भारत के विकास के लिये सरकार पिछले कुछ दशकों से बड़ी ढांचागत परियोजनाओं की आवश्यकता पर अधिक ज़ोर देर रही है, तथा इसको भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर से जोड़ कर देख रही है। इन बड़ी ढांचागत परियोजनाओं में बिजली, बड़ी सड़कें तथा खनन जैसी परियोजनाए प्रमुख रूप से शामिल हैं। भारत में भारी संख्या में बिजली परियोजनाऐं आ रही हैं जिनमें मुख्य रूप से कोयला आधारित बिजली परियोजनायें, बड़ी परमाणु बिजली परियोजनायें, पार्क तथा हाइड्रो बिजली परियोजनाऐं शामिल हैं। उसमें भी कोयला बिजली परियोजनाओं का एक बड़ा हिस्सा है। इन परियोजनाओं के आने के साथ-साथ ऊर्जा से बिजली बनाने वाले संयंत्र भी तेज़ी से बढ़ रहे हैं। हर घर तक बिजली पहुंचाने के नाम पर बिजली उत्पादकता बढ़ाने के लिये पर्यावरण और वन मंत्रालयों द्वारा वर्ष 2005 के बाद से कोयला बिजली परियोजनाओं को आंख बंद करके मंज़ूरी दिया जा रहा है। जिन परियोजनाओं को मंज़ूरी दी, उनके बिजली उत्पादन की क्षमता योजना आयोग के वर्ष 2006 की एकीकृत ऊर्जा नीति में 2032 तक के लिये अनुमानित बिजली की आवश्यकता से काफी अधिक है। भारत में आज भी लगभग 40 करोड़ लोगों के लिये बिजली एक सपना बन कर रह गई है। ये वही 40 करोड़ लोग हैं जो इन भारी प्रभावकारी ऊर्जा परियोजनाओं के आने से विस्थापित होंगे, जिनकी अजिविका और प्राकृतिक संसाधनां पर निर्भरता का छिनी जायेगी तथा बदले मे उन्हे अस्थमा तथा टीबी जैसी कई बीमारियां मिलेंगीं। ये बड़ी परियोजनायें बड़े पैमाने पर पर्यावरण को हानि पहुंचायेंगीं तथा सैंकडां नदियां और कई किलोमीटर तक समुद्री तटों को प्रदुषित करेगी। यह प्रारंभिक पुस्तिका मुख्य रूप से कोयले, कोयले पर आधारित परियोजनाऐं, उससे संबंधित क्षेत्रों जैसे ज़मीन, जंगल और वित्तीय संस्थाओं के बारे में एक आधारभूत जानकारी प्र्रदान करती है। इसका प्रथम भाग भारत में कोयले पर आधारित परियोजनाओं के परिदृश्य के बारे में बताता है। दूसरा भाग ऊर्जा कहां से मिलती है, उसके कौन - कौन से स्त्रोत हैं, हम दैनिक जीवन मे कितनी प्रकार की ऊर्जा लेते है और भविष्य मे कितनी ऊर्जा की आवश्यकता है तथा किन- किन स्त्रोत से हम ऊर्जा ले सकते है, आदि के बारे मे बताता है। तीसरा भाग कोयले के उपयोग और उसके क्या-क्या असर हो सकते है पर ज़ोर देता है। चौथा भाग कोयले पर आधारित परियोजनाओ को वित्तीय सहायता और वित्तीय सहायता देने वाली संस्थाओं के बारे मे सक्षिप्त जानकारी देता है। पांचवा भाग ज़मीन की लूट के इतिहास व वर्तमान मे इस लूट को सुनिश्चित करने वाले सरकारी हथकंडो के बारे में चर्चा करता है। हम आशा करते हैं कि यह पुस्तिका जमीनी स्तर पर संघर्षशील राजनैतिक कार्यकर्ताओं हेतु उपयोगी साबित होगी। इस पुस्तिका में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देने वाले सभी साथियां के हम आभारी हैं। The Centre for Financial Accountability aims to strengthen and improve financial accountability within India by engaging in critical analysis, monitoring and critique of the role of financial institutions – national and international, and their impact on development, human rights and the environment, amongst other areas. For more information visit http://www.cenfa.org Get in touch with us at info@cenfa.org We also publish Finance Matters, a weekly newsletter on the development finance. The archive can be accessed at http://www.cenfa.org/newsletter-archive/ To subscribe, email us at newsletter@cenfa.org