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१४ सितंबर को पूर वि्िभर मं ह ंदी-हदिि मनाया जाता । इि ह ंदी-हदिि पर
मार वि्यालय क ह ंदी विभाग की ओर ि प ली बार ेई-परिकाै रकासित ककया
जा र ा । मं पूर ह ंदी विभाग को बधाई दना चा ती ूँ कक उनकी ओर ि य
एक अ्छा रयाि र ा। भारतीय भाषाओं क िाथ ििवथा ि मरा लगाि र ा
्यंकक िाह ्य का जो रि मं अपनी इन भाषाओं मं दखन को समलता ि
िायद क ीं और न ी। भाषा ि िि्त मा्यम जजिि म अपन मन क
विचारं और भािं को आिानी ि ्य्त कर िकत ं। र दि की अपनी
मातॄभाषा और रा्रभाषा ोती । ब्चा जब बोलना िीखता तो उिक मुख ि
ननकला प ला ि्द उिकी मातृभाषा मं ी ोता । सिषा का मा्यम जो भी ो
परंतु अपनी मातृभाषा और रा्रभाषा का ञान ोना भी आि्यक । ककिी भी
दि की भाषा उि दि क नागररक की प चान ोती । पूर वि्ि मं ह ंदु्तान की
प चान ह ंदी ि । मं य ी क ना चा ूँगी कक
अ्छा ब ुभाषी का ञान
इिि ी बनत म ान
िीख जी भर भाषा अनक
पर रा्रभाषा न भूलो एक
मार वि्यालय मं म िारी भाषाओं को िमान प ि म ््ि दत ं।
वि्या्थवयं को अनक ऐि अििर रदान ककए जात ं जजिि ि भाषा क माधुयव
का आनंद ल िक। ‘जय ह ंदी,जय ह ंदु्तान’
रीमती लललता नायडू
रधानाचायाा
मरिडडयन ्कू ल, माधापुि
सिषा का उ्द्य ोता ककिी भी ब्च का ििांगीण विकाि अथावत सि्व पु्तकीय ञान ी
न ीं िरन जीिन-िली का पूणव विकाि। िा्तविक सिषा ि ी जो दुननयादारी मं पाँि रखत ी
र िम्याओं ि उबरन की िमझ दं। मिब ब ुत ी खुिनिीब ं कक म एक ऐिी सिषा
िं्थान का ह ्िा ं ज ाँ ब्चं की रटंत वि्या पर न ीं बजकक उनकी रचना्मकता की ओर
वििष ्यान हदया जाता । भाषा एक ऐिा अननिावय त्ि जो मनु्य क ्यज्त्ि की रगनत
मं ब ुत ी ि ायक ोता ।अ्धक ि अ्धक भाषाओं का ञान आपक ्यज्त्ि मं ननखार ला
दती । अत: मार वि्यालय क इि रांगण मं भी अंरज़ी क अलािा अ्य भाषाओं क ञान
का िुअििर रा्त ोता । ब ुभावषक दि ोन क नात अनक मातृभाषाएँ भी ं परंतु इि
विविधता क बीच एक ऐिी भाषा ,जजिन पूर ह ंदु्तान क हदलं को एक-दूिर ि जोड़ रखा
और ि भाषा मारी िंपकव भाषा ह ंदी। मार इि वि्यालय मं भी ब्चं न अपनी विसभ्न
लखन और म खखक असभ्यज्त ्िारा ह ंदी भाषा मं अपनी-अपनी रचना्मकता और
िृजना्मकता का पररचय हदया। ह ंदी ्िीतीय भाषा क वि्या्थवयं न ननबंध लखन, ्चि-
लखन, कविता-पठन, क ानी-िाचन आहद कई रनतयो्गताओं मं भाग लकर अपनी भाषायी
रनतभा को िभी क िमष र्तुत ककया जो ह ंदी भाषा क रनत उनकी ्च और यो्यता को
दिावती । मरी एक छोटी-िी कविता मर वि्या्थवयं और इि परिका को पढ़निाल िभी पाठकं
को िमवपवत ।
ना उ्तर की,ना ी दषषण की,ना पूरब की, ना ी पज्चम की,
पूर ह ंद की य ह ंदी।
मं हदलोजान ि ्यारी य ह ंदी,
र मज़ ब, र क म, र िगव की य भाषा।
विदिं मं ह ंद की य पररभाषा।
इि ह ंद क माथ की िरताज़ य ह ंदी,
राचीन ि्यता और िं्कृ नत की भरमार य ह ंदी,
मु ािरं और लोकोज्तयं की खान ह ंदी।
िॉलीिुड क सितारं की बुलंदी य ह ंदी,
पूर ह ंद क हदलं को जोड़ती ह ंदी।
इंिान को इंिाननयत सिखाती य ह ंदी,
र धमव और भाषा का एज़ाज़ बताती ह ंदी।
अंजू दुब (ह ंदी विभागा्यषा)
रिक पं्ततयाँ
१. विपदाएँ कब ि क सकी ं, आग बढ़निालं क ।
बाधाएँ कब बाँध सकी , पथ पि चलनिालं क ॥
२. त् ा बठकि न दख ाथं की लकीिं अपनी।
उठ बाँध कमि औि ललख द खुद तकदीि अपनी॥
राथानागीत
मानिता क मन मंहदर मं, ञान का दीप जला दो।
क णाननधान भगिान मर, भारत को ्िगव बना दो॥
एक बार इि ििुंधरा पर, नि िंगीत बजा दो।
क णाननधान भगिान मर, भारत को ्िगव बना दो॥
नि रकाि ो धरती पर, रम की ्योत जगा दो।
क णाननधान भगिान मर, भारत को ्िगव बना दो॥
िब ो एक िमान जगत मं, कोई र न सभखारी
क णाननधान भगिान मर, भारत को ्िगव बना दो॥
नि नन ाल इि दि क म, िदा र उपकारी।
क णाननधान भगिान मर, भारत को ्िगव बना दो॥
्ि्ालता माथुि
ह ंदी अ्यावपका
बातचीत मं सीमा-ननधााि् आि्यक
मन क भािं को ्य्त करन का िि्त मा्यम भाषा। य एक
्िाभाविक रककया । बातचीत का अपना म ््ि ोता । बातचीत क
द रान िीमा बनाए रखना ह तकारी ोता । मं बातचीत करत िमय कु छ
बातं का ्यान रखना चाह ए।
१.स च-समझकि ब लं- कई बार म विचार ी न ीं करत और ्यथव ी
बोलत जात ं। आप जो कु छ बोल ब ुत ी नाप-त लकर बोल इिी मं
िबकी भलाई और मान-ि्मान ।
२.ननिथाक न ब लं- आप जो भी बोल र ं उिका कु छ अथव भी या न ीं।
कम या अ्धक बोलना ्यज्त की आदत ोती मगर ्या बोलना
य िोचन-िमझन की बात , अ्छा बोलना िाथ ी िंतुसलत बोलना
एक कला ।
३.आिाज़ का भी ्यान िखं- बोलत िमय ्थान का ्यान अि्य रखं।
िािवजननक ्थानं,िाचनालयं,अ्पताल आहद मं मिा धीमी आिाज़ मं
ी बातचीत करं जजिि दूिरं को तकली् न ो।
४. ाि-भाि पि ्यान दं- बातचीत करत िमय ाि-भाि पर काबू रखं। ाथ
नचाकर,आँख मटकाकर,ताली बजाकर बात न करं।
५.दूसिं क भी ब लन का म का दी्जए- क ीं ऐिा तो न ीं कक बि आप
ी बोल जा र ं, िामनिाला मूक खड़ा ो उि भी बात क न का म का
दीजजए। एक अ्छा रोता बनना र्ठ कायव । बोलन का िबको
िमु्चत अििर समलना चाह ए।
६.तीखी ि कड़िी बात न ब लं- क ा भी गया ेऐिी िाणी बोसलय मन का
आपा खोय, औरन को िीतल कर आप ुँ िीतल ोय।ै कई लोग कड़िी
बात भी क दत ं और िामन िाल को बुरा भी न ीं लगता।
अत: आप भी अपनी बातचीत मं इन बातं को िासमल
कर एक अ्छ ि्ता बन िकत ं।
नीता चतुिेदी (ह ंदी अ्यावपका)
मिसाइल िैन
िूरत ि्ल ि ना कमव ि प चाना जाता इंिान,
य ी तो कमाल कर हदखलाया तून कलाम।
कोई िुख िुविधा न समलन पर भी मानी ना कभी ार,
अज्न,पृ्िी समिाइल बनाकर ेसमिाइल मनै का खखताब पाकर।
वि्ि मं भारत का नाम बनाया, भारत र्न ि इ् ं निाज़ा,
भारत क ११िं रा्रपनत बन जब, िबन उन पर गिव ककया।
ऊँ चा कद पर ि निीलता, कोई इनि िीख,
कमं का जो ि्चा ो, ि ी जग को जीत।
वि्या्थवयं क सलए मिा र ं ररणा ्िोत,
्यंकक ि ी ं मार उ्जिल भवि्य की िान।
रञा शु्ला(ह ंदी अ्यापिका)
आओ,सीखं कु छ नया
Cricket - गोल गु्तम लकड़ ब्टम द दनादन
Lawn-Tennis - ररत घाि पर द तड़ातड़
Table-Tennis - अ्टकोणी का्ठ ्लक प ल टकाटक द टकाटक
Light-Bulb - वि्युत रकासित काँच गोलक
Tie - कं ठ लगंट
Tea - दु्ध जल सम्रत िकव रा यु्त पिवतीय बूटी
Train - लो पथ गासमनी/ अज्न रथ
Match-Box - अज्न उ्पादक पटी
Mosquito - गुंजन ारी मानि र्त वपपािु जीि
Cigarette - ्ित लंबाकार धूर दजडडका
अलमता िमाा (सं्कृ त अ्यावपका)
मुझ उड़न द
अनंत अंबर मं करन दो विचरण,
गगनचुंबी पिवतं की लन दो िरण।
वि्ध न हदय पंख मुझ,
न करो उिका य ननयम उकलंघन।
ऊँ ची उड़ान भरन दो।
मत कद करो, उड़न दो।
मुझ उड़न दो॥
चाँदी की दीिार न ीं,
पीपल की िूखी डाली दो।
र्नं की य धूप न ीं,
मुझ िुब की लाली दो।
रकृ नत क रंगं ि मुझ समलन दो,
मत कद करो, उड़न दो।
मुझ उड़न दो॥
न ीं चाह ए िोन की कटोरी मं जल,
मुझ ब त झरन का पानी पीना ।
ऊँ च-ऊँ च य म ल न ीं,
छोट-ि अपन नीड़ मं जीना ।
मुझ नतनक एकि करन दो,
मत कद करो, उड़न दो।
मुझ उड़न दो॥
छोटी-िी एक ्चड़ड़या ूँ मं,
पकिानं का भोज राि न आएगा।
बाजर क चंद दानं ि ी,
मरा अंतमवन तृ्त ो जाएगा।
य दान मुझ ्ियं चुगन दो,
मत कद करो, उड़न दो।
मुझ उड़न दो॥
पूजा कपूि (कं ्यूटि अ्यावपका)
ह ंदी क रचाि-रसाि मं लसनमा की भूलमका
आज मर पाि गाड़ी , बंगला ,पिा । तु् ार पाि ्या
? मर पाि माँ ?
