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गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका जून- 2013
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E CIRCULAR
ई- जन्भ ऩत्रिकागुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका
जून 2013
सॊऩादक
अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया
उत्कृ ष्ट बत्रवष्मवाणी के साथ
१००+ ऩेज भं प्रस्तुत
सिॊतन जोशी
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग
गुरुत्व कामाारम
92/3. BANK COLONY,
BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018,
(ORISSA) INDIA
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सिॊतन जोशी,
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
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सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा
हभाये भुख्म सहमोगी GURUTVA KARYALAY
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स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक
सोफ्टेक इस्न्डमा सर)
अनुक्रभ
बायतीम सॊस्कृ सत भं शॊख का भहत्व 7 साभुफिक शास्त्र भं शसन येखा का भहत्व 39
दस्ऺणावता शॊख का धासभाक भहत्व 9 शसन के त्रवसबन्न ऩाम का पर 41
दस्ऺणावता शॊख से जुड़े गूढ़ यहस्म 12 श्री शसन िारीसा 44
शॊख नाद एक अद्भुत यहस्म 14 शसनग्रह से सॊफॊसधत योग 45
हभाये जीवन भं शॊख का भहत्व 16 शसनदेव की कृ ऩा प्रासद्ऱ के सयर उऩाम 46
सशवसरॊग ऩूजन भं शॊख सनषेद्ध क्मो? 19 शसन के त्रवसबन्न भॊि 48
शॊख ऩूजन से वास्तुदोष सनवायण 20 भहाकार शसन भृत्मुॊजम स्तोि 49
इष्ट आयाधना भं शॊख अभोघ परदामी हं। 21 ॥ शनैश्चयस्तवयाज्॥ 52
शॊख अऩनामे योग, दु्ख, दरयिता, दुबााग्म बगामे 23 ॥ शनैश्चयस्तोिभ ् ॥ 53
शसनदेव का ऩरयिम 24 ॥शसनवज्रऩॊजयकविभ ्॥ 53
शसनवाय व्रत 30 दशयथकृ त-शसन-स्तोि 54
शसन प्रदोष व्रत का भहत्व 36 शसन अष्टोत्तयशतनाभावसर् 58
शसन-साढ़ेसाती के शाॊसत उऩाम 37 गुरु ऩुष्माभृत मोग 59
हभाये उत्ऩाद
भॊि ससद्ध दुराब साभग्री एवॊ भारा 18 त्रवसबन्न देवता एवॊ काभना ऩूसता मॊि सूसि 69
बाग्म रक्ष्भी फदब्फी 19 त्रवसबन्न देवी एवॊ रक्ष्भी मॊि सूसि 70
भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश 20 याशी यत्न 71
भॊि ससद्ध स्पफटक श्री मॊि 22 भॊि ससद्ध रूिाऺ 72
भॊि ससद्ध भॊगर गणेश 35 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि / कवि 73
भॊि ससद्ध घोड़े की नार 38 याभ यऺा मॊि 74
त्रवद्या प्रासद्ऱ हेतु सयस्वती कवि औय मॊि 40 जैन धभाके त्रवसशष्ट मॊि 75
सवा कामा ससत्रद्ध कवि 60 घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि 76
हभाये त्रवशेष मॊि 61 अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कवि 77
सवाससत्रद्धदामक भुफिका 62 याशी यत्न एवॊ उऩयत्न 77
100 से असधक जैन मॊि 62 भॊि ससद्ध साभग्री 86-89
द्रादश भहा मॊि 63 सवा योगनाशक मॊि/ 93
ऩुरुषाकाय शसन मॊि एवॊ शसन तैसतसा मॊि 66 भॊि ससद्ध कवि 95
नवयत्न जफड़त श्री मॊि 67 YANTRA LIST 96
वाहन दुघाटना नाशक भारुसत मॊि 68 GEM STONE 98
श्री हनुभान मॊि 68 PHONE/ CHAT CONSULTATION 99
स्थामी औय अन्म रेख
सॊऩादकीम 4 दैसनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 89
जून 2013 भाससक यासश पर 78 फदन-यात के िौघफडमे 90
जून 2013 भाससक ऩॊिाॊग 82 फदन-यात फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक 91
जून 2013 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 84 ग्रह िरन जून 2013 92
जून 2013-त्रवशेष मोग 89 हभाया उद्देश्म 102
त्रप्रम आस्त्भम
फॊधु/ फफहन
जम गुरुदेव
शॊख की उत्ऩत्रत्त के त्रवषम भं शास्त्रं भं उल्रेख है फक सभुि भॊथन के सभम िौदह प्रकाय के यत्नं भं शॊख बी
सनकरा।
भुख्म रुऩ से शॊख की उत्ऩत्रत्त जर से ही होती है। जर ही जीवन का आधाय है मही कायण हं की सृत्रष्ट की
उत्ऩत्रत्त बी जर से हुई है। अत: जर से उत्ऩत्रत्त के कायण शॊख की भहत्वता सवाासधक यही हं। अनेकं देवी-देवता के
एक हाथ भं शॊख शोबामभान होता हं। मही कायण हं कई की सफदमं से शॊख का उऩमोग त्रवसबन्न धासभाक अनुष्ठानं भं
त्रवशेष रूऩ से फकमा जाता है।
शॊख का इसतहास बायतीम सॊस्कृ सत भं असत प्रासिन एवॊ देवकारीन मुग से िरा आयहा है। त्रवऻानीक िष्टी कोण से
सभझे तो शॊख सभुि भं ऩाए जाने वारे एक प्रकाय के जीव घंघे का खोर होता है। मह खोर घंघे अऩनी सुयऺा के
सरए फनाता है।
त्रवद्रानो ने अऩने अनुबवं एवॊ अनुशॊधान से ऩामा हं की ऩौयास्णक कार से ही सभुिी जीवं का मह खोर अथाात शॊख
भनुष्म के सरए त्रवसबन्न प्रकाय से उऩमोगी यहा हं। शॊख की आध्मास्त्भक उऩमोगीता के साथ ही इसके िूणा, बस्भ
आफद का औषसधम रुऩ भं बी त्रवशेष रुऩ से प्रमोग होता यहा हं।
फहन्दू सॊस्कृ सत भं शॊख को अत्मॊत भहत्त्वऩूणा भाना जाता है। त्रवसबन्न धभाग्रॊथं भं शॊख की त्रवसबन्न उऩमोगीताओॊ का
त्रवस्तृत वणान सभरता हं।
ब्रह्मवैवता ऩुयाण भं उल्रेख सभल्ता है:
शॊख िन्िाका दैवत्मभ्भध्म वरुणदैवतन्।
ऩृष्ठे प्रजाऩसता त्रवद्यादग्रे गॊगा सयस्वतीभ्॥
िैरोक्मे मासन तीथाात्रऩ वासुदेवस्म िाऻमा।
शॊखे सतष्ठस्न्त त्रवप्रेन्ि तस्भा शॊख प्रऩुजमेत्।।
दशानेन फह शॊखस्म की ऩुन्
त्रवरमॊ मासतॊ ऩाऩसन फहभवद् बास्कयोदमे्।।
अथाात: मह शॊख िॊि औय सूमा के सभान देव स्वरूऩ है। इसके भध्म बाग भं वरुण, ऩृष्ठ बाग भं ब्रह्मा औय अग्र बाग
भं गॊगा औय सयस्वती के साथ-साथ साये तीथं का वास है। मह कु फेय का बी स्वरूऩ हं अत् इसका ऩूजन अवश्म
कयना िाफहए। इसके दशान भाि से सबी कष्ट दूय हो जाते हं। स्जस प्रकाय सूमा के आने ऩय फपा त्रऩघर जाती है। फपय
स्ऩशा की तो फात ही व्मथा है। शॊख का स्वरूऩ कु फेय के सभान है, अत् मह ऩूजनीम है।
शॊख से श्रीकृ ष्ण मा रक्ष्भी आफद देवी-देवता(शास्त्रं भं शॊख से सशवसरॊग ऩूजन वस्जात भाना गमा हं।) के त्रवग्रह
ऩय जर मा ऩॊिाभृत असबषेक कयने ऩय देवता शीघ्र प्रसन्न होते हं।
जानकाय त्रवद्रानं का अनुबव हं की एक उत्तभ दोष यफहत शॊख जो भनुष्म के सरए सबी प्रकाय से ऩयभ्
कल्माणकायी हं। मह भनुष्म को दैसनक जीवन भं इष्ट आयाधना, ऩूजा-अिाना आफद के सरए प्रेरयत कयता है।
सुख-सभृत्रद्ध, धन-सॊऩत्रत्त, रयत्रद्ध-ससत्रद्ध एवॊ ऐश्वमा की प्रासद्ऱ के सरए हभाये धभा शास्त्रं भे दस्ऺणावता शॊख का
अत्मासधक भहत्व फतामा गमा हं। दस्ऺणावता शॊख का भुख दामीॊ औय से खुरा होता हं।
शास्त्रोक्त भान्मता हं की स्जस घय भं त्रवसध-त्रवधान से दस्ऺणावता शॊख का ऩूजन होता हं, उस घय भं धन, सुख,
सभृत्रद्ध, मश-फकसता की वृत्रद्ध होती हं। उस घय भं रक्ष्भी स्स्थत होती हं।
आज वैऻासनक अनुसॊधान से मह सात्रफत हो गमा हं की सनमसभत शॊखनाद कयने से उसके सकायात्भक प्रबाव से
वातावयण भं व्माद्ऱ हासनकायक सूक्ष्भ जीवाणुओॊ का नाश होता हं।
जनकायं का भानना हं की शॊखनाद के दौयान वामुभॊडर भं कु छ त्रवशेष प्रकाय की तयॊगे उत्ऩन्न होती हं, जो
ब्रह्माॊड की कु छ अन्म तयॊगं के साथ सभरकय अल्ऩ ऺणं भं ही सभग्र ब्रह्माॊड की ऩरयक्रभा कय रेती हं। उनका भानना
हं की ब्रह्माण्ड की ऩरयक्रभा कयते हुवे जफ फकसी एक तयॊग को जफ दूसयी अनुकू र तयॊगं प्राद्ऱ होती हं तफ दोनं तयॊगं
के सभनवम से भनुष्म को आत्भ फर-प्रेयणा देने वारी, योग, शोक आफद से यऺा कयने वारी, उसकी भनोकाभनाएॊ ऩूणा
कयने वारी तयॊगे उठने रगती हं, औय भनुष्म अऩने कामा उद्देश्म भं शीघ्र सपरता प्राद्ऱ कय रेता हं।
जानकायं का भानना हं की तयॊगे इतनी शूक्ष्भ होती हं की उसका प्रबाव हभं सयरता से िष्टी गोिय नहीॊ हो
ऩाता! शॊखनाद के सनयॊतय प्रमोग से ही इन तयॊगं के प्रबावं को सभझा जा सकता हं।
त्रवसबन्न शोध से मह ससद्ध हो िुका हं की वाद्यं व ध्वसनमं का छोटे-फड़े सबी जीवं ऩय फहोत ही गहया प्रबाव
ऩड़ता हं। उसी प्रकाय शॊख ध्वसन के प्रबाव एवॊ भहत्वता को आजका आधुसनक त्रवऻान बी भान िुका हं।
फहन्दू धभा के सबी भाॊगसरक कामं भं शॊख का त्रवशेष रुऩ से प्रमोग फकमा जाता है। दस्ऺणावतॉ शॊख को देवी
रक्ष्भी का प्रतीक भाना जाता है, दस्ऺणावतॉ शॊख की ऩूजा देवी भहारक्ष्भी को प्रसन्न कयने वारी है। इससरए ऐसी
भान्मता हं की स्जस स्थान ऩय सनमसभत रूऩ से शॊख की ऩूजा होती है उस स्थान ऩय कबी धन अबाव नहीॊ यहता।
शॊख को त्रवसबन्न देवी-देवता का प्रतीक भानकय बी ऩूजा जाता है व शॊख के भाध्मभ से अबीष्ट कामं की ऩूसता की
जाती है।
रक्ष्भी सॊफहता, बागवत ऩुयाण, त्रवश्वासभि सॊफहता, गोयऺा सॊफहता, कश्मऩ सॊफहता, शॊख सॊफहता, ऩुरस्त्म सॊफहता,
भाकं डेम आफद धभा ग्रॊथं भं दस्ऺणावतॉ शॊख को आमुवाद्धक औय सभृत्रद्ध दामक होने का उल्रेख सभरता हं।
8 जून 2013 को शसन जमॊती, शनैश्चयी अभावस्मा, शसन अभावस्मा का दुराब सॊमोग होने के कायण ऩाठकं के भागादशान
हेतु शसनदेव से सॊफॊसधत ऩुयाने रेखं का ऩुन् प्रकाशन फकमा गमा हं।
इस अॊक भं प्रकासशत शॊख से सॊफॊसधत जानकायीमं के त्रवषम भं साधक एवॊ त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हं, मफद दशाामे
गए शॊख के राब, प्रबाव इत्मादी के सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं, फडजाईन भं, टाईऩीॊग भं, त्रप्रॊफटॊग भं, प्रकाशन
भं कोई िुफट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा फकसी मोग्म ज्मोसतषी, गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे ।
क्मोफक त्रवद्रान ज्मोसतषी, गुरुजनो एवॊ साधको के सनजी अनुबव त्रवसबन्न कविो शॊख के प्रबावं का वणान कयने भं बेद
होने ऩय शॊख की, ऩूजन त्रवसध एवॊ उसके प्रबावं भं सबन्नता सॊबव हं।
आऩका जीवन सुखभम, भॊगरभम हो शसनदेव की कृ ऩा आऩके ऩरयवाय ऩय
फनी यहे। शसनदेव से मही प्राथना हं…
सिॊतन जोशी
6 जून 2013
***** शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत सूिना *****
 ऩत्रिका भं प्रकासशत शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक भं शॊख से सॊफॊसधत रेख गुरुत्व कामाारम के असधकायं के साथ ही
आयस्ऺत हं।
 शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक भं वस्णात रेखं को नास्स्तक/अत्रवश्वासु व्मत्रक्त भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं।
 शॊख भहत्व का त्रवषम आध्मात्भ से सॊफॊसधत होने के कायण इसे बायसतम धभा शास्त्रं से प्रेरयत होकय
प्रस्तुत फकमा हं।
 शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय की
स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं।
 शॊख भहत्व से सॊफॊसधत सबी जानकायीकी प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक
की नहीॊ हं औय ना हीॊ प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी के फाये भं जानकायी देने हेतु कामाारम
मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हं।
 शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवश्वास होना आवश्मक हं। फकसी बी
व्मत्रक्त त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवश्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का
होगा।
 शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत फकसी बी प्रकाय की आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।
 शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय फदए गमे हं।
हभ फकसी बी व्मत्रक्त त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे, भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी
स्जन्भेदायी नफहॊ रेते हं। मह स्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रक्त फक
स्वमॊ फक होगी।
 क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊडं, साभास्जक, कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रक्त मफद नीजी
स्वाथा ऩूसता हेतु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकू र ऩरयणाभ सॊबव हं।
 शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत जानकायी को भाननने से प्राद्ऱ होने वारे राब, राब की हानी मा
हानी की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हं।
 हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी शॊख भहत्व की जानकायी एवॊ भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय
स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधुगण ऩय प्रमोग फकमे हं स्जस्से हभे हय प्रमोग मा कवि, भॊि-मॊि मा
उऩामो द्राया सनस्श्चत सपरता प्राद्ऱ हुई हं।
असधक जानकायी हेतु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं।
(सबी त्रववादो के सरमे के वर बुवनेश्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)
7 जून 2013
बायतीम सॊस्कृ सत भं शॊख का भहत्व
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
शॊख का इसतहास बायतीम सॊस्कृ सत भं असत प्रासिन एवॊ
देवकारीन मुग से िरा आयहा है। त्रवऻानीक िष्टी कोण
से सभझे तो शॊख सभुि भं ऩाए जाने वारे एक प्रकाय के
जीव घंघे का खोर होता है। मह खोर घंघे अऩनी सुयऺा
के सरए फनाता है।
जानकाय त्रवद्रानो ने अऩने अनुबवं एव्ॊ अनुशॊधान
से ऩामा हं की ऩौयास्णक कार से ही सभुिी जीवं का मह
खोर अथाात शॊख भनुष्म के सरए त्रवसबन्न प्रकाय से
उऩमोगी यहा हं। शॊख की आध्मास्त्भक उऩमोगीता के
साथ ही इसके िूणा, बस्भ आफद का औषसधम रुऩ भं
बी त्रवशेष रुऩ से प्रमोग होता यहा हं।
कु छ त्रवद्रानं का भानना हं की
बायत भं जगन्नाथऩुयी (उड़ीसा) को शॊख
ऺेि कहा जाता है, क्मंफक
जगन्नाथऩुयी का बौगोसरक आकाय
शॊख के सभान सदृश्म है।
शॊख का धासभाक भहत्व:
फहन्दू सॊस्कृ सत भं शॊख को अत्मॊत भहत्त्वऩूणा
भाना जाता है। त्रवसबन्न धभाग्रॊथं भं शॊख की त्रवसबन्न
उऩमोगीताओॊ का त्रवस्तृत वणान सभरता हं।
ब्रह्मवैवता ऩुयाण भं उल्रेख सभल्ता है:
शॊख िन्िाका दैवत्मभ्भध्म वरुणदैवतन्।
ऩृष्ठे प्रजाऩसता त्रवद्यादग्रे गॊगा सयस्वतीभ्॥
िैरोक्मे मासन तीथाात्रऩ वासुदेवस्म िाऻमा।
शॊखे सतष्ठस्न्त त्रवप्रेन्ि तस्भा शॊख प्रऩुजमेत्।।
दशानेन फह शॊखस्म की ऩुन्
त्रवरमॊ मासतॊ ऩाऩसन फहभवद् बास्कयोदमे्।।
अथाात: मह शॊख िॊि औय सूमा के सभान देव स्वरूऩ है।
इसके भध्म बाग भं वरुण, ऩृष्ठ बाग भं ब्रह्मा औय अग्र
बाग भं गॊगा औय सयस्वती के साथ-साथ साये तीथं का
वास है। मह कु फेय का बी स्वरूऩ हं अत् इसका ऩूजन
अवश्म कयना िाफहए। इसके दशान भाि से सबी कष्ट दूय
हो जाते हं। स्जस प्रकाय सूमा के आने ऩय फपा त्रऩघर
जाती है। फपय स्ऩशा की तो फात ही व्मथा है। शॊख का
स्वरूऩ कु फेय के सभान है, अत् मह ऩूजनीम है।
शॊख से श्रीकृ ष्ण मा रक्ष्भी आफद देवी-देवता(शास्त्रं
भं शॊख से सशवसरॊग ऩूजन वस्जात भाना गमा हं।) के
त्रवग्रह ऩय जर मा ऩॊिाभृत असबषेक कयने ऩय देवता
शीघ्र प्रसन्न होते हं।
जानकाय त्रवद्रानं का अनुबव हं की
एक उत्तभ दोष यफहत शॊख जो भनुष्म के
सरए सबी प्रकाय से ऩयभ् कल्माणकायी
हं। मह भनुष्म को दैसनक जीवन भं इष्ट
आयाधना, ऩूजा-अिाना आफद के सरए
प्रेरयत कयता है।
शॊख को सनातन धभा का प्रतीक
भाना गमा है, इस सरए फहन्दू धभा भं ऩूजा
स्थर ऩय शॊख यखने की ऩयॊऩया है त्रवशेष रुऩ से
प्रिसरत हं।
फहन्दू धभा की भान्मताओॊ के अनुसाय शॊख मा
शॊख की भाॊगसरक आकृ सत वारे सिन्ह ऩूजास्थर भं होने
से बवन के सबी प्रकाय के अरयष्टं एवॊ असनष्टं का स्वत्
नाश हो जाता है औय उस बवन भं सनयॊतय सुख,
सौबाग्म की वृत्रद्ध होती है। कु छ जानकाय त्रवद्रानं ने शॊख
को सनसध का प्रतीक कहा है।
धभाशास्त्र भं शॊख का अष्टससत्रद्ध एवॊ नवसनसध भं
भहत्त्वऩूणा स्थान फतामा गमा है। धासभाक भान्मता के
अनुसाय शॊख के स्ऩशा से साधायण जर बी गॊगाजर के
सभान ऩत्रवि हो जाता हं, मही कायण हं की फहन्दू धभा भं
त्रवसबन्न प्रकाय की धासभाक फक्रमाओॊ भं शॊख के जर का
8 जून 2013
प्रमोग त्रवशेष रुऩ से फकमा जाता है। फहन्दू भॊफदयं भं शॊख
भं शुद्ध जर बयकय देवी-देवता की आयती की जाती है।
आयती की सभासद्ऱ ऩय शॊख का जर उऩस्स्थत बक्तं ऩय
सछड़का जाता हं।
त्रवद्रानं का कथन हं की जो भनुष्म बगवान श्री
कृ ष्ण को शॊख भं जर, पू र औय अऺत यखकय उन्हं
अध्मा देता है, उसे अनन्त ऩुण्म परं की प्रासद्ऱ होती है।
शॊख भं जर बयकय इष्ट भॊिं का उच्िायण कयते
हुए बगवान श्री कृ ष्ण को स्नान कयाने से भनुष्म के
सकर ऩाऩं का नाश होता है।
कु छ त्रवद्रानं का कथन हं की अनेक ऩूजा,
अनुष्ठान, मऻ आफद भं शॊख का प्रमोग असनवामा भाना
गमा हं, वह धासभाक कामा शॊख के त्रफना ऩूणा नहीॊ भाना
जाता है।
कु छ त्रवसशष्ट साधनाओॊ भं बी शॊख
का त्रवशेष रुऩ से प्रमोग फकमा जाता हं।
भान्मता हं की शॊख भनुष्म की इस्च्छत
भनोकाभनाएॊ शीघ्र ऩूणा कयने भं सहामक
होते हं। कु छ जानकायं का तो महा तक
कथन हं की जो भनुष्म को सुख, सभृत्रद्ध से
मुक्त सुखभम जीवन व्मसतत कयना िाहते
हं उन्हं अऩने ऩूजा स्थान भं शॊख अवश्म
स्थात्रऩत कयना िाफहए। त्रवसबन्न शास्त्रं भं शॊख को
त्रवजम, सुख, सभृत्रद्ध, ऐश्वमा, कीसता औय रक्ष्भी का प्रतीक
फतामा गमा है।
शॊख सत मुग से रेकय क्रभश् िेता मुग द्राऩय
मुग औय कसर मुग भं बी रोगं को अऩनी औय आकत्रषात
कयते यहे है, सत मुग से रेकय आज तक उसकी
भहत्वता एवॊ उऩमोगीता अत्मॊत अद्भुत यही हं स्जस के
कायण ही इसे देव, दानव औय भानव सबी ने शॊख को
अऩने राबाथा इस्तेभार कयते आमे हं। शॊख की भहत्वता
इतनी असधक हं की इसका अनुभान इसी फात से रगा
सकते हं की शॊख भुख्मत् इष्ट आयाधना से रेकय मुद्ध
बूसभ तक अऩना त्रवशेष भहत्त्व औय स्थान यखता है।
इष्ट आयाधना के दौयान शॊख की ध्वसन हभाये
सबतय श्रद्धा वा आस्था का सॊिाय कयती हं औय मुद्ध के
दौयान शॊख की ध्वसन मोद्धाओॊ के जोश भं वृत्रद्ध कयती हं।
धभाशास्त्रं के जानकायं का कथन हं की मुद्ध भं
प्रथभ फाय शॊख का उऩमोग देव-असुय के त्रफि के मुद्ध भं
फकमा गमा था, फतामा जाता हं की इस मुद्ध भं सबी
देव-दानव अऩने-अऩने शॊखं के साथ मुद्ध बूसभ भं आए
थे। उस मुद्ध के दौयान शॊखं फक ध्वसन के साथ मुद्ध
आयॊब होता औय ध्वसन के साथ ही मुद्ध ख़त्भ होता था।
ऐसी शास्त्रोक्त भान्मता हं की देव-दानव के उस मुद्ध के
फाद से ही प्राम् हय देवी-देवता अऩने साथ शॊख यखते है।
असधकाॊश शॊख वाभावतॉ होते हं औय वाभावतॉ
शॊख फाज़ाय भं आसानी से उऩरब्ध हो जाते हं,
दस्ऺणावतॉ शॊख को असत दुराब भाना जाता
हं।
वाभावतॉ शॊख को बगवान श्री त्रवष्णु का
स्वरुऩ भान कय उसे ऩूजा जाता है औय
दस्ऺणावतॉ शॊख को देवी भहारक्ष्भी का
स्वरुऩ भान कय उसे ऩूजन फकमा जाता
है।
त्रवद्रानं का कथन हं की स्जस घय भं
दस्ऺणावतॉ शॊख होता हं उस घय भं सदा
देवी भहारक्ष्भी का वास यहता है।
कु छ तॊि त्रवद्याके जानकायं के कथन अनुसाय
दस्ऺणावतॉ शॊख का मफद ऩूणा त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन
फकमा जामे, औय दस्ऺणावतॉ शॊख को रार कऩड़े भं
रऩेटकय अऩने घय के ऩूजन स्थान भं स्थात्रऩत कयने से
घय की त्रवसबन्न ऩयेशासनमाॊ दूय होती है।
दस्ऺणावतॉ शॊख को अऩनी सतज़ोयी भे यखने से
घय भं सनयॊतय सुख-सभृत्रद्ध फढ़ती है। इसी सरए जानकाय
त्रवद्रान घय भं दस्ऺणावतॉ शॊख को स्थात्रऩत कयना
अत्मॊत शुब एवॊ भॊगरकायी भानते है।
***
9 जून 2013
दस्ऺणावता शॊख का धासभाक भहत्व
 सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
त्रवद्रानो ने 3 तोरे के शॊख को उत्तभ औय 25
तोरे से फड़ा असत उत्तभ फतामा हं। ऩूजन हेतु उज्जवर
वणा का शॊख असत उत्तभ होता हं।
ऩौयास्णक भान्मताओॊ के अनुशाय शॊख की ऩयख
ऩानी भं नभक डार कय उस ऩानी भं शॊख को डार कय
सात फदन यखने ऩय नकरी शॊख टूट जाता हं मा उसभं
दयाये हो जाती हं, जफकी असरी शॊख अऩनी
वास्तत्रवक स्स्थती भं यहता हं।
शॊख मफद असरी होगा तो दोनं
अॊगूठे के नाखून ऩय यखने से वह
कु छ हदतक गोर धुभता हं।
मफद शॊख असरी हो तो उसे कान के
ऩास यखने से उसभं से ॐकाय की
ध्वसन सुनाई देती हं. मफद शॊख भं
सछि हो तो ॐकाय की ध्वसन सुनाई
नहीॊ देती। इस सरमे मह सबी ऩुयातन
उऩामो को अऩना कय शॊख की जाॊि कयना औय
असरी शॊख प्राद्ऱ कयना आभ व्मत्रक्त के सरए दुस्साध्म
कामा हं।
त्रवशेष नोट:
आजकर आधुसनक तकनीकी उऩकयणो की भदद से
कृ त्रिभ अथाात नकरी शॊख फनामे जाते हं। जो नभक वारे
ऩानी भं डारने ऩय नातो टूटते हं औय नाहीॊ उसभे दयाये
ऩड़ती हं, स्जस कायण ऩौयास्णक ऩद्धत्रत्त से असरी नकरी
की ऩहिान साधायण व्मत्रक्त की ऩहुॊि के फाहय हं।
दोनं अॊगूठे के नाखून ऩय अन्म वस्तु मा नकरी शॊख बी
धूभ सकते हं।
ॐकाय की ध्वसन नकरी शॊखं भं से बी आसकती हं मफद
उसभं कोई सछि नहो तो। ॐकाय की ध्वसन तो सछि
यहीत फकसी बी छोटे भुख वारे रॊफे ऩाि मा ग्रास से बी
आसकती हं, मफद अऩनी हथेरी को कटोयी के सभान
सछि यहीत अवस्था भं भोड़ कय कान के ऩास यखा जामे
तो बी हभं ॐकाय की ध्वसन आसानी से सुनाई दे सकती
हं।
इस सरए शॊख की ऩयख फकसी जानकाय से कयवाना
उसित होगा मा फकसी त्रवश्वस्त व्मत्रक्त मा सॊस्था से ही
प्राद्ऱ कयं।
शॊख के राबकायी प्रमोग:
 शॊख भं जर बयकय भस्तक औय
शयीय ऩय सछड़कने से ऩाऩं का ऺम
होता है।
 शॊख भं जर रेकय ऩूजन कयने
ऩय देवी भहारक्ष्भी शीध्र प्रसन्न होती
हं, औय अऩनी कृ ऩा फनाएॊ यखती हं।
 कु छ जानकाय त्रवद्रानं का अनुबव
यहा हं की शॊख भं दूध बयकय मफद वन्ध्मा
स्त्री को ऩीरामा जामे तो उसे बी सॊतान की प्रासद्ऱ हो
सकती हं।
 स्जस घय भं शॊख होता हं उस घय भं सनवास कतााओॊ
का सबी प्रकाय से भॊगर होता हं। उसके सबी योग,
शोक का नाश होता हं उसके भान-सम्भान एवॊ ऩद-
प्रसतष्ठा भं वृत्रद्ध होती हं।
दस्ऺणावसता शॊख की ऩूजन त्रवसध:
प्रात् स्नान आफद से सनवृत्त हो कय, स्वच्छ कऩड़े ऩहन
कय, प्रथभ दूध से फपय शुद्ध जर से शॊख को स्नान
कयामे। फपस स्वच्छ रार वस्त्र से उसे ऩोछे। फपय शॊख
को सोने मा िाॊदी के ऩि से भढ़ना िाफहए (अथाात शॊख
की उऩयी सतह को सोने मा िाॊदी के ऩि का आवयण
रगाकय ढ़क देना िाफहए), मफद सोने िाॊदी का ऩि
10 जून 2013
भॊि ससद्ध दुराब साभग्री
हत्था जोडी- Rs- 370 घोडे की नार- Rs.351 भामा जार- Rs- 251
ससमाय ससॊगी- Rs- 370 दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550 इन्ि जार- Rs- 251
त्रफल्री नार- Rs- 370 भोसत शॊख-Rs- 550 से 1450 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251
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रगाना सॊबव न हो तो सोने मा िाॊदी की वयक (वयख,
वका , वखा, ऩणा, ऩन्नी Foil आफद नाभं से जाना जाता
हं) बी िढ़ा सकते हं। फपय शॊख का अष्ट िव्मं से
षोडशोऩिाय ऩूजन कयं।
शॊख का ऩूजन
सॊकल्ऩ
हाथ भं आिभनी भं रज रेकय नीिे देमे भॊि से सॊकल्ऩ
कयं (जहाॊ अभुक के स्थान ऩय सॊफॊसधत वषा, भास आफद
का उच्िायण कयं।)
ॐ अिाद्य अभुक वषे अभुक भासे अभुक ऩऺे
अभुक सतथौ अभुख वायसे शुब नऺि कयण मोग
रग्ने भभ ससद्धमथे फहयण्म गोदासा वाहना फह
सभृत्रद्ध प्राप्त्मथे श्री दस्ऺणावतॉ शॊखस्म ऩूजनभ्
अहॊ करयष्मे।
अथाात: आजके अभुक वषा, अभुक भास, अभुक ऩऺ,
अभुक सतसथ, अभुक वाय को भेये कामा की ससत्रद्ध के सरए
सुवणा, गाम, दास, वाहन आफद सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ के सरए
भं श्री दस्ऺणावतॉ शॊख जा ऩूजन कय यहा हूॊ।
(उक्त भॊि उिायण कय शॊखका जर ऩािे भं छोड़ दे)
ऩूजन भॊि:
ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ श्रीधय कयस्थाप्ममोसनसध जाताम
श्रीदस्ऺणावता शॊखम ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ श्रीकयाम ऩूज्माम
नभ्।
उक्त भि का उच्िायण कयते हुवे शॊख को अष्ट िव्म व
सुगॊसधत इि िढ़ाएॊ। िाॊदी के फयतन भं दूध भं िीनी,
के सय, फादाभ, इरामिी सभरा कय नैवेद्य तैमाय कयं।
सॊबव हो तो साथ भं पर बी यखं।
कऩूय से आयती कयं।
ध्मान भॊि:
ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ श्रीधय कयस्थाप्म ऩमोसनसध
जाताम रक्ष्भी सहोदयाम सिस्न्तभाथा सॊऩादकाम
श्री श्रीदस्ऺणावता शॊखाम श्री कयाम, ऩूज्माम क्रीॊ
श्रीॊ ह्रीॊ ॐ नभ् सवााबयण बूत्रषताम
प्रशस्मान्गोऩान्गसॊमुताम कल्ऩवृऺाम स्स्थताम
काभधेनु सिन्ताभस्णनव सनसधरूऩाम ितुदाश यत्न
ऩरयवृत्ताम अष्टादश भहाससत्रद्ध सफहताम श्रीरक्ष्भी
देवता कृ ष्णदेव कयतर रसरताम श्री
शॊखभहासनधमे नभ्।
ध्मान भॊि आवाहन अथाात ् स्तुसत भॊि है। इसके असतरयक्त
फीज भॊि अथवा ऩाॊि जन्म गामिी शॊख भॊि का ग्मायह
