SlideShare a Scribd company logo
1 of 10
Download to read offline
1|P ag e

�मेटॉयड आथ्र ार्इ एक दीघर ्कािलक स्-प्रितरि (Autoimmune) रोग है जो शरीर के जोड़ों और अन्
ऊतकों में िवकृित पैदा  करता है। इस रोग में हाथ और पैरों के जोड़ प्रदा( Inflammed) हो जाते है, िजसके
फलस्व�प उनमेंसूजन और ददर् होता है और ध-धीरे जोड़ों में �ितग्रस्त होने लगते
• शरीर क� प्रितर�ा प्रणाली जोड़ोंऔर संयोजी(Connective Tissue) को न� करती है।
• सबह उठने पर या िवश्राम के बाद जोड़(सामान्यतः हाथ और पैरों के छोटे जो) में ददर् और जकड़
ु
होती है जो एक घंटे से अिधक समय तक रहती है।
• बखार, कमजोरी और अन्य अंगों में खराबी आ सकती ह
ु
• इस रोग का िनदान मख्यतः रोगी में ल�णों के आधार पर िकया जाता, लेिकन र� में �मेटॉयड
ु
फे क्टर क� जांच और एक-रे भी िनदान में सहायक होते हैं
• इस रोग के उपचार में कसर, िस्प्ल, दवाइयों(नॉन-स्टीरॉयडल एंट-इन्फ्लेमेट्री दवा, एंटी�मेिटक
दवाइयां और इम्युनोसप्रेिसव दवाइ) और शल्य िचिकत्सा क� मदद ली जाती है
िव� क� 1 % आबादी �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस का िशकार बनती है। ि�यों में इस रोग का आघटन पु�षों से
तीन गना अिधक होता है। वैसे तो यह रोग िकसी भी उम्र में हो सकता, लेिकन इसक� श�आत प्राय35 से 50
ु
ु
वषर ् के बीच होती है। इस रोग का एक प्रा�प छोटे बच्चों में भी ह, िजसे जिवनाइल इिडयोपेिथक आथ्र ार्इि
ु
(Juvenile Idiopathic Arthritis) कहते हैं।
इस रोग का कारण अभी तक अ�ात है, लेिकन इसे स्-प्रितरि रोग (Autoimmune Disease) माना जाता है।
प्रितर�ा प्रणाली जोड़ों के या खोल (Synovial Membrane) पर प्रहार करती , साथ में शरीर के अन्
अंगों के संयोजी ऊतक जैसे र�वािहकाएं और फेफड़े भी �ितग्रस्त होने लगते हैं। और इस तरह जोड़
कािटर ्ले, अिस्थयां और िलगामेन् ट्स  का �रण होने लगता , िजससे जोड़ िवकृत, अिस्थ, खराब और दागदार
हो जाते है। जोड़ों के �ितग्रस्त होने क� गित आनुवंिशक समेत कई पहलुओं पर िनभर्र करत

ल�ण
आमतौर पर �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस क� शु�आत धीरे धीरे होती है। -बीच में रोग के ल�ण भड़कते ह, िजसके
बाद लम्बे अंतराल तक रोगी ल�णहीन रहता है और रोग िनिष्क्रय अवस्था में  रहता है। या तो रोगी में ल�
से अथवा धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं। कभी �मेटॉयड आथ्र ार्इ अचानक कई जोड़ों पर एक साथ धावा बोलता है।
2|P ag e

कई बार यह बह�त धीरे से श� होता है, और मख्तिलफ जोड़ों पर असर करता चलता है। यह रोग प्रायः दोनों
ु
ु
के जोड़ों पर असर करता है और मुख्यतःअंगुिलय, हाथ, पैर, कलाई, कोहनी, टखना आिद छोटे जोड़ों पर पहले
प्रहार करता है। प्रदाह ग्रस्त जोड़ में सुबह उठने पर या आराम के बाद प्रायः ददर् और जकड़न होतीहै
से अिधक समय तक रहती है। यह �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस का िविश� ल�ण  कुछ रोगी दोपहर में थकावट और
कमजोरी महसूस करते हैं। रोगी को भूख न लगन, वजन कम होने और हल्का बुखार बने रहने क� तकलीफ भी हो
सकती है।
प्रभािवत जोड़ प्रदाह के क
नाजुक, गमर , लाल और सूजा
ह�आ महसूस होता है। कई बार
जोड़ में पानी भर जाता है। जल्द
ही जोड़ िवकृत और कु�प हो
जाता है। इसके बाद जोड़ में
जकड़न बढ़ने लगती है और उसे
धमाना या िहलाना डुलाना
ु
मिु श्कल हो जाता है। कई बार
अंगुिलयां उतर कर छोटी अंगुली
किन�ा क� तरफ झुक जाती हैं िजससे उनके टेन्डन भी उत(Dislocation) जाते हैं।
सूजे ह�ए जोड़ नाड़ी पर दबाव डालते है, िजससे संवेदनशून्यता और िसरहन होती है। कई बार घुटनें के पीछे पुिटक
(Cyst) बन जाती है, िजसके फूटने पर टांग में ददर् होता है औरसूजन आ जाती है �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस
30% रोिगयों में त्वचा के नी(जहाँ दबाव अिधक पड़ता है जैसे कोहनी) या अन्यत्र कठोरगांठें बन जात, िजन्हे
�मेटॉयड नोड् यूल्स कहते हैं। इनके अलावा त्वचा में पायो, स्वीट्स िसन्ड, ऐरीिदमा नोडोसम, लोब्युलर
पेिनकुलाइिटस, पामर ऐरीिदमा आिद िवकार हो सकते हैं।
कदािचत �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस र�वािहकाओं को प्रदाह ग्रस्त कर देता है। इसक� वजह से ऊतकों
आपूितर् कम होती जाती ह, और नाड़ी क� �ित या पैर में छाले हो सकते हैं। फेफड़े के बाहरी आवर( Plura) या
�दय के आवरण ( Pericardium) या फे फड़े अथवा �दय के प्रदाह और स्का�रंग के कारण छाती में ददर
�ासक� हो सकता है। �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस में ऐथेरोिस्क्, हाटर ् अटेक और स्ट्रोक का जोिखम अ
रहता है। कभी कभार पेरीकाडार ्इिट, एंडोक्रेडाइि, लेफ्ट वेन्ट्रीकल फ, वाल्वलाइिटस और फाइब्रोिस
आिद �दय िवकार हो सकते हैं।
दीघर ्कालीन प्रदाह के कारण फेफड़े में फाइब्रोिसस और वृक्क में एमाइलोडोिसस हो सकता है। कुछ रो
िलम्फनोड्स मेंसूजन आ सकती है। शोिग्रन्ज िसन्ड्रोम नामक रोग में जोड़ में प्रदा, योिन या मह में
ुँ
खुश्क� रहती है। साथ ही कुछ रोिगयों में इिपिस्क्लर, ऐनीिमया, न्यूट्रोपीि, थ्रोम्बोसाइटो, पेरीफ्र
न्युराइिट, िलम्फोमा आिद िवकार हो सकते हैं
3|P ag e

िनदान
�मेटॉयड आथ्र ार्इ के िनदान में
इसके िविश� स्व�प और ल�णों क
साथ प्रयोगशाला के परी, जोड़ के
द्रव  क�सू�मदश� जांच औ
बायोप्सी से बह�त मदद िमलती है।
रोग क� प्रारंिभक अवस्था में-रे
में कोई प�रवतर्न देखने को नह
िमलते हैं। लेिकन बाद में जोड़ क
आसपास अिस्थ ऊतक कम होना
(Juxta-articular Osteopenia),
सूजन और जोड़ में जगह कम होना
आिद प�रवतर ्न साफ िदखाई देते हैं
जैसे जैसे रोग बढ़ता है हड् िडयों का
�रण और जोड़ों का ढीला
(Subluxation) देखा जा सकता है।
एम.आर.आई. से जोड़ों क� बड़ी स्प
और साफ तस्वीरें प्रा� होत,
लेिकन िनदान हेतु प्राय
एम.आर.आई. करने क� ज�रत नहीं
पड़ती है।
10 में से9 रोिगयों का ई.एस.आर.
बढ़ा ह�आ िमलता है, जो प्रदाह क� उपिस्थित को इंिगत करता है। हालांिक कई अन्य रोगों मे.एस.आर. बढ़ा
रहता है, लेिकन िफर भी इसका बढ़ना रोग क� सिक्रयता को दशार्ता है। आमवात 70 % रोिगयों के र� में खा
तरह क� एंटीबॉडीज जैसे �मेटॉयड फे क्ट पाई जाती हैं। �मेटॉयड आथ्र ार्इ के रोिगयों में �मेटॉयड फेक्
के स्तर का रोग क� गंभीरता से सीधा गुणात्मक सम्बन्ध होता है। जब जोड़ों में प्रदाह कम, तो �मेटॉयड
फे क्टर का स्तर घटने लगता है। लेिकन �मेटॉयड फेक्टर कुछ अन्य रोगों जैसे िहपेटाइिटस के रोिगयों
िमलता है। कई बार स्वस्थ व्यि�यों में भी �मेटॉयड फेक्टर उपिस्थत हो सकता
�मेटॉयड आथ्र ार्इिटस 96% रोिगयों मेएंटी-िसट्र�िलनेटेडपेप्टा(anti-CCP) एंटीबॉडीज पाई जाती हैं और
िजन्हें यह रोग नहीं होता है उनमें ये एंटीबॉडीज कभी नहीं िमलती हैं। इसिलए आजकल िचिकत्सक इनक
करवाने लगे हैं।
अिधकांश रोिगयों में र� क� मामूली कम( ऐनीिमया - लाल र� कोिशकाओं क� कमी) होती है। कभी-कभार �ेत
र� कोिशकाओं क� गणना ( TLC) कम हो सकती हैं। यिद �मेटॉयड आथ्र ार्इ के रोगी में ट.एल.सी. कम हो,
4|P ag e

