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1  sur  21
द्वारा:
चिन्मय रंजन साहू
कक्षा:- नौव ं - ज
अनुक्रमांक - 44
 दूर रहने वाले अपने सबन्न्ियों अथवा ममत्रों की
कु शलता जानने के मलए तथा अपन कु शलता का
समािार देने के मलए पत्र एक सािन है। इसके
अततररक्त्त अन्य कायों के मलए भ पत्र मलखे जाते
है।
2
 दूरसंिार सािनों के क्षेत्र में आज क्रांतत हुई है तथा दूरभाष
जैसे सािन सवव-सुलभ होने के अततररक्त्त उपयोग भ मसद्ि
हुए हैं | उन सािनों के बावजूद आज फिर पत्रों के महत्व को
नकारा नह ं जा सकता है | उन्हें दृन्टियों से पत्र लेखन
आवश्यक और उपयोग है यह नह ं आिुतनक युग में पत्रों के
प्रकार और आकार ववषय पर शैल में भ पररवतवन हुए हैं |
 एक ओर पत्र के माध्यम से हम व्यन्क्त्तगत वविार, चिंतन,
अनुभूतत और संवेदनाओं की अमभव्यन्क्त्त करते हैं, तो दूसर
ओर व्यापार और व्यवसाय के क्षेत्र में, कायावलय की
औपिाररकताओं के संदभव में तथा पत्र-पत्रत्रकाओं में अपन
समस्याओं को प्रकामशत करवाने में भ पत्र-लेखन को ह
महत्व देते हैं | अतएव इस युग में पत्र लेखन का भ ववशेष
महत्व हैं | 3
आिुतनक युग में पत्रलेखन को 'कला' की संज्ञा द गय है।
पत्रों में आज कलात्मक अमभव्यन्क्त्तयााँ हो रह है। साहहत्य
में भ इनका उपयोग होने लगा है। न्जस पत्र में न्जतन
स्वाभाववकता होग , वह उतना ह प्रभावकार होगा। एक
अच्छे पत्र के मलए कलात्मक सौन्दयवबोि और अन्तरंग
भावनाओं का अमभव्यंजन आवश्यक है। एक पत्र में उसके
लेखक की भावनाएाँ ह व्यक्त्त नह ं होत , बन्कक उसका
व्यन्क्त्तत्व भ उभरता है। इससे लेखक के िररत्र, दृन्टिकोण,
संस्कार, मानमसक न्स्थतत, आिरण इत्याहद सभ एक साथ
झलकते हैं। अतः पत्रलेखन एक प्रकार की कलात्मक
अमभव्यन्क्त्त है। लेफकन, इस प्रकार की अमभव्यन्क्त्त
व्यवसातयक पत्रों की अपेक्षा सामान्जक तथा साहहन्त्यक पत्रों
में अचिक होत है।
4
पत्रों को ववषय वस्तु एवं शैल के आिार पर
दो वगों में वगीकृ त कर सकते हैं :
1. औपिाररक पत्र
2. अनौपिाररक पत्र
5
सरकार , अिव - सरकार और गैर - सरकार संदभों में
औपिाररक स्तर पर भेजे जाने वाले पत्रों को औपिाररक
पत्र कहते हैं | इनमें व्यावसातयक, कायावलय और सामान्य
ज वन - व्यवहार के संदभव में मलखे जाने वाले पत्रों को
शाममल फकया जा सकता है | इन पत्रों में संक्षक्षप्तता,
स्पटिता और स्वत:पूणवता की अपेक्षा रहत हैं |
औपिाररक पत्रों के अंतगवत दो प्रकार के पत्र आते हैं:
1. सरकार , अिवसरकार और व्यावसातयक संदभों में मलखे
जाने वाले पत्र
2. सामान्य ज वन व्यवहार करें या अन्य ववमशस्ि संदभों
में मलखे जाने वाले पत्र
6
 सरकारी, अर्धसरकारी और व्यावसाययक संदर्भों में
लिखे जाने वािे पत्र - इनकी ववषयवस्तु प्रशासन,
कायावलय और कारोबार से संबंचित होत है | इनकी
भाषा - शैल तनन्श्ित सांिे में ढल होत है और प्रारूप
तनन्श्ित होता है | सरकार कायावलयों बैंकों और
व्यावसातयक संस्थानों द्वारा फकए जाने वाले पत्र
व्यवहार इस वगव के अंतगवत आता है | ववमभन्न पदों
के मलए मलखे गए आवेदन - पत्र भ इस श्रेण में
आते हैं |
7
 सामान्य जीवन व्यवहार करें या अन्य ववलिस्ट
संदर्भों में लिखे जाने वािे पत्र - यह पत्र पररचित
एवं अपररचित व्यन्क्त्तयों को तथा ववववि क्षेत्रों से
संबंचित अचिकाररयों को मलखा जाता है इनकी
ववषयवस्तु सामान्य ज वन की ववमभन्न न्स्थततयों
से संबंि होत है | ये प्रायः सामान्य और
औपिाररक भाषा - शैल में मलखे जाते हैं | इनके
प्रारूप में प्रायः न्स्थतत और संदभव के अनुसार
पररवतवन हो सकता है | इनके अंतगवत शुभकामना -
पत्र, बिाई - पत्र, तनमंत्रण - पत्र, शोक - संवेदना
पत्र, पूछताछ - पत्र, मशकायत पत्र, संपादक को पत्र
आहद आते हैं |
8
सेवा में,
श्र मान प्रिानािायव ज ,
ववद्यालय का पता
ददनांक
ववषय
मान्यवर महोदय/महोदया,
––––––––––--––––––----– संदेश ––––––––––––––––––––––
िन्यवाद
आपका आज्ञाकार छात्र /छात्रा
नाम
9
सेवा में,
प्रिानािायाव महोदया,
महानगर गकसव स्कू ल,
लखनऊ
01 जनवर , 2017
महोदया,
सववनय तनवेदन यह है फक मैं आपके ववद्यालय में कक्षा छह 'अ' की छात्रा
हूाँ।झे कल रात से बहुत तेज़ बुखार है। डॉक्त्िर ने मुझे एक सप्ताह तक,
ववश्राम करने के मलए कहा है। इसमलए मैं ववद्यालय आने में असमथव हूाँ।
अतः आपसे प्राथवना है फक मुझे हदनांक 01-01-2017 से 07-01-2017 तक
अवकाश प्रदान करने की कृ पा करें।
आपकी आज्ञाकार मशटया
XXX
कक्षा - छह 'अ’
10
 अनौपचाररक पत्र - इस प्रकार के पत्रों में पत्र
मलखने वाले और पत्र पाने वाले के ब ि नजद की
या घतनटठ संबंि होता है | यह संबंि पाररवाररक
तथा अन्य सगे-संबंचियों का भ हो सकता है और
ममत्रता का भ | इन पत्रों को व्यन्क्त्तगत पत्र भ
कहते हैं | इन पत्रों की ववषय वस्तु तनज और
घरेलू होत है | इनका स्वरूप संबंिों के आिार पर
तनिावररत होता है | पत्रों की भाषा - शैल प्रायः
अनौपिाररक और आत्म य होत है |
11
पता
हदनांक
वप्रय ममत्र,
नमस्कार/नमस्ते !
------------------------- संदेश ------------------------
तुम्हारा ममत्र,
नाम
12
13
पत्र िाहे औपिाररक हो या अनौपिाररक, सामान्यतः
पत्रत्रका तनम्नमलखखत अंग होते हैं, जैसे -
 पता और हदनांक
 संबोिन तथा अमभवादन शब्दावल का प्रयोग
 पत्र की सामग्र
 पता की समान्प्त, स्वतनदेश और हस्ताक्षर
14
1. पता और ददनांक - पत्र के बाई और कोने में पत्र - लेखक का
पता मलखा जाता है और उसके न िे ततचथ द जात है|
2. संबोर्न तथा अलर्भवादन - जब हम फकस को पत्र मलखना शुरु
करते हैं तो उस व्यन्क्त्त के मलए फकस ना फकस संबोिन
शब्द का प्रयोग फकया जाता है | जैसे पूज्य/पूज्य/श्रद्िेय/वप्रय/
वप्रयवर/मान्यवर |
 विय - संबोिन का प्रयोग तनम्नमलखखत न्स्थततयों में फकया
जाता है :-
 अपने से छोिे के मलए
 अपने बराबर वालों के मलए
 घतनटठ व्यन्क्त्तयों के मलए
 औपिाररक न्स्थतत में -
 मान्यवर / वप्रय महोदय / महोदया
 वप्रय श्र / श्र मत / सुश्र / नाम या उपनाम
 वप्रय - नाम - ज आहद 15
 अनौपचाररक पत्रों में महोदय संबोिन शब्द के बाद अकप
ववराम का प्रयोग नह ं फकया जाता है, क्त्योंफक अगल पंन्क्त्त
में हमें अमभवादन के मलए कोई शब्द नह ं देना होता है |
 अनौपिाररक पत्रों में अपने से बडे के मलए नमस्कार,
नमस्ते, प्रणाम जैसे अमभवादनों का प्रयोग होता है |
 जब स्नेह, शुभाश ष, आश वावद जैसे अमभवादनों का प्रयोग
होता है तो मात्र संबोिन देखते ह हम समझ जाते हैं फक
संबोचित व्यन्क्त्त मलखने वाले से आयु में छोिा है |
औपिाररक पत्रों में इस प्रकार के अमभवादन की आवश्यकता
नह ं रहत है |
 पत्र में वक्त्तव्य के पूवव (1) सम्बोिन, (2)अमभवादन
औरवक्त्तव्य के अन्त में (3) अमभतनवेदन का, सम्बन्ि के
आिार अलग-अलग ढंग होता है। इनके रूप इस प्रकार हैं-
16
17
 अमभवादन शब्द मलखने के बाद पूणव ववराम अवश्य
लगाना िाहहए, जैसे -
 पूज्य भाई साहब |
 सादर प्रणाम |
 वप्रय वववेक |
 प्रसन्न रहो | 18
3. पत्र सामग्री - पत्र अमभवादन के बाद की पत्र सामग्र
देन होत है | पत्र के माध्यम से जो हम कहना िाहते
हैं या कहने जा रहे हैं वह पत्र की सामग्र कहलात है|
4. पत्र की समाप्तत स्वयनदेि और हस्ताक्षर - अनौपिाररक
पत्र के अंत में मलखने वाले और पाने वाले की आयु,
अवस्था तथा गौरव - गररमा के अनुरूप स्वतनदेश बदल
जाते हैं, जैसे - तुम्हारा, आपका, स्नेह , आपका
आज्ञाकार , शुभचिंतक आहद | औपिाररक पत्रों का अंत
प्रायः तनिावररत स्वतनदेश द्वारा होता है, यथा - भवद य,
आपका शुभेच्छु आहद |
19
1. पत्र का लेख सुंदर, शुद्ि एवं सुवाच्य हो |
2. पत्र की भाषा सरल, वाक्त्य छोिे एवं असंहदग्धि हों |
3. पत्र के ववषय को अलग-अलग अनुच्छेद में मलख
सकते हैं |
4. ववषय की पुनरावृवत कभ न करें |
5. औपिाररकता को अचिक ववस्तार न दें |
6. आवश्यक बातों को प्राथममकता देकर पहले मलखें |
7. पत्र में कभ कहठन भाषा एवं अपशब्दों का प्रयोग
नह ं करना िाहहए |
20
21

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Hindi पत्र लेखन

  • 1. द्वारा: चिन्मय रंजन साहू कक्षा:- नौव ं - ज अनुक्रमांक - 44
  • 2.  दूर रहने वाले अपने सबन्न्ियों अथवा ममत्रों की कु शलता जानने के मलए तथा अपन कु शलता का समािार देने के मलए पत्र एक सािन है। इसके अततररक्त्त अन्य कायों के मलए भ पत्र मलखे जाते है। 2
  • 3.  दूरसंिार सािनों के क्षेत्र में आज क्रांतत हुई है तथा दूरभाष जैसे सािन सवव-सुलभ होने के अततररक्त्त उपयोग भ मसद्ि हुए हैं | उन सािनों के बावजूद आज फिर पत्रों के महत्व को नकारा नह ं जा सकता है | उन्हें दृन्टियों से पत्र लेखन आवश्यक और उपयोग है यह नह ं आिुतनक युग में पत्रों के प्रकार और आकार ववषय पर शैल में भ पररवतवन हुए हैं |  एक ओर पत्र के माध्यम से हम व्यन्क्त्तगत वविार, चिंतन, अनुभूतत और संवेदनाओं की अमभव्यन्क्त्त करते हैं, तो दूसर ओर व्यापार और व्यवसाय के क्षेत्र में, कायावलय की औपिाररकताओं के संदभव में तथा पत्र-पत्रत्रकाओं में अपन समस्याओं को प्रकामशत करवाने में भ पत्र-लेखन को ह महत्व देते हैं | अतएव इस युग में पत्र लेखन का भ ववशेष महत्व हैं | 3
  • 4. आिुतनक युग में पत्रलेखन को 'कला' की संज्ञा द गय है। पत्रों में आज कलात्मक अमभव्यन्क्त्तयााँ हो रह है। साहहत्य में भ इनका उपयोग होने लगा है। न्जस पत्र में न्जतन स्वाभाववकता होग , वह उतना ह प्रभावकार होगा। एक अच्छे पत्र के मलए कलात्मक सौन्दयवबोि और अन्तरंग भावनाओं का अमभव्यंजन आवश्यक है। एक पत्र में उसके लेखक की भावनाएाँ ह व्यक्त्त नह ं होत , बन्कक उसका व्यन्क्त्तत्व भ उभरता है। इससे लेखक के िररत्र, दृन्टिकोण, संस्कार, मानमसक न्स्थतत, आिरण इत्याहद सभ एक साथ झलकते हैं। अतः पत्रलेखन एक प्रकार की कलात्मक अमभव्यन्क्त्त है। लेफकन, इस प्रकार की अमभव्यन्क्त्त व्यवसातयक पत्रों की अपेक्षा सामान्जक तथा साहहन्त्यक पत्रों में अचिक होत है। 4
  • 5. पत्रों को ववषय वस्तु एवं शैल के आिार पर दो वगों में वगीकृ त कर सकते हैं : 1. औपिाररक पत्र 2. अनौपिाररक पत्र 5
  • 6. सरकार , अिव - सरकार और गैर - सरकार संदभों में औपिाररक स्तर पर भेजे जाने वाले पत्रों को औपिाररक पत्र कहते हैं | इनमें व्यावसातयक, कायावलय और सामान्य ज वन - व्यवहार के संदभव में मलखे जाने वाले पत्रों को शाममल फकया जा सकता है | इन पत्रों में संक्षक्षप्तता, स्पटिता और स्वत:पूणवता की अपेक्षा रहत हैं | औपिाररक पत्रों के अंतगवत दो प्रकार के पत्र आते हैं: 1. सरकार , अिवसरकार और व्यावसातयक संदभों में मलखे जाने वाले पत्र 2. सामान्य ज वन व्यवहार करें या अन्य ववमशस्ि संदभों में मलखे जाने वाले पत्र 6
  • 7.  सरकारी, अर्धसरकारी और व्यावसाययक संदर्भों में लिखे जाने वािे पत्र - इनकी ववषयवस्तु प्रशासन, कायावलय और कारोबार से संबंचित होत है | इनकी भाषा - शैल तनन्श्ित सांिे में ढल होत है और प्रारूप तनन्श्ित होता है | सरकार कायावलयों बैंकों और व्यावसातयक संस्थानों द्वारा फकए जाने वाले पत्र व्यवहार इस वगव के अंतगवत आता है | ववमभन्न पदों के मलए मलखे गए आवेदन - पत्र भ इस श्रेण में आते हैं | 7
  • 8.  सामान्य जीवन व्यवहार करें या अन्य ववलिस्ट संदर्भों में लिखे जाने वािे पत्र - यह पत्र पररचित एवं अपररचित व्यन्क्त्तयों को तथा ववववि क्षेत्रों से संबंचित अचिकाररयों को मलखा जाता है इनकी ववषयवस्तु सामान्य ज वन की ववमभन्न न्स्थततयों से संबंि होत है | ये प्रायः सामान्य और औपिाररक भाषा - शैल में मलखे जाते हैं | इनके प्रारूप में प्रायः न्स्थतत और संदभव के अनुसार पररवतवन हो सकता है | इनके अंतगवत शुभकामना - पत्र, बिाई - पत्र, तनमंत्रण - पत्र, शोक - संवेदना पत्र, पूछताछ - पत्र, मशकायत पत्र, संपादक को पत्र आहद आते हैं | 8
  • 9. सेवा में, श्र मान प्रिानािायव ज , ववद्यालय का पता ददनांक ववषय मान्यवर महोदय/महोदया, ––––––––––--––––––----– संदेश –––––––––––––––––––––– िन्यवाद आपका आज्ञाकार छात्र /छात्रा नाम 9
  • 10. सेवा में, प्रिानािायाव महोदया, महानगर गकसव स्कू ल, लखनऊ 01 जनवर , 2017 महोदया, सववनय तनवेदन यह है फक मैं आपके ववद्यालय में कक्षा छह 'अ' की छात्रा हूाँ।झे कल रात से बहुत तेज़ बुखार है। डॉक्त्िर ने मुझे एक सप्ताह तक, ववश्राम करने के मलए कहा है। इसमलए मैं ववद्यालय आने में असमथव हूाँ। अतः आपसे प्राथवना है फक मुझे हदनांक 01-01-2017 से 07-01-2017 तक अवकाश प्रदान करने की कृ पा करें। आपकी आज्ञाकार मशटया XXX कक्षा - छह 'अ’ 10
  • 11.  अनौपचाररक पत्र - इस प्रकार के पत्रों में पत्र मलखने वाले और पत्र पाने वाले के ब ि नजद की या घतनटठ संबंि होता है | यह संबंि पाररवाररक तथा अन्य सगे-संबंचियों का भ हो सकता है और ममत्रता का भ | इन पत्रों को व्यन्क्त्तगत पत्र भ कहते हैं | इन पत्रों की ववषय वस्तु तनज और घरेलू होत है | इनका स्वरूप संबंिों के आिार पर तनिावररत होता है | पत्रों की भाषा - शैल प्रायः अनौपिाररक और आत्म य होत है | 11
  • 12. पता हदनांक वप्रय ममत्र, नमस्कार/नमस्ते ! ------------------------- संदेश ------------------------ तुम्हारा ममत्र, नाम 12
  • 13. 13
  • 14. पत्र िाहे औपिाररक हो या अनौपिाररक, सामान्यतः पत्रत्रका तनम्नमलखखत अंग होते हैं, जैसे -  पता और हदनांक  संबोिन तथा अमभवादन शब्दावल का प्रयोग  पत्र की सामग्र  पता की समान्प्त, स्वतनदेश और हस्ताक्षर 14
  • 15. 1. पता और ददनांक - पत्र के बाई और कोने में पत्र - लेखक का पता मलखा जाता है और उसके न िे ततचथ द जात है| 2. संबोर्न तथा अलर्भवादन - जब हम फकस को पत्र मलखना शुरु करते हैं तो उस व्यन्क्त्त के मलए फकस ना फकस संबोिन शब्द का प्रयोग फकया जाता है | जैसे पूज्य/पूज्य/श्रद्िेय/वप्रय/ वप्रयवर/मान्यवर |  विय - संबोिन का प्रयोग तनम्नमलखखत न्स्थततयों में फकया जाता है :-  अपने से छोिे के मलए  अपने बराबर वालों के मलए  घतनटठ व्यन्क्त्तयों के मलए  औपिाररक न्स्थतत में -  मान्यवर / वप्रय महोदय / महोदया  वप्रय श्र / श्र मत / सुश्र / नाम या उपनाम  वप्रय - नाम - ज आहद 15
  • 16.  अनौपचाररक पत्रों में महोदय संबोिन शब्द के बाद अकप ववराम का प्रयोग नह ं फकया जाता है, क्त्योंफक अगल पंन्क्त्त में हमें अमभवादन के मलए कोई शब्द नह ं देना होता है |  अनौपिाररक पत्रों में अपने से बडे के मलए नमस्कार, नमस्ते, प्रणाम जैसे अमभवादनों का प्रयोग होता है |  जब स्नेह, शुभाश ष, आश वावद जैसे अमभवादनों का प्रयोग होता है तो मात्र संबोिन देखते ह हम समझ जाते हैं फक संबोचित व्यन्क्त्त मलखने वाले से आयु में छोिा है | औपिाररक पत्रों में इस प्रकार के अमभवादन की आवश्यकता नह ं रहत है |  पत्र में वक्त्तव्य के पूवव (1) सम्बोिन, (2)अमभवादन औरवक्त्तव्य के अन्त में (3) अमभतनवेदन का, सम्बन्ि के आिार अलग-अलग ढंग होता है। इनके रूप इस प्रकार हैं- 16
  • 17. 17
  • 18.  अमभवादन शब्द मलखने के बाद पूणव ववराम अवश्य लगाना िाहहए, जैसे -  पूज्य भाई साहब |  सादर प्रणाम |  वप्रय वववेक |  प्रसन्न रहो | 18
  • 19. 3. पत्र सामग्री - पत्र अमभवादन के बाद की पत्र सामग्र देन होत है | पत्र के माध्यम से जो हम कहना िाहते हैं या कहने जा रहे हैं वह पत्र की सामग्र कहलात है| 4. पत्र की समाप्तत स्वयनदेि और हस्ताक्षर - अनौपिाररक पत्र के अंत में मलखने वाले और पाने वाले की आयु, अवस्था तथा गौरव - गररमा के अनुरूप स्वतनदेश बदल जाते हैं, जैसे - तुम्हारा, आपका, स्नेह , आपका आज्ञाकार , शुभचिंतक आहद | औपिाररक पत्रों का अंत प्रायः तनिावररत स्वतनदेश द्वारा होता है, यथा - भवद य, आपका शुभेच्छु आहद | 19
  • 20. 1. पत्र का लेख सुंदर, शुद्ि एवं सुवाच्य हो | 2. पत्र की भाषा सरल, वाक्त्य छोिे एवं असंहदग्धि हों | 3. पत्र के ववषय को अलग-अलग अनुच्छेद में मलख सकते हैं | 4. ववषय की पुनरावृवत कभ न करें | 5. औपिाररकता को अचिक ववस्तार न दें | 6. आवश्यक बातों को प्राथममकता देकर पहले मलखें | 7. पत्र में कभ कहठन भाषा एवं अपशब्दों का प्रयोग नह ं करना िाहहए | 20
  • 21. 21