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गुरुत्व कार्ाालर् द्वारा प्रस्तुत मासिक ई-पत्रिका नवम्बर- 2011
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गुरुत्व ज्र्ोसतष पत्रिका नवम्बर 2011
िंपादक सिंतन जोशी
िंपका
गुरुत्व ज्र्ोसतष त्रवभाग
गुरुत्व कार्ाालर्
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
फोन 91+9338213418, 91+9238328785,
ईमेल
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पत्रिका प्रस्तुसत सिंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
फोटो ग्राफफक्ि सिंतन जोशी, स्वस्स्तक आटा
हमारे मुख्र् िहर्ोगी स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक िोफ्टेक इस्डिर्ा सल)
ई- जडम पत्रिका E HOROSCOPE
अत्र्ाधुसनक ज्र्ोसतष पद्धसत द्वारा
उत्कृ ष्ट भत्रवष्र्वाणी के िाथ
१००+ पेज मं प्रस्तुत
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फहंदी/ English मं मूल्र् माि 750/-
GURUTVA KARYALAY
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अनुक्रम
रत्न शत्रि त्रवशेष
रत्न धारण करने िे िंबंसधत िूिना 6 लहिुसनर्ा 31
रत्नं का अद्भुत रहस्र् 7 फिरोजा एक त्रवलक्षण रत्न 33
रत्नो की उत्पत्रि 9 रत्न एवं रंगं द्वारा रोग सनवारण 35
रत्न धारण िे असभष्ट कार्ासित्रद्ध 11 ग्रह शांसत हेतु करं नवग्रह एवं दान 38
त्रवशेषज्ञ की िलाह िे ही करं रत्न धारण 12 आजीत्रवका और रत्न धारण 36
रत्नो का नामकरण 13 रत्न धारण िे त्रवद्या प्रासि 40
मास्णक्र् 14 िूर्ा रासश िे रत्न 41
मोती 16 अंक ज्र्ोसतष िे जाने शुभ रत्न 42
मूंगा 19 शास्त्रोि त्रवधान िे रत्न धारण िंबंसधत िुझाव 43
पडना 21 िही क्रम मं जफित नवरत्न हीं धारण करं 44
पुखराज 23 नवरत्न जफित श्री र्ंि 45
हीरा 25 रत्न का पूणा प्रभावी काल? 46
नीलम 27 रत्न द्वारा रोग उपिार 48
गोमेद 29
हमारे उत्पाद
गणेश लक्ष्मी र्ंि 10 शादी िंबंसधत िमस्र्ा 37 िवा कार्ा सित्रद्ध कवि 52 रासश रत्न 62
मंि सिद्ध दुलाभ िामग्री 26 पढा़ई िंबंसधत िमस्र्ा 39 जैन धमाके त्रवसशष्ट र्ंि 53 मंगलर्ंि िे ऋण मुत्रि 67
भाग्र् लक्ष्मी फदब्बी 27 कनकधारा र्ंि 42 अमोद्य महामृत्र्ुंजर् कवि 55 िवा रोगनाशक र्ंि/ 74
द्वादश महा र्ंि 30 मंिसिद्ध लक्ष्मी र्ंििूसि 43 राशी रत्न एवं उपरत्न 55 मंि सिद्ध कवि 76
मंिसिद्ध स्फफटक श्री र्ंि 32 नवरत्न जफित श्री र्ंि 45 श्रीकृ ष्ण बीिा र्ंि/ कवि 56 YANTRA 77
मंि सिद्ध रूद्राक्ष 34 मंि सिद्ध दैवी र्ंि िूसि 51 राम रक्षा र्ंि 57 GEMS STONE 79
घंटाकणा महावीर िवा सित्रद्ध महार्ंि 54 मंि सिद्ध िामग्री- 67, 68, 69
स्थार्ी और अडर् लेख
िंपादकीर् 4 फदन-रात के िौघफिर्े 71
मासिक रासश फल 58 फदन-रात फक होरा - िूर्ोदर् िे िूर्ाास्त तक 72
नवम्बर 2011 मासिक पंिांग 63 ग्रह िलन नवम्बर -2011 73
नवम्बर-2011 मासिक व्रत-पवा-त्र्ौहार 65 िूिना 81
नवम्बर 2011 -त्रवशेष र्ोग 70 हमारा उद्देश्र् 83
दैसनक शुभ एवं अशुभ िमर् ज्ञान तासलका 70
िंपादकीर्
त्रप्रर् आस्त्मर्
बंधु/ बफहन
जर् गुरुदेव
आज के वैज्ञासनक र्ुग मं रत्नं को धारण करने िे रत्नो मनुष्र् पर पिने वाल शुभ-अशुभ प्रभाव को वैज्ञासनक
भी मानते हं। रत्न शब्द का अथा है बेजोि वस्तु। िामाडर्तः इिी सलए हम फकिी त्रवषर् वस्तु र्ा व्र्त्रि को उनके
गुणं के आधार पर रत्न शब्द िे िंबोसधत फकर्ा जाता हं।
वैज्ञासनक द्रत्रष्टकोण िे िंपूणा िौरमण्िल िूर्ा के कारण अस्स्तत्व मं आर्ा हं। इिसलर्े िभी ग्रह िूर्ा के ईदा-
सगदा एक सनस्ित गसत एवं स्थान पर पररक्रमा करते हं।
वैफदक ज्र्ोसतष के प्रमुख ग्रंथो मं िूर्ा को त्रवशेष महत्व फदर्ा गर्ा हं। िूर्ा के िंबंध मं िूर्ादेव को िात घोिो
के रथ पर त्रवराजमान बतार्ा गर्ा हं। त्रवद्वानो के मत िे िूर्ा के िात घोिे िूर्ा की फकरणं मं स्स्थत िात रंगो का
प्रसतसनसधत्व करते हं।
इिी प्राकार िौरमण्िल मं स्स्थत नवग्रहं को िात रंगो के प्रतीक माना गर्ा हं।
उन ग्रहो के िंबंसधत रंगो का प्रभाव प्रकाश के द्वारा पररवसतात होकर रत्नं के माध्र्म िे हमारे शरीर पर पिता
