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अध्याय-1
संगीत का आशय
सुव्यवस्थित ध्वनिए जो रस की सृस्टि करेए संगीत कहलाती है। गायिए वादि व िृत्य तीिों क
े समावेश
को संगीत कहते हैं। संगीत िाम इि तीिों क
े एक साि व्यवहार से पडा है। गािाए बजािा और िाचिा प्रायः इतिे
पुरािे है स्जतिा पुरािा आदमी है। बजािे और बाजे की कला आदमी िे क
ु छ बाद में खोजी.सीखी होए पर गािे और
िाचिे का आरंभ तो ि क
े वल हजारों बस्कक लाखों वर्ष पहले उसिे कर ललया होगाए इसमें कोई संदेह िह ं।
गायि मािव क
े ललए प्रायरू उतिा ह थवाभाववक है स्जतिा भार्ण। कब से मिुटय िे गािा प्रारंभ ककयाए
यह बतलािा उतिा ह कठिि है स्जतिा कक कब से उसिे बोलिा प्रारंभ ककया है। परंतु बहुत काल बीत जािे क
े
बाद उसक
े गायि िे व्यवस्थित रूप धारण ककया।
व्युत्पवि
संगीत का आठदम स्रोत प्राकृ नतक ध्वनियााँ ह है। प्राक् संगीत.युग में मिुटय क
े प्रकृ नत की ध्वनियों और
उिकी ववलशटि लय को समझिे की कोलशश की। हर तरह की प्राकृ नतक ध्वनियााँ संगीत का आधार िह ं हो सकतींए
अतरू भाव पैदा करिे वाल ध्वनियों को परखकर संगीत का आधार बिािे क
े साि.साि उन्हें लय में बााँधिे का
प्रयास ककया गया होगा। प्रकृ नत की वे ध्वनियााँ स्जन्होंिे मिुटय क
े मि.मस्थतटक को थपशष कर उकललसत ककयाए
वह सभ्यता क
े ववकास क
े साि संगीत का साधि बिीं। हालांकक ववचारकों क
े लभन्ि.लभन्ि मत हैं। दाशषनिकों िे
िाद क
े चार भागों पराए पश्यन्तीए मध्यमा और वैखर में से मध्यमा को संगीतोपयोगी थवर का आधार मािा।
डाववषि िे कहा कक पशु रनत क
े समय मधुर ध्वनि करते हैं। मिुटय िे जब इस प्रकार की ध्वनि का अिुकरण
आरम्भ ककया तो संगीत का उद्भव हुआ।टर् ् कालष थिम्फ िे भार्ा उत्पवि क
े बाद मिुटय द्वारा ध्वनि की
एकतारता को थवर की उत्पवि मािा। उन्िीसवीं शद क
े उिराद्षध में भारतेन्दु हररश्चन्र िे कहा कक टटसंगीत की
उत्पवि मािवीय संवेदिा क
े साि हुई।टर् ् उन्होंिे संगीत को गािेए बजािेए बतािे ;क
े वल िृत्य मुराओ ं द्वाराद्ध और
िाचिे का समुच्चय बताया।
प्राच्य शाथरों में संगीत की उत्पवि को लेकर अिेक रोचक किाएाँ हैं। देवराज इन्र की सभा में गायकए
वादक व ितषक हुआ करते िे। गन्धवष गाते िेए अप्सराएाँ िृत्य करती िीं और ककन्िर वाद्य बजाते िे।
गान्धवष.कला में गीत सबसे प्रधाि रहा है। आठद में गाि िाए वाद्य का निमाषण पीछे हुआ। गीत की प्रधािता रह ।
यह कारण है कक चाहे गीत होए चाहे वाद्य सबका िाम संगीत पड गया। पीछे से िृत्य का भी इसमें अन्तभाषव हो
गया। संसार की स्जतिी आयष भार्ाएाँ हैं उिमें संगीत शब्द अच्छे प्रकार से गािे क
े अिष में लमलता है।
श्संगीतश् शब्द टसम़्ग्रर् ् धातु से बिा है। अन्य भार्ाओ ं में टसंर् ् का स्टसंर् ् हो गया है और टगैर् ् या टगार् ्
धातु ;स्जसका भी अिष गािा होता हैद्ध ककसी ि ककसी रूप में इसी अिष में अन्य भार्ाओ ं में भी वतषमाि है। ऐंग्लो
सैक्सि में इसका रूपान्तर है स्टसंगिर् ् ;ेेपदहंदद्ध जो आधुनिक अंरेजी में स्टसंगर् ् हो गया हैए आइसलैंड की भार्ा
में इसका रूप है स्टसगर् ् ;ेेपदहरंद्धए ;क
े वल वणष ववन्यास में अन्तर आ गया हैएद्ध डैनिश भार्ा में है स्टसंग
;ेैलदहमद्धए डच में है स्टत्संगिर् ् ;जेपदहमदद्धए जमषि में है स्टसंगेिर् ् ;ेेपदहमदद्ध। अरबी में टगिार् ् शब्द है
जो टगािर् ् से पूणषतः लमलता है। सवषप्रिम टसंगीतरत्िाकरर् ् रन्ि में गायिए वादि और िृत्य क
े मेल को ह
टसंगीतर् ् कहा गया है। वथतुतः टगीतर् ् शब्द में टसम्र् ् जोडकर टसंगीतर् ् शब्द बिाए स्जसका अिष है टगाि सठहतर् ्।
िृत्य और वादि क
े साि ककया गया गाि टसंगीतर् ् है। शाथरों में संगीत को साधिा भी मािा गया है।
प्रामाणणक तौर पर देखें तो सबसे प्राचीि सभ्यताओ ं क
े अवशेर्ए मूनत षयोंए मुराओ ं व लभविचचरों से जाठहर
होता है कक हजारों वर्ष पूवष लोग संगीत से पररचचत िे। देव.देवी को संगीत का आठद प्रेरक लसफष हमारे ह देश में
िह ं मािा जाताए यूरोप में भी यह ववश्वास रहा है। यूरोपए अरब और फारस में जो संगीत क
े ललए शब्द हैं उस पर
ध्याि देिे से इसका रहथय प्रकि होता है। संगीत क
े ललए यूिािी भार्ा में शब्द टमौलसकीर् ् ;उिेपुिमद्धए लैठिि में
टमुलसकार् ् ;उिेपबंद्धए फ्ांसीसी में टमुसीकर् ् ;उिेपुिमद्धए पोतुषगी में टमुलसकार् ् ;उिेपबंद्धए जमषि में मूलसकर् ्
;उिेपाद्धए अंरेजी में टम्यूस्जकर् ् ;उिेपबद्धए इब्रािीए अरबी और फारसी में टमोसीकीर् ्। इि सब शब्दों में साम्य
है। ये सभी शब्द यूिािी भार्ा क
े टम्यूजर् ्;उिेमद्ध शब्द से बिे हैं। टम्यूजर् ् यूिािी परम्परा में काव्य और संगीत
की देवी मािी गयी है। कोश में टम्यूजर् ् ;उिेमद्ध शब्द का अिष ठदया है स्टद इन्सपायररंग गडडेस फफ सााँगर् ्
अिाषत ् टगाि की प्रेररका देवीर् ्। यूिाि की परम्परा में टम्यूजर् ् ट्यौसर् ्;े्रमिेद्ध की कन्या मािी गयी हैं। ्यौसर् ्
शब्द संथकृ त क
े टद्यौथर् ् का ह रूपान्तर है स्जसका अिष है टथवगषर् ्। ट्यौसर् ् और टम्यूजर् ् की धारण ब्रह्मा और
सरथवती से बबलक
ु ल लमलती.जुलती है।
भारतीय संगीत भारतीय संगीत का एक सबसे बडा संगीत का स्रोत सामवेद को भी मािा जाता है सामवेद पूरा का
पूरा संगीत का ह ज्ञाि है।
भारतीय संगीत का जन्म वेद क
े उच्चारण में देखा जा सकता है। संगीत का सबसे प्राचीितम रन्ि भरत मुनि का
िाट्य शाथर है। अन्य रन्ि हैं रू बृहद्देशीए दविलम ्ए संगीतरत्िाकर।
संगीत एवं आध्यात्म भारतीय संथकृ नत का सुदृढ़ आधार है। भारतीय संथकृ नत आध्यात्म प्रधाि मािी जाती रह है।
संगीत से आध्यात्म तिा मोक्ष की प्रस्प्त क
े साि भारतीय संगीत क
े प्राण भूत तत्व रागों क
े द्वारा मिः शांनतए
योग ध्यािए मािलसक रोगों की चचककत्सा आठद ववशेर् लाभ प्राप्त होते है। प्राचीि समय से मािव संगीत की
आध्यास्त्मक एवं मोहक शस्क्त से प्रभाववत होता आया है।
प्राचीि मिीवर्यों िे सृस्टि की उत्पवि िाद से मािी है। ब्रह्माण्ड क
े सम्पूणष जड.चेति में िाद व्याप्त हैए इसी
कारण इसे टिाद.ब्रह्मश् भी कहते हैं।
अिाठदनिधिं ब्रह्म शब्दतवायदक्षरम ् ।
वववतषते अिषभावेि प्रकिया जगतोयतः॥ख ्1,
अिाषत ् शब्द रूपी ब्रह्म अिाठदए वविाश रठहत और अक्षर है तिा उसकी वववतष प्रकिया से ह यह जगत भालसत
होता है। इस प्रकार सम्पूणष संसार अप्रत्यक्ष रूप से संगीतमय हैं। संगीत एक ईश्वर य वाणी है। अतः यह ब्रह्म रूप
ह हैं । संगीत आिन्द का अववभाषव है तिा आिन्द ईश्वर का थवरूप है। संगीत क
े माध्यम से ह ईश्वर को प्राप्त
ककया जा सकता है। योग व ज्ञाि क
े सवषश्रेटि आचायष श्री याज्ञवकक्य जी कहते हैं .
वीणावादितत्वज्ञः श्रुनतजानतववशारदः।
तालश्रह्िाप्रयासेि मोक्षमागष च गच्छनत।ख ्2,
संगीत एक प्रकार का योग है। इसकी ववशेर्ता है कक इसमें साध्य और साधि दोिों ह सुखरूप हैं। अतः
संगीत एक उपासिा हैए इस कला क
े माध्यम से मोक्ष प्रास्प्त होती है। यह कारण है कक भारतीय संगीत क
े सुर
और लय की सहायता से मीराए तुलसीए सूर और कबीर जैसे कववयों िे भक्त लशरोमणण की उपाचध प्राप्त की और
अन्त में ब्रह्म क
े आिन्द में ल ि हो गए। इसीललए संगीत को ईश्वर प्रास्प्त का सुगम मागष बताया गया है। संगीत
में मि को एकार करिे की एक अत्यन्त प्रभावशाल शस्क्त है तभी से ऋवर् मुनि इस कला का प्रयोग परमेश्वर का
आराधिा क
े ललए करिे लगे।
संगीत का अिष
संगीत की व्युत्पनत श्सम ् गै ;गािाद्ध े कतश् है अिाषत ् टगैर् ् धातु में टसमर् ् उपसगष लगािे से यह शब्द बिता
है। टगैर् ् का अिष है दृ टगािार् ् और सम ;संद्ध एक अव्ययए हैए स्जसका व्यवहार समािताए संगनतए उत्कृ टिताए
निरन्तरताए औचचत्य आठद को सूचचत करिे क
े ललये ककया जाता है। अतरू संगीत का अिष.र् ्उत्कृ टिए पूणष तिा
औचचत्यपूणष ढ़ग से गायिर् ् मािा जा सकता है।
संगीत शब्द टगीतर् ् में सम ् उपसगष लगाकर बिा है। टसम्र् ् अिाषत टसठहतर् ् और टगीतर् ् अिाषत ् टगािर् ्। टगाि क
े
सठहतर् ्ए वादि एवं अंगभूत कियाओ ं ;िृत्यद्ध क
े साि ककया हुआ कायष संगीत कहलाता है।
पस्श्चम में संगीत क
े ललए टम्यूस्जकर् ् ;डिेपबद्ध शब्द का प्रयोग ककया गया है। म्यूस्जक शब्द की व्युत्पवि रीक
शब्द टडविेपामर् ् से मािते हैं। वथतुतरू इस शब्द का मूल थवतरू म्यूज ;डिेमद्ध शब्द में है। रीक परम्परा में यह
शब्द उि देववयों क
े ललए प्रयुक्त संज्ञा हैए जो ववलभन्ि लललत कलाओ ं की अचधटिरी मािी जाती है। यहााँ भी पहले
टम्यूजर् ् संगीत कला की देवी को ह मािा जाता िा।
अरबी परम्परा में संगीत का समािािषक शब्द टमूसीकीर् ् है। इसकी व्युत्पनत टमूलसकार् ् शब्द से मािी जाती है।
टमूलसकार् ् यूिािी भार्ा में आवाज को कहते भारतीय संगीत की प्राचीिताए उत्पवि एवं काल ववभाजि हैंए
इसललए.इकमे.मूसीकी ;संगीत.कलाद्ध र् ्आवाजों यािी रागों का इकमर् ् कहलािे लगा।
प्राचीि संथकृ त वाड़्मय में टसंगीतर् ् का व्युत्पविगत अिष टसम्यक गीतमर् ् रहा है। वराहोपनिर्द् की निम्ि पंस्क्त से
इसी अिष का बोध थपटि होता है.टसंगीतताललयवाद्यवंश गतावप मौललथिक
ु म्भपररक्षणधनिषि वर् ्।।
संगीत की पररभार्ा
भातखण्डे जी क
े अिुसारए श्गीत वाद्य तिा िृत्यण्इि तीिों कलाओ ं का समावेश टसंगीतर् ् शब्द में होता है।
वथतुतरू ये तीिो कलाएाँ थवतन्र हैए ककन्तु गीत प्रधाि होिे क
े कारण तीिों का समावेश टसंगीतर् ् में ककया जाता
है।
संगीत चचन्तामणण क
े अिुसारए श्संगीतश् एक व्यापक शब्द है। गीत वाद्य और िृत्य तीिों लमलकर संगीत कहलाते
हैए स्जसमें गीत प्रधाि तत्व हैए वाद्य उसका अिुकारक है और िृत्य उपरंजक हैए अिाषत ् वाद्य गीत का अिुकरण
करता हें और िृत्य वाद्य का। संगीत शब्द का प्राचीि पयाषय तायैबरक है।
संगीतसार क
े अिुसारए दृ टसंगीतर् ् गायिए वादि एवं िृत्य क
े माध्यम से वांनछत भाव उत्पन्ि करिे वाल रचिा
है। वाथतव में संगीत कला थवरए ताल और लय क
े सन्तुललत लमश्रण की मधुर सुर ल रचिा है। जो प्राणणमार क
े
चचि का एकदम आिंठदत कर देती है।
डा0 शरच्चन्र श्रीधर परांजपे िे संगीत का अिष समझाते हुए टसंगीत ण् रत्िाकरर् ् क
े मत का ह समिषि ककया है।
संगीत रत्िाकर क
े अिुसार संगीत की पररभार्ा निम्िािुसार है. श्संगीत एक अस्न्वनत हैए स्जसमें गीतए वाद्य तिा
िृत्य तीिों का समावेश है। संगीत शब्द में व्यस्क्तगत तिा समूहगत दोिों ववचधयों की अलभव्यंजिा थपटि है। इसी
कारण व्यस्क्तगत गीतए वादि एवम ् ितषि क
े साि समूहगािए समूहवादि तिा समूहितषि का समावेश इसक
े
अन्तगषत होता है। मािक ठहन्द
शब्दकोश क
े अिुसार. श्मधुर ध्वनियों या ववलशटि नियमों क
े अिुसार और क
ु छ ववलशटि रूप से होिे वाले रंजक
प्रथफ
ु िि को संगीत कहते हैं।
इस प्रकार उपयुषक्त पररभार्ाओ ं क
े आधार पर हम कह सकते है कक संगीत मुख्यतरू गायिए वादि तिा िृत्य इि
तीिों का संयोग ह टसंगीतर् ् कहलाता है।
संगीत क
े मुख्य तत्व
संगीत क
े तीि मूलभूत तत्व थवरए लय तिा ताल मािें गये है और इन्हें ईश्वर प्रदि मािा जाता है। िाद संगीत
का स्रोत है।
थवर
थवरों की उत्पवि इसी शाश्वत ध्वनि से मािी जाती है। टिादाधीि जगत ् सवषम्र् ् से ह सम्पूणष जगत की ध्वनि
उसक
े िादए श्रुनतए थवर एंव संगीत की व्याख्या पूणष हो जाती है। संगीत का मौललक उपकरण थवर है जो आहत
िाद से उत्पन्ि होता है। संगीत उपयोगी मधुर िाद से उत्पन्ि बाईस श्रुनतयों में मुख्य बारह श्रुनतयों को थवर कहते
है।।
इि थवरों क
े िाम इस प्रकार है. र्ड़्जए ऋर्भए गंधारए मध्यमए पंचम धैवत तिा निर्ाद। शुद्ध एवं ववकृ त. थवरों
