SlideShare une entreprise Scribd logo
1  sur  66
Télécharger pour lire hors ligne
1
1
श्री भविष्योत्तर पुराणान्तर्गत
श्रीिेङ्कटाचलमाहात्म्यम ्
Day 7
एकादशोऽध्यायः
301-446 Sloka &श्रीिेङ्कटेश रहस्यम ्199 slokas
2
2
सभ ां चक र रत्न ढ् ां, विश्िकर् ा विभ ोः वि् र् ्।
तत्र sसीन र्ह भ ग ोः, ब्रह्र् द् ोः सिादेित ोः ।। ३०१ ।।
विश्ि मर्त्र भरदि ज , िमसष्ठ गौतर्स्तथ ।
भृगुरत्त्रोः पुलस्त््श्च, ि ल्र्ीककमर्ाथथलेश्िरोः ।। ३०२ ।।
िैख नसश्च दुि ास , र् क
ा ण्डे् ऽथ ग लिोः ।
दधीथचश्््िन र जन ्, सनकश्च सनन्दनोः ॥ ३०३ ॥
एते श्रेष्ठतर् ल क
े , र्ुन् िीतकल्र्ष ोः ।
जट र्क
ु टभूष ङग ोः, ज्िलत्कृ ष्ण जजन म्बर ोः ।। ३०४ ॥
कश््पन्तु पुरस्कृ त््, सर् सीन ोः सभ न्तरे ।
तन्र्ध््े ि सुदेिस्तु, रत्नकम्बलसां्ुतोः ।। ३०५ ।।
3
3
कृ त ञ्जमलपुटस्तस्थौ, ब्रह्र् ल कवपत र्होः ।
तत्सभ दि रर् स द्, र ज सत््पर क्रर्ोः ।। ३०६ ।।
पुर हहतां पुरस्कृ त््, सम्ि प्त हररसजन्नथधर् ्।
सर्ुत्तस्थ ि सुदेि , दृष््ि र ज नर् गतर् ्।। ३०७ ॥
परररम्भणर् स द्, भगि न ्ि क््र्ब्रिीत ्।
श्रीनििास उिाच –
भि न ्श्रेष्ठतर् ऽत््न्तां, िृदध ऽमस नृपसत्तर् ।। ३०८ ॥
ककर्थार् गत ऽमस त्िां, र्दगृहां र जसत्तर् |
िसुद नां तु र जेन्र, सर् ह्ि ने नन् ज् ।। ३०९ ॥
िदत््ेिां श्रीननि से पुर हहतभ षत ।
4
4
वियन्िृपोक्तत्मया िससष्ठप्रेररत धरणीकृ त श्रीनििासोपचारः
राजोिाच-
विलम्बोः कक्र्ते कस्र् -त्पूज क
ु रु रर् पतेोः ।। ३१० ॥
स र जिचनां श्रुत्ि , धरणीां ि क््र्ब्रिीत ्।
िससष्ठ उिाच-
अरुन्धती पुरस्कृ त््, क
ु रु पूज ां रर् पतेोः ।। ३११ ।।
स सम्रर् त्सर्ुत्थ ्, ब ष्पसजन्दग्धल चन ।
र्ुखां विल क्् र जेन्र, कृ ष्णस्् नृपिल्लभ ।। ३१२ ॥
र्त्ि कृ त थार् त्र् न-र् नन्दपररपूररत । ।
सलज्ज पूज् र् स, सज्चद नन्दविग्रहर््।। ३१३ ॥
त ां दृष््ि ् वषतोः सि ा, विस्र्् क
ु लर् नस ोः ।
ि हुोः िहृष्टहृद् :, धरणीां र जिल्लभ र््।। ३१४ ।।
5
5
योवित ऊचु –
ककां त्ि् चररतां पुण््ां, पूिाजन्र्नन हे धरे ।
ि सुदेि चानविधौ, ननमर्ात परर्ेजष्ठन ।। ३१५ ।।
् त्िमर्त्थां पूज्मस, स क्ष न्न र ्णां स्ि्र् ्।
इत््ेिां सांस्तुत देिी, धरणी र जिल्लभ ।। ३१६ ।।
तैलकपूारगन्धेन, चन्दनेन सुगजन्धन ।
अचा् र् स कल्् णी, श्रीननि सां सुरेश्िरर् ्।। ३१७ ॥
िस्त्रैन ान विधैोः रत्नै-र्ुाक्त ननमर्ातभूषणैोः ।
हदव्् लङक र लङकृ त श्रीननि सस्् सपररकरनृपर्जन्दरििेशोः
ततोः पुर हहत ज्ञप्त, पुर णपुरुष त्तर्र््।। ३१८ ।
गजर् र प्र ज , ज र् तरर्न र््र््।
6
6
सहहत ि सुदेिस्तु, ब्रह्र्ण शम्भुन तथ ।। ३१९ ॥
क
ु बेरेण हहर जेन, गरुडेन जग्नन तथ ।
ि ्ुन िरुणेन वप, ्र्ेन र्रुत ां गणैोः ।। ३२० ।।
िमसष्ठ हदर्ुननश्रेष्ठैोः, सद रैोः ससुतैस्तथ ।
जग र् र जभिनां, रत्नत रणर्जण्डतर््।। ३२१ ।
न न जनसर् कीणं, न न लङक रर्जण्डतर् ्।
र्ह ि द्स्िनै्ुाक्तां, दीप ्ुतविदीवपतर् ्।। ३२२ ।।
जर् तृसहहत र ज , दि रत रणसजन्नधौ ।
चतुरङगबलां र्ुक्त्ि , गृह न्तगान्तुर्ुद्तोः ।। ३२३ ।।
तत्र न्तरे श्रीननि सां, नीर जन्तुर् गत ।
त ण्डर् न्नृपतेभ ा् ा, क
ु ङक
ु र् दकभ जनर् ्।। ३२४ ।।
सर् द ् शु कल्् णी, ि सुदेिर्पूज्त ्।
7
7
ततोः पश्च ्रीननि सोः, ि विशर जर्जन्दरर् ्।। ३२५ ।।
दि र ण््तीत्् थ बहूनन र् धि ,
र ज्ञ सर्ेत भिनां िविश्् ।
रत्न सने र जविननमर्ाते हररोः,
रर ज र जीिसर् ननेत्रोः ।। ३२६ ।।
चतुोः स्तम्भ ां रत्निेदी-र्थधष्ठ प्् खगध्िजर् ्।
पररि ्ा च तस्थुस्ते, र्ुन् िीतकल्र्ष ोः || ३२७ ॥
ब्रह्र् णर्ग्रतोः कृ त्ि , सिे देि ्थ सुखर् ्।
स्िण ासने सर् सीन ोः, पश््न्त न्न त्सिर् ्।। ३२८ ।।
ततोः स र ज धर् ात्र् , चक्र
े र्ङगलर्ज्जनर् ्।
स वप स्न त्ि र्ह र ज, तैलेन च सुगजन्धन ।। ३२९ ॥
अलञ्चक र लङक रैोः, स्ि त्र् नां र जिल्लभ ।
8
8
वि्न्नृपकृ तिरप द म्बुजक्ष लनर््
स्ि मर्पुष्कररणीत ्ां, हेर्क
ु म्भिपूररतर््।। ३३० ।।
सर् नी् ब्र ह्र्णैश्च, हररप द िनेजनर् ्।
सङकल्पां विथधि्चक्र
े , कन्् द नस्् स दरर् ्।। ३३१ ॥
ततश्चक र र जेन्र, र्धुपक
ा पुर हहतोः ।
पुर हहत क्तर्न्त्रेण, तस्् प द िनेजनर््।। ३३२ ।।
सहस्रशीष ा पुरुष, इनत र्न्त्रां सर्ु्चरन ्।
धरण्् स्र वितैोः कृ त्ि , स्ि मर्तीथाजलैोः शुभैोः ॥ ३३३ ॥
हररप द दक
ां पुण््ां, दध र मशरस नृपोः ।
भ ् ं पुत्रां र तरां च, भिनां क शर्ेि च ।। ३३४ ।।
गज ऽग रां रथ ऽग रां, िस्त्र ग रां च तज्जलैोः ।
र् जा् र् स र जेन्रोः, श्रीननि सपर ्णोः ।। ३३५ ।।
9
9
राजोिाच-
अद् र्े सफलां जन्र्, जीवितां च सुजीवितर््।
अद् र्े वपतरस्तुष्ट ोः, ि सुदेि पद दक त ्।। ३३६ ।।
एिर्ुक्त्ि र्ह र जोः, कन्् ां कर्लल चन र््।
अलञ्चक्र
े विथचत्रैस्त -र्लङक रैर्ाहीपते ।। ३३७ ।।
ततस्तु घजण्टक घ षां, कृ ति न ्देिथचन्तकोः ।
सुर्ुहूते तद ि प्ते, र्ङगल ष्टकर्ब्रिीत ्।। ३३८ ।।
िर ् विन्नृप दत्त-िैि हहकभूषण हदकर् ्
कन्् िद नसर््े, दक्षक्षण ां र जसत्तर्ोः ।
क हटसङ्् जन्नष्कपुञ्ज -न्दत्ति न ्िेङकटेमशतुोः ।। ३३९ ॥
तां दृष््ि धनर मशां तु, भगि न ह भूमर्पर् ्।
श्रीनििास उिाच-
द तव््ां ककां त्ि् र जन ्, पुत्रस्् ति भूपते || ३४० ॥
10
10
विि हकर्ाननपुण , भि न ्द नपर ्णोः ।
ददस्ि भूषण न््ङग, बहुरत्न जन्ित नन च ।। ३४१ ।।
इत््ुक्त ि सुदेिेन, भूषण नन ददौ नृपोः।
ककरीटां शतभ रां तु, कजण्ठक र्वप त ितीर् ्।। ३४२ ।।
पुनरेक ां तदधं च, तदधं चैि कजण्ठक र््।
पदक नन ददौ सप्त -नर्घ् ाण््थ नृप त्तर्ोः ।। ३४३ ।।
र् मलक ां र्ौजक्तक न ां च, भुजभूषण्ुग्र्कर््।
कणाभूषौ र्ौजक्तक ढ्, िांसप्ान्तलजम्बनौ ।। ३४४ ।।
कङकणे रत्नर् णणक््-िज्रिैडू्ाननमर्ाते ।
दि त्त्रशदि रसां्ुक्ते, अनघे दत्ति न्नृपोः ।। ३४५ ।।
न गभूषण्ुग्र्ां च, ब हुपुर हदक ांस्तथ ।
भूषण न््ङगुली् ांश्च, दश न ां िीरर्ुहरक र् ्|| ३४६ ॥
11
11
कहटसूत्रां स्िणार््ां, िरिज्रसर्जन्ितर् ्।
एक दशशतीभ रां, बहुरत्नसर्जन्ितर््।। ३४७ ।।
प दुक
े च तत र ज , दत्ति न ्र्धुघ नतने ।
ददौ भ जनप त्रां च, षजष्टभ र्ुतां िभ ोः ॥ ३४८ ॥
लघुप त्रसर् पेतां, बृहत्प त्रर्प ां तथ ।
कम्बल न ां चतुोःषजष्ट, दत्ति न ्र जसत्तर्ोः ।। ३४९ ।।
भूषणैभूावषत ङगस््, कन्् द नर्थ कर त ्।
कन्् ििरर्ूचेऽथ, गुरुोः स क्ष द बृहस्पनतोः ।। ३५० ।।
गुरुिमसष्ठकथथत िधूिरििर हदकर््
बृहस्पनतरुिाच-
अत्त्रग त्रसर्ुदभूत ां, सुिीरस्् िपौत्त्रक र् ्।
सुधर्ाणस्तु पौत्रीां च, पुत्रीर् क शभूपतेोः ।। ३५१ ।।
स्िर्ङगीक
ु रु ग विन्द, कन्् ां कर्लल चन र् ्।
12
12
एिर्ुक्ते र्ह र ज , र्ुद रत्न म्बरां ददौ ।। ३५२ ।।
िससष्ठ उिाच –
िपौत्रस्् ्् तेस्तु, पौत्रस्् मर्ततेजसोः ।
शूरसेनस्् र जेन्र, िसुदेिस्् भूपतेोः ।। ३५३।।
पुत्रस्् िेङकटेशस््, ग त्रे ि मसष्ठसांज्ञक
े ।
ज तस्् त्त्रक
ु ल त्पन्न ां, कन्् ां कनकभूवषत र् ्।। ३५४ ।।
ग्रहीष्् र् ि्ां र जन ्, ति पुत्त्रीां नृप त्तर् ।
कन्् िरििर् -ररत््ु्च ररत् रथ ।। ३५५ ।।
धरण्् सह र जेन्रोः, कन्् द नपर ्णोः ।
िहृष्टहृद्ोः ि ह, श्रीननि सां पर त्परर््।। ३५६ ॥
श्रीननि सस्् िमसष्ठ हदक ररतपदर् ितीप णणग्रहण त्सिोः
आकाशराज उिाच –
कन्् मर्र् ां िद स्् मर्, ग्रह ण पुरुष त्तर् ।
13
13
इत््ुक्त्ि ि क्षक्षपर ज , धरण्् स्र वित ां तद ।। ३५७ ॥
र्न्त्रपूत ां स्ि मर्तीथा-ध र ां सकनक ां करे ।
दक्षक्षणे श्रीननि सस््, ददौ पदर् ितीां ततोः ।। ३५८ ।।
विध नां च ततश्चक्र
े , र जेन्रोः सपुर हहतोः ।
पूजन्त्ि जगन्न थां, गन्धिस्त्र नुलेपनैोः ।। ३५९ ।।
कङकणां बन्ध् र् स, ि सुदेिकर म्बुजे ।
पदर् ित्् ोः कर म्भ जे-ऽबन्ध्त्कङकणां गुरुोः ।। ३६० ।
तथ र् ङगल््सूत्रस््, बन्धां िैि हहक
ां तद ।
श्रीननि सेन देिेन - क र्त्स पुर हहतोः ।। ३६१ ।।
सुकन्या ऊचुः -
स वित्रीि च कल्् णण, बहुपुत्रिती भि ।
सिाल कस्् जननी, भि र्ङगलद न्नी ।। ३६२ ।।
इत्थां सुर्ङगलीस्त्रीषु, ग ्न्तीषु शुभ मशषोः ।
14
14
ब्र ह्र्ण न ां करस्पश ा-र ज्ञश्च वप र्ह त्र्नोः ।। ३६३ ।।
बबन्ध पूतां र् ङगल््-सूत्रां र्न्त्र मभर्जन्त्रतर् ्।
कण्ठे पदर् ितीदेव्् ोः, श्रीननि स जगत्पनतोः ॥ ३६४ ॥
र्ुननमभोः सह विदिदमभ-ल ाजैहोर्ां पुर हहतोः ।
िमसष्ठ ऽक र्त्पदर् -ित््ञ्जल््वपातैस्ततोः ।। ३६५
।।
्जुोःश ख क्रर्ेणैि, जुह ि ग्नौ ्थ विथध ।
सिं िैि हहक विथधां, िमसष्ठ ऽथ सर् प्त ्।। ३६६ ।।
ततोः पुर हहत र ज्ञोः, स्िजस्ति चनपूिाकर् ्।
र्ुनीन र्ञ्जमलपुटे, निरत्न क्षत न्ददौ ।। ३६७ ||
ते िेदर्न्त्रैजागदीशर्ूजध्ना,
रत्न क्षत न्िेदविदोः िथचक्षक्षपुोः ।
तद नृण ां तत्र र्ह त्सि ऽभूद
-क शर जस्् पुरीननि मसन र््।।
15
15
तजस्र्न ्क ले र्ह र ज , दक्षक्षण ां ब्रह्र्ि हदन र् ्।
द प् र् स सन्तुष्ट , वििैस्त म्बूलपूिाकर् ्।। ३६९ ।।
गि ां क हटसहस्र णण, च श्ि न र््ुतां तथ ।
िस्त्र ण ां ननच्ां र ज-जन्ििेभ्् दत्ति जन्िभुोः ।। ३७० ।।
एिां र्ह त्सिस्तत्र, सर्भूददशर्ी हदने ।
िधूिरौ िनतष्ठ प््, भ ज् र् स िै ततोः ।। ३७१ ।।
अन्नां बहुविधां सूप-रसभक्ष्् सर्जन्ितर् ्।
परर् न्नां च सघृतां, सक्षीरां शक
ा र ्ुतर् ्।। ३७२ ।।
पुर हहतेन सहहत , भ जनां कृ ति न ्हररोः ।
र् त्र लक्ष्म्् च सहहतोः, पुत्रेण सहहतस्तथ ॥ ३७३ ॥
आक शर ज धर् ात्र् , भुक्ति न ्कृ ष्णसजन्नधौ ।
लक्ष्म्् ां सर्ेत धरणी, तथ बक
ु लर् ल् ।। ३७४ ॥
अभुङक्त न्नां रसै्ुाक्तां, पनतपुत्रसर्जन्ित ।
16
16
ततोः िभ ते र जेन्र, सुि मसन््ोः सुरेमशतुोः || ३७५ ।।
र्ज्जनां क र् र् सु-गान्धतैलैोः सुननर्ालैोः ।
अन्् न््र्ज्जनां तत्र, च न्् न्् दितानां तथ ।। ३७६ ।।
हररपदर् ितीदेव्् -स्त ोः सह सर्क र्न ्।
स र ज वििर्ु्् न ां, सुर ण ां बहुभ जनर््।। ३७७ ।।
स्त्रीण ां च पुरुष ण ां च, बहुर् नपुरस्सरर् ्।
्थेष्टां द प् र् स, हृष्ट आक शभूमर्पोः ।। ३७८ ।।
अपूप न ्विविध ांश्चक्र
े , सूपश क हदक ांस्तथ ।
घृतक
ु ल्् ां क्षीरक
ु ल्् ां, दथध क
ु ल्् ां ततोः परर््।। ३७९ ।।
तत उदधृत्् ननोःक्षक्षप्तां, बहहभुाक्तित ां नृण र् ्।
उज्िष्टपत्र ज लां च, पुष्कल न्न हदसां्ुतर् ्।। ३८० ।।
स रर्े्गणैोः कीणं, र क्षस न ां गणैस्तथ ।
एिां क ल हलां चक्र
े , हदिस ांश्चतुरस्तथ ।। ३८१ ।।
17
17
ह सस्तत्र विन देन, ननत््र् सी्च र्ज्जनर््।
हदिसे पञ्चर्े ि प्ते, कृ त्ि न कबमलां तथ ।। ३८२ ॥
कलश ांश्चतुर न््स््, दीपज्ि ल विर जजत न ्।
िधूिरौ िनतष्ठ प््, रत्नमसांह सने नृप ।। ३८३ ।।
पूज् र् स ग विन्दां, ज र् तरर्न र््र््।
आक शर ज धर् ात्र् , क्षीरप तां करे दधत ्॥ ३८४ ॥
र् तरां ि सुदेिस््, न म्न बक
ु लर् मलक र् ्।
पूजन्त्ि विध नेन, िस्त्र लङक रभूषणैोः ।। ३८५ ।।
न मभां क्षीरेण सांर्ृज््, पुत्रीां पदर् ितीां तद ।
अपा् र् स दुोःखेन, ब्रह्र्ण्् र जसत्तर्ोः ।। ३८६ ।।
र्ह लक्ष्म्् न मभर्ूलां, सघृतक्षीरसेचनर् ्।
कृ त्ि ऽपा् र् स पुत्रीां, रुदन्गदगदकण्ठि न्॥ ३८७ ।।
18
18
श्रीननि सेन सह शेष चलां िनत पदर् ितीिेषणर् ्
श्रीननि सस्् कृ ष्णस््, शेष चलननि मसनोः ।
र जभ ् ा र्ह भ ग , रुदन्ती क
ु ररीि च ॥ ३८८ ॥
पुत्रहस्तां िद ् थ, हस्ते र जक
ु ल ङगन ।
क्षीरां सां् ज्् कृ ष्णस््, न मभर्ूलेऽनतदुोःणखत ोः ।। ३८९ ।।
भृशां रुदन्ती र्न्त्रेण, दुग्धसांहदग्धल चन ।
अपा् र् स कृ ्रेण, पुत्रीां पदर् ितीां ततोः ।। ३९० ।।
ि ि च च श्रीननि सां, रुदन्ती र जिल्लभ ।
धरण्युिाच-
प मलत ां ल मलत ां पुत्रीां, निर् सधृत ां र्् ।। ३९१ ।।
त्िदधीन ां जगन्न थ, कररष््े र्र् नजन्दनीर््।
इत््ेिर्पा्न्त्् ां तु, धरण्् ां र जसत्तर्ोः ।। ३९२ ॥
स तस्् र दनां दृष््ि , र ज दुोःखपर ्णोः ।
19
19
रुर द दीनिदनोः पुत्री-र् मलङग् भूपनतोः ।। ३९३ ।।
राजोिाच-
ह पुत्त्र र्न्दभ ग्् ऽहां, त्िदवि् गेन क
े िलर् ्।
जीिनां सर् कल्् णण, न जस्थरां च भविष््नत ।। ३९४ ।।
कीड गृहे र जपुत्री, तथ भ जनसदर्नन ।
र त ति कथां क्रीड ां, भ जनां ि कररष््नत ॥ ३९५ ॥
एिां रुदन्तर् ल क््, र तरां दीनचेतसर् ्।
त ण्डर् न नृपश्रेष्ठ , दुोःणखत ि क््र्ब्रिीत ्।। ३९६ ॥
तोण्डमाि उिाच-
ि्ां दररर ोः ननभ ाग्् ोः, कृ पण दीनचेतसोः ।
ि्ां र्रणर् पन्न ोः, न त्र क ् ा विच रण ।। ३९७ ॥
एत दृशी च कल्् णी, नैि लब्ध कलौ ्ुगे ।
इत्थां ि्ां ननजश्चनुर् , वि् गभृशदुोःणखत ोः ।। ३९८ ॥
20
20
एिां त न ्रुदत दृष््ि , िसुद न ऽनतदुोःणखत ोः ।
भथगनीां दीनिदन -र् मलङग्् ह रुदन्र्ुहुोः ।। ३९९ ।।
िसुदाि उिाच-
र् तरां ब लक
ां त््क्त्ि , ्थ ल क
े धन जाकोः ।
ग्िेत्तथ र् ां भथगनी, त््क्त्ि त्िां क्ि नु ग्िमस ॥ ४०० ॥
एिां िसङग त्तत्र सीत ्, देि न र्वप भूमर्प ।
ऋषीण ां कश््प दीन ां, दुोःखर्त््न्तद रुणर् ्।। ४०१ ॥
रुदन्तां नृपनतां दृष््ि , श्रीननि सोः सत ां गनतोः ।
स्ि्ां रुर द ग विन्द , भथगनीां प थािल्लभ र््॥ ४०२ ॥
स्र्ृत्ि श्रीदेिकीपुत्र-स्तददभुतमर्ि भित ्।
इत्थां कृ त्ि ल करीनत-र्ैर ितर्ुप जस्थतोः ॥ ४०३ ॥
पदर् ित्् त् स धं, सिाि द्सर्जन्ितोः ।
ग्र र्ां िदक्षक्षणीकृ त््, रर्् सहहत हररोः ॥ ४०४ ॥
21
21
स्िननिेशगृहां भेजे ,पदर् सनभि हदक
ै ोः ।
तत हररोः श्रीननि सोः, स्िस्थ नां गन्तुर्ैहत || ४०५ ।।
गरुडस्कन्धर् रुढोः, पत्नी पदर् ितीर्वप ।
आर प्न्िर र ह -र्न्् न््ां परररभ्् च ॥ ४०६ ॥
गरुडस्कन्धर् रुढ , गन्तुां स्िस्थ नर्ुत्सुकोः ।
हररर र्न्त्रण थं तु, श्िश्रूश्िशुर् स्तद ।। ४०७ ||
पुनगृाहां सम्िविश््, गर्ने्ि
ु रभूदथ ।
श्िशुरौ प्ापृ्ि्च, स ष्ट ङगां िणणपत्् िै ॥ ४०८ ॥
आशीि ादां ततश्चक्र
े , स्िज र् तुरन र््र् ्।
आक शर जोः श्िशुरोः, श्िश्र च धर् सह ॥ ४०९ ॥
आकाशराज उिाच-
दीघ ा्ुभाि ग विन्द, सिाल कधुरन्धर ।
इत्् मशष ऽमभनन्द् थ, ि सुदेिर्भ षत ।। ४१० ।।
22
22
राजोिाच-
र् स न्ते ग्ि ग विन्द, िध्ि सह ि् गतर््।
श्िशुरां र् ां च ते श्िश्रूां, र् न्स्ि र्ह र्ते ।। ४११।।
इनत तस्् िचोः श्रुत्ि , ि सुदेि ऽब्रिीन्नृपर् ्।
श्रीनििास उिाच –
नृप ि क््ां श्रुणु र्र्, क ्ास्् र्हती त्िर ।। ४१२ ।।
तस्र् द ज्ञ ां च र्े देहह, र जांस्ते स्् त्कृ प र्न् ।
इत््ुक्त्ि ि सुदेिस्तु, गरुडस्कन्धर् जस्थतोः ।। ४१३ ।।
जग र् भगि न ्स क्ष त ्, सिादेिसर्जन्ितोः ।
आक
ु ल ोः व्् क
ु ल ोः सिे, नगरस्थ जन स्तद ।
ि क रग पुर रूढ ोः, पश््न्तोः स्िदृश ऽिदन ्।। ४१४ ॥
जिा ऊचु-
धन्् र जक
ु ल त्पन्न , पदर् कर्लल चन ।
23
23
अनुग्िनत ग विन्दां, पश््तेनत परस्परर््।। ४१५ ।।
तद ददौ र्ह र ज:, प ररबहं थश्र्ोः पतेोः ।
पदर् ितीश्रीननि स् विा्न्नृपिेवषतप ररबह ाहदिणानर् ्
तण्डुल ञ्ि मलसम्भूत न ्, िृषभ ण ां रथ परर ।। ४१६ ॥