यकृत में नोड्यूलर हाइपरप्लेिजय(कुप्फर सेल्स क� सिक्रयता बढ़ने के ) और ितल्ली बढ़ी ह�ई हो तो इस
रोग समूह को फे ल्टीज़ िसन्ड्(Felty's syndrome) कहते हैं।

फलानमान
ु
�मेटॉयड आथ्र ार्इ क� प्रगित अिनयिमत और अप्रत्यािशत होती है। यह रोग शु� के छ सालों में और
पर पहले साल में तेजी से बढ़ता है।10 साल के भीतर 80% रोिगयों के जोड़ों में स्थाई अपंगता आ ही जाती
रोिगयों के औसत जीवन मे3-7 वषर ् क� कमी आती है। �दय रो, संक्र, आहार पथ में र�स्, औषिधयां और
कै ंसर िस्थित को और जिटल बना देते हैं। कभी कभार रोगी अकस्मात ठीक भी हो जाता
75% रोिगयों में उपचार से फायदा होता है। इन सारे तामझाम और इलाज के बावजू10 % रोगीयों में तोगंभी
अ�मता और अपंगता आ ही जाती है। िनम्न पहलू खराब फलानुमान को इंिगत करते हैं
• �ेत नस्ल के रोग, �ी या दोनों
• िजन रोिगयों मे�मेटॉयड नोड् यूल बने हो
• रोग क� श�आत अिधक उम्र में ह�ई
ु
• िजनके 20 या अिधक जोड़ों में तकलीफ 
• िजनका ई.एस.आर. ज्यादा ह
• िजनमें�मेटॉयड फे क्टर याAnti-CCP का स्तर अिधक ह

उपचार
�मेटॉयड आथ्र ार्इ के उपचार में औषिधयों और शल्य िचिकत्सा के साथ कुछ साधारण उपाय जैसे ,
स्वस्थ आहार आिद शािमल िकये गये हैं। िडजीज मोडीफाइंग एंटी�मेिटक  औषिधय (DMARDs) वास्तव में रो
के िवकास और िवस्तार को धीमा करते हैं और तकलीफ में आराम िदलाते हैं। इसिलए जैसे ही रोग का िनदा,
इन्हें शु� कर िदया जाता है
गंभीर �प से प्रद-ग्रस्त जोड़ को आराम देना ज�री, क्योंिक यिद प्-ग्रस्त जोड़ कायर् करता रहेगा तो प
और तकलीफ बढ़ती रहेगी। जोड़ को िनयिमत आराम िमलने से ददर ् में राहत िमलती है और रोग क� सिक्रय अव
जल्दी ठीक होती है। जोड़ों को िवश्राम देने और िस्थर करने के प्रयोजन से एक या कई जोड़ोंपर िस्प्
जाते हैं। लेिकन जोड़ों के थोड़ी हरकत ज�री होती है तािक मा-पेिशयां कमजोर न पड़ें और जोड़ में जकड़न नह
हो पायें।
औषिधयों में न-स्टीरॉयडल एंटीइन्फ्लेमेट्री दवा( NSAIDs), िडजीज मोडीफाइंग एंटी�मेिटक औषिधयां
(DMARDs), कोिटर ्कोिस्टरॉयड, इम्युनोसप्रेिसव दवाइयां आिद प्रमुख हैं। नई दवाओं में लेफ्,
एनािकनरा (an interleukin-1 receptor antagonist), ट् यूमर नेक्रोिसस फेक्टर इिन्हबीटसर् आिद प्रम
�मेटॉयड आथ्र ार्इ में कई दवाइयों कोसंयु� �प से देने का प्रचलन है
5|P ag e

नॉन-स्टीरॉयडल एंटीइन्फ्लेमेट्री दवा(NSAIDs)
�मेटॉयड आथ्र ार्इ में ये दवाइयां ददर् और प्रदाह में तो फायदा पह�ँचा, लेिकन रोग के िवकास, िवस्तार और
जोड़ के �यन को रोकने में प्रभावशून्य हैं। एिस्प�रन इस रोग में प्रयोग नहीं क� NSAIDs का पूरा असर
आने में2 हफ्ते लगते हैं। इसिलए इनक� मात्रा बढ़ाने में जल्दबाजी नहीं करनी च
NSAIDs
साइक्लोऑक्सीजने(COX) एंजाइम्स का बािधत करती हैं और इस तरह प्रोस्टाग्लेंिडन्स के िनमार
करती हैं। कुछ प्रोस्टाग्ले COX-1 से िनयंित्रत होते , जो शरीर में कई महत्वपूणर् का(जैसे आमाशय क�
�ेष्मा( Mucosa) को सुरि�त रखना और िबंबाणओं का िचपिचपापन कम करना) करते हैं। दूसरे प्रदाहका
ु
प्रोस्टाग्ले होते हैं जो COX-2 सी सहायता से िनिमर ्त होते हैं। खा COX-2 इिन्हबीटर श्रे(जैसे
सेलीकोिक्स) क� दवाइयों के आहा-पथ पर कुप्रभाव कम होते हैं। इसिलए दूस NSAIDs के पेिप्टक अल्स
और अपच के रोगी को नहीं देना चािहये।
NSAIDs के दूसरे कुप्रभाव िसरद, सूजन, भ्र( Confusion), केंद्रीय नाड़ी तंत्, र�चाप बढ़ना, िबंबाणु
(Platelets) क� गितिविध कम होना आिद हैं। इनके �दय पर कोई स्प� कुप्रभाव नहीं हैं। कभी कभार िक्र
बढ़ सकता है या इंटरिस्टिशयल नेफ्रोइिटस हो सकती ह
कोिटर ्कोिस्टरॉयड्– कोिटर ्कोिस्टरॉयड्स अन्य औषिधयों क� अपे�ा प्रदाह और दूसरी तकलीफों को शी
को शांत करते हैं। ये हड्िडयों के �रण को िशिथल करते हैं। परन्तु ये जोड़  को �ितग्रस्त होने से नहीं रोक
और इनका असर धीरे धीरे कम होता जाता है। दूसरा कई बार इनको बंद करने के बाद रोग बह�त भड़क सकता है।
इनके दीघर ्कालीन कुप्रभाव को देखते ह�ए कई िचिकत्सक इनके DMARDs का असर आने तक देते हैं।
कोिटर ्कोिस्टरॉयड्स का प्रयोग तभी िकया जाता है जब जोड़ बह�त �ितग्रस्त हो गये हो या रोग अन्य स्था
फै ल गया हो। पेिप्टक अल्, र�चाप, डायिबटीज, ग्लूकोमा और तीव्र संक्रमण में इनका प्रयोग न
इन्ट-आिटर्कुलर इंजेक्श– जोड़ में कोिटर्कोिस्टरॉयड्स के िडपो इंजेक्शन लगाने से ददर्और सूजन में
राहत िमलती है। ट्रायमिसनोलोन हेग्जासीटोनाइड लम्बे समय तक प्रदाह को िनयंत्रण में रखता है। ट्र
सीटोनाइड और िमथाइल प्रेडिनसोलोन एसीटेट भी प्रभावी हैं। िकसी भी जोड़ में िस्टरॉयड के इंजेक्शन34 बार से ज्यादा नहीं देने चािह, क्योंिक जोड़ के खराब होने का खतरा रहता है। हालांिक जोड़ में संक्रम
खतरा 2% से कम रहता है, लेिकन जोड़ में24 घंटे के बाद भी ददर ् का होना संक्रमण को इंिगत करता ह
हाइड्रोक्सीक्रोरो– इस रोग के तकलीफ में राहत देती है। इसे शु� करने से पहले और हर साल रोगी क�
आँख के फं डस और िवजुअल फ�ल्ड्स क� जांच होनी चािहये। यिद9 महीने में कोई फायदा नहीं िदखे तो इसेबं
कर देना चािहये।
सल्फासेलेजीन– यह इस रोग के ल�ण में फायदा करती है और रोग को बढ़ने से भी रोकती है। इसका असर आने
में3 महीने लगते हैं। इसक� एन्टे�रक कोटेड गोिलयां दी जाती हैं। इसे शु� करने 1-2 हफ्ते के बाद और हर12
6|P ag e

