राघवदास की इच्छा - http://spiritualworld.co.in
कोपीनेश्वर महादेव के नाम से बम्बई (मुम्बई) के नजदीक थाणे के पास ही भगवन् शिव का एक प्राचीन मंदिर है|
इसी मंदिर में साईं बाबा का एक भक्त उनका पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ गुणगान किया करता था| मंदिर में आने वाला राघवदास साईं बाबा का नाम और चमत्कार सुनकर ही, बिना उनके दर्शन किए ही इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह उनका अंधभक्त बन चुका था और अंतर्मन से प्रेरणा पाकर निरंतर उनका गुणवान किया करता था|
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2. कोपीनेश्वर महादेव के नाम से बम्बई (मुम्बई) के
नजदीक थाणे के पास ही भगवन् िशिव का एक प्राचीन
मंदिदर है|
इसी मंदिदर मे साई बाबा का एक भक उनका पूरी श्रद्धा
और िवश्वास के साथ गुणगान िकया करता था| मंदिदर मे
आने वाला राघवदास साई बाबा का नाम और चमत्कार
सुनकर ही, िबना उनके दशिर्शन िकए ही इतना अधिधिक
प्रभािवत हुआ िक वह उनका अधंदधिभक बन चुका था और
अधंदतमर्शन से प्रेरणा पाकर िनरंदतर उनका गुणवान िकया
करता था|
कई वष र्श पहले उसने साई बाबा का नाम और उनकी
लीलाओ के बारे मे सुना था, परंदतु पिरिस्थितवशि वह
अधब तक बाबा के दशिर्शन करने जाने का सौभाग्य नही
प्राप कर सका था| इस बात का उसे दुःख हर समय
सताता रहता था|
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3. साई बाबा की लीलाओ के िवष य मे सुनाते-सुनाते श्रद्धा
से उसकी आँखो से अधश्रुधिारा बहने लगती थी| वह मन-
ही-मन प्राथर्शना करने लगा - "हे साई बाबा ! क्या मै
इतना ही दुभार्शग्यशिाली हूंद, जो मुझे आपके दशिर्शन करने
का सौभाग्य प्राप नही होगा? क्या मै सदैव ऐसे ही
लाचार रहूंदगा, जो आपके दशिर्शन करने के िलए िशिरडी
आने तक का साधिन भी न जुटा सकूंदगा ? मामूली-सी
नौकरी और उस पर इतने बड़े पिरवार की िजम्मेदारी,
क्या मुझे कभी इस िजम्मेदारी से मुिक नही िमलेगी?“
उसकी आँखो से झर-झर करके आँसू बहे जा रहे थे और
वह अधपने मन की व्यथा अधपने से कई मील दूर अधपने
आराध्य साई बाबा को सुनाये जा रहा था| वह तो हर
क्षण बस साई बाबा के दशिर्शन करने के बारे मे ही सोचता
रहता था, परंदतु धिन के अधभाव के कारण मजबूर था|
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4. इसी वष र्श उसकी िवभागीय परीक्षा भी होनी थी|
यिद वह परीक्षा मे पास हो गया तो उसकी नौकरी
पक्की हो जानी थी| िफिर उसके वेतन मे वृद्धिद्ध हो
जाएगी, िजससे उसकी िजम्मेवािरयो का बोझ कुछ
हल्का हो जाता| वह परीक्षा मे सफिलता िदलाने के
िलए साई बाबा से प्राथर्शना िकया करता था|
समय पर परीक्षा हुई और राघवदास की मेहनत
और प्राथर्शना रंदग लाई| नौकरी पक्की हो गयी और
वेतन मे भी वृद्धिद्ध हो गयी| राघवदास अधत्यंदत प्रसन
था| अधब उसे इस बात का पूरा िवश्वास हो गया था
िक वह साई बाबा के दशिर्शन करने जरूर जा सकेगा|
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5. अब वह अपने रोजमर्रा कर के खर्चो मर्े कटौती करने लगा क|
वह एक-एक पैसा क देखर्भा कलकर खर्चर करता क था क, ता किक वह
जल्द-से-जल्द िशिरडी आने-जा कने ला कयक रकमर् इकट्ठी कर
सके| रा कघवदा कस की लगन ने अपना क रंग िदखर्ा कया क और
शिीघ ही उसके पा कस िशिरडी जा कने ला कयक रकमर् इकट्टा क हो
गयी| उसने बा कजा कर जा ककर पूरी श्रद्धा क के सा कथ ना किरयल