आर प्् िेष् र् स, शतां ख रीवि्न्नृपोः ।
र्ुदग न ्ग स्ि मर्सांरुढ ां-जस्त्रशत ्ख रीदादौ हरेोः || ४१७ ||
गुड़भ रां र्ह न्तां च, नतजन्त्रणीभ रर्ेि च ।
् घटसहस्र णण, दथधभ ण्डशत नन च । ४१८ ॥
सहस्र धं घृत पूणा-चर्ाप त्र णण सषाप न ्।
र्ेथधक न ्हहङगुलि-णनतलप त्र णण चैि हह ॥ ४१९ ॥
तथ शक
ा र् पूणा-घट ांस्तु दिे शते तथ ।
ि त ाक
ां चूतकदली-फलजम्बीरक णण च ॥ ४२० ॥
24
24
क
ू ष्र् ण्डकन्दर्ूल नन, र्रीच र्लक नन च ।
र्धुभ ण्डशते दिे च, रम्भ क ष्ठच् ांस्तथ ।। ४२१ ।।
रम्भ त्िचश्च र जेन्र, पत्र ण ां ननच्ां तथ ।
अश्ि न र््ुतां दत्त्ि , गज न ां च सहस्रकर् ्।। ४२२ ।।
धेनून ां पञ्चसहस्र-र् विक न ां शतां तथ ।
द सीन ां दिे शते र ज-न्द स न ां त्त्रशतां तथ ।। ४२३ ।।
िस्त्र णण विविध न्् शु, प्ाङक
ां रत्नभूवषतर् ्।
उपबहं रत्न्ुतां, प ररबहेण सां्ुतर् ्॥ ४२४ ।।
एिर् दीनन िस्तूनन, गृहीत्ि नृपसत्तर्ोः ।
पुत्रेण सहहत र ज , श्रीननि सपर ्णोः ।। ४२५ ।।
आक शर ज धर्ाज्ञोः, श्रीननि सस्् सजन्नथधर् ्।
आगतोः श्िशुरां दृष््ि , च त्तस्थौ जगदीश्िरोः ॥ ४२६ ।।
25
25
वि्न्नृपस्् श्रीननि सदत्तस्िभजक्तनैरन्त्ारूपिरि जप्तोः
श्रीनििास उिाच-
दूर ध्ि नां र्ह र ज, ककर्थं त्िां सर् गतोः ।
द तव््ां ककां नृपश्रेष्ठ, ति पुत्रस्् र्ेऽनघ ।। ४२७ ॥
कन्् दत्त सुतोः ि प्तोः, सुकृ तां कक कृ तां त्ि् ।
सन्त ष श्च तुलोः ि प्त , र्र् त त न सांश्ोः ॥ ४२८ ॥
कक ते र्न गतां र जन ्, तन्र्र् चक्ष्ि भूपते ।
सन्देहां र् क
ु रुष्ि त्र, द न द नें र्हीपते ।
ि सुदेििचोः श्रुत्ि , ि सुदेिर्भ षत ।। ४२९ ।।
राजोिाच-
सिार्ङगलर्स्र् क
ां , त्ित्िस देन क
े शि |
न न््द् चे जगन्न थ, ति प दसर रुहे ।। ४३० ॥
26
26
भजक्त देह््चल ां कृ ष्ण, सक
ु टुम्बस्् र्ेऽनघ ।
तत ्श्रुत्ि िचनां तस््, श्िशुरस्् र्ह त्र्नोः । ४३१ ।।
दत्ति नस्् स ्ुज््-र् क शनृपतेस्तद ।
श्् लकस्् ददौ िस्त्रां, स्ि ङगस््ां र्धुसूदनोः ।। ४३२ ।।
ज र् त्र च सर् ज्ञप्तोः, पुत्रीभिनर्भ््ग त ्।
पुत्त्र ग्ि मर् नगरां, विहरस्ि हररवि्े ।। ४३३ |।
श्ने श्रीननि सस््, श्नां क
ु रु र्ङगले ।
इनत र ज स न्त्िन्त्ि , पुत्रीां कर्लल चन र् ्।। ४३४ ॥
शश स स स्िवपत्र क्तां, शीघ्रां र् धिर्भ््ग त ्।
रुदन ्गदगदकण्ठेन, जग र् नगरां नृपोः ।। ४३५ ।।
भगित्कृ त षण्र् स िथधक गस्त्् श्रर्ि सिनतज्ञ
पदर् ित््नुग देि , ब्रह्र्रुर हदक
ै ्ुातोः ।
सुिणार्ुखरीां ि प््, तत्र ि सर्कल्प्त ्।। ४३६ ।।
27
27
षण्र् स िथध लक्ष्र्ीश , दीक्षक्षत ऽहां र्ह र्ते ।
न शैलर जर् र ह -मर्नत ननजश्चत्् देिर ् ।
अगस्त््भिनां गत्ि , तत्र ि सर्कल्प्त ्।। ४३७ ।।
स्ि ि सां िनत भगित्कृ तदेि हदिेषणर््
देि न्सम्िेष् र् स, स्िध र् नन िृष कवपोः ।
ब्रह्र् दीन ां सुर ण ां च, र्ुनीन र्ूध्िारेतस र् ्॥। ४३८ ॥
ददौ िस्त्रां ्थ ् ग््ां, भगि न ्भक्तित्सलोः।
तेन sज्ञप्त जगदध त्र , जग्र्ुलोक
ां स्िक
ां सुर ोः ।। ४३९ ॥
ऋष्श्च तप ऽरण््ां, जग्र्ुन ार ्ण ज्ञ् ।
लक्ष्र्ीजाग र् र जेन्र, करिीरपुरां तद ॥ ४४० ।।
र्ह त्सिां तां त्िनुभू् देित ोः,
ब्रह्र्ेशपूि ाोः सर्हवषासत्तर् ोः ।
28
28
जग्र्ुोः स्िक
ां ध र् र्ह नुभ ि ोः,
र जेन्रपूज््ां िशशांसुर दर त ्॥ ४४१ ।।
गते देिगणे तत्र, त्िगस्त््ननल्ां गतोः ।
भुञ्ज न भ गर्तुलां, तत्र स्ते भगि न ्हररोः ।। ४४२ ॥
विि ह ध्् ्फल श्रुनतोः
शतािन्द उिाच-
विि ह ध्् ्र् ह त्म््ां, ्े श्रुण्िजन्त जनेश्िर ।
तेष ां भ ग्् द्ां िक्ष््े, श्रुणु र जन ्सविस्तरर् ्।। ४४३ ।।
क हटकन्् िद नेन, ् िदभूमर्िद नतोः ।
्त्फलां लभते देही, तत्फलां श्रिण दर त ्॥ ४४४ ॥
्े उत्सिां क र्जन्त, िैि हां िेङकटेमशतुोः ।
तस्् त्सि भिेर जन्, िेङकटेश िस दतोः || ४४५ ॥
29
29
इनत ते कथथतां र जन ्, विि हचररतां हरेोः ।
श्रुणु् ्र ि्ेदि ऽवप, सि ाभीष्टर्ि प्नु् त ्।
शुभदां श्रृण्ित ां चैि, सिेष ां र्ङगलिदर् ्।। ४४६ ।।
इनत श्रीभविष्् त्तरपुर णे श्रीिेङकट चलर् ह त्म््े
श्रीननि सविि ह हदिणानां न र्ैकदश ध्् ्ोः ।।
30
30
श्री भविष्योत्तर पुराणान्तर्गत
श्रीिेङ्कटेश रहस्यम्-199 slokas
31
31
श्रीिेङकट हरननल्ोः कर्ल क र्ुकोः पुर् न्।
अभङगुविभूनतनाोः तरङग्तु र्ङगलर््।।
श्रीिेङ्कटेशस्य परापर िस्तुत्मिनिरूपणम्
सूत उिाच –
श्रृणुध्िां र्ुन्ोः सिे, शौनक द् स्तप धन ोः ।
तदविष्ण िेङकटेशस््, रहस्् नुभिां परर् ्।। १ ।।
ब्रह्र् ण्डे ् नन तीथ ानन, स्ि्ांव््क्त नन ् नन च ।
थचरन्तन नन क्षेत्र णण, पुण्् रण्् नन पिात ोः । २ ॥
पूिं श्रुत नन सि ाणण, पुर ण नन दविज त्तर् ोः ।
स र् न्् नन च र्ु्् नन, रहस््ां र्ु््र्ुत्तर्र् ्|| ३ ||
अष्ट दशपुर ण न ां, स रां च न्ते र्् श्रुतर््।
व्् सिस द त्क रुण्् -त्पररिश्नेन सेि् ॥ ४ ॥
32
32
िैक
ु ण्ठपदस ्ुज््ां, परर् नन्ददां परर््।
भविष्् त्तरस र ांशोः, सिािेद न्तसङग्रहोः || ५ ||
तत्र वप च त्तरे खण्डे, स क्ष त्सांस रर् चकोः ।
उर् र्हेशसांि दे, रहस्् नुभि दविज ोः ।। ६ ।।
आनन्दननल्स््ैि, क्षेत्रर् ह त्म््र्ुत्तर्र् ्।
र्न्त्र ण ां र्न्त्ररत्ने दिे, दविविधां ध्् नर्ुत्तर्र् ्॥ ७ ॥
श्रृणुध्िां परर् नन्द-पद ि प्त््ै च दुलाभर् ्।
देि न र्वप मसदध न ां, र्हत ां ् थगन ां नृण र््॥ ८ ॥
33
33
अथचककत्स््ग्रहग्रस्त, विकल ङगविरूवपण र् ्
र थगण र्थचककत्स्् न ां, दुष्कर्ापररप ककन र् ्।। ९ ।।
आपदमभरननि ् ामभ-र िृत न ां च दुोःणखन र् ्।
र्ह प तक सम्भूत-क
ु ष्ठ र ग क
ु रूवपण र््॥ १० ॥
क ण न्धबथधर ण ां च, र्ूक न ां पगु क
ु ब्ज् ोः
ि ्जश्चत्तविहीन न ां, प वपन ां दुोःखदुोःणखन र् ्।। ११ ।
क्ि प््नननतक न ां च, सिाद क्र
ू रकर्ाण र् ्।
भिेत्िनतविथधोः सद्ोः, ित््क्ष िेङकट चल त ्।। १२ ।।
भक्त न ां भितप्त न ां, गनतश्च न््त्र न जस्त भ ोः ।
स परोः सिाल क न ां, सिाव्् धीन ्कृ प ननथधोः ।। १३ ।।
ननकृ न्तन्नजस्त चक्र
े ण, ्त्र तस्र् दथध िेङकट त ्।
तस्र् त्स एि गन्तव्् , भ गर् क्षरतैजानैोः ।। १४ ।।
34
34
विशेषतोः क्र
ू रकल नर ण ां,
प प कर ण ां पररपीडडत न र््।
भूग लर्ध््े रविडे च पुण््े,
श्रीिेङकट हरगानतरेि न न्् ।। १५ ।।
कलौ ्ुगे र्नुष्् ण ां, सङकीण ान ां च रक्षक्षत ।
श्रीिेङकटेश न्न न्् ऽजस्त, सि ाननष्टननि रण त ्।। १६ ।।
्ां दृष््ि न परां स्थ नां, ्ां दृष््ि न गर थगररोः ।
्ां दृष््ि न परां तीथं, ्ां दृष््ि न परां तपोः ।। १७ ।।
्ां दृष््ि न पर देि , ्ां दृष््ि न पर र्नुोः ।
्ां दृष््ि न पर भजक्त-्ं दृष््ि न पर गनतोः ।। १८ ।।
्ां दृष््ि न परां ज्ञ नां, ्ां दृष््ि न परां पदर् ्।
्ां दृष््ि न पर ल भ , ्ां दृष््ि न परोः वि्ोः ।। १९ ।।
35
35
्ां दृष््ि न परां ध र्, स क्ष द नन्दस न्रकर््।
्ां दृष््ि न परां ध्् नां, सर् थधरवप न परोः ।। २० ।।
्ां दृष््ि न पर र्ुजक्तोः, सिेजन्र्र्न हर ।
्ां दृष््ि न पर ननत्् , ्स्् क लभ्ां न हह ॥ २१ ॥
्ां दृष््ि ि पर विष्णु-भाक्त्् सिाजगन्र््ोः ।
्ां दृष््ि त्त्रविधां कृ त््ां, कृ ति न्न त्र सांश्ोः ।। २२ ।।
्ां दृष््ि न पर द त , रर्ेश न्न जस्त क र््ोः ।
्ां दृष््ि न परां ब्रह्र्, सज्चद नन्दविग्रह त ्।। २३ ।।
्ां दृष््् न पर ् गोः, स ष्ट ङगोः सिामसदथधद त ्।
्ां दृष््ि न पर: पूणाोः, सिाग िेङकटेश्िर त ्॥ २४ ॥
न िेद न्त त्परां श स्त्रां, न देि िेङकटेश्िर त ्।
न िैक
ु ण्ठ त्परां ध र्, न थगररिेङकटेश त्परोः ।। २५ ।।
36
36
सत््ां सत््ां पुनोः सत््ां, न देि िेङकटेश्िर त ्।
ब्रह्र् ण्डे न जस्त ्जत्कथच-न्न भूतां न भविष््नत ।। २६ ।।
िेङकटेशसर् देि , नेनत िेद न्तननणा्ोः ।
तरहस््सुसांि दां, स्िथचत्तस्िर्ुर्ेश् ोः ।। २७ ।।
श्रृणुध्िर्िध नेन, मसदध न्तां र्ुननपुङगि ोः ।
श्रीसूत उिाच -
क
ै ल सेऽनन्तमशखरे, पिाते ननर्ालज्ज्िले ।। २८ ।।
ज्ञ न ननर्ाल थचत्त ढ्-् थगर्ण्डल सेवितर््।
सुख सीनां र्ह देिां, रत्नमसांह सन त्तर्े ।। २९ ।।
िणणपत्् कृ प मसन्धुां, प िाती प्ापृ्ित ।
श्री पािगत्मयुिाच –
देिदेि विरूप क्ष, त्रैल क््नतमर्र पह ॥ ३० ॥
37
37
ति न्तोःकरण नन्द-रहस्् नुभिां परर््।
र्ुजक्तक्षेत्रेषु मसदध न ां, र्ुक्त न ां कर्ाबन्धन त ्।। ३१ ।।
तेष र् नन्दस न्र ब्धे-रि जप्त्ात्र शङकर ।
तदध र् ग प््ां त्िदध्् न-िैभि नन्दर्ीश्िर ।। ३२ ॥
पूण ानन्दकृ प दृजष्ट-रजस्त चेत्ति र्े िद ।
ईश्िर उिाच –
स धु पृष्टां त्ि् देवि, भक्त न ां हहतक म््् ।। ३३ ॥
वि् वि्तरां र्ेऽजस्त, तरहस््ां िद मर् ते ।
ब्रह्र् ण्डर्ण्डले पुण््े, रविडे िेङकट चले ।। ३४ ।।
रहस््ां सिाल क न ां, प िनां परर् दभुतर् ्।
स्ि मर्पुष्कररण तीथं, भजक्तज्ञ नसुखिदर् ्।। ३५ ।।
दशान त्सिाजन्तून -र् श्र्ां भुवि र जते ।
38
38
आजन्र्सजञ्चतां प पां, दशान देि नश््नत ॥ ३६ ॥
तत्क्षण ज्ज्ञ नसम्पन्न ोः, भुक्त ोः सांस रबन्धन त ्।
पर नन्दपदे जस्थत्ि , र् दन्ते िेङकट चले ।। ३७ ।।
स्न नप नस्पशानैस्तु, ककर्ु िक्तव््र्ीश्िरर ।
स्ि मर्पुष्कररणीतीथा-र्हहर् क
े न िण््ाते ।। ३८ ।।
र्् िक्तुां विररञ्च द्ै-ना शक्् ल क दुलाभोः ।
ककां पुनोः मसदध् गीन्रोः, ससुर सुरर् निैोः ।। ३९ ।।
स धात्त्रक हटतीथ ान ां, प तकर्घनी सुप िनी ।
िेङकटेश्िर सदध म्नोः, सर्न्त द् जनत्र्र् ्।। ४० ।।
र्ुजक्तभूमर्जश्चद नन्द-घनसन्द ह र्ण्डलर् ्।
तत्र जस्थत न ां जन्तून ां, भ ग््ां भ ग््र्ह नृण र् ्॥। ४१ ।।
्दशानां सह ह्ल हद, सज्चद नन्दसम्भृतर््।
अह थचत्रर्ह थचत्र-र्जस्र्न्िैक
ु ण्ठर्ण्डले ।। ४२ ।
39
39
ननर सर् थधसम्पवत्त-ननाि सोः क
े िलां तपोः ।
कृ तकृ त््र्भूज्जन्र्, शेष चलननि मसनोः ॥ ४३ ॥
ि था् र् ि्ां ननत््ां, तां ननि सां नृण ा ककर्ु ।
तथ वप भजक्तसां्ुक्तां, कर् ाच रव्रत हदकर् ्॥ ४४ ।।
र्नोः िस दनां शक्त्् , स्ि मर्िीनतकरां चरेत ् ।
अन्नद नां र्ह पूज -त्सििैभिर्ुत्तर्र््।। ४५ ।।
स्ि मर्िस हदक
ै ङक्ा-र् नन्त्् ् पकल्प््ते ।
्जत्कजञ्चत्स्िणा द न -न्नवपतृश्र दध हदकर्ा च ।। ४६ ।।
अत्र स्थ ने कृ तां सिा-र्नन्तफलदां स्र्ृतर् ्।
ज्ञ ननन ऽज्ञ ननन ि वप, सर् नां भजक्तपूिाकर् ्।। ४७ ।।
क लक्षेप थार्ुत्स हे, कर्ाण बन्धनां न हह ।
थचरन्तनेषु क्षेत्रेषु, र्ुजक्तप त्रर्ुद हृतर् ्।। ४८ ।।
40
40
स ्ुज््र्ुजक्तर नन्द-ि जप्तोः श्रीशैलर्स्तक
े |
र्ुजक्तक्षेत्रेषु र्ुक्त न ां, स्ि नन्द नुभि गर्ोः ।। ४९ ।।
तदविष्ण िेङकटेशस््, पर नन्दपदे जस्थनतोः ।
एतदविथचत्रर्त्रैि, िेङकटेश्िर र्ण्डले ।। ५० ।।
िस्तुस्िभ ि िैथचत्् -त्परर् नन्दक रणर््।
र्ुक्त न ां ् थगन ां र्ध््े, कथचत्परर्् थगर ् ।। ५१ ।।
एतत्परां रहस््ां तु, ल क
े ज न नत च परोः।
सिािेद न्तमसदध न्त-स रस्् नुभिां वि्े ।। ५२ ।।
ब्रह्र् नन्दपदि जप्त, क रणत्ि न्र्र् वि्र् ्।
नैतरहस््र् ्् नां, िक्तव््ां ्स्् कस्् थचत ्।। ५३ ।।
भजक्त्ुक्त ् श न्त ्, िक्तव््ां िेङकटेश्िरे ।
सज्चद नन्दसन्र्ूतेोः, कल्् णगुणि ररधेोः ।। ५४ ।।
41
41
िेङकटेशहरेध्् ान-िैभिां श्रृणु प िानत ।
अनन्तकल्पसज्ज त, प पर मशविन शनर् ्।। ५५ ।।
ि ङर्न: श्रिण नन्द-र्करन्दफलिदर््।
ध्् नश्रिणर् त्रेण, ब्रह्र् नन्दपदिदर््।। ५६ ।।
न शक््ते र्् िक्तुां, तदध र्ध्् नजां फलर््।
तदध र्स्ि मर्नजश्चत्र-र्ि ङर् नसग चरर् ्।। ५७ ।।
ककर्ु गीि ाणमसदधे-ब्राह्र् द्ैर्ुाननर्ण्डलैोः ।
अत एि रहस्् ढ् , ध्् न नुभि उत्तर्ोः ।। ५८ ।।
क्षेत्रे च हदिर हस््, स क्ष ज्ज्ञ नर््े शुभे ।
स्ि मर्पुष्कररणीतीरे, ननर्ाल त्र्मभरीडडते ।। ५९ ।।
स धात्त्रक हटसांस्थ नैोः, पुण््तीथेोः सर् िृते ।
पुण््िृक्षल सत्पुष्प-श्रीगन्धतरुि मसते ।। ६० ।।
42
42
प ररज तिन द् न-रत्नर्ण्डलर्जण्डते ।
न न रुर्लत र र्-पुष्पि टीमभर िृते ।। ६१ ।।
ननर्ारीदेित पक्षक्ष-र्ृग ण ां ध्िननपूररते ।
सर्स्त देित मसदध-् थग र्ण्डल सेविते ।। ६२ ।।
रम््े र्न हर नन्दे, भजक्तस र र्ह त्सिे ।
िैक
ु ण्ठे विरज नद् -स्तटे ब ध वििजजाते ।। ६३ ।।
निरत्नर्् दभूत-सहस्रस्तम्भर्ण्डपे। ।
ज म्बूनदभर क्लृप्त-रत्नि क रभ स्िरे ।। ६४ ।।
रत्निभ लसदधेर्-िैथचत्् विविध ज्ज्िले ।
चतुहदाक्षु चतुध ार्, चतुर्ुाजक्तफलिदर् ्।। ६५ ।।
अनन्त क
ा त हट्चन्रर्ण्डल परर र्ण्डलर् ्।
दुननारीक्षां दुर धषं, दुोःसहां देित दृश र््।। ६६ ।।
43
43
अथचन्त््ां तेजस व्् प्त-र्िर्े्र्ग चरर् ्।
ि हदतां र् ्् विष्ण -व्िामलतां सिात र्ुखर् ्।। ६७ ।।
र्ध््े तुरी्ब्रह्र्््ां, स्ििक शां तदेि सत ्।
स्िशजक्त गुणिैथचत्् -दविसृजदविश्िर्व्््र् ्।। ६८ ।।
उप द नां ननमर्त्तां च, क रणां जगतोः सतोः ।
ऊणान भस्तन्तुनेि, विह रस्तस्् र् ्् ।। ६९ ।।
र्ूलिकृ नतसङग त्त-त्क ्ात्िेन वप सङगतर् ्।
तत्तदि र बहहव््ाक्तां, ततस्तत ्त्त्रविधां कृ तर््।। ७० ।।
तत्तत्कर् ानुगुण््ेन, भ नत स्थूलां र्हत्कृ शर् ्।
विष्ग्रहणे पूिं, दृश््ते हह तदेि सत ्।। ७१ ।।
विदुष र्हर्ुल्लेख, पर र्श ािभ सकर््।
तदुप थधमभरज्िन्नां, र्हत्स्थूलां तथ कृ शर् ्।। ७२ ।।
44
44
स्थूलसूक्ष्र् निरघट -द्थ दग्िनत दीपभ ोः ।
तथैि ब्रह्र्णस्तेज , भ नत मभन्नर्ुप थधमभोः ।। ७३ ।।
उप थधत्र्र्ेतत्तु ,ज्ित्त्ि भजक्तर्त ां नृण र््।
एकर्ेि दविती्ां तत ्, त्त्रशून््ां भ नत जृजम्भतर् ्।।
७४ ।। र्ेघज्िर णण सजञ्िदर्, भ नुतेज इि जत्थतर््।
न न त्िकल्पन ्ुक्तां, विश्ििकृ नतिजजातर् ्।। ७५ ।।
नेनत नेतीनत च श्रुत्् ब थधतां ्त्सरां पदर् ्।
परर्िेत्तुर्शक््त्ि -त्स्ििक शां तदेि सत ्।। ७६ ।।
सत््ां ज्ञ नर्न द्न्त-र् नन्दर्र्ृत जत्थतर् ्।
ननत््शुदधिबुदध त्र्-स्िरूपां ि गग चरर् ्।। ७७ ।।
सिात व्् प्तर् त्र् नां, ननर्ालां ननष्कलां मशिर् ्।
शून्् शून््फलां हहत्ि , िज्ञ नां ब्रह्र् जृजम्भतर् ्॥ ७८ ॥
45
45
भ ि भ िविननर्ुाक्तां, दिैत दिैत वििजजातर् ्।
सज्चद नन्दस न्र जब्ध-पररपूणार्न र््र् ्।। ७९ ।।
सत््थचदधनसूक्ष्र् ग्र््-र्खण्डर्क
ु त भ्र् ् ।
क
ै िल््पदस ्ुज््-पर नन्दपदिदर््।। ८० ।।
ननगुाणां चेजन्र् तीतां, ननर क रां ननरञ्जनर््।
स्िभक्तदशान थ ा्, ल क न ां रक्षण ् च ।। ८१ ।।
कृ प् सिादेि न ां, मसदध न ां ् थगन ां हहतर् ्।
क लिि हगम्भीर-र् ् िताभि म्बुधोः ।। ८२ ।।
त रण ् िरां द तुां, भजक्तज्ञ नपुरस्सरर््।
भजत ां ि ञ्ित ां सम्प-द ्ुर र ग््िधानर् ्॥ ८३ ॥
अणणर् द्ष्टमसदथधां च, ् गमसदथध च सजन्दशत ्।
अष्ट ङग्ुक्त ां सदविद् -मसदथध च विज् जन्ित र््॥ ८४ ॥
46
46
र्न्त्र्न्त्रर्ह तन्त्र-देित मसदथधक रणर् ् ।
स्ि ांश ित रर्ूतीन ां, सिाशजक्तफलिदर् ्।। ८५ ।।
त्त्रक ल् ग्् िक्ष थं, स्ििमसध्द्थाक रणर् ्।
स्िीक
ु िात्स्िगुणां ब्रह्र्, र्ूनतार्त्तदन र््र् ्।। ८६ ।।
िैक