क
े मुख्यतरू दो प्रकार मािे गये है।
लय
लय को संगीत का आवश्यक एवं महत्वपूणष तत्व मािा गया है। लय क
े अभाव में संगीत का कायष संचालि नितान्त
असंभव है। यठद संगीत क
े थवर रूपहल आभा ववखेरते हैं तो लय संगीत को गनत प्रदाि कर भावपूणष एवं माधुयषपूणष
बिाती है। कोई भी कला तभी प्राणवाि होती है जब उसमें गनत समाठहत हो जाती है। लय अिवा गनत क
े द्वारा
संगीतात्मक अलभव्यस्क्त की थवतंरता अिुशालसत होती है।
लय संगीत में लगिे वाले समय को अपिे बन्धि में बााँधकर संगीत को कणषवप्रय एवं सौन्दयषपूणष बिा देती है। यठद
लय क्षणमार भी अपिे कायष से हि जाये तो लय ववह ि संगीत अिाकर्षक एवं कणष किु बि जाती है।
संगीत में थवर को लय से अचधक महिा प्रदाि की जाती है परन्तु लय का महत्व भी थवर से कम िह ं है। भले ह
संगीत में थवर को लय से अचधक महत्व ठदया जाये परन्तु थवर लय क
े बन्धि में बंधकर ह पररमास्जषत होता है।
यह लयबद्ध या गनतबद्ध थवर ह संगीत कला की कसौि है। स्टकसी भी राग का ववथतार करते समय अलापए
तािए बोलतािए सरगम आठद लय पर आधाररत होते है। लयववह ि थवर ववथतार को ि तो पूणष कहा जा सकता है
और ि ह वह आिन्द क
े सृजि योग्य होती है।
लय क
े द्वारा ह राग क
े वाद ए सम्वाद और अिुवाद थवरों की थिापिा होती है। लय से गायि व वादि में एक
िमता आ जाती है स्जससे संगीत में आत्मकता उत्पन्ि हो जाती है और ध्वनि का एक नियलमत िम मि को
ववचचर आिन्द की अिुभूनत करािे में सफल हो पाता है। अथतुए लय थवरों क
े संचालि को नियलमत कर सांगीनतक
रचिा को सजीवता प्रदाि करती है। लय.तत्व सम्पूणष सृस्टि में व्याप्त है। हमारा सम्पूणष जीवि लय से ह नियंबरत
होता है।
संगीत में नियलमत गनत को लय कहा गया है और ववलस्म्बतए मध्य तिा रुत लय. लय क
े तीि प्रकार मािे गये है
ववववध प्रकार क
े लयों में बंधकर थवर िािाववध भावों का प्रनतपादि करते हैं। तालों में भी गीत भेदकर रस उरेक
सम्भव हो पाता है। करूणए श्रृंगारए रौरए वीभत्स आठद रसों क
े ललये तालों की ववलभन्ि गनतयों का बहुत महत्व
होता है। लय की ये ववलभन्ि गनतयां मािव क
े उद्वेगों ;संवेगोंद्ध को थपशष कर उसे आिस्न्दत कर देती हैं और
संगीतकार तिा श्रोता दोिों क
े हृदय में ववलभन्ि भाव उत्पन्ि करती है।
ववलस्म्बत लय में स्थिरता एवं गम्भीर होिे क
े कारण तालों की ववलस्म्बत लय श्रोताओ ं क
े हृदय में शान्त भाव का
संचार करती है। तालों की मध्य लय या गनत हाथयए श्रृंगार करूण व वात्सकय रस से पूणष भावों का संचार करती
है। रुत लय में चपलता आ जािे क
े कारण तालों की रुत गनत श्रृंगारए वीरए रौर अद्भुत आठद रस उत्पन्ि करती
है।
ताल
संगीत में थवर तिा लय क
े बाद ताल का भी ववशेर् महत्वपूणष थिाि है। संगीत में समय िापिे क
े साधि को ताल
कहते है जो ववभागों और माराओ ं क
े समूह से बिता है। इसे हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कक लय िापिे क
े
साधि कोए जो माराओ ं का समूह होता हैए वह ताल कहलाता है। ताल लय को प्रकि करिे की प्रकिया है।
संगीत की उत्पवि
धालमषक आधार
संगीत उतिा ह प्राचीि एवं अिाठद है स्जतिी मािव जानत । आठदकाल से भारत में संगीत का सम्बन्ध ईश्वर की
उपासिा और धालमषक कृ त्यों से रहा है। यह सावषभौम तथ्य है कक संगीत की उत्पवि देवी देवताओ ं से हुई है संगीत
मकरन्द क
े रचनयता िारद जी िे भी संगीत की उत्पवि ब्रम्हाजी से मािी है। ककन्तु आचायष शारंगदेव क
े संगीत
रत्िाकर में संगीत की उत्पवि सदालशव से मािी गयी है ।
शारंगदेव िे संगीतोत्पवि से लेकर िलमक युग क
े अिेक ववद्वािों क
े िामों की सूची द हैए स्जसमें सदालशवए लशवए
ब्रम्हाए दुगाषए शस्क्तए वायुए रंभाए अजुषिए िारद आठद पौराणणक िामों क
े साि.साि भरतए कश्यप मुनिए मतंगए
कोहलए दविलए तुम्बरूए रूरिए िान्यदेवए भोजराज आठद ऐनतहालसक व्यस्क्तयों क
े भी िाम है।
भारतीय परम्परा में संगीत कला क
े जिक क
े रूप में दो आठददेव मािे गये है.सृस्टि क
े रचनयता ब्रम्हा तिा
डमरूधार भगवाि शंकर। संगीतोत्पवि का आधार धमष माििे वालों का यह भी मत है कक संगीत क
े जन्म का शीर्ष
प्रणव र् ्ऊर् ् शब्द एकाकार होते हुए भी अए उए म इि तीि ध्वनियों से निलमषत हुआ है। इसक
े तीि अक्षर िमशरू
सृस्टि पालि और ववलय क
े द्योतक है। इसमें तीिो अक्षर तीि शस्क्तयों को प्रदलशषत करते है। अ.सृस्टिकताष ब्रह्मा
उत्पवि कारक उ.पालिकताषए रक्षकए शस्क्त क
े प्रतीक ववटणु तिा म.संहारकारक महेर् शस्क्त थवरूप भगवाि शंकर
।
तीिों शस्क्तयों का समाववटि रूप बरमूनत ष ह परमेश्वर है। इसललये थवर ईश्वर को एक रूप मािा गया है। शब्द
और थवर दोिों की उत्पवि र् ्ओमर् ् से हुई है। पहले थवर उत्पन्ि हुआ तदुरान्त शब्द। वथतुतरू जो ओम ् की साधिा
कर पाते है वह यिािष में संगीत का रूप समझ पाते है। इसमें थवर लयए ताल सभी क
ु छ निठहत है। यह शब्द
संगीत क
े जन्म का कारण है।
मिोवैज्ञानिक आधार
मिोवैज्ञानिकों का कहिा है कक जैसे.जैसे मािव श्रलमक ववकास की सीठढ़यााँ चढ़ता गया वैसे ह ववलभन्ि कलायें
उसक
े ववकलसत जीवि से जुडती चल गयी । अतरू संगीत आठद सभी कलाओ ं का िलमक ववकास हुआ है। बालक
क
े जन्म लेते ह उसक
े कण्ि से रोिे की ध्वनि निकलती हैए गायि और वादि इसी ध्वनि क
े सहज ववकास से
हुआ है। मिोवैज्ञानिकों की दृस्टि में टकला संवेगों का अलभव्यस्क्तकरण है।
संगीत ममषज्ञ फ्ायड का लसद्धान्त है कक टडिेपब पे ें चेलबीवसवहपबंस दममक ेंदक दंजितंस चतवबमेेेर् ्
इसललए मिोवैज्ञानिकों िे संगीत कला क
े संबंध में भी यह मािा है कक मािव िे अपिी ववलभन्ि भाविाओ ं को
ऊ
ाँ ची.िीची ध्वनियों की सहायता से अलभव्यक्त ककया और उसी से संगीत की उत्पवि हुई।
प्राकृ नतक आधार
ववद्वािों िे प्रकृ नत को भी संगीतोपवि का आधार मािा है। क
ु छ ववद्वािों का मत है कक संगीत की उत्पवि में
पशु.पक्षक्षयों की ववलभन्ि ध्वनियों का योगदाि है। ववलभन्ि पशु.पक्षक्षयों की ध्वनि क
े श्रवण क
े अनतररक्त भी मािव
िे संगीत.मय वातावरण का अवलोकि करते हुए प्रकृ नत से उद्द भूत ववलभन्ि मधुर ध्वनियों का श्रवण ककया। उसे
झरिों तिा सररताओ ं की कलकल मेंए सागर की उिती चगरती तरंगों में ििखि पवि क
े मधुर झोंकों मेंए वृक्ष क
े
पकलवों मेंए वर्ाष की बूाँदों में प्रथफ
ु ठित हुई ध्वनि सुिाई द । धीरे.धीरे मािव िे उिका अिुकरण करिा प्रारम्भ ककया
इससे उसक
े जीवि में सरसता का समावेश हुआ और उसिे इस सरसता को स्थिर रखिे क
े ललए तिा मधुर
प्राकृ नतक ध्वनियों को और अचधक सुन्दर बिािे क
े ललए थवरों का ववचार ककया। कहिे का तात्पयष है कक सांगीनतक
ध्वनि का आठद थरोत टप्राकृ नतक ध्वनिर् ् ह है।
संगीतोत्पवि संबंधी ववलभन्ि आधारों का अवलोकि करिे पर कहा जा सकता है कक संगीत की उत्पवि प्रकृ नत से हुई
है। यठद गूढ़ता से ववचार ककया जाये तो संगीतोत्पवि का मूलाधार ईटवर रचचत प्रकृ नत से ह प्राप्त हुये है। बस अंतर
क
े वल इतिा ह है कक प्रकृ नत में समाववटि टिादर् ् तिा टगनतर् ् क
े ह पररश्कृ त रूप टथवरर् ् और टलयर् ् क
े रूप में
प्रथफ
ु ठित हुये है।
सुव्यवस्थित ध्वनि जो रस की सृस्टि करे संगीत कहलाती है। गयि-वादि व िृत्य तीिों क
े समावेश को
संगीत कहते है। संगीत िाम इि तीिों क
े एक साि व्यवहार से पडा है। गयि मािव क
े ललए प्रायः उतिा ह
थवाभाववक है स्जतिा भार्ण। बजािे और बाजे की कला आदमी िे क
ु छ बाद में खोजी-सीखी हो पर गािे और
िाचिे का आरंभ तो ि क
े वल हजारों बककी लाखों वर्ष पहले उसिे कर ललया हो इसमें कोई संदेह िह ।
गायि मािव क
े ललए प्रायः उतिा ह थवभाववक है स्जतिा भार्ण। कब से मिुटय िे गािा प्रारंभ ककया
यह बतलािा उतिा ह कठिि है स्जतिा की कब से उसिे बोलिा प्रारंभ ककया है। पंरतु बहुत काल बीत जािे क
े
बाद उसक
े गायि में व्यवस्थित रूप धारण ककया।
संगीत की प्रमुख शैललयााँ व ववधाएं
प्रमुख गायि शैललयााँ भारतीय संगीत का उद्भव वैठदक काल में हुआ। एक मान्यता क
े अिुसार सृस्टि क
े रचनयता
ब्रह्मा िे मािव जानत में अमि और चैि क
े एक िए युग का निमाषण करिे क
े ललए ववश्व को संगीत की लशक्षा देिे
अपिे पुर मिीशी िारद को पृथ्वी पर भेजा। संगीतए कला का एक प्राचीितम रूप है जो हर युग में भारतीय
संथकृ नत और परम्परा क
े वैभव को प्रनतबबस्म्बत करता रहा है। अपिे उद्भव से लेकर आज तक संगीत को ववकास
की अिेक अवथिाओ ं से गुजरिा पडा है स्जसिे कला की सृजिात्मक भव्यता को पुिरू पाररभावर्त ककया है। िए
ऐनतहालसक और सांथकृ नतक अिुसंधािों से पता चलता है कक भारतीय संगीत िे लभन्ि.लभन्ि परम्पराओ ं और
संथकृ नत से जुडे लोगों क
े बीच से गुजरते हुए ककतिा कठिि सफर तय ककया है। देश की अिेक जानतयों की संगीत
शैललयों का लमश्रण भारत जातीय ववववधता को व्यक्त करता हैए जो अन्य ककसी भी राटर में िह ं है। वैठदक काल
क
े दौराि संगीत सबसे पहले मंरोच्चारण क
े रूप में शुरू हुआ िाए स्जिका उच्चारण एक थवर य गायि की पध्दनत
में ककया जाता िाए स्जसका अिष है एक थवर में गािा। इि मंरों िे शिैरूशिैरू श्गािा गायिश् का रूप ले ललया
जो दोहरे थवर में गायि की पध्दनत है। वाथतव में वैठदक थवरए दोहरे थवर और ऐसी अन्य पध्दनतयों में वैठदक
मंरों क
े गायि से सात थवरों की स्जसे श्सप्ताथवराश् कहा जाता हैए का सूरपात हुआ। वैठदक काल क
े आधुनिक
अध्ययिों से पता चलता है कक हर घर में संगीत को कला क
े एक उत्कृ टि रूप में सम्माि ठदया जाता िा। इस
संदभष मेंए गुप्तकाल ि संगीतए स्जसिे भारतीय संगीत क
े ववकास में एक महत्वपूणष योगदाि ठदयाए भारतीय संगीत
क
े इनतहास में सदैव गुंजायमाि है। भरतमुनि द्वारा रचचत श्िाट्यशाथरश्ए भारतीय संगीत क
े इनतहास का प्रिम
ललणखत प्रमाण मािा जाता है। इसकी रचिा क
े समय क
े बारे में कई मतभेद हैं। आज क
े भारतीय शाथरीय संगीत
क
े कई पहलुओ ं का उकलेख इस प्राचीि रंि मंत लमलता है। भरतमुनि क
े श्िाट्यशाथरश् क
े बाद शारंगदेव द्वारा
रचचत श्संगीत रत्िाकरश् ऐनतहालसक दृस्टि से सबसे महत्त्वपूणष रंि मािा जाता है। आधुनिक भारतीय संगीत स्जसे
देश में श्संगीतश् क
े िाम से जािा जाता हैए क
े ववकास से हुए कई िए.िए पररवतषिों िे इस कला को सरल बिा
ठदया है।शाथरीय संगीत का आधारभारतीय शाथरीय संगीत थवरों व ताल क
े अिुशालसत प्रयोग पर आधाररत है। सात
थवरों व बाईस श्रुनतयों क
े प्रभावशाल प्रयोग से ववलभन्ि तरह क
े भाव उत्पन्ि करिे की चेटिा की जाती है। सात
थवरों क
े समूह को श्सप्तकश् कहा जाता है। भारतीय संगीत सप्तक क
े ये सात थवर इस प्रकार हैं.र्डज
;साद्धऋर्भ ;रेद्धगंधार ;गद्धमध्यम ;मद्धपंचम ;पद्धधैवत ;धद्धनिर्ाद ;निद्धश्सप्तकश् को मूलतरू तीि वगों में
ववभास्जत ककया जाता है. श्मन्र सप्तकश्ए श्मध्य सप्तकश् व श्तार सप्तकश्ए अिाषत सातों थवरों को तीिों
सप्तकों में गाया और बजाया जा सकता है। र्ड्ज व पंचम थवर अचल थवर कहलाते हैंए क्योंकक इिक
े थिाि में
ककसी तरह का पररवतषि िह ं ककया जा सकता और इन्हें इिक
े शुद्ध रूप में ह गाया बजाया जा सकता है। जबकक
अन्य थवरों को उिक
े कोमल व तीव्र रूप में भी गाया जाता है। इन्ह ं थवरों को ववलभन्ि प्रकार से गूाँि कर रागों की
रचिा की जाती है। निरपवाद रूप से यह माि ललया गया है कक भारतीय संगीत क
े तीि रूप हैंरू थवर संगीतए
वाद्य संगीत और िृत्य। संगीत क
े ये तीिों माध्यम भारतीय शाथरीय संगीत क
े दो प्रमुख रूप हैंए िामतरू उिर
भारतीय शाथरीय संगीत अिवा ठहन्दुथतािी शाथरीय संगीतए और दक्षक्षण भारत का शाथरीय संगीत अिवा किाषिक
