4. 4
मुकद्दमा
नहमदुहू वनुसल्ली अला रसूकलकहल िरीम अम्मा बाद फा-अऊज़ु
कबल्लाही कमनश्शैताकनररजीम कबस्मिल्लाकहररहमाकनररहीम०
َ
َل َو ٖهِتٰقُّت َٰقَح َ ٰٰ
اّلل ُّواقَٰتا واُّنَمٰا َْنیِذَٰلا اَهُّٰیَاٰٰۤی
َنْوُّمِل ْسُّٰم ْمُّتْنَا َو َٰ
َلِا َٰنُّتْوَُّمت
०
तजुरमा अनवारुल ईमान ।।
ऐ ईमान वालों अल्लाह ि
े कलए परहेज़गारी इस्मियार िर जैसा
उसिा हक़ है और ज़रूर तुम्हें मौत कसफ
र इस्लाम िी हालत में
आये।
सबसे बडी बात तो यह है कि इि लाजवाब व नायाब हस्ती जो दौरे
हाकज़र में मौजूद हैं कजन्हें दुकनया पीरे तरीक़त क़ाज़ी-उल-क़
ु ज़ात
हुज़ूर मसीहे कमल्लत मोहम्मद अनवर आलम मद्दाकज़हुल नूरानी ि
े
नाम से जानती है। वह हर मैदान में नायाब हैं उनिी अब ति िी
530 तसनीफ िरदा किताबों में से अक्सर किताबों ि
े छपने से पहले
नज़रे सानी िा मौिा कमला मैंने जो ि
ु छ किताबों से हाकसल किया।
5. 5
अल्फाज़ में लाना ना मुमकिन है लेकिन कफर भी मैंने जो ि
ु छ भी
हाकसल किया उसि
े ि
ु छ मवास्मखज़ात (यानी नायाब व बे कमसाल
तहरीरें जमा िरि
े इशारतन ि
ु छ झलकियों िो शक्ल देिर एि
किताबचा तैयार किया और उसिा नाम अन-सुलझे सवालात नंबर
रखा ताकि बा आसानी से आप इल्मे हि हाकसल िरि
े दुकनया व
आस्मखरत बेहतर बना सि
े हां इस किताबचा में
कसफ
र मुिम्मल जानिारी ि
े कलए हुज़ूर मसीहे कमल्लत िी
नायाब तसनीफ "ला इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मदुररसूलल्लाह" िा
मुताला जरूर िरनी होगा ।
और एि बात इस किताब िो समझने ि
े कलए कसफ
र ब-गरज़े
तालीम ही मुताला िरें और हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं कि
इंसान उस वक़्त ति इस्लाम और बानी-ए-इस्लाम िी हक़्काकनयत
िो पा नहीं सिता जब ति वह अपना "दीन" इस्लाम और खुद िो
"मुसलमान" और इश्क
े रसूल सल्लल्लाहु अलैकह व आकलही
वसल्लम िो "जान" और मवद्दते अहलेबैते रसूल सल्लल्लाहु अलैकह
व आकलही वसल्लम िो उजरते ईमान तस्लीम ना िर ले।
6. 6
अल्लाह ताला हम सबिो अपनी पनाह में िलमा-ए-तैय्यबा पर
खाकतमा कबलखैर िरें .....आमीन या रब्बल अलाकमन कबजाहे
सैय्यदुल मुरसलीन सल्लल्लाहु अलैकह व आकलही वसल्लम।।
मौलाना मुनीम इब्न रईफ
ू लहक़
7. 7
कजस िलमा िो पढ़ िर हम खुद िो मुसलमान िहलाते हैं
िलमा-ए-तैय्यबा (اہلل رسول محمد اہلل اَل الہ )َل क़
ु रआन में ब ज़ाकहर
िहीं भी नही है । हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते है कि जब क़
ु रआन
में सब ि
ु छ है तो िलमा भी होगा और यही सब िा अिीी़दाह भी है
तो जब कतलावत ि
े कलए क़
ु रआन खोलते हैं सूरह अल-बिरा ि
े
शुरू में आता है ""الم "अकलफ लाम मीम" यानी "अकलफ" से
अव्वल िकलमा तैय्यब और "लाम" से "اہلل اَل الہ "َل और "मीम" से
"اہللرسول"محمد
अब िलमा पूरा हो गया और जब भी िोई "अकलफ लाम मीम" िी
कतलावत िरता है तो वह गोया कि िलमा तैय्यब पहले पढ़ता है।
नुज़ूल ि
े एतेबार से क़
ु रआन िी सबसे पहली आयत اقراء
بااسم नहीं बस्मि "कबस्मिल्लाकहररहमाकनररहीम" है बगैर कबस्मिल्लाह
पढ़िर कतलावत ि
ै से िर सिते हैं और ना ही रब्बुल आलमीन ने
बगैर कबस्मिल्लाह ि
े क़
ु रआन मजीद िा नुज़ूल किया है, रब बगैर
कबस्मिल्लाह ि
े अज़ीम िाम ि
ै से िर सिता है नबी-ए-िरीम
फरमाते हैं कि हर अज़ीम िाम कजसिो बगैर कबस्मिल्लाह ि
े शुरू
किया जाए वह बे बरित होता है ( हदीस ) और आपिो मालूम
होगा कि नबी ि
ु छ बोलते ही नहीं है जो ि
ु छ बोलते हैं वकहये रब
बोलते हैं तो नबी ने फरमाया ि
े बगैर कबस्मिल्लाह ि
े कजस चीज़ िो
8. 8
शुरू किया जाए वह बे बरित होती है तो क्या अल्लाह ने क़
ु रआन
िो बगैर कबस्मिल्लाह ि
े नाकज़ल िर ि
े बे बरित वाला िाम
किया, ऐसा नहीं और हरकगज़ नहीं अल्लाह ने सबसे पहले
कबस्मिल्लाह िो नाकज़ल किया कफर उसि
े बाद बािी सूरतें और
आयतों िो नाकज़ल किया।
दुकनया िहती है कि नबी-ए-िरीम िो 40 साल ि
े बाद
नबूव्वत कमली मगर हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं िी प्यारे सुनो !