हफ्ते में .बी.सी. करवा लेना चािहये। हर 6 महीने में या जब भी मात्रा बढ़ानी हो तब.जी.पी.टी. और
एस.जी.ओ.टी. करवा लेना चािहये।
लेफ्युनोमाइड– यह नई दवा है और पाइरीिमिडन चयापचय के एक एंजाइम क� गितिविध में व्यवधान पैदा करत
है। यह मीथोट्रेक्सेट िजतनी ही असरदार है और न बेनमेरो का दमन करती, न यकृत को नुकसान ह�चाती है और
ँ
न ही फे फड़ों मेंसंक्रमण करती
मीथोट्रेक्स– यह फोलेट िवरोधी ( Folate Antagonist) है और अिधक मात्रा में देने पर र�ाप्रणाली का
(Immunosuppressive) करती है। कम मात्रा में यह एंटीइन्फ्लेमे ट्री के �प में कायर् करत
�मेटॉयड
आथ्र ार्इ में बह�त प्रभावी है और अपे�ाकृत जल( 3 से 4 हफ्ते म) असर करती है। यकृत और वृक्क रोग मे
इसका प्रयोग बह�त सावधानी से करना चािहये। इसके सेवन के दौरान मिदरा सेवन को टालना ही श्रेयस्कर
इसके साथ 1 िमिलग्राम फोलेट प्रित िदन का सेवन करने से मीथोट्रेक्सेट के कुप्रभाव कम होते हैं
मीथोट्रेक्सेट, फोलेट नहीं दें।  ह8 हफ्ते में .बी.सी., एस.जी.पी.टी., एस.जी.ओ.टी., एल्ब्युि, िक्रयेिटनी
क� जांच करनी चािहये। यिद यकृत के एंजाइम्स का स्तर िनरंतर दो गुना या अिधक बना रहे तो यकृत क� बायोप्
क� जानी चािहये और मीथोट्रेक्सेट बंद कर देनी चािहये। मीथोट्रेक्सेट बंद करने के बाद कई बार रोग बह�
सकता है। कई बार मीथोट्रेक्सेट के प्रयो�मेटॉयड नोड् यूल्स बड़े हो सकते हैं
इम्युनोमोड्यूलेट, साइटोटॉिक्सक और इम्युनोमोसप्रेिसव दवाइ
– ऐजाथायप्र, साइक्लोस्पोरी
(इम्युनोमोड्यूलेट) या साइक्लोफोस्फेमाइड का अस DMARDs के जैसा ही है। लेिकन ये दवाइयां िवशेष तौर
पर साइक्लोफोस्फेमाइड से अिधक टॉिक्सक है। इसि DMARDs असर नहीं करे या िस्टरॉयड्स के प्रयोग
बचना हो तभी इनका प्रयोग  िकया जाना  चािहये। इनका प्रयोग प्रायः तभी िकया जाता है जब रोग जो
अलावा अन्य स्थानों में भी फैल गया हो। मेन्टेने न्स के िलए ऐजाथायप्रीन क� न्यूनतम मात्रा प्रयोग
साइक्लोस्पोरीन कम मात्रा मे ं अकेले या मीथोट्रे क्सेट के साथ दी जाती है। यह ऐजाथा
साइक्लोफोस्फेमाइड से कम खतरनाक मानी गई है
बॉयोलोिजक एजेंट्स- TNF-α antagonists को छोड़ कर बी-कोिशका या टी-कोिशका को लि�त करने के
िलए ऐबाटासेप्, �रटुक्सीमे, ऐनािकनरा आिद बॉयोलोिजक रेस्पॉन्स मोडीफायसर् प्रयोग िकये जाते
टीएनएफ-अल्फा एंटागोिनस् – (जैसे ऐडािलममेब, इटानरसेप्ट और इिन्फक्सी) जोड़ों को �ितग्रस्त होने
ु
रोकते हैं। कुछ रोिगयों में इनका अच्छा असर होता है। इन्हें मीथोट्रेक्सेट के साथ प्रयोग िकय
7|P ag e

�मेटॉयड आ�ार्इ�टस– औषिधयां
दवा

मा�ा

कु �भाव

िडजीज मोडीफाइं ग एंटी�मे�टक औषिधयां (DMARDs)
हाइ�ोक्सीक्लोरो��

मामूली डम�टाइ�टस. मायोपेथी,
को�नया म� ओपेिसटी, कभी कभार
रे टीना म� स्थाई क्ष

शु� म� 400-600 िमिल�ाम �ित �दन भोजन

(Hydroxychloroquine)

या दूध के साथ दी जाती ह�। इसक� मा�ा धीरे धीरे बढ़ाई जाती है जब तक वांिछत लाभ नह�

HCQS

िमल जाता है। 4-12 हफ्ते बाद मा�ा घटा कर
200-400 �ाम �ित �दन कर देते ह�।

लेफ्यूनोमाइड(Leflunomide)

20 िमिल�ाम/�दन ले�कन य�द कोई कु �भाव हो त्वचा म� �रयेक्, यकृ त रोग

Tab Cleft 10, 20 mg

तो मा�ा घटा कर 10 िमिल�ाम/�दन कर द�

मीथो�ेक्सेट

7.5 िमिल�ाम हफ्ते म� एक बार द, धीरे -धीरे

(Methotrexate)

मा�ा 25 िमिल�ाम तक बढ़ाई जा सकती है।

Tab Folitrax 2.5, 5. 7.5,

20 िमिल�ाम /स�ाह से ज्यादा मा�ा त्वचा क

10, 15 mg

नीचे (SC) दी जा सकती है।

यकृ त म� फाइ�ोिसस, उबकाई,
बोनमेरो का दमन, मुँह म� छाले,
न्युमोनाइ�टस

Amp - 15 mg / ml
सल्फासेलेजीन
(Sulfasalazine)
Tab Saaz DS

शु� म� 0.5 से 1 �ाम �ित �दन दी जाती ह�,
िजसे हर हफ्ते बढ़ा कर2 �ाम �ित �दन तक ले
जाते ह�। इस मा�ा को दो खुराक म� िवभािजत
करके सुबह और शाम देना चािहये। आिधकतम
मा�ा 3 �ाम �ित �दन है।

बोनमेरो का दमन, पाचन िवकार,
न्यू�ोपीिनय, हीमोलाइिसस,
िहपेटाइ�टस

को�टकोस्टीरॉयड्(Corticosteroids)
�ेडिनसोलोन
(Prednisone)

5-60 िमिल�ाम �ित �दन

वजन बढ़ना, डायिबटीज, उ�
र�चाप, अिस्थक्ष
(Osteoporosis)

Tab Wysolone

इम्युनोमो�ूले�, साइटोटॉिक्सक और इम्युनोमोस�ेिसव दवाइय
Azathioprine

Cyclophosphamide

1 िमिल�ाम/�कलो (50–100 िमिल�ाम) �दन म� एक या दो बार , यकृ त म� खराबी,
बोनमेरो का दमन,
6-8 हफ्ते बाद0.5 िमिल�ाम /�कलो/�दन के िहसाब से मा�ा बढ़ाएं
साइक्लोस्पो�रन क
�फर हर 4 हफ्ते म� मा�ा बढ़ाए
। अिधकतम मा�ा
2.5 �योग से क� सर का
खतरा, गुद�
िमिल�ाम/�कलो/�दन है।
कमजोर होना
2–3 िमिल�ाम/�कलो रोजाना गोली के �प म� या आई.वी. पल्स
8|P ag e

थेरेपी: 0.75 �ाम/मीटर2 हर माह (मा�ा को 1 �ाम /मीटर2/माह के
िहसाब से बढ़ा कर 6 माह तक दी जाती है य�द टी.एल.सी.
3000/µL से अिधक बना रहे ), इसे 30-60 िमनट म� धीरे -धीरे �दया
जाता है। साथ म� मुँह या आई.वी. �ारा तरल �दये जाते ह�।
साइक्लोस्पोरी

50 िमिल�ाम �ित �दन , अिधकतम मा�ा 1.75 िमिल�ाम /�कलो

(Cyclosporine)

सुबह शाम

बायोलोिजक एजेन्
अबाटासेप्ट

शु� म� 750 िमिल�ाम इं जेक्शन आ.वी. �दया जाता फे फड़े म� खराबी सं�मण का
जोिखम, िसरददर, यू.आर.आई., गले
है, �फर 2 हफ्ते बा, 4 हफ्ते बाद और �फर हर4
म� खा�रश, उबकाई
हफ्ते बाद इंजेक्श�दया जाता है।

(Abatacept)
Inj Orencia 250 mg

�रटु क्सीमेब

1 �ाम इं जेक्शन आ.वी. �दया जाता है, �फर 2 हफ्ते इं जेक्शन देते समय – इं जेक्शन क�
बाद, 4 हफ्ते बाद और �फर हर4 हफ्ते बाद एक
जगह पर चक�े बन जाना, कमर
इं जेक्शन�दया जाता है।
ददर, बुखार, उ� र�चाप या
र�चाप कम हो जाना, सं�मण या
क� सर का खतरा, बोनमेरो का दमन