हं। रत्नं मं प्रकाश फकरणो को अवशोत्रषत करके उिे परावसतात करने का प्रमुख गुण होता हं।
जानकारो की माने तो रत्नं का िीधा अिकर ग्रहो के स्वभाव एवं कार्ाप्रणाली के अनुशार हमारे शरीर ओर
व्र्त्रित्व पर पिता हं। मानव शरीर पंितत्वं एवं िात िक्र िे बना हं। उपर्ुि रत्नं के धारण करने िे मानव शरीर मं
पंितत्वं व िातिक्रो को िंतुलन करने के सलर्े िहार्ता प्राि होती हं। स्जििे प्रकार धारणकताा व्र्त्रि के व्र्त्रित्व मं
िुधार आता हं। हर रत्न के रंगो का अद्भुत एवं िमत्काररक प्रभाव होता हं स्जस्िे हमारे मानव शरीर िे िभी प्रकार के
रोग हेतु उपर्ुि रत्न का िुनाव कर लाभ प्राि फकर्ा जािकता हं।
ब्रह्मांि मं व्र्ाि हर रंग इंद्रधनुष के िात रंगं के िंर्ोग िे िंबंध रखता हं, हमारे ऋत्रष-मुसनर्ं ने हजारं िाल
पहले खोज सलर्ा की इंद्रधनुष के िात रंग िात ग्रहं के प्रतीक होते हं, एवं इन रंगं का िंबंध ब्रह्मांि के िात ग्रहो िे
होता हं जो मनुष्र् पर अपना सनस्ित प्रभाव हर क्षण िालते हं। इि बात को आज का उडनत एवं आधुसनक त्रवज्ञान
भी इि बातकी पृत्रष्ट करता हं। ज्र्ोसतष के द्रत्रष्ट कोण िे हर ग्रह का अपना अलग रंग व रत्न हं।
हमारे त्रवद्वान ऋत्रष-मुसनर्ं ने रत्नो के मानव प्रभाव जीवन पर पिने वाले शुभ-अशुभ प्रभाव एवं रत्नो की
उपर्ोसगता का त्रवस्तृत अध्र्र्न कर जान सलर्ा था। उन ऋत्रष-मुसनर्ं ने अपने र्ोग बल एवं अफद्वसतर् अध्र्र्न िे
प्राि ज्ञान को एकत्रित कर त्रवसभडन ग्रंथो एवं शास्त्रो की रिना की।
हमारे मागादशान हेतु उन ऋत्रष-मुसनर्ं ने ग्रंथो मं रत्नं के त्रवसभडन उप्र्ोगीता एवं प्रभाव का त्रवस्तृत वणा भी
फकर्ा। स्जििे मनुष्र् अपनी आवश्र्िा के अनुशार त्रवसभडन रत्नो के माध्र्म िे अपने कार्ा उद्देश्र् मं िफलता प्राि
कर िके ।
ज्र्ोसतष त्रवद्वान एवं रत्न त्रवशेषज्ञ के मत िे रत्न घारण करने िे जीवन के त्रवसभडन क्षेिं मं इस्छित पररवतान
फकर्ा जा िकता हं। क्र्ोफक रत्न त्रवज्ञान एक प्रिीन त्रवद्या हं।
रत्नं के त्रवषर् मं मस्ण माला ग्रडथ मं उल्लेख हं:-
मास्णक्र्म ् तरणेः िुजात्र्ममलम ्
मुिाफलम ् शीतगोमााहेर्स्र् ि त्रवद्रुमो
सनगफदतः िौम्र्स्र् गारुत्मतम ्।
देवेज्र्स्र् ि पुष्परागमिुरािारूर्ािर्
वज्रम ् शनेनीलम ् सनम्मालमडर्र्ोि
गफदते गोमेदवैदूर्यर्ाके ॥
अथाात ्: ग्रहं के त्रवपरीत होने पर उडहं शाडत करने के सलए रत्न पहने जाते हं। िूर्ा के त्रवपरीत होने पर सनदोष
मास्णक, िडद्र के त्रवपरीत होने पर उिम मोती, मंगल के सलए मूंगा, बधु के सलए पडना, बृहस्पसत के सलए पुखराज,
शुक्रर के सलए हीरा, शसन को शाडत करने के सलए नीलम, राहु के सलए गोमेद एंव के तु के त्रवपरीत होने पर लिुसनर्ा
घारण करना िाफहए। (मस्ण माला)
हमारे ऋत्रष-मुसनर्ो का कथन हं की प्रकृ सत ने मानुष्र् के त्रवसभडन त्रवकारो के सनवारण के सलए कु दरत के असत
अनमोल उपहार के रूप मं त्रवत्रवध प्रकार के रत्न प्रदान फकए हं, जो हमं भूसम (रत्नगभाा), िमुद्र (रत्नाकर) आफद त्रवत्रवध
स्त्रोतं िे प्राि होते हं।
कौफटल्र्जी का कथन हं:-
खसनः स्त्रोतः प्रकीणाकं ि र्ोनर्ः।
अथाात ्:र्े रत्न हमारे हर त्रवकार को दूर करने मं िक्षम हं। िाहे त्रवकार भौसतक हो र्ा आध्र्ास्त्मक। फकिी रत्न त्रवशेष
के बारे मं जानने िे पूवा मूल रत्नं को जानना आवश्र्क है। त्रवद्वानो ने मूल रत्नो फक िंख्र्ा 21 बताई हं।
महत्रषा वाराहसमफहर नं भारतीर् प्रासिन ज्र्ोसतष शास्त्र के प्रमुख ग्रंथो मं बृहत्िंफहता की रिना की स्जिमं रत्नो
के गुण-दोष का त्रवस्तार िे वणान हं। त्रवद्वानो के मतानुशार अभी तक हुए शोधा कार्ा मं ज्र्ोसतष एवं रत्न शास्त्र मं
रुसि रखने वाले लोगो के सलर्े बृहत्िंफहता अत्र्ंत महत्वपूणा एवं प्रामास्णक शास्त्र सिद्ध हुवा हं।
क्र्ोफक महत्रषा वाराहसमफहर ने स्जन मुख्र् रत्नं का उल्लेख फकर्ा हं, उििे ज्ञात होता हं की आज हम स्जन
प्रमुख रत्नो को जानते हं उन रत्नो को पुरातन काल िे र्ा उििे पूवा िे र्ह रत्न अवश्र् उपलब्ध थे एवं उन रत्नो को