ु ण्ठेन सह गतां पर-मर्दां श्रीिेङकट हरस्थलां ।
पूिा ज्ञ निर हर्ूनता-हररण भूम्् सह थधजष्ठतर््।
लक्ष्म्् मलङथगतरूपपद्, सगुणां कल्् णर् स्ते दधत ्।
शुदधां ब्रह्र् तदेि विश्ि-जननस्थेनव््् न ां िभुर््।। ८७ ।।
सि ाध््क्षां र्ह विष्णुां , सिाल क
ै कन ्कर् ्।
क रुण्् नन्द ब हुल्् -त्सि ाश्च्ार््ां विभुर् ्॥ ८८ ॥
आनन्दर्ूनतार् नन्द-र्थचन्त््ैश्ि्ासां्ुतर््।
क हटब ल क
ा सङक शां, तडडत्क हटसर्िभर््।। ८९ ।।
चन्रक हटिभां रत्नज -म्बूनदपररष्कृ तर््।
47
47
विर् न देित र्ूनता, तेज र्ण्डलसां्ुतर््।। ९० ।।
हदव््ां विर् नर् रूढां, जस्थतां परर्श भनर् ्।
सिोत्तर्ां र्ह ि््ां, सि ालङक रभूवषतर् ्।। ९१ ।।
नीलजीर्ूतसङक शां, पीत म्बरतडडदिृतर् ्।
रत्नत रण विद् त-र् न दि रिभ जन्ितर््।। ९२ ।।
पञ्च ्ुधिरैहदाव््ै-र्ूानतार्दमभरुप मसतर् ्।
चण्डिचण्डिर्ुखै-दाि रप लैरमभष्टुतर््।। ९३ ।।
सुनन्दनन्दिर्ुखैोः, प ररषद्ैोः सर्जन्ितर््।
रविक हटिक श ढ्ां, चन्रक हटसुशीतलर् ्।। ९४ ॥
अनघारत्नखथचत-हदव्् भरणभूवषतर््।
अ््ुत नन्तग विन्द-िर्ुख नन्त विग्रहर् ्।। ९५ ॥
48
48
पूणाब्रह्र्तनुि््-कृ ष्णर र् ित रकर््।
आद्न्तरहहतां सत््-ज्ञ नविज्ञ नविग्रहर््॥ ९६ ॥
ननणखल पननषत्स र-घनसांिेद् विग्रहर् ्।
श्रीभूमर्सहहतां श्् र्ां, सुन्दरां िेङकटेश्िरर् ्।। ९७ ।।
अनेक क हटकन्दपा-ल िण््र्थन जत्थतर््।
जगन्र् हन ग प ल-लील िैथचत्र््क रणर््।। ९८ ॥
न न गर्रस मभज्ञै-िैख नसर्हवषामभोः ।
ब्रह्र् गस्त््भरदि ज-सनकव्् सनन्दनैोः ।। ९९ ।।
ि र्देिशत नन्द-भृग्ि द्ैश्च िपूजजतर््।
जनक द्ैनृापश्रेष्ठै-रथचातां पुरुष त्तर्र् ्।। १०० ।।
बहुिषासहस्र णण, स्ि मर्पुष्कररणीतटे ।। १०१ ।।
र्त्क
ु र् रतप ध्् न-सर् थधक
ु सुर् थचातर््।
क
ु र् रां परर् नन्द-परां ननत्् मभषेथचतर् ्।। १०२ ।।
49
49
र्र् न्तोःकरण नन्द-स्ि नुभूनतरस ल्र् ् ।
शङखचक्र भ् द्ुक्त-ननतम्बस्थचतुभुाजर् ्।। १०३ ।
दशानी्तर्ां ल क
े , िसन्निदन म्बुजर् ्।
आकण ान्तविश ल क्षी, कट क्ष जब्धतरङथगणर् ्॥ १०४ ॥
र्न्दजस्र्तां सुन स ग्रां, सुध्रुिां फ लश मभतर््।
ज म्बूनदेन्दुकस्तूरी-क
ुां क
ु र् द्ूध्िापुण्रकर् ्।। १०५ ॥
प दनूपुरर् रभ््, ककरीट न्तैोः सर्थचातर् ्।
िज्र ङक
ु शध्िज ब्ज -हदरेख प दलल र्् ोः ।। १०६ ।।
नखर्ण्डलचन्र ण ां, ज्् त्स्न् जजतर् ्् ोः ।
विलसत्क
ु चक हठन््-क
ु ङक
ु र् ङककत रेख् ोः ।। १०७ ।।
कर्ल कर क हठन््-भ विम्रहदर्श मलन ोः ।
भजत ां परर् नन्द-र्करन्दिद न््् ोः ।
50
50
लसन्र् णणक््र्ञ्जीर-विद्ुत्पुञ्जिभ र्रैोः ।। १०८ ।।
र्णणककङककणणकज ल-घ षैिेद न्तरूवपमभोः ।
प द रविन्दसौन्द्ा-् ग्् नघासुभूषणैोः ।। १०९ ।।
च रुज नूरुल िण््-िभ रजञ्जतभूषणैोः ।
ननतम्बविलसत्पीत-कौशे् म्बरर्ेखलैोः ।। ११० ।।
अनघारत्नखथचतै-ज ाम्बूनदपररष्कृ तैोः ।
विथचत्रतेजस ां पुञ्जोः, क ञ्चीिैडू्ार्ण्डलैोः ।। १११ ।।
न भीपुटलसत्पीत-पदर्क शथश्र् ज्ज्िलैोः ।
ऊध्िार र् िलीभ मभ-जजातेन्रर्णणक जन्तमभोः ।। ११२ ।।
र्ुक्त द र्लसदिक्षोः-स्थलपदर् तडडत्करैोः।
ज्् नतर्ा्ैब्राह्र्सूत्रै-स्तपनी्र्् ज्ज्िलैोः ।। ११३ ।।
कम्बुग्रीि लसत्कण्ठ-र् ल रत्निभ ङक
ु रैोः
।
पदक
े षु लसन्न न -र्णणदीप िलीिरैोः ।। ११४ ॥
51
51
सुरत्न ङगदक
े ्ूर-कङकणैरङगुली्क
ै ोः ।
इन्रनीलर्णणश्् र्-रर्णी् हहभूषणैोः ।। ११५ ।।
शङखचक्र भ् हद श्री-भूवषतैश्च भुज त्तर्ोः।
सुच रुचुबुक ल्ल मस-पल्लि धरप टलैोः ।। ११६ ।।
िज्रपङजक्तलसददन्त-क जन्तचन्र तपजस्र्तैोः ।
पूणाचन्रर्ुख ांभ ज-रम््न स सर् न्नतैोः ।। ११७ ।।
सुिणार्करि््-क
ु ण्डल भ्् ां कप ल् ोः ।
जजतब ल क
ा त्बम्ब भ्् ां, सौन्द् ाकरसीर्् ोः ।। ११८ ।।
द् म्बुथधसुध स्न न-कर्ल क्षक्षदि् त्सिैोः ।
र्णणच पलत च रु-रूल्लसदभ लप्टक
ै ोः ।। ११९ ।।
आनीलथचक
ु र न्तोःस्थ, र्ुक्त र जजविर जजतैोः ।
रर्णी्सुकण ाक्षक्ष-ननहटल लकक
ु न्तलैोः ।। १२० ।।
र जजत्करीटसौन्द्ा-जजतकन्दपाक हटमभोः ।
52
52
त्त्रतेज ऽथधकसङक शै-न ान रत्नैर्ाह श्र्ैोः ॥ १२१ ॥
तप्तह टकसांलग्नै-न ान िैथचत्र््रजश्र्मभोः ।
अलङकृ तां ककरीटेन, स्कन्ददत्तेन तेन च ॥ १२२ ॥
र जर् नां द् म्भ थध, सुध ध र मभिवषाणर् ्।
सि ाङगभूषणैस्सिा-जगन्र् हनविग्रहर््।
रूपल िण्् सि ाङग-भूषण द्ैरनतवि्र््।। १२३ ।
आप दक
े श विलसन्र्णणर्न्र्ह हा,
नेपथ््ज लर्णणक जन्ततडडत्क
ु ल न र््।
ज म्बूनद ग्र््खथचत र्लरम््भ स ां,
स प नप मलमभरतीि भृश मभर र्र््।। १२४ ॥
त र गणेन्दुरविर्ण्डलर्जण्डत द्-
त्सौद मर्नी विपथग ग्रहर मश्ुक्तर््।
त क्ष््ोद् हरकनक चलश्रृङगननष्ठां,
53
53
क ल रबृन्दमर्ि क जन्तक
ु ल मभर र्र््।। १२५ ।।
श्रीिेङकटेशर्नतसुन्दर र् हन ङगां,
श्री भूमर्क न्तर्रविन्ददल ्त क्षर् ् ।
ि णवि्ां िविलसत्करुण म्बुर मशां,
ब्रह्र्ेशिन्द्र्र्ृतां िरदां भज मर् ।। १२६ ।।
सततां हृद् म्भ ज-र्ध््े श्रीिेङकटेशश्िरर् ्।
िणि थास्िरूपां तां, त्त्रर्ण्डलसुसांजस्थतर् ्।। १२७ ।।
चन्रसू् ाजग्नत्बम्ब न ां, िक शकरर्््ुतर््।
ध्् नस्िरूपां देिेशां, सिाद नन्ददां र्र् ।। १२८ ।।
आप दर्स्तक न्तां िै, श्रीर्दभूषणभूवषतर् ्।
चन्दन गरुकपूार-कस्तूरी र्ृगल ञ्िनैोः ।। १२९ ।।
क
ु ङक
ु र्ैघानसौरभ््, सुि मसत हदगन्तरैोः ।
मर्थश्रतैहदाव््गन्धैश्च, सुमलप्त ङगां र्न हरैोः ।। १३० ।
54
54
न न िणालसत्पुष्प- हदव््सौरभ््र् ल् ।
हहर् म्बुमसक्त् हदव््-िैज्न्त्् विर जजतर् ्॥ १३१ ॥
क
ु र् रस्ि मर्न ननत््ां, भक्त्् ननर्ालचेतस ।
हदव्् त्सिैहदाव््रस-िि ह र्ृतप ्सैोः ।। १३२ ।।
दथधक्षीरघृतैहदव््-सूप न्नर्धुशक
ा रैोः ।
हदव्् सौरभनैिेद्ैोः, षरस र्ृतप ्सैोः ॥ १३३ ॥
हदव्् पच रैोः कल्् ण-िैभिैोः ष डश मभधैोः ।
हदव्् सौरभत म्बूलै-र्ुाक्तोः चूणाविमर्थश्रतैोः ।। १३४ ।।
कपूारिीहटक मभश्च, हदव््भ गैोः सुपूजजतर् ्।
सि ाङगभूषण थधक््-लसत्कर्ल् सह ।। १३५ ।।
धूपदीपर्ह दीप-र जन्नीर जन त्तर्ैोः ।
सुन्दरैश्च र्रैश्ित्रै-व््ाजनैदापण त्तर्ैोः ।। १३६ ।।
गीति हदत नृत््ैश्च, र्ृदङगपटह नक
ै ोः ।
55
55
िीण िेणुसुत ल द्ै-गोर्ुखस्िरर्ण्डलैोः ।। १३७ ।।
तू्ाभेरी सुशङखेन्र-हदव््घ षहदिौकस र् ्।
मसदधककन्नरगन्धि ा-प्सरोः ककम्पुरुषव्रजैोः ।। १३८ ॥
सतुम्बुरुह ह हूहू-न रद हदसुरवषामभोः ।
गरुड रग्क्ष ण ां, विद् धरविन हदन ां ॥ १३९ ॥
सङगीतर्धुर ल पैोः, स्कन्दस्त त्रैोः सुत वषतर् ्।
शुदधसत्त्िर्् क र-र्वप स्ि मर्सरस्तटे ।। १४० ॥
रर्न्तां रर्् स धा-र् नन्दकरर् नसर््।
िसन्तर्र्ल नन्द-र् त्र् र र्ां र्ुद जन्ितर् ्।। १४१ ।।
सर्स्तदेित िन्द्ां, स िाभौर्मशख र्णणर् ्।
कत ारां सृजष्टक ले च, भत ारां प लने जगत ्।। १४२ ।।
हत ारां िल्े क ले, िेङकटेश्िरर्व्््र््।
सिादेि नन्न्त रां, सिादेिेश्िरेश्िरर््।। १४३ ।।
56
56
चर चर त्र्क
ां विश्िां, रक्षक्षत रां कृ प ननथधर् ्।
ककरीट ङगदसांर ज-ददीघाब हुर्ररन्दर्र् ्।। १४४ ।।
सि ाङगलक्षण नन्दां, दशा्न्तां पद म्बुजर् ्।
सत््ां विशुदधविज्ञ नां, घनिज्ञ पदां हररर् ्।। १४५ ।।
क रुण््विग्रहां देिां, सिाजीिद् परर््।
उप स्र्हे ि्ां ननत््ां, हृद्ेऽष्टदल म्बुजे ।। १४६ ।।
अष्ट क्षरपद नन्दां, रर्ेशां कणणक परर ।
एिां ध््े्ांपुरस्कृ त््, पश्च दध्् नमर्दां िदेत ्।। १४७ ।।
्न्न र्श्रुनतस रस न्र-जसथधस्थ ने लसत्कौस्तुभां
स्ि ज्ञ न न्धतमर्स्रदुोःख-हरणां र्त्पुत्त्रसज्जीिनर् ्।
विश्ि भीष्टिरिद नफलदां, भ गीन्रसदभूषणां ।
सिैश्ि्ाननद नर् त्र्िरदां, श्रीिेङकटेशां भजे ॥ १४८ ॥
57
57
सन्त ष र्र् िेङकटेश, ननकटे श्रीस्िणार्ु्् स्तटे
स्ि ि स भितीनत हदव््-सररतोः स्िग ापिगािदे ।
क
ै ल से विथधक
ु म्भसम्भ-िनुते श्रीक लहस्तजस्थले
क
ै िल््े िसत र्नन्त-र्हहर् ् गीश्िर दुलाभोः ।। १४९ ॥
त रां ननतां सर्ुदधृत््, श्रीपूिार्न्त्रर्ु्चरेत ्।
नि क्षरमर्दां देवि, सिाग प््ां हृहद जस्थतर् ्।
त्िन् स्नेह त्सर् ्् तां, पर नन्दपदिदर् ्।। १५० ।।
नर्ोः श्रीिेङकटेश ्, शुदधज्ञ नस्िरूवपणे ।
ि सुदेि ् श न्त ्, श्रीननि स ् र्ङगलर् ्।। १५१ ।।
र्न्त्रध्् नमर्दां कृ त्ि , पश्च न्र्न्त्रमर्दां िदेत ्।
नर्ोः श्रीिेङकटेश ्, नर् ऽन्तां ि सर्ु्चरेत ्।। १५२ ।।
अष्ट क्षरमर्दां ्् तां, भुजक्तर्ुजक्तफलिदर् ्।
रहस््ां सिार्न्त्र ण ां, ग पनी्ां ि्त्नतोः ।। १५३ ।।
58
58
स्ि मर्पुष्कररणीस्न नां, िेङकटेश्िरदशानर् ्।
र्ह िस दस्िीक र-स्त्र्ां त्रैल क््दुलाभर् ्।। १५४ ।।
सिात्र कीता्ेत्ि ज्ञोः, स्ि मर्पुष्कररणीां पर र् ्।
सुिणार्ुख हदव्् ां, िेङकटेश्िरर्व्््र््।। १५५ ।।
अज्ञ न न्धतर्ोः सू्ं, प वपन ां तु ि र चते ।
तु एतत्सूक्ष्र्तरां पुण््ां, ् थगन र्वप दुलाभर् ्।। १५६ ।।
स्ि मर्पुष्कररणीां गङग ां, सुिणार्ुखरीां पर र् ्
िेङकटेशां हररां सेतुां, सिातीथेषु सांस्र्रन्।। १५७ ।।
र्ह प तकसङघेभ्् , र्ुक्तोः िज्ञ नि न ्भिेत ्।
एतत्स्थूलां र्ह पुण््ां, प वपन ां तु न र चते ।। १५८ ।।
स्ि मर्पुष्कररणीतीथं, हदव््ौषधरस ्नर् ्।
िैद्ोः श्रीिेङकटेश ऽ्ां, र्ृत््ुर गननकृ न्तनोः ।। १५९ ।।
59
59
् िदिेङकटन ्कस््, मशखरि जप्तना िै ् थगन ां
त िज्जन्र्जर हददुोःखननल्ोः सांस रक ल हलोः।
ब्रह्र् ण्ड न्तपरररर्त्कृ त-र्ह पुण््ौधचन्र द्े
सत्सङग र्ृत सेिन दधररर््े िीनतभािेदिेङकटे ।। १६० ।।
् िन्न जस्त सर्स्तल करर्णोः श्रीिेङकटेश मभधोः
स्ि नन्द नुभि जस्थर ऽर्ल-थध् ां ् गीश्िरण ां नृण र् ्।
न न ् ननषु गभाि स-र्सुखां विण्र्ूत्रश क क
ु लां
सम्ि प्् शु विन शदुोःख-नरक ांस्त िदभि ब्धौजस्थनतोः।। १६१
आ्् नां देित ग प््ां, ब्रह्र्ग प््ां सर् सतोः ।
इदर्ेि र्र् नन्दां, ध्् नां हृद्ग चरर््।। १६२ ।।
अस्् श्रीिेङकटेशस््, सीर् ् ां ् त्त्रक
े जने ।
ि ङर्नोः क ्िगेण, ्े क
ु िाजन्त नर धर् ोः ।। १६३ ।
60
60
उपरिां च घ तां च, रव््ां च पह रजन्त ते ।
रौरि हदषु सिेषु, नरक
े षु च द रुणर््।। १६४ ।।
ब्रह्र्कल्पसहस्र न्तां, प््न्ते न त्र सांश्ोः ।
भक्त् श्रीिेङकटेशस््, सीर् रक्ष ां कर नत ्ोः ।। १६५ ।।
स एि र ज््कत ा स्् -ददेह न्ते र्ुजक्तर् प्नु् त ्।
परर् नन्ददां ध्् नां, कृ त्ि न्नां भुज््ते र्् ।। १६६ ।।
त्ि् सर् नैि नैि, ध््े् ब्रह्र् ण्डग ल क
े ।
सत््ां श्रीिेङकटेशस््, सर्ोः क लत्र्ेऽवप ि ।। १६७ ।।
एतां रहस््र्ध्् ्ां, श्रीिेङकटपतेोः वि्र् ्।
जवपत्ि भुज््ते ्ेन, ित््हां परर् त्र्नोः ।। १६८ ।।
नृत््जन्त वपतरोः सिे, सन्तुष्ट स्तस्् िांशज ोः ।
देि श्च ऋष्स्तृप्त ोः, ि् जन्त परर्ां पदर् ्।। १६९ ॥
61
61
ऋिय ऊचुः -
आश्च्ार्तुलां श्रुत्ि , परर् नन्दननिृात ोः ।
आनन्द श्रुपररजक्लन्न , र र् जञ्चतिपुधार ोः ।। १७० ।।
विजस्र्त ोः शौनक द् स्तु, भक्त्् नन्दां पुनगात ोः ।
पुनध्् ानां सर् स द्, पुनगादगद् थगर ।। १७१ ।।
ऊचुोः शनैर्ाह त्र् नां, सूतां पौर णणक त्तर्र् ्।
व्् समशष््ां र्ह भ गां, श स्त्रमसदध न्तक विदर््।। १७२ ।।
अद् श्रुतां श्रुतां र्ु््-र्द् नन्दां गत ि्र््।
अद्ैि जन्र् सफलां, स क्ष त्सांस रर् चकर् ्।। १७३ ।।
त्ित्िस द दगमर्ष्् र् , ि्ां शेष चलां िनत ।
श्रीसूत उिाच –
अष्ट दशपुर णेनत-ह स न र्ुपधमर्ाण र््।। १७४ ।।
62
62
पुर ण न ां स्र्ृतीन ां च, सिेष ां श्रुनतस ररण र््।
अणखल पननषत्स र-िेद न्त न ां र्ुनीश्िर ोः ।। १७५ ।।
श्रिणैश्च कृ तै्ोगे-भाजक्तज्ञ नविर गदैोः ।
्ज्ञद नतपोः कर्ा-व्रतर्न्त्रजप चानैोः ।। १७६ ।।
आजन्र् नैमर्श रण््-कृ तपुण््ैरनेकशोः ।
भित र् गतां हस्ते, स क्ष त्सांस रर् चकर् ्।। १७७ ।।
िैक
ु ण्ठस्थ नशेष हर, ि जप्तरूपां र्हत्फलर् ्।
अहां ग प््मर्दां िेदमर्, शुक िेवत्त न च परोः ।। १७८ ।।
र्दगुर ोः कृ प् ऽधीत-र्ुक्तां च भित ां दविज ोः ।
ग्िध्िां र्ुन्ोः सिे, सस्त्रीिृदध ोः सब लक ोः ।। १७९ ।।
सर् प्् सत्रां सकलां, विलम्ब र् स्तु शीघ्रतोः ।
तत्र गत्ि पि सेन, स्न त्ि स्ि मर्सर िरे ।। १८० ।।
नत्ि द्ां भूमर्ि र हां, ज्ञ नक्षेत्रननि मसनर् ्।
63
63
हदव््ां विर् नर् श्ि्ं, नत्ि श्रीिेङकटेश्िरर् ्।। १८१ ।।
िदक्षक्षणनर्स्क रैोः, स्तुत्ि स्त त्रैोः िणम्् च ।
नैिेद्द नधर्ैश्च, पूज ां कृ त्ि च भजक्ततोः ।। १८२ ॥
र्ौनव्रतर्थ त््क्त्ि , क्षर् पूिं िरिदर् ् ।
सम्ि थ््ा ननिस र् sत्र, भू् त्तेऽनुग्रह र्ह न्।। १८३ ।।
इत््ेिां क ्ि जक्च-त्तैननि सां सत््र्ीररतर् ्।
क
ु रुध्िां त्िर् भक्त्् , ्ू्ां िैक
ु ण्ठिेङकटे ।। १८४ ।।
परर् नन्दस न्र ब्धौ, क्रीडध्िां र्ुननपुङगि ोः ।
सर्स्तदेित मसदध-सजन्नध ि त्र्िेङकटे ।। १८५ ।।
स्ि मर्न क्षेत्रप लेन, सुिसन्नेन रक्षक्षते ।
ननि सर्वप ननविार्घनां, क
ु रुध्िर्विशङक् ।। १८६ ।।
त् रनुग्रहेणैि, िैक
ु ण्ठक्षेत्रप ल् ोः ।
भरां ि िसत ां ननत््ां, श श्ितां भिनत दविज ोः ।। १८७ ।।
64
64
अजस्र्न ्क्षेत्रे कृ त न ां च, र्हत ां प पकर्ाण र् ्।
क्षेत्रप लस्् शूल ग्रे, ् तन चक्रिदभिेत ्।। १८८ ।।
्ुग न्तां क्षणर् त्रेण, तेष ां क लस्तु ग्िनत ।
प प न्ते र्ुजक्तरस्त््ेि, िेङकट र न सांश्ोः ।। १८९ ॥
सत््ां सत््ां पुनोः सत््ां, र्दगुर िाचनां दविज ोः ।
भित ां पुण््शील न ां, नैमर्ष रण््ि मसन र् ्|| १९० ।।
कृ प् नुग्रहां लब्ध्ि , क शीां गत्ि िणम्् च ।
र्दगुर ोः प दर्ूलां च, व्् सस्् मर्ततेजसोः ।। १९१ ।।
अनुज्ञ् गमर्ष्् मर्, िेङकट हर दविज त्तर् ोः ।
सूति क््ां तद श्रुत्ि , शौनक द् ऋषीश्िर ोः ।। १९२ ।।
सर् प्् सर् गत््, िेङकट हरर्नूष्् च ।
सूति क््िर् णेन, तत्र नन्दपद म्बुधौ । १९३ ।।
देह न्तां ि प्् र् दन्ते, ससूत ोः शौनक द्ोः ।
65
65
इर्ां पवित्रर्ध्् ्ां, स क्ष त्सांस रर् चकर् ्।। १९४ ॥
सिािेद न्तमसदध न्तां, ्ोः श्र ि्नत ननत््शोः ।
िेङकटेश्िरभक्तेभ्् , ब्र ह्र्णेभ््श्च ् थगन र् ्।। १९५ ।।
्ोः श्रुण नत सद भक्त्् , रहस्् नुभि त्तर्र् ्।
्ोः स्थ प्नत ल क
े ऽजस्र्न्, मसदध न्तमर्र्र्दभुतर््।। १९६
विद् थी लभते विद् ां, धन थी लभते धनर् ्।
पुत्र थी लभते पुत्र न ्, कन्् थी लभते िधूर् ्।। १९७ ।।
िश्् थी िश््र् प्न नत, ज् थी ज्र् प्नु् त ्।
र् क्ष थी र् क्षर् प्न नत, ज्ञ न थी ज्ञ नर् प्नु् त ्॥। १९८ ।।
66
66
् ् क र््ते मसदथध, त ां त र् प्न नत स दविजोः ।
िेङकटेशे परौ िीनत, लभते स ऽनतभजक्तर् न ्।। १९९ ।।
इनत भविष्् त्तरपुर णे श्रीिेङकट चलर् ह त्म््े
उर् र्हेश्िरसांि दे सकल पननषमसदध न्त श्रीिेङकटेश्िर
रहस्् नुभिीन र् शीनततर् ऽध्् ् ऽत्र िथर् ऽध्् ्ोः ।।
।। श्रीिेङकटेश पाणर्स्तु ।।
श्री भविष्् त्तर पुर ण न्तगात श्रीिेङकट चलर् ह त्म््र् ्
िथर् ऽध्् ्ोः
शौनक उि च
सूत सूत र्ह भ ग , सिाश स्त्रविश रद ।
त्ित्त ऽहां श्र तुमर््ि मर्, र् ह त्म््ां पुण््िधानर् ्॥ १ ॥
र्ङगल चरणर् ्

