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1  sur  77
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गु    व कायालय        ारा   तुत मािसक ई-प का                          अग त- 2011




     ी नवकार मं                                              नव ह शांित         तो

     विभ न चम कार जैनमं                                       पयू षण का मह व


 घंटाकण महावीर                                           गौतम कवली महा व ा
                                                               े
 सव िस      महायं                                                        (    ावली)



 जब महावीर ने एक                                                 राखी पू णमा का
     योितषी को कहां                                                          मह व
 तु हार व ा स ची है ?




                            NON PROFIT PUBLICATION
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                                    E CIRCULAR
                      गु       व   योितष प का अग त 2011
संपादक               िचंतन जोशी
                     गु    व   योितष वभाग

संपक                 गु    व कायालय
                     92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
                     BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
फोन                  91+9338213418, 91+9238328785,
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वेब                  http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/

प का       तुित      िचंतन जोशी,     व तक.ऎन.जोशी
फोटो     ाफ स        िचंतन जोशी,     व तक आट
हमारे मु य सहयोगी     व तक.ऎन.जोशी       ( व तक सो टे क इ डया िल)




           ई- ज म प का                              E HOROSCOPE
      अ याधुिनक      योितष प ित            ारा Create By Advanced Astrology
         उ कृ     भ व यवाणी क साथ
                             े                             Excellent Prediction
             १००+ पेज म            तुत                              100+ Pages

                           हं द / English म मू य मा 750/-
                               GURUTVA KARYALAY
                     92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
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अनु म
                                           राखी पू णमा वशेष
राखी पू णमा का मह व                              6      राखी पू णमा से जु ड पौरा णक कथाएं                       8

                                                ज मा मी वशेष
कृ ण क मुख म
      े             ांड दशन                      10          ा रिचत कृ ण तो                                     16
कृ ण मरण का मह व                                 11       ीकृ णा कम ्                                           17
 ी कृ ण का नामकरण सं कार                         12     कृ ण क विभ न मं
                                                              े                                                 19
 ीकृ ण चालीसा                                    13     कृ ण मं                                                 20
व प ीकृ त       ीकृ ण तो                         14       ीकृ ण बीसा यं                                         21
 ाणे र ीकृ ण मं                                  15

                                                 पयु षण वशेष
 ी नवकार मं       (नम कार महामं )                22     महावीरा क- तो म ्                                       33
विभ न चम कार जैन मं                              24     महावीर चालीसा                                           34
जैन धम क चौबीस तीथकार
        े                           क जीवन का
                                     े
                                                 28     पयू षण का मह व                                          36
सं        ववरण
                                                        जब महावीर ने एक योितषी को कहां तु हार व ा
दे वदशन    तो म ्                                31                                                             38
                                                        स ची है ?
 ी मंगला क       तो (जैन)                        32     घंटाकण महावीर सव िस        महायं                        41
अथ नव ह शांित          तो   (जैन)                32     गौतम कवली महा व ा (
                                                              े                    ावली)                        45

                                                      थायी लेख
संपादक य                                         4      अग त-2011 मािसक त-पव- यौहार                             57
ज म वार से य        व                            40     अग त 2011 - वशेष योग                                    63
वा तु िस ांत                                     42      दन क चौघ डये
                                                             े                                                  64
ह तरे खा   ान                                    44      दन क होरा - सूय दय से सूया त तक                        65
मािसक रािश फल                                    50       ह चलन अग त -2011                                      66
अग त 2011 मािसक पंचांग                           55

                                                 हमारे उ पाद
जैन धमक विश यं ो क सूची
       े                                         29     YANTRA LIST                                             70
सव काय िस        कवच                             30     GEM STONE                                               72
रािश र                                           54     सूचना                                                   74
सव रोगनाशक यं /कवच                               67     हमारा उ े य                                             76
मं िस कवच                                        69     मं    िस    साम ीयां पु   संखया: 35,37,39.48.49,60,61
संपादक य
     य आ मय

           बंधु/ ब हन

                          जय गु दे व
 र ाबंधन- राखी पू णमा भाई-बहन क बच िन वाथ
                               े                         ेम का बंधन। भारतीय पंचांग क अनुशार
                                                                                    े                ावण मास क शु ल
                                                                                                              े
प       क पू णमा क दन राखी पू णमा का
                  े                          योहार मनाया जाता ह इस दन बहन अपने                 भाई या धमभाई क हाथ पर
                                                                                                             े
राखी बाँधती ह। भारतीय सं कृ ित म आज क भौितकतावाद समाज म भोग और
                                     े                                                    वाथ म िल      व     म भी    ायः
सभी संबंध म िनः वाथ और प व             होता ह।
          भारतीय सं कृ ित सम      मानव जीवन को समुचे मानव समाज को महानता क दशन कराने वाली सं कृ ित ह।
                                                                          े
भारतीय सं कृ ित म        ी को कवल मा
                               े           उपभोग का साधन न समझकर उसका पूजन करने वाली महान सं कृ ित ह।
          क तु आजका पढा िलखा आधुिनक              य    अपने आपको सुधरा हु वा मानने वाले तथा पा ा य सं कृ ित का
अंधा अनुकरण करक,
               े          ी को समानता दलाने वाली खोखली भाषा बोलने वाल को पेहल भारत क पारं प रक सं कृ ित
को पूण समझ लेना चा ह क पा ा य सं कृ ित से तो कवल समानता दलाई हो परं तु भारतीय सं कृ ित ने तो
                                              े                                                                      ी का
दे वी    प म पूजन कया ह।
पुराणो म उ लेख ह।
                                     'य     नाय तु पू य ते रम ते त             दे वताः।
भावाथ: जहाँ      ी पूजी जाती है , उसका स मान होता है , वहाँ दे व रमते ह- वहाँ दे व का िनवास होता है ।' ऐसा भगवान
मनु का वचन है ।

          राखी बांधने क परं परा कई युग से चली आरह ह इस का              प       उ लेख वेद म है क दे व और असुर सं ाम म
दे व क वजय       ाि     क कामना क िनिम
                                 े          दे व इं ाणी ने ह मत हारे हु ए इं    क हाथ म ह मत बंधाने हे तु राखी बाँधी थी
                                                                                 े
उसी काल से दे वताओं क वजय से र ाबंधन का योहार शु हु आ। अिभम यु क र ा क िनिम कतामाता ने अिभम यु को
                                                                      े      ुं
राखी बाँधी थी।
          र ाबंधन पव पुरो हत      ारा कया जाने वाला आशीवाद कम भी माना जाता है । ये                ा ण       ारा यजमान के

दा हने हाथ म र ासू       के   प म बाँधा जाता है ।

                                              ॥कृ णम ् व दे जग         गु ॥
          ज मा मी भगवान       ीकृ ण क ज म का पव ह।
                                     े

भगवान       ीकृ ण क म हमा अनंत व अपार ह।             ीकृ ण क नाम क म हमा ला वणन करते हु वे              ी शु दे वजी कहते
ह।
                                   सकृ मनः कृ णापदार व दयोिनवेिशतं त ु णरािग यै रह।
                              न ते यमं पाशभृ त   त टान ् व नेऽ प प य त ह चीणिन कृ ताः॥
भावाथ: जो मनु य कवल एक बार
                 े                        ीकृ ण क गुण म
                                                 े           ेम करने वाले अपने िच         को    ीकृ ण क चरण कमल म
                                                                                                       े
लगा दे ते ह, वे पाप से छट जाते ह, फर उ ह पाश हाथ म िलए हु ए यमदू त क दशन
                        ू                                           े                      व न म भी नह ं हो सकते।
ीकृ ण क कसी अनोखी म हमा ह ।
          ै
भगवान      ीकृ ण क भ ो क व य म उ लेख िमलता ह। क ..
                  े     े
                                          श यासनाटनाला ीडा नाना दकमसु।
                                       न वदु ः स तमा मानं वृ णयः कृ णचेतसः॥
भावाथ:     ीकृ ण को अपना सव व समझने वाले भ                ीकृ ण म इतने त मय रहते थे क सोते, बैठते, घूमते, फरते,
बातचीत करते, खेलते, नान करते और भोजन आ द करते समय उ ह अपनी सुिध ह नह ं रहती थी।
य ह कारण ह क          ीकृ ण क भ           म   ेमरस से डू बे भ ो को अपने जीवन म सभी बाधाओं एवं क                   से मु
िमलती ह एवं अनंत सुख         क    ाि    होती ह।

                                                  जैनम जयित शाशनम
         जैन धम म पयु षण पव का वशेष मह व है । जैन सं दाय म पयु षण पव को सव                  े    पव माना जाता है ।

         जैन श द का अथजैन श द " जन" से बना है । जसका अथ है एसा पु ष जसने सम त भोग                             वृ य पर
अंकश कर िलया ह। अथात ् जसने अपने मन और सांसा रक इ छाओं पर िनयं ण कर िलया हो।
   ू
         जैन धम क 24 तीथकर इ ह ं वशेष गुण से प रपूण थे, अत: इन 24 क तीथकर क पदिच ो पर चलने वाले
                 े                                                 े       े
धम क अनुयायी को जैन धिम कहा जाता ह।
    े
         जैन अनुयाियय का कहना ह क जैन धम का उ म एवं इितहास अना दकाल और सनातन है । सामा यत: एसा
भी मानाजाता है क जैन धम का मूल उन                  ाचीन पंरपराओं म रहा होगा, जो आय क आगमन से पूव इस दे श म
                                                                                    े
 चिलत थीं। मूलत:जैन धम का उ म भारत म हु वा ह। भारत क साथ ह समय क साथ-साथ फलता हु वा
                                                    े           े         े                                       ायः आज
व      क हर दे श म जैन धम क मं दर एवं अनुयायी पाये जाते ह।
        े                  े
         जैन मुिनय क मत से उका मु य मं
                    े                              ह नवकार महामं     जैन जसम अनेक         कार क िस       समा हत ह एवं
इस मं     का    योग   य     अपने विभ न काय उ े श क पूित हे तु एवं व           क सम त जीवो क आ म क याण हे तु
                                                                               े           े
कर सकता ह।        यो क नवकार महामं         अ यंत     भावशाली मं    ह। य द पूण िन ा व       ा से नवकार मं          का जप
कयी जाये तो यहं मं        साधक को त काल फल           दान करने म पूण समथ ह। य हं कारण ह क जैन धम क अनुयायी
                                                                                                 े
नवकार मं       का जप करता ह।
         जैन मुिनय क मत अनुशार नवकार महामं
                    े                                    अथवा नम कार महामं       क मा यम से परमे ी भगव त क
                                                                                  े
आराधना क जाती है उन भगव त म तप, याग, संयम, वैरा य इ या द सा वक गुण होते ह। जैन धम के                                 मुख
नवकार मं       क मा यम से अ रहं त, िस , आचाय, उपा याय और साधु, इन पाँच भगवंत को परम इ
                े                                                                                       माना ह। इसिलये
इनको नमन करने क           विध को नवकार महामं        अथवा नम कार महामं     कहा जाता है ।
         जस     कार हं द ू धम क पौरा णक शा
                               े                     एवं धम ंथो म मानव जीवन क क याण व उ नित हे तु विभ न
                                                                             े
मं ,    तो ,   तुित, यं ो आ द का उ लेख िमलता ह उसी तरह जैन धम म भी वशेष मं ो,                   तो ,   तुित, यं    इ या द
का उ लेख कया गया ह। जसे अपना कर या जसके                     योग से साधारण मनु य अपने काय उ े य क पूित कर
सफलता      ा    कर सकता ह।

सभी जैन बंधु/बहनो को गु          व कायालय प रवार क और से…

                                              ॥िम छामी दु क म ् ॥
                                                                                                       िचंतन जोशी
6                                 अग त 2011




