । पूव के येक युग म शर र धारण करते हु ए इसके
तीन वण हो चुक ह। इस बार क णवण का हु आ है, अतः इसका नाम क ण होगा। तु हारा यह पु
े ृ ृ पहले वसुदेव के
यहाँ ज मा ह, अतः ीमान वासुदेव नाम से व ान लोग पुकारगे।
तु हारे पु क नाम और
े प तो िगनती क परे ह, उनम से गुण और कम अनु प कछ को म जानता हू ँ ।
े ु
दू सरे लोग यह नह ं जान सकते। यह तु हारे गोप गौ एवं गोकल को आनं दत करता हु आ तु हारा क याण करे गा।
ु
इसके ारा तुम भार वप य से भी मु रहोगे।
इस पृ वी पर जो भगवान मानकर इसक भ करगे उ ह श ु भी परा जत नह ं कर सकगे। जस तरह
व णु क भजने वाल को असुर नह ं परा जत कर सकते। यह तु हारा पु
े स दय, क ित, भाव आ द म व णु के
स श होगा। अतः इसका पालन-पोषण पूण सावधानी से करना। इस कार क ण क
ृ े वषय म आदे श दे कर
गगाचाय अपने आ म को चले गए।
13. 13 अग त 2011
॥ ीकृ ण चालीसा ॥
दोहा कितक महा असुर संहार्यो। कस ह कस पक ड़ दै मार्यो॥
े ं े
बंशी शोिभत कर मधुर, नील जलद तन याम। मात- पता क ब द छड़ाई। उ सेन कहँ राज
ु दलाई॥
अ णअधरजनु ब बफल, नयनकमलअिभराम॥ म ह से मृ तक छह सुत लायो। मातु दे वक शोक िमटायो॥
पूण इ , अर व द मुख, पीता बर शुभ साज। भौमासुर मुर दै य संहार । लाये षट दश सहसकमार ॥
ु
जय मनमोहन मदन छ व, कृ णच महाराज॥ दै भीम हं तृ ण चीर सहारा। जरािसंधु रा स कहँ मारा॥
जय यदु नंदन जय जगवंदन। जय वसुदेव दे वक न दन॥
असुर बकासुर आ दक मार्यो। भ न क तब क िनवार्यो॥
े
जय यशुदा सुत न द दु लारे । जय भु भ न के ग तारे ॥
द न सुदामा क दु ःख टार्यो। तंद ु ल तीन मूंठ मुख डार्यो॥
े
जय नट-नागर, नाग नथइया॥ कृ ण क हइया धेनु चरइया॥
ेम क साग
े वदु र घर माँगे। दु य धन क मेवा
े यागे॥
पुिन नख पर भु िग रवर धारो। आओ द नन क िनवारो॥
लखी ेम क म हमा भार । ऐसे याम द न हतकार ॥
वंशी मधुर अधर ध र टे रौ। होवे पूण वनय यह मेरौ॥
भारत क पारथ रथ हाँक। िलये च
े े कर न हं बल थाक॥
े
आओ ह र पुिन माखन चाखो। आज लाज भारत क राखो॥
िनज गीता के ान सुनाए। भ न दय सुधा वषाए॥
गोल कपोल, िचबुक अ णारे । मृ द ु मु कान मो हनी डारे ॥
मीरा थी ऐसी मतवाली। वष पी गई बजाकर ताली॥
रा जत रा जव नयन वशाला। मोर मुकट वैज तीमाला॥
ु
राना भेजा साँप पटार । शाली ाम बने बनवार ॥
कडल
ुं वण, पीत पट आछे । क ट क कणी काछनी काछे ॥
ं
िनजमाया तुम विध हं दखायो। उर ते संशय सकल िमटायो॥
नील जलज सु दरतनु सोहे । छ बल ख, सुरनर मुिनमन मोहे ॥
तब शत िन दा क र त काला। जीवन मु भयो िशशुपाला॥
म तक ितलक, अलक घुँघराले। आओ कृ ण बांसुर वाले॥
जब हं ौपद टे र लगाई। द नानाथ लाज अब जाई॥
क र पय पान, पूतन ह तार्यो। अका बका कागासुर मार्यो॥
तुरत ह वसन बने नंदलाला। बढ़े चीर भै अ र मुँह काला॥
मधुवन जलतअिगन जब वाला। भैशीतललखत हं नंदलाला॥ अस अनाथ क नाथ क हइया। डू बत भंवर बचावइ नइया॥
े
सुरपित जब ज च यो रसाई। मूसर धार वा र वषाई॥ 'सु दरदास' आस उर धार । दया क जै बनवार ॥
