11. और यदि इसको सुव्यवस्थित कर लिया जाये , तो यह शक्ति अज्ञेय हो जाती है।
12. जब आप क्लब के बारे में सोचते हैं और घर से बाहर निकलते हैं , आप क्लब की ओर जाते हैं , न कि मार्केट , थियेटर अथवा आफिस की ओर।
13. हमारी शक्तिशाली भावनायें ही हमारे कर्मो में अभिव्यक्त होती हैं। हमारी बाह्य क्रियायें हमारे गहन विचारों और भावनाओं की स्पष्ट सूचक होती हैं।
14. गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं। हे कुन्तीपुत्र , वह सदा उसी भाव में रंगा रहने के कारण उसे ही प्राप्त होता है मनुष्य मृत्यु के समय जिस - जिस भाव का स्मरण करते हुए शरीर का त्याग करता है
15. साधक जीवन भर जिन विचारों का चिन्तन करता रहा था , वही स्थूल शरीर की मृत्यु के पश्चात सूक्ष्म शरीर की उडान की अन्तिम दिशा का निश्चय करते हैं।