और िमर्श्री प्रसा कद के िलए खर्रीदी| िफिर अपनी पत्नी से
बोला क - " अब हमर् िशिरडी जा कयेगे|“
पत्नी हैरा कनी से उका क मर्ुंह ता कंकने लगी|
"िशिरडी...|" उसे बड़ी हैरा कनी हुई|
"हा कं, िशिरडी|" रा कघवदा कस ने कहा क - "िशिरडी जा ककर हमर्
वहा कं सा कई बा कबा क के दशिरन करेगे|"
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6. "सा कई बा कबा क के दशिरन !" पत्नी ने उदा कस सवर मर्े कहा क - "मर्ै
तो यह सोच रही थी िक आप मर्ुझे कुछ गहना क आिद
बनवा ककर देगे|“
"सुन भा कगयवा कन् ! सा कई बा कबा क से बढकर और कोई दूसरा क
गहना क इस दुिनया क मर्े नही है| तू चल तो सही, िफिर तुझे
असली और नकली गहनो के अंतर के बा करे मर्े पता क चल
जा कयेगा क|“
िफिर वह अपनी पत्नी को सा कथ लेकर िशिरडी के िलए चल
िदया क| वह पूरी या कत्रा क मर्े सा कई बा कबा क का क गुणगा कन करता क
रहा क| िशिरडी की धरती पर कदमर् रखर्ते ही वह िचता क से
मर्ुक हो गया क| उसे ऐसा क लगा क जैसे उसने इस धरती का क
सबसे बड़ा क खर्जा कना क पा क िलया क हो| वह अपने को बहुत
भा कगयशिा कली मर्ा कन रहा क था क|
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7. वह रा कत मर्े िशिरडी पहुंचा क था क| सुबह होने के इंतजा कर मर्े
उसने सा करी रा कत सा कई बा कबा क का क गुणवा कन करते-करते का कट
दी| सा कई बा कबा क के प्रित उसकी श्रद्धा क-भिक देखर्कर सभी
हैरा कन थे| सुबह होते ही पित-पत्नी जल्दी से नहा क-धोकर
तैया कर हो गए और िफिर ना किरयल और िमर्श्री लेकर सा कई
बा कबा क के दशिरन के िलए चल िदए|
द्वा किरका कमर्ा कई मर्िसजद मर्े पहुंचते ही सा कई बा कबा क ने अपनी
सहज और सवा कभा किवक वा कत्सल्यभरी मर्ुसका कन के सा कथ
रा कघवदा कस और उसकी पत्नी का क सवा कगत करते हुए बोले -
"आओ रा कघव, तुम्हे देखर्ने के िलए मर्ेरा क मर्न कब से बेचैन
था क| बहुत अच्छा क हुआ िक तुमर् आ गए|"
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8. रा कघवदा कस और उसकी पत्नी दोनो ने श्रद्धा क के सा कथ सा कई
बा कबा क के चरण सपशिर िकए और िफिर ना किरयल और िमर्श्री
उनके चरणो मर्े अिपत की|
रा कघवदा कस और उसकी पत्नी बड़े आश्चर्यरचिकत थे िक
सा कई बा कबा क को उनका क ना कमर् कैसे मर्ा कलूमर् हुआ ? वे तो
अपने जीवन मर्े पहली बा कर िशिरडी आए थे|
"बैठो रा कघवदा कस बैठो|" सा कई बा कबा क ने उसके िसर पर स्नेह
से हा कथ फिे रकर आशिीवा करद देते हुए कहा क - "तुमर् दोनो
बेवजह इतने परेशिा कन क्यो हो ? आज तुमर्ने मर्ुझे प्रत्यक
रूप से पहली बा कर देखर्ा क है, लेिकन िफिर भी तुमर् मर्ुझे
पहचा कनते थे| ठीक इसी तरह मर्ै भी तुमर् दोनो से न जा कने
कब से पिरिचत हूं| तुमर् दोनो को मर्ै कई वषो से जा कनता क-
पहचा कनता क हूं|"
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9. राघवदास और उसकी पत्नी राधा की खुशी का कोई
िठिकाना न रहा| वे स्वयं को बहुत धन्य मान रहे थे|
बाबा के िशष्य उनके पास ही बैठिे थे| बाबा ने उनकी
ओर देखकर कहा - "आज हम चाय िपयेंगे| चाय
बनवाइए|“
राघवदास भाव-िवभोर होकर बाबा के चरणो से िलिपट
गया और उसकी आँखो से प्रसन्नता के मारे अश्रुधारा बह
िनकलिी और वह रुंधे गलिे से बोलिा - "बाबा ! आप तो
अंतयार्यामी है| आज आपके दशर्यानो का शौभाग्य प्राप कर
मुझे सब कुछ िमलि गया| मै धन्य हो गया| अब मेरे मन
में और िकसी भी वस्तु को पाने की इच्छा बाकी नही है|“
"अरे राघवदास, तुम जैसे लिोग इस संसार में बस िगनती
भर के है| मेरे मन में सदा ऐसे लिोगो के िलिए जगह रहती
है| अब तुम जब भी िशरडी आना चाहो, आ जाना|"
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10. तभी िशष्य चाय लिेकर आ गया| साई बाबा ने राघवदास
और उसकी पत्नी राधा को अपने हाथो से चाय डालिकर
दी| िफिर राघवदास द्वारा लिाई नािरयलि और िमश्री साई
बाबा ने वहां बैठिे भक्तो में बांट दी|
राघवदास और राधा को प्रसाद देने के बाद साई बाबा ने
अपनी जेब में हाथ डालिा और उसमें से दो िसक्के िनकालिे|
एक िसक्का उन्होने राघवदास को और एक िसक्का राधा
को िदया और िफिर हँसते हुए बोलिे - "इन रुपयो को तुम
अपने पूजाघर में संभालिकर अलिग-अलिग रख देना|
इनको खो मत देना| मैने पहलिे भी तुम्हें दो रुपये िदये थे,
लिेिकन तुमने वह खो िदए| यिद वे रुपए खोए होते तो
तुम्हें कोई कष न होता| अब इनको अच्छी तरह से
संभालिकर रखना|"
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11. राघवदास और राधा दोनो ने रुपये अच्छी तरह से
संभालिकर रखे और िफिर साई बाबा को प्रणाम करके
उनसे चलिने के िलिए आज्ञा प्राप की|
द्वािरकामाई मिस्जद से बाहर आते ही राघवदास और
राधा को एकदम से याद आया, बाबा ने कहा था िक मैने
तुम्हें पहलिे भी दो रुपये िदये थे, लिेिकन तुमने खो िदए|
पर हमने तो साई बाबा के दशर्यान आज जीवन में पहलिी
बार िकए है| िफिर बाबा ने हमें दो रुपये कब िदये थे ?
उन्होने एक-दूसरे से पूछा| इन रुपयो वालिी बात उनकी
समझ में नही आयी|
घर पर आने के बाद राघवदास ने अपने माता-िपता को
िशरडी यात्रा की सारी बातें िवस्तार से बताने के बाद
बाबा द्वारा दो रुपये िदये जाने वालिी बात भी बतायी|
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12. तब रुपयो की बात सुनकर राघवदास के माता-िपता की
आँखो में आँसू भर आये| उसके िपता ने कहा - "साई
बाबा ने सत्य कहा है, आज से कई वष र्या पूवर्या मंिदर में एक
महात्मा जी आए थे| वह मंिदर में कुछ िदनो के िलिए रुके
थे| यह उस समय की बात है जब तुम बहुत छोटे थे|
लिोग उन्हें भोलिे बाबा कहकर बुलिाया करते थे| एक िदन
उन्होने मुझे और तुम्हारी माँ को चांदी का एक-एक
िसक्का िदया था और कहा था िक इन रुपयो को अपने
पूजाघर में रख देना| कई वष र्या तक हम उन रुपयो की
पूजा करते रहे और हमारे घर में धन भी िनरंतर आता
रहा| हमें िकसी चीज की कोई कमी नही रही, पर मेरी
बुिद अचानक िफिर गई| मै ईश्वर को भूलि गया और
पूजा-पाठि भी करना छोड िदया था|"
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13. "दीपावली के िदन मैने पूजाघर मे देखा तो वह दोनो
रपये अपनी जगह पर नही थे| मैने सब जगह पर उनहे
ढूंढा, पर वह कही नही िमले| उन रपयो के गायब होते
ही जैसे हमारे घर पर शिन की कूर दृिष पड गई|
वापार ठपप होता चला गया| मकान, दुकान, जेवर
आिद सब कुछ िबक गए| हमे बडी गरीबी मे िदन
िबताने पडे|“
राघवदास ने वह दोनो रपये िनकालकर अपने िपता की
हथेली पर रख िदए| उनहोने बार-बार उन रपयो को
अपने माथे से लगाया, चूमा और िबलख-िबलखकर रोने
लगे|
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साई बाबा के आशीवार्वाद से अब िफिर से राघवदास के
पिरवार के िदन बदलने लगे| उसे अपने ऑफिफिस मे उच
पदक की प्रािप हो गयी| वह हर माह साई बाबा के दशर्वान
करने िशरडी जाता था| साई बाबा के आशीवार्वाद से उसके
पिरवार की मान-प्रितष्ठा, सुख-समृिद िफिर से लौट
आयी थी|