ठहन्दुथतािी संगीत।ठहन्दुथतािी संगीत . मािा जाता है कक ठहन्दुथतािी शाथरीय संगीत क
े इनतहास का प्रारम्भ लसंधु
घाि की सभ्यता क
े काल में हुआ हालांकक इस दावे क
े एकमार साक्ष्य हैं उस समय की एक िृत्य बाला की मुरा में
कांथय मूनत ष और िृत्यए िािक और संगीत क
े देवता रूर अिवा लशव की पूजा का प्रचलि। लसंधु घाि की सभ्यता
क
े पति क
े पश्चात ् वैठदक संगीत की अवथिा का प्रारम्भ हुआ स्जसमें संगीत की शैल में भजिों और मंरों क
े
उच्चारण से ईश्वर की पूजा और अचषिा की जाती िी। इसक
े अनतररक्त दो भारतीय महाकाव्यों.रामायण और
महाभारत की रचिा में संगीत का मुख्य प्रभाव रहा।ऋ
ं गारए प्रकृ नत और भस्क्त ये ठहन्दुथतािी शैल क
े प्रमुख ववर्य
हैं। तबला वादक ठहन्दुथतािी संगीत में लय बिाये रखिे में मददगार लसद्ध होते हैं। तािपुरा एक अन्य संगीत
वाद्ययंर हैए स्जसे पूरे गायि क
े दौराि बजाया जाता है। अन्य वाद्ययंरों में सारंगी व हारमोनियम शालमल हैं।
फारसी संगीत क
े वाद्ययंरों और शैल ए इि दोिों का ह ठहन्दुथतािी शैल पर काफी हद तक प्रभाव पडा है।प्रमुख
रूपसंगीत की ठहन्दुथतािी शैल क
े निम्ि रूप हैं.;1ण्द्ध ध्रुपद . यह गायि की प्राचीितम एवं सवषप्रमुख शैल है।
ध्रुपद गायि शैल में ईश्वर व राजाओ ं का प्रशस्थत गाि ककया जाता है। इसमें बृजभार्ा की प्रधािता होती है।;2ण्द्ध
ख़्याल . यह ठहन्दुथतािी शाथरीय संगीत की सबसे लोकवप्रय गायि शैल मािी जाती है। ख़्याल की ववर्य वथतु
राजथतुनतए िानयका वणषि और श्रृंगार रस आठद होते हैं।;3ण्द्ध धमार . इसका गायि भारत क
े प्रमुख त्योहारों में से
एक होल क
े अवसर पर होता है। धमार गायि में प्रायरू भगवाि श्रीकृ टण और गोवपयों क
े होल खेलिे का वणषि
ककया जाता है।;4ण्द्ध िु मर . िु मर गायि में नियमों की अचधक जठिलता िह ं ठदखाई देती है। यह एक भाव
प्रधाि तिा चपल चाल वाला श्रृंगार प्रधाि गीत है। इस शैल का जन्म अवध क
े िवाब वास्जदअल शाह क
े राज
दरबार में हुआ िा।;5ण्द्ध िप्पा . ठहन्द लमचश्रत पंजाबी भार्ा का श्रृंगार प्रधाि गीत िप्पा है। यह गायि शैल
चंचलता व लच्छेदार ताि से युक्त होती है। भारत में सांथकृ नतक काल से लेकर आधुनिक युग तक आते.आते
संगीत की शैल और पध्दनत में जबरदथत पररवतषि हुआ है।प्रमुख संगीतकार . भारतीय संगीत क
े इनतहास क
े महाि
संगीतकारों जैसे कक काल दासए तािसेिए अमीर खुसरो आठद िे भारतीय संगीत की उन्िनत में बहुत योगदाि ककया
है स्जसकी कीनत ष को पंडडत रवव शंकरए भीमसेि गुरूराज जोशीए पंडडत जसराजए प्रभा अरेए सुकताि खाि आठद
जैसे संगीत प्रेलमयों िे आज क
े युग में भी कायम रखा हुआ है।किाषिक शैल .भारतीय शाथरीय संगीत क
े दक्षक्षण
भारतीय रूप को किाषिक संगीत क
े िाम से जािा जाता है और संगीत की इस शैल में कई वाद्यों को प्रयोग ककया
जाता है जैसे कक वायललिए वीणाए मृंदगम आठद। किाषिक संगीत दक्षक्षण भारत क
े तलमलिाडुए क
े रलए आंध्र प्रदेश
और किाषिक रायों में प्रचललत है। किाषिक संगीत का ववर्य मुख्यतरू धालमषक भजि होते हैं। स्जिमें ठहन्दू
देवी.देवताओ ं की थतुनत की जाती है। किाषिक शाथरीय शैल में रागों का गायि अचधक तेज और ठहन्दुथतािी शैल
की तुलिा में कम समय का होता है। त्यागराजए मुिुथवामी द क्षक्षतार और श्यामा शाथरी को किाषिक संगीत शैल
की बरमूनत ष कहा जाता हैए जबकक पुरंदर दास को अक्सर किाषिक शैल का वपता कहा जाता है। किाषिक शैल क
े
ववर्यों में पूजा.अचषिाए मंठदरों का वणषिए दाशषनिक चचंतिए िायक.िानयका वणषि और देशभस्क्त शालमल हैं।शैल क
े
प्रमुख रूपकिाषिक शैल क
े प्रमुख रूप इस प्रकार हैं.;1ण्द्ध वणषम . इसक
े तीि मुख्य भाग श्पकलवीश्ए
श्अिुपकलवीश् तिा श्मुक्तयीश्वरश् होते हैं। वाथतव में इसकी तुलिा ठहन्दुथतािी शैल की िु मर क
े साि की जा
सकती है।;2ण्द्ध जावाल . यह प्रेम प्रधाि गीतों की शैल है। भरतिाट्यम क
े साि इसे ववशेर् रूप से गाया जाता
है। इसकी गनत काफी तीव्र होती है।;3ण्द्ध नतकलािा . उिर भारत में प्रचललत श्तरािाश् क
े समाि ह किाषिक
संगीत में नतकलािा शैल होती है। यह भस्क्त प्रधाि गीतों की गायि शैल है।किाषिक शाथरीय संगीत क
े प्रचारकों िे
अपिी अिन्त रचिाओ ं क
े माध्यम से अंतरराटर य क्षेर में तरंगें पैदा कर द हैं। अपिी इन्ह ं रचिाओ ं क
े कारण
उन्हें कई पुरथकार और सम्माि प्रदाि ककए गए हैं और इस प्रकार वे इस क्षेर क
े कीनत ष थतम्भ बि गए हैं। इस
क्षेर क
े क
ु छ महाि संगीतकारों क
े िाम इस प्रकार हैं. एमण्एसण् सुब्बुलक्ष्मीए मदुरै मणण अय्यरए एमण्एसण्
बालासुब्रह्मणयम आठद।
संगीत की ववधाओ ं में शाथरीय संगीत, लोक संगीत, लोक िृत्य, शाथरीय िृत्य, वादि कला, जैसे तबला, मृदंगा, लसतार,
चगिार,, वाेयललि, सरोद, संतूर, बााँसूर सुर मंडल एवं शाथरीय िृत्य स्जसमें भरत िािषम, कत्िक िृत्य, ओडडसी,
गणणपुर आठद शालमल हे इि सभी का समावेश एक शब्द संगीत क
े अंतगषत है।
अध्याय-2
संगीत में वाद्य मंरो की भूलमकाः- भारतीय शाथरीय संगीत में वाद्यों का महत्व प्राचीि काल से ह रहा है वाद्य
संगीत में संगीत क
े मूल तत्व थवर और लय क
े माध्यम से ककसी अन्य तत्व की सहायता क
े बबिा मिुटय को
अलौककक आिंद प्रदाि करिे की क्षमता ववद्यमाि है। संगीत क
े द्वारा उत्कृ टि अलभव्यस्क्त वाद्य संगीत में ह
संभव है जो कक गायि और िृत्य में िह है। लसद्धांत रूप से, कोई भी वथतु जो ध्वनि पैदा करती है, वाद्य यंर
कह जा सकती है। वाद्य यंर का इनतहास, मािव संथकृ नत की शुरूआत से प्रारंभ होता है। वाद्ययंर का शैक्षणणक
अध्ययि अंरजी में ओगेिोलोजी कहलाती है। क
े वल वाद्य यंर क
े उपयोग से की गई संगीत रचिा वाद्य संगीत
कहलाती है।
वाद्य यन्र
एक वाद्य यंर का निमाषण या प्रयोगए संगीत की ध्वनि निकालिे क
े प्रयोजि क
े ललए होता है। लसद्धांत रूप सेए
कोई भी वथतु जो ध्वनि पैदा करती हैए वाद्य यंर कह जा सक शैक्षणणक अध्ययिए अंरेजी में ओगेिोलोजी
कहलाता है। क
े वल वाद्य यंर क
े उपयोग से की गई संगीत रचिा वाद्य संगीत कहलाती है।
संगीत वाद्य क
े रूप में एक वववाठदत यंर की नतचि और उत्पवि 67ए000 साल पुरािी मािी जाती हैय कलाकृ नतयां
स्जन्हें सामान्यतः प्रारंलभक बांसुर मािा जाता है कर ब 37ए000 साल पुरािी हैं। हालांककए अचधकांश इनतहासकारों
का माििा है कक वाद्य यंर क
े आववटकार का एक ववलशटि समय निधाषररत कर पािाए पररभार्ा क
े व्यस्क्तपरक
होिे क
े कारण असंभव है।
वाद्ययंरए दुनिया क
े कई आबाद वाले क्षेरों में थवतंर रूप से ववकलसत हुएण् हालांककए सभ्यताओ ं क
े बीच संपकष क
े
कारण अचधकांश यंरों का प्रसार और रूपांतरण उिक
े उत्पवि थिािों से दूर.दूर तक हुआ। मध्य युग तकए
मेसोपोिालमया क
े यंरों को मलय द्वीपसमूह पर देखा जा सकता िा और उिर अफ्ीका क
े यंरों को यूरोप में बजाया
जा रहा िा। अमेररका में ववकास धीमी गनत से हुएए लेककि उिरए मध्य और दक्षक्षण अमेररका की संथकृ नतयों िे
वाद्ययंरों को साझा ककया।
भारत क
े वाद्य यंर
इंडडयि ककचर पोिषल क
े वाद्य यंर अिुभाग में पूरे भारत क
े ववलभन्ि वाद्य यंरों की जािकार है। इंडडयि ककचर
पोिषल िे हमारे देश क
े अिचगित उत्कृ टि वाद्य यंरों क
े ववर्य में शोध ककया है और उन्हें यहााँ प्रथतुत करिे में
पोिषल को प्रसन्िता है। इि यंरों की मारा और ववववधता बहुत ववशाल है और हम इस अिुभाग में जािकार
जोडते रहेंगे।
भरत मुनि क
े िाट्य शाथर ;२०० ईसा पूवष और २०० ईसवी में रचचतद्ध में वाद्य यंरों को चार समूहों में एकबरत
ककया गया हैरू अविद्ध वाद्य ; ताल वाद्यद्धए घि वाद्य ;िोस वाद्यद्ध ए सुवर्र वाद्य ;वायु वाद्यद्धए और
तत वाद्य ;तार वाले वाद्यद्धण्भारत क
े वाद्य यंरों का भरत मुनि द्वारा ठदया गया यह प्राचीि वगीकरण १२वीं
सद में यूरोप में अपिाया गया और यूरोप क
े वाद्य यंरों क
े वगीकरण में उपयोग ककया गया। बाद मेंए चार वगों
को यूिािी िाम ठदए गए . तत वाद्य क
े ललए कोरडोफोन्सए अविद्ध वाद्य क
े ललए मेमब्रािोफोन्सए सुवर्र वाद्य
क
े ललए एरोफोन्सए और घि वाद्यों क
े ललए फिोफोन्स। इस प्रकार पाश्चात्य वगीकरण प्रणाल प्राचीि भारतीय
िाट्य शाथर पर आधाररत है।
प्राचीि भारतीय मूनत षयों और चचरों में उि वाद्य यंरों का उपयोग दशाषया गया है स्जन्हें हम आज देखते हैं।
चमडाए लकडीए धातु और लमिि क
े बतषि जैसी चीजो सठहत कई ववलभन्ि वथतुओ ं क
े उत्पादि प्रकिया में उपयोग
क
े कारण वाद्य यंरों को बिािे में महाि कौशल की आवश्यकता होती है और संगीत और ध्वनिक लसद्धांतों की
भी। भारतीय शाथरीय संगीत की दो प्रमुख परंपराएाँ हैं . ठहंदुथतािी और कणाषिक। साि ह ए लोकए जिजातीयए
इत्याठद जैसी और कई अन्य परंपराएाँ भी हैं। प्राचीि काल सेए इि परंपराओ ं क
े भारतीय संगीतकारों िेए अपिी
शैल क
े अिुरूपए पारंपररक और देशज वाद्य यंरों का ववकास ककया और उन्हें बजाया। इसललएए भारत क
े वाद्य
यंरों की एक समृद्ध ववरासत है और ये इस देश की सांथकृ नतक परंपराओ ं का अलभन्ि अंग हैं।
वाद्य यंरों की भूलमका
इलेक्रानिक संगीत उपकरणों से संगीत को प्रया ेेग आ ेैर वर्क्षण दोिों क ेे ललये ह एक बहुत बडा सहारा लमल
गया ह ेै। एक ओर जहां कलाकार को स्थिर सुर और ताल में रुठिह ि प्रथतुनत की ओर प्र ेेररत करते है। वह ं
कठिि आरस्म्भक वर्ों में संगीत क ेे ववद्यािी का ेे सुर लय आठद की सि क समझ प ेैदा करिे में मदद करते
ह ेै ें। ककसी भी प्राकृ नतक पररवतषि से अप्रभाववत इलेक्रानिक वाद्य सदैव सुर ले रहते ह ेैें। लसफष बिि दबाते
ह थवतः चलिे वाले ये वाद्य ववद्यािी और कलाकार को ककसी भी थिाि पर, ककसी भी समय, मिचाह अवचध
तक निरन्तर एक सी संगनत क ेे साि ररयाज करिे का मा ेैका देते ह ेै ें।
रामोफा ेेि क ेे आववटकार िे संगीत सीखिा सभी क
े ललए सुलभ कर ठदया। प ेुरािे घरािेदार िामचीि गायका
ेेें की गायकी आ ेैर बस्न्दर्ों आठद को संगीत ववद्याचिष यों क ेे ललए इि उपकरणों िे आसाि की है। आज
ववद्यािी ररकाडष प्लेयर, िेप, कम्प्यूिर, थि ररया ेे और म्यूस्जक लसथिम की मदद से कलमया ेेें को निकाल
सकता है।
इलेक्राेनिक तािपूरा, तबला पेि आठद से ववद्यािी सहज में ह अपिा अभ्यास कर सकता ह ेै। लसन्ि ेेसाइजर
जैसे इलेक्राेनिक इन्थूमेन्ि िे अलग-अलग प्रकार क ेे वाद्य यन्रा ेेें का ेे एक ह की-बा ेेडष पर सम्भव
बिाकर चमत्कार ह कर ठदया है। इसीललए आज सामान्य जि-जीवि आ ेैर कफकम संगीत में इस की-बोडष
(लसन्िेसाइजर) का सवाष चधक महत्व ह ेै। यहां िेल ववजि जैसे श्रव्य एव ें दृश्य उपकरण िे मिोरंजि एव ें
संगीत क ेे क्षेर में एक िास्न्तकार ववकास ककया हैं। आज का ेेई भी घर-पररवार ए ेेसा िह ं जहां िेल ववजि क
े
रूप में यह छोिा सा लसिेमा थकोप ि हा ेे।
वद्युतीय वाद्य तबला, तािपूरा इत्याठद संगीत वर्क्षाचिषयों क ेे अभ्यास आठद में सहया ेेगी लसद्ध ह ेुए। इि
ववलभन्ि माध्यमों स ेे संगीत क ेे क्षेर में सकारात्मक आ ेैर िकारात्मक दोिों प्रभावों को अिुभव ककया जा
सकता ह ेै। िेपररकाडषर में ररकाडष करिे का या अन्य कलाकारों का ध्वन्या ेंकि सुिकर गायकी बिािे का चलि
ववद्याचिषया ेेें में उत्पन्ि हा ेेिे लगा ह ेै। संगीत क ेे ललए माइिा ेेफोि ववज्ञाि की सबसे बडी देि है। इस
उपकरण िे संगीत की आन्तररक दुनिया को ह बदल ठदया ह ेै। जो संगीत पहले क ेुछ ह श्रा ेेताआ ेेें क ेे
बीच सीलमत िा, अब माइिोफा ेेि क ेे जररये श्रा ेेताआ ेेें की संख्या में बढ़ोिर हुई।
गायि क ेे साि-साि वाद्य यंरा ेेें क ेे प्रचार में ध्वनि ववथतारक यंरा ेेें का बह ेुत बडा या ेेगदाि रहा।
ध्वनि ववथतारक यंर की अिुपस्थिनत में लसतार या सरोद पर ककया गया मी ेंड, गमक या मुकी , कृ न्ति आठद का
