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अÍछे Ǒदन आ गये ??...
Index 
1. सच ͩकसको अÍछा लगता है 
2. Èया सचमुच हम आजाद हुय े 
3. Ǒदल हȣ अपनी कमजोरȣ है, Ǒदल हȣ अपनी ताकत है 
4. ͩकसी का ज़मीन,ͩकसी का आसमाँ पे Ǒहसाब होगा 
5. उनकȧ कͧमयाँ कौन ͬगनाये 
6. कैसे मानूँ अपराध ह,ै भोला ħçटाचार 
7. बोलो सीता नɅ Èया पाया 
8. ये भारत कȧ रेल है 
9. नारȣ हȣ नारȣ को छलती है 
10. दूर सहȣ पर अंǓतम ɮवार 
11. दो मɅ से कुछ एक यार होगा 
12. कहाँ रहे तुम नंदलाला 
13. ħçटɉ से मुÈत अपना, भारत हमɅ बनाना 
14. भारत माँ के लाल बहादुर 
15. Èया कमी रहȣ मनमोहन मɅ 
16. भगतसींग के जÛमǑदवस पर, जयलͧलता को जेल 
17. बाǐरश आई, बाǐरश आई 
18. अब आम आदमी जागा है 
19. अबकȧ बार मोदȣ सरकार 
20. अÍछे Ǒदन आने वाले हɇ 
21. भारत माँ का कौन भला 
22. ͪवकास चाǑहए तो ħçटाचार भी होगा 
23. भटको चाहे िजधर, काम होगा इधर 
24. ये कैसा ͪवकास है 
25. आपकȧ अदालत 
26. सारे सपने टूट गए 
27. ͩकसके महल सजाने 
28. अÍछे Ǒदन आ गए 
29. म ɇसीता हू,ँ तुम राम बनो 
30. अजब-गजब ये सàमोहन 
31. कहाँ गये वे "अटल" 
32. छÜपन छाती खरगोश हुए 
33. सरकार जहाँ सरकार वहȣं है 
34. दो Ǒदन चले अढ़ाई कोस 
35. नाम बडे और दश[न छोटे 
36. सब बदला और तुम भी बदल े 
37. Èया रहा बाकȧ जो तुमको जीतना है 
38. ͪवप¢ हमɅ पसंद नहȣं 
39. ये ǐरæता Èया कहलाता है 
40. तुमस ेदूर कहाँ जाऊँगा 
41. Èया हार मेरȣ हार है 
42. लड़ रहा तू ँजंग मेरȣ 
43. म ɇअभी हारा नहȣ ंहू ँ 
44. मेरȣ हार से हाͧसल Èया कर पाओगे 
45. हौसला बचाये रखना 
46. लो राम रावण मɅ, ͩफर से ठन गयी 
47. लो हमहȣं ͩफर आज, काशी कȧ ͩफजा मɅ छा गए 
48. तुम कहते हो वो बहुत बुरा ह ै 
49. Èया कह तेरा मान बढाऊँ 
50. य ूँमहावीर को बदनाम ना करो 
51. मुझे मारकर जÛनतɅ चाहते हो 
52. अब तो िजèम भी तरकारȣ हो गया 
53. खतरे मɅ बकरे कȧ जान है 
54. सीट नहȣं छोडी जाती 
55. मेरȣ एक सहेलȣ है 
56. टमाटर तुम बहुत याद आते हो 
57. अजब गजब मेरȣ सालȣ है 
58. Ĥेम परȣ¢ा कǑठन तेरȣ 
59. मेरȣ भूल को भूल जाओ ͪĤय े 
60. ͪवͪवध
सच ͩकसको अÍछा लगता है.. 
सपनɉ कȧ दुǓनयाँ के आग,े हर सच फȧका पडता है, 
बहलावɉ से, बहकावɉ से, जन-गण-मन हȣ छलता है. 
Ĥाणɉ का कुछ मोल नहȣं पर, प×थर पथ-पथ पुजता ह,ै 
दाǾ लेने को लाइन यहा,ँ पर दूध घरɉघर ͩफरता ह.ै 
कभी सीता तो कभी हǐरæचंġ, कब झूठ परȣ¢ा देता ह,ै 
ıदयɉ मɅ वो, होठɉ पर वो, सच पुèतकघर मɅ सोता ह.ै 
भूखा बचपन तèवीरɉ म,Ʌ ͧमͧलयन डालर का ǒबकता है, 
आͨखर मन बुƨु समझ गया, जो Ǒदखता है वो ǒबकता है.
Èया सचमुच हम आजाद हुय.े.. 
जो अपना था वो गवाँ Ǒदया, अँĒेजी के अनुवाद हुय..े 
वसुधैव कुटुंब नहȣं अब तो, घर-घर दंगा-फसाद हुय.े. 
बस माँ बǑहनɉ का िजĐ रह,े Èया अपने संवाद हुय.े. 
भारत का गौरव गौण हुआ, नेता बस िजंदाबाद हुय.े. 
सबके सूरज चमके जग म,Ʌ हम तारɉ से अवसाद हुय.े. 
हर साख पे उãलु बैठ गय,े गुलशन सारे बबा[द हुय.े. 
सोने कȧ ͬचͫडया के घर मɅ, फाँको पर वादͪववाद हुय.े 
उन अमर शहȣदɉ के खूँ स,े बस अजगर हȣ आबाद हुय.े
Ǒदल हȣ अपनी कमजोरȣ है, Ǒदल हȣ अपनी ताकत है... 
सच कȧ हालत Èयɉ शम[सार, उन स×यͪĤयɉ पे लानत है, 
मन मानवता के कण[धार कȧ, ǓनिçĐयता से आहत है, 
अÛयायɉ को चुप सहना ना, कुछ कहना अपनी आदत है, 
अपने जÉमɉ कȧ èयाहȣ हȣ, अपने जÉमɉ कȧ राहत है. 
जब भी Ǒदमाग- Ǒदल टकराएँ, Ǒदल जीते बस ये चाहत है, 
Ǒदल कहता म ɇवो राह चल,ूँ सब ͪवपदाओ ंका èवागत है, 
खोया-पाया सब कुछ Ǒदल से, इस Ǒदमाग कȧ बèती मɅ, 
Ǒदल हȣ अपनी कमजोरȣ है, Ǒदल हȣ अपनी ताकत है.
ͩकसी का ज़मीन,ͩकसी का आसमाँ पे Ǒहसाब होगा.. 
ͩकसी का ज़मीन, ͩकसी का आसमाँ पे Ǒहसाब होगा, 
भगवान को Üयारा ये सारा, ǽतबा - ओ - ǽआब होगा, 
गैर के जो हक़ हɇ मारे, Èया तेरा पूरा कोई Éवाब होगा, 
कबाबɉ के शौकȧन! तू खुद, कभी ͩकसी थालȣ का कबाब होगा, 
Ǔछपाने से कभी Ǔछपते हɇ, टपकते खून के कतरे, 
नकाबपोश काǓतल! त ूँभी, एक Ǒदन खुलȣ ͩकताब होगा. 
रातɅ कब रोक पायीं सुबह को, रोशन ये आफ़ताब होगा, 
झूमɅगी दुǓनया िजसके नश ेमɅ, अंगूर! त ूँवो शराब होगा, 
तेरा वìत हȣ बाजीगर!, सब सवालɉ का एक जवाब होगा, 
तेरा गुनेहगार भी दȣवानɉ-सा , तेरे दȣदार को बेताब होगा, 
दȣवार पे ͧलखी इबारत, चीखती है सुन जरा! 
Ǒदलɉ का है आज जो, कभी देश का भी नवाब होगा.
उनकȧ कͧमयाँ कौन ͬगनाये ??? 
काँटɉ बीच गुलाब ͨखलाये, कȧचड मɅ से कमल उगाये, 
िजन हाथɉ से सृजन ͩकये, उन हȣ हाथɉ से Ĥलय कराये, 
और कौन Ǔनçठुर कर पाये?? उनकȧ कͧमयाँ……….. 
राधा को चाहा, ǽÈमणी लाये, भाई से भाई लड़वाये, 
बाͧल को Ǔछपकर के मारा, ǒबन-कारण सीता वन जाये, 
मया[दा पुǽषो×तम कहलाये!!! उनकȧ कͧमयाँ……….. 
अचरज!! समथ [उस दया-ͧसंध ुन,े मूरख, Ǔनध[न, बीमार बनाये, 
दुçटɉ- ħçटɉ कȧ मजामौज, ͬधक्! सच दर-दर कȧ ठोकर खाये, 
स×य तुàहारा ͩकस घर जाये?? उनकȧ कͧमयाँ……….. 
इक ͧम͠ी से बने मगर, अपने-अपने भगवान बनाये, 
त ूँएक रहा, पर तेरे नाम पे, अलग-अलग इंसान बनाये, 
तेरȣ झूठȤ कसमɅ खाये!! उनकȧ कͧमयाँ………..
कैसे मानूँ अपराध ह,ै भोला ħçटाचार?? 
ना चीखɉ कȧ आहटɅ, ना रÈतɉ कȧ धार, 
कैसे मानूँ अपराध ह,ै भोला ħçटाचार. 
पǐरĮम का ĤǓतफल कहो, सेवा का स×कार, 
सबकȧ राजी खुशी स,े चलता ये åयवहार. 
अàमा अपराधी नहȣं, ͧसèटम कȧ बनी ͧशकार, 
ħçट सभी बस दिÖडत एक, Èया इसका आधार. 
िजसका धन लूटा वो जनता, जब चुनती बारàबार, 
जनमत के अपमान का, जज को Èया अͬधकार.
बोलो सीता नɅ Èया पाया... 
तुमने ͪपतु का वचन Ǔनभाया, रघुकुल ने यश-गौरव पाया, 
मैने महलɉ को छोड तुàहारे, संग अपना सव[èव लगाया 
मेरे Ǒहèसे मɅ Èया आया.... 
ͩकसने काटȣ नाक बǑहन कȧ, ͩकसने उसको उकसाया, 
हǐर के रहते हǐरͪĤया को, बोलो कैसे रावण हर लाया, 
कैसै मानूँ तेरȣ माया.... 
ͩकतनी पदवी और Ĥलोभन, ǒğभुवन के सàमोहन छोड,े 
अनहोनी कȧ आशंका मɅ, आखɉ ने अनͬगन नीर Ǔनचोड़े, 
एक तूँहȣ मेरे मन भाया..... 
अपना सब कुछ देकर भी, Èया मैने ͪवæवास कमाया, 
तुम मया[दा पुǽषो×तम हो गय,े और मैने वनवास ǒबताया, 
मैने बस अपयश हȣ पाया.....
ये भारत कȧ रेल है….. 
ͪवæव Ĥͧसƨ चͧलत शौचालय, भलेजनɉ कȧ जेल है. 
Èया जनरल, Èया एसी, èलȣपर, ढोरɉ सी धÈकमपेल है. 
कब ͩकसकȧ यहाँ Ǒटͩकट कटे, सब रेखाओं का खेल है. 
कोई चम×कार आर¢ण पाना पर, एजɅटो के घर सेल है. 
टȣसी बेचे सीट दनादन, मानो बापू कȧ रेल ह.ै 
दस कȧ चीजɅ पंġह मɅ लो, ͬचãलर का जो झमेल है. 
जो भी आया उसने लूटा, ये नोटɉ कȧ बेल है. 
ǐरæवत इसके रगɉ रगɉ मɅ, सब ħçटɉ कȧ रखैल है. 
सबको अपने घर पहुँचाती, करवाती सबका मेल है. 
बाहर चलती ͩफरती Ǒदखती, अंदर ͩकडनी फेल है.
नारȣ हȣ नारȣ को छलती है... 
İिçट कȧ सुँदरतम रचना, कǽणा ıदयɉ मɅ बहती है, 
देवɉ से पूिजत वह देवी , अपनɉ कȧ आँखɉ को खलती है. 
कुÛती कȧ कथनी के कारण, पाँचालȣ अपयश फलती है, 
कैकेयी कȧ कु×सा से सीता, वन जा, अिÊन पर चलती है. 
भɉहɉ कȧ भाव भंͬगमा से जो, वीरɉ को वश मɅ करती है, 
वहȣ काͧमनी अबला बन, अपनɉ के हाथɉ जलती है. 
िजसको नौ महȣने उर रखा, Èयɉ उसकȧ साँसɅ सलती है, 
सास, बहु, बेटȣ, माँ बनकर, नारȣ हȣ नारȣ को छलती है.
दूर सहȣ पर अंǓतम ɮवार… 
भीड़तंğ के खंभे चार, नेता, बाबू, जज, अखबार, 
बाकȧ सब बन गये åयापार, साँचा बस तेरा दरबार. 
काले कपड़े, èवÍछ ͪवचार, दूर सहȣ पर अंǓतम ɮवार, 
Ûयाय Úवजा भुजा मे थाम,े अͬधकारɉ के पहरेदार. 
सबसे लंबे तेरे हाथ, तुम अबलɉ को दȣनानाथ, 
अंधे! जग को राह Ǒदखाते, Ǒदखते सदा स×य के साथ. 
मन मेरा भी है मचलाया, ͪवͬध कȧ रे मोहक माया, 
पलपल पगपग बढता जाता, पाने तेरȣ मधुǐरम छाया. 
[Cleared LLB - 1st year]
दो मɅ से कुछ एक यार होगा.. 
दो मɅ से कुछ एक यार होगा.. 
ͪवकास या ͩफर ħçटाचार होगा. 
एक हȣ होता है Ǒदल का दरवाजा, 
या तो Üयार या ͩफर åयापार होगा. 
कोई और सूरत हȣ नहȣं सेहत कȧ, 
आदमी तंदुǾèत नहȣ,ं तो बीमार होगा. 
कब तक ढɉयɅगɅ ये नापाक ǐरæते, 
अब हाथ ͧमलɅगे या यãगार होगा. 
सोचा हुज़ूर लायɅग, ेअपनɅ भी अÍछे Ǒदन, 
Èया खबर थी बस भाषण हȣ शानदार होगा.
कहाँ रहे तुम नंदलाला 
आधे आमदार अपने को, अपराधी खुद बता रह,े 
ह×या रेप डकैती अपनी, शपथपğ पे जता रहे . 
चंदा देकर Ǒटकट पा गये, शकुनी बाजी सजा रहे, 
नोटɉ से वोटɉ को लेकर, लोकतंğ को लजा रहे. 
सोचो तुमने एक नोट म,Ʌ अपना अͧभमान गवाँ डाला, 
इतनी सèती हुई आबǾ, मोल ले सका इक Üयाला, 
है जवाब जब पूँछेगा, ये Ĥæन समय आने वाला, 
अͧभमÛयु जब मरा युƨ मɅ , कहाँ रहे तुम नंदलाला.
ħçटɉ से मुÈत अपना, भारत हमɅ बनाना 
ना छÜपन कȧ छाती, ना छͧलये का वादा, 
बस नेक है नीयत और , फौलाद का इरादा . 
देखा जो देश लुटत,े तǽणाइयɉ को घुटत,े 
कोसा बहुत, करɅ कुछ, तब मन नɅ मेरे ठाना. 
बस बोलते थे जब तक, कहलाते थे ͪवचारक, 
कथनी को करने Ǔनकले, दुæमन हुआ जमान.ा 
मत वÈत करो जाया, कȧचड़ उछालने मɅ, 
मुझको हȣ पाओगे तुम, हर एक आईने मɅ. 
है एक अपना मकसद, है एक हȣ तराना, 
ħçटɉ से मुÈत अपना, भारत हमɅ बनाना.
भारत माँ के लाल बहादुर... 
कद छोटा åयिÈत×व Ǒहमालय, भारत के अͧभमान हो, 
कोमल ǿदय, सरस संबोधन, Ǻढ़ता के ĤǓतमान हो, 
सदाचारमय जीवन सारा, सब सɮगुण कȧ खान हो, 
जीवन दप[ण, अंतस अप[ण,कȧचड़ मɅ कमल समान हो. 
