4. ये ज्ञान ही प्रमाण कै से है? इन्द्रिय अथवा सन्नीकर्ष
कै से प्रमाण नहीीं है?
•इन्द्रिय अाैर सन्नीकर्ष से सूक्ष्म, दूर अाैर
अींतररत पदाथाेों का ज्ञान नहीीं हाे सकता
इसीलिए ये 5 ज्ञान ही प्रमाण हैीं
5.
6.
7.
8. •अक्ष = अात्मा
•जाे ज्ञान अात्मा से ही उत्पन्न हाेता है
प्रत्यक्ष
•पर = इन्द्रिय, प्रकाश, उपदेश, मन
अादद की सहायता से उत्पन्न हाेता है
पराेक्ष
10. क्रम का कारण
मततज्ञान का ववर्य सबसे अल्प है इसीलिये इसे सबसे
पहिे रखा है
मततज्ञान पूवषक श्रुत ज्ञान हाेता है इसीलिये मततज्ञान
के बाद रखा है
अवधि, मन:पयषय अाैर के विज्ञान मेीं ववशुद्धि अाैर ववर्य क्रम
से अधिक अधिक है
12. उदाहरण
•हाथ से रुमाि छूना
•रसना से अाम चखना
•नाक से खुशबु सूूँघना- अाम सुगींधित है
•अाूँखाेीं से रींग देखना- अाम पीिा है
•कान से सींगीत सुनना
13.
14. उदाहरण
•अाम काे देख कर के दूसरी जातत के
अाम का ववचार अाना, अाम से
अामपाक बनता है ।
•दपषण मेीं चेहरा देख कर अपने बारे मेीं
ववचार करना मैीं गाेरा हाे गया, कािा
हाे गया ।
15. ववशेर्
•वबना मततज्ञान श्रुतज्ञान नहीीं हाेगा
•श्रुतज्ञान के बाद पुन: श्रुतज्ञान हाे सकता है
•हर मततज्ञान के बाद श्रुतज्ञान हाे ही - एेसा
काेई तनयम नहीीं है
17. जीवाेीं के मन मेीं स्थथत जाे रूपी पदाथष है,
जजनका उन जीवाेीं ने जटिि या सरि रूप से ववचार कर लिया है या
भववष्य मेीं करेींगे,
उनकाे थपष्ट जानने वािे ज्ञान काे मन:पयषय ज्ञान कहते हैीं
18. सभी िवयाेीं की सभी पयाषयाेीं काे
एक साथ
वबना इन्द्रिय अाैर मन की सहायता के
थपष्ट जानने वािे ज्ञान काे
के वि ज्ञान कहते हैीं
23. थमृतत ज्ञान
पहिे जानी हुई वाथतु का कािाींतर मेीं थमरण करना थमृतत
ज्ञान है |
जजसका पहिे मततज्ञान हुअा है उसी का थमरण हाे सकता है |
24. प्रत्यलभज्ञान
वतषमान मेीं वकसी वथतु काे देखकर
पहिे देखी हुई वथतु का थमरण हाेना अाैर विर
पहिे देखी हुई वथतु अाैर वतषमान मेीं देन्द्ख हुई वथतु का
जाेड़रूप ज्ञान हाेना प्रत्यलभज्ञान है |
25. प्रत्यलभज्ञान के भेद
एकत्व
ये वही है
सादृश्य
ये उसके
समान है
ववसादृश्य
ये उससे लभन्न
है
तत्प्रततयाेगी
ये उससे
छाेिा या बड़ा
है
26. •वयाति के ज्ञान काे तकष कहते हैीं |तकष
• साध्य के अभाव मेीं सािन के अभाव काे
तथा सािन के सद्भाव मेीं साध्य के सद्भाव
काे वयाति कहते हैीं |
• इसे अववनाभाव भी कहते हैीं| जैसे – अग्नि
अाैर िुूँअा
वयाति
31. •ये सब मततज्ञान के पयाषयवाची हैीं अथाषत इन
सबका मततज्ञानावरण के क्षयाेपशम से कायष
बनता है |
32.