बार क काम सीलमत श्रा ेेता ह सुि सकते िे और बडी-बडी सभाआ ेेें में क ेेवल मंच क ेे पास ब ेैिे श्रोता
ह संगीत का आिन्द ले पाते िे। परन्तु आज मीड, गमक, कृ न्ति, मुकी आठद का बार क से बार क काम भी ध्वनि
ववथतारक यंर क ेे माध्यम से द ेूर से दूर ब ेैिे श्रा ेेता का ेे भी थपटि सुिायी देता है। जा ेे वाद्य तार का
ेे खींचकर बजाये जाते ह ेैें, उिमें तार से खींचे सूक्ष्म थवर तिा बाहर थवर की प्रनतध्वनि बडी जकद समाप्त हो
जाती है स्जसका बबिा माइिोफोि क ेे श्रा ेेता तक पह ेुेंचिा कठिि होता ह ेै। माइिा ेेफा ेेि से जा ेे
थवर निबष ल क ेंपि का भी हा ेे वह भी सुथपटि और पररवद्र्चध त रुप में सुिायी पडता ह ेै। इसललए तत और
सुवर्र वाद्यों क ेे प्रदर्षि में इि व ेैज्ञानिक उपकरणों क ेे कारण आटचयषजिक पररवतषि आए तिा इि वाद्या
ेेें का ध्वन्यात्मक प्रभाव बढ़ा आजकल अनत सूक्ष्म माइिा ेेफोि वाद्यों में ह लगाकर कायषिम प्रथतुत ककए
जाते ह ेै ें। स्जसक
े माध्यम से वाद्या ेेें क ेे ध्वन्यात्मक सा ेैन्दयष मे ें पहले की अपेक्षा अचधक वृद्चध हुई
है।
इस प्रकार आधुनिक युग में संगीत क ेे कियात्मक थवरुप का ेे चमत्कारपूणष बिािे में ध्वनिववथतारका ेेें का
या ेेगदाि सराहिीय रहा ह ेै। ये यंर एक ओर कलाकारा ेेें की ध्वनि की तीव े्रता को बढ़ाते ह ेैें वह ं
दूसर आ ेेर उिकी ध्वनि क ेे प्रथतार क्षेर का ेे ध्याि में रखते ह ेुए उसे एक आधार प्रदाि करते ह ेैें।
इिसे उच्च आवृवि की ध्वनियों में सस्न्िव ेेर् उत्पन्ि करिे क ेे ललए आवृवियों क ेे संतुलि में सहायता प्राप्त
होती ह ेै तिा वाद्यों आ ेैर कलाकारा ेेें की ध्वनि में माध ेुयष एवं थपटिता का सृजि भी हा ेेता है। ध्वनि
ववथतारक यंरा ेेें क ेे उपया ेेग में निम्िललणखत तथ्यों का ेे ध्याि में रखिा आवटयक है-
ऽ थपीकसष का उपयोग इस बात का ेे ध्याि में रखकर ककया जािा चाठहए कक ध्वनिववथतारक सभागृह में
लगािा ह ेै या ख ेुले मैदाि में।
ऽ मंच क ेे माइक से थपीकर की समुचचत दूर होिी चाठहए। थपीकर यंर क ेे अत्यंत निकि रखा जािे से
आ ेैर उसका मुंह माइक की आ ेेर होिे से फीडब ेैक निस्टचत रुप से आता ह ेै।
ऽ सभागृह क ेे आकार आ ेैर श्रोताओ ं की संख्या को ध्याि में रखकर थपीकसष की संख्या निस्श्चत करिी
चाठहए।
ऽ माइक उत्कृ टि कोठि क ेे हा ेेिे चाठहए तिा जोडिे वाले तारों का ेे िीक से लगािा चाठहए क्योंकक ख
ेुले तारा ेेें को व ेैसे ह लगा देिे से माइक फ
े ल हा ेेिे की हमेर्ा ह आर्ंका बिी रहती ह ेै।
ध्वनिववथतारक यंर या माइक-
ऽ माइक की सुववधा उपलब्ध होिे से श्रा ेेताआ ेेें की संख्या में व ेृद्चध हु षइ तिा इससे कलाकारों एव ें
संया ेेजकों का ेे आचिषक लाभ प्राप्त हुआ।
ऽ माइक िे कलाकारों की कला क ेे प्रदर्षि का ेे हजारों श्रोताओ ं तक पहुंचािे में सहायता प्रदाि की, स्जससे
श्रोताओ ं क
े बडे समूह में ब ेैिे अ ेंनतम श्रोता क ेे ललए भी कलाकार का ेे सुििा सम्भव हो पाया।
ऽ प्राचीि समय में ध्वनिराहक यंर की अिुपस्थिनत में कलाकार का ेे ऊ
ं चे या तीव े्र थवर में गायि
करिा पडता िा स्जससे संगीत की सूक्ष्मताओ ं में ववकृ नत आ जाती िी। गायि तिा वादि दोिा ेेें ह इससे
प्रभाववत होते ि ेे। ऐसे म ेेें माइक बहुत सहायक लसद्ध हुआ। इसक
े माध्यम से बडे से बडे सभागार में
उपस्थित अिचगित श्रोताओ ं क ेे समक्ष क ेंि या वाद्य की सूक्ष्म ध्वनि को पहु ेंचािा सम्भव हो गया।
ऽ माइक की सहायता से संगीतकारों क ेे क ेंि पर पडिे वाले ववपर त प्रभाव से बचिा सम्भव हो सका
तिा जो पररश्रम उन्ह ेेें पहले करिा पडता िा वह प्रथतुनतकरण माइक की सहायता स ेे सरल हो गया।
ऽ जा ेे वाद्य हककी ध्वनि उत्पन्ि करते ि ेे उिका माइक क
े अभाव में प्रचार िह ं हा ेे पाता िा क्योंकक
उसमें प्रयोग ककए जािे वाले जमजमा, कृ न्ति, मींड मुकी आठद तकिीक ेेें श्रोताआ ेेें तक िह ें पह ेुेंच
पाती िी। जो माइक क ेे कारण पह ेुेंचिी सम्भव हो गषइ और कष इ वाद्या ेेें का एकल प्रथतूस्ेतकरण क
े
रुप में प्रचार सम्भव हो पाया। इसस ेे वीणा, लसतार, बांसुर , सरोद आ ेैर वायललि तिा अन्य वाद्य एकल
प्रथतुनतकरण में अपिा थिाि बिा पाये।
इसमें सन्देह िह ें कक स ेंगीत की वर्क्षा में ववज्ञाि क
े इि उपकरणों का महत्व भ ेुलाया िह ं जा सकता,
लेककि अन्य ववर्यों की भााँनत संगीत का ेे एक ललणखत ववर्य माििा भी इस कला क
े हक में िह ें ह ेै
क्योंकक भारतीय संगीत की ताल म गुरु-मुखी िी आ ेैर ह ेै तिा आगे भी रह ेेगी क्या ेेेंकक ववद्यालय और
ववटवववद्यालयों में भी गुरू मुख से सुिे तो इसक ेे रागा ेेें में लगि ेेवाले ववलभन्ि थवर-लगावों का ेे ववद्यािी
आत्मसात कर सकता ह ेै। इसक
े ललए ता ेे वर्टयों का ेे गुरू क
े आमिे-सामिे हा ेेिा ह पडेगा।
भारतीय स ेंगीत से सम्बस्न्धत शायद ह ए ेेसा कोई कलाकार हा ेेगा जा ेे इलेक्रानिक वाद्ययंरा ेेें स ेे
अपररचचत हा ेे। वतषमाि समय में ववद्यािी से लेकर अिेक बडे-बड ेेे कलाकार भी इि वाद्ययंरा ेेें का प्रया
ेेग प्रत्यक्ष आ ेैर अप्रत्यक्ष रुप स ेे कर रह ेे ह ेैें। 20वीं शताब्द क ेे उिराद्षध में इलेक्रानिक वाद्ययंरा
ेेें का ठहन्दुथतािी संगीत में आगमि ह ेुआ। भारत में इलेक्रानिक वाद्ययंरा ेेें का ेे प्रारम्भ करिे का श्रेय
श्री राजिारायण दम्पवि को जाता ह ेै। यह थवयं उच्च का ेेठि क ेे बााँसुर वादक ह ेै ें। स्जिक
े अिक प्रयत्िों
क
े पररणामथवरुप इलेक्रानिक वाद्ययंरा ेेें का प्रयोग हमारे शाथरीय संगीत में ककया जा रहा ह ेै।
इलेक्राेनिक वाद्ययंरा ेेें क ेे प्रकार- तालोमीिर, इलेक्राेनिक तािप ेूरा, इलेक्राेस्ेिक तबला, इलेक्राेनिक
वीणा, सुिादमाला, थवरुवपिी डडस्जिल थवरमण्डल।
कायषववचध- ये सारे वाद्य 220 वोकि एसी या 110 वोकि एसी दा ेेिा ेेें ह प्रकार से चलते है ें। इसक
े कारण ये
ववटव क
े ककसी भी का ेेिे में प्रया ेेग ककये जा सकते ह ेैें। इिमें ब ेैिर द्वारा संचाललत होिे की सुववधा है।
इसमें थिाई वोकिेज थिेबलाइजर लगा होता ह ेै। स्जससे ये ववद्युत क ेे घििे, बढ़िे से खराब िह होते।
इलेक्राेस्ेिक तािपूरा- भारतीय वाद्य क
े ववकास िम में ववद्युत उपकरणों क ेे द्वारा बिे ये इलेक्रानिक
वाद्ययंर 20वीं एवं 21वीं सद की देि ह ेै ें। ये वाद्य मुख्य रुप स ेे संगत करि ेे वाले वाद्य का आधुनिक
यांबरक रुप ह ेै। सुववधा एव ें आवटयकता क ेे कारण यह संगीत जगत मे ें लोकवप्रय हो गय ेे ह ेै। इसका
आकार बह ेुत छा ेेिा ह ेै और एक थिाि से दूसरे थिाि पर ले जािे म ेेें सुववधाजिक है।
इलेक्राेनिक थवर पेि - इसका प्रया ेेग प्रायः वादि शैल में ककया जाता ह ेै। इससे कलाकार का ेे पूरे वादि
कायषिम में एक आधार थवर लमलता रहता है। इसका आकार छोिा होिे क ेे कारण एक थिाि से दूसरे थिाि पर
ले जािे में सुववधा रहती है। इसललए इसको इलेक्राेनिक थवर प ेेि कहा जाता ह ेै क्योंकक इसे बबजल की
सहायता से बजाया जाता ह ेै।
ववद्युतीय तालमाला- इसका शाथरीय संगीत में ताल वाद्य की दृस्टि से महत्वपूणष थिाि ह ेै। इसक ेे
आववटकारक भी श्री जीराजिारायण ह ेै। इसमें लगभग 35 ताल किाषिक क
े आ ेैर क
ु छ ठहन्दुथतािी संगीत क ेे
भी ताल ववद्यमाि होते ह ेै ें। इसमें ववलभन्ि ताला ेेें को अपिी आवटयकतािुसार अनत ववलस्म्बत, ववलस्म्बत,
मध्य आ ेैर रुत लय में स्थिर ककया जा सकता ह ेै।
म ेेरा ेेिा ेेम- यह एक निस्टचत गनत से ठिक-ठिक की ध्वनि करता हुआ चलता है। स्जसकी गनत को
इच्छािुसार घिाया या बढ़ाया जा सकता है। इसका प्रया ेेग लय का ेे पक्का करिे में ककया जाता है। ववद्याचिष
यों क ेे प्रनतठदि क ेे अभ्यास क ेे ललए यह बह ेुत उपयोगी यंर ह ेै। इसका प्रया ेेग गायि, वादि तिा
िृत्य तीिों क
े ललए ककया जाता है।
लसन्ि ेेसाषइ जर- यह एक ववदेर्ी वाद्य ह ेै स्जसिे आधुनिक संगीत में िास्न्त ला द है। इस पर 72 थवर थिाि
एक साि सुिे जा सकते ह ेै ें। देखिे में यह वपयािों की तरह है। इसक
े द्वारा ववलभन्ि प्रकार की ध्वनियां तिा
ववलभन्ि वाद्ययंरा ेेें की ध्वनियां निकाल जा सकती ह ेैें। जो आवाज हम सोचते ह ेै ें। वह आवाज इस
पर हम निकाल सकते ह ेैें। इस पर ररद्म बाक्स भी लगा रहता है। स्जसक
े द्वारा ववलभन्ि तालों को ववलभन्ि
लयों में सेि ककया जा सकता है।
व ेैज्ञानिक उपकरणा ेेें का स ेंगीत पर िकारात्मक प्रभाव- व ेैज्ञानिक उपकरणों का सबसे बडा िकारात्मक
प्रभाव यह ह ेै कक यह सारे उपकरण बबजल की सहायता से संचाललत हा ेेते ह ेैें। अतएव जब बबजल िह ं हा
ेेती है एवं जहां बबजल किौती अचधक होती ह ेै। वहां व्यस्क्त ि तो ककसी कलाकार से सम्पकष कर पाता ह ेै
आ ेैर ि ह संगीत जगत से जुड पाता ह ेै। अतः इसक ेे लाभ से कलाकार आ ेैर श्रा ेेता वंचचत रह जाता है।
व ेैज्ञानिक उपकरणा ेेें क ेे लाभ उिािे क ेे ललए सम्बस्न्धत उपकरण की आवश्यकता होती ह ेै। जैसे-
रामोफा ेेि का लाभ उिािे क ेे ललये रामोफोि मर्ीि, ई-मेल, इन्िरिेि का लाभ उिािे क
े ललये कम्प्यूिर
उपकरण की आवटयकता होती ह ेै। क
ै सेि क ेे ललये िेपररकाडषर मर्ीि आठद। इि उपकरणों क ेे अभाव में
कलाकार संगीत का लाभ िह ें उिा सकता।
इि उपकरणों क ेे प्रयोग में अत्यचधक सावधािी रखिी पडती ह ेै। मौसम क
े बदलाव, तापमाि और िमी का व
ेैज्ञानिक उपकरणा ेेें पर अत्यचधक प्रभाव पडता ह ेै। जैसे- सीडी, िेपररकाडषर, कम्प्यूिर, ि वी, रेडडया ेे, रामा
ेेफोि इत्याठद।
इि उपकरणों क ेे आववटकार से प ेूवष कलाकार श्रोताओ ं क ेे सामिे ब ेैिकर अपिी प्रथतुनत देता िा स्जसका
प्रभाव श्रा ेेताआ ेेें पर बह ेुत गहरा पडता िा। परन्तु वतषमाि में रेडडया ेे, दूरदर्ष ि, सेिेलाषइ ि, क
ै सेि, सीडी,
इन्िरिेि इत्याठद क ेे द्वारा जो संगीत प्रथतुनत श्रोताओ ं तक पह ेुचती ह ेै उिमें वह सजीवता िह ं होती स्जसक
े
कारण श्रोताओ ं पर उि प्रथतुनतयों का अचधक प्रभाव िह ं पडता।
अचधक समय तक इलेक्राेनिक वाद्ययंर ि वी, रेडडया ेे, रामोफोि, कम्प्यूिर आठद उपकरण प्रयोग में ि आिे पर
इिकी गुणविा में कमी आती ह ेै अिवा तकिीकी खराबी आ जाती है स्जसक
े कारण सुरक्षक्षत रखी ह ेुयी संगीत
सामरी भी िटि हो सकती है। प्रायः ऐसा देखा जाता ह ेै कक बह ेुचचचषत और ख्यानत प्राप्त कलाकारों क ेे
कायषिम आकार्वाणी, दूरदर्ष ि पर अचधक प्रसाररत ककये जाते ह ेै ें तिा रामा ेेफोंि, क
ै सेि, सीडी आठद पर भी
ऐसे ह कलाकारों की ररकाडडष ेंग्स अचधक प्राप्त होती ह ेै। स्जसका उद्देटय कम्पनियों आ ेैर आयोजका ेे द्वारा
आचिष क लाभ कमािा हा ेेता है। इसक
े चलते या ेेग्य एव ें गुणी कलाकारों, स्जिकी ककसी कारण से समाज में
प्रलसद्चध िह ं ह ेै, उन्हें प्रथतुनत देिे का अवसर कम लमल पाता है।
संगीत उपयोगी व ेैज्ञानिक उपकरणो ें की यह क
ु छ समथयाएे हैं जा ेे कक लगभग इि सभी उपकरणा ेेें क
ेे संचालि में प्रायः देखी जाती ह ेै आ ेैर इससे संगीत का क्षेर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाववत हा ेेता है।
प्रत्येक आववटकार लाभ क
े साि क
ु छ िई समथयाओ ं आ ेैर चुिौनतयों का ेे भी जन्म देता ह ेै। तिावप यह
कहिा अत्युस्क्त ि हा ेेगा कक स्जस ओर की हवा बह रह हो, उसी ओर का रूख कर लेिा ि लसफष आगे बढ़िे का
पररचायक ह ेै वरि ् िई सम्भाविाओ ं का जन्मदाता भी होता है। वैज्ञानिक उपकरणों स ेे संगीत वर्क्षा एव ें
प्रसार की भाविा का ेे सकारात्मक रुप में लें ता ेे यह हम सभी क
े ललये सवष श्र ेेटि उपाय होगा।
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Rakesh kumar kushwaha sangeet

