2. लेखक
Raskhan (जन्म 1548 ई.) एक मुस्ललम और
भगवान कृ ष्ण के अनुयायी दोनों था जो एक
कवव थे. उसका असली नाम Sayyad इब्राहिम
था और भारत में अमरोिा में रिता िै के ललए
जाना जाता िै. अपने प्रारंलभक वर्षों में उन्िोंने
भगवान कृ ष्ण के अनुयायी बन गए और
गोलवामी Vitthalnath से धमम सीखा और
वृंदावन में रिने लगे और विां अपने पूरे
जीवन बबताया. उन्िोंने किा कक 1628 ई. में
मृत्यु िो गई
3. अपने जन्म वर्षम के बारे में ववद्वानों की राय में मतभेद िैं. लमश्रा बंधु Raskhan
1558 में पैदा िुआ था और 1628 में ननधन िो गया था कक उनका मानना िै,
जबकक अनुमान, 1615 और 1630 शालमल िैं. [? जो] Raskhan एक पठान सरदार
और उसके जन्मलथान मुरादाबाद स्जले में अमरोिा था किने के ववद्वानों के
अधधकांश. Hajari प्रसाद द्वववेदी Raskhan अपनी पुलतक में Saiyad इब्राहिम का
जन्म, और खान अपने खखताब था कक दावा ककया िै. Raskhan एक जागीरदार का
पुत्र था. उनका पररवार धनी था, और वि एक अच्छी लशक्षा प्राप्त की. Raskhan
हिंदी और फारसी दोनों बात की थी; वि फारसी में "भागवत पुराण" अनुवाद. उनके
मंहदर यमुना नदी, Bhramand घाट के पास गोकु ल में स्लथत िै. यि एक बिुत िी
शांत जगि िै. कई कृ ष्ण भक्तों अपनी श्रद्धांजलल देने और ध्यान करने के ललए विां
आ गए.
Raskhan की कववता भगवान कृ ष्ण पर कें हित िै. ऐसे बाल लीला, चीड़ िरण लीला,
कुं ज लीला, रास लीला, Panghat लीला, और दान लीला के रूप में भगवान कृ ष्ण की
"Lilas", अपने पसंदीदा ववर्षय थे. इसके अलावा Lilas से, Raskhan भी भगवान
शंकर, देवी गंगा, और िोली त्योिार पर कववताओं का सृजन ककया िै.
Raskhan व्यापक रूप से भगवान कृ ष्ण को अपनी रचनाओं के सबसे समवपमत िोने,
एक मिान कवव के रूप में लवीकार ककया िै. सुजान Raskhan और प्रेम Vatica
उनकी उपलब्ध रचनाओं में से कु छ िैं. Raskhan Rachnavali Raskhan की शायरी
का संग्रि िै. उनकी कृ नतयों में भगवान कृ ष्ण का न के वल सौंदयम लेककन यि भी
अपनी प्रेयसी राधा के साथ अपने संबंधों का वणमन.
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12. Question 1:
ब्रजभूलम के प्रनत कवव का प्रेम ककन-
ककन रूपों में अलभव्यक्त िुआ िै?
Answer :
रसखान जी अगले जन्म में ब्रज के गााँव में ग्वाले के रूप में जन्म
लेना चािते िैं ताकक वि विााँ की गायों को चराते िुए श्री कृ ष्ण की
जन्मभूलम में अपना जीवन व्यतीत कर सकें । श्री कृ ष्ण के ललए
अपने प्रेम की अलभव्यस्क्त करते िुए वे आगे व्यक्त करते िैं कक वे
यहद पशु रुप में जन्म लें तो गाय बनकर ब्रज में चरना चािते िैं
ताकक वासुदेव की गायों के बीच घूमें व ब्रज का आनंद प्राप्त कर
सकें और यहद वि पत्थर बने तो गोवधमन पवमत का िी अंश बनना
चािेंगे क्योंकक श्री कृ ष्ण ने इस पवमत को अपनी अगुाँली में धारण
ककया था। यहद उन्िें पक्षी बनने का सौभाग्य प्राप्त िोगा तो विााँ के
कदम्ब के पेड़ों पर ननवास करें ताकक श्री कृ ष्ण की खेल क्रीड़ा का
आनंद उठा सकें । इन सब उपायों द्वारा वि श्री कृ ष्ण के प्रनत अपने
प्रेम की अलभव्यस्क्त करना चािते िैं।
13. Question 2:
कवव का ब्रज के वन, बाग और तालाब को ननिारने के पीछे क्या का
रण िैं?