त्रवसभडन उद्देश्र् के सलर्े प्रर्ोग मं सलर्ा जाता था। त्रवद्वानो के अनुशार अभी तक प्राि हुवे पुरातन शास्त्र एवं ग्रंथो मं
स्जतने रत्नो का वणान समलता हं उि िब िे असधक िंख्र्ा मं रत्नो का उल्लेख बृहत्िंफहता मं फकर्ा गर्ा हं।
रत्न त्रवज्ञान असत त्रवशाल एवं अनंत हं उिे फकिी फकताब एवं पत्रिका मं िमाफहत कर पाना अिंभव हं। फफर भी हमने
आपको रत्न के त्रवषर् मं असधक िे असधक त्रवशेष जानकारी प्राि हो र्फहं प्रर्ाि फकर्ा हं।
जानकार ज्र्ोसतषी िे िलाह प्राि कर ग्रहो के अशुभ प्रभाव को कम करने के सलए रत्न धारण करना िरल एवं
अत्र्ासधक लाभ प्रदान करने वाला श्रेष्ठ उपार् सिद्ध हो िकता हं। क्र्ोफक उसित मागा दशान िे धारण फकर्ा गर्ा रत्न
शीघ्र एवं सनस्ित शुभ प्रभाव प्रदान करने मं िमथा हं। अतः रत्न धारण करने िे पूवा फकिी कू शल त्रवशेषज्ञ िे परामशा
अवश्र् कर ले। आपको अपने कार्ा उद्देश्र् मं त्रवसभडन क्षेि मं सनस्ित िफलता प्राि हो इिी उद्देश्र् िे रत्न शत्रि
त्रवशेष अंक को आपके मागादशान हेतु उपलब्ध करवार्ा गर्ा हं।
सिंतन जोशी
6 नवम्बर 2011
***** रत्न धारण करने िे िंबंसधत िूिना*****
 पत्रिका मं प्रकासशत रत्न िे िंबंसधत िभी जानकारीर्ां गुरुत्व कार्ाालर् के असधकारं के िाथ ही
आरस्क्षत हं।
 पत्रिका मं प्रकासशत वस्णात रत्न के प्रभाव को नास्स्तक/अत्रवश्वािु व्र्त्रि माि पठन िामग्री िमझ
िकते हं।
 रत्न त्रवज्ञान ज्र्ोसतष िे िंबंसधत होने के कारण भारसतर् ज्र्ोसतष शास्त्रं िे प्रेररत होकर रत्नो के
प्रभाव की जानकारी दी गई हं।
 रत्नो के प्रभाव िे िंबंसधत त्रवषर्ो फक ित्र्ता अथवा प्रामास्णकता पर फकिी भी प्रकार फक
स्जडमेदारी कार्ाालर् र्ा िंपादक की नहीं हं।
 रत्नो के प्रभाव िे की प्रामास्णकता एवं प्रभाव की स्जडमेदारी लेखक, कार्ाालर् र्ा िंपादक फक नहीं
हं और ना हीं प्रामास्णकता एवं प्रभाव की स्जडमेदारी बारे मं जानकारी देने हेतु लेखक, कार्ाालर्
र्ा िंपादक फकिी भी प्रकार िे बाध्र् हं।
 रत्नो िे िंबंसधत लेखो मं पाठक का अपना त्रवश्वाि होना न होना उनकी इछिा एवं आवश्र्क पर
सनधााररत हं। फकिी भी व्र्त्रि त्रवशेष को फकिी भी प्रकार िे इन त्रवषर्ो मं त्रवश्वाि करने ना करने
का अंसतम सनणार् स्वर्ं का होगा।
 रत्नं की जानकारी िे िंबंसधत पाठक द्वारा फकिी भी प्रकार फक आपिी स्वीकार्ा नहीं होगी।
 रत्नं िे िंबंसधत लेख हमारे वषो के अनुभव एवं अनुशंधान के आधार पर फदए गए हं। हम फकिी भी
व्र्त्रि त्रवशेष द्वारा प्रर्ोग फकर्े जाने वाले रत्न, मंि- र्ंि र्ा अडर् प्रर्ोग र्ा उपार्ोकी स्जडमेदारी नफहं लेते
हं। र्ह स्जडमेदारी रत्न, मंि-र्ंि र्ा अडर् प्रर्ोग र्ा उपार्ोको करने वाले व्र्त्रि फक स्वर्ं की होगी। क्र्ोफक
इन त्रवषर्ो मं नैसतक मानदंिं , िामास्जक , कानूनी सनर्मं के स्खलाफ कोई व्र्त्रि र्फद नीजी स्वाथा
पूसता हेतु प्रर्ोग कताा हं अथवा प्रर्ोग के करने मे िुफट होने पर प्रसतकू ल पररणाम िंभव हं।
 रत्नो िे िंबंसधत जानकारी को मान ने िे प्राि होने वाले लाभ, हानी फक स्जडमेदारी कार्ाालर् र्ा
िंपादक फक नहीं हं।
 हमारे द्वारा पोस्ट फकर्े गर्े िभी मंि-र्ंि र्ा उपार् हमने िैकिोबार स्वर्ं पर एवं अडर् हमारे बंधुगण पर
प्रर्ोग फकर्े हं स्जस्िे हमे हर प्रर्ोग र्ा मंि-र्ंि र्ा उपार्ो द्वारा सनस्ित िफलता प्राि हुई हं।
 रत्न धारण करने िे पूवा फकिी जानकार ज्र्ोसतषी रत्न त्रवशेज्ञ की िलाह अवश्र्लं।
 असधक जानकारी हेतु आप कार्ाालर् मं िंपका कर िकते हं।
(िभी त्रववादो के सलर्े के वल भुवनेश्वर डर्ार्ालर् ही माडर् होगा।)
7 नवम्बर 2011
रत्नं का अद्भुत रहस्र्
 सिंतन जोशी
रत्नो के मानव प्रभाव जीवन पर पिने वाले शुभ-
अशुभ प्रभाव एवं रत्नो की उपर्ोसगता को हजारो वषा पूवा
हमारे त्रवद्वान ऋत्रष-मुसनर्ं ने अध्र्र्न कर जान सलर्ा
था। उन ऋत्रष-मुसनर्ं ने अपने र्ोग बल एवं अफद्वसतर्
अध्र्र्न िे प्राि ज्ञान को एकत्रित कर त्रवसभडन ग्रंथो एवं
शास्त्रो की रिना की। हमारे मागादशान हेतु उन ऋत्रष-
मुसनर्ं ने ग्रंथो मं रत्नं के त्रवसभडन उप्र्ोगीता एवं प्रभाव