  • 1. अध्याय-1 संगीत का आशय सुव्यवस्थित ध्वनिए जो रस की सृस्टि करेए संगीत कहलाती है। गायिए वादि व िृत्य तीिों क े समावेश को संगीत कहते हैं। संगीत िाम इि तीिों क े एक साि व्यवहार से पडा है। गािाए बजािा और िाचिा प्रायः इतिे पुरािे है स्जतिा पुरािा आदमी है। बजािे और बाजे की कला आदमी िे क ु छ बाद में खोजी.सीखी होए पर गािे और िाचिे का आरंभ तो ि क े वल हजारों बस्कक लाखों वर्ष पहले उसिे कर ललया होगाए इसमें कोई संदेह िह ं। गायि मािव क े ललए प्रायरू उतिा ह थवाभाववक है स्जतिा भार्ण। कब से मिुटय िे गािा प्रारंभ ककयाए यह बतलािा उतिा ह कठिि है स्जतिा कक कब से उसिे बोलिा प्रारंभ ककया है। परंतु बहुत काल बीत जािे क े बाद उसक े गायि िे व्यवस्थित रूप धारण ककया। व्युत्पवि संगीत का आठदम स्रोत प्राकृ नतक ध्वनियााँ ह है। प्राक् संगीत.युग में मिुटय क े प्रकृ नत की ध्वनियों और उिकी ववलशटि लय को समझिे की कोलशश की। हर तरह की प्राकृ नतक ध्वनियााँ संगीत का आधार िह ं हो सकतींए अतरू भाव पैदा करिे वाल ध्वनियों को परखकर संगीत का आधार बिािे क े साि.साि उन्हें लय में बााँधिे का प्रयास ककया गया होगा। प्रकृ नत की वे ध्वनियााँ स्जन्होंिे मिुटय क े मि.मस्थतटक को थपशष कर उकललसत ककयाए वह सभ्यता क े ववकास क े साि संगीत का साधि बिीं। हालांकक ववचारकों क े लभन्ि.लभन्ि मत हैं। दाशषनिकों िे िाद क े चार भागों पराए पश्यन्तीए मध्यमा और वैखर में से मध्यमा को संगीतोपयोगी थवर का आधार मािा। डाववषि िे कहा कक पशु रनत क े समय मधुर ध्वनि करते हैं। मिुटय िे जब इस प्रकार की ध्वनि का अिुकरण आरम्भ ककया तो संगीत का उद्भव हुआ।टर् ् कालष थिम्फ िे भार्ा उत्पवि क े बाद मिुटय द्वारा ध्वनि की एकतारता को थवर की उत्पवि मािा। उन्िीसवीं शद क े उिराद्षध में भारतेन्दु हररश्चन्र िे कहा कक टटसंगीत की उत्पवि मािवीय संवेदिा क े साि हुई।टर् ् उन्होंिे संगीत को गािेए बजािेए बतािे ;क े वल िृत्य मुराओ ं द्वाराद्ध और िाचिे का समुच्चय बताया। प्राच्य शाथरों में संगीत की उत्पवि को लेकर अिेक रोचक किाएाँ हैं। देवराज इन्र की सभा में गायकए वादक व ितषक हुआ करते िे। गन्धवष गाते िेए अप्सराएाँ िृत्य करती िीं और ककन्िर वाद्य बजाते िे। गान्धवष.कला में गीत सबसे प्रधाि रहा है। आठद में गाि िाए वाद्य का निमाषण पीछे हुआ। गीत की प्रधािता रह । यह कारण है कक चाहे गीत होए चाहे वाद्य सबका िाम संगीत पड गया। पीछे से िृत्य का भी इसमें अन्तभाषव हो गया। संसार की स्जतिी आयष भार्ाएाँ हैं उिमें संगीत शब्द अच्छे प्रकार से गािे क े अिष में लमलता है। श्संगीतश् शब्द टसम़्ग्रर् ् धातु से बिा है। अन्य भार्ाओ ं में टसंर् ् का स्टसंर् ् हो गया है और टगैर् ् या टगार् ् धातु ;स्जसका भी अिष गािा होता हैद्ध ककसी ि ककसी रूप में इसी अिष में अन्य भार्ाओ ं में भी वतषमाि है। ऐंग्लो सैक्सि में इसका रूपान्तर है स्टसंगिर् ् ;ेेपदहंदद्ध जो आधुनिक अंरेजी में स्टसंगर् ् हो गया हैए आइसलैंड की भार्ा में इसका रूप है स्टसगर् ् ;ेेपदहरंद्धए ;क े वल वणष ववन्यास में अन्तर आ गया हैएद्ध डैनिश भार्ा में है स्टसंग ;ेैलदहमद्धए डच में है स्टत्संगिर् ् ;जेपदहमदद्धए जमषि में है स्टसंगेिर् ् ;ेेपदहमदद्ध। अरबी में टगिार् ् शब्द है जो टगािर् ् से पूणषतः लमलता है। सवषप्रिम टसंगीतरत्िाकरर् ् रन्ि में गायिए वादि और िृत्य क े मेल को ह
  • 2. टसंगीतर् ् कहा गया है। वथतुतः टगीतर् ् शब्द में टसम्र् ् जोडकर टसंगीतर् ् शब्द बिाए स्जसका अिष है टगाि सठहतर् ्। िृत्य और वादि क े साि ककया गया गाि टसंगीतर् ् है। शाथरों में संगीत को साधिा भी मािा गया है। प्रामाणणक तौर पर देखें तो सबसे प्राचीि सभ्यताओ ं क े अवशेर्ए मूनत षयोंए मुराओ ं व लभविचचरों से जाठहर होता है कक हजारों वर्ष पूवष लोग संगीत से पररचचत िे। देव.देवी को संगीत का आठद प्रेरक लसफष हमारे ह देश में िह ं मािा जाताए यूरोप में भी यह ववश्वास रहा है। यूरोपए अरब और फारस में जो संगीत क े ललए शब्द हैं उस पर ध्याि देिे से इसका रहथय प्रकि होता है। संगीत क े ललए यूिािी भार्ा में शब्द टमौलसकीर् ् ;उिेपुिमद्धए लैठिि में टमुलसकार् ् ;उिेपबंद्धए फ्ांसीसी में टमुसीकर् ् ;उिेपुिमद्धए पोतुषगी में टमुलसकार् ् ;उिेपबंद्धए जमषि में मूलसकर् ् ;उिेपाद्धए अंरेजी में टम्यूस्जकर् ् ;उिेपबद्धए इब्रािीए अरबी और फारसी में टमोसीकीर् ्। इि सब शब्दों में साम्य है। ये सभी शब्द यूिािी भार्ा क े टम्यूजर् ्;उिेमद्ध शब्द से बिे हैं। टम्यूजर् ् यूिािी परम्परा में काव्य और संगीत की देवी मािी गयी है। कोश में टम्यूजर् ् ;उिेमद्ध शब्द का अिष ठदया है स्टद इन्सपायररंग गडडेस फफ सााँगर् ् अिाषत ् टगाि की प्रेररका देवीर् ्। यूिाि की परम्परा में टम्यूजर् ् ट्यौसर् ्;े्रमिेद्ध की कन्या मािी गयी हैं। ्यौसर् ् शब्द संथकृ त क े टद्यौथर् ् का ह रूपान्तर है स्जसका अिष है टथवगषर् ्। ट्यौसर् ् और टम्यूजर् ् की धारण ब्रह्मा और सरथवती से बबलक ु ल लमलती.जुलती है। भारतीय संगीत भारतीय संगीत का एक सबसे बडा संगीत का स्रोत सामवेद को भी मािा जाता है सामवेद पूरा का पूरा संगीत का ह ज्ञाि है। भारतीय संगीत का जन्म वेद क े उच्चारण में देखा जा सकता है। संगीत का सबसे प्राचीितम रन्ि भरत मुनि का िाट्य शाथर है। अन्य रन्ि हैं रू बृहद्देशीए दविलम ्ए संगीतरत्िाकर। संगीत एवं आध्यात्म भारतीय संथकृ नत का सुदृढ़ आधार है। भारतीय संथकृ नत आध्यात्म प्रधाि मािी जाती रह है। संगीत से आध्यात्म तिा मोक्ष की प्रस्प्त क े साि भारतीय संगीत क े प्राण भूत तत्व रागों क े द्वारा मिः शांनतए योग ध्यािए मािलसक रोगों की चचककत्सा आठद ववशेर् लाभ प्राप्त होते है। प्राचीि समय से मािव संगीत की आध्यास्त्मक एवं मोहक शस्क्त से प्रभाववत होता आया है। प्राचीि मिीवर्यों िे सृस्टि की उत्पवि िाद से मािी है। ब्रह्माण्ड क े सम्पूणष जड.चेति में िाद व्याप्त हैए इसी कारण इसे टिाद.ब्रह्मश् भी कहते हैं। अिाठदनिधिं ब्रह्म शब्दतवायदक्षरम ् । वववतषते अिषभावेि प्रकिया जगतोयतः॥ख ्1, अिाषत ् शब्द रूपी ब्रह्म अिाठदए वविाश रठहत और अक्षर है तिा उसकी वववतष प्रकिया से ह यह जगत भालसत होता है। इस प्रकार सम्पूणष संसार अप्रत्यक्ष रूप से संगीतमय हैं। संगीत एक ईश्वर य वाणी है। अतः यह ब्रह्म रूप ह हैं । संगीत आिन्द का अववभाषव है तिा आिन्द ईश्वर का थवरूप है। संगीत क े माध्यम से ह ईश्वर को प्राप्त ककया जा सकता है। योग व ज्ञाि क े सवषश्रेटि आचायष श्री याज्ञवकक्य जी कहते हैं . वीणावादितत्वज्ञः श्रुनतजानतववशारदः। तालश्रह्िाप्रयासेि मोक्षमागष च गच्छनत।ख ्2, संगीत एक प्रकार का योग है। इसकी ववशेर्ता है कक इसमें साध्य और साधि दोिों ह सुखरूप हैं। अतः संगीत एक उपासिा हैए इस कला क े माध्यम से मोक्ष प्रास्प्त होती है। यह कारण है कक भारतीय संगीत क े सुर
  • 3. और लय की सहायता से मीराए तुलसीए सूर और कबीर जैसे कववयों िे भक्त लशरोमणण की उपाचध प्राप्त की और अन्त में ब्रह्म क े आिन्द में ल ि हो गए। इसीललए संगीत को ईश्वर प्रास्प्त का सुगम मागष बताया गया है। संगीत में मि को एकार करिे की एक अत्यन्त प्रभावशाल शस्क्त है तभी से ऋवर् मुनि इस कला का प्रयोग परमेश्वर का आराधिा क े ललए करिे लगे। संगीत का अिष संगीत की व्युत्पनत श्सम ् गै ;गािाद्ध े कतश् है अिाषत ् टगैर् ् धातु में टसमर् ् उपसगष लगािे से यह शब्द बिता है। टगैर् ् का अिष है दृ टगािार् ् और सम ;संद्ध एक अव्ययए हैए स्जसका व्यवहार समािताए संगनतए उत्कृ टिताए निरन्तरताए औचचत्य आठद को सूचचत करिे क े ललये ककया जाता है। अतरू संगीत का अिष.र् ्उत्कृ टिए पूणष तिा औचचत्यपूणष ढ़ग से गायिर् ् मािा जा सकता है। संगीत शब्द टगीतर् ् में सम ् उपसगष लगाकर बिा है। टसम्र् ् अिाषत टसठहतर् ् और टगीतर् ् अिाषत ् टगािर् ्। टगाि क े सठहतर् ्ए वादि एवं अंगभूत कियाओ ं ;िृत्यद्ध क े साि ककया हुआ कायष संगीत कहलाता है। पस्श्चम में संगीत क े ललए टम्यूस्जकर् ् ;डिेपबद्ध शब्द का प्रयोग ककया गया है। म्यूस्जक शब्द की व्युत्पवि रीक शब्द टडविेपामर् ् से मािते हैं। वथतुतरू इस शब्द का मूल थवतरू म्यूज ;डिेमद्ध शब्द में है। रीक परम्परा में यह शब्द उि देववयों क े ललए प्रयुक्त संज्ञा हैए जो ववलभन्ि लललत कलाओ ं की अचधटिरी मािी जाती है। यहााँ भी पहले टम्यूजर् ् संगीत कला की देवी को ह मािा जाता िा। अरबी परम्परा में संगीत का समािािषक शब्द टमूसीकीर् ् है। इसकी व्युत्पनत टमूलसकार् ् शब्द से मािी जाती है। टमूलसकार् ् यूिािी भार्ा में आवाज को कहते भारतीय संगीत की प्राचीिताए उत्पवि एवं काल ववभाजि हैंए इसललए.इकमे.मूसीकी ;संगीत.कलाद्ध र् ्आवाजों यािी रागों का इकमर् ् कहलािे लगा। प्राचीि संथकृ त वाड़्मय में टसंगीतर् ् का व्युत्पविगत अिष टसम्यक गीतमर् ् रहा है। वराहोपनिर्द् की निम्ि पंस्क्त से इसी अिष का बोध थपटि होता है.टसंगीतताललयवाद्यवंश गतावप मौललथिक ु म्भपररक्षणधनिषि वर् ्।। संगीत की पररभार्ा भातखण्डे जी क े अिुसारए श्गीत वाद्य तिा िृत्यण्इि तीिों कलाओ ं का समावेश टसंगीतर् ् शब्द में होता है। वथतुतरू ये तीिो कलाएाँ थवतन्र हैए ककन्तु गीत प्रधाि होिे क े कारण तीिों का समावेश टसंगीतर् ् में ककया जाता है। संगीत चचन्तामणण क े अिुसारए श्संगीतश् एक व्यापक शब्द है। गीत वाद्य और िृत्य तीिों लमलकर संगीत कहलाते हैए स्जसमें गीत प्रधाि तत्व हैए वाद्य उसका अिुकारक है और िृत्य उपरंजक हैए अिाषत ् वाद्य गीत का अिुकरण करता हें और िृत्य वाद्य का। संगीत शब्द का प्राचीि पयाषय तायैबरक है।
  • 4. संगीतसार क े अिुसारए दृ टसंगीतर् ् गायिए वादि एवं िृत्य क े माध्यम से वांनछत भाव उत्पन्ि करिे वाल रचिा है। वाथतव में संगीत कला थवरए ताल और लय क े सन्तुललत लमश्रण की मधुर सुर ल रचिा है। जो प्राणणमार क े चचि का एकदम आिंठदत कर देती है। डा0 शरच्चन्र श्रीधर परांजपे िे संगीत का अिष समझाते हुए टसंगीत ण् रत्िाकरर् ् क े मत का ह समिषि ककया है। संगीत रत्िाकर क े अिुसार संगीत की पररभार्ा निम्िािुसार है. श्संगीत एक अस्न्वनत हैए स्जसमें गीतए वाद्य तिा िृत्य तीिों का समावेश है। संगीत शब्द में व्यस्क्तगत तिा समूहगत दोिों ववचधयों की अलभव्यंजिा थपटि है। इसी कारण व्यस्क्तगत गीतए वादि एवम ् ितषि क े साि समूहगािए समूहवादि तिा समूहितषि का समावेश इसक े अन्तगषत होता है। मािक ठहन्द शब्दकोश क े अिुसार. श्मधुर ध्वनियों या ववलशटि नियमों क े अिुसार और क ु छ ववलशटि रूप से होिे वाले रंजक प्रथफ ु िि को संगीत कहते हैं। इस प्रकार उपयुषक्त पररभार्ाओ ं क े आधार पर हम कह सकते है कक संगीत मुख्यतरू गायिए वादि तिा िृत्य इि तीिों का संयोग ह टसंगीतर् ् कहलाता है। संगीत क े मुख्य तत्व संगीत क े तीि मूलभूत तत्व थवरए लय तिा ताल मािें गये है और इन्हें ईश्वर प्रदि मािा जाता है। िाद संगीत का स्रोत है। थवर थवरों की उत्पवि इसी शाश्वत ध्वनि से मािी जाती है। टिादाधीि जगत ् सवषम्र् ् से ह सम्पूणष जगत की ध्वनि उसक े िादए श्रुनतए थवर एंव संगीत की व्याख्या पूणष हो जाती है। संगीत का मौललक उपकरण थवर है जो आहत िाद से उत्पन्ि होता है। संगीत उपयोगी मधुर िाद से उत्पन्ि बाईस श्रुनतयों में मुख्य बारह श्रुनतयों को थवर कहते है।। इि थवरों क े िाम इस प्रकार है. र्ड़्जए ऋर्भए गंधारए मध्यमए पंचम धैवत तिा निर्ाद। शुद्ध एवं ववकृ त. थवरों क े मुख्यतरू दो प्रकार मािे गये है। लय लय को संगीत का आवश्यक एवं महत्वपूणष तत्व मािा गया है। लय क े अभाव में संगीत का कायष संचालि नितान्त असंभव है। यठद संगीत क े थवर रूपहल आभा ववखेरते हैं तो लय संगीत को गनत प्रदाि कर भावपूणष एवं माधुयषपूणष बिाती है। कोई भी कला तभी प्राणवाि होती है जब उसमें गनत समाठहत हो जाती है। लय अिवा गनत क े द्वारा संगीतात्मक अलभव्यस्क्त की थवतंरता अिुशालसत होती है।