33.
34. इन्द्रिय अथाषत
इरि= अात्मा, अपने जजन लचरहाेीं के द्वारा वह पदाथाेों काे
जानता है उसे इन्द्रिय कहते हैीं
इरि= अात्मा, जजन लचरहाेीं के द्वारा अात्मा का अन्द्थतत्व जाना
जाता हैीं उसे इन्द्रिय कहते हैीं
जाे इरि की तरह अपना कायष करने मेीं थवयीं समथष हाेीं
इरि अथाषत नामकमष, उसके द्वारा जाे रची जाय उसे इन्द्रिय
कहते हैीं
35. अतनन्द्रिय
बावक इन्द्रियाेीं का थथान अाैर ववर्य तनश्चित है वकरतु
मन का थथान अाैर ववर्य तनश्चित नहीीं हैीं
चक्षु अादद की तरह थपष्ट ददखाई भी नहीीं देता है
अथाषत वकीं लचत इन्द्रिय कै सेीं?
36. शींका - प्रकाश अाैर पदाथष काे मततज्ञान की
उत्पत्तर्त् का कारण काेीं नहीीं कहा?
•समािान -- प्रकाश अाैर पदाथष के वबना भी
ज्ञान की उत्पत्तर्त् देखी जाती है वकरतु इन्द्रिय
अाैर मन के वबना मततज्ञान की उत्पत्तर्त् नहीीं
देखी अत: प्रकाश अाैर पदाथष काे मततज्ञान
की उत्पत्तर्त् का कारण नहीीं कहा |
37.
38.
39. अवग्रह
इन्द्रिय अाैर पदाथष का सम्बरि हाेते ही जाे सामारय
ग्रहण हाेता है उसे दशषन कहते हैीं |
दशषन के अवाींतर ही जाे पदाथष का ग्रहण है वह अवग्रह
कहिाता है |
जैसे - चक्षु से सिे द रूप काे जानना |
40. दशषन अाैर अवग्रह मेीं अींतर
दशषन
• इसमे जानना तनववषकल्प हाेता है
|
• दशषनावरण कमष का क्षयाेपशम
तनलमर्त् हाेता है |
• जैसे उसी ददन जरमे बािक के
पहिी बार नेत्र खाेिने पर ववशेर्
शूरय प्रततभास |
अवग्रह
• इसमेीं जानना सववकल्प हाेता है |
• मततज्ञानावरण कमष का क्षयाेपशम
तनलमर्त् हाेता है |
• जैसे – यह रूप है , यह पुरुर् है
अादद रूप से जानना |
41. ईहा
अवग्रह से जाने हुए पदाथष मेीं ववशेर् जानने की
जजज्ञासा / इच्छा का हाेना ईहा कहिाता है |
जैसे – यह का बगुिाेीं की पींलि है ?
42. अवाय
ववशेर् लचरहाेीं के द्वारा पदाथष का तनणषय कर िेना
अावाय कहिाता है |
जैसे पींखाे से टहिने से तथा ऊपर नीचे हाेने से
यह बगुिाेीं की पींलि ही है यह तनणषय कर िेना |
43. िारणा
तनद्धणषत पदाथष की अववथमृतत िारणा कहिाता है |
जैसे –यह वही बगुिाेीं की पींलि है जजससे प्रात: काि मैींने
देखा था |
44. ववशेष
•इहा ज्ञान सींशय रूप नहीीं हाेता है काेींवक यह प्रमाण
ज्ञान है अाैर सींशय लमथ्याज्ञान थवरूप हाेता है |
•यह ४ ज्ञान क्रम से उत्पन्न हाेते हैीं अत: इसी क्रम से
सूत्र मेीं इरहेीं बताया गया है |
•क्रम से हाेने पर भी उर्त्र वािा ज्ञान तनयम से हाे ही
एेसा जरुऋ नहीीं है |
45.
46.