भारा जऩ कयना बी आवश्मक है।
जऩ भॊि:
ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ ब्रूॊ दस्ऺण शॊखसनधमे सभुि
प्रबवाम नभ्।
11 जून 2013
फीज भॊि:
ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ ब्रूॊ दस्ऺणभुखाम शॊखसनधमे
सभुिप्रबवाम नभ्।
शॊख का शाफय भॊि:
ॐ दस्ऺणावते शॊखाम भभ् गृह धनवषाा कु रु कु रु
नभ्॥
शॊख गामिी भॊि:
ॐ ऩान्िजन्माम त्रवद्महे। ऩावभानाम धीभफह।
तन्न शॊख् प्रिोदमात्।
प्रसतफदन उक्त फकसी एक भॊि का शॊख के सम्भुख फैठकय
1, 3, 5, 7, 11 भाराएॊ जऩ कयना िाफहए। जऩ की
सभासद्ऱ ऩय जर को आकाश की ओय सछड़के ।
ऋत्रद्ध-ससत्रद्ध तथा सुख-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ के सरए हेतु मह
प्रमोग अत्मॊत राब प्रद हं।
दोष यफहत दस्ऺणावतॉ शॊख का उऩयोक्त त्रवसध से ऩूजन
कयना अत्मॊत राबप्रद होता हं।
शॊख का ऩूजन फदन के प्रथभ प्रहय भं कयने से याज्म ऩऺ
से सम्भान की प्रासद्ऱ होती हं।
शॊख का ऩूजन फदन के फद्रतीम प्रहय भं कयने से धन,
सॊऩत्रत्त व रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं एवॊ फुत्रद्ध का त्रवकास
होता हं।
शॊख का ऩूजन फदन के तृतीम प्रहय भं कयने से सभाज भं
मश, कीसता एवॊ फुत्रद्ध की वृत्रद्ध होती हं।
शॊख का ऩूजन फदन के ितुथा प्रहय भं कयने से सॊतान की
प्रासद्ऱ एवॊ वृत्रद्ध होती हं।
त्रवशेष: फदन औय यािी के िाय-िाय प्रहय होते हं, कु र
आठ प्रहय का एक फदन होता हं। अथाात एक प्रहय तीन
घॊटे का होता है। सूमोदम के सभम से प्रथन प्रहय की
गणना कयनी िाफहए। सूमोदम सभम भं 3 घॊटे का सभम
जोड़ने ऩय दूसया प्रहय प्रायॊब होगा ऐसे तीन-तीन घॊटे
जोडकय क्रभश् तीसया औय िौथा प्रहय जान सकते हं।
***
भॊि ससद्ध त्रवशेष दैवी मॊि सूसि
आद्य शत्रक्त दुगाा फीसा मॊि (अॊफाजी फीसा मॊि) सयस्वती मॊि खोफडमाय मॊि
सद्ऱसती भहामॊि(सॊऩूणा फीज भॊि सफहत) नव दुगाा मॊि खोफडमाय फीसा मॊि
भहान शत्रक्त दुगाा मॊि (अॊफाजी मॊि) कारी मॊि अन्नऩूणाा ऩूजा मॊि
सॊकट भोसिनी कासरका ससत्रद्ध मॊि श्भशान कारी ऩूजन मॊि एकाॊऺी श्रीपर मॊि
िाभुॊडा फीसा मॊि ( नवग्रह मुक्त) दस्ऺण कारी ऩूजन मॊि त्रिशूर फीसा मॊि
नवाणा फीसा मॊि फगरा भुखी मॊि याज याजेश्वयी वाॊछा कल्ऩरता मॊि
नवाणा मॊि (िाभुॊडा मॊि) फगरा भुखी ऩूजन मॊि >> Order Now
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12 जून 2013
दस्ऺणावता शॊख से जुड़े गूढ़ यहस्म
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, ऩॊ.श्री बगवानदास त्रिवेदी जी,
सुख-सभृत्रद्ध, धन-सॊऩत्रत्त, रयत्रद्ध-ससत्रद्ध एवॊ ऐश्वमा की
प्रासद्ऱ के सरए हभाये धभा शास्त्रं भेभ दस्ऺणावता शॊख का
अत्मासधक भहत्व फतामा गमा हं। दस्ऺणावता शॊख का
भुख दामीॊ औय से खुरा होता हं।
शास्त्रोक्त भान्मता हं की स्जस घय भं त्रवसध-त्रवधान
से दस्ऺणावता शॊख का ऩूजन होता हं, उस घय भं धन,
सुख, सभृत्रद्ध, मश-फकसता की वृत्रद्ध होती हं। उस घय भं
रक्ष्भी स्स्थत होती हं।
असरी नकरी ऩहिान के सरए शॊख को ऩाॊि फदन
औय ऩाॊि यात तक ठॊडे ऩानी भं यखे, मफद नकरी शॊख
होगा तो टूट जामेगा। इस प्रकाय असरी नकरी की ऩयख
कयके शॊख का ऩूजन भं प्रमोग कयं।
दहीॊ मा देशी घी के सभान यॊग वारा शॊख उत्तभ
होता हं, धूसभर मा धुएॊ जैसे यॊग वारे शॊख को शॊस्खणी
(अथाात स्त्री जाती का शॊख) कहाॊ जाता हं।
2.5 तोरा अथाात िीस ग्राभ से असधक वजन का
शॊख ऩूजन हेतु उत्तभ सभझे औय 2 तोरा मा उस्से कभ
वजन के शॊख को साधायण सभझे।
 त्रवद्रानं का भत हं की स्जस घय भं दस्ऺणावता शॊख
का ऩूजन होता हं उस घय भं सवादा भाॊगसरक कामा
सॊऩन्न होते हं, उस घय भं भाॊगसरक कामं के दौयान
फकसी प्रकाय का त्रवघ्न-फाधाएॊ, त्रवरॊफ मा अशुब नहीॊ
होता हं।
 शॊख के ऩीछे के फहस्से को सोने से जड़वाना उत्तभ होता हं।
 दस्ऺणावता शॊख को ऩूजा स्थान भं स्थात्रऩत कय के
प्रसतफदन स्नानाफद के ऩश्चमात स्वच्छ वस्त्र धायण कय
प्रसतफदन ऩूजन कयं।
 ऩूवा फदशा भं फहनेवारी नदी भं स्नान कय नदी के
जर को दस्ऺणावता शॊख भं बय कय अऩने भस्तक
ऩय उस जर की धाय सगयाने से सबी प्रकाय के ऩाऩं
का नाश होता हं।
 स्जस स्त्री को सॊतान नहीॊ हो यही हो, सॊतान जीत्रवत
न यहती हो, भृत सॊतान का जन्भ हो यहा हो ऐसी
स्त्री को दस्ऺणावता शॊख का ऩूजन कयके स्जस गाम
के फछ़डे जीत्रवत हो ऐसी गाम का दूध शॊख भं बय
रं। 108 फाय भॊि फोर कय शॊख का दूध को प्रसाद के
रुऩ भं सेवन कयं। मह प्रमोग दूध के फदरे घी (थोड़ा
गयभ कयरे) का इस्तेभार कय सकते हं, इस प्रमोग
से स्त्रीको सॊतान होने की सॊबावनाएॊ फढ़ सकती हं।
 जो रोग नदी मा तीथा तक नहीॊ जा सकते ऐसे रोग
दस्ऺणावता शॊख भं नदी मा तीथा का जर के छीॊटे
अऩने भस्तक ऩय सछडकने, तथा अऩने त्रऩतृओॊ का
नाभ रेकय शॊख से तऩाण कयने से उसके सबी ऩाऩ
नष्ट हो जाते हं, तथा त्रऩतृओॊ का उद्धाय होता हं,
उनको सद्दगसत प्राद्ऱ होती हं।
 त्रवद्रानं का कथन हं की दस्ऺणावता शॊख भं जर बय
कय उससे बगवान त्रवष्णु का ऩूजन कयने से उसके
सात जन्भ के ऩाऩं का नाश होता हं।
 स्जसके घय भं दस्ऺणावता शॊख होता हं उसके आमुष्म,
कीसता तथा धन की वृत्रद्ध होती हं। जो शॊख के जर
को भस्तक ऩय सछड़कता हं उसके घयभं रक्ष्भी स्स्थय
होती हं।
 स्जस स्थान ऩय शॊखनाद होता हं वहाॊ रक्ष्भी का
स्स्थय सनवास होता हं।
 जो दस्ऺणावता शॊख के जर से स्नान कयता हं उसे
सबी तीथं के स्नान का पर सभरता हं।
 शास्त्रं भं शॊख को त्रवष्णु स्वरुऩ भाना गमा हं, शॊख
भं बगवान त्रवष्णु का वास होता हं। इस सरए जहाॊ
दस्ऺणावता शॊख होता हं वहाॊ बगवान त्रवष्णु का वास
होता हं जहाॊ बगवान त्रवष्णु का वास होता हं वहाॉ भाॉ
रक्ष्भी सनवास कयती हं। स्जससे जहाॉ भाॉ रक्ष्भी
13 जून 2013
सनवास कयती वहाॉ योग, दोष, दु्ख, दरयिता आफद
घयभं यह नहीॊ सकतं।
 शॊख को रस्क्ष्भ प्रासद्ऱ का उत्तभ साधन भाना गमा हं।
 स्जस स्थान ऩय दस्ऺणावता शॊख होता हं वहाॊ बूत-प्रेत
आफद सबी प्रकाय के उऩिवं से यऺा होती हं।
 शास्त्रं भं शॊख को सूमा िॊिभाॊ के सभान फदव्म गुणं
से मुक्त फतामा गमा हं।
 धासभाक भान्मता हं की तीनं रोक भं स्जतने तीथा हं
वह सफ बगवान त्रवष्णु की आऻा से शॊख भं सनवास
कयते हं। शॊख के दशान से ऩाऩं का नाश होता हं।
शॊख ध्वसन एवॊ शॊख जर के त्रवशेष राब:
आज तोऩ के गोरे मा फभ के शोय का जो असय
होता हं वहीॊ असय प्रािीन कार भं शॊख ध्वसन से होता
था। शॊख ध्वसन से शिुओॊ की सेना का भनोफर टूट जाता हं।
मफद जॊगर भं जहाॊ शॊख ध्वसन होती हं वहाॊ से
शेय-फाध जैसे फहॊसक ऩशु आने की फहम्भत नहीॊ कयते।
जहयी जीवजॊतु बी वहाॊ से दूय यहते हं।
कु छ जानकायं का भानना हं की योग कायक शूक्ष्भ
जीवाणु मा त्रवषाणु हवा भं होते हं स्जसे वामयस कहते हं,
जहाॊ प्रसतफदन प्रात् एवॊ सॊध्मा शॊख ध्वसन होती हं, वहाॊ
जीवाणु मा त्रवषाणु अथाात वामयस का उऩिव पै रता नहीॊ हं।
 दस्ऺणावतॉ शॊख को धन के बॊडाय भं यखने से धन
की वृत्रद्ध, अन्न-बॊडाय भं यखने से अन्न की वृत्रद्ध,
वस्त्र के बॊडाय भं यखने से वस्त्र की वृत्रद्ध, अध्ममन व
ऩूजन कऺ भं यखने से ऻान की वृत्रद्ध, शमन कऺ भं
यखने से सुख-शाॊसत की वृत्रद्ध होती हं।
 दस्ऺणावतॉ शॊख भं शुद्ध जर बयकय व्मत्रक्त, वस्तु,
बूसभ-बवन आफद ऩय सछड़कने से दुबााग्म, असबशाऩ,
असबिाय, ग्रहं की अशुबता इत्माफद सभाद्ऱ हो जाती हं।
 त्रवद्रानं कथन हं की ब्रह्म हत्मा, गो हत्मा जैसे
भहाऩातकं से भुत्रक्त ऩाने के सरए दस्ऺणावतॉ शॊख के
जर को सॊफॊसधत व्मत्रक्त ऩय सछड़कने से उसे ऩाऩं से
भुत्रक्त सभरती हं।
 दस्ऺणावतॉ शॊख का जर जादू-टोना, नज़य, काभण-
टूभण जैसे असबिाय वारे कभं के दुष्प्रबावं को नष्ट
कयने भं सभथा हं।
दस्ऺणावता शॊख के प्रकाय:
शास्त्रं भं दस्ऺणावता शॊख के दं बेद फतामे हं: दस्ऺणावता
ऩुरुष शॊख औय दस्ऺणावता स्त्री शॊख।
छोटे आकायं वारे कभ वजन के दस्ऺणावता शॊख को स्त्री
दस्ऺणावता शॊख कहाॊ जाता हं, धुॊधरे यॊग वारे शॊखं को
बी स्त्री दस्ऺणावता शॊख भाना जाता हं।
वणा के अनुशाय दस्ऺणावता शॊख िाय प्रकाय के फतामे गमे हं।
1- ब्राह्मण दस्ऺणावता शॊख:
जो शॊख हये मा सपे द यॊग का हो, छू ने ऩय उसकी सतह
कोभर भहसूस हो, शॊख वजन भं हल्का हो उस शॊख को
ब्राह्मण दस्ऺणावता शॊख कहाॊ गमा हं।
2- ऺत्रिम दस्ऺणावता शॊख:
जो शॊख हल्का यक्त वणा हो, शॊख के अॊश को अरग कयने
वारी कु छ येखाएॊ फनी हो, शॊख की ध्वसन कका श हो उस
शॊख को ऺत्रिम दस्ऺणावता शॊख कहाॊ गमा हं।
3- वैश्म दस्ऺणावता शॊख:
जो शॊख भोटा हो, शॊख के हय अॊश ऩय येखा हो तथा वह
ऩीरे यॊग की हो उस शॊख को वैश्म दस्ऺणावता शॊख कहाॊ गमा हं।
4- शुि दस्ऺणावता शॊख:
जो शॊख कठोय हो, शॊख का आकाय टेड़ा भेड़ा हो, वजन
भं बायी हो, शॊख की ध्वसन कका श, यॊग थोडा कारा हो
उस शॊख को शुि दस्ऺणावता शॊख कहाॊ गमा हं।
दस्ऺणावता शॊख के भुख्म तीन गुण भाने गमे हं।
1- आकाय भं गोराकाय हो, 2- शॊख की सतह भुरामभ
हो तथा 3- सनभार हो
मफद ऐसा शॊख फकसी कायण से टूट जामे तो टूटे हुवे
बाग को सोने की वयख मा सोने के ऩत्तय से उसे ढॊक
देना िाफहए।
14 जून 2013
शॊख नाद एक अद्भुत यहस्म
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, फदऩक.ऐस.जोशी
आज वैऻासनक अनुसॊधान से मह सात्रफत हो गमा
हं की सनमसभत शॊखनाद कयने से उसके सकायात्भक
प्रबाव से वातावयण भं व्माद्ऱ हासनकायक सूक्ष्भ जीवाणुओॊ
का नाश होता हं।
जनकायं का भानना हं की शॊखनाद के दौयान
वामुभॊडर भं कु छ त्रवशेष प्रकाय की तयॊगे उत्ऩन्न होती हं,
जो ब्रह्माॊड की कु छ अन्म तयॊगं के साथ सभरकय अल्ऩ
ऺणं भं ही सभग्र ब्रह्माॊड की ऩरयक्रभा कय रेती हं। उनका
भानना हं की ब्रह्माण्ड की ऩरयक्रभा कयते हुवे जफ फकसी
एक तयॊग को जफ दूसयी अनुकू र तयॊगं प्राद्ऱ होती हं तफ
दोनं तयॊगं के सभनवम से भनुष्म को आत्भ फर-प्रेयणा
देने वारी, योग, शोक आफद से यऺा कयने वारी, उसकी
भनोकाभनाएॊ ऩूणा कयने वारी तयॊगे उठने रगती हं, औय
भनुष्म अऩने कामा उद्देश्म भं शीघ्र सपरता प्राद्ऱ कय रेता
हं।
जानकायं का भानना हं की तयॊगे इतनी शूक्ष्भ
होती हं की उसका प्रबाव हभं सयरता से िष्टी गोिय नहीॊ
हो ऩाता! शॊखनाद के सनयॊतय प्रमोग से ही इन तयॊगं के
प्रबावं को सभझा जा सकता हं।
त्रवसबन्न शोध से मह ससद्ध हो िुका हं की वाद्यं व
ध्वसनमं का छोटे-फड़े सबी जीवं ऩय फहोत ही गहया
प्रबाव ऩड़ता हं। उसी प्रकाय शॊख ध्वसन के प्रबाव एवॊ
भहत्वता को आजका आधुसनक त्रवऻान बी भान िुका हं।
हभाये त्रवद्रान ऋत्रष-भुसनमं ने अऩने मोगफर एवॊ
अनुसॊधानो का सूक्ष्भ अध्ममन कय के हजायं वषा ऩूवा ही
प्रकृ सत भं सछऩे गृढ़ यहस्मं को जान सरमा था, औय
प्रकृ सत के गृढ़ यहस्मं के ऻान को हभाये ऋत्रष-भुसनमं ने
त्रवसबन्न ग्रॊथं औय शास्त्रं के रुऩ सहेज कय भं प्रदान
फकमा हं। शॊख ध्वसन एवॊ शॊख के त्रवसबन्न राब की शोध
का श्रेम बी हभाये ऋत्रष-भुसनमं को ही जाता हं।
त्रवद्रानं ने शॊख ध्वसन भं सभग्र ब्रह्माॊड को सनफहत
भाना है। उनका भानना हं फक, अस्खर ब्रह्माॊड के सॊस्ऺद्ऱ
रूऩ को प्रकट कयने वारी मफद कोई शत्रक्त हं तो वह शॊख
ध्वसन है।
ऩौयास्णक कार भं शॊखनाद के भाध्मभ से मुद्धायॊब
की घोषणा औय उत्साहवधान फकमा जाता था।
आध्मास्त्भक कामं भं बी शॊख ध्वसन अऩना त्रवशेष
भहत्व यखती हं।
शास्त्रं भं उल्रेख हं की भहाबायत के मुद्ध भं शॊख
का अत्मसधक उऩमोग हुवा था। मुद्ध के सभम के प्रभुख
भहायसथमं के ऩास जो शॊख थे, उनका उल्रेख इस प्रकाय
फकमा गमा है-
ऩाॊिजन्मॊ रृषीके शो देवदत्तॊ धनञ्जम।
ऩौण्रॊ दध्भौ भहाशॊखॊ बीभकभाा वृकोदय॥
अनन्तत्रवजमभ् याजा कु न्तीऩुिो मुसधत्रष्ठय।
नकु र सहदेवश्च सुघोषभस्णऩुष्ऩकौ॥
काश्मश्च ऩयभेष्वास सशखण्डी ि भहायथ।
धृष्टद्युम्नो त्रवयाटश्च सात्मफकश्चाऩयास्जता्॥
िुऩदो िौऩदेमाश्च सवाश ऩृसथवीऩते।
सौबिश्च भहाफाहु् शॊखान्दध्भु् ऩृथक्ऩृथक्॥
अथाात ्: श्रीकृ ष्ण बगवान ने ऩाॊिजन्म नाभक, अजुान ने
देवदत्त औय बीभसेन ने ऩंर शॊख फजामा। कुॊ ती ऩुि याजा
मुसधत्रष्ठय ने अनन्तत्रवजम शॊख, नकु र ने सुघोष एवॊ
सहदेव ने भस्णऩुष्ऩक नाभक शॊख का नाद फकमा। इसके
अरावा काशीयाज, सशखॊडी, धृष्टद्युम्न, याजा त्रवयाट,
