1. आ वश्यक निवेदि
प्रस्तुत आध्ययि स मग्री, त लिक एँ एवं लित्र आ दद
श्रीमती स रिक ववक स छ बड़ द्व ि तैय ि वकये गए
हैं |
इिक आन्यत्र एवं आन्य भ ष में उपय ेग कििे के
पूवव उिसे आनिव यवत: संपकव कि िें |
2. क य म गवण
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3. ग थ 1 : मंगि ििण
• ज े ससद्ध, शुद्ध एवं आकिंक हैं एवं
• जजिके सद गुणरूपी ित ें के भूषण ें क उदय िहत है,
• एेसे श्री जजिेन्रवि िेलमिंर स्व मी क े िमस्क ि किके
• जीव की प्ररूपण क े कहंग ।
ससद्धं सुद्धं पणलमय जजणणंदविणेलमिंदमकिंकं ।
गुणियणभूसणुदयं जीवस्स परूवणं व ेच्छं॥
4. ज ईआववण भ वी, तसथ विउदयज े हवे क आ े।
स े जजणमदम्हह भणणआ े, पुढवीक य ददछब्भेय े॥181॥
•आथव - ज नत ि मकमव के आववि भ वी
•त्रस आ ैि स्थ वि ि मकमव के उदय से ह ेिे
व िी
•आ त्म की पय वय क े जजिमत में क य कहते हैं।
•इसके छह भेद हैं - पृलथवी, जि, आग्नि, व यु,
विस्पनत आ ैि त्रस ॥181॥
6. पुढवी आ ऊ तेऊ, व ऊ कहम ेदयेण तत्थेव।
णणयवण्णिउक्कजुद े, त णं देह े हवे णणयम ॥182॥
•आथव - पृलथवी, आप्-जि, तेज-आग्नि, व यु
इिक शिीि नियम से आपिे-आपिे पृलथवी
आ दद ि मकमव के उदय से, आपिे-आपिे
य ेग्य रूप, िस, गन्ध, स्पशव से युक्त पृलथवी
आ ददक में बित है ॥182॥
7. ववशेष
•स्थ वि ि मकमव की भेदरूप पृथ्वी, जि, आम्ग्ि, व यु
कमव के उदय से पृथ्वी, जि आ दद शिीि बित है ।
•ये पृथ्वी, जि आ दद के शिीि, स्पशव, िस, गंध, वणव
व िे ह ेते हैं ।
•इि शिीि ें में िहिे व िे जीव पृथ्वीक ग्नयक, जिक ग्नयक
आ दद कहि ते हैं ।
•आथ वत् पृथ्वी है शिीि जजिक , वे पृथ्वीक ग्नयक हैं ।
8. पृथ्वी के भेद
•पृथ्वी स म न्यपृथ्वी
• पृथ्वी ि मकमव के उदय से सहहत ववग्रह गनत क
जीव ज े आभी पृथ्वी शिीि ध िण किेग (जीव म त्र)पृथ्वीजीव
• पृथ्वीरूप शिीि के सहबन्ध से सहहत जीव (जीव +
शिीि)पृथ्वीक ग्नयक
• जजसमे से जीव निकि गय है एेस पृथ्वी शिीि
(शिीि म त्र)पृथ्वीक य
ि ेट : एेसे ही सवव छह क य ें में भेद
समझि ।
9. ब दिसुहुमुदयेण य, ब दिसुहुम हवंनत तद्देह ।
घ दसिीिं थूिं, आघ ददेहं हवे सुहुमं॥183॥
•आथव – पृम्थ्वक ग्नयक आ दद जीव, ब दि ि मकमव के
उदय से ब दि आ ैि सूक्ष्म ि मकमव के उदय से सूक्ष्म
ह ेते हैं।
•ज े शिीि दूसिे क े ि ेकिे व ि ह े आथव ज े स्वयं
दूसिे से रुके उसक े ब दि (स्थूि) शिीि कहते हैं। आ ैि
•ज े दूसिे क े ि त े ि ेके आ ैि ि स्वयं दूसिे से रुके
उसक े सूक्ष्म शिीि कहते हैं ॥183॥
10. जीव
के
प्रक ि
ब दि
ब दि ि मकमव के उदय से
उत्पन्ि
आन्य पद थव से रूके आ ैि
आन्य पद थव क े ि ेके
एेसे शिीि के ध िक जीव
सूक्ष्म
सूक्ष्म ि मकमव के उदय से
उत्पन्ि
आन्य पद थव से ि रूके
आन्य पद थव क े ि ि ेके
एेसे शिीि के ध िक जीव
11. तद्देहमंगुिस्स, आसंखभ गस्स ववंदम णं तु।
आ ध िे थूि आ े, सव्वत्थ णणिंति सुहुम ॥184॥
•आथव - ब दि आ ैि सूक्ष्म द ेि ें ही तिह के शिीि ें की
आवग हि क प्रम ण घि ंगुि के आसंख्य तवें भ ग
प्रम ण है।
•इिमें से स्थूि शिीि आ ध ि की आपेक्ष िखत है वकन्तु
सूक्ष्म शिीि, वबि आन्ति (व्यवध ि) के ही सब जगह
आिंत िन्त भिे हुए हैं। उिक े आ ध ि की आपेक्ष िहीं
िह किती ॥184॥
12. पृम्थ्वक ग्नयक आ दद की आवग हि
•इि पृम्थ्वक ग्नयक आ दद ि ि ें क य ें की आवग हि
घि ंगुि
आसं
है ।
•जघन्य भी
घ
आसं
है । आ ैि उत्कृ ष्ट भी
घ
आसं
है ।
•पिन्तु जघन्य से उत्कृ ष्ट आसंख्य त गुणी है ।
13. ववशेष
• ज े आन्य पुद᳭गि ें के आ श्रय-सहहत है, वह ब दि क य है । ज े
वबि वकसी आन्य पुद᳭गि के आ श्रय-सहहत हैं, सववत्र ि ेक में हैं,
वे सूक्ष्म क य हैं ।
• यद्यवप ब दि की आवग हि से सूक्ष्म की आवग हि आधधक ह े
सकती है, तथ वप सूक्ष्मरूप से परिणत स्कन्ध आघ तरूप हैं, आन्य
से ि ेके िहीं ज ते । इसलिये सूक्ष्म ही कहि ते हैं ।
• ऋणद्धध िी मुनि, देव आ दद क शिीि ब दि ही है । तप के
आनतशय के प्रभ व से वज्र में से निकि ज ि आ दद क यव देखे
ज ते हैं ।
15. उदये दु वणप्फददकहमस्स य जीव वणप्फदी ह ेंनत।
पत्तेयं स मण्णं, पददट्ठिदददिे त्तत्त पत्तेयम्॥185॥
•आथव - स्थ वि ि मकमव क आव न्ति ववशेष भेद ज े
विस्पनत ि मकमव है उसके उदय से जीव विस्पनत