गाँधी के संग जÛमɅ उनके, आदशɟ कȧ पहचान हो, 
तेरा मंğ ͪवæव मɅ गूँज,े जय जवान जय ͩकसान हो, 
भारत माँ के लाल बहादुर,जगती करती गुणगान हो, 
हर माँ यह वर माँगे उसके भी, तुझ जैसी संतान हो.
Èया कमी रहȣ मनमोहन मɅ? 
सत-जीवन उÍच ͪवचार रहे, सरल सरस संबोधन मɅ, 
सव[èव समͪप[त करके भी, कुछ कमी रहȣ सàमोहन मɅ. 
हक ͧश¢ा,काम, सूचना का,वो अणुकरार वाͧशंÊटन म,Ʌ 
बहुत ͩकया और बहतु Ǒदया, बस कमी रहȣ ͪव£ापन मɅ. 
ÉवाǑहश खुदगजȸ खाक हुɃ, रिजया फँस गई गुंडन म,Ʌ 
सव[ğ ħçट बस फक[ यहȣ,अब अजगर ͧलपटे चंदन मɅ. 
जब जब भͪवçय देखेगा तुमको, इǓतहासɉ के दप[ण मɅ, 
कम[वीर कȧ मौन साधना, मुखǐरत होगी कण-¢ण मɅ. 
अथ[ĐांǓत के जनक! राçĚ स,े भूल हुयी मूãयांकन म, Ʌ 
धÛय!! अͧलÜत कमल से वतȶ, दलदल के गठबंधन मɅ.
भगतसींग के जÛमǑदवस पर, जयलͧलता को जेल. 
स×ता,ताकत,Ǿपया,ǽतबा, माया के सब खेल, 
सारे अèğ ͪवफल अàमा के, गुणा-भाग सब फेल. 
दो और दो चार ͧमले जी, अठरह सावन पापड़ बेल, 
देर सहȣ, मंिजल पहुँचाती, Ûयायåयवèथा भारत-रेल. 
एक सजा पाने से देखो, सब ħçटɉ कȧ कसी नकेल, 
जो बोओगे सो काटोगे, Ǔतल पीसो Ǔनकलेगा तेल.
बाǐरश आई, बाǐरश आई 
पसीने कȧ बूँदɅ, पानी मे नहाई, 
तपे तन-मन ने कुछ राहत तो पाई. 
कहȣ ंसɋधी खुशब,ू कहȣ ंͩकच-ͪपच ले आई, 
कहȣं सृजन- संदेश, कहȣं अंत के अंदेशे ले आई. 
घूमत ेĤेमी - युगल, सब भूलकर अपनी पराई, 
सब रंग-èवाद कȧ, छतरȣयɉ ने धूम मचाई. 
पपीहे को Ĥाण, सीप को मोती बन आई, 
अपने Ǒहèसे टूटȣ सड़कɅ, Ěेन कȧ देरȣ आई.
अब आम आदमी जागा है….. 
नेताओं को देश सɋप, बेͩफ़Đ नींद मे सोया था, 
देश और अपने भͪवçय के, मधुमय सपनɉ मे खोया था, 
भारत माँ का Đंदन सुन, ǒबन-भोर नींद से जागा है.. 
जब आँख खुलȣ तो देखा कȧ, र¢क भ¢क बन लूट रहे, 
Ûयाय, स×य, मया[दा सब कुछ, रेत महल से टूट रहे, 
तार-तार तन-वसन हुए, माğ शेष कुछ धागा है.. 
ǒबãलȣ दूध पे पहरा देती, चाबुक बंदर के हाथो मे, 
पूजा कȧ थालȣ कु×ता चाटे ,Ǔतलक गधɉ के माथो मे, 
गाये ǒबन-चारे के मरती, जंगल-तंğ अभागा है.. 
बस बहुत हुआ अब और नहȣ, संकãप ǿदय मे लाया है, 
बÍचे बूढ़े सबने ͧमलकर, झाड़ू को शèğ बनाया है, 
आम आदमी कȧ सेना आई , ठग- दल डरकर भागा है..
अबकȧ बार मोदȣ सरकार… 
अदानी, अàबानी कȧ होगी जय-जयकार, 
एंǑटला से चलाएंगे, देश का कारोबार. 
ͪवकास होगा उनका, जो तेरे चुनाव के साहूकार, 
येǑदयुरÜपा के साथ ͧमलकर, ये ͧमटायɅगे ħçटाचार. 
कालाधन ͪवदेशी Ǔनवेश का धरेगा अवतार, 
सटोǐरयɉ कȧ चाँदȣ, चमकेगा शेयर बाजार. 
दंगो के दǐरंदे, पाएँगे पुरèकार, 
खून कȧ èयाहȣ से, रंगɅगे अखबार. 
फɅकू जी राजा, लगɅगे दरबार, 
हाँ जी ! हाँ जी! करɅगे चाटुकार. 
Èया नीǓत, Èया ͪवͬध कȧ दरकार, 
Ĥभु के वचन तो èवयं मɅ मंğोÍचार. 
गांधी के नोटɉ पे, हɉगे इनके ͬचğहार, 
भारत सरकार कहलायेगी, अब मोदȣ सरकार.
अÍछे Ǒदन आने वाले हɇ. 
नभ से तो अमृत बरसेगा, पर कुछ आँगन हȣ भीगɅगे, 
इंġदेव के ये छȤंटे, बस कमल ͨखलाने वाले हɇ. 
जो पहले भूखɉ मरते थे, वो अब भी मरने वाले हɇ 
सबका साथ सबका ͪवकास, बस Ǒदल बहलाने वाले हɇ. 
मज़हब हȣ अपनी रोज़ी-रोटȣ, बस ͪवकास कȧ ख़ालɅ हɇ 
अरे ! Èयɉ कर टोपी पहनेगे, हम टोपी पहनाने वाले हɇ. 
भɉदूजी! अपनी अकल लगाओ, वादɉ, Ǒदखाओं पे ना जाओ, 
तुमको लगता है सब चायवाले, हवाई-जहाज़ उड़ाने वाले हɇ?
भारत माँ का कौन भला 
भारत माँ का कौन भला, जय नारɉ से, गुणगानɉ से, 
ͩकतने Ǒदन भूख ेपेट भरɅगे, घी-शÈकर के पकवानɉ से, 
जय का गौरव तब पाओगे, जब कुछ करके Ǒदखलाओगे, 
वना[ पुèतकघर भरे पड़े हɇ, पǐरयɉ के अफ़सानɉ से. 
अƫुत अवसर ͧमला तुàहɅ, अपना सूरज चमकाने का, 
सǑदयɉ से मुरझ ेकमलɉ कȧ, पंखुड़ीया ँसहलान ेका, 
पर, पद साथ[क होगा तब हȣ, जब एक Úयेय एकलåय रहे, 
पावन-पुनीत भारत-भू से, भय-ħçटाचार ͧमटाने का.
ͪवकास चाǑहए तो ħçटाचार भी होगा….. 
ͪवकास चाǑहए तो ħçटाचार भी होगा, 
भले लोग ͧमलɅगे तो ͧशçटाचार भी होगा, 
अपनी पाटȹ मɅ तो बस, कॉàबो मील है, 
खीर चाǑहए तो करेले का आचार भी होगा. 
घर खरȣदोगे तो लȣवरेज भी होगा, 
कुछ करोगे तो कवरेज भी होगा, 
बुƨ ूहɇ, ħçटाचार पे भɋकन ेवाले, 
अरे! नल खुलेगा तो लȣकेज भी होगा. 
ħçटाचार के साथ ͪवकास करɅगे, 
जनता के सौ के पचास करɅगे, 
फूटे घड़े से पानी भर-भर के, 
आपकȧ मेहनत का स×यानाश करɅगे.
भटको चाहे िजधर, काम होगा इधर!! 
तेरे वादे लोकल बाबाओं के, पोèटर कȧ याद Ǒदलाते हɇ. 
कोई बारह, कोई चौबीस घंटɉ मे, गारंटȣ से सब कçट ͧमटाते हɇ. 
हो भूत Ĥेत या वशीकरण, या Ĥेम ͪववाह मे हो अड़चन. 
नौकरȣ हो या छोकरȣ बाबा! सबका इलाज बताते हɇ. 
हɇ बाबाओं के नाम अलग पर, एक हɇ वादे, एक इरादे. 
बाबा! ͬचर-पीͫड़त मानस को, ͩकतनी उàमीद जगाते हɇ. 
ना कहȣं हुआ, ना कभी हुआ, वो बाबाजी करवाते हɇ. 
Ǒदन मɅ हɉ तारɉ के दश[न, आम हथेलȣ पे उगवाते हɇ. 
बाबा के चम×कार कȧ चचा[, चौतरफ़ा, चेले ͬचãलाते हɇ. 
ͪवéवल मन, ǒबन-डोर पतंग से, तेरे पहलू मे आ जाते हɇ. 
बाबा का जाल अजब अनूठा, पढ़े-ͧलखे भी फँस जाते हɇ. 
एक उलझन हल करने Ǔनकले, मुिæकल के दलदल मे धँस जाते हɇ. 
मेरȣ नेक सलाह सुनो तुम, इन बाबाओं के चÈकर छोड़ो. 
इनका Èया, छͧलए वेश बदल, भटक भटक भटकाते हɇ.
ये कैसा ͪवकास है?? 
ǽपया रंग -ओ-शÈल बदल, डालर, यूरो का èवांग रचाता, 
ͪवæव ħमण कर काला धन अपना, ͪवदेशी Ǔनवेश बन वाͪपस आता, 
सɅसेÈस कȧ छलांगे बस, सटोǐरयɉ का खेल- ͪवलास है. 
ये कैसा ͪवकास है?? 
Ǒदन-रात करɅ मेहनत और तुमको, टैÈस समय पर चुका रहे, 
सौ दे वाͪपस पÍचीस पाते, बाकȧ जेबɉ मे समा रहे, 
सौ का पÍचीस हो जाना, हमारȣ मेहनत का स×यानाश है. 
ये कैसा ͪवकास है?? 
छȤनी ज़मीन, मरते ͩकसान, कृͪष ͪवकास कȧ बात करɅ, 
हǐरत ĐांǓत के जनक आज हम, अÛन-दाल आयात करɅ, 
अपनो से छȤन, ओरɉ-गोरɉ को देना, यहȣ हमारा इǓतहास है. 
ये कैसा ͪवकास है?? 
अब ħçटाचारȣ जेल भरɅगे, सौ के सौ देश के काम लगɅगे, 
उɮयोग, ͩकसान, åयापारȣ, जनता, ͧमलजुलकर खुशहाल बनɅगे, 
बदलेगी ͪवकास कȧ पǐरभाषा, ये हमारा ͪवæवास है. 
ये कैसा ͪवकास है??
आपकȧ अदालत…. 
आपकȧ अदालत मɅ सवाल-जवाब का, Ĥायोिजत रæम-ओ-दèतूर हो गया. 
उनके दाग भी कुछ धुँधल ेǑदखन ेलगे, इनका चैनल भी मशहूर हो गया. 
वो ͧमलते नहȣं हमसे, लो ख़×म अब ये फ़साना भी हो गया, 
वो कुछ नहȣं बोले और उनका बताना भी हो गया, 
जमाना उँगͧलयाँ चबाता रहा, मेरे सवाल पूँछन ेके हुनर पे, 
ͧशकार पे एक Ǔनशाना ना लगा, अपना तीर चलाना भी हो गया. 
आपकȧ अदालत मɅ कल , इÛसाफ का दèतूर हो गया 
एक गुनहगार बाइÏजत बरȣ , एक चैनल मशहूर हो गया
सारे सपने टूट गए... 
सारȣ रात तो संग रहे, 
पर Ǒदन आते हȣ छूट गए. 
आये थे कुछ देने, जाते, 
मेरȣ भी गठरȣ लूट गए. 
तुमन ेमुँह फेरा, जग Ǿठा, 
आँसू आँखɉ से फूट गए. 
ͩकसको द ूँम ɇदोष Ĥभ ुभी, 
ͧमटटȣ के थे टूट गए.
ͩकसके महल सजाने…. 
ͩकसके महल सजाने, हमारे घरɉदे तोड़ देते हो, 
ͩकसके समंदर भरने, हमारा पसीना Ǔनचोड़ लेते हो, 
कलयुगी कण[! कुछ Ǒदया भी, तो मंहगाई दे दȣ !! 
गर जीने नहȣं देना तो, जान Èयɉ छोड़ देते हो. 
मँहगाई के कोड़ɉ से, कई घाव गहरे छोड़ देते हो, 
यहाँ गरȣब कम हɇ जो उÛहɅ हजारɉ करोड़ देते हो, 
छͧलये! Èया Ěेलर, Èया फȧचर है तेरȣ ͩफãम का, 
चाँद तारे Ǒदखा, जेब कȧ, दुअÛनी भी गपोड़ लेते हो.
अÍछे Ǒदन आ गए.. 
कालेधन वाले बाबा, जमीन मɅ समा गए, 
ͪवदेशी खातɉ कȧ सूची, बंद तालɉ को थमा गए. 
रेप - चÛद मंğी, बासी कड़ी को गरमा गए, 
ͧश¢ा माता कȧ ͧश¢ा पे, ͧशशु भी शरमा गए. 
ͪवदेशी Ǔनवेश के ͪवरोधी, डालरɉ पे लुभा गए, 
ǐरटेल पे लड़ते-लड़ते, ͩफरंगी ͧमसाइलɅ चुभा गए. 
सटोǐरयɉ कȧ चाँदȣ, जमाखोरɉ को मजा आ गए, 
घूस जस कȧ तस हȣ रहȣ, मंहगाई कȧ सजा पा गए.
म ɇसीता हू,ँ तुम राम बनो….. 
हम बसते गंगा लहरɉ पर, हमको लहरɅ Ǒदखलाते हो, 
हर-हर मोदȣ के नारɉ से, ͧशव का धीरज आजमाते हो, 
सौदागर! सब जाने छल तेरा, अब ͩकसको तुम भरमाते हो, 
गर, मेरे बनने आए थे, तो उसके घर Èयɉ जाते हो. 
तुम मेरे हो, बस मेरे ये, अͧभमान अĮु बन झरता है, 
ͩकस-ͩकस को रोकू समझाऊं, जग हँसता, ताने कसता है, 
म ɇसीता हू,ँ तुम राम बनो, दो दो तो रावण करता है, 
दो नावɉ से कहो! कौन, कब, सागर पार उतरता है.
अजब-गजब ये सàमोहन…… 
दस हजार करोड़ के ͪव£ापन, उड़न खटोलɉ से देश ħमण, 
रेल , बसɉ से भींड़ जुटा, है शहर - शहर ĥȧ मनोरंजन, 
जादूगर का खेल अनोखा, उगते आम हथेलȣ पर, 
आँखɉदेखा Èया स×य सदा , अजब-गजब ये सàमोहन. 
चौतरफा Ĥायोिजत कोलाहल , सच झूठ का पदा[ ओझल होता, 
है भीड़ जहाँ , Èया वहȣं स×य, मन शंकाओं मɅ बोͨझल होता, 
कंकण तट पर हȣ पाओगे, मोती चाहो तो मारो गोता, 
अरे! स×य अमोल नहȣं होता, यǑद इसको पाना आसाँ होता.
कहाँ गये वे "अटल".. 
कहाँ गये वे "अटल" िजÛहɉने पाटȹ को सींचा, 
कहाँ गये वे लालकृçण िजन, रघुरथ को खींचा, 
कहाँ मुरलȣ, जसवंत,सु-समा, और भाजप सारȣ, 
भगवा सेना हाइजेक ͩकये, दो गुÏजु åयापारȣ. 