(Rituximab)

IL-1 �रसेप्टर िवरोधी
ऐना�कनरा
(Anakinra)

100 िमिल�ाम इं जेक्शन रोज त्वचा क इं जेक्शन क� जगह �रयेक्,
बोनमेरो का दमन
नीचे (SC) लगाय�

रक्षा�णाल और

टी एन एफ - α िवरोधी
एडािलमुमेब
(Adalimumab)
इटानरसेप्ट
(Etanercept)
इिन्फक्सीमे
(Infliximab)

40 िमिल�ाम का इं जेक्शन रोज त्वचा के नी (SC) हर 1 या 2 हफ्ते म� सं�मण (संभवतः
टी.बी.) या क� सर का
लगाव�
जोखम, िलम्फोम,
25 िमिल�ाम का इं जेक्शन रोज त्वचा के नीचे स�ाह म� दो बार य50
बोनमेरो दमन, यकृ त
म� खराबी, नाड़ी
िमिल�ाम का इं जेक्शन रोज त्वचा के नीचे �ित स�
िवकार
3 िमिल�ाम /�कलो सेलाइन म� िमला कर आइ.वी. दी जाती है। इसके 2
और 6 स�ाह बाद दूसरी और तीसरी ि�प दी जाती है। �फर हर 8 हफ्ते म�
एक ि�प दी जाती है। (मा�ा 10 िमिल�ाम �कलो के िहसाब बढ़ाई जा
सकती है)
9|P ag e

दवा

नॉन-स्टीरॉयडल ंटीइन्फ्लेमेट्री दवा(NSAIDs)
ए
मात्रामुख द्

डायक्लोफ ेनेक
ऐसीक्लोफ ेनेक(Aceclofenac)
Altraday, Cap Ace-proxyvon, Erinac-P,
फ्ुपरटीन(Flupirtine)
ल
Cap Snepdol 100
इटोडोलेक (Etodolac)
Tab Toldin ER 600
फेनोप्रोफेFenoprofen)
Tab Fenopron 300, 600 िमिलग्रा
फ्लरिबप्रोफे(Flurbiprofen)
Tab Proben 50, 100 िमिलग्रा
इडोमेथोिसन (Indomethacin)
ं
Indocap SR 75
क�टोप्रोफेन(Ketoprofen)
Ketofen 50 100 िमिलग्रा
नेब्ूमेटोन (Nabumetone)
य
Tab Nabuflam 500 िमिलग्रा
Tab Relifex 500 िमिलग्रा
नेप्रोक्से(Naproxen)
Tab Naxdom 250, 500 िमिलग्रा
ओक्साप्रोिज(Oxaprozin)
Caplet Daypro 600 िमिलग्रा
पाइरेिक्सकेम (Piroxicam)
Cap Dolonex 20 िमिलग्रा
सिु लनडेक (Sulindac)
Clindac 200 िमिलग्रा
टोलमेिटन (Tolmetin)
सेलीकोिक्सब (Celecoxib)
Orthocel 100, 200 िमिलग्रा
मेलोिक्सकेम (Meloxicam)
Mel-one 7.5, 15 िमिलग्रा

अिधकतम मात्

75 िम.ग्. िदन में दो बार या 50 िम.ग्. िदन में
150 िमिलग्रा
तीन बार , 100 िम.ग्. सस्टेन्ड �रलीज गोली िदन म
एक बार
100 िम.ग्. िदन मे दो या तीन बार
100 िम.ग्. िदन मे दो या तीन बार
300–500 िमिलग्रा िदन में दो बार

1200 िमिलग्रा

300–600 िमिलग्रा िदन में तीन बार

3200 िमिलग्रा

100 िमिलग्रा िदन में दो बार या िदन में तीन बा

300 िमिलग्रा

25 िमिलग्रा िदन में तीन बा, 75 िमिलग्रा
200 िमिलग्रा
सस्टेन्ड �रलीज िदन मएक या दो बार
50–75 िमिलग्रा िदन में तीन बार, 200 िमिलग्रा 300 िमिलग्रा
सस्टेन्ड �रलीज गोली िदन में एक बार
1000–2000 िमिलग्राम िदन में चार ब
2000 िमिलग्रा
250–500 िमिलग्रा िदन में दो बार

1500 िमिलग्रा

1200 िमिलग्रा िदन में एक बार

1800 िमिलग्रा

20 िमिलग्रा िदन में एक बार

20 िमिलग्रा

150–200 िमिलग्रा िदन में दो बार

400 िमिलग्रा

400 िमिलग्रा िदन में तीन बार
200 िमिलग्रा िदन में एक बारया िदन में दो बार

1800 िमिलग्रा
400 िमिलग्रा

7.5 िमिलग्रा िदन में एक बा

15 िमिलग्रा
10 | P a g e

More Related Content

Similar to Rheumatoid arthritis

Hodgkins Lymphoma
Hodgkins Lymphoma Hodgkins Lymphoma
Hodgkins Lymphoma Om Verma
 
Special techniques of disease control and preventions hindi
Special techniques of disease control and preventions   hindiSpecial techniques of disease control and preventions   hindi
Special techniques of disease control and preventions hindiMY STUDENT SUPPORT SYSTEM .
 
टीकाकरण तथ्य व भ्रांतियाँ.pptx
टीकाकरण तथ्य व भ्रांतियाँ.pptxटीकाकरण तथ्य व भ्रांतियाँ.pptx
टीकाकरण तथ्य व भ्रांतियाँ.pptxDR DHAN RAJ BAGRI
 
Diabetic Neuropathy
Diabetic NeuropathyDiabetic Neuropathy
Diabetic NeuropathyOm Verma
 
Reduce Your Risk Of Dementia: A presentation in Hindi
Reduce Your Risk Of Dementia: A presentation in Hindi Reduce Your Risk Of Dementia: A presentation in Hindi
Reduce Your Risk Of Dementia: A presentation in Hindi Swapna Kishore
 
मुर्गियों के रोग और उपचार की विस्तृत जानकारी
मुर्गियों के रोग और उपचार की विस्तृत जानकारीमुर्गियों के रोग और उपचार की विस्तृत जानकारी
मुर्गियों के रोग और उपचार की विस्तृत जानकारीGrowel Agrovet Private Limited
 
Benign Hyperplasia of Prostate
Benign Hyperplasia of ProstateBenign Hyperplasia of Prostate
Benign Hyperplasia of ProstateOm Verma
 
Stroke in Hindi
Stroke in Hindi Stroke in Hindi
Stroke in Hindi Om Verma
 
DOWN SYNDROME DAY.pptx
DOWN SYNDROME DAY.pptxDOWN SYNDROME DAY.pptx
DOWN SYNDROME DAY.pptxHEMANTBUNKER2
 
लागू पदार्थ दुर्व्यसन
लागू पदार्थ दुर्व्यसनलागू पदार्थ दुर्व्यसन
लागू पदार्थ दुर्व्यसनKrishti Yadav
 

Similar to Rheumatoid arthritis (17)

Hodgkins Lymphoma
Hodgkins Lymphoma Hodgkins Lymphoma
Hodgkins Lymphoma
 
Anemia hindi
Anemia hindiAnemia hindi
Anemia hindi
 
Birth defects
Birth defects Birth defects
Birth defects
 
Simran.pptx
Simran.pptxSimran.pptx
Simran.pptx
 
Gout
GoutGout
Gout
 
Special techniques of disease control and preventions hindi
Special techniques of disease control and preventions   hindiSpecial techniques of disease control and preventions   hindi
Special techniques of disease control and preventions hindi
 
टीकाकरण तथ्य व भ्रांतियाँ.pptx
टीकाकरण तथ्य व भ्रांतियाँ.pptxटीकाकरण तथ्य व भ्रांतियाँ.pptx
टीकाकरण तथ्य व भ्रांतियाँ.pptx
 
Gout
GoutGout
Gout
 
Diabetic Neuropathy
Diabetic NeuropathyDiabetic Neuropathy
Diabetic Neuropathy
 
Reduce Your Risk Of Dementia: A presentation in Hindi
Reduce Your Risk Of Dementia: A presentation in Hindi Reduce Your Risk Of Dementia: A presentation in Hindi
Reduce Your Risk Of Dementia: A presentation in Hindi
 
Japanese encephalitis in hindi
Japanese encephalitis in hindiJapanese encephalitis in hindi
Japanese encephalitis in hindi
 
मुर्गियों के रोग और उपचार की विस्तृत जानकारी
मुर्गियों के रोग और उपचार की विस्तृत जानकारीमुर्गियों के रोग और उपचार की विस्तृत जानकारी
मुर्गियों के रोग और उपचार की विस्तृत जानकारी
 
Dementia
DementiaDementia
Dementia
 
Benign Hyperplasia of Prostate
Benign Hyperplasia of ProstateBenign Hyperplasia of Prostate
Benign Hyperplasia of Prostate
 