का त्रवस्तृत वणा भी फकर्ा। स्जििे मनुष्र् अपनी
आवश्र्िा के अनुशार त्रवसभडन रत्नो के माध्र्म िे अपने
कार्ा उद्देश्र् मं िफलता प्राि कर िके ।
ज्र्ोसतष त्रवद्वान एवं रत्न त्रवशेषज्ञ के मत िे रत्न
घारण करने िे जीवन के त्रवसभडन क्षेिं मं इस्छित
पररवतान फकर्ा जा िकता हं। क्र्ोफक रत्न त्रवज्ञान एक
प्रिीन त्रवद्या हं।
रत्नं के त्रवषर् मं मस्ण माला ग्रडथ मं उल्लेख हं:-
मास्णक्र्म ् तरणेः िुजात्र्ममलम ्
मुिाफलम ् शीतगोमााहेर्स्र् ि त्रवद्रुमो
सनगफदतः िौम्र्स्र् गारुत्मतम ्।
देवेज्र्स्र् ि पुष्परागमिुरािारूर्ािर्
वज्रम ् शनेनीलम ् सनम्मालमडर्र्ोि
गफदते गोमेदवैदूर्यर्ाके ॥
अथाात ्: ग्रहं के त्रवपरीत होने पर उडहं शाडत करने के
सलए रत्न पहने जाते हं। िूर्ा के त्रवपरीत होने पर सनदोष
मास्णक, िडद्र के त्रवपरीत होने पर उिम मोती, मंगल के
सलए मूंगा, बधु के सलए पडना, बृहस्पसत के सलए
पुखराज, शुक्रर के सलए हीरा, शसन को शाडत करने के
सलए नीलम, राहु के सलए गोमेद एंव के तु के त्रवपरीत
होने पर लिुसनर्ा घारण करना िाफहए। (मस्ण माला)
धडर्म ् र्श्स्र्मार्ुष्र्म ् श्रीमद् व्र्िनिूदनम ्।
हषाणम ् काम्र्मोजस्र्म ् रत्नाभरणधारणम ्॥
ग्रहदृत्रष्टहरम ् पुत्रष्टकरम ् दुःखप्रणाशनम ् ।
पापदौभााग्र्शमनम ् रत्नाभरणधारणम ्॥
(मस्ण माला)
अथाात ्: रत्न जफित आभूषण को घारण करने पर िम्मान,
र्श, फदधाार्ु, धन, िुख और धन मं वृत्रद्ध होती है तथा
िभी प्रकार की इछिाओं की पूसता होती है। ऐिा करने
िे ग्रह के त्रवपरीत प्रभाव कम होते हं शरीर पुष्ठ होता है
तथा दुःख, पाप एंव दुभााग्र् का नाश होता हं।
रत्नेन शुभेन शुभम ् भवसत नृपाणामसनष्तमशुभेन।
र्स्मादतः परीक्ष्र्ं दैवं रत्नासश्रतम ् तज्ज्ञै॥
अथाात ्: शुभ, स्वछि व उिम श्रेणी के रत्न धारण करने
िे राजाओं का भाग्र् शुभ तथा असनष्ट कारक रत्न पहनने
िे अशुभ भाग्र् होता है। अतः रत्नं की गुणविा पर
अवश्र् ध्र्ान देना िाफहए।
8 नवम्बर 2011
अपनी लाल फकताब कुं िली िे उपिार जासनर्े
माि RS:- 450
दैवज्ञ को खूब जाँि-परखकर ही रत्न देना िाफहए, क्र्ंफक
रत्न मं भाग्र् सनफहत होता है।
प्रकृ सत ने मानुष्र् के त्रवसभडन त्रवकारो के सनवारण के
सलए कु दरत के असत अनमोल उपहार के रूप मं त्रवत्रवध
प्रकार के रत्न प्रदान फकए हं, जो हमं भूसम (रत्नगभाा),
िमुद्र (रत्नाकर) आफद त्रवत्रवध स्त्रोतं िे प्राि होते हं।
कौफटल्र्जी का कथन हं:-
खसनः स्त्रोतः प्रकीणाकं ि र्ोनर्ः।
अथाात ्:र्े रत्न हमारे हर त्रवकार को दूर करने मं िक्षम हं।
िाहे त्रवकार भौसतक हो र्ा आध्र्ास्त्मक। फकिी रत्न
त्रवशेष के बारे मं जानने िे पूवा मूल रत्नं को जानना
आवश्र्क है। त्रवद्वानो ने मूल रत्नो फक िंख्र्ा 21 बताई
हं।
1) हीरा (वज्र),
2) नीलम (इडद्रनील),
3) पुखराज
4) पडना (मरकत),
5) मास्णक,
6) (रुसधर रत्न, )
7) वैदुर्ा, लहिुसनर्ा,
8) कटैला,
9) त्रवमलक (िमकीला रत्न)
10) राजमस्ण,
11) स्फफटक,
12) िडद्रकाडतमस्ण,
13) िौगस्डधक,
14) गोमेद,
15) शंखमस्ण,
16) महानील,
17) ब्रह्ममस्ण,
18) ज्र्ोसतरि,
19) िस्र्क,
20) मोती व
21) प्रवाल (मूँगा)।
इन २१ रत्नो को भाग्र् वृत्रद्ध हेतु उिम एवं धारण करने
र्ोग्र् माना गर्ा हं।
िामाडर्तः एिी माडर्ता हं की पृथ्वी िे मूल रूप मं
प्राि होने वाले प्रमुख रत्न 21 ही हं। लेफकन 21 मूल रत्नं
के अलावा इनके 21 उपरत्न भी हं। त्रवद्वानो के मत िे
रत्नं की िंख्र्ा 21 ही होने का कारण है। स्जि प्रकार
मनुष्र् को दैफहक, दैत्रवक तथा भौसतक रूप िे तीन तरह
की व्र्ासधर्ाँ िस्त करती हं उिी प्रकार िे इडहीं तीन
प्रकार की उपलस्ब्धर्ाँ होती हं और इंगला, त्रपंगला और
िुषुम्ना इन तीन नाफिर्ं िे इनका उपिार होता है।
इिी प्रकार एक-एक ग्रह िे उत्पडन तीनं प्रकार
की व्र्ासधर्ं एवं उपलस्ब्धर्ं को आत्मिात ् र्ा परे करने
के सलए एक-एक ग्रह को तीन-तीन रत्न प्राि हं। ध्र्ान
रहे, ग्रह भी मूल रूप िे माि िात ही हं।
िूर्ा, िडद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शसन और राहु
