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शैव सम्प्रदाय
डॉ. ववराग सोनटक्क
े
सहायक राध्यापक
राचीन भारतीय इततहास, संस्कृ तत और पुरातत्व ववभाग
बनारस हहंदू ववद्यापीठ, वाराणसी
B. A.
Semester III
Unit V: Cult Worship
शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय का उद्भव
• शशव की उपासना
• शैव धर्म की उत्पवि वैहदक और अवैहदक तत्वों का संगर् है।
• शसंधु संस्कृ तत से राप्त श ंग, र्ुद्राओं से शैव अनुर्ान का रयास
• शैव धर्म क
े उल् ेख वेदों से ही राप्त होने शुरू होते है।
• ब्रम्प्हा क
े क्रोधधत आंसुओं से भूत-रेतों की सृष्टट हुई, उनक
े र्ुख से
एकादश रुद्र उत्पन्न हुए
• “रु” धातु का अर्म है क्र
ं दन करना, धचल् ाना, जोर से दहाड़ना
• ऋग्वेद की स्तुततयों र्ें भी रुद्र क
े कठोर, भयंकर एवं ववनाशक रूप का
वणमन शर् ता है।
• ऋग्वेद क
े “रुद्र” र्ध्यर् श्रेणी क
े देवता है।
• वास्तववक रूप स्पटट नही।
वैहदक का र्ें शशव
• ऋग्वेद क
े रुद्र
• र्ध्यर् श्रेणी क
े देवता: तीन पूणम सूक्त
• पशुओं का रक्षक “पशुपातत” कहा गया है।
• ऋग्वेद र्ें रुद्र घने बाद ों र्ें चर्कती ववद्युत इस राकृ ततक
तत्व क
े रतीक र्े।
• ऋग्वेद र्ें रुद्र को र्हाशभषक (औषधध क
े देवता) कहा गया है।
• ऋग्वेद र्ें रुद्र को अष्ग्न क
े सार् सष्म्प्र्श त स्तुततयााँ उनक
े वषाम
क
े देवता क
े रर्ाण है।
वैहदक का र्ें रुद्र का स्वरूप
रुद्र क
े वणमन परस्पर
ववरोधी है
• रुद्र॰॰॰॰
1. भयावह
2. सौम्प्य
3. उग्र
4. संहार (र्नुटय एवं पशु)
5. कल्याणकारी
6. जीवनदायी
• आकाश देवता
• रुद्र: बाद ों का गजमन
• आयुध:धनुष
• धनुष से र्नुटय एवं पशु का वध
• रुद्र: कपहदमन (जटाजूटधारी)
• जटाजूटधारी: आकाश र्ें र्ेघों
की र्ा ा
• र्हाशभषक: जड़ी-बूटी, पेड़-पौधे
• वृषभ: वषमतयता एवं पुरुषत्वपूणम
रुद्र क
े ववषय र्ें ववद्वानो की
अवधारणा
1. वेबर: रुद्र को झंझावत क
े “रव’ शब्द का रतीक र्ाना है।
2. र्ेकडोन : रुद्र को ववध्वंसक रूप का रतीक र्ाना है।
3. ककर्: रुद्र को ववनाशकारी र्ानते है।
4. भण्डारकर: रुद्र को “रकृ तत का ववनाशकारी” र्ानते है।
5. ववल्सन: अष्ग्न एवं इंद्र का रूप
6. औडेर: र्ृत आत्र्ाओं से सम्प्बन्ध
7. यदुवंशी: वैहदक और अवैहदक तत्वों का सष्म्प्र्श्रण
उिर वैहदक का
• इस का र्ें रुद्र-शशव की अवधारणा का ववकास हुआ।
• उनक
े दो रूपों की कल्पना की गयी।
• शशव: शांत, र्ंग र्य
• रुद्र: ववनाशक,उग्र
• अर्वमवेद र्ें उनक
े रुद्र रूप की अधधक चचाम है। (भीर् राजानार्-
आतंककारी, उपहंतु: ववनाशक)
• अर्वमवेद र्ें रुद्र र्ृत्यु क
े देवता भी र्ाने गए है। (श्वानो का साहचयम)
• अर्वमवेद र्ें रुद्र “र्हादेव” कहा गया है, जो उनक
े ोकवरयता का रतीक
है।
• रुद्र की बढ़ती व्यापकता क
े कारण उनक
े अनुचरों की कल्पना की गयी
• रुद्र चतुहदमक व्याप्त र्े भव-पूवम, पशुपतत-पष्श्चर्, उग्र-उिर, शवम –
दक्षक्षण, रुद्र-भूत , र्हादेव-आकाश
• श॰ब्रा॰: रुद्र,उग्र,अशतन = ववध्वंसकारी
• भव,पशुपतत, र्हादेव,ईशान =कल्याणकारी
उिर वैहदक का
• यजुवेद र्ें रुद्र क
े भयंकर रूपों र्ें ककवव (ववध्वंसक) कहा है।
• सूत्र ग्रंर्: शशव, भीर्, शंकर ये नार् और इंद्राणी, रुद्राणी, भवानी
और शवामनी चार पष्त्नयो का उल् ेख आता है।
• क
े नोपतनषद:उर्ा हेर्वती का उल् ेख हुआ है।
• पाणणतन की अटटाध्यायी: वाक् देवता
• अर्मशास्त्र: शशव पूजा
• रार्ायण: शशव क
े रूपों का वणमन (सौम्प्य वणमन, नंदी )
• रार्ायण: नंदी का रर्र् उल् ेख
• र्हाभारत: पशुपातव्रत, उपासना हर्ेशा पावमती क
े सार्,
• र्हाभारत: उपासना र्ानवाकार और श ंगाकर स्वरूप र्ें
• शशव: तपस्वी, योगी, कल्याणकारी, वरदाता, सवोच्च
ऐततहाशसक का
• पतंजश : र्ौयम का र्ें शशव एवं स्क
ं द की र्ूततमयााँ बबकती
र्ी
• इंडो-ग्रीक-राजाओं क
े शसक्कों पर वृषभ का अंकन
• ववर् क़दकिशसस : क
े शसक्कों पर शशव का अंकन
• अश्वघोष क
े बुद्धचररत र्ें उल् ेख
• र्नुस्र्ृतत: एकादश रुद्र
• भारतीय नाट्यशास्त्र : नटराज
• रयाग रशष्स्त: गंगा अवतरण का उल् ेख
• स्क
ं दगुप्त क
े शसक्कों पर वृषभ का अंकन
• काश दास: शैव धर्मनुयायी
पूवम-र्ध्ययुग
• वधमनवंश क
े राजा शैव धर्ामनुयायी
• बाणभट्ट: शैव
• शशांक: शैव
• पल् व: शैव
• चो : शैव
• खजुराहो ५ अशभ ेख: शशव=एक
े श्वर
• क चुरी अशभ ेख: जगत गुरु, परर्-ब्रह्र्
• दक्षक्षण भारत: सम्प्बन्दर एवं अप्पर संत (नयनार): पेररय पुराण
शैव धर्म का ववकास
• अवैहदक देवता
• रारंभ: रुद्र रूप
• श्वेताश्वतर उपतनषद: शशव का दाशमतनक स्वरूप की चचाम
• शशव का परब्रह्र् से तात्पयम
• पुरुषरूप र्ें शशव सुष्टट का तनर्ामण
• शशव की शष्क्त, र्ाया रूप र्ें देवी (उर्ा, पावमती)