हमारे नबी अफज़लुल अंकबया हैं नकबयों ि
े सरदार हैं यहां ति कि
ईसा अलैकहस्सलाम ि
े भी सरदार हैं ईसा अलैकहस्सलाम जो कि 3
कदन ि
े बच्चे ने अपने पालने में यानी झूले में अपनी नबूव्वत िा
ऐलान िर कदया था अल्लाह िी तरफ से भेजा हुआ हूं और हमारे
नबी 40 साल ि
े बाद ति अपनी नबूव्वत िा ऐलान िर रहे हैं जो
यहां पर नबी िी अफज़लीयत बरक़रार नहीं रहेगी वगैरा और
सवालात होंगे लेकिन हक़ीक़त यह है कि जब हमारे नबी-ए-िरीम
तशरीफ लाए तो सर सजदे में रखिर बोले "रब्बे हबली उम्मती"
यानी ऐ रब मेरी उम्मत िो मेरे हवाले िर दे और उम्मत िहिर
वही पुिार सिते हैं जो नबी हों। इससे बात से मालूम हुआ कि
हमारे नबी ने पैदा होते ही अपनी नबूव्वत िा ऐलान फरमा कदया था
। एि लम्हा ज़ाए किये बगैर और वहां उस आवाज़ िो कजन कजन
लोगों ने सुना उन लोगों ने तस्दीि िी कि यह अल्लाह ि
े नबी हैं।
9. 9
हज़रत अली िररमल्लाहु वझहुल िरीम िो शेरे खुदा िहना
मुनाकसब नहीं एि इंसान िो जानवर से कमसाल देना िहां िी
इंसाकनयत है ?
दुश्मने अली िो मुनाकफक़ िहते हैं और मुनाकफक़ िी यह चाल थी
ि
े अली िी बहादुरी िो शेर से तशबीह दी
शेर एि खूंखार दररंदा है अली कजनिी बहादुरी िी िायनात में
िोई कमसाल नहीं है उनिी बहादुरी िो खूंखार दररंदा से कमसाल
देना बुग्ज़े अली िी कनशानी है और नबी-ए-िरीम ने फरमाया" जो
आले मोहम्मद ि
े बुग्ज़ में मरा वह िाकफर मरा"
हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं कि क़
ु रआन िी आयत
"
كملرجانماحدابامحمدکانما
"
ि
े तहेत अबु इब्राकहम या अबुल क़ाकसम िहना गलत होगा जब वह
किसी मदर ि
े बाप नही तो कफर अबु इब्राहीम, अबुल िाकसम ि
ै से
िह सिते है ? नबी फरमाते हैं "
يِطْعُّی ُّ َٰ
اّللَو ٌمَِاسقَانَااَمَٰنِا
"
10. 10
तजुरमा :- अल्लाह देता है और मैं बांिता हूं ।
नबी-ए-िरीम खुद क़ाकसम हैं उनि
े बेिे िी तरफ मंसूब िर ि
े
अबुल क़ाकसम िहना क़
ु रआन व हदीस िी मुखाकलफत होगी।
नबी-ए-िरीम िा आस्मखरी हज कजसे हज्जतुल कवदा िहा
जाता है सवाल यह होता है कि क्या आप सल्लल्लाहु अलैकह व
आकलही व सल्लम ने उस हज में अपने सरे मुबारि ि
े जुल्फ िो
मुंिवाया था या नही? तो क्या नबी-ए-िरीम ि
े ज़ुल्फ इंतेिाल से
पहले बढ़ गए थे या बगैर ज़ुल्फ ि
े ही इंतेिाी़ल हुए? हुज़ूर मसीहे
कमल्लत फरमाते हैं कि हमारे नबी-ए-िरीम हज में तो क्या िभी भी
सर नही मुंढवाए क्योंकि कजस ज़ुल्फ िी अल्लाह तारीफ िरे क्या
उस जुल्फ िो नबी-ए-िरीम मुंिवा देंगे ? नही और हरकगज़ नहीं
और ना तो हज में सर मुंिवाना फज़र है। हां हि हो सिता है हि
पर िोई एतराज़ नहीं
दुकनया िहती है ि
े नबी-ए-िरीम सल्लाहु अलैकह व सल्लम
ने इसकमद ( एि तरह िा सुरमा ) लगाते थे।
और क़
ु रआन िहता है कि आप िी आँखे क़
ु दरती तौर पर
सुरमीली है तो कजनिी आँखें क़
ु दरती सुरमीली हो। क्या वह सुरमा
लगाएं गे?