एवं के तु की अपनी कोई स्वतडि ििा न होने िे इनकी
गणना मूल ग्रहं मं नहीं होती है। इडहं िार्ा ग्रह कहा
जाता है। इि प्रकार एक-एक ग्रह के तीन-तीन रत्न के
फहिाब िे िात ग्रहं के सलए 21 मूल रत्न सनस्ित हं।
अस्तु, र्े मूल रत्न स्जि रूप मं पृथ्वी िे प्राि होते
हं, उिके बाद इडहं पररमास्जात करके शुद्ध करना पिता है
तथा बाद मं इडहं तराशा जाता है।
9 नवम्बर 2011
रत्नो की उत्पत्रि
 सिंतन जोशी
रत्नं का िंिार असत बहुत प्रािीन एवं अद्द्द्भुत हं।
रत्नो की उत्पत्रि के त्रवषर् मं अनेको माडर्ताएं एवं कथाएं
हं। वृहद िंफहता, भावप्रकाश, अस्ग्न पुराण, गरुि पुराण,
रि रत्न िमुछिर्, आर्ुवेद प्रकाश, देवी भागवत,
महाभारत, त्रवष्णु धमोिर आफद गंथो मं रत्नं का वणान
फकर्ा गर्ा है।
अस्ग्न पुराण:
एक बार महाबली अिुरराज वृिािुर ने देवलोक
पर आक्रमण कर फदर्ा। तब भगवान श्री त्रवष्णु ने इडद्र
को िुझाव फदर्ा की महत्रषा दधीसि की हस्डिर्ं िे वज्र
अस्त्र बनार्ा जाए। देवताओं की प्राथाना िुनकर महामुसन
दधीसि ने अपना शरीर देवताओं को भेट स्वरुप दे फदर्ा।
महत्रषा दधीसि की हस्डिर्ं िे इडद्र देव ने वज्र बनाकर
फफर इिी वज्र िे देवताओं ने वृिािुर का वध
फकर्ा। इडद्र द्वारा अस्त्र (वज्र) के सनमााण के िमर्
दधीसि की अस्स्थर्ं के , जो अस्स्थर्ं के अंश पृथ्वी पर
सगरे थे उनिे रत्नं की खानं बन गईं। कु ि त्रवद्वानो के
मत िे उि अस्स्थर्ं के अंश पृथ्वी पर सगरने िे हीरे की
खाने बन गईं। इि सलए हीरा िबिे असधक कठोर कोई
पदाथा हं।
िमुद्र मंथन की कथा :
पुराण के अनुशार देवताओं और राक्षिं ने जब
िमुद्र मंथन फकर्ा तब अमृत कलश प्रकट हुआ तो अिुर
उि अमृत को लेकर भाग गए। देवताओं ने उनका पीिा
फकर्ा और देवता व राक्षिं मं िीना-झपटी हुई स्जि मं
अमृत की कु ि बूंदं िलक कर पृथ्वी पर सगरीं। कालांतर
मं अमृत की र्े बूंदं समट्टी मं समलकर रत्नं मं पररवसतात
हो गएं।
दैत्र्राज बसल की कथा:
भगवान त्रवष्णु ने वामन अवतार धारण करके
दैत्र्राज बसल िे तीन पग भूसम माँगी। पहले पग मं पूरा
ब्रह्मांि, दूिरे पग मं पाताल िफहत िमस्त पृथ्वी पर
तीिरे पग मं दैत्र्राज बसल ने वामनजी को अपना शरीर
अपाण कर फदर्ा। भगवान त्रवष्णु का पैर बसल के शरीर
पर रखते ही बली का शरीर रत्नो का बन गर्ा। उिके
बाद मं देवराज इडद्र ने बसल के शरीर के टुकिे़-टुकिे़ कर
फदए। बसल के शरीर के टुकिे़ िभी अंगं िे अलग-अलग
रंग-रूप व गुण के रत्न बन गए।
फफर भगवान सशव ने उन रत्नं को अपने त्रिशूल
पर स्थात्रपत करके फफर उन त्रिशूल पर नौ ग्रहं एवं बाहर
रासशर्ं का प्रभुत्व स्थात्रपत फकर्ा। इिके बाद उडहँ पृथ्वी
पर िार फदशाऑं मं सगरा फदर्ा। फलस्वरूप पृथ्वी पर
त्रवसभडन रत्नं के भंिार उत्पडन हो गएं। कु ि त्रवद्वानो के
मत िे राजा बसल शरीर के टुकिं िे 21 प्रकार के रत्नं
का प्रादुभााव हुआ। तो कु ि त्रवद्वानो का मत हं की राजा
बसल शरीर के टुकिं िे 84 प्रकार के रत्नं का प्रादुभााव
हुआ था।
 जहाँ बसल का रि सगरा वहाँ मास्णक्र् की उत्पत्रि
हुई।
 जहाँ बसल का मन, दांत सगरा वहाँ मोसत की उत्पत्रि
हुई।
 जहाँ बसल की अंतफिर्ं सगरी वहाँ मूंगे की उत्पत्रि
हुई।
 जहाँ बसल का त्रपि सगरा वहाँ पडना की उत्पत्रि हुई।
 जहाँ बसल का मांि सगरा वहाँ पुखराज की उत्पत्रि
हुई।
 जहाँ बसल का हस्डिर्ां सगरी वहाँ हीरे की उत्पत्रि हुई।
 जहाँ बसल का नेि सगरी वहाँ सनलम की उत्पत्रि हुई।
10 नवम्बर 2011
आिार्ा वराहसमफहर ने अपने ग्रंथ वृहद्द्िंफहता मं
21 रत्नं की उत्पत्रि का कारक दैत्र्राज बसल को माना
हं। उिके पिात देवताओं के कल्र्ाण के सलए अपनी
अस्स्थर्ां दान कर देने वाले महत्रषा दधीिी की हस्डिर्ं िे
भी अनेक रत्नं की उत्पत्रि हुई।
उि कथा को ित्र् मानना आज आज के
आधुसनक र्ुग मं कफठन हो जाता हं। आजकी आधुसनक
शैक्षस्णक पद्धसत िे सशक्षा ग्रहण कर िूके त्रवद्वान व
जानकारो की माने तो र्ह िंभंव ही नही हं, क्र्ोकी की
कै िे फकिी के शरीर के सभडन फहस्िे जैिे खून िे
मास्णक्र्, दांत िे मोसत, आंत िे मूंगा, त्रपि िे पडना
आफद बन िकता हं?