Stroke in Hindi
Stroke in Hindi Stroke in Hindi
Stroke in Hindi
 
DOWN SYNDROME DAY.pptx
DOWN SYNDROME DAY.pptxDOWN SYNDROME DAY.pptx
DOWN SYNDROME DAY.pptx
 
लागू पदार्थ दुर्व्यसन
लागू पदार्थ दुर्व्यसनलागू पदार्थ दुर्व्यसन
लागू पदार्थ दुर्व्यसन
 

More from Om Verma

Linomel Muesli (FOCC)
Linomel Muesli (FOCC)Linomel Muesli (FOCC)
Linomel Muesli (FOCC)Om Verma
 
Coconut oil hindi
Coconut oil hindiCoconut oil hindi
Coconut oil hindiOm Verma
 
Cell phone - a friend or foe
Cell phone - a friend or foeCell phone - a friend or foe
Cell phone - a friend or foeOm Verma
 
Blackseed Miracles
Blackseed  MiraclesBlackseed  Miracles
Blackseed MiraclesOm Verma
 
Sauerkraut - Professor of Probiotics
Sauerkraut - Professor of Probiotics Sauerkraut - Professor of Probiotics
Sauerkraut - Professor of Probiotics Om Verma
 
Cottage cheese making
Cottage cheese making Cottage cheese making
Cottage cheese making Om Verma
 
FOCC or Omkhand
FOCC or OmkhandFOCC or Omkhand
FOCC or OmkhandOm Verma
 
Black Seed – Cures every disease except death
Black Seed – Cures every disease except death Black Seed – Cures every disease except death
Black Seed – Cures every disease except death Om Verma
 
Sour cabbage or Sauerkraut
Sour cabbage or SauerkrautSour cabbage or Sauerkraut
Sour cabbage or SauerkrautOm Verma
 
Oregano Oil
Oregano Oil Oregano Oil
Oregano Oil Om Verma
 
Mayo dressing
Mayo dressing  Mayo dressing
Mayo dressing Om Verma
 
Sauerkraut - Make your own
Sauerkraut - Make your own Sauerkraut - Make your own
Sauerkraut - Make your own Om Verma
 
Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)
Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)
Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)Om Verma
 
Mini's fracture
Mini's fractureMini's fracture
Mini's fractureOm Verma
 
Fat - friend or foe
Fat -  friend or foe Fat -  friend or foe
Fat - friend or foe Om Verma
 
Thakur Satyapal Singh
Thakur Satyapal SinghThakur Satyapal Singh
Thakur Satyapal SinghOm Verma
 
Gazal by Zeba
Gazal by ZebaGazal by Zeba
Gazal by ZebaOm Verma
 
Flax hull lignans
Flax hull lignansFlax hull lignans
Flax hull lignansOm Verma
 
Wheat grass
Wheat grassWheat grass
Wheat grassOm Verma
 

More from Om Verma (20)

Linomel Muesli (FOCC)
Linomel Muesli (FOCC)Linomel Muesli (FOCC)
Linomel Muesli (FOCC)
 
Coconut oil hindi
Coconut oil hindiCoconut oil hindi
Coconut oil hindi
 
Cell phone - a friend or foe
Cell phone - a friend or foeCell phone - a friend or foe
Cell phone - a friend or foe
 
Blackseed Miracles
Blackseed  MiraclesBlackseed  Miracles
Blackseed Miracles
 
Sauerkraut - Professor of Probiotics
Sauerkraut - Professor of Probiotics Sauerkraut - Professor of Probiotics
Sauerkraut - Professor of Probiotics
 
Cottage cheese making
Cottage cheese making Cottage cheese making
Cottage cheese making
 
FOCC or Omkhand
FOCC or OmkhandFOCC or Omkhand
FOCC or Omkhand
 
Black Seed – Cures every disease except death
Black Seed – Cures every disease except death Black Seed – Cures every disease except death
Black Seed – Cures every disease except death
 
Sour cabbage or Sauerkraut
Sour cabbage or SauerkrautSour cabbage or Sauerkraut
Sour cabbage or Sauerkraut
 
Oregano Oil
Oregano Oil Oregano Oil
Oregano Oil
 
Mayo dressing
Mayo dressing  Mayo dressing
Mayo dressing
 
Sauerkraut - Make your own
Sauerkraut - Make your own Sauerkraut - Make your own
Sauerkraut - Make your own
 
Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)
Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)
Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)
 
Mini's fracture
Mini's fractureMini's fracture
Mini's fracture
 
Fat - friend or foe
Fat -  friend or foe Fat -  friend or foe
Fat - friend or foe
 
G spot
G spot G spot
G spot
 
Thakur Satyapal Singh
Thakur Satyapal SinghThakur Satyapal Singh
Thakur Satyapal Singh
 