सात्मफक, याजा िुऩद, िौऩदी के ऩाॉिं ऩुिं औय असबभन्मु
आफद सबी ने अरग-अरग शॊखं का नाद फकमा।
15 जून 2013
भाना जाता हं की मोद्धाओॊ द्राया मुद्ध बूसभ भं
अद्भुत शौमा औय शत्रक्त के प्रदशान का आधाय शॊखनाद ही
हं। मही कायण हं की ऩुयातन कार भं मोद्धाओॊ द्राया मुद्ध
भं शॊखनाद प्रमोग फकमा जाता था। बगवान श्रीकृ ष्ण का
ऩाॊिजन्म नाभक शॊख तो एकदभ अद्भुत औय अफद्रतीम
होने के कायण हीॊ भहाबायत भं त्रवजम का प्रतीक फन
गमा।
रृदम को झॊकृ त कयने, ऩुन् कॊ त्रऩत कयने व
आनस्न्दत कयने भं शॊख ध्वसन का प्रबाव अद्भुत यहा हं।
आज बी जफ फकसी धासभाक कामा मा भाॊगसरक
कामा के दौयान जफ शॊखनाद होता हं तो वहाॊ ऩय
उऩस्स्थत रोगं का तन-भन आनस्न्दत हो जाता हं।
शॊखनाद के त्रवसबन्न प्रबावं का उल्रेख हभं अनेक शास्त्र
एवॊ ग्रॊथं भं सभरता है।
 कु छ कृ त्रषकामा से जुड़े रोगं नं अऩने खेतं भं
शॊखनाद द्राया अऩनी पसर के उत्ऩादन भं वृत्रद्ध कयके
शॊख ध्वसन के भाध्मभ से सपरता प्राद्ऱ की हं।
 त्रवद्रानं का अनुबव हं की पसरं को ऩानी देते सभम
शुब भुहूता भं 108 शॊखोदक (108 शॊखं का जर)
सभरा कय पसर भं देने से पसर के उत्ऩादन भं
वृत्रद्ध होती हं, अनाज के बॊडाय गृह भं कीड़ं-भकोड़े
आफद जीवं से फिाने के सरए प्रसत भॊगरवाय को
शॊखनाद कयना राबप्रद भाना हं।
 शॊखं का जर फनाने हेतु शॊख भं 12 से 24 घॊटे जर
बयकय यखा जाता हं।
 त्रवसबन्न ग्रॊथं एवॊ शास्त्रं भं उल्रेख सभरते हं की
शॊख ध्वसन के प्रबाव से भनुष्म ही नहीॊ वयन ऩशु-
ऩस्ऺमं को बी सम्भोफहत फकमा जा सकता हं।
 तॊि शास्त्रं भं उल्रेख हं की दोष यफहत शॊखनाद की
ध्वसन तयॊग भनुष्म की कुॊ डसरनी एवॊ रुििक्र ऩय
प्रबाव डारती हं व शयीय की सुषुद्ऱ शत्रक्त जाग्रत होने
रगती हं।
 शास्त्रकायं ने शॊख ध्वसन के अद्भुत प्रबावं का वणा
कयते हुवे फतामा हं की शॊखनाद के प्रबाव से फसधयता
दूय होना सॊबव हं।
 शॊखजर के सनमसभत सेवन से भूकता औय हकराऩन
दूय हो सकता हं।
 मफद गबावसत स्त्री शॊखजर का सनमसभत सेवन कयं तो
होने वारी सॊतान स्वस्थ एवॊ सुॊदय होती हं।
 सनमसभत शॊख ध्वसन का श्रवण कयने से रृदम
अवयोध, रृदम धात (फदर का दौया) नहीॊ होता।
 शॊख पूॉ कने से व्मत्रक्त के पे पड़े शत्रक्तशारी होते हं,
क्मंफक शॊख पूॉ कने ऩय ऩहरे हवा पे पड़ं भं जभा
होती हं, फपय उसे भुॉह बयकय शॊख भं पूॉ कते हं। इस
फक्रमा से आॉत, श्वास नरी पे पड़े एक साथ काभ कयते हं।
 शॊखनाद सनयॊतय कयने ऩय दभा, खाॉसी, मकृ त आफद
योग जड़ से नष्ट हो जाते हं।
 शॊखजर के सनमसभत सेवन से शीत त्रऩत्त, श्वेत प्रदय,
यक्त की अल्ऩता आफद योग दूय हो जाते हं।
***
16 जून 2013
हभाये जीवन भं शॊख का भहत्व
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, श्रेमा.ऐस.जोशी
शॊख की उत्ऩत्रत्त के त्रवषम भं शास्त्रं भं उल्रेख है
फक सभुि भॊथन के सभम िौदह प्रकाय के यत्नं भं शॊख
बी सनकरा।
भुख्म रुऩ से शॊख की उत्ऩत्रत्त जर से ही होती है।
जर ही जीवन का आधाय है मही कायण हं की सृत्रष्ट की
उत्ऩत्रत्त बी जर से हुई है। अत: जर से उत्ऩत्रत्त के
कायण शॊख की भहत्वता सवाासधक यही हं। अनेकं देवी-
देवता के एक हाथ भं शॊख शोबामभान होता हं। मही
कायण हं कई की सफदमं से शॊख का उऩमोग त्रवसबन्न
धासभाक अनुष्ठानं भं त्रवशेष रूऩ से फकमा जाता है।
शॊख के प्रभुख बेद
शॊख के प्रकाय
वैसे तो प्राकृ सतक शॊख त्रवसबन्न प्रकाय के ऩामे जाते हं।
इस सरए शॊख की त्रवसबन्नता एवॊ त्रवशेषता के अनुशाय ही
इनकी ऩूजन-ऩद्धसत भं बी सबन्नता ऩाई जाती है।
शॊख के प्रकाय उसकी आकृ सत (अथाात उदय) के आधाय
ऩय भाने जाते हं।
त्रवद्रानं ने शॊख के प्रभुख तीन प्रकाय फतामे हं
1-दस्ऺणावृत्रत्त शॊख
2-भध्मावृत्रत्त शॊख तथा
3-वाभावृत्रत्त शॊख।
दस्ऺणावृत्रत्त शॊख: स्जस शॊख का भुख दाफहने हाथ ऩय
ऩड़ता हं उसे दस्ऺणावृत्रत्त शॊख कहा जाता है।
भध्मावृत्रत्त शॊख: स्जस शॊख का भुॉह फीि भं खुरता है,
उसे भध्मावृत्रत्त शॊख कहा जाता है।
वाभावृत्रत्त शॊख: स्जस शॊख का भुख फाएॊ हाथ ऩय ऩड़ता हं
उसे वाभावृत्रत्त शॊख कहा जाता है।
दस्ऺणावृसत शॊख औय भध्मावृत्रत्त शॊख दुराब भाने
गम हं क्मोकी मह आसानी से उऩरब्ध नहीॊ होते हं।
मह दोनं शॊख अऩनी दुराबता एवॊ िभत्कारयक
गुणं के कायण ही अन्म शॊख की अऩेऺा असधक
भूल्मवान होते हं।
तीन शॊखं के अरावा अन्म शॊखं प्रभुख शॊख
रक्ष्भी शॊख, गोभुखी शॊख, काभधेनु शॊख, त्रवष्णु
शॊख, देव शॊख, िक्र शॊख, ऩंर शॊख, सुघोष शॊख,
गरुड़ शॊख, भस्णऩुष्ऩक शॊख, याऺस शॊख, शसन
शॊख, याहु शॊख, के तु शॊख, शेषनाग शॊख, कच्छऩ
शॊख आफद प्रकाय के होते हं।
फहन्दु शास्त्रं भं 33 कयोड़ देवी-देवता का उल्रेख
सभरता हं। इन सबी देवी-देवताओॊ के अऩने अरग शॊख
भाने गमे हं, देव-असुय सॊग्राभ भं सभुि से स्जन 14 यत्नं
की प्रासद्ऱ हुई थी उसभं त्रवसबन्न तयह के शॊख बी सनकरे,
स्जसभं से कई शॊखं का उऩमोग के वर ऩूजन के सरए
होते है।
अबीतक प्राद्ऱ जानकायी के आधाय ऩय मह ऻात
हुवा हं की त्रवश्व का सफसे फड़ा शॊख के यर याज्म भं
गुरुवमूय के श्रीकृ ष्ण भॊफदय भं सुशोसबत है, इस शॊख की
रॊफाई अॊदाज से आधा भीटय है तथा वजन दो फकरोग्राभ
फतामा जाता है।
17 जून 2013
त्रवत्रवध आकाय प्रकाय वारे शॊख को शुब एवॊ
भाॊगसरक भानकय रोग उसका ऩूजन कयते हं उसे अऩने
ऩास यखते हं। जो त्रवशेष आकृ सत वारे शॊख होते हं, स्जसे
सभृत्रद्ध औय सपरता का प्रतीक भान कय उसे त्रवशेष
साधना भं प्रमोग फकमा जाता है।
सॊस्कृ त भं शॊखके त्रवत्रवध नाभं का उल्रेख
सभरता है।
शॊख, सभुिज, कॊ फु, सुनाद, ऩावनध्वसन, कॊ फु,
कॊ फोज, अब्ज, त्रियेख, जरज, अणोबव, भहानाद,
भुखय, दीघानाद, फहुनाद, हरयत्रप्रम, सुयिय,
जरोद्भव, त्रवष्णुत्रप्रम, धवर, स्त्रीत्रवबूषण, अणावबव
आफद।
शॊखं के प्रकाय के फाये भं शास्त्र भं उल्रेख फकमा
गमा है
फद्रधासदस्ऺणावसतावााभावत्रत्तस्तुाबेदत:
दस्ऺणावताशॊकयवस्तु ऩुण्ममोगादवाप्मते
मद्गृहे सतष्ठसत सोवै रक्ष्म्माबाजनॊ बवेत्
अथाात ्: शॊख दो प्रकाय के होते हं दस्ऺणावतॉ एवॊ
वाभावतॉ। दस्ऺणावतॉ शॊख ऩुण्म के ही मोग से प्राद्ऱ
होता है। मह शॊख स्जस घय भं स्थात्रऩत होता है, वहाॊ
रक्ष्भी की वृत्रद्ध होती है। इसका प्रमोग अघ्मा आफद देने
के सरए त्रवशेषत: होता है। वाभवतॉ शॊख का ऩेट फाईं
ओय खुरा होता है। इसके फजाने के सरए एक सछि होता
है। इसकी ध्वसन से योगोत्ऩादक कीटाणु फरफहन ऩड़ जाते हं।
श्रेष्ठ शॊख के रऺण के त्रवषम भं शास्त्रं भं उल्रेख
फकमा गमा है
शॊखस्तुत्रवभर: श्रेष्ठश्चन्िकाॊसतसभप्रब:
अशुद्धोगुणदोषैवशुद्धस्तु सुगुणप्रद:
अथाात ्: सनभार व िन्िभा की काॊसत के सभानवारा शॊख
श्रेष्ठ होता है जफफक अशुद्ध अथाात ् भग्न शॊख गुणदामक
नहीॊ होता। गुणंवारा शॊख ही प्रमोग भं राना िाफहए।
प्राम् शॊख का प्रमोग ऩूजा-ऩाठ भं त्रवशेष रुऩ से फकमा
जाता है। जानकाय त्रवद्रानं का कथन हं की ऩूजन को
प्रायॊब भं शॊखभुिा से शॊख की प्राथाना कयनी िाफहए।
त्वॊ ऩुया सागयोत्ऩन्नो त्रवष्णुना त्रवधृत: कये।
नसभत: सवादेवैश्म ऩाञ्िजन्म नभो स्तुते।।
 वैऻासन अनुशॊधान के अनुसाय शॊख ध्वसन से
वातावयण से अशुत्रद्ध दूय होती हं औय वातावय शुद्ध
होता हं।
 शॊख ध्वसन के ध्वसन ऺेि तक त्रवसबन्न प्रकाय के
हासनकायक कीटाणुओॊ का नाश हो जाता है।
 आमुवेद के जानकायं के अनुसाय शॊखोदक व बस्भ से
ऩेट की फीभारय, ऩीसरमा, मकृ त, ऩथयी आफद योग
ठीक फकमा जा सकता हं।
 ऩौयास्णक भान्मता है फक छोटे फच्िं छोटा शॊख
फाॉधने से तथा शॊख भं जर बयकय उसे असबभॊत्रित
कयके फच्िे को त्रऩराने से वाणी दोष नहीॊ होता, मफद
है तो वह दूय होने रगता है।
 ऩुयाणं भं उल्रेख सभरता है फक फसधय, भूक एवॊ श्वास
योगी मफद शॊख फजामं तो सूनने व फोरने की शत्रक्त
ऩा सकते हं।
 आधुसनक अनुसॊधान के अनुसाय शॊख फजाने से हभाये
पे पड़ं का व्मामाभ हो जाता है, श्वास सॊफॊधी योगं से
रडऩे वारी शत्रक्त भजफूत हो जाती है। ऩूजन के
सभम शॊख के जर को सबी ऩय सछड़कने से जर के
प्रबाव से कीटाणुओॊ नाश होता है।
 शॊख का जर स्वास््म औय हभायी हस्डडमं, दाॊतंके
सरए फहुत राबदामक होता है।
 अनुसॊधान से ऩता िरा हं की शॊख भं कै स्ल्शमभ,
पास्पोयस औय गॊधक के गुण सभाफहत होते हं जो
उसभं जर बयकय यखने ऩय जर भं आते हं।
18 जून 2013
 जानकायं का भानना है फक शॊख के प्रबाव से सूमा की
हासनकायक फकयणं का अवयोधक होता हं। इस सरए
फहन्दू सॊस्कृ सत भं सुफह औय शाभ ऩूजा के सभम शॊख
ध्वसन का त्रवधान फतामा गमा हं।
 वैऻासनक अनुसॊधान से मह ऩरयणाभ साभने आमा हं
की शॊख की ध्वसन जहाॊ तक जाती है, वहाॊ तक व्माद्ऱ
फीभारय उत्ऩन्न कयने औय फढ़ाने वारे कीटाणु नष्ट हो
जाते हं। इससे हभाये आसऩास का वातावयण शुद्ध हो
जाता है।
 शॊख भं जो राबदामक घटक कै स्ल्शमभ, पास्पोयस
औय गॊधक भौजूद होते हं। उसके कायण जर
सुवाससत औय कीटाणु यफहत हो जाता है। इसीसरए तो
हभाये शास्त्रं भं शॊख जर को भहाऔषसध भाना जाता
है।
 शॊखनाद से आसऩास की नकायात्भक ऊजाा का नाश
होकय सकायात्भक ऊजाा का सॊिाय होता है।
 शॊख नाद से स्भयण शत्रक्त की वृत्रद्ध होती है।
भॊि ससद्ध दुराब साभग्री भॊि ससद्ध भारा
हत्था जोडी- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 स्पफटक भारा- Rs- 190, 280, 460, 730, DC 1050, 1250
ससमाय ससॊगी- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 सपे द िॊदन भारा - Rs- 280, 460, 640
त्रफल्री नार- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 यक्त (रार) िॊदन - Rs- 100, 190, 280
कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450, भोती भारा- Rs- 280, 460, 730, 1250, 1450 & Above
दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900 त्रवधुत भारा - Rs- 100, 190
भोसत शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900 ऩुि जीवा भारा - Rs- 280, 460
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 कभर गट्टे की भारा - Rs- 210, 280
इन्ि जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 150, 280
धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251(कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 100, 190, 280, 370
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
ऩीरी कौफड़माॊ: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181 नवयॊगी हकीक भारा Rs- 190 280, 460, 730
हकीक: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181 हकीक भारा (सात यॊग) Rs- 190 280, 460, 730
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-111, 11 नॊग-Rs-1111 भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above
नाग के शय: 11 ग्राभ, Rs-111 ऩायद भारा Rs- 730, 1050, 1900, 2800 & Above
कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450, वैजमॊती भारा Rs- 100,190
गोभती िक्र Small & Medium 11 नॊग-75, 101, 151, 201, रुिाऺ भारा: 100, 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
गोभती िक्र Very Rare Big Size : 1 नॊग- 51 से 550
(असत दुराब फड़े आकाय भं 5 ग्राभ से 11 ग्राभ भं उऩरब्ध)
भूल्म भं अॊतय छोटे से फड़े आकाय के कायण हं।
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19 जून 2013
बाग्म रक्ष्भी फदब्फी
सुख-शास्न्त-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ के सरमे बाग्म रक्ष्भी फदब्फी :- स्जस्से धन प्रसद्ऱ, त्रववाह मोग,
व्माऩाय वृत्रद्ध, वशीकयण, कोटा किेयी के कामा, बूतप्रेत फाधा, भायण, सम्भोहन, तास्न्िक फाधा,
शिु बम, िोय बम जेसी अनेक ऩयेशासनमो से यऺा होसत है औय घय भे सुख सभृत्रद्ध फक प्रासद्ऱ
होसत है, बाग्म रक्ष्भी फदब्फी भे रघु श्री फ़र, हस्तजोडी (हाथा जोडी), ससमाय ससन्गी, त्रफस्ल्र
नार, शॊख, कारी-सफ़े द-रार गुॊजा, इन्ि जार, भाम जार, ऩातार तुभडी जेसी अनेक दुराब
साभग्री होती है।
भूल्म:- Rs. 1250, 1900, 2800, 5500, 7300, 10900 भं उप्रब्द्ध >> Order Now .
गुरुत्व कामाारम सॊऩका : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785
c
सशवसरॊग ऩूजन भं शॊख सनषेद्ध क्मो?
 सॊदीऩ शभाा
सशव ऩुयाण भं उल्रेख हं की एक शॊखिूड़ नाभ का भहाऩयाक्रभी दैत्म था। शॊखिूड जो दैत्मयाभ दॊब का ऩुि था। शादी
के ऩश्चमात कई वषो तक दैत्मयाज दॊब को कोई सॊतान नहीॊ हुई तफ उसने बगवान श्रीत्रवष्णु को प्रशन्न कयने के सरए
कठोय तऩ फकमा औय तऩ से प्रसन्न होकय बगवान श्रीत्रवष्णु प्रकट हुए। औय बगवान श्रीत्रवष्णु ने दैत्मयाज दॊब से वय
भाॊगने के सरए कहा तफ दॊब ने भहाऩयाक्रभी तीनं रोको भं अजेम ऩुि का वय भाॊगा औय त्रवष्णुजी तथास्तु फोरकय
अॊतय ध्मान हो गए। तफ दॊब के महाॊ शॊखिूड नाभक ऩुि का जन्भ हुआ औय शॊखिूड ने ऩुष्कय भं ब्रह्माजी की घोय
तऩस्मा कय उन्हं प्रसन्न कय सरमा। ब्रह्माजी ने वय भाॊगने के सरए कहा, तो शॊखिूड ने वय भाॊग सरमा फक वो देवताओॊ
भं अजेम हो जाए। ब्रह्मा ने तथास्तु कहाॉ औय शॊखिूड को श्रीकृ ष्णकवि फदमा फपय वे अॊतय ध्मान हो गए।
जाते सभम ब्रह्माजी ने शॊखिूड को धभाध्वज की कन्मा तुरसी से त्रववाह कयने की आऻा दी। ब्रह्माजी की आऻा से
शॊखिूड औय तुरसी का त्रववाह हो गमा। ब्रह्माजी औय त्रवष्णुजी के वयदान के भद भं िूय दैत्मयाज शॊखिूड ने धीये-धीये
तीनं रोकं ऩय स्वासभत्व स्थात्रऩत कय सरमा।
देवताओॊ ने िस्त होकय त्रवष्णु से सहामता भाॊगी रेफकन उन्हंने स्वमॊ दॊब को ऐसे ऩुि का वयदान फदमा था अत:
उन्हंने सशवजी को साया वृताॊत सुनामा औय देवताओॊ को शॊखिूड के अत्मािायं से फिाने की प्राथाना की। सशव ने
देवताओॊ का दु्ख दूय कयने का सनश्चम फकमा औय शॊखिूड का वध कयने के सनकर गमे। रेफकन बगवान श्रीकृ ष्ण के
फदव्म कवि औय तुरसी के ऩासतव्रत धभा की वजह से सशवजी बी उसका वध कयने भं सपर नहीॊ हो ऩा यहे थे तफ
त्रवष्णु से ब्राह्मण रूऩ धायण कय दैत्मयाज शॊखिूड से उसका श्रीकृ ष्ण कवि दान भं प्राद्ऱ कय सरमा औय शॊखिूड का रूऩ
धायण कय तुरसी से ऩसत वेश भं भ्रसभत फकमा। तफ सशवजी ने शॊखिूड को अऩने त्रिशुर से बस्भ कय फदमा औय
उसकी हस्डडमं से शॊख का उद्गभ हुआ। धासभाक भान्मता के अनुशाय शॊखिूड त्रवष्णु बक्त था इससरए भाॉ रक्ष्भी-श्रीत्रवष्णु
को शॊख औय शॊख का जर असत त्रप्रम है। प्राम् सबी देवी-देवताओॊ को शॊख से जर िढ़ाने का त्रवधान है। रेफकन
सशवजी ने शॊखिूड का वध फकमा था इससरए शास्त्रं भं शॊख का जर सशव को सनषेध फतामा गमा है। इसी वजह से
सशवजी को शॊख से जर मा शॊख का जर नहीॊ िढ़ामा जाता है।
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  • 3. अनुक्रभ बायतीम सॊस्कृ सत भं शॊख का भहत्व 7 साभुफिक शास्त्र भं शसन येखा का भहत्व 39 दस्ऺणावता शॊख का धासभाक भहत्व 9 शसन के त्रवसबन्न ऩाम का पर 41 दस्ऺणावता शॊख से जुड़े गूढ़ यहस्म 12 श्री शसन िारीसा 44 शॊख नाद एक अद्भुत यहस्म 14 शसनग्रह से सॊफॊसधत योग 45 हभाये जीवन भं शॊख का भहत्व 16 शसनदेव की कृ ऩा प्रासद्ऱ के सयर उऩाम 46 सशवसरॊग ऩूजन भं शॊख सनषेद्ध क्मो? 19 शसन के त्रवसबन्न भॊि 48 शॊख ऩूजन से वास्तुदोष सनवायण 20 भहाकार शसन भृत्मुॊजम स्तोि 49 इष्ट आयाधना भं शॊख अभोघ परदामी हं। 21 ॥ शनैश्चयस्तवयाज्॥ 52 शॊख अऩनामे योग, दु्ख, दरयिता, दुबााग्म बगामे 23 ॥ शनैश्चयस्तोिभ ् ॥ 53 शसनदेव का ऩरयिम 24 ॥शसनवज्रऩॊजयकविभ ्॥ 53 शसनवाय व्रत 30 दशयथकृ त-शसन-स्तोि 54 शसन प्रदोष व्रत का भहत्व 36 शसन अष्टोत्तयशतनाभावसर् 58 शसन-साढ़ेसाती के शाॊसत उऩाम 37 गुरु ऩुष्माभृत मोग 59 हभाये उत्ऩाद भॊि ससद्ध दुराब साभग्री एवॊ भारा 18 त्रवसबन्न देवता एवॊ काभना ऩूसता मॊि सूसि 69 बाग्म रक्ष्भी फदब्फी 19 त्रवसबन्न देवी एवॊ रक्ष्भी मॊि सूसि 70 भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश 20 याशी यत्न 71 भॊि ससद्ध स्पफटक श्री मॊि 22 भॊि ससद्ध रूिाऺ 72 भॊि ससद्ध भॊगर गणेश 35 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि / कवि 73 भॊि ससद्ध घोड़े की नार 38 याभ यऺा मॊि 74 त्रवद्या प्रासद्ऱ हेतु सयस्वती कवि औय मॊि 40 जैन धभाके त्रवसशष्ट मॊि 75 सवा कामा ससत्रद्ध कवि 60 घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि 76 हभाये त्रवशेष मॊि 61 अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कवि 77 सवाससत्रद्धदामक भुफिका 62 याशी यत्न एवॊ उऩयत्न 77 100 से असधक जैन मॊि 62 भॊि ससद्ध साभग्री 86-89 द्रादश भहा मॊि 63 सवा योगनाशक मॊि/ 93 ऩुरुषाकाय शसन मॊि एवॊ शसन तैसतसा मॊि 66 भॊि ससद्ध कवि 95 नवयत्न जफड़त श्री मॊि 67 YANTRA LIST 96 वाहन दुघाटना नाशक भारुसत मॊि 68 GEM STONE 98 श्री हनुभान मॊि 68 PHONE/ CHAT CONSULTATION 99 स्थामी औय अन्म रेख सॊऩादकीम 4 दैसनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 89 जून 2013 भाससक यासश पर 78 फदन-यात के िौघफडमे 90 जून 2013 भाससक ऩॊिाॊग 82 फदन-यात फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक 91 जून 2013 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 84 ग्रह िरन जून 2013 92 जून 2013-त्रवशेष मोग 89 हभाया उद्देश्म 102
  • 4. त्रप्रम आस्त्भम फॊधु/ फफहन जम गुरुदेव शॊख की उत्ऩत्रत्त के त्रवषम भं शास्त्रं भं उल्रेख है फक सभुि भॊथन के सभम िौदह प्रकाय के यत्नं भं शॊख बी सनकरा। भुख्म रुऩ से शॊख की उत्ऩत्रत्त जर से ही होती है। जर ही जीवन का आधाय है मही कायण हं की सृत्रष्ट की उत्ऩत्रत्त बी जर से हुई है। अत: जर से उत्ऩत्रत्त के कायण शॊख की भहत्वता सवाासधक यही हं। अनेकं देवी-देवता के एक हाथ भं शॊख शोबामभान होता हं। मही कायण हं कई की सफदमं से शॊख का उऩमोग त्रवसबन्न धासभाक अनुष्ठानं भं त्रवशेष रूऩ से फकमा जाता है। शॊख का इसतहास बायतीम सॊस्कृ सत भं असत प्रासिन एवॊ देवकारीन मुग से िरा आयहा है। त्रवऻानीक िष्टी कोण से सभझे तो शॊख सभुि भं ऩाए जाने वारे एक प्रकाय के जीव घंघे का खोर होता है। मह खोर घंघे अऩनी सुयऺा के सरए फनाता है। त्रवद्रानो ने अऩने अनुबवं एवॊ अनुशॊधान से ऩामा हं की ऩौयास्णक कार से ही सभुिी जीवं का मह खोर अथाात शॊख भनुष्म के सरए त्रवसबन्न प्रकाय से उऩमोगी यहा हं। शॊख की आध्मास्त्भक उऩमोगीता के साथ ही इसके िूणा, बस्भ आफद का औषसधम रुऩ भं बी त्रवशेष रुऩ से प्रमोग होता यहा हं। फहन्दू सॊस्कृ सत भं शॊख को अत्मॊत भहत्त्वऩूणा भाना जाता है। त्रवसबन्न धभाग्रॊथं भं शॊख की त्रवसबन्न उऩमोगीताओॊ का त्रवस्तृत वणान सभरता हं। ब्रह्मवैवता ऩुयाण भं उल्रेख सभल्ता है: शॊख िन्िाका दैवत्मभ्भध्म वरुणदैवतन्। ऩृष्ठे प्रजाऩसता त्रवद्यादग्रे गॊगा सयस्वतीभ्॥ िैरोक्मे मासन तीथाात्रऩ वासुदेवस्म िाऻमा। शॊखे सतष्ठस्न्त त्रवप्रेन्ि तस्भा शॊख प्रऩुजमेत्।। दशानेन फह शॊखस्म की ऩुन् त्रवरमॊ मासतॊ ऩाऩसन फहभवद् बास्कयोदमे्।। अथाात: मह शॊख िॊि औय सूमा के सभान देव स्वरूऩ है। इसके भध्म बाग भं वरुण, ऩृष्ठ बाग भं ब्रह्मा औय अग्र बाग भं गॊगा औय सयस्वती के साथ-साथ साये तीथं का वास है। मह कु फेय का बी स्वरूऩ हं अत् इसका ऩूजन अवश्म कयना िाफहए। इसके दशान भाि से सबी कष्ट दूय हो जाते हं। स्जस प्रकाय सूमा के आने ऩय फपा त्रऩघर जाती है। फपय स्ऩशा की तो फात ही व्मथा है। शॊख का स्वरूऩ कु फेय के सभान है, अत् मह ऩूजनीम है। शॊख से श्रीकृ ष्ण मा रक्ष्भी आफद देवी-देवता(शास्त्रं भं शॊख से सशवसरॊग ऩूजन वस्जात भाना गमा हं।) के त्रवग्रह ऩय जर मा ऩॊिाभृत असबषेक कयने ऩय देवता शीघ्र प्रसन्न होते हं। जानकाय त्रवद्रानं का अनुबव हं की एक उत्तभ दोष यफहत शॊख जो भनुष्म के सरए सबी प्रकाय से ऩयभ् कल्माणकायी हं। मह भनुष्म को दैसनक जीवन भं इष्ट आयाधना, ऩूजा-अिाना आफद के सरए प्रेरयत कयता है।
  • 5. सुख-सभृत्रद्ध, धन-सॊऩत्रत्त, रयत्रद्ध-ससत्रद्ध एवॊ ऐश्वमा की प्रासद्ऱ के सरए हभाये धभा शास्त्रं भे दस्ऺणावता शॊख का अत्मासधक भहत्व फतामा गमा हं। दस्ऺणावता शॊख का भुख दामीॊ औय से खुरा होता हं। शास्त्रोक्त भान्मता हं की स्जस घय भं त्रवसध-त्रवधान से दस्ऺणावता शॊख का ऩूजन होता हं, उस घय भं धन, सुख, सभृत्रद्ध, मश-फकसता की वृत्रद्ध होती हं। उस घय भं रक्ष्भी स्स्थत होती हं। आज वैऻासनक अनुसॊधान से मह सात्रफत हो गमा हं की सनमसभत शॊखनाद कयने से उसके सकायात्भक प्रबाव से वातावयण भं व्माद्ऱ हासनकायक सूक्ष्भ जीवाणुओॊ का नाश होता हं। जनकायं का भानना हं की शॊखनाद के दौयान वामुभॊडर भं कु छ त्रवशेष प्रकाय की तयॊगे उत्ऩन्न होती हं, जो ब्रह्माॊड की कु छ अन्म तयॊगं के साथ सभरकय अल्ऩ ऺणं भं ही सभग्र ब्रह्माॊड की ऩरयक्रभा कय रेती हं। उनका भानना हं की ब्रह्माण्ड की ऩरयक्रभा कयते हुवे जफ फकसी एक तयॊग को जफ दूसयी अनुकू र तयॊगं प्राद्ऱ होती हं तफ दोनं तयॊगं के सभनवम से भनुष्म को आत्भ फर-प्रेयणा देने वारी, योग, शोक आफद से यऺा कयने वारी, उसकी भनोकाभनाएॊ ऩूणा कयने वारी तयॊगे उठने रगती हं, औय भनुष्म अऩने कामा उद्देश्म भं शीघ्र सपरता प्राद्ऱ कय रेता हं। जानकायं का भानना हं की तयॊगे इतनी शूक्ष्भ होती हं की उसका प्रबाव हभं सयरता से िष्टी गोिय नहीॊ हो ऩाता! शॊखनाद के सनयॊतय प्रमोग से ही इन तयॊगं के प्रबावं को सभझा जा सकता हं। त्रवसबन्न शोध से मह ससद्ध हो िुका हं की वाद्यं व ध्वसनमं का छोटे-फड़े सबी जीवं ऩय फहोत ही गहया प्रबाव ऩड़ता हं। उसी प्रकाय शॊख ध्वसन के प्रबाव एवॊ भहत्वता को आजका आधुसनक त्रवऻान बी भान िुका हं। फहन्दू धभा के सबी भाॊगसरक कामं भं शॊख का त्रवशेष रुऩ से प्रमोग फकमा जाता है। दस्ऺणावतॉ शॊख को देवी रक्ष्भी का प्रतीक भाना जाता है, दस्ऺणावतॉ शॊख की ऩूजा देवी भहारक्ष्भी को प्रसन्न कयने वारी है। इससरए ऐसी भान्मता हं की स्जस स्थान ऩय सनमसभत रूऩ से शॊख की ऩूजा होती है उस स्थान ऩय कबी धन अबाव नहीॊ यहता। शॊख को त्रवसबन्न देवी-देवता का प्रतीक भानकय बी ऩूजा जाता है व शॊख के भाध्मभ से अबीष्ट कामं की ऩूसता की जाती है। रक्ष्भी सॊफहता, बागवत ऩुयाण, त्रवश्वासभि सॊफहता, गोयऺा सॊफहता, कश्मऩ सॊफहता, शॊख सॊफहता, ऩुरस्त्म सॊफहता, भाकं डेम आफद धभा ग्रॊथं भं दस्ऺणावतॉ शॊख को आमुवाद्धक औय सभृत्रद्ध दामक होने का उल्रेख सभरता हं। 8 जून 2013 को शसन जमॊती, शनैश्चयी अभावस्मा, शसन अभावस्मा का दुराब सॊमोग होने के कायण ऩाठकं के भागादशान हेतु शसनदेव से सॊफॊसधत ऩुयाने रेखं का ऩुन् प्रकाशन फकमा गमा हं। इस अॊक भं प्रकासशत शॊख से सॊफॊसधत जानकायीमं के त्रवषम भं साधक एवॊ त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हं, मफद दशाामे गए शॊख के राब, प्रबाव इत्मादी के सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं, फडजाईन भं, टाईऩीॊग भं, त्रप्रॊफटॊग भं, प्रकाशन भं कोई िुफट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा फकसी मोग्म ज्मोसतषी, गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे । क्मोफक त्रवद्रान ज्मोसतषी, गुरुजनो एवॊ साधको के सनजी अनुबव त्रवसबन्न कविो शॊख के प्रबावं का वणान कयने भं बेद होने ऩय शॊख की, ऩूजन त्रवसध एवॊ उसके प्रबावं भं सबन्नता सॊबव हं। आऩका जीवन सुखभम, भॊगरभम हो शसनदेव की कृ ऩा आऩके ऩरयवाय ऩय फनी यहे। शसनदेव से मही प्राथना हं… सिॊतन जोशी
  • 6. 6 जून 2013 ***** शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत सूिना *****  ऩत्रिका भं प्रकासशत शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक भं शॊख से सॊफॊसधत रेख गुरुत्व कामाारम के असधकायं के साथ ही आयस्ऺत हं।  शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक भं वस्णात रेखं को नास्स्तक/अत्रवश्वासु व्मत्रक्त भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं।  शॊख भहत्व का त्रवषम आध्मात्भ से सॊफॊसधत होने के कायण इसे बायसतम धभा शास्त्रं से प्रेरयत होकय प्रस्तुत फकमा हं।  शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं।  शॊख भहत्व से सॊफॊसधत सबी जानकायीकी प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हं औय ना हीॊ प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी के फाये भं जानकायी देने हेतु कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हं।  शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवश्वास होना आवश्मक हं। फकसी बी व्मत्रक्त त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवश्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का होगा।  शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत फकसी बी प्रकाय की आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।  शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय फदए गमे हं। हभ फकसी बी व्मत्रक्त त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे, भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी स्जन्भेदायी नफहॊ रेते हं। मह स्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रक्त फक स्वमॊ फक होगी।  क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊडं, साभास्जक, कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रक्त मफद नीजी स्वाथा ऩूसता हेतु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकू र ऩरयणाभ सॊबव हं।  शॊख भहत्व त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत जानकायी को भाननने से प्राद्ऱ होने वारे राब, राब की हानी मा हानी की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हं।  हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी शॊख भहत्व की जानकायी एवॊ भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधुगण ऩय प्रमोग फकमे हं स्जस्से हभे हय प्रमोग मा कवि, भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्श्चत सपरता प्राद्ऱ हुई हं। असधक जानकायी हेतु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं। (सबी त्रववादो के सरमे के वर बुवनेश्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)
  • 7. 7 जून 2013 बायतीम सॊस्कृ सत भं शॊख का भहत्व  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी शॊख का इसतहास बायतीम सॊस्कृ सत भं असत प्रासिन एवॊ देवकारीन मुग से िरा आयहा है। त्रवऻानीक िष्टी कोण से सभझे तो शॊख सभुि भं ऩाए जाने वारे एक प्रकाय के जीव घंघे का खोर होता है। मह खोर घंघे अऩनी सुयऺा के सरए फनाता है। जानकाय त्रवद्रानो ने अऩने अनुबवं एव्ॊ अनुशॊधान से ऩामा हं की ऩौयास्णक कार से ही सभुिी जीवं का मह खोर अथाात शॊख भनुष्म के सरए त्रवसबन्न प्रकाय से उऩमोगी यहा हं। शॊख की आध्मास्त्भक उऩमोगीता के साथ ही इसके िूणा, बस्भ आफद का औषसधम रुऩ भं बी त्रवशेष रुऩ से प्रमोग होता यहा हं। कु छ त्रवद्रानं का भानना हं की बायत भं जगन्नाथऩुयी (उड़ीसा) को शॊख ऺेि कहा जाता है, क्मंफक जगन्नाथऩुयी का बौगोसरक आकाय शॊख के सभान सदृश्म है। शॊख का धासभाक भहत्व: फहन्दू सॊस्कृ सत भं शॊख को अत्मॊत भहत्त्वऩूणा भाना जाता है। त्रवसबन्न धभाग्रॊथं भं शॊख की त्रवसबन्न उऩमोगीताओॊ का त्रवस्तृत वणान सभरता हं। ब्रह्मवैवता ऩुयाण भं उल्रेख सभल्ता है: शॊख िन्िाका दैवत्मभ्भध्म वरुणदैवतन्। ऩृष्ठे प्रजाऩसता त्रवद्यादग्रे गॊगा सयस्वतीभ्॥ िैरोक्मे मासन तीथाात्रऩ वासुदेवस्म िाऻमा। शॊखे सतष्ठस्न्त त्रवप्रेन्ि तस्भा शॊख प्रऩुजमेत्।। दशानेन फह शॊखस्म की ऩुन् त्रवरमॊ मासतॊ ऩाऩसन फहभवद् बास्कयोदमे्।। अथाात: मह शॊख िॊि औय सूमा के सभान देव स्वरूऩ है। इसके भध्म बाग भं वरुण, ऩृष्ठ बाग भं ब्रह्मा औय अग्र बाग भं गॊगा औय सयस्वती के साथ-साथ साये तीथं का वास है। मह कु फेय का बी स्वरूऩ हं अत् इसका ऩूजन अवश्म कयना िाफहए। इसके दशान भाि से सबी कष्ट दूय हो जाते हं। स्जस प्रकाय सूमा के आने ऩय फपा त्रऩघर जाती है। फपय स्ऩशा की तो फात ही व्मथा है। शॊख का स्वरूऩ कु फेय के सभान है, अत् मह ऩूजनीम है। शॊख से श्रीकृ ष्ण मा रक्ष्भी आफद देवी-देवता(शास्त्रं भं शॊख से सशवसरॊग ऩूजन वस्जात भाना गमा हं।) के त्रवग्रह ऩय जर मा ऩॊिाभृत असबषेक कयने ऩय देवता शीघ्र प्रसन्न होते हं। जानकाय त्रवद्रानं का अनुबव हं की एक उत्तभ दोष यफहत शॊख जो भनुष्म के सरए सबी प्रकाय से ऩयभ् कल्माणकायी हं। मह भनुष्म को दैसनक जीवन भं इष्ट आयाधना, ऩूजा-अिाना आफद के सरए प्रेरयत कयता है। शॊख को सनातन धभा का प्रतीक भाना गमा है, इस सरए फहन्दू धभा भं ऩूजा स्थर ऩय शॊख यखने की ऩयॊऩया है त्रवशेष रुऩ से प्रिसरत हं। फहन्दू धभा की भान्मताओॊ के अनुसाय शॊख मा शॊख की भाॊगसरक आकृ सत वारे सिन्ह ऩूजास्थर भं होने से बवन के सबी प्रकाय के अरयष्टं एवॊ असनष्टं का स्वत् नाश हो जाता है औय उस बवन भं सनयॊतय सुख, सौबाग्म की वृत्रद्ध होती है। कु छ जानकाय त्रवद्रानं ने शॊख को सनसध का प्रतीक कहा है। धभाशास्त्र भं शॊख का अष्टससत्रद्ध एवॊ नवसनसध भं भहत्त्वऩूणा स्थान फतामा गमा है। धासभाक भान्मता के अनुसाय शॊख के स्ऩशा से साधायण जर बी गॊगाजर के सभान ऩत्रवि हो जाता हं, मही कायण हं की फहन्दू धभा भं त्रवसबन्न प्रकाय की धासभाक फक्रमाओॊ भं शॊख के जर का
  • 8. 8 जून 2013 प्रमोग त्रवशेष रुऩ से फकमा जाता है। फहन्दू भॊफदयं भं शॊख भं शुद्ध जर बयकय देवी-देवता की आयती की जाती है। आयती की सभासद्ऱ ऩय शॊख का जर उऩस्स्थत बक्तं ऩय सछड़का जाता हं। त्रवद्रानं का कथन हं की जो भनुष्म बगवान श्री कृ ष्ण को शॊख भं जर, पू र औय अऺत यखकय उन्हं अध्मा देता है, उसे अनन्त ऩुण्म परं की प्रासद्ऱ होती है। शॊख भं जर बयकय इष्ट भॊिं का उच्िायण कयते हुए बगवान श्री कृ ष्ण को स्नान कयाने से भनुष्म के सकर ऩाऩं का नाश होता है। कु छ त्रवद्रानं का कथन हं की अनेक ऩूजा, अनुष्ठान, मऻ आफद भं शॊख का प्रमोग असनवामा भाना गमा हं, वह धासभाक कामा शॊख के त्रफना ऩूणा नहीॊ भाना जाता है। कु छ त्रवसशष्ट साधनाओॊ भं बी शॊख का त्रवशेष रुऩ से प्रमोग फकमा जाता हं। भान्मता हं की शॊख भनुष्म की इस्च्छत भनोकाभनाएॊ शीघ्र ऩूणा कयने भं सहामक होते हं। कु छ जानकायं का तो महा तक कथन हं की जो भनुष्म को सुख, सभृत्रद्ध से मुक्त सुखभम जीवन व्मसतत कयना िाहते हं उन्हं अऩने ऩूजा स्थान भं शॊख अवश्म स्थात्रऩत कयना िाफहए। त्रवसबन्न शास्त्रं भं शॊख को त्रवजम, सुख, सभृत्रद्ध, ऐश्वमा, कीसता औय रक्ष्भी का प्रतीक फतामा गमा है। शॊख सत मुग से रेकय क्रभश् िेता मुग द्राऩय मुग औय कसर मुग भं बी रोगं को अऩनी औय आकत्रषात कयते यहे है, सत मुग से रेकय आज तक उसकी भहत्वता एवॊ उऩमोगीता अत्मॊत अद्भुत यही हं स्जस के कायण ही इसे देव, दानव औय भानव सबी ने शॊख को अऩने राबाथा इस्तेभार कयते आमे हं। शॊख की भहत्वता इतनी असधक हं की इसका अनुभान इसी फात से रगा सकते हं की शॊख भुख्मत् इष्ट आयाधना से रेकय मुद्ध बूसभ तक अऩना त्रवशेष भहत्त्व औय स्थान यखता है। इष्ट आयाधना के दौयान शॊख की ध्वसन हभाये सबतय श्रद्धा वा आस्था का सॊिाय कयती हं औय मुद्ध के दौयान शॊख की ध्वसन मोद्धाओॊ के जोश भं वृत्रद्ध कयती हं। धभाशास्त्रं के जानकायं का कथन हं की मुद्ध भं प्रथभ फाय शॊख का उऩमोग देव-असुय के त्रफि के मुद्ध भं फकमा गमा था, फतामा जाता हं की इस मुद्ध भं सबी देव-दानव अऩने-अऩने शॊखं के साथ मुद्ध बूसभ भं आए थे। उस मुद्ध के दौयान शॊखं फक ध्वसन के साथ मुद्ध आयॊब होता औय ध्वसन के साथ ही मुद्ध ख़त्भ होता था। ऐसी शास्त्रोक्त भान्मता हं की देव-दानव के उस मुद्ध के फाद से ही प्राम् हय देवी-देवता अऩने साथ शॊख यखते है। असधकाॊश शॊख वाभावतॉ होते हं औय वाभावतॉ शॊख फाज़ाय भं आसानी से उऩरब्ध हो जाते हं, दस्ऺणावतॉ शॊख को असत दुराब भाना जाता हं। वाभावतॉ शॊख को बगवान श्री त्रवष्णु का स्वरुऩ भान कय उसे ऩूजा जाता है औय दस्ऺणावतॉ शॊख को देवी भहारक्ष्भी का स्वरुऩ भान कय उसे ऩूजन फकमा जाता है। त्रवद्रानं का कथन हं की स्जस घय भं दस्ऺणावतॉ शॊख होता हं उस घय भं सदा देवी भहारक्ष्भी का वास यहता है। कु छ तॊि त्रवद्याके जानकायं के कथन अनुसाय दस्ऺणावतॉ शॊख का मफद ऩूणा त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन फकमा जामे, औय दस्ऺणावतॉ शॊख को रार कऩड़े भं रऩेटकय अऩने घय के ऩूजन स्थान भं स्थात्रऩत कयने से घय की त्रवसबन्न ऩयेशासनमाॊ दूय होती है। दस्ऺणावतॉ शॊख को अऩनी सतज़ोयी भे यखने से घय भं सनयॊतय सुख-सभृत्रद्ध फढ़ती है। इसी सरए जानकाय त्रवद्रान घय भं दस्ऺणावतॉ शॊख को स्थात्रऩत कयना अत्मॊत शुब एवॊ भॊगरकायी भानते है। ***
  • 9. 9 जून 2013 दस्ऺणावता शॊख का धासभाक भहत्व  सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी त्रवद्रानो ने 3 तोरे के शॊख को उत्तभ औय 25 तोरे से फड़ा असत उत्तभ फतामा हं। ऩूजन हेतु उज्जवर वणा का शॊख असत उत्तभ होता हं। ऩौयास्णक भान्मताओॊ के अनुशाय शॊख की ऩयख ऩानी भं नभक डार कय उस ऩानी भं शॊख को डार कय सात फदन यखने ऩय नकरी शॊख टूट जाता हं मा उसभं दयाये हो जाती हं, जफकी असरी शॊख अऩनी वास्तत्रवक स्स्थती भं यहता हं। शॊख मफद असरी होगा तो दोनं अॊगूठे के नाखून ऩय यखने से वह कु छ हदतक गोर धुभता हं। मफद शॊख असरी हो तो उसे कान के ऩास यखने से उसभं से ॐकाय की ध्वसन सुनाई देती हं. मफद शॊख भं सछि हो तो ॐकाय की ध्वसन सुनाई नहीॊ देती। इस सरमे मह सबी ऩुयातन उऩामो को अऩना कय शॊख की जाॊि कयना औय असरी शॊख प्राद्ऱ कयना आभ व्मत्रक्त के सरए दुस्साध्म कामा हं। त्रवशेष नोट: आजकर आधुसनक तकनीकी उऩकयणो की भदद से कृ त्रिभ अथाात नकरी शॊख फनामे जाते हं। जो नभक वारे ऩानी भं डारने ऩय नातो टूटते हं औय नाहीॊ उसभे दयाये ऩड़ती हं, स्जस कायण ऩौयास्णक ऩद्धत्रत्त से असरी नकरी की ऩहिान साधायण व्मत्रक्त की ऩहुॊि के फाहय हं। दोनं अॊगूठे के नाखून ऩय अन्म वस्तु मा नकरी शॊख बी धूभ सकते हं। ॐकाय की ध्वसन नकरी शॊखं भं से बी आसकती हं मफद उसभं कोई सछि नहो तो। ॐकाय की ध्वसन तो सछि यहीत फकसी बी छोटे भुख वारे रॊफे ऩाि मा ग्रास से बी आसकती हं, मफद अऩनी हथेरी को कटोयी के सभान सछि यहीत अवस्था भं भोड़ कय कान के ऩास यखा जामे तो बी हभं ॐकाय की ध्वसन आसानी से सुनाई दे सकती हं। इस सरए शॊख की ऩयख फकसी जानकाय से कयवाना उसित होगा मा फकसी त्रवश्वस्त व्मत्रक्त मा सॊस्था से ही प्राद्ऱ कयं। शॊख के राबकायी प्रमोग:  शॊख भं जर बयकय भस्तक औय शयीय ऩय सछड़कने से ऩाऩं का ऺम होता है।  शॊख भं जर रेकय ऩूजन कयने ऩय देवी भहारक्ष्भी शीध्र प्रसन्न होती हं, औय अऩनी कृ ऩा फनाएॊ यखती हं।  कु छ जानकाय त्रवद्रानं का अनुबव यहा हं की शॊख भं दूध बयकय मफद वन्ध्मा स्त्री को ऩीरामा जामे तो उसे बी सॊतान की प्रासद्ऱ हो सकती हं।  स्जस घय भं शॊख होता हं उस घय भं सनवास कतााओॊ का सबी प्रकाय से भॊगर होता हं। उसके सबी योग, शोक का नाश होता हं उसके भान-सम्भान एवॊ ऩद- प्रसतष्ठा भं वृत्रद्ध होती हं। दस्ऺणावसता शॊख की ऩूजन त्रवसध: प्रात् स्नान आफद से सनवृत्त हो कय, स्वच्छ कऩड़े ऩहन कय, प्रथभ दूध से फपय शुद्ध जर से शॊख को स्नान कयामे। फपस स्वच्छ रार वस्त्र से उसे ऩोछे। फपय शॊख को सोने मा िाॊदी के ऩि से भढ़ना िाफहए (अथाात शॊख की उऩयी सतह को सोने मा िाॊदी के ऩि का आवयण रगाकय ढ़क देना िाफहए), मफद सोने िाॊदी का ऩि
  • 10. 10 जून 2013 भॊि ससद्ध दुराब साभग्री हत्था जोडी- Rs- 370 घोडे की नार- Rs.351 भामा जार- Rs- 251 ससमाय ससॊगी- Rs- 370 दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550 इन्ि जार- Rs- 251 त्रफल्री नार- Rs- 370 भोसत शॊख-Rs- 550 से 1450 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251 GURUTVA KARYALAY Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785, Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com >> Order Now रगाना सॊबव न हो तो सोने मा िाॊदी की वयक (वयख, वका , वखा, ऩणा, ऩन्नी Foil आफद नाभं से जाना जाता हं) बी िढ़ा सकते हं। फपय शॊख का अष्ट िव्मं से षोडशोऩिाय ऩूजन कयं। शॊख का ऩूजन सॊकल्ऩ हाथ भं आिभनी भं रज रेकय नीिे देमे भॊि से सॊकल्ऩ कयं (जहाॊ अभुक के स्थान ऩय सॊफॊसधत वषा, भास आफद का उच्िायण कयं।) ॐ अिाद्य अभुक वषे अभुक भासे अभुक ऩऺे अभुक सतथौ अभुख वायसे शुब नऺि कयण मोग रग्ने भभ ससद्धमथे फहयण्म गोदासा वाहना फह सभृत्रद्ध प्राप्त्मथे श्री दस्ऺणावतॉ शॊखस्म ऩूजनभ् अहॊ करयष्मे। अथाात: आजके अभुक वषा, अभुक भास, अभुक ऩऺ, अभुक सतसथ, अभुक वाय को भेये कामा की ससत्रद्ध के सरए सुवणा, गाम, दास, वाहन आफद सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ के सरए भं श्री दस्ऺणावतॉ शॊख जा ऩूजन कय यहा हूॊ। (उक्त भॊि उिायण कय शॊखका जर ऩािे भं छोड़ दे) ऩूजन भॊि: ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ श्रीधय कयस्थाप्ममोसनसध जाताम श्रीदस्ऺणावता शॊखम ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ श्रीकयाम ऩूज्माम नभ्। उक्त भि का उच्िायण कयते हुवे शॊख को अष्ट िव्म व सुगॊसधत इि िढ़ाएॊ। िाॊदी के फयतन भं दूध भं िीनी, के सय, फादाभ, इरामिी सभरा कय नैवेद्य तैमाय कयं। सॊबव हो तो साथ भं पर बी यखं। कऩूय से आयती कयं। ध्मान भॊि: ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ श्रीधय कयस्थाप्म ऩमोसनसध जाताम रक्ष्भी सहोदयाम सिस्न्तभाथा सॊऩादकाम श्री श्रीदस्ऺणावता शॊखाम श्री कयाम, ऩूज्माम क्रीॊ श्रीॊ ह्रीॊ ॐ नभ् सवााबयण बूत्रषताम प्रशस्मान्गोऩान्गसॊमुताम कल्ऩवृऺाम स्स्थताम काभधेनु सिन्ताभस्णनव सनसधरूऩाम ितुदाश यत्न ऩरयवृत्ताम अष्टादश भहाससत्रद्ध सफहताम श्रीरक्ष्भी देवता कृ ष्णदेव कयतर रसरताम श्री शॊखभहासनधमे नभ्। ध्मान भॊि आवाहन अथाात ् स्तुसत भॊि है। इसके असतरयक्त फीज भॊि अथवा ऩाॊि जन्म गामिी शॊख भॊि का ग्मायह भारा जऩ कयना बी आवश्मक है। जऩ भॊि: ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ ब्रूॊ दस्ऺण शॊखसनधमे सभुि प्रबवाम नभ्।
  • 11. 11 जून 2013 फीज भॊि: ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ ब्रूॊ दस्ऺणभुखाम शॊखसनधमे सभुिप्रबवाम नभ्। शॊख का शाफय भॊि: ॐ दस्ऺणावते शॊखाम भभ् गृह धनवषाा कु रु कु रु नभ्॥ शॊख गामिी भॊि: ॐ ऩान्िजन्माम त्रवद्महे। ऩावभानाम धीभफह। तन्न शॊख् प्रिोदमात्। प्रसतफदन उक्त फकसी एक भॊि का शॊख के सम्भुख फैठकय 1, 3, 5, 7, 11 भाराएॊ जऩ कयना िाफहए। जऩ की सभासद्ऱ ऩय जर को आकाश की ओय सछड़के । ऋत्रद्ध-ससत्रद्ध तथा सुख-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ के सरए हेतु मह प्रमोग अत्मॊत राब प्रद हं। दोष यफहत दस्ऺणावतॉ शॊख का उऩयोक्त त्रवसध से ऩूजन कयना अत्मॊत राबप्रद होता हं। शॊख का ऩूजन फदन के प्रथभ प्रहय भं कयने से याज्म ऩऺ से सम्भान की प्रासद्ऱ होती हं। शॊख का ऩूजन फदन के फद्रतीम प्रहय भं कयने से धन, सॊऩत्रत्त व रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं एवॊ फुत्रद्ध का त्रवकास होता हं। शॊख का ऩूजन फदन के तृतीम प्रहय भं कयने से सभाज भं मश, कीसता एवॊ फुत्रद्ध की वृत्रद्ध होती हं। शॊख का ऩूजन फदन के ितुथा प्रहय भं कयने से सॊतान की प्रासद्ऱ एवॊ वृत्रद्ध होती हं। त्रवशेष: फदन औय यािी के िाय-िाय प्रहय होते हं, कु र आठ प्रहय का एक फदन होता हं। अथाात एक प्रहय तीन घॊटे का होता है। सूमोदम के सभम से प्रथन प्रहय की गणना कयनी िाफहए। सूमोदम सभम भं 3 घॊटे का सभम जोड़ने ऩय दूसया प्रहय प्रायॊब होगा ऐसे तीन-तीन घॊटे जोडकय क्रभश् तीसया औय िौथा प्रहय जान सकते हं। *** भॊि ससद्ध त्रवशेष दैवी मॊि सूसि आद्य शत्रक्त दुगाा फीसा मॊि (अॊफाजी फीसा मॊि) सयस्वती मॊि खोफडमाय मॊि सद्ऱसती भहामॊि(सॊऩूणा फीज भॊि सफहत) नव दुगाा मॊि खोफडमाय फीसा मॊि भहान शत्रक्त दुगाा मॊि (अॊफाजी मॊि) कारी मॊि अन्नऩूणाा ऩूजा मॊि सॊकट भोसिनी कासरका ससत्रद्ध मॊि श्भशान कारी ऩूजन मॊि एकाॊऺी श्रीपर मॊि िाभुॊडा फीसा मॊि ( नवग्रह मुक्त) दस्ऺण कारी ऩूजन मॊि त्रिशूर फीसा मॊि नवाणा फीसा मॊि फगरा भुखी मॊि याज याजेश्वयी वाॊछा कल्ऩरता मॊि नवाणा मॊि (िाभुॊडा मॊि) फगरा भुखी ऩूजन मॊि >> Order Now GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA), Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Visit Us: www.gurutvakaryalay.com www.gurutvajyotish.com and gurutvakaryalay.blogspot.com www.gurutvajyotish.blogspot.com
  • 12. 12 जून 2013 दस्ऺणावता शॊख से जुड़े गूढ़ यहस्म  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, ऩॊ.श्री बगवानदास त्रिवेदी जी, सुख-सभृत्रद्ध, धन-सॊऩत्रत्त, रयत्रद्ध-ससत्रद्ध एवॊ ऐश्वमा की प्रासद्ऱ के सरए हभाये धभा शास्त्रं भेभ दस्ऺणावता शॊख का अत्मासधक भहत्व फतामा गमा हं। दस्ऺणावता शॊख का भुख दामीॊ औय से खुरा होता हं। शास्त्रोक्त भान्मता हं की स्जस घय भं त्रवसध-त्रवधान से दस्ऺणावता शॊख का ऩूजन होता हं, उस घय भं धन, सुख, सभृत्रद्ध, मश-फकसता की वृत्रद्ध होती हं। उस घय भं रक्ष्भी स्स्थत होती हं। असरी नकरी ऩहिान के सरए शॊख को ऩाॊि फदन औय ऩाॊि यात तक ठॊडे ऩानी भं यखे, मफद नकरी शॊख होगा तो टूट जामेगा। इस प्रकाय असरी नकरी की ऩयख कयके शॊख का ऩूजन भं प्रमोग कयं। दहीॊ मा देशी घी के सभान यॊग वारा शॊख उत्तभ होता हं, धूसभर मा धुएॊ जैसे यॊग वारे शॊख को शॊस्खणी (अथाात स्त्री जाती का शॊख) कहाॊ जाता हं। 2.5 तोरा अथाात िीस ग्राभ से असधक वजन का शॊख ऩूजन हेतु उत्तभ सभझे औय 2 तोरा मा उस्से कभ वजन के शॊख को साधायण सभझे।  त्रवद्रानं का भत हं की स्जस घय भं दस्ऺणावता शॊख का ऩूजन होता हं उस घय भं सवादा भाॊगसरक कामा सॊऩन्न होते हं, उस घय भं भाॊगसरक कामं के दौयान फकसी प्रकाय का त्रवघ्न-फाधाएॊ, त्रवरॊफ मा अशुब नहीॊ होता हं।  शॊख के ऩीछे के फहस्से को सोने से जड़वाना उत्तभ होता हं।  दस्ऺणावता शॊख को ऩूजा स्थान भं स्थात्रऩत कय के प्रसतफदन स्नानाफद के ऩश्चमात स्वच्छ वस्त्र धायण कय प्रसतफदन ऩूजन कयं।  ऩूवा फदशा भं फहनेवारी नदी भं स्नान कय नदी के जर को दस्ऺणावता शॊख भं बय कय अऩने भस्तक ऩय उस जर की धाय सगयाने से सबी प्रकाय के ऩाऩं का नाश होता हं।  स्जस स्त्री को सॊतान नहीॊ हो यही हो, सॊतान जीत्रवत न यहती हो, भृत सॊतान का जन्भ हो यहा हो ऐसी स्त्री को दस्ऺणावता शॊख का ऩूजन कयके स्जस गाम के फछ़डे जीत्रवत हो ऐसी गाम का दूध शॊख भं बय रं। 108 फाय भॊि फोर कय शॊख का दूध को प्रसाद के रुऩ भं सेवन कयं। मह प्रमोग दूध के फदरे घी (थोड़ा गयभ कयरे) का इस्तेभार कय सकते हं, इस प्रमोग से स्त्रीको सॊतान होने की सॊबावनाएॊ फढ़ सकती हं।  जो रोग नदी मा तीथा तक नहीॊ जा सकते ऐसे रोग दस्ऺणावता शॊख भं नदी मा तीथा का जर के छीॊटे अऩने भस्तक ऩय सछडकने, तथा अऩने त्रऩतृओॊ का नाभ रेकय शॊख से तऩाण कयने से उसके सबी ऩाऩ नष्ट हो जाते हं, तथा त्रऩतृओॊ का उद्धाय होता हं, उनको सद्दगसत प्राद्ऱ होती हं।  त्रवद्रानं का कथन हं की दस्ऺणावता शॊख भं जर बय कय उससे बगवान त्रवष्णु का ऩूजन कयने से उसके सात जन्भ के ऩाऩं का नाश होता हं।  स्जसके घय भं दस्ऺणावता शॊख होता हं उसके आमुष्म, कीसता तथा धन की वृत्रद्ध होती हं। जो शॊख के जर को भस्तक ऩय सछड़कता हं उसके घयभं रक्ष्भी स्स्थय होती हं।  स्जस स्थान ऩय शॊखनाद होता हं वहाॊ रक्ष्भी का स्स्थय सनवास होता हं।  जो दस्ऺणावता शॊख के जर से स्नान कयता हं उसे सबी तीथं के स्नान का पर सभरता हं।  शास्त्रं भं शॊख को त्रवष्णु स्वरुऩ भाना गमा हं, शॊख भं बगवान त्रवष्णु का वास होता हं। इस सरए जहाॊ दस्ऺणावता शॊख होता हं वहाॊ बगवान त्रवष्णु का वास होता हं जहाॊ बगवान त्रवष्णु का वास होता हं वहाॉ भाॉ रक्ष्भी सनवास कयती हं। स्जससे जहाॉ भाॉ रक्ष्भी
  • 13. 13 जून 2013 सनवास कयती वहाॉ योग, दोष, दु्ख, दरयिता आफद घयभं यह नहीॊ सकतं।  शॊख को रस्क्ष्भ प्रासद्ऱ का उत्तभ साधन भाना गमा हं।  स्जस स्थान ऩय दस्ऺणावता शॊख होता हं वहाॊ बूत-प्रेत आफद सबी प्रकाय के उऩिवं से यऺा होती हं।  शास्त्रं भं शॊख को सूमा िॊिभाॊ के सभान फदव्म गुणं से मुक्त फतामा गमा हं।  धासभाक भान्मता हं की तीनं रोक भं स्जतने तीथा हं वह सफ बगवान त्रवष्णु की आऻा से शॊख भं सनवास कयते हं। शॊख के दशान से ऩाऩं का नाश होता हं। शॊख ध्वसन एवॊ शॊख जर के त्रवशेष राब: आज तोऩ के गोरे मा फभ के शोय का जो असय होता हं वहीॊ असय प्रािीन कार भं शॊख ध्वसन से होता था। शॊख ध्वसन से शिुओॊ की सेना का भनोफर टूट जाता हं। मफद जॊगर भं जहाॊ शॊख ध्वसन होती हं वहाॊ से शेय-फाध जैसे फहॊसक ऩशु आने की फहम्भत नहीॊ कयते। जहयी जीवजॊतु बी वहाॊ से दूय यहते हं। कु छ जानकायं का भानना हं की योग कायक शूक्ष्भ जीवाणु मा त्रवषाणु हवा भं होते हं स्जसे वामयस कहते हं, जहाॊ प्रसतफदन प्रात् एवॊ सॊध्मा शॊख ध्वसन होती हं, वहाॊ जीवाणु मा त्रवषाणु अथाात वामयस का उऩिव पै रता नहीॊ हं।  दस्ऺणावतॉ शॊख को धन के बॊडाय भं यखने से धन की वृत्रद्ध, अन्न-बॊडाय भं यखने से अन्न की वृत्रद्ध, वस्त्र के बॊडाय भं यखने से वस्त्र की वृत्रद्ध, अध्ममन व ऩूजन कऺ भं यखने से ऻान की वृत्रद्ध, शमन कऺ भं यखने से सुख-शाॊसत की वृत्रद्ध होती हं।  दस्ऺणावतॉ शॊख भं शुद्ध जर बयकय व्मत्रक्त, वस्तु, बूसभ-बवन आफद ऩय सछड़कने से दुबााग्म, असबशाऩ, असबिाय, ग्रहं की अशुबता इत्माफद सभाद्ऱ हो जाती हं।  त्रवद्रानं कथन हं की ब्रह्म हत्मा, गो हत्मा जैसे भहाऩातकं से भुत्रक्त ऩाने के सरए दस्ऺणावतॉ शॊख के जर को सॊफॊसधत व्मत्रक्त ऩय सछड़कने से उसे ऩाऩं से भुत्रक्त सभरती हं।  दस्ऺणावतॉ शॊख का जर जादू-टोना, नज़य, काभण- टूभण जैसे असबिाय वारे कभं के दुष्प्रबावं को नष्ट कयने भं सभथा हं। दस्ऺणावता शॊख के प्रकाय: शास्त्रं भं दस्ऺणावता शॊख के दं बेद फतामे हं: दस्ऺणावता ऩुरुष शॊख औय दस्ऺणावता स्त्री शॊख। छोटे आकायं वारे कभ वजन के दस्ऺणावता शॊख को स्त्री दस्ऺणावता शॊख कहाॊ जाता हं, धुॊधरे यॊग वारे शॊखं को बी स्त्री दस्ऺणावता शॊख भाना जाता हं। वणा के अनुशाय दस्ऺणावता शॊख िाय प्रकाय के फतामे गमे हं। 1- ब्राह्मण दस्ऺणावता शॊख: जो शॊख हये मा सपे द यॊग का हो, छू ने ऩय उसकी सतह कोभर भहसूस हो, शॊख वजन भं हल्का हो उस शॊख को ब्राह्मण दस्ऺणावता शॊख कहाॊ गमा हं। 2- ऺत्रिम दस्ऺणावता शॊख: जो शॊख हल्का यक्त वणा हो, शॊख के अॊश को अरग कयने वारी कु छ येखाएॊ फनी हो, शॊख की ध्वसन कका श हो उस शॊख को ऺत्रिम दस्ऺणावता शॊख कहाॊ गमा हं। 3- वैश्म दस्ऺणावता शॊख: जो शॊख भोटा हो, शॊख के हय अॊश ऩय येखा हो तथा वह ऩीरे यॊग की हो उस शॊख को वैश्म दस्ऺणावता शॊख कहाॊ गमा हं। 4- शुि दस्ऺणावता शॊख: जो शॊख कठोय हो, शॊख का आकाय टेड़ा भेड़ा हो, वजन भं बायी हो, शॊख की ध्वसन कका श, यॊग थोडा कारा हो उस शॊख को शुि दस्ऺणावता शॊख कहाॊ गमा हं। दस्ऺणावता शॊख के भुख्म तीन गुण भाने गमे हं। 1- आकाय भं गोराकाय हो, 2- शॊख की सतह भुरामभ हो तथा 3- सनभार हो मफद ऐसा शॊख फकसी कायण से टूट जामे तो टूटे हुवे बाग को सोने की वयख मा सोने के ऩत्तय से उसे ढॊक देना िाफहए।
  • 14. 14 जून 2013 शॊख नाद एक अद्भुत यहस्म  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, फदऩक.ऐस.जोशी आज वैऻासनक अनुसॊधान से मह सात्रफत हो गमा हं की सनमसभत शॊखनाद कयने से उसके सकायात्भक प्रबाव से वातावयण भं व्माद्ऱ हासनकायक सूक्ष्भ जीवाणुओॊ का नाश होता हं। जनकायं का भानना हं की शॊखनाद के दौयान वामुभॊडर भं कु छ त्रवशेष प्रकाय की तयॊगे उत्ऩन्न होती हं, जो ब्रह्माॊड की कु छ अन्म तयॊगं के साथ सभरकय अल्ऩ ऺणं भं ही सभग्र ब्रह्माॊड की ऩरयक्रभा कय रेती हं। उनका भानना हं की ब्रह्माण्ड की ऩरयक्रभा कयते हुवे जफ फकसी एक तयॊग को जफ दूसयी अनुकू र तयॊगं प्राद्ऱ होती हं तफ दोनं तयॊगं के सभनवम से भनुष्म को आत्भ फर-प्रेयणा देने वारी, योग, शोक आफद से यऺा कयने वारी, उसकी भनोकाभनाएॊ ऩूणा कयने वारी तयॊगे उठने रगती हं, औय भनुष्म अऩने कामा उद्देश्म भं शीघ्र सपरता प्राद्ऱ कय रेता हं। जानकायं का भानना हं की तयॊगे इतनी शूक्ष्भ होती हं की उसका प्रबाव हभं सयरता से िष्टी गोिय नहीॊ हो ऩाता! शॊखनाद के सनयॊतय प्रमोग से ही इन तयॊगं के प्रबावं को सभझा जा सकता हं। त्रवसबन्न शोध से मह ससद्ध हो िुका हं की वाद्यं व ध्वसनमं का छोटे-फड़े सबी जीवं ऩय फहोत ही गहया प्रबाव ऩड़ता हं। उसी प्रकाय शॊख ध्वसन के प्रबाव एवॊ भहत्वता को आजका आधुसनक त्रवऻान बी भान िुका हं। हभाये त्रवद्रान ऋत्रष-भुसनमं ने अऩने मोगफर एवॊ अनुसॊधानो का सूक्ष्भ अध्ममन कय के हजायं वषा ऩूवा ही प्रकृ सत भं सछऩे गृढ़ यहस्मं को जान सरमा था, औय प्रकृ सत के गृढ़ यहस्मं के ऻान को हभाये ऋत्रष-भुसनमं ने त्रवसबन्न ग्रॊथं औय शास्त्रं के रुऩ सहेज कय भं प्रदान फकमा हं। शॊख ध्वसन एवॊ शॊख के त्रवसबन्न राब की शोध का श्रेम बी हभाये ऋत्रष-भुसनमं को ही जाता हं। त्रवद्रानं ने शॊख ध्वसन भं सभग्र ब्रह्माॊड को सनफहत भाना है। उनका भानना हं फक, अस्खर ब्रह्माॊड के सॊस्ऺद्ऱ रूऩ को प्रकट कयने वारी मफद कोई शत्रक्त हं तो वह शॊख ध्वसन है। ऩौयास्णक कार भं शॊखनाद के भाध्मभ से मुद्धायॊब की घोषणा औय उत्साहवधान फकमा जाता था। आध्मास्त्भक कामं भं बी शॊख ध्वसन अऩना त्रवशेष भहत्व यखती हं। शास्त्रं भं उल्रेख हं की भहाबायत के मुद्ध भं शॊख का अत्मसधक उऩमोग हुवा था। मुद्ध के सभम के प्रभुख भहायसथमं के ऩास जो शॊख थे, उनका उल्रेख इस प्रकाय फकमा गमा है- ऩाॊिजन्मॊ रृषीके शो देवदत्तॊ धनञ्जम। ऩौण्रॊ दध्भौ भहाशॊखॊ बीभकभाा वृकोदय॥ अनन्तत्रवजमभ् याजा कु न्तीऩुिो मुसधत्रष्ठय। नकु र सहदेवश्च सुघोषभस्णऩुष्ऩकौ॥ काश्मश्च ऩयभेष्वास सशखण्डी ि भहायथ। धृष्टद्युम्नो त्रवयाटश्च सात्मफकश्चाऩयास्जता्॥ िुऩदो िौऩदेमाश्च सवाश ऩृसथवीऩते। सौबिश्च भहाफाहु् शॊखान्दध्भु् ऩृथक्ऩृथक्॥ अथाात ्: श्रीकृ ष्ण बगवान ने ऩाॊिजन्म नाभक, अजुान ने देवदत्त औय बीभसेन ने ऩंर शॊख फजामा। कुॊ ती ऩुि याजा मुसधत्रष्ठय ने अनन्तत्रवजम शॊख, नकु र ने सुघोष एवॊ सहदेव ने भस्णऩुष्ऩक नाभक शॊख का नाद फकमा। इसके अरावा काशीयाज, सशखॊडी, धृष्टद्युम्न, याजा त्रवयाट, सात्मफक, याजा िुऩद, िौऩदी के ऩाॉिं ऩुिं औय असबभन्मु आफद सबी ने अरग-अरग शॊखं का नाद फकमा।
  • 15. 15 जून 2013 भाना जाता हं की मोद्धाओॊ द्राया मुद्ध बूसभ भं अद्भुत शौमा औय शत्रक्त के प्रदशान का आधाय शॊखनाद ही हं। मही कायण हं की ऩुयातन कार भं मोद्धाओॊ द्राया मुद्ध भं शॊखनाद प्रमोग फकमा जाता था। बगवान श्रीकृ ष्ण का ऩाॊिजन्म नाभक शॊख तो एकदभ अद्भुत औय अफद्रतीम होने के कायण हीॊ भहाबायत भं त्रवजम का प्रतीक फन गमा। रृदम को झॊकृ त कयने, ऩुन् कॊ त्रऩत कयने व आनस्न्दत कयने भं शॊख ध्वसन का प्रबाव अद्भुत यहा हं। आज बी जफ फकसी धासभाक कामा मा भाॊगसरक कामा के दौयान जफ शॊखनाद होता हं तो वहाॊ ऩय उऩस्स्थत रोगं का तन-भन आनस्न्दत हो जाता हं। शॊखनाद के त्रवसबन्न प्रबावं का उल्रेख हभं अनेक शास्त्र एवॊ ग्रॊथं भं सभरता है।  कु छ कृ त्रषकामा से जुड़े रोगं नं अऩने खेतं भं शॊखनाद द्राया अऩनी पसर के उत्ऩादन भं वृत्रद्ध कयके शॊख ध्वसन के भाध्मभ से सपरता प्राद्ऱ की हं।  त्रवद्रानं का अनुबव हं की पसरं को ऩानी देते सभम शुब भुहूता भं 108 शॊखोदक (108 शॊखं का जर) सभरा कय पसर भं देने से पसर के उत्ऩादन भं वृत्रद्ध होती हं, अनाज के बॊडाय गृह भं कीड़ं-भकोड़े आफद जीवं से फिाने के सरए प्रसत भॊगरवाय को शॊखनाद कयना राबप्रद भाना हं।  शॊखं का जर फनाने हेतु शॊख भं 12 से 24 घॊटे जर बयकय यखा जाता हं।  त्रवसबन्न ग्रॊथं एवॊ शास्त्रं भं उल्रेख सभरते हं की शॊख ध्वसन के प्रबाव से भनुष्म ही नहीॊ वयन ऩशु- ऩस्ऺमं को बी सम्भोफहत फकमा जा सकता हं।  तॊि शास्त्रं भं उल्रेख हं की दोष यफहत शॊखनाद की ध्वसन तयॊग भनुष्म की कुॊ डसरनी एवॊ रुििक्र ऩय प्रबाव डारती हं व शयीय की सुषुद्ऱ शत्रक्त जाग्रत होने रगती हं।  शास्त्रकायं ने शॊख ध्वसन के अद्भुत प्रबावं का वणा कयते हुवे फतामा हं की शॊखनाद के प्रबाव से फसधयता दूय होना सॊबव हं।  शॊखजर के सनमसभत सेवन से भूकता औय हकराऩन दूय हो सकता हं।  मफद गबावसत स्त्री शॊखजर का सनमसभत सेवन कयं तो होने वारी सॊतान स्वस्थ एवॊ सुॊदय होती हं।  सनमसभत शॊख ध्वसन का श्रवण कयने से रृदम अवयोध, रृदम धात (फदर का दौया) नहीॊ होता।  शॊख पूॉ कने से व्मत्रक्त के पे पड़े शत्रक्तशारी होते हं, क्मंफक शॊख पूॉ कने ऩय ऩहरे हवा पे पड़ं भं जभा होती हं, फपय उसे भुॉह बयकय शॊख भं पूॉ कते हं। इस फक्रमा से आॉत, श्वास नरी पे पड़े एक साथ काभ कयते हं।  शॊखनाद सनयॊतय कयने ऩय दभा, खाॉसी, मकृ त आफद योग जड़ से नष्ट हो जाते हं।  शॊखजर के सनमसभत सेवन से शीत त्रऩत्त, श्वेत प्रदय, यक्त की अल्ऩता आफद योग दूय हो जाते हं। ***
  • 16. 16 जून 2013 हभाये जीवन भं शॊख का भहत्व  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, श्रेमा.ऐस.जोशी शॊख की उत्ऩत्रत्त के त्रवषम भं शास्त्रं भं उल्रेख है फक सभुि भॊथन के सभम िौदह प्रकाय के यत्नं भं शॊख बी सनकरा। भुख्म रुऩ से शॊख की उत्ऩत्रत्त जर से ही होती है। जर ही जीवन का आधाय है मही कायण हं की सृत्रष्ट की उत्ऩत्रत्त बी जर से हुई है। अत: जर से उत्ऩत्रत्त के कायण शॊख की भहत्वता सवाासधक यही हं। अनेकं देवी- देवता के एक हाथ भं शॊख शोबामभान होता हं। मही कायण हं कई की सफदमं से शॊख का उऩमोग त्रवसबन्न धासभाक अनुष्ठानं भं त्रवशेष रूऩ से फकमा जाता है। शॊख के प्रभुख बेद शॊख के प्रकाय वैसे तो प्राकृ सतक शॊख त्रवसबन्न प्रकाय के ऩामे जाते हं। इस सरए शॊख की त्रवसबन्नता एवॊ त्रवशेषता के अनुशाय ही इनकी ऩूजन-ऩद्धसत भं बी सबन्नता ऩाई जाती है। शॊख के प्रकाय उसकी आकृ सत (अथाात उदय) के आधाय ऩय भाने जाते हं। त्रवद्रानं ने शॊख के प्रभुख तीन प्रकाय फतामे हं 1-दस्ऺणावृत्रत्त शॊख 2-भध्मावृत्रत्त शॊख तथा 3-वाभावृत्रत्त शॊख। दस्ऺणावृत्रत्त शॊख: स्जस शॊख का भुख दाफहने हाथ ऩय ऩड़ता हं उसे दस्ऺणावृत्रत्त शॊख कहा जाता है। भध्मावृत्रत्त शॊख: स्जस शॊख का भुॉह फीि भं खुरता है, उसे भध्मावृत्रत्त शॊख कहा जाता है। वाभावृत्रत्त शॊख: स्जस शॊख का भुख फाएॊ हाथ ऩय ऩड़ता हं उसे वाभावृत्रत्त शॊख कहा जाता है। दस्ऺणावृसत शॊख औय भध्मावृत्रत्त शॊख दुराब भाने गम हं क्मोकी मह आसानी से उऩरब्ध नहीॊ होते हं। मह दोनं शॊख अऩनी दुराबता एवॊ िभत्कारयक गुणं के कायण ही अन्म शॊख की अऩेऺा असधक भूल्मवान होते हं। तीन शॊखं के अरावा अन्म शॊखं प्रभुख शॊख रक्ष्भी शॊख, गोभुखी शॊख, काभधेनु शॊख, त्रवष्णु शॊख, देव शॊख, िक्र शॊख, ऩंर शॊख, सुघोष शॊख, गरुड़ शॊख, भस्णऩुष्ऩक शॊख, याऺस शॊख, शसन शॊख, याहु शॊख, के तु शॊख, शेषनाग शॊख, कच्छऩ शॊख आफद प्रकाय के होते हं। फहन्दु शास्त्रं भं 33 कयोड़ देवी-देवता का उल्रेख सभरता हं। इन सबी देवी-देवताओॊ के अऩने अरग शॊख भाने गमे हं, देव-असुय सॊग्राभ भं सभुि से स्जन 14 यत्नं की प्रासद्ऱ हुई थी उसभं त्रवसबन्न तयह के शॊख बी सनकरे, स्जसभं से कई शॊखं का उऩमोग के वर ऩूजन के सरए होते है। अबीतक प्राद्ऱ जानकायी के आधाय ऩय मह ऻात हुवा हं की त्रवश्व का सफसे फड़ा शॊख के यर याज्म भं गुरुवमूय के श्रीकृ ष्ण भॊफदय भं सुशोसबत है, इस शॊख की रॊफाई अॊदाज से आधा भीटय है तथा वजन दो फकरोग्राभ फतामा जाता है।
  • 17. 17 जून 2013 त्रवत्रवध आकाय प्रकाय वारे शॊख को शुब एवॊ भाॊगसरक भानकय रोग उसका ऩूजन कयते हं उसे अऩने ऩास यखते हं। जो त्रवशेष आकृ सत वारे शॊख होते हं, स्जसे सभृत्रद्ध औय सपरता का प्रतीक भान कय उसे त्रवशेष साधना भं प्रमोग फकमा जाता है। सॊस्कृ त भं शॊखके त्रवत्रवध नाभं का उल्रेख सभरता है। शॊख, सभुिज, कॊ फु, सुनाद, ऩावनध्वसन, कॊ फु, कॊ फोज, अब्ज, त्रियेख, जरज, अणोबव, भहानाद, भुखय, दीघानाद, फहुनाद, हरयत्रप्रम, सुयिय, जरोद्भव, त्रवष्णुत्रप्रम, धवर, स्त्रीत्रवबूषण, अणावबव आफद। शॊखं के प्रकाय के फाये भं शास्त्र भं उल्रेख फकमा गमा है फद्रधासदस्ऺणावसतावााभावत्रत्तस्तुाबेदत: दस्ऺणावताशॊकयवस्तु ऩुण्ममोगादवाप्मते मद्गृहे सतष्ठसत सोवै रक्ष्म्माबाजनॊ बवेत् अथाात ्: शॊख दो प्रकाय के होते हं दस्ऺणावतॉ एवॊ वाभावतॉ। दस्ऺणावतॉ शॊख ऩुण्म के ही मोग से प्राद्ऱ होता है। मह शॊख स्जस घय भं स्थात्रऩत होता है, वहाॊ रक्ष्भी की वृत्रद्ध होती है। इसका प्रमोग अघ्मा आफद देने के सरए त्रवशेषत: होता है। वाभवतॉ शॊख का ऩेट फाईं ओय खुरा होता है। इसके फजाने के सरए एक सछि होता है। इसकी ध्वसन से योगोत्ऩादक कीटाणु फरफहन ऩड़ जाते हं। श्रेष्ठ शॊख के रऺण के त्रवषम भं शास्त्रं भं उल्रेख फकमा गमा है शॊखस्तुत्रवभर: श्रेष्ठश्चन्िकाॊसतसभप्रब: अशुद्धोगुणदोषैवशुद्धस्तु सुगुणप्रद: अथाात ्: सनभार व िन्िभा की काॊसत के सभानवारा शॊख श्रेष्ठ होता है जफफक अशुद्ध अथाात ् भग्न शॊख गुणदामक नहीॊ होता। गुणंवारा शॊख ही प्रमोग भं राना िाफहए। प्राम् शॊख का प्रमोग ऩूजा-ऩाठ भं त्रवशेष रुऩ से फकमा जाता है। जानकाय त्रवद्रानं का कथन हं की ऩूजन को प्रायॊब भं शॊखभुिा से शॊख की प्राथाना कयनी िाफहए। त्वॊ ऩुया सागयोत्ऩन्नो त्रवष्णुना त्रवधृत: कये। नसभत: सवादेवैश्म ऩाञ्िजन्म नभो स्तुते।।  वैऻासन अनुशॊधान के अनुसाय शॊख ध्वसन से वातावयण से अशुत्रद्ध दूय होती हं औय वातावय शुद्ध होता हं।  शॊख ध्वसन के ध्वसन ऺेि तक त्रवसबन्न प्रकाय के हासनकायक कीटाणुओॊ का नाश हो जाता है।  आमुवेद के जानकायं के अनुसाय शॊखोदक व बस्भ से ऩेट की फीभारय, ऩीसरमा, मकृ त, ऩथयी आफद योग ठीक फकमा जा सकता हं।  ऩौयास्णक भान्मता है फक छोटे फच्िं छोटा शॊख फाॉधने से तथा शॊख भं जर बयकय उसे असबभॊत्रित कयके फच्िे को त्रऩराने से वाणी दोष नहीॊ होता, मफद है तो वह दूय होने रगता है।  ऩुयाणं भं उल्रेख सभरता है फक फसधय, भूक एवॊ श्वास योगी मफद शॊख फजामं तो सूनने व फोरने की शत्रक्त ऩा सकते हं।  आधुसनक अनुसॊधान के अनुसाय शॊख फजाने से हभाये पे पड़ं का व्मामाभ हो जाता है, श्वास सॊफॊधी योगं से रडऩे वारी शत्रक्त भजफूत हो जाती है। ऩूजन के सभम शॊख के जर को सबी ऩय सछड़कने से जर के प्रबाव से कीटाणुओॊ नाश होता है।  शॊख का जर स्वास््म औय हभायी हस्डडमं, दाॊतंके सरए फहुत राबदामक होता है।  अनुसॊधान से ऩता िरा हं की शॊख भं कै स्ल्शमभ, पास्पोयस औय गॊधक के गुण सभाफहत होते हं जो उसभं जर बयकय यखने ऩय जर भं आते हं।
  • 18. 18 जून 2013  जानकायं का भानना है फक शॊख के प्रबाव से सूमा की हासनकायक फकयणं का अवयोधक होता हं। इस सरए फहन्दू सॊस्कृ सत भं सुफह औय शाभ ऩूजा के सभम शॊख ध्वसन का त्रवधान फतामा गमा हं।  वैऻासनक अनुसॊधान से मह ऩरयणाभ साभने आमा हं की शॊख की ध्वसन जहाॊ तक जाती है, वहाॊ तक व्माद्ऱ फीभारय उत्ऩन्न कयने औय फढ़ाने वारे कीटाणु नष्ट हो जाते हं। इससे हभाये आसऩास का वातावयण शुद्ध हो जाता है।  शॊख भं जो राबदामक घटक कै स्ल्शमभ, पास्पोयस औय गॊधक भौजूद होते हं। उसके कायण जर सुवाससत औय कीटाणु यफहत हो जाता है। इसीसरए तो हभाये शास्त्रं भं शॊख जर को भहाऔषसध भाना जाता है।  शॊखनाद से आसऩास की नकायात्भक ऊजाा का नाश होकय सकायात्भक ऊजाा का सॊिाय होता है।  शॊख नाद से स्भयण शत्रक्त की वृत्रद्ध होती है। भॊि ससद्ध दुराब साभग्री भॊि ससद्ध भारा हत्था जोडी- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 स्पफटक भारा- Rs- 190, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ससमाय ससॊगी- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 सपे द िॊदन भारा - Rs- 280, 460, 640 त्रफल्री नार- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 यक्त (रार) िॊदन - Rs- 100, 190, 280 कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450, भोती भारा- Rs- 280, 460, 730, 1250, 1450 & Above दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900 त्रवधुत भारा - Rs- 100, 190 भोसत शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900 ऩुि जीवा भारा - Rs- 280, 460 भामा जार- Rs- 251, 551, 751 कभर गट्टे की भारा - Rs- 210, 280 इन्ि जार- Rs- 251, 551, 751 हल्दी भारा - Rs- 150, 280 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251(कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 100, 190, 280, 370 घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above ऩीरी कौफड़माॊ: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181 नवयॊगी हकीक भारा Rs- 190 280, 460, 730 हकीक: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181 हकीक भारा (सात यॊग) Rs- 190 280, 460, 730 रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-111, 11 नॊग-Rs-1111 भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above नाग के शय: 11 ग्राभ, Rs-111 ऩायद भारा Rs- 730, 1050, 1900, 2800 & Above कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450, वैजमॊती भारा Rs- 100,190 गोभती िक्र Small & Medium 11 नॊग-75, 101, 151, 201, रुिाऺ भारा: 100, 190, 280, 460, 730, 1050, 1450 गोभती िक्र Very Rare Big Size : 1 नॊग- 51 से 550 (असत दुराब फड़े आकाय भं 5 ग्राभ से 11 ग्राभ भं उऩरब्ध) भूल्म भं अॊतय छोटे से फड़े आकाय के कायण हं। >> Order Now GURUTVA KARYALAY BHUBNESWAR-751018, (ORISSA), Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785, Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com Visit Us: www.gurutvakaryalay.com www.gurutvajyotish.com and gurutvakaryalay.blogspot.com
  • 19. 19 जून 2013 बाग्म रक्ष्भी फदब्फी सुख-शास्न्त-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ के सरमे बाग्म रक्ष्भी फदब्फी :- स्जस्से धन प्रसद्ऱ, त्रववाह मोग, व्माऩाय वृत्रद्ध, वशीकयण, कोटा किेयी के कामा, बूतप्रेत फाधा, भायण, सम्भोहन, तास्न्िक फाधा, शिु बम, िोय बम जेसी अनेक ऩयेशासनमो से यऺा होसत है औय घय भे सुख सभृत्रद्ध फक प्रासद्ऱ होसत है, बाग्म रक्ष्भी फदब्फी भे रघु श्री फ़र, हस्तजोडी (हाथा जोडी), ससमाय ससन्गी, त्रफस्ल्र नार, शॊख, कारी-सफ़े द-रार गुॊजा, इन्ि जार, भाम जार, ऩातार तुभडी जेसी अनेक दुराब साभग्री होती है। भूल्म:- Rs. 1250, 1900, 2800, 5500, 7300, 10900 भं उप्रब्द्ध >> Order Now . गुरुत्व कामाारम सॊऩका : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785 c सशवसरॊग ऩूजन भं शॊख सनषेद्ध क्मो?  सॊदीऩ शभाा सशव ऩुयाण भं उल्रेख हं की एक शॊखिूड़ नाभ का भहाऩयाक्रभी दैत्म था। शॊखिूड जो दैत्मयाभ दॊब का ऩुि था। शादी के ऩश्चमात कई वषो तक दैत्मयाज दॊब को कोई सॊतान नहीॊ हुई तफ उसने बगवान श्रीत्रवष्णु को प्रशन्न कयने के सरए कठोय तऩ फकमा औय तऩ से प्रसन्न होकय बगवान श्रीत्रवष्णु प्रकट हुए। औय बगवान श्रीत्रवष्णु ने दैत्मयाज दॊब से वय भाॊगने के सरए कहा तफ दॊब ने भहाऩयाक्रभी तीनं रोको भं अजेम ऩुि का वय भाॊगा औय त्रवष्णुजी तथास्तु फोरकय अॊतय ध्मान हो गए। तफ दॊब के महाॊ शॊखिूड नाभक ऩुि का जन्भ हुआ औय शॊखिूड ने ऩुष्कय भं ब्रह्माजी की घोय तऩस्मा कय उन्हं प्रसन्न कय सरमा। ब्रह्माजी ने वय भाॊगने के सरए कहा, तो शॊखिूड ने वय भाॊग सरमा फक वो देवताओॊ भं अजेम हो जाए। ब्रह्मा ने तथास्तु कहाॉ औय शॊखिूड को श्रीकृ ष्णकवि फदमा फपय वे अॊतय ध्मान हो गए। जाते सभम ब्रह्माजी ने शॊखिूड को धभाध्वज की कन्मा तुरसी से त्रववाह कयने की आऻा दी। ब्रह्माजी की आऻा से शॊखिूड औय तुरसी का त्रववाह हो गमा। ब्रह्माजी औय त्रवष्णुजी के वयदान के भद भं िूय दैत्मयाज शॊखिूड ने धीये-धीये तीनं रोकं ऩय स्वासभत्व स्थात्रऩत कय सरमा। देवताओॊ ने िस्त होकय त्रवष्णु से सहामता भाॊगी रेफकन उन्हंने स्वमॊ दॊब को ऐसे ऩुि का वयदान फदमा था अत: उन्हंने सशवजी को साया वृताॊत सुनामा औय देवताओॊ को शॊखिूड के अत्मािायं से फिाने की प्राथाना की। सशव ने देवताओॊ का दु्ख दूय कयने का सनश्चम फकमा औय शॊखिूड का वध कयने के सनकर गमे। रेफकन बगवान श्रीकृ ष्ण के फदव्म कवि औय तुरसी के ऩासतव्रत धभा की वजह से सशवजी बी उसका वध कयने भं सपर नहीॊ हो ऩा यहे थे तफ त्रवष्णु से ब्राह्मण रूऩ धायण कय दैत्मयाज शॊखिूड से उसका श्रीकृ ष्ण कवि दान भं प्राद्ऱ कय सरमा औय शॊखिूड का रूऩ धायण कय तुरसी से ऩसत वेश भं भ्रसभत फकमा। तफ सशवजी ने शॊखिूड को अऩने त्रिशुर से बस्भ कय फदमा औय उसकी हस्डडमं से शॊख का उद्गभ हुआ। धासभाक भान्मता के अनुशाय शॊखिूड त्रवष्णु बक्त था इससरए भाॉ रक्ष्भी-श्रीत्रवष्णु को शॊख औय शॊख का जर असत त्रप्रम है। प्राम् सबी देवी-देवताओॊ को शॊख से जर िढ़ाने का त्रवधान है। रेफकन सशवजी ने शॊखिूड का वध फकमा था इससरए शास्त्रं भं शॊख का जर सशव को सनषेध फतामा गमा है। इसी वजह से सशवजी को शॊख से जर मा शॊख का जर नहीॊ िढ़ामा जाता है।