• रार्ायण, र्हाभारत: रौद्र रूप क
े सार् सौम्प्य रूप
• रार्ायण, र्हाभारत: अनेक कर्ाओं की रचना
• दाशमतनक एवं ोकरचश त रूप
• पावमती क
े सार्: कल्याणकारी
• पुराण का : एक
े श्वरवाद (शशव सवोच्च, ब्रह्र्)
• पुराण का : श ंगपूजा
शशव का स्वरूप
• शशव: कोर् और ववध्वंसक स्वरूपों र्ें रदशशमत है।
• हहर्ा य उनका तनवास है।
• पत्नी: पावमती, उर्ा,दुगाम, का ी, करा ी आहद नार् है।
• वाहन : वृषभ
• सेवा: गण
• अत्यंत दानी है।
• गणेश और काततमक
े य दो पुत्र है।
• उपासना: र्ानवाकार और श ंग रूप र्ें पूजा जाता है।
• र्ानवीय स्वरूप: शसर पर जटाजूट, ग े र्ें बााँहों र्ें नाग और
रुद्राक्ष र्ा ा, हार्ों र्ें बत्रशू , डर्रू, शरीर पर बाघम्प्बर,बत्रनेत्र
शशव की उपासना
• रौद्र और सौम्प्य रूपों र्ें उपासना की शभन्न ववधध
• गृह्यसूत्र: शशव क
े रौद्र रूप की उपासना क
े श ए “शु गव” यज्ञ
ककया जाता र्ा। (गो-बश , अश्वर्ार्ा क
े उल् ेख )
• अर्वमवेद: र्ें रुद्र को नर-बश का उल् ेख है। (र्हाभारत र्ें
जरासंध युद्धबंहदयो को शशव की बश चढ़ाने क
े उल् ेख, सभापवम
२१/९८)
• रुद्र क
े सौम्प्य रूप र्ें शशव-पावमती दोनो की उपासना का वणमन है।
• सर और साधारण उपासना पद्धतत
• शशव को धूप,दीप, पुटप, नैवेद्द आहद अवपमत करे
• “उर्ार्हेश्वर व्रत” की उपासना
• ववशशटट हदनो र्ें व्रत, पूजा
शैव धर्म क
े सम्प्रदाय
1. शशव- भागवत : पतंजश क
े र्हाभाटय। यह शैव धर्म का
राचीनतर् सम्प्रदाय र्ा जो नटट हो गया।
• शैवागर् एवं वार्न पुराण क
े अनुसार
1. पाशुपत
2. शैव
3. कापाश क
4. का ार्ुख
5. कश्र्ीर का शैव-र्त
6. दक्षक्षण भारत का वीर (श ंगायत)
पाशुपत
• शैवधर्म का राचीनतर् तर्ा सवमरधान सम्प्रदाय
• शांततपवम : स्वतः शशव ने पाशुपत शसद्धांत रकट ककया।
• शशव ने स्र्शान क
े एक शव र्ें रवेश ककया और क
ु श श क
े रूप र्ें
अवतररत हुए।
• पुराणों र्ें, तर्ा अशभ ेखों र्ें क
ु ीश को शशव का अवतार बताया गया
है।
• वायु,श ंग पुराण: क
ु श न या क
ु ीश नार्क ब्रह्र्चारी ने इस
सम्प्रदाय का रवतमन ककया।
• सवमदशमनसंग्रह ग्रंर् : क
ु ीश को पाशुपत सम्प्रदाय का संस्र्ापक
• पाशुपत सम्प्रदाय को र्ाहेश्वर नार् से जानते है।
• क
ु श न: गुड (दंड) या क
ु ( ंगोट) धारण करने वा ा।
• इस सम्प्रदाय क
े ोग शशव क
े रतीक क
े रूप र्ें हार् र्ें दंड धारण करते
है।
पाशुपत सम्प्रदाय क
े उल् ेख तर्ा
उदाहरण
• बाणभट्ट ने पाशुपत सम्प्रदाय क
े अनुयातययों क
े र्स्तक पर
भस्र्,हार् र्ें रुद्राक्ष की र्ा ा धारण ककए वणणमत ककया है।
• हेनत्सााँग: पाशुपत सम्प्रदाय क
े अनुयातययों को भस्र् गाने का
उल् ेख ककया है।
• वायु पुराण र्ें पाशुपत र्तशसद्धांत, योगपक्ष और उपासना का वणमन
शर् ता है।
• ईसा ८ वी शती क
े भासवस्वम द्वारा श णखत “गुणकाररका” और
“पाशुपतसूत्र” र्ें पाशुपत सम्प्रदाय की ववस्तृत चचाम है।
• अशभ ेख तर्ा स्र्ापत्य उदाहरण:
1. चहर्ान राजा ववगढ़प क
े अशभ ेख र्ें पाशुपत सम्प्रदाय क
े श ए
शशव र्ंहदर का उल् ेख
2. क चुरी राजा गांगेय देव की रानी अल्हना देवी द्वारा तनशर्मत शशव
र्ंहदर की व्यवस्र्ा पाशुपत सम्प्रदाय क
े अनुयायी करते र्े।
3. चेहद अशभ ेख र्ें भाव नार्क पाशुपत सन्यासी द्वारा तनशर्मत शशव
र्ंहदर का उल् ेख है।
4. दक्षक्षण भारत र्ें भी रशसद्ध
पाशुपत सम्प्रदाय का शसद्धांत
• शंकराचायम : पाशुपत सम्प्रदाय क
े ५ शसद्धांतो का उल् ेख ककया है।
1. कायम: स्वतंत्र नही हो सकता, ईश्वर पर आधश्रत। ३ रकार: ववद्या
(वेदना), अववद्या (इंहद्रया) एवं पशु (जीव/आत्र्ा)
2. कारण: कारण पर ही सृष्टट की उत्पवि, ष्स्र्तत, एवं संहार तनभमर है।
सर्स्त वस्तुओं का तनर्ामता तर्ा संसार और अनुग्रह करने वा ा
तत्व। इसे परर्ेश्वर और र्हेश्वर कहा गया है। २ रकार (कर्म,
कर्मक्षय)
3. योग: चीि क
े र्ाध्यर् से ईश्वर को जोड़नेवा ा तत्व। जप, तप,
ध्यान,
4. ववधध: यह व्यापार है ष्जससे धर्म कक राष्प्त होती है। इसे चयाम कहा
जाता है क्योंकक यही धर्म का साक्षात कारण है। इसर्ें शरीर पर
भस्र्, भस्र् र्ें सोना, हास्य, गीत, नृत्य, दंडवत, रणार्, शृंगारण
(अश् ी चेटटाओं द्वारा कार् भावना व्यक्त करना इत्याहद।
5. दु:खान्त: दु:खों से र्ुष्क्त पाकर र्ुक्त हो जाना,
शर्थ्यज्ञान,अधर्म,ववषयासक्ती से छ
ु टकारा। २ रकार (दुखो का नाश
और ज्ञान राष्प्त)
उपयुक्त कक्रयाओं क
े द्वारा पाशुपत सम्प्रदाय र्ें परर्पद की राष्प्त
वणणमत है।
पाशुपत सम्प्रदाय क
े अनुयायी
• शरीर पर भस्र्
• हेनत्सााँग : भस्र्धारी, जटाधारी
• वस्त्रहीन अवस्र्ा
• कादम्प्बरी: रक्तवणम क
े वस्त्र
• अनुयायी: र्स्तक, वक्ष, नाशभ, और भुजाओं पर शशवश ंग
का धचन्ह अंककत करते र्े।
शैव शसद्धान्त सम्प्रदाय