11. 11
हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं :- मक्खी गंदी जगह पर बैठती है
और नबी ि
े कजि पर िभी मक्खी नही बैठी यानी आप क़
ु दरती
तौर पर हर लम्हा हर आन पाि व साफ हैं, बे कमसाल नबी िी शान
ये है आप ि
े कजि से खुशबू आती थी कजधर से गुज़र जाते खुशबू
ही खुशबू आती थी तो कजस कजि से हमेशा खुशबू आती हो क्या
वह इतर लगायेंगे ? यही हाल हजामा लगवाने िा है कमसवाि िरने
िा है ।
हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं कि :- नबी-ए-िरीम ि
े तरीिा-ए-
अमल मे ये सब नहीं था इन सब चीज़ों िो नबी-ए-िरीम ि
े
तरीिा-ए-अमल यानी सुन्नत से मंसूब िरना सुन्नत बताना बे अदबी
है गुस्ताखी है। हां ये सब बातें ताकलमात रसूल मे से है।
िलमा-ए-शहादत
"
ورسولہعبدہمحمدانواشهداہللاَلالہاَلاشهد
"
हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं शहादत देना यानी गवाही देना और
गवाही वही दे सिता है जो मुशाकहदा किया है यानी अपनी नज़र से
देखा है तो कजन्होंने बगैर देख ि
े गवाही दी तो गोया ि
े झूठी गवाही
दी।
हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं कि प्यारे सुनो दीन और
दुकनया िोई अलग चीज़ नही है बस्मि दोनो एि ही है क्योंकि दीन
12. 12
उसे िहते हैं कजस रास्ते पर चलने से अल्लाह िा क़
ु बर हाकसल हो
दीन अल्लाह िी माफ
र त िा ज़ररया है और अल्लाह ने अपनी
पहचान ही ि
े कलए दुकनया बनाई है
यानी दुकनया में रह िर दुकनया िी चीज़ों से फायदा उठाते हुए
अल्लाह िी माफ
र त हो सिती है । कजस दीन और दुकनया दोनो ही
अल्लाह िी माफ
र त िा ज़ररया है तो जो दीन वही दुकनया भी है िोई
अलग चीज नहीं है
िॉक्टर कनसार जानी झारखंि से पूछते हैं
"
ِّٰنِإ ٰ َ
َسيِع اَی ُّ َٰ
اّلل ََالق ْذِإ
َ
يكِٰفَوَتُّم
ُِّلعاَجَو واَُّرفَك َنیِذَٰلا َنِم َكُّرِٰه َطُّمَو َٰ َ
لِإ َ
كُّعِفاَرَو
ِۖةَماَيِقْلا ِمْوَیٰ َ
َلِإواَُّرفَك َنیِذَٰلا َقْوَف َوكُّعَبَٰتا َنیِذَٰلا
तजुरमा: और याद िरो जब अल्लाह ने फरमाया ऐ ईसा मैं तुझे
पूरी उम्र ति पहुंचा दूंगा और तुझे अपनी तरफ उठा लूंगा और तुझे
िाकफरों से पाि िर दूंगा और तेरे पैरों िो ियामत ति तेरे
मुनकिरों पर गलबा दुंगा
इस आयत में लफ़्ज़ َ
يكِٰفَوَتُّم ि
े बारे में है कजससे लोग मुराद लेते हैं
वफात िर जाना, मर जाना यही वजह है कि बहुत सारे लोग यह
13. 13
दोनों िहते हैं कि ईसा अलैकहस्सलाम मर गए तो आप से गुजाररश
है कि आप उस लफ्जज़ िी तशरीह फरमा दीकजए !
तो हुजूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं कि तफसीरे मसीही िो पढ़ें
अल्लाह ताला ने जब और जहां मरने िा लफ्जज़ इस्तेमाल किया है तो
उसि
े कलए लफ्जज़ मौत िा इस्तेमाल किया है जैसे "यूहयी वयूमीतु"
और क़
ु रआन िी मशहूर आयत "ि
ु ल्लू नफकसन जाएितुल मौत"
और "अल्लज़ी खलिा मौता वल हयाता कलयब्लू वि
ु म अय्युि
ु म
अहसनु अमला" वगैरा क़
ु रआन िी बहुत सी आयत हैं ََيكِّفَوَتُم िा
माना मौत नहीं है बस्मि है कजसिी हिीिी माना है पूरा िरना
जैसे ि
ु रान में है "इब्राकहमाल्लज़ी वफ्फा" और इब्राकहम कि कजसने
पूरा िर कदया । तो ََيكِّفَوَتُم िा माना मौत नही है बस्मि पूरा िरना है
मौत ि
े कलए मौत ही िा लफ्जज़ इस्तेमाल हुआ है।
शोएबे अबु ताकलब क्या था ? नबी-ए-िरीम अपनी बात
दुकनया िो मनवाने आए थे या दुकनया िी बात मानने आए थे ? जो
शोएबे अबु ताकलब में जािर ढाई साल ति बैठ गए और तबलीगे
इस्लाम से िोताही िी (अल्लाह िी पनाह) क्या है शोएबे अबू
ताकलब ?