सǑदयɉ के संबंधɉ पर, स×ता सुख भारȣ, 
राम तो पहले ठगे गये, ͧशव-सेना कȧ बारȣ, 
रÈतͪĤयɉ के रंगमहल भी, रÈतɉ के हɉगे, 
भगवानɉ के नहȣं हुए, Èया भÈतɉ के होगे.
छÜपन छाती खरगोश हुए… 
अÍछा हुआ आप आय,े दोनɉ के नंबर बन गय,े 
अपने अपने मुãक म,Ʌ दोनɉ ͧसकंदर बन गय,े 
भारत माँ के आँचल का, जो àलेÍछ èपश[न करते हɇ, 
ͧसर काटे िजनने वीरɉ के, उनका अͧभनंदन करते हɇ, 
कहाँ गयी वह ͧसंह गज[ना, तरकश Èयɉ खामोश हुए, 
Ĝेगन का डर या डालर, छÜपन छाती खरगोश हुए.
सरकार जहाँ सरकार वहȣं है… 
दरबारȣ दरबार वहȣं हɇ, खबरɉ का संसार वहȣं है, 
स×ता का Įँगार वहȣं है , लोकतंğ का सार वहȣं है. 
कठपुतले तÉती लटकाय,े तÉतɉ के अͬधकार कहȣं ह,ɇ 
हɇ एक, अनेक Ǿप मɅ Ǒदखते, माया के आधार यहȣ हɇ. 
भÈतɉ के भरतार कहȣं हɇ, शेषनाग अवतार कहȣं हɇ, 
उàमीदɉ के उडनखटोले, Ĥलयदेव के ɮवार कहȣं हɇ.
दो Ǒदन चले अढ़ाई कोस.. 
ǐरæवतखोरȣ का भूत देश म,Ʌ बेतालɉ सा भटक रहा, 
जोकपाल का पैनल जाने, ͩकस फाइल मɅ लटक रहा, 
सरकार तुàहारȣ ͩकसका दोष? दो Ǒदन चले अढ़ाई कोस. 
दूध कȧ कȧमत बढती जाती, फल कȧ खुशबू आती जाती, 
सÞजी कȧ Èया बात कǾँ,धǓनया भी अब आँख Ǒदखाती, 
भाषण से भूख करे संतोष ? दो Ǒदन चले अढ़ाई कोस. 
नेता, बाबू कȧ साँठगाँठ स,े सेठ Ǔतजोरȣ भरते जात,े 
बुलेट Ěेन के चæमे स,े वो चौतरफा हǐरयालȣ पाते, 
ͪवकास के वाǐरस सफेदपोश..दो Ǒदन चले अढ़ाई कोस.
नाम बडे और दश[न छोटे.. 
भारत से ħçटाचार भगायɅ, भाषण लंबे, नीयत के टोटे. 
छÜपन कȧ छाती, िजगर के छोटे, घर मɅ घूमɅ साँप ǒबलौट.े 
हो काला धन या एफडीआई, हम हɇ ǒबन पɇदȣ के लोटे. 
है वहȣ तंğ , है वहȣ मंğ , है Ǿह वहȣ, बदले मुखौटे. 
होता ͪवकास बस मँहगाई का, सटोǐरये बस होते मोटे. 
अÍछे Ǒदन तो ͧमले नहȣं, अब वाͪपस बुƨ घर को लौटे.
सब बदला और तुम भी बदले...... 
चेहरे बदले, सेहरे बदले, èवग[-ɮवार के पहरे बदले 
ना बाबू कȧ मौजɅ और, ना नेता गूँग-ेबहरे बदल.े 
भूखा बचपन, घुटता यौवन, मरते ͩकसान, लुटती अबला, 
ना मँहगाई के मंजर बदल,े ना दुæमन के खंजर बदल.े 
तÉत ͧमला शहजादे बदले, वादे और इरादे बदले, 
स×ता मद मɅ चूर पड,े ना सुर ना भèमासुर बदल.े 
वो बदले, उनके Ǒदन बदले, ǽतबा ǽपया गाडी बँगले, 
ना काले Ǒदन अपने बदले, ना रातɉ के सपने बदले
Èया रहा बाकȧ जो तुमको जीतना है. 
भर तो दȣ झोलȣ तुàहारȣ Üयार स,े 
और ͩकतना इन Ǒदलɉ को रȣतना है. 
दशक बीते तकते तकते राह सुख कȧ, 
और ͩकतने युगɉ को अब बीतना है. 
Èयɉ ͩफर रहे मेरे ͧसकंदर दरबदर, 
Èया रहा बाकȧ जो तुमको जीतना है.
ͪवप¢ हमɅ पसंद नहȣं. 
सहȣ गलत कȧ बात हȣ नहȣं, 
बस, ͪवप¢ हमɅ पसंद नहȣं. 
गैर या ͩफर अपने करɅ, 
अपना ͪवरोध रजामंद नहȣं. 
èवाथ[ के हɇ सब संबंध अपन,े 
अपने ͧसवा कोई भरोसेमंद नहȣं. 
आईने हȣ आईने हɇ, अपने चारɉ ओर, 
हमसे बढ़कर कोई खुदपसंद नहȣ.ं
ये ǐरæता Èया कहलाता है... 
देखे दल-दल, पाया बस छल, थक-मन अब तुझको पाता है, 
बहुत पीया खारा जल अब मन, पीने पीयूष मचलाता है, 
ͩकतना रोकूँ ये मन पागल, ǒबन-डोर. उड़ा सा जाता है, 
बैचेनी के सबब तुàहȣ, और चैन तुàहȣ ंमे पाता है, 
तेरे सपने, मेरे सपने, सब एकमेक से पाता है, 
धरती अंबर का ͧमलन जहाँ, वो ͯ¢Ǔतज अहो! पा जाता है, 
सब ǐरæतɉ कȧ पǐरभाषाओं को, मन आज लाँघता जाता है, 
कभी सौ पचास भाते थे पर अब, उनÛचास (49) हȣ भाता है.
तुमसे दूर कहाँ जाऊँगा….. 
जÉम गहरा Ǒदया पर, ǒबन तेरे ना रह पाऊँगा, 
बस तुàहारा हू,ँ तुमस ेदूर कहा ँजाऊँगा. 
तूफा ँथ ेराह रोके, Ǔनकला था जब म ɇघर स े, 
फौलाद के इरादे, थपेड़ɉ से ना रोका जाऊँगा. 
बहुत दूर ले आयी है, मेरȣ दȣवानगी मुझको , 
मंिजलɅ करȣब हɇ, अब ना लौट पाऊँगा. 
ये सािजश है तुàह Ʌबहलान ेमुझ ेआजमान ेकȧ, 
तुम वार करते जाना, मɇ सहता जाऊँगा. 
मɇने Ǒदल मɅ अपने, Èया रखा है तेरȣ खाǓतर, 
कभी तो मɇ तुàहɅ, समझा पाऊँगा. 
म ɇरहू ँना रहू,ँ रहɅ ये गीत सदा, 
तेरȣ आवाज मɅ हȣ, मɇ भी गुनगुनाऊँगा.
Èया हार मेरȣ हार है? 
Èयɉ हो उदास, Ǔनराश मन!,ͬगनता कभी कोई Üयार है? 
Èयɉ थके पग, जब सामने, संघष[ का संसार है? 
ये शोर, सÛनाटा सभी, ठहराव हɇ, मंिजल नहȣं, 
Èया ͧसरɉ कȧ ͬगनǓतयाँ हȣ, बस समर का सार है? 
ना खुदा , हू ँइंसान तुमसा, कͧमयाँ रहɅ हजार है, 
दो Üयार या गालȣ तुàहारा, हू ँतुàह Ʌअͬधकार है, 
मेरे ͬगरने कȧ राह तकते, ऐ फ़ǐरæते! ये बता, 
गर जीत मेरȣ है तेरȣ, Èया हार मेरȣ हार है?
लड़ रहा त ूँजंग मेरȣ… 
लड़ रहा त ूँजंग मेरȣ, शांǓत को हुड़दंग तेरȣ, 
अपन ेलहू से भर रहा, तèवीर त ूँबेरंग मेरȣ, 
चला आँधी से बचाने, लडखडाती पतंग मेरȣ, 
खुद माँगकर भरता अरे!, झोलȣ रहȣ जो तंग मेरȣ. 
तेरे हाथ का èपश[ पाकर, झूमती मृदंग मेरȣ, 
त ूँरͪव कȧ ͩकरणɅ अहो! जगमग अँधेरȣ सुरंग मेरȣ, 
त ूँजीतता म ɇनाँचता, हुयी आसमानी उमंग मेरȣ, 
लगता है जɇस ेजुड़ गयी हो, ǓनयǓत भी, तेरे संग मेरȣ 
( मृदंग - ढोलक )
म ɇअभी हारा नहȣ ंहू!ँ 
ये कǑठन पथ, खुद चुना है, कोई बेचारा नहȣ ंहू,ँ 
पव[तɉ का गव [तोड़ू,ँ नीर कȧ धारा वहȣ हू,ँ 
Ǔनबल कȧ उस आश मɅ, ͪवæवास मɅ हȣ म ɇकहȣ ंहू,ँ 
भागा कहा?ँ? देखो तुàहारȣ, छाǓतयɉ पर म ɇयहȣ ंहू.ँ 
चोट खा èवर से ͩफǾँ म,ɇ कोई इकतारा नहȣ ंहू,ँ 
करोड़ɉ कȧ दुआए ँसंग , अभी बेसहारा नहȣ ंहू,ँ 
मɇ टूटकर ǒबखǾँगा तब, हाँ! हार मɇ मानूँगा तब, 
Ǒदल से तुम जब ये कहोगे, म ɇतुàहारा भी नहȣ ंहू.ँ
मेरȣ हार से हाͧसल Èया कर पाओगे? 
ǒबखरकर गर ͬगरा भी, जो ये ͧसतारा फलक से, 
उàमीद कȧ लहरɉ को तुम, साǑहल कोई पा जाओगे? 
गलǓतयाँ मुझम ेतुझ,े Ǒदखती बहुत, पर ये बता, 
माँस के पुतल ेमɅ Èया, भगवान तुम पा जाओगे? 
हɇ सवाल िजतने जेहन मɅ, उठतीं हɇ िजतनी उँगͧलयाँ, 
आईने के सामने जा, सब सबक पा जाओगे. 
म ɇठहर जाऊँ अगर त,ूँ मुझस ेएक वादा करे, 
ये लड़ाई मुझस ेबेहतर, अंजाम तक पहुँचाओग.े
हौसला बचाये रखना… 
वो कबीर का जूनून, रहȣम का जÏबा बनाये रखना, 
Ĥेमचंद कȧ सादगी, माँ गंगा कȧ आन बचाये रखना, 
तेरȣ लहरɉ ने सǑदयɉ स,े दुǓनया ँको ͧभगोया है, 
त ूँडूब ना!! डुबोन ेका, इǓतहास बचाये रखना. 
गर िजÛदा हो तो, िजंदगी के सबूत बचाये रखना, 
लाल लहू कȧ तͪपश को, बरक़रार बनाये रखना, 
लहरɉ के साथ तो, लाशɅ बहा करती हɇ , 
काशी! तूफ़ान पलटने का, हौसला बचाये रखना.
लो राम रावण मɅ, ͩफर से ठन गयी… 
लो राम रावण मɅ, ͩफर से ठन गयी. 
कलयुग कȧ रामायण, काशी मे बन गयी. 
उनका खचा[, इनकȧ खाँसी , ͩकसकȧ राͧश मे है काशी. 
Įी के हाथɉ, ͧसय कȧ फाँसी, शोध का ͪवषय बन गयी. 
लो राम……. 
सोने कȧ लंका राख हुई, सब रंगमहल सुनसान हुए, 
चतुरंगी सेना, Ǒदåय-शèğ, रथ-सुभट सभी शमशान हुए, 
कभी कहलाते थे जो ǒğलोकपǓत, Èया उनके अͧभमान हुए, 
सूरज से चमके युगɉ-युगɉ, वो तारɉ से अवसान हुए. 
वर देवɉ के धरे रहɅगे, ͩफर अतीत दोहराएगा, 
मानव दानव को जीत कहɅगे,"पुनः स×य कȧ ͪवजय हुई" 
लो राम………
लो हमहȣं ͩफर आज, काशी कȧ ͩफजा मɅ छा गए, 
सब तीर मारɅ ओट से , हम सामने टकरा गए, 
जो सूरमा ंथे पा खबर , Èयɉ आज ͩफर घबरा गए, 
ढूंढȣ सुरͯ¢त सीट पहले, ͩफर भाग वड़ोदरा गए, 
Èया जीत पाओगे मुझ,े जब युƨ से कतरा गए. 
मुँह माँ- बǑहन कȧ गाͧलयाँ, उन हाथɉ मɅ हͬथयार हɇ, 
हौसलɉ का हुनर ले, हम भी खड़े तैयार हɇ, 
जो शेर हɇ वो शेर हɇ, Ǒदãलȣ हो या ͩफर काशी हो, 
होते इलाके कूकरɉ के, हम ͧसंह कȧ ललकार हɇ.
तुम कहते हो वो बहुत बुरा ह..ै 
अपने साहस संकãपɉ से, इक अदने ने इǓतहास बनाया, 
तुमने उसको भगवान बना,मानवता का पǐरहास बनाया, 
आसमान सी उàमीदɉ पर,मानव कब कौन खरा उतरा है. 
तुम कहते हो वो बहुत बुरा ह. ै 
तुम कहते हो शनैः शनैः, इतनी जãदȣ Èया है भाई, 
िजतनी लँबी बीमारȣ है, उतनी लँबी चले दवाई, 
ͩफर एक बात का उ×तर दो, अͧभमÛयु ͩकसͧलये मरा ह.ै 
तुम कहते हो वो बहुत बुरा ह. ै 
ħçटाचार रगɉ मɅ बहता, भारत के तन-मन मɅ रहता, 
तन से खून अलग कर दूँग,ा देखो! Èया ये पागल कहता, 
एक बार मɅ ख×म करो ये, पूरे भारत पे खतरा ह.ै 
तुम कहते हो वो बहुत बुरा ह. ै
Èया कह तेरा मान बढाऊँ ? 
वो अरͪवÛद कलंͩकत ͩकंतु, एक दाग ना तुझमɅ पाऊँ, 
सूरज को Èया दȣप बताऊँ, दप[ण को दप[ण Ǒदखलाऊँ, 
शÞद-शूÛय सा शÞदकोष ͩकं ,गागर मɅ सागर भर पाऊँ, 
मेरे जीवन आदश[ कहो म,ɇ Èया कह तेरा मान बढाऊँ. 
िजन आँखɉ के सपनɉ मɅ म,ɇ अपना èवͨण[म भारत पाऊँ, 
अनुपम साहस के सàमुख, अचलɉ को भी ͪवचͧलत पाऊँ, 
कल गायेगा गौरव िजसका, उसकȧ गाथा आज सुनाऊँ, 
जो जÛमजयंती कहलायेगा,वो जÛमǑदवस मɇ आज मनाऊँ
य ूँमहावीर को बदनाम ना करो …. 
अǑहंसा Ĥाण है अपनी, ͪवæव मɅ शान है अपनी, 
मेरे गहने को य ूँसरे - आम , नीलाम ना करो. 
ये सǑदयɉ कȧ तपèया है, कई मूक साधकɉ कȧ, 
राजनीती चमकाने, पूरȣ कौम पे इãजाम ना धरो. 
ǒबना मदद अपनी गोशालाएं, लाखɉ गायɉ का पोषण करती, 
क×लखाने जैनो के बता, हमारȣ मेहनत हराम ना करो. 
ना हमने तुमस ेकभी कुछ माँगा, ना कभी कुछ मांगɅगे, 
अज [इतनी मेरे अͧभमान का, य ूँअपमान ना करो.