ह ेते हैं।
•उिके द े भेद हैं - एक प्रत्येक दूसि स ध िण।
•प्रत्येक के भी द े भेद हैं, प्रनतधित आ ैि आप्रनतधित
॥185॥
16. विस्पनत ि मकमव के उदय से ज े जीव की
पय वय ह ेती है, उसे विस्पनतक ग्नयक कहते हैं ।
विस्पनतक ग्नयक
स ध िण (एक शिीि
के आिंत स्व मी)
प्रत्येक (एक शिीि एक स्व मी)
प्रनतधित
जजस प्रत्येक शिीि के आ श्रय
से निग ेददय जीव िहें
आप्रनतधित
जजस प्रत्येक शिीि के आ श्रय
से निग ेददय जीव िहीं िहते
17. मूिग्गप ेिबीज , कं द तह खंदबीज बीजरुह ।
सहमुम्च्छम य भणणय , पत्तेय णंतक य य॥186॥
•आथव - जजि विस्पनतय ें क बीज मूि, आग्र,
पवव, कन्द य स्कन्ध है; आथव
•ज े बीज से उत्पन्न ह ेती हैं; आथव
•ज े सहमूच्छवि हैं –
•वे सभी विस्पनतय ँ सप्रनतधित तथ आप्रनतधित
द ेि ें प्रक ि की ह ेती हैं ॥186॥
18. उत्पत्तत्त क
क िण
जैसे—
1 मूि Root आदिक, हल्दी
2 आग्र Front गुि ब
3 पवव Knot ईख, बेंत
4 कन्द
Underground
stem
वपंड़ िू
5 स्कन्ध Stock पि श, ढ क
6 सहमूछवि घ स
7 बीज Seed गेह, ध ि
ि ेट—ये सभी प्रनतधित
व आप्रनतधित द ेि ें
प्रक ि की ह ेती हैं ।
ये स िी प्रत्येक
विस्पनत हैं ।
विस्पनत
के प्रक ि
(उत्पत्तत्त
की
आपेक्ष )
19. सहमूछवि भेद व िी विस्पनत
•विस्पनत क सहमूछवि ि म क भेद रूहढ से
सहमूछवि है, जन्म के क िण िहीं ।
•जन्म-भेद की आपेक्ष सभी प्रक ि की
विस्पनत सहमूछवि ही है ।
20. गूढससिसंधधपव्वं, समभंगमहीरुहं ि णछण्णरुहं।
स ह िणं सिीिं, तहव्वविीयं ि पत्तेयं॥187॥
• आथव - जजिकी शशि —बहह: स्न यु, सन्न्ध—िेख बन्ध, आ ैि पवव—ग ँठ
आप्रकट ह ें, आ ैि
• जजसक भंग कििे पि सम ि भंग ह े, आ ैि
• द ेि ें भंग ें में पिस्पि हीरुक—आन्तगवत सूत्र—तन्तु ि िग िहे तथ
• छेदि कििे पि भी जजसकी पुि: वृणद्ध ह े ज य, उिक े सप्रनतधित
प्रत्येक विस्पनत कहते हैं। आ ैि
• ज े ववपिीत हैं, इि लिह ें से िहहत हैं वे सब आप्रनतधित प्रत्येक
विस्पनत कही गयी हैं ॥187॥
21. शशि , संधध आ दद के आथव
गूढ
ब ह्य
में
ददखे
िहीं
शशि
िंबी
िकीि सी
ककड़ी
संधध
बीि में
जुड़ हुआ
ि िंगी
पवव
ग ठ, प ेि,
गठ ि
गन्न ,
बेंत
तन्तु
सूत जैस
तन्तु ह े
िीकू में,
पीपि क
पत्त
24. सप्रनतधित विस्पनत की पहि ि
•जजसे त ेड़िे पि तंतु ि िग िहेतन्तु
• जजसक े त ेड़िे पि समभंग ह े, सम ि बि बि
टूटे जैसे वक ि कू से सुध ि ह े
• पतिी ग्नगिकी, ककड़ी
समभंग
• जजसे क टिे पि पुि: उग ज त है
• आ िू
णछन्नरुह
25. सप्रनतधित विस्पनत की पहि ि
•सप्रनतधित क े उपि ि से स ध िण
कह है ।
•व स्तववक स ध िण जीव त े हम िे ज्ञ ि
क ववषय भी िहीं बि प ते ।
26. आप्रनतधित प्रत्येक
पूव ेवक्त से ववपिीत िक्षण व िी
आथ वत् जजिके शशि , संधध, पवव आ दद प्रगट ह ें,
त ेड़िे पि तंतु आ दद िग िहे आ ैि
समभंग ि ह े एेसी विस्पनत आप्रनतधित प्रत्येक
विस्पनत है
27. मूिे कं दे छल्ली, पव ि स िदिकु सुम फिबीजे।
समभंगे सदद णंत , आसमे सदद ह ेंनत पत्तेय ॥188॥
•आथव - जजि विस्पनतय ें के मूि, कन्द, त्वि , प्रव ि—
िवीि क ेंपि आथव आंकु ि, क्षुरश ख —टहिी, पत्र, फू ि,
फि तथ बीज ें क े त ेड़िे से सम ि भंग ह े, वबि ही
हीरुक (तंतु) के भंग ह े ज य, उसक े सप्रनतधित प्रत्येक
विस्पनत कहते हैं आ ैि
•जजिक भंग सम ि ि ह े उिक े आप्रनतधित प्रत्येक
विस्पनत कहते हैं ॥188॥
28. Parts of tree
•जड़ (Roots)मूि
•(Bulb)कन्द
•छ ि वल्क (Bark)छल्िी
•क ेपि, आंकु ि (Sprout, Seedling)प्रव ि
•छ ेटी श ख (ड़ ि / टहिी) (Twig)श ि
29. •बड़ी श ख (ड़ ि / टहिी) (Branch)श ख
•पत्ते (Leaves, foliage)दि
•फू ि (Flower)कु सुम
•(Fruit)फि
•जजससे पुि: उत्पत्तत्त ह ेती है । (Seeds)बीज
इि सबके समभंग ह ें, त े प्रनतधित प्रत्येक हैं । यदद समभंग ि ह ें, त े आप्रनतधित
प्रत्येक हैं ।
Parts of tree
30. कं दस्स व मूिस्स व, स ि खंदस्स व वव बहुितिी।
छल्ली स णंतजजय , पत्तेयजजय तु तणुकदिी॥189॥
•आथव - जजस विस्पनत के कन्द, मूि, क्षुरश ख
य स्कन्ध की छ ि म ेटी ह े उसक े आिंतजीव-
सप्रनतधित प्रत्येक कहते हैं आ ैि
•जजसकी छ ि पतिी ह े उसक े आप्रनतधित
प्रत्येक विस्पनत कहते हैं ॥189॥
32. बीजे ज ेणीभूदे, जीव े िंकमदद स े व आण्ण े व ।
जे वव य मूि दीय , ते पत्तेय पढमद ए॥190॥