लगत लगत ज चहन बहायो। गोवधन नख धा र बचायो॥ नाथ सकल मम कमित िनवारो।
ु महु बेिग अपराध हमारो॥
ल ख यसुदा मन म अिधकाई। मुखमंह चौदह भुवन दखाई॥ खोलो पट अब दशनद जै। बोलो कृ ण क हइया क जै॥
दु कस अित उधम मचायो। को ट कमल जब फल मंगायो॥
ं ू दोहा
नािथ कािलय हं तब तुम ली ह। चरण िच दै िनभय क ह॥ यह चालीसा कृ ण का, पाठ करै उर धा र।
क र गो पन संग रास वलासा। सबक पूरण कर अिभलाषा॥ अ िस नविनिध फल, लहै पदारथ चा र॥
अ ल मी कवच
अ ल मी कवच को धारण करने से य पर सदा मां महा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना
रहता ह। ज से मां ल मी क अ
े प (१)-आ द ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-
गज ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी
पो का वतः अशीवाद ा होता ह। मू य मा : Rs-1050
14. 14 अग त 2011
व प ीकृ त ीकृ ण तो
व प य ऊचुः
वं परमं धाम िनर हो िनरहं कृितः।
िनगु ण िनराकारः साकारः सगुणः वयम ् ॥१॥
सा प िनिल ः परमा मा िनराकृ ितः।
कृ ितः पु ष वं च कारणं च तयोः परम ् ॥२॥
सृ थ यंत वषये ये च दे वा यः मृ ताः।
ते वदं शाः सवबीजा - व णु-महे राः ॥३॥
य य लो नां च ववरे चाऽ खलं व मी रः।
महा वरा महा व णु तं त य जनको वभो ॥४॥
तेज वं चाऽ प तेज वी ानं ानी च त परः।
वेदेऽिनवचनीय वं क वां तोतुिमहे रः ॥५॥
महदा दसृ सू ं पंचत मा मेव च।
बीजं वं सवश नां सवश व पकः ॥६॥
सवश रः सवः सवश या यः सदा।
वमनीहः वयं योितः सवान दः सनातनः ॥७॥
अहो आकारह न वं सव व हवान प।
सव याणां वषय जानािस ने यी भवान ् ।८॥
सर वती जड भूता यत ् तो े य न पणे।
जड भूतो महे श शेषो धम विधः वयम ् ॥९॥
पावती कमला राधा सा व ी दे वसूर प। ॥११॥
इित पेतु ता व प य त चरणा बुजे।
अभयं ददौ ता यः स नवदने णः ॥१२॥
व प ीकृ तं तो ं पूजाकाले च यः पठे त। स गितं व प ीनां
्
लभते नाऽ संशयः ॥१३॥
॥ इित ी वैवत व प ीकृ तं कृ ण तो ं समा म॥
्
इस ीकृ ण तो का िनयिमत पाठ करने से
भगवान ् ीकृ ण अपने भ पर िनःस दे ह
स न होते है । यह तो य अभय को
दान करने वाला ह।
15. 15 अग त 2011
ाणे र ीकृ ण मं
िचंतन जोशी
मं :-
"ॐ ऐं ीं लीं ाण व लभाय सौः सौभा यदाय ीकृ णाय वाहा।"
विनयोगः- ॐ अ य ी ाणे र ीकृ ण मं य भगवान ् ीवेद यास ऋ षः,
गाय ी छं दः-, ीकृ ण-परमा मा दे वता, लीं बीजं, ीं श ः, ऐं क लक, ॐ यापकः, मम सम त- लेश-प रहाथ, चतुव ग- ा ये,
ं
सौभा य वृ यथ च जपे विनयोगः।
ऋ या द यासः- ीवेद यास ऋषये नमः िशरिस, गाय ी छं दसे नमः मुख,
े ीकृ ण परमा मा दे वतायै नमः द, लीं बीजाय
नमः गु े, ीं श ये नमः नाभौ, ऐं क लकाय नमः पादयो, ॐ यापकाय नमः सवा गे, मम सम त लेश प रहाथ, चतुव ग
ा ये, सौभा य वृ यथ च जपे विनयोगाय नमः अंजलौ।
कर- यासः- ॐ ऐं ीं लीं अंगु ा यां नमः ाणव लभाय तजनी यां वाहा, सौः म यमा यां वष , सौभा यदाय अनािमका यां हु ं
ीकृ णाय किन का यां वौष , वाहा करतलकरपृ ा यां फ ।