जी आपन रबककु ल ठीक प चाना। य एक ब ुत ी लोकवरय क्कम का िंिाद
और िायद ी कोई ोगा जजिन य िंिाद न िुना ो। नन्िंद ह ंदी सिनमा की
िमाज मं और ह ंदी क रचार-रिार मं अ म भूसमका ।
म िबका असभमान ह ंदी
भारत दि की िान ह ंदी
म िबकी प चान ह ंदी।
वि्ि मं िबि ्यादा ह ंदी क्कमं का ननमावण ोता । आज ह ंदी को आम
्िीकृ नत समलन का कारण िरकारी दबाब न ीं बजकक ह ंदी पटकथा । जजि भाि
क िाथ िंिाद बोल जात ं ि हदल को छू जात ं।
िुनो ग र ि दुननयािालं
बुरी नज़र न म पर डालो
चा जजतना ज़ोर लगा लो
िबि आग ंग ह ंदु्तानी।
कं रीय ह ंदी िं्थान मं ह ंदी पढ़न आए ६७ दिं क छािं का क ना कक ह ंदी
क्कमं दखकर और गान िुनकर उ् ं ह ंदी िीखन मं मदद समलती ।
समगंबो खुि ुआ
बड़-बड़ ि रं मं ऐिी छोटी-छोटी बातं ोती र ती ं।
आज़ादी ि लकर अब तक िाह ्यकारं न प राखणक और िामाजजक
क्कमं क सलए गीतं की रचना कर ह ंदी िाह ्य को रबल िमथवन हदया ।
तारीख प तारीख समलती र ी
लककन इंिा् न ीं समलता
सि्व समलती तो तारीख।
ह ंदी क्कमं का म ज़ूदा पररृ्य बदल चुका , र तर की क्कमं बन र ी ं।
कभी ा्य क मा्यम ि,तो कभी िंजीदगी ि विसभ्न विषयं को िामन लाया
जा र ा । ॉलीिुड की क्कमं भी ह ंदी मं पांतररत ोन ि ह ंदी अंरज़ी की
अनुचरी न ीं ि चरी बन गयी ।
ॉलीिुड क्कम अितार ि
यारं उठो,चलो,भागो,द ड़ो
मरन ि प ल, जीना ना छोड़ो।
इन िबि ह ंदी सिनमा क ननमावताओं की जज़्मदारी और भी बढ़ जाती । उ् ं
अपनी पटकथा लखन और गीतं की भाषा पर वििष ्यान दना ोगा। इिि ह ंदी
भाषा अपन ि ी मुकाम पर ज़ र प ुँचगी।
इतनी-िी बात, िाओं को बताए रखना
रोिनी ोगी, ्चरागं को जलाए रखना
ह ंदी मर ह ंद की धड़कन
इि भाषा को मिा हदल मं बिाए रखना।
‘जय ह ंद’
-न लिता अि िा
कषा- छठिीं ‘सी’
ह ंदी ूँ मं
ह ंदी ूँ मं, ह ंदी ूँ मं।
रबंदी ूँ मं, रबंदी ूँ मं-
भारत माँ की रबंदी ूँ मं।
दि को एक बनाती ूँ मं,
िबको नक बनाती ूँ मं
भद समटाकर, रम बढ़ाकर
जोड़निाली भाषा ूँ मं
ह ंदी ूँ मं, ह ंदी ूँ मं
िं्कृ नत का पररचायक मं ूँ
दि की िान भी मं ी ूँ
अखंडता का रषक मं ूँ
्िासभमान का रतीक मं ूँ
ह ंदी ूँ मं, ह ंदी ूँ मं
िंविधान न माना मुझको
जनता न प चाना मुझको
िब भाषाएँ ्यारी मुझको
ह ंदी ूँ मं, ह ंदी ूँ मं
रबंदी ूँ मं, रबंदी ूँ मं-
भारत माँ की रबंदी ूँ मं।
-आरय
कषा-छठिीं ‘एफ़’
भारत की िान नतरंगा,
भारत माँ की जान नतरंगा।
दिरम का पाठ पढ़ाता,
जग मं अपना मान बढ़ाता।
जन-जन की प चान नतरंगा,
भारत की िान नतरंगा।
इिमं सलखी ुई िारी,
आज़ादी की गाथा ्यारी।
रा्रीय ननिान नतरंगा,
भारत की िान नतरंगा।
रंग ब ुत ी ्यार इिक,
राण फड़क उठत दखक।
नियुग का आ्िान नतरंगा,
भारत की िान नतरंगा।
आओ, म इिको फ राएँ,
मु्त गगन मं ऊँ चा ल राएँ।
छू लगा आिमान नतरंगा,
भारत की िान नतरंगा।
-रीमयी बब्िाि
कषा-सातिीं ‘ए’
नतिंगा
मिी माँ
तर आँचल मं खुसियाँ भरी ,
तर ोठं पर मु्कु रा ट खखली ।
तर ्यार की आ ट ि आज,
इि दुननया को छाँि समली ।
तर ोन की कदर मं,
तर माया की खबर मं।
तर मुख ि ननकल र ि्द मं,
तरी क्र हदखती मं।
हदन ो या रात ो,
कभी थकती न ीं तू।
मार सलए तरी जज़ंदगी कु रबान,
ऐिा क कर मम मु्कु रा दती तू।
तू तो इि घर की िान ,
तुझि ी मारी प चान ।
तर आँखं ि ननकल र आँिू को,
मं खुसियं मं बदल डालना ।
्यार करत म ब ुत तुझि,
इ्ज़त भी तरी करत ं।
आज क इि खाि हदन पर
म गिव ि तुझ िलाम करत ं।
- मालविका कु लक्ी
कषा- आठिीं ‘ई’
िायिी का गुलद्ता
अज़ा ककया -
 जज़ंदगी मं बुरा ि्त न ीं आता,
तो अपनं मं छु प ुए गर और गरं
मं छु पा ुआ अपना कभी नज़र न ीं
आता।
 आँिू पंछकर ँिाया मुझ,
मरी गलती पर भी िीन ि लगाया
मुझ,कि ्यार न ो ऐि दो्त ि
जजिकी दो्ती न जीना सिखाया मुझ
 र दो्त ि बात करना क्तरत
मारी, र दो्त खुि र िरत
मारी, कोई मं याद कर ना कर,
पर िबको याद करना आदत मारी।
 दो्ती िो न ीं ोती जो जान दत ं
दो्ती िो न ीं ोती जो मु्कान दत ं
अिली दो्ती िो ोती ,
जो पानी मं ्गरा आँिू भी प चान लत ं।
 िो दो्त मरी नज़र मं ब ुत माइन
रखत ं,
जो ि्त आन पर मर िामन आइन
रखत ं।
-ििल िाठ ि
कषा-सातिीं ‘ए’
‘्ि्छता आंद लन’ इन ‘इ्डडया’
्ि्छता आंदोलन मार दि मं मार दि क माननीय रधानमंिी री नरंर मोदी
जी न ्ि्छ भारत असभयान क प मं रारंभ ककया। य एक बहढ़या विचार ।
इिि ह ंदु्तान और ह ंदु्ताननयं की भलाई ोगी। य आंदोलन आग चलकर पूर
दिभर की िम्या को िमा्त कर दगा। २ अ्तूबर २०१४ को रधानमंिी जी न
इि असभयान का िुभारंभ ककया। म ा्मा गाँधी का य एक िपना था कक िब
भारतिािी ्ि्छता क बार मं िीखं और उि पर अमल करं।
यहद म िभी अपन आि-पाि की जग िा्-िुथरा रख तो बीमाररयाँ
फलनी बंद ो जायगी। ्ि्छता को अपनान ि मार पि जो अ्पताल और
दिाइयं मं खचव ोत ं, ि बच जायंग।्ि््ता भारत क िभी नागररकं की एक
िामाजजक जज़्मदारी । भारत की आ्थवक ज्थनत मं िुधार ोगा।
वि्यालयं मं ब्च ि्ाई और ्िा््य क विषय मं िीखत ं।गंदगी,
कू ड़ा और कचर ि ोनिाल नुकिान को भी िमझत ं। अत: वि्या्थवयं का य
कतव्य कक िो िमाज को इिि अिगत कराय और जाग कता पदा करं।
मं गाँिं मं और अ्धक ि चालय का ननमावण करना ोगा। इिमं
नगरपासलका और पंचायत की वििष भूसमका ोनी चाह ए।भारत की ्ि््ता की
य कोसिि मानि िृंखला बनकर और बढ़गा।
अखबार, दूरदिवन और रड़डयो पर रिारणं और चचावओं ि लोगं की
जानकारी बढ़गी और कु छ िषं क बाद ह ंदु्तान वि्ि क अ्य दिं की तर
एकदम बहढ़या और िुंदर ो जाएगा।
‘जय भाित, जय ्ि््ता’
-साह ल सिाि
कषा-सातिीं ‘डी’
घड़ा मिा नाम
मुझमं िब भरत ं पानी,
मरा रंग लाली-लाली ।
मुझि ी पानी पीकर
लोग बुझात ं अपनी ्याि।
अलग-अलग तरीक ि मुझ बनात ं,
उि कु ् ार क त ।
विनयाषिा िालमस्टी
कषा- तृतीय ‘एफ’
ज्महदन