Contenu connexe

Similaire à D07_SVCMahatmyam_v1.pdf

मानवधर्मशास्त्र अथ मनुस्मृति or Manu smruti
मानवधर्मशास्त्र अथ मनुस्मृति or Manu smruti मानवधर्मशास्त्र अथ मनुस्मृति or Manu smruti
मानवधर्मशास्त्र अथ मनुस्मृति or Manu smruti Sadanand Patwardhan
 
Sanskrit slogen
Sanskrit slogenSanskrit slogen
Sanskrit slogenKVS
 
rudrakshajabala-upanishad-SN.pdf
rudrakshajabala-upanishad-SN.pdfrudrakshajabala-upanishad-SN.pdf
rudrakshajabala-upanishad-SN.pdfSushant Sah
 
Sanskrit great writers and poets...!!
Sanskrit great writers and poets...!!Sanskrit great writers and poets...!!
Sanskrit great writers and poets...!!Sejal Agarwal
 
Brahma naspatisuktam 1
Brahma naspatisuktam 1Brahma naspatisuktam 1
Brahma naspatisuktam 1Vedam Vedalu
 
Sri rudram laghunyasam large
Sri rudram laghunyasam largeSri rudram laghunyasam large
Sri rudram laghunyasam largePRANAV VYAS
 
Sankhya Karikah 1-51.pdf
Sankhya Karikah 1-51.pdfSankhya Karikah 1-51.pdf
Sankhya Karikah 1-51.pdfvsballa1
 

Similaire à D07_SVCMahatmyam_v1.pdf (20)

Srimadbhagavata parayanam
Srimadbhagavata parayanamSrimadbhagavata parayanam
Srimadbhagavata parayanam
 
Sanskrit - Judith.pdf
Sanskrit - Judith.pdfSanskrit - Judith.pdf
Sanskrit - Judith.pdf
 
D05_SVCMahatmyam_v1.pdf
D05_SVCMahatmyam_v1.pdfD05_SVCMahatmyam_v1.pdf
D05_SVCMahatmyam_v1.pdf
 
मानवधर्मशास्त्र अथ मनुस्मृति or Manu smruti
मानवधर्मशास्त्र अथ मनुस्मृति or Manu smruti मानवधर्मशास्त्र अथ मनुस्मृति or Manu smruti
मानवधर्मशास्त्र अथ मनुस्मृति or Manu smruti
 
Sanskrit slogen
Sanskrit slogenSanskrit slogen
Sanskrit slogen
 
Haariitagiitaa
HaariitagiitaaHaariitagiitaa
Haariitagiitaa
 
Sanskrit - The First Gospel of the Infancy of Jesus Christ.pdf
Sanskrit - The First Gospel of the Infancy of Jesus Christ.pdfSanskrit - The First Gospel of the Infancy of Jesus Christ.pdf
Sanskrit - The First Gospel of the Infancy of Jesus Christ.pdf
 
rudrakshajabala-upanishad-SN.pdf
rudrakshajabala-upanishad-SN.pdfrudrakshajabala-upanishad-SN.pdf
rudrakshajabala-upanishad-SN.pdf
 
Sanskrit - First Esdras.pdf
Sanskrit - First Esdras.pdfSanskrit - First Esdras.pdf
Sanskrit - First Esdras.pdf
 
Sanskrit great writers and poets...!!
Sanskrit great writers and poets...!!Sanskrit great writers and poets...!!
Sanskrit great writers and poets...!!
 