  • 5. लय संगीत में लगिे वाले समय को अपिे बन्धि में बााँधकर संगीत को कणषवप्रय एवं सौन्दयषपूणष बिा देती है। यठद लय क्षणमार भी अपिे कायष से हि जाये तो लय ववह ि संगीत अिाकर्षक एवं कणष किु बि जाती है। संगीत में थवर को लय से अचधक महिा प्रदाि की जाती है परन्तु लय का महत्व भी थवर से कम िह ं है। भले ह संगीत में थवर को लय से अचधक महत्व ठदया जाये परन्तु थवर लय क े बन्धि में बंधकर ह पररमास्जषत होता है। यह लयबद्ध या गनतबद्ध थवर ह संगीत कला की कसौि है। स्टकसी भी राग का ववथतार करते समय अलापए तािए बोलतािए सरगम आठद लय पर आधाररत होते है। लयववह ि थवर ववथतार को ि तो पूणष कहा जा सकता है और ि ह वह आिन्द क े सृजि योग्य होती है। लय क े द्वारा ह राग क े वाद ए सम्वाद और अिुवाद थवरों की थिापिा होती है। लय से गायि व वादि में एक िमता आ जाती है स्जससे संगीत में आत्मकता उत्पन्ि हो जाती है और ध्वनि का एक नियलमत िम मि को ववचचर आिन्द की अिुभूनत करािे में सफल हो पाता है। अथतुए लय थवरों क े संचालि को नियलमत कर सांगीनतक रचिा को सजीवता प्रदाि करती है। लय.तत्व सम्पूणष सृस्टि में व्याप्त है। हमारा सम्पूणष जीवि लय से ह नियंबरत होता है। संगीत में नियलमत गनत को लय कहा गया है और ववलस्म्बतए मध्य तिा रुत लय. लय क े तीि प्रकार मािे गये है ववववध प्रकार क े लयों में बंधकर थवर िािाववध भावों का प्रनतपादि करते हैं। तालों में भी गीत भेदकर रस उरेक सम्भव हो पाता है। करूणए श्रृंगारए रौरए वीभत्स आठद रसों क े ललये तालों की ववलभन्ि गनतयों का बहुत महत्व होता है। लय की ये ववलभन्ि गनतयां मािव क े उद्वेगों ;संवेगोंद्ध को थपशष कर उसे आिस्न्दत कर देती हैं और संगीतकार तिा श्रोता दोिों क े हृदय में ववलभन्ि भाव उत्पन्ि करती है। ववलस्म्बत लय में स्थिरता एवं गम्भीर होिे क े कारण तालों की ववलस्म्बत लय श्रोताओ ं क े हृदय में शान्त भाव का संचार करती है। तालों की मध्य लय या गनत हाथयए श्रृंगार करूण व वात्सकय रस से पूणष भावों का संचार करती है। रुत लय में चपलता आ जािे क े कारण तालों की रुत गनत श्रृंगारए वीरए रौर अद्भुत आठद रस उत्पन्ि करती है। ताल संगीत में थवर तिा लय क े बाद ताल का भी ववशेर् महत्वपूणष थिाि है। संगीत में समय िापिे क े साधि को ताल कहते है जो ववभागों और माराओ ं क े समूह से बिता है। इसे हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कक लय िापिे क े साधि कोए जो माराओ ं का समूह होता हैए वह ताल कहलाता है। ताल लय को प्रकि करिे की प्रकिया है। संगीत की उत्पवि धालमषक आधार संगीत उतिा ह प्राचीि एवं अिाठद है स्जतिी मािव जानत । आठदकाल से भारत में संगीत का सम्बन्ध ईश्वर की उपासिा और धालमषक कृ त्यों से रहा है। यह सावषभौम तथ्य है कक संगीत की उत्पवि देवी देवताओ ं से हुई है संगीत
  • 6. मकरन्द क े रचनयता िारद जी िे भी संगीत की उत्पवि ब्रम्हाजी से मािी है। ककन्तु आचायष शारंगदेव क े संगीत रत्िाकर में संगीत की उत्पवि सदालशव से मािी गयी है । शारंगदेव िे संगीतोत्पवि से लेकर िलमक युग क े अिेक ववद्वािों क े िामों की सूची द हैए स्जसमें सदालशवए लशवए ब्रम्हाए दुगाषए शस्क्तए वायुए रंभाए अजुषिए िारद आठद पौराणणक िामों क े साि.साि भरतए कश्यप मुनिए मतंगए कोहलए दविलए तुम्बरूए रूरिए िान्यदेवए भोजराज आठद ऐनतहालसक व्यस्क्तयों क े भी िाम है। भारतीय परम्परा में संगीत कला क े जिक क े रूप में दो आठददेव मािे गये है.सृस्टि क े रचनयता ब्रम्हा तिा डमरूधार भगवाि शंकर। संगीतोत्पवि का आधार धमष माििे वालों का यह भी मत है कक संगीत क े जन्म का शीर्ष प्रणव र् ्ऊर् ् शब्द एकाकार होते हुए भी अए उए म इि तीि ध्वनियों से निलमषत हुआ है। इसक े तीि अक्षर िमशरू सृस्टि पालि और ववलय क े द्योतक है। इसमें तीिो अक्षर तीि शस्क्तयों को प्रदलशषत करते है। अ.सृस्टिकताष ब्रह्मा उत्पवि कारक उ.पालिकताषए रक्षकए शस्क्त क े प्रतीक ववटणु तिा म.संहारकारक महेर् शस्क्त थवरूप भगवाि शंकर । तीिों शस्क्तयों का समाववटि रूप बरमूनत ष ह परमेश्वर है। इसललये थवर ईश्वर को एक रूप मािा गया है। शब्द और थवर दोिों की उत्पवि र् ्ओमर् ् से हुई है। पहले थवर उत्पन्ि हुआ तदुरान्त शब्द। वथतुतरू जो ओम ् की साधिा कर पाते है वह यिािष में संगीत का रूप समझ पाते है। इसमें थवर लयए ताल सभी क ु छ निठहत है। यह शब्द संगीत क े जन्म का कारण है। मिोवैज्ञानिक आधार मिोवैज्ञानिकों का कहिा है कक जैसे.जैसे मािव श्रलमक ववकास की सीठढ़यााँ चढ़ता गया वैसे ह ववलभन्ि कलायें उसक े ववकलसत जीवि से जुडती चल गयी । अतरू संगीत आठद सभी कलाओ ं का िलमक ववकास हुआ है। बालक क े जन्म लेते ह उसक े कण्ि से रोिे की ध्वनि निकलती हैए गायि और वादि इसी ध्वनि क े सहज ववकास से हुआ है। मिोवैज्ञानिकों की दृस्टि में टकला संवेगों का अलभव्यस्क्तकरण है। संगीत ममषज्ञ फ्ायड का लसद्धान्त है कक टडिेपब पे ें चेलबीवसवहपबंस दममक ेंदक दंजितंस चतवबमेेेर् ् इसललए मिोवैज्ञानिकों िे संगीत कला क े संबंध में भी यह मािा है कक मािव िे अपिी ववलभन्ि भाविाओ ं को ऊ ाँ ची.िीची ध्वनियों की सहायता से अलभव्यक्त ककया और उसी से संगीत की उत्पवि हुई। प्राकृ नतक आधार ववद्वािों िे प्रकृ नत को भी संगीतोपवि का आधार मािा है। क ु छ ववद्वािों का मत है कक संगीत की उत्पवि में पशु.पक्षक्षयों की ववलभन्ि ध्वनियों का योगदाि है। ववलभन्ि पशु.पक्षक्षयों की ध्वनि क े श्रवण क े अनतररक्त भी मािव िे संगीत.मय वातावरण का अवलोकि करते हुए प्रकृ नत से उद्द भूत ववलभन्ि मधुर ध्वनियों का श्रवण ककया। उसे झरिों तिा सररताओ ं की कलकल मेंए सागर की उिती चगरती तरंगों में ििखि पवि क े मधुर झोंकों मेंए वृक्ष क े पकलवों मेंए वर्ाष की बूाँदों में प्रथफ ु ठित हुई ध्वनि सुिाई द । धीरे.धीरे मािव िे उिका अिुकरण करिा प्रारम्भ ककया इससे उसक े जीवि में सरसता का समावेश हुआ और उसिे इस सरसता को स्थिर रखिे क े ललए तिा मधुर
  • 7. प्राकृ नतक ध्वनियों को और अचधक सुन्दर बिािे क े ललए थवरों का ववचार ककया। कहिे का तात्पयष है कक सांगीनतक ध्वनि का आठद थरोत टप्राकृ नतक ध्वनिर् ् ह है। संगीतोत्पवि संबंधी ववलभन्ि आधारों का अवलोकि करिे पर कहा जा सकता है कक संगीत की उत्पवि प्रकृ नत से हुई है। यठद गूढ़ता से ववचार ककया जाये तो संगीतोत्पवि का मूलाधार ईटवर रचचत प्रकृ नत से ह प्राप्त हुये है। बस अंतर क े वल इतिा ह है कक प्रकृ नत में समाववटि टिादर् ् तिा टगनतर् ् क े ह पररश्कृ त रूप टथवरर् ् और टलयर् ् क े रूप में प्रथफ ु ठित हुये है। सुव्यवस्थित ध्वनि जो रस की सृस्टि करे संगीत कहलाती है। गयि-वादि व िृत्य तीिों क े समावेश को संगीत कहते है। संगीत िाम इि तीिों क े एक साि व्यवहार से पडा है। गयि मािव क े ललए प्रायः उतिा ह थवाभाववक है स्जतिा भार्ण। बजािे और बाजे की कला आदमी िे क ु छ बाद में खोजी-सीखी हो पर गािे और िाचिे का आरंभ तो ि क े वल हजारों बककी लाखों वर्ष पहले उसिे कर ललया हो इसमें कोई संदेह िह । गायि मािव क े ललए प्रायः उतिा ह थवभाववक है स्जतिा भार्ण। कब से मिुटय िे गािा प्रारंभ ककया यह बतलािा उतिा ह कठिि है स्जतिा की कब से उसिे बोलिा प्रारंभ ककया है। पंरतु बहुत काल बीत जािे क े बाद उसक े गायि में व्यवस्थित रूप धारण ककया। संगीत की प्रमुख शैललयााँ व ववधाएं प्रमुख गायि शैललयााँ भारतीय संगीत का उद्भव वैठदक काल में हुआ। एक मान्यता क े अिुसार सृस्टि क े रचनयता ब्रह्मा िे मािव जानत में अमि और चैि क े एक िए युग का निमाषण करिे क े ललए ववश्व को संगीत की लशक्षा देिे अपिे पुर मिीशी िारद को पृथ्वी पर भेजा। संगीतए कला का एक प्राचीितम रूप है जो हर युग में भारतीय संथकृ नत और परम्परा क े वैभव को प्रनतबबस्म्बत करता रहा है। अपिे उद्भव से लेकर आज तक संगीत को ववकास की अिेक अवथिाओ ं से गुजरिा पडा है स्जसिे कला की सृजिात्मक भव्यता को पुिरू पाररभावर्त ककया है। िए ऐनतहालसक और सांथकृ नतक अिुसंधािों से पता चलता है कक भारतीय संगीत िे लभन्ि.लभन्ि परम्पराओ ं और संथकृ नत से जुडे लोगों क े बीच से गुजरते हुए ककतिा कठिि सफर तय ककया है। देश की अिेक जानतयों की संगीत शैललयों का लमश्रण भारत जातीय ववववधता को व्यक्त करता हैए जो अन्य ककसी भी राटर में िह ं है। वैठदक काल क े दौराि संगीत सबसे पहले मंरोच्चारण क े रूप में शुरू हुआ िाए स्जिका उच्चारण एक थवर य गायि की पध्दनत में ककया जाता िाए स्जसका अिष है एक थवर में गािा। इि मंरों िे शिैरूशिैरू श्गािा गायिश् का रूप ले ललया जो दोहरे थवर में गायि की पध्दनत है। वाथतव में वैठदक थवरए दोहरे थवर और ऐसी अन्य पध्दनतयों में वैठदक मंरों क े गायि से सात थवरों की स्जसे श्सप्ताथवराश् कहा जाता हैए का सूरपात हुआ। वैठदक काल क े आधुनिक अध्ययिों से पता चलता है कक हर घर में संगीत को कला क े एक उत्कृ टि रूप में सम्माि ठदया जाता िा। इस संदभष मेंए गुप्तकाल ि संगीतए स्जसिे भारतीय संगीत क े ववकास में एक महत्वपूणष योगदाि ठदयाए भारतीय संगीत क े इनतहास में सदैव गुंजायमाि है। भरतमुनि द्वारा रचचत श्िाट्यशाथरश्ए भारतीय संगीत क े इनतहास का प्रिम ललणखत प्रमाण मािा जाता है। इसकी रचिा क े समय क े बारे में कई मतभेद हैं। आज क े भारतीय शाथरीय संगीत क े कई पहलुओ ं का उकलेख इस प्राचीि रंि मंत लमलता है। भरतमुनि क े श्िाट्यशाथरश् क े बाद शारंगदेव द्वारा रचचत श्संगीत रत्िाकरश् ऐनतहालसक दृस्टि से सबसे महत्त्वपूणष रंि मािा जाता है। आधुनिक भारतीय संगीत स्जसे