मुझे मारकर जÛनतɅ चाहते हो.. 
मुझे मारकर जÛनतɅ चाहते हो, 
मेरȣ जान दे मÛनतɅ माँगते हो, 
खुͧशयाँ मेरȣ क×ल कर बेरहम, 
खुशी पाओग,े ये वहम पालते हो. 
तेरे दो पल का èवाद मेरे, सारे जीवन पर भारȣ है? 
राम, कृçण का कुलगौरव, Èया इतना अदयाचारȣ है? 
फल सÞजी से भरने वाला, पेट तो कǒĦèतान बना, 
जी ऊब गया हमको खाते, अब इंसानɉ कȧ बारȣ है?
अब तो िजèम भी तरकारȣ हो गया 
अब तो िजèम भी तरकारȣ हो गया, 
èवाद संèकारɉ पे भारȣ हो गया, 
न राम न æयाम, न गणेश ने कभी खाया, 
तूँ कौन भगवान का पुजारȣ हो गया. 
अनायास हȣ मासूमɉ का ͧशकारȣ हो गया, 
अनजाने हȣ नरकɉ का अͬधकारȣ हो गया, 
सुन जरा ! उन कटते हुओं कȧ चीखɉ को, 
रहमǑदल! Èयɉ तूँ मांसाहारȣ हो गया.
खतरे मɅ बकरे कȧ जान है.. 
गौवध से तो जुड़ा हुआ, कई कौमɉ का सàमान है, 
तɇतीस कोǑट देवता उसमɅ, तुझमɅ बस इक जान ह.ै 
हɇ दोनɉ पश,ु सब Ǿप एकसा, घासपूस को खाते ह,ɇ 
इक माता कहकर पूजी जाती, दूजे काटे जाते ह.ɇ 
काश! कोई पंͫडत पोथी मɅ, तेरȣ मǑहमा गा देता, 
गाय सरȣखे तूँ भी बकरे, अभयदान को पा लेता. 
ĤकृǓत अÛयाय नहȣं करती, सब करनी का फल पायɅगे, 
जो आज हष[ स ेतुझे काटत,े कल वे भी काटे जायेगɅ.
मुँबई लोकल Ěेन मɅ रोज खडे खडे सफर करने वाले लोगɉ का दद[ मेरे शÞदɉ म.Ʌ.. 
सीट नहȣं छोडी जाती.. 
पढे ͧलखे हɇ समझदार भी,ͩफर Èयɉ बात समझ ना आती. 
कुसȸ के Ĥेमी हɇ पाये , नेताओं कȧ लगती जाǓत. 
कोई सोया, कोई खोया, घुटनɉ कȧ आहɅ आतीं जाती.ं 
कुछ भी कहलो, कुछ भी करलो, हम तो हɇ गूँगे बाराती. 
अब उठɅगे राजा साǑहब, हर हरकत उàमीद जगाती. 
बैठे बैठे ऐंठȤ कमरɅ, पर सीट नहȣं छोडी जाती. 
तुम दोगे तो तुम भी पाओगे, गीता हमको यहȣ ͧसखाती, 
उठो वीर, उ×सग[ करो , वह मानवता आवाज लगाती.
मेरȣ एक सहेलȣ है.. 
èमृǓतयɉ कȧ ͨखड़कȧ स,े बैचैनी दèतक देती ह,ै 
उन आँखɉ कȧ गहराई मɅ, अँगड़ाई डुबकȧ लेती है, 
संग मन उपवन मɅ खेलȣ है. मेरȣ एक सहेलȣ है. 
कभी मुँबई का मौसम लगती, कब Ǿठे कब मुèकाय,े 
कभी ǒğकोणͧमǓत सी लगती, कोई तो मुझको समझाय,े 
ͩकतनी कǑठन पहेलȣ है. मेरȣ एक सहेलȣ है. 
मीठा बोलूँ तो ͧमचा[य,े बात बात पर इतराये, 
लêमी जी कȧ सरèवती, जाने ͩकतने Ǿप Ǒदखाये, 
काँटेदार चमेलȣ है. मेरȣ एक सहेलȣ है.
टमाटर तुम बहुत याद आते हो.... 
सूनी सÞजी, सूप , सलादɅ, सब Ǿपɉ मɅ भाते हो. 
रगɉ मɅ दौडते खून, गरȣबɉ के सेब कहाते हो. 
सदा तंग रहे संग रहे, आज Èयɉ दूर चले जाते हो. 
मेरȣ धीर-पीर आजमाके, Èयɉ Üयाज-सा Ǿलाते हो. 
जमाखोरɉ के ͧसर चढकर, हमको औकात Ǒदखाते हो. 
कभी भटे के भाव ǒबके अब, पैĚोल से होड लगाते हो.
अजब गजब मेरȣ सालȣ है… 
मुखड़े से रातɅ उजलȣ, हर महͩफल कȧ हǐरयालȣ है. 
पापा कȧ Üयारȣ नाम ͪĤया, जाने ͩकतनी नखरालȣ है. 
ये मोबाइल ͧमस लगती ͩकसͧमस,पर गरम चाय कȧ Üयालȣ है. 
कैसे समझ,ूँ समझा पाऊँ, आͨखर आधी घरवालȣ है. 
आलस इतना कुछ करने मɅ, बस जान Ǔनकलने वालȣ है. 
जाने ͩकसके घर लêमी बन, दुगा[ जी जाने वालȣ ह.ै
Ĥेम परȣ¢ा कǑठन तेरȣ.. 
तेरȣ िजद कȧ जद मɅ अब, 
मेरे सĦ कȧ सरहद है. 
Ĥेम परȣ¢ा कǑठन तेरȣ, 
ǿद मेरा नाजुक बेहद ह.ै 
अपराध भूल मɅ भेद नहȣ,ं 
बस सजा सुनाना मकसद ह.ै 
सब åयथ[ गये आĒह, अनुनय, 
मɇ åयाकुल, ͪĤयतम गदगद है.
मेरȣ भूल को भूल जाओ ͪĤय!े 
मेरȣ भूल को भूल जाओ ͪĤय!े 
मुझे भूलकर कैसे रह पाओग.े 
अपने अहं के Ǒहमालय से पूँछɉ, 
Ĥेम कȧ आँच कबतक सह पाओगे. 
Ǿठने मनाने कȧ, करɅ दोनɉ कोͧशश, 
मɇ हारा भी तो, तुम Èया जय पाओग.े 
Èयɉ नहȣं लौट पाया, वो मेहमान Ǒदल का, 
कोई पूँछेगा जब, ͩकतना कह पाओगे.
ͪवͪवध……. 
उन प×थरɉ के बीच ये, हȣरा चमकना चाǑहए, 
गूँज सुनकर दȣमकɉ के, Ǒदल दहलना चाǑहए, 
इǓतहास कȧ नगरȣ मɅ ͩफर, इǓतहास बनना चाǑहए, 
कुछ भी हो अरͪवÛद को, संसद पहुँचना चाǑहए. 
जब वìत वो ठहरा नहȣं, ये वìत Èया थम पायेगा 
सूरज Ǔछपा जो बादलɉ मɅ, ͩफर Ǔनकलकर आएगा, 
इन उफनते सागरɉ कȧ, हकȧकत मालूम हो, 
इक हाथ जो डाला नहȣं ͩक, तहɉ को छू जायेगा. 
भÈतɉ को तकलȣफ बहुत है, सर खाते सवालɉ से, 
सागर िजतना खून छलकता, छोटे -छोटे छालɉ से, 
£ानचंद समझाते हमको, लȣलाधर कȧ अƫुत लȣला, 
अÍछे Ǒदन बहकर ǓनकलɅगɅ, मँहगाई के नालɉ से. 
मरघट के सÛनाटɉ से, जीवन कȧ हलचल अÍछȤ है. 
गंदे नालɉ के ठहरावɉ से, गंगा उÍछृंखल अÍछȤ है. 
मनमोहन, शीला, लालू के, दशकɉ के लàबे अंͬधयारɉ से, 
कुछ Ǒदन नभ मɅ चमकȧ वो, तारɉ कȧ ͨझलͧमल अÍछȤ है. 
कुछ तो अजब बात है, "आप"कȧ इस आग मɅ 
वरना कहो शोले बुझान,े समंदर कब भागते हɇ
नवजातɉ के मुँह दूध नहȣं, खरबɉ खाते ये ͪव£ापन, 
जो आसमान मɅ उड़ा पसीना, कालाधन बन बरसा तेरे आँगन, 
देश का सौदा कर डाला Èया, देश कȧ सेवा कȧ खाǓतर, 
ͩकतने आँसू काफ़ȧ होगे, चंदाखोरɉ का चुकन ेऋण. 
कभी सुना था देश कȧ खाǓतर, जो अपना लहू बहाएँगे, 
आँधी-तूफ़ा ँमे अͫडग रहे, वो भारत-पुğ कहाएँग,े 
देश के ठेकेदारɉ ने बदलȣ, देश Ĥेम कȧ पǐरभाषा, 
कमल का कȧचड़, मुँह मलकर हȣ, अब देशभÈत बन पाएँगे. 
मेरे शÞद, मेरे मौन सब बेकार गए, 
मेरे जÏबात, तेरे ͨखलौनɉ से हार गए, 
कागजी फूल-सी महक, रहȣ ǐरæतɉ मɅ अपने, 
अरसा हुआ Ǒदलɉ से Üयार, वो अͬधकार गए. 
Èयɉ लहू से ͩफर रंगना Ǔतरंगा है? 
हर मज[ कȧ दवा बस दंगा है? 
ͧसयासत! अचूक तीर हɇ तेरȣ तरकश मɅ, 
कभी राम थे, अब माँ गंगा है. 
क़ानूनो कȧ झड़ी लग गयी, पया[वरण के नाम पे, 
ͩकतनी आबादȣ जॉब पा गयी, संर¢ण के काम पे , 
कौन बचाए ĤकृǓत को जब, घर मे अपनी माँ डायन, 
उɮयोगो को सɋप Ǒदया बस , कुछ कौड़ी के दाम पे. 
जǽरȣ नहȣं कȧ हर सवाल का जवाब हो, 
हम लाजवाब हɇ, तुम लाजवाब हो..
तेरȣ नेक Ǔनयत को चाहा, आदत अपनी, अहसान नहȣं, 
जग टȣसे, पर म ɇजान ूँत,ूँ इÛसाँ हȣ है, भगवान नहȣ,ं 
है Üयार नहȣ ंये बुखार कȧ पल-पल, थमा[मीटर से माप,ूँ 
सौदागर ! ये गलत पता है, Ǒदल अपना तो सामान नहȣं 
Èयɉ तुम पर कͪवता åयथ[ कǾँ?? 
Èयɉ बेतुक-सी तुकबंदȣ से, शÞदɉ का अथ[ अनथ[ कǾँ, 
बेहतर भेडɉ कȧ भीडɉ से, नव पँिÈत का पुǽषाथ [कǾँ, 
भाड़े के भाटɉ का कहना, कलम ǒबकȧ है हर युग मɅ, 
वरदो सरèवती मुझको मɇ, कलम-ĐाँǓत चǐरताथ[ कǾँ. 
भारत मंगल से भी मंगल, मूरत "माया" "सरदारɉ" कȧ? 
जीवन भूल,े जड़ को गढन,े Èया मंशा है सरकारɉ कȧ? 
ͪवकͧसत देश नहȣं बनवाते , Èयɉ èमारक ऊँचे-ऊँचे, 
Èया महापुǽष सब यहȣं हुए, या कमी उÛहɅ दȣनारɉ कȧ? 
Èयɉ बीयर बार पै बैन जहा,ँ सब टȣवी ͬथएटर बार हुए , 
अæलȣल सदन मɅ ͩफãम देख, संèकृǓत के ठेकेदार हुए, 
पैसɉ के भूखे तन बेचɅ तो, पुजत,े पोन[èटार हुए, 
ǒबकते दो रोटȣ कȧ खाǓतर, वो आँचल धÞबेदार हुए 
अèसी Ǒहंदू , बीस मुसलमा,ँ सरल गͨणत है वोटɉ का, 
यह रामबाण जबजब चलता , खून छलकता चोटɉ का, 
कभी बाबरȣ, कभी तो गंगा, लविजहाद, कæमीर कभी, 
कहते ͪवकास बस ताऊ है, हम ǒबन पɇदȣ के लोटɉ का.
¢मा वहȣ कर सकता है, जो स¢म धीरजवान रहे, 
समताबल से ĤǓतकूलɉ मɅ, सदा अͫडग च͠ान रहे, 
¢मादान से रǑहत दǐरġȣ, Đोधी कायर कमजोर रहे, 
सब भूलɉ को ¢मा करे जो, जग उनको भगवान कहे. 
कैसे ͪĤये मɇ हष[ मनाऊँ, जीवन का नववष[ मनाऊँ. 
संकãपशूÛय मɇ लêयħांत, कैसे जीवन-उ×कष[ कमाऊँ, 
मɇ Ĥयोगशाला Ĥमाद कȧ, कैसे èविÜनल संघष[ सजाऊँ, 
बढती आयु, आशायɅ भी, पर मɇ तो ĤǓतपल घटता जाता, 
पǐरͬचत पǐरͬध कȧ पतंग को, कैसे अͧमत अश[ Ǒदखलाऊँ 
हम मानव हɇ, मानव हȣ तो, सब भूल-साधना करते हɇ, 
जाने अनजाने कृत भूलɉ कȧ, ¢मायाचना करते हɇ, 
गुǽǿदय! तुम ¢मा करो, सǿदय कामना करते हɇ, 
भावी भूलɉ से बच पाय,Ʌ हम यहȣ भावना धरते ह.ɇ 
बाबूजी Ǒदल से ͧलखने म,े सब सुख[ ͧसयाहȣ लगती ह,ै 
इस दȣपक कȧ लɋ दȣवानी, खाͧलस घी से हȣ जलती है, 
मेरȣ हर पँिÈत के ǿद से, तेरȣ झंकार Ǔनकलती है, 
सोचा! तुझसे कुछ अलग ͧलख,ूँ पर कलम नहȣ ये चलती है. 
कब वत[मान पहचान सका, इǓतहासɉ के वीरɉ को, 
पथħçट हुए सबजग कहता, नवपथ गढते पथगीरɉ को, 
ͩकन चæमɉ से देख रहे, इन भारत कȧ तकदȣरɉ को, 
हाँथ सɇकत ेसमझ कोयला , बुƨ ुकल के हȣरɉ को.
राम लखन ͧसय अमर हुए, सब तेरा हȣ सौजÛय है, 
वषɟ ͪĤय घर मɅ ǒबनाछुए, रखे कोई Èया अÛय है, 
बारबार जलकर फैलाता,स×यͪवजय का Ĥखर Ĥकाश, 
वध करने उतरे èवयं हǐर, जय हो! रावण त ूँधÛय है. 
महादेव के ͧसर चढ़ बोलȣ, Ǒहमालयɉ कȧ गोद मɅ खेलȣ, 
देवɉ ने भी पूजा िजसको, जगती कȧ वो माँ अलबेलȣ, 
नǑदयɉ कȧ इस रानी ने बस, अपनɉ कȧ अनदेखी झेलȣ, 
सबका मल हर मो¢ कराते, गँगा हो गयी ͩकतनी मैलȣ. 
शाँǓत कȧ सँĐािÛत मɅ, ͧससकती नव ĐांǓत है, 
उबलेगी बासी कड़ी कभी तो, मनɉ मɅ ये ħांǓत है, 
कुछ ͩकया है तब हुआ कुछ, इǓतहास ͬचãलाता सुनो! 
