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मुरत्तिब
आले रसूल अहमद कटिहारी
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सर सूए रौज़ा झुका फिर तुझ को क्या
इमाम अहले सुन्नत अज़ीमुल बरकत आला हज़रत
अल शाह इमाम अहमद रज़ा खाां अलैहहररहमाां बरेली शरीफ़
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शर्मिंदा क्यूूँ ऐसे हालात करें
शैखुल इस्लाम वल मुस्स्लमीन हज़रत
अल्लामा सय्यद मुहम्मद मदनी ममयाां अल-अशरफ़ी ककछौछा शरीफ
स्ज़क्रे जहााँ में हम सब पड़ कर कयूाँ ज़ा-अ लम्हात करें
आओ पढ़े वश शम्स की सूरत रूए नबी की बात करें
स्जन के आने की बरकत से धरती की तक़दीर खुली
आओ हम सब उन चरणों पर जान व टदल सौगात करें
नूर ए खुदा है नूर ए नबी है नूर है दीां और नूरे ककताब
हम ऐसे रोशन कक़स्मत कयों तारीकी की बात करें
रहमत वाले प्यारे नबी पर पढ़ते रहो टदन रात दुरूद
आओ लोगों अपने उपर रहमत की बरसात करें
कया यह सूरत उन को टदखाने के लाएक़ है गौर करो
सामने उन के हूाँ शममिंदा कयूाँ ऐसे हालात करें
क़ब्र में ‫ادری‬ ‫ال‬ ‫ھا‬ ‫ھا‬ कहने की रुसवाई से बचो
बबगड़ी हालत कब बनती है चाहे लाख ‫ھیھات‬ करें
अहले इश्क गुज़र जाते हैं दार व नार की मांस्जल से
अहले खखरद के बस में नहीां है अहले इश्क की मात करें
यह लाज्ज़ात की दुननया कब तक ? इस की असीरी ठीक नहीां
आओ समझ से काम लें अख्तर ख़ुद को तामलब ए ज़ात करें
(तजस्ल्लयात ए सुखन पृष्ि ३४)
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बद तमीजी तो है पैदाइशी खसलत तेरी
हक़ को बाततल से ममलाना यह है फितरत तेरी
रब की आयात का इनकार है आदत तेरी
अहल ए ईमान पे जाहहर है ख़बासत तेरी
हैं शयातीन तेरे नाज़ उठाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
औमलया से है अक़ीदत हमें और तुझ को बैर
वह हैं अल्लाह के अपने तू समझता है गैर
तू है बदबख़्त कहााँ तेरे मुक़द्दर में खैर
तेरे माथे पे तो शैतान ने रखा है पैर
लानतें तुझ पे हूाँ आयात ममटाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
इहतराम और अक़ीदत से जो आते हम हैं
िू ल चादर जो मज़ारात पे लाते हम हैं
फै ज़ अल्लाह के महबूबों से पाते हम हैं
क्यों तो मरता है अगर उसस मनाते हम हैं
दुश्मने औमलया ओ दोज़खी थाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
नंगे मस्जजद में नहाता है तो तबलीग है यह
भोज मस्जजद पकाता है तो तबलीग है यह
नाक मस्जजद में बजाता है तो तबलीग है यह
बदबू मस्जजद में उडाता है तो तबलीग है यह
थू थू मस्जजद में ख़ुरािात मचाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
जश्न ए ममलाद मनाने पे तू रोता क्यों है
इस क़दर ददस तेरे सीने में होता क्यों है
नारा ए जश्न से औसान तू खोता क्यों है
इस हदन शैतान का बन जाता तू पोता क्यों है
हाय तकदीर तेरी नार जाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
जश्ने देवबंद मुसरसत से मनाते हो तुम
इंहदरा गााँधी के मलये बज़्म सजाते हो तुम
मुशररका के मलए कु रान पढाते हो तुम
कै सी मक्काररयााँ करते हो कराते हो तुम
दीन तो है नहीं, हदल बीच के खाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
िाततहा वाले यह हलवे यह ममठाई ज़दे
सभी न जाइज़ व बबद-अत तेरे आगे ठहरे
खीर और पूडी है दीवाली की जाइज़ ले ले
और बतलाये फक जाइज़ हैं कपूरे कौवे
क्यों न तो गंद बके गंद के खाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
िू ल, खुशबू ए मज़ारात से चचढता है तू
पोतडे नानी के ममल जाएाँ तो बााँटते खुशबू
बदबू को खुशबू तो खुशबू को बताए बदबू
तू मुसलमान नहीं तुझ में है भंगी की ख़ू
दूर हट गंद की सोगंद उठाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
सरवरे दीन को कहे मर के वह ममट्टी में ममले
गौस और ख्वाजा हैं बेबस तू यह बकवास करे
क़ब्र से घर पर ममठाई तेरा दादा लाए
इस को उस मुदे की स्जंदा करामत जाने
कै सा बेशमस है मक्कार बहाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
उनको ख़ामलक़ ने बनाया है नबी ए आखखर
खुद नबी ने भी फकया है यही सब पर ज़ाहहर
लेफकन इक तेरे ही फफरके का लाईन शाततर
करके इंकार फकया तुम को भी ख़ुद सा काफफर
ये हैं क़ाइद तेरे दोज़ख के हठकाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
दुश्मने दीन ए हसन झूटे िसाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
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इल्मे गैब ए नबवी मशकस नज़र आए तुझे
और शैतान को अल्लाह का साझी जाने
रब के महबूबों की तारीफ बुरी तुझको लगे
हााँ मगर थानवी मरदूद का कामलमा पढ ले
क्या यही दीन है शैतानी घराने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
दाढी वाले जो बीवी का मज़ा लेता है
जो भरी भीड में भी टांग चढा देता है
ऐसा बद फे -अल भी रूहानी तेरा नेता है
अपनी इज़्ज़त का गला तूने तो खुद रेता है
ओ शैतान को अक़ताब बताने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
देख यह बात बताती है तेरे घर की फकताब
रंडियों के यहााँ जाते थे तेरे आली जनाब
कर दी उस पीर ने इक बात कु छ इस दजास खराब
फक त-वाइि ने फकया पीर के मुंह में पेशाब
यह तेरे शेख हैं गंगा में नहाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
कोई गुजताख़, नबी (‫)ﷺ‬ को कहे अपने जैसा
फकसी मरदूद ने सरकार (‫)ﷺ‬ को मजबूर कहा
कोई बेहूदा बके इल्म, बहाइम स्जतना
कोई बदबख़्त यह मलखता है फक हम से सीखा
यह कमीने हैं तेरे अगले जमाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
रब को जो झूटा कहें, हैं वह अकाबबर तेरे
और मसद्दीक हुए झूठ में माहहर तेरे
नजसुल ऐन से बदतर हुए ताहहर तेरे
स्जन को ज़ामलम कहा रब ने वह हैं नामसर तेरे
क्या तेरे भैजे में कीडे हैं पखाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
बाब ए तौबा है कु शादा अभी तौबा कर ले
सुन हर इक काफफर व मुनकर से फकनारा कर ले
ममल फकसी रिजवी से, पाक अपना अकीदा कर ले
अपने ज़ुल्मत कदा हदल में, उजाला कर ले
फिर यह अय्याम नहीं लौट आने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
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जमाअते अहल ए हदीस का नया दीन
लेखक
ख़लीफा ए शैखुल इस्लाम हज़ित यहहया अंसािी अशिफ़ी
अल वहाबियत
लेखक
मुनाज़ज़िे इस्लाम मुहम्मद ज़ज़या उल्लाह क़ादिी अशिफ़ी
गुस्ताखे िसूल गुरुह के सेक्सी मुल्ला
लेखक
मुनाज़ज़िे अहल ए सुन्नत हज़ित अब्दुस्सत्ताि हमदानी ििकती
लेखक
देविंहदयत के िुतलान का इंकशाफ़
मुनाज़ज़िे इस्लाम मुहम्मद काशशफ इकिाल मदनी िज़वी
बदूरुर अहला अल रौज़तुन नद्या नुज़ुलुल अबरार
कन्जुल हकायक अिुस ल जादी ितवा नज़ीररया
मल्िू ज़ाते हकीमुल उम्मत बेहश्ती ज़ेवर लुगातुल हदीस
फतवा अल बातनया अिाजातुल यौममया फतवा सत्ताररया
अल-दा ए वद-दाए नैलअल औतार हहिजुल इमान
ररसाला अल इमदाद अरवाहे सलासा बराहीने काततआ
फज़ाइल ए आमाल मसलक ए देवबंद तहजीरून नास
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन की ग़ैर मुजतनद नमाज़ संगीन फफतना
सवाततउल इलहाम तक्वीयतुल इमान आहद
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﷽
प्रथम सूचना
तक़लीद की अतनवायसता होना अक़ली दलील से भी साबबत
होता है और नक़ली दलील से भी। जब आप रोगी होते हैं
आपकी बुद्चध क्या कहती है फक आप फकसके पास जाएाँगे
इंजीतनयर के पास या िॉक्टर के पास ?
जाहहर है फक बुद्चध िॉक्टर के पास जाने का आदेश करती
है। जब मनुष्य जवयं शरीअत से पररचचत न हो और नरक में
जाने से बचने के मलए शरीअत का पालन करना चाहता हो तो
समजया पूछने के मलए फकसकी तरफ बढेंगे ? धमसगुरू या
अज्ञानी की तरि ?
सामान्य ज्ञान यही कहती है फक उस की तरि जाना चाहहए
जो धमस के आदेशों में पररचचत हो और ववद्वान हो। वह
ववद्वान खुद धमस में ववशेषज्ञ होगा या फकसी ववशेषज्ञ के
नुजखे को बताएगा इसी जपेशमलजट को मुजतहहद कहते हैं और
इन के बातों पर अमल करने वालों को मुक़स्ल्लद कहते हैं |
मुक़स्ल्लद शरीयत ए इजलाममया की एक इस्जतलाह है।
अहले सुन्नत व जमाअत के चार इमाम हैं:
1.इमाम आज़म अबू हनीिा ‫الرحمہ‬‫علیہ‬(ववसाल 150 हहजरी)
2. इमाम मामलक ‫الرحمہ‬‫علیہ‬ (ववसाल 189 हहजरी)
3. इमाम शाफई ‫الرحمہ‬‫علیہ‬ (ववसाल 204 हहजरी)
4. इमाम अहमद बबन हम्बल ‫علیہ‬‫الرحمہ‬ (ववसाल 241 हहजरी)
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इन आ-इम्मा ए फकराम ने अपनी ख़ुदा दाद इल्मी व
फफकरी क्षमताओं और मुज्तहहदाना अंतर्दसस्ष्ट के आधार पर
अपने अपने कायसकाल में हजबे ज़रूरत कु रआन और हदीस से
मसाइल ए फफक़ह संकमलत फकए यूं इन इमामों के पदचचन्ह
चार फफक़्ही मतों के रूप में अस्जतत्व में आए।
इन चारों आ इम्मा ए फकराम में से फकसी भी फफक़्ही
ववचारधारा का पालन करने वाले को मुक़ज़ल्लद कहते हैं। जैसे
इमाम ए आज़म अबू हनीफा ‫الرحمہ‬ ‫علیہ‬ के मुक़स्ल्लदीन को
हनफी, इमाम मामलक ‫الرحمہ‬ ‫علیہ‬ के मुक़स्ल्लदीन मामलकी और
इमाम शािई ‫الرحمہ‬ ‫علیہ‬ के मुक़स्ल्लदीन शावािअ और इमाम
अहमद बबन हन्बल ‫الرحمہ‬‫علیہ‬ के मुक़स्ल्लदीन को हम्बली कहा
जाता है। तजवीर में देखें ..........
इसके ववपरीत यहद कोई व्यस्क्त उनमें से फकसी का
पैरोकार नहीं हो तो वह ग़ैि मुक़ज़ल्लद है।
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यह एक तारीखी हकीक़त (ऐततहामसक तथ्य) है फक ग़ैर
मुक़स्ल्लदीन (जो खुद को अहले हदीस कहते हैं) का वजूद
(जथावपत) अंग्रेजों के दौर से पहले न था | अंग्रेजों के समय से
पहले भारत में न उनकी (ग़ैर मुक़स्ल्लदीन की) कोई मस्जजद
थी ना मदरसा और ना कोई पुजतक | अंग्रेजों ने भारत में
क़दम जमाया तो अपना अव्वलीन हलीि (सबसे पहली
सहयोगी) उलमाए देवबंद को पाया और जब उलमा ए अहले
सुन्नत व जमात (सूफी मुस्जलम) ने अंग्रेजों के खखलाि स्जहाद
का ितवा हदया और हजारों मुसलमानों को अंग्रेज़ के ववरोध
मैदाने स्जहाद में ला खडा फकया तो स्जस ने अंग्रेज़ के ववरोध
यातन स्जहाद को हराम करार हदया और मुसलमानों में तिरका
और इस्न्तशार (ववभाजन एवं अराजकता) िै लाया वह ग़ैर
मुक़स्ल्लदीन हज़रात थे और आज तक अपनी रववश (ववचध)
पर क़ायम हैं | अल्लाह हम सब की इमान की हहिाज़त िरमाए आमीन |
फफक़ह हनफी जो लगभग बारह लाख (1200000) मासाइल
का मजमुआ (संग्रह) हैं इस अजीमुश्शान फफक़ह के चंद एक
मसाइल पर ऐतराज़ करते हुए ग़ैर मुक़स्ल्लदीन अवाम को यह
बताने की कोमशश करते हैं फक फफक़ह, क़ु रान व हदीस के
ववरोध है और ग़ैर मुक़स्ल्लद अवाम की जुबान पर तो यह एक
चलता हुआ जुमला फक "फफक़ह हनफी में िु लां िु लां और ह्या
सोज़ मसअला है" इस मलए ज़ुरूरत महसूस हुई फक अवाम को
अगाह (सावधान) फकया जाये फक ग़ैर मुक़स्ल्लदीन की मुजतनद
फकताबों में क्या क्या गंदे और हया सोज़ मसाइल (तघनौनी
बातें) भरे पडे हैं | अफसोस ग़ैर मुक़स्ल्लद उलमा ने यह
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मसाइल क़ु रान व हदीस का नाम लेकर बयान फकये हैं | आप
यकीन करें स्जतने हयासोज़ मसाइल (तघनौनी बातें) ग़ैर
मुक़स्ल्लदीन ने अल्लाह और उसके रसूल सल्लाहू अलैहह व
सल्लम से मनसूब (संबंचधत) फकये हैं फकसी हहन्दू, मसख,
इसाई या यहूदी ने भी अपने मज़हबी पेशवा (धाममसक गुरु) से
मनसूब (संबंचधत) नहीं फकये होंगे | ग़ैर मुक़स्ल्लदीन जान बूझ
कर के इन मसाइल को छु पाते रहे हैं | इनकी कोमशश रही है
फक हनफी पर खाह मखाह के इतराज़ फकये जायें ताफक उनके
अपने मसाइल अवाम से छु पी रहें |
आप यह मसाइल पढेगें तो हो सकता है फक कानों को हाथ
लगायें और तौबा तौबा करें | शायद यह भी कहे फक ऐसी बातें
मलखने की क्या जरूरत थी लेफकन यह हकीक़त है फक स्जस
तेज़ी से इखलाक को बालाए ताक रखते हुए ग़ैर मुक़स्ल्लदीन
अपना बुकलेट (Literature) िै ला रहे हैं हकीक़त को उजागर
करना हमारी मजबूरी है | हदए गए हवाले में कोई गलती हो
तो मुत्तला िरमायें ताफक जल्द से जल्द इजलाह कर दी जाये |
दुआ करें फक अल्लाह तआला ग़ैर मुक़स्ल्लदीन और देवबंहदयों
को हहदायत िरमाएं और उम्मत को इन खास्बबस फितने से
बचायें आमीन|
जमात अलहे हदीस दौर जदीद का एक तनहायत ही पुर
फफतन बद अक़ीदा, दहशत गदस, वहशतनाक और बबद्दती
फिरका है स्जसका बुतनयादी मक़सद इजलामी मूल्यों, मसद्धांतों
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व ववचारों और सहाबा ए कराम , ताबईन ए इज़ाम,
मुहद्दीसीने ममल्लत, िु कहा ए उम्मत, औमलया अल्लाह, आ-
इम्मा ए दीन, मुज्तहहदीन व मुजदद्हदन ए इजलाम और
असलाफ ए सामलहीन के खखलाि एलान ए बगावत, तिसीर ए
बबल-राय, अहादीस ए मुबारका की मन मानी तशरीह ख़ुद
साख्ता (अपना बनाया हुआ), अक़ाइद व मसाइल, इंकार ए
फफक्ह और आ-इम्मा अरबा ख़ुसूसन इमाम ए आज़म (‫عنہ‬‫اہلل‬‫)رضی‬ की
शान में बेअदबी व बकवास इस फफरका का ख़ुसूसी पहचान है|
(ग़ैर मुक़ल्ललद)
जमात ए अहले हदीस (ग़ैर मुक़स्ल्लद) का मज़हब, क़ु रान
व सुन्नत, असलाफ ए उम्मत, आ-इम्मा ए ममल्लत ख़ास कर
के इज्मा ए उम्मत के खखलाफ है |
इसी तरह यह लोग अपनी राह उम्मत के खखलाफ
इस्ख़्तयार करते हुए सवादे आज़म से कटे हुए हैं, रहमत ए
खुदावन्दी से महरूम है हजुर अकरम नूर मुजजसम (‫وسلم‬‫علیہ‬‫ہللا‬‫)صلی‬
का िरमान है "‫الجماعۃ‬‫علی‬‫ہللا‬‫ید‬" यानी अक्सररयत पर अल्लाह का
दजते करम है चुनांचे यह चगरोह बहुमत (अक्सररयत) से कट
कर रसूल ए आज़म (‫وسلم‬‫علیہ‬‫ہللا‬‫)صلی‬ की बबशारत से महरूम है|
ग़ैर मुक़स्ल्लहदयत हक़ीक़त में राफ्ज़ीयों (मशया) नेचाररयों,
दहररयों, काद्यानीयों, वहाबबयों, नज्दीयों, तबलीगीयों और
मौदूदीयों की जमातों का मल्गूबा व माजूने मुरक्कब हैं यानी
इन तमाम फफरको से ममलकर बना है |
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ग़ैर मुक़स्ल्लदीन अपने को पहले मुवस्ह्हद फिर कु छ हदनों
के बाद मुहम्मदी कहलाते थे और एक ज़माना के बाद
तनहायत जादुई तरीकों से अहले हदीस हो गए |
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन ने "अहले हदीस" नाम को इस्ख़्तयार कर
के लोगो को यह बताना चाहा फक इनकी जमाअत वह
जमाअत है जो हदीस पर अमल करती है और तमाम सही
हदीस पर अमल करना ही उस का मज़हब है इस बात को
खुद ग़ैर मुक़स्ल्लदीन उलमा बार बार दावा के शकल में दुहराते
रहते हैं यानी एक ग़ैर मुक़स्ल्लद साहब बडे ख़ुश हो कर
िरमाते हैं "वह (अहले हदीस) बुखारी, मुस्जलम की हदीसों को
और तमाम सही हदीसों को काबबले अमल जानते हैं |
(ममल्लत ए मुहम्मदी पृष्ट 5)
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन ने अपनी इस बात या अपने इस दावा को
बडे तश्हीरी (Propaganda) अंदाज़ में िै लाया है और बहुत से
वह लोग जो ग़ैर मुक़स्ल्लदीन फक मज़हब से सही जानकारी
नहीं रखते इन के इस दावा को सही समझने लगे हैं मौजूदा
दौर की इस मशगूल दुतनया में फकसे इतनी िु ससत है फक वो
फकसी बात की असल हकीक़त मालूम करने के मलए तहकीक
करे और अगर करना भी चाहें तो ग़ैर मुक़स्ल्लदीन उलमा की
फकताबों तक हर फकसी को रसाई (पहुाँच) आसान नहीं |
मलहाज़ा जरूरत थी फक ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के इस िरेब से
लोगों को तनकाला जाये और जो असल वाफकया है उस को
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सामने लाकर ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के मज़हब की हकीक़त से
आगाह कराया जाये |
ग़ैर मुक़ल्ललदीन हक़ीक़त
हाजी इमदादुल्लाह साहि महाज़जि मक्की )‫الرحمہ‬‫(علیہ‬ जो फक►
इकाबबर ए देवबंद मौलवी कामसम नानोतवी, मौलवी रशीद
अहमद गंगोही, मौलवी अशरि अली थानवी, मौलवी
खलील अहमद अन्बेठ्वी वगैरह के पीर व मुमशसद हैं
वहाबबया नस्ज्दया के संबंध में िरमाते हैं फक " ग़ैर
मुक़स्ल्लद लोग दीन के रहज़न (लूटेरा) हैं इनके
इस्ख्तलात (मेल जोल) से इस्ह्तयात (परहेज़) करना
चाहहए | (शमा इमे इम्दाहदया पृष्ट 28)
िानी ए मदिसा देविंद काशसम नानोत्वी ने ग़ैर►
मुक़स्ल्लदीन को बे वकू ि क़रार दे कर मलखा है फक फकसी
आमलम को ग़ैर मुक़स्ल्लद देख कर जाहहल अगर तकलीद
छोड दे तो यूं कहो इल्म था या ना था | अक्ल ए दीन
भी दुश्मनों को नसीब हुई और जाहहलों को जाने दीस्जये|
(तस्जिया अल अक़ाइद पृष्ट ३5 प्रकामशत देवबंद)
वहाबियों औि देविंहदयों के मौलवी अशिफ अली थानवी►
के मल्िू ज़ में है फक एक साहब ने अजस क्या फक हज़रत !
ग़ैर मुक़स्ल्लद ब जाहहर तो सुन्नतों पर अमल करने वाले
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मालूम होते हैं | फरमाया जी हााँ यहााँ तक फक सुन्नत के
पीछे कु छ फराइज़ तक को भी छोड बैठते हैं यह ऐसे
मुत्तबा ए सुन्नत हैं| अकाबबर ए उम्मत की शान में
गुजताखी करना, क्या यह फजस तकस (छोडना) नहीं ? बहुत
ही बे बाक फिरका है | (अिा जातुल यौममया भाग 5 पृष्ट
३0६-३0७)
देविंहदयों के मौलवी मुततज़ा हसन ने अपने अखबार अल►
अदल में मलखा है कौल ए खुदा और हदीस ए रसूल हुक्म
है, और हुक्म होता है और दलील और आदम को सजदा
करो यह हुक्म अपने नफस के मलए दलील नहीं हो
सकता, जो इस हुक्म ए वास्जबुल तामील होने के मलए
दलील है, वह यहााँ मजकू र नहीं इस वजह से इस कौल
को (स्जस के साथ वास्जब अल तजलीम होने की दलील
स्ज़क्र नहीं की गई) बबला दलील तजलीम करता है तो
तकलीद है और शैतान ने इस हुक्म को बबला दलील ना
माना ग़ैर मुक़स्ल्लद हो कर काफफर और मुरतद हो गया |
(अख़बार अल अदल ७, /09/192७) ितवा ए अहले हदीस पृष्ट 90)
दारूल उलूम देविंद का फतवा मौलवी सनाउल्लाह दजस►
करते हैं फक हाफिज़, कारी, आमलम, जाहहद, मुत्तक़ी ग़ैर
मुक़स्ल्लद को इमाम बनाना नहीं चाहहए | (अख़बार अहले
हदीस अमृतसर 0३/08/1945)
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मौलवी िशीद अहमद गंगोही ने मलखा है फक जो उलमा ए►
दीन की तौहीन और उन पर तअन व तशनीअ करते हैं
कब्र के अन्दर उनका मुंह फक़बला से फिर जाता है बस्ल्क
यह फरमाया फक स्जस का जी चाहे देख ले | ग़ैर
मुक़स्ल्लदीन चूाँफक आ-इम्मा ए दीन को बुरा कहते हैं इस
मलए उन के पीछे नमाज़ पढनी मकरूह फरमाया है|
(तजफकरा अल रशीद भाग 2 सतर 21-2३)
मौलवी सुलेमान नदवी ने फिरका वहाबबया को ग़ाली►
फफरका करार हदया है | (अहले हदीस अमृतसर 2६/05/1944
पृष्ट 5)
देविंहदयों के शैख़अल इस्लाम मौलवी हुसैन अहमद►
मदनी के संबध दारुल उलूम देवबंद में ज़ेरे तालीम ग़ैर
मुक़स्ल्लद वहाबी छात्र ने वहाबी मौलवी अबदुल मुबीन
मंजर को ख़त मलखा फक "मौलाना मदनी अपनी तकरीरों
में कहते हैं फक उन का (वहाबबयों का) वजूद शैतान से
हुआ है यह नस्जस हैं | (अख़बार अहले हदीस हदल्ली
कॉलम ३ ,15/04/1954)
देविंहदयों के मदिसा देविंद के मुफ़्ती मौलवी अजीजुि►
िहमान मलखते हैं फक अक्सर ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के अक़ाइद
भी ख़राब होते हैं आ-इमा ए दीन पर खुसूसन तअन
करना, इमाम ए हुमाम हजरत अबू हनीिा )‫عنہ‬ ‫ہللا‬ ‫(رضی‬ पर
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उनका मशआर (उनकी पहचान) हैं और रवाफिज़ (मशओं)
की तरह सलि सामलहीन को तअन कर के अपना दीन व
इमान ख़राब करते हैं | (अहले हदीस अमृतसर 2६/0६/1914 पृष्ट 2)
देविंदी लोगों के मौलवी मुहम्मद थानवी भी वहाबीयों के►
संबंध में मलखते हैं ग़ैर मुक़स्ल्लदीन वहाबीयों का अक़ीदा
है फक आ-इम्मा अरबा में से फकसी एक की तकलीद
करना मशकस है और जो वहाबीयों के मुखामलफत करते हैं
वह भी मुशररक हैं | वहाबी अहल ए सुन्नत व जमाअत
को क़त्ल करना और उनकी औरतों को क़ै द कर लेना
जाइज़ समझते हैं इस के इलावा और दीगर अक़ाइद ए
िासीदा भी हैं फक हम तक सुक्का लोगों के ज़ररए पहुंचे
हैं और अक़ाइद तो हम ने उन से खुद भी सुने हैं वह
एक खारजी फिरका है | (हामशया तनसाई शरीि भाग 1 पृष्ट
३६0 प्रकामशत हदल्ली)
सईदुलहक़ फी तख़रीज जाअलहक़ में हैं फक " भारत में►
1245 हहजरी में यह नया फफरका (ग़ैि मुक़ज़ल्लद) जाहहर हुआ
स्जस के बानी अबदुल हक़ बनारसी थे यह लोग तक़लीद
को मशकस कहते हैं और मज़ाहहबे अरबअ को मुशररक
फिरका कहते हैं | (सईदुल हक़ फी तख़रीज जाअल हक़ पृष्ट 4३)
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मनी (वीयत) पाक है औि खाना भी जाएज़
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के नज़दीक मनी (वीयस) पाक है और खाना
भी जाएज़ है जैसा फक मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब
मसद्दीक हसन खान मलखते हैं:
"मनी हर चंद पाक है" (अिुस ल्जादी फारसी 10)
मनुष्य फक वीयस के नापाक होने की कोई दलील नहीं आई|
(बदूरुर अहला 15)
दोनों (परुष और महहला) की वीयस पाक है| (अल रौज़तुन नद्या
भाग 1 पृष्ट 1३)
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मारुफ ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम अल्लामा वहहदुज्ज़मा खान
मलखते हैं: "मनी (वीयस) खाह गाढी हो या पतली, खुश्क (सुखा)
हो या तर (भीगा) हर हाल में पाक है"| (नुज़ुलुल अबरार भाग 1
पृष्ट 49)
और नामवर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम मोलाना अबुल हसन
मुहीउद्दीन मलखते हैं: "मनी (Sperm) पाक है और एक कौल
में खाने की भी इजाज़त है"| (फफक़ह मुहम्महदया भाग 1 पृष्ट 41)
हिप्पणी: कु ज़ल्फयां िनायें, कस्िर्त जमायें या आइस क्रीम
िनायें ग़ैि मुक़ज़ल्लद मज़े उड़ायें |
नापाक के नसीब में नापाक ही होती है अल्लाह तआला ने
दर अजल ग़ैर मुक़स्ल्लदों को यह सज़ा दी है की वह मुअतबर
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(पववत्र) खाना स्जस पर कु रान शरीि, दुरूद शरीफ, कामलमा
शरीफ पढी गई हो वह खाना उनको नसीब न हो क्यूंफक इन
ख़बीसों के नज़दीक यह खाना मुअतबर (पववत्र) नहीं है
शमत गाह (योनन) की ितुित (पानी/िस) पाक
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के नजदीक महहला की शमस गाह (योतन) की
रतुबत (पानी/रस) पाक है जैसा फक मशहूर व मारुफ ग़ैर
मुक़स्ल्लद आमलम वहीदुज्जामा खान ने मलखा है: "महहला की
शमस गाह (योतन) की रतुबत पाक है" (कन्जुल हकायक पृष्ट 1६)
जब बच्चा महहला की योतन से बहर तनकले और इस पर
योतन फक रतूबत (पानी/ नमी) हो तो वह भी पाक है |
(फफकाह मुहम्महदया पृष्ट 2३)
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वहाबी मौलववयों को सूझी फक हम तो निसानी ख्वाहहशात
के मुक़स्ल्लद हैं | हम से इतने हदन कै से सब्र हो सकता है
मलहाज़ा अपना उल्लू सीधा करने के मलए अकाबबर ए वहाबबया
ने हदीस नबवी की मुखामलफत करते हुए यह कहना शुरू कर
हदया फक हैज़ की कोई मुद्दत नहीं |
हैज़ की कोई मुद्दत नहीं
वहाबबयों के मुजतहहद क़ाज़ी शौकानी ने मलखा है फक हैज़
(माहवारी/ मामसक धमस) की कम और ज़यादह हदनों की कोई
मुद्दत (Period) नहीं| (हहदयतुल मेहदी भाग ३ पृष्ट 50)
हैज़ (मामसक धमस) की मुद्दत (Period) नहीं | अख़बार ए अहले
हदीस अमृतसर पृष्ट 1३, 9 अप्रैल 19३७)
इमामुल वहाबबया वहीदुज्जमा ने मलखा है फक जमाना ए हैज़
में काला (मसयाह) रंग के खून के इलावा फकसी और रंग का खून
हैज़ नहीं | (हहदय्यतुल मेहदी भाग ३ पृष्ट 52)
ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन महहला
हैज़ (माहवािी) से कै से पाक हो
मारूि ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम अल्लामा वहहदुज्ज़मा ग़ैर
मुक़स्ल्लद औरतों को हैज़ (माहवारी) से पाक का तरीका बाते
हुए मलखते हैं: "महहला जब हैज़ से पाक हो तो दीवार के साथ
पेट लगा कर खडी हो जाये और एक टांग इस तरह उठाए
जैसे कु त्ता वपशाब करते वक़्त (समय) उठता है और कोई रोई
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के गाले िु जस (योतन) के अन्दर भरे इस तरह वह पूरी पाक
होगी"| (लुगातुल हदीस)
हिप्पणी: ग़ैि मुक़ज़ल्लद का अजीि व गिीि नुस्खा है ग़ैि
मुक़ज़ल्लद तजििा कि के देखें |
हैज़ (माहवािी) से पाकी के शलए
खुशिू का प्रयोग
मारूि ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम मौलवी अबुलहसन मोही
उद्दीन मलखते हैं: "हाईज़ा हैज़ से पाक हो कर गुजल कर ले
फिर रूई की धज्जी के साथ खुशबू लगाकर शमस गाह (योतन)
के अन्दर रख ले" | (फफक़ह मुहम्महदया भाग 4 पृष्ट 22)
हिप्पणी: जो क़ब्र को खुशिू लगाये वह क़ब्रपिस्त जो शमतगाह
को खुशिू लगाये वह शमतगाह पिस्त |
औित का मज़स्जद में आना जाना
अल्लामा वहहदुज्ज़मा मलखते हैं: जुन्बी नापाक आदमी हाईजा
औरत को मस्जजद में आने जाने की इजाज़त है वहां ठहरना
ना चाहहए | (हदीयतुल मेहदी पृष्ट 5७)
आगे मलखते हैं फक हाईजा औरतों और जनाबत (नापाकी) वाले
लोगो को कु रान पढना जायज़ है | (हदीयतुल मेहदी पृष्ट 58)
औित की इमामत
ग़ैर मुक़स्ल्लदों का मज़हब है फक औरत मदस की इमामत
कर सकती है | (अरिु ल जावी पृष्ट ३७)
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हज़रत जाबबर िरमाते हैं फक मैं ने रसूल ए आज़म को
ममम्बर पर यह िरमाते हुए सुना फक हरचगज़ कोई औरत
फकसी मदस की इमामत न करे | (इबन ए माजा )
वहाबियों ! तुम्हारे अकाबबर फकतने अजीब मसाइल तनकाल
कर तुम्हें लुत्फ अन्दोज़ होने के मौक़ा देते हैं फक नमाज़ पढते
हुए भी इस्न्तशार हो और आनंहदत (लुत्फ अन्दोज़) हो जब
वहाबबन इमाम होगी और उसके पीछे वहाबी हज़रात मुक्तदी हूाँ
तो जब इन की इमाम रूकू और सजदे में जाएगी तो वहाबबयों
में क्यूाँ ना इस्न्तशार होगा और क्यूाँ न लुफ्त अन्दोज़ होंगे |
औितों का मदत इमाम
नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने मलखा है फक इस बात से
रोकना फक मदस उन औरतों की इमामत ना करे स्जन के साथ
मदस न हो इसके अदम जवाज़ पर हमें कोई दलील नहीं| (अिुस ल
जावी पृष्ट ३७)
ना िाशलग िच्चे की इमामत
नवाब नूरुल हसन भोपाली ने मलखा है फक ना बामलग बच्चे
की इमामत सही है| (अिुस ल जावी फारसी पृष्ट ३७)
ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन औितों की नमाज़
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान
मलखते हैं: "नमाज़ में स्जसकी शमस गाह (योतन) सब के सामने
नुमाया (ज़ाहहर) रही उसकी नमाज़ सही है"|(अिुस ल जादी पृष्ट 22)
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नंगे हो कि नमाज़ पढ़ना
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब मसद्दीक हसन खान
मलखते हैं: "महहला तनहा (अके ली) बबलकु ल नंगी नमाज़ पढ
सकती है | महहला दोसरी महहलाओं के साथ सब नंगी नमाज़
पढें तो नमाज़ सही है | ममयां बीवी दोनों अकट्ठे मादर जाद
नंगे (Connatural Naked) नमाज़ पढें तो नमाज़ सही है|
महहला अपने बाप, बेटे, भाई, चाचा, मामा सब के साथ
मादरजाद नंगी नमाज़ पढे तो नमाज़ सही है"|
(बदूरुल अहलह पृष्ट ३9)
यह ना समझें कक यह मजिूिी के मसाइल होंगे |
अल्लामा वहीदुज्जामा पररभावषत (वज़ाहत) करते हैं " फक
कपडे पास होते हुए भी नंगे नमाज़ पढें तो नमाज़ सही है"|
(नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट ६5)
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नमाज़ में चलने से नमाज़ नहीं िूिती
वहाबबयों के इमाम मौलवी वहीदुज्जामा खां ने मलखा है फक
अगर घर में कोई ना हो और जरूरत पडे तो नमाज़ में चल
कर दरवाज़ा खोला जा सकता है इस चलने से नमाज़ पढने
वाले की नमाज़ में कोई िकस नहीं पडेगा |
(कन्जुल हक़ा इक पृष्ट 2७)
कािा शिीफ़ की तिफ मुंह किना
वहाबबयों के इमाम मौलवी अबुल हसन ने मलखा है फक
संभोग के समय फक़बला (काबा शरीफ) की तरि मुंह करना
जाईज़ है भले इमारतों में हो या मैदान में| (फफक़ह मुहम्महदया
पृष्ट 11
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पायखाने के समय फक़बला (काबा शरीि) को मुहं और पीठ
करना जायज़ है और अगर कोई आढ न हो तो कु छ लोग कहते
है फक आढ ना भी हो तो जाईज़ है|
(फफक़ह मुहम्महदया पृष्ट 10-11)
देवबंहदयों के मौलवी अशरि अली थानवी ने भी फतवा
हदया है फक इजतंजा के समय फक़बला (काबा शरीि को मुंह
करना जाइज़ है | (इमदादुल ितवा भाग 1 पृष्ट ३)
काबा शरीि के जातनब पांव (पैर) कर के सोना जायज़ है |
(फतवा ए सत्ताररया भाग 01 पृष्ट 152)
कु रान पाक को तअज़ीमन बोसा देना (चूमना) जाएज़ नहीं
नीज़ बे वज़ू कु रान पाक को छू ना जाएज़ है |
(फतवा ए सत्ताररया भाग 01 पृष्ट 182)
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यह है वहाबबयुं देवबंहदयों का मज़हब मगर हमारे आक़ा
(‫)ﷺ‬ का िरमान है फक जब तुम पखाना को जाओ तो (पखाना
करते समय ) फक़बला (काबा शरीि) की ओर मुंह न करो और
न पीठ करो | (ममश्कात शरीि पृष्ट 42)
खड़े होकि पपशाि किना जायज़ है
वहाबबयों के मौलवी अबुल हसन ने मलखा है फक "अगर
कोई खडे होकर पेशाब करे तो बबला कराहत जाईज़ है"|
(िै जुल बारी भाग 1 पृष्ट 121)
मौलवी वहीदुज़ ज़मा ने भी तयजसरुल बारी में मलखा है फक
"खडे होकर और बैठ कर दोनों तरह वपशाब करना जायज़ है"|
(तयजसरुल बारी भाग 1 पृष्ट 12६)
वहाबी मौलवी तो खडे हो कर पेशाब करने के बबला कराहत
जायज़ क़रार दे रहा है मगर हुज़ूर (‫)ﷺ‬ ने इस को प्रततबंचधत
फरमाई है जैसा फक हदीस शरीि में है फक खडे होकर पेशाब न
करो | (ममश्कात शरीि पृष्ट 42, ततमसज़ी पृष्ट 4)
शमे नबी खौफे खुदा यह भी नहीां वह भी नहीां
पानी में पेशाि
मौलवी अशरि अली थानवी ने मलखा है फक अगर कसरत
से ममक़दार में पानी जमा हो और उस में थोडी सी ममक़दार में
पेशाब िाल हदया जाये तो वह पाक रहेगा | (अिाज़ातुल यौममया
भाग 8 पृष्ट 158)
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ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन का िहन औि िेिी से
आला ए तानासुल (शलंग) को हाथ लगवाना
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के शैखुल कु ल फिल कु ल ममयां नज़ीर
हुसैन देहलवी मलखते हैं: "हर शख्स अपनी बहन, बेटी, बहु, से
अपनी रानों की मामलश करवा सकता है और बवक्ते ज़रूरत
अपने आलाए तानासुल (मलंग) को भी हाथ लगवा सकते हैं"
(ितवा नज़ीररया भाग ३ पृष्ट 1७६)
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पीछे के िास्ते सुहित (संभोग) किना
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के मलए जायज़ है
और गुजल भी वास्जब नहीं
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम मसद्दीक हसन खान मलखते
हैं: "शमस गाह (योतन) के अंदर झांकने के मकरूह होने पर कोई
दलील नहीं" | (बदूरुल अहला पृष्ट 1७5)
आगे मलखते हैं: “रानुं में सुहबत (संभोग) करना और दुबुर
(चूतड) में सुहबत करना जायज़ है कोई शक नहीं बस्ल्क यह
सुन्नत से साबबत है” (बदुरुल अहला पृष्ट 15७) ‫ہللا‬ ‫معاذ‬ ‫۔‬ ‫استغفرہللا‬
और मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम वहीदुज्जामा मलखते हैं:
“बीवीयुं और लोंिीयूं के ग़ैर फफतरी मुकाम (पीछे के मुकाम) के
इस्जतमाल पर इनकार जाएज़ नहीं”|
(हहदयुल मेहदी भाग 1 पृष्ट 118)
आगे मलखते हैं: “दुबुर (पीछे के मुकाम/ चूतड) में सुहबत
(संभोग) करने से गुसल भी वास्जब नहीं होता”
(नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 2३)
आदमी के पैखाने के जथान में संभोग फकया तो ग़ुजल
वास्जब नहीं | (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 24)
जानवरों की दुबुर में संभोग फकया तो ग़ुजल वास्जब नहीं |
(नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 2३)
मुदास औरत से स्जमा (संभोग) फकया तो ग़ुजल फजस नहीं |
(नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 2३)
हिप्पणी :ज़जंदा तो ज़जंदा मुदों को भी नहीं छोड़ा |
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अगर कोई औरत लकडी या लोहे का मलंग बनकर प्रयोग
करे तो ग़ुजल फज़स नहीं | (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 2३)
जानवर चौपाए (पशु) के पेशाब गाह में कोई परुष अपना
मलंग दाखखल करे तो हमारे (अहले हदीसों) के नज़दीक हक
बात यह है फक उस शख्स पर ग़ुजल नहीं है | हहदयातुल मेहदी
भाग ३ पृष्ट 24)
हिप्पणी: इन िातों से पता चलता है कक इन ग़ैि
मुक़ज़ल्लदों के यहााँ ऐसी गंदी औि निनौनी हिकतें की जाती हैं|
फु लां जगह (दुिुि) में िख लो
देवबंदी मौलवी मलखते हैं फक जब वह शख्स शाह साहब के
ख़त लेकर उस के पास पंहुचा तो गुजताख ने उस ख़त को मोड
कर एक बत्ती सी बना दी और कहा ले जाओ | शाह साहब से
कहो इस को अपनी िु लां जगह (दुबुर) में रख लो | गाली दी
यह शख्स भी अजीब था यह सीधा शाह साहब के पास वापस
आया और जो अल्िाज़ उस ने कहे थे नक़ल कर हदए |
िरमाया अगर में जानता मेरे उस अमल से तेरा काम हो
जाएगा तो मैं इस में भी तामुल (सोच-ववचार) ना करता मगर में
जानता हूाँ फक यह लग्व (बे हूदा) हरकत है | (मजमलसे हकीमुल
उम्मत पृष्ट 259)
वहाबबयों के इमाम मौलवी वहीदुज्जामा ने एक अजीब व ग़रीब
मसअला ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के मलए यह भी बयान फकया है फक:
“खुद अपना आला ए तनासुल (मलंग) अपनी ही दुबुर (चूतड) में
दाखखल फकया तो गुजल वास्जब नहीं”|
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(नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 24)
हिप्पणी: यह कै से मुमककन है ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन तजिात
(अनुभाव) कि के हदखायें |
अपनी मााँ से ज़ज़ना
एक शख्स अपनी मााँ से स्ज़ना करता था और कहता था फक
जब में पूरा इस के अन्दर था और अब अगर मेरा एक अज़व
(हहजसा) अंदर चला गया तो क्या हज़स है तो मौलवी अशरि
अली थानवी क्या कहते हैं जकै न पेज देखें | (मल्िू ज़ाते हकीमुल
उम्मत पृष्ट ६७)
ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन के नज़दीक
ज़ज़ना किना जायज़ है
नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने तो चूतड और रानो वगैरह
से आनंद लेने की इजाज़त दी है मगर इसके बेटे मौलवी नूरुल
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हसन भोपाली ने तो मजबूरन स्ज़ना (व्यमभचार) को भी जायज़
क़रार दे हदया है जैसा फक मलखा है "जो शख्स स्ज़ना पर
मजबूर फकया जाये इस पर हद वास्जब नहीं क्यूंफक अहकामे
शर इया इस्ख़्तयार से मुक़य्यद है"| (अरिु ल जावी पृष्ट 215)
नफस का पुजाररयों ने तो ग़ैर मुक़द्द्मलदीन मदस और
औरतों के मलए सारे दरवाजे खोल हदए जैसा फक मशहूर ग़ैर
मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान मलखते हैं: “स्जनको
स्ज़ना पर मजबूर फकया जाये उसको स्ज़ना करना जायज़ है
और कोई हद वास्जब नहीं | महहला की मजबूरी तो ज़ाहहर है |
पुरूष भी अगर कहे फक मेरा इरादा ना था मुझे कु वते शहवत
(Sexual Excitation) ने मजबूर फकया तो मान मलया जाएगा
अगरचे इरादा स्ज़ना का न हो” | (अिुस ल जादी पृष्ट 20६)
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मााँ, िहन, औि िेिी से ज़जना की इजाज़त
मौलवी वहहदुज्ज़मा ने वहाबबयों के मलए अपनी मााँ, बहन,
बेटी से स्जना की खुली इजाज़त दे दी है जैसा फक मौलवी
साहब मलखते हैं: अगर फकसी ने मुहरीमत (मााँ, बहन, बेटी
अत्यादी) से स्ज़ना फकया तो उसको हक ए महर की ममजल
अदा करना पडेगा | (नुज़ूलुल अबरार भाग 2 पृष्ट ३1)
ससुि का िहु से ज़जमा किना
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलवी वहहदुज्ज़मा ने मलखा है फक
और इसी तरह कोई शख्स ने अपने बेटे की बीवी (बहु) से
स्जमा (संभोग) फकया तो उसके बेटे पर औरत हराम नहीं होगी|
(नुज़ूलुल अबरार भाग 2 पृष्ट 28)
ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलववयों ने मााँ, बहन, बेटी और बहु
अत्यादी से स्जमा (संभोग) की जो इजाजत दी है आप ने पढ
ली है यह मसलमसला यहााँ तक ही नहीं बस्ल्क अपनी सास से
भी स्जमा की इजाज़त इन लफ्जों में दे रखी है |
सास से ज़जमा
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलवी वहहदुज्ज़मा ने मलखा है फक
और अगर इसी तरह कोई शख्स ने अपने सास से स्जमा
(संभोग) फकया तो उस पर उसकी औरत हराम नहीं होती |
(नुज़ूलुल अबरार भाग 2 पृष्ट 28)
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सगी नानी औि दादी से ननकाह जायज़ है
मौलाना सनानुल्लाह अमृतसरी ने एक सवाल के जवाब में
दादी, और नानी के साथ तनकाह करने को मुबह और जायज़
कर हदया और सौतीले भांजा की पोती से तनकाह जायज़ कर
हदया | (फकताब अल तौहीद व अल सुन्नाह पृष्ट 2७३ / अख़बार
अलहे हदीस अमृतसर पृष्ट 4, 11 रमज़ान 1३28 हहजरी) अलाम
खखस्ल्कल्लाह पृष्ट ३, 10६ )
सौतेली मााँ से ननकाह
इमाम अल वहाबबया सनाउल्लाह अमृतसरी ने अख़बार ए
अहले हदीस में एक प्रशन का उत्तर देते हुए सौतीली मााँ से
तनकाह जायज़ क़रार हदया मलखते हैं फक मेरे नाफकस इल्म में
इसकी हुरमत की कोई दलील नहीं ममलती| (अख़बार ए अहले
हदीस पृष्ट 12, 14 अप्रैल 191६)
साली से ज़ज़ना
इमामुल वहाबबया मौलवी सनाउल्लाह ने सवाल का जवाब
दे हुए मलखते है फक साली से स्ज़ना करने से मन्कू हा (बीवी)
हरम नहीं होती" | (अख़बार ए अहले हदीस अमृतसर पृष्ट 10, 2६
जनवरी 1912)
आप हज़िात वहाबी अकाबबर की नफस परजती और शहवत
ए ज़नी के इन अजीब अंदाज़ से बहुत हैरान होते होंगे |
हैरानगी फक कोई बात नहीं दर हक़ीक़त वहाबी अकाबबर ने
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अपनी फकताबों में कु छ ऐसे मसाइल की तालीम और तरगीब
अपने वहाबबयों को दी है स्जस से निसानी जज़्बात उभरते हैं|
मुतआ(अस्थायी पववाह)जाएज़ है
वहाबबयों के सबसे बडा इमाम मौलवी वहीदुज्जामा ने मलखा
है फक “मुतआ (कु छ समय के मलए औरत से तनकाह करना)
की अबाहत (जाएज़ होना कु रान की कतई आयात से साबबत
है”| (नुज़ुलुल अबरार भाग 2 पृष्ट ३३)
वहाबबया नस्ज्दया के इमाममया पाटी मुखखया मौलवी अबदुल
वह्हाब और अबदुजसत्तार देहलवी के नजदीक मुतआ जाएज़ है|
(अख़बार मुहम्मदी हदल्ली पृष्ट 15, 1 जनवरी 1941 ईजवी)
ज़जस कफ़िका के मसाइल िे हयाई औि निनौनी हो उस
कफ़िका के िािे में आप खुद ही ज़िा सोच लें |
सहीफा अहले हदीस में है फक .....
‫القیامۃ‬‫یوم‬‫الی‬‫حرام‬‫المتعۃ‬
मुतआ फकयामत तक हराम है |
(सहहिा अहले हदीस कराची 1६ सफर 1३8७ हहजरी )
र्शया लड़की के साथ ननकाह
देवबंहदयों के मुफ़्ती और इमाम मौलवी फकिायतुल्लाह
देहलवी ने मलखा फक मशया लडकी के साथ सुन्नी मदस का
तनकाह दुरुजत है | (फकफायतुल मुफ़्ती भाग 1 पृष्ट 2७8)
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ग़ैर मुकललीदीन का
माूँ, बहन, बेटी का ल्िस्म (शरीर) देखना
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान
मलखते हैं: " मााँ, बहन, बेटी वग़ैरह फक क़बलो दुबुर (योतन एवं
चूतड) के मसवा पूरा बदन देखना जायज़ है" (अिुस ल जादी पृष्ट 52)
हिप्पणी: यह मसाइल पढ़कि हमें शमत आती है ना जाने
ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन इन पि कै से अमल किते होंगे |
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ग़ैि मुक़ज़ल्लद महहला का
दाढ़ी वाले पुरूष को दूध पपलाना
वहाबबयों के मुिस्जसर और मुहद्हदस मौलवी वहीदुल्ज्ज़मा
हैदरबादी ने मलखा हैं:"जायज़ है फक महहला ग़ैर पुरूष को
अपना दूध छाततयों से वपलाये अगरचे वह पुरूष दाढी वाला
होता फक एक दुसरे को देखना जायज़ हो जाये"| (नुज़ुलुल अबरार
भाग 2 पृष्ट ७७)
वहाबबयों के मुजद्हदद काजी शोकानी ने मलखा है जाइज़ है
दूध वपलाना बडी उम्र वाले को अगरचे दाढी रखता हो वाजते
जवाज़ नज़र के | (अल दररुल बबह पृष्ट ३4)
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हिप्पणी: हो सकता हो फक वहाबी मौलववयों ने इसमलए
औरतों का ग़ैर मदों को देखना जायज़ क़रार हदया है ताफक ग़ैर
मुक़स्ल्लदीन औरतें अपनी पसंद के मदों को ढूध वपला लें और
इमामुल वहाबबया सनाउल्लाह अमृतसरी ने भी इसमलए औरतों
को मैक अप करने और सरों के बालों पर िू ल झाडडयााँ बनाने
की इजाज़त दी है ताफक अपनी बनावट से मदों को क़ाबू कर
लें | याद रहे फक यह मसाइल क़ु रान व हदीस के नाम पर
बयान फकया जा रहा है |
औित के शलए ग़ैि मदत को देखना
वहाबबयों के मुिस्जसर और मुहद्हदस मौलवी वहीदुल्ज्ज़मा
ने मलखा हैं:" और औरत का ग़ैर आदमीयों को देखना जायज़
है और हदीस फक नबी पाक (‫وسلم‬ ‫علیہ‬ ‫ہللا‬ ‫)صلی‬ ने अपनी अज्वाज ए
मुतहहरात (‫عنہن‬ ٰ‫تعالی‬‫ہللا‬‫)رضی‬ को फरमाया फक अबदुल्लाह बबन मक्तूम
तो नाबीना (आाँखों में रौशनी न होना) है क्या तुम भी नाबीनी
हो | यह नबी पाक (‫وسلم‬‫علیہ‬‫ہللا‬‫)صلی‬की अज्वाज ए मुतहहरात ( ‫عن‬ ٰ‫تعالی‬‫ہللا‬‫رضی‬‫ہن‬ )
के मलए ही ख़ास था |" (नुजूलुल अबरार भाग 2 पृष्ट ७4)
वहाबी मौलवी ने वहाबी औरतों को अजनबी और ग़ैर
मुहररम मुदों को देखने और उनका नज़ारा करने की इजाज़त
हदीस ए मुजतफा (‫وسلم‬ ‫علیہ‬ ‫ہللا‬ ‫)صلی‬ की फकस मक्कारी से मुखामलित
करते हुए दी है और शैतान मरदूद की शैतातनयत की कै से पुर
ज़ोर समथसन की है |
हज़रत अली(‫الکریم‬‫وجہہ‬‫ہللا‬‫)کرم‬ नबी करीम (‫وسلم‬‫علیہ‬‫ہللا‬‫)صلی‬ की खखदमत में
हास्ज़र हैं फक आप ने सब से दरयाफ्त फरमाया फक बतलाओ
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औरत के मलए कौन सी बात सबसे बहतर (अच्छा) है ? इस
पर तमाम सहाबा खामूश रहे और फकसी ने कोई जवाब न
हदया हज़रत अली (‫الکریم‬‫وجہہ‬‫ہللا‬‫)کرم‬ िरमाते हैं फक मैं ने वापस आकर
हज़रत फाततमा ज़हरा (‫عنہا‬ ٰ‫تعالی‬ ‫ہللا‬ ‫)رضی‬ से पूछा फक औरतों के मलए
सब से बहतर क्या बात है ?
उन्हों (‫عنہا‬ ٰ‫تعالی‬ ‫ہللا‬ ‫)رضی‬ ने फरमाया फक न वह ग़ैर मदों को देखे
और न ग़ैर मदस उन्हें देखें |
मौला अली मुस्श्कल कु शा (‫الکریم‬‫وجہہ‬‫ہللا‬‫)کرم‬ ने यह जवाब हुज़ूर से
अजस फकया तो हुज़ूर ने खुश हो कर इशासद फरमाया फक वह
(‫عنہا‬ ٰ‫تعالی‬‫ہللا‬‫)رضی‬ मेरे हदल के टुकडे हैं | (दार अल क़ु तनी)
सह्हा ए मसत्ता में से ततमसज़ी शरीि और अबू दाऊद शरीि
में हदीस शरीि है फक कु छ उम्माहातुल मोमीन (‫عنہن‬ ٰ‫تعالی‬ ‫ہللا‬ ‫)رضی‬
हजूर (‫وسلم‬‫علیہ‬‫ہللا‬‫)صلی‬ की खखदमत में थीं | उसी वक़्त इबन ए मक्तूम
आए | हुज़ूर (‫وسلم‬‫علیہ‬‫ہللا‬‫)صلی‬ ने अज्वाज ए मुतहहरात (‫عنہن‬ ٰ‫تعالی‬‫ہللا‬‫)رضی‬ को
पदास का हुक्म फरमाया उन्हों ने अजस की फक वह तो नाबीना
हैं फरमाया तुम तो ना बीना नहीं हो |
मौलवी नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने मलखा है फक पदास
वाली आयत ख़ास नबी पाक (‫وسلم‬ ‫علیہ‬ ‫ہللا‬ ‫)صلی‬ की अज्वाज ए
मुतहहरात (‫عنہن‬ ٰ‫تعالی‬‫ہللا‬‫)رضی‬ के बारे में वाररद (नास्ज़ल हुई है) उम्मत
की दोसरी औरतों के वाजते नहीं है | (बुन्यनुल मसूस पृष्ट 1६8)
खुद बदलते नहीं क़ु रान बदल देते हैं
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िे पदतगी की इजाज़त
मौलवी अशरि अली थानवी ने मलखा है फक एक अंग्रेज़ ने
सवाल फकया था बमअ अपनी अहमलया (अपनी बीवी के साथ)
के मुसलमान हो गया था फक हम हहंदुजतान आना चाहते हैं
और हमारी मेम (बीवी) भी हमराह (साथ) होगी और वह ना
पदास करेगी | मैं ने मलख हदया आप के मलए इजाज़त है |
(अिाज़ातुल यौममया भाग 8 पृष्ट 25६)
देविंदी मुिज़ल्लगे आज़म की िीवी
फ़ै शन के शलए ब्यूिी पालति में
मारूि देवबंदी मुबस्ल्लग मौलवी ताररक जमील की बीवी
और भाभी फै शन के मलए एक बयूटी पालसर पर गयीं वहां पर
उनके ज़ेवेरात चोरी हो गई | (रोजनामा नवाए वक़्त लाहोर 25
जुलाई 200७ – रोजनामा जंग लाहोर 28 जुलाई 200७)
नज़दी वहाबबन औरतें क़ब्रुजतान जाया करेंगी (फतवा अल
बातनया पृष्ट ३04-३05)
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ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन का
अपनी िेिी से ननकाह (शादी)
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम मौलवी वहहदुज्ज़मा ने
मलखा है फक और अगर फकसी औरत से स्जना फकया हो तो
उस मदस के मलए मस्ज्नयााँ की मााँ और बेटी जाएज़ है |
(नुजूलुल अबरार भाग 2 पृष्ट 21)
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान
मलखते हैं: "अगर फकसी महहला से ज़ैद ने स्ज़ना फकया और
उसी से लडकी पैदा हुई तो ज़ैद को अपनी बेटी से तनकाह कर
सकता है | (अिुस ल जादी पृष्ट 109)
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ग़ैि मुक़ज़ल्लद पुरूष के शलए
चाि से अधीक शादीयों की इजाज़त
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब मसद्दीक हसन खान
मलखते हैं: "चार की कोई हद नहीं (ग़ैर मुस्क्ल्लद मदस) स्जतनी
औरतें चाहे तनकाह में रख सकता है" | (ज़िरुल अमानी पृष्ट
141/ (अिुस ल जादी पृष्ट 115)
भािती औितें हूिें हैं
देवबंदी वहाबी के मौलवी अशरि अली थानवी ने मलखा है
फक "मैं तो कहा करता हूाँ फक हहन्दुजतानी औरतें हूरें हैं
(अिाजातुल यौममया भाग 4 पृष्ट 220)
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नाम ननहाद हूरूं से ज़ज़ना
एक हाफिज़ जी अंधे थे हरीस थे उन्हों ने कहीं सुन मलया
फक ख़ुदा ए तआला ने जन्नत में मोममनीन के मलए हूरें पैदा
की हैं बस हर वक़्त वह (हाफिज़ जी) दुआ फकया करते थे फक
ए अल्लाह हूरें भेज ! हूरें भेज ! बाज़ारी औरतें बडी शरीर (बद-
तमीज) होती हैं | कहीं उन्होंने सुन मलया, (उन बाज़ारी औरतों
ने) आपस में मशवरा फकया फक चलो (हम) हाफिज़ को हूरों से
तौबा करा दें | सब जमा हो के आयीं, आप (हाफिज़ साहब) ने
खटका सुन कर पुछा कौन ? औरतों ने कहा हूर | (हाफिज़
जी) बडे खुश हुए फक बहुत हदनों में मेरी दुआ कु बूल हूई | खैर
मुंह काला फकया (स्ज़ना फकया) | दूसरी (बाज़ारी औरत) आई
पूछा कौन हूर कहने लगी फिर सही | उस से भी मुंह काला
फकया | गज़स बहुत सी (वह औरतें) थी | उनका भी कई वषस का
जोश था | आखख़र कहााँ तक वह पूरा हो चूका तो और (औरत)
आई पूछा कौन, कहा हूर | गाली देके (हाफिज़ जी) कहने लगे
| सब हूरें मेरी ही फकजमत में आ गयीं | सो हज़रत स्जस तरह
से वह हूर से घबरा गए उस तरह तुम नूर से घबराते |
(बरकाते रमज़ान मश्मूला खुत्बाते हकीमुल उम्मत भाग 1६, पृष्ट 248
-हफ्ते अख्तर ६/105)
शमत गाह (योनन) का महल
(स्थान) काइम (ििक़िाि) िखने का नुस्खा
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के शैखेकु ल फिलकु ल ममयां नजीर हुसैन
दहलवी मलखेते हैं: "महहला को ज़ेरे नाि बाल उसतुरे से साफ
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करना चाहहए उखाड ने से महल (योतन) ढीला हो जाता है"|
(फतवा नज़ीररया भाग 4 पृष्ट 52६)
मुश्तजनी (हस्तमैथुन) जायज़ है
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान
मलखते हैं: अगर गुनाह से बचना हो तो मुश्तज़नी (हजतमैथुन)
वस्जब है | (अिुस ल जादी पृष्ट 20७)
मौलवी वहीदुज्जामा ने भी यही मलखा है फक कु छ लोगो ने
मुश्तज़नी (हजतमैथुन) को जाएज़ क़रार हदया है और नबी पाक
)‫وسلم‬ ‫علیہ‬ ‫ہللا‬ ‫)صلی‬ का जो इशासद मुबारक मुश्तज़नी (हजतमैथुन) की
वईद और मुमातनअत में है उस को ज़-इि क़रार हदया है|
(नुजूलुल अबरार)
हिप्पणी: औि आगे जो शलखा है वह िात क़ारिऐन ज़िा
हदल थम के पहढ़ये
"और बअज़ (कु छ) सहाबा (‫الرضوان‬‫)علیہم‬ भी फकया करते थे" |
(मुआज़ल्ला) (अिुस ल जादी पृष्ट 20७)
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एहनतलाम िोकने की तहकीक
ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलवी नवाब मसद्दीक हसन भोपाली मलखते हैं"
अगर दाएाँ रान पर आदम का नाम और बाएं रान पर हव्वा का
नाम मलख हदया जाये तो इहततलाम नहीं होता |
(अल-दा ए वद-दाए पृष्ट 1७9)
एक महहला
पपता एवं पुत्र के दोनों के शलए हलाल
ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलवी वहहदुज्ज़मा मलखते हैं: "अगर बेटे ने
एक महहला से स्ज़ना फकया तो यह महहला बाप के मलए हलाल
है इसी तरह इसके बरअक्स (ववपरीत) भी" | (नुज़ुलुल अबरार
भाग 2 पृष्ट 28)
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िाप औि िेिे की मुश्तिक (साझा) िीवी
अल्लामा वहहदुज्ज़मा मलखते हैं: अगर फकसी ने अपनी मााँ से
स्ज़ना फकया, खाह स्ज़ना कर ने वाला बामलग हो या ना बामलग
या क़रीबुल बुलूग, तो वह अपने खाववंद (पतत) पर हराम नहीं
हूई | (नुज़ुलुल अबरार भाग 2 पृष्ट 28 )
हिप्पणी: िहुत खूि ! ननकाह औि ज़ज़ना दोनों की गाड़ी चलती
िहे |
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खून औि क़ै वज़ू नहीं िूिता
नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने मलखा है फक वज़ू खून
और क़ै से (अगरचे इसकी ममक़दार फकतनी भी हो) नहीं टूट ता
(अिुस ल जावी पृष्ट 14)
बिला वज़ू औि ग़ुस्ल के कु िान छू ना
नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने मलखा है फक स्जस का वज़ू
और ग़ुजल न हो ऐसे शख्स को क़ु रान करीम का छू ना जाएज़
है | (अिुस ल जावी पृष्ट 15)
ज़ज़ना की औलाद िांिने का तिीका
ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलवी वहहदुज्ज़मा ने मलखा है अल्लामा
वहहदुज्ज़मा मलखते हैं: एक महहला (ग़ैर मुक़स्ल्लदह) से तीन
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(ग़ैर मुक़स्ल्लद) बारी बारी सुहबत (सेक्स) करते रहे और इन
तीनों की सुहबत से लडका पैदा हुआ तो लडके पर कु रआ
अंदाजी (आकवषसत कायस) होगी | स्जसके नाम क़ु रआ (आकवषसत)
तनकल आया उसको बेटा ममल जायेगा और बाक़ी दो को यह
बेटा लेने वाला ततहाई हदयत (देयधन) देगा | (नुज़ुलुल अबरार
भाग 2 पृष्ट ७5)
गभतशय का चचत्र
हाफिज अबदुल्लाह रोपडी मलखते हैं: रहम मसाना (वपशाब
की थैली / मुत्रशय) और रोदा मुजतक़ीम (पखाना तनकलने की
अंतडी) के दरममयान पुट्ठे की तरह सादा रंग का गदसन वाला
एक अज़व (अंग) है स्जस की शक्ल क़रीब क़रीब उलटी सुराही
की बतलाया करते है मगर पूरा नक्शा उसका क़ु दरत ने खुद
पुरूष के अन्दर रखा है | पुरूष अपनी आलत (मलंग) को
उठाकर पैरूं के साथ लगा ले तो आलत मअ खुस्जसतीने रहम
का पूरा चचत्र है"| (तंज़ीम यकु म मई 19३2 पृष्ट ६ कालम नम्बर 1)
हिप्पणी : ग़ैि मुक़ज़ल्लद मौलवी सनाउल्लाह अज़ततसिी इस
पि हिप्पणी किते हैं "चचत्र िना देते तो शायद लाभ होता" |
औित की शमतगाह कै सी होती है ???
एक बार भरे मजमा में हज़रत (गंगोही) की फकसी तक़रीर पर
एक नो उम्र हदहाती बे तकल्लुि पूछ बैठा फक हज़रत जी औरत
की शमसगाह कै सी होती है ? अल्लाह रे तालीम, सब हास्ज़रीन ने
गदसनें झुका ली मगर आप मुतलक़ चीं ब चीं ना हुए बस्ल्क बे
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साख्ता फरमाया फक जैसे गेहूं का दाना | (तस्ज्करतुर रशीद भाग 2
पृष्ट 100)
ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन के शलए
िेहतिीन महहला
वहाबबयों के मशहूर व मारूि मौलवी वहहदुज्ज़मा ने मलखा
है : "ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के मलए (बहतर महहला वह है स्जसकी
िु जस (योतन) तंग हो और शहवत (सेक्सी) के मारे दांत रगड
रही हो और जमाअ (संभोग / हमबबजतरी) कराते समय करवट
से लेटी हो" | (लुगातुल हदीस भाग ६ पृष्ट 428)
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ईदेन का खुतिा
मौलवी मसद्दीक हसन भोपाली मलखते हैं फक ईदेन का
खुतबा बे वजू जायज़ है | (बदूरुल अहहल्लह पृष्ट ७9)
नमाज़ में लड़का या लड़की को उठाना
वहाबबयों की मशहूर फकताब फफक्ह मुहम्महदया में मलखा है
फक लडके और लडकी को नमाज़ में उठाना दुरुजत है, बराबर
है नमाज़ ए फजस हो या नफ्ली और इसी तरह जायज़ है,
नमाज़ में उठाना हर जानवर पाक का, पररंदे और बकरी का" |
(फफक्ह मुहम्महदया भाग 1 पृष्ट 14७)
कु त्ते को उठाकि नमाज़
अल्लामा वहहदुज्ज़मा मलखते हैं: कु त्ते को उठाकर नमाज़
पढने से नमाज़ िामसद नहीं होती | (नुज़ुलुल अबरार पृष्ट ३0)
िे नमाज़ काकफ़ि व मुशरिक है
वहाबबया नस्ज्दया के ररसाला सहीफा अहले हदीस में
मलखा है फक बे नमाज़ शरीअत की रू से काफफर मुशररक है |
(सहीफा अहले हदीस कराची पृष्ट 19, 1६ मई 195७)
वहाबबयों के मौलवी रिीक खां पसरोरी ने भी मलखा है फक
"बे नमाज़ काफफर है " | (इजलाह अक़ाइद पृष्ट 108)
बे नमाज़ का जनाज़ा नहीं (सहीफा अहले हदीस कराची पृष्ट
22, 15 जमाद अल सानी 1३७३ हहजरी)
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Nafs ka pujari wahabi deobandi

  • 2. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 1 सर सूए रौज़ा झुका फिर तुझ को क्या इमाम अहले सुन्नत अज़ीमुल बरकत आला हज़रत अल शाह इमाम अहमद रज़ा खाां अलैहहररहमाां बरेली शरीफ़
  • 3. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 2 शर्मिंदा क्यूूँ ऐसे हालात करें शैखुल इस्लाम वल मुस्स्लमीन हज़रत अल्लामा सय्यद मुहम्मद मदनी ममयाां अल-अशरफ़ी ककछौछा शरीफ स्ज़क्रे जहााँ में हम सब पड़ कर कयूाँ ज़ा-अ लम्हात करें आओ पढ़े वश शम्स की सूरत रूए नबी की बात करें स्जन के आने की बरकत से धरती की तक़दीर खुली आओ हम सब उन चरणों पर जान व टदल सौगात करें नूर ए खुदा है नूर ए नबी है नूर है दीां और नूरे ककताब हम ऐसे रोशन कक़स्मत कयों तारीकी की बात करें रहमत वाले प्यारे नबी पर पढ़ते रहो टदन रात दुरूद आओ लोगों अपने उपर रहमत की बरसात करें कया यह सूरत उन को टदखाने के लाएक़ है गौर करो सामने उन के हूाँ शममिंदा कयूाँ ऐसे हालात करें क़ब्र में ‫ادری‬ ‫ال‬ ‫ھا‬ ‫ھا‬ कहने की रुसवाई से बचो बबगड़ी हालत कब बनती है चाहे लाख ‫ھیھات‬ करें अहले इश्क गुज़र जाते हैं दार व नार की मांस्जल से अहले खखरद के बस में नहीां है अहले इश्क की मात करें यह लाज्ज़ात की दुननया कब तक ? इस की असीरी ठीक नहीां आओ समझ से काम लें अख्तर ख़ुद को तामलब ए ज़ात करें (तजस्ल्लयात ए सुखन पृष्ि ३४)
  • 4. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 3 बद तमीजी तो है पैदाइशी खसलत तेरी हक़ को बाततल से ममलाना यह है फितरत तेरी रब की आयात का इनकार है आदत तेरी अहल ए ईमान पे जाहहर है ख़बासत तेरी हैं शयातीन तेरे नाज़ उठाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले औमलया से है अक़ीदत हमें और तुझ को बैर वह हैं अल्लाह के अपने तू समझता है गैर तू है बदबख़्त कहााँ तेरे मुक़द्दर में खैर तेरे माथे पे तो शैतान ने रखा है पैर लानतें तुझ पे हूाँ आयात ममटाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले इहतराम और अक़ीदत से जो आते हम हैं िू ल चादर जो मज़ारात पे लाते हम हैं फै ज़ अल्लाह के महबूबों से पाते हम हैं क्यों तो मरता है अगर उसस मनाते हम हैं दुश्मने औमलया ओ दोज़खी थाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले नंगे मस्जजद में नहाता है तो तबलीग है यह भोज मस्जजद पकाता है तो तबलीग है यह नाक मस्जजद में बजाता है तो तबलीग है यह बदबू मस्जजद में उडाता है तो तबलीग है यह थू थू मस्जजद में ख़ुरािात मचाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले जश्न ए ममलाद मनाने पे तू रोता क्यों है इस क़दर ददस तेरे सीने में होता क्यों है नारा ए जश्न से औसान तू खोता क्यों है इस हदन शैतान का बन जाता तू पोता क्यों है हाय तकदीर तेरी नार जाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले जश्ने देवबंद मुसरसत से मनाते हो तुम इंहदरा गााँधी के मलये बज़्म सजाते हो तुम मुशररका के मलए कु रान पढाते हो तुम कै सी मक्काररयााँ करते हो कराते हो तुम दीन तो है नहीं, हदल बीच के खाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले िाततहा वाले यह हलवे यह ममठाई ज़दे सभी न जाइज़ व बबद-अत तेरे आगे ठहरे खीर और पूडी है दीवाली की जाइज़ ले ले और बतलाये फक जाइज़ हैं कपूरे कौवे क्यों न तो गंद बके गंद के खाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले िू ल, खुशबू ए मज़ारात से चचढता है तू पोतडे नानी के ममल जाएाँ तो बााँटते खुशबू बदबू को खुशबू तो खुशबू को बताए बदबू तू मुसलमान नहीं तुझ में है भंगी की ख़ू दूर हट गंद की सोगंद उठाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले सरवरे दीन को कहे मर के वह ममट्टी में ममले गौस और ख्वाजा हैं बेबस तू यह बकवास करे क़ब्र से घर पर ममठाई तेरा दादा लाए इस को उस मुदे की स्जंदा करामत जाने कै सा बेशमस है मक्कार बहाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले उनको ख़ामलक़ ने बनाया है नबी ए आखखर खुद नबी ने भी फकया है यही सब पर ज़ाहहर लेफकन इक तेरे ही फफरके का लाईन शाततर करके इंकार फकया तुम को भी ख़ुद सा काफफर ये हैं क़ाइद तेरे दोज़ख के हठकाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले दुश्मने दीन ए हसन झूटे िसाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
  • 5. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 4 इल्मे गैब ए नबवी मशकस नज़र आए तुझे और शैतान को अल्लाह का साझी जाने रब के महबूबों की तारीफ बुरी तुझको लगे हााँ मगर थानवी मरदूद का कामलमा पढ ले क्या यही दीन है शैतानी घराने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले दाढी वाले जो बीवी का मज़ा लेता है जो भरी भीड में भी टांग चढा देता है ऐसा बद फे -अल भी रूहानी तेरा नेता है अपनी इज़्ज़त का गला तूने तो खुद रेता है ओ शैतान को अक़ताब बताने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले देख यह बात बताती है तेरे घर की फकताब रंडियों के यहााँ जाते थे तेरे आली जनाब कर दी उस पीर ने इक बात कु छ इस दजास खराब फक त-वाइि ने फकया पीर के मुंह में पेशाब यह तेरे शेख हैं गंगा में नहाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले कोई गुजताख़, नबी (‫)ﷺ‬ को कहे अपने जैसा फकसी मरदूद ने सरकार (‫)ﷺ‬ को मजबूर कहा कोई बेहूदा बके इल्म, बहाइम स्जतना कोई बदबख़्त यह मलखता है फक हम से सीखा यह कमीने हैं तेरे अगले जमाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले रब को जो झूटा कहें, हैं वह अकाबबर तेरे और मसद्दीक हुए झूठ में माहहर तेरे नजसुल ऐन से बदतर हुए ताहहर तेरे स्जन को ज़ामलम कहा रब ने वह हैं नामसर तेरे क्या तेरे भैजे में कीडे हैं पखाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले बाब ए तौबा है कु शादा अभी तौबा कर ले सुन हर इक काफफर व मुनकर से फकनारा कर ले ममल फकसी रिजवी से, पाक अपना अकीदा कर ले अपने ज़ुल्मत कदा हदल में, उजाला कर ले फिर यह अय्याम नहीं लौट आने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
  • 6. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 5 जमाअते अहल ए हदीस का नया दीन लेखक ख़लीफा ए शैखुल इस्लाम हज़ित यहहया अंसािी अशिफ़ी अल वहाबियत लेखक मुनाज़ज़िे इस्लाम मुहम्मद ज़ज़या उल्लाह क़ादिी अशिफ़ी गुस्ताखे िसूल गुरुह के सेक्सी मुल्ला लेखक मुनाज़ज़िे अहल ए सुन्नत हज़ित अब्दुस्सत्ताि हमदानी ििकती लेखक देविंहदयत के िुतलान का इंकशाफ़ मुनाज़ज़िे इस्लाम मुहम्मद काशशफ इकिाल मदनी िज़वी बदूरुर अहला अल रौज़तुन नद्या नुज़ुलुल अबरार कन्जुल हकायक अिुस ल जादी ितवा नज़ीररया मल्िू ज़ाते हकीमुल उम्मत बेहश्ती ज़ेवर लुगातुल हदीस फतवा अल बातनया अिाजातुल यौममया फतवा सत्ताररया अल-दा ए वद-दाए नैलअल औतार हहिजुल इमान ररसाला अल इमदाद अरवाहे सलासा बराहीने काततआ फज़ाइल ए आमाल मसलक ए देवबंद तहजीरून नास ग़ैर मुक़स्ल्लदीन की ग़ैर मुजतनद नमाज़ संगीन फफतना सवाततउल इलहाम तक्वीयतुल इमान आहद
  • 7. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 6 ﷽ प्रथम सूचना तक़लीद की अतनवायसता होना अक़ली दलील से भी साबबत होता है और नक़ली दलील से भी। जब आप रोगी होते हैं आपकी बुद्चध क्या कहती है फक आप फकसके पास जाएाँगे इंजीतनयर के पास या िॉक्टर के पास ? जाहहर है फक बुद्चध िॉक्टर के पास जाने का आदेश करती है। जब मनुष्य जवयं शरीअत से पररचचत न हो और नरक में जाने से बचने के मलए शरीअत का पालन करना चाहता हो तो समजया पूछने के मलए फकसकी तरफ बढेंगे ? धमसगुरू या अज्ञानी की तरि ? सामान्य ज्ञान यही कहती है फक उस की तरि जाना चाहहए जो धमस के आदेशों में पररचचत हो और ववद्वान हो। वह ववद्वान खुद धमस में ववशेषज्ञ होगा या फकसी ववशेषज्ञ के नुजखे को बताएगा इसी जपेशमलजट को मुजतहहद कहते हैं और इन के बातों पर अमल करने वालों को मुक़स्ल्लद कहते हैं | मुक़स्ल्लद शरीयत ए इजलाममया की एक इस्जतलाह है। अहले सुन्नत व जमाअत के चार इमाम हैं: 1.इमाम आज़म अबू हनीिा ‫الرحمہ‬‫علیہ‬(ववसाल 150 हहजरी) 2. इमाम मामलक ‫الرحمہ‬‫علیہ‬ (ववसाल 189 हहजरी) 3. इमाम शाफई ‫الرحمہ‬‫علیہ‬ (ववसाल 204 हहजरी) 4. इमाम अहमद बबन हम्बल ‫علیہ‬‫الرحمہ‬ (ववसाल 241 हहजरी)
  • 8. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 7 इन आ-इम्मा ए फकराम ने अपनी ख़ुदा दाद इल्मी व फफकरी क्षमताओं और मुज्तहहदाना अंतर्दसस्ष्ट के आधार पर अपने अपने कायसकाल में हजबे ज़रूरत कु रआन और हदीस से मसाइल ए फफक़ह संकमलत फकए यूं इन इमामों के पदचचन्ह चार फफक़्ही मतों के रूप में अस्जतत्व में आए। इन चारों आ इम्मा ए फकराम में से फकसी भी फफक़्ही ववचारधारा का पालन करने वाले को मुक़ज़ल्लद कहते हैं। जैसे इमाम ए आज़म अबू हनीफा ‫الرحمہ‬ ‫علیہ‬ के मुक़स्ल्लदीन को हनफी, इमाम मामलक ‫الرحمہ‬ ‫علیہ‬ के मुक़स्ल्लदीन मामलकी और इमाम शािई ‫الرحمہ‬ ‫علیہ‬ के मुक़स्ल्लदीन शावािअ और इमाम अहमद बबन हन्बल ‫الرحمہ‬‫علیہ‬ के मुक़स्ल्लदीन को हम्बली कहा जाता है। तजवीर में देखें .......... इसके ववपरीत यहद कोई व्यस्क्त उनमें से फकसी का पैरोकार नहीं हो तो वह ग़ैि मुक़ज़ल्लद है।
  • 9. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 8 यह एक तारीखी हकीक़त (ऐततहामसक तथ्य) है फक ग़ैर मुक़स्ल्लदीन (जो खुद को अहले हदीस कहते हैं) का वजूद (जथावपत) अंग्रेजों के दौर से पहले न था | अंग्रेजों के समय से पहले भारत में न उनकी (ग़ैर मुक़स्ल्लदीन की) कोई मस्जजद थी ना मदरसा और ना कोई पुजतक | अंग्रेजों ने भारत में क़दम जमाया तो अपना अव्वलीन हलीि (सबसे पहली सहयोगी) उलमाए देवबंद को पाया और जब उलमा ए अहले सुन्नत व जमात (सूफी मुस्जलम) ने अंग्रेजों के खखलाि स्जहाद का ितवा हदया और हजारों मुसलमानों को अंग्रेज़ के ववरोध मैदाने स्जहाद में ला खडा फकया तो स्जस ने अंग्रेज़ के ववरोध यातन स्जहाद को हराम करार हदया और मुसलमानों में तिरका और इस्न्तशार (ववभाजन एवं अराजकता) िै लाया वह ग़ैर मुक़स्ल्लदीन हज़रात थे और आज तक अपनी रववश (ववचध) पर क़ायम हैं | अल्लाह हम सब की इमान की हहिाज़त िरमाए आमीन | फफक़ह हनफी जो लगभग बारह लाख (1200000) मासाइल का मजमुआ (संग्रह) हैं इस अजीमुश्शान फफक़ह के चंद एक मसाइल पर ऐतराज़ करते हुए ग़ैर मुक़स्ल्लदीन अवाम को यह बताने की कोमशश करते हैं फक फफक़ह, क़ु रान व हदीस के ववरोध है और ग़ैर मुक़स्ल्लद अवाम की जुबान पर तो यह एक चलता हुआ जुमला फक "फफक़ह हनफी में िु लां िु लां और ह्या सोज़ मसअला है" इस मलए ज़ुरूरत महसूस हुई फक अवाम को अगाह (सावधान) फकया जाये फक ग़ैर मुक़स्ल्लदीन की मुजतनद फकताबों में क्या क्या गंदे और हया सोज़ मसाइल (तघनौनी बातें) भरे पडे हैं | अफसोस ग़ैर मुक़स्ल्लद उलमा ने यह
  • 10. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 9 मसाइल क़ु रान व हदीस का नाम लेकर बयान फकये हैं | आप यकीन करें स्जतने हयासोज़ मसाइल (तघनौनी बातें) ग़ैर मुक़स्ल्लदीन ने अल्लाह और उसके रसूल सल्लाहू अलैहह व सल्लम से मनसूब (संबंचधत) फकये हैं फकसी हहन्दू, मसख, इसाई या यहूदी ने भी अपने मज़हबी पेशवा (धाममसक गुरु) से मनसूब (संबंचधत) नहीं फकये होंगे | ग़ैर मुक़स्ल्लदीन जान बूझ कर के इन मसाइल को छु पाते रहे हैं | इनकी कोमशश रही है फक हनफी पर खाह मखाह के इतराज़ फकये जायें ताफक उनके अपने मसाइल अवाम से छु पी रहें | आप यह मसाइल पढेगें तो हो सकता है फक कानों को हाथ लगायें और तौबा तौबा करें | शायद यह भी कहे फक ऐसी बातें मलखने की क्या जरूरत थी लेफकन यह हकीक़त है फक स्जस तेज़ी से इखलाक को बालाए ताक रखते हुए ग़ैर मुक़स्ल्लदीन अपना बुकलेट (Literature) िै ला रहे हैं हकीक़त को उजागर करना हमारी मजबूरी है | हदए गए हवाले में कोई गलती हो तो मुत्तला िरमायें ताफक जल्द से जल्द इजलाह कर दी जाये | दुआ करें फक अल्लाह तआला ग़ैर मुक़स्ल्लदीन और देवबंहदयों को हहदायत िरमाएं और उम्मत को इन खास्बबस फितने से बचायें आमीन| जमात अलहे हदीस दौर जदीद का एक तनहायत ही पुर फफतन बद अक़ीदा, दहशत गदस, वहशतनाक और बबद्दती फिरका है स्जसका बुतनयादी मक़सद इजलामी मूल्यों, मसद्धांतों
  • 11. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 10 व ववचारों और सहाबा ए कराम , ताबईन ए इज़ाम, मुहद्दीसीने ममल्लत, िु कहा ए उम्मत, औमलया अल्लाह, आ- इम्मा ए दीन, मुज्तहहदीन व मुजदद्हदन ए इजलाम और असलाफ ए सामलहीन के खखलाि एलान ए बगावत, तिसीर ए बबल-राय, अहादीस ए मुबारका की मन मानी तशरीह ख़ुद साख्ता (अपना बनाया हुआ), अक़ाइद व मसाइल, इंकार ए फफक्ह और आ-इम्मा अरबा ख़ुसूसन इमाम ए आज़म (‫عنہ‬‫اہلل‬‫)رضی‬ की शान में बेअदबी व बकवास इस फफरका का ख़ुसूसी पहचान है| (ग़ैर मुक़ल्ललद) जमात ए अहले हदीस (ग़ैर मुक़स्ल्लद) का मज़हब, क़ु रान व सुन्नत, असलाफ ए उम्मत, आ-इम्मा ए ममल्लत ख़ास कर के इज्मा ए उम्मत के खखलाफ है | इसी तरह यह लोग अपनी राह उम्मत के खखलाफ इस्ख़्तयार करते हुए सवादे आज़म से कटे हुए हैं, रहमत ए खुदावन्दी से महरूम है हजुर अकरम नूर मुजजसम (‫وسلم‬‫علیہ‬‫ہللا‬‫)صلی‬ का िरमान है "‫الجماعۃ‬‫علی‬‫ہللا‬‫ید‬" यानी अक्सररयत पर अल्लाह का दजते करम है चुनांचे यह चगरोह बहुमत (अक्सररयत) से कट कर रसूल ए आज़म (‫وسلم‬‫علیہ‬‫ہللا‬‫)صلی‬ की बबशारत से महरूम है| ग़ैर मुक़स्ल्लहदयत हक़ीक़त में राफ्ज़ीयों (मशया) नेचाररयों, दहररयों, काद्यानीयों, वहाबबयों, नज्दीयों, तबलीगीयों और मौदूदीयों की जमातों का मल्गूबा व माजूने मुरक्कब हैं यानी इन तमाम फफरको से ममलकर बना है |
  • 12. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 11 ग़ैर मुक़स्ल्लदीन अपने को पहले मुवस्ह्हद फिर कु छ हदनों के बाद मुहम्मदी कहलाते थे और एक ज़माना के बाद तनहायत जादुई तरीकों से अहले हदीस हो गए | ग़ैर मुक़स्ल्लदीन ने "अहले हदीस" नाम को इस्ख़्तयार कर के लोगो को यह बताना चाहा फक इनकी जमाअत वह जमाअत है जो हदीस पर अमल करती है और तमाम सही हदीस पर अमल करना ही उस का मज़हब है इस बात को खुद ग़ैर मुक़स्ल्लदीन उलमा बार बार दावा के शकल में दुहराते रहते हैं यानी एक ग़ैर मुक़स्ल्लद साहब बडे ख़ुश हो कर िरमाते हैं "वह (अहले हदीस) बुखारी, मुस्जलम की हदीसों को और तमाम सही हदीसों को काबबले अमल जानते हैं | (ममल्लत ए मुहम्मदी पृष्ट 5) ग़ैर मुक़स्ल्लदीन ने अपनी इस बात या अपने इस दावा को बडे तश्हीरी (Propaganda) अंदाज़ में िै लाया है और बहुत से वह लोग जो ग़ैर मुक़स्ल्लदीन फक मज़हब से सही जानकारी नहीं रखते इन के इस दावा को सही समझने लगे हैं मौजूदा दौर की इस मशगूल दुतनया में फकसे इतनी िु ससत है फक वो फकसी बात की असल हकीक़त मालूम करने के मलए तहकीक करे और अगर करना भी चाहें तो ग़ैर मुक़स्ल्लदीन उलमा की फकताबों तक हर फकसी को रसाई (पहुाँच) आसान नहीं | मलहाज़ा जरूरत थी फक ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के इस िरेब से लोगों को तनकाला जाये और जो असल वाफकया है उस को
  • 13. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 12 सामने लाकर ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के मज़हब की हकीक़त से आगाह कराया जाये | ग़ैर मुक़ल्ललदीन हक़ीक़त हाजी इमदादुल्लाह साहि महाज़जि मक्की )‫الرحمہ‬‫(علیہ‬ जो फक► इकाबबर ए देवबंद मौलवी कामसम नानोतवी, मौलवी रशीद अहमद गंगोही, मौलवी अशरि अली थानवी, मौलवी खलील अहमद अन्बेठ्वी वगैरह के पीर व मुमशसद हैं वहाबबया नस्ज्दया के संबंध में िरमाते हैं फक " ग़ैर मुक़स्ल्लद लोग दीन के रहज़न (लूटेरा) हैं इनके इस्ख्तलात (मेल जोल) से इस्ह्तयात (परहेज़) करना चाहहए | (शमा इमे इम्दाहदया पृष्ट 28) िानी ए मदिसा देविंद काशसम नानोत्वी ने ग़ैर► मुक़स्ल्लदीन को बे वकू ि क़रार दे कर मलखा है फक फकसी आमलम को ग़ैर मुक़स्ल्लद देख कर जाहहल अगर तकलीद छोड दे तो यूं कहो इल्म था या ना था | अक्ल ए दीन भी दुश्मनों को नसीब हुई और जाहहलों को जाने दीस्जये| (तस्जिया अल अक़ाइद पृष्ट ३5 प्रकामशत देवबंद) वहाबियों औि देविंहदयों के मौलवी अशिफ अली थानवी► के मल्िू ज़ में है फक एक साहब ने अजस क्या फक हज़रत ! ग़ैर मुक़स्ल्लद ब जाहहर तो सुन्नतों पर अमल करने वाले
  • 14. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 13 मालूम होते हैं | फरमाया जी हााँ यहााँ तक फक सुन्नत के पीछे कु छ फराइज़ तक को भी छोड बैठते हैं यह ऐसे मुत्तबा ए सुन्नत हैं| अकाबबर ए उम्मत की शान में गुजताखी करना, क्या यह फजस तकस (छोडना) नहीं ? बहुत ही बे बाक फिरका है | (अिा जातुल यौममया भाग 5 पृष्ट ३0६-३0७) देविंहदयों के मौलवी मुततज़ा हसन ने अपने अखबार अल► अदल में मलखा है कौल ए खुदा और हदीस ए रसूल हुक्म है, और हुक्म होता है और दलील और आदम को सजदा करो यह हुक्म अपने नफस के मलए दलील नहीं हो सकता, जो इस हुक्म ए वास्जबुल तामील होने के मलए दलील है, वह यहााँ मजकू र नहीं इस वजह से इस कौल को (स्जस के साथ वास्जब अल तजलीम होने की दलील स्ज़क्र नहीं की गई) बबला दलील तजलीम करता है तो तकलीद है और शैतान ने इस हुक्म को बबला दलील ना माना ग़ैर मुक़स्ल्लद हो कर काफफर और मुरतद हो गया | (अख़बार अल अदल ७, /09/192७) ितवा ए अहले हदीस पृष्ट 90) दारूल उलूम देविंद का फतवा मौलवी सनाउल्लाह दजस► करते हैं फक हाफिज़, कारी, आमलम, जाहहद, मुत्तक़ी ग़ैर मुक़स्ल्लद को इमाम बनाना नहीं चाहहए | (अख़बार अहले हदीस अमृतसर 0३/08/1945)
  • 15. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 14 मौलवी िशीद अहमद गंगोही ने मलखा है फक जो उलमा ए► दीन की तौहीन और उन पर तअन व तशनीअ करते हैं कब्र के अन्दर उनका मुंह फक़बला से फिर जाता है बस्ल्क यह फरमाया फक स्जस का जी चाहे देख ले | ग़ैर मुक़स्ल्लदीन चूाँफक आ-इम्मा ए दीन को बुरा कहते हैं इस मलए उन के पीछे नमाज़ पढनी मकरूह फरमाया है| (तजफकरा अल रशीद भाग 2 सतर 21-2३) मौलवी सुलेमान नदवी ने फिरका वहाबबया को ग़ाली► फफरका करार हदया है | (अहले हदीस अमृतसर 2६/05/1944 पृष्ट 5) देविंहदयों के शैख़अल इस्लाम मौलवी हुसैन अहमद► मदनी के संबध दारुल उलूम देवबंद में ज़ेरे तालीम ग़ैर मुक़स्ल्लद वहाबी छात्र ने वहाबी मौलवी अबदुल मुबीन मंजर को ख़त मलखा फक "मौलाना मदनी अपनी तकरीरों में कहते हैं फक उन का (वहाबबयों का) वजूद शैतान से हुआ है यह नस्जस हैं | (अख़बार अहले हदीस हदल्ली कॉलम ३ ,15/04/1954) देविंहदयों के मदिसा देविंद के मुफ़्ती मौलवी अजीजुि► िहमान मलखते हैं फक अक्सर ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के अक़ाइद भी ख़राब होते हैं आ-इमा ए दीन पर खुसूसन तअन करना, इमाम ए हुमाम हजरत अबू हनीिा )‫عنہ‬ ‫ہللا‬ ‫(رضی‬ पर
  • 16. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 15 उनका मशआर (उनकी पहचान) हैं और रवाफिज़ (मशओं) की तरह सलि सामलहीन को तअन कर के अपना दीन व इमान ख़राब करते हैं | (अहले हदीस अमृतसर 2६/0६/1914 पृष्ट 2) देविंदी लोगों के मौलवी मुहम्मद थानवी भी वहाबीयों के► संबंध में मलखते हैं ग़ैर मुक़स्ल्लदीन वहाबीयों का अक़ीदा है फक आ-इम्मा अरबा में से फकसी एक की तकलीद करना मशकस है और जो वहाबीयों के मुखामलफत करते हैं वह भी मुशररक हैं | वहाबी अहल ए सुन्नत व जमाअत को क़त्ल करना और उनकी औरतों को क़ै द कर लेना जाइज़ समझते हैं इस के इलावा और दीगर अक़ाइद ए िासीदा भी हैं फक हम तक सुक्का लोगों के ज़ररए पहुंचे हैं और अक़ाइद तो हम ने उन से खुद भी सुने हैं वह एक खारजी फिरका है | (हामशया तनसाई शरीि भाग 1 पृष्ट ३६0 प्रकामशत हदल्ली) सईदुलहक़ फी तख़रीज जाअलहक़ में हैं फक " भारत में► 1245 हहजरी में यह नया फफरका (ग़ैि मुक़ज़ल्लद) जाहहर हुआ स्जस के बानी अबदुल हक़ बनारसी थे यह लोग तक़लीद को मशकस कहते हैं और मज़ाहहबे अरबअ को मुशररक फिरका कहते हैं | (सईदुल हक़ फी तख़रीज जाअल हक़ पृष्ट 4३)
  • 17. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 16 मनी (वीयत) पाक है औि खाना भी जाएज़ ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के नज़दीक मनी (वीयस) पाक है और खाना भी जाएज़ है जैसा फक मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब मसद्दीक हसन खान मलखते हैं: "मनी हर चंद पाक है" (अिुस ल्जादी फारसी 10) मनुष्य फक वीयस के नापाक होने की कोई दलील नहीं आई| (बदूरुर अहला 15) दोनों (परुष और महहला) की वीयस पाक है| (अल रौज़तुन नद्या भाग 1 पृष्ट 1३)
  • 18. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 17 मारुफ ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम अल्लामा वहहदुज्ज़मा खान मलखते हैं: "मनी (वीयस) खाह गाढी हो या पतली, खुश्क (सुखा) हो या तर (भीगा) हर हाल में पाक है"| (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 49) और नामवर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम मोलाना अबुल हसन मुहीउद्दीन मलखते हैं: "मनी (Sperm) पाक है और एक कौल में खाने की भी इजाज़त है"| (फफक़ह मुहम्महदया भाग 1 पृष्ट 41) हिप्पणी: कु ज़ल्फयां िनायें, कस्िर्त जमायें या आइस क्रीम िनायें ग़ैि मुक़ज़ल्लद मज़े उड़ायें | नापाक के नसीब में नापाक ही होती है अल्लाह तआला ने दर अजल ग़ैर मुक़स्ल्लदों को यह सज़ा दी है की वह मुअतबर
  • 19. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 18 (पववत्र) खाना स्जस पर कु रान शरीि, दुरूद शरीफ, कामलमा शरीफ पढी गई हो वह खाना उनको नसीब न हो क्यूंफक इन ख़बीसों के नज़दीक यह खाना मुअतबर (पववत्र) नहीं है शमत गाह (योनन) की ितुित (पानी/िस) पाक ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के नजदीक महहला की शमस गाह (योतन) की रतुबत (पानी/रस) पाक है जैसा फक मशहूर व मारुफ ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम वहीदुज्जामा खान ने मलखा है: "महहला की शमस गाह (योतन) की रतुबत पाक है" (कन्जुल हकायक पृष्ट 1६) जब बच्चा महहला की योतन से बहर तनकले और इस पर योतन फक रतूबत (पानी/ नमी) हो तो वह भी पाक है | (फफकाह मुहम्महदया पृष्ट 2३)
  • 20. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 19 वहाबी मौलववयों को सूझी फक हम तो निसानी ख्वाहहशात के मुक़स्ल्लद हैं | हम से इतने हदन कै से सब्र हो सकता है मलहाज़ा अपना उल्लू सीधा करने के मलए अकाबबर ए वहाबबया ने हदीस नबवी की मुखामलफत करते हुए यह कहना शुरू कर हदया फक हैज़ की कोई मुद्दत नहीं | हैज़ की कोई मुद्दत नहीं वहाबबयों के मुजतहहद क़ाज़ी शौकानी ने मलखा है फक हैज़ (माहवारी/ मामसक धमस) की कम और ज़यादह हदनों की कोई मुद्दत (Period) नहीं| (हहदयतुल मेहदी भाग ३ पृष्ट 50) हैज़ (मामसक धमस) की मुद्दत (Period) नहीं | अख़बार ए अहले हदीस अमृतसर पृष्ट 1३, 9 अप्रैल 19३७) इमामुल वहाबबया वहीदुज्जमा ने मलखा है फक जमाना ए हैज़ में काला (मसयाह) रंग के खून के इलावा फकसी और रंग का खून हैज़ नहीं | (हहदय्यतुल मेहदी भाग ३ पृष्ट 52) ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन महहला हैज़ (माहवािी) से कै से पाक हो मारूि ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम अल्लामा वहहदुज्ज़मा ग़ैर मुक़स्ल्लद औरतों को हैज़ (माहवारी) से पाक का तरीका बाते हुए मलखते हैं: "महहला जब हैज़ से पाक हो तो दीवार के साथ पेट लगा कर खडी हो जाये और एक टांग इस तरह उठाए जैसे कु त्ता वपशाब करते वक़्त (समय) उठता है और कोई रोई
  • 21. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 20 के गाले िु जस (योतन) के अन्दर भरे इस तरह वह पूरी पाक होगी"| (लुगातुल हदीस) हिप्पणी: ग़ैि मुक़ज़ल्लद का अजीि व गिीि नुस्खा है ग़ैि मुक़ज़ल्लद तजििा कि के देखें | हैज़ (माहवािी) से पाकी के शलए खुशिू का प्रयोग मारूि ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम मौलवी अबुलहसन मोही उद्दीन मलखते हैं: "हाईज़ा हैज़ से पाक हो कर गुजल कर ले फिर रूई की धज्जी के साथ खुशबू लगाकर शमस गाह (योतन) के अन्दर रख ले" | (फफक़ह मुहम्महदया भाग 4 पृष्ट 22) हिप्पणी: जो क़ब्र को खुशिू लगाये वह क़ब्रपिस्त जो शमतगाह को खुशिू लगाये वह शमतगाह पिस्त | औित का मज़स्जद में आना जाना अल्लामा वहहदुज्ज़मा मलखते हैं: जुन्बी नापाक आदमी हाईजा औरत को मस्जजद में आने जाने की इजाज़त है वहां ठहरना ना चाहहए | (हदीयतुल मेहदी पृष्ट 5७) आगे मलखते हैं फक हाईजा औरतों और जनाबत (नापाकी) वाले लोगो को कु रान पढना जायज़ है | (हदीयतुल मेहदी पृष्ट 58) औित की इमामत ग़ैर मुक़स्ल्लदों का मज़हब है फक औरत मदस की इमामत कर सकती है | (अरिु ल जावी पृष्ट ३७)