14. 14
हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं कि :- शोबा बोलते हैं जमात िो
यानी जब नबी िा बायेिि हुआ तो आप सल्लल्लाहु अलैकह व
आकलही वसल्लम ि
े अशखास ने िहा कि यह लोग आपिा
बायिाि िरेंगे हम सब कमलिर उन लोगों िा बायिाि िरते हैं ।
मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैकह व आकलही वसल्लम ि
े खाकतर अपना
सब ि
ु छ क़
ु बारन है तो आप सल्लल्लाहु अलैकह व आकलही वसल्लम
ि
े एि हाथ पर सब ने अपना हाथ रखा और सबि
े हाथ ि
े ऊपर
नबी ने अपना दू सरा हाथ रखा एि पेड ि
े नीचे बैठिर वादा किया
हाथ पर हाथ रखिर जो असल में बैय्यते ररज़वान भी है और उसी
बात िी रज़ा मंदी ि
े कलए अल्लाह ने ि
ु रान में खुशखबरी दी है वह
आयत यह है
َلَزنَأَف ْمِهُِّوبلُّق ِ
ِف اَم َمِلَعَف ِةَرَج َٰالش َ
تَْحت َ
َكنوُّعِایَبُّی ْذِإ َنيِنِمْؤُّْملا ِنَع ُّ َٰ
اّلل َي ِضَر َْدقَٰل
۞اًبیِرَقاًحْتَف ْمُّهَباَثَأَو ْ ِ ْ
هْيَلَع َةَنيِك َٰالس
तजुरमा : बेशि अल्लाह राजी हुआ ईमान वालों से जब वह उस पेड
ि
े नीचे तुम्हारी बैत िरते थे तो अल्लाह ने जाना जो उन ि
े कदलों में
है तो उन पर इतमेनान उतारा और उनेह जल्द आने वाली फतह
िा ईनाम कदया
ना कि सुलह हुदैकबया ि
े मौक़
े िी यह आयत है।।
15. 15
(सुलह हुदैकबया वह है कजसि
े बाद लोगों ने नबी िी शान में
गुस्ताखी िी एहराम ना खोलिर । क्या अल्लाह िी पनाह और क्या
अल्लाह िो पता नहीं था कि अब मैं उनसे राज़ी हो रहा हू जो थोडी
ही देर में यह लोग मेरे महबूब िी शान में गुस्ताखी िरेंगे ।) तो
शोएबे अबु ताकलब में जािर मोहम्मद सल्लाहु अलैकह व आकलही
वसल्लम और उनि
े अशखास में कमलिर तबलीगे इस्लाम ि
े कलए
ि
ु छ अहेम उसूल ,िायदा िानून बनाएं और सब ने उसी तरीिा
पर िाम िरना शुरू किया और ि
ु फ्फार िो अपने सामने घुिना
िेिने पर मजबूर िर कदया यह है शोएबे अबु ताकलब िी
हक़ीक़त। और ना कि घािी में जािर बैठ जाना और खामोश हो
जाना।
हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं कि अल्लाह ताला ने
इंसानो मै सब से पहले आदम िो पैदा किया और उनसे हज़रत
हव्वा िो इसी तरह कजन्नातों में सब से पहले "नार" िो पैदा किया
और उन से "माररज" िो पैदा किया तो कजस तरह इंसानी आबादी
आदम व हव्वा से है उसी तरह कजन्नों िी आबादी "नार" व
"माररज" से है और दोनो से िौमे कजन्नात िो पैदा फरमाया
16. 16
अजान ि
े बाद िी दुआ में नाकजबा िालेमात مقامابعثہو
محمودا यानी मिामे महमूद दे दीकजए किसी छोिे ि
े कलए बडों िी
शान में ऐसा िहना बे अदबी है और जो पहले से उस िा माकलि
हो और उनि
े कलए ये िहना और दुआ िरना ि
े मक़ामे महमूद दे
दीकजए बहुत बडी बेवि
ू फी है ।
आप फरमाते हैं ि
े क़
ु रआन में सब ि
ु छ है और यक़ीनन
सब ि
ु छ है क्योंकि क़
ु रआन िा पहला हफ
र और आस्मखर िा हफ
र
बता रहा है िी क़
ु रआन में सब ि
ु छ है ि
ु रान ही सब है और ि
ु रान
ही बस है क्योंकि जब हम ि
ु रान िी कतलावत िरते हैं तो शुरू में
कबस्मिल्लाकहररहमाकनररहीम पढ़ते हैं और आस्मखर में "वन्नास" ि
े कसन
पर मुिम्मल िरते हैं तो कबस्मिल्लाह ि
े बे और वन्नास िा सीन जब
हम कमलाएं गे तो बस होगा और अगर उसी िो उल्टा िर देंगे तो
सब होगा इस तरह क़
ु रआन पैगाम दे रहा है कि क़
ु रआन में वाक़ई
सब है "अफला तफक्करून" तुम गौर कफक्र क्यों नहीं िरते"
17. 17
हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं कि अल्लाह ताला ने
िायनात िा पूरा कसस्टम चार कफररश्ों ि
े ज़ररये चलता है और
उस कसस्टम िा सवरर सरवारे िायनात हैं "जीम" कजब्राईल िा
"अकलफ" इसराकफल िा "मीम" कमिाइल िा और इज़राइल िा
एै न जमा िर लो तो हो जायेगा "जामे" यानी िायनात िा कसस्टम
चलता है उन चारों से।।
"वह ज़माने में मुअज़्ज़ज़ थे मुसलमान होिर
और हम खाी़र हुऐ ताररि
े क़
ु रआन हो िर।।"
क़
ु रआने िरीम में दुआ मांगने िा तरीिा बताया गया है और
नकबयों ने भी या अल्लाह िह िर दुआ नही िी बस्मि "रब "बोल
िर दुआ किया है
रब्बाना तिब्बल कमन्ना इन्निा.....,रब्बना ज़लमना अनफोसना.....,
रस्मब्बस्मग्फरली वा अंता..... ।।
वगैरह न जाने कितनी क़
ु रआन में दुआइय्या िकलमात हैं सब रब से
है रब बोल िर मांगा गया है और खुद कफरौन ने िहा "आमनतो बे
रब्बे हारूना वा मूसा" तो इस से पता चलता है कि दुआ जब भी िी
18. 18
जाएगी रब बोल िर ही िी जाएगी ना कि अल्लाह बोल िर और
बहुत से लोग जब क़
ु रआन िी आयतों से दुआ मांगते हैं तो शुरू में
अल्लाहुम्मा िा लफ्जज़ इस्तेमाल िरते हैं जो िी क़
ु रआन िी
मुखाी़कलफत है।
हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं कि लोग िहते हैं कि जो
तौहीने सहाबी िरे ि
ु फ्र है तो कफर िाकतले सहाबी िो क्या िहेंगे
अम्मार कबन याकसर वगैरा ि
े िाकतल िो क्या िहेंगे हज़रत हसन
और हज़रत हुसैन ि
े िाकतल िो किया िहेंगे ?