ǓनयǓत भी पौǽष ͪĤया, वरती ͪवकल ͪवĮांǓत है 
मनमोहन के दौर से, कुछ ऐसा फैला रोग, 
जब पीएम मुँह खोलते, तालȣ पीटɅ लोग, 
तालȣ पीटɅ लोग,भूलकर सुधबुध सारȣ, 
सबको सपन ेबेच रहा, गुÏज ुåयापारȣ, 
बोले ऐसे बोल , सभी जनमन को भाते, 
सेãसमेन से खुशी-खुशी, सब जेब कटाते. 
सीमा पर ͧसयासत के वो प¢ मɅ नहȣं, 
ħçटाचार अब अजु[न के ल¢ मɅ नहȣं, 
बदल हȣ डालो इस खेल के सब Ǿल Èयɉͩक, 
साǑहब अब प¢ मɅ हɇ, ͪवप¢ मɅ नहȣ.
बाबूजी Ǒदल से ͧलखने म,े सब सुख[ ͧसयाहȣ लगती ह,ै 
इस दȣपक कȧ लɋ दȣवानी, खाͧलस घी से हȣ जलती है, 
मेरȣ हर पँिÈत के ǿद से, तेरȣ झंकार Ǔनकलती है, 
सोचा! तुझसे कुछ अलग ͧलख,ूँ पर कलम नहȣ ये चलती है 
Amit Kumar Jain

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  • 1. अÍछे Ǒदन आ गये ??...
  • 2. Index 1. सच ͩकसको अÍछा लगता है 2. Èया सचमुच हम आजाद हुय े 3. Ǒदल हȣ अपनी कमजोरȣ है, Ǒदल हȣ अपनी ताकत है 4. ͩकसी का ज़मीन,ͩकसी का आसमाँ पे Ǒहसाब होगा 5. उनकȧ कͧमयाँ कौन ͬगनाये 6. कैसे मानूँ अपराध ह,ै भोला ħçटाचार 7. बोलो सीता नɅ Èया पाया 8. ये भारत कȧ रेल है 9. नारȣ हȣ नारȣ को छलती है 10. दूर सहȣ पर अंǓतम ɮवार 11. दो मɅ से कुछ एक यार होगा 12. कहाँ रहे तुम नंदलाला 13. ħçटɉ से मुÈत अपना, भारत हमɅ बनाना 14. भारत माँ के लाल बहादुर 15. Èया कमी रहȣ मनमोहन मɅ 16. भगतसींग के जÛमǑदवस पर, जयलͧलता को जेल 17. बाǐरश आई, बाǐरश आई 18. अब आम आदमी जागा है 19. अबकȧ बार मोदȣ सरकार 20. अÍछे Ǒदन आने वाले हɇ 21. भारत माँ का कौन भला 22. ͪवकास चाǑहए तो ħçटाचार भी होगा 23. भटको चाहे िजधर, काम होगा इधर 24. ये कैसा ͪवकास है 25. आपकȧ अदालत 26. सारे सपने टूट गए 27. ͩकसके महल सजाने 28. अÍछे Ǒदन आ गए 29. म ɇसीता हू,ँ तुम राम बनो 30. अजब-गजब ये सàमोहन 31. कहाँ गये वे "अटल" 32. छÜपन छाती खरगोश हुए 33. सरकार जहाँ सरकार वहȣं है 34. दो Ǒदन चले अढ़ाई कोस 35. नाम बडे और दश[न छोटे 36. सब बदला और तुम भी बदल े 37. Èया रहा बाकȧ जो तुमको जीतना है 38. ͪवप¢ हमɅ पसंद नहȣं 39. ये ǐरæता Èया कहलाता है 40. तुमस ेदूर कहाँ जाऊँगा 41. Èया हार मेरȣ हार है 42. लड़ रहा तू ँजंग मेरȣ 43. म ɇअभी हारा नहȣ ंहू ँ 44. मेरȣ हार से हाͧसल Èया कर पाओगे 45. हौसला बचाये रखना 46. लो राम रावण मɅ, ͩफर से ठन गयी 47. लो हमहȣं ͩफर आज, काशी कȧ ͩफजा मɅ छा गए 48. तुम कहते हो वो बहुत बुरा ह ै 49. Èया कह तेरा मान बढाऊँ 50. य ूँमहावीर को बदनाम ना करो 51. मुझे मारकर जÛनतɅ चाहते हो 52. अब तो िजèम भी तरकारȣ हो गया 53. खतरे मɅ बकरे कȧ जान है 54. सीट नहȣं छोडी जाती 55. मेरȣ एक सहेलȣ है 56. टमाटर तुम बहुत याद आते हो 57. अजब गजब मेरȣ सालȣ है 58. Ĥेम परȣ¢ा कǑठन तेरȣ 59. मेरȣ भूल को भूल जाओ ͪĤय े 60. ͪवͪवध
  • 3. सच ͩकसको अÍछा लगता है.. सपनɉ कȧ दुǓनयाँ के आग,े हर सच फȧका पडता है, बहलावɉ से, बहकावɉ से, जन-गण-मन हȣ छलता है. Ĥाणɉ का कुछ मोल नहȣं पर, प×थर पथ-पथ पुजता ह,ै दाǾ लेने को लाइन यहा,ँ पर दूध घरɉघर ͩफरता ह.ै कभी सीता तो कभी हǐरæचंġ, कब झूठ परȣ¢ा देता ह,ै ıदयɉ मɅ वो, होठɉ पर वो, सच पुèतकघर मɅ सोता ह.ै भूखा बचपन तèवीरɉ म,Ʌ ͧमͧलयन डालर का ǒबकता है, आͨखर मन बुƨु समझ गया, जो Ǒदखता है वो ǒबकता है.
  • 4. Èया सचमुच हम आजाद हुय.े.. जो अपना था वो गवाँ Ǒदया, अँĒेजी के अनुवाद हुय..े वसुधैव कुटुंब नहȣं अब तो, घर-घर दंगा-फसाद हुय.े. बस माँ बǑहनɉ का िजĐ रह,े Èया अपने संवाद हुय.े. भारत का गौरव गौण हुआ, नेता बस िजंदाबाद हुय.े. सबके सूरज चमके जग म,Ʌ हम तारɉ से अवसाद हुय.े. हर साख पे उãलु बैठ गय,े गुलशन सारे बबा[द हुय.े. सोने कȧ ͬचͫडया के घर मɅ, फाँको पर वादͪववाद हुय.े उन अमर शहȣदɉ के खूँ स,े बस अजगर हȣ आबाद हुय.े
  • 5. Ǒदल हȣ अपनी कमजोरȣ है, Ǒदल हȣ अपनी ताकत है... सच कȧ हालत Èयɉ शम[सार, उन स×यͪĤयɉ पे लानत है, मन मानवता के कण[धार कȧ, ǓनिçĐयता से आहत है, अÛयायɉ को चुप सहना ना, कुछ कहना अपनी आदत है, अपने जÉमɉ कȧ èयाहȣ हȣ, अपने जÉमɉ कȧ राहत है. जब भी Ǒदमाग- Ǒदल टकराएँ, Ǒदल जीते बस ये चाहत है, Ǒदल कहता म ɇवो राह चल,ूँ सब ͪवपदाओ ंका èवागत है, खोया-पाया सब कुछ Ǒदल से, इस Ǒदमाग कȧ बèती मɅ, Ǒदल हȣ अपनी कमजोरȣ है, Ǒदल हȣ अपनी ताकत है.
  • 6. ͩकसी का ज़मीन,ͩकसी का आसमाँ पे Ǒहसाब होगा.. ͩकसी का ज़मीन, ͩकसी का आसमाँ पे Ǒहसाब होगा, भगवान को Üयारा ये सारा, ǽतबा - ओ - ǽआब होगा, गैर के जो हक़ हɇ मारे, Èया तेरा पूरा कोई Éवाब होगा, कबाबɉ के शौकȧन! तू खुद, कभी ͩकसी थालȣ का कबाब होगा, Ǔछपाने से कभी Ǔछपते हɇ, टपकते खून के कतरे, नकाबपोश काǓतल! त ूँभी, एक Ǒदन खुलȣ ͩकताब होगा. रातɅ कब रोक पायीं सुबह को, रोशन ये आफ़ताब होगा, झूमɅगी दुǓनया िजसके नश ेमɅ, अंगूर! त ूँवो शराब होगा, तेरा वìत हȣ बाजीगर!, सब सवालɉ का एक जवाब होगा, तेरा गुनेहगार भी दȣवानɉ-सा , तेरे दȣदार को बेताब होगा, दȣवार पे ͧलखी इबारत, चीखती है सुन जरा! Ǒदलɉ का है आज जो, कभी देश का भी नवाब होगा.
  • 7. उनकȧ कͧमयाँ कौन ͬगनाये ??? काँटɉ बीच गुलाब ͨखलाये, कȧचड मɅ से कमल उगाये, िजन हाथɉ से सृजन ͩकये, उन हȣ हाथɉ से Ĥलय कराये, और कौन Ǔनçठुर कर पाये?? उनकȧ कͧमयाँ……….. राधा को चाहा, ǽÈमणी लाये, भाई से भाई लड़वाये, बाͧल को Ǔछपकर के मारा, ǒबन-कारण सीता वन जाये, मया[दा पुǽषो×तम कहलाये!!! उनकȧ कͧमयाँ……….. अचरज!! समथ [उस दया-ͧसंध ुन,े मूरख, Ǔनध[न, बीमार बनाये, दुçटɉ- ħçटɉ कȧ मजामौज, ͬधक्! सच दर-दर कȧ ठोकर खाये, स×य तुàहारा ͩकस घर जाये?? उनकȧ कͧमयाँ……….. इक ͧम͠ी से बने मगर, अपने-अपने भगवान बनाये, त ूँएक रहा, पर तेरे नाम पे, अलग-अलग इंसान बनाये, तेरȣ झूठȤ कसमɅ खाये!! उनकȧ कͧमयाँ………..
  • 8. कैसे मानूँ अपराध ह,ै भोला ħçटाचार?? ना चीखɉ कȧ आहटɅ, ना रÈतɉ कȧ धार, कैसे मानूँ अपराध ह,ै भोला ħçटाचार. पǐरĮम का ĤǓतफल कहो, सेवा का स×कार, सबकȧ राजी खुशी स,े चलता ये åयवहार. अàमा अपराधी नहȣं, ͧसèटम कȧ बनी ͧशकार, ħçट सभी बस दिÖडत एक, Èया इसका आधार. िजसका धन लूटा वो जनता, जब चुनती बारàबार, जनमत के अपमान का, जज को Èया अͬधकार.
  • 9. बोलो सीता नɅ Èया पाया... तुमने ͪपतु का वचन Ǔनभाया, रघुकुल ने यश-गौरव पाया, मैने महलɉ को छोड तुàहारे, संग अपना सव[èव लगाया मेरे Ǒहèसे मɅ Èया आया.... ͩकसने काटȣ नाक बǑहन कȧ, ͩकसने उसको उकसाया, हǐर के रहते हǐरͪĤया को, बोलो कैसे रावण हर लाया, कैसै मानूँ तेरȣ माया.... ͩकतनी पदवी और Ĥलोभन, ǒğभुवन के सàमोहन छोड,े अनहोनी कȧ आशंका मɅ, आखɉ ने अनͬगन नीर Ǔनचोड़े, एक तूँहȣ मेरे मन भाया..... अपना सब कुछ देकर भी, Èया मैने ͪवæवास कमाया, तुम मया[दा पुǽषो×तम हो गय,े और मैने वनवास ǒबताया, मैने बस अपयश हȣ पाया.....
  • 10. ये भारत कȧ रेल है….. ͪवæव Ĥͧसƨ चͧलत शौचालय, भलेजनɉ कȧ जेल है. Èया जनरल, Èया एसी, èलȣपर, ढोरɉ सी धÈकमपेल है. कब ͩकसकȧ यहाँ Ǒटͩकट कटे, सब रेखाओं का खेल है. कोई चम×कार आर¢ण पाना पर, एजɅटो के घर सेल है. टȣसी बेचे सीट दनादन, मानो बापू कȧ रेल ह.ै दस कȧ चीजɅ पंġह मɅ लो, ͬचãलर का जो झमेल है. जो भी आया उसने लूटा, ये नोटɉ कȧ बेल है. ǐरæवत इसके रगɉ रगɉ मɅ, सब ħçटɉ कȧ रखैल है. सबको अपने घर पहुँचाती, करवाती सबका मेल है. बाहर चलती ͩफरती Ǒदखती, अंदर ͩकडनी फेल है.
  • 11. नारȣ हȣ नारȣ को छलती है... İिçट कȧ सुँदरतम रचना, कǽणा ıदयɉ मɅ बहती है, देवɉ से पूिजत वह देवी , अपनɉ कȧ आँखɉ को खलती है. कुÛती कȧ कथनी के कारण, पाँचालȣ अपयश फलती है, कैकेयी कȧ कु×सा से सीता, वन जा, अिÊन पर चलती है. भɉहɉ कȧ भाव भंͬगमा से जो, वीरɉ को वश मɅ करती है, वहȣ काͧमनी अबला बन, अपनɉ के हाथɉ जलती है. िजसको नौ महȣने उर रखा, Èयɉ उसकȧ साँसɅ सलती है, सास, बहु, बेटȣ, माँ बनकर, नारȣ हȣ नारȣ को छलती है.
  • 12. दूर सहȣ पर अंǓतम ɮवार… भीड़तंğ के खंभे चार, नेता, बाबू, जज, अखबार, बाकȧ सब बन गये åयापार, साँचा बस तेरा दरबार. काले कपड़े, èवÍछ ͪवचार, दूर सहȣ पर अंǓतम ɮवार, Ûयाय Úवजा भुजा मे थाम,े अͬधकारɉ के पहरेदार. सबसे लंबे तेरे हाथ, तुम अबलɉ को दȣनानाथ, अंधे! जग को राह Ǒदखाते, Ǒदखते सदा स×य के साथ. मन मेरा भी है मचलाया, ͪवͬध कȧ रे मोहक माया, पलपल पगपग बढता जाता, पाने तेरȣ मधुǐरम छाया. [Cleared LLB - 1st year]
  • 13. दो मɅ से कुछ एक यार होगा.. दो मɅ से कुछ एक यार होगा.. ͪवकास या ͩफर ħçटाचार होगा. एक हȣ होता है Ǒदल का दरवाजा, या तो Üयार या ͩफर åयापार होगा. कोई और सूरत हȣ नहȣं सेहत कȧ, आदमी तंदुǾèत नहȣ,ं तो बीमार होगा. कब तक ढɉयɅगɅ ये नापाक ǐरæते, अब हाथ ͧमलɅगे या यãगार होगा. सोचा हुज़ूर लायɅग, ेअपनɅ भी अÍछे Ǒदन, Èया खबर थी बस भाषण हȣ शानदार होगा.
  • 14. कहाँ रहे तुम नंदलाला आधे आमदार अपने को, अपराधी खुद बता रह,े ह×या रेप डकैती अपनी, शपथपğ पे जता रहे . चंदा देकर Ǒटकट पा गये, शकुनी बाजी सजा रहे, नोटɉ से वोटɉ को लेकर, लोकतंğ को लजा रहे. सोचो तुमने एक नोट म,Ʌ अपना अͧभमान गवाँ डाला, इतनी सèती हुई आबǾ, मोल ले सका इक Üयाला, है जवाब जब पूँछेगा, ये Ĥæन समय आने वाला, अͧभमÛयु जब मरा युƨ मɅ , कहाँ रहे तुम नंदलाला.
  • 15. ħçटɉ से मुÈत अपना, भारत हमɅ बनाना ना छÜपन कȧ छाती, ना छͧलये का वादा, बस नेक है नीयत और , फौलाद का इरादा . देखा जो देश लुटत,े तǽणाइयɉ को घुटत,े कोसा बहुत, करɅ कुछ, तब मन नɅ मेरे ठाना. बस बोलते थे जब तक, कहलाते थे ͪवचारक, कथनी को करने Ǔनकले, दुæमन हुआ जमान.ा मत वÈत करो जाया, कȧचड़ उछालने मɅ, मुझको हȣ पाओगे तुम, हर एक आईने मɅ. है एक अपना मकसद, है एक हȣ तराना, ħçटɉ से मुÈत अपना, भारत हमɅ बनाना.