  • 22. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 21 हज़रत जाबबर िरमाते हैं फक मैं ने रसूल ए आज़म को ममम्बर पर यह िरमाते हुए सुना फक हरचगज़ कोई औरत फकसी मदस की इमामत न करे | (इबन ए माजा ) वहाबियों ! तुम्हारे अकाबबर फकतने अजीब मसाइल तनकाल कर तुम्हें लुत्फ अन्दोज़ होने के मौक़ा देते हैं फक नमाज़ पढते हुए भी इस्न्तशार हो और आनंहदत (लुत्फ अन्दोज़) हो जब वहाबबन इमाम होगी और उसके पीछे वहाबी हज़रात मुक्तदी हूाँ तो जब इन की इमाम रूकू और सजदे में जाएगी तो वहाबबयों में क्यूाँ ना इस्न्तशार होगा और क्यूाँ न लुफ्त अन्दोज़ होंगे | औितों का मदत इमाम नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने मलखा है फक इस बात से रोकना फक मदस उन औरतों की इमामत ना करे स्जन के साथ मदस न हो इसके अदम जवाज़ पर हमें कोई दलील नहीं| (अिुस ल जावी पृष्ट ३७) ना िाशलग िच्चे की इमामत नवाब नूरुल हसन भोपाली ने मलखा है फक ना बामलग बच्चे की इमामत सही है| (अिुस ल जावी फारसी पृष्ट ३७) ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन औितों की नमाज़ मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान मलखते हैं: "नमाज़ में स्जसकी शमस गाह (योतन) सब के सामने नुमाया (ज़ाहहर) रही उसकी नमाज़ सही है"|(अिुस ल जादी पृष्ट 22)
  • 23. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 22 नंगे हो कि नमाज़ पढ़ना मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब मसद्दीक हसन खान मलखते हैं: "महहला तनहा (अके ली) बबलकु ल नंगी नमाज़ पढ सकती है | महहला दोसरी महहलाओं के साथ सब नंगी नमाज़ पढें तो नमाज़ सही है | ममयां बीवी दोनों अकट्ठे मादर जाद नंगे (Connatural Naked) नमाज़ पढें तो नमाज़ सही है| महहला अपने बाप, बेटे, भाई, चाचा, मामा सब के साथ मादरजाद नंगी नमाज़ पढे तो नमाज़ सही है"| (बदूरुल अहलह पृष्ट ३9) यह ना समझें कक यह मजिूिी के मसाइल होंगे | अल्लामा वहीदुज्जामा पररभावषत (वज़ाहत) करते हैं " फक कपडे पास होते हुए भी नंगे नमाज़ पढें तो नमाज़ सही है"| (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट ६5)
  • 24. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 23 नमाज़ में चलने से नमाज़ नहीं िूिती वहाबबयों के इमाम मौलवी वहीदुज्जामा खां ने मलखा है फक अगर घर में कोई ना हो और जरूरत पडे तो नमाज़ में चल कर दरवाज़ा खोला जा सकता है इस चलने से नमाज़ पढने वाले की नमाज़ में कोई िकस नहीं पडेगा | (कन्जुल हक़ा इक पृष्ट 2७) कािा शिीफ़ की तिफ मुंह किना वहाबबयों के इमाम मौलवी अबुल हसन ने मलखा है फक संभोग के समय फक़बला (काबा शरीफ) की तरि मुंह करना जाईज़ है भले इमारतों में हो या मैदान में| (फफक़ह मुहम्महदया पृष्ट 11
  • 25. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 24 पायखाने के समय फक़बला (काबा शरीि) को मुहं और पीठ करना जायज़ है और अगर कोई आढ न हो तो कु छ लोग कहते है फक आढ ना भी हो तो जाईज़ है| (फफक़ह मुहम्महदया पृष्ट 10-11) देवबंहदयों के मौलवी अशरि अली थानवी ने भी फतवा हदया है फक इजतंजा के समय फक़बला (काबा शरीि को मुंह करना जाइज़ है | (इमदादुल ितवा भाग 1 पृष्ट ३) काबा शरीि के जातनब पांव (पैर) कर के सोना जायज़ है | (फतवा ए सत्ताररया भाग 01 पृष्ट 152) कु रान पाक को तअज़ीमन बोसा देना (चूमना) जाएज़ नहीं नीज़ बे वज़ू कु रान पाक को छू ना जाएज़ है | (फतवा ए सत्ताररया भाग 01 पृष्ट 182)
  • 26. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 25 यह है वहाबबयुं देवबंहदयों का मज़हब मगर हमारे आक़ा (‫)ﷺ‬ का िरमान है फक जब तुम पखाना को जाओ तो (पखाना करते समय ) फक़बला (काबा शरीि) की ओर मुंह न करो और न पीठ करो | (ममश्कात शरीि पृष्ट 42) खड़े होकि पपशाि किना जायज़ है वहाबबयों के मौलवी अबुल हसन ने मलखा है फक "अगर कोई खडे होकर पेशाब करे तो बबला कराहत जाईज़ है"| (िै जुल बारी भाग 1 पृष्ट 121) मौलवी वहीदुज़ ज़मा ने भी तयजसरुल बारी में मलखा है फक "खडे होकर और बैठ कर दोनों तरह वपशाब करना जायज़ है"| (तयजसरुल बारी भाग 1 पृष्ट 12६) वहाबी मौलवी तो खडे हो कर पेशाब करने के बबला कराहत जायज़ क़रार दे रहा है मगर हुज़ूर (‫)ﷺ‬ ने इस को प्रततबंचधत फरमाई है जैसा फक हदीस शरीि में है फक खडे होकर पेशाब न करो | (ममश्कात शरीि पृष्ट 42, ततमसज़ी पृष्ट 4) शमे नबी खौफे खुदा यह भी नहीां वह भी नहीां पानी में पेशाि मौलवी अशरि अली थानवी ने मलखा है फक अगर कसरत से ममक़दार में पानी जमा हो और उस में थोडी सी ममक़दार में पेशाब िाल हदया जाये तो वह पाक रहेगा | (अिाज़ातुल यौममया भाग 8 पृष्ट 158)
  • 27. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 26 ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन का िहन औि िेिी से आला ए तानासुल (शलंग) को हाथ लगवाना ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के शैखुल कु ल फिल कु ल ममयां नज़ीर हुसैन देहलवी मलखते हैं: "हर शख्स अपनी बहन, बेटी, बहु, से अपनी रानों की मामलश करवा सकता है और बवक्ते ज़रूरत अपने आलाए तानासुल (मलंग) को भी हाथ लगवा सकते हैं" (ितवा नज़ीररया भाग ३ पृष्ट 1७६)
  • 28. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 27 पीछे के िास्ते सुहित (संभोग) किना ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के मलए जायज़ है और गुजल भी वास्जब नहीं मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम मसद्दीक हसन खान मलखते हैं: "शमस गाह (योतन) के अंदर झांकने के मकरूह होने पर कोई दलील नहीं" | (बदूरुल अहला पृष्ट 1७5) आगे मलखते हैं: “रानुं में सुहबत (संभोग) करना और दुबुर (चूतड) में सुहबत करना जायज़ है कोई शक नहीं बस्ल्क यह सुन्नत से साबबत है” (बदुरुल अहला पृष्ट 15७) ‫ہللا‬ ‫معاذ‬ ‫۔‬ ‫استغفرہللا‬ और मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम वहीदुज्जामा मलखते हैं: “बीवीयुं और लोंिीयूं के ग़ैर फफतरी मुकाम (पीछे के मुकाम) के इस्जतमाल पर इनकार जाएज़ नहीं”| (हहदयुल मेहदी भाग 1 पृष्ट 118) आगे मलखते हैं: “दुबुर (पीछे के मुकाम/ चूतड) में सुहबत (संभोग) करने से गुसल भी वास्जब नहीं होता” (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 2३) आदमी के पैखाने के जथान में संभोग फकया तो ग़ुजल वास्जब नहीं | (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 24) जानवरों की दुबुर में संभोग फकया तो ग़ुजल वास्जब नहीं | (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 2३) मुदास औरत से स्जमा (संभोग) फकया तो ग़ुजल फजस नहीं | (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 2३) हिप्पणी :ज़जंदा तो ज़जंदा मुदों को भी नहीं छोड़ा |
  • 29. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 28 अगर कोई औरत लकडी या लोहे का मलंग बनकर प्रयोग करे तो ग़ुजल फज़स नहीं | (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 2३) जानवर चौपाए (पशु) के पेशाब गाह में कोई परुष अपना मलंग दाखखल करे तो हमारे (अहले हदीसों) के नज़दीक हक बात यह है फक उस शख्स पर ग़ुजल नहीं है | हहदयातुल मेहदी भाग ३ पृष्ट 24) हिप्पणी: इन िातों से पता चलता है कक इन ग़ैि मुक़ज़ल्लदों के यहााँ ऐसी गंदी औि निनौनी हिकतें की जाती हैं| फु लां जगह (दुिुि) में िख लो देवबंदी मौलवी मलखते हैं फक जब वह शख्स शाह साहब के ख़त लेकर उस के पास पंहुचा तो गुजताख ने उस ख़त को मोड कर एक बत्ती सी बना दी और कहा ले जाओ | शाह साहब से कहो इस को अपनी िु लां जगह (दुबुर) में रख लो | गाली दी यह शख्स भी अजीब था यह सीधा शाह साहब के पास वापस आया और जो अल्िाज़ उस ने कहे थे नक़ल कर हदए | िरमाया अगर में जानता मेरे उस अमल से तेरा काम हो जाएगा तो मैं इस में भी तामुल (सोच-ववचार) ना करता मगर में जानता हूाँ फक यह लग्व (बे हूदा) हरकत है | (मजमलसे हकीमुल उम्मत पृष्ट 259) वहाबबयों के इमाम मौलवी वहीदुज्जामा ने एक अजीब व ग़रीब मसअला ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के मलए यह भी बयान फकया है फक: “खुद अपना आला ए तनासुल (मलंग) अपनी ही दुबुर (चूतड) में दाखखल फकया तो गुजल वास्जब नहीं”|
  • 30. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 29 (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पृष्ट 24) हिप्पणी: यह कै से मुमककन है ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन तजिात (अनुभाव) कि के हदखायें | अपनी मााँ से ज़ज़ना एक शख्स अपनी मााँ से स्ज़ना करता था और कहता था फक जब में पूरा इस के अन्दर था और अब अगर मेरा एक अज़व (हहजसा) अंदर चला गया तो क्या हज़स है तो मौलवी अशरि अली थानवी क्या कहते हैं जकै न पेज देखें | (मल्िू ज़ाते हकीमुल उम्मत पृष्ट ६७) ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन के नज़दीक ज़ज़ना किना जायज़ है नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने तो चूतड और रानो वगैरह से आनंद लेने की इजाज़त दी है मगर इसके बेटे मौलवी नूरुल
  • 31. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 30 हसन भोपाली ने तो मजबूरन स्ज़ना (व्यमभचार) को भी जायज़ क़रार दे हदया है जैसा फक मलखा है "जो शख्स स्ज़ना पर मजबूर फकया जाये इस पर हद वास्जब नहीं क्यूंफक अहकामे शर इया इस्ख़्तयार से मुक़य्यद है"| (अरिु ल जावी पृष्ट 215) नफस का पुजाररयों ने तो ग़ैर मुक़द्द्मलदीन मदस और औरतों के मलए सारे दरवाजे खोल हदए जैसा फक मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान मलखते हैं: “स्जनको स्ज़ना पर मजबूर फकया जाये उसको स्ज़ना करना जायज़ है और कोई हद वास्जब नहीं | महहला की मजबूरी तो ज़ाहहर है | पुरूष भी अगर कहे फक मेरा इरादा ना था मुझे कु वते शहवत (Sexual Excitation) ने मजबूर फकया तो मान मलया जाएगा अगरचे इरादा स्ज़ना का न हो” | (अिुस ल जादी पृष्ट 20६)
  • 32. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 31 मााँ, िहन, औि िेिी से ज़जना की इजाज़त मौलवी वहहदुज्ज़मा ने वहाबबयों के मलए अपनी मााँ, बहन, बेटी से स्जना की खुली इजाज़त दे दी है जैसा फक मौलवी साहब मलखते हैं: अगर फकसी ने मुहरीमत (मााँ, बहन, बेटी अत्यादी) से स्ज़ना फकया तो उसको हक ए महर की ममजल अदा करना पडेगा | (नुज़ूलुल अबरार भाग 2 पृष्ट ३1) ससुि का िहु से ज़जमा किना मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलवी वहहदुज्ज़मा ने मलखा है फक और इसी तरह कोई शख्स ने अपने बेटे की बीवी (बहु) से स्जमा (संभोग) फकया तो उसके बेटे पर औरत हराम नहीं होगी| (नुज़ूलुल अबरार भाग 2 पृष्ट 28) ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलववयों ने मााँ, बहन, बेटी और बहु अत्यादी से स्जमा (संभोग) की जो इजाजत दी है आप ने पढ ली है यह मसलमसला यहााँ तक ही नहीं बस्ल्क अपनी सास से भी स्जमा की इजाज़त इन लफ्जों में दे रखी है | सास से ज़जमा मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलवी वहहदुज्ज़मा ने मलखा है फक और अगर इसी तरह कोई शख्स ने अपने सास से स्जमा (संभोग) फकया तो उस पर उसकी औरत हराम नहीं होती | (नुज़ूलुल अबरार भाग 2 पृष्ट 28)
  • 33. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 32 सगी नानी औि दादी से ननकाह जायज़ है मौलाना सनानुल्लाह अमृतसरी ने एक सवाल के जवाब में दादी, और नानी के साथ तनकाह करने को मुबह और जायज़ कर हदया और सौतीले भांजा की पोती से तनकाह जायज़ कर हदया | (फकताब अल तौहीद व अल सुन्नाह पृष्ट 2७३ / अख़बार अलहे हदीस अमृतसर पृष्ट 4, 11 रमज़ान 1३28 हहजरी) अलाम खखस्ल्कल्लाह पृष्ट ३, 10६ ) सौतेली मााँ से ननकाह इमाम अल वहाबबया सनाउल्लाह अमृतसरी ने अख़बार ए अहले हदीस में एक प्रशन का उत्तर देते हुए सौतीली मााँ से तनकाह जायज़ क़रार हदया मलखते हैं फक मेरे नाफकस इल्म में इसकी हुरमत की कोई दलील नहीं ममलती| (अख़बार ए अहले हदीस पृष्ट 12, 14 अप्रैल 191६) साली से ज़ज़ना इमामुल वहाबबया मौलवी सनाउल्लाह ने सवाल का जवाब दे हुए मलखते है फक साली से स्ज़ना करने से मन्कू हा (बीवी) हरम नहीं होती" | (अख़बार ए अहले हदीस अमृतसर पृष्ट 10, 2६ जनवरी 1912) आप हज़िात वहाबी अकाबबर की नफस परजती और शहवत ए ज़नी के इन अजीब अंदाज़ से बहुत हैरान होते होंगे | हैरानगी फक कोई बात नहीं दर हक़ीक़त वहाबी अकाबबर ने
  • 34. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 33 अपनी फकताबों में कु छ ऐसे मसाइल की तालीम और तरगीब अपने वहाबबयों को दी है स्जस से निसानी जज़्बात उभरते हैं| मुतआ(अस्थायी पववाह)जाएज़ है वहाबबयों के सबसे बडा इमाम मौलवी वहीदुज्जामा ने मलखा है फक “मुतआ (कु छ समय के मलए औरत से तनकाह करना) की अबाहत (जाएज़ होना कु रान की कतई आयात से साबबत है”| (नुज़ुलुल अबरार भाग 2 पृष्ट ३३) वहाबबया नस्ज्दया के इमाममया पाटी मुखखया मौलवी अबदुल वह्हाब और अबदुजसत्तार देहलवी के नजदीक मुतआ जाएज़ है| (अख़बार मुहम्मदी हदल्ली पृष्ट 15, 1 जनवरी 1941 ईजवी) ज़जस कफ़िका के मसाइल िे हयाई औि निनौनी हो उस कफ़िका के िािे में आप खुद ही ज़िा सोच लें | सहीफा अहले हदीस में है फक ..... ‫القیامۃ‬‫یوم‬‫الی‬‫حرام‬‫المتعۃ‬ मुतआ फकयामत तक हराम है | (सहहिा अहले हदीस कराची 1६ सफर 1३8७ हहजरी ) र्शया लड़की के साथ ननकाह देवबंहदयों के मुफ़्ती और इमाम मौलवी फकिायतुल्लाह देहलवी ने मलखा फक मशया लडकी के साथ सुन्नी मदस का तनकाह दुरुजत है | (फकफायतुल मुफ़्ती भाग 1 पृष्ट 2७8)
  • 35. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 34 ग़ैर मुकललीदीन का माूँ, बहन, बेटी का ल्िस्म (शरीर) देखना मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान मलखते हैं: " मााँ, बहन, बेटी वग़ैरह फक क़बलो दुबुर (योतन एवं चूतड) के मसवा पूरा बदन देखना जायज़ है" (अिुस ल जादी पृष्ट 52) हिप्पणी: यह मसाइल पढ़कि हमें शमत आती है ना जाने ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन इन पि कै से अमल किते होंगे |
  • 36. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 35 ग़ैि मुक़ज़ल्लद महहला का दाढ़ी वाले पुरूष को दूध पपलाना वहाबबयों के मुिस्जसर और मुहद्हदस मौलवी वहीदुल्ज्ज़मा हैदरबादी ने मलखा हैं:"जायज़ है फक महहला ग़ैर पुरूष को अपना दूध छाततयों से वपलाये अगरचे वह पुरूष दाढी वाला होता फक एक दुसरे को देखना जायज़ हो जाये"| (नुज़ुलुल अबरार भाग 2 पृष्ट ७७) वहाबबयों के मुजद्हदद काजी शोकानी ने मलखा है जाइज़ है दूध वपलाना बडी उम्र वाले को अगरचे दाढी रखता हो वाजते जवाज़ नज़र के | (अल दररुल बबह पृष्ट ३4)
  • 37. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 36 हिप्पणी: हो सकता हो फक वहाबी मौलववयों ने इसमलए औरतों का ग़ैर मदों को देखना जायज़ क़रार हदया है ताफक ग़ैर मुक़स्ल्लदीन औरतें अपनी पसंद के मदों को ढूध वपला लें और इमामुल वहाबबया सनाउल्लाह अमृतसरी ने भी इसमलए औरतों को मैक अप करने और सरों के बालों पर िू ल झाडडयााँ बनाने की इजाज़त दी है ताफक अपनी बनावट से मदों को क़ाबू कर लें | याद रहे फक यह मसाइल क़ु रान व हदीस के नाम पर बयान फकया जा रहा है | औित के शलए ग़ैि मदत को देखना वहाबबयों के मुिस्जसर और मुहद्हदस मौलवी वहीदुल्ज्ज़मा ने मलखा हैं:" और औरत का ग़ैर आदमीयों को देखना जायज़ है और हदीस फक नबी पाक (‫وسلم‬ ‫علیہ‬ ‫ہللا‬ ‫)صلی‬ ने अपनी अज्वाज ए मुतहहरात (‫عنہن‬ ٰ‫تعالی‬‫ہللا‬‫)رضی‬ को फरमाया फक अबदुल्लाह बबन मक्तूम तो नाबीना (आाँखों में रौशनी न होना) है क्या तुम भी नाबीनी हो | यह नबी पाक (‫وسلم‬‫علیہ‬‫ہللا‬‫)صلی‬की अज्वाज ए मुतहहरात ( ‫عن‬ ٰ‫تعالی‬‫ہللا‬‫رضی‬‫ہن‬ ) के मलए ही ख़ास था |" (नुजूलुल अबरार भाग 2 पृष्ट ७4) वहाबी मौलवी ने वहाबी औरतों को अजनबी और ग़ैर मुहररम मुदों को देखने और उनका नज़ारा करने की इजाज़त हदीस ए मुजतफा (‫وسلم‬ ‫علیہ‬ ‫ہللا‬ ‫)صلی‬ की फकस मक्कारी से मुखामलित करते हुए दी है और शैतान मरदूद की शैतातनयत की कै से पुर ज़ोर समथसन की है | हज़रत अली(‫الکریم‬‫وجہہ‬‫ہللا‬‫)کرم‬ नबी करीम (‫وسلم‬‫علیہ‬‫ہللا‬‫)صلی‬ की खखदमत में हास्ज़र हैं फक आप ने सब से दरयाफ्त फरमाया फक बतलाओ
  • 38. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 37 औरत के मलए कौन सी बात सबसे बहतर (अच्छा) है ? इस पर तमाम सहाबा खामूश रहे और फकसी ने कोई जवाब न हदया हज़रत अली (‫الکریم‬‫وجہہ‬‫ہللا‬‫)کرم‬ िरमाते हैं फक मैं ने वापस आकर हज़रत फाततमा ज़हरा (‫عنہا‬ ٰ‫تعالی‬ ‫ہللا‬ ‫)رضی‬ से पूछा फक औरतों के मलए सब से बहतर क्या बात है ? उन्हों (‫عنہا‬ ٰ‫تعالی‬ ‫ہللا‬ ‫)رضی‬ ने फरमाया फक न वह ग़ैर मदों को देखे और न ग़ैर मदस उन्हें देखें | मौला अली मुस्श्कल कु शा (‫الکریم‬‫وجہہ‬‫ہللا‬‫)کرم‬ ने यह जवाब हुज़ूर से अजस फकया तो हुज़ूर ने खुश हो कर इशासद फरमाया फक वह (‫عنہا‬ ٰ‫تعالی‬‫ہللا‬‫)رضی‬ मेरे हदल के टुकडे हैं | (दार अल क़ु तनी) सह्हा ए मसत्ता में से ततमसज़ी शरीि और अबू दाऊद शरीि में हदीस शरीि है फक कु छ उम्माहातुल मोमीन (‫عنہن‬ ٰ‫تعالی‬ ‫ہللا‬ ‫)رضی‬ हजूर (‫وسلم‬‫علیہ‬‫ہللا‬‫)صلی‬ की खखदमत में थीं | उसी वक़्त इबन ए मक्तूम आए | हुज़ूर (‫وسلم‬‫علیہ‬‫ہللا‬‫)صلی‬ ने अज्वाज ए मुतहहरात (‫عنہن‬ ٰ‫تعالی‬‫ہللا‬‫)رضی‬ को पदास का हुक्म फरमाया उन्हों ने अजस की फक वह तो नाबीना हैं फरमाया तुम तो ना बीना नहीं हो | मौलवी नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने मलखा है फक पदास वाली आयत ख़ास नबी पाक (‫وسلم‬ ‫علیہ‬ ‫ہللا‬ ‫)صلی‬ की अज्वाज ए मुतहहरात (‫عنہن‬ ٰ‫تعالی‬‫ہللا‬‫)رضی‬ के बारे में वाररद (नास्ज़ल हुई है) उम्मत की दोसरी औरतों के वाजते नहीं है | (बुन्यनुल मसूस पृष्ट 1६8) खुद बदलते नहीं क़ु रान बदल देते हैं
  • 39. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 38 िे पदतगी की इजाज़त मौलवी अशरि अली थानवी ने मलखा है फक एक अंग्रेज़ ने सवाल फकया था बमअ अपनी अहमलया (अपनी बीवी के साथ) के मुसलमान हो गया था फक हम हहंदुजतान आना चाहते हैं और हमारी मेम (बीवी) भी हमराह (साथ) होगी और वह ना पदास करेगी | मैं ने मलख हदया आप के मलए इजाज़त है | (अिाज़ातुल यौममया भाग 8 पृष्ट 25६) देविंदी मुिज़ल्लगे आज़म की िीवी फ़ै शन के शलए ब्यूिी पालति में मारूि देवबंदी मुबस्ल्लग मौलवी ताररक जमील की बीवी और भाभी फै शन के मलए एक बयूटी पालसर पर गयीं वहां पर उनके ज़ेवेरात चोरी हो गई | (रोजनामा नवाए वक़्त लाहोर 25 जुलाई 200७ – रोजनामा जंग लाहोर 28 जुलाई 200७) नज़दी वहाबबन औरतें क़ब्रुजतान जाया करेंगी (फतवा अल बातनया पृष्ट ३04-३05)
  • 40. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 39 ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन का अपनी िेिी से ननकाह (शादी) मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम मौलवी वहहदुज्ज़मा ने मलखा है फक और अगर फकसी औरत से स्जना फकया हो तो उस मदस के मलए मस्ज्नयााँ की मााँ और बेटी जाएज़ है | (नुजूलुल अबरार भाग 2 पृष्ट 21) मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान मलखते हैं: "अगर फकसी महहला से ज़ैद ने स्ज़ना फकया और उसी से लडकी पैदा हुई तो ज़ैद को अपनी बेटी से तनकाह कर सकता है | (अिुस ल जादी पृष्ट 109)
  • 41. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 40 ग़ैि मुक़ज़ल्लद पुरूष के शलए चाि से अधीक शादीयों की इजाज़त मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब मसद्दीक हसन खान मलखते हैं: "चार की कोई हद नहीं (ग़ैर मुस्क्ल्लद मदस) स्जतनी औरतें चाहे तनकाह में रख सकता है" | (ज़िरुल अमानी पृष्ट 141/ (अिुस ल जादी पृष्ट 115) भािती औितें हूिें हैं देवबंदी वहाबी के मौलवी अशरि अली थानवी ने मलखा है फक "मैं तो कहा करता हूाँ फक हहन्दुजतानी औरतें हूरें हैं (अिाजातुल यौममया भाग 4 पृष्ट 220)
  • 42. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 41 नाम ननहाद हूरूं से ज़ज़ना एक हाफिज़ जी अंधे थे हरीस थे उन्हों ने कहीं सुन मलया फक ख़ुदा ए तआला ने जन्नत में मोममनीन के मलए हूरें पैदा की हैं बस हर वक़्त वह (हाफिज़ जी) दुआ फकया करते थे फक ए अल्लाह हूरें भेज ! हूरें भेज ! बाज़ारी औरतें बडी शरीर (बद- तमीज) होती हैं | कहीं उन्होंने सुन मलया, (उन बाज़ारी औरतों ने) आपस में मशवरा फकया फक चलो (हम) हाफिज़ को हूरों से तौबा करा दें | सब जमा हो के आयीं, आप (हाफिज़ साहब) ने खटका सुन कर पुछा कौन ? औरतों ने कहा हूर | (हाफिज़ जी) बडे खुश हुए फक बहुत हदनों में मेरी दुआ कु बूल हूई | खैर मुंह काला फकया (स्ज़ना फकया) | दूसरी (बाज़ारी औरत) आई पूछा कौन हूर कहने लगी फिर सही | उस से भी मुंह काला फकया | गज़स बहुत सी (वह औरतें) थी | उनका भी कई वषस का जोश था | आखख़र कहााँ तक वह पूरा हो चूका तो और (औरत) आई पूछा कौन, कहा हूर | गाली देके (हाफिज़ जी) कहने लगे | सब हूरें मेरी ही फकजमत में आ गयीं | सो हज़रत स्जस तरह से वह हूर से घबरा गए उस तरह तुम नूर से घबराते | (बरकाते रमज़ान मश्मूला खुत्बाते हकीमुल उम्मत भाग 1६, पृष्ट 248 -हफ्ते अख्तर ६/105) शमत गाह (योनन) का महल (स्थान) काइम (ििक़िाि) िखने का नुस्खा ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के शैखेकु ल फिलकु ल ममयां नजीर हुसैन दहलवी मलखेते हैं: "महहला को ज़ेरे नाि बाल उसतुरे से साफ
  • 43. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 42 करना चाहहए उखाड ने से महल (योतन) ढीला हो जाता है"| (फतवा नज़ीररया भाग 4 पृष्ट 52६) मुश्तजनी (हस्तमैथुन) जायज़ है मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान मलखते हैं: अगर गुनाह से बचना हो तो मुश्तज़नी (हजतमैथुन) वस्जब है | (अिुस ल जादी पृष्ट 20७) मौलवी वहीदुज्जामा ने भी यही मलखा है फक कु छ लोगो ने मुश्तज़नी (हजतमैथुन) को जाएज़ क़रार हदया है और नबी पाक )‫وسلم‬ ‫علیہ‬ ‫ہللا‬ ‫)صلی‬ का जो इशासद मुबारक मुश्तज़नी (हजतमैथुन) की वईद और मुमातनअत में है उस को ज़-इि क़रार हदया है| (नुजूलुल अबरार) हिप्पणी: औि आगे जो शलखा है वह िात क़ारिऐन ज़िा हदल थम के पहढ़ये "और बअज़ (कु छ) सहाबा (‫الرضوان‬‫)علیہم‬ भी फकया करते थे" | (मुआज़ल्ला) (अिुस ल जादी पृष्ट 20७)
  • 44. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 43 एहनतलाम िोकने की तहकीक ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलवी नवाब मसद्दीक हसन भोपाली मलखते हैं" अगर दाएाँ रान पर आदम का नाम और बाएं रान पर हव्वा का नाम मलख हदया जाये तो इहततलाम नहीं होता | (अल-दा ए वद-दाए पृष्ट 1७9) एक महहला पपता एवं पुत्र के दोनों के शलए हलाल ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलवी वहहदुज्ज़मा मलखते हैं: "अगर बेटे ने एक महहला से स्ज़ना फकया तो यह महहला बाप के मलए हलाल है इसी तरह इसके बरअक्स (ववपरीत) भी" | (नुज़ुलुल अबरार भाग 2 पृष्ट 28)
  • 45. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 44 िाप औि िेिे की मुश्तिक (साझा) िीवी अल्लामा वहहदुज्ज़मा मलखते हैं: अगर फकसी ने अपनी मााँ से स्ज़ना फकया, खाह स्ज़ना कर ने वाला बामलग हो या ना बामलग या क़रीबुल बुलूग, तो वह अपने खाववंद (पतत) पर हराम नहीं हूई | (नुज़ुलुल अबरार भाग 2 पृष्ट 28 ) हिप्पणी: िहुत खूि ! ननकाह औि ज़ज़ना दोनों की गाड़ी चलती िहे |
  • 46. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 45 खून औि क़ै वज़ू नहीं िूिता नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने मलखा है फक वज़ू खून और क़ै से (अगरचे इसकी ममक़दार फकतनी भी हो) नहीं टूट ता (अिुस ल जावी पृष्ट 14) बिला वज़ू औि ग़ुस्ल के कु िान छू ना नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने मलखा है फक स्जस का वज़ू और ग़ुजल न हो ऐसे शख्स को क़ु रान करीम का छू ना जाएज़ है | (अिुस ल जावी पृष्ट 15) ज़ज़ना की औलाद िांिने का तिीका ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलवी वहहदुज्ज़मा ने मलखा है अल्लामा वहहदुज्ज़मा मलखते हैं: एक महहला (ग़ैर मुक़स्ल्लदह) से तीन
  • 47. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 46 (ग़ैर मुक़स्ल्लद) बारी बारी सुहबत (सेक्स) करते रहे और इन तीनों की सुहबत से लडका पैदा हुआ तो लडके पर कु रआ अंदाजी (आकवषसत कायस) होगी | स्जसके नाम क़ु रआ (आकवषसत) तनकल आया उसको बेटा ममल जायेगा और बाक़ी दो को यह बेटा लेने वाला ततहाई हदयत (देयधन) देगा | (नुज़ुलुल अबरार भाग 2 पृष्ट ७5) गभतशय का चचत्र हाफिज अबदुल्लाह रोपडी मलखते हैं: रहम मसाना (वपशाब की थैली / मुत्रशय) और रोदा मुजतक़ीम (पखाना तनकलने की अंतडी) के दरममयान पुट्ठे की तरह सादा रंग का गदसन वाला एक अज़व (अंग) है स्जस की शक्ल क़रीब क़रीब उलटी सुराही की बतलाया करते है मगर पूरा नक्शा उसका क़ु दरत ने खुद पुरूष के अन्दर रखा है | पुरूष अपनी आलत (मलंग) को उठाकर पैरूं के साथ लगा ले तो आलत मअ खुस्जसतीने रहम का पूरा चचत्र है"| (तंज़ीम यकु म मई 19३2 पृष्ट ६ कालम नम्बर 1) हिप्पणी : ग़ैि मुक़ज़ल्लद मौलवी सनाउल्लाह अज़ततसिी इस पि हिप्पणी किते हैं "चचत्र िना देते तो शायद लाभ होता" | औित की शमतगाह कै सी होती है ??? एक बार भरे मजमा में हज़रत (गंगोही) की फकसी तक़रीर पर एक नो उम्र हदहाती बे तकल्लुि पूछ बैठा फक हज़रत जी औरत की शमसगाह कै सी होती है ? अल्लाह रे तालीम, सब हास्ज़रीन ने गदसनें झुका ली मगर आप मुतलक़ चीं ब चीं ना हुए बस्ल्क बे
  • 48. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 47 साख्ता फरमाया फक जैसे गेहूं का दाना | (तस्ज्करतुर रशीद भाग 2 पृष्ट 100) ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन के शलए िेहतिीन महहला वहाबबयों के मशहूर व मारूि मौलवी वहहदुज्ज़मा ने मलखा है : "ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के मलए (बहतर महहला वह है स्जसकी िु जस (योतन) तंग हो और शहवत (सेक्सी) के मारे दांत रगड रही हो और जमाअ (संभोग / हमबबजतरी) कराते समय करवट से लेटी हो" | (लुगातुल हदीस भाग ६ पृष्ट 428)
  • 49. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi http://aalerasoolahmad.blogspot.com Page 48 ईदेन का खुतिा मौलवी मसद्दीक हसन भोपाली मलखते हैं फक ईदेन का खुतबा बे वजू जायज़ है | (बदूरुल अहहल्लह पृष्ट ७9) नमाज़ में लड़का या लड़की को उठाना वहाबबयों की मशहूर फकताब फफक्ह मुहम्महदया में मलखा है फक लडके और लडकी को नमाज़ में उठाना दुरुजत है, बराबर है नमाज़ ए फजस हो या नफ्ली और इसी तरह जायज़ है, नमाज़ में उठाना हर जानवर पाक का, पररंदे और बकरी का" | (फफक्ह मुहम्महदया भाग 1 पृष्ट 14७) कु त्ते को उठाकि नमाज़ अल्लामा वहहदुज्ज़मा मलखते हैं: कु त्ते को उठाकर नमाज़ पढने से नमाज़ िामसद नहीं होती | (नुज़ुलुल अबरार पृष्ट ३0) िे नमाज़ काकफ़ि व मुशरिक है वहाबबया नस्ज्दया के ररसाला सहीफा अहले हदीस में मलखा है फक बे नमाज़ शरीअत की रू से काफफर मुशररक है | (सहीफा अहले हदीस कराची पृष्ट 19, 1६ मई 195७) वहाबबयों के मौलवी रिीक खां पसरोरी ने भी मलखा है फक "बे नमाज़ काफफर है " | (इजलाह अक़ाइद पृष्ट 108) बे नमाज़ का जनाज़ा नहीं (सहीफा अहले हदीस कराची पृष्ट 22, 15 जमाद अल सानी 1३७३ हहजरी)