अग्त ्यार मर सलए ब ुत ्यारा,
ब ुत खुि र ता , मरा पररिार िारा ;
्यंकक उि हदन ज्महदन मरा ।
इि हदन क बार मं िोचती र ती ूँ,
िालभर मुझ ्या तो्ा समलगा;
क न प ल मुबारक बाद दगा ।
बाबा और माँ ि पूछती र ती ूँ,
ब ुत िार ििाल, य ी कक
कि मनाओग आपकी बटी का ज्महदन
इि िाल ।
मह मा
कषा- तृतीय ‘बी’
मीठी ब ली
बोलो-बोलो िब समलकर बोलो,
ओंठ ि बोलो मीठी बातं ।
म िबि मीठ बोल तो ी,
िब मि मीठ बोलंग ।
ाथ मं ाथ िाथ-िाथ चलं,
रबना लड़त, रबना झगड़त,
ओंठ ि बोलो मीठी बातं ।
रीन बििदी
कषा- तृतीय ‘एफ’
मल मं रम्
वपछल िाल िदी क म िम मं मं अपन वपताजी, माताजी और दीदी क िाथ
मला घूमन गई थी ।मल क मदान मं ब ुत िार दुकान थ और र दुकान पर
ब ुत लोगं की भीड़ थी। कोई िामान खरीद र ा था, कोई खाना खा र थ और
ब्च खल र थ ।
कु छ उछलत ुए ब्च झूला झूल र थ । मनं अपनी दीदी क िाथ झूला
झूलन का आन्द उठाया ।मल मं घूमत िमय मरी नज़र खखल नं की एक दुकान
पर पड़ी । मरी अनुरोध ि वपताजी न उि दुकान ि मुझ एक ्यारी-िी गुड़ड़या
खरीदकर दी ।
अचानक मंन दखा कक एक गरीब ब्ची मर पाि आकर भीख माँगन लगी ।
मुझ तभी याद आया कक मल मं आत िमय माँ न मुझ एक चॉकलट दी ।
रबना िोच उि चॉकलट को उि गरीब ब्ची को द दी।
चॉकलट समलत ी ि ब्ची खुिी ि उछलन लगी और चॉकलट खाना िु कर
हदया ।
उिक च र पर मुिकरा ट दखकर मुझ भी ब ुत खुिी समली । इिक बाद म
मल मं घूमं, ब ुत-िारी मनपिंद िामान खरीदा ।
िाँझ ढलत ी घर ल ट, मगर उि गरीब ब्ची क च र पर ि खुिी मुझ मिा
याद र गा ।
रीपू्ाा वि्िास
कषा- ्वितीय ‘सी’
स च का फका
एक ि र मं एक धनी ्यज्त र ता था ।उिक पाि ब ुत पिा था और उि
इि बात पर ब ुत घमंड़ भी था । एक बार ककिी कारण ि उिकी आँखं मं
इंफ्िन ो गया।आँखं मं बुरी तर जलन ोती थी। ि डॉ्टर क पाि गया
लककन उिकी इि बीमारी का इलाज न ीं कर पाया ।
िठ क पाि ब ुत पिा था, उिन दि-विदि ि नीम- कीम और डॉ्टर
बुलाए । एक बड़ डॉ्टर न बताया कक उिक आँखं का इलाज । िठ को कु छ
हदन तक सि्व रा रंग ी दखना ोगा। अगर कोई और रंग दखगा तो उिकी
आँखं को परिानी ोगी । अब ्या था, िठ न बड़-बड़ पंटरं को बुलाया और पूर
म ल को र रंग ि रंगन क सलए क ा ।उिन बोला मुझ र रंग क अलािा
कोई और रंग हदखाई न ीं दनी चाह ए। मं ज ाँ ि भी गुज़ ँ ि ाँ र जग रा
रंग कर दो।
ि ीं ि र मं एक ि्जन पु ष गुज़र र थ और चारं तर् रा रंग दखकर
लोगं ि कारण पूछा । िारी बात िुनकर ि िठ क पाि गया और बोला,
िठजी आपको इतना पि खचव करन की ज़ रत न ीं । मर पािआपकी परिानी
का एक छोटा-िा ल । आप रा च्मा ्यूँ न ीं खरीद लत, क्र िब कु छ रा
ो जाएगा । िठ की आँखं खुली की खुली र गयी। उिक हदमाग मं य िानदार
विचार आया ी न ीं। ि बकार मं इतना पिा खचव ककए जा र ा था ।
तो समिं, जीिन मं मारी िोच और दखन का नज़ररया पर भी ब ुत िारी
चीज़ं ननभवर करती । कई बार परिानी का ल ब ुत आिान ोता लककन म
परिानी मं फँ ि जात ं । तो इि ी क त ं िोच का फकव ।
सी.ला्या
कषा- तृतीय ‘एफ़’
ह ंदी का म तति: कल औि आज
ह ंदी मिा ि ी भारतीयं की िान र ी ।रबना ह ंदी क भारतीय िं्कृ नत
अधूरी ो जाएगी। ह ंदी की यािा एक िाधारण भाषा ि लकर भारत मं िबि
्यादा बोली जानिाली भाषा बनन तक ब ुत कहठन र ी ।
जब म लोगं को अंरज़ं ि आज़ादी समली थी,तब मं उनकी ि्यता क
िाथ-िाथ अंरज़ी भाषा को भी उनक िाथ भज दना चाह ए था।पर म िबन ऐिा
न ीं ककया। मन अंरज़ी को अपना मि्र बनाया और इिसलए ब्चं की पढ़ाई
ि लकर अदालत की िुनिाई तक,अंरज़ी का ी रयोग ोता ।य ाँ तक कक छोट-
छोट ब्चं को भी उनकी मातृभाषा ि प ल अंरज़ी रटिाया जाता ।इिसलए बड़
ोकर ह ंदी पढ़न मं ब्चं को िमव म िूि ोती और ह ंदी उनपर सि्व एक
बोझ बनकर र जाती । अंरज़ी मारी भारतीय िं्कृ नत मं ऐि घुि गयी जि
ेकबाब मं ्डीै ो।
अगर म इनत ाि को दो राए तो मं य पता चलता कक मार
िंविधान को सलखा जा र ा था,तब ह ंदी को रा्रभाषा बनान का र्यन ककया
गया था परंतु आंतररक वििादं क कारण य िंभि न ो िका। बि य िमझ
लीजजए कक ह ंदी का म ््ि धीर-धीर गायब ोन लगा।लोग य भूल र ं कक
विदिं मं भी जब भारत और भारतीय लोगं को याद ककया जाता तो उ् ं ह ंदी
ज़ र याद आती ।
ह ंदी िं्कृ त का ी एक प और कई धासमवक ककताबं को िं्कृ त मं
सलखा गया ।पुरान ज़मान मं ह ंदी ब ुत ज़ री भाषा थी। आज़ादी की लड़ाई मं
ह ंदी का ी रयोग ककया गया था।
आज अंरज़ी म पर इतनी ािी ोत जा र ी कक म अपनी मातृभाषा
को भी भूलत जा र ं। म चा जजि भाषा मं पढ़-सलख बि य याद रखना
चाह ए कक र भाषा म ््िपूणव ोती । ह ंदी का भी एक म ््ि ोना
चाह ए,ह ंदी भी अपनाई जानी चाह ए।्यंकक ेह ंदी म, ितन ह ंदो्तां
मारा।ै
-सि्ा ज़दी (न िीं ेबीै)
रकृ नत ििदान
रकृ नत भगिान का िरदान,
उिका करो िदुपयोग,मान और ि्मान।
िो बढ़ाती धरती की िान,
रकृ नत िरदान॥
रकृ नत बनाती पृ्िी को खूबिूरत,
पर म बना दत इिको बदिूरत।
पड़ न ीं लगाना और जीिन न ीं िँिारना
मानि की एक भूल,
जो बनाती धरती को असभिाप।
रकृ नत िरदान॥
मं अपनी िुंदर रकृ नत को,
र तरीक ि बचाना ।
पड़ लगाओ, जानिर बचाओ,
और अपनी तरफ ि
धरती को खुि ाल बनाओ।
रकृ नत िरदान॥
-म ली अरिाल
कषा- न िीं ‘डी’
मािी िा्रीय भाषा-ह ंदी
राजभाषा का मिा मान ोनाचाह ए।
ह ंदी का उ्चत ि्मान ोना चाह ए॥
िं्कृ नत ि पदा ुई य ह ंदी।
इिकी रिंिा भी करत थ गांधी॥
उ्तर ि लकर दषषण तक,
पूरब ि लकर पज्चम तक ।
बोलत िब इिको बधड़क॥
म ाभारत, रामायण जि लोककथाओं
को मन ह ंदी मं ी पढ़ ं॥
आज प राखणक कथाएँ अंरज़ी मं तो आ
गए ं।
परंतु ह ंदी पढ़न का मज़ा ी कु छ और
॥
ह ंदी हदिि र िाल मनाया जाता ।
इि म ान भाषा को िीखन को रररत
ककया जाता ॥
म ि्मान दंग ह ंदी भाषा को।
न ीं मरन दंग इि असभलाषा को॥
-अ्नया िी.