कजन माकवया िी फज़ीलत पर रश्क िरते हो वह माकवया
कबन सुकफयान नहीं है बस्मि माकवया कबन मुक़ररकनल मुज़नी है जो
शाकगदर हैं विाी़र कबन नौकफल ि
े और विाी़र कबन नौकफल हज़रत
खदीजा ि
े चाचा ज़ाद भाई हैं जो अच्छे िाकतब थे और अगली
किताबों िो किताबत िरते कलखते थे और पादरी लोग उन्हीं ि
े
पास से किताब लेिर जाते और कगरजाघर में रखते थे तो उन्हीं ि
े
शाकगदर हैं, यह और किताबत िा िाम उन्हीं से सीखें थे इस
माकवया िी जनाज़ा खुद हुज़ूर ने पढ़ाया था और अपना जुब्बा
मुबारि भी अता फरमाए थे ।
19. 19
हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं कि उिान कबन अफ्फान
अगर गनी यानी दौलत मंद थे तो अंसार से मदद क्यों लेनी पडी थी ?
अस्ल में उिान कबन अफ्फान गनी नहीं थे बस्मि उिान कबन
मज़ऊन गनी थे और यही दामादे रसूल भी थे ना ि
े उिान कबन
अफ्फान और जन्नतुल बिी में उन्हीं िा मजाी़र है उन्हीं िी तदफीन
ि
े बाद से उस िकब्रस्तान िा नाम जन्नतुल बिी रखा गया है।
आप फरमाते हैं कि मोहम्मद सल्लाहु अलैकह व आकलही
वसल्लम तुम मदों में से किसी ि
े बाप नहीं।
तो ज़ैद कबन हारसा मोहम्मद सल्लाहु अलैकह व आकलही वसल्लम
िा मुंह बोला बेिा भी नहीं आप सल्लल्लाहु अलैकह व आकलही
वसल्लम उनि
े भी मुंह बोले बाप नहीं क़
ु रआन िी आयत ि
े
मुताकबक़।
20. 20
नबी-ए-िरीम जन्नत में जायेंगे या नहीं ? हुज़ूर मसीहे
कमल्लत फरमाते हैं ि
े पूरी िायनात उनि
े क़दम िी धुल है सारी
चीज़ उन से ही बनी है तो उन िी मज़़ी जहां चाहे जाए। याद रहें ि
े
हर चीज़ अपने असल िी तरफ लौिती है तो जब सारी चीज़ नबी ि
े
नूर से है तो सारी चीज़ नबी-ए-िरीम में लौिेगी और नबी में जमाल
व जलाल दोनो है तो जो जमाल में गया वह जन्नत में गया और जो
जलाल में गया वह जहन्नम में गया।
हलालाह ि
े नाम पर ज़ेना और औरत िी इज्जज़त तार तार
अगर िोई शख्स हलालाह िी नीयत से किसी िा किसी से शादी
िरता है तो उस िी कनयत होती है ि
े उस औरत से सम्बंध बना
िर तलाक़ (छोड) दे देना है और िहा जाता है कि بنياتاَلعمال ٰمانا
यानी अमल िा दार व मदार नीयत पर है तो आप ही बताइए कि
हलाला िी शादी में तलाक़ िी कनयत शादी से पहले हो जाती है तो
क्या शादी हुई ?
कनयत ि
े कहसाब से ? (और शादी नाम है दो रूहों ि
े खुशी खुशी
कमलने िा न कि मन मार िर मजबूरी में कमलने िा) तो जब शादी
ही नही हुई तो हलालाह ि
े नाम पर जेना ही हुआ ?