• शैव सम्प्रदाय क
े ३ र्ू : पतत, पशु एवं पाश
पतत
1. पतत: पतत का अर्म शशव र्ाना है।
2. जीवात्र्ा का शरीर दूवषत रहता है ेककन शशव का शरीर ववशुद्ध शष्क्त
का रूप है।
3. उनक
े शरीर अवयवों का तनर्ामण ईशान से र्स्तक, तत्पुरुष से र्ुख,घोर से
हृदय, कार्देव से गुप्तांग, तर्ा सद्योजात से चरण तनशर्मत है।
4. शशव क
े पााँच कायम
१) सृष्टट :उद्भव,
२) पा न,
३) संहार,
४) ततरोभाव: आवरण,
५) रसाद: अनुग्रह
• शशव जीवात्र्ाओं को क्रर्ानुसार भोग रदान करते है
शैव शसद्धान्त/सम्प्रदाय
पशु
• पशु का अर्म जीवात्र्ा है, जो सीशर्त शष्क्त सम्प्पन्न है।
• पशु ३ रकार
1. ववज्ञानाक : ष्जन्होंने ज्ञानयोग से कर्ो का नाश ककया हो।
(ववज्ञानाक पशु को ववधेश्वर पद राप्त )
2. र याक : वह पशु ष्जसकी क ाओं का नाश संसार की र य क
े
द्वारा होता है। (र् एवं कर्म उधचत रहे तो र्ोक्ष राष्प्त)
3. सक पशु: जो र् , कर्म और र्ाया से र्ुक्त है। (रोध शष्क्त
ववनटट होने पर र्ोक्ष राष्प्त)
इन सब क
े दो-दो रकार है।
शैव शसद्धान्त/सम्प्रदाय
पाश
पाश का अर्म है बंधन। जो पाश र्ें रहते है वह शशवरूप नही राप्त कर सकते।
इसक
े चार रकार
1. र् : वह पाश जो जीवात्र्ा कक शष्क्त और कक्रया र्ें बाधा उत्पन्न करे।
2. कर्म: ि राष्प्त की आकााँक्षा से ककए जाने वा े कर्म
3. र्ाया:
4. रोध शष्क्त: शशव की वह शष्क्त जो ततनो पाशों से जीवात्र्ा क
े स्वरूपों का बचाव करती है।
शैव शसद्धान्त क
े अनुसार पशु (जीव) वस्तुतः शशव ही है, परंतु पाशों क
े बंधन र्ें ि
ाँ सा रहता है।
र्ुष्क्त क
े चार उपाय
1. ववद्या: सही स्वरूप का ज्ञान
2. कक्रया: र्ंत्र, पूजा, तप,हवन कायों से शशव की उपासना
3. योगपद: ध्यान और योग की साधना
4. चयामपद: तप, शशवश ंगो की उपासना, उर्ा-शशव की पूजा, गणपतत, स्क
ं द, नंदी की पूजा।
शैव शसद्धान्त क
े अनुयायी शशव क
े तीन रत्न
1. शशव: कताम
2. शष्क्त: करण
3. बबंदु : उपादान है।
इसी बत्ररत्न से ज्ञान राष्प्त एवं परर्तत्व शशव को राप्त करने कक कल्पना की गयी है।
कापाश क
• कापाश क सम्प्रदाय क
े इटटदेव शशव का भैरव रूप है।
• कापाश क सम्प्रदाय र्ें भैरव को ही सृष्टट का सजमन और संहार करने
वा ा बताया गया है।
• स्वरूप: अभक्ष्य भोजन, सुरापान, शरीर पर भस्र्, रुद्राक्ष र्ा ा, शसर पर
जटाजूट, हार् र्ें नर कपा ।
• तार्शसक कक्रयायें:
1. स्वयं को भैरव तर्ा ष्स्त्रयों जो भैरवी र्ानकर उच्छ कार्-क्रीड़ा
करना।
2. ौककक और पार ौककक इच्छापूततम हेतु नर-क
ं का र्ें भोजन,
सुरापान, भस्र्, गुड धारण इत्याहद कायम
• भवभूतत ने श्रीशै को कापाश क का रधान पीठ बताया है।
• कापाश क सम्प्रदाय र्ें नरबश क
े उल् ेख शर् ते है।
• कापाश क सम्प्रदाय र्ें ष्स्त्रयााँ भी अनुयायी होती र्ी।
• इस सम्प्रदाय की कक्रयायें रुद्र क
े जंग ी और भयंकर स्वरूप को व्यक्त
करती है।
• जनसार्ान्य इसे “वार्र्ागी साधना” कहते है।
कापाश क
• शशव का स्वरूप: हदगम्प्बर अवस्र्ा, कपा कर्ंड ु, शरीर पर भस्र्, स्र्शान भूशर् र्ें
तनवास
• सौरपुराण: ववधर्ी कहा गया है॰॰
• सीशर्त सम्प्रदाय
• घोर पाप क
े रायष्श्चत क
े श ये अनुयायी कापाश क सम्प्रदाय क
े अनुयायी हो गए।
• इनक
े र्ंहदर स्र्शान भूशर् र्ें होते है।
• भवभूतत ने “र्ा तीर्ाधव” र्ें कापाश क सम्प्रदाय का धचत्रण ककया है।
• नर बश देने की रर्ा, नरब ी क
े ववशभन्न अंग भैरव को चढ़ाने की रर्ा
• सर्ाज से गहहमत (तनंदनीय): जनसाधारण से ववरोध
• ष्स्त्रयााँ भी सष्म्प्र्श त होती र्ी
• वणम भेद को स्र्ान नही
• उपासक: जटाधारी, जटाओं र्ें नवचंद्र रततर्ा, हार् र्ें कपा का कर्ंड , ग े र्ें
र्ुंडो की र्ा ा
• उपासक: र्ांस एवं र्हदरा का सेवन, देवता को र्हदरा चढ़ाते र्े।
• उपासक: शस्त्रों से सुस्सष्जत
का र्ुख
• कापाश कों का ही एक सम्प्रदाय।
• रारंशभक नार् “कारकशसद्धांतत”
• क र्ुख सम्प्रदाय क
े अनुयायी कापाश क सम्प्रदाय से भी अततवादी और
क्र
ू रकर्ी र्े।
• शशवपुराण र्ें इन्हें “र्हाव्रतधर” कहा गया है।
• क र्ुख सम्प्रदाय क
े अनुयायी:
1. कपा र्ें अभक्ष्य भोजन,
2. सुरापान,
3. शरीर पर भस्र्,
4. रुद्राक्ष र्ा ा,
5. शसर पर जटाजूट,
6. हार् र्ें नर कपा
7. ट्ठ ेक
े च ते र्े
• नरबश और सुरापान से आराधना करते र्े।
• दक्षक्षण भारत र्ें भी रभावी
काश्र्ीरी शैवर्त
• शैव संरदायों र्ें उधचत शसद्धांत
• काश्र्ीरी शैवर्त को दो शाखा १) स्पंदशास्त्र, २) रत्यशभज्ञाशास्त्र
1. स्पंदशास्त्र: क
े रवतमक “वसुगुप्त” र्े।
उन्होंने संभवतः ८-९ वी शताब्दी क
े अंत र्ें इस पंर् का रवतमन
ककया।
उन्होंने शशवसूत्रर्णण ग्रंर् र्ें इस पंर् की ववस्तृत चचाम की है।
दूसरा ग्रंर् है स्पंदकाररका। (वसुगुप्त क
े शशटय कल्वट)