मोसत का सनमाण तो िमुद्र मं एक त्रवशेष प्रकार
के जीव द्वारा होता हं।
मूंगा भी एक प्रकारका जैत्रवक रत्न हं जो िमुद्र मं
एक त्रवशेष प्रकार के कीिे होते हं जो अपने सलए घर
बनाते हं, उिी को मूंगा कहा जाता हं। इि के अलावा
प्रार्ः अडर् िभी रत्न खसनज रत्न हं जो पृथ्वी के गभा िे
प्राि होते हं।
र्फह कारण हं की उि कथा को ित्र् मानना
कफठन हं। क्र्ोफक उिे ित्र् मानने हेतु आज हमारे पाि
पर्ााि पुरावे व जानकारीर्ं का अभाव हं। उि कथाओं
को पुराणं मं उल्लेस्खत कथा र्ा जानकारी के सलर्े पढीं
व मानी जा िकती हं लेफकन वास्तत्रवकता जोिना
मुस्श्कल हो िकता हं।
क्र्ोफक आज का िमर् वैज्ञासनक सिद्धांतो एवं
तथ्र्ो पर आधारीत हो गर्ा हं। आज त्रवज्ञान मं हर फदन
नर्े-नर्े शोध कार्ा एवं प्रर्ोग होते हं। स्जिका पररणाम
र्ह हं की आज हर पीला फदखने वाला रत्न पुखराज नहीं
होता। हर पीला फदखने वाले रत्न जैिे पुखराज, िुनहला,
टोपाज़ आफद मं अंतर करने मं िमथा हं।
वैज्ञासनक मत िे कोई पत्थर रत्न तब कहलाता हं
जब वहं िामाडर् पत्थरो िे अलग कु ि त्रवशेष प्रकार के
तत्व र्ुि होता हं तब वहं एक त्रवशेष रत्न कहलाता हं।
हर रत्न की एक त्रवशेषताएं होती हं जो उिे अडर् रत्न िे
अलग करता हं।
वैज्ञासनक मत हं की पृथ्वी के गभा मं अस्ग्न के
प्रभाव िे पदाथा के त्रवसभडन तत्व रािार्सनक प्रफक्रर्ा
द्वारा रत्न बन जाते हं। र्ही कारण हं की हर रत्न त्रवशेष
प्रकार के त्रवसभडन रािार्सनक र्ौसगक मेल िे बनता हं।
फकिी एक रािार्सनक तत्व िे रत्न नहीं बन िकता।
स्थान की सभडनता िे त्रवत्रवध रािार्सनक तत्वं के िंर्ोग
की सभडनता के कारण ही रत्नं के रंग, रूप, कठोरता व
िमक मं अंतर होता हं।
गणेश लक्ष्मी र्ंि
प्राण-प्रसतत्रष्ठत गणेश लक्ष्मी र्ंि को अपने घर-दुकान-
ओफफि-फै क्टरी मं पूजन स्थान, गल्ला र्ा अलमारी
मं स्थात्रपत करने व्र्ापार मं त्रवशेष लाभ प्राि होता
हं। र्ंि के प्रभाव िे भाग्र् मं उडनसत, मान-प्रसतष्ठा
एवं व्र्ापर मं वृत्रद्ध होती हं एवं आसथाक स्स्थमं िुधार
होता हं। गणेश लक्ष्मी र्ंि को स्थात्रपत करने िे
भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी का िंर्ुि आशीवााद
प्राि होता हं। Rs.550 िे Rs.8200 तक
11 नवम्बर 2011
ज्र्ोसतष, अंक ज्र्ोसतष के अनुशार लाभदार्क रत्न धारण कर जीवन मे
त्रवसभडन क्षेि मं ििलता प्राि की जा िकती हं।
रत्न परामशा शुल्क माि Rs:450/-
गुरुत्व कार्ाालर् िंपका : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785.
रत्न धारण िे असभष्ट कार्ासित्रद्ध
 सिंतन जोशी
ग्रहं के असनष्ट प्रभाव को दूर करने के सलए हमारे
देश मं रत्न धारण करने की प्रणाली प्रािीन काल िे
प्रिसलत है। आिार्ा वाराहसमफहर ने बृहत्िंफहता मं रत्नं
तथा उनके गुण-दोष का त्रवस्तार िे वणान फकर्ा हं।
त्रवद्वानो के मत िे रत्न धारण करने के पीिे
वैज्ञासनक रहस्र् सिपा हं। प्रार्ः आजके आधुसनक र्ुग मं
िभी लोग इि बात िे भली-भांसत पररसित हं की
िौरमंिल की रस्श्मर्ं का प्रभाव रत्नो के रंग, रुप,
आकार, प्रकार एवं उिके गुणो को सनरंतर प्रभात्रवत करता
रहता हं।
इिी कारण एक िमान गुण वाली रस्श्मर्ं के
कारक ग्रह के प्रभाव वृत्रद्ध हेतु व्र्त्रि को उिी प्रकार की
रस्श्म िे उत्पडन रत्न धारण करवा कर शुभ पररणाम प्राि
फकए जाते हं। र्फद प्रसतकू ल प्रभाव के व्र्त्रि को त्रवपरीत
प्रभावशाली रस्श्मर्ं मं उत्पडन रत्न धारण करवार्ा जाए,
तो वह रत्न व्र्त्रि के सलए अशुभ पररणाम देता हं।
र्फह कारण हं रत्न धारण करने िे पूवा जडम
कुं िली मं ग्रहो के अनुकू ल एवं प्रसतकू ल प्रभाव को जांि
लेना िाफहए। क्र्ोफक रत्नं को धारण करने के सलए कु ि
त्रवशेष सिद्धांत होते हं। स्जिका त्रवस्तृत वणान हमारे
त्रवद्वान ऋत्रष-मुसनर्ं ने ग्रंथो एवं शास्त्रं मं फकर्ा हं। रत्न
धारण का मुख्र् सिद्धांत हं की स्जि ग्रह िे िंबंसधत रत्न
धारण फकर्ा जाता हं, उि ग्रह का बल प्राि करना। रत्न
का कारक ग्रह (िंबंसधत ग्रह) उि व्र्त्रि की जडम
कुं िली िे इि रत्न को धारण करने िे बल प्राि कर लेता
हं। रत्न धारण द्वारा िंबंसधत ग्रह फक रस्श्म उि रत्न मं
होती हं एवं धारण करने िे व्र्त्रि के शरीर मं प्रवेश
करती हं। और ग्रह िे प्राि पीिा एवं कष्टं मं कमी होने
लगती हं।
रोगं िे बिने हेतु फकि ग्रह का रत्न धारण करना
िाफहए इि त्रवषर् मं त्रवद्वानो का मत हं की रोगं िे
मुत्रि हेतु लग्नेश अथाात लग्न के स्वामी का ग्रह का रत्न
धारण करना उसित होता हं। लग्नेश का रत्न व्र्त्रि के
शरीर मं प्रसतरोधक क्षमता मं वृत्रद्ध करता हं स्जििे रोग
िे व्र्त्रि को कम िे कम हासन करता हं और जल्द
स्वस्थ करने हेतु मदद करता हं एवं भत्रवष्र् मं रोग िे
बिाता हं। अतः रोगं के आग्रमण िे बिने हेतु व्र्त्रि