क्या है हलालाह उसिी हक़ीक़त जानने ि
े कलए पकढ़ये "तलाि या
आज़ाब"
21. 21
हुज़ूर मसीहे कमल्लत फरमाते हैं कि अहलेबैत ि
े कलए
अलैकहस्सलाम िहना ही दुरुस्त है ना कि रज़ी अल्लाहु अन्हहु
िहना ! अलैकहस्सलाम यानी उन पर सलामती हो और रज़ी अल्लाहु
अन्हहु यानी अल्लाह उनसे राज़ी हो रज़ी अल्लाह िहने में बे अदबी
झलि रही है उन हस्मस्तयों ि
े कलए अलैकहस्सलाम ही िहा जाए
क्योंकि उन हस्मस्तयों में एि हैं मां फाकतमा ज़हरा कजनिी चौखि पर
कजनि
े दरवाज़े पर खडे होिर खुद नबी-ए-िरीम सल्लल्लाहु
अलैकह व आकलही वसल्लम सलाम पेश िरते थे तो हमे भी
अलैकहस्सलाम ही िहना चाकहए।
िहा जाता है कि लेहन यानी) सुर ,मोससकी म्यूकज़ि(
जायज़ नहीं| तो कफर म्यूकज़ि सुनते ही कदल क्यों मचल उठता है
आकयए हम मुिसर तौर पर जानते हैं,
इसताला में क़
ु रआन मजीद िो गलत पढ़ने या ताज्वीद ि
े
स्मखलाफ पढ़ना लहन) म्यूकज़ि( िहलाता है।
बुकनयादी तौर पर लेहन िी दो कक़ि है :-
लहने खफी और लहने जली
22. 22
लहने खफी वह मिरू गलती है कि कजस से बचना बेहतर है जैसे
"रब्बुिा"کٰبر िो देखो पुर िरने ि
े बजाय बारीि पढ़ कदया जाए
लहने जली बडी गलती िो िहते हैं कजससे अल्फाज़ ही
बदल जाए
या हफ
र िो हफ
र से बदल देना जैसे "क़
ु ल" قلिो "ि
ु लلک"
पढ़ना
"बडी क़ाफ" िी जगह "छोिी िाफ" पढ़ना
या किसी िो बढ़ा देना या िम िर देना वगैरह
नोि=°> लहने जली हराम गलती िो िहते हैं और ऐसी गलती से
नमाज़ बाकतल हो जाती है
लहने खफी मिरूह गलती िो िहते हैं और इस कहसाब से दोनों
ही जायज नहीं है तो कफर लहने दाऊदी क्या है ?
कजसिी कमसाल दी जाती है कजस पर लोग रश्क िरते हैं उसि
े
कलए पकढ़ए किताब "मौसीक़ी क्या है?" कजसमें लहन यानी सुर،
म्यूकज़ि िो आसानी ि
े साथ समझाया गया है क़
ु रआन िी रौशनी
में कजसिो पढ़िर आप िा कदल मुतमइन हो जाएगा।
23. 23
और सभी जानते मानते हैं कि क़
ु रआन ि
े 30 पारे में पूरी
दुकनया इजमालन मौजूद हैं क्योंकि 30 पारा क़
ु रआन िा कनचोड
सूरह फाकतहा में है और सूराह फाकतहा िा कनचोड
कबस्मिल्लाकहररहमाकनररहीम में है और कबस्मिल्लाह िा कनचोड
कबस्मिल्लाह ि
े ب में है और मौला अली िररमल्लाहु वझहुल िरीम
फरमाते हैं कि मैं कबस्मिल्लाह ि
े बा ب िा नुक़्ता हूं तो अली ऐसे भी
क़
ु रआन हुए और आपने देखा है कि नुक़्ता एि कबंदी यानी िॉि
गोल सा होता है और आप जब भी ि
ु छ कलखेंग अकलफ से या ति
या A से Z ति तो आप कलखने ि
े कलए िलम िॉपी पर रखेंगे तो
नुक़्ता पहले बनेगा कफर जािर िोई हफ
र बनेगा तो उस गोल से
नुक़्ते िो ग्लोबल यानी पृथ्वी ि
े नक्शे िी माकनंद समकझए जैसे पृथ्वी
(ग्लोबल) िो दू र से देखेंगे तो वह भी एि िॉि गोल सा नुक़्ता नज़र
आएगा यानी अली नुक़्ता हैं हज़रत अली िररमल्लाहु वझहुल िरीम
ग्लोबल यानी दुकनया हुए।
क्या आदम अलैकहस्सलाम िी हक़ीक़त अली में है ? क्योंकि अली
कबस्मिल्लाह ि
े बा ب िा नुक़्ता हैं और उसी नुक़्ते में पूरी िायनात
है रब ताला खाकलि
े िायनात है मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैकह व
आकलही वसल्लम माकलि
े िायनात हैं और हज़रत अली िररमल्लाहु
वझहुल िरीम भी पूरी िायनात हैं । नबी ने फरमाया अली से कि तू
24. 24
अबु-तुराब है यानी कमट्टी िा बाप तो दुकनया में कजतनी भी चीजें हैं
सबिा ताल्लुक़ कमट्टी से है यहां ति कि आदम अलैकहस्सलाम भी
कमट्टी से हैं । इस माना ि
े कहसाब से हज़रत आदम अलैकहस्सलाम
िी हक़ीक़त हज़रत अली में ज्यादा जानिारी ि
े कलए पकढ़ए "अली"
हूर क्या है ? उसिो मुिसर में जानते हैं हूर यानी सफ
े द
फॉम औरतें इस्तलाह में जन्नत िी दो शीज़ाएं कजनिी आंखें खास
तौर पर बहुत खूबसूरत होगी क़
ु रआन पाि में उनिा कज़क्र िई
जगह पर आया है उनिो "दू रे मिनून" مکنون درसे तशबीह दी गई
है उनिी दो शीज़गी िा इस तरह कज़क्र किया गया है कि उससे
पहले उनिो किसी इंसान ने हाथ ना लगाया होगा तज़ि
े रा नवेकसयों
ने उनि
े समायल ि
े मुतास्मल्लक़ मुिकलफ ख्याल आराईया िी है
उनि
े कलबास वा जवाहेरात िी उम्दा तफसील बयान िी है और
बताया है कि उनिा खमीर मुश्क अंबर और िपूर से तैयार किया
गया है सूकफया-ए-ि
े राम ने भी उनि
े मुतास्मल्लक़ अपने ख्यालात िा
इज़हार किया है जन्नती िो जन्नत में हूर कमलेंगी सवाल पैदा होता है
कि मदर िो तो हुर कमलेगा। मगर औरत िो क्या ?