इस पंर् क
े अनुयायी दोनो ग्रंर् को रर्ाण र्ानते है।
• स्पंदशास्त्र पंर् का शसद्धांत:
• शशव ही एकर्ात्र सत्य
• जीवात्र्ा को ज्ञान नही (की वह शशव है)।
• क्योंकक र् का आवरण रहता है। (आवरण, र्ायीय एवं कार्म)
• ध्यान और साधना से परर् शशव का दशमन से र् नटट होता है।
काश्र्ीरी शैवर्त
रत्यशभज्ञाशास्त्र
• इसक
े रवतमक सोर्ानंद एवं उनक
े शशटय उत्प , अशभनव –गुप्त र्े।
• का १० वी सदी
• ग्रंर्: शशवदृष्टट
• वसुगुप्त तर्ा कल् ट क
े कश्र्ीरी शैवर्त क
े शसद्धांतो की ताकक
म क
वववेचना।
• शसद्धांत:
• जीव को ईश्वर का अंश
• र् क
े आवरण से ईश्वर की अशभन्नता की पहचान नही।
• गुरु क
े उपदेश से ईश्वर की पहचान सम्प्भव
• ध्यान-अवस्र्ा र्ें भैरव क
े दशमन होने पर सर्स्त र् नटट ।
काश्र्ीरी शैवर्त र्ें परर्तत्व परर्ेश्वर को शशव-शष्क्त का संयुक्त रूप
र्ाना है। वास्तववकता क
े ज्ञान से शशव क
े परर्पद की राष्प्त होती है।
काश्र्ीरी शैवर्त अन्य संरदायों क
े ववपरीत अधधक र्ानवतापूणम एवं
बुद्धधवादी है।
वीर शैवर्त अर्वा श ंगायत
सम्प्रदाय
• दक्षक्षण भारत का सम्प्रदाय
• २८ शैव आगर्ो पर आधाररत
• श ंगायत सम्प्रदाय क
े स्र्ापना का श्रेय कल्याणी क
े शासक
क चुरी ववज्ज क
े रधानर्ंत्री वासव को जाता है।
• ेककन श ंगायत सम्प्रदाय क
े अनुयायी इसे अतत राचीन र्ानते है
और इसक
े संस्र्ापक ५ ऋवष जो शशव क
े पााँच शीषम से उत्पन्न हुए र्े
और र्ैसूर,उज्जैन, क
े दारनार्, श्रीशै और काशी र्ें रततटठा की
र्ी।
• श ंगायत सम्प्रदाय र्ें शशव क
े पााँच र्ुख
सधोजत,वर्देव,अधीर,तत्पुरुष और ईशान क
े स्वरूप र्ानते है।
वीर शैवर्त अर्वा श ंगायत
सम्प्रदाय
• शसद्धांत:
• शशव ही परब्रम्प्ह है, जो स्वतंत्र और अनश्वर है।
• शशव ही ववश्व है। सर्स्त राणणयों का तनवास
• शशव क
े दो भेद है। (श ंगस्र् और अंगस्र् )
श ंगस्र् : रुद्ररूप,
१) भावश ंग:सूक्ष्र् क
े व श्रद्धा द्वारा दशमन, परर्तत्व
२) राणश ंग: बुद्धध अर्वा र्न क
े द्वारा दशमन, सूक्ष्र् रूप
३) इटटश ंग: दुःख तनवारक, नेत्रों द्वारा दशमन, स्र्ू रूप
अंगस्र् : उपासक या जीवात्र्ा,
1. योगांग : ष्जसक
े द्वारा र्नुटय शशव से सम्प्पक
म स्र्ावपत करता है, तर्ा
आनंद राप्त करता है। सर्स्त भोगो का त्याग।
2. भोगांग : भोगांग द्वारा जीव शशव क
े सार् आनन्दपभोग करता है। यह
सूक्ष्र् शरीर और स्वप्नावस्र्ा है।
3. त्यागांग : इसर्ें जीव नश्वर शरीर का त्याग करता है। यह स्र्ू शरीर है
और जागृत अवस्र्ा र्ें रहता है। इछा त्याग, व्रत,तनयर्, सत्य, पववत्रता
वीर शैवर्त अर्वा श ंगायत
सम्प्रदाय
• शैव पंर् का पररशुद्ध एवं सर सम्प्रदाय
• वीर सम्प्रदाय क
े अनुयायी को श ंग धारण करना अतनवायम है।
• वीर सम्प्रदाय र्ें दीक्षा का संस्कार र्हत्वपूणम है।
• दीक्षा गुरु द्वारा शशटय को हद जाती है।
• श ंगायत सम्प्रदाय क
े अनुयायी र्ासं –र्हदरा का सेवन नही
करते।
• श ंगायत सम्प्रदाय क
े अनुयायी को र्ंहदर र्ें श ंगपूजा अतनवायम
नही।
• श ंगायत सम्प्रदाय क
े आचायों को “आराध्य” कहते र्े
• ड़ककयों का भी उपनयन संस्कार
• यज्ञोपवीत क
े स्र्ान पर शशवश ंग धारण करते र्े
• वणमभेद अस्वीकार
वव ुप्त हुए शैव सम्प्रदाय
• भारशशव
• शशव श ंग को र्स्तक पर धारण करने वा े अनुयायी॰
• वाकाटक राजाओं से संबंध
• अन्य सम्प्रदाय:
1. शशव-भागवत
2. जंगर्
3. भाट
4. उग्र
5. रौद्र
शशव का अंकन: पुराताष्त्वक
• क
ु षाण राजा ववर् कदकिशसस क
े शसक्कों पर शशव का अंकन
शर् ता है “सवम ोक
े श्वरस्य र्ाहेश्वरस्य”।
• र्ुखश ंग की आराधना क
े रर्ाण
• अश्वघोष क
े बुद्धचररत, र्नुस्र्ृतत, भारतीय नाट्यशास्त्र,
काश दास,
• गुप्त युग क
े सर्ुद्रगुप्त क
े रयाग-रशष्स्त र्ें गंगावतरण का
उल् ेख है।
• पुराणों र्ें शशव क
े दाशमतनक तर्ा ोक-रचश त रूपों का वणमन
है।अधमनारीश्वर, हररहर,बत्रर्ूततम
• ब्रम्प्हाण्ड पुराण : श ंगपूजा का उल् ेख
• हेनत्सााँग: वाराणसी र्ें १०० शशव र्ंहदर
• अन्य वववरण, ताम्रपट, अशभ ेख, र्ंहदर इत्याहद रर्ाण
उपसंहार
• शैव धर्म भारत का राचीन एवं र्हत्वपूणम धर्म
• वैहदक एवं अवैहदक तत्वों का शर्श्रण
• उिर वैहदक का से अत्यधधक ोकवरय
• धर्म क
े शसद्धांतो क
े अनुरूप शभन्न संरदायों का ववकास
• शैव धर्म क
े संरदायों का सर से ेक
े क्र
ू र स्वरूप
• भारतीय जनर्ानस र्ें ोकवरय धर्म
• वतमर्ान का र्ें भी अत्याधधक पूजनीय
• भारत क
े ववस्तीणम भूभाग र्ें शशव र्ंहदरो की संख्या से शैव धर्म
की ोकवरयता का आक न ककया जा सकता है।

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शैव सम्प्रदाय

  • 1. शैव सम्प्रदाय डॉ. ववराग सोनटक्क े सहायक राध्यापक राचीन भारतीय इततहास, संस्कृ तत और पुरातत्व ववभाग बनारस हहंदू ववद्यापीठ, वाराणसी B. A. Semester III Unit V: Cult Worship
  • 3. शैव सम्प्रदाय का उद्भव • शशव की उपासना • शैव धर्म की उत्पवि वैहदक और अवैहदक तत्वों का संगर् है। • शसंधु संस्कृ तत से राप्त श ंग, र्ुद्राओं से शैव अनुर्ान का रयास • शैव धर्म क े उल् ेख वेदों से ही राप्त होने शुरू होते है। • ब्रम्प्हा क े क्रोधधत आंसुओं से भूत-रेतों की सृष्टट हुई, उनक े र्ुख से एकादश रुद्र उत्पन्न हुए • “रु” धातु का अर्म है क्र ं दन करना, धचल् ाना, जोर से दहाड़ना • ऋग्वेद की स्तुततयों र्ें भी रुद्र क े कठोर, भयंकर एवं ववनाशक रूप का वणमन शर् ता है। • ऋग्वेद क े “रुद्र” र्ध्यर् श्रेणी क े देवता है। • वास्तववक रूप स्पटट नही।
  • 4. वैहदक का र्ें शशव • ऋग्वेद क े रुद्र • र्ध्यर् श्रेणी क े देवता: तीन पूणम सूक्त • पशुओं का रक्षक “पशुपातत” कहा गया है। • ऋग्वेद र्ें रुद्र घने बाद ों र्ें चर्कती ववद्युत इस राकृ ततक तत्व क े रतीक र्े। • ऋग्वेद र्ें रुद्र को र्हाशभषक (औषधध क े देवता) कहा गया है। • ऋग्वेद र्ें रुद्र को अष्ग्न क े सार् सष्म्प्र्श त स्तुततयााँ उनक े वषाम क े देवता क े रर्ाण है।
  • 5. वैहदक का र्ें रुद्र का स्वरूप रुद्र क े वणमन परस्पर ववरोधी है • रुद्र॰॰॰॰ 1. भयावह 2. सौम्प्य 3. उग्र 4. संहार (र्नुटय एवं पशु) 5. कल्याणकारी 6. जीवनदायी • आकाश देवता • रुद्र: बाद ों का गजमन • आयुध:धनुष • धनुष से र्नुटय एवं पशु का वध • रुद्र: कपहदमन (जटाजूटधारी) • जटाजूटधारी: आकाश र्ें र्ेघों की र्ा ा • र्हाशभषक: जड़ी-बूटी, पेड़-पौधे • वृषभ: वषमतयता एवं पुरुषत्वपूणम
  • 6. रुद्र क े ववषय र्ें ववद्वानो की अवधारणा 1. वेबर: रुद्र को झंझावत क े “रव’ शब्द का रतीक र्ाना है। 2. र्ेकडोन : रुद्र को ववध्वंसक रूप का रतीक र्ाना है। 3. ककर्: रुद्र को ववनाशकारी र्ानते है। 4. भण्डारकर: रुद्र को “रकृ तत का ववनाशकारी” र्ानते है। 5. ववल्सन: अष्ग्न एवं इंद्र का रूप 6. औडेर: र्ृत आत्र्ाओं से सम्प्बन्ध 7. यदुवंशी: वैहदक और अवैहदक तत्वों का सष्म्प्र्श्रण
  • 7. उिर वैहदक का • इस का र्ें रुद्र-शशव की अवधारणा का ववकास हुआ। • उनक े दो रूपों की कल्पना की गयी। • शशव: शांत, र्ंग र्य • रुद्र: ववनाशक,उग्र • अर्वमवेद र्ें उनक े रुद्र रूप की अधधक चचाम है। (भीर् राजानार्- आतंककारी, उपहंतु: ववनाशक) • अर्वमवेद र्ें रुद्र र्ृत्यु क े देवता भी र्ाने गए है। (श्वानो का साहचयम) • अर्वमवेद र्ें रुद्र “र्हादेव” कहा गया है, जो उनक े ोकवरयता का रतीक है। • रुद्र की बढ़ती व्यापकता क े कारण उनक े अनुचरों की कल्पना की गयी • रुद्र चतुहदमक व्याप्त र्े भव-पूवम, पशुपतत-पष्श्चर्, उग्र-उिर, शवम – दक्षक्षण, रुद्र-भूत , र्हादेव-आकाश • श॰ब्रा॰: रुद्र,उग्र,अशतन = ववध्वंसकारी • भव,पशुपतत, र्हादेव,ईशान =कल्याणकारी
  • 8.
  • 9. उिर वैहदक का • यजुवेद र्ें रुद्र क े भयंकर रूपों र्ें ककवव (ववध्वंसक) कहा है। • सूत्र ग्रंर्: शशव, भीर्, शंकर ये नार् और इंद्राणी, रुद्राणी, भवानी और शवामनी चार पष्त्नयो का उल् ेख आता है। • क े नोपतनषद:उर्ा हेर्वती का उल् ेख हुआ है। • पाणणतन की अटटाध्यायी: वाक् देवता • अर्मशास्त्र: शशव पूजा • रार्ायण: शशव क े रूपों का वणमन (सौम्प्य वणमन, नंदी ) • रार्ायण: नंदी का रर्र् उल् ेख • र्हाभारत: पशुपातव्रत, उपासना हर्ेशा पावमती क े सार्, • र्हाभारत: उपासना र्ानवाकार और श ंगाकर स्वरूप र्ें • शशव: तपस्वी, योगी, कल्याणकारी, वरदाता, सवोच्च
  • 10. ऐततहाशसक का • पतंजश : र्ौयम का र्ें शशव एवं स्क ं द की र्ूततमयााँ बबकती र्ी • इंडो-ग्रीक-राजाओं क े शसक्कों पर वृषभ का अंकन • ववर् क़दकिशसस : क े शसक्कों पर शशव का अंकन • अश्वघोष क े बुद्धचररत र्ें उल् ेख • र्नुस्र्ृतत: एकादश रुद्र • भारतीय नाट्यशास्त्र : नटराज • रयाग रशष्स्त: गंगा अवतरण का उल् ेख • स्क ं दगुप्त क े शसक्कों पर वृषभ का अंकन • काश दास: शैव धर्मनुयायी
  • 11. पूवम-र्ध्ययुग • वधमनवंश क े राजा शैव धर्ामनुयायी • बाणभट्ट: शैव • शशांक: शैव • पल् व: शैव • चो : शैव • खजुराहो ५ अशभ ेख: शशव=एक े श्वर • क चुरी अशभ ेख: जगत गुरु, परर्-ब्रह्र् • दक्षक्षण भारत: सम्प्बन्दर एवं अप्पर संत (नयनार): पेररय पुराण
  • 12. शैव धर्म का ववकास • अवैहदक देवता • रारंभ: रुद्र रूप • श्वेताश्वतर उपतनषद: शशव का दाशमतनक स्वरूप की चचाम • शशव का परब्रह्र् से तात्पयम • पुरुषरूप र्ें शशव सुष्टट का तनर्ामण • शशव की शष्क्त, र्ाया रूप र्ें देवी (उर्ा, पावमती) • रार्ायण, र्हाभारत: रौद्र रूप क े सार् सौम्प्य रूप • रार्ायण, र्हाभारत: अनेक कर्ाओं की रचना • दाशमतनक एवं ोकरचश त रूप • पावमती क े सार्: कल्याणकारी • पुराण का : एक े श्वरवाद (शशव सवोच्च, ब्रह्र्) • पुराण का : श ंगपूजा
  • 13. शशव का स्वरूप • शशव: कोर् और ववध्वंसक स्वरूपों र्ें रदशशमत है। • हहर्ा य उनका तनवास है। • पत्नी: पावमती, उर्ा,दुगाम, का ी, करा ी आहद नार् है। • वाहन : वृषभ • सेवा: गण • अत्यंत दानी है। • गणेश और काततमक े य दो पुत्र है। • उपासना: र्ानवाकार और श ंग रूप र्ें पूजा जाता है। • र्ानवीय स्वरूप: शसर पर जटाजूट, ग े र्ें बााँहों र्ें नाग और रुद्राक्ष र्ा ा, हार्ों र्ें बत्रशू , डर्रू, शरीर पर बाघम्प्बर,बत्रनेत्र
  • 14. शशव की उपासना • रौद्र और सौम्प्य रूपों र्ें उपासना की शभन्न ववधध • गृह्यसूत्र: शशव क े रौद्र रूप की उपासना क े श ए “शु गव” यज्ञ ककया जाता र्ा। (गो-बश , अश्वर्ार्ा क े उल् ेख ) • अर्वमवेद: र्ें रुद्र को नर-बश का उल् ेख है। (र्हाभारत र्ें जरासंध युद्धबंहदयो को शशव की बश चढ़ाने क े उल् ेख, सभापवम २१/९८) • रुद्र क े सौम्प्य रूप र्ें शशव-पावमती दोनो की उपासना का वणमन है। • सर और साधारण उपासना पद्धतत • शशव को धूप,दीप, पुटप, नैवेद्द आहद अवपमत करे • “उर्ार्हेश्वर व्रत” की उपासना • ववशशटट हदनो र्ें व्रत, पूजा
  • 15. शैव धर्म क े सम्प्रदाय 1. शशव- भागवत : पतंजश क े र्हाभाटय। यह शैव धर्म का राचीनतर् सम्प्रदाय र्ा जो नटट हो गया। • शैवागर् एवं वार्न पुराण क े अनुसार 1. पाशुपत 2. शैव 3. कापाश क 4. का ार्ुख 5. कश्र्ीर का शैव-र्त 6. दक्षक्षण भारत का वीर (श ंगायत)
  • 16. पाशुपत • शैवधर्म का राचीनतर् तर्ा सवमरधान सम्प्रदाय • शांततपवम : स्वतः शशव ने पाशुपत शसद्धांत रकट ककया। • शशव ने स्र्शान क े एक शव र्ें रवेश ककया और क ु श श क े रूप र्ें अवतररत हुए। • पुराणों र्ें, तर्ा अशभ ेखों र्ें क ु ीश को शशव का अवतार बताया गया है। • वायु,श ंग पुराण: क ु श न या क ु ीश नार्क ब्रह्र्चारी ने इस सम्प्रदाय का रवतमन ककया। • सवमदशमनसंग्रह ग्रंर् : क ु ीश को पाशुपत सम्प्रदाय का संस्र्ापक • पाशुपत सम्प्रदाय को र्ाहेश्वर नार् से जानते है। • क ु श न: गुड (दंड) या क ु ( ंगोट) धारण करने वा ा। • इस सम्प्रदाय क े ोग शशव क े रतीक क े रूप र्ें हार् र्ें दंड धारण करते है।
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  • 18. पाशुपत सम्प्रदाय क े उल् ेख तर्ा उदाहरण • बाणभट्ट ने पाशुपत सम्प्रदाय क े अनुयातययों क े र्स्तक पर भस्र्,हार् र्ें रुद्राक्ष की र्ा ा धारण ककए वणणमत ककया है। • हेनत्सााँग: पाशुपत सम्प्रदाय क े अनुयातययों को भस्र् गाने का उल् ेख ककया है। • वायु पुराण र्ें पाशुपत र्तशसद्धांत, योगपक्ष और उपासना का वणमन शर् ता है। • ईसा ८ वी शती क े भासवस्वम द्वारा श णखत “गुणकाररका” और “पाशुपतसूत्र” र्ें पाशुपत सम्प्रदाय की ववस्तृत चचाम है। • अशभ ेख तर्ा स्र्ापत्य उदाहरण: 1. चहर्ान राजा ववगढ़प क े अशभ ेख र्ें पाशुपत सम्प्रदाय क े श ए शशव र्ंहदर का उल् ेख 2. क चुरी राजा गांगेय देव की रानी अल्हना देवी द्वारा तनशर्मत शशव र्ंहदर की व्यवस्र्ा पाशुपत सम्प्रदाय क े अनुयायी करते र्े। 3. चेहद अशभ ेख र्ें भाव नार्क पाशुपत सन्यासी द्वारा तनशर्मत शशव र्ंहदर का उल् ेख है। 4. दक्षक्षण भारत र्ें भी रशसद्ध
  • 19. पाशुपत सम्प्रदाय का शसद्धांत • शंकराचायम : पाशुपत सम्प्रदाय क े ५ शसद्धांतो का उल् ेख ककया है। 1. कायम: स्वतंत्र नही हो सकता, ईश्वर पर आधश्रत। ३ रकार: ववद्या (वेदना), अववद्या (इंहद्रया) एवं पशु (जीव/आत्र्ा) 2. कारण: कारण पर ही सृष्टट की उत्पवि, ष्स्र्तत, एवं संहार तनभमर है। सर्स्त वस्तुओं का तनर्ामता तर्ा संसार और अनुग्रह करने वा ा तत्व। इसे परर्ेश्वर और र्हेश्वर कहा गया है। २ रकार (कर्म, कर्मक्षय) 3. योग: चीि क े र्ाध्यर् से ईश्वर को जोड़नेवा ा तत्व। जप, तप, ध्यान, 4. ववधध: यह व्यापार है ष्जससे धर्म कक राष्प्त होती है। इसे चयाम कहा जाता है क्योंकक यही धर्म का साक्षात कारण है। इसर्ें शरीर पर भस्र्, भस्र् र्ें सोना, हास्य, गीत, नृत्य, दंडवत, रणार्, शृंगारण (अश् ी चेटटाओं द्वारा कार् भावना व्यक्त करना इत्याहद। 5. दु:खान्त: दु:खों से र्ुष्क्त पाकर र्ुक्त हो जाना, शर्थ्यज्ञान,अधर्म,ववषयासक्ती से छ ु टकारा। २ रकार (दुखो का नाश और ज्ञान राष्प्त) उपयुक्त कक्रयाओं क े द्वारा पाशुपत सम्प्रदाय र्ें परर्पद की राष्प्त वणणमत है।
  • 20. पाशुपत सम्प्रदाय क े अनुयायी • शरीर पर भस्र् • हेनत्सााँग : भस्र्धारी, जटाधारी • वस्त्रहीन अवस्र्ा • कादम्प्बरी: रक्तवणम क े वस्त्र • अनुयायी: र्स्तक, वक्ष, नाशभ, और भुजाओं पर शशवश ंग का धचन्ह अंककत करते र्े।
  • 21. शैव शसद्धान्त सम्प्रदाय • शैव सम्प्रदाय क े ३ र्ू : पतत, पशु एवं पाश पतत 1. पतत: पतत का अर्म शशव र्ाना है। 2. जीवात्र्ा का शरीर दूवषत रहता है ेककन शशव का शरीर ववशुद्ध शष्क्त का रूप है। 3. उनक े शरीर अवयवों का तनर्ामण ईशान से र्स्तक, तत्पुरुष से र्ुख,घोर से हृदय, कार्देव से गुप्तांग, तर्ा सद्योजात से चरण तनशर्मत है। 4. शशव क े पााँच कायम १) सृष्टट :उद्भव, २) पा न, ३) संहार, ४) ततरोभाव: आवरण, ५) रसाद: अनुग्रह • शशव जीवात्र्ाओं को क्रर्ानुसार भोग रदान करते है
  • 22. शैव शसद्धान्त/सम्प्रदाय पशु • पशु का अर्म जीवात्र्ा है, जो सीशर्त शष्क्त सम्प्पन्न है। • पशु ३ रकार 1. ववज्ञानाक : ष्जन्होंने ज्ञानयोग से कर्ो का नाश ककया हो। (ववज्ञानाक पशु को ववधेश्वर पद राप्त ) 2. र याक : वह पशु ष्जसकी क ाओं का नाश संसार की र य क े द्वारा होता है। (र् एवं कर्म उधचत रहे तो र्ोक्ष राष्प्त) 3. सक पशु: जो र् , कर्म और र्ाया से र्ुक्त है। (रोध शष्क्त ववनटट होने पर र्ोक्ष राष्प्त) इन सब क े दो-दो रकार है।
  • 23. शैव शसद्धान्त/सम्प्रदाय पाश पाश का अर्म है बंधन। जो पाश र्ें रहते है वह शशवरूप नही राप्त कर सकते। इसक े चार रकार 1. र् : वह पाश जो जीवात्र्ा कक शष्क्त और कक्रया र्ें बाधा उत्पन्न करे। 2. कर्म: ि राष्प्त की आकााँक्षा से ककए जाने वा े कर्म 3. र्ाया: 4. रोध शष्क्त: शशव की वह शष्क्त जो ततनो पाशों से जीवात्र्ा क े स्वरूपों का बचाव करती है। शैव शसद्धान्त क े अनुसार पशु (जीव) वस्तुतः शशव ही है, परंतु पाशों क े बंधन र्ें ि ाँ सा रहता है। र्ुष्क्त क े चार उपाय 1. ववद्या: सही स्वरूप का ज्ञान 2. कक्रया: र्ंत्र, पूजा, तप,हवन कायों से शशव की उपासना 3. योगपद: ध्यान और योग की साधना 4. चयामपद: तप, शशवश ंगो की उपासना, उर्ा-शशव की पूजा, गणपतत, स्क ं द, नंदी की पूजा। शैव शसद्धान्त क े अनुयायी शशव क े तीन रत्न 1. शशव: कताम 2. शष्क्त: करण 3. बबंदु : उपादान है। इसी बत्ररत्न से ज्ञान राष्प्त एवं परर्तत्व शशव को राप्त करने कक कल्पना की गयी है।
  • 24. कापाश क • कापाश क सम्प्रदाय क े इटटदेव शशव का भैरव रूप है। • कापाश क सम्प्रदाय र्ें भैरव को ही सृष्टट का सजमन और संहार करने वा ा बताया गया है। • स्वरूप: अभक्ष्य भोजन, सुरापान, शरीर पर भस्र्, रुद्राक्ष र्ा ा, शसर पर जटाजूट, हार् र्ें नर कपा । • तार्शसक कक्रयायें: 1. स्वयं को भैरव तर्ा ष्स्त्रयों जो भैरवी र्ानकर उच्छ कार्-क्रीड़ा करना। 2. ौककक और पार ौककक इच्छापूततम हेतु नर-क ं का र्ें भोजन, सुरापान, भस्र्, गुड धारण इत्याहद कायम • भवभूतत ने श्रीशै को कापाश क का रधान पीठ बताया है। • कापाश क सम्प्रदाय र्ें नरबश क े उल् ेख शर् ते है। • कापाश क सम्प्रदाय र्ें ष्स्त्रयााँ भी अनुयायी होती र्ी। • इस सम्प्रदाय की कक्रयायें रुद्र क े जंग ी और भयंकर स्वरूप को व्यक्त करती है। • जनसार्ान्य इसे “वार्र्ागी साधना” कहते है।
  • 25. कापाश क • शशव का स्वरूप: हदगम्प्बर अवस्र्ा, कपा कर्ंड ु, शरीर पर भस्र्, स्र्शान भूशर् र्ें तनवास • सौरपुराण: ववधर्ी कहा गया है॰॰ • सीशर्त सम्प्रदाय • घोर पाप क े रायष्श्चत क े श ये अनुयायी कापाश क सम्प्रदाय क े अनुयायी हो गए। • इनक े र्ंहदर स्र्शान भूशर् र्ें होते है। • भवभूतत ने “र्ा तीर्ाधव” र्ें कापाश क सम्प्रदाय का धचत्रण ककया है। • नर बश देने की रर्ा, नरब ी क े ववशभन्न अंग भैरव को चढ़ाने की रर्ा • सर्ाज से गहहमत (तनंदनीय): जनसाधारण से ववरोध • ष्स्त्रयााँ भी सष्म्प्र्श त होती र्ी • वणम भेद को स्र्ान नही • उपासक: जटाधारी, जटाओं र्ें नवचंद्र रततर्ा, हार् र्ें कपा का कर्ंड , ग े र्ें र्ुंडो की र्ा ा • उपासक: र्ांस एवं र्हदरा का सेवन, देवता को र्हदरा चढ़ाते र्े। • उपासक: शस्त्रों से सुस्सष्जत
  • 26. का र्ुख • कापाश कों का ही एक सम्प्रदाय। • रारंशभक नार् “कारकशसद्धांतत” • क र्ुख सम्प्रदाय क े अनुयायी कापाश क सम्प्रदाय से भी अततवादी और क्र ू रकर्ी र्े। • शशवपुराण र्ें इन्हें “र्हाव्रतधर” कहा गया है। • क र्ुख सम्प्रदाय क े अनुयायी: 1. कपा र्ें अभक्ष्य भोजन, 2. सुरापान, 3. शरीर पर भस्र्, 4. रुद्राक्ष र्ा ा, 5. शसर पर जटाजूट, 6. हार् र्ें नर कपा 7. ट्ठ ेक े च ते र्े • नरबश और सुरापान से आराधना करते र्े। • दक्षक्षण भारत र्ें भी रभावी
  • 27. काश्र्ीरी शैवर्त • शैव संरदायों र्ें उधचत शसद्धांत • काश्र्ीरी शैवर्त को दो शाखा १) स्पंदशास्त्र, २) रत्यशभज्ञाशास्त्र 1. स्पंदशास्त्र: क े रवतमक “वसुगुप्त” र्े। उन्होंने संभवतः ८-९ वी शताब्दी क े अंत र्ें इस पंर् का रवतमन ककया। उन्होंने शशवसूत्रर्णण ग्रंर् र्ें इस पंर् की ववस्तृत चचाम की है। दूसरा ग्रंर् है स्पंदकाररका। (वसुगुप्त क े शशटय कल्वट) इस पंर् क े अनुयायी दोनो ग्रंर् को रर्ाण र्ानते है। • स्पंदशास्त्र पंर् का शसद्धांत: • शशव ही एकर्ात्र सत्य • जीवात्र्ा को ज्ञान नही (की वह शशव है)। • क्योंकक र् का आवरण रहता है। (आवरण, र्ायीय एवं कार्म) • ध्यान और साधना से परर् शशव का दशमन से र् नटट होता है।
  • 28. काश्र्ीरी शैवर्त रत्यशभज्ञाशास्त्र • इसक े रवतमक सोर्ानंद एवं उनक े शशटय उत्प , अशभनव –गुप्त र्े। • का १० वी सदी • ग्रंर्: शशवदृष्टट • वसुगुप्त तर्ा कल् ट क े कश्र्ीरी शैवर्त क े शसद्धांतो की ताकक म क वववेचना। • शसद्धांत: • जीव को ईश्वर का अंश • र् क े आवरण से ईश्वर की अशभन्नता की पहचान नही। • गुरु क े उपदेश से ईश्वर की पहचान सम्प्भव • ध्यान-अवस्र्ा र्ें भैरव क े दशमन होने पर सर्स्त र् नटट । काश्र्ीरी शैवर्त र्ें परर्तत्व परर्ेश्वर को शशव-शष्क्त का संयुक्त रूप र्ाना है। वास्तववकता क े ज्ञान से शशव क े परर्पद की राष्प्त होती है। काश्र्ीरी शैवर्त अन्य संरदायों क े ववपरीत अधधक र्ानवतापूणम एवं बुद्धधवादी है।
  • 29. वीर शैवर्त अर्वा श ंगायत सम्प्रदाय • दक्षक्षण भारत का सम्प्रदाय • २८ शैव आगर्ो पर आधाररत • श ंगायत सम्प्रदाय क े स्र्ापना का श्रेय कल्याणी क े शासक क चुरी ववज्ज क े रधानर्ंत्री वासव को जाता है। • ेककन श ंगायत सम्प्रदाय क े अनुयायी इसे अतत राचीन र्ानते है और इसक े संस्र्ापक ५ ऋवष जो शशव क े पााँच शीषम से उत्पन्न हुए र्े और र्ैसूर,उज्जैन, क े दारनार्, श्रीशै और काशी र्ें रततटठा की र्ी। • श ंगायत सम्प्रदाय र्ें शशव क े पााँच र्ुख सधोजत,वर्देव,अधीर,तत्पुरुष और ईशान क े स्वरूप र्ानते है।
  • 30. वीर शैवर्त अर्वा श ंगायत सम्प्रदाय • शसद्धांत: • शशव ही परब्रम्प्ह है, जो स्वतंत्र और अनश्वर है। • शशव ही ववश्व है। सर्स्त राणणयों का तनवास • शशव क े दो भेद है। (श ंगस्र् और अंगस्र् ) श ंगस्र् : रुद्ररूप, १) भावश ंग:सूक्ष्र् क े व श्रद्धा द्वारा दशमन, परर्तत्व २) राणश ंग: बुद्धध अर्वा र्न क े द्वारा दशमन, सूक्ष्र् रूप ३) इटटश ंग: दुःख तनवारक, नेत्रों द्वारा दशमन, स्र्ू रूप अंगस्र् : उपासक या जीवात्र्ा, 1. योगांग : ष्जसक े द्वारा र्नुटय शशव से सम्प्पक म स्र्ावपत करता है, तर्ा आनंद राप्त करता है। सर्स्त भोगो का त्याग। 2. भोगांग : भोगांग द्वारा जीव शशव क े सार् आनन्दपभोग करता है। यह सूक्ष्र् शरीर और स्वप्नावस्र्ा है। 3. त्यागांग : इसर्ें जीव नश्वर शरीर का त्याग करता है। यह स्र्ू शरीर है और जागृत अवस्र्ा र्ें रहता है। इछा त्याग, व्रत,तनयर्, सत्य, पववत्रता
  • 31. वीर शैवर्त अर्वा श ंगायत सम्प्रदाय • शैव पंर् का पररशुद्ध एवं सर सम्प्रदाय • वीर सम्प्रदाय क े अनुयायी को श ंग धारण करना अतनवायम है। • वीर सम्प्रदाय र्ें दीक्षा का संस्कार र्हत्वपूणम है। • दीक्षा गुरु द्वारा शशटय को हद जाती है। • श ंगायत सम्प्रदाय क े अनुयायी र्ासं –र्हदरा का सेवन नही करते। • श ंगायत सम्प्रदाय क े अनुयायी को र्ंहदर र्ें श ंगपूजा अतनवायम नही। • श ंगायत सम्प्रदाय क े आचायों को “आराध्य” कहते र्े • ड़ककयों का भी उपनयन संस्कार • यज्ञोपवीत क े स्र्ान पर शशवश ंग धारण करते र्े • वणमभेद अस्वीकार
  • 32. वव ुप्त हुए शैव सम्प्रदाय • भारशशव • शशव श ंग को र्स्तक पर धारण करने वा े अनुयायी॰ • वाकाटक राजाओं से संबंध • अन्य सम्प्रदाय: 1. शशव-भागवत 2. जंगर् 3. भाट 4. उग्र 5. रौद्र
  • 33. शशव का अंकन: पुराताष्त्वक • क ु षाण राजा ववर् कदकिशसस क े शसक्कों पर शशव का अंकन शर् ता है “सवम ोक े श्वरस्य र्ाहेश्वरस्य”। • र्ुखश ंग की आराधना क े रर्ाण • अश्वघोष क े बुद्धचररत, र्नुस्र्ृतत, भारतीय नाट्यशास्त्र, काश दास, • गुप्त युग क े सर्ुद्रगुप्त क े रयाग-रशष्स्त र्ें गंगावतरण का उल् ेख है। • पुराणों र्ें शशव क े दाशमतनक तर्ा ोक-रचश त रूपों का वणमन है।अधमनारीश्वर, हररहर,बत्रर्ूततम • ब्रम्प्हाण्ड पुराण : श ंगपूजा का उल् ेख • हेनत्सााँग: वाराणसी र्ें १०० शशव र्ंहदर • अन्य वववरण, ताम्रपट, अशभ ेख, र्ंहदर इत्याहद रर्ाण
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  • 45. उपसंहार • शैव धर्म भारत का राचीन एवं र्हत्वपूणम धर्म • वैहदक एवं अवैहदक तत्वों का शर्श्रण • उिर वैहदक का से अत्यधधक ोकवरय • धर्म क े शसद्धांतो क े अनुरूप शभन्न संरदायों का ववकास • शैव धर्म क े संरदायों का सर से ेक े क्र ू र स्वरूप • भारतीय जनर्ानस र्ें ोकवरय धर्म • वतमर्ान का र्ें भी अत्याधधक पूजनीय • भारत क े ववस्तीणम भूभाग र्ें शशव र्ंहदरो की संख्या से शैव धर्म की ोकवरयता का आक न ककया जा सकता है।