  • 8. देश में श्संगीतश् क े िाम से जािा जाता हैए क े ववकास से हुए कई िए.िए पररवतषिों िे इस कला को सरल बिा ठदया है।शाथरीय संगीत का आधारभारतीय शाथरीय संगीत थवरों व ताल क े अिुशालसत प्रयोग पर आधाररत है। सात थवरों व बाईस श्रुनतयों क े प्रभावशाल प्रयोग से ववलभन्ि तरह क े भाव उत्पन्ि करिे की चेटिा की जाती है। सात थवरों क े समूह को श्सप्तकश् कहा जाता है। भारतीय संगीत सप्तक क े ये सात थवर इस प्रकार हैं.र्डज ;साद्धऋर्भ ;रेद्धगंधार ;गद्धमध्यम ;मद्धपंचम ;पद्धधैवत ;धद्धनिर्ाद ;निद्धश्सप्तकश् को मूलतरू तीि वगों में ववभास्जत ककया जाता है. श्मन्र सप्तकश्ए श्मध्य सप्तकश् व श्तार सप्तकश्ए अिाषत सातों थवरों को तीिों सप्तकों में गाया और बजाया जा सकता है। र्ड्ज व पंचम थवर अचल थवर कहलाते हैंए क्योंकक इिक े थिाि में ककसी तरह का पररवतषि िह ं ककया जा सकता और इन्हें इिक े शुद्ध रूप में ह गाया बजाया जा सकता है। जबकक अन्य थवरों को उिक े कोमल व तीव्र रूप में भी गाया जाता है। इन्ह ं थवरों को ववलभन्ि प्रकार से गूाँि कर रागों की रचिा की जाती है। निरपवाद रूप से यह माि ललया गया है कक भारतीय संगीत क े तीि रूप हैंरू थवर संगीतए वाद्य संगीत और िृत्य। संगीत क े ये तीिों माध्यम भारतीय शाथरीय संगीत क े दो प्रमुख रूप हैंए िामतरू उिर भारतीय शाथरीय संगीत अिवा ठहन्दुथतािी शाथरीय संगीतए और दक्षक्षण भारत का शाथरीय संगीत अिवा किाषिक ठहन्दुथतािी संगीत।ठहन्दुथतािी संगीत . मािा जाता है कक ठहन्दुथतािी शाथरीय संगीत क े इनतहास का प्रारम्भ लसंधु घाि की सभ्यता क े काल में हुआ हालांकक इस दावे क े एकमार साक्ष्य हैं उस समय की एक िृत्य बाला की मुरा में कांथय मूनत ष और िृत्यए िािक और संगीत क े देवता रूर अिवा लशव की पूजा का प्रचलि। लसंधु घाि की सभ्यता क े पति क े पश्चात ् वैठदक संगीत की अवथिा का प्रारम्भ हुआ स्जसमें संगीत की शैल में भजिों और मंरों क े उच्चारण से ईश्वर की पूजा और अचषिा की जाती िी। इसक े अनतररक्त दो भारतीय महाकाव्यों.रामायण और महाभारत की रचिा में संगीत का मुख्य प्रभाव रहा।ऋ ं गारए प्रकृ नत और भस्क्त ये ठहन्दुथतािी शैल क े प्रमुख ववर्य हैं। तबला वादक ठहन्दुथतािी संगीत में लय बिाये रखिे में मददगार लसद्ध होते हैं। तािपुरा एक अन्य संगीत वाद्ययंर हैए स्जसे पूरे गायि क े दौराि बजाया जाता है। अन्य वाद्ययंरों में सारंगी व हारमोनियम शालमल हैं। फारसी संगीत क े वाद्ययंरों और शैल ए इि दोिों का ह ठहन्दुथतािी शैल पर काफी हद तक प्रभाव पडा है।प्रमुख रूपसंगीत की ठहन्दुथतािी शैल क े निम्ि रूप हैं.;1ण्द्ध ध्रुपद . यह गायि की प्राचीितम एवं सवषप्रमुख शैल है। ध्रुपद गायि शैल में ईश्वर व राजाओ ं का प्रशस्थत गाि ककया जाता है। इसमें बृजभार्ा की प्रधािता होती है।;2ण्द्ध ख़्याल . यह ठहन्दुथतािी शाथरीय संगीत की सबसे लोकवप्रय गायि शैल मािी जाती है। ख़्याल की ववर्य वथतु राजथतुनतए िानयका वणषि और श्रृंगार रस आठद होते हैं।;3ण्द्ध धमार . इसका गायि भारत क े प्रमुख त्योहारों में से एक होल क े अवसर पर होता है। धमार गायि में प्रायरू भगवाि श्रीकृ टण और गोवपयों क े होल खेलिे का वणषि ककया जाता है।;4ण्द्ध िु मर . िु मर गायि में नियमों की अचधक जठिलता िह ं ठदखाई देती है। यह एक भाव प्रधाि तिा चपल चाल वाला श्रृंगार प्रधाि गीत है। इस शैल का जन्म अवध क े िवाब वास्जदअल शाह क े राज दरबार में हुआ िा।;5ण्द्ध िप्पा . ठहन्द लमचश्रत पंजाबी भार्ा का श्रृंगार प्रधाि गीत िप्पा है। यह गायि शैल चंचलता व लच्छेदार ताि से युक्त होती है। भारत में सांथकृ नतक काल से लेकर आधुनिक युग तक आते.आते संगीत की शैल और पध्दनत में जबरदथत पररवतषि हुआ है।प्रमुख संगीतकार . भारतीय संगीत क े इनतहास क े महाि संगीतकारों जैसे कक काल दासए तािसेिए अमीर खुसरो आठद िे भारतीय संगीत की उन्िनत में बहुत योगदाि ककया है स्जसकी कीनत ष को पंडडत रवव शंकरए भीमसेि गुरूराज जोशीए पंडडत जसराजए प्रभा अरेए सुकताि खाि आठद
  • 9. जैसे संगीत प्रेलमयों िे आज क े युग में भी कायम रखा हुआ है।किाषिक शैल .भारतीय शाथरीय संगीत क े दक्षक्षण भारतीय रूप को किाषिक संगीत क े िाम से जािा जाता है और संगीत की इस शैल में कई वाद्यों को प्रयोग ककया जाता है जैसे कक वायललिए वीणाए मृंदगम आठद। किाषिक संगीत दक्षक्षण भारत क े तलमलिाडुए क े रलए आंध्र प्रदेश और किाषिक रायों में प्रचललत है। किाषिक संगीत का ववर्य मुख्यतरू धालमषक भजि होते हैं। स्जिमें ठहन्दू देवी.देवताओ ं की थतुनत की जाती है। किाषिक शाथरीय शैल में रागों का गायि अचधक तेज और ठहन्दुथतािी शैल की तुलिा में कम समय का होता है। त्यागराजए मुिुथवामी द क्षक्षतार और श्यामा शाथरी को किाषिक संगीत शैल की बरमूनत ष कहा जाता हैए जबकक पुरंदर दास को अक्सर किाषिक शैल का वपता कहा जाता है। किाषिक शैल क े ववर्यों में पूजा.अचषिाए मंठदरों का वणषिए दाशषनिक चचंतिए िायक.िानयका वणषि और देशभस्क्त शालमल हैं।शैल क े प्रमुख रूपकिाषिक शैल क े प्रमुख रूप इस प्रकार हैं.;1ण्द्ध वणषम . इसक े तीि मुख्य भाग श्पकलवीश्ए श्अिुपकलवीश् तिा श्मुक्तयीश्वरश् होते हैं। वाथतव में इसकी तुलिा ठहन्दुथतािी शैल की िु मर क े साि की जा सकती है।;2ण्द्ध जावाल . यह प्रेम प्रधाि गीतों की शैल है। भरतिाट्यम क े साि इसे ववशेर् रूप से गाया जाता है। इसकी गनत काफी तीव्र होती है।;3ण्द्ध नतकलािा . उिर भारत में प्रचललत श्तरािाश् क े समाि ह किाषिक संगीत में नतकलािा शैल होती है। यह भस्क्त प्रधाि गीतों की गायि शैल है।किाषिक शाथरीय संगीत क े प्रचारकों िे अपिी अिन्त रचिाओ ं क े माध्यम से अंतरराटर य क्षेर में तरंगें पैदा कर द हैं। अपिी इन्ह ं रचिाओ ं क े कारण उन्हें कई पुरथकार और सम्माि प्रदाि ककए गए हैं और इस प्रकार वे इस क्षेर क े कीनत ष थतम्भ बि गए हैं। इस क्षेर क े क ु छ महाि संगीतकारों क े िाम इस प्रकार हैं. एमण्एसण् सुब्बुलक्ष्मीए मदुरै मणण अय्यरए एमण्एसण् बालासुब्रह्मणयम आठद। संगीत की ववधाओ ं में शाथरीय संगीत, लोक संगीत, लोक िृत्य, शाथरीय िृत्य, वादि कला, जैसे तबला, मृदंगा, लसतार, चगिार,, वाेयललि, सरोद, संतूर, बााँसूर सुर मंडल एवं शाथरीय िृत्य स्जसमें भरत िािषम, कत्िक िृत्य, ओडडसी, गणणपुर आठद शालमल हे इि सभी का समावेश एक शब्द संगीत क े अंतगषत है। अध्याय-2 संगीत में वाद्य मंरो की भूलमकाः- भारतीय शाथरीय संगीत में वाद्यों का महत्व प्राचीि काल से ह रहा है वाद्य संगीत में संगीत क े मूल तत्व थवर और लय क े माध्यम से ककसी अन्य तत्व की सहायता क े बबिा मिुटय को अलौककक आिंद प्रदाि करिे की क्षमता ववद्यमाि है। संगीत क े द्वारा उत्कृ टि अलभव्यस्क्त वाद्य संगीत में ह संभव है जो कक गायि और िृत्य में िह है। लसद्धांत रूप से, कोई भी वथतु जो ध्वनि पैदा करती है, वाद्य यंर कह जा सकती है। वाद्य यंर का इनतहास, मािव संथकृ नत की शुरूआत से प्रारंभ होता है। वाद्ययंर का शैक्षणणक अध्ययि अंरजी में ओगेिोलोजी कहलाती है। क े वल वाद्य यंर क े उपयोग से की गई संगीत रचिा वाद्य संगीत कहलाती है। वाद्य यन्र
  • 10. एक वाद्य यंर का निमाषण या प्रयोगए संगीत की ध्वनि निकालिे क े प्रयोजि क े ललए होता है। लसद्धांत रूप सेए कोई भी वथतु जो ध्वनि पैदा करती हैए वाद्य यंर कह जा सक शैक्षणणक अध्ययिए अंरेजी में ओगेिोलोजी कहलाता है। क े वल वाद्य यंर क े उपयोग से की गई संगीत रचिा वाद्य संगीत कहलाती है। संगीत वाद्य क े रूप में एक वववाठदत यंर की नतचि और उत्पवि 67ए000 साल पुरािी मािी जाती हैय कलाकृ नतयां स्जन्हें सामान्यतः प्रारंलभक बांसुर मािा जाता है कर ब 37ए000 साल पुरािी हैं। हालांककए अचधकांश इनतहासकारों का माििा है कक वाद्य यंर क े आववटकार का एक ववलशटि समय निधाषररत कर पािाए पररभार्ा क े व्यस्क्तपरक होिे क े कारण असंभव है। वाद्ययंरए दुनिया क े कई आबाद वाले क्षेरों में थवतंर रूप से ववकलसत हुएण् हालांककए सभ्यताओ ं क े बीच संपकष क े कारण अचधकांश यंरों का प्रसार और रूपांतरण उिक े उत्पवि थिािों से दूर.दूर तक हुआ। मध्य युग तकए मेसोपोिालमया क े यंरों को मलय द्वीपसमूह पर देखा जा सकता िा और उिर अफ्ीका क े यंरों को यूरोप में बजाया जा रहा िा। अमेररका में ववकास धीमी गनत से हुएए लेककि उिरए मध्य और दक्षक्षण अमेररका की संथकृ नतयों िे वाद्ययंरों को साझा ककया। भारत क े वाद्य यंर इंडडयि ककचर पोिषल क े वाद्य यंर अिुभाग में पूरे भारत क े ववलभन्ि वाद्य यंरों की जािकार है। इंडडयि ककचर पोिषल िे हमारे देश क े अिचगित उत्कृ टि वाद्य यंरों क े ववर्य में शोध ककया है और उन्हें यहााँ प्रथतुत करिे में पोिषल को प्रसन्िता है। इि यंरों की मारा और ववववधता बहुत ववशाल है और हम इस अिुभाग में जािकार जोडते रहेंगे। भरत मुनि क े िाट्य शाथर ;२०० ईसा पूवष और २०० ईसवी में रचचतद्ध में वाद्य यंरों को चार समूहों में एकबरत ककया गया हैरू अविद्ध वाद्य ; ताल वाद्यद्धए घि वाद्य ;िोस वाद्यद्ध ए सुवर्र वाद्य ;वायु वाद्यद्धए और तत वाद्य ;तार वाले वाद्यद्धण्भारत क े वाद्य यंरों का भरत मुनि द्वारा ठदया गया यह प्राचीि वगीकरण १२वीं सद में यूरोप में अपिाया गया और यूरोप क े वाद्य यंरों क े वगीकरण में उपयोग ककया गया। बाद मेंए चार वगों को यूिािी िाम ठदए गए . तत वाद्य क े ललए कोरडोफोन्सए अविद्ध वाद्य क े ललए मेमब्रािोफोन्सए सुवर्र वाद्य क े ललए एरोफोन्सए और घि वाद्यों क े ललए फिोफोन्स। इस प्रकार पाश्चात्य वगीकरण प्रणाल प्राचीि भारतीय िाट्य शाथर पर आधाररत है। प्राचीि भारतीय मूनत षयों और चचरों में उि वाद्य यंरों का उपयोग दशाषया गया है स्जन्हें हम आज देखते हैं। चमडाए लकडीए धातु और लमिि क े बतषि जैसी चीजो सठहत कई ववलभन्ि वथतुओ ं क े उत्पादि प्रकिया में उपयोग क े कारण वाद्य यंरों को बिािे में महाि कौशल की आवश्यकता होती है और संगीत और ध्वनिक लसद्धांतों की भी। भारतीय शाथरीय संगीत की दो प्रमुख परंपराएाँ हैं . ठहंदुथतािी और कणाषिक। साि ह ए लोकए जिजातीयए इत्याठद जैसी और कई अन्य परंपराएाँ भी हैं। प्राचीि काल सेए इि परंपराओ ं क े भारतीय संगीतकारों िेए अपिी शैल क े अिुरूपए पारंपररक और देशज वाद्य यंरों का ववकास ककया और उन्हें बजाया। इसललएए भारत क े वाद्य यंरों की एक समृद्ध ववरासत है और ये इस देश की सांथकृ नतक परंपराओ ं का अलभन्ि अंग हैं। वाद्य यंरों की भूलमका
  • 11. इलेक्रानिक संगीत उपकरणों से संगीत को प्रया ेेग आ ेैर वर्क्षण दोिों क ेे ललये ह एक बहुत बडा सहारा लमल गया ह ेै। एक ओर जहां कलाकार को स्थिर सुर और ताल में रुठिह ि प्रथतुनत की ओर प्र ेेररत करते है। वह ं कठिि आरस्म्भक वर्ों में संगीत क ेे ववद्यािी का ेे सुर लय आठद की सि क समझ प ेैदा करिे में मदद करते ह ेै ें। ककसी भी प्राकृ नतक पररवतषि से अप्रभाववत इलेक्रानिक वाद्य सदैव सुर ले रहते ह ेैें। लसफष बिि दबाते ह थवतः चलिे वाले ये वाद्य ववद्यािी और कलाकार को ककसी भी थिाि पर, ककसी भी समय, मिचाह अवचध तक निरन्तर एक सी संगनत क ेे साि ररयाज करिे का मा ेैका देते ह ेै ें। रामोफा ेेि क ेे आववटकार िे संगीत सीखिा सभी क े ललए सुलभ कर ठदया। प ेुरािे घरािेदार िामचीि गायका ेेें की गायकी आ ेैर बस्न्दर्ों आठद को संगीत ववद्याचिष यों क ेे ललए इि उपकरणों िे आसाि की है। आज ववद्यािी ररकाडष प्लेयर, िेप, कम्प्यूिर, थि ररया ेे और म्यूस्जक लसथिम की मदद से कलमया ेेें को निकाल सकता है। इलेक्राेनिक तािपूरा, तबला पेि आठद से ववद्यािी सहज में ह अपिा अभ्यास कर सकता ह ेै। लसन्ि ेेसाइजर जैसे इलेक्राेनिक इन्थूमेन्ि िे अलग-अलग प्रकार क ेे वाद्य यन्रा ेेें का ेे एक ह की-बा ेेडष पर सम्भव बिाकर चमत्कार ह कर ठदया है। इसीललए आज सामान्य जि-जीवि आ ेैर कफकम संगीत में इस की-बोडष (लसन्िेसाइजर) का सवाष चधक महत्व ह ेै। यहां िेल ववजि जैसे श्रव्य एव ें दृश्य उपकरण िे मिोरंजि एव ें संगीत क ेे क्षेर में एक िास्न्तकार ववकास ककया हैं। आज का ेेई भी घर-पररवार ए ेेसा िह ं जहां िेल ववजि क े रूप में यह छोिा सा लसिेमा थकोप ि हा ेे। वद्युतीय वाद्य तबला, तािपूरा इत्याठद संगीत वर्क्षाचिषयों क ेे अभ्यास आठद में सहया ेेगी लसद्ध ह ेुए। इि ववलभन्ि माध्यमों स ेे संगीत क ेे क्षेर में सकारात्मक आ ेैर िकारात्मक दोिों प्रभावों को अिुभव ककया जा सकता ह ेै। िेपररकाडषर में ररकाडष करिे का या अन्य कलाकारों का ध्वन्या ेंकि सुिकर गायकी बिािे का चलि ववद्याचिषया ेेें में उत्पन्ि हा ेेिे लगा ह ेै। संगीत क ेे ललए माइिा ेेफोि ववज्ञाि की सबसे बडी देि है। इस उपकरण िे संगीत की आन्तररक दुनिया को ह बदल ठदया ह ेै। जो संगीत पहले क ेुछ ह श्रा ेेताआ ेेें क ेे बीच सीलमत िा, अब माइिोफा ेेि क ेे जररये श्रा ेेताआ ेेें की संख्या में बढ़ोिर हुई। गायि क ेे साि-साि वाद्य यंरा ेेें क ेे प्रचार में ध्वनि ववथतारक यंरा ेेें का बह ेुत बडा या ेेगदाि रहा। ध्वनि ववथतारक यंर की अिुपस्थिनत में लसतार या सरोद पर ककया गया मी ेंड, गमक या मुकी , कृ न्ति आठद का बार क काम सीलमत श्रा ेेता ह सुि सकते िे और बडी-बडी सभाआ ेेें में क ेेवल मंच क ेे पास ब ेैिे श्रोता ह संगीत का आिन्द ले पाते िे। परन्तु आज मीड, गमक, कृ न्ति, मुकी आठद का बार क से बार क काम भी ध्वनि ववथतारक यंर क ेे माध्यम से द ेूर से दूर ब ेैिे श्रा ेेता का ेे भी थपटि सुिायी देता है। जा ेे वाद्य तार का ेे खींचकर बजाये जाते ह ेैें, उिमें तार से खींचे सूक्ष्म थवर तिा बाहर थवर की प्रनतध्वनि बडी जकद समाप्त हो जाती है स्जसका बबिा माइिोफोि क ेे श्रा ेेता तक पह ेुेंचिा कठिि होता ह ेै। माइिा ेेफा ेेि से जा ेे थवर निबष ल क ेंपि का भी हा ेे वह भी सुथपटि और पररवद्र्चध त रुप में सुिायी पडता ह ेै। इसललए तत और सुवर्र वाद्यों क ेे प्रदर्षि में इि व ेैज्ञानिक उपकरणों क ेे कारण आटचयषजिक पररवतषि आए तिा इि वाद्या ेेें का ध्वन्यात्मक प्रभाव बढ़ा आजकल अनत सूक्ष्म माइिा ेेफोि वाद्यों में ह लगाकर कायषिम प्रथतुत ककए
  • 12. जाते ह ेै ें। स्जसक े माध्यम से वाद्या ेेें क ेे ध्वन्यात्मक सा ेैन्दयष मे ें पहले की अपेक्षा अचधक वृद्चध हुई है। इस प्रकार आधुनिक युग में संगीत क ेे कियात्मक थवरुप का ेे चमत्कारपूणष बिािे में ध्वनिववथतारका ेेें का या ेेगदाि सराहिीय रहा ह ेै। ये यंर एक ओर कलाकारा ेेें की ध्वनि की तीव े्रता को बढ़ाते ह ेैें वह ं दूसर आ ेेर उिकी ध्वनि क ेे प्रथतार क्षेर का ेे ध्याि में रखते ह ेुए उसे एक आधार प्रदाि करते ह ेैें। इिसे उच्च आवृवि की ध्वनियों में सस्न्िव ेेर् उत्पन्ि करिे क ेे ललए आवृवियों क ेे संतुलि में सहायता प्राप्त होती ह ेै तिा वाद्यों आ ेैर कलाकारा ेेें की ध्वनि में माध ेुयष एवं थपटिता का सृजि भी हा ेेता है। ध्वनि ववथतारक यंरा ेेें क ेे उपया ेेग में निम्िललणखत तथ्यों का ेे ध्याि में रखिा आवटयक है- ऽ थपीकसष का उपयोग इस बात का ेे ध्याि में रखकर ककया जािा चाठहए कक ध्वनिववथतारक सभागृह में लगािा ह ेै या ख ेुले मैदाि में। ऽ मंच क ेे माइक से थपीकर की समुचचत दूर होिी चाठहए। थपीकर यंर क ेे अत्यंत निकि रखा जािे से आ ेैर उसका मुंह माइक की आ ेेर होिे से फीडब ेैक निस्टचत रुप से आता ह ेै। ऽ सभागृह क ेे आकार आ ेैर श्रोताओ ं की संख्या को ध्याि में रखकर थपीकसष की संख्या निस्श्चत करिी चाठहए। ऽ माइक उत्कृ टि कोठि क ेे हा ेेिे चाठहए तिा जोडिे वाले तारों का ेे िीक से लगािा चाठहए क्योंकक ख ेुले तारा ेेें को व ेैसे ह लगा देिे से माइक फ े ल हा ेेिे की हमेर्ा ह आर्ंका बिी रहती ह ेै। ध्वनिववथतारक यंर या माइक- ऽ माइक की सुववधा उपलब्ध होिे से श्रा ेेताआ ेेें की संख्या में व ेृद्चध हु षइ तिा इससे कलाकारों एव ें संया ेेजकों का ेे आचिषक लाभ प्राप्त हुआ। ऽ माइक िे कलाकारों की कला क ेे प्रदर्षि का ेे हजारों श्रोताओ ं तक पहुंचािे में सहायता प्रदाि की, स्जससे श्रोताओ ं क े बडे समूह में ब ेैिे अ ेंनतम श्रोता क ेे ललए भी कलाकार का ेे सुििा सम्भव हो पाया। ऽ प्राचीि समय में ध्वनिराहक यंर की अिुपस्थिनत में कलाकार का ेे ऊ ं चे या तीव े्र थवर में गायि करिा पडता िा स्जससे संगीत की सूक्ष्मताओ ं में ववकृ नत आ जाती िी। गायि तिा वादि दोिा ेेें ह इससे प्रभाववत होते ि ेे। ऐसे म ेेें माइक बहुत सहायक लसद्ध हुआ। इसक े माध्यम से बडे से बडे सभागार में उपस्थित अिचगित श्रोताओ ं क ेे समक्ष क ेंि या वाद्य की सूक्ष्म ध्वनि को पहु ेंचािा सम्भव हो गया। ऽ माइक की सहायता से संगीतकारों क ेे क ेंि पर पडिे वाले ववपर त प्रभाव से बचिा सम्भव हो सका तिा जो पररश्रम उन्ह ेेें पहले करिा पडता िा वह प्रथतुनतकरण माइक की सहायता स ेे सरल हो गया। ऽ जा ेे वाद्य हककी ध्वनि उत्पन्ि करते ि ेे उिका माइक क े अभाव में प्रचार िह ं हा ेे पाता िा क्योंकक उसमें प्रयोग ककए जािे वाले जमजमा, कृ न्ति, मींड मुकी आठद तकिीक ेेें श्रोताआ ेेें तक िह ें पह ेुेंच पाती िी। जो माइक क ेे कारण पह ेुेंचिी सम्भव हो गषइ और कष इ वाद्या ेेें का एकल प्रथतूस्ेतकरण क े रुप में प्रचार सम्भव हो पाया। इसस ेे वीणा, लसतार, बांसुर , सरोद आ ेैर वायललि तिा अन्य वाद्य एकल प्रथतुनतकरण में अपिा थिाि बिा पाये।
  • 13. इसमें सन्देह िह ें कक स ेंगीत की वर्क्षा में ववज्ञाि क े इि उपकरणों का महत्व भ ेुलाया िह ं जा सकता, लेककि अन्य ववर्यों की भााँनत संगीत का ेे एक ललणखत ववर्य माििा भी इस कला क े हक में िह ें ह ेै क्योंकक भारतीय संगीत की ताल म गुरु-मुखी िी आ ेैर ह ेै तिा आगे भी रह ेेगी क्या ेेेंकक ववद्यालय और ववटवववद्यालयों में भी गुरू मुख से सुिे तो इसक ेे रागा ेेें में लगि ेेवाले ववलभन्ि थवर-लगावों का ेे ववद्यािी आत्मसात कर सकता ह ेै। इसक े ललए ता ेे वर्टयों का ेे गुरू क े आमिे-सामिे हा ेेिा ह पडेगा। भारतीय स ेंगीत से सम्बस्न्धत शायद ह ए ेेसा कोई कलाकार हा ेेगा जा ेे इलेक्रानिक वाद्ययंरा ेेें स ेे अपररचचत हा ेे। वतषमाि समय में ववद्यािी से लेकर अिेक बडे-बड ेेे कलाकार भी इि वाद्ययंरा ेेें का प्रया ेेग प्रत्यक्ष आ ेैर अप्रत्यक्ष रुप स ेे कर रह ेे ह ेैें। 20वीं शताब्द क ेे उिराद्षध में इलेक्रानिक वाद्ययंरा ेेें का ठहन्दुथतािी संगीत में आगमि ह ेुआ। भारत में इलेक्रानिक वाद्ययंरा ेेें का ेे प्रारम्भ करिे का श्रेय श्री राजिारायण दम्पवि को जाता ह ेै। यह थवयं उच्च का ेेठि क ेे बााँसुर वादक ह ेै ें। स्जिक े अिक प्रयत्िों क े पररणामथवरुप इलेक्रानिक वाद्ययंरा ेेें का प्रयोग हमारे शाथरीय संगीत में ककया जा रहा ह ेै। इलेक्राेनिक वाद्ययंरा ेेें क ेे प्रकार- तालोमीिर, इलेक्राेनिक तािप ेूरा, इलेक्राेस्ेिक तबला, इलेक्राेनिक वीणा, सुिादमाला, थवरुवपिी डडस्जिल थवरमण्डल। कायषववचध- ये सारे वाद्य 220 वोकि एसी या 110 वोकि एसी दा ेेिा ेेें ह प्रकार से चलते है ें। इसक े कारण ये ववटव क े ककसी भी का ेेिे में प्रया ेेग ककये जा सकते ह ेैें। इिमें ब ेैिर द्वारा संचाललत होिे की सुववधा है। इसमें थिाई वोकिेज थिेबलाइजर लगा होता ह ेै। स्जससे ये ववद्युत क ेे घििे, बढ़िे से खराब िह होते। इलेक्राेस्ेिक तािपूरा- भारतीय वाद्य क े ववकास िम में ववद्युत उपकरणों क ेे द्वारा बिे ये इलेक्रानिक वाद्ययंर 20वीं एवं 21वीं सद की देि ह ेै ें। ये वाद्य मुख्य रुप स ेे संगत करि ेे वाले वाद्य का आधुनिक यांबरक रुप ह ेै। सुववधा एव ें आवटयकता क ेे कारण यह संगीत जगत मे ें लोकवप्रय हो गय ेे ह ेै। इसका आकार बह ेुत छा ेेिा ह ेै और एक थिाि से दूसरे थिाि पर ले जािे म ेेें सुववधाजिक है। इलेक्राेनिक थवर पेि - इसका प्रया ेेग प्रायः वादि शैल में ककया जाता ह ेै। इससे कलाकार का ेे पूरे वादि कायषिम में एक आधार थवर लमलता रहता है। इसका आकार छोिा होिे क ेे कारण एक थिाि से दूसरे थिाि पर ले जािे में सुववधा रहती है। इसललए इसको इलेक्राेनिक थवर प ेेि कहा जाता ह ेै क्योंकक इसे बबजल की सहायता से बजाया जाता ह ेै। ववद्युतीय तालमाला- इसका शाथरीय संगीत में ताल वाद्य की दृस्टि से महत्वपूणष थिाि ह ेै। इसक ेे आववटकारक भी श्री जीराजिारायण ह ेै। इसमें लगभग 35 ताल किाषिक क े आ ेैर क ु छ ठहन्दुथतािी संगीत क ेे भी ताल ववद्यमाि होते ह ेै ें। इसमें ववलभन्ि ताला ेेें को अपिी आवटयकतािुसार अनत ववलस्म्बत, ववलस्म्बत, मध्य आ ेैर रुत लय में स्थिर ककया जा सकता ह ेै। म ेेरा ेेिा ेेम- यह एक निस्टचत गनत से ठिक-ठिक की ध्वनि करता हुआ चलता है। स्जसकी गनत को इच्छािुसार घिाया या बढ़ाया जा सकता है। इसका प्रया ेेग लय का ेे पक्का करिे में ककया जाता है। ववद्याचिष यों क ेे प्रनतठदि क ेे अभ्यास क ेे ललए यह बह ेुत उपयोगी यंर ह ेै। इसका प्रया ेेग गायि, वादि तिा िृत्य तीिों क े ललए ककया जाता है।
  • 14. लसन्ि ेेसाषइ जर- यह एक ववदेर्ी वाद्य ह ेै स्जसिे आधुनिक संगीत में िास्न्त ला द है। इस पर 72 थवर थिाि एक साि सुिे जा सकते ह ेै ें। देखिे में यह वपयािों की तरह है। इसक े द्वारा ववलभन्ि प्रकार की ध्वनियां तिा ववलभन्ि वाद्ययंरा ेेें की ध्वनियां निकाल जा सकती ह ेैें। जो आवाज हम सोचते ह ेै ें। वह आवाज इस पर हम निकाल सकते ह ेैें। इस पर ररद्म बाक्स भी लगा रहता है। स्जसक े द्वारा ववलभन्ि तालों को ववलभन्ि लयों में सेि ककया जा सकता है। व ेैज्ञानिक उपकरणा ेेें का स ेंगीत पर िकारात्मक प्रभाव- व ेैज्ञानिक उपकरणों का सबसे बडा िकारात्मक प्रभाव यह ह ेै कक यह सारे उपकरण बबजल की सहायता से संचाललत हा ेेते ह ेैें। अतएव जब बबजल िह ं हा ेेती है एवं जहां बबजल किौती अचधक होती ह ेै। वहां व्यस्क्त ि तो ककसी कलाकार से सम्पकष कर पाता ह ेै आ ेैर ि ह संगीत जगत से जुड पाता ह ेै। अतः इसक ेे लाभ से कलाकार आ ेैर श्रा ेेता वंचचत रह जाता है। व ेैज्ञानिक उपकरणा ेेें क ेे लाभ उिािे क ेे ललए सम्बस्न्धत उपकरण की आवश्यकता होती ह ेै। जैसे- रामोफा ेेि का लाभ उिािे क ेे ललये रामोफोि मर्ीि, ई-मेल, इन्िरिेि का लाभ उिािे क े ललये कम्प्यूिर उपकरण की आवटयकता होती ह ेै। क ै सेि क ेे ललये िेपररकाडषर मर्ीि आठद। इि उपकरणों क ेे अभाव में कलाकार संगीत का लाभ िह ें उिा सकता। इि उपकरणों क ेे प्रयोग में अत्यचधक सावधािी रखिी पडती ह ेै। मौसम क े बदलाव, तापमाि और िमी का व ेैज्ञानिक उपकरणा ेेें पर अत्यचधक प्रभाव पडता ह ेै। जैसे- सीडी, िेपररकाडषर, कम्प्यूिर, ि वी, रेडडया ेे, रामा ेेफोि इत्याठद। इि उपकरणों क ेे आववटकार से प ेूवष कलाकार श्रोताओ ं क ेे सामिे ब ेैिकर अपिी प्रथतुनत देता िा स्जसका प्रभाव श्रा ेेताआ ेेें पर बह ेुत गहरा पडता िा। परन्तु वतषमाि में रेडडया ेे, दूरदर्ष ि, सेिेलाषइ ि, क ै सेि, सीडी, इन्िरिेि इत्याठद क ेे द्वारा जो संगीत प्रथतुनत श्रोताओ ं तक पह ेुचती ह ेै उिमें वह सजीवता िह ं होती स्जसक े कारण श्रोताओ ं पर उि प्रथतुनतयों का अचधक प्रभाव िह ं पडता। अचधक समय तक इलेक्राेनिक वाद्ययंर ि वी, रेडडया ेे, रामोफोि, कम्प्यूिर आठद उपकरण प्रयोग में ि आिे पर इिकी गुणविा में कमी आती ह ेै अिवा तकिीकी खराबी आ जाती है स्जसक े कारण सुरक्षक्षत रखी ह ेुयी संगीत सामरी भी िटि हो सकती है। प्रायः ऐसा देखा जाता ह ेै कक बह ेुचचचषत और ख्यानत प्राप्त कलाकारों क ेे कायषिम आकार्वाणी, दूरदर्ष ि पर अचधक प्रसाररत ककये जाते ह ेै ें तिा रामा ेेफोंि, क ै सेि, सीडी आठद पर भी ऐसे ह कलाकारों की ररकाडडष ेंग्स अचधक प्राप्त होती ह ेै। स्जसका उद्देटय कम्पनियों आ ेैर आयोजका ेे द्वारा आचिष क लाभ कमािा हा ेेता है। इसक े चलते या ेेग्य एव ें गुणी कलाकारों, स्जिकी ककसी कारण से समाज में प्रलसद्चध िह ं ह ेै, उन्हें प्रथतुनत देिे का अवसर कम लमल पाता है। संगीत उपयोगी व ेैज्ञानिक उपकरणो ें की यह क ु छ समथयाएे हैं जा ेे कक लगभग इि सभी उपकरणा ेेें क ेे संचालि में प्रायः देखी जाती ह ेै आ ेैर इससे संगीत का क्षेर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाववत हा ेेता है। प्रत्येक आववटकार लाभ क े साि क ु छ िई समथयाओ ं आ ेैर चुिौनतयों का ेे भी जन्म देता ह ेै। तिावप यह कहिा अत्युस्क्त ि हा ेेगा कक स्जस ओर की हवा बह रह हो, उसी ओर का रूख कर लेिा ि लसफष आगे बढ़िे का पररचायक ह ेै वरि ् िई सम्भाविाओ ं का जन्मदाता भी होता है। वैज्ञानिक उपकरणों स ेे संगीत वर्क्षा एव ें प्रसार की भाविा का ेे सकारात्मक रुप में लें ता ेे यह हम सभी क े ललये सवष श्र ेेटि उपाय होगा।