अगर मान लेते हैं कि मदर िो हुर حور कमलेगी तो हूर लफ्जज़ तो खुद
मुज़क्कर है तो यह हुआ िी मदर यानी मुज़क्कर िो जन्नत में
मुज़क्कर ही कमलने वाला है।
25. 25
मोवन्नस नहीं क्योंकि हूर लफ्जज़ िा मोवन्नस हू-रतुन حورة आती है
और क्या कसफ
र मुसलमान ि
े कलए ही हूर हैं ? बहुत सारे सवालात हो
सिते हैं। क्या है हक़ीक़त हूर िी उसिो जानने ि
े कलए आप हुज़ूर
मसीहे कमल्लत िी किताब" हूर "حور िो पढ़ें यक़ीनन आपिा कदल
मुतमइन हो जाएगा
िलमा-ए-तैय्यब में हम पढ़ते हैं लफ्जज़े इलाह, लफ्जज़े इलाह
जमा है लफ्जज़े अल्लाह िी, अल्लाह नाम है ज़ात वाकहद िा जो
वाकजबुल वजूद है। और इलाह यानी बहुत सारे अल्लाह बहुत सारे
माबूद तो जब ति लफ्जज़े इलाह िा इनिार नहीं िरेंगे तब ति हम
अल्लाह िी वहदाकनयत िा इक़रार नहीं िर सिते हैं तो जब
िलमा में लफ्जज़े इलाह िा इनिार िर कदया तो दू सरी जगह
दुआओं में मुनाजात में तारीफ में तौसीफ में लफ्जज़े इलाह िा
इस्तेमाल दुरुस्त नहीं है और लगभग सभी कसलकसले ि
े शज्राह में
लफ्जज़े इलाही इस्तेमाल किया गया है जैसे या इलाही िा लफ्जज़
इस्तेमाल हुआ है जो कबि
ु ल दुरुस्त नहीं है यह लफ्जज़ कशि
र िो
बता रहा है ज़्यादा जानिारी ि
े कलए आप पढ़े किताब" ला इलाहा
इल्लल्लाह मुहम्मदुररसूलल्लाह" हाथ में पांच उंगली है और हर
उंगली सबसे अलग है इसी तरह से तौहीद में पांच िलमें हैं और हर
िलमा एि दू सरे से अलग है और सबिा मक़सद और मक़ाम
अलग अलग है ।
26. 26
दुकनया िहती है कि नबी िी 11 बीकवयां हैं लेकिन हुज़ूर
मसीहे कमल्लत फरमाते हैं ि
े नबी िी 11 बीकवयां मानने पर उस
बेकमसाल नबी पर बहुत सारे सवालात होंगे । नबी ि
े ि
ै रेक्टर पर
उंगली उठे गी इस्लाम और बाकनए इस्लाम दागदार हो जाएं गे।
जैसा ि
े ि
ु छ सवाल मुलाकहज़ा िीकजए :-
एि से ज्यादा औरत से कजस मदर िा ताल्लुि हो उसे दुकनया
अय्याश िहते हैं तो क्या माज़ल्लाह नबी-ए-िरीम अय्याश थे।
अगर नबी िी 11 बीकवयां थी तो कसफ
र एि से ही औलाद क्यों बािी
से क्यों नहीं ?
क्या माज़ल्लाह नबी में िोई खराबी थी और हर औरत िी ख्वाकहश
होती है कि वह मां बने तो क्या नबी ने उन औरतों िो उनि
े मां
बनने िा हि नहीं कदया ?
माज़ल्लाह जो नबी पेि में पत्थर बांध लेते थे वह 11 बीकवयों ि
े पेि
ि
ै से भरते थे नबी भूखे रह सिते हैं औरतें नहीं |
नबी फरमाते हैं "तुम में से िौन है मेरी तरह मेरा रब मुझे स्मखलाता
कपलाता है" नबी भूखे रह सिते हैं औरतें नहीं क्योंकि औरतें नबी
िी तरह नहीं है।
27. 27
हज़रत खदीजा िा कनिाह हजरत इमरान ने पढ़ाया और महेर भी
तय किया मगर बाक़ी औरतों िा कनिाह किसने पढ़ाया
हज़रत खदीजा ि
े बाद क्या माज़ल्लाह नबी शादी पर शादी ही िर
रहे थे कि अपनी बेिी िी उम्र िी बच्ची आयशा से भी शादी िर ली
? िहा जाता है कि खलीफा-ए-अव्वल यारे गार थे यानी नबी ि
े
दोस्त और दोस्त िी बेिी अपनी ही बेिी होती है तो क्या नबी अपनी
दोस्त िी बेिी यानी अपनी ही बेिी से शादी िर ली ?