  • 16. भारत माँ के लाल बहादुर... कद छोटा åयिÈत×व Ǒहमालय, भारत के अͧभमान हो, कोमल ǿदय, सरस संबोधन, Ǻढ़ता के ĤǓतमान हो, सदाचारमय जीवन सारा, सब सɮगुण कȧ खान हो, जीवन दप[ण, अंतस अप[ण,कȧचड़ मɅ कमल समान हो. गाँधी के संग जÛमɅ उनके, आदशɟ कȧ पहचान हो, तेरा मंğ ͪवæव मɅ गूँज,े जय जवान जय ͩकसान हो, भारत माँ के लाल बहादुर,जगती करती गुणगान हो, हर माँ यह वर माँगे उसके भी, तुझ जैसी संतान हो.
  • 17. Èया कमी रहȣ मनमोहन मɅ? सत-जीवन उÍच ͪवचार रहे, सरल सरस संबोधन मɅ, सव[èव समͪप[त करके भी, कुछ कमी रहȣ सàमोहन मɅ. हक ͧश¢ा,काम, सूचना का,वो अणुकरार वाͧशंÊटन म,Ʌ बहुत ͩकया और बहतु Ǒदया, बस कमी रहȣ ͪव£ापन मɅ. ÉवाǑहश खुदगजȸ खाक हुɃ, रिजया फँस गई गुंडन म,Ʌ सव[ğ ħçट बस फक[ यहȣ,अब अजगर ͧलपटे चंदन मɅ. जब जब भͪवçय देखेगा तुमको, इǓतहासɉ के दप[ण मɅ, कम[वीर कȧ मौन साधना, मुखǐरत होगी कण-¢ण मɅ. अथ[ĐांǓत के जनक! राçĚ स,े भूल हुयी मूãयांकन म, Ʌ धÛय!! अͧलÜत कमल से वतȶ, दलदल के गठबंधन मɅ.
  • 18. भगतसींग के जÛमǑदवस पर, जयलͧलता को जेल. स×ता,ताकत,Ǿपया,ǽतबा, माया के सब खेल, सारे अèğ ͪवफल अàमा के, गुणा-भाग सब फेल. दो और दो चार ͧमले जी, अठरह सावन पापड़ बेल, देर सहȣ, मंिजल पहुँचाती, Ûयायåयवèथा भारत-रेल. एक सजा पाने से देखो, सब ħçटɉ कȧ कसी नकेल, जो बोओगे सो काटोगे, Ǔतल पीसो Ǔनकलेगा तेल.
  • 19. बाǐरश आई, बाǐरश आई पसीने कȧ बूँदɅ, पानी मे नहाई, तपे तन-मन ने कुछ राहत तो पाई. कहȣ ंसɋधी खुशब,ू कहȣ ंͩकच-ͪपच ले आई, कहȣं सृजन- संदेश, कहȣं अंत के अंदेशे ले आई. घूमत ेĤेमी - युगल, सब भूलकर अपनी पराई, सब रंग-èवाद कȧ, छतरȣयɉ ने धूम मचाई. पपीहे को Ĥाण, सीप को मोती बन आई, अपने Ǒहèसे टूटȣ सड़कɅ, Ěेन कȧ देरȣ आई.
  • 20. अब आम आदमी जागा है….. नेताओं को देश सɋप, बेͩफ़Đ नींद मे सोया था, देश और अपने भͪवçय के, मधुमय सपनɉ मे खोया था, भारत माँ का Đंदन सुन, ǒबन-भोर नींद से जागा है.. जब आँख खुलȣ तो देखा कȧ, र¢क भ¢क बन लूट रहे, Ûयाय, स×य, मया[दा सब कुछ, रेत महल से टूट रहे, तार-तार तन-वसन हुए, माğ शेष कुछ धागा है.. ǒबãलȣ दूध पे पहरा देती, चाबुक बंदर के हाथो मे, पूजा कȧ थालȣ कु×ता चाटे ,Ǔतलक गधɉ के माथो मे, गाये ǒबन-चारे के मरती, जंगल-तंğ अभागा है.. बस बहुत हुआ अब और नहȣ, संकãप ǿदय मे लाया है, बÍचे बूढ़े सबने ͧमलकर, झाड़ू को शèğ बनाया है, आम आदमी कȧ सेना आई , ठग- दल डरकर भागा है..
  • 21. अबकȧ बार मोदȣ सरकार… अदानी, अàबानी कȧ होगी जय-जयकार, एंǑटला से चलाएंगे, देश का कारोबार. ͪवकास होगा उनका, जो तेरे चुनाव के साहूकार, येǑदयुरÜपा के साथ ͧमलकर, ये ͧमटायɅगे ħçटाचार. कालाधन ͪवदेशी Ǔनवेश का धरेगा अवतार, सटोǐरयɉ कȧ चाँदȣ, चमकेगा शेयर बाजार. दंगो के दǐरंदे, पाएँगे पुरèकार, खून कȧ èयाहȣ से, रंगɅगे अखबार. फɅकू जी राजा, लगɅगे दरबार, हाँ जी ! हाँ जी! करɅगे चाटुकार. Èया नीǓत, Èया ͪवͬध कȧ दरकार, Ĥभु के वचन तो èवयं मɅ मंğोÍचार. गांधी के नोटɉ पे, हɉगे इनके ͬचğहार, भारत सरकार कहलायेगी, अब मोदȣ सरकार.
  • 22. अÍछे Ǒदन आने वाले हɇ. नभ से तो अमृत बरसेगा, पर कुछ आँगन हȣ भीगɅगे, इंġदेव के ये छȤंटे, बस कमल ͨखलाने वाले हɇ. जो पहले भूखɉ मरते थे, वो अब भी मरने वाले हɇ सबका साथ सबका ͪवकास, बस Ǒदल बहलाने वाले हɇ. मज़हब हȣ अपनी रोज़ी-रोटȣ, बस ͪवकास कȧ ख़ालɅ हɇ अरे ! Èयɉ कर टोपी पहनेगे, हम टोपी पहनाने वाले हɇ. भɉदूजी! अपनी अकल लगाओ, वादɉ, Ǒदखाओं पे ना जाओ, तुमको लगता है सब चायवाले, हवाई-जहाज़ उड़ाने वाले हɇ?
  • 23. भारत माँ का कौन भला भारत माँ का कौन भला, जय नारɉ से, गुणगानɉ से, ͩकतने Ǒदन भूख ेपेट भरɅगे, घी-शÈकर के पकवानɉ से, जय का गौरव तब पाओगे, जब कुछ करके Ǒदखलाओगे, वना[ पुèतकघर भरे पड़े हɇ, पǐरयɉ के अफ़सानɉ से. अƫुत अवसर ͧमला तुàहɅ, अपना सूरज चमकाने का, सǑदयɉ से मुरझ ेकमलɉ कȧ, पंखुड़ीया ँसहलान ेका, पर, पद साथ[क होगा तब हȣ, जब एक Úयेय एकलåय रहे, पावन-पुनीत भारत-भू से, भय-ħçटाचार ͧमटाने का.
  • 24. ͪवकास चाǑहए तो ħçटाचार भी होगा….. ͪवकास चाǑहए तो ħçटाचार भी होगा, भले लोग ͧमलɅगे तो ͧशçटाचार भी होगा, अपनी पाटȹ मɅ तो बस, कॉàबो मील है, खीर चाǑहए तो करेले का आचार भी होगा. घर खरȣदोगे तो लȣवरेज भी होगा, कुछ करोगे तो कवरेज भी होगा, बुƨ ूहɇ, ħçटाचार पे भɋकन ेवाले, अरे! नल खुलेगा तो लȣकेज भी होगा. ħçटाचार के साथ ͪवकास करɅगे, जनता के सौ के पचास करɅगे, फूटे घड़े से पानी भर-भर के, आपकȧ मेहनत का स×यानाश करɅगे.
  • 25. भटको चाहे िजधर, काम होगा इधर!! तेरे वादे लोकल बाबाओं के, पोèटर कȧ याद Ǒदलाते हɇ. कोई बारह, कोई चौबीस घंटɉ मे, गारंटȣ से सब कçट ͧमटाते हɇ. हो भूत Ĥेत या वशीकरण, या Ĥेम ͪववाह मे हो अड़चन. नौकरȣ हो या छोकरȣ बाबा! सबका इलाज बताते हɇ. हɇ बाबाओं के नाम अलग पर, एक हɇ वादे, एक इरादे. बाबा! ͬचर-पीͫड़त मानस को, ͩकतनी उàमीद जगाते हɇ. ना कहȣं हुआ, ना कभी हुआ, वो बाबाजी करवाते हɇ. Ǒदन मɅ हɉ तारɉ के दश[न, आम हथेलȣ पे उगवाते हɇ. बाबा के चम×कार कȧ चचा[, चौतरफ़ा, चेले ͬचãलाते हɇ. ͪवéवल मन, ǒबन-डोर पतंग से, तेरे पहलू मे आ जाते हɇ. बाबा का जाल अजब अनूठा, पढ़े-ͧलखे भी फँस जाते हɇ. एक उलझन हल करने Ǔनकले, मुिæकल के दलदल मे धँस जाते हɇ. मेरȣ नेक सलाह सुनो तुम, इन बाबाओं के चÈकर छोड़ो. इनका Èया, छͧलए वेश बदल, भटक भटक भटकाते हɇ.
  • 26. ये कैसा ͪवकास है?? ǽपया रंग -ओ-शÈल बदल, डालर, यूरो का èवांग रचाता, ͪवæव ħमण कर काला धन अपना, ͪवदेशी Ǔनवेश बन वाͪपस आता, सɅसेÈस कȧ छलांगे बस, सटोǐरयɉ का खेल- ͪवलास है. ये कैसा ͪवकास है?? Ǒदन-रात करɅ मेहनत और तुमको, टैÈस समय पर चुका रहे, सौ दे वाͪपस पÍचीस पाते, बाकȧ जेबɉ मे समा रहे, सौ का पÍचीस हो जाना, हमारȣ मेहनत का स×यानाश है. ये कैसा ͪवकास है?? छȤनी ज़मीन, मरते ͩकसान, कृͪष ͪवकास कȧ बात करɅ, हǐरत ĐांǓत के जनक आज हम, अÛन-दाल आयात करɅ, अपनो से छȤन, ओरɉ-गोरɉ को देना, यहȣ हमारा इǓतहास है. ये कैसा ͪवकास है?? अब ħçटाचारȣ जेल भरɅगे, सौ के सौ देश के काम लगɅगे, उɮयोग, ͩकसान, åयापारȣ, जनता, ͧमलजुलकर खुशहाल बनɅगे, बदलेगी ͪवकास कȧ पǐरभाषा, ये हमारा ͪवæवास है. ये कैसा ͪवकास है??
  • 27. आपकȧ अदालत…. आपकȧ अदालत मɅ सवाल-जवाब का, Ĥायोिजत रæम-ओ-दèतूर हो गया. उनके दाग भी कुछ धुँधल ेǑदखन ेलगे, इनका चैनल भी मशहूर हो गया. वो ͧमलते नहȣं हमसे, लो ख़×म अब ये फ़साना भी हो गया, वो कुछ नहȣं बोले और उनका बताना भी हो गया, जमाना उँगͧलयाँ चबाता रहा, मेरे सवाल पूँछन ेके हुनर पे, ͧशकार पे एक Ǔनशाना ना लगा, अपना तीर चलाना भी हो गया. आपकȧ अदालत मɅ कल , इÛसाफ का दèतूर हो गया एक गुनहगार बाइÏजत बरȣ , एक चैनल मशहूर हो गया
  • 28. सारे सपने टूट गए... सारȣ रात तो संग रहे, पर Ǒदन आते हȣ छूट गए. आये थे कुछ देने, जाते, मेरȣ भी गठरȣ लूट गए. तुमन ेमुँह फेरा, जग Ǿठा, आँसू आँखɉ से फूट गए. ͩकसको द ूँम ɇदोष Ĥभ ुभी, ͧमटटȣ के थे टूट गए.
  • 29. ͩकसके महल सजाने…. ͩकसके महल सजाने, हमारे घरɉदे तोड़ देते हो, ͩकसके समंदर भरने, हमारा पसीना Ǔनचोड़ लेते हो, कलयुगी कण[! कुछ Ǒदया भी, तो मंहगाई दे दȣ !! गर जीने नहȣं देना तो, जान Èयɉ छोड़ देते हो. मँहगाई के कोड़ɉ से, कई घाव गहरे छोड़ देते हो, यहाँ गरȣब कम हɇ जो उÛहɅ हजारɉ करोड़ देते हो, छͧलये! Èया Ěेलर, Èया फȧचर है तेरȣ ͩफãम का, चाँद तारे Ǒदखा, जेब कȧ, दुअÛनी भी गपोड़ लेते हो.
  • 30. अÍछे Ǒदन आ गए.. कालेधन वाले बाबा, जमीन मɅ समा गए, ͪवदेशी खातɉ कȧ सूची, बंद तालɉ को थमा गए. रेप - चÛद मंğी, बासी कड़ी को गरमा गए, ͧश¢ा माता कȧ ͧश¢ा पे, ͧशशु भी शरमा गए. ͪवदेशी Ǔनवेश के ͪवरोधी, डालरɉ पे लुभा गए, ǐरटेल पे लड़ते-लड़ते, ͩफरंगी ͧमसाइलɅ चुभा गए. सटोǐरयɉ कȧ चाँदȣ, जमाखोरɉ को मजा आ गए, घूस जस कȧ तस हȣ रहȣ, मंहगाई कȧ सजा पा गए.
  • 31. म ɇसीता हू,ँ तुम राम बनो….. हम बसते गंगा लहरɉ पर, हमको लहरɅ Ǒदखलाते हो, हर-हर मोदȣ के नारɉ से, ͧशव का धीरज आजमाते हो, सौदागर! सब जाने छल तेरा, अब ͩकसको तुम भरमाते हो, गर, मेरे बनने आए थे, तो उसके घर Èयɉ जाते हो. तुम मेरे हो, बस मेरे ये, अͧभमान अĮु बन झरता है, ͩकस-ͩकस को रोकू समझाऊं, जग हँसता, ताने कसता है, म ɇसीता हू,ँ तुम राम बनो, दो दो तो रावण करता है, दो नावɉ से कहो! कौन, कब, सागर पार उतरता है.
  • 32. अजब-गजब ये सàमोहन…… दस हजार करोड़ के ͪव£ापन, उड़न खटोलɉ से देश ħमण, रेल , बसɉ से भींड़ जुटा, है शहर - शहर ĥȧ मनोरंजन, जादूगर का खेल अनोखा, उगते आम हथेलȣ पर, आँखɉदेखा Èया स×य सदा , अजब-गजब ये सàमोहन. चौतरफा Ĥायोिजत कोलाहल , सच झूठ का पदा[ ओझल होता, है भीड़ जहाँ , Èया वहȣं स×य, मन शंकाओं मɅ बोͨझल होता, कंकण तट पर हȣ पाओगे, मोती चाहो तो मारो गोता, अरे! स×य अमोल नहȣं होता, यǑद इसको पाना आसाँ होता.