Sanskrit - Testament of Zebulun.pdf
Sanskrit - Testament of Zebulun.pdfSanskrit - Testament of Zebulun.pdf
Sanskrit - Testament of Zebulun.pdf
 
Brahma naspatisuktam 1
Brahma naspatisuktam 1Brahma naspatisuktam 1
Brahma naspatisuktam 1
 
03_Sundara Kandam-v3.pdf
03_Sundara Kandam-v3.pdf03_Sundara Kandam-v3.pdf
03_Sundara Kandam-v3.pdf
 
Devi Mahatmyam
Devi Mahatmyam Devi Mahatmyam
Devi Mahatmyam
 
Sanskrit - Ecclesiasticus the Wisdom of Jesus the Son of Sirach.pdf
Sanskrit - Ecclesiasticus the Wisdom of Jesus the Son of Sirach.pdfSanskrit - Ecclesiasticus the Wisdom of Jesus the Son of Sirach.pdf
Sanskrit - Ecclesiasticus the Wisdom of Jesus the Son of Sirach.pdf
 
Triguna
TrigunaTriguna
Triguna
 
F30 Mukundamala Part 4
F30 Mukundamala Part 4F30 Mukundamala Part 4
F30 Mukundamala Part 4
 
Sri rudram laghunyasam large
Sri rudram laghunyasam largeSri rudram laghunyasam large
Sri rudram laghunyasam large
 
Sankhya Karikah 1-51.pdf
Sankhya Karikah 1-51.pdfSankhya Karikah 1-51.pdf
Sankhya Karikah 1-51.pdf
 
radhe
radheradhe
radhe
 

Plus de Nanda Mohan Shenoy

Plus de Nanda Mohan Shenoy (20)

Srimadbhagavata_parayanam_v3.pdf
Srimadbhagavata_parayanam_v3.pdfSrimadbhagavata_parayanam_v3.pdf
Srimadbhagavata_parayanam_v3.pdf
 
09_Sundara Kandam_v3.pdf
09_Sundara Kandam_v3.pdf09_Sundara Kandam_v3.pdf
09_Sundara Kandam_v3.pdf
 
08_Sundara Kandam_v3.pdf
08_Sundara Kandam_v3.pdf08_Sundara Kandam_v3.pdf
08_Sundara Kandam_v3.pdf
 
07_Sundara Kandam_v3.pdf
07_Sundara Kandam_v3.pdf07_Sundara Kandam_v3.pdf
07_Sundara Kandam_v3.pdf
 
06_Sundara Kandam_v3.pdf
06_Sundara Kandam_v3.pdf06_Sundara Kandam_v3.pdf
06_Sundara Kandam_v3.pdf
 
05_Sundara Kandam_v3.pdf
05_Sundara Kandam_v3.pdf05_Sundara Kandam_v3.pdf
05_Sundara Kandam_v3.pdf
 
04_Sundara Kandam_v3.pptx
04_Sundara Kandam_v3.pptx04_Sundara Kandam_v3.pptx
04_Sundara Kandam_v3.pptx
 
02_Sundara Kandam_v3.pdf
02_Sundara Kandam_v3.pdf02_Sundara Kandam_v3.pdf
02_Sundara Kandam_v3.pdf
 
01_Sundara Kandam_v3.pdf
01_Sundara Kandam_v3.pdf01_Sundara Kandam_v3.pdf
01_Sundara Kandam_v3.pdf
 
CEPAR Conference _20230204.pdf
CEPAR Conference _20230204.pdfCEPAR Conference _20230204.pdf
CEPAR Conference _20230204.pdf
 
Digitial Personal Data Bill 2022 feedback
Digitial Personal Data Bill 2022 feedbackDigitial Personal Data Bill 2022 feedback
Digitial Personal Data Bill 2022 feedback
 
IS17428_ISACA_Chennai_20220910.pptx
IS17428_ISACA_Chennai_20220910.pptxIS17428_ISACA_Chennai_20220910.pptx
IS17428_ISACA_Chennai_20220910.pptx
 
F 32-Mukundamala- Part-6
F 32-Mukundamala- Part-6F 32-Mukundamala- Part-6
F 32-Mukundamala- Part-6
 
F31 Mukundamala Part-5
F31 Mukundamala Part-5F31 Mukundamala Part-5
F31 Mukundamala Part-5
 
F29- Mukundamala- Part-3
F29- Mukundamala- Part-3 F29- Mukundamala- Part-3
F29- Mukundamala- Part-3
 
F28-Mukundamala Part-2
F28-Mukundamala Part-2F28-Mukundamala Part-2
F28-Mukundamala Part-2
 
F27 Mukundamala- Part-1
F27 Mukundamala- Part-1F27 Mukundamala- Part-1
F27 Mukundamala- Part-1
 
F26- Narada Bhakti Sutra -Part-7
F26- Narada Bhakti Sutra -Part-7F26- Narada Bhakti Sutra -Part-7
F26- Narada Bhakti Sutra -Part-7
 
F25 samskritham21-
F25 samskritham21-F25 samskritham21-
F25 samskritham21-
 
F24 samskritham21-Narada Bhakti Sutra-5
F24 samskritham21-Narada Bhakti Sutra-5F24 samskritham21-Narada Bhakti Sutra-5
F24 samskritham21-Narada Bhakti Sutra-5
 

D07_SVCMahatmyam_v1.pdf

  • 1. 1 1 श्री भविष्योत्तर पुराणान्तर्गत श्रीिेङ्कटाचलमाहात्म्यम ् Day 7 एकादशोऽध्यायः 301-446 Sloka &श्रीिेङ्कटेश रहस्यम ्199 slokas
  • 2. 2 2 सभ ां चक र रत्न ढ् ां, विश्िकर् ा विभ ोः वि् र् ्। तत्र sसीन र्ह भ ग ोः, ब्रह्र् द् ोः सिादेित ोः ।। ३०१ ।। विश्ि मर्त्र भरदि ज , िमसष्ठ गौतर्स्तथ । भृगुरत्त्रोः पुलस्त््श्च, ि ल्र्ीककमर्ाथथलेश्िरोः ।। ३०२ ।। िैख नसश्च दुि ास , र् क ा ण्डे् ऽथ ग लिोः । दधीथचश्््िन र जन ्, सनकश्च सनन्दनोः ॥ ३०३ ॥ एते श्रेष्ठतर् ल क े , र्ुन् िीतकल्र्ष ोः । जट र्क ु टभूष ङग ोः, ज्िलत्कृ ष्ण जजन म्बर ोः ।। ३०४ ॥ कश््पन्तु पुरस्कृ त््, सर् सीन ोः सभ न्तरे । तन्र्ध््े ि सुदेिस्तु, रत्नकम्बलसां्ुतोः ।। ३०५ ।।
  • 3. 3 3 कृ त ञ्जमलपुटस्तस्थौ, ब्रह्र् ल कवपत र्होः । तत्सभ दि रर् स द्, र ज सत््पर क्रर्ोः ।। ३०६ ।। पुर हहतां पुरस्कृ त््, सम्ि प्त हररसजन्नथधर् ्। सर्ुत्तस्थ ि सुदेि , दृष््ि र ज नर् गतर् ्।। ३०७ ॥ परररम्भणर् स द्, भगि न ्ि क््र्ब्रिीत ्। श्रीनििास उिाच – भि न ्श्रेष्ठतर् ऽत््न्तां, िृदध ऽमस नृपसत्तर् ।। ३०८ ॥ ककर्थार् गत ऽमस त्िां, र्दगृहां र जसत्तर् | िसुद नां तु र जेन्र, सर् ह्ि ने नन् ज् ।। ३०९ ॥ िदत््ेिां श्रीननि से पुर हहतभ षत ।
  • 4. 4 4 वियन्िृपोक्तत्मया िससष्ठप्रेररत धरणीकृ त श्रीनििासोपचारः राजोिाच- विलम्बोः कक्र्ते कस्र् -त्पूज क ु रु रर् पतेोः ।। ३१० ॥ स र जिचनां श्रुत्ि , धरणीां ि क््र्ब्रिीत ्। िससष्ठ उिाच- अरुन्धती पुरस्कृ त््, क ु रु पूज ां रर् पतेोः ।। ३११ ।। स सम्रर् त्सर्ुत्थ ्, ब ष्पसजन्दग्धल चन । र्ुखां विल क्् र जेन्र, कृ ष्णस्् नृपिल्लभ ।। ३१२ ॥ र्त्ि कृ त थार् त्र् न-र् नन्दपररपूररत । । सलज्ज पूज् र् स, सज्चद नन्दविग्रहर््।। ३१३ ॥ त ां दृष््ि ् वषतोः सि ा, विस्र्् क ु लर् नस ोः । ि हुोः िहृष्टहृद् :, धरणीां र जिल्लभ र््।। ३१४ ।।
  • 5. 5 5 योवित ऊचु – ककां त्ि् चररतां पुण््ां, पूिाजन्र्नन हे धरे । ि सुदेि चानविधौ, ननमर्ात परर्ेजष्ठन ।। ३१५ ।। ् त्िमर्त्थां पूज्मस, स क्ष न्न र ्णां स्ि्र् ्। इत््ेिां सांस्तुत देिी, धरणी र जिल्लभ ।। ३१६ ।। तैलकपूारगन्धेन, चन्दनेन सुगजन्धन । अचा् र् स कल्् णी, श्रीननि सां सुरेश्िरर् ्।। ३१७ ॥ िस्त्रैन ान विधैोः रत्नै-र्ुाक्त ननमर्ातभूषणैोः । हदव्् लङक र लङकृ त श्रीननि सस्् सपररकरनृपर्जन्दरििेशोः ततोः पुर हहत ज्ञप्त, पुर णपुरुष त्तर्र््।। ३१८ । गजर् र प्र ज , ज र् तरर्न र््र््।
  • 6. 6 6 सहहत ि सुदेिस्तु, ब्रह्र्ण शम्भुन तथ ।। ३१९ ॥ क ु बेरेण हहर जेन, गरुडेन जग्नन तथ । ि ्ुन िरुणेन वप, ्र्ेन र्रुत ां गणैोः ।। ३२० ।। िमसष्ठ हदर्ुननश्रेष्ठैोः, सद रैोः ससुतैस्तथ । जग र् र जभिनां, रत्नत रणर्जण्डतर््।। ३२१ । न न जनसर् कीणं, न न लङक रर्जण्डतर् ्। र्ह ि द्स्िनै्ुाक्तां, दीप ्ुतविदीवपतर् ्।। ३२२ ।। जर् तृसहहत र ज , दि रत रणसजन्नधौ । चतुरङगबलां र्ुक्त्ि , गृह न्तगान्तुर्ुद्तोः ।। ३२३ ।। तत्र न्तरे श्रीननि सां, नीर जन्तुर् गत । त ण्डर् न्नृपतेभ ा् ा, क ु ङक ु र् दकभ जनर् ्।। ३२४ ।। सर् द ् शु कल्् णी, ि सुदेिर्पूज्त ्।
  • 7. 7 7 ततोः पश्च ्रीननि सोः, ि विशर जर्जन्दरर् ्।। ३२५ ।। दि र ण््तीत्् थ बहूनन र् धि , र ज्ञ सर्ेत भिनां िविश्् । रत्न सने र जविननमर्ाते हररोः, रर ज र जीिसर् ननेत्रोः ।। ३२६ ।। चतुोः स्तम्भ ां रत्निेदी-र्थधष्ठ प्् खगध्िजर् ्। पररि ्ा च तस्थुस्ते, र्ुन् िीतकल्र्ष ोः || ३२७ ॥ ब्रह्र् णर्ग्रतोः कृ त्ि , सिे देि ्थ सुखर् ्। स्िण ासने सर् सीन ोः, पश््न्त न्न त्सिर् ्।। ३२८ ।। ततोः स र ज धर् ात्र् , चक्र े र्ङगलर्ज्जनर् ्। स वप स्न त्ि र्ह र ज, तैलेन च सुगजन्धन ।। ३२९ ॥ अलञ्चक र लङक रैोः, स्ि त्र् नां र जिल्लभ ।
  • 8. 8 8 वि्न्नृपकृ तिरप द म्बुजक्ष लनर्् स्ि मर्पुष्कररणीत ्ां, हेर्क ु म्भिपूररतर््।। ३३० ।। सर् नी् ब्र ह्र्णैश्च, हररप द िनेजनर् ्। सङकल्पां विथधि्चक्र े , कन्् द नस्् स दरर् ्।। ३३१ ॥ ततश्चक र र जेन्र, र्धुपक ा पुर हहतोः । पुर हहत क्तर्न्त्रेण, तस्् प द िनेजनर््।। ३३२ ।। सहस्रशीष ा पुरुष, इनत र्न्त्रां सर्ु्चरन ्। धरण्् स्र वितैोः कृ त्ि , स्ि मर्तीथाजलैोः शुभैोः ॥ ३३३ ॥ हररप द दक ां पुण््ां, दध र मशरस नृपोः । भ ् ं पुत्रां र तरां च, भिनां क शर्ेि च ।। ३३४ ।। गज ऽग रां रथ ऽग रां, िस्त्र ग रां च तज्जलैोः । र् जा् र् स र जेन्रोः, श्रीननि सपर ्णोः ।। ३३५ ।।
  • 9. 9 9 राजोिाच- अद् र्े सफलां जन्र्, जीवितां च सुजीवितर््। अद् र्े वपतरस्तुष्ट ोः, ि सुदेि पद दक त ्।। ३३६ ।। एिर्ुक्त्ि र्ह र जोः, कन्् ां कर्लल चन र््। अलञ्चक्र े विथचत्रैस्त -र्लङक रैर्ाहीपते ।। ३३७ ।। ततस्तु घजण्टक घ षां, कृ ति न ्देिथचन्तकोः । सुर्ुहूते तद ि प्ते, र्ङगल ष्टकर्ब्रिीत ्।। ३३८ ।। िर ् विन्नृप दत्त-िैि हहकभूषण हदकर् ् कन्् िद नसर््े, दक्षक्षण ां र जसत्तर्ोः । क हटसङ्् जन्नष्कपुञ्ज -न्दत्ति न ्िेङकटेमशतुोः ।। ३३९ ॥ तां दृष््ि धनर मशां तु, भगि न ह भूमर्पर् ्। श्रीनििास उिाच- द तव््ां ककां त्ि् र जन ्, पुत्रस्् ति भूपते || ३४० ॥
  • 10. 10 10 विि हकर्ाननपुण , भि न ्द नपर ्णोः । ददस्ि भूषण न््ङग, बहुरत्न जन्ित नन च ।। ३४१ ।। इत््ुक्त ि सुदेिेन, भूषण नन ददौ नृपोः। ककरीटां शतभ रां तु, कजण्ठक र्वप त ितीर् ्।। ३४२ ।। पुनरेक ां तदधं च, तदधं चैि कजण्ठक र््। पदक नन ददौ सप्त -नर्घ् ाण््थ नृप त्तर्ोः ।। ३४३ ।। र् मलक ां र्ौजक्तक न ां च, भुजभूषण्ुग्र्कर््। कणाभूषौ र्ौजक्तक ढ्, िांसप्ान्तलजम्बनौ ।। ३४४ ।। कङकणे रत्नर् णणक््-िज्रिैडू्ाननमर्ाते । दि त्त्रशदि रसां्ुक्ते, अनघे दत्ति न्नृपोः ।। ३४५ ।। न गभूषण्ुग्र्ां च, ब हुपुर हदक ांस्तथ । भूषण न््ङगुली् ांश्च, दश न ां िीरर्ुहरक र् ्|| ३४६ ॥
  • 11. 11 11 कहटसूत्रां स्िणार््ां, िरिज्रसर्जन्ितर् ्। एक दशशतीभ रां, बहुरत्नसर्जन्ितर््।। ३४७ ।। प दुक े च तत र ज , दत्ति न ्र्धुघ नतने । ददौ भ जनप त्रां च, षजष्टभ र्ुतां िभ ोः ॥ ३४८ ॥ लघुप त्रसर् पेतां, बृहत्प त्रर्प ां तथ । कम्बल न ां चतुोःषजष्ट, दत्ति न ्र जसत्तर्ोः ।। ३४९ ।। भूषणैभूावषत ङगस््, कन्् द नर्थ कर त ्। कन्् ििरर्ूचेऽथ, गुरुोः स क्ष द बृहस्पनतोः ।। ३५० ।। गुरुिमसष्ठकथथत िधूिरििर हदकर्् बृहस्पनतरुिाच- अत्त्रग त्रसर्ुदभूत ां, सुिीरस्् िपौत्त्रक र् ्। सुधर्ाणस्तु पौत्रीां च, पुत्रीर् क शभूपतेोः ।। ३५१ ।। स्िर्ङगीक ु रु ग विन्द, कन्् ां कर्लल चन र् ्।
  • 12. 12 12 एिर्ुक्ते र्ह र ज , र्ुद रत्न म्बरां ददौ ।। ३५२ ।। िससष्ठ उिाच – िपौत्रस्् ्् तेस्तु, पौत्रस्् मर्ततेजसोः । शूरसेनस्् र जेन्र, िसुदेिस्् भूपतेोः ।। ३५३।। पुत्रस्् िेङकटेशस््, ग त्रे ि मसष्ठसांज्ञक े । ज तस्् त्त्रक ु ल त्पन्न ां, कन्् ां कनकभूवषत र् ्।। ३५४ ।। ग्रहीष्् र् ि्ां र जन ्, ति पुत्त्रीां नृप त्तर् । कन्् िरििर् -ररत््ु्च ररत् रथ ।। ३५५ ।। धरण्् सह र जेन्रोः, कन्् द नपर ्णोः । िहृष्टहृद्ोः ि ह, श्रीननि सां पर त्परर््।। ३५६ ॥ श्रीननि सस्् िमसष्ठ हदक ररतपदर् ितीप णणग्रहण त्सिोः आकाशराज उिाच – कन्् मर्र् ां िद स्् मर्, ग्रह ण पुरुष त्तर् ।
  • 13. 13 13 इत््ुक्त्ि ि क्षक्षपर ज , धरण्् स्र वित ां तद ।। ३५७ ॥ र्न्त्रपूत ां स्ि मर्तीथा-ध र ां सकनक ां करे । दक्षक्षणे श्रीननि सस््, ददौ पदर् ितीां ततोः ।। ३५८ ।। विध नां च ततश्चक्र े , र जेन्रोः सपुर हहतोः । पूजन्त्ि जगन्न थां, गन्धिस्त्र नुलेपनैोः ।। ३५९ ।। कङकणां बन्ध् र् स, ि सुदेिकर म्बुजे । पदर् ित्् ोः कर म्भ जे-ऽबन्ध्त्कङकणां गुरुोः ।। ३६० । तथ र् ङगल््सूत्रस््, बन्धां िैि हहक ां तद । श्रीननि सेन देिेन - क र्त्स पुर हहतोः ।। ३६१ ।। सुकन्या ऊचुः - स वित्रीि च कल्् णण, बहुपुत्रिती भि । सिाल कस्् जननी, भि र्ङगलद न्नी ।। ३६२ ।। इत्थां सुर्ङगलीस्त्रीषु, ग ्न्तीषु शुभ मशषोः ।
  • 14. 14 14 ब्र ह्र्ण न ां करस्पश ा-र ज्ञश्च वप र्ह त्र्नोः ।। ३६३ ।। बबन्ध पूतां र् ङगल््-सूत्रां र्न्त्र मभर्जन्त्रतर् ्। कण्ठे पदर् ितीदेव्् ोः, श्रीननि स जगत्पनतोः ॥ ३६४ ॥ र्ुननमभोः सह विदिदमभ-ल ाजैहोर्ां पुर हहतोः । िमसष्ठ ऽक र्त्पदर् -ित््ञ्जल््वपातैस्ततोः ।। ३६५ ।। ्जुोःश ख क्रर्ेणैि, जुह ि ग्नौ ्थ विथध । सिं िैि हहक विथधां, िमसष्ठ ऽथ सर् प्त ्।। ३६६ ।। ततोः पुर हहत र ज्ञोः, स्िजस्ति चनपूिाकर् ्। र्ुनीन र्ञ्जमलपुटे, निरत्न क्षत न्ददौ ।। ३६७ || ते िेदर्न्त्रैजागदीशर्ूजध्ना, रत्न क्षत न्िेदविदोः िथचक्षक्षपुोः । तद नृण ां तत्र र्ह त्सि ऽभूद -क शर जस्् पुरीननि मसन र््।।
  • 15. 15 15 तजस्र्न ्क ले र्ह र ज , दक्षक्षण ां ब्रह्र्ि हदन र् ्। द प् र् स सन्तुष्ट , वििैस्त म्बूलपूिाकर् ्।। ३६९ ।। गि ां क हटसहस्र णण, च श्ि न र््ुतां तथ । िस्त्र ण ां ननच्ां र ज-जन्ििेभ्् दत्ति जन्िभुोः ।। ३७० ।। एिां र्ह त्सिस्तत्र, सर्भूददशर्ी हदने । िधूिरौ िनतष्ठ प््, भ ज् र् स िै ततोः ।। ३७१ ।। अन्नां बहुविधां सूप-रसभक्ष्् सर्जन्ितर् ्। परर् न्नां च सघृतां, सक्षीरां शक ा र ्ुतर् ्।। ३७२ ।। पुर हहतेन सहहत , भ जनां कृ ति न ्हररोः । र् त्र लक्ष्म्् च सहहतोः, पुत्रेण सहहतस्तथ ॥ ३७३ ॥ आक शर ज धर् ात्र् , भुक्ति न ्कृ ष्णसजन्नधौ । लक्ष्म्् ां सर्ेत धरणी, तथ बक ु लर् ल् ।। ३७४ ॥ अभुङक्त न्नां रसै्ुाक्तां, पनतपुत्रसर्जन्ित ।
  • 16. 16 16 ततोः िभ ते र जेन्र, सुि मसन््ोः सुरेमशतुोः || ३७५ ।। र्ज्जनां क र् र् सु-गान्धतैलैोः सुननर्ालैोः । अन्् न््र्ज्जनां तत्र, च न्् न्् दितानां तथ ।। ३७६ ।। हररपदर् ितीदेव्् -स्त ोः सह सर्क र्न ्। स र ज वििर्ु्् न ां, सुर ण ां बहुभ जनर््।। ३७७ ।। स्त्रीण ां च पुरुष ण ां च, बहुर् नपुरस्सरर् ्। ्थेष्टां द प् र् स, हृष्ट आक शभूमर्पोः ।। ३७८ ।। अपूप न ्विविध ांश्चक्र े , सूपश क हदक ांस्तथ । घृतक ु ल्् ां क्षीरक ु ल्् ां, दथध क ु ल्् ां ततोः परर््।। ३७९ ।। तत उदधृत्् ननोःक्षक्षप्तां, बहहभुाक्तित ां नृण र् ्। उज्िष्टपत्र ज लां च, पुष्कल न्न हदसां्ुतर् ्।। ३८० ।। स रर्े्गणैोः कीणं, र क्षस न ां गणैस्तथ । एिां क ल हलां चक्र े , हदिस ांश्चतुरस्तथ ।। ३८१ ।।
  • 17. 17 17 ह सस्तत्र विन देन, ननत््र् सी्च र्ज्जनर््। हदिसे पञ्चर्े ि प्ते, कृ त्ि न कबमलां तथ ।। ३८२ ॥ कलश ांश्चतुर न््स््, दीपज्ि ल विर जजत न ्। िधूिरौ िनतष्ठ प््, रत्नमसांह सने नृप ।। ३८३ ।। पूज् र् स ग विन्दां, ज र् तरर्न र््र््। आक शर ज धर् ात्र् , क्षीरप तां करे दधत ्॥ ३८४ ॥ र् तरां ि सुदेिस््, न म्न बक ु लर् मलक र् ्। पूजन्त्ि विध नेन, िस्त्र लङक रभूषणैोः ।। ३८५ ।। न मभां क्षीरेण सांर्ृज््, पुत्रीां पदर् ितीां तद । अपा् र् स दुोःखेन, ब्रह्र्ण्् र जसत्तर्ोः ।। ३८६ ।। र्ह लक्ष्म्् न मभर्ूलां, सघृतक्षीरसेचनर् ्। कृ त्ि ऽपा् र् स पुत्रीां, रुदन्गदगदकण्ठि न्॥ ३८७ ।।
  • 18. 18 18 श्रीननि सेन सह शेष चलां िनत पदर् ितीिेषणर् ् श्रीननि सस्् कृ ष्णस््, शेष चलननि मसनोः । र जभ ् ा र्ह भ ग , रुदन्ती क ु ररीि च ॥ ३८८ ॥ पुत्रहस्तां िद ् थ, हस्ते र जक ु ल ङगन । क्षीरां सां् ज्् कृ ष्णस््, न मभर्ूलेऽनतदुोःणखत ोः ।। ३८९ ।। भृशां रुदन्ती र्न्त्रेण, दुग्धसांहदग्धल चन । अपा् र् स कृ ्रेण, पुत्रीां पदर् ितीां ततोः ।। ३९० ।। ि ि च च श्रीननि सां, रुदन्ती र जिल्लभ । धरण्युिाच- प मलत ां ल मलत ां पुत्रीां, निर् सधृत ां र्् ।। ३९१ ।। त्िदधीन ां जगन्न थ, कररष््े र्र् नजन्दनीर््। इत््ेिर्पा्न्त्् ां तु, धरण्् ां र जसत्तर्ोः ।। ३९२ ॥ स तस्् र दनां दृष््ि , र ज दुोःखपर ्णोः ।
  • 19. 19 19 रुर द दीनिदनोः पुत्री-र् मलङग् भूपनतोः ।। ३९३ ।। राजोिाच- ह पुत्त्र र्न्दभ ग्् ऽहां, त्िदवि् गेन क े िलर् ्। जीिनां सर् कल्् णण, न जस्थरां च भविष््नत ।। ३९४ ।। कीड गृहे र जपुत्री, तथ भ जनसदर्नन । र त ति कथां क्रीड ां, भ जनां ि कररष््नत ॥ ३९५ ॥ एिां रुदन्तर् ल क््, र तरां दीनचेतसर् ्। त ण्डर् न नृपश्रेष्ठ , दुोःणखत ि क््र्ब्रिीत ्।। ३९६ ॥ तोण्डमाि उिाच- ि्ां दररर ोः ननभ ाग्् ोः, कृ पण दीनचेतसोः । ि्ां र्रणर् पन्न ोः, न त्र क ् ा विच रण ।। ३९७ ॥ एत दृशी च कल्् णी, नैि लब्ध कलौ ्ुगे । इत्थां ि्ां ननजश्चनुर् , वि् गभृशदुोःणखत ोः ।। ३९८ ॥
  • 20. 20 20 एिां त न ्रुदत दृष््ि , िसुद न ऽनतदुोःणखत ोः । भथगनीां दीनिदन -र् मलङग्् ह रुदन्र्ुहुोः ।। ३९९ ।। िसुदाि उिाच- र् तरां ब लक ां त््क्त्ि , ्थ ल क े धन जाकोः । ग्िेत्तथ र् ां भथगनी, त््क्त्ि त्िां क्ि नु ग्िमस ॥ ४०० ॥ एिां िसङग त्तत्र सीत ्, देि न र्वप भूमर्प । ऋषीण ां कश््प दीन ां, दुोःखर्त््न्तद रुणर् ्।। ४०१ ॥ रुदन्तां नृपनतां दृष््ि , श्रीननि सोः सत ां गनतोः । स्ि्ां रुर द ग विन्द , भथगनीां प थािल्लभ र््॥ ४०२ ॥ स्र्ृत्ि श्रीदेिकीपुत्र-स्तददभुतमर्ि भित ्। इत्थां कृ त्ि ल करीनत-र्ैर ितर्ुप जस्थतोः ॥ ४०३ ॥ पदर् ित्् त् स धं, सिाि द्सर्जन्ितोः । ग्र र्ां िदक्षक्षणीकृ त््, रर्् सहहत हररोः ॥ ४०४ ॥
  • 21. 21 21 स्िननिेशगृहां भेजे ,पदर् सनभि हदक ै ोः । तत हररोः श्रीननि सोः, स्िस्थ नां गन्तुर्ैहत || ४०५ ।। गरुडस्कन्धर् रुढोः, पत्नी पदर् ितीर्वप । आर प्न्िर र ह -र्न्् न््ां परररभ्् च ॥ ४०६ ॥ गरुडस्कन्धर् रुढ , गन्तुां स्िस्थ नर्ुत्सुकोः । हररर र्न्त्रण थं तु, श्िश्रूश्िशुर् स्तद ।। ४०७ || पुनगृाहां सम्िविश््, गर्ने्ि ु रभूदथ । श्िशुरौ प्ापृ्ि्च, स ष्ट ङगां िणणपत्् िै ॥ ४०८ ॥ आशीि ादां ततश्चक्र े , स्िज र् तुरन र््र् ्। आक शर जोः श्िशुरोः, श्िश्र च धर् सह ॥ ४०९ ॥ आकाशराज उिाच- दीघ ा्ुभाि ग विन्द, सिाल कधुरन्धर । इत्् मशष ऽमभनन्द् थ, ि सुदेिर्भ षत ।। ४१० ।।
  • 22. 22 22 राजोिाच- र् स न्ते ग्ि ग विन्द, िध्ि सह ि् गतर््। श्िशुरां र् ां च ते श्िश्रूां, र् न्स्ि र्ह र्ते ।। ४११।। इनत तस्् िचोः श्रुत्ि , ि सुदेि ऽब्रिीन्नृपर् ्। श्रीनििास उिाच – नृप ि क््ां श्रुणु र्र्, क ्ास्् र्हती त्िर ।। ४१२ ।। तस्र् द ज्ञ ां च र्े देहह, र जांस्ते स्् त्कृ प र्न् । इत््ुक्त्ि ि सुदेिस्तु, गरुडस्कन्धर् जस्थतोः ।। ४१३ ।। जग र् भगि न ्स क्ष त ्, सिादेिसर्जन्ितोः । आक ु ल ोः व्् क ु ल ोः सिे, नगरस्थ जन स्तद । ि क रग पुर रूढ ोः, पश््न्तोः स्िदृश ऽिदन ्।। ४१४ ॥ जिा ऊचु- धन्् र जक ु ल त्पन्न , पदर् कर्लल चन ।
  • 23. 23 23 अनुग्िनत ग विन्दां, पश््तेनत परस्परर््।। ४१५ ।। तद ददौ र्ह र ज:, प ररबहं थश्र्ोः पतेोः । पदर् ितीश्रीननि स् विा्न्नृपिेवषतप ररबह ाहदिणानर् ् तण्डुल ञ्ि मलसम्भूत न ्, िृषभ ण ां रथ परर ।। ४१६ ॥ आर प्् िेष् र् स, शतां ख रीवि्न्नृपोः । र्ुदग न ्ग स्ि मर्सांरुढ ां-जस्त्रशत ्ख रीदादौ हरेोः || ४१७ || गुड़भ रां र्ह न्तां च, नतजन्त्रणीभ रर्ेि च । ् घटसहस्र णण, दथधभ ण्डशत नन च । ४१८ ॥ सहस्र धं घृत पूणा-चर्ाप त्र णण सषाप न ्। र्ेथधक न ्हहङगुलि-णनतलप त्र णण चैि हह ॥ ४१९ ॥ तथ शक ा र् पूणा-घट ांस्तु दिे शते तथ । ि त ाक ां चूतकदली-फलजम्बीरक णण च ॥ ४२० ॥
  • 24. 24 24 क ू ष्र् ण्डकन्दर्ूल नन, र्रीच र्लक नन च । र्धुभ ण्डशते दिे च, रम्भ क ष्ठच् ांस्तथ ।। ४२१ ।। रम्भ त्िचश्च र जेन्र, पत्र ण ां ननच्ां तथ । अश्ि न र््ुतां दत्त्ि , गज न ां च सहस्रकर् ्।। ४२२ ।। धेनून ां पञ्चसहस्र-र् विक न ां शतां तथ । द सीन ां दिे शते र ज-न्द स न ां त्त्रशतां तथ ।। ४२३ ।। िस्त्र णण विविध न्् शु, प्ाङक ां रत्नभूवषतर् ्। उपबहं रत्न्ुतां, प ररबहेण सां्ुतर् ्॥ ४२४ ।। एिर् दीनन िस्तूनन, गृहीत्ि नृपसत्तर्ोः । पुत्रेण सहहत र ज , श्रीननि सपर ्णोः ।। ४२५ ।। आक शर ज धर्ाज्ञोः, श्रीननि सस्् सजन्नथधर् ्। आगतोः श्िशुरां दृष््ि , च त्तस्थौ जगदीश्िरोः ॥ ४२६ ।।
  • 25. 25 25 वि्न्नृपस्् श्रीननि सदत्तस्िभजक्तनैरन्त्ारूपिरि जप्तोः श्रीनििास उिाच- दूर ध्ि नां र्ह र ज, ककर्थं त्िां सर् गतोः । द तव््ां ककां नृपश्रेष्ठ, ति पुत्रस्् र्ेऽनघ ।। ४२७ ॥ कन्् दत्त सुतोः ि प्तोः, सुकृ तां कक कृ तां त्ि् । सन्त ष श्च तुलोः ि प्त , र्र् त त न सांश्ोः ॥ ४२८ ॥ कक ते र्न गतां र जन ्, तन्र्र् चक्ष्ि भूपते । सन्देहां र् क ु रुष्ि त्र, द न द नें र्हीपते । ि सुदेििचोः श्रुत्ि , ि सुदेिर्भ षत ।। ४२९ ।। राजोिाच- सिार्ङगलर्स्र् क ां , त्ित्िस देन क े शि | न न््द् चे जगन्न थ, ति प दसर रुहे ।। ४३० ॥
  • 26. 26 26 भजक्त देह््चल ां कृ ष्ण, सक ु टुम्बस्् र्ेऽनघ । तत ्श्रुत्ि िचनां तस््, श्िशुरस्् र्ह त्र्नोः । ४३१ ।। दत्ति नस्् स ्ुज््-र् क शनृपतेस्तद । श्् लकस्् ददौ िस्त्रां, स्ि ङगस््ां र्धुसूदनोः ।। ४३२ ।। ज र् त्र च सर् ज्ञप्तोः, पुत्रीभिनर्भ््ग त ्। पुत्त्र ग्ि मर् नगरां, विहरस्ि हररवि्े ।। ४३३ |। श्ने श्रीननि सस््, श्नां क ु रु र्ङगले । इनत र ज स न्त्िन्त्ि , पुत्रीां कर्लल चन र् ्।। ४३४ ॥ शश स स स्िवपत्र क्तां, शीघ्रां र् धिर्भ््ग त ्। रुदन ्गदगदकण्ठेन, जग र् नगरां नृपोः ।। ४३५ ।। भगित्कृ त षण्र् स िथधक गस्त्् श्रर्ि सिनतज्ञ पदर् ित््नुग देि , ब्रह्र्रुर हदक ै ्ुातोः । सुिणार्ुखरीां ि प््, तत्र ि सर्कल्प्त ्।। ४३६ ।।
  • 27. 27 27 षण्र् स िथध लक्ष्र्ीश , दीक्षक्षत ऽहां र्ह र्ते । न शैलर जर् र ह -मर्नत ननजश्चत्् देिर ् । अगस्त््भिनां गत्ि , तत्र ि सर्कल्प्त ्।। ४३७ ।। स्ि ि सां िनत भगित्कृ तदेि हदिेषणर्् देि न्सम्िेष् र् स, स्िध र् नन िृष कवपोः । ब्रह्र् दीन ां सुर ण ां च, र्ुनीन र्ूध्िारेतस र् ्॥। ४३८ ॥ ददौ िस्त्रां ्थ ् ग््ां, भगि न ्भक्तित्सलोः। तेन sज्ञप्त जगदध त्र , जग्र्ुलोक ां स्िक ां सुर ोः ।। ४३९ ॥ ऋष्श्च तप ऽरण््ां, जग्र्ुन ार ्ण ज्ञ् । लक्ष्र्ीजाग र् र जेन्र, करिीरपुरां तद ॥ ४४० ।। र्ह त्सिां तां त्िनुभू् देित ोः, ब्रह्र्ेशपूि ाोः सर्हवषासत्तर् ोः ।
  • 28. 28 28 जग्र्ुोः स्िक ां ध र् र्ह नुभ ि ोः, र जेन्रपूज््ां िशशांसुर दर त ्॥ ४४१ ।। गते देिगणे तत्र, त्िगस्त््ननल्ां गतोः । भुञ्ज न भ गर्तुलां, तत्र स्ते भगि न ्हररोः ।। ४४२ ॥ विि ह ध्् ्फल श्रुनतोः शतािन्द उिाच- विि ह ध्् ्र् ह त्म््ां, ्े श्रुण्िजन्त जनेश्िर । तेष ां भ ग्् द्ां िक्ष््े, श्रुणु र जन ्सविस्तरर् ्।। ४४३ ।। क हटकन्् िद नेन, ् िदभूमर्िद नतोः । ्त्फलां लभते देही, तत्फलां श्रिण दर त ्॥ ४४४ ॥ ्े उत्सिां क र्जन्त, िैि हां िेङकटेमशतुोः । तस्् त्सि भिेर जन्, िेङकटेश िस दतोः || ४४५ ॥
  • 29. 29 29 इनत ते कथथतां र जन ्, विि हचररतां हरेोः । श्रुणु् ्र ि्ेदि ऽवप, सि ाभीष्टर्ि प्नु् त ्। शुभदां श्रृण्ित ां चैि, सिेष ां र्ङगलिदर् ्।। ४४६ ।। इनत श्रीभविष्् त्तरपुर णे श्रीिेङकट चलर् ह त्म््े श्रीननि सविि ह हदिणानां न र्ैकदश ध्् ्ोः ।।
  • 31. 31 31 श्रीिेङकट हरननल्ोः कर्ल क र्ुकोः पुर् न्। अभङगुविभूनतनाोः तरङग्तु र्ङगलर््।। श्रीिेङ्कटेशस्य परापर िस्तुत्मिनिरूपणम् सूत उिाच – श्रृणुध्िां र्ुन्ोः सिे, शौनक द् स्तप धन ोः । तदविष्ण िेङकटेशस््, रहस्् नुभिां परर् ्।। १ ।। ब्रह्र् ण्डे ् नन तीथ ानन, स्ि्ांव््क्त नन ् नन च । थचरन्तन नन क्षेत्र णण, पुण्् रण्् नन पिात ोः । २ ॥ पूिं श्रुत नन सि ाणण, पुर ण नन दविज त्तर् ोः । स र् न्् नन च र्ु्् नन, रहस््ां र्ु््र्ुत्तर्र् ्|| ३ || अष्ट दशपुर ण न ां, स रां च न्ते र्् श्रुतर््। व्् सिस द त्क रुण्् -त्पररिश्नेन सेि् ॥ ४ ॥
  • 32. 32 32 िैक ु ण्ठपदस ्ुज््ां, परर् नन्ददां परर््। भविष्् त्तरस र ांशोः, सिािेद न्तसङग्रहोः || ५ || तत्र वप च त्तरे खण्डे, स क्ष त्सांस रर् चकोः । उर् र्हेशसांि दे, रहस्् नुभि दविज ोः ।। ६ ।। आनन्दननल्स््ैि, क्षेत्रर् ह त्म््र्ुत्तर्र् ्। र्न्त्र ण ां र्न्त्ररत्ने दिे, दविविधां ध्् नर्ुत्तर्र् ्॥ ७ ॥ श्रृणुध्िां परर् नन्द-पद ि प्त््ै च दुलाभर् ्। देि न र्वप मसदध न ां, र्हत ां ् थगन ां नृण र््॥ ८ ॥
  • 33. 33 33 अथचककत्स््ग्रहग्रस्त, विकल ङगविरूवपण र् ् र थगण र्थचककत्स्् न ां, दुष्कर्ापररप ककन र् ्।। ९ ।। आपदमभरननि ् ामभ-र िृत न ां च दुोःणखन र् ्। र्ह प तक सम्भूत-क ु ष्ठ र ग क ु रूवपण र््॥ १० ॥ क ण न्धबथधर ण ां च, र्ूक न ां पगु क ु ब्ज् ोः ि ्जश्चत्तविहीन न ां, प वपन ां दुोःखदुोःणखन र् ्।। ११ । क्ि प््नननतक न ां च, सिाद क्र ू रकर्ाण र् ्। भिेत्िनतविथधोः सद्ोः, ित््क्ष िेङकट चल त ्।। १२ ।। भक्त न ां भितप्त न ां, गनतश्च न््त्र न जस्त भ ोः । स परोः सिाल क न ां, सिाव्् धीन ्कृ प ननथधोः ।। १३ ।। ननकृ न्तन्नजस्त चक्र े ण, ्त्र तस्र् दथध िेङकट त ्। तस्र् त्स एि गन्तव्् , भ गर् क्षरतैजानैोः ।। १४ ।।
  • 34. 34 34 विशेषतोः क्र ू रकल नर ण ां, प प कर ण ां पररपीडडत न र््। भूग लर्ध््े रविडे च पुण््े, श्रीिेङकट हरगानतरेि न न्् ।। १५ ।। कलौ ्ुगे र्नुष्् ण ां, सङकीण ान ां च रक्षक्षत । श्रीिेङकटेश न्न न्् ऽजस्त, सि ाननष्टननि रण त ्।। १६ ।। ्ां दृष््ि न परां स्थ नां, ्ां दृष््ि न गर थगररोः । ्ां दृष््ि न परां तीथं, ्ां दृष््ि न परां तपोः ।। १७ ।। ्ां दृष््ि न पर देि , ्ां दृष््ि न पर र्नुोः । ्ां दृष््ि न पर भजक्त-्ं दृष््ि न पर गनतोः ।। १८ ।। ्ां दृष््ि न परां ज्ञ नां, ्ां दृष््ि न परां पदर् ्। ्ां दृष््ि न पर ल भ , ्ां दृष््ि न परोः वि्ोः ।। १९ ।।
  • 35. 35 35 ्ां दृष््ि न परां ध र्, स क्ष द नन्दस न्रकर््। ्ां दृष््ि न परां ध्् नां, सर् थधरवप न परोः ।। २० ।। ्ां दृष््ि न पर र्ुजक्तोः, सिेजन्र्र्न हर । ्ां दृष््ि न पर ननत्् , ्स्् क लभ्ां न हह ॥ २१ ॥ ्ां दृष््ि ि पर विष्णु-भाक्त्् सिाजगन्र््ोः । ्ां दृष््ि त्त्रविधां कृ त््ां, कृ ति न्न त्र सांश्ोः ।। २२ ।। ्ां दृष््ि न पर द त , रर्ेश न्न जस्त क र््ोः । ्ां दृष््ि न परां ब्रह्र्, सज्चद नन्दविग्रह त ्।। २३ ।। ्ां दृष््् न पर ् गोः, स ष्ट ङगोः सिामसदथधद त ्। ्ां दृष््ि न पर: पूणाोः, सिाग िेङकटेश्िर त ्॥ २४ ॥ न िेद न्त त्परां श स्त्रां, न देि िेङकटेश्िर त ्। न िैक ु ण्ठ त्परां ध र्, न थगररिेङकटेश त्परोः ।। २५ ।।
  • 36. 36 36 सत््ां सत््ां पुनोः सत््ां, न देि िेङकटेश्िर त ्। ब्रह्र् ण्डे न जस्त ्जत्कथच-न्न भूतां न भविष््नत ।। २६ ।। िेङकटेशसर् देि , नेनत िेद न्तननणा्ोः । तरहस््सुसांि दां, स्िथचत्तस्िर्ुर्ेश् ोः ।। २७ ।। श्रृणुध्िर्िध नेन, मसदध न्तां र्ुननपुङगि ोः । श्रीसूत उिाच - क ै ल सेऽनन्तमशखरे, पिाते ननर्ालज्ज्िले ।। २८ ।। ज्ञ न ननर्ाल थचत्त ढ्-् थगर्ण्डल सेवितर््। सुख सीनां र्ह देिां, रत्नमसांह सन त्तर्े ।। २९ ।। िणणपत्् कृ प मसन्धुां, प िाती प्ापृ्ित । श्री पािगत्मयुिाच – देिदेि विरूप क्ष, त्रैल क््नतमर्र पह ॥ ३० ॥
  • 37. 37 37 ति न्तोःकरण नन्द-रहस्् नुभिां परर््। र्ुजक्तक्षेत्रेषु मसदध न ां, र्ुक्त न ां कर्ाबन्धन त ्।। ३१ ।। तेष र् नन्दस न्र ब्धे-रि जप्त्ात्र शङकर । तदध र् ग प््ां त्िदध्् न-िैभि नन्दर्ीश्िर ।। ३२ ॥ पूण ानन्दकृ प दृजष्ट-रजस्त चेत्ति र्े िद । ईश्िर उिाच – स धु पृष्टां त्ि् देवि, भक्त न ां हहतक म््् ।। ३३ ॥ वि् वि्तरां र्ेऽजस्त, तरहस््ां िद मर् ते । ब्रह्र् ण्डर्ण्डले पुण््े, रविडे िेङकट चले ।। ३४ ।। रहस््ां सिाल क न ां, प िनां परर् दभुतर् ्। स्ि मर्पुष्कररण तीथं, भजक्तज्ञ नसुखिदर् ्।। ३५ ।। दशान त्सिाजन्तून -र् श्र्ां भुवि र जते ।
  • 38. 38 38 आजन्र्सजञ्चतां प पां, दशान देि नश््नत ॥ ३६ ॥ तत्क्षण ज्ज्ञ नसम्पन्न ोः, भुक्त ोः सांस रबन्धन त ्। पर नन्दपदे जस्थत्ि , र् दन्ते िेङकट चले ।। ३७ ।। स्न नप नस्पशानैस्तु, ककर्ु िक्तव््र्ीश्िरर । स्ि मर्पुष्कररणीतीथा-र्हहर् क े न िण््ाते ।। ३८ ।। र्् िक्तुां विररञ्च द्ै-ना शक्् ल क दुलाभोः । ककां पुनोः मसदध् गीन्रोः, ससुर सुरर् निैोः ।। ३९ ।। स धात्त्रक हटतीथ ान ां, प तकर्घनी सुप िनी । िेङकटेश्िर सदध म्नोः, सर्न्त द् जनत्र्र् ्।। ४० ।। र्ुजक्तभूमर्जश्चद नन्द-घनसन्द ह र्ण्डलर् ्। तत्र जस्थत न ां जन्तून ां, भ ग््ां भ ग््र्ह नृण र् ्॥। ४१ ।। ्दशानां सह ह्ल हद, सज्चद नन्दसम्भृतर््। अह थचत्रर्ह थचत्र-र्जस्र्न्िैक ु ण्ठर्ण्डले ।। ४२ ।
  • 39. 39 39 ननर सर् थधसम्पवत्त-ननाि सोः क े िलां तपोः । कृ तकृ त््र्भूज्जन्र्, शेष चलननि मसनोः ॥ ४३ ॥ ि था् र् ि्ां ननत््ां, तां ननि सां नृण ा ककर्ु । तथ वप भजक्तसां्ुक्तां, कर् ाच रव्रत हदकर् ्॥ ४४ ।। र्नोः िस दनां शक्त्् , स्ि मर्िीनतकरां चरेत ् । अन्नद नां र्ह पूज -त्सििैभिर्ुत्तर्र््।। ४५ ।। स्ि मर्िस हदक ै ङक्ा-र् नन्त्् ् पकल्प््ते । ्जत्कजञ्चत्स्िणा द न -न्नवपतृश्र दध हदकर्ा च ।। ४६ ।। अत्र स्थ ने कृ तां सिा-र्नन्तफलदां स्र्ृतर् ्। ज्ञ ननन ऽज्ञ ननन ि वप, सर् नां भजक्तपूिाकर् ्।। ४७ ।। क लक्षेप थार्ुत्स हे, कर्ाण बन्धनां न हह । थचरन्तनेषु क्षेत्रेषु, र्ुजक्तप त्रर्ुद हृतर् ्।। ४८ ।।
  • 40. 40 40 स ्ुज््र्ुजक्तर नन्द-ि जप्तोः श्रीशैलर्स्तक े | र्ुजक्तक्षेत्रेषु र्ुक्त न ां, स्ि नन्द नुभि गर्ोः ।। ४९ ।। तदविष्ण िेङकटेशस््, पर नन्दपदे जस्थनतोः । एतदविथचत्रर्त्रैि, िेङकटेश्िर र्ण्डले ।। ५० ।। िस्तुस्िभ ि िैथचत्् -त्परर् नन्दक रणर््। र्ुक्त न ां ् थगन ां र्ध््े, कथचत्परर्् थगर ् ।। ५१ ।। एतत्परां रहस््ां तु, ल क े ज न नत च परोः। सिािेद न्तमसदध न्त-स रस्् नुभिां वि्े ।। ५२ ।। ब्रह्र् नन्दपदि जप्त, क रणत्ि न्र्र् वि्र् ्। नैतरहस््र् ्् नां, िक्तव््ां ्स्् कस्् थचत ्।। ५३ ।। भजक्त्ुक्त ् श न्त ्, िक्तव््ां िेङकटेश्िरे । सज्चद नन्दसन्र्ूतेोः, कल्् णगुणि ररधेोः ।। ५४ ।।
  • 41. 41 41 िेङकटेशहरेध्् ान-िैभिां श्रृणु प िानत । अनन्तकल्पसज्ज त, प पर मशविन शनर् ्।। ५५ ।। ि ङर्न: श्रिण नन्द-र्करन्दफलिदर््। ध्् नश्रिणर् त्रेण, ब्रह्र् नन्दपदिदर््।। ५६ ।। न शक््ते र्् िक्तुां, तदध र्ध्् नजां फलर््। तदध र्स्ि मर्नजश्चत्र-र्ि ङर् नसग चरर् ्।। ५७ ।। ककर्ु गीि ाणमसदधे-ब्राह्र् द्ैर्ुाननर्ण्डलैोः । अत एि रहस्् ढ् , ध्् न नुभि उत्तर्ोः ।। ५८ ।। क्षेत्रे च हदिर हस््, स क्ष ज्ज्ञ नर््े शुभे । स्ि मर्पुष्कररणीतीरे, ननर्ाल त्र्मभरीडडते ।। ५९ ।। स धात्त्रक हटसांस्थ नैोः, पुण््तीथेोः सर् िृते । पुण््िृक्षल सत्पुष्प-श्रीगन्धतरुि मसते ।। ६० ।।
  • 42. 42 42 प ररज तिन द् न-रत्नर्ण्डलर्जण्डते । न न रुर्लत र र्-पुष्पि टीमभर िृते ।। ६१ ।। ननर्ारीदेित पक्षक्ष-र्ृग ण ां ध्िननपूररते । सर्स्त देित मसदध-् थग र्ण्डल सेविते ।। ६२ ।। रम््े र्न हर नन्दे, भजक्तस र र्ह त्सिे । िैक ु ण्ठे विरज नद् -स्तटे ब ध वििजजाते ।। ६३ ।। निरत्नर्् दभूत-सहस्रस्तम्भर्ण्डपे। । ज म्बूनदभर क्लृप्त-रत्नि क रभ स्िरे ।। ६४ ।। रत्निभ लसदधेर्-िैथचत्् विविध ज्ज्िले । चतुहदाक्षु चतुध ार्, चतुर्ुाजक्तफलिदर् ्।। ६५ ।। अनन्त क ा त हट्चन्रर्ण्डल परर र्ण्डलर् ्। दुननारीक्षां दुर धषं, दुोःसहां देित दृश र््।। ६६ ।।
  • 43. 43 43 अथचन्त््ां तेजस व्् प्त-र्िर्े्र्ग चरर् ्। ि हदतां र् ्् विष्ण -व्िामलतां सिात र्ुखर् ्।। ६७ ।। र्ध््े तुरी्ब्रह्र्््ां, स्ििक शां तदेि सत ्। स्िशजक्त गुणिैथचत्् -दविसृजदविश्िर्व्््र् ्।। ६८ ।। उप द नां ननमर्त्तां च, क रणां जगतोः सतोः । ऊणान भस्तन्तुनेि, विह रस्तस्् र् ्् ।। ६९ ।। र्ूलिकृ नतसङग त्त-त्क ्ात्िेन वप सङगतर् ्। तत्तदि र बहहव््ाक्तां, ततस्तत ्त्त्रविधां कृ तर््।। ७० ।। तत्तत्कर् ानुगुण््ेन, भ नत स्थूलां र्हत्कृ शर् ्। विष्ग्रहणे पूिं, दृश््ते हह तदेि सत ्।। ७१ ।। विदुष र्हर्ुल्लेख, पर र्श ािभ सकर््। तदुप थधमभरज्िन्नां, र्हत्स्थूलां तथ कृ शर् ्।। ७२ ।।
  • 44. 44 44 स्थूलसूक्ष्र् निरघट -द्थ दग्िनत दीपभ ोः । तथैि ब्रह्र्णस्तेज , भ नत मभन्नर्ुप थधमभोः ।। ७३ ।। उप थधत्र्र्ेतत्तु ,ज्ित्त्ि भजक्तर्त ां नृण र््। एकर्ेि दविती्ां तत ्, त्त्रशून््ां भ नत जृजम्भतर् ्।। ७४ ।। र्ेघज्िर णण सजञ्िदर्, भ नुतेज इि जत्थतर््। न न त्िकल्पन ्ुक्तां, विश्ििकृ नतिजजातर् ्।। ७५ ।। नेनत नेतीनत च श्रुत्् ब थधतां ्त्सरां पदर् ्। परर्िेत्तुर्शक््त्ि -त्स्ििक शां तदेि सत ्।। ७६ ।। सत््ां ज्ञ नर्न द्न्त-र् नन्दर्र्ृत जत्थतर् ्। ननत््शुदधिबुदध त्र्-स्िरूपां ि गग चरर् ्।। ७७ ।। सिात व्् प्तर् त्र् नां, ननर्ालां ननष्कलां मशिर् ्। शून्् शून््फलां हहत्ि , िज्ञ नां ब्रह्र् जृजम्भतर् ्॥ ७८ ॥
  • 45. 45 45 भ ि भ िविननर्ुाक्तां, दिैत दिैत वििजजातर् ्। सज्चद नन्दस न्र जब्ध-पररपूणार्न र््र् ्।। ७९ ।। सत््थचदधनसूक्ष्र् ग्र््-र्खण्डर्क ु त भ्र् ् । क ै िल््पदस ्ुज््-पर नन्दपदिदर््।। ८० ।। ननगुाणां चेजन्र् तीतां, ननर क रां ननरञ्जनर््। स्िभक्तदशान थ ा्, ल क न ां रक्षण ् च ।। ८१ ।। कृ प् सिादेि न ां, मसदध न ां ् थगन ां हहतर् ्। क लिि हगम्भीर-र् ् िताभि म्बुधोः ।। ८२ ।। त रण ् िरां द तुां, भजक्तज्ञ नपुरस्सरर््। भजत ां ि ञ्ित ां सम्प-द ्ुर र ग््िधानर् ्॥ ८३ ॥ अणणर् द्ष्टमसदथधां च, ् गमसदथध च सजन्दशत ्। अष्ट ङग्ुक्त ां सदविद् -मसदथध च विज् जन्ित र््॥ ८४ ॥
  • 46. 46 46 र्न्त्र्न्त्रर्ह तन्त्र-देित मसदथधक रणर् ् । स्ि ांश ित रर्ूतीन ां, सिाशजक्तफलिदर् ्।। ८५ ।। त्त्रक ल् ग्् िक्ष थं, स्ििमसध्द्थाक रणर् ्। स्िीक ु िात्स्िगुणां ब्रह्र्, र्ूनतार्त्तदन र््र् ्।। ८६ ।। िैक ु ण्ठेन सह गतां पर-मर्दां श्रीिेङकट हरस्थलां । पूिा ज्ञ निर हर्ूनता-हररण भूम्् सह थधजष्ठतर््। लक्ष्म्् मलङथगतरूपपद्, सगुणां कल्् णर् स्ते दधत ्। शुदधां ब्रह्र् तदेि विश्ि-जननस्थेनव््् न ां िभुर््।। ८७ ।। सि ाध््क्षां र्ह विष्णुां , सिाल क ै कन ्कर् ्। क रुण्् नन्द ब हुल्् -त्सि ाश्च्ार््ां विभुर् ्॥ ८८ ॥ आनन्दर्ूनतार् नन्द-र्थचन्त््ैश्ि्ासां्ुतर््। क हटब ल क ा सङक शां, तडडत्क हटसर्िभर््।। ८९ ।। चन्रक हटिभां रत्नज -म्बूनदपररष्कृ तर््।
  • 47. 47 47 विर् न देित र्ूनता, तेज र्ण्डलसां्ुतर््।। ९० ।। हदव््ां विर् नर् रूढां, जस्थतां परर्श भनर् ्। सिोत्तर्ां र्ह ि््ां, सि ालङक रभूवषतर् ्।। ९१ ।। नीलजीर्ूतसङक शां, पीत म्बरतडडदिृतर् ्। रत्नत रण विद् त-र् न दि रिभ जन्ितर््।। ९२ ।। पञ्च ्ुधिरैहदाव््ै-र्ूानतार्दमभरुप मसतर् ्। चण्डिचण्डिर्ुखै-दाि रप लैरमभष्टुतर््।। ९३ ।। सुनन्दनन्दिर्ुखैोः, प ररषद्ैोः सर्जन्ितर््। रविक हटिक श ढ्ां, चन्रक हटसुशीतलर् ्।। ९४ ॥ अनघारत्नखथचत-हदव्् भरणभूवषतर््। अ््ुत नन्तग विन्द-िर्ुख नन्त विग्रहर् ्।। ९५ ॥
  • 48. 48 48 पूणाब्रह्र्तनुि््-कृ ष्णर र् ित रकर््। आद्न्तरहहतां सत््-ज्ञ नविज्ञ नविग्रहर््॥ ९६ ॥ ननणखल पननषत्स र-घनसांिेद् विग्रहर् ्। श्रीभूमर्सहहतां श्् र्ां, सुन्दरां िेङकटेश्िरर् ्।। ९७ ।। अनेक क हटकन्दपा-ल िण््र्थन जत्थतर््। जगन्र् हन ग प ल-लील िैथचत्र््क रणर््।। ९८ ॥ न न गर्रस मभज्ञै-िैख नसर्हवषामभोः । ब्रह्र् गस्त््भरदि ज-सनकव्् सनन्दनैोः ।। ९९ ।। ि र्देिशत नन्द-भृग्ि द्ैश्च िपूजजतर््। जनक द्ैनृापश्रेष्ठै-रथचातां पुरुष त्तर्र् ्।। १०० ।। बहुिषासहस्र णण, स्ि मर्पुष्कररणीतटे ।। १०१ ।। र्त्क ु र् रतप ध्् न-सर् थधक ु सुर् थचातर््। क ु र् रां परर् नन्द-परां ननत्् मभषेथचतर् ्।। १०२ ।।
  • 49. 49 49 र्र् न्तोःकरण नन्द-स्ि नुभूनतरस ल्र् ् । शङखचक्र भ् द्ुक्त-ननतम्बस्थचतुभुाजर् ्।। १०३ । दशानी्तर्ां ल क े , िसन्निदन म्बुजर् ्। आकण ान्तविश ल क्षी, कट क्ष जब्धतरङथगणर् ्॥ १०४ ॥ र्न्दजस्र्तां सुन स ग्रां, सुध्रुिां फ लश मभतर््। ज म्बूनदेन्दुकस्तूरी-क ुां क ु र् द्ूध्िापुण्रकर् ्।। १०५ ॥ प दनूपुरर् रभ््, ककरीट न्तैोः सर्थचातर् ्। िज्र ङक ु शध्िज ब्ज -हदरेख प दलल र्् ोः ।। १०६ ।। नखर्ण्डलचन्र ण ां, ज्् त्स्न् जजतर् ्् ोः । विलसत्क ु चक हठन््-क ु ङक ु र् ङककत रेख् ोः ।। १०७ ।। कर्ल कर क हठन््-भ विम्रहदर्श मलन ोः । भजत ां परर् नन्द-र्करन्दिद न््् ोः ।
  • 50. 50 50 लसन्र् णणक््र्ञ्जीर-विद्ुत्पुञ्जिभ र्रैोः ।। १०८ ।। र्णणककङककणणकज ल-घ षैिेद न्तरूवपमभोः । प द रविन्दसौन्द्ा-् ग्् नघासुभूषणैोः ।। १०९ ।। च रुज नूरुल िण््-िभ रजञ्जतभूषणैोः । ननतम्बविलसत्पीत-कौशे् म्बरर्ेखलैोः ।। ११० ।। अनघारत्नखथचतै-ज ाम्बूनदपररष्कृ तैोः । विथचत्रतेजस ां पुञ्जोः, क ञ्चीिैडू्ार्ण्डलैोः ।। १११ ।। न भीपुटलसत्पीत-पदर्क शथश्र् ज्ज्िलैोः । ऊध्िार र् िलीभ मभ-जजातेन्रर्णणक जन्तमभोः ।। ११२ ।। र्ुक्त द र्लसदिक्षोः-स्थलपदर् तडडत्करैोः। ज्् नतर्ा्ैब्राह्र्सूत्रै-स्तपनी्र्् ज्ज्िलैोः ।। ११३ ।। कम्बुग्रीि लसत्कण्ठ-र् ल रत्निभ ङक ु रैोः । पदक े षु लसन्न न -र्णणदीप िलीिरैोः ।। ११४ ॥
  • 51. 51 51 सुरत्न ङगदक े ्ूर-कङकणैरङगुली्क ै ोः । इन्रनीलर्णणश्् र्-रर्णी् हहभूषणैोः ।। ११५ ।। शङखचक्र भ् हद श्री-भूवषतैश्च भुज त्तर्ोः। सुच रुचुबुक ल्ल मस-पल्लि धरप टलैोः ।। ११६ ।। िज्रपङजक्तलसददन्त-क जन्तचन्र तपजस्र्तैोः । पूणाचन्रर्ुख ांभ ज-रम््न स सर् न्नतैोः ।। ११७ ।। सुिणार्करि््-क ु ण्डल भ्् ां कप ल् ोः । जजतब ल क ा त्बम्ब भ्् ां, सौन्द् ाकरसीर्् ोः ।। ११८ ।। द् म्बुथधसुध स्न न-कर्ल क्षक्षदि् त्सिैोः । र्णणच पलत च रु-रूल्लसदभ लप्टक ै ोः ।। ११९ ।। आनीलथचक ु र न्तोःस्थ, र्ुक्त र जजविर जजतैोः । रर्णी्सुकण ाक्षक्ष-ननहटल लकक ु न्तलैोः ।। १२० ।। र जजत्करीटसौन्द्ा-जजतकन्दपाक हटमभोः ।
  • 52. 52 52 त्त्रतेज ऽथधकसङक शै-न ान रत्नैर्ाह श्र्ैोः ॥ १२१ ॥ तप्तह टकसांलग्नै-न ान िैथचत्र््रजश्र्मभोः । अलङकृ तां ककरीटेन, स्कन्ददत्तेन तेन च ॥ १२२ ॥ र जर् नां द् म्भ थध, सुध ध र मभिवषाणर् ्। सि ाङगभूषणैस्सिा-जगन्र् हनविग्रहर््। रूपल िण्् सि ाङग-भूषण द्ैरनतवि्र््।। १२३ । आप दक े श विलसन्र्णणर्न्र्ह हा, नेपथ््ज लर्णणक जन्ततडडत्क ु ल न र््। ज म्बूनद ग्र््खथचत र्लरम््भ स ां, स प नप मलमभरतीि भृश मभर र्र््।। १२४ ॥ त र गणेन्दुरविर्ण्डलर्जण्डत द्- त्सौद मर्नी विपथग ग्रहर मश्ुक्तर््। त क्ष््ोद् हरकनक चलश्रृङगननष्ठां,
  • 53. 53 53 क ल रबृन्दमर्ि क जन्तक ु ल मभर र्र््।। १२५ ।। श्रीिेङकटेशर्नतसुन्दर र् हन ङगां, श्री भूमर्क न्तर्रविन्ददल ्त क्षर् ् । ि णवि्ां िविलसत्करुण म्बुर मशां, ब्रह्र्ेशिन्द्र्र्ृतां िरदां भज मर् ।। १२६ ।। सततां हृद् म्भ ज-र्ध््े श्रीिेङकटेशश्िरर् ्। िणि थास्िरूपां तां, त्त्रर्ण्डलसुसांजस्थतर् ्।। १२७ ।। चन्रसू् ाजग्नत्बम्ब न ां, िक शकरर्््ुतर््। ध्् नस्िरूपां देिेशां, सिाद नन्ददां र्र् ।। १२८ ।। आप दर्स्तक न्तां िै, श्रीर्दभूषणभूवषतर् ्। चन्दन गरुकपूार-कस्तूरी र्ृगल ञ्िनैोः ।। १२९ ।। क ु ङक ु र्ैघानसौरभ््, सुि मसत हदगन्तरैोः । मर्थश्रतैहदाव््गन्धैश्च, सुमलप्त ङगां र्न हरैोः ।। १३० ।
  • 54. 54 54 न न िणालसत्पुष्प- हदव््सौरभ््र् ल् । हहर् म्बुमसक्त् हदव््-िैज्न्त्् विर जजतर् ्॥ १३१ ॥ क ु र् रस्ि मर्न ननत््ां, भक्त्् ननर्ालचेतस । हदव्् त्सिैहदाव््रस-िि ह र्ृतप ्सैोः ।। १३२ ।। दथधक्षीरघृतैहदव््-सूप न्नर्धुशक ा रैोः । हदव्् सौरभनैिेद्ैोः, षरस र्ृतप ्सैोः ॥ १३३ ॥ हदव्् पच रैोः कल्् ण-िैभिैोः ष डश मभधैोः । हदव्् सौरभत म्बूलै-र्ुाक्तोः चूणाविमर्थश्रतैोः ।। १३४ ।। कपूारिीहटक मभश्च, हदव््भ गैोः सुपूजजतर् ्। सि ाङगभूषण थधक््-लसत्कर्ल् सह ।। १३५ ।। धूपदीपर्ह दीप-र जन्नीर जन त्तर्ैोः । सुन्दरैश्च र्रैश्ित्रै-व््ाजनैदापण त्तर्ैोः ।। १३६ ।। गीति हदत नृत््ैश्च, र्ृदङगपटह नक ै ोः ।
  • 55. 55 55 िीण िेणुसुत ल द्ै-गोर्ुखस्िरर्ण्डलैोः ।। १३७ ।। तू्ाभेरी सुशङखेन्र-हदव््घ षहदिौकस र् ्। मसदधककन्नरगन्धि ा-प्सरोः ककम्पुरुषव्रजैोः ।। १३८ ॥ सतुम्बुरुह ह हूहू-न रद हदसुरवषामभोः । गरुड रग्क्ष ण ां, विद् धरविन हदन ां ॥ १३९ ॥ सङगीतर्धुर ल पैोः, स्कन्दस्त त्रैोः सुत वषतर् ्। शुदधसत्त्िर्् क र-र्वप स्ि मर्सरस्तटे ।। १४० ॥ रर्न्तां रर्् स धा-र् नन्दकरर् नसर््। िसन्तर्र्ल नन्द-र् त्र् र र्ां र्ुद जन्ितर् ्।। १४१ ।। सर्स्तदेित िन्द्ां, स िाभौर्मशख र्णणर् ्। कत ारां सृजष्टक ले च, भत ारां प लने जगत ्।। १४२ ।। हत ारां िल्े क ले, िेङकटेश्िरर्व्््र््। सिादेि नन्न्त रां, सिादेिेश्िरेश्िरर््।। १४३ ।।
  • 56. 56 56 चर चर त्र्क ां विश्िां, रक्षक्षत रां कृ प ननथधर् ्। ककरीट ङगदसांर ज-ददीघाब हुर्ररन्दर्र् ्।। १४४ ।। सि ाङगलक्षण नन्दां, दशा्न्तां पद म्बुजर् ्। सत््ां विशुदधविज्ञ नां, घनिज्ञ पदां हररर् ्।। १४५ ।। क रुण््विग्रहां देिां, सिाजीिद् परर््। उप स्र्हे ि्ां ननत््ां, हृद्ेऽष्टदल म्बुजे ।। १४६ ।। अष्ट क्षरपद नन्दां, रर्ेशां कणणक परर । एिां ध््े्ांपुरस्कृ त््, पश्च दध्् नमर्दां िदेत ्।। १४७ ।। ्न्न र्श्रुनतस रस न्र-जसथधस्थ ने लसत्कौस्तुभां स्ि ज्ञ न न्धतमर्स्रदुोःख-हरणां र्त्पुत्त्रसज्जीिनर् ्। विश्ि भीष्टिरिद नफलदां, भ गीन्रसदभूषणां । सिैश्ि्ाननद नर् त्र्िरदां, श्रीिेङकटेशां भजे ॥ १४८ ॥
  • 57. 57 57 सन्त ष र्र् िेङकटेश, ननकटे श्रीस्िणार्ु्् स्तटे स्ि ि स भितीनत हदव््-सररतोः स्िग ापिगािदे । क ै ल से विथधक ु म्भसम्भ-िनुते श्रीक लहस्तजस्थले क ै िल््े िसत र्नन्त-र्हहर् ् गीश्िर दुलाभोः ।। १४९ ॥ त रां ननतां सर्ुदधृत््, श्रीपूिार्न्त्रर्ु्चरेत ्। नि क्षरमर्दां देवि, सिाग प््ां हृहद जस्थतर् ्। त्िन् स्नेह त्सर् ्् तां, पर नन्दपदिदर् ्।। १५० ।। नर्ोः श्रीिेङकटेश ्, शुदधज्ञ नस्िरूवपणे । ि सुदेि ् श न्त ्, श्रीननि स ् र्ङगलर् ्।। १५१ ।। र्न्त्रध्् नमर्दां कृ त्ि , पश्च न्र्न्त्रमर्दां िदेत ्। नर्ोः श्रीिेङकटेश ्, नर् ऽन्तां ि सर्ु्चरेत ्।। १५२ ।। अष्ट क्षरमर्दां ्् तां, भुजक्तर्ुजक्तफलिदर् ्। रहस््ां सिार्न्त्र ण ां, ग पनी्ां ि्त्नतोः ।। १५३ ।।
  • 58. 58 58 स्ि मर्पुष्कररणीस्न नां, िेङकटेश्िरदशानर् ्। र्ह िस दस्िीक र-स्त्र्ां त्रैल क््दुलाभर् ्।। १५४ ।। सिात्र कीता्ेत्ि ज्ञोः, स्ि मर्पुष्कररणीां पर र् ्। सुिणार्ुख हदव्् ां, िेङकटेश्िरर्व्््र््।। १५५ ।। अज्ञ न न्धतर्ोः सू्ं, प वपन ां तु ि र चते । तु एतत्सूक्ष्र्तरां पुण््ां, ् थगन र्वप दुलाभर् ्।। १५६ ।। स्ि मर्पुष्कररणीां गङग ां, सुिणार्ुखरीां पर र् ् िेङकटेशां हररां सेतुां, सिातीथेषु सांस्र्रन्।। १५७ ।। र्ह प तकसङघेभ्् , र्ुक्तोः िज्ञ नि न ्भिेत ्। एतत्स्थूलां र्ह पुण््ां, प वपन ां तु न र चते ।। १५८ ।। स्ि मर्पुष्कररणीतीथं, हदव््ौषधरस ्नर् ्। िैद्ोः श्रीिेङकटेश ऽ्ां, र्ृत््ुर गननकृ न्तनोः ।। १५९ ।।
  • 59. 59 59 ् िदिेङकटन ्कस््, मशखरि जप्तना िै ् थगन ां त िज्जन्र्जर हददुोःखननल्ोः सांस रक ल हलोः। ब्रह्र् ण्ड न्तपरररर्त्कृ त-र्ह पुण््ौधचन्र द्े सत्सङग र्ृत सेिन दधररर््े िीनतभािेदिेङकटे ।। १६० ।। ् िन्न जस्त सर्स्तल करर्णोः श्रीिेङकटेश मभधोः स्ि नन्द नुभि जस्थर ऽर्ल-थध् ां ् गीश्िरण ां नृण र् ्। न न ् ननषु गभाि स-र्सुखां विण्र्ूत्रश क क ु लां सम्ि प्् शु विन शदुोःख-नरक ांस्त िदभि ब्धौजस्थनतोः।। १६१ आ्् नां देित ग प््ां, ब्रह्र्ग प््ां सर् सतोः । इदर्ेि र्र् नन्दां, ध्् नां हृद्ग चरर््।। १६२ ।। अस्् श्रीिेङकटेशस््, सीर् ् ां ् त्त्रक े जने । ि ङर्नोः क ्िगेण, ्े क ु िाजन्त नर धर् ोः ।। १६३ ।
  • 60. 60 60 उपरिां च घ तां च, रव््ां च पह रजन्त ते । रौरि हदषु सिेषु, नरक े षु च द रुणर््।। १६४ ।। ब्रह्र्कल्पसहस्र न्तां, प््न्ते न त्र सांश्ोः । भक्त् श्रीिेङकटेशस््, सीर् रक्ष ां कर नत ्ोः ।। १६५ ।। स एि र ज््कत ा स्् -ददेह न्ते र्ुजक्तर् प्नु् त ्। परर् नन्ददां ध्् नां, कृ त्ि न्नां भुज््ते र्् ।। १६६ ।। त्ि् सर् नैि नैि, ध््े् ब्रह्र् ण्डग ल क े । सत््ां श्रीिेङकटेशस््, सर्ोः क लत्र्ेऽवप ि ।। १६७ ।। एतां रहस््र्ध्् ्ां, श्रीिेङकटपतेोः वि्र् ्। जवपत्ि भुज््ते ्ेन, ित््हां परर् त्र्नोः ।। १६८ ।। नृत््जन्त वपतरोः सिे, सन्तुष्ट स्तस्् िांशज ोः । देि श्च ऋष्स्तृप्त ोः, ि् जन्त परर्ां पदर् ्।। १६९ ॥
  • 61. 61 61 ऋिय ऊचुः - आश्च्ार्तुलां श्रुत्ि , परर् नन्दननिृात ोः । आनन्द श्रुपररजक्लन्न , र र् जञ्चतिपुधार ोः ।। १७० ।। विजस्र्त ोः शौनक द् स्तु, भक्त्् नन्दां पुनगात ोः । पुनध्् ानां सर् स द्, पुनगादगद् थगर ।। १७१ ।। ऊचुोः शनैर्ाह त्र् नां, सूतां पौर णणक त्तर्र् ्। व्् समशष््ां र्ह भ गां, श स्त्रमसदध न्तक विदर््।। १७२ ।। अद् श्रुतां श्रुतां र्ु््-र्द् नन्दां गत ि्र््। अद्ैि जन्र् सफलां, स क्ष त्सांस रर् चकर् ्।। १७३ ।। त्ित्िस द दगमर्ष्् र् , ि्ां शेष चलां िनत । श्रीसूत उिाच – अष्ट दशपुर णेनत-ह स न र्ुपधमर्ाण र््।। १७४ ।।
  • 62. 62 62 पुर ण न ां स्र्ृतीन ां च, सिेष ां श्रुनतस ररण र््। अणखल पननषत्स र-िेद न्त न ां र्ुनीश्िर ोः ।। १७५ ।। श्रिणैश्च कृ तै्ोगे-भाजक्तज्ञ नविर गदैोः । ्ज्ञद नतपोः कर्ा-व्रतर्न्त्रजप चानैोः ।। १७६ ।। आजन्र् नैमर्श रण््-कृ तपुण््ैरनेकशोः । भित र् गतां हस्ते, स क्ष त्सांस रर् चकर् ्।। १७७ ।। िैक ु ण्ठस्थ नशेष हर, ि जप्तरूपां र्हत्फलर् ्। अहां ग प््मर्दां िेदमर्, शुक िेवत्त न च परोः ।। १७८ ।। र्दगुर ोः कृ प् ऽधीत-र्ुक्तां च भित ां दविज ोः । ग्िध्िां र्ुन्ोः सिे, सस्त्रीिृदध ोः सब लक ोः ।। १७९ ।। सर् प्् सत्रां सकलां, विलम्ब र् स्तु शीघ्रतोः । तत्र गत्ि पि सेन, स्न त्ि स्ि मर्सर िरे ।। १८० ।। नत्ि द्ां भूमर्ि र हां, ज्ञ नक्षेत्रननि मसनर् ्।
  • 63. 63 63 हदव््ां विर् नर् श्ि्ं, नत्ि श्रीिेङकटेश्िरर् ्।। १८१ ।। िदक्षक्षणनर्स्क रैोः, स्तुत्ि स्त त्रैोः िणम्् च । नैिेद्द नधर्ैश्च, पूज ां कृ त्ि च भजक्ततोः ।। १८२ ॥ र्ौनव्रतर्थ त््क्त्ि , क्षर् पूिं िरिदर् ् । सम्ि थ््ा ननिस र् sत्र, भू् त्तेऽनुग्रह र्ह न्।। १८३ ।। इत््ेिां क ्ि जक्च-त्तैननि सां सत््र्ीररतर् ्। क ु रुध्िां त्िर् भक्त्् , ्ू्ां िैक ु ण्ठिेङकटे ।। १८४ ।। परर् नन्दस न्र ब्धौ, क्रीडध्िां र्ुननपुङगि ोः । सर्स्तदेित मसदध-सजन्नध ि त्र्िेङकटे ।। १८५ ।। स्ि मर्न क्षेत्रप लेन, सुिसन्नेन रक्षक्षते । ननि सर्वप ननविार्घनां, क ु रुध्िर्विशङक् ।। १८६ ।। त् रनुग्रहेणैि, िैक ु ण्ठक्षेत्रप ल् ोः । भरां ि िसत ां ननत््ां, श श्ितां भिनत दविज ोः ।। १८७ ।।
  • 64. 64 64 अजस्र्न ्क्षेत्रे कृ त न ां च, र्हत ां प पकर्ाण र् ्। क्षेत्रप लस्् शूल ग्रे, ् तन चक्रिदभिेत ्।। १८८ ।। ्ुग न्तां क्षणर् त्रेण, तेष ां क लस्तु ग्िनत । प प न्ते र्ुजक्तरस्त््ेि, िेङकट र न सांश्ोः ।। १८९ ॥ सत््ां सत््ां पुनोः सत््ां, र्दगुर िाचनां दविज ोः । भित ां पुण््शील न ां, नैमर्ष रण््ि मसन र् ्|| १९० ।। कृ प् नुग्रहां लब्ध्ि , क शीां गत्ि िणम्् च । र्दगुर ोः प दर्ूलां च, व्् सस्् मर्ततेजसोः ।। १९१ ।। अनुज्ञ् गमर्ष्् मर्, िेङकट हर दविज त्तर् ोः । सूति क््ां तद श्रुत्ि , शौनक द् ऋषीश्िर ोः ।। १९२ ।। सर् प्् सर् गत््, िेङकट हरर्नूष्् च । सूति क््िर् णेन, तत्र नन्दपद म्बुधौ । १९३ ।। देह न्तां ि प्् र् दन्ते, ससूत ोः शौनक द्ोः ।
  • 65. 65 65 इर्ां पवित्रर्ध्् ्ां, स क्ष त्सांस रर् चकर् ्।। १९४ ॥ सिािेद न्तमसदध न्तां, ्ोः श्र ि्नत ननत््शोः । िेङकटेश्िरभक्तेभ्् , ब्र ह्र्णेभ््श्च ् थगन र् ्।। १९५ ।। ्ोः श्रुण नत सद भक्त्् , रहस्् नुभि त्तर्र् ्। ्ोः स्थ प्नत ल क े ऽजस्र्न्, मसदध न्तमर्र्र्दभुतर््।। १९६ विद् थी लभते विद् ां, धन थी लभते धनर् ्। पुत्र थी लभते पुत्र न ्, कन्् थी लभते िधूर् ्।। १९७ ।। िश्् थी िश््र् प्न नत, ज् थी ज्र् प्नु् त ्। र् क्ष थी र् क्षर् प्न नत, ज्ञ न थी ज्ञ नर् प्नु् त ्॥। १९८ ।।
  • 66. 66 66 ् ् क र््ते मसदथध, त ां त र् प्न नत स दविजोः । िेङकटेशे परौ िीनत, लभते स ऽनतभजक्तर् न ्।। १९९ ।। इनत भविष्् त्तरपुर णे श्रीिेङकट चलर् ह त्म््े उर् र्हेश्िरसांि दे सकल पननषमसदध न्त श्रीिेङकटेश्िर रहस्् नुभिीन र् शीनततर् ऽध्् ् ऽत्र िथर् ऽध्् ्ोः ।। ।। श्रीिेङकटेश पाणर्स्तु ।। श्री भविष्् त्तर पुर ण न्तगात श्रीिेङकट चलर् ह त्म््र् ् िथर् ऽध्् ्ोः शौनक उि च सूत सूत र्ह भ ग , सिाश स्त्रविश रद । त्ित्त ऽहां श्र तुमर््ि मर्, र् ह त्म््ां पुण््िधानर् ्॥ १ ॥ र्ङगल चरणर् ्