Answer :
रसखान जी श्री कृ ष्ण से प्रेम करते िैं। स्जस वन, बाग और तालाब
में श्री कृ ष्ण ने नाना प्रकार की क्रीड़ा की िै, उन्िें ननिारते रिना
चािते िैं। ऐसा करके उन्िें अलमट सुख प्राप्त िोता िै। ये सुख ऐसा
िै स्जस पर संसार के समलत सुखों को न्योछावर ककया जा सकता
िै। इनके कण-कण में श्री कृ ष्ण का िी वास िै ऐसा रसखान को
प्रतीत िोता िै और इस हदव्य अनुभूनत को वे त्यागना निीं चािते।
इसललए इन्िें ननिारते रिते िैं। इनके दशमन मात्र से िी उनका हृदय
प्रेम से गद-गद िो जाता िै।
14. Question 3:
एक लकु टी और कामररया पर कवव सब कु छ न्योछावर करने को
क्यों तैयार िै?
Answer :
श्री कृ ष्ण रसखान जी के आराध्य देव िैं। उनके द्वारा डाले गए
कं बल और पकड़ी िुई लाठी उनके ललए बिुत मूल्यवान िै। श्री
कृ ष्ण लाठी व कं बल डाले िुए ग्वाले के रुप में सुशोलभत िो रिे िैं।
जो कक संसार के समलत सुखों को मात देने वाला िै और उन्िें
इस रुप में देखकर वि अपना सब कु छ न्योछावर करने को तैयार
िैं। भगवान के द्वारा धारण की गई वलतुओं का मूल्य भक्त के
ललए परम सुखकारी िोता िै।
15. Question 4:
सखी ने गोपी से कृ ष्ण का कै सा रूप धरण करने का आग्रि ककया था
? अपने शब्दों में वणमन कीस्जए।
Answer :
वि गोपी को श्री कृ ष्ण के मोहित रुप को धारण करने का आग्रि
करती िै स्जसमें श्री कृ ष्ण पीताम्बर डाल िाथ में लाठी ललए िुए लसर
पर मोर मुकु ट व गले में रवियों की माला पिने िुए रिते िैं। उसी
रुप में वि दूसरी गोपी को देखना चािती िै ताकक उसके द्वारा धारण
ककए श्री कृ ष्ण के रुप में वि उनके दशमनों का सुख प्राप्त कर अपने
प्राणों की प्यास को शांत कर सके ।
16. Question 5:
आपके ववचार से कवव पशु, पक्षी और पिाड़ के रूप में भी कृ ष्ण
का सास्न्नध्य क्यों प्राप्त करना चािता िै?
Answer :
इन सब के रूप में वे श्री कृ ष्ण का सास्न्नधय प्राप्त कर सकते िैं -
पशु रुप में श्री कृ ष्ण उसको जंगल में चराने ले जाएाँगे। यहद पक्षी
बने तो कदम्ब के वृक्षों पर वास करके उनके समीप िी रिने का
सुख प्राप्त िोगा और यहद वि पिाड़ बने तो भगवान उनको अपनी
अाँगुली में धारण करेंगे। रूप चािे कोई भी धारण करें पर श्री कृ ष्ण
के समीप रिने का उनका प्रयोजन अवश्य लसद्ध िो जाएगा।
17. Question 6:
चौथे सवैये के अनुसार गोवपयााँ अपने आप को क्यों वववश पाती िैं?