                                                  राखी पू णमा का मह व
                                                                                                               िचंतन जोशी
र ाबंधन- र ाबंधन अथात ् ेम का बंधन। र ाबंधन के                                   हजारो वष पूव हमारे पूव जो न भारतीय सं कृ ित
दन बहन भाई क हाथ पर राखी बाँधती ह। र ाबंधन क
            े                               े                           म र ाबंधन का उ सव शायद इस िलये शािमल कया
साथ ह भाई को अपने िनः वाथ                    ेम से बाँधती है ।           यो क र ाबंधन क तौहार को
                                                                                       े                      प रवतन क उ े य
                                                                                                                      े
       भारतीय         सं कृ ित       म    आज     के   भौितकतावाद        से बनाया गया हो?
समाज म भोग और                    वाथ म िल        व      म भी      ायः            बहन    ारा राखी हाथ पर बंधते ह भाई क
सभी संबंध म िनः वाथ और प व                    होता ह।                   बदल जाए। राखी बाँधने वाली बहन क ओर वह वकृ त
       भारतीय सं कृ ित सम                 मानव जीवन को महानता                   न दे ख, एवं अपनी बहन का र ण भी वह
                                                                                      े                                       वयं
क दशन कराने वाली सं कृ ित ह। भारतीय सं कृ ित म
 े                                                                      करे ।    ज से बहन समाज म िनभय होकर घूम सक।
                                                                                                                 े
  ी को कवल मा
        े                भोगदासी न समझकर उसका पूजन                      वकृ त          एवं मानिसकता वाले लोग उसका मजाक
करने वाली महान सं कृ ित ह।                                              उड़ाकर नीच वृ       वाले लोगो को दं ड दे कर सबक िसखा
         क तु आजका पढा िलखा आधुिनक                      य        अपने   सक ह।
                                                                          े
आपको सुधरा हु वा मानने वाले तथा                                                          भाई को राखी बाँधने से पहले बहन
पा ा य       सं कृ ित        का       अंधा                                                     उसक म त क पर ितलक करती
                                                                                                  े
अनुकरण       करक,
                े            ी       को                                                            ह। उस समय बहन भाई के
समानता        दलाने          वाली                                                                    म त क      क     पूजा   नह ं
खोखली भाषा बोलने वाल                                                                                  अ पतु भाई क शु
                                                                                                                 े           वचार
को    पेहल       भारत            क                                                                    और बु     को िनमल करने
पारं प रक सं कृ ित को पूण                                                                             हे तु कया जाता ह, ितलक
समझ      लेना         चा ह       क                                                                   लगाने से       प रवतन क
पा ा य सं कृ ित से तो कवल
                       े                                                                           अ ुत       या समाई हु ई होती
समानता दलाई हो परं तु भारतीय                                                                  ह।
सं कृ ित ने तो        ी का पूजन कया ह।                                                         भाई क हाथ पर राखी बाँधकर बहन
                                                                                                    े
एसे ह नह ं कहाजाता ह।                                                   उससे कवल अपना र ण ह नह ं चाहती, अपने साथ-साथ
                                                                              े

'य    नाय तु पू य ते रम ते त                     दे वताः।               सम त       ी जाित क र ण क कामना रखती ह, इस क साथ
                                                                                           े                        े

भावाथ: जहाँ       ी पूजी जाती है , उसका स मान होता है ,                 हं अपना भाई बा      श ुओं और अंत वकार पर वजय           ा

वहाँ दे व रमते ह- वहाँ दे व का िनवास होता है ।' ऐसा                     करे और सभी संकटो से उससे सुर        त रहे, यह भावना भी

भगवान मनु का वचन है ।                                                   उसम िछपी होती ह।
       भारतीय सं कृ ित               ी क ओर भोग क                से न            वेद म उ लेख है क दे व और असुर सं ाम म दे व
दे खकर प व              से, माँ क भावना से दे खने का आदे श              क वजय ाि         क कामना क िनिम दे व इं ाणी ने ह मत
                                                                                                  े
दे ने वाली सव     े     भारतीय सं कृ ित ह ह।                            हारे हु ए इं क हाथ म ह मत बंधाने हे तु राखी बाँधी थी। एवं
                                                                                      े
7                                अग त 2011



दे वताओं क    वजय से र ाबंधन का         योहार शु     हु आ।              र ाबंधन का एक मं      भी है, जो पं डत र ा-सू
अिभम यु क र ा क िनिम
               े            कतामाता ने उसे राखी बाँधी
                             ुं                                   बाँधते समय पढ़ते ह :
थी।                                                               येन ब ो बली राजा दानवे       ो महाबलः।
        इसी संबंध म एक और         कवदं ती
                                   ं         िस     है       क
                                                                  तेन वां    ितब नािम र े माचल माचलः॥
दे वताओं और असुर क यु
                  े      म दे वताओं क वजय को लेकर
                                                                  भ व यो र पुराण म राजा बिल ( ीरामच रत मानस क बािल
                                                                                                             े
कछ संदेह होने लगा। तब दे वराज इं ने इस यु
 ु                                             म मुखता
                                                                  नह ) जस र ाबंधन म बाँधे गए थे, उसक कथा अ सर
                                                                     ं
से भाग िलया था। दे वराज इं क प ी इं ाणी       ावण पू णमा
                                                                  उ ृ त क जाती है । बिल क संबंध म व णु क पाँचव अवतार
                                                                                         े              े
क दन गु
 े           बृ ह पित क पास गई थी तब उ ह ने वजय क
                       े                         े                (पहला अवतार मानव म राम थे) वामन क कथा है क बिल
िलए र ाबंधन बाँधने का सुझाव दया था। जब दे वराज इं                 से संक प लेकर उ ह ने तीन कदम म तीन लोक म
रा स से यु     करने चले तब उनक प ी इं ाणी ने इं              के   सबकछ नाप िलया था। व तुतः दो ह कदम म वामन
                                                                     ु                                             पी

हाथ म र ाबंधन बाँधा था, जससे इं     वजयी हु ए थे।                 व णु ने सबकछ नाप िलया था और फर तीसरे कदम,जो
                                                                             ु
                                                                  बिल क िसर पर रखा था, उससे उसे पाताल लोक पहु ँचा दया
                                                                       े
        अनेक पुराण म     ावणी पू णमा को पुरो हत          ारा
                                                                  था। लगता है र ाबंधन क परं परा तब से कसी न कसी    प
कया जाने वाला आशीवाद कम भी माना जाता है । ये ा ण
                                                                  म व मान थी।
 ारा यजमान क दा हने हाथ म बाँधा जाता है ।
            े

        पुराण म ऐसी भी मा यता है क मह ष दु वासा ने                   संपूण      ाण ित त 22 गेज शु
 ह के    कोप से बचने हे तु र ाबंधन क        यव था द थी।
                                                                            ट ल म िनिमत अखं डत
महाभारत युग म भगवान       ीकृ ण ने भी ऋ षय को पू य

मानकर उनसे र ा-सू बँधवाने को आव यक माना था ता क

ऋ षय क तप बल से भ
      े                 क र ा क जा सक।
                                     े
                                                                     शिन तैितसा यं
        ऐितहािसक कारण से म ययुगीन भारत म र ाबंधन                  शिन ह से संबंिधत पीडा क िनवारण हे तु
                                                                                         े

का पव मनाया जाता था। शायद हमलावर क वजह से
                                                                   वशेष लाभकार यं ।
                                                                                             मू य: 550 से 8200
म हलाओं क शील क र ा हे तु इस पव क मह ा म इजाफा
         े

हु आ हो। तभी म हलाएँ सगे भाइय या मुँहबोले भाइय को                       GURUTVA KARYALAY
                                                                     92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR
र ासू बाँधने लगीं। यह एक धम-बंधन था।
                                                                    PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
        र ाबंधन पव पुरो हत        ारा   कया जाने वाला               Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
                                                                       Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com,
आशीवाद कम भी माना जाता है । ये                ा ण        ारा                 gurutva_karyalay@yahoo.in,
                                                                     Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and
यजमान क दा हने हाथ म बाँधा जाता है ।
       े                                                                 http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
8                                    अग त 2011




                             राखी पू णमा से जु ड पौरा णक कथाएं
                                                                                                व तक.ऎन.जोशी


वामनावतार कथा                                          कर दया कतु बिल अपने वचन से न फरे और तीन पग
                                                               ं
                                                       भूिम दान कर द ।
                                                                 अब वामन         प म भगवान व णु ने एक पग म वग
                                                       और दू सरे पग म पृ वी को नाप िलया। तीसरा पैर कहाँ रख?
                                                       बिल क सामने संकट उ प न हो गया। य द वह अपना वचन
                                                            े
                                                       नह ं िनभाता तो अधम होता। आ खरकार उसने अपना िसर
                                                       भगवान क आगे कर दया और कहा तीसरा पग आप मेरे
                                                              े
                                                       िसर पर रख द जए। वामन भगवान ने वैसा ह              कया। पैर
                                                       रखते ह वह रसातल लोक म पहु ँ च गया।
                                                                 जब बाली रसातल म चला गया तब बिल ने अपनी
                                                       भ       क बल से भगवान को रात- दन अपने सामने रहने का
                                                                े
                                                       वचन ले िलया और भगवान व णु को उनका ारपाल बनना
                                                       पड़ा। भगवान क रसातल िनवास से परे शान क य द वामी
                                                                   े
                                                       रसातल म ारपाल बन कर िनवास करगे तो बैकठ लोक का
                                                                                            ुं
                                                        या होगा? इस सम या क समाधान क िलए ल मी जी को
                                                                           े        े
                                                       नारद जी ने एक उपाय सुझाया। ल मी जी ने राजा बिल के
                                                       पास जाकर उसे र ाब धन बांधकर अपना भाई बनाया और
                                                       उपहार     व प अपने पित भगवान व णु को अपने साथ ले
                                                       आयीं। उस दन             ावण मास क पू णमा ितिथ थी यथा र ा-
      पोरा णक कथा क अनुशार एकबार सौ य
                   े                        पूण कर
लेने पर दानवो क राजा बिल क मन म
               े          े            वग    ाि   क    बंधन मनाया जाने लगा।

इ छा बल हो गई तो इ      का िसंहासन डोलने लगा। इ
आ द दे वताओं ने भगवान व णु से र ा क         ाथना क ।
                                                                       मंगल यं से ऋण मु
भगवान ने वामन अवतार लेकर      ा ण का वेष धारण कर                  मंगल यं         को जमीन-जायदाद क ववादो को
                                                                                                  े
िलया और राजा बिल से िभ ा मांगने पहु ँ च गए। भगवान          हल करने क काम म लाभ दे ता ह, इस क अित र
                                                                    े                       े

व णुने बिल से तीन पग भूिम िभ ा म मांग ली।                  य      को ऋण मु          हे तु मंगल साधना से अित शी
                                                           लाभ    ा    होता ह।       ववाह आ द म मंगली जातक
      बिल क गु शु दे वजी ने ा ण प धारण कए हु ए
           े
                                                           क क याण क िलए मंगल यं
                                                            े       े                          क पूजा करने से
 ी व णु को पहचान िलया और बिल को इस बारे म सावधान
                                                           वशेष लाभ        ा    होता ह।
                                                                      ाण       ित त मंगल यं       के   पूजन   से
9                                अग त 2011