•आथव - मूि आ दद विस्पनतय ें की उत्पत्तत्त क
आ ध िभूत पुद्गि स्कन्ध य ेनिभूत - जजसमें जीव
उत्पत्तत्त की शलक्त ह े, उसमें जि य क ि दद के
निलमत्त से वही जीव आथव आन्य जीव भी आ कि
उत्पन्न ह े सकत है। ज े मूि दद प्रनतधित विस्पनतय ँ
हैं, वे भी उत्पत्तत्त के आंतमुवहतव तक आप्रनतधित ही
ह ेती हैं॥190॥
33. •जीव उत्पन्ि ह ेिे क आ ध िभूत
पुद᳭गि स्कं धय ेनि
•जब तक य ेनि में जीव उपजिे की शलक्त
है, तब तक वह स्कं ध य ेनिभूत है ।य ेनिभूत
• मूि आ दद बीज के य ेनिभूत ह ेिे पि
• जि य क ि आ दद क निलमत्त लमििे पि
• उस बीज में वही जीव आथव आन्य जीव उत्पन्ि ह ेत
है ।
34. प्रत्येक विस्पनत के नियम
•स िी प्रत्येक विस्पनत प्र िंभ के आंतमुवहतव में
आप्रनतधित ही ह ेती है ।
•पश्ि त् निग ेद जीव द्व ि आ श्रय िेिे पि
सप्रनतधित ह े ज ती है ।
•वह पुिः आप्रनतधित भी बि सकती है ।
35. स ह िण ेदयेण णणग ेदसिीि हवंनत स मण्ण ।
ते पुण दुववह जीव , ब दि सुहुम त्तत्त ववण्णेय ॥191॥
•आथव - जजि जीव ें क शिीि स ध िण
ि मकमव के उदय के क िण निग ेदरूप ह ेत
है उन्हीं क े स म न्य य स ध िण कहते हैं।
•इिके द े भेद हैं - ब दि एवं सूक्ष्म ॥191॥
36. स ध िण ि मकमव के उदय से निग ेद शिीि के ध िक
स ध िण जीव ह ेते हैं ।
निग ेददय के
प्रक ि
ब दि सूक्ष्म
37. स ह िणम ह ि े, स ह िणम णप णगहणं ि।
स ह िणजीव णं, स ह िणिक्खणं भणणयं॥192॥
•आथव - इि स ध िण जीव ें क स ध िण आथ वत्
सम ि ही त े आ ह ि ह ेत है आ ैि स ध िण—
सम ि आथ वत् एक स थ ही श्व स ेच््वस क
ग्रहण ह ेत है। इस तिह से स ध िण जीव ें क
िक्षण पिम गम में स ध िण ही बत य है
॥192॥
38. निग ेद
आिन्तपि है निश्चित जजिक , एेसे जीव ें क ेनि =
एक ही क्षेत्रग े =
देत हैद=
आथ वत् ज े आिन्त जीव ें क े एक ही आ व स दे
उसक े निग ेद कहते हैं
39. स ध िण क्य ?
• स ध िण — ज े क यव एक स थ ह ेते हैं आ ैि सम ि ह ेते हैं ।
• जजिकी आ ह ि दद 4 पय वम्प्त आ ैि उिक क यव स ध िण है, उन्हें
स ध िण जीव कहते हैं ।
• आिन्त जीव ें क आ ह िग्रहण, शिीि बिि , इम्न्रय बिि ,
श्व स ेच्छ᳭ व स ह ेि — ये सभी जीव ें क एक स थ प य ज त
है ।
• आिन्त जीव ें की एकस थ पय वम्प्त प्र िंभ ह ेती है । पूिी भी
सबकी एक स थ ह ेती है ।
40. जत्थेक्क मिइ जीव े, तत्थ दु मिणं हवे आणंत णं।
वक्कमइ जत्थ एक्क े, वक्कमणं तत्थ णंत णं॥193॥
•आथव - स ध िण जीव ें में जह ँ पि एक जीव
मिण कित है वह ँ पि आिंत जीव ें क मिण
ह ेत है आ ैि
•जह ँ पि एक जीव उत्पन्न ह ेत है वह ँ आिंत
जीव ें क उत्प द ह ेत है ॥193॥
41. स ध िण जीव ें से सहबंधधत ववशेष ब तें
• जब एक जीव मित है, उसके स थ सम ि आ युन्स्थनत के आिन्त िन्त जीव मिते
हैं ।
• जब एक जीव उत्पन्ि ह ेत है, त े उसके स थ आिन्त िन्त जीव उत्पन्ि ह ेते हैं ।
• एेसे जन्म आ ैि मिण भी निग ेददय जीव के स ध िण ह ेते हैं ।
• ब दि निग ेद शिीि में ब दि निग ेददय जीव ही आ ते हैं ।
• सूक्ष्म निग ेद शिीि में सूक्ष्म निग ेददय जीव ही आ ते हैं ।
• पय वप्त निग ेद शिीि में पय वप्त निग ेददय जीव ही आ ते हैं ।
• आपय वप्त निग ेद शिीि में आपय वप्त निग ेददय जीव ही आ ते हैं ।
• क्य ेंवक सम ि कम ेों के उदय हैं ।
42. एक शिीि में उत्पत्तत्त क ववध ि
1 समय
2 समय
3 समय
4 समय
5 समय
6 समय
7 समय
आिंत जीव
आसंख्य त गुण हीि
आसंख्य त गुण हीि
आसंख्य त गुण हीि
आसंख्य त गुण हीि
आसंख्य त गुण हीि
आसंख्य त गुण हीि
आिंत
जीव
आंतमुवहतव
43. प्रत्येक समय आिंत जीव ें की उत्पत्तत्त
उत्पत्तत्त क आंति
नििंति जीव ें की उत्पत्तत्त
जघन्य = 1 समय
उत्पत्तत्त क आंति
नििंति जीव ें की उत्पत्तत्त
आंतमुवहतव तक
एक शिीि में उत्पत्तत्त क ववध ि
उत्कृ ष्ट =
आ विी
आसंख्य त
जघन्य = 1 समय
उत्कृ ष्ट =
आ विी
आसंख्य त
44. खंध आसंखि ेग , आंड़िआ व सपुिववदेह वव।
हेट्ठिल्लज ेणणग आ े, आसंखि ेगेण गुणणदकम ॥194॥
•आथव - स्कन्ध ें क प्रम ण आसंख्य त ि ेकप्रम ण है
आ ैि
•आंड़ि, आ व स, पुिवव तथ देह ये क्रम से उत्ति ेत्ति
आसंख्य त ि ेक-आसंख्य त ि ेक गुणणत हैं, क्य ेंवक वे
सभी आधस्तिय ेनिक हैं - इिमें पूवव-पूवव आ ध ि आ ैि
उत्ति ेत्ति आ धेय हैं ॥194॥