Gazal by Zeba
Gazal by ZebaGazal by Zeba
Gazal by Zeba
 
Flax hull lignans
Flax hull lignansFlax hull lignans
Flax hull lignans
 
Wheat grass
Wheat grassWheat grass
Wheat grass
 

Rheumatoid arthritis

  • 1. 1|P ag e �मेटॉयड आथ्र ार्इ एक दीघर ्कािलक स्-प्रितरि (Autoimmune) रोग है जो शरीर के जोड़ों और अन् ऊतकों में िवकृित पैदा करता है। इस रोग में हाथ और पैरों के जोड़ प्रदा( Inflammed) हो जाते है, िजसके फलस्व�प उनमेंसूजन और ददर् होता है और ध-धीरे जोड़ों में �ितग्रस्त होने लगते • शरीर क� प्रितर�ा प्रणाली जोड़ोंऔर संयोजी(Connective Tissue) को न� करती है। • सबह उठने पर या िवश्राम के बाद जोड़(सामान्यतः हाथ और पैरों के छोटे जो) में ददर् और जकड़ ु होती है जो एक घंटे से अिधक समय तक रहती है। • बखार, कमजोरी और अन्य अंगों में खराबी आ सकती ह ु • इस रोग का िनदान मख्यतः रोगी में ल�णों के आधार पर िकया जाता, लेिकन र� में �मेटॉयड ु फे क्टर क� जांच और एक-रे भी िनदान में सहायक होते हैं • इस रोग के उपचार में कसर, िस्प्ल, दवाइयों(नॉन-स्टीरॉयडल एंट-इन्फ्लेमेट्री दवा, एंटी�मेिटक दवाइयां और इम्युनोसप्रेिसव दवाइ) और शल्य िचिकत्सा क� मदद ली जाती है िव� क� 1 % आबादी �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस का िशकार बनती है। ि�यों में इस रोग का आघटन पु�षों से तीन गना अिधक होता है। वैसे तो यह रोग िकसी भी उम्र में हो सकता, लेिकन इसक� श�आत प्राय35 से 50 ु ु वषर ् के बीच होती है। इस रोग का एक प्रा�प छोटे बच्चों में भी ह, िजसे जिवनाइल इिडयोपेिथक आथ्र ार्इि ु (Juvenile Idiopathic Arthritis) कहते हैं। इस रोग का कारण अभी तक अ�ात है, लेिकन इसे स्-प्रितरि रोग (Autoimmune Disease) माना जाता है। प्रितर�ा प्रणाली जोड़ों के या खोल (Synovial Membrane) पर प्रहार करती , साथ में शरीर के अन् अंगों के संयोजी ऊतक जैसे र�वािहकाएं और फेफड़े भी �ितग्रस्त होने लगते हैं। और इस तरह जोड़ कािटर ्ले, अिस्थयां और िलगामेन् ट्स का �रण होने लगता , िजससे जोड़ िवकृत, अिस्थ, खराब और दागदार हो जाते है। जोड़ों के �ितग्रस्त होने क� गित आनुवंिशक समेत कई पहलुओं पर िनभर्र करत ल�ण आमतौर पर �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस क� शु�आत धीरे धीरे होती है। -बीच में रोग के ल�ण भड़कते ह, िजसके बाद लम्बे अंतराल तक रोगी ल�णहीन रहता है और रोग िनिष्क्रय अवस्था में रहता है। या तो रोगी में ल� से अथवा धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं। कभी �मेटॉयड आथ्र ार्इ अचानक कई जोड़ों पर एक साथ धावा बोलता है।
  • 2. 2|P ag e कई बार यह बह�त धीरे से श� होता है, और मख्तिलफ जोड़ों पर असर करता चलता है। यह रोग प्रायः दोनों ु ु के जोड़ों पर असर करता है और मुख्यतःअंगुिलय, हाथ, पैर, कलाई, कोहनी, टखना आिद छोटे जोड़ों पर पहले प्रहार करता है। प्रदाह ग्रस्त जोड़ में सुबह उठने पर या आराम के बाद प्रायः ददर् और जकड़न होतीहै से अिधक समय तक रहती है। यह �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस का िविश� ल�ण कुछ रोगी दोपहर में थकावट और कमजोरी महसूस करते हैं। रोगी को भूख न लगन, वजन कम होने और हल्का बुखार बने रहने क� तकलीफ भी हो सकती है। प्रभािवत जोड़ प्रदाह के क नाजुक, गमर , लाल और सूजा ह�आ महसूस होता है। कई बार जोड़ में पानी भर जाता है। जल्द ही जोड़ िवकृत और कु�प हो जाता है। इसके बाद जोड़ में जकड़न बढ़ने लगती है और उसे धमाना या िहलाना डुलाना ु मिु श्कल हो जाता है। कई बार अंगुिलयां उतर कर छोटी अंगुली किन�ा क� तरफ झुक जाती हैं िजससे उनके टेन्डन भी उत(Dislocation) जाते हैं। सूजे ह�ए जोड़ नाड़ी पर दबाव डालते है, िजससे संवेदनशून्यता और िसरहन होती है। कई बार घुटनें के पीछे पुिटक (Cyst) बन जाती है, िजसके फूटने पर टांग में ददर् होता है औरसूजन आ जाती है �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस 30% रोिगयों में त्वचा के नी(जहाँ दबाव अिधक पड़ता है जैसे कोहनी) या अन्यत्र कठोरगांठें बन जात, िजन्हे �मेटॉयड नोड् यूल्स कहते हैं। इनके अलावा त्वचा में पायो, स्वीट्स िसन्ड, ऐरीिदमा नोडोसम, लोब्युलर पेिनकुलाइिटस, पामर ऐरीिदमा आिद िवकार हो सकते हैं। कदािचत �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस र�वािहकाओं को प्रदाह ग्रस्त कर देता है। इसक� वजह से ऊतकों आपूितर् कम होती जाती ह, और नाड़ी क� �ित या पैर में छाले हो सकते हैं। फेफड़े के बाहरी आवर( Plura) या �दय के आवरण ( Pericardium) या फे फड़े अथवा �दय के प्रदाह और स्का�रंग के कारण छाती में ददर �ासक� हो सकता है। �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस में ऐथेरोिस्क्, हाटर ् अटेक और स्ट्रोक का जोिखम अ रहता है। कभी कभार पेरीकाडार ्इिट, एंडोक्रेडाइि, लेफ्ट वेन्ट्रीकल फ, वाल्वलाइिटस और फाइब्रोिस आिद �दय िवकार हो सकते हैं। दीघर ्कालीन प्रदाह के कारण फेफड़े में फाइब्रोिसस और वृक्क में एमाइलोडोिसस हो सकता है। कुछ रो िलम्फनोड्स मेंसूजन आ सकती है। शोिग्रन्ज िसन्ड्रोम नामक रोग में जोड़ में प्रदा, योिन या मह में ुँ खुश्क� रहती है। साथ ही कुछ रोिगयों में इिपिस्क्लर, ऐनीिमया, न्यूट्रोपीि, थ्रोम्बोसाइटो, पेरीफ्र न्युराइिट, िलम्फोमा आिद िवकार हो सकते हैं
  • 3. 3|P ag e िनदान �मेटॉयड आथ्र ार्इ के िनदान में इसके िविश� स्व�प और ल�णों क साथ प्रयोगशाला के परी, जोड़ के द्रव क�सू�मदश� जांच औ बायोप्सी से बह�त मदद िमलती है। रोग क� प्रारंिभक अवस्था में-रे में कोई प�रवतर्न देखने को नह िमलते हैं। लेिकन बाद में जोड़ क आसपास अिस्थ ऊतक कम होना (Juxta-articular Osteopenia), सूजन और जोड़ में जगह कम होना आिद प�रवतर ्न साफ िदखाई देते हैं जैसे जैसे रोग बढ़ता है हड् िडयों का �रण और जोड़ों का ढीला (Subluxation) देखा जा सकता है। एम.आर.आई. से जोड़ों क� बड़ी स्प और साफ तस्वीरें प्रा� होत, लेिकन िनदान हेतु प्राय एम.आर.आई. करने क� ज�रत नहीं पड़ती है। 10 में से9 रोिगयों का ई.एस.आर. बढ़ा ह�आ िमलता है, जो प्रदाह क� उपिस्थित को इंिगत करता है। हालांिक कई अन्य रोगों मे.एस.आर. बढ़ा रहता है, लेिकन िफर भी इसका बढ़ना रोग क� सिक्रयता को दशार्ता है। आमवात 70 % रोिगयों के र� में खा तरह क� एंटीबॉडीज जैसे �मेटॉयड फे क्ट पाई जाती हैं। �मेटॉयड आथ्र ार्इ के रोिगयों में �मेटॉयड फेक् के स्तर का रोग क� गंभीरता से सीधा गुणात्मक सम्बन्ध होता है। जब जोड़ों में प्रदाह कम, तो �मेटॉयड फे क्टर का स्तर घटने लगता है। लेिकन �मेटॉयड फेक्टर कुछ अन्य रोगों जैसे िहपेटाइिटस के रोिगयों िमलता है। कई बार स्वस्थ व्यि�यों में भी �मेटॉयड फेक्टर उपिस्थत हो सकता �मेटॉयड आथ्र ार्इिटस 96% रोिगयों मेएंटी-िसट्र�िलनेटेडपेप्टा(anti-CCP) एंटीबॉडीज पाई जाती हैं और िजन्हें यह रोग नहीं होता है उनमें ये एंटीबॉडीज कभी नहीं िमलती हैं। इसिलए आजकल िचिकत्सक इनक करवाने लगे हैं। अिधकांश रोिगयों में र� क� मामूली कम( ऐनीिमया - लाल र� कोिशकाओं क� कमी) होती है। कभी-कभार �ेत र� कोिशकाओं क� गणना ( TLC) कम हो सकती हैं। यिद �मेटॉयड आथ्र ार्इ के रोगी में ट.एल.सी. कम हो,
  • 4. 4|P ag e यकृत में नोड्यूलर हाइपरप्लेिजय(कुप्फर सेल्स क� सिक्रयता बढ़ने के ) और ितल्ली बढ़ी ह�ई हो तो इस रोग समूह को फे ल्टीज़ िसन्ड्(Felty's syndrome) कहते हैं। फलानमान ु �मेटॉयड आथ्र ार्इ क� प्रगित अिनयिमत और अप्रत्यािशत होती है। यह रोग शु� के छ सालों में और पर पहले साल में तेजी से बढ़ता है।10 साल के भीतर 80% रोिगयों के जोड़ों में स्थाई अपंगता आ ही जाती रोिगयों के औसत जीवन मे3-7 वषर ् क� कमी आती है। �दय रो, संक्र, आहार पथ में र�स्, औषिधयां और कै ंसर िस्थित को और जिटल बना देते हैं। कभी कभार रोगी अकस्मात ठीक भी हो जाता 75% रोिगयों में उपचार से फायदा होता है। इन सारे तामझाम और इलाज के बावजू10 % रोगीयों में तोगंभी अ�मता और अपंगता आ ही जाती है। िनम्न पहलू खराब फलानुमान को इंिगत करते हैं • �ेत नस्ल के रोग, �ी या दोनों • िजन रोिगयों मे�मेटॉयड नोड् यूल बने हो • रोग क� श�आत अिधक उम्र में ह�ई ु • िजनके 20 या अिधक जोड़ों में तकलीफ • िजनका ई.एस.आर. ज्यादा ह • िजनमें�मेटॉयड फे क्टर याAnti-CCP का स्तर अिधक ह उपचार �मेटॉयड आथ्र ार्इ के उपचार में औषिधयों और शल्य िचिकत्सा के साथ कुछ साधारण उपाय जैसे , स्वस्थ आहार आिद शािमल िकये गये हैं। िडजीज मोडीफाइंग एंटी�मेिटक औषिधय (DMARDs) वास्तव में रो के िवकास और िवस्तार को धीमा करते हैं और तकलीफ में आराम िदलाते हैं। इसिलए जैसे ही रोग का िनदा, इन्हें शु� कर िदया जाता है गंभीर �प से प्रद-ग्रस्त जोड़ को आराम देना ज�री, क्योंिक यिद प्-ग्रस्त जोड़ कायर् करता रहेगा तो प और तकलीफ बढ़ती रहेगी। जोड़ को िनयिमत आराम िमलने से ददर ् में राहत िमलती है और रोग क� सिक्रय अव जल्दी ठीक होती है। जोड़ों को िवश्राम देने और िस्थर करने के प्रयोजन से एक या कई जोड़ोंपर िस्प् जाते हैं। लेिकन जोड़ों के थोड़ी हरकत ज�री होती है तािक मा-पेिशयां कमजोर न पड़ें और जोड़ में जकड़न नह हो पायें। औषिधयों में न-स्टीरॉयडल एंटीइन्फ्लेमेट्री दवा( NSAIDs), िडजीज मोडीफाइंग एंटी�मेिटक औषिधयां (DMARDs), कोिटर ्कोिस्टरॉयड, इम्युनोसप्रेिसव दवाइयां आिद प्रमुख हैं। नई दवाओं में लेफ्, एनािकनरा (an interleukin-1 receptor antagonist), ट् यूमर नेक्रोिसस फेक्टर इिन्हबीटसर् आिद प्रम �मेटॉयड आथ्र ार्इ में कई दवाइयों कोसंयु� �प से देने का प्रचलन है
  • 5. 5|P ag e नॉन-स्टीरॉयडल एंटीइन्फ्लेमेट्री दवा(NSAIDs) �मेटॉयड आथ्र ार्इ में ये दवाइयां ददर् और प्रदाह में तो फायदा पह�ँचा, लेिकन रोग के िवकास, िवस्तार और जोड़ के �यन को रोकने में प्रभावशून्य हैं। एिस्प�रन इस रोग में प्रयोग नहीं क� NSAIDs का पूरा असर आने में2 हफ्ते लगते हैं। इसिलए इनक� मात्रा बढ़ाने में जल्दबाजी नहीं करनी च NSAIDs साइक्लोऑक्सीजने(COX) एंजाइम्स का बािधत करती हैं और इस तरह प्रोस्टाग्लेंिडन्स के िनमार करती हैं। कुछ प्रोस्टाग्ले COX-1 से िनयंित्रत होते , जो शरीर में कई महत्वपूणर् का(जैसे आमाशय क� �ेष्मा( Mucosa) को सुरि�त रखना और िबंबाणओं का िचपिचपापन कम करना) करते हैं। दूसरे प्रदाहका ु प्रोस्टाग्ले होते हैं जो COX-2 सी सहायता से िनिमर ्त होते हैं। खा COX-2 इिन्हबीटर श्रे(जैसे सेलीकोिक्स) क� दवाइयों के आहा-पथ पर कुप्रभाव कम होते हैं। इसिलए दूस NSAIDs के पेिप्टक अल्स और अपच के रोगी को नहीं देना चािहये। NSAIDs के दूसरे कुप्रभाव िसरद, सूजन, भ्र( Confusion), केंद्रीय नाड़ी तंत्, र�चाप बढ़ना, िबंबाणु (Platelets) क� गितिविध कम होना आिद हैं। इनके �दय पर कोई स्प� कुप्रभाव नहीं हैं। कभी कभार िक्र बढ़ सकता है या इंटरिस्टिशयल नेफ्रोइिटस हो सकती ह कोिटर ्कोिस्टरॉयड्– कोिटर ्कोिस्टरॉयड्स अन्य औषिधयों क� अपे�ा प्रदाह और दूसरी तकलीफों को शी को शांत करते हैं। ये हड्िडयों के �रण को िशिथल करते हैं। परन्तु ये जोड़ को �ितग्रस्त होने से नहीं रोक और इनका असर धीरे धीरे कम होता जाता है। दूसरा कई बार इनको बंद करने के बाद रोग बह�त भड़क सकता है। इनके दीघर ्कालीन कुप्रभाव को देखते ह�ए कई िचिकत्सक इनके DMARDs का असर आने तक देते हैं। कोिटर ्कोिस्टरॉयड्स का प्रयोग तभी िकया जाता है जब जोड़ बह�त �ितग्रस्त हो गये हो या रोग अन्य स्था फै ल गया हो। पेिप्टक अल्, र�चाप, डायिबटीज, ग्लूकोमा और तीव्र संक्रमण में इनका प्रयोग न इन्ट-आिटर्कुलर इंजेक्श– जोड़ में कोिटर्कोिस्टरॉयड्स के िडपो इंजेक्शन लगाने से ददर्और सूजन में राहत िमलती है। ट्रायमिसनोलोन हेग्जासीटोनाइड लम्बे समय तक प्रदाह को िनयंत्रण में रखता है। ट्र सीटोनाइड और िमथाइल प्रेडिनसोलोन एसीटेट भी प्रभावी हैं। िकसी भी जोड़ में िस्टरॉयड के इंजेक्शन34 बार से ज्यादा नहीं देने चािह, क्योंिक जोड़ के खराब होने का खतरा रहता है। हालांिक जोड़ में संक्रम खतरा 2% से कम रहता है, लेिकन जोड़ में24 घंटे के बाद भी ददर ् का होना संक्रमण को इंिगत करता ह हाइड्रोक्सीक्रोरो– इस रोग के तकलीफ में राहत देती है। इसे शु� करने से पहले और हर साल रोगी क� आँख के फं डस और िवजुअल फ�ल्ड्स क� जांच होनी चािहये। यिद9 महीने में कोई फायदा नहीं िदखे तो इसेबं कर देना चािहये। सल्फासेलेजीन– यह इस रोग के ल�ण में फायदा करती है और रोग को बढ़ने से भी रोकती है। इसका असर आने में3 महीने लगते हैं। इसक� एन्टे�रक कोटेड गोिलयां दी जाती हैं। इसे शु� करने 1-2 हफ्ते के बाद और हर12
  • 6. 6|P ag e हफ्ते में .बी.सी. करवा लेना चािहये। हर 6 महीने में या जब भी मात्रा बढ़ानी हो तब.जी.पी.टी. और एस.जी.ओ.टी. करवा लेना चािहये। लेफ्युनोमाइड– यह नई दवा है और पाइरीिमिडन चयापचय के एक एंजाइम क� गितिविध में व्यवधान पैदा करत है। यह मीथोट्रेक्सेट िजतनी ही असरदार है और न बेनमेरो का दमन करती, न यकृत को नुकसान ह�चाती है और ँ न ही फे फड़ों मेंसंक्रमण करती मीथोट्रेक्स– यह फोलेट िवरोधी ( Folate Antagonist) है और अिधक मात्रा में देने पर र�ाप्रणाली का (Immunosuppressive) करती है। कम मात्रा में यह एंटीइन्फ्लेमे ट्री के �प में कायर् करत �मेटॉयड आथ्र ार्इ में बह�त प्रभावी है और अपे�ाकृत जल( 3 से 4 हफ्ते म) असर करती है। यकृत और वृक्क रोग मे इसका प्रयोग बह�त सावधानी से करना चािहये। इसके सेवन के दौरान मिदरा सेवन को टालना ही श्रेयस्कर इसके साथ 1 िमिलग्राम फोलेट प्रित िदन का सेवन करने से मीथोट्रेक्सेट के कुप्रभाव कम होते हैं मीथोट्रेक्सेट, फोलेट नहीं दें। ह8 हफ्ते में .बी.सी., एस.जी.पी.टी., एस.जी.ओ.