कषा- दसिीं ‘सी’
ि्दं मं बड़ी ताकत
एक ब ुत ताकतिर बल नंदू अपन मासलक क िाथ एक छोट ि गाँि मं र ता
था।उिका मासलक ब ुत गरीब था। नंदू अपन मासलक को धन कमान मं कु छ
मदद करना चा ता था इिसलए उिन अपन मासलक को िुझाि हदया कक आप एक
ज़ार िोन क सि्को की ितव लगाइए और मं आपको ि भरी ुई गाड़ड़याँ
खींचकर हदखाऊँ गा। मासलक मान गए। रनतयो्गता क हदन नंदू अपनी पूरी ताकत
ि गाड़ड़यं को खींचन लगा। आ !आ ! पर उिका मासलक ्चकलाया बिकू ्!तूझम
्या ताकत न ीं ?और ज़ोर ि खींच। मासलक क ि्दं ि दुखी और अपमाननत
ोकर उिन खींचना ी बंद कर हदया जजिि उिका मासलक ितव ार गया और
ब ुत ननराि ुआ। इि बात ि नंदू भी दुखी था।नंदू अपन मासलक क पाि गया
और अपन मासलक ि क ा मासलक मंन मिा आपकी ििा की कफर भी आपन
मुझ बिकू ् क ा इिसलए मंन आपको रा हदया। यहद आपको िा्ति मं पछतािा
तो मं आपको दुगुन पि जीत कर हदखाऊँ गा। इि बार दो ज़ार िोन क सि्कं
की ितव लगाइए और मं आपको ारन न ीं दूँगा। एक बार कफर रनतयो्गता क
हदन नंदू अपनी पूरी कोसिि करन लगा। इि बार मासलक न उिका उ्िा बढ़ात
ुए क ा खींचो नंदू, तुम कर िकत ो, मुझ वि्िाि तुम अि्य जजतोग।
मासलक का ऐिा वि्िाि दखकर नंदू खुि ो गया और ि ब ुत
उ्िाह त ुआ।नंदू न पूरी ताकत लगाई और उिन िभी गाड़ड़यं को खींच सलया
जजिि मासलक ितव जीत गए और ब ुत खुि ुए। इि बात ि मासलक न एक
िीख ली- उतसा िधाक ि्दं का म तति।
टीया
कषा-पाँचिीं ‘बी’
ँसना मना ……………………….
्कीर- आपक पड़ोिी न मुझ भरपट खाना खखलाया ।िर,आप ्या दान करंग?
पड़ोिी- ाजमोला।………………
एक िंगीतकार कबाड़ी ि- इि टूट ुए ्गटार का ककतना पिा दोग?
कबाड़ी- अर भाई! पड़ोिी तो इिको न ीं बजान का दो ि दन को तयार ।
एक ब्चा दूिर ि-्या तुम चीनी भाषा पढ़ िकत ो?
दूिरा ब्चा- ाँ ज़ र, अगर िो ह ंदी या अंरज़ी मं सलखा ो।
एक छाि न िर ि पूछा- िार िर ह ंदी या अंरज़ी मं बात करत ं। लककन आप
गखणत मं ्यं न ीं करत?
अ्यापक न वि ाग ि क ा- जो काम तुमन न ीं ककया उिकी िज़ा तु् ं न ीं
समलगी।
वि ाग- ध्यिाद िर, आज मंन गृ कायव न ीं ककया।
डॉ्टर मरीज़ ि- आपक एक िाथ तीन दाँत कि टूट गय?
मरीज़-कड़क रोटी खान ि।
डॉ्टर- आप अपनी प्नी को मना कर िकत थ।
मरीज़- ि ी तो ककया था, उिी िज ि तो टूट ं।
-वि ाग चतुिेदी
कषा- पाँचिीं ‘बी’
वि्यालय
ाथं मं कलम पकड़ कर,
पीठ पर बग सलए।
जात म वि्यालय॥
अ,आ,इ,ई,
A,B,C,D
ोमिकव करक,
आत म वि्यालय॥
िाइंि,म्ि,िोिल,ह ंदी,अंरज़ी
पाँच ि्ज््ि इन टोटल,
इ् ीं पाँच को िीखन,
जात म वि्यालय॥
दो्त,समि और िखखयाँ
आ ा उ् ं समलन क सलए,
जात म वि्यालय
अपनी जज़ंदगी बनान क सलए,
म ज-म्ती और पढ़ाई करन क सलए
आत म वि्यालय॥
िद ी धकात
कषा-न िीं ‘बी’
मािा ्कू ल
य िुंदर ्कू ल मारा,
य मको राणं ि ्यारा।
िुंदर भिन बड़ा ,
माधापुर मं अटल खड़ा ।
रिि ्िार इिका िुंदर,
खुला मदान इिक अंदर।
सिषा मं िबि आग,
य िुंदर ्कू ल मारा।
ेमररड़डयनै इिका नाम,
िब ्कू लं ि य म ान॥
ल ह ताष
कषा-आठिीं ‘बी’
मंन ब ुत कु छ दखा
मंन ब ुत कु छ दखा ,पर मं कु छ न ीं कर पाया,
जब लोग एक दूिर को धोखा दत ं,
जब एक आदमी पूर ज ां को दुख दता ,
जब लोगं को पीन का पानी न ीं समलता ।
म िभी को य गलत तो लगता ,
पर य ्यं ोता य तो िोचो,
्या य िार सि्व ालत की िज़ ि ?
या कफर कु छ और भी कारण कई इन बुराई क?
ालात इंिानं को बदल दता ,
य तो ठीक ,
पर इन ालातं क कारण क बार मं िोचो,
्या ि म ी न ीं ?
िामाजजक बुराइयं को म ी न धरती पर लाया,
पर इिि मन ्या पाया, ्या ्ायदा?
भद-भाि जि भािनाओं क िाथ मन य ्या कर डाला?
लाखं लोगं की जज़ंदगी मन छीना।
तो बुरा करन की िज भी म िब ,
्या मन य न ीं िोचा?
तो इि िुधारन की जज़्मदारी भी मारी,
्या आपको य न ीं लगता?
ाँ, मंन ब ुत कु छ दखा ,
पर मं कु छ न ीं कर पाया।
पर अगर म िाथ खड़ र ,
समलकर म एक बदलाि ला िकत ना?
अलभषक दिबा
कषा- दसिीं ‘ए’
पूि ह ंदी विभाग की ओि स म आभाि रकट किना चा ंग
मािी रधानाचायाा म दया रीमती लललता नायडू जी का
्ज् ंन इस ‘ई-पबिका’ क रकािन क ललए मं र तसाह त
ककया। साथ ी साथ म ध्यिाद दना चा ंग माि
रधाना्यावपका रीमती ि भा दलिाका औि ग िी सिकाि जी का
्ज् ंन इस काया मं पू्ा स य ग हदया औि मािा मागा
रि्त ककया। मािा वििष ध्यिाद रीमती पूजा कपूि
जी क , ्ज् ंन अपनी तकनीकी य ्यता क ्िािा इस ‘ई-
पबिका’क रकािन क संभि बनान मं म ततिपू्ा य गदान
हदया। म आभािी माि सभी क ऑडडानटसा का ज मं
समय-समय पि अपना स य ग दत ि त ं। म बधाई दना
चा ंग कषा सातिीं स आिीज़ औि कषा न िीं स दीवपका
गु्ता क ्ज् ंन मु्य पृ्ठ का डडज़ाइन तयाि ककया औि
कषा न िीं की सु ानी माथुि क ्जसन अंनतम पृ्ठ की
डडज़ाइन मं अपना य गदान हदया। साथ ी साथ उन तमाम
वि्या्थायं क भी बधाई दना चा त ं ्ज् ंन अपनी लखनी
क ्िािा इस ‘ई-पबिका’ मं अपना य गदान हदया।
ह ंदी विभाग
“Language is the blood of the soul into which thoughts run
and out of which they grow.”
Language bridges the barrier between persons/people. It
lays the road map to a culture, allows a person to express
his/her thoughts in various forms.
Hindi language is one such Indian language where it has
gained international prominence. Whichever country you
visit people connect India to Hindi.
Though not well versed in the language, in my years at
Meridian. I enriched my nascent knowledge in Hindi and
today I am able to understand and speak a few sentences.
Kudos to our Hindi teachers who motivated me to upgrade
my speaking skill.
I appreciate the Hindi department of our school for taking
this initiative to release this e-magazine in connection with
Hindi Diwas. Wishing them all the best and continue this
task.
Jai Hind, Jai Hindi.
Shobha Dasika
E patrika Hindi Dept. Meridian school,Madhapur
E patrika Hindi Dept. Meridian school,Madhapur

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E patrika Hindi Dept. Meridian school,Madhapur

  • 1.
  • 2. १४ सितंबर को पूर वि्िभर मं ह ंदी-हदिि मनाया जाता । इि ह ंदी-हदिि पर मार वि्यालय क ह ंदी विभाग की ओर ि प ली बार ेई-परिकाै रकासित ककया जा र ा । मं पूर ह ंदी विभाग को बधाई दना चा ती ूँ कक उनकी ओर ि य एक अ्छा रयाि र ा। भारतीय भाषाओं क िाथ ििवथा ि मरा लगाि र ा ्यंकक िाह ्य का जो रि मं अपनी इन भाषाओं मं दखन को समलता ि िायद क ीं और न ी। भाषा ि िि्त मा्यम जजिि म अपन मन क विचारं और भािं को आिानी ि ्य्त कर िकत ं। र दि की अपनी मातॄभाषा और रा्रभाषा ोती । ब्चा जब बोलना िीखता तो उिक मुख ि ननकला प ला ि्द उिकी मातृभाषा मं ी ोता । सिषा का मा्यम जो भी ो परंतु अपनी मातृभाषा और रा्रभाषा का ञान ोना भी आि्यक । ककिी भी दि की भाषा उि दि क नागररक की प चान ोती । पूर वि्ि मं ह ंदु्तान की प चान ह ंदी ि । मं य ी क ना चा ूँगी कक अ्छा ब ुभाषी का ञान इिि ी बनत म ान िीख जी भर भाषा अनक पर रा्रभाषा न भूलो एक मार वि्यालय मं म िारी भाषाओं को िमान प ि म ््ि दत ं। वि्या्थवयं को अनक ऐि अििर रदान ककए जात ं जजिि ि भाषा क माधुयव का आनंद ल िक। ‘जय ह ंदी,जय ह ंदु्तान’ रीमती लललता नायडू रधानाचायाा मरिडडयन ्कू ल, माधापुि
  • 3. सिषा का उ्द्य ोता ककिी भी ब्च का ििांगीण विकाि अथावत सि्व पु्तकीय ञान ी न ीं िरन जीिन-िली का पूणव विकाि। िा्तविक सिषा ि ी जो दुननयादारी मं पाँि रखत ी र िम्याओं ि उबरन की िमझ दं। मिब ब ुत ी खुिनिीब ं कक म एक ऐिी सिषा िं्थान का ह ्िा ं ज ाँ ब्चं की रटंत वि्या पर न ीं बजकक उनकी रचना्मकता की ओर वििष ्यान हदया जाता । भाषा एक ऐिा अननिावय त्ि जो मनु्य क ्यज्त्ि की रगनत मं ब ुत ी ि ायक ोता ।अ्धक ि अ्धक भाषाओं का ञान आपक ्यज्त्ि मं ननखार ला दती । अत: मार वि्यालय क इि रांगण मं भी अंरज़ी क अलािा अ्य भाषाओं क ञान का िुअििर रा्त ोता । ब ुभावषक दि ोन क नात अनक मातृभाषाएँ भी ं परंतु इि विविधता क बीच एक ऐिी भाषा ,जजिन पूर ह ंदु्तान क हदलं को एक-दूिर ि जोड़ रखा और ि भाषा मारी िंपकव भाषा ह ंदी। मार इि वि्यालय मं भी ब्चं न अपनी विसभ्न लखन और म खखक असभ्यज्त ्िारा ह ंदी भाषा मं अपनी-अपनी रचना्मकता और िृजना्मकता का पररचय हदया। ह ंदी ्िीतीय भाषा क वि्या्थवयं न ननबंध लखन, ्चि- लखन, कविता-पठन, क ानी-िाचन आहद कई रनतयो्गताओं मं भाग लकर अपनी भाषायी रनतभा को िभी क िमष र्तुत ककया जो ह ंदी भाषा क रनत उनकी ्च और यो्यता को दिावती । मरी एक छोटी-िी कविता मर वि्या्थवयं और इि परिका को पढ़निाल िभी पाठकं को िमवपवत । ना उ्तर की,ना ी दषषण की,ना पूरब की, ना ी पज्चम की, पूर ह ंद की य ह ंदी। मं हदलोजान ि ्यारी य ह ंदी, र मज़ ब, र क म, र िगव की य भाषा। विदिं मं ह ंद की य पररभाषा। इि ह ंद क माथ की िरताज़ य ह ंदी, राचीन ि्यता और िं्कृ नत की भरमार य ह ंदी, मु ािरं और लोकोज्तयं की खान ह ंदी। िॉलीिुड क सितारं की बुलंदी य ह ंदी, पूर ह ंद क हदलं को जोड़ती ह ंदी। इंिान को इंिाननयत सिखाती य ह ंदी, र धमव और भाषा का एज़ाज़ बताती ह ंदी। अंजू दुब (ह ंदी विभागा्यषा)
  • 4. रिक पं्ततयाँ १. विपदाएँ कब ि क सकी ं, आग बढ़निालं क । बाधाएँ कब बाँध सकी , पथ पि चलनिालं क ॥ २. त् ा बठकि न दख ाथं की लकीिं अपनी। उठ बाँध कमि औि ललख द खुद तकदीि अपनी॥ राथानागीत मानिता क मन मंहदर मं, ञान का दीप जला दो। क णाननधान भगिान मर, भारत को ्िगव बना दो॥ एक बार इि ििुंधरा पर, नि िंगीत बजा दो। क णाननधान भगिान मर, भारत को ्िगव बना दो॥ नि रकाि ो धरती पर, रम की ्योत जगा दो। क णाननधान भगिान मर, भारत को ्िगव बना दो॥ िब ो एक िमान जगत मं, कोई र न सभखारी क णाननधान भगिान मर, भारत को ्िगव बना दो॥ नि नन ाल इि दि क म, िदा र उपकारी। क णाननधान भगिान मर, भारत को ्िगव बना दो॥ ्ि्ालता माथुि ह ंदी अ्यावपका
  • 5. बातचीत मं सीमा-ननधााि् आि्यक मन क भािं को ्य्त करन का िि्त मा्यम भाषा। य एक ्िाभाविक रककया । बातचीत का अपना म ््ि ोता । बातचीत क द रान िीमा बनाए रखना ह तकारी ोता । मं बातचीत करत िमय कु छ बातं का ्यान रखना चाह ए। १.स च-समझकि ब लं- कई बार म विचार ी न ीं करत और ्यथव ी बोलत जात ं। आप जो कु छ बोल ब ुत ी नाप-त लकर बोल इिी मं िबकी भलाई और मान-ि्मान । २.ननिथाक न ब लं- आप जो भी बोल र ं उिका कु छ अथव भी या न ीं। कम या अ्धक बोलना ्यज्त की आदत ोती मगर ्या बोलना य िोचन-िमझन की बात , अ्छा बोलना िाथ ी िंतुसलत बोलना एक कला । ३.आिाज़ का भी ्यान िखं- बोलत िमय ्थान का ्यान अि्य रखं। िािवजननक ्थानं,िाचनालयं,अ्पताल आहद मं मिा धीमी आिाज़ मं ी बातचीत करं जजिि दूिरं को तकली् न ो। ४. ाि-भाि पि ्यान दं- बातचीत करत िमय ाि-भाि पर काबू रखं। ाथ नचाकर,आँख मटकाकर,ताली बजाकर बात न करं। ५.दूसिं क भी ब लन का म का दी्जए- क ीं ऐिा तो न ीं कक बि आप ी बोल जा र ं, िामनिाला मूक खड़ा ो उि भी बात क न का म का दीजजए। एक अ्छा रोता बनना र्ठ कायव । बोलन का िबको िमु्चत अििर समलना चाह ए। ६.तीखी ि कड़िी बात न ब लं- क ा भी गया ेऐिी िाणी बोसलय मन का आपा खोय, औरन को िीतल कर आप ुँ िीतल ोय।ै कई लोग कड़िी बात भी क दत ं और िामन िाल को बुरा भी न ीं लगता। अत: आप भी अपनी बातचीत मं इन बातं को िासमल कर एक अ्छ ि्ता बन िकत ं। नीता चतुिेदी (ह ंदी अ्यावपका)
  • 6. मिसाइल िैन िूरत ि्ल ि ना कमव ि प चाना जाता इंिान, य ी तो कमाल कर हदखलाया तून कलाम। कोई िुख िुविधा न समलन पर भी मानी ना कभी ार, अज्न,पृ्िी समिाइल बनाकर ेसमिाइल मनै का खखताब पाकर। वि्ि मं भारत का नाम बनाया, भारत र्न ि इ् ं निाज़ा, भारत क ११िं रा्रपनत बन जब, िबन उन पर गिव ककया। ऊँ चा कद पर ि निीलता, कोई इनि िीख, कमं का जो ि्चा ो, ि ी जग को जीत। वि्या्थवयं क सलए मिा र ं ररणा ्िोत, ्यंकक ि ी ं मार उ्जिल भवि्य की िान। रञा शु्ला(ह ंदी अ्यापिका)
  • 7.
  • 8. आओ,सीखं कु छ नया Cricket - गोल गु्तम लकड़ ब्टम द दनादन Lawn-Tennis - ररत घाि पर द तड़ातड़ Table-Tennis - अ्टकोणी का्ठ ्लक प ल टकाटक द टकाटक Light-Bulb - वि्युत रकासित काँच गोलक Tie - कं ठ लगंट Tea - दु्ध जल सम्रत िकव रा यु्त पिवतीय बूटी Train - लो पथ गासमनी/ अज्न रथ Match-Box - अज्न उ्पादक पटी Mosquito - गुंजन ारी मानि र्त वपपािु जीि Cigarette - ्ित लंबाकार धूर दजडडका अलमता िमाा (सं्कृ त अ्यावपका) मुझ उड़न द अनंत अंबर मं करन दो विचरण, गगनचुंबी पिवतं की लन दो िरण। वि्ध न हदय पंख मुझ, न करो उिका य ननयम उकलंघन। ऊँ ची उड़ान भरन दो। मत कद करो, उड़न दो। मुझ उड़न दो॥ चाँदी की दीिार न ीं, पीपल की िूखी डाली दो। र्नं की य धूप न ीं, मुझ िुब की लाली दो। रकृ नत क रंगं ि मुझ समलन दो, मत कद करो, उड़न दो। मुझ उड़न दो॥ न ीं चाह ए िोन की कटोरी मं जल, मुझ ब त झरन का पानी पीना । ऊँ च-ऊँ च य म ल न ीं, छोट-ि अपन नीड़ मं जीना । मुझ नतनक एकि करन दो, मत कद करो, उड़न दो। मुझ उड़न दो॥ छोटी-िी एक ्चड़ड़या ूँ मं, पकिानं का भोज राि न आएगा। बाजर क चंद दानं ि ी, मरा अंतमवन तृ्त ो जाएगा। य दान मुझ ्ियं चुगन दो, मत कद करो, उड़न दो। मुझ उड़न दो॥ पूजा कपूि (कं ्यूटि अ्यावपका)
  • 9.
  • 10.
  • 11.
  • 12. ह ंदी क रचाि-रसाि मं लसनमा की भूलमका आज मर पाि गाड़ी , बंगला ,पिा । तु् ार पाि ्या ? मर पाि माँ ? जी आपन रबककु ल ठीक प चाना। य एक ब ुत ी लोकवरय क्कम का िंिाद और िायद ी कोई ोगा जजिन य िंिाद न िुना ो। नन्िंद ह ंदी सिनमा की िमाज मं और ह ंदी क रचार-रिार मं अ म भूसमका । म िबका असभमान ह ंदी भारत दि की िान ह ंदी म िबकी प चान ह ंदी। वि्ि मं िबि ्यादा ह ंदी क्कमं का ननमावण ोता । आज ह ंदी को आम ्िीकृ नत समलन का कारण िरकारी दबाब न ीं बजकक ह ंदी पटकथा । जजि भाि क िाथ िंिाद बोल जात ं ि हदल को छू जात ं। िुनो ग र ि दुननयािालं बुरी नज़र न म पर डालो चा जजतना ज़ोर लगा लो िबि आग ंग ह ंदु्तानी। कं रीय ह ंदी िं्थान मं ह ंदी पढ़न आए ६७ दिं क छािं का क ना कक ह ंदी क्कमं दखकर और गान िुनकर उ् ं ह ंदी िीखन मं मदद समलती । समगंबो खुि ुआ बड़-बड़ ि रं मं ऐिी छोटी-छोटी बातं ोती र ती ं। आज़ादी ि लकर अब तक िाह ्यकारं न प राखणक और िामाजजक क्कमं क सलए गीतं की रचना कर ह ंदी िाह ्य को रबल िमथवन हदया । तारीख प तारीख समलती र ी लककन इंिा् न ीं समलता सि्व समलती तो तारीख।
  • 13. ह ंदी क्कमं का म ज़ूदा पररृ्य बदल चुका , र तर की क्कमं बन र ी ं। कभी ा्य क मा्यम ि,तो कभी िंजीदगी ि विसभ्न विषयं को िामन लाया जा र ा । ॉलीिुड की क्कमं भी ह ंदी मं पांतररत ोन ि ह ंदी अंरज़ी की अनुचरी न ीं ि चरी बन गयी । ॉलीिुड क्कम अितार ि यारं उठो,चलो,भागो,द ड़ो मरन ि प ल, जीना ना छोड़ो। इन िबि ह ंदी सिनमा क ननमावताओं की जज़्मदारी और भी बढ़ जाती । उ् ं अपनी पटकथा लखन और गीतं की भाषा पर वििष ्यान दना ोगा। इिि ह ंदी भाषा अपन ि ी मुकाम पर ज़ र प ुँचगी। इतनी-िी बात, िाओं को बताए रखना रोिनी ोगी, ्चरागं को जलाए रखना ह ंदी मर ह ंद की धड़कन इि भाषा को मिा हदल मं बिाए रखना। ‘जय ह ंद’ -न लिता अि िा कषा- छठिीं ‘सी’
  • 14. ह ंदी ूँ मं ह ंदी ूँ मं, ह ंदी ूँ मं। रबंदी ूँ मं, रबंदी ूँ मं- भारत माँ की रबंदी ूँ मं। दि को एक बनाती ूँ मं, िबको नक बनाती ूँ मं भद समटाकर, रम बढ़ाकर जोड़निाली भाषा ूँ मं ह ंदी ूँ मं, ह ंदी ूँ मं िं्कृ नत का पररचायक मं ूँ दि की िान भी मं ी ूँ अखंडता का रषक मं ूँ ्िासभमान का रतीक मं ूँ ह ंदी ूँ मं, ह ंदी ूँ मं िंविधान न माना मुझको जनता न प चाना मुझको िब भाषाएँ ्यारी मुझको ह ंदी ूँ मं, ह ंदी ूँ मं रबंदी ूँ मं, रबंदी ूँ मं- भारत माँ की रबंदी ूँ मं। -आरय कषा-छठिीं ‘एफ़’ भारत की िान नतरंगा, भारत माँ की जान नतरंगा। दिरम का पाठ पढ़ाता, जग मं अपना मान बढ़ाता। जन-जन की प चान नतरंगा, भारत की िान नतरंगा। इिमं सलखी ुई िारी, आज़ादी की गाथा ्यारी। रा्रीय ननिान नतरंगा, भारत की िान नतरंगा। रंग ब ुत ी ्यार इिक, राण फड़क उठत दखक। नियुग का आ्िान नतरंगा, भारत की िान नतरंगा। आओ, म इिको फ राएँ, मु्त गगन मं ऊँ चा ल राएँ। छू लगा आिमान नतरंगा, भारत की िान नतरंगा। -रीमयी बब्िाि कषा-सातिीं ‘ए’ नतिंगा
  • 15. मिी माँ तर आँचल मं खुसियाँ भरी , तर ोठं पर मु्कु रा ट खखली । तर ्यार की आ ट ि आज, इि दुननया को छाँि समली । तर ोन की कदर मं, तर माया की खबर मं। तर मुख ि ननकल र ि्द मं, तरी क्र हदखती मं। हदन ो या रात ो, कभी थकती न ीं तू। मार सलए तरी जज़ंदगी कु रबान, ऐिा क कर मम मु्कु रा दती तू। तू तो इि घर की िान , तुझि ी मारी प चान । तर आँखं ि ननकल र आँिू को, मं खुसियं मं बदल डालना । ्यार करत म ब ुत तुझि, इ्ज़त भी तरी करत ं। आज क इि खाि हदन पर म गिव ि तुझ िलाम करत ं। - मालविका कु लक्ी कषा- आठिीं ‘ई’ िायिी का गुलद्ता अज़ा ककया -  जज़ंदगी मं बुरा ि्त न ीं आता, तो अपनं मं छु प ुए गर और गरं मं छु पा ुआ अपना कभी नज़र न ीं आता।  आँिू पंछकर ँिाया मुझ, मरी गलती पर भी िीन ि लगाया मुझ,कि ्यार न ो ऐि दो्त ि जजिकी दो्ती न जीना सिखाया मुझ  र दो्त ि बात करना क्तरत मारी, र दो्त खुि र िरत मारी, कोई मं याद कर ना कर, पर िबको याद करना आदत मारी।  दो्ती िो न ीं ोती जो जान दत ं दो्ती िो न ीं ोती जो मु्कान दत ं अिली दो्ती िो ोती , जो पानी मं ्गरा आँिू भी प चान लत ं।  िो दो्त मरी नज़र मं ब ुत माइन रखत ं, जो ि्त आन पर मर िामन आइन रखत ं। -ििल िाठ ि कषा-सातिीं ‘ए’
  • 16. ‘्ि्छता आंद लन’ इन ‘इ्डडया’ ्ि्छता आंदोलन मार दि मं मार दि क माननीय रधानमंिी री नरंर मोदी जी न ्ि्छ भारत असभयान क प मं रारंभ ककया। य एक बहढ़या विचार । इिि ह ंदु्तान और ह ंदु्ताननयं की भलाई ोगी। य आंदोलन आग चलकर पूर दिभर की िम्या को िमा्त कर दगा। २ अ्तूबर २०१४ को रधानमंिी जी न इि असभयान का िुभारंभ ककया। म ा्मा गाँधी का य एक िपना था कक िब भारतिािी ्ि्छता क बार मं िीखं और उि पर अमल करं। यहद म िभी अपन आि-पाि की जग िा्-िुथरा रख तो बीमाररयाँ फलनी बंद ो जायगी। ्ि्छता को अपनान ि मार पि जो अ्पताल और दिाइयं मं खचव ोत ं, ि बच जायंग।्ि््ता भारत क िभी नागररकं की एक िामाजजक जज़्मदारी । भारत की आ्थवक ज्थनत मं िुधार ोगा। वि्यालयं मं ब्च ि्ाई और ्िा््य क विषय मं िीखत ं।गंदगी, कू ड़ा और कचर ि ोनिाल नुकिान को भी िमझत ं। अत: वि्या्थवयं का य कतव्य कक िो िमाज को इिि अिगत कराय और जाग कता पदा करं। मं गाँिं मं और अ्धक ि चालय का ननमावण करना ोगा। इिमं नगरपासलका और पंचायत की वििष भूसमका ोनी चाह ए।भारत की ्ि््ता की य कोसिि मानि िृंखला बनकर और बढ़गा। अखबार, दूरदिवन और रड़डयो पर रिारणं और चचावओं ि लोगं की जानकारी बढ़गी और कु छ िषं क बाद ह ंदु्तान वि्ि क अ्य दिं की तर एकदम बहढ़या और िुंदर ो जाएगा। ‘जय भाित, जय ्ि््ता’ -साह ल सिाि कषा-सातिीं ‘डी’
  • 17. घड़ा मिा नाम मुझमं िब भरत ं पानी, मरा रंग लाली-लाली । मुझि ी पानी पीकर लोग बुझात ं अपनी ्याि। अलग-अलग तरीक ि मुझ बनात ं, उि कु ् ार क त । विनयाषिा िालमस्टी कषा- तृतीय ‘एफ’ ज्महदन अग्त ्यार मर सलए ब ुत ्यारा, ब ुत खुि र ता , मरा पररिार िारा ; ्यंकक उि हदन ज्महदन मरा । इि हदन क बार मं िोचती र ती ूँ, िालभर मुझ ्या तो्ा समलगा; क न प ल मुबारक बाद दगा । बाबा और माँ ि पूछती र ती ूँ, ब ुत िार ििाल, य ी कक कि मनाओग आपकी बटी का ज्महदन इि िाल । मह मा कषा- तृतीय ‘बी’ मीठी ब ली बोलो-बोलो िब समलकर बोलो, ओंठ ि बोलो मीठी बातं । म िबि मीठ बोल तो ी, िब मि मीठ बोलंग । ाथ मं ाथ िाथ-िाथ चलं, रबना लड़त, रबना झगड़त, ओंठ ि बोलो मीठी बातं । रीन बििदी कषा- तृतीय ‘एफ’
  • 18. मल मं रम् वपछल िाल िदी क म िम मं मं अपन वपताजी, माताजी और दीदी क िाथ मला घूमन गई थी ।मल क मदान मं ब ुत िार दुकान थ और र दुकान पर ब ुत लोगं की भीड़ थी। कोई िामान खरीद र ा था, कोई खाना खा र थ और ब्च खल र थ । कु छ उछलत ुए ब्च झूला झूल र थ । मनं अपनी दीदी क िाथ झूला झूलन का आन्द उठाया ।मल मं घूमत िमय मरी नज़र खखल नं की एक दुकान पर पड़ी । मरी अनुरोध ि वपताजी न उि दुकान ि मुझ एक ्यारी-िी गुड़ड़या खरीदकर दी । अचानक मंन दखा कक एक गरीब ब्ची मर पाि आकर भीख माँगन लगी । मुझ तभी याद आया कक मल मं आत िमय माँ न मुझ एक चॉकलट दी । रबना िोच उि चॉकलट को उि गरीब ब्ची को द दी। चॉकलट समलत ी ि ब्ची खुिी ि उछलन लगी और चॉकलट खाना िु कर हदया । उिक च र पर मुिकरा ट दखकर मुझ भी ब ुत खुिी समली । इिक बाद म मल मं घूमं, ब ुत-िारी मनपिंद िामान खरीदा । िाँझ ढलत ी घर ल ट, मगर उि गरीब ब्ची क च र पर ि खुिी मुझ मिा याद र गा । रीपू्ाा वि्िास कषा- ्वितीय ‘सी’
  • 19. स च का फका एक ि र मं एक धनी ्यज्त र ता था ।उिक पाि ब ुत पिा था और उि इि बात पर ब ुत घमंड़ भी था । एक बार ककिी कारण ि उिकी आँखं मं इंफ्िन ो गया।आँखं मं बुरी तर जलन ोती थी। ि डॉ्टर क पाि गया लककन उिकी इि बीमारी का इलाज न ीं कर पाया । िठ क पाि ब ुत पिा था, उिन दि-विदि ि नीम- कीम और डॉ्टर बुलाए । एक बड़ डॉ्टर न बताया कक उिक आँखं का इलाज । िठ को कु छ हदन तक सि्व रा रंग ी दखना ोगा। अगर कोई और रंग दखगा तो उिकी आँखं को परिानी ोगी । अब ्या था, िठ न बड़-बड़ पंटरं को बुलाया और पूर म ल को र रंग ि रंगन क सलए क ा ।उिन बोला मुझ र रंग क अलािा कोई और रंग हदखाई न ीं दनी चाह ए। मं ज ाँ ि भी गुज़ ँ ि ाँ र जग रा रंग कर दो। ि ीं ि र मं एक ि्जन पु ष गुज़र र थ और चारं तर् रा रंग दखकर लोगं ि कारण पूछा । िारी बात िुनकर ि िठ क पाि गया और बोला, िठजी आपको इतना पि खचव करन की ज़ रत न ीं । मर पािआपकी परिानी का एक छोटा-िा ल । आप रा च्मा ्यूँ न ीं खरीद लत, क्र िब कु छ रा ो जाएगा । िठ की आँखं खुली की खुली र गयी। उिक हदमाग मं य िानदार विचार आया ी न ीं। ि बकार मं इतना पिा खचव ककए जा र ा था । तो समिं, जीिन मं मारी िोच और दखन का नज़ररया पर भी ब ुत िारी चीज़ं ननभवर करती । कई बार परिानी का ल ब ुत आिान ोता लककन म परिानी मं फँ ि जात ं । तो इि ी क त ं िोच का फकव । सी.ला्या कषा- तृतीय ‘एफ़’
  • 20. ह ंदी का म तति: कल औि आज ह ंदी मिा ि ी भारतीयं की िान र ी ।रबना ह ंदी क भारतीय िं्कृ नत अधूरी ो जाएगी। ह ंदी की यािा एक िाधारण भाषा ि लकर भारत मं िबि ्यादा बोली जानिाली भाषा बनन तक ब ुत कहठन र ी । जब म लोगं को अंरज़ं ि आज़ादी समली थी,तब मं उनकी ि्यता क िाथ-िाथ अंरज़ी भाषा को भी उनक िाथ भज दना चाह ए था।पर म िबन ऐिा न ीं ककया। मन अंरज़ी को अपना मि्र बनाया और इिसलए ब्चं की पढ़ाई ि लकर अदालत की िुनिाई तक,अंरज़ी का ी रयोग ोता ।य ाँ तक कक छोट- छोट ब्चं को भी उनकी मातृभाषा ि प ल अंरज़ी रटिाया जाता ।इिसलए बड़ ोकर ह ंदी पढ़न मं ब्चं को िमव म िूि ोती और ह ंदी उनपर सि्व एक बोझ बनकर र जाती । अंरज़ी मारी भारतीय िं्कृ नत मं ऐि घुि गयी जि ेकबाब मं ्डीै ो। अगर म इनत ाि को दो राए तो मं य पता चलता कक मार िंविधान को सलखा जा र ा था,तब ह ंदी को रा्रभाषा बनान का र्यन ककया गया था परंतु आंतररक वििादं क कारण य िंभि न ो िका। बि य िमझ लीजजए कक ह ंदी का म ््ि धीर-धीर गायब ोन लगा।लोग य भूल र ं कक विदिं मं भी जब भारत और भारतीय लोगं को याद ककया जाता तो उ् ं ह ंदी ज़ र याद आती । ह ंदी िं्कृ त का ी एक प और कई धासमवक ककताबं को िं्कृ त मं सलखा गया ।पुरान ज़मान मं ह ंदी ब ुत ज़ री भाषा थी। आज़ादी की लड़ाई मं ह ंदी का ी रयोग ककया गया था। आज अंरज़ी म पर इतनी ािी ोत जा र ी कक म अपनी मातृभाषा को भी भूलत जा र ं। म चा जजि भाषा मं पढ़-सलख बि य याद रखना चाह ए कक र भाषा म ््िपूणव ोती । ह ंदी का भी एक म ््ि ोना चाह ए,ह ंदी भी अपनाई जानी चाह ए।्यंकक ेह ंदी म, ितन ह ंदो्तां मारा।ै -सि्ा ज़दी (न िीं ेबीै)
  • 21. रकृ नत ििदान रकृ नत भगिान का िरदान, उिका करो िदुपयोग,मान और ि्मान। िो बढ़ाती धरती की िान, रकृ नत िरदान॥ रकृ नत बनाती पृ्िी को खूबिूरत, पर म बना दत इिको बदिूरत। पड़ न ीं लगाना और जीिन न ीं िँिारना मानि की एक भूल, जो बनाती धरती को असभिाप। रकृ नत िरदान॥ मं अपनी िुंदर रकृ नत को, र तरीक ि बचाना । पड़ लगाओ, जानिर बचाओ, और अपनी तरफ ि धरती को खुि ाल बनाओ। रकृ नत िरदान॥ -म ली अरिाल कषा- न िीं ‘डी’ मािी िा्रीय भाषा-ह ंदी राजभाषा का मिा मान ोनाचाह ए। ह ंदी का उ्चत ि्मान ोना चाह ए॥ िं्कृ नत ि पदा ुई य ह ंदी। इिकी रिंिा भी करत थ गांधी॥ उ्तर ि लकर दषषण तक, पूरब ि लकर पज्चम तक । बोलत िब इिको बधड़क॥ म ाभारत, रामायण जि लोककथाओं को मन ह ंदी मं ी पढ़ ं॥ आज प राखणक कथाएँ अंरज़ी मं तो आ गए ं। परंतु ह ंदी पढ़न का मज़ा ी कु छ और ॥ ह ंदी हदिि र िाल मनाया जाता । इि म ान भाषा को िीखन को रररत ककया जाता ॥ म ि्मान दंग ह ंदी भाषा को। न ीं मरन दंग इि असभलाषा को॥ -अ्नया िी. कषा- दसिीं ‘सी’
  • 22. ि्दं मं बड़ी ताकत एक ब ुत ताकतिर बल नंदू अपन मासलक क िाथ एक छोट ि गाँि मं र ता था।उिका मासलक ब ुत गरीब था। नंदू अपन मासलक को धन कमान मं कु छ मदद करना चा ता था इिसलए उिन अपन मासलक को िुझाि हदया कक आप एक ज़ार िोन क सि्को की ितव लगाइए और मं आपको ि भरी ुई गाड़ड़याँ खींचकर हदखाऊँ गा। मासलक मान गए। रनतयो्गता क हदन नंदू अपनी पूरी ताकत ि गाड़ड़यं को खींचन लगा। आ !आ ! पर उिका मासलक ्चकलाया बिकू ्!तूझम ्या ताकत न ीं ?और ज़ोर ि खींच। मासलक क ि्दं ि दुखी और अपमाननत ोकर उिन खींचना ी बंद कर हदया जजिि उिका मासलक ितव ार गया और ब ुत ननराि ुआ। इि बात ि नंदू भी दुखी था।नंदू अपन मासलक क पाि गया और अपन मासलक ि क ा मासलक मंन मिा आपकी ििा की कफर भी आपन मुझ बिकू ् क ा इिसलए मंन आपको रा हदया। यहद आपको िा्ति मं पछतािा तो मं आपको दुगुन पि जीत कर हदखाऊँ गा। इि बार दो ज़ार िोन क सि्कं की ितव लगाइए और मं आपको ारन न ीं दूँगा। एक बार कफर रनतयो्गता क हदन नंदू अपनी पूरी कोसिि करन लगा। इि बार मासलक न उिका उ्िा बढ़ात ुए क ा खींचो नंदू, तुम कर िकत ो, मुझ वि्िाि तुम अि्य जजतोग। मासलक का ऐिा वि्िाि दखकर नंदू खुि ो गया और ि ब ुत उ्िाह त ुआ।नंदू न पूरी ताकत लगाई और उिन िभी गाड़ड़यं को खींच सलया जजिि मासलक ितव जीत गए और ब ुत खुि ुए। इि बात ि मासलक न एक िीख ली- उतसा िधाक ि्दं का म तति। टीया कषा-पाँचिीं ‘बी’
  • 23. ँसना मना ………………………. ्कीर- आपक पड़ोिी न मुझ भरपट खाना खखलाया ।िर,आप ्या दान करंग? पड़ोिी- ाजमोला।……………… एक िंगीतकार कबाड़ी ि- इि टूट ुए ्गटार का ककतना पिा दोग? कबाड़ी- अर भाई! पड़ोिी तो इिको न ीं बजान का दो ि दन को तयार । एक ब्चा दूिर ि-्या तुम चीनी भाषा पढ़ िकत ो? दूिरा ब्चा- ाँ ज़ र, अगर िो ह ंदी या अंरज़ी मं सलखा ो। एक छाि न िर ि पूछा- िार िर ह ंदी या अंरज़ी मं बात करत ं। लककन आप गखणत मं ्यं न ीं करत? अ्यापक न वि ाग ि क ा- जो काम तुमन न ीं ककया उिकी िज़ा तु् ं न ीं समलगी। वि ाग- ध्यिाद िर, आज मंन गृ कायव न ीं ककया। डॉ्टर मरीज़ ि- आपक एक िाथ तीन दाँत कि टूट गय? मरीज़-कड़क रोटी खान ि। डॉ्टर- आप अपनी प्नी को मना कर िकत थ। मरीज़- ि ी तो ककया था, उिी िज ि तो टूट ं। -वि ाग चतुिेदी
  • 24. कषा- पाँचिीं ‘बी’ वि्यालय ाथं मं कलम पकड़ कर, पीठ पर बग सलए। जात म वि्यालय॥ अ,आ,इ,ई, A,B,C,D ोमिकव करक, आत म वि्यालय॥ िाइंि,म्ि,िोिल,ह ंदी,अंरज़ी पाँच ि्ज््ि इन टोटल, इ् ीं पाँच को िीखन, जात म वि्यालय॥ दो्त,समि और िखखयाँ आ ा उ् ं समलन क सलए, जात म वि्यालय अपनी जज़ंदगी बनान क सलए, म ज-म्ती और पढ़ाई करन क सलए आत म वि्यालय॥ िद ी धकात कषा-न िीं ‘बी’ मािा ्कू ल य िुंदर ्कू ल मारा, य मको राणं ि ्यारा। िुंदर भिन बड़ा , माधापुर मं अटल खड़ा । रिि ्िार इिका िुंदर, खुला मदान इिक अंदर। सिषा मं िबि आग, य िुंदर ्कू ल मारा। ेमररड़डयनै इिका नाम, िब ्कू लं ि य म ान॥ ल ह ताष कषा-आठिीं ‘बी’
  • 25. मंन ब ुत कु छ दखा मंन ब ुत कु छ दखा ,पर मं कु छ न ीं कर पाया, जब लोग एक दूिर को धोखा दत ं, जब एक आदमी पूर ज ां को दुख दता , जब लोगं को पीन का पानी न ीं समलता । म िभी को य गलत तो लगता , पर य ्यं ोता य तो िोचो, ्या य िार सि्व ालत की िज़ ि ? या कफर कु छ और भी कारण कई इन बुराई क? ालात इंिानं को बदल दता , य तो ठीक , पर इन ालातं क कारण क बार मं िोचो, ्या ि म ी न ीं ? िामाजजक बुराइयं को म ी न धरती पर लाया, पर इिि मन ्या पाया, ्या ्ायदा? भद-भाि जि भािनाओं क िाथ मन य ्या कर डाला? लाखं लोगं की जज़ंदगी मन छीना। तो बुरा करन की िज भी म िब , ्या मन य न ीं िोचा? तो इि िुधारन की जज़्मदारी भी मारी, ्या आपको य न ीं लगता? ाँ, मंन ब ुत कु छ दखा , पर मं कु छ न ीं कर पाया। पर अगर म िाथ खड़ र , समलकर म एक बदलाि ला िकत ना? अलभषक दिबा कषा- दसिीं ‘ए’
  • 26. पूि ह ंदी विभाग की ओि स म आभाि रकट किना चा ंग मािी रधानाचायाा म दया रीमती लललता नायडू जी का ्ज् ंन इस ‘ई-पबिका’ क रकािन क ललए मं र तसाह त ककया। साथ ी साथ म ध्यिाद दना चा ंग माि रधाना्यावपका रीमती ि भा दलिाका औि ग िी सिकाि जी का ्ज् ंन इस काया मं पू्ा स य ग हदया औि मािा मागा रि्त ककया। मािा वििष ध्यिाद रीमती पूजा कपूि जी क , ्ज् ंन अपनी तकनीकी य ्यता क ्िािा इस ‘ई- पबिका’क रकािन क संभि बनान मं म ततिपू्ा य गदान हदया। म आभािी माि सभी क ऑडडानटसा का ज मं समय-समय पि अपना स य ग दत ि त ं। म बधाई दना चा ंग कषा सातिीं स आिीज़ औि कषा न िीं स दीवपका गु्ता क ्ज् ंन मु्य पृ्ठ का डडज़ाइन तयाि ककया औि कषा न िीं की सु ानी माथुि क ्जसन अंनतम पृ्ठ की डडज़ाइन मं अपना य गदान हदया। साथ ी साथ उन तमाम वि्या्थायं क भी बधाई दना चा त ं ्ज् ंन अपनी लखनी क ्िािा इस ‘ई-पबिका’ मं अपना य गदान हदया। ह ंदी विभाग
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  • 33. “Language is the blood of the soul into which thoughts run and out of which they grow.” Language bridges the barrier between persons/people. It lays the road map to a culture, allows a person to express his/her thoughts in various forms. Hindi language is one such Indian language where it has gained international prominence. Whichever country you visit people connect India to Hindi. Though not well versed in the language, in my years at Meridian. I enriched my nascent knowledge in Hindi and today I am able to understand and speak a few sentences. Kudos to our Hindi teachers who motivated me to upgrade my speaking skill. I appreciate the Hindi department of our school for taking this initiative to release this e-magazine in connection with Hindi Diwas. Wishing them all the best and continue this task. Jai Hind, Jai Hindi. Shobha Dasika