  • 33. कहाँ गये वे "अटल".. कहाँ गये वे "अटल" िजÛहɉने पाटȹ को सींचा, कहाँ गये वे लालकृçण िजन, रघुरथ को खींचा, कहाँ मुरलȣ, जसवंत,सु-समा, और भाजप सारȣ, भगवा सेना हाइजेक ͩकये, दो गुÏजु åयापारȣ. सǑदयɉ के संबंधɉ पर, स×ता सुख भारȣ, राम तो पहले ठगे गये, ͧशव-सेना कȧ बारȣ, रÈतͪĤयɉ के रंगमहल भी, रÈतɉ के हɉगे, भगवानɉ के नहȣं हुए, Èया भÈतɉ के होगे.
  • 34. छÜपन छाती खरगोश हुए… अÍछा हुआ आप आय,े दोनɉ के नंबर बन गय,े अपने अपने मुãक म,Ʌ दोनɉ ͧसकंदर बन गय,े भारत माँ के आँचल का, जो àलेÍछ èपश[न करते हɇ, ͧसर काटे िजनने वीरɉ के, उनका अͧभनंदन करते हɇ, कहाँ गयी वह ͧसंह गज[ना, तरकश Èयɉ खामोश हुए, Ĝेगन का डर या डालर, छÜपन छाती खरगोश हुए.
  • 35. सरकार जहाँ सरकार वहȣं है… दरबारȣ दरबार वहȣं हɇ, खबरɉ का संसार वहȣं है, स×ता का Įँगार वहȣं है , लोकतंğ का सार वहȣं है. कठपुतले तÉती लटकाय,े तÉतɉ के अͬधकार कहȣं ह,ɇ हɇ एक, अनेक Ǿप मɅ Ǒदखते, माया के आधार यहȣ हɇ. भÈतɉ के भरतार कहȣं हɇ, शेषनाग अवतार कहȣं हɇ, उàमीदɉ के उडनखटोले, Ĥलयदेव के ɮवार कहȣं हɇ.
  • 36. दो Ǒदन चले अढ़ाई कोस.. ǐरæवतखोरȣ का भूत देश म,Ʌ बेतालɉ सा भटक रहा, जोकपाल का पैनल जाने, ͩकस फाइल मɅ लटक रहा, सरकार तुàहारȣ ͩकसका दोष? दो Ǒदन चले अढ़ाई कोस. दूध कȧ कȧमत बढती जाती, फल कȧ खुशबू आती जाती, सÞजी कȧ Èया बात कǾँ,धǓनया भी अब आँख Ǒदखाती, भाषण से भूख करे संतोष ? दो Ǒदन चले अढ़ाई कोस. नेता, बाबू कȧ साँठगाँठ स,े सेठ Ǔतजोरȣ भरते जात,े बुलेट Ěेन के चæमे स,े वो चौतरफा हǐरयालȣ पाते, ͪवकास के वाǐरस सफेदपोश..दो Ǒदन चले अढ़ाई कोस.
  • 37. नाम बडे और दश[न छोटे.. भारत से ħçटाचार भगायɅ, भाषण लंबे, नीयत के टोटे. छÜपन कȧ छाती, िजगर के छोटे, घर मɅ घूमɅ साँप ǒबलौट.े हो काला धन या एफडीआई, हम हɇ ǒबन पɇदȣ के लोटे. है वहȣ तंğ , है वहȣ मंğ , है Ǿह वहȣ, बदले मुखौटे. होता ͪवकास बस मँहगाई का, सटोǐरये बस होते मोटे. अÍछे Ǒदन तो ͧमले नहȣं, अब वाͪपस बुƨ घर को लौटे.
  • 38. सब बदला और तुम भी बदले...... चेहरे बदले, सेहरे बदले, èवग[-ɮवार के पहरे बदले ना बाबू कȧ मौजɅ और, ना नेता गूँग-ेबहरे बदल.े भूखा बचपन, घुटता यौवन, मरते ͩकसान, लुटती अबला, ना मँहगाई के मंजर बदल,े ना दुæमन के खंजर बदल.े तÉत ͧमला शहजादे बदले, वादे और इरादे बदले, स×ता मद मɅ चूर पड,े ना सुर ना भèमासुर बदल.े वो बदले, उनके Ǒदन बदले, ǽतबा ǽपया गाडी बँगले, ना काले Ǒदन अपने बदले, ना रातɉ के सपने बदले
  • 39. Èया रहा बाकȧ जो तुमको जीतना है. भर तो दȣ झोलȣ तुàहारȣ Üयार स,े और ͩकतना इन Ǒदलɉ को रȣतना है. दशक बीते तकते तकते राह सुख कȧ, और ͩकतने युगɉ को अब बीतना है. Èयɉ ͩफर रहे मेरे ͧसकंदर दरबदर, Èया रहा बाकȧ जो तुमको जीतना है.
  • 40. ͪवप¢ हमɅ पसंद नहȣं. सहȣ गलत कȧ बात हȣ नहȣं, बस, ͪवप¢ हमɅ पसंद नहȣं. गैर या ͩफर अपने करɅ, अपना ͪवरोध रजामंद नहȣं. èवाथ[ के हɇ सब संबंध अपन,े अपने ͧसवा कोई भरोसेमंद नहȣं. आईने हȣ आईने हɇ, अपने चारɉ ओर, हमसे बढ़कर कोई खुदपसंद नहȣ.ं
  • 41. ये ǐरæता Èया कहलाता है... देखे दल-दल, पाया बस छल, थक-मन अब तुझको पाता है, बहुत पीया खारा जल अब मन, पीने पीयूष मचलाता है, ͩकतना रोकूँ ये मन पागल, ǒबन-डोर. उड़ा सा जाता है, बैचेनी के सबब तुàहȣ, और चैन तुàहȣ ंमे पाता है, तेरे सपने, मेरे सपने, सब एकमेक से पाता है, धरती अंबर का ͧमलन जहाँ, वो ͯ¢Ǔतज अहो! पा जाता है, सब ǐरæतɉ कȧ पǐरभाषाओं को, मन आज लाँघता जाता है, कभी सौ पचास भाते थे पर अब, उनÛचास (49) हȣ भाता है.
  • 42. तुमसे दूर कहाँ जाऊँगा….. जÉम गहरा Ǒदया पर, ǒबन तेरे ना रह पाऊँगा, बस तुàहारा हू,ँ तुमस ेदूर कहा ँजाऊँगा. तूफा ँथ ेराह रोके, Ǔनकला था जब म ɇघर स े, फौलाद के इरादे, थपेड़ɉ से ना रोका जाऊँगा. बहुत दूर ले आयी है, मेरȣ दȣवानगी मुझको , मंिजलɅ करȣब हɇ, अब ना लौट पाऊँगा. ये सािजश है तुàह Ʌबहलान ेमुझ ेआजमान ेकȧ, तुम वार करते जाना, मɇ सहता जाऊँगा. मɇने Ǒदल मɅ अपने, Èया रखा है तेरȣ खाǓतर, कभी तो मɇ तुàहɅ, समझा पाऊँगा. म ɇरहू ँना रहू,ँ रहɅ ये गीत सदा, तेरȣ आवाज मɅ हȣ, मɇ भी गुनगुनाऊँगा.
  • 43. Èया हार मेरȣ हार है? Èयɉ हो उदास, Ǔनराश मन!,ͬगनता कभी कोई Üयार है? Èयɉ थके पग, जब सामने, संघष[ का संसार है? ये शोर, सÛनाटा सभी, ठहराव हɇ, मंिजल नहȣं, Èया ͧसरɉ कȧ ͬगनǓतयाँ हȣ, बस समर का सार है? ना खुदा , हू ँइंसान तुमसा, कͧमयाँ रहɅ हजार है, दो Üयार या गालȣ तुàहारा, हू ँतुàह Ʌअͬधकार है, मेरे ͬगरने कȧ राह तकते, ऐ फ़ǐरæते! ये बता, गर जीत मेरȣ है तेरȣ, Èया हार मेरȣ हार है?
  • 44. लड़ रहा त ूँजंग मेरȣ… लड़ रहा त ूँजंग मेरȣ, शांǓत को हुड़दंग तेरȣ, अपन ेलहू से भर रहा, तèवीर त ूँबेरंग मेरȣ, चला आँधी से बचाने, लडखडाती पतंग मेरȣ, खुद माँगकर भरता अरे!, झोलȣ रहȣ जो तंग मेरȣ. तेरे हाथ का èपश[ पाकर, झूमती मृदंग मेरȣ, त ूँरͪव कȧ ͩकरणɅ अहो! जगमग अँधेरȣ सुरंग मेरȣ, त ूँजीतता म ɇनाँचता, हुयी आसमानी उमंग मेरȣ, लगता है जɇस ेजुड़ गयी हो, ǓनयǓत भी, तेरे संग मेरȣ ( मृदंग - ढोलक )
  • 45. म ɇअभी हारा नहȣ ंहू!ँ ये कǑठन पथ, खुद चुना है, कोई बेचारा नहȣ ंहू,ँ पव[तɉ का गव [तोड़ू,ँ नीर कȧ धारा वहȣ हू,ँ Ǔनबल कȧ उस आश मɅ, ͪवæवास मɅ हȣ म ɇकहȣ ंहू,ँ भागा कहा?ँ? देखो तुàहारȣ, छाǓतयɉ पर म ɇयहȣ ंहू.ँ चोट खा èवर से ͩफǾँ म,ɇ कोई इकतारा नहȣ ंहू,ँ करोड़ɉ कȧ दुआए ँसंग , अभी बेसहारा नहȣ ंहू,ँ मɇ टूटकर ǒबखǾँगा तब, हाँ! हार मɇ मानूँगा तब, Ǒदल से तुम जब ये कहोगे, म ɇतुàहारा भी नहȣ ंहू.ँ
  • 46. मेरȣ हार से हाͧसल Èया कर पाओगे? ǒबखरकर गर ͬगरा भी, जो ये ͧसतारा फलक से, उàमीद कȧ लहरɉ को तुम, साǑहल कोई पा जाओगे? गलǓतयाँ मुझम ेतुझ,े Ǒदखती बहुत, पर ये बता, माँस के पुतल ेमɅ Èया, भगवान तुम पा जाओगे? हɇ सवाल िजतने जेहन मɅ, उठतीं हɇ िजतनी उँगͧलयाँ, आईने के सामने जा, सब सबक पा जाओगे. म ɇठहर जाऊँ अगर त,ूँ मुझस ेएक वादा करे, ये लड़ाई मुझस ेबेहतर, अंजाम तक पहुँचाओग.े
  • 47. हौसला बचाये रखना… वो कबीर का जूनून, रहȣम का जÏबा बनाये रखना, Ĥेमचंद कȧ सादगी, माँ गंगा कȧ आन बचाये रखना, तेरȣ लहरɉ ने सǑदयɉ स,े दुǓनया ँको ͧभगोया है, त ूँडूब ना!! डुबोन ेका, इǓतहास बचाये रखना. गर िजÛदा हो तो, िजंदगी के सबूत बचाये रखना, लाल लहू कȧ तͪपश को, बरक़रार बनाये रखना, लहरɉ के साथ तो, लाशɅ बहा करती हɇ , काशी! तूफ़ान पलटने का, हौसला बचाये रखना.
  • 48. लो राम रावण मɅ, ͩफर से ठन गयी… लो राम रावण मɅ, ͩफर से ठन गयी. कलयुग कȧ रामायण, काशी मे बन गयी. उनका खचा[, इनकȧ खाँसी , ͩकसकȧ राͧश मे है काशी. Įी के हाथɉ, ͧसय कȧ फाँसी, शोध का ͪवषय बन गयी. लो राम……. सोने कȧ लंका राख हुई, सब रंगमहल सुनसान हुए, चतुरंगी सेना, Ǒदåय-शèğ, रथ-सुभट सभी शमशान हुए, कभी कहलाते थे जो ǒğलोकपǓत, Èया उनके अͧभमान हुए, सूरज से चमके युगɉ-युगɉ, वो तारɉ से अवसान हुए. वर देवɉ के धरे रहɅगे, ͩफर अतीत दोहराएगा, मानव दानव को जीत कहɅगे,"पुनः स×य कȧ ͪवजय हुई" लो राम………
  • 49. लो हमहȣं ͩफर आज, काशी कȧ ͩफजा मɅ छा गए, सब तीर मारɅ ओट से , हम सामने टकरा गए, जो सूरमा ंथे पा खबर , Èयɉ आज ͩफर घबरा गए, ढूंढȣ सुरͯ¢त सीट पहले, ͩफर भाग वड़ोदरा गए, Èया जीत पाओगे मुझ,े जब युƨ से कतरा गए. मुँह माँ- बǑहन कȧ गाͧलयाँ, उन हाथɉ मɅ हͬथयार हɇ, हौसलɉ का हुनर ले, हम भी खड़े तैयार हɇ, जो शेर हɇ वो शेर हɇ, Ǒदãलȣ हो या ͩफर काशी हो, होते इलाके कूकरɉ के, हम ͧसंह कȧ ललकार हɇ.
  • 50. तुम कहते हो वो बहुत बुरा ह..ै अपने साहस संकãपɉ से, इक अदने ने इǓतहास बनाया, तुमने उसको भगवान बना,मानवता का पǐरहास बनाया, आसमान सी उàमीदɉ पर,मानव कब कौन खरा उतरा है. तुम कहते हो वो बहुत बुरा ह. ै तुम कहते हो शनैः शनैः, इतनी जãदȣ Èया है भाई, िजतनी लँबी बीमारȣ है, उतनी लँबी चले दवाई, ͩफर एक बात का उ×तर दो, अͧभमÛयु ͩकसͧलये मरा ह.ै तुम कहते हो वो बहुत बुरा ह. ै ħçटाचार रगɉ मɅ बहता, भारत के तन-मन मɅ रहता, तन से खून अलग कर दूँग,ा देखो! Èया ये पागल कहता, एक बार मɅ ख×म करो ये, पूरे भारत पे खतरा ह.ै तुम कहते हो वो बहुत बुरा ह. ै
  • 51. Èया कह तेरा मान बढाऊँ ? वो अरͪवÛद कलंͩकत ͩकंतु, एक दाग ना तुझमɅ पाऊँ, सूरज को Èया दȣप बताऊँ, दप[ण को दप[ण Ǒदखलाऊँ, शÞद-शूÛय सा शÞदकोष ͩकं ,गागर मɅ सागर भर पाऊँ, मेरे जीवन आदश[ कहो म,ɇ Èया कह तेरा मान बढाऊँ. िजन आँखɉ के सपनɉ मɅ म,ɇ अपना èवͨण[म भारत पाऊँ, अनुपम साहस के सàमुख, अचलɉ को भी ͪवचͧलत पाऊँ, कल गायेगा गौरव िजसका, उसकȧ गाथा आज सुनाऊँ, जो जÛमजयंती कहलायेगा,वो जÛमǑदवस मɇ आज मनाऊँ
  • 52. य ूँमहावीर को बदनाम ना करो …. अǑहंसा Ĥाण है अपनी, ͪवæव मɅ शान है अपनी, मेरे गहने को य ूँसरे - आम , नीलाम ना करो. ये सǑदयɉ कȧ तपèया है, कई मूक साधकɉ कȧ, राजनीती चमकाने, पूरȣ कौम पे इãजाम ना धरो. ǒबना मदद अपनी गोशालाएं, लाखɉ गायɉ का पोषण करती, क×लखाने जैनो के बता, हमारȣ मेहनत हराम ना करो. ना हमने तुमस ेकभी कुछ माँगा, ना कभी कुछ मांगɅगे, अज [इतनी मेरे अͧभमान का, य ूँअपमान ना करो.
  • 53. मुझे मारकर जÛनतɅ चाहते हो.. मुझे मारकर जÛनतɅ चाहते हो, मेरȣ जान दे मÛनतɅ माँगते हो, खुͧशयाँ मेरȣ क×ल कर बेरहम, खुशी पाओग,े ये वहम पालते हो. तेरे दो पल का èवाद मेरे, सारे जीवन पर भारȣ है? राम, कृçण का कुलगौरव, Èया इतना अदयाचारȣ है? फल सÞजी से भरने वाला, पेट तो कǒĦèतान बना, जी ऊब गया हमको खाते, अब इंसानɉ कȧ बारȣ है?