अंग- यासः- ॐ ऐं ीं लीं दयाय नमः, ाण व लभाय िशरसे वाहा, सौः िशखायै वष , सौभा यदाय िशखायै कवचाय हु ,ं
ीकृ णाय ने - याय वौष , वाहा अ ाय फ ।
यानः- "कृ णं जग मपहन- प-वण, वलो य ल जाऽऽकिलतां
ु मरा याम ् ।
मधूक-माला-युत-कृ ण-दे हं, वलो य चािलं य ह रं मर तीम ् ।।
"
भावाथ: संसार को मु ध करने वाले भगवान ् कृ ण क प-रं ग को दे खकर ेम पूण होकर गो पयाँ ल जापूव क याकल होती ह और
े ु
मन-ह -मन ह र को मरण करती हु ई भगवान ् कृ ण क मधूक-पु प क माला से वभु षत दे ह का आिलंगन करती ह। इस मं
का विध- वधान से १,००,००० जाप करने का वधान ह।
ाण ित त दु गा बीसा यं
शा ो मत क अनुशार दु गा बीसा यं
े दु भा य को दू र कर य क सोये हु वे भा य को जगाने वाला माना
े
गया ह। दु गा बीसा यं ारा य को जीवन म धन से संबंिधत सं याओं म लाभ ा होता ह। जो य
आिथक सम यासे परे शान ह , वह य य द नवरा म ाण ित त कया गया दु गा बीसा यं को थाि कर
लेता ह, तो उसक धन, रोजगार एवं यवसाय से संबंधी सभी सम य का शी ह अंत होने लगता ह। नवरा क दनो
े
म ाण ित त दु गा बीसा यं को अपने घर-दु कान-ओ फस-फ टर म
ै था पत करने से वशेष लाभ ा होता
ह, य शी ह अपने यापार म वृ एवं अपनी आिथक थती म सुधार होता दे खगे। संपूण ाण ित त एवं
पूण चैत य दु गा बीसा यं को शुभ मुहू त म अपने घर-दु कान-ओ फस म था पत करने से वशेष लाभ ा होता
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16. 16 अग त 2011
ा रिचत कृ ण तो
ोवाच :
र र हरे मां च िनम नं कामसागरे ।
मं िस ा
दु क ितजलपूण च दु पारे बहु संकटे ॥१॥ एकमुखी ा -Rs- 1250,2800
भ व मृ ितबीजे च वप सोपानदु तरे ।
दो मुखी ा -Rs- 100,151
अतीव िनमल ानच ुः- छ नकारणे ॥२॥
तीन मुखी ा -Rs- 100,151
ज मोिम-संगस हते यो ष न ाघसंकले।
ु
चार मुखी ा -Rs- 55,100
रित ोतःसमायु े ग भीरे घोर एव च ॥३॥
पंच मुखी ा -Rs- 28,55
थमासृ त पे च प रणाम वषालये।
छह मुखी ा -Rs- 55,100
यमालय वेशाय मु ाराित व तृ तौ ॥४॥
बु या तर या व ानै रा मानतः वयम।
्
सात मुखी ा -Rs- 120,190
वयं च व कणधारः सीद मधुसूदन ॥५॥ आठ मुखी ा -Rs- 820,1250
म धाः कितिच नाथ िनयो या भवकम ण। नौ मुखी ा -Rs- 820,1250
स त व ेश वधयो हे व े र माधव ॥६॥ दसमुखी ा -Rs- ........
न कम े मेवेद लोकोऽयमी सतः। यारहमुखी ा -Rs- 2800
तथाऽ प न पृ हा कामे व यवधायक ॥७॥
े
बारह मुखी ा -Rs- 3600
हे नाथ क णािस धो द नब धो कृ पां क ।
ु
तेरह मुखी ा -Rs- 6400
वं महे श महा ाता दु ः व नं मां न दशय ॥८॥
चौदह मुखी ा -Rs- 19000
इ यु वा जगतां धाता वरराम सनातनः।
गौर षंकर ा -Rs- .....
यायं यायं म पदा जं श तस मार मािमित ॥९॥
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णा च कृ तं तो ं भ यु यः पठे त।
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स चैवाकम वषये न िनम नो भवे ुवम ् ॥१०॥ INDIA
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्