को अपने लग्नेश का रत्न अवश्र् पहनना िाफहए। क्र्ोफक
प्रसतरोधक क्षमता उिम स्वास्थ्र् का लक्षण हं।
कु ि ज्र्ोसतष त्रवद्वानो के मत िे व्र्त्रि की जडम
कुं िली मं वतामान िमर् मं स्जि ग्रह की महादशा र्ा
अंतरदशा िल रही हो, र्ा जो ग्रह प्रसतकू ल हो उिका रत्न
धारण करना िाफहए। ऎिा करने िे ग्रह के असनष्ट प्रभाव
मं कमी आती हं और रोग शांत होने लगते हं।
12 नवम्बर 2011
त्रवशेषज्ञ की िलाह िे ही करं रत्न धारण
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
जानकारो की माने तो अपने व्र्त्रित्व मं सनखार
और जीवन मं िफलता के सलए व्र्त्रि को लग्नेश और
त्रिकोणेश अथाात पंिमेश और नवमेश के रत्न धारण करने
िाफहए। उनकी माने तो लग्नेश, पंिमेश एवं नवमेश के
रत्न धारण करने िे भाग्र्ोदर् तीव्र गसत िे होता हं,
लेफकन इि त्रवषर् मं मतभेद हं कु ि ज्र्ोसतष का मत है
फक र्फद लग्नेश नीि रासश स्स्थत मं स्स्थत हो, र्ा
त्रिकोणेश हो, तो उनके रत्न धारण नहीं करने िाफहए।
कु ि ज्र्ोसतषी त्रवद्वानो ने अपने अध्र्र्न मं पार्ा
हं की र्फद लग्नेश, पंिमेश एवं नवमेश नीि का हो,
तबभी उिका रत्न लाभकारी सिद्ध होता हं।
महत्रषा वराहसमफहर एवं अडर् प्रािीन आिार्ं ने
अपने ग्रंथो मं उल्लेख फकर्ा हं की र्फद जडम कुं िली मं
पंि महापुरुष, राजर्ोग बन रहा हो, तो जडम कुं िली मं
राज र्ोग बनाने वाले ग्रह का रत्न लाभकारी होता हं।
ज्र्ोसतष मं पंि महा पुरुषर्ोग
1) रूिक र्ोग
2) भद्र र्ोग
3) हंि र्ोग
4) मालव्र् र्ोग
5) षष र्ोग
र्ह तो िभी ज्र्ोसतषी जानते हं फक र्फद गुरु,
शुक्र, बुध, मंगल, र्ा शसन जडम लग्न िे कं द्र मं
स्वग्रही, र्ा उछि का हो, तो मंगल िे रूिक, बुध िे
भद्र, गुरु िे हंि, शुक्र िे मालव्र् एवं शसन िे शश पंि
महापुरुष राजर्ोग बनते है। अतः राजर्ोगकारी ग्रह का
रत्न लाभकारी सिद्ध होगा। र्फद फकिी की जडमपत्रिका मं
उपर्ुाि पंि महापुरुष राजर्ोग हो, तो उि ग्रह की
महादशा मं उिका रत्न धारण करना िाफहएं, जैिे, मंगल
िे रूिक र्ोग मं मूंगा, बुध िे भद्र र्ोग मं हरा पडना,
गुरु िे हंि र्ोग मं पीला पुखराज, शु़क्र िे मालव्र् र्ोग
मं िफे द हीरा, शसन िे शश र्ोग मं नीलम।
त्रवद्वानो के अनुशार अष्टेश (अष्टम भाव के स्वामी ग्रह)
का रत्न धारण नहीं करना िाफहए। रत्न धारण करते िमर्
र्ह िावधानी अवश्र् रखे।
1) मेष लग्न वाले जातक का मंगल अष्टमेश होता है, तो उडहं
मूंगा धारण नहीं करना िाफहए।
2) वृष लग्न वाले जातक का गुरु अष्टमेश होता है, तो उडहं
पीला पुखराज धारण नहीं करना िाफहए।
3) समथुन लग्न वाले जातक का शसन अष्टमेश होता है, तो
उडहं नीलम धारण नहीं करना िाफहए।
4) कका लग्न वाले जातक का शसन अष्टमेश होता है, तो उडहं
नीलम धारण नहीं करना िाफहए।
5) सिंह लग्न वाले जातक का गुरु अष्टमेश होता है, तो उडहं
पीला पुखराज धारण नहीं करना िाफहए।
6) कडर्ा लग्न वाले जातक का मंगल अष्टमेश होता है, तो
उडहं मूंगा धारण नहीं करना िाफहए।
7) तुला लग्न वाले जातक का शुक्र अष्टमेश होता है, तो उडहं
हीरा धारण नहीं करना िाफहए।
8) वृस्िक लग्न वाले जातक का बुध अष्टमेश होता है, तो
उडहं पडना धारण नहीं करना िाफहए।
9) धनु लग्न वाले जातक का िंद्र अष्टमेश होता है, तो उडहं
मोसत धारण नहीं करना िाफहए।
10)मकर लग्न वाले जातक का िूर्ा अष्टमेश होता है, तो उडहं
मास्णक धारण नहीं करना िाफहए।
11) कुं भ लग्न वाले जातक का बुध अष्टमेश होता है, तो उडहं
पडना धारण नहीं करना िाफहए।
12)मीन लग्न वाले जातक का शुक्र अष्टमेश होता है, तो उडहं
हीरा धारण नहीं करना िाफहए।
महत्रषार्ं ने अपनी खोज मं पार्ा है फक स्जि रत्न का रंग
स्जतना गहरा होगा वह उतना ही लाभकारी होगा। अतः
धारण करने िे पूवा इि बात का अवश्र् ध्र्ान रखे।
13 नवम्बर 2011
रत्नो का नामकरण
 त्रवजर् ठाकु र
महत्रषा वाराहसमफहर नं भारतीर् प्रासिन ज्र्ोसतष शास्त्र के प्रमुख ग्रंथो मं बृहत्िंफहता की रिना की स्जिमं रत्नो के गुण-
दोष का त्रवस्तार िे वणान हं। त्रवद्वानो के मतानुशार अभी तक हुए शोधा कार्ा मं ज्र्ोसतष एवं रत्न शास्त्र मं रुसि रखने
वाले लोगो के सलर्े बृहत्िंफहता अत्र्ंत महत्वपूणा एवं प्रामास्णक शास्त्र सिद्ध हुवा हं।
क्र्ोफक महत्रषा वाराहसमफहर ने स्जन मुख्र् रत्नं का उल्लेख फकर्ा हं, उििे ज्ञात होता हं की आज हम स्जन प्रमुख रत्नो
को जानते हं उन रत्नो को पुरातन काल िे र्ा उििे पूवा िे र्ह रत्न अवश्र् उपलब्ध थे एवं उन रत्नो को त्रवसभडन
उद्देश्र् के सलर्े प्रर्ोग मं सलर्ा जाता था। त्रवद्वानो के अनुशार अभी तक प्राि हुवे पुरातन शास्त्र एवं ग्रंथो मं स्जतने रत्नो
का वणान समलता हं उि िब िे असधक िंख्र्ा मं रत्नो का उल्लेख बृहत्िंफहता मं फकर्ा गर्ा हं।