  • 54. अब तो िजèम भी तरकारȣ हो गया अब तो िजèम भी तरकारȣ हो गया, èवाद संèकारɉ पे भारȣ हो गया, न राम न æयाम, न गणेश ने कभी खाया, तूँ कौन भगवान का पुजारȣ हो गया. अनायास हȣ मासूमɉ का ͧशकारȣ हो गया, अनजाने हȣ नरकɉ का अͬधकारȣ हो गया, सुन जरा ! उन कटते हुओं कȧ चीखɉ को, रहमǑदल! Èयɉ तूँ मांसाहारȣ हो गया.
  • 55. खतरे मɅ बकरे कȧ जान है.. गौवध से तो जुड़ा हुआ, कई कौमɉ का सàमान है, तɇतीस कोǑट देवता उसमɅ, तुझमɅ बस इक जान ह.ै हɇ दोनɉ पश,ु सब Ǿप एकसा, घासपूस को खाते ह,ɇ इक माता कहकर पूजी जाती, दूजे काटे जाते ह.ɇ काश! कोई पंͫडत पोथी मɅ, तेरȣ मǑहमा गा देता, गाय सरȣखे तूँ भी बकरे, अभयदान को पा लेता. ĤकृǓत अÛयाय नहȣं करती, सब करनी का फल पायɅगे, जो आज हष[ स ेतुझे काटत,े कल वे भी काटे जायेगɅ.
  • 56. मुँबई लोकल Ěेन मɅ रोज खडे खडे सफर करने वाले लोगɉ का दद[ मेरे शÞदɉ म.Ʌ.. सीट नहȣं छोडी जाती.. पढे ͧलखे हɇ समझदार भी,ͩफर Èयɉ बात समझ ना आती. कुसȸ के Ĥेमी हɇ पाये , नेताओं कȧ लगती जाǓत. कोई सोया, कोई खोया, घुटनɉ कȧ आहɅ आतीं जाती.ं कुछ भी कहलो, कुछ भी करलो, हम तो हɇ गूँगे बाराती. अब उठɅगे राजा साǑहब, हर हरकत उàमीद जगाती. बैठे बैठे ऐंठȤ कमरɅ, पर सीट नहȣं छोडी जाती. तुम दोगे तो तुम भी पाओगे, गीता हमको यहȣ ͧसखाती, उठो वीर, उ×सग[ करो , वह मानवता आवाज लगाती.
  • 57. मेरȣ एक सहेलȣ है.. èमृǓतयɉ कȧ ͨखड़कȧ स,े बैचैनी दèतक देती ह,ै उन आँखɉ कȧ गहराई मɅ, अँगड़ाई डुबकȧ लेती है, संग मन उपवन मɅ खेलȣ है. मेरȣ एक सहेलȣ है. कभी मुँबई का मौसम लगती, कब Ǿठे कब मुèकाय,े कभी ǒğकोणͧमǓत सी लगती, कोई तो मुझको समझाय,े ͩकतनी कǑठन पहेलȣ है. मेरȣ एक सहेलȣ है. मीठा बोलूँ तो ͧमचा[य,े बात बात पर इतराये, लêमी जी कȧ सरèवती, जाने ͩकतने Ǿप Ǒदखाये, काँटेदार चमेलȣ है. मेरȣ एक सहेलȣ है.
  • 58. टमाटर तुम बहुत याद आते हो.... सूनी सÞजी, सूप , सलादɅ, सब Ǿपɉ मɅ भाते हो. रगɉ मɅ दौडते खून, गरȣबɉ के सेब कहाते हो. सदा तंग रहे संग रहे, आज Èयɉ दूर चले जाते हो. मेरȣ धीर-पीर आजमाके, Èयɉ Üयाज-सा Ǿलाते हो. जमाखोरɉ के ͧसर चढकर, हमको औकात Ǒदखाते हो. कभी भटे के भाव ǒबके अब, पैĚोल से होड लगाते हो.
  • 59. अजब गजब मेरȣ सालȣ है… मुखड़े से रातɅ उजलȣ, हर महͩफल कȧ हǐरयालȣ है. पापा कȧ Üयारȣ नाम ͪĤया, जाने ͩकतनी नखरालȣ है. ये मोबाइल ͧमस लगती ͩकसͧमस,पर गरम चाय कȧ Üयालȣ है. कैसे समझ,ूँ समझा पाऊँ, आͨखर आधी घरवालȣ है. आलस इतना कुछ करने मɅ, बस जान Ǔनकलने वालȣ है. जाने ͩकसके घर लêमी बन, दुगा[ जी जाने वालȣ ह.ै
  • 60. Ĥेम परȣ¢ा कǑठन तेरȣ.. तेरȣ िजद कȧ जद मɅ अब, मेरे सĦ कȧ सरहद है. Ĥेम परȣ¢ा कǑठन तेरȣ, ǿद मेरा नाजुक बेहद ह.ै अपराध भूल मɅ भेद नहȣ,ं बस सजा सुनाना मकसद ह.ै सब åयथ[ गये आĒह, अनुनय, मɇ åयाकुल, ͪĤयतम गदगद है.
  • 61. मेरȣ भूल को भूल जाओ ͪĤय!े मेरȣ भूल को भूल जाओ ͪĤय!े मुझे भूलकर कैसे रह पाओग.े अपने अहं के Ǒहमालय से पूँछɉ, Ĥेम कȧ आँच कबतक सह पाओगे. Ǿठने मनाने कȧ, करɅ दोनɉ कोͧशश, मɇ हारा भी तो, तुम Èया जय पाओग.े Èयɉ नहȣं लौट पाया, वो मेहमान Ǒदल का, कोई पूँछेगा जब, ͩकतना कह पाओगे.
  • 62. ͪवͪवध……. उन प×थरɉ के बीच ये, हȣरा चमकना चाǑहए, गूँज सुनकर दȣमकɉ के, Ǒदल दहलना चाǑहए, इǓतहास कȧ नगरȣ मɅ ͩफर, इǓतहास बनना चाǑहए, कुछ भी हो अरͪवÛद को, संसद पहुँचना चाǑहए. जब वìत वो ठहरा नहȣं, ये वìत Èया थम पायेगा सूरज Ǔछपा जो बादलɉ मɅ, ͩफर Ǔनकलकर आएगा, इन उफनते सागरɉ कȧ, हकȧकत मालूम हो, इक हाथ जो डाला नहȣं ͩक, तहɉ को छू जायेगा. भÈतɉ को तकलȣफ बहुत है, सर खाते सवालɉ से, सागर िजतना खून छलकता, छोटे -छोटे छालɉ से, £ानचंद समझाते हमको, लȣलाधर कȧ अƫुत लȣला, अÍछे Ǒदन बहकर ǓनकलɅगɅ, मँहगाई के नालɉ से. मरघट के सÛनाटɉ से, जीवन कȧ हलचल अÍछȤ है. गंदे नालɉ के ठहरावɉ से, गंगा उÍछृंखल अÍछȤ है. मनमोहन, शीला, लालू के, दशकɉ के लàबे अंͬधयारɉ से, कुछ Ǒदन नभ मɅ चमकȧ वो, तारɉ कȧ ͨझलͧमल अÍछȤ है. कुछ तो अजब बात है, "आप"कȧ इस आग मɅ वरना कहो शोले बुझान,े समंदर कब भागते हɇ
  • 63. नवजातɉ के मुँह दूध नहȣं, खरबɉ खाते ये ͪव£ापन, जो आसमान मɅ उड़ा पसीना, कालाधन बन बरसा तेरे आँगन, देश का सौदा कर डाला Èया, देश कȧ सेवा कȧ खाǓतर, ͩकतने आँसू काफ़ȧ होगे, चंदाखोरɉ का चुकन ेऋण. कभी सुना था देश कȧ खाǓतर, जो अपना लहू बहाएँगे, आँधी-तूफ़ा ँमे अͫडग रहे, वो भारत-पुğ कहाएँग,े देश के ठेकेदारɉ ने बदलȣ, देश Ĥेम कȧ पǐरभाषा, कमल का कȧचड़, मुँह मलकर हȣ, अब देशभÈत बन पाएँगे. मेरे शÞद, मेरे मौन सब बेकार गए, मेरे जÏबात, तेरे ͨखलौनɉ से हार गए, कागजी फूल-सी महक, रहȣ ǐरæतɉ मɅ अपने, अरसा हुआ Ǒदलɉ से Üयार, वो अͬधकार गए. Èयɉ लहू से ͩफर रंगना Ǔतरंगा है? हर मज[ कȧ दवा बस दंगा है? ͧसयासत! अचूक तीर हɇ तेरȣ तरकश मɅ, कभी राम थे, अब माँ गंगा है. क़ानूनो कȧ झड़ी लग गयी, पया[वरण के नाम पे, ͩकतनी आबादȣ जॉब पा गयी, संर¢ण के काम पे , कौन बचाए ĤकृǓत को जब, घर मे अपनी माँ डायन, उɮयोगो को सɋप Ǒदया बस , कुछ कौड़ी के दाम पे. जǽरȣ नहȣं कȧ हर सवाल का जवाब हो, हम लाजवाब हɇ, तुम लाजवाब हो..
  • 64. तेरȣ नेक Ǔनयत को चाहा, आदत अपनी, अहसान नहȣं, जग टȣसे, पर म ɇजान ूँत,ूँ इÛसाँ हȣ है, भगवान नहȣ,ं है Üयार नहȣ ंये बुखार कȧ पल-पल, थमा[मीटर से माप,ूँ सौदागर ! ये गलत पता है, Ǒदल अपना तो सामान नहȣं Èयɉ तुम पर कͪवता åयथ[ कǾँ?? Èयɉ बेतुक-सी तुकबंदȣ से, शÞदɉ का अथ[ अनथ[ कǾँ, बेहतर भेडɉ कȧ भीडɉ से, नव पँिÈत का पुǽषाथ [कǾँ, भाड़े के भाटɉ का कहना, कलम ǒबकȧ है हर युग मɅ, वरदो सरèवती मुझको मɇ, कलम-ĐाँǓत चǐरताथ[ कǾँ. भारत मंगल से भी मंगल, मूरत "माया" "सरदारɉ" कȧ? जीवन भूल,े जड़ को गढन,े Èया मंशा है सरकारɉ कȧ? ͪवकͧसत देश नहȣं बनवाते , Èयɉ èमारक ऊँचे-ऊँचे, Èया महापुǽष सब यहȣं हुए, या कमी उÛहɅ दȣनारɉ कȧ? Èयɉ बीयर बार पै बैन जहा,ँ सब टȣवी ͬथएटर बार हुए , अæलȣल सदन मɅ ͩफãम देख, संèकृǓत के ठेकेदार हुए, पैसɉ के भूखे तन बेचɅ तो, पुजत,े पोन[èटार हुए, ǒबकते दो रोटȣ कȧ खाǓतर, वो आँचल धÞबेदार हुए अèसी Ǒहंदू , बीस मुसलमा,ँ सरल गͨणत है वोटɉ का, यह रामबाण जबजब चलता , खून छलकता चोटɉ का, कभी बाबरȣ, कभी तो गंगा, लविजहाद, कæमीर कभी, कहते ͪवकास बस ताऊ है, हम ǒबन पɇदȣ के लोटɉ का.
  • 65. ¢मा वहȣ कर सकता है, जो स¢म धीरजवान रहे, समताबल से ĤǓतकूलɉ मɅ, सदा अͫडग च͠ान रहे, ¢मादान से रǑहत दǐरġȣ, Đोधी कायर कमजोर रहे, सब भूलɉ को ¢मा करे जो, जग उनको भगवान कहे. कैसे ͪĤये मɇ हष[ मनाऊँ, जीवन का नववष[ मनाऊँ. संकãपशूÛय मɇ लêयħांत, कैसे जीवन-उ×कष[ कमाऊँ, मɇ Ĥयोगशाला Ĥमाद कȧ, कैसे èविÜनल संघष[ सजाऊँ, बढती आयु, आशायɅ भी, पर मɇ तो ĤǓतपल घटता जाता, पǐरͬचत पǐरͬध कȧ पतंग को, कैसे अͧमत अश[ Ǒदखलाऊँ हम मानव हɇ, मानव हȣ तो, सब भूल-साधना करते हɇ, जाने अनजाने कृत भूलɉ कȧ, ¢मायाचना करते हɇ, गुǽǿदय! तुम ¢मा करो, सǿदय कामना करते हɇ, भावी भूलɉ से बच पाय,Ʌ हम यहȣ भावना धरते ह.ɇ बाबूजी Ǒदल से ͧलखने म,े सब सुख[ ͧसयाहȣ लगती ह,ै इस दȣपक कȧ लɋ दȣवानी, खाͧलस घी से हȣ जलती है, मेरȣ हर पँिÈत के ǿद से, तेरȣ झंकार Ǔनकलती है, सोचा! तुझसे कुछ अलग ͧलख,ूँ पर कलम नहȣ ये चलती है. कब वत[मान पहचान सका, इǓतहासɉ के वीरɉ को, पथħçट हुए सबजग कहता, नवपथ गढते पथगीरɉ को, ͩकन चæमɉ से देख रहे, इन भारत कȧ तकदȣरɉ को, हाँथ सɇकत ेसमझ कोयला , बुƨ ुकल के हȣरɉ को.
  • 66. राम लखन ͧसय अमर हुए, सब तेरा हȣ सौजÛय है, वषɟ ͪĤय घर मɅ ǒबनाछुए, रखे कोई Èया अÛय है, बारबार जलकर फैलाता,स×यͪवजय का Ĥखर Ĥकाश, वध करने उतरे èवयं हǐर, जय हो! रावण त ूँधÛय है. महादेव के ͧसर चढ़ बोलȣ, Ǒहमालयɉ कȧ गोद मɅ खेलȣ, देवɉ ने भी पूजा िजसको, जगती कȧ वो माँ अलबेलȣ, नǑदयɉ कȧ इस रानी ने बस, अपनɉ कȧ अनदेखी झेलȣ, सबका मल हर मो¢ कराते, गँगा हो गयी ͩकतनी मैलȣ. शाँǓत कȧ सँĐािÛत मɅ, ͧससकती नव ĐांǓत है, उबलेगी बासी कड़ी कभी तो, मनɉ मɅ ये ħांǓत है, कुछ ͩकया है तब हुआ कुछ, इǓतहास ͬचãलाता सुनो! ǓनयǓत भी पौǽष ͪĤया, वरती ͪवकल ͪवĮांǓत है मनमोहन के दौर से, कुछ ऐसा फैला रोग, जब पीएम मुँह खोलते, तालȣ पीटɅ लोग, तालȣ पीटɅ लोग,भूलकर सुधबुध सारȣ, सबको सपन ेबेच रहा, गुÏज ुåयापारȣ, बोले ऐसे बोल , सभी जनमन को भाते, सेãसमेन से खुशी-खुशी, सब जेब कटाते. सीमा पर ͧसयासत के वो प¢ मɅ नहȣं, ħçटाचार अब अजु[न के ल¢ मɅ नहȣं, बदल हȣ डालो इस खेल के सब Ǿल Èयɉͩक, साǑहब अब प¢ मɅ हɇ, ͪवप¢ मɅ नहȣ.
  • 67. बाबूजी Ǒदल से ͧलखने म,े सब सुख[ ͧसयाहȣ लगती ह,ै इस दȣपक कȧ लɋ दȣवानी, खाͧलस घी से हȣ जलती है, मेरȣ हर पँिÈत के ǿद से, तेरȣ झंकार Ǔनकलती है, सोचा! तुझसे कुछ अलग ͧलख,ूँ पर कलम नहȣ ये चलती है Amit Kumar Jain