भ व य पुराण क कथा
            भ व य पुराण क एक कथा क अनुसार एक बार
                                  े
दे वता और दानव म बारह वष तक यु                  हु आ पर तु दे वता
 वजयी नह ं हु ए। इं      हार क भय से दु:खी होकर दे वगु
                              े
बृ ह पित क पास वमश हे तु गए। गु बृ ह पित क सुझाव पर
          े                               े
इं        क प ी महारानी शची ने      ावण शु ल पू णमा क दन
                                                     े
 विध- वधान          से   त        करके    र ासू तैयार        कए
और वा तवाचन क साथ ा ण क उप थित म इं ाणी ने
             े
वह सू इं        क दा हनी कलाई म बांधा जसक फल व प
                                         े
इ         स हत सम त दे वताओं क दानव पर वजय हु ई।
र ा वधान क समय िन न जस मं
          े                                    का उ चारण कया
गया था उस मं का आज भी विधवत पालन कया जाता है :
            "येन ब ोबली राजा दानवे             ो महाबल: ।
          तेन वामिभब नािम र े मा चल मा चल ।।"
            इस मं   का भावाथ है क दानव क महाबली राजा
                                        े
बिल जससे बांधे गए थे, उसी से तु ह बांधता हू । हे र े!
                                            ँ
(र ासू ) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।                             महाभारत म ह र ाबंधन से संबंिधत कृ ण और ौपद का
            यह र ा वधान      वण मास क पू णमा को              ातः     एक और वृ ांत िमलता है । जब कृ ण ने सुदशन च      से
काल         संप न   कया गया यथा र ा-बंधन            अ त व        म
                                                                     िशशुपाल का वध कया तब उनक तजनी म चोट आ गई।
आया और          वण मास क पू णमा को मनाया जाने लगा।
                                                                      ौपद ने उस समय अपनी साड़ फाड़कर उनक उँ गली पर
महाभारत संबंधी कथा                                                   प ट बाँध द । यह   ावण मास क पू णमा का दन था।
            महाभारत काल म         ौपद    ारा     ी कृ ण को तथा               ीकृ ण ने बाद म    ौपद क चीर-हरण क समय
                                                                                                    े         े
क ती ारा अिभम यु को राखी बांधने क वृ ांत िमलते ह।
 ु                               े                                   उनक लाज बचाकर भाई का धम िनभाया था।।


                                           सर वती कवच एवं यं
     उ म िश ा एवं व ा        ाि    क िलये वंसत पंचमी पर दु ल भ तेज वी मं श
                                    े                                                  ारा पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य
     यु    सर वती कवच         और सर वती यं           के   योग से सरलता एवं सहजता से मां सर वती क कृ पा     ा   कर।
                                                                                              मू य:280 से 1450 तक
                                               GURUTVA KARYALAY
                                    Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
                          Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
10                                   अग त 2011




                                    कृ ण क मुख म
                                          े                        ांड दशन
                                                                                                  िचंतन जोशी
                                                           य द आपको लगता ह मने िम ट खाई ह, तो              वयं मेरा
                                                           मुख दे ख ले। माँ ने कहा य द ऐसा है तो तू अपना मुख
                                                           खोल। लीला करने क िलए बाल कृ ण ने अपना मुख माँ
                                                                           े
                                                           क सम
                                                            े         खोल दया। यशोदा ने जब मुख क अंदर दे खते
                                                                                                े
                                                            ह उसम संपूण व          दखाई पड़ने लगा। अंत र , दशाएँ,
                                                               प, पवत, समु , पृ वी,वायु, व ुत, तारा स हत   वगलोक,
                                                           जल, अ न, वायु, आकाश इ या द            विच    संपूण   व
                                                           एक ह काल म            दख पड़ा। इतना ह नह , यशोदा ने
                                                                                                   ं
                                                           उनक मुख म
                                                              े             ज क साथ
                                                                               े        वयं अपने आपको भी दे खा।
                                                                   इन बात से यशोदा को तरह-तरह क तक- वतक
                                                                                               े
       एक बार बलराम स हत       वाल बाल खेल रह थे           होने लगे।     या म     व न दे ख रह हू ँ ! या दे वताओं क
खेलते-खेलते यशोदा क पास पहु ँ चे और यशोदाजी से कहा
                   े                                       कोई माया ह या मेर बु          ह    यामोह ह या इस मेरे
माँ! कृ ण ने आज िम ट खाई ह। यशोदा ने कृ ण के               कृ ण का ह       कोई     वाभा वक    भावपूण चम कार ह।
हाथ    को पकड़ िलया और धमकाने लगी               क तुमने     अ त म उ ह ने यह          ढ़ िन य      कया    क अव य ह
िम ट    य खाई! यशोदा को यह भय था क कह ं िम ट               इसी का चम कार है और िन य ह ई र इसके                  प म
खाने से कृ ण कोई रोग न लग जाए। माँ क डांट से               अवत रत हु एं ह। तब उ ह ने कृ ण क            तुित क उस
कृ ण तो इतने भयभीत हो गए थे क वे माँ क ओर                  श       व प पर        को म नम कार करती हू ँ । कृ ण ने
आँख भी नह ं उठा पा रहे थे। तब यशोदा ने कहा तूने            जब दे खा क माता यशोदा ने मेरा त व पूण तः समझ
एका त म िम ट       य    खाई! िम ट     खाते हु ए तुजे       िलया ह तब उ ह ने तुरंत पु         नेहमयी अपनी श          प
बलराम स हत और भी       वाल ने दे खा ह। कृ ण ने कहा-        माया बखेर द       जससे यशोदा       ण म ह सबकछ भूल
                                                                                                       ु
िम ट मने नह ं खाई ह। ये सभी लोग झुठ बोल रहे ह।             गई। उ ह ने कृ ण को उठाकर अपनी गोद म उठा िलया।


                                           भा य ल मी द बी
                        सुख-शा त-समृ       क     ाि क िलये भा य ल मी द बी :- ज से धन ि , ववाह योग, यापार
                                                     े
                        वृ , वशीकरण, कोट कचेर क काय, भूत ेत बाधा, मारण, स मोहन, ता
                                               े                                                 क बाधा, श ु भय,
                        चोर भय जेसी अनेक परे शािनयो से र ा होित है और घर मे सुख समृ           क ाि होित है , भा य
                        ल मी द बी मे लघु       ी फ़ल, ह तजोड (हाथा जोड ), िसयार िस गी, ब ल नाल, शंख, काली-
                        सफ़द-लाल गुंजा, इ
                          े                    जाल, माय जाल, पाताल तुमड जेसी अनेक दु ल भ साम ी होती है ।
                                                                    मू य:- Rs. 910 से Rs. 8200 तक उ ल
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                                               कृ ण        मरण का मह व
                                                                                                            िचंतन जोशी
 ी शुकदे वजी राजा पर        त ् से कहते ह-                                      श यासनाटनाला ीडा नाना दकमसु।
 सकृ मनः कृ णापदार व दयोिनवेिशतं त ु णरािग यै रह।                         न वदु ः स तमा मानं वृ णयःकृ णचेतसः॥
   न ते यमं पाशभृ त        त टान ् व नेऽ प प य त ह                  भावाथ:      ीकृ ण को अपना सव व समझने वाले भ

                         चीणिन कृ ताः॥                               ीकृ ण म इतने त मय रहते थे क सोते, बैठते, घूमते,

भावाथ: जो मनु य कवल एक बार
                 े                           ीकृ ण क गुण म
                                                    े               फरते, बातचीत करते, खेलते,         नान करते और भोजन

 ेम करने वाले अपने िच           को     ीकृ ण क चरण कमल
                                              े                     आ द करते समय उ ह अपनी सुिध ह नह ं रहती थी।

म लगा दे ते ह, वे पाप से छट जाते ह, फर उ ह पाश
                          ू
                                                                                  वैरेण यं नृ पतयः िशशुपालपौ    -
हाथ म िलए हु ए यमदू त क दशन
                       े                     व नम भी नह ं हो
                                                                                 शा वादयो गित वलास वलोकना ैः।
सकते।
                                                                                  याय त आकृ तिधयः शयनासनादौ
                                                                                त सा यमापुरनुर िधयां पुनः कम॥
                                                                                                            ्
              अ व मृ ितः कृ णपदार व दयोः
                                                                    भावाथ: जब िशशुपाल, शा व और पौ               क आ द राजा
                णो यभ ण शमं तनोित च।
                                                                    वैरभाव से ह खाते, पीते, सोते, उठते, बैठते हर व           ी
               स व य शु ं परमा मभ ं
                                                                    ह र क चाल, उनक िचतवन आ द का िच तन करने के
                 ानं च व ान वरागयु म॥
                                    ्
                                                                    कारण मु       हो गए, तो फर जनका िच              ी कृ ण म
भावाथ:     ीकृ ण क चरण कमल का
                  े                           मरण सदा बना
                                                                    अन य भाव से लग रहा है , उन             वर   भ     क मु
                                                                                                                       े
रहे तो उसी से पाप का नाश, क याण क                 ाि , अ तः
                                                                    होने म तो संदेह ह       या ह?
करण क शु       , परमा मा क भ            और वैरा ययु
 ान- व ान क         ाि    अपने आप ह हो जाती ह।                                  एनः पूव कृ तं य   ाजानः कृ णवै रणः।
                                                                          जहु     व ते तदा मानः क टः पेश कृ तो यथा॥
         पुंसां किलकृ ता दोषा        यदे शा मसंभवान।
                                                   ्
                                                                    भावाथ:      ीकृ ण से    े ष करने वाले सम त नरपितगण
          सवा ह रत िच        थो भगवा पु षो मः॥
                                                                    अ त म        ी भगवान के       मरण के    भाव से पूव संिचत
भावाथ:भगवान पु षो म             ीकृ ण जब िच           म वराजते
                                                                    पाप   को न       कर वैसे ह      भगव ू प हो जाते ह, जैसे
ह, तब उनके      भाव से किलयुग क सारे पाप और
                               े                            य,
                                                                    पेश कृ त के      यान से क ड़ा त ू प हो जाता है, अतएव
दे श तथा आ मा क दोष न
               े                 हो जाते ह।
                                                                     ीकृ ण का       मरण सदा करते रहना चा हए।

                                                 योितष संबंिधत वशेष परामश
  योित व ान, अंक           योितष, वा तु एवं आ या मक              ान स संबंिधत वषय म हमारे 28 वष से अिधक वष के
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                                   ी कृ ण का नामकरण सं कार
                                                                                         िचंतन जोशी
        वसुदेवजी क     ाथना पर यदु ओं क पुरो हत महातप वी गगाचायजी
                                       े                               ज नगर पहु ँ चे। उ ह दे खकर नंदबाबा
अ यिधक       स न हु ए। उ ह ने हाथ जोड़कर     णाम कया और उ ह व णु तु य मानकर उनक           विधवत पूजा क ।
इसक प ात नंदजी ने उनसे कहा आप क या मेरे इन दोन ब च का नामकरण सं कार कर द जए।
   े                           ृ
        इस पर गगाचायजी ने कहा क ऐसा करने म कछ अड़चन ह। म यदु वंिशय का पुरो हत हू,ँ य द म तु हारे
                                            ु
इन पु    का नामकरण सं कार कर दू ँ तो लोग इ ह दे वक का ह पु          मानने लगगे,   य क कस तो पहले से ह
                                                                                       ं
पापमय बु      वाला ह। वह सवदा िनरथक बात ह सोचता है । दू सर ओर तु हार व वसुदेव क मै ी है ।
        अब मु य बात यह ह क दे वक क आठवीं संतान लड़क नह ं हो सकती              य क योगमाया ने कस से यह
                                                                                             ं
कहा था अरे पापी मुझे मारने से   या फायदा है ? वह सदै व यह सोचता है क कह ं न कह ं मुझे मारने वाला अव य
उ प न हो चुका ह। य द म नामकरण सं कार करवा दू ँ गा तो मुझे पूण आशा ह क वह मेरे ब च को मार
डालेगा और हम लोग का अ यिधक अिन करे गा।
        नंदजी ने गगाचायजी से कहा य द ऐसी बात है तो कसी एका त             थान म चलकर विध पूव क इनके
  जाित सं कार करवा द जए। इस वषय म मेरे अपने आदमी भी न जान सकगे। नंद क इन बात को सुनकर
गगाचाय ने एका त म िछपकर ब चे का नामकरण करवा दया। नामकरण करना तो उ ह अभी                    ह था, इसीिलए
वे आए थे।
        गगाचायजी ने वसुदेव से कहा रो हणी का यह पु         गुण से अपने लोग क मन को
                                                                           े           स न करे गा। अतः
इसका नाम राम होगा। इसी नाम से यह पुकारा जाएगा। इसम बल क अिधकता अिधक होगी। इसिलए इसे लोग
बल भी कहगे। यदु वंिशय क आपसी फट िमटाकर उनम एकता को यह
                              ू                                      था पत करे गा, अतः लोग इसे संकषण भी
कहगे। अतः इसका नाम बलराम होगा।
        अब उ ह ने यशोदा और नंद को ल य करक कहा- यह तु हारा पु
                                         े                                येक युग म अवतार      हण करता
रहता ह। कभी इसका वण        ेत, कभी लाल, कभी पीला होता है । पूव के   येक युग म शर र धारण करते हु ए इसके
तीन वण हो चुक ह। इस बार क णवण का हु आ है, अतः इसका नाम क ण होगा। तु हारा यह पु
             े           ृ                              ृ                                 पहले वसुदेव के
यहाँ ज मा ह, अतः      ीमान वासुदेव नाम से व ान लोग पुकारगे।
        तु हारे पु   क नाम और
                      े          प तो िगनती क परे ह, उनम से गुण और कम अनु प कछ को म जानता हू ँ ।
                                             े                               ु
दू सरे लोग यह नह ं जान सकते। यह तु हारे गोप गौ एवं गोकल को आनं दत करता हु आ तु हारा क याण करे गा।
                                                      ु
इसके    ारा तुम भार    वप य से भी मु      रहोगे।
        इस पृ वी पर जो भगवान मानकर इसक भ                करगे उ ह श ु भी परा जत नह ं कर सकगे। जस तरह
व णु क भजने वाल को असुर नह ं परा जत कर सकते। यह तु हारा पु
      े                                                                स दय, क ित, भाव आ द म व णु के
स श होगा। अतः इसका पालन-पोषण पूण सावधानी से करना। इस                  कार क ण क
                                                                           ृ   े     वषय म आदे श दे कर
गगाचाय अपने आ म को चले गए।
13                                        अग त 2011




                                              ॥       ीकृ ण चालीसा ॥
दोहा                                                             कितक महा असुर संहार्यो। कस ह कस पक ड़ दै मार्यो॥
                                                                  े                       ं    े
बंशी   शोिभत     कर   मधुर,   नील      जलद     तन       याम।     मात- पता क ब द छड़ाई। उ सेन कहँ राज
                                                                                 ु                                              दलाई॥
अ णअधरजनु             ब बफल,          नयनकमलअिभराम॥              म ह से मृ तक छह सुत लायो। मातु दे वक शोक िमटायो॥
पूण    इ   ,   अर व द    मुख,       पीता बर   शुभ       साज।     भौमासुर मुर दै य संहार । लाये षट दश सहसकमार ॥
                                                                                                         ु
जय     मनमोहन      मदन    छ व,       कृ णच        महाराज॥        दै भीम हं तृ ण चीर सहारा। जरािसंधु रा स कहँ मारा॥
जय यदु नंदन जय जगवंदन। जय वसुदेव दे वक न दन॥
                                                                 असुर बकासुर आ दक मार्यो। भ न क तब क िनवार्यो॥
                                                                                               े
जय यशुदा सुत न द दु लारे । जय        भु भ न के        ग तारे ॥
                                                                 द न सुदामा क दु ःख टार्यो। तंद ु ल तीन मूंठ मुख डार्यो॥
                                                                             े
जय नट-नागर, नाग नथइया॥ कृ ण क हइया धेनु चरइया॥
                                                                  ेम क साग
                                                                      े           वदु र घर माँगे। दु य धन क मेवा
                                                                                                           े                     यागे॥
पुिन नख पर भु िग रवर धारो। आओ द नन क                  िनवारो॥
                                                                 लखी      ेम क म हमा भार । ऐसे              याम द न हतकार ॥
वंशी मधुर अधर ध र टे रौ। होवे पूण         वनय यह मेरौ॥
                                                                 भारत क पारथ रथ हाँक। िलये च
                                                                       े            े                       कर न हं बल थाक॥
                                                                                                                          े
आओ ह र पुिन माखन चाखो। आज लाज भारत क राखो॥
                                                                 िनज गीता के             ान सुनाए। भ न        दय सुधा वषाए॥
गोल कपोल, िचबुक अ णारे । मृ द ु मु कान मो हनी डारे ॥
                                                                 मीरा थी ऐसी मतवाली।            वष पी गई बजाकर ताली॥
रा जत रा जव नयन वशाला। मोर मुकट वैज तीमाला॥
                              ु
                                                                 राना    भेजा     साँप     पटार ।    शाली ाम        बने        बनवार ॥
कडल
 ुं    वण, पीत पट आछे । क ट क कणी काछनी काछे ॥
                             ं
                                                                 िनजमाया तुम विध हं दखायो। उर ते संशय सकल िमटायो॥
नील जलज सु दरतनु सोहे । छ बल ख, सुरनर मुिनमन मोहे ॥
                                                                 तब शत िन दा क र त काला। जीवन मु                भयो िशशुपाला॥
म तक ितलक, अलक घुँघराले। आओ कृ ण बांसुर वाले॥
                                                                 जब हं     ौपद     टे र लगाई। द नानाथ लाज अब जाई॥
क र पय पान, पूतन ह तार्यो। अका बका कागासुर मार्यो॥
                                                                 तुरत ह वसन बने नंदलाला। बढ़े चीर भै अ र मुँह काला॥
मधुवन जलतअिगन जब वाला। भैशीतललखत हं नंदलाला॥                     अस अनाथ क नाथ क हइया। डू बत भंवर बचावइ नइया॥
                                                                          े
सुरपित जब       ज च यो रसाई। मूसर धार वा र वषाई॥                 'सु दरदास' आस उर धार । दया                     क जै बनवार ॥
लगत लगत ज चहन बहायो। गोवधन नख धा र बचायो॥                        नाथ सकल मम कमित िनवारो।
                                                                             ु                        महु बेिग अपराध हमारो॥
ल ख यसुदा मन म अिधकाई। मुखमंह चौदह भुवन दखाई॥                    खोलो पट अब दशनद जै। बोलो कृ ण क हइया क जै॥
दु कस अित उधम मचायो। को ट कमल जब फल मंगायो॥
    ं                             ू                              दोहा
नािथ कािलय हं तब तुम ली ह। चरण िच दै िनभय क ह॥                   यह      चालीसा      कृ ण     का,     पाठ     करै         उर     धा र।
क र गो पन संग रास वलासा। सबक पूरण कर अिभलाषा॥                    अ िस      नविनिध फल, लहै पदारथ चा र॥



                                                    अ ल मी कवच
 अ ल मी कवच को धारण करने से                       य        पर सदा मां महा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना
 रहता ह। ज से मां ल मी क अ
                        े                      प (१)-आ द ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-
 गज ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी
   पो का       वतः अशीवाद       ा    होता ह।                                                        मू य मा : Rs-1050
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                                                                          व प ीकृ त           ीकृ ण तो
व प य ऊचुः
 वं                          परमं            धाम              िनर हो         िनरहं कृितः।
िनगु ण                 िनराकारः         साकारः                सगुणः        वयम ्      ॥१॥
सा        प                   िनिल ः                    परमा मा                िनराकृ ितः।
 कृ ितः           पु ष       वं     च        कारणं        च        तयोः     परम ्    ॥२॥
सृ       थ यंत                वषये           ये         च         दे वा यः          मृ ताः।
ते        वदं शाः              सवबीजा                    - व णु-महे राः              ॥३॥
य य           लो नां              च          ववरे           चाऽ खलं          व मी रः।
महा वरा महा व णु तं                          त य            जनको           वभो       ॥४॥
तेज     वं         चाऽ प          तेज वी                ानं         ानी    च      त परः।
वेदेऽिनवचनीय                 वं         क      वां               तोतुिमहे रः         ॥५॥
महदा दसृ सू ं                                     पंचत मा मेव                          च।
बीजं              वं         सवश         नां           सवश            व पकः          ॥६॥
सवश               रः              सवः                  सवश         या यः             सदा।
 वमनीहः                  वयं योितः             सवान दः                सनातनः         ॥७॥
अहो                          आकारह न              वं                     सव व हवान प।
सव        याणां              वषय        जानािस              ने      यी     भवान ्     ।८॥
सर वती                       जड भूता                   यत ् तो े             य न पणे।
जड भूतो            महे श              शेषो        धम             विधः      वयम ्     ॥९॥
पावती             कमला             राधा           सा व ी            दे वसूर प।      ॥११॥
इित                पेतु                 ता                    व प य त चरणा बुजे।
अभयं                   ददौ         ता यः                 स नवदने णः                 ॥१२॥
व प ीकृ तं तो ं पूजाकाले च यः पठे त। स गितं व प ीनां
                                   ्
लभते                          नाऽ                         संशयः                     ॥१३॥
॥ इित         ी        वैवत व प ीकृ तं कृ ण तो ं समा म॥
                                                      ्

इस        ीकृ ण तो का िनयिमत पाठ करने से
भगवान ् ीकृ ण अपने भ                                                पर िनःस दे ह
 स न होते है । यह                                 तो              य        अभय को
 दान करने वाला ह।
15                                  अग त 2011




                                                      ाणे र ीकृ ण मं

                                                                                                            िचंतन जोशी
मं :-

                               "ॐ ऐं ीं लीं ाण व लभाय सौः सौभा यदाय ीकृ णाय वाहा।"
विनयोगः- ॐ अ य ी ाणे र ीकृ ण मं                      य भगवान ् ीवेद यास ऋ षः,

गाय ी छं दः-, ीकृ ण-परमा मा दे वता, लीं बीजं, ीं श              ः, ऐं क लक, ॐ यापकः, मम सम त- लेश-प रहाथ, चतुव ग- ा ये,
                                                                          ं
सौभा य वृ यथ च जपे विनयोगः।

ऋ या द        यासः-    ीवेद यास ऋषये नमः िशरिस, गाय ी छं दसे नमः मुख,
                                                                    े            ीकृ ण परमा मा दे वतायै नमः     द, लीं बीजाय
नमः गु े,      ीं श ये नमः नाभौ, ऐं क लकाय नमः पादयो, ॐ यापकाय नमः सवा गे, मम सम त                       लेश प रहाथ, चतुव ग
 ा ये, सौभा य वृ यथ च जपे विनयोगाय नमः अंजलौ।

कर- यासः- ॐ ऐं ीं लीं अंगु ा यां नमः ाणव लभाय तजनी यां वाहा, सौः म यमा यां वष , सौभा यदाय अनािमका यां हु ं
 ीकृ णाय किन का यां वौष , वाहा करतलकरपृ ा यां फ ।

अंग- यासः- ॐ ऐं         ीं     लीं दयाय नमः,     ाण व लभाय िशरसे वाहा, सौः िशखायै वष , सौभा यदाय िशखायै कवचाय हु ,ं
 ीकृ णाय ने - याय वौष , वाहा अ ाय फ ।

 यानः-                "कृ णं             जग मपहन- प-वण,                 वलो य            ल जाऽऽकिलतां
                                                                                                ु                    मरा याम ् ।
मधूक-माला-युत-कृ ण-दे हं,                        वलो य                 चािलं य                ह रं                  मर तीम ् ।।
                                                                                                                              "
भावाथ: संसार को मु ध करने वाले भगवान ् कृ ण क प-रं ग को दे खकर ेम पूण होकर गो पयाँ ल जापूव क याकल होती ह और
                                             े                                                  ु
मन-ह -मन ह र को मरण करती हु ई भगवान ् कृ ण क मधूक-पु प क माला से वभु षत दे ह का आिलंगन करती ह। इस मं
का विध- वधान से १,००,००० जाप करने का वधान ह।


                                                ाण      ित त दु गा बीसा यं
              शा ो     मत क अनुशार दु गा बीसा यं
                           े                             दु भा य को दू र कर य       क सोये हु वे भा य को जगाने वाला माना
                                                                                     े
  गया ह। दु गा बीसा यं             ारा   य      को जीवन म धन से संबंिधत सं याओं म लाभ                ा   होता ह। जो       य
  आिथक सम यासे परे शान ह , वह य                      य द नवरा     म   ाण   ित त कया गया दु गा बीसा यं         को    थाि       कर
  लेता ह, तो उसक धन, रोजगार एवं यवसाय से संबंधी सभी सम य का शी ह अंत होने लगता ह। नवरा                               क दनो
                                                                                                                      े
  म      ाण     ित त दु गा बीसा यं           को अपने घर-दु कान-ओ फस-फ टर म
                                                                     ै               था पत करने से वशेष लाभ          ा    होता
  ह,    य       शी ह अपने          यापार म वृ    एवं अपनी आिथक         थती म सुधार होता दे खगे। संपूण      ाण      ित त एवं
  पूण चैत य दु गा बीसा यं           को शुभ मुहू त म अपने घर-दु कान-ओ फस म            था पत करने से वशेष लाभ          ा    होता
  ह।                                                                                 मू य: Rs.550 से Rs.8200 तक
16                    अग त 2011




                       ा रिचत कृ ण तो
ोवाच :
           र     र     हरे मां च िनम नं कामसागरे ।
                                                              मं        िस                ा
          दु क ितजलपूण च दु पारे बहु संकटे ॥१॥             एकमुखी       ा -Rs- 1250,2800
          भ      व मृ ितबीजे च वप सोपानदु तरे ।
                                                           दो मुखी      ा -Rs- 100,151
         अतीव िनमल ानच ुः-            छ नकारणे ॥२॥
                                                           तीन मुखी       ा -Rs- 100,151
          ज मोिम-संगस हते यो ष न ाघसंकले।
                                      ु
                                                           चार मुखी      ा -Rs- 55,100
         रित ोतःसमायु े ग भीरे घोर एव च ॥३॥
                                                           पंच मुखी      ा -Rs- 28,55
                थमासृ त पे च प रणाम वषालये।
                                                           छह मुखी       ा -Rs- 55,100
         यमालय वेशाय मु             ाराित व तृ तौ ॥४॥

         बु या तर या व ानै           रा मानतः वयम।
                                                 ्
                                                           सात मुखी       ा -Rs- 120,190

          वयं च व कणधारः सीद मधुसूदन ॥५॥                   आठ मुखी        ा -Rs- 820,1250

         म धाः कितिच नाथ िनयो या भवकम ण।                   नौ मुखी      ा -Rs- 820,1250
         स त व ेश वधयो हे व े र माधव ॥६॥                   दसमुखी       ा -Rs- ........
           न कम े मेवेद             लोकोऽयमी सतः।           यारहमुखी      ा -Rs- 2800
    तथाऽ प न पृ हा कामे व                  यवधायक ॥७॥
                                                 े
                                                           बारह मुखी      ा -Rs- 3600
          हे नाथ क णािस धो द नब धो कृ पां क ।
                                           ु
                                                           तेरह मुखी      ा -Rs- 6400
         वं महे श महा ाता दु ः व नं मां न दशय ॥८॥
                                                           चौदह मुखी       ा -Rs- 19000
         इ यु        वा जगतां धाता वरराम सनातनः।
                                                           गौर षंकर      ा -Rs- .....
    यायं यायं म पदा जं श तस मार मािमित ॥९॥
                          ्

               णा च कृ तं तो ं भ      यु     यः पठे त।
                                                     ्             गु   व कायालय:
                                                             Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA)
     स चैवाकम वषये न िनम नो भवे               ुवम ् ॥१०॥                  INDIA
                                                              Call Us: 91+ 9338213418, 91+
         मम मायां विन ज य स            ानं लभते   ुवम।
                                                     ्                 9238328785,
                                                                        E-mail Us:-
         इह लोक भ
               े           यु ो म      वरो भवेत ् ॥११॥         gurutva.karyalay@gmail.com,
                                                               gurutva_karyalay@yahoo.in,
           ॥ इित       ी    दे वकृ तं कृ ण तो ं स पूणम॥
                                                      ्
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GURUTVA JYOTISH APRIL-2019
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GURUTVA JYOTISH MONTHLY E-MAGAZINE NOVEMBER-2018
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GURUTVA JYOTISH AUGUST-2014
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GURUTVA JYOTISH NOV-2012
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Gurutva jyotish nov 2011
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Gurutva jyotish aug 2011

  • 1. Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com गु व कायालय ारा तुत मािसक ई-प का अग त- 2011 ी नवकार मं नव ह शांित तो विभ न चम कार जैनमं पयू षण का मह व घंटाकण महावीर गौतम कवली महा व ा े सव िस महायं ( ावली) जब महावीर ने एक राखी पू णमा का योितषी को कहां मह व तु हार व ा स ची है ? NON PROFIT PUBLICATION
  • 2. FREE E CIRCULAR गु व योितष प का अग त 2011 संपादक िचंतन जोशी गु व योितष वभाग संपक गु व कायालय 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA फोन 91+9338213418, 91+9238328785, gurutva.karyalay@gmail.com, ईमेल gurutva_karyalay@yahoo.in, http://gk.yolasite.com/ वेब http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ प का तुित िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी फोटो ाफ स िचंतन जोशी, व तक आट हमारे मु य सहयोगी व तक.ऎन.जोशी ( व तक सो टे क इ डया िल) ई- ज म प का E HOROSCOPE अ याधुिनक योितष प ित ारा Create By Advanced Astrology उ कृ भ व यवाणी क साथ े Excellent Prediction १००+ पेज म तुत 100+ Pages हं द / English म मू य मा 750/- GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 3. अनु म राखी पू णमा वशेष राखी पू णमा का मह व 6 राखी पू णमा से जु ड पौरा णक कथाएं 8 ज मा मी वशेष कृ ण क मुख म े ांड दशन 10 ा रिचत कृ ण तो 16 कृ ण मरण का मह व 11 ीकृ णा कम ् 17 ी कृ ण का नामकरण सं कार 12 कृ ण क विभ न मं े 19 ीकृ ण चालीसा 13 कृ ण मं 20 व प ीकृ त ीकृ ण तो 14 ीकृ ण बीसा यं 21 ाणे र ीकृ ण मं 15 पयु षण वशेष ी नवकार मं (नम कार महामं ) 22 महावीरा क- तो म ् 33 विभ न चम कार जैन मं 24 महावीर चालीसा 34 जैन धम क चौबीस तीथकार े क जीवन का े 28 पयू षण का मह व 36 सं ववरण जब महावीर ने एक योितषी को कहां तु हार व ा दे वदशन तो म ् 31 38 स ची है ? ी मंगला क तो (जैन) 32 घंटाकण महावीर सव िस महायं 41 अथ नव ह शांित तो (जैन) 32 गौतम कवली महा व ा ( े ावली) 45 थायी लेख संपादक य 4 अग त-2011 मािसक त-पव- यौहार 57 ज म वार से य व 40 अग त 2011 - वशेष योग 63 वा तु िस ांत 42 दन क चौघ डये े 64 ह तरे खा ान 44 दन क होरा - सूय दय से सूया त तक 65 मािसक रािश फल 50 ह चलन अग त -2011 66 अग त 2011 मािसक पंचांग 55 हमारे उ पाद जैन धमक विश यं ो क सूची े 29 YANTRA LIST 70 सव काय िस कवच 30 GEM STONE 72 रािश र 54 सूचना 74 सव रोगनाशक यं /कवच 67 हमारा उ े य 76 मं िस कवच 69 मं िस साम ीयां पु संखया: 35,37,39.48.49,60,61
  • 4. संपादक य य आ मय बंधु/ ब हन जय गु दे व र ाबंधन- राखी पू णमा भाई-बहन क बच िन वाथ े ेम का बंधन। भारतीय पंचांग क अनुशार े ावण मास क शु ल े प क पू णमा क दन राखी पू णमा का े योहार मनाया जाता ह इस दन बहन अपने भाई या धमभाई क हाथ पर े राखी बाँधती ह। भारतीय सं कृ ित म आज क भौितकतावाद समाज म भोग और े वाथ म िल व म भी ायः सभी संबंध म िनः वाथ और प व होता ह। भारतीय सं कृ ित सम मानव जीवन को समुचे मानव समाज को महानता क दशन कराने वाली सं कृ ित ह। े भारतीय सं कृ ित म ी को कवल मा े उपभोग का साधन न समझकर उसका पूजन करने वाली महान सं कृ ित ह। क तु आजका पढा िलखा आधुिनक य अपने आपको सुधरा हु वा मानने वाले तथा पा ा य सं कृ ित का अंधा अनुकरण करक, े ी को समानता दलाने वाली खोखली भाषा बोलने वाल को पेहल भारत क पारं प रक सं कृ ित को पूण समझ लेना चा ह क पा ा य सं कृ ित से तो कवल समानता दलाई हो परं तु भारतीय सं कृ ित ने तो े ी का दे वी प म पूजन कया ह। पुराणो म उ लेख ह। 'य नाय तु पू य ते रम ते त दे वताः। भावाथ: जहाँ ी पूजी जाती है , उसका स मान होता है , वहाँ दे व रमते ह- वहाँ दे व का िनवास होता है ।' ऐसा भगवान मनु का वचन है । राखी बांधने क परं परा कई युग से चली आरह ह इस का प उ लेख वेद म है क दे व और असुर सं ाम म दे व क वजय ाि क कामना क िनिम े दे व इं ाणी ने ह मत हारे हु ए इं क हाथ म ह मत बंधाने हे तु राखी बाँधी थी े उसी काल से दे वताओं क वजय से र ाबंधन का योहार शु हु आ। अिभम यु क र ा क िनिम कतामाता ने अिभम यु को े ुं राखी बाँधी थी। र ाबंधन पव पुरो हत ारा कया जाने वाला आशीवाद कम भी माना जाता है । ये ा ण ारा यजमान के दा हने हाथ म र ासू के प म बाँधा जाता है । ॥कृ णम ् व दे जग गु ॥ ज मा मी भगवान ीकृ ण क ज म का पव ह। े भगवान ीकृ ण क म हमा अनंत व अपार ह। ीकृ ण क नाम क म हमा ला वणन करते हु वे ी शु दे वजी कहते ह। सकृ मनः कृ णापदार व दयोिनवेिशतं त ु णरािग यै रह। न ते यमं पाशभृ त त टान ् व नेऽ प प य त ह चीणिन कृ ताः॥ भावाथ: जो मनु य कवल एक बार े ीकृ ण क गुण म े ेम करने वाले अपने िच को ीकृ ण क चरण कमल म े लगा दे ते ह, वे पाप से छट जाते ह, फर उ ह पाश हाथ म िलए हु ए यमदू त क दशन ू े व न म भी नह ं हो सकते।
  • 5. ीकृ ण क कसी अनोखी म हमा ह । ै भगवान ीकृ ण क भ ो क व य म उ लेख िमलता ह। क .. े े श यासनाटनाला ीडा नाना दकमसु। न वदु ः स तमा मानं वृ णयः कृ णचेतसः॥ भावाथ: ीकृ ण को अपना सव व समझने वाले भ ीकृ ण म इतने त मय रहते थे क सोते, बैठते, घूमते, फरते, बातचीत करते, खेलते, नान करते और भोजन आ द करते समय उ ह अपनी सुिध ह नह ं रहती थी। य ह कारण ह क ीकृ ण क भ म ेमरस से डू बे भ ो को अपने जीवन म सभी बाधाओं एवं क से मु िमलती ह एवं अनंत सुख क ाि होती ह। जैनम जयित शाशनम जैन धम म पयु षण पव का वशेष मह व है । जैन सं दाय म पयु षण पव को सव े पव माना जाता है । जैन श द का अथजैन श द " जन" से बना है । जसका अथ है एसा पु ष जसने सम त भोग वृ य पर अंकश कर िलया ह। अथात ् जसने अपने मन और सांसा रक इ छाओं पर िनयं ण कर िलया हो। ू जैन धम क 24 तीथकर इ ह ं वशेष गुण से प रपूण थे, अत: इन 24 क तीथकर क पदिच ो पर चलने वाले े े े धम क अनुयायी को जैन धिम कहा जाता ह। े जैन अनुयाियय का कहना ह क जैन धम का उ म एवं इितहास अना दकाल और सनातन है । सामा यत: एसा भी मानाजाता है क जैन धम का मूल उन ाचीन पंरपराओं म रहा होगा, जो आय क आगमन से पूव इस दे श म े चिलत थीं। मूलत:जैन धम का उ म भारत म हु वा ह। भारत क साथ ह समय क साथ-साथ फलता हु वा े े े ायः आज व क हर दे श म जैन धम क मं दर एवं अनुयायी पाये जाते ह। े े जैन मुिनय क मत से उका मु य मं े ह नवकार महामं जैन जसम अनेक कार क िस समा हत ह एवं इस मं का योग य अपने विभ न काय उ े श क पूित हे तु एवं व क सम त जीवो क आ म क याण हे तु े े कर सकता ह। यो क नवकार महामं अ यंत भावशाली मं ह। य द पूण िन ा व ा से नवकार मं का जप कयी जाये तो यहं मं साधक को त काल फल दान करने म पूण समथ ह। य हं कारण ह क जैन धम क अनुयायी े नवकार मं का जप करता ह। जैन मुिनय क मत अनुशार नवकार महामं े अथवा नम कार महामं क मा यम से परमे ी भगव त क े आराधना क जाती है उन भगव त म तप, याग, संयम, वैरा य इ या द सा वक गुण होते ह। जैन धम के मुख नवकार मं क मा यम से अ रहं त, िस , आचाय, उपा याय और साधु, इन पाँच भगवंत को परम इ े माना ह। इसिलये इनको नमन करने क विध को नवकार महामं अथवा नम कार महामं कहा जाता है । जस कार हं द ू धम क पौरा णक शा े एवं धम ंथो म मानव जीवन क क याण व उ नित हे तु विभ न े मं , तो , तुित, यं ो आ द का उ लेख िमलता ह उसी तरह जैन धम म भी वशेष मं ो, तो , तुित, यं इ या द का उ लेख कया गया ह। जसे अपना कर या जसके योग से साधारण मनु य अपने काय उ े य क पूित कर सफलता ा कर सकता ह। सभी जैन बंधु/बहनो को गु व कायालय प रवार क और से… ॥िम छामी दु क म ् ॥ िचंतन जोशी
  • 6. 6 अग त 2011 राखी पू णमा का मह व  िचंतन जोशी र ाबंधन- र ाबंधन अथात ् ेम का बंधन। र ाबंधन के हजारो वष पूव हमारे पूव जो न भारतीय सं कृ ित दन बहन भाई क हाथ पर राखी बाँधती ह। र ाबंधन क े े म र ाबंधन का उ सव शायद इस िलये शािमल कया साथ ह भाई को अपने िनः वाथ ेम से बाँधती है । यो क र ाबंधन क तौहार को े प रवतन क उ े य े भारतीय सं कृ ित म आज के भौितकतावाद से बनाया गया हो? समाज म भोग और वाथ म िल व म भी ायः बहन ारा राखी हाथ पर बंधते ह भाई क सभी संबंध म िनः वाथ और प व होता ह। बदल जाए। राखी बाँधने वाली बहन क ओर वह वकृ त भारतीय सं कृ ित सम मानव जीवन को महानता न दे ख, एवं अपनी बहन का र ण भी वह े वयं क दशन कराने वाली सं कृ ित ह। भारतीय सं कृ ित म े करे । ज से बहन समाज म िनभय होकर घूम सक। े ी को कवल मा े भोगदासी न समझकर उसका पूजन वकृ त एवं मानिसकता वाले लोग उसका मजाक करने वाली महान सं कृ ित ह। उड़ाकर नीच वृ वाले लोगो को दं ड दे कर सबक िसखा क तु आजका पढा िलखा आधुिनक य अपने सक ह। े आपको सुधरा हु वा मानने वाले तथा भाई को राखी बाँधने से पहले बहन पा ा य सं कृ ित का अंधा उसक म त क पर ितलक करती े अनुकरण करक, े ी को ह। उस समय बहन भाई के समानता दलाने वाली म त क क पूजा नह ं खोखली भाषा बोलने वाल अ पतु भाई क शु े वचार को पेहल भारत क और बु को िनमल करने पारं प रक सं कृ ित को पूण हे तु कया जाता ह, ितलक समझ लेना चा ह क लगाने से प रवतन क पा ा य सं कृ ित से तो कवल े अ ुत या समाई हु ई होती समानता दलाई हो परं तु भारतीय ह। सं कृ ित ने तो ी का पूजन कया ह। भाई क हाथ पर राखी बाँधकर बहन े एसे ह नह ं कहाजाता ह। उससे कवल अपना र ण ह नह ं चाहती, अपने साथ-साथ े 'य नाय तु पू य ते रम ते त दे वताः। सम त ी जाित क र ण क कामना रखती ह, इस क साथ े े भावाथ: जहाँ ी पूजी जाती है , उसका स मान होता है , हं अपना भाई बा श ुओं और अंत वकार पर वजय ा वहाँ दे व रमते ह- वहाँ दे व का िनवास होता है ।' ऐसा करे और सभी संकटो से उससे सुर त रहे, यह भावना भी भगवान मनु का वचन है । उसम िछपी होती ह। भारतीय सं कृ ित ी क ओर भोग क से न वेद म उ लेख है क दे व और असुर सं ाम म दे व दे खकर प व से, माँ क भावना से दे खने का आदे श क वजय ाि क कामना क िनिम दे व इं ाणी ने ह मत े दे ने वाली सव े भारतीय सं कृ ित ह ह। हारे हु ए इं क हाथ म ह मत बंधाने हे तु राखी बाँधी थी। एवं े
  • 7. 7 अग त 2011 दे वताओं क वजय से र ाबंधन का योहार शु हु आ। र ाबंधन का एक मं भी है, जो पं डत र ा-सू अिभम यु क र ा क िनिम े कतामाता ने उसे राखी बाँधी ुं बाँधते समय पढ़ते ह : थी। येन ब ो बली राजा दानवे ो महाबलः। इसी संबंध म एक और कवदं ती ं िस है क तेन वां ितब नािम र े माचल माचलः॥ दे वताओं और असुर क यु े म दे वताओं क वजय को लेकर भ व यो र पुराण म राजा बिल ( ीरामच रत मानस क बािल े कछ संदेह होने लगा। तब दे वराज इं ने इस यु ु म मुखता नह ) जस र ाबंधन म बाँधे गए थे, उसक कथा अ सर ं से भाग िलया था। दे वराज इं क प ी इं ाणी ावण पू णमा उ ृ त क जाती है । बिल क संबंध म व णु क पाँचव अवतार े े क दन गु े बृ ह पित क पास गई थी तब उ ह ने वजय क े े (पहला अवतार मानव म राम थे) वामन क कथा है क बिल िलए र ाबंधन बाँधने का सुझाव दया था। जब दे वराज इं से संक प लेकर उ ह ने तीन कदम म तीन लोक म रा स से यु करने चले तब उनक प ी इं ाणी ने इं के सबकछ नाप िलया था। व तुतः दो ह कदम म वामन ु पी हाथ म र ाबंधन बाँधा था, जससे इं वजयी हु ए थे। व णु ने सबकछ नाप िलया था और फर तीसरे कदम,जो ु बिल क िसर पर रखा था, उससे उसे पाताल लोक पहु ँचा दया े अनेक पुराण म ावणी पू णमा को पुरो हत ारा था। लगता है र ाबंधन क परं परा तब से कसी न कसी प कया जाने वाला आशीवाद कम भी माना जाता है । ये ा ण म व मान थी। ारा यजमान क दा हने हाथ म बाँधा जाता है । े पुराण म ऐसी भी मा यता है क मह ष दु वासा ने संपूण ाण ित त 22 गेज शु ह के कोप से बचने हे तु र ाबंधन क यव था द थी। ट ल म िनिमत अखं डत महाभारत युग म भगवान ीकृ ण ने भी ऋ षय को पू य मानकर उनसे र ा-सू बँधवाने को आव यक माना था ता क ऋ षय क तप बल से भ े क र ा क जा सक। े शिन तैितसा यं ऐितहािसक कारण से म ययुगीन भारत म र ाबंधन शिन ह से संबंिधत पीडा क िनवारण हे तु े का पव मनाया जाता था। शायद हमलावर क वजह से वशेष लाभकार यं । मू य: 550 से 8200 म हलाओं क शील क र ा हे तु इस पव क मह ा म इजाफा े हु आ हो। तभी म हलाएँ सगे भाइय या मुँहबोले भाइय को GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR र ासू बाँधने लगीं। यह एक धम-बंधन था। PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) र ाबंधन पव पुरो हत ारा कया जाने वाला Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, आशीवाद कम भी माना जाता है । ये ा ण ारा gurutva_karyalay@yahoo.in, Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and यजमान क दा हने हाथ म बाँधा जाता है । े http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
  • 8. 8 अग त 2011 राखी पू णमा से जु ड पौरा णक कथाएं  व तक.ऎन.जोशी वामनावतार कथा कर दया कतु बिल अपने वचन से न फरे और तीन पग ं भूिम दान कर द । अब वामन प म भगवान व णु ने एक पग म वग और दू सरे पग म पृ वी को नाप िलया। तीसरा पैर कहाँ रख? बिल क सामने संकट उ प न हो गया। य द वह अपना वचन े नह ं िनभाता तो अधम होता। आ खरकार उसने अपना िसर भगवान क आगे कर दया और कहा तीसरा पग आप मेरे े िसर पर रख द जए। वामन भगवान ने वैसा ह कया। पैर रखते ह वह रसातल लोक म पहु ँ च गया। जब बाली रसातल म चला गया तब बिल ने अपनी भ क बल से भगवान को रात- दन अपने सामने रहने का े वचन ले िलया और भगवान व णु को उनका ारपाल बनना पड़ा। भगवान क रसातल िनवास से परे शान क य द वामी े रसातल म ारपाल बन कर िनवास करगे तो बैकठ लोक का ुं या होगा? इस सम या क समाधान क िलए ल मी जी को े े नारद जी ने एक उपाय सुझाया। ल मी जी ने राजा बिल के पास जाकर उसे र ाब धन बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार व प अपने पित भगवान व णु को अपने साथ ले आयीं। उस दन ावण मास क पू णमा ितिथ थी यथा र ा- पोरा णक कथा क अनुशार एकबार सौ य े पूण कर लेने पर दानवो क राजा बिल क मन म े े वग ाि क बंधन मनाया जाने लगा। इ छा बल हो गई तो इ का िसंहासन डोलने लगा। इ आ द दे वताओं ने भगवान व णु से र ा क ाथना क । मंगल यं से ऋण मु भगवान ने वामन अवतार लेकर ा ण का वेष धारण कर मंगल यं को जमीन-जायदाद क ववादो को े िलया और राजा बिल से िभ ा मांगने पहु ँ च गए। भगवान हल करने क काम म लाभ दे ता ह, इस क अित र े े व णुने बिल से तीन पग भूिम िभ ा म मांग ली। य को ऋण मु हे तु मंगल साधना से अित शी लाभ ा होता ह। ववाह आ द म मंगली जातक बिल क गु शु दे वजी ने ा ण प धारण कए हु ए े क क याण क िलए मंगल यं े े क पूजा करने से ी व णु को पहचान िलया और बिल को इस बारे म सावधान वशेष लाभ ा होता ह। ाण ित त मंगल यं के पूजन से
  • 9. 9 अग त 2011 भ व य पुराण क कथा भ व य पुराण क एक कथा क अनुसार एक बार े दे वता और दानव म बारह वष तक यु हु आ पर तु दे वता वजयी नह ं हु ए। इं हार क भय से दु:खी होकर दे वगु े बृ ह पित क पास वमश हे तु गए। गु बृ ह पित क सुझाव पर े े इं क प ी महारानी शची ने ावण शु ल पू णमा क दन े विध- वधान से त करके र ासू तैयार कए और वा तवाचन क साथ ा ण क उप थित म इं ाणी ने े वह सू इं क दा हनी कलाई म बांधा जसक फल व प े इ स हत सम त दे वताओं क दानव पर वजय हु ई। र ा वधान क समय िन न जस मं े का उ चारण कया गया था उस मं का आज भी विधवत पालन कया जाता है : "येन ब ोबली राजा दानवे ो महाबल: । तेन वामिभब नािम र े मा चल मा चल ।।" इस मं का भावाथ है क दानव क महाबली राजा े बिल जससे बांधे गए थे, उसी से तु ह बांधता हू । हे र े! ँ (र ासू ) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। महाभारत म ह र ाबंधन से संबंिधत कृ ण और ौपद का यह र ा वधान वण मास क पू णमा को ातः एक और वृ ांत िमलता है । जब कृ ण ने सुदशन च से काल संप न कया गया यथा र ा-बंधन अ त व म िशशुपाल का वध कया तब उनक तजनी म चोट आ गई। आया और वण मास क पू णमा को मनाया जाने लगा। ौपद ने उस समय अपनी साड़ फाड़कर उनक उँ गली पर महाभारत संबंधी कथा प ट बाँध द । यह ावण मास क पू णमा का दन था। महाभारत काल म ौपद ारा ी कृ ण को तथा ीकृ ण ने बाद म ौपद क चीर-हरण क समय े े क ती ारा अिभम यु को राखी बांधने क वृ ांत िमलते ह। ु े उनक लाज बचाकर भाई का धम िनभाया था।। सर वती कवच एवं यं उ म िश ा एवं व ा ाि क िलये वंसत पंचमी पर दु ल भ तेज वी मं श े ारा पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य यु सर वती कवच और सर वती यं के योग से सरलता एवं सहजता से मां सर वती क कृ पा ा कर। मू य:280 से 1450 तक GURUTVA KARYALAY Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
  • 10. 10 अग त 2011 कृ ण क मुख म े ांड दशन  िचंतन जोशी य द आपको लगता ह मने िम ट खाई ह, तो वयं मेरा मुख दे ख ले। माँ ने कहा य द ऐसा है तो तू अपना मुख खोल। लीला करने क िलए बाल कृ ण ने अपना मुख माँ े क सम े खोल दया। यशोदा ने जब मुख क अंदर दे खते े ह उसम संपूण व दखाई पड़ने लगा। अंत र , दशाएँ, प, पवत, समु , पृ वी,वायु, व ुत, तारा स हत वगलोक, जल, अ न, वायु, आकाश इ या द विच संपूण व एक ह काल म दख पड़ा। इतना ह नह , यशोदा ने ं उनक मुख म े ज क साथ े वयं अपने आपको भी दे खा। इन बात से यशोदा को तरह-तरह क तक- वतक े एक बार बलराम स हत वाल बाल खेल रह थे होने लगे। या म व न दे ख रह हू ँ ! या दे वताओं क खेलते-खेलते यशोदा क पास पहु ँ चे और यशोदाजी से कहा े कोई माया ह या मेर बु ह यामोह ह या इस मेरे माँ! कृ ण ने आज िम ट खाई ह। यशोदा ने कृ ण के कृ ण का ह कोई वाभा वक भावपूण चम कार ह। हाथ को पकड़ िलया और धमकाने लगी क तुमने अ त म उ ह ने यह ढ़ िन य कया क अव य ह िम ट य खाई! यशोदा को यह भय था क कह ं िम ट इसी का चम कार है और िन य ह ई र इसके प म खाने से कृ ण कोई रोग न लग जाए। माँ क डांट से अवत रत हु एं ह। तब उ ह ने कृ ण क तुित क उस कृ ण तो इतने भयभीत हो गए थे क वे माँ क ओर श व प पर को म नम कार करती हू ँ । कृ ण ने आँख भी नह ं उठा पा रहे थे। तब यशोदा ने कहा तूने जब दे खा क माता यशोदा ने मेरा त व पूण तः समझ एका त म िम ट य खाई! िम ट खाते हु ए तुजे िलया ह तब उ ह ने तुरंत पु नेहमयी अपनी श प बलराम स हत और भी वाल ने दे खा ह। कृ ण ने कहा- माया बखेर द जससे यशोदा ण म ह सबकछ भूल ु िम ट मने नह ं खाई ह। ये सभी लोग झुठ बोल रहे ह। गई। उ ह ने कृ ण को उठाकर अपनी गोद म उठा िलया। भा य ल मी द बी सुख-शा त-समृ क ाि क िलये भा य ल मी द बी :- ज से धन ि , ववाह योग, यापार े वृ , वशीकरण, कोट कचेर क काय, भूत ेत बाधा, मारण, स मोहन, ता े क बाधा, श ु भय, चोर भय जेसी अनेक परे शािनयो से र ा होित है और घर मे सुख समृ क ाि होित है , भा य ल मी द बी मे लघु ी फ़ल, ह तजोड (हाथा जोड ), िसयार िस गी, ब ल नाल, शंख, काली- सफ़द-लाल गुंजा, इ े जाल, माय जाल, पाताल तुमड जेसी अनेक दु ल भ साम ी होती है । मू य:- Rs. 910 से Rs. 8200 तक उ ल गु व कायालय संपक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785
  • 11. 11 अग त 2011 कृ ण मरण का मह व  िचंतन जोशी ी शुकदे वजी राजा पर त ् से कहते ह- श यासनाटनाला ीडा नाना दकमसु। सकृ मनः कृ णापदार व दयोिनवेिशतं त ु णरािग यै रह। न वदु ः स तमा मानं वृ णयःकृ णचेतसः॥ न ते यमं पाशभृ त त टान ् व नेऽ प प य त ह भावाथ: ीकृ ण को अपना सव व समझने वाले भ चीणिन कृ ताः॥ ीकृ ण म इतने त मय रहते थे क सोते, बैठते, घूमते, भावाथ: जो मनु य कवल एक बार े ीकृ ण क गुण म े फरते, बातचीत करते, खेलते, नान करते और भोजन ेम करने वाले अपने िच को ीकृ ण क चरण कमल े आ द करते समय उ ह अपनी सुिध ह नह ं रहती थी। म लगा दे ते ह, वे पाप से छट जाते ह, फर उ ह पाश ू वैरेण यं नृ पतयः िशशुपालपौ - हाथ म िलए हु ए यमदू त क दशन े व नम भी नह ं हो शा वादयो गित वलास वलोकना ैः। सकते। याय त आकृ तिधयः शयनासनादौ त सा यमापुरनुर िधयां पुनः कम॥ ् अ व मृ ितः कृ णपदार व दयोः भावाथ: जब िशशुपाल, शा व और पौ क आ द राजा णो यभ ण शमं तनोित च। वैरभाव से ह खाते, पीते, सोते, उठते, बैठते हर व ी स व य शु ं परमा मभ ं ह र क चाल, उनक िचतवन आ द का िच तन करने के ानं च व ान वरागयु म॥ ् कारण मु हो गए, तो फर जनका िच ी कृ ण म भावाथ: ीकृ ण क चरण कमल का े मरण सदा बना अन य भाव से लग रहा है , उन वर भ क मु े रहे तो उसी से पाप का नाश, क याण क ाि , अ तः होने म तो संदेह ह या ह? करण क शु , परमा मा क भ और वैरा ययु ान- व ान क ाि अपने आप ह हो जाती ह। एनः पूव कृ तं य ाजानः कृ णवै रणः। जहु व ते तदा मानः क टः पेश कृ तो यथा॥ पुंसां किलकृ ता दोषा यदे शा मसंभवान। ् भावाथ: ीकृ ण से े ष करने वाले सम त नरपितगण सवा ह रत िच थो भगवा पु षो मः॥ अ त म ी भगवान के मरण के भाव से पूव संिचत भावाथ:भगवान पु षो म ीकृ ण जब िच म वराजते पाप को न कर वैसे ह भगव ू प हो जाते ह, जैसे ह, तब उनके भाव से किलयुग क सारे पाप और े य, पेश कृ त के यान से क ड़ा त ू प हो जाता है, अतएव दे श तथा आ मा क दोष न े हो जाते ह। ीकृ ण का मरण सदा करते रहना चा हए। योितष संबंिधत वशेष परामश योित व ान, अंक योितष, वा तु एवं आ या मक ान स संबंिधत वषय म हमारे 28 वष से अिधक वष के अनुभव क साथ े योितस से जुडे नये-नये संशोधन क आधार पर आप अपनी हर सम या क सरल समाधान े े ा कर कर सकते ह। गु व कायालय संपक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785
  • 12. 12 अग त 2011 ी कृ ण का नामकरण सं कार  िचंतन जोशी वसुदेवजी क ाथना पर यदु ओं क पुरो हत महातप वी गगाचायजी े ज नगर पहु ँ चे। उ ह दे खकर नंदबाबा अ यिधक स न हु ए। उ ह ने हाथ जोड़कर णाम कया और उ ह व णु तु य मानकर उनक विधवत पूजा क । इसक प ात नंदजी ने उनसे कहा आप क या मेरे इन दोन ब च का नामकरण सं कार कर द जए। े ृ इस पर गगाचायजी ने कहा क ऐसा करने म कछ अड़चन ह। म यदु वंिशय का पुरो हत हू,ँ य द म तु हारे ु इन पु का नामकरण सं कार कर दू ँ तो लोग इ ह दे वक का ह पु मानने लगगे, य क कस तो पहले से ह ं पापमय बु वाला ह। वह सवदा िनरथक बात ह सोचता है । दू सर ओर तु हार व वसुदेव क मै ी है । अब मु य बात यह ह क दे वक क आठवीं संतान लड़क नह ं हो सकती य क योगमाया ने कस से यह ं कहा था अरे पापी मुझे मारने से या फायदा है ? वह सदै व यह सोचता है क कह ं न कह ं मुझे मारने वाला अव य उ प न हो चुका ह। य द म नामकरण सं कार करवा दू ँ गा तो मुझे पूण आशा ह क वह मेरे ब च को मार डालेगा और हम लोग का अ यिधक अिन करे गा। नंदजी ने गगाचायजी से कहा य द ऐसी बात है तो कसी एका त थान म चलकर विध पूव क इनके जाित सं कार करवा द जए। इस वषय म मेरे अपने आदमी भी न जान सकगे। नंद क इन बात को सुनकर गगाचाय ने एका त म िछपकर ब चे का नामकरण करवा दया। नामकरण करना तो उ ह अभी ह था, इसीिलए वे आए थे। गगाचायजी ने वसुदेव से कहा रो हणी का यह पु गुण से अपने लोग क मन को े स न करे गा। अतः इसका नाम राम होगा। इसी नाम से यह पुकारा जाएगा। इसम बल क अिधकता अिधक होगी। इसिलए इसे लोग बल भी कहगे। यदु वंिशय क आपसी फट िमटाकर उनम एकता को यह ू था पत करे गा, अतः लोग इसे संकषण भी कहगे। अतः इसका नाम बलराम होगा। अब उ ह ने यशोदा और नंद को ल य करक कहा- यह तु हारा पु े येक युग म अवतार हण करता रहता ह। कभी इसका वण ेत, कभी लाल, कभी पीला होता है । पूव के येक युग म शर र धारण करते हु ए इसके तीन वण हो चुक ह। इस बार क णवण का हु आ है, अतः इसका नाम क ण होगा। तु हारा यह पु े ृ ृ पहले वसुदेव के यहाँ ज मा ह, अतः ीमान वासुदेव नाम से व ान लोग पुकारगे। तु हारे पु क नाम और े प तो िगनती क परे ह, उनम से गुण और कम अनु प कछ को म जानता हू ँ । े ु दू सरे लोग यह नह ं जान सकते। यह तु हारे गोप गौ एवं गोकल को आनं दत करता हु आ तु हारा क याण करे गा। ु इसके ारा तुम भार वप य से भी मु रहोगे। इस पृ वी पर जो भगवान मानकर इसक भ करगे उ ह श ु भी परा जत नह ं कर सकगे। जस तरह व णु क भजने वाल को असुर नह ं परा जत कर सकते। यह तु हारा पु े स दय, क ित, भाव आ द म व णु के स श होगा। अतः इसका पालन-पोषण पूण सावधानी से करना। इस कार क ण क ृ े वषय म आदे श दे कर गगाचाय अपने आ म को चले गए।
  • 13. 13 अग त 2011 ॥ ीकृ ण चालीसा ॥ दोहा कितक महा असुर संहार्यो। कस ह कस पक ड़ दै मार्यो॥ े ं े बंशी शोिभत कर मधुर, नील जलद तन याम। मात- पता क ब द छड़ाई। उ सेन कहँ राज ु दलाई॥ अ णअधरजनु ब बफल, नयनकमलअिभराम॥ म ह से मृ तक छह सुत लायो। मातु दे वक शोक िमटायो॥ पूण इ , अर व द मुख, पीता बर शुभ साज। भौमासुर मुर दै य संहार । लाये षट दश सहसकमार ॥ ु जय मनमोहन मदन छ व, कृ णच महाराज॥ दै भीम हं तृ ण चीर सहारा। जरािसंधु रा स कहँ मारा॥ जय यदु नंदन जय जगवंदन। जय वसुदेव दे वक न दन॥ असुर बकासुर आ दक मार्यो। भ न क तब क िनवार्यो॥ े जय यशुदा सुत न द दु लारे । जय भु भ न के ग तारे ॥ द न सुदामा क दु ःख टार्यो। तंद ु ल तीन मूंठ मुख डार्यो॥ े जय नट-नागर, नाग नथइया॥ कृ ण क हइया धेनु चरइया॥ ेम क साग े वदु र घर माँगे। दु य धन क मेवा े यागे॥ पुिन नख पर भु िग रवर धारो। आओ द नन क िनवारो॥ लखी ेम क म हमा भार । ऐसे याम द न हतकार ॥ वंशी मधुर अधर ध र टे रौ। होवे पूण वनय यह मेरौ॥ भारत क पारथ रथ हाँक। िलये च े े कर न हं बल थाक॥ े आओ ह र पुिन माखन चाखो। आज लाज भारत क राखो॥ िनज गीता के ान सुनाए। भ न दय सुधा वषाए॥ गोल कपोल, िचबुक अ णारे । मृ द ु मु कान मो हनी डारे ॥ मीरा थी ऐसी मतवाली। वष पी गई बजाकर ताली॥ रा जत रा जव नयन वशाला। मोर मुकट वैज तीमाला॥ ु राना भेजा साँप पटार । शाली ाम बने बनवार ॥ कडल ुं वण, पीत पट आछे । क ट क कणी काछनी काछे ॥ ं िनजमाया तुम विध हं दखायो। उर ते संशय सकल िमटायो॥ नील जलज सु दरतनु सोहे । छ बल ख, सुरनर मुिनमन मोहे ॥ तब शत िन दा क र त काला। जीवन मु भयो िशशुपाला॥ म तक ितलक, अलक घुँघराले। आओ कृ ण बांसुर वाले॥ जब हं ौपद टे र लगाई। द नानाथ लाज अब जाई॥ क र पय पान, पूतन ह तार्यो। अका बका कागासुर मार्यो॥ तुरत ह वसन बने नंदलाला। बढ़े चीर भै अ र मुँह काला॥ मधुवन जलतअिगन जब वाला। भैशीतललखत हं नंदलाला॥ अस अनाथ क नाथ क हइया। डू बत भंवर बचावइ नइया॥ े सुरपित जब ज च यो रसाई। मूसर धार वा र वषाई॥ 'सु दरदास' आस उर धार । दया क जै बनवार ॥ लगत लगत ज चहन बहायो। गोवधन नख धा र बचायो॥ नाथ सकल मम कमित िनवारो। ु महु बेिग अपराध हमारो॥ ल ख यसुदा मन म अिधकाई। मुखमंह चौदह भुवन दखाई॥ खोलो पट अब दशनद जै। बोलो कृ ण क हइया क जै॥ दु कस अित उधम मचायो। को ट कमल जब फल मंगायो॥ ं ू दोहा नािथ कािलय हं तब तुम ली ह। चरण िच दै िनभय क ह॥ यह चालीसा कृ ण का, पाठ करै उर धा र। क र गो पन संग रास वलासा। सबक पूरण कर अिभलाषा॥ अ िस नविनिध फल, लहै पदारथ चा र॥ अ ल मी कवच अ ल मी कवच को धारण करने से य पर सदा मां महा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना रहता ह। ज से मां ल मी क अ े प (१)-आ द ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)- गज ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी पो का वतः अशीवाद ा होता ह। मू य मा : Rs-1050
  • 14. 14 अग त 2011 व प ीकृ त ीकृ ण तो व प य ऊचुः वं परमं धाम िनर हो िनरहं कृितः। िनगु ण िनराकारः साकारः सगुणः वयम ् ॥१॥ सा प िनिल ः परमा मा िनराकृ ितः। कृ ितः पु ष वं च कारणं च तयोः परम ् ॥२॥ सृ थ यंत वषये ये च दे वा यः मृ ताः। ते वदं शाः सवबीजा - व णु-महे राः ॥३॥ य य लो नां च ववरे चाऽ खलं व मी रः। महा वरा महा व णु तं त य जनको वभो ॥४॥ तेज वं चाऽ प तेज वी ानं ानी च त परः। वेदेऽिनवचनीय वं क वां तोतुिमहे रः ॥५॥ महदा दसृ सू ं पंचत मा मेव च। बीजं वं सवश नां सवश व पकः ॥६॥ सवश रः सवः सवश या यः सदा। वमनीहः वयं योितः सवान दः सनातनः ॥७॥ अहो आकारह न वं सव व हवान प। सव याणां वषय जानािस ने यी भवान ् ।८॥ सर वती जड भूता यत ् तो े य न पणे। जड भूतो महे श शेषो धम विधः वयम ् ॥९॥ पावती कमला राधा सा व ी दे वसूर प। ॥११॥ इित पेतु ता व प य त चरणा बुजे। अभयं ददौ ता यः स नवदने णः ॥१२॥ व प ीकृ तं तो ं पूजाकाले च यः पठे त। स गितं व प ीनां ् लभते नाऽ संशयः ॥१३॥ ॥ इित ी वैवत व प ीकृ तं कृ ण तो ं समा म॥ ् इस ीकृ ण तो का िनयिमत पाठ करने से भगवान ् ीकृ ण अपने भ पर िनःस दे ह स न होते है । यह तो य अभय को दान करने वाला ह।
  • 15. 15 अग त 2011 ाणे र ीकृ ण मं  िचंतन जोशी मं :- "ॐ ऐं ीं लीं ाण व लभाय सौः सौभा यदाय ीकृ णाय वाहा।" विनयोगः- ॐ अ य ी ाणे र ीकृ ण मं य भगवान ् ीवेद यास ऋ षः, गाय ी छं दः-, ीकृ ण-परमा मा दे वता, लीं बीजं, ीं श ः, ऐं क लक, ॐ यापकः, मम सम त- लेश-प रहाथ, चतुव ग- ा ये, ं सौभा य वृ यथ च जपे विनयोगः। ऋ या द यासः- ीवेद यास ऋषये नमः िशरिस, गाय ी छं दसे नमः मुख, े ीकृ ण परमा मा दे वतायै नमः द, लीं बीजाय नमः गु े, ीं श ये नमः नाभौ, ऐं क लकाय नमः पादयो, ॐ यापकाय नमः सवा गे, मम सम त लेश प रहाथ, चतुव ग ा ये, सौभा य वृ यथ च जपे विनयोगाय नमः अंजलौ। कर- यासः- ॐ ऐं ीं लीं अंगु ा यां नमः ाणव लभाय तजनी यां वाहा, सौः म यमा यां वष , सौभा यदाय अनािमका यां हु ं ीकृ णाय किन का यां वौष , वाहा करतलकरपृ ा यां फ । अंग- यासः- ॐ ऐं ीं लीं दयाय नमः, ाण व लभाय िशरसे वाहा, सौः िशखायै वष , सौभा यदाय िशखायै कवचाय हु ,ं ीकृ णाय ने - याय वौष , वाहा अ ाय फ । यानः- "कृ णं जग मपहन- प-वण, वलो य ल जाऽऽकिलतां ु मरा याम ् । मधूक-माला-युत-कृ ण-दे हं, वलो य चािलं य ह रं मर तीम ् ।। " भावाथ: संसार को मु ध करने वाले भगवान ् कृ ण क प-रं ग को दे खकर ेम पूण होकर गो पयाँ ल जापूव क याकल होती ह और े ु मन-ह -मन ह र को मरण करती हु ई भगवान ् कृ ण क मधूक-पु प क माला से वभु षत दे ह का आिलंगन करती ह। इस मं का विध- वधान से १,००,००० जाप करने का वधान ह। ाण ित त दु गा बीसा यं शा ो मत क अनुशार दु गा बीसा यं े दु भा य को दू र कर य क सोये हु वे भा य को जगाने वाला माना े गया ह। दु गा बीसा यं ारा य को जीवन म धन से संबंिधत सं याओं म लाभ ा होता ह। जो य आिथक सम यासे परे शान ह , वह य य द नवरा म ाण ित त कया गया दु गा बीसा यं को थाि कर लेता ह, तो उसक धन, रोजगार एवं यवसाय से संबंधी सभी सम य का शी ह अंत होने लगता ह। नवरा क दनो े म ाण ित त दु गा बीसा यं को अपने घर-दु कान-ओ फस-फ टर म ै था पत करने से वशेष लाभ ा होता ह, य शी ह अपने यापार म वृ एवं अपनी आिथक थती म सुधार होता दे खगे। संपूण ाण ित त एवं पूण चैत य दु गा बीसा यं को शुभ मुहू त म अपने घर-दु कान-ओ फस म था पत करने से वशेष लाभ ा होता ह। मू य: Rs.550 से Rs.8200 तक
  • 16. 16 अग त 2011 ा रिचत कृ ण तो ोवाच : र र हरे मां च िनम नं कामसागरे । मं िस ा दु क ितजलपूण च दु पारे बहु संकटे ॥१॥ एकमुखी ा -Rs- 1250,2800 भ व मृ ितबीजे च वप सोपानदु तरे । दो मुखी ा -Rs- 100,151 अतीव िनमल ानच ुः- छ नकारणे ॥२॥ तीन मुखी ा -Rs- 100,151 ज मोिम-संगस हते यो ष न ाघसंकले। ु चार मुखी ा -Rs- 55,100 रित ोतःसमायु े ग भीरे घोर एव च ॥३॥ पंच मुखी ा -Rs- 28,55 थमासृ त पे च प रणाम वषालये। छह मुखी ा -Rs- 55,100 यमालय वेशाय मु ाराित व तृ तौ ॥४॥ बु या तर या व ानै रा मानतः वयम। ् सात मुखी ा -Rs- 120,190 वयं च व कणधारः सीद मधुसूदन ॥५॥ आठ मुखी ा -Rs- 820,1250 म धाः कितिच नाथ िनयो या भवकम ण। नौ मुखी ा -Rs- 820,1250 स त व ेश वधयो हे व े र माधव ॥६॥ दसमुखी ा -Rs- ........ न कम े मेवेद लोकोऽयमी सतः। यारहमुखी ा -Rs- 2800 तथाऽ प न पृ हा कामे व यवधायक ॥७॥ े बारह मुखी ा -Rs- 3600 हे नाथ क णािस धो द नब धो कृ पां क । ु तेरह मुखी ा -Rs- 6400 वं महे श महा ाता दु ः व नं मां न दशय ॥८॥ चौदह मुखी ा -Rs- 19000 इ यु वा जगतां धाता वरराम सनातनः। गौर षंकर ा -Rs- ..... यायं यायं म पदा जं श तस मार मािमित ॥९॥ ् णा च कृ तं तो ं भ यु यः पठे त। ् गु व कायालय: Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) स चैवाकम वषये न िनम नो भवे ुवम ् ॥१०॥ INDIA Call Us: 91+ 9338213418, 91+ मम मायां विन ज य स ानं लभते ुवम। ् 9238328785, E-mail Us:- इह लोक भ े यु ो म वरो भवेत ् ॥११॥ gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, ॥ इित ी दे वकृ तं कृ ण तो ं स पूणम॥ ्