2. जिस प्रकार आभूशन नाररयो का श्रंगार होते हैं उसी
प्रकार सहहत्य में शब्दों और अर्थों में चमत्कर लाने वाले
तत्व अलंकार हैं ।
अलंकार के भेद:-
शब्दलंकार
अर्थाालंकार
3. शब्दालंकारके भेद:-
(1) अनुप्रास अलंकार
ककसी वर्ा की बार-बार आवृत्ति होने पर अनुप्रास
अलंकार होता है।
उदाहरर्:-
(1)रघुपतत रघव रािाराम।
(2)तरणर् तनुिा तट-तमाल तरुवर बहु छाए।
4. यमक अलंकार
िहााँ कोइ शब्द एक सेअधिकबारआये तर्था उनके अर्था में
भभन्नता हो वहााँ यमक अलंकार होताहै।
िैसे:-
कनक कनक ते सौ गुनी मदकता अधिकाय।
इहह खाये बौरात िग उहहपाय बौरय।
कालीघटा का घमंड घटा।
5. श्लेश अलंकार
िब ककसी एकशब्द का प्रयोग एक ही बार ककया गया हो,
पर उसके अर्था एक से अधिक हों,तो वहााँ श्लेश अलंकर होता
है।
िैसे:-
मंगनकोदेखपटदेतबार-बारहै।
रहहमन िो गतत दीप की, कु ल कपूत गतत सोय।
बारे उजियारौ करै, बढ़े अंिेरा होए।।
6. अर्थाालंकार
उपमा अलंकार
िब ककसी एक वस्तु के गुर्ों की तुलना ककसी दूसरी
वस्तु से की िाए, तो वहााँ उपमा अलंकार होता है।
िैसे:-
मखमल के झूल पड़े हार्थी-सा टीला।
वह जिंदगी क्या जिंदगी िो भसर्ा पानी सी बही।
7. रूपक अलंकार
िहााँ दो व्यजक्तयों या वस्तुओं में समनता
हदखाने के भलये उन्हें एक कर हदया िाए वहााँ
रूपक अलंकार लगता है।
िैसे:-
चरर्-कमल वंदौ हररराई।
आए महंत वसंत।
8. अततशयोजक्त अलंकार
िहााँ ककसी वस्तु या व्यजक्त का बढ़ा-चढ़ाकर वर्ान ककया िाए,
वहााँ अततशयोजक्त अलंकर होता है।
िैसे:-
हनुमान की पूाँछ में लगन पाई आग,
लंका सारी िल गई, गए तनसाचर भाग।
देख लो साके त नगरी है यही,
स्वगा से भमलने गगन में िा रही।
9. उत्प्रेक्षा अलंकार
िहााँ उपमेय और उपमान की समानता के कारर् उपमेय में उपमान की सम्भवना
या कल्पना की िाए, वहााँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
िैसे:-
उस काल मारे क्रोि के , तन कााँपने उसका लगा।
मानो हवा के वेग से, सोता हुआ सागर िगा।
यों वीरवर अभभमन्यु तब, शोभभत हुआ उस काल में।
सुंदर सुमन ज्यों पढ़ गया हो, कं टकों के िाल में।