इस तरह ना जाने कितने सवालात होंगे और सवालात लगभग हो ही
रहे हैं मगर आज ति तसल्ली बख्श जवाब किसी ने भी नहीं कदया
हुज़ूर मसीह कमल्लत वाकहद हस्ती है कजसने अपनी किताब में
तसल्ली बख्श जवाब देते हुए उस बेकमसाल नबी िी बेकमसाली िो
अपने ईमान िी रोशनी में उजागर किया है कजससे नबी और
अज़वाजे नबी पर क़यामत ति उठने वाले सवालों िा सद्दे बाब
किया है ।कमसाल ि
े तौर पर क़
ु रआन में जहां-जहां बीवी मुराद
कलया गया है तो उसि
े कलए लफ़्ज़ इम-रतुन िा इस्तेमाल हुआ है
ज़ौज िा नहीं जैसे अबु लहब और उसिी बीवी,
नुह और उनिी बीवी,
युसूफ और उनिी बीवी
तो वहां-वहां इम-रतुन امرة िा लफ़्ज़ इस्तेमाल हुआ है पता चल
जाता है कि नबी िी कितनी बीकवयां थी और नबी िा उन औरतों से
28. 28
क्या ररश्ा था सब मालूम हो जाता है मुिम्मल जानिारी ि
े कलए
पकढ़ए किताब "ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुररसूलल्लाह"
जब किसी िो अपनी बात मनवानी हो तो वह क़सम खाता
है और वह अपनी क़सम नहीं खाता है बस्मि वह कजसिो ज़्यादा
पसंद िरता है उसि
े नज़दीि जो ज्यादा अहेम है वह उसिी
क़सम खाता है तो अल्लाह ने भी क़सम खाई है क़
ु रआन में चार
तरीि
े से अल्लाह ने किसिी क़सम खाई है तो आईए देखते हैं वह
चार तरीक़ा क्या है कजस तरीक़
े से क़सम खाई है पहले ب से
कबल्लाह यानी अल्लाह िी क़सम
दू सरा ت से तल्लाह यानी अल्लाह िी क़सम
तीसरा و से वल्लाह यानी अल्लाह िी क़सम चौथा ل से कलल्लाह
यानी अल्लाह िी क़सम
इन चारों तरीक़
े िा पहला हफ
र ले लीकजए तो क्या होगा यक़ीनन وتبل
होगा यानी रब ताला कजनिी क़सम खाई वह وتبل बुतूल है । गाया ि
े
रब ताला ने ज़हरा िी क़सम खाया है।
किया आप जानते हैं कि ि
ु रान ने आप िो कनयत ि
ै से
िरने िा हुक्म कदया है कमसाल ि
े तौर पर नमाज़ में कनयत िरते हैं
"फज़र िी नमाज़ िी दो सुन्नत िी कनय्यत” – कनयत िी मैंने दो
29. 29
रिअत नमाज़ सुन्नत िी, वास्ते अल्लाह तआला ि
े , वक्त फज़र् िा,
मुह मेरा िाबे शरीफ िी तरफ, अल्लाहु-अिबर
सभी नमाजों िी कनयत में मुह मेरा िाबे शरीफ िी तरफ, बोलते हैं
जब कि ि
ु रान िह रहा है
َر ْطَش َ
كَهْجَو ِٰلَوَف ۚاَهاَضَْرت ًةَلْبِق َ
كَٰنَيِٰلَوُّنَلَف ِۖءاَم َٰالس ِ
ِف َ
كِهْجَو َبُّٰلَقَت ٰىََرن َْدق
ْمُّتُّنكاَم ُّثْيَحَو ِۚامَر َْحلا ِدِج ْسَْملا
ُّهَر ْطَش ُّْمكَهوُّجُّوواُّٰلَوَف
तजरमा: हम देख रहे हैं बार बार आसमान िी तरफ मुंह िरना तो
ज़रूर तुम्हे फ
े र देंगे उस किब्ला िी तरफ कजस में आप िी खुशी है
अभी अपना रुख फ
े र दो मस्मिद हराम िी तरफ,और जहां िहीं भी
हो अपना रूख उसी(मस्मिद हराम)िी तरफ िरो, तो जब रब ने
जब अपना रुख (किब्ला) मस्मिद -ए- हराम िी िरने िा हुक्म
कदया है तो आप अपना रुख (किब्ला) िाबा शरीफ िी तरफ िर
ि
े रब और ि
ु रान िी मुखलफत िर रहे हैं?
तरीित में सलाकसले अरबा यानी चारों कसलकसले
शस्मख्सयत परस्ती में है और शस्मख्सयत परस्ती कफरक़ा बंदी है और
कफरक़ाबंदी ही गुमराही है और गुमराह िभी कसराते मुस्तक़ीम
(ताकलमाते किताब और अहले बैत) पर नही होता और जो खुद
कसराते मुस्तक़ीम पर नही उनिो हक़ िी माररफत नही हो सिती
30. 30
और जो खुद राहे माररफत से हिा हुआ हो वह आपिो माररफत
नही िरा सिता है।
ज़रूरी गुजाररश
इसमें जो ि
ु छ भी सवालात हुऐ हैं उनिा मक़सद कसफ
र और कसफ
र
तालीम है तौहीन या गुस्ताखी नहीं
ऐसे ही बहुत से छोिी बडी गलती हैं कजस पर उम्मते मुस्मस्लमा िो
ध्यान देना चाकहए
इस में जो ि
ु छ भी बातें हुई हैं सब मुिसर बयान हुआ है
ख्वाकहशमंद राब्ता िर सिते हैं
इस्लाम ि
े हर मुतनाज़ा फी मसाइल िा हल कजसमें हर अमन
पसंद िो सही और तसल्ली बख्श जवाब कमलेगा।।
जरी है........
Contact 7602537019
गुसताखी माफ़