SlideShare une entreprise Scribd logo
1  sur  26
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्ि'। काव्य को पढ़ने या सुनने से
ब्िस आनन्ि की अनुभूति होिी है, उसे 'रस' कहा िािा है।
➢पाठक या श्रोिा के हृिय में ब्थर्ि थर्ायीभाव ही ववभावादि
से संयुक्ि होकर रस के रूप में पररणि हो िािा है।
➢रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण ित्व' माना िािा है।
रस के प्रकार
१ .शृंगार रस
➢शृंगार रस को रसराि या रसपति कहा गया है। मुख्यि: संयोग िर्ा ववप्रलंभ
या ववयोग के नाम से िो भागों में ववभाब्िि ककया िािा है, ककं िु धनंिय आदि
कु छ ववद्वान्ववप्रलंभ के पूवाथनुराग भेि को संयोग-ववप्रलंभ-ववरदहि पूवाथवथर्ा
मानकर अयोग की संज्ञा िेिे हैं िर्ा शेष ववप्रयोग िर्ा संभोग नाम से िो भेि और
करिे हैं।
➢संयोग की अनेक पररब्थर्तियों के आधार पर उसे अगणेय मानकर उसे
के वल आश्रय भेि से नायकारदध, नातयकारदध अर्वा उभयारदध, प्रकाशन के
ववचार से प्रच्छन्न िर्ा प्रकाश या थपष्ट और गुप्ि िर्ा प्रकाशनप्रकार के
ववचार से संक्षिप्ि, संकीणथ, संपन्निर िर्ा समृद्धधमान नामक भेि ककए
िािे हैं िर्ा ववप्रलंभ के पूवाथनुराग या अभभलाषहेिुक, मान या ईश्र्याहेिुक,
प्रवास, ववरह िर्ा करुण वप्रलंभ नामक भेि ककए गए हैं। शृंगार रस के अंिगथि
नातयकालंकार, ऋिु िर्ा प्रकृ ति का भी वणथन ककया िािा है।
➢ संयोग शृंगार ;
बिरस लालच लाल की, मुरली धरर लुकाय।
सौंह करे, भौंहतन हँसै, िैन कहै, नदट िाय।
-बबहारी लाल
उदाहरण
➢ववयोग शृंगार (ववप्रलंभ शृंगार) ;
तनभसदिन बरसि नयन हमारे,
सिा रहति पावस ऋिु हम पै िब िे थयाम भसधारे॥
-सूरिास
२ .हास्य रस
➢हास्य रस का स्थायी भाव हास है। ‘साहहत्यदर्पण’ में कहा
गया है - "बागाहदवैकतैश्चेतोववकासो हास इष्यते", अथापत
वाणी, रूर् आहद के ववकारों को देखकर चचत्त का ववकससत
होना ‘हास’ कहा जाता है।
उदाहरण
➢िंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रिाप, साि भमले
पंद्रह भमनट घंटा भर आलाप।
घंटा भर आलाप, राग में मारा गोिा, धीरे-धीरे
खिसक चुके र्े सारे श्रोिा।
(काका हार्रसी)
➢भरिमुतन के ‘नाट्यशाथर’ में प्रतिपादिि आठ नाट्यरसों में शृंगार और हाथय के
अनन्िर िर्ा रौद्र से पूवथ करुण रस की गणना की गई है। ‘रौद्रात्तु करुणो रस:’
कहकर 'करुण रस' की उत्पवत्त 'रौद्र रस' से मानी गई है और उसका वणथ कपोि के
सदृश है िर्ा िेविा यमराि बिाये गये हैं भरि ने ही करुण रस का ववशेष वववरण
िेिे हुए उसके थर्ायी भाव का नाम ‘शोक’ दिया हैI और उसकी उत्पवत्त शापिन्य
क्लेश ववतनपाि, इष्टिन-ववप्रयोग, ववभव नाश, वध, बन्धन, ववद्रव अर्ाथि
पलायन, अपघाि, व्यसन अर्ाथि आपवत्त आदि ववभावों के संयोग से थवीकार की
है। सार् ही करुण रस के अभभनय में अश्रुपािन, पररिेवन अर्ाथि् ववलाप,
मुिशोषण, वैवर्णयथ, रथिागारिा, तन:श्वास, थमृतिववलोप आदि अनुभावों के प्रयोग
का तनिेश भी कहा गया है। किर तनवेि, ग्लातन, धचन्िा, औत्सुक्य, आवेग, मोह,
श्रम, भय, ववषाि, िैन्य, व्याधध, िड़िा, उन्माि, अपथमार, रास, आलथय, मरण,
थिम्भ, वेपर्ु, वेवर्णयथ, अश्रु, थवरभेि आदि की व्यभभचारी या संचारी भाव के रूप में
पररगखणि ककया है I
३ .करुण रस
➢सोक बबकल सब रोवदहं रानी। रूपु सीलु बलु िेिु
बिानी॥
करदहं ववलाप अनेक प्रकारा। पररदहं भूभम िल बारदहं
बारा॥
(िुलसीिास)
उदाहरण
४ .वीर रस
➢शृंगार के सार् थपधाथ करने वाला वीर रस है। शृंगार, रौद्र िर्ा वीभत्स के सार् वीर को
भी भरि मुतन ने मूल रसों में पररगखणि ककया है। वीर रस से ही अिभुि रस की उत्पवत्त
बिलाई गई है। वीर रस का 'वणथ' 'थवणथ' अर्वा 'गौर' िर्ा िेविा इन्द्र कहे गये हैं। यह उत्तम
प्रकृ ति वालो से सम्बद्ध है िर्ा इसका थर्ायी भाव ‘उत्साह’ है - ‘अर् वीरो नाम
उत्तमप्रकृ तिरुत्साहत्मक:’। भानुित्त के अनुसार, पूणथिया पररथिु ट ‘उत्साह’ अर्वा सम्पूणथ
इब्न्द्रयों का प्रहषथ या उत्िु ल्लिा वीर रस है - ‘पररपूणथ उत्साह: सवेब्न्द्रयाणां प्रहषो वा वीर:।’
➢दहन्िी के आचायथ सोमनार् ने वीर रस की पररभाषा की है -
➢‘िब कववत्त में सुनि ही व्यंग्य होय उत्साह। िहाँ वीर रस समखियो चौबबधध के
कववनाह।’ सामान्यि: रौद्र एवं वीर रसों की पहचान में कदठनाई होिी है। इसका कारण
यह है कक िोनों के उपािान बहुधा एक - िूसरे से भमलिे-िुलिे हैं। िोनों के आलम्बन शरु
िर्ा उद्िीपन उनकी चेष्टाएँ हैं। िोनों के व्यभभचाररयों िर्ा अनुभावों में भी सादृश्य हैं।
कभी-कभी रौद्रिा में वीरत्व िर्ा वीरिा में रौद्रवि का आभास भमलिा है। इन कारणों से
कु छ ववद्वान रौद्र का अन्िभाथव वीर में और कु छ वीर का अन्िभाथव रौद्र में करने के
अनुमोिक हैं, लेककन रौद्र रस के थर्ायी भाव क्रोध िर्ा वीर रस के थर्ायी भाव उत्साह में
अन्िर थपष्ट है।
➢वीर िुम बढ़े चलो, धीर िुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो कक भसंह की िहाड़ हो।
िुम कभी रुको नहीं, िुम कभी िुको नहीं॥
(द्वाररका प्रसाि माहेश्वरी)
उदाहरण
५ .रौद्र रस
➢काव्यगि रसों में रौद्र रस का महत्त्वपूणथ थर्ान है। भरि ने
‘नाट्यशाथर’ में शृंगार, रौद्र, वीर िर्ा वीभत्स, इन चार रसों
को ही प्रधान माना है, अि: इन्हीं से अन्य रसों की उत्पवत्त
बिायी है, यर्ा-‘िेषामुत्पवत्तहेिवच्ित्वारो रसा: शृंगारो रौद्रो
वीरो वीभत्स इति’ । रौद्र से करुण रस की उत्पवत्त बिािे हुए
भरि कहिे हैं कक ‘रौद्रथयैव च यत्कमथ स शेय: करुणो
रस:’ ।रौद्र रस का कमथ ही करुण रस का िनक होिा हैI
उदाहरण
➢श्रीकृ ष्ण के सुन वचन अिुथन िोभ से िलने लगे।
सब शील अपना भूल कर करिल युगल मलने लगे॥
संसार िेिे अब हमारे शरु रण में मृि पड़े।
करिे हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर िड़े॥
(मैधर्लीशरण गुप्ि)
६ .भयानक रस
➢भयानक रस दहन्िी काव्य में मान्य नौ रसों में से एक है। भानुित्त के
अनुसार, ‘भय का पररपोष’ अर्वा ‘सम्पूणथ इब्न्द्रयों का वविोभ’ भयानक
रस है। अर्ाथि भयोत्पािक वथिुओं के िशथन या श्रवण से अर्वा शरु
इत्यादि के ववद्रोहपूणथ आचरण से है, िब वहाँ भयानक रस होिा
है। दहन्िी के आचायथ सोमनार् ने ‘रसपीयूषतनधध’ में भयानक रस की
तनम्न पररभाषा िी है-
➢‘सुतन कववत्त में व्यंधग भय िब ही परगट होय। िहीं भयानक रस बरतन
कहै सबै कवव लोय’।
उदाहरण
➢उधर गरििी भसंधु लहररयाँ कु दटल काल के िालों
सी।
चली आ रहीं िे न उगलिी िन िै लाये व्यालों - सी॥
(ियशंकर प्रसाि)
७ .बीभत्स रस
➢बीभत्स रस काव्य में मान्य नव रसों में अपना ववभशष्ट
थर्ान रििा है। इसकी ब्थर्ति िु:िात्मक रसों में मानी
िािी है। इस दृब्ष्ट से करुण, भयानक िर्ा रौद्र, ये
िीन रस इसके सहयोगी या सहचर भसद्ध होिे हैं। शान्ि
रस से भी इसकी तनकटिा मान्य है, क्योंकक बहुधा बीभत्सिा
का िशथन वैराग्य की प्रेरणा िेिा है और अन्िि: शान्ि रस के
थर्ायी भाव शम का पोषण करिा है।
उदाहरण
➢भसर पर बैठ्यो काग आँि िोउ िाि तनकारि।
िींचि िीभदहं थयार अतिदह आनंि उर धारि॥
गीध िांतघ को िोदि-िोदि कै माँस उपारि।
थवान आंगुररन कादट-कादट कै िाि वविारि॥
(भारिेन्िु)
८ .अद्भुत रस
➢अद्भुि रस ‘ववथमयथय सम्यक्समृद्धधरद्भुि:
सवेब्न्द्रयाणां िाटथ्यं या’। अर्ाथि ववथमय की
सम्यक समृद्धध अर्वा सम्पूणथ इब्न्द्रयों की िटथर्िा
अिभुि रस है। कहने का अभभप्राय यह है कक िब ककसी
रचना में ववथमय 'थर्ायी भाव' इस प्रकार पूणथिया
प्रथिु ट हो कक सम्पूणथ इब्न्द्रयाँ उससे अभभभाववि होकर
तनश्चेष्ट बन िाएँ, िब वहाँ अद्भुि रस की तनष्पवत्त
होिी है।
उदाहरण
अखिल भुवन चर- अचर सब, हरर मुि में लखि
मािु।
चककि भई गद्गद् वचन, ववकभसि दृग पुलकािु॥
(सेनापति)
➢ शान्ि रस सादहत्य में प्रभसद्ध नौ रसों में अब्न्िम रस
माना िािा है - "शान्िोऽवप नवमो रस:।" इसका कारण
यह है कक भरिमुतन के ‘नाट्यशाथर’ में, िो रस वववेचन
का आदि स्रोि है, नाट्य रसों के रूप में के वल आठ रसों का
ही वणथन भमलिा है। शान्ि के उस रूप में भरिमुतन ने
मान्यिा प्रिान नहीं की, ब्िस रूप में शृंगार, वीर आदि रसों
की, और न उसके ववभाव, अनुभाव और संचारी भावों का ही
वैसा थपष्ट तनरूपण ककया।
९ .शाृंत रस
उदाहरण
➢मन रे िन कागि का पुिला।
लागै बूँि बबनभस िाय तछन में, गरब करै क्या इिना॥
(कबीर)
➢वात्सल्य रस का थर्ायी भाव है। मािा-वपिा का अपने पुरादि पर िो नैसधगथक थनेह होिा है, उसे
‘वात्सल्य’ कहिे हैं। मैकडुगल आदि मनथित्त्ववविों ने वात्सल्य को प्रधान, मौभलक भावों में पररगखणि
ककया है, व्यावहाररक अनुभव भी यह बिािा है कक अपत्य-थनेह िाम्पत्य रस से र्ोड़ी ही कम
प्रभववष्णुिावाला मनोभाव है।
➢संथकृ ि के प्राचीन आचायों ने िेवादिववषयक रति को के वल ‘भाव’ ठहराया है िर्ा वात्सल्य को इसी
प्रकार की ‘रति’ माना है, िो थर्ायी भाव के िुल्य, उनकी दृब्ष्ट में चवणीय नहीं है
➢सोमेश्वर भब्क्ि एवं वात्सल्य को ‘रति’ के ही ववशेष रूप मानिे हैं - ‘थनेहो भब्क्िवाथत्सल्यभमति रिेरेव
ववशेष:’, लेककन अपत्य-थनेह की उत्कटिा, आथवािनीयिा, पुरुषार्ोपयोधगिा इत्यादि गुणों पर ववचार
करने से प्रिीि होिा है कक वात्सल्य एक थविंर प्रधान भाव है, िो थर्ायी ही समिा िाना चादहए।
➢भोि इत्यादि कतिपय आचायों ने इसकी सत्ता का प्राधान्य थवीकार ककया है।
➢ववश्वनार् ने प्रथिु ट चमत्कार के कारण वत्सल रस का थविंर अब्थित्व तनरूवपि कर ‘वत्सलिा-
थनेह’ को इसका थर्ायी भाव थपष्ट रूप से माना है - ‘थर्ायी वत्सलिा-थनेह: पुरार्ालम्बनं मिम्’।
➢हषथ, गवथ, आवेग, अतनष्ट की आशंका इत्यादि वात्सल्य के व्यभभचारी भाव हैं। उिाहरण -
➢‘चलि िेखि िसुमति सुि पावै।
ठु मुकक ठु मुकक पग धरनी रेंगि, िननी िेखि दििावै’ इसमें के वल वात्सल्य भाव व्यंब्िि है, थर्ायी का
पररथिु टन नहीं हुआ है।
१० .वात्सल्य रस
उदाहरण
➢ककलकि कान्ह घुटरुवन
आवि।
मतनमय कनक नंि के आंगन
बबम्ब पकररवे घावि॥
(सूरिास)
११.भक्तत रस
➢भरिमुतन से लेकर पब्र्णडिराि िगन्नार् िक संथकृ ि के
ककसी प्रमुि काव्याचायथ ने ‘भब्क्ि रस’ को रसशाथर के
अन्िगथि मान्यिा प्रिान नहीं की। ब्िन ववश्वनार् ने वाक्यं
रसात्मकं काव्यम्के भसद्धान्ि का प्रतिपािन ककया और ‘मुतन-
वचन’ का उल्लघंन करिे हुए वात्सल्य को नव रसों के समकि
सांगोपांग थर्ावपि ककया, उन्होंने भी 'भब्क्ि' को रस नहीं
माना। भब्क्ि रस की भसद्धध का वाथिववक स्रोि काव्यशाथर न
होकर भब्क्िशाथर है, ब्िसमें मुख्यिया ‘गीिा’, ‘भागवि’,
‘शाब्र्णडल्य भब्क्िसूर’, ‘नारि भब्क्िसूर’, ‘भब्क्ि रसायन’ िर्ा
‘हररभब्क्िरसामृिभसन्धु’ प्रभूति ग्रन्र्ों की गणना की िा
सकिी है।
उदाहरण
➢राम िपु, राम िपु, राम
िपु बावरे।
➢घोर भव नीर- तनधध,
नाम तनि नाव रे॥
सधान्यवाद !

Contenu connexe

Tendances

पद परिचय
पद परिचयपद परिचय
पद परिचय
Mahip Singh
 
Shabd vichar
Shabd vicharShabd vichar
Shabd vichar
amrit1489
 

Tendances (20)

Hindi Project - Alankar
Hindi Project - AlankarHindi Project - Alankar
Hindi Project - Alankar
 
alankar
alankaralankar
alankar
 
Prashant tiwari on hindi ras ppt.....
Prashant tiwari on hindi ras ppt.....Prashant tiwari on hindi ras ppt.....
Prashant tiwari on hindi ras ppt.....
 
karam karak ppt
karam karak pptkaram karak ppt
karam karak ppt
 
Hindi रस
Hindi रसHindi रस
Hindi रस
 
Ras in hindi PPT
Ras in hindi PPTRas in hindi PPT
Ras in hindi PPT
 
Alankar
AlankarAlankar
Alankar
 
ALANKAR.pptx
ALANKAR.pptxALANKAR.pptx
ALANKAR.pptx
 
Alankar
AlankarAlankar
Alankar
 
पद परिचय
पद परिचयपद परिचय
पद परिचय
 
अलंकार
अलंकारअलंकार
अलंकार
 
Sanskrit presention
Sanskrit presention Sanskrit presention
Sanskrit presention
 
Kriya
KriyaKriya
Kriya
 
Samas
SamasSamas
Samas
 
samas (2).ppt
samas (2).pptsamas (2).ppt
samas (2).ppt
 
Shabd vichar
Shabd vicharShabd vichar
Shabd vichar
 
क्रिया विशेषण
क्रिया विशेषणक्रिया विशेषण
क्रिया विशेषण
 
संधि
संधि संधि
संधि
 
Sandhi
SandhiSandhi
Sandhi
 
alankar
alankaralankar
alankar
 

En vedette

Powerpoint work hindi chandra final
Powerpoint work hindi chandra finalPowerpoint work hindi chandra final
Powerpoint work hindi chandra final
chandraajesh02
 
अलंकार
अलंकारअलंकार
अलंकार
Rubby Sharma
 
alankar(अलंकार)
alankar(अलंकार)alankar(अलंकार)
alankar(अलंकार)
Rahul Gariya
 

En vedette (10)

Paralysis new
Paralysis newParalysis new
Paralysis new
 
Sahitya ke nau ras
Sahitya ke nau rasSahitya ke nau ras
Sahitya ke nau ras
 
Rajayakshma or Tuberculosis by Dr.Sandeep sharma
Rajayakshma or Tuberculosis by Dr.Sandeep sharmaRajayakshma or Tuberculosis by Dr.Sandeep sharma
Rajayakshma or Tuberculosis by Dr.Sandeep sharma
 
Powerpoint work hindi chandra final
Powerpoint work hindi chandra finalPowerpoint work hindi chandra final
Powerpoint work hindi chandra final
 
Rasa prakasha sudhakara
Rasa prakasha sudhakaraRasa prakasha sudhakara
Rasa prakasha sudhakara
 
हिन्दी व्याकरण Class 10
हिन्दी व्याकरण Class 10हिन्दी व्याकरण Class 10
हिन्दी व्याकरण Class 10
 
Gradhrasi
GradhrasiGradhrasi
Gradhrasi
 
अलंकार
अलंकारअलंकार
अलंकार
 
alankar(अलंकार)
alankar(अलंकार)alankar(अलंकार)
alankar(अलंकार)
 
How to Become a Thought Leader in Your Niche
How to Become a Thought Leader in Your NicheHow to Become a Thought Leader in Your Niche
How to Become a Thought Leader in Your Niche
 

Similaire à रस

radha-sudha-nidhi-full-book.pdf
radha-sudha-nidhi-full-book.pdfradha-sudha-nidhi-full-book.pdf
radha-sudha-nidhi-full-book.pdf
NeerajOjha17
 
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
VaidyaSonaliSharma
 
Hi introduction of_quran
Hi introduction of_quranHi introduction of_quran
Hi introduction of_quran
Loveofpeople
 

Similaire à रस (20)

रस (काव्य शास्त्र)
रस (काव्य शास्त्र)रस (काव्य शास्त्र)
रस (काव्य शास्त्र)
 
वाच्य एवं रस
 वाच्य एवं रस  वाच्य एवं रस
वाच्य एवं रस
 
इकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptxइकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptx
 
Hindi presentation on ras
Hindi presentation on rasHindi presentation on ras
Hindi presentation on ras
 
radha-sudha-nidhi-full-book.pdf
radha-sudha-nidhi-full-book.pdfradha-sudha-nidhi-full-book.pdf
radha-sudha-nidhi-full-book.pdf
 
Prashant tiwari hindi ppt on
Prashant tiwari hindi ppt on Prashant tiwari hindi ppt on
Prashant tiwari hindi ppt on
 
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
 
हिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरणहिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरण
 
Leshaya Margna
Leshaya MargnaLeshaya Margna
Leshaya Margna
 
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
 
Jaatharini (Kashyap samhita, Revati kalp )
Jaatharini (Kashyap samhita, Revati kalp )Jaatharini (Kashyap samhita, Revati kalp )
Jaatharini (Kashyap samhita, Revati kalp )
 
Mimansa philosophy
Mimansa philosophyMimansa philosophy
Mimansa philosophy
 
RishiPrasad
RishiPrasadRishiPrasad
RishiPrasad
 
Hindi grammar
Hindi grammarHindi grammar
Hindi grammar
 
Sri krishna aavatar darshan
Sri krishna aavatar darshanSri krishna aavatar darshan
Sri krishna aavatar darshan
 
Hi introduction of_quran
Hi introduction of_quranHi introduction of_quran
Hi introduction of_quran
 
Darshan Margna
Darshan MargnaDarshan Margna
Darshan Margna
 
Sri krishna janmastami
Sri krishna janmastamiSri krishna janmastami
Sri krishna janmastami
 
chhayavad-4.pptx
chhayavad-4.pptxchhayavad-4.pptx
chhayavad-4.pptx
 
RAS.pptx
RAS.pptxRAS.pptx
RAS.pptx
 

Dernier

Email Marketing Kya Hai aur benefits of email marketing
Email Marketing Kya Hai aur benefits of email marketingEmail Marketing Kya Hai aur benefits of email marketing
Email Marketing Kya Hai aur benefits of email marketing
Digital Azadi
 
बाल साहित्य: इसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
बाल साहित्य: इसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?बाल साहित्य: इसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
बाल साहित्य: इसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
Dr. Mulla Adam Ali
 

Dernier (6)

Email Marketing Kya Hai aur benefits of email marketing
Email Marketing Kya Hai aur benefits of email marketingEmail Marketing Kya Hai aur benefits of email marketing
Email Marketing Kya Hai aur benefits of email marketing
 
Kabir Ke 10 Dohe in Hindi with meaning
Kabir Ke 10 Dohe in Hindi with meaningKabir Ke 10 Dohe in Hindi with meaning
Kabir Ke 10 Dohe in Hindi with meaning
 
knowledge and curriculum Syllabus for B.Ed
knowledge and curriculum Syllabus for B.Edknowledge and curriculum Syllabus for B.Ed
knowledge and curriculum Syllabus for B.Ed
 
2011 Census of India - complete information.pptx
2011 Census of India - complete information.pptx2011 Census of India - complete information.pptx
2011 Census of India - complete information.pptx
 
ali garh movement part2.pptx THIS movement by sir syed ahmad khan who started...
ali garh movement part2.pptx THIS movement by sir syed ahmad khan who started...ali garh movement part2.pptx THIS movement by sir syed ahmad khan who started...
ali garh movement part2.pptx THIS movement by sir syed ahmad khan who started...
 
बाल साहित्य: इसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
बाल साहित्य: इसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?बाल साहित्य: इसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
बाल साहित्य: इसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
 

रस

  • 1.
  • 2. रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्ि'। काव्य को पढ़ने या सुनने से ब्िस आनन्ि की अनुभूति होिी है, उसे 'रस' कहा िािा है। ➢पाठक या श्रोिा के हृिय में ब्थर्ि थर्ायीभाव ही ववभावादि से संयुक्ि होकर रस के रूप में पररणि हो िािा है। ➢रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण ित्व' माना िािा है।
  • 4. १ .शृंगार रस ➢शृंगार रस को रसराि या रसपति कहा गया है। मुख्यि: संयोग िर्ा ववप्रलंभ या ववयोग के नाम से िो भागों में ववभाब्िि ककया िािा है, ककं िु धनंिय आदि कु छ ववद्वान्ववप्रलंभ के पूवाथनुराग भेि को संयोग-ववप्रलंभ-ववरदहि पूवाथवथर्ा मानकर अयोग की संज्ञा िेिे हैं िर्ा शेष ववप्रयोग िर्ा संभोग नाम से िो भेि और करिे हैं। ➢संयोग की अनेक पररब्थर्तियों के आधार पर उसे अगणेय मानकर उसे के वल आश्रय भेि से नायकारदध, नातयकारदध अर्वा उभयारदध, प्रकाशन के ववचार से प्रच्छन्न िर्ा प्रकाश या थपष्ट और गुप्ि िर्ा प्रकाशनप्रकार के ववचार से संक्षिप्ि, संकीणथ, संपन्निर िर्ा समृद्धधमान नामक भेि ककए िािे हैं िर्ा ववप्रलंभ के पूवाथनुराग या अभभलाषहेिुक, मान या ईश्र्याहेिुक, प्रवास, ववरह िर्ा करुण वप्रलंभ नामक भेि ककए गए हैं। शृंगार रस के अंिगथि नातयकालंकार, ऋिु िर्ा प्रकृ ति का भी वणथन ककया िािा है।
  • 5. ➢ संयोग शृंगार ; बिरस लालच लाल की, मुरली धरर लुकाय। सौंह करे, भौंहतन हँसै, िैन कहै, नदट िाय। -बबहारी लाल उदाहरण ➢ववयोग शृंगार (ववप्रलंभ शृंगार) ; तनभसदिन बरसि नयन हमारे, सिा रहति पावस ऋिु हम पै िब िे थयाम भसधारे॥ -सूरिास
  • 6. २ .हास्य रस ➢हास्य रस का स्थायी भाव हास है। ‘साहहत्यदर्पण’ में कहा गया है - "बागाहदवैकतैश्चेतोववकासो हास इष्यते", अथापत वाणी, रूर् आहद के ववकारों को देखकर चचत्त का ववकससत होना ‘हास’ कहा जाता है।
  • 7. उदाहरण ➢िंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रिाप, साि भमले पंद्रह भमनट घंटा भर आलाप। घंटा भर आलाप, राग में मारा गोिा, धीरे-धीरे खिसक चुके र्े सारे श्रोिा। (काका हार्रसी)
  • 8. ➢भरिमुतन के ‘नाट्यशाथर’ में प्रतिपादिि आठ नाट्यरसों में शृंगार और हाथय के अनन्िर िर्ा रौद्र से पूवथ करुण रस की गणना की गई है। ‘रौद्रात्तु करुणो रस:’ कहकर 'करुण रस' की उत्पवत्त 'रौद्र रस' से मानी गई है और उसका वणथ कपोि के सदृश है िर्ा िेविा यमराि बिाये गये हैं भरि ने ही करुण रस का ववशेष वववरण िेिे हुए उसके थर्ायी भाव का नाम ‘शोक’ दिया हैI और उसकी उत्पवत्त शापिन्य क्लेश ववतनपाि, इष्टिन-ववप्रयोग, ववभव नाश, वध, बन्धन, ववद्रव अर्ाथि पलायन, अपघाि, व्यसन अर्ाथि आपवत्त आदि ववभावों के संयोग से थवीकार की है। सार् ही करुण रस के अभभनय में अश्रुपािन, पररिेवन अर्ाथि् ववलाप, मुिशोषण, वैवर्णयथ, रथिागारिा, तन:श्वास, थमृतिववलोप आदि अनुभावों के प्रयोग का तनिेश भी कहा गया है। किर तनवेि, ग्लातन, धचन्िा, औत्सुक्य, आवेग, मोह, श्रम, भय, ववषाि, िैन्य, व्याधध, िड़िा, उन्माि, अपथमार, रास, आलथय, मरण, थिम्भ, वेपर्ु, वेवर्णयथ, अश्रु, थवरभेि आदि की व्यभभचारी या संचारी भाव के रूप में पररगखणि ककया है I ३ .करुण रस
  • 9. ➢सोक बबकल सब रोवदहं रानी। रूपु सीलु बलु िेिु बिानी॥ करदहं ववलाप अनेक प्रकारा। पररदहं भूभम िल बारदहं बारा॥ (िुलसीिास) उदाहरण
  • 10. ४ .वीर रस ➢शृंगार के सार् थपधाथ करने वाला वीर रस है। शृंगार, रौद्र िर्ा वीभत्स के सार् वीर को भी भरि मुतन ने मूल रसों में पररगखणि ककया है। वीर रस से ही अिभुि रस की उत्पवत्त बिलाई गई है। वीर रस का 'वणथ' 'थवणथ' अर्वा 'गौर' िर्ा िेविा इन्द्र कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकृ ति वालो से सम्बद्ध है िर्ा इसका थर्ायी भाव ‘उत्साह’ है - ‘अर् वीरो नाम उत्तमप्रकृ तिरुत्साहत्मक:’। भानुित्त के अनुसार, पूणथिया पररथिु ट ‘उत्साह’ अर्वा सम्पूणथ इब्न्द्रयों का प्रहषथ या उत्िु ल्लिा वीर रस है - ‘पररपूणथ उत्साह: सवेब्न्द्रयाणां प्रहषो वा वीर:।’ ➢दहन्िी के आचायथ सोमनार् ने वीर रस की पररभाषा की है - ➢‘िब कववत्त में सुनि ही व्यंग्य होय उत्साह। िहाँ वीर रस समखियो चौबबधध के कववनाह।’ सामान्यि: रौद्र एवं वीर रसों की पहचान में कदठनाई होिी है। इसका कारण यह है कक िोनों के उपािान बहुधा एक - िूसरे से भमलिे-िुलिे हैं। िोनों के आलम्बन शरु िर्ा उद्िीपन उनकी चेष्टाएँ हैं। िोनों के व्यभभचाररयों िर्ा अनुभावों में भी सादृश्य हैं। कभी-कभी रौद्रिा में वीरत्व िर्ा वीरिा में रौद्रवि का आभास भमलिा है। इन कारणों से कु छ ववद्वान रौद्र का अन्िभाथव वीर में और कु छ वीर का अन्िभाथव रौद्र में करने के अनुमोिक हैं, लेककन रौद्र रस के थर्ायी भाव क्रोध िर्ा वीर रस के थर्ायी भाव उत्साह में अन्िर थपष्ट है।
  • 11. ➢वीर िुम बढ़े चलो, धीर िुम बढ़े चलो। सामने पहाड़ हो कक भसंह की िहाड़ हो। िुम कभी रुको नहीं, िुम कभी िुको नहीं॥ (द्वाररका प्रसाि माहेश्वरी) उदाहरण
  • 12. ५ .रौद्र रस ➢काव्यगि रसों में रौद्र रस का महत्त्वपूणथ थर्ान है। भरि ने ‘नाट्यशाथर’ में शृंगार, रौद्र, वीर िर्ा वीभत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, अि: इन्हीं से अन्य रसों की उत्पवत्त बिायी है, यर्ा-‘िेषामुत्पवत्तहेिवच्ित्वारो रसा: शृंगारो रौद्रो वीरो वीभत्स इति’ । रौद्र से करुण रस की उत्पवत्त बिािे हुए भरि कहिे हैं कक ‘रौद्रथयैव च यत्कमथ स शेय: करुणो रस:’ ।रौद्र रस का कमथ ही करुण रस का िनक होिा हैI
  • 13. उदाहरण ➢श्रीकृ ष्ण के सुन वचन अिुथन िोभ से िलने लगे। सब शील अपना भूल कर करिल युगल मलने लगे॥ संसार िेिे अब हमारे शरु रण में मृि पड़े। करिे हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर िड़े॥ (मैधर्लीशरण गुप्ि)
  • 14. ६ .भयानक रस ➢भयानक रस दहन्िी काव्य में मान्य नौ रसों में से एक है। भानुित्त के अनुसार, ‘भय का पररपोष’ अर्वा ‘सम्पूणथ इब्न्द्रयों का वविोभ’ भयानक रस है। अर्ाथि भयोत्पािक वथिुओं के िशथन या श्रवण से अर्वा शरु इत्यादि के ववद्रोहपूणथ आचरण से है, िब वहाँ भयानक रस होिा है। दहन्िी के आचायथ सोमनार् ने ‘रसपीयूषतनधध’ में भयानक रस की तनम्न पररभाषा िी है- ➢‘सुतन कववत्त में व्यंधग भय िब ही परगट होय। िहीं भयानक रस बरतन कहै सबै कवव लोय’।
  • 15. उदाहरण ➢उधर गरििी भसंधु लहररयाँ कु दटल काल के िालों सी। चली आ रहीं िे न उगलिी िन िै लाये व्यालों - सी॥ (ियशंकर प्रसाि)
  • 16. ७ .बीभत्स रस ➢बीभत्स रस काव्य में मान्य नव रसों में अपना ववभशष्ट थर्ान रििा है। इसकी ब्थर्ति िु:िात्मक रसों में मानी िािी है। इस दृब्ष्ट से करुण, भयानक िर्ा रौद्र, ये िीन रस इसके सहयोगी या सहचर भसद्ध होिे हैं। शान्ि रस से भी इसकी तनकटिा मान्य है, क्योंकक बहुधा बीभत्सिा का िशथन वैराग्य की प्रेरणा िेिा है और अन्िि: शान्ि रस के थर्ायी भाव शम का पोषण करिा है।
  • 17. उदाहरण ➢भसर पर बैठ्यो काग आँि िोउ िाि तनकारि। िींचि िीभदहं थयार अतिदह आनंि उर धारि॥ गीध िांतघ को िोदि-िोदि कै माँस उपारि। थवान आंगुररन कादट-कादट कै िाि वविारि॥ (भारिेन्िु)
  • 18. ८ .अद्भुत रस ➢अद्भुि रस ‘ववथमयथय सम्यक्समृद्धधरद्भुि: सवेब्न्द्रयाणां िाटथ्यं या’। अर्ाथि ववथमय की सम्यक समृद्धध अर्वा सम्पूणथ इब्न्द्रयों की िटथर्िा अिभुि रस है। कहने का अभभप्राय यह है कक िब ककसी रचना में ववथमय 'थर्ायी भाव' इस प्रकार पूणथिया प्रथिु ट हो कक सम्पूणथ इब्न्द्रयाँ उससे अभभभाववि होकर तनश्चेष्ट बन िाएँ, िब वहाँ अद्भुि रस की तनष्पवत्त होिी है।
  • 19. उदाहरण अखिल भुवन चर- अचर सब, हरर मुि में लखि मािु। चककि भई गद्गद् वचन, ववकभसि दृग पुलकािु॥ (सेनापति)
  • 20. ➢ शान्ि रस सादहत्य में प्रभसद्ध नौ रसों में अब्न्िम रस माना िािा है - "शान्िोऽवप नवमो रस:।" इसका कारण यह है कक भरिमुतन के ‘नाट्यशाथर’ में, िो रस वववेचन का आदि स्रोि है, नाट्य रसों के रूप में के वल आठ रसों का ही वणथन भमलिा है। शान्ि के उस रूप में भरिमुतन ने मान्यिा प्रिान नहीं की, ब्िस रूप में शृंगार, वीर आदि रसों की, और न उसके ववभाव, अनुभाव और संचारी भावों का ही वैसा थपष्ट तनरूपण ककया। ९ .शाृंत रस
  • 21. उदाहरण ➢मन रे िन कागि का पुिला। लागै बूँि बबनभस िाय तछन में, गरब करै क्या इिना॥ (कबीर)
  • 22. ➢वात्सल्य रस का थर्ायी भाव है। मािा-वपिा का अपने पुरादि पर िो नैसधगथक थनेह होिा है, उसे ‘वात्सल्य’ कहिे हैं। मैकडुगल आदि मनथित्त्ववविों ने वात्सल्य को प्रधान, मौभलक भावों में पररगखणि ककया है, व्यावहाररक अनुभव भी यह बिािा है कक अपत्य-थनेह िाम्पत्य रस से र्ोड़ी ही कम प्रभववष्णुिावाला मनोभाव है। ➢संथकृ ि के प्राचीन आचायों ने िेवादिववषयक रति को के वल ‘भाव’ ठहराया है िर्ा वात्सल्य को इसी प्रकार की ‘रति’ माना है, िो थर्ायी भाव के िुल्य, उनकी दृब्ष्ट में चवणीय नहीं है ➢सोमेश्वर भब्क्ि एवं वात्सल्य को ‘रति’ के ही ववशेष रूप मानिे हैं - ‘थनेहो भब्क्िवाथत्सल्यभमति रिेरेव ववशेष:’, लेककन अपत्य-थनेह की उत्कटिा, आथवािनीयिा, पुरुषार्ोपयोधगिा इत्यादि गुणों पर ववचार करने से प्रिीि होिा है कक वात्सल्य एक थविंर प्रधान भाव है, िो थर्ायी ही समिा िाना चादहए। ➢भोि इत्यादि कतिपय आचायों ने इसकी सत्ता का प्राधान्य थवीकार ककया है। ➢ववश्वनार् ने प्रथिु ट चमत्कार के कारण वत्सल रस का थविंर अब्थित्व तनरूवपि कर ‘वत्सलिा- थनेह’ को इसका थर्ायी भाव थपष्ट रूप से माना है - ‘थर्ायी वत्सलिा-थनेह: पुरार्ालम्बनं मिम्’। ➢हषथ, गवथ, आवेग, अतनष्ट की आशंका इत्यादि वात्सल्य के व्यभभचारी भाव हैं। उिाहरण - ➢‘चलि िेखि िसुमति सुि पावै। ठु मुकक ठु मुकक पग धरनी रेंगि, िननी िेखि दििावै’ इसमें के वल वात्सल्य भाव व्यंब्िि है, थर्ायी का पररथिु टन नहीं हुआ है। १० .वात्सल्य रस
  • 23. उदाहरण ➢ककलकि कान्ह घुटरुवन आवि। मतनमय कनक नंि के आंगन बबम्ब पकररवे घावि॥ (सूरिास)
  • 24. ११.भक्तत रस ➢भरिमुतन से लेकर पब्र्णडिराि िगन्नार् िक संथकृ ि के ककसी प्रमुि काव्याचायथ ने ‘भब्क्ि रस’ को रसशाथर के अन्िगथि मान्यिा प्रिान नहीं की। ब्िन ववश्वनार् ने वाक्यं रसात्मकं काव्यम्के भसद्धान्ि का प्रतिपािन ककया और ‘मुतन- वचन’ का उल्लघंन करिे हुए वात्सल्य को नव रसों के समकि सांगोपांग थर्ावपि ककया, उन्होंने भी 'भब्क्ि' को रस नहीं माना। भब्क्ि रस की भसद्धध का वाथिववक स्रोि काव्यशाथर न होकर भब्क्िशाथर है, ब्िसमें मुख्यिया ‘गीिा’, ‘भागवि’, ‘शाब्र्णडल्य भब्क्िसूर’, ‘नारि भब्क्िसूर’, ‘भब्क्ि रसायन’ िर्ा ‘हररभब्क्िरसामृिभसन्धु’ प्रभूति ग्रन्र्ों की गणना की िा सकिी है।
  • 25. उदाहरण ➢राम िपु, राम िपु, राम िपु बावरे। ➢घोर भव नीर- तनधध, नाम तनि नाव रे॥