Answer :
श्री कृ ष्ण जी की मुरली की धुन व मुलकान उनको लोक-लाज
त्यागने पर वववश कर देती िै। स्जसके कारण वो सब अपने-अपने
घरों की अटारी पर चढ़ जाती िैं, उन्िें अपनी पररस्लथनत का ध्यान
निीं रिता न िी अपने माता-वपता का भय रिता िै। वो अपना मान-
सम्मान त्याग कर बस श्री कृ ष्ण की बााँसुरी की धुन िी सुनती रिती
िैं व उनकी मुलकान पर अपना सब कु छ न्योछावर कर देती िैं।
अपनी इसी ववववधता पर वि सब परेशान िैं।
Question 8:
'काललंदी कू ल कदंब की डारन' में कौन-सा अलंकार िै?
Answer :
यिााँ पर 'क' वणम की एक से अधधक बार आवृवि िुई िै इसललए यिााँ
अनुप्रास अलंकार िै।
18. Question 7:
भाव लपष्ट कीस्जए -
(क) कोहटक ए कलधौत के धाम करील के कुं जन ऊपर वारौं।
(ख) माइ री वा मुख की मुसकानन सम्िारी न जैिै, न जैिै, न जैिै।
Answer :
(क) भाव यि िै कक रसखान जी ब्रज की कााँटेदार झाडड़यों व कुं जन
पर सोने के मिलों का सुख न्योछावर कर देना चािते िैं। अथामत् जो
सुख ब्रज की प्राकृ नतक सौंदयम को ननिारने में िै वि सुख सांसाररक
वलतुओं को ननिारने में दूर-दूर तक निीं िै।
(ख) भाव यि िै कक श्री कृ ष्ण की मुलकान इतनी मोिनी व अद्भुत
िै कक गोवपयााँ लवयं को संभाल निीं पाती। अथामत् उनकी मुलकान में
वे इस तरि से मोहित िो जाती िैं कक लोक-लाज का भय उनके मन
में रिता िी निीं िै और वि श्री कृ ष्ण की तरफ़ खींचती जाती िैं।
19. Question 9:
काव्य-सौंदयम लपष्ट कीस्जए -
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।
Answer :
इस छंद में गोपी अपनी दूसरी सखी से श्री कृ ष्ण की भााँनत वेशभूर्षा
धारण करने का आग्रि करती िै। वि किती िै तू श्री कृ ष्ण की भााँनत
लसर पर मोर मुकु ट व गले में गुंज की माला धारण कर, शरीर पर
पीताम्बर वलत्र पिन व िाथ में लाठी डाल कर मुझे हदखा ताकक मैं
श्री कृ ष्ण के रूप का रसपान कर सकूाँ । उसकी सखी उसके आग्रि पर
सब करने को तैयार िो जाती िै परन्तु श्री कृ ष्ण की मुरली को अपने
िोठों से लगाने को तैयार निीं िोती। उसके अनुसार उसको ये मुरली
सौत की तरि प्रतीत िोती िै और वो अपनी सौत रुपी मुरली को
अपने िोठों से लगने निीं देना चािती।
यिााँ पर 'ल' वणम और 'म' वणम की एक से अधधक बार आवृवि िुई िै
इस कारण यिााँ अनुप्रास अलंकार िै।छंद में सवैया छंद का प्रयोग
िुआ िै तथा ब्रज भार्षा का सुंदर प्रयोग िुआ िै स्जससे छंद की छटा
िी ननराली िो जाती िै। साथ में माधुयम गुण का समावेश िुआ िै।
20.
21. नाम = बबक्रानत रॉय.
कक्षा = नौवीं. धारा
='सी'.
ववर्षय = हिन्दी.
लकू ल = के न्िीय ववद्यालया बी.ई.जी,
पुणे – 06.