टी., एल्ब्युि, िक्रयेिटनी क� जांच करनी चािहये। यिद यकृत के एंजाइम्स का स्तर िनरंतर दो गुना या अिधक बना रहे तो यकृत क� बायोप् क� जानी चािहये और मीथोट्रेक्सेट बंद कर देनी चािहये। मीथोट्रेक्सेट बंद करने के बाद कई बार रोग बह� सकता है। कई बार मीथोट्रेक्सेट के प्रयो�मेटॉयड नोड् यूल्स बड़े हो सकते हैं इम्युनोमोड्यूलेट, साइटोटॉिक्सक और इम्युनोमोसप्रेिसव दवाइ – ऐजाथायप्र, साइक्लोस्पोरी (इम्युनोमोड्यूलेट) या साइक्लोफोस्फेमाइड का अस DMARDs के जैसा ही है। लेिकन ये दवाइयां िवशेष तौर पर साइक्लोफोस्फेमाइड से अिधक टॉिक्सक है। इसि DMARDs असर नहीं करे या िस्टरॉयड्स के प्रयोग बचना हो तभी इनका प्रयोग िकया जाना चािहये। इनका प्रयोग प्रायः तभी िकया जाता है जब रोग जो अलावा अन्य स्थानों में भी फैल गया हो। मेन्टेने न्स के िलए ऐजाथायप्रीन क� न्यूनतम मात्रा प्रयोग साइक्लोस्पोरीन कम मात्रा मे ं अकेले या मीथोट्रे क्सेट के साथ दी जाती है। यह ऐजाथा साइक्लोफोस्फेमाइड से कम खतरनाक मानी गई है बॉयोलोिजक एजेंट्स- TNF-α antagonists को छोड़ कर बी-कोिशका या टी-कोिशका को लि�त करने के िलए ऐबाटासेप्, �रटुक्सीमे, ऐनािकनरा आिद बॉयोलोिजक रेस्पॉन्स मोडीफायसर् प्रयोग िकये जाते टीएनएफ-अल्फा एंटागोिनस् – (जैसे ऐडािलममेब, इटानरसेप्ट और इिन्फक्सी) जोड़ों को �ितग्रस्त होने ु रोकते हैं। कुछ रोिगयों में इनका अच्छा असर होता है। इन्हें मीथोट्रेक्सेट के साथ प्रयोग िकय
  • 7. 7|P ag e �मेटॉयड आ�ार्इ�टस– औषिधयां दवा मा�ा कु �भाव िडजीज मोडीफाइं ग एंटी�मे�टक औषिधयां (DMARDs) हाइ�ोक्सीक्लोरो�� मामूली डम�टाइ�टस. मायोपेथी, को�नया म� ओपेिसटी, कभी कभार रे टीना म� स्थाई क्ष शु� म� 400-600 िमिल�ाम �ित �दन भोजन (Hydroxychloroquine) या दूध के साथ दी जाती ह�। इसक� मा�ा धीरे धीरे बढ़ाई जाती है जब तक वांिछत लाभ नह� HCQS िमल जाता है। 4-12 हफ्ते बाद मा�ा घटा कर 200-400 �ाम �ित �दन कर देते ह�। लेफ्यूनोमाइड(Leflunomide) 20 िमिल�ाम/�दन ले�कन य�द कोई कु �भाव हो त्वचा म� �रयेक्, यकृ त रोग Tab Cleft 10, 20 mg तो मा�ा घटा कर 10 िमिल�ाम/�दन कर द� मीथो�ेक्सेट 7.5 िमिल�ाम हफ्ते म� एक बार द, धीरे -धीरे (Methotrexate) मा�ा 25 िमिल�ाम तक बढ़ाई जा सकती है। Tab Folitrax 2.5, 5. 7.5, 20 िमिल�ाम /स�ाह से ज्यादा मा�ा त्वचा क 10, 15 mg नीचे (SC) दी जा सकती है। यकृ त म� फाइ�ोिसस, उबकाई, बोनमेरो का दमन, मुँह म� छाले, न्युमोनाइ�टस Amp - 15 mg / ml सल्फासेलेजीन (Sulfasalazine) Tab Saaz DS शु� म� 0.5 से 1 �ाम �ित �दन दी जाती ह�, िजसे हर हफ्ते बढ़ा कर2 �ाम �ित �दन तक ले जाते ह�। इस मा�ा को दो खुराक म� िवभािजत करके सुबह और शाम देना चािहये। आिधकतम मा�ा 3 �ाम �ित �दन है। बोनमेरो का दमन, पाचन िवकार, न्यू�ोपीिनय, हीमोलाइिसस, िहपेटाइ�टस को�टकोस्टीरॉयड्(Corticosteroids) �ेडिनसोलोन (Prednisone) 5-60 िमिल�ाम �ित �दन वजन बढ़ना, डायिबटीज, उ� र�चाप, अिस्थक्ष (Osteoporosis) Tab Wysolone इम्युनोमो�ूले�, साइटोटॉिक्सक और इम्युनोमोस�ेिसव दवाइय Azathioprine Cyclophosphamide 1 िमिल�ाम/�कलो (50–100 िमिल�ाम) �दन म� एक या दो बार , यकृ त म� खराबी, बोनमेरो का दमन, 6-8 हफ्ते बाद0.5 िमिल�ाम /�कलो/�दन के िहसाब से मा�ा बढ़ाएं साइक्लोस्पो�रन क �फर हर 4 हफ्ते म� मा�ा बढ़ाए । अिधकतम मा�ा 2.5 �योग से क� सर का खतरा, गुद� िमिल�ाम/�कलो/�दन है। कमजोर होना 2–3 िमिल�ाम/�कलो रोजाना गोली के �प म� या आई.वी. पल्स
  • 8. 8|P ag e थेरेपी: 0.75 �ाम/मीटर2 हर माह (मा�ा को 1 �ाम /मीटर2/माह के िहसाब से बढ़ा कर 6 माह तक दी जाती है य�द टी.एल.सी. 3000/µL से अिधक बना रहे ), इसे 30-60 िमनट म� धीरे -धीरे �दया जाता है। साथ म� मुँह या आई.वी. �ारा तरल �दये जाते ह�। साइक्लोस्पोरी 50 िमिल�ाम �ित �दन , अिधकतम मा�ा 1.75 िमिल�ाम /�कलो (Cyclosporine) सुबह शाम बायोलोिजक एजेन् अबाटासेप्ट शु� म� 750 िमिल�ाम इं जेक्शन आ.वी. �दया जाता फे फड़े म� खराबी सं�मण का जोिखम, िसरददर, यू.आर.आई., गले है, �फर 2 हफ्ते बा, 4 हफ्ते बाद और �फर हर4 म� खा�रश, उबकाई हफ्ते बाद इंजेक्श�दया जाता है। (Abatacept) Inj Orencia 250 mg �रटु क्सीमेब 1 �ाम इं जेक्शन आ.वी. �दया जाता है, �फर 2 हफ्ते इं जेक्शन देते समय – इं जेक्शन क� बाद, 4 हफ्ते बाद और �फर हर4 हफ्ते बाद एक जगह पर चक�े बन जाना, कमर इं जेक्शन�दया जाता है। ददर, बुखार, उ� र�चाप या र�चाप कम हो जाना, सं�मण या क� सर का खतरा, बोनमेरो का दमन (Rituximab) IL-1 �रसेप्टर िवरोधी ऐना�कनरा (Anakinra) 100 िमिल�ाम इं जेक्शन रोज त्वचा क इं जेक्शन क� जगह �रयेक्, बोनमेरो का दमन नीचे (SC) लगाय� रक्षा�णाल और टी एन एफ - α िवरोधी एडािलमुमेब (Adalimumab) इटानरसेप्ट (Etanercept) इिन्फक्सीमे (Infliximab) 40 िमिल�ाम का इं जेक्शन रोज त्वचा के नी (SC) हर 1 या 2 हफ्ते म� सं�मण (संभवतः टी.बी.) या क� सर का लगाव� जोखम, िलम्फोम, 25 िमिल�ाम का इं जेक्शन रोज त्वचा के नीचे स�ाह म� दो बार य50 बोनमेरो दमन, यकृ त म� खराबी, नाड़ी िमिल�ाम का इं जेक्शन रोज त्वचा के नीचे �ित स� िवकार 3 िमिल�ाम /�कलो सेलाइन म� िमला कर आइ.वी. दी जाती है। इसके 2 और 6 स�ाह बाद दूसरी और तीसरी ि�प दी जाती है। �फर हर 8 हफ्ते म� एक ि�प दी जाती है। (मा�ा 10 िमिल�ाम �कलो के िहसाब बढ़ाई जा सकती है)
  • 9. 9|P ag e दवा नॉन-स्टीरॉयडल ंटीइन्फ्लेमेट्री दवा(NSAIDs) ए मात्रामुख द् डायक्लोफ ेनेक ऐसीक्लोफ ेनेक(Aceclofenac) Altraday, Cap Ace-proxyvon, Erinac-P, फ्ुपरटीन(Flupirtine) ल Cap Snepdol 100 इटोडोलेक (Etodolac) Tab Toldin ER 600 फेनोप्रोफेFenoprofen) Tab Fenopron 300, 600 िमिलग्रा फ्लरिबप्रोफे(Flurbiprofen) Tab Proben 50, 100 िमिलग्रा इडोमेथोिसन (Indomethacin) ं Indocap SR 75 क�टोप्रोफेन(Ketoprofen) Ketofen 50 100 िमिलग्रा नेब्ूमेटोन (Nabumetone) य Tab Nabuflam 500 िमिलग्रा Tab Relifex 500 िमिलग्रा नेप्रोक्से(Naproxen) Tab Naxdom 250, 500 िमिलग्रा ओक्साप्रोिज(Oxaprozin) Caplet Daypro 600 िमिलग्रा पाइरेिक्सकेम (Piroxicam) Cap Dolonex 20 िमिलग्रा सिु लनडेक (Sulindac) Clindac 200 िमिलग्रा टोलमेिटन (Tolmetin) सेलीकोिक्सब (Celecoxib) Orthocel 100, 200 िमिलग्रा मेलोिक्सकेम (Meloxicam) Mel-one 7.5, 15 िमिलग्रा अिधकतम मात् 75 िम.ग्. िदन में दो बार या 50 िम.ग्. िदन में 150 िमिलग्रा तीन बार , 100 िम.ग्. सस्टेन्ड �रलीज गोली िदन म एक बार 100 िम.ग्. िदन मे दो या तीन बार 100 िम.ग्. िदन मे दो या तीन बार 300–500 िमिलग्रा िदन में दो बार 1200 िमिलग्रा 300–600 िमिलग्रा िदन में तीन बार 3200 िमिलग्रा 100 िमिलग्रा िदन में दो बार या िदन में तीन बा 300 िमिलग्रा 25 िमिलग्रा िदन में तीन बा, 75 िमिलग्रा 200 िमिलग्रा सस्टेन्ड �रलीज िदन मएक या दो बार 50–75 िमिलग्रा िदन में तीन बार, 200 िमिलग्रा 300 िमिलग्रा सस्टेन्ड �रलीज गोली िदन में एक बार 1000–2000 िमिलग्राम िदन में चार ब 2000 िमिलग्रा 250–500 िमिलग्रा िदन में दो बार 1500 िमिलग्रा 1200 िमिलग्रा िदन में एक बार 1800 िमिलग्रा 20 िमिलग्रा िदन में एक बार 20 िमिलग्रा 150–200 िमिलग्रा िदन में दो बार 400 िमिलग्रा 400 िमिलग्रा िदन में तीन बार 200 िमिलग्रा िदन में एक बारया िदन में दो बार 1800 िमिलग्रा 400 िमिलग्रा 7.5 िमिलग्रा िदन में एक बा 15 िमिलग्रा
  • 10. 10 | P a g e