47. बहु
बहुत पदाथष (सींख्या
वाचक)
गाैरी, साींविी, कािी
अादद अनेक गाय
बहुववि
बहुत प्रकार के पदाथष
(प्रकार वाचक)
गाय, भैींस, घाेड़ा
अादद अनेक जातत
मततज्ञान के ववर्यभूत 12 प्रकार के पदाथष
48. एक
एक पदाथष
एक गाेरी गाय
एकववि
एक प्रकार के पदाथष
गाेरी, साींविी, कािी अादद
गाय (एक जातत - गाय)
49. एक/ अल्प बहु
एक वयलि बहु जातत की बहु वयलि
ववि एक जातत बहु जातत
58. व्यांजनावाग्रह
व्यांजन = व्यतत शब्दादद के समूह को व्यांजन कहते हैं |
छू कर जो रस, स्पशश, शब्द और गांध का ववषय(प्राप्त का )
ग्रहण होता है उसे व्यांजनावाग्रह कहते हैं
60. ववशेष
4 इन्द्रियाूँ प्राप्यकारी हैीं ।
अथाषत सामारयतया पदाथाेों से थपशष करके ज्ञान हाेता है ।
चक्षु अाैर मन अप्राप्यकारी हैीं ।
अथाषत वबना पदाथष के सलन्नकर्ष के ही ज्ञान हाेता है ।
61. वयींजनावग्रह
अप्रगि - अवयि ज्ञान
चक्षु अाैर मन के वबना हाेता है
इसमेीं अागे क्षसिष अथाषवग्रह ही हाे सकता
है
अथाषवग्रह
प्रगि - वयि पदाथाेों का ज्ञान
५ इन्द्रिय अाैर मन से हाेता है
इसमेीं अागे ईहा, अवाय अाैर िारणा हाे
सकती है
अवग्रह
75. प्रस्तुतकतता
- प्रकतश
और पूजत
छतबडत,
इन्दौर
मतिज्ञान श्रुिज्ञान
मतिज्ञानावरण कमम का
क्षयोपशम तनतमत्त
श्रुिज्ञानावरण कमम का
क्षयोपशम तनतमत्त
मतिज्ञान के बाद श्रुिज्ञान
होने का तनयम नहीं
श्रुिज्ञान के पहले मतिज्ञान
तनयम से होिा है, श्रुि
पूवमक भी श्रुि होिा है
दशमनोपयोग पूवमक होिा मतिज्ञानोपयोग पूवमक होिा
मततज्ञतन और श्रुतज्ञतन में अंतर
76. प्रस्तुतकतता
- प्रकतश
और पूजत
छतबडत,
इन्दौर
मतिज्ञान श्रुिज्ञान
३३६ भेद है २ भेद है
पााँचों इतरियों का तनतमत्त
मुख्य है
सैनी जीवों को मन की
मुख्यिा है
ित्त्व सुना - समझा जा
सकिा है
ित्त्व तनणमय इसके माध्यम
से होिा है
मततज्ञतन और श्रुतज्ञतन में अंतर
87. मन:पर्यर्ज्ञान
भूत में
च ेंतन किर्ा हा
च ेंततत
भकिष्र् में
च ेंतन किर्ा जार्गा
अच ेंततत
ितयमान में
च ेंतन किर्ा जा रहा है,
अर्ायत जा सम्पूर्य च ेंतर्ा
नह ें
अर्द्यच ेंततत
द्रव्र्, क्षत्र, िाल, भाि िी मर्ायदा चलए दूसर ि मन में स्थर्त रूप पदार्य
िा जान, जजसिा -
89. ऋजुमतत मन:पर्यर्
तत्रिाल किषर्ि पुदगल
द्रव्र्िा किस ज ि द्वारा
ितयमान िाल में च ेंतिन
िीए जान पर जानता है ।
किपुलमतत मन:पर्यर्ज्ञान
भूत में च ेंततत
ितयमान में अर्द्यच ेंततत
भकिष्र् में अच ेंततत
तत्रिाल सेंबेंध पुदगल द्रव्र् िा
जानता है ।