46. पंिग ेिक में निग ेद शिीि
• 1 स्कं ध आथ वत् 1 प्रनतधित जीव क शिीि । जजसकी
आवग हि घि ंगुि/आसंख्य त प्रम ण है ।
स्कं ध:
•१ स्कं ध में आसंख्य त ि ेक प्रम ण आण्ड़िआण्ड़ि:
•१ आण्ड़ि में आसंख्य त ि ेक प्रम ण आ व सआ व स:
•१ आ व स में आसंख्य त ि ेक प्रम ण पुिववपुिवव:
•१ पुिवव में आसंख्य त ि ेक प्रम ण निग ेद शिीिनिग ेद शिीि:
•१ निग ेद शिीि में आिंत निग ेददय जीवजीव:
47. एक स्कं ध के कु ि निग ेददय जीव
• 1 निग ेद शिीि में = आिंत िंत जीव
• 1 पुिवव में = आसंख्य त ि े प्र आिंत िंत जीव
• 1 आ व स में = आसंख्य त ि े प्र (आसंख्य त ि े प्र
आिंत िंत जीव )
• 1 आण्ड़ि में = आसंख्य त ि े प्र (आसंख्य त ि े प्र
आसंख्य त ि े प्र आिंत िंत जीव )
• 1 स्कं ध में = आसंख्य त ि े प्र (आसंख्य त ि े प्र
आसंख्य त ि े प्र आसंख्य त ि े प्र आिंत िंत जीव )
48. उद हिण के लिये म ि - आिंत िंत जीव =100,
आसंख्य त ि े प्र = 2
•1 निग ेद शिीि में = 100
•1 पुिवव में = 2 100= 200
•1 आ व स में = 2 200=400
•1 आण्ड़ि में = 2 400=800
•1 स्कं ध में = 2 800=1600 निग ेददय
जीव
49. जहबूदीवं भिह े, क ेसिस गेदतग्घि इं व ।
खंधंड़िआ व स , पुिववशिीि णण ददठिंत ॥195॥
•आथव - जहबूद्वीप, भितक्षेत्र, क ैशिदेश,
स के त-आय ेध्य िगिी आ ैि स के त
िगिी के घि ये क्रम से स्कन्ध, आंड़ि,
आ व स, पुिवव आ ैि देह के दृष्ट ंत हैं
॥195॥
50. ब दि निग ेददय जीव ें के शिीि के आ ध ि
क स्वरूप
पंि ग ेिक दृष्ट ंत
ि ेक में आसं. ि ेकप्रम ण
स्कन्ध (प्रनतधित
प्रत्येक शिीि)
मध्य ि ेक में
जहबूद्वीप
एक स्कं ध में ,,
ये उत्ति ेत्ति
आसं. ि ेक
गुणणत हैं
आंड़ि
जहबूद्वीप में भित
क्षेत्र दद
एक आंड़ि में ,, आ व स
क्षेत्र दद में क ेशि
देश दद
एक आ व स में ,, पुिवव
देश दद में आय ेध्य
िगिी
एक पुिवव में ,, शिीि िगि में घि
एक शिीि में आिंत िंत जीव घि में जीव
51. एगणणग ेदसिीिे, जीव दव्वप्पम णद े ददठि।
ससद्घेहहं आणंतगुण , सव्वेण ववदीदक िेण॥196॥
•आथव - समस्त ससद्धि शश क आ ैि सहपूणव
आतीत क ि के समय ें क जजति प्रम ण है
रव्य की आपेक्ष से उिसे आिंतगुणे जीव
एक निग ेदशिीि में िहते हैं ॥196॥
52. एक निग ेद शिीि में जीव ें क प्रम ण
रव्य आपेक्ष ससद्ध ें से आिंत गुणे
क ि आपेक्ष आतीत क ि के समय ें से आिंत गुणे
क्षेत्र आपेक्ष
* सवव आ क श प्रदेश के आिंतवें भ ग
* ि ेक क श के प्रदेश ें से आिंत गुणे
भ व आपेक्ष
* के विज्ञ ि के आववभ ग प्रनतच्छेद ें के आिंतवें
भ ग
* सव ववधधज्ञ ि के ववषयभूत भ व ें से आिंत गुणे
53. आन्त्थ आणंत जीव , जेहहं ण पत्त े तस ण परिण म े।
भ वकिंकसुपउि , णणग ेदव सं ण मुंिंनत॥197॥
•आथव - एेसे आिंत िन्त जीव हैं वक जजन्ह ेंिे त्रस ें
की पय वय आभी तक कभी भी िहीं प ई है आ ैि
ज े निग ेद आवस्थ में ह ेिे व िे दुिेवश्य रूप
परिण म ें से आत्यन्त आलभभूत िहिे के क िण
निग दस्थ ि क े कभी िहीं छ ेड़ते ॥197॥
54. निग ेद (स ध िण) के भेद:
•जजसिे आि दद क ि से आभी
तक त्रस पय वय प्र प्त िहीं की है
नित्य निग ेद
•ज े देव, ि िकी, नतयोंि आ ैि मिुष्य ें में उत्पन्न
ह ेकि पुि: निग ेद में उत्पन्न ह ेते हैं
•इसक दूसि ि म ितुगवनत निग ेद भी है
इति
निग ेद
55. नित्य निग ेद
आि दद आिंत आि दद स ंत
प्रश्न: क्य ें निग ेद से ब हि िहीं आ ते ?
भ वकिंक की प्रिुित ह ेिे के क िण ।
56. क्य नित्य निग ेद से जीव कभी निकिते ही िहीं हैं ?
•िहीं, 6 महीि , 8 समय में 608 जीव
नित्य निग ेद से निकिकि आन्य पय वय ें क े
प्र प्त किते हैं ।
•भ वकिंक की आल्पत ह ेिे के क िण
निकिते हैं ।
57. ववहह नतहह िहुहहं पंिहहं, सहहय जे इंददएहहं ि ेयम्हह।
ते तसक य जीव , णेय वीि ेवदेसेण॥198॥
•आथव - ज े जीव द े, तीि, ि ि, प ँि
इम्न्रय ें से युक्त हैं उिक े वीि भगव ि
के उपदेश िुस ि त्रसक ग्नयक समझि
ि हहये ॥198॥
58. त्रसक ग्नयक जीव
त्रसक ग्नयक
द्वीम्न्रय जीव त्रीम्न्रय जीव ितुरिम्न्रय जीव पंिेम्न्रय जीव
59. स्थ विक ग्नयक कह िहते हैं ?
•स िे ि ेक में,
सववत्र।
•एक भी ि ेक क
प्रदेश िहीं है, जह
प ँि स्थ विक ग्नयक
िहीं ह ें ।
60. त्रसक ग्नयेक कह िहते हैं ?
•त्रसि िी में ।
•क्य त्रसि िी के ब हि भी
ह े सकते हैं ?
–ह ँ
–आपव द-रूप न्स्थनत में ।
61. उवव दम िणंनतय, परिणदतसमुम्झझऊण सेसतस ।
तसण लिब हहिम्हह य, णन्त्थ त्तत्त जजणेहहं णणदद्दठिं॥199॥
•आथव - उपप द जन्मव िे आ ैि म िण म्न्तक
समुद्घ तव िे त्रस जीव ें क े छ ेड़कि ब की
के त्रस जीव त्रसि िी के ब हि िहीं िहते
यह जजिेन्रदेव िे कह है ॥199॥
62. त्रसक ग्नयक के त्रसि िी के ब हि प ए ज िे
के आपव द के समय
उपप द के समय
म िण म्न्तक समुद᳭घ त के समय
के विी समुद᳭घ त के समय
63. उपप द के समय
•त्रसि िी के ब हि न्स्थत क ेई
एके म्न्रय जीव त्रसपय वय क े
ब ंधत है ।
•तब मिण किके प्रथम समय में
त्रसि िी के ब हि है, पिन्तु त्रस
जीव है ।
•एेसी एक न्स्थनत है ।
एके म्न्रय जीव
64. म िण म्न्तक समुद᳭घ त के समय
• मिण के आन्तमुवहतव पूवव आगिी पय वय के
उत्पन्ि ह ेिे के स्थ ि तक आ त्म-प्रदेश ें क
फै िि म िण ंनतक समुद᳭घ त कहि त है ।
• क ेई त्रसजीव त्रसि िी के ब हि एके म्न्रय ें
में उत्पन्ि ह ेिे व ि है, वह म िण ंनतक
समुद᳭घ त कित है, तब वह त्रस ही है ।
• एेसी न्स्थनत में त्रसजीव त्रसि िी के ब हि
प य गय ।
त्रसजीव
65. के विी समुद᳭घ त के समय
•के विी भगव ि के निव वण के आन्तमुवहतव पूवव
आ त्मप्रदेश सववि ेक में फै िते हैं, वह के विी
समुद᳭घ त कहि त है ।
•उस समय भी त्रसजीव (के विी भगव ि) ि ेकि िी
के ब हि प्र प्त ह ेते हैं ।
•इि तीि आवस्थ आ ें क े छ ेड़कि त्रसजीव त्रसि िी
के ब हि िहीं प ए ज ते हैं ।
66. पुढवीआ ददिउण्हं, के वलिआ ह िदेवणणियंग ।
आपददट्ठिद णणग ेदेहहं, पददट्ठिदंग हवे सेस ॥200॥
•आथव - पृलथवी, जि, आग्नि आ ैि व युक ग्नयक जीव ें
क शिीि तथ के वलिय ें क शिीि, आ ह िकशिीि
आ ैि देव-ि िवकय ें क शिीि ब दि निग ेददय जीव ें
से आप्रनतधित है। शेष विस्पनतक य के जीव ें क
शिीि तथ द्वीम्न्रय, त्रीम्न्रय, ितुरिम्न्रय, पंिेम्न्रय
नतयोंि आ ैि मिुष्य ें क शिीि निग ेददय जीव ें से
प्रनतधित है ॥200॥
67. निग ेददय जीव वकि जीव ें के शिीि ें में िहीं ह ेते
हैं?
8 प्रक ि के जीव ें के शिीि
4
पृथ्वी,
जि,
आग्नि, व यु
2
देव,
ि िकी
1
आ ह िक
शिीि
1
के विी
भगव ि
68. मसुिंबुवबंसूई, कि वधयसम्ण्णह े हवे देह े।
पुढवीआ ददिउण्हं, तरुतसक य आणेयववह ॥201॥
•आथव - मसूि (आन्नववशेष), जि की वबन्दु,
सुइय ें क समूह, ध्वज , इिके सदृश क्रम
से पृलथवी,आप्, तेज, व युक ग्नयक जीव ें क
शिीि ह ेत है आ ैि विस्पनत तथ त्रस ें क
शिीि आिेक प्रक ि क ह ेत है ॥201॥
69. जीव ें के शिीि क आ क ि
पृथ्वी मसूि द ि ि ेट—पृथ्वी,
जि आ दद क
ज े शिीि
ददखत है वह
आिेक जीव ें के
शिीि ें के समूह
रूप है ।
जि जि की वबन्दु
आम्ग्ि सुइय ें क समूह
व यु ध्वज
विस्पनत आिेक प्रक ि क
त्रस आिेक प्रक ि क
70. जह भ िवह े पुरिस े वहइ भिं गेहहऊण क वलियं।
एमेव वहइ जीव े कहमभिं क यक वलियं॥202॥
•आथव - जजस प्रक ि क ेई भ िव ही पुरुष
क वहटक के द्व ि भ िक वहि कित है,
उस ही प्रक ि यह जीव क यरूपी क वहटक
के द्व ि कमवभ ि क वहि कित है
॥202॥
71. संस िी जीव ें की क य क दृष्ट ंत
जैसे— वैसे—
क ेई पुरुष संस िी जीव
क वदड़य के द्व ि आ ैद रिक दद क य के द्व ि
भ ि वहि कित है ।
कमवरूप भ ि वहि कित है
।
72. मुलक्त क उप य
जैसे वैसे
वही पुरुष क ेई भव्य जीव
क वदड़य के भ ि क े
ग्नगि कि
शिीिरूपी क वदड़य में भिे कमवरूपी
भ ि क े छ ेड़कि
आपिे इष्ट स्थ ि में ि ेक के आग्रभ ग में
उस भ िजनित दु:ख के
ििे ज िे से
कमवभ ि जनित आिेक दु:ख ें के ििे
ज िे से
सुखी ह ेकि िहत है सुखी ह ेकि िहत है ।
73. जह कं िणमम्ग्गगयं, मुंिइ वकठटेण क लिय ए य।
तह क यबंधमुक्क , आक इय झ णज ेगेण॥203॥
•आथव - जजस प्रक ि मलिि भी सुवणव आग्नि के
द्व ि सुसंस्कृ त ह ेकि ब ह्य आ ैि आभ्यन्ति द ेि ें
ही प्रक ि के मि से िहहत ह े ज त है उस ही
प्रक ि ध्य ि के द्व ि यह जीव भी शिीि आ ैि
कमवबंध द ेि ें से िहहत ह ेकि ससद्ध ह े ज त है
॥203॥
74. आक ग्नयक मुक्त जीव
जैसे— वैसे—
* ि ेक में मिसहहत स ेि * निकट भव्य जीव
• आम्ग्ि द्व ि त पिे पि
• आन्तिंग — प ि आ दद भ वि से
संस्क ियुक्त
• बहहिंग — प्रझवलित आम्ग्ि में जिकि
• ध्य ि द्व ि
• आन्तिंग — धहयव आ ैि शुक्ि ध्य ि की भ वि से
संस्कृ त
• बहहिंग — तप रूपी आम्ग्ि ववशेष से
* ब ह्य मि—वकट्ठटक * ब ह्य मि—क य
* आंतिंग मि—श्वेत ददरूप आन्य वणव * आंतिंग मि—कमव
* से िहहत ह े शुद्ध ह े ज त है * से सववथ िहहत ह ेिे पि शुद्ध ह े ज त है
75. आ उड़्ढि ससव िं ि ेगे आण्ण ेण्णसंगुणे तेऊ।
भूजिव ऊ आहहय पदड़भ ग ेऽसंखि ेग े दु॥204॥
• आथव – शि क त्रय निि पि की ववधध से ि ेक क स ढे
तीि ब ि पिस्पि गुण कििे से तेजस्क ग्नयक जीव ें क
प्रम ण निकित है।
• पृलथवी, जि, व युक ग्नयक जीव ें क उत्ति ेत्ति तेजस्क ग्नयक
जीव ें की आपेक्ष आधधक-आधधक प्रम ण है।
• इस आधधकत के प्रनतभ गह ि क प्रम ण आसंख्य त ि ेक
है ॥204॥
76. तैजसक ग्नयक जीवि शश
•ि ेक क स ढे तीि ब ि पिस्पि गुण कििे
पि तैजसक ग्नयक जीव ें क प्रम ण निकित
है ।
•इस ि शश क े निक ििे के लिए ि ेक क
शि क -त्रय-निष्ठ पि किि है ।
77. शि क त्रय निि पि
•तीि ि शशय ं स्थ वपत कििी-
1. ववििि 2. देय 3. शि क
•एक ब ि ववििि-देय किके शि क में से एक घट ि ।
– हि ब ि ववििि देय ववध ि कििे पि एक-एक शि क कम-कम
किते ज ि
•जब शि क शून्य ह े ज य त े वह एक ब ि निि पि है।
•ज े आंत में ि शश आ येगी वह मह ि शश ह ेगी ।
78. शि क त्रय निि पि
•इस मह ि शश क े पुिः शि क , ववििि, देय रूप
िखि ।
•पुिः जब तक शि क ि शश सम प्त िहीं ह े ज ती,
तब तक ववििि-देय ववध ि से ि शशय ं निक िि ।
•जब शि क शून्य ह े ज य त े वह दूसिी ब ि
निि पि है।
•ज े आंत में ि शश आ येगी वह मह -मह ि शश ह ेगी ।
79. शि क त्रय निि पि
• इस मह -मह ि शश क े पुिः शि क , ववििि, देय-रूप
िखि
• पुिः जब तक शि क ि शश सम प्त िहीं ह े ज ती, तब
तक ववििि-देय ववध ि से ि शशय ं निक िि ।
• जब शि क शून्य ह े ज य त े वह तीसिी ब ि निि पि है।
• ज े आंत में मह -मह -मह ि शश ह ेगी, वह मूि ि शश क
शि क -त्रय निि पि से प्र प्त ि शश कहि ती है ।
82. • आब व स्तववक गणणत में ि ेक क शि क -त्रय-निि पि किि ।
• ज े आन्त में ि शश आ यी, उसे पुि: शि क , देय आ ैि ववििि
बि आ े ।
• पिन्तु शि क क े थ ेड़ कम किेंगे ।
• ि ैथी ब ि की शि क ि शश =
– शि क त्रय निष्ठ पि क फि — प्रथम ब ि स्थ वपत शि क —
हद्वतीय ब ि स्थ वपत शि क — तृतीय ब ि स्थ वपत शि क
• पुि: पूव ेवक्त देय-ववििि की प्रवक्रय तब तक कि े जब तक वक
शि क सम प्त िहीं ह े ज ती । तब ज े मह ि शश प्र प्त हुई है,
वह ि ेक ि शश क स ढे तीि ब ि पिस्पि गुणि कहि त है ।
वही तेजसक ग्नयक जीवि शश क प्रम ण है ।
83. आम्ग्िक ग्नयक आ दद जीव ें की संख्य
•आसंख्य त ि ेक प्रम णआम्ग्िक ग्नयक जीव
•आम्ग्िक ग्नयक +
आम्ग्िक ग्नयक
आसं. ि ेक
पृथ्वीक ग्नयक
•पृथ्वीक ग्नयक +
पृथ्वीक ग्नयक
आसं. ि ेक
जिक ग्नयक
•जिक ग्नयक +
जिक ग्नयक
आसं. ि ेक
व युक ग्नयक
84. आपददट्ठिदपत्तेय , आसंखि ेगप्पम णय ह ेंनत।
तत्त े पददट्ठिद पुण, आसंखि ेगेण संगुणणद ॥205॥
•आथव - आप्रनतधित प्रत्येक विस्पनतक ग्नयक जीव
आसंख्य त ि ेकप्रम ण हैं, आ ैि इससे भी
आसंख्य त ि ेकगुण प्रनतधित प्रत्येक
विस्पनतक ग्नयक जीव ें क प्रम ण है ॥205॥
•आप्रनतधित प्रत्येक = आसंख्य त ि ेक
•सप्रनतधित प्रत्येक = आसंख्य त ि ेक आप्र.
प्रत्येक
85. क्य व युक ग्नयक से आप्रनतधित प्रत्येक आधधक हैं ?
िहीं ।
आप्रनतधित प्रत्येक व युक ग्नयक से आसंख्य त गुणे हीि हैं ।
प्रत्येक विस्पनतक ग्नयक म त्र ब दि ही हैं ।
इसलिए इिकी संख्य कम है ।
आप्रनतधित प्रत्येक जीवि शी तेजक ग्नयक से भी कम है ।
86. तसि ससपुढववआ दी, िउक्कपत्तेयहीणसंस िी।
स ह िणजीव णं, परिम णं ह ेदद जजणददठिं॥206॥
•आथव - सहपूणव संस िी जीवि शश में से त्रस ि शश
क प्रम ण आ ैि पृलथव्य दद ितुष्क (पृलथवी, आप्,
तेज, व यु) तथ प्रत्येक विस्पनतक य क प्रम ण
ज े वक ऊपि बत य गय है घट िे पि ज े शेष
िहे उति ही स ध िण जीव ें क प्रम ण है, एेस
जजिेन्रदेव िे कह है ॥206॥
87. स ध िण विस्पनत
संपूणव जीवि शश
— त्रसि शश
— पृथ्वीक ग्नयक आ दद 4 ि शश
— प्रत्येक विस्पनत जीव ि शश
88. सगसगआसंखभ ग े, ब दिक य ण ह ेदद परिम णं।
सेस सुहुमपम णं पदड़भ ग े पुव्वणणदद्दठिे॥207॥
•आथव - आपिी-आपिी ि शश क आसंख्य तव ँ
भ ग ब दिक ग्नयक जीव ें क प्रम ण है आ ैि
•शेष बहुभ ग सूक्ष्म जीव ें क प्रम ण है।
•इसके प्रनतभ गह ि क प्रम ण पूव ेवक्त
आसंख्य त ि ेक प्रम ण है ॥207॥
89. ब दि आ ैि सूक्ष्म जीव ें क प्रम ण
कु ि ि शश
आसंख्य त
ब दि जीव ें
क प्रम ण
कु ि ि शश — ब दि ि शश
सूक्ष्म जीव ें
क प्रम ण
90. पृथ्वीक ग्नयक
ब दि
आसंख्य त एकभ ग
सूक्ष्म
आसंख्य त बहुभ ग
इसी प्रक ि जि, आम्ग्ि, व यु, स ध िण विस्पनत
में भी आसंख्य त एकभ ग ब दि जीव हैं आ ैि
आसंख्य त बहुभ ग सूक्ष्म जीव हैं ।
91. पृथ्वीक ग्नयक
ब दि
एकभ ग
सूक्ष्म
बहुभ ग
जैसे कु ि पृथ्वीक ग्नयक = 256 ; आसंख्य त = 8
त े ब दि जीव =
256
8
= 32 यह एकभ ग है
सूक्ष्म जीव = 256 – 32 = 224 आथव
256
8
× (8 – 1) =
256
8
× 7 = 224 यह
बहुभ ग है ।
92. सुहुमेसु संखभ गं, संख भ ग आपुण्णग इदि ।
जम्स्स आपुण्णद्ध द े, पुण्णद्ध संखगुणणदकम ॥208॥
•आथव - सूक्ष्म जीव ें में आपिी-आपिी ि शश के
संख्य त भ ग ें में से एक भ गप्रम ण
आपय वप्तक आ ैि बहुभ गप्रम ण पय वप्तक हैं।
क िण यह है वक आपय वप्तक के क ि से
पय वप्तक क क ि संख्य त गुण है ॥208॥
93. सूक्ष्म पृथ्वीक ग्नयक
आपय वप्त
संख्य त एकभ ग
पय वप्त
संख्य त बहुभ ग
इसी प्रक ि सभी सूक्ष्म जीव ें में समझि ।
94. सूक्ष्म पृथ्वीक ग्नयक
आपय वप्त
एकभ ग
पय वप्त
बहुभ ग
जैसे सूक्ष्म पृथ्वीक ग्नयक = 224 ; संख्य त = 4
सूक्ष्म आपय वप्त =
224
4
= 56 यह एकभ ग है ।
सूक्ष्म पय वप्त =
224
4
× (4 – 1) =
224
4
× 3 = 168 यह
बहुभ ग है ।
95. पल्ल संखेज्जवहहद, पदिंगुिभ जजदे जगप्पदिे।
जिभूणणपब दिय पुण्ण आ वलि आसंखभजजदकम ॥209॥
•आथव - ब दि पय वप्त जिक ग्नयक जीव जगतप्रति
भ जजत पल्य के आसंख्य तवें भ ग से भक्त प्रति ंगुि
प्रम ण है।
•इसमें उत्ति ेत्ति आ विी के आसंख्य तवें भ ग-आ विी
के आसंख्य तवें भ ग क भ ग देिे पि क्रमश: ब दि
पय वप्त पृलथवीक ग्नयक, सप्रनतधित प्रत्येक पय वप्त एवं
आप्रनतधित प्रत्येक पय वप्त जीव ें क प्रम ण प्र प्त
ह ेत है॥209॥
96. ब दि पय वप्त - आपय वप्त जीव
•
जगत् प्रति
प्रति ंगुि / प / आसं.
ब दि पय वप्त
जिक ग्नयक
• ब ० प० जि० +
ब ० प० जि०
आ / आसं.
ब ० प० पृथ्वीक ग्नयक
• ब ० प० पृथ्वीक ग्नयक +
ब ० प० पृथ्वीक ग्नयक
आ / आसं.
ब ० प० सप्रनत० वि०
• ब ० प० सप्र० वि० +
ब ० प० सप्र० वि०
आ / आसं.
ब ० प० सप्रनत० वि०
ववशेष : पय वप्तक ें में सप्रनतधित विस्पनत से आप्रनतधित विस्पनत आधधक
ह ेती है ।
97. ववंद वलिि ेग णमसंखं संखं ि तेउव ऊणं।
पज्जत्त ण पम णं, तेहहं ववहीण आपज्जत्त ॥210॥
•आथव - घि वलि के आसंख्य त भ ग ें में से एक भ गप्रम ण
ब दि पय वप्त तेजस्क ग्नयक जीव ें क प्रम ण है आ ैि
•ि ेक के संख्य त भ ग ें में से एक भ गप्रम ण ब दि
पय वप्त व युक ग्नयक जीव ें क प्रम ण है।
•आपिी-आपिी सहपूणव ि शश में से पय वप्तक ें क प्रम ण
घट िे पि ज े शेष िहे वही आपय वप्तक ें क प्रम ण है
॥210॥
98. आपिी-आपिी ि शश में से पय वप्त जीव ें क प्रम ण
घट िे पि आपय वप्त जीव ें की संख्य ह ेती है ।
(आ विी)³
आ / आसं.
=
घि विी
आ / आसं.
ब ० प०
आम्ग्िक ग्नयक
ि ेक
आसं.
ब ० प०
व युक ग्नयक
99. स ह िणब दिेसु आसंखं भ गं आसंखग भ ग ।
पुण्ण णमपुण्ण णं, परिम णं ह ेदद आणुकमस े॥211॥
•आथव - स ध िण ब दि विस्पनतक ग्नयक
जीव ें क ज े प्रम ण बत य है उसके
आसंख्य त भ ग ें में से एक भ गप्रम ण
पय वप्त आ ैि बहुभ गप्रम ण आपय वप्त हैं
॥211॥
100. ब दि स ध िण विस्पनत
पय वप्त
आसंख्य त एकभ ग
आपय वप्त
आसंख्य त बहुभ ग
101. आ वलिआसंखसंखेणवहहदपदिंगुिेण हहदपदिं।
कमस े तसतप्पुण्ण पुण्णूणतस आपुण्ण हु॥212॥
• आथव - आ विी के आसंख्य तवें भ ग से भक्त प्रति ंगुि क
भ ग जगतप्रति में देिे से ज े िब्ध आ वे उति ही
स म न्य त्रसि शश क प्रम ण है आ ैि
• संख्य त से भक्त प्रति ंगुि क भ ग जगतप्रति में देिे से
ज े िब्ध आ वे उति पय वप्त त्रस जीव ें क प्रम ण है।
• स म न्य त्रसि शश में से पय वप्तक ें क प्रम ण घट िे पि
शेष आपय वप्त त्रस ें क प्रम ण निकित है ॥212॥
102. त्रस जीव ें की संख्य
कु ि त्रस पय वप्त आपय वप्त
आसं. जगत श्रेणी
आथव
जगत प्रति
प्रति ंगुि
आ विी
आसं.
कु ि त्रस
आसं.
जगत प्रति
प्रति ंगुि
संख्य त
(त्रस ें में पय वप्त
पय वय दुिवभ है)
कु ि त्रस क आसं.
बहुभ ग
कु ि त्रस—पय वप्त
त्रस
103. त्रस =
जगतप्रति
प्रति ंगुि
आसंख्य त
पय वप्त
आसंख्य त एकभ ग
जगत्प्रतर
प्रतर ांगुल / सां
आपय वप्त
आसंख्य त बहुभ ग
जगत्प्रतर
प्रतर ांगुल / सां.
104. आ वलिआसंखभ गेणवहहदपल्लूणस यिद्धणछद ।
ब दितेपणणभूजिव द णं िरिमस गिं पुण्णं॥213॥
• आथव - आ विी के आसंख्य तवें भ ग से भक्त पल्य क े स गि में से
घट िे पि ज े शेष िहे उतिे ब दि तेजस्क ग्नयक जीव ें के आधवच्छेद हैं
आ ैि
• आप्रनतधित प्रत्येक, प्रनतधित प्रत्येक, ब दि पृथ्वीक ग्नयक, ब दि
जिक ग्नयक जीव ें के आधवच्छेद ें क प्रम ण क्रम से आ विी के
आसंख्य तवें में भ ग क द े ब ि, तीि ब ि, ि ि ब ि, प ँि ब ि पल्य
में भ ग देिे से ज े िब्ध आ वे उसक े स गि में घट िे से निकित है
आ ैि
• ब दि व तक ग्नयक जीव ें के आधवच्छेद पूणव स गि प्रम ण है ॥213॥
105. ब दि आम्ग्िक य ददक 6 ि शश—ववशेष
जीव आधवच्छेद ि शश
ब दि आम्ग्ि < स गि –
पल्य
आ विी / आसं.
छह ें ि शशय उत्ति ेत्ति
आसं. ि ेक गुणणत है
।
आप्रनतधित प्रत्येक < स गि –
पल्य
(आ विी / आसं.)2
प्रनतधित प्रत्येक < स गि –
पल्य
(आ विी / आसं.)3
ब दि पृथ्वी < स गि –
पल्य
(आ विी / आसं.)4
ब दि जि < स गि –
पल्य
(आ विी / आसं.)5
ब दि व यु स गि
106. ते वव ववसेसेणहहय , पल्ल संखेज्जभ गमेत्तेण।
तहह ते ि सीआ े आसंखि ेगेण गुणणदकम ॥214॥
•आथव - ये प्रत्येक आधवच्छेद ि शश पल्य के
आसंख्य तवें-आसंख्य तवें भ ग उत्ति ेत्ति आधधक
हैं। इसलिये ये सभी ि शश (तेजस्क ग्नयक दद
जीव ें के प्रम ण) क्रम से उत्ति ेत्ति आसंख्य त
ि ेकगुणी है ॥214॥
107. • ये प्रत्येक जीवि शी के छेद
पल्य
आसंख्य त
से आधधक हैं, इसलिये
उत्ति ेत्ति जीव ें क प्रम ण आसंख्य त ि ेक गुण है ।
• उद हिण — वकसी ि शश के छेद 5 हैं, त े ि शश है 25 = 32
• वकसी ि शश के छेद पूवव ि शश से 3 आधधक हैं, त े ि शश ह ेगी
• 2(5 + 3)
= 32 2³ = 256
• य िे जजतिे छेद आधधक हैं, उतिी ब ि 2 क गुण कििे पि ज े
ि शश आ ए, उतिी गुणी िब्ध ि शश ह ेती है ।
108. • ब दि आम्ग्िक ग्नयक = (2)
(स – प
आसं.
)
• आप्रनत. प्रत्येक = (2)
(स – प
आसं. × आसं.
)
• यह ँ प्रथम ि शश के छेद से हद्वतीय ि शश के छेद
पल्य
आसंख्य त
से आधधक
हैं
• आत: प्रथम ि शश से हद्वतीय ि शश (2)
प
आ गुण है
• िूँवक (2)
प
आ = आसंख्य त ि ेक आ त है ।
• आत: प्रथम ि शश से हद्वतीय ि शश आसंख्य त ि ेक गुणी है ।
109. •इसी प्रक ि हद्वतीय से तृतीय ि शश के छेद
पल्य
आसंख्य त
से
आधधक हैं इसलिए तृतीय ि शश आसंख्य त ि ेक गुणी है
•इसी प्रक ि शेष ि शशय ें के लिए भी समझि ि हहए ।
110. ददण्णच्छेदेणवहहद, इठिच्छेदेहहं पयदववििणं भजजदे।
िद्धलमदइठिि सीणण्ण ेण्णहदीए ह ेदद पयदधण॥215॥
•आथव - देयि शश के आधवच्छेद ें से भक्त इष्ट
ि शश के आधवच्छेद ें क प्रकृ त ववििि ि शश
में भ ग देिे से ज े िब्ध आ वे उतिी जगह
इष्ट ि शश क े िखकि पिस्पि गुण कििे से
प्रकृ त धि ह ेत है ॥215॥
111. गणणत सूत्र
• यदद (2) 𝟏𝟔
= 65536 ह ेत है, त े (2) 𝟔𝟒
= (65536)?
• सूत्र =
प्रकृ त ववििि ि शश
इष्ट के छेद
देय के छेद
• ववििि ि शश = 64;
• इष्ट ववििि ि शश के छेद = 65536 के छेद = 16
• देय ि शश के छेद = 2 के छेद = 1
113. सूत्र क इस प्रकिण में प्रय ेग
• यदद (2)ि ेक के छेद = ि ेक ह ेत है, त े (2)स गि =
(ि ेक)?
ह ेग ? यह निक ििे हेतु इस सूत्र क प्रय ेग किते
हैं ।
• यह ँ पि ववििि ि शश = स गि;
• इष्ट ववििि ि शश के छेद = ि ेक के छेद = 3 छे छे छे
आसं.
• देय ि शश के छेद = 2 के छेद = 1
114. • इसे सूत्र में िखिे पि:
•
स गि
ि ेक के छेद
1
=
स गि
ि ेक के छेद
•
संख्य त प
3 छे छे छे आसं.
=
प
आसं.
• आथ वत् इतिी ब ि ि ेक क पिस्पि गुण कििे पि ब दि
व युक ग्नयक जीवि शश ह ेती है ।
• (2)स गि = (ि ेक)
प
आसं.
115. इसी क े आ धुनिक गणणत से निक िते हैं
• 264 = (65536)?
• इसे हि कििे के लिए द ेि ें तिफ log िेंगे ।
• log2(2)64 = log2(65536) 𝑁
• 64 log2 2 = N log2 65536
• 64 1 = N 16
•
64
16
= N
• इस प्रक ि log से उत्ति आ त है । ज े आ ि य ेों िे हज ि ें वषव पूवव ग्रन्थ ें
में ददय है । य िे log theory के सूत्र हज ि ें स ि से जैि श स्त ें में
लिवपबद्ध हैं ।
116. नतयोंि ें की आ यु
जीव उत्कृ ष्ट आ यु जीव उत्कृ ष्ट आ यु
मृदु (शुद्ध)
पृथ्वीक ग्नयेक
12,000 वषव तीि इम्न्रय 49 ददि
कठ ेि पृथ्वीक ग्नयक 22,000 वषव ि ि इम्न्रय 6 म स
जिक ग्नयक 7,000 वषव पंिेम्न्रय जििि 1 क ेहट पूवव
व युक ग्नयक 3,000 वषव सिीसपव, िेंगिे व िे पशु 9 पूव ोंग
आम्ग्िक ग्नयक 3 ददि सपव 42,000 वषव
विस्पनतक ग्नयक 10,000 वषव पक्षी 72,000 वषव
द े इम्न्रय 12 वषव ि ैप ये पशु 3 पल्य
सभी की जघन्य आ यु आन्तमुवहतव है ।
117. ➢Reference : ग ेहमटस ि जीवक ण्ड़, सहयग्ज्ञ ि िंदरक ,
ग ेहमटस ि जीवक ंड़ - िेख लित्र एवं त लिक आ ें में
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Smt. Sarika Vikas Chhabra
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