बृहत्िंफहता मं स्जन स्जन रत्नो का वणान फकर्ा गर्ा हं। उन रत्नो को िुख, िमृत्रद्ध, वैभव एवं िंपडनता का िूिक
मानागर्ा हं।
बृहत्िंफहता मं वस्णात रत्नं की तासलका र्हा प्रस्तुत हं:-
1) वज्र
2) पद्मराज
3) त्रवमलक
4) मरकत
5) वैदूर्ा
6) स्फफटक
7) िौगस्डधक
8) इडद्रनील
9) रुसधर
10) राजमस्ण
11) गोमेद
12) पुष्पराग
13) मुिा
14) िम्र्क
15) शंख
16) कके टक
17) पुलक
18) शसशकाडत
19) महानील
20) ज्र्ोसतरि
21) ब्रह्ममस्ण
22) प्रवाल
बृहत्िंफहता के अलावा अडर् कई ग्रडथो मं रत्नो का उल्लेख प्राि होता हं।
महत्रषा वाराहसमफहर द्वारा प्राि जानकारी को आधार बनाकर कालांतर मं अडर् त्रवद्वानो मं अपनी रुसि रत्नं की और
अग्रस्त की होगी और शोध अध्र्र्न के पिर्ात उिे सलखा होगा। स्जि कारण िमर् के िाथ-िाथ रत्नो की
उपर्ोसगता, िंदर्ा, गुण, औषधीर् प्रभाव, दुलाभता आफद िे लोग पररसित होने लगे।
पुरातन काल मं रत्न मूल्र्वान होने के कारण िामाडर् वगा लोगो की अपेक्षा के वल िंपडन लोग ही रत्नो का व्र्वहार
कर पाते थे। लेफकन िमर् बदला और आज के आधुसनक दौर मं कु दरसत रत्नो के िाथ-िाथ कृ त्रिम रत्न भी िामानर्
वगा के लोगो के सलर्े उप्लब्ध होने लगे हं, आज भी बहुमूल्र् एवं फकमती रत्नो की मांग दुसनर्ा भर मं िमर् के िाथ
मं बढती जा रही हं।
रत्न एवं उपरत्न
हमारे र्हां िभी प्रकार के रत्न एवं उपरत्न व्र्ापारी मूल्र् पर उपलब्ध हं। ज्र्ोसतष कार्ा िे जुिे़ बधु/बहन व रत्न
व्र्विार् िे जुिे लोगो के सलर्े त्रवशेष मूल्र् पर रत्न व अडर् िामग्रीर्ा व अडर् िुत्रवधाएं उपलब्ध हं।
GURUTVA KARYALAY
Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
14 नवम्बर 2011
मास्णक्र्
 सिंतन जोशी
िूर्ा का रत्न मास्णक्र् िूर्ा ग्रह के शुभ फलं की
प्रासि हेतु धारण फकर्ा जाता हं।
मास्णक्र् त्रवसभडन भाषाओ मे सनम्न सलस्खत नामो िे
जाना जात है।
फहडदी मे :- िुस्डन, मास्णक्र्, लाल मस्ण,
िस्कृ त मे :- पद्मराग मस्ण, मास्णक्र्म, िोणमल, कु रत्रवंद,
विुरत्न, िोगोधक, स्त्रोण्रत्न, रत्ननार्क, लक्ष्मी पुष्प,
िारिी मे :- र्ाकू त,
अरबी मे :- लाल बदपशकसन
लेफटन मे :- रुबी, निा,
मास्णक्र् मं लाल रंग की आभा होती हं।
मास्णक्र् लाल रंग के अलावा अडर् रंग गुलाबी, काला
और नीले रंग की आभा वाले भी पार्े जाते हं। मास्णक्र्
खसनज रत्नो मं िे एक रत्न हं।
रि के िमान लाल रंग की आभा त्रबखेरने वाला
मास्णक्र् असत मूल्र्वान एवं उिम होता हं। बाजार मं
बमाा मास्णक्र् की मांग िबिे असधक होती हं। अलग-
अलग स्थानं िे प्राि मास्णक्र् के रंगं मं सभडनता होती
हं।
जानकारो के मत िे बमाा मं मास्णक्र् की खदानं
िबिे पुरातन हं। अभी तक प्राि मास्णक्र् मं िबिे उिम
मास्णक्र् बमाा िे ही प्राि हुए हं। र्फह कारण हं की बमाा
के मास्णक्र् की कीमत और मांग अंतरात्रिर् बाजारो मं
िबिे असधक होती है।
मास्णक्र् के लाभ:
 मास्णक्र् धारण करने िे व्र्त्रि का मन प्रिडन
रहाता हं एवं उत्िाह और उमंग मं वृत्रद्ध होती हं।
 कु ि त्रवद्वानो के मत िे मास्णक्र् प्रेम बढाने वाला रत्न
मानते हं।
 मास्णक्र् सनराशा और उदािीनता को दूर करता हं।
 मास्णक्र् भूत-प्रेत आफद शुद्र बाधाओं िे मुत्रि फदलाता
हं।
 मास्णक्र् िंतान
िुख की प्रासि हेतु
उिम माना गर्ा हं।
 मास्णक्र् धारण
करने िे आसथाक
स्स्थसत मं िुधार
होता हं और
त्रवसभडन स्तोि िे
धन प्राि होता हं।
 मास्णक्र् धारण
करने व्र्त्रि की िमाज मं मान-िम्मन एवं प्रसतत्रष्ठत
मं सनरंतर वृत्रद्ध होती हं।
 मास्णक्र् जहर के प्रभाव को कम करता हं एवं
जहरीली वस्तु पाि होने पर इिक रंग फीका फदखने
लगता हं।
 पस्िसम देशं मं ऎिी माडर्ता हं की मास्णक्र् त्रवष
को दूर करता हं, मास्णक्र् महामारी जैिे प्लेग आफद
िे रक्षा करता हं।
 मास्णक्र् धारण करने िे व्र्त्रि के दुख को दूर करता
हं।
 मन मं नकारात्मक त्रविारं को आने िे रोकता हं।
 एिा माना जाता हं की र्फद फकिी व्र्त्रि ने मास्णक्र्
धारण फकर्ा हो, तो उि पर त्रवपत्रि आने पर, उिका
रंग बदल जाता हं (फीका हो जाता हं) अथाात
मास्णक्र् त्रवपत्रिर्ं के आने िे पूवा िंके त देता हं और
िंकट टल जाने पर पुन: मास्णक्र् की आभा पूवावत
हो जाती हं।
15 नवम्बर 2011
माडर्ता:
 जो मास्णक्र् िूर्ा की फकरण पिने िे लाल रंग
त्रबखेरता है वह िवोिम होता हं।
 उछि कोफट के मास्णक्र् की पहिान है फक मास्णक्र्
को दूध मं बार-बार िुबोने िे दूध मे मास्णक्र् की
आभा फदखने लगती हं।
 अंधेरे कमरे मं रखने पर र्ह िूर्ा के िमान
प्रकाशमान होता हं।
 मास्णक्र् को कमाल की कली पर रखे तो कली तुरंत
ही स्खल उठती हं।
 मास्णक्र् को र्फद ििे द मोसतर्ं के बीि रखे तो
मोती मास्णक्र् के रंग के हो जाते हं।
मास्णक्र् और आध्र्ात्म:
 मास्णक्र् पहन कर िूर्ा उपािना करने िे िूर्ा पूजा
का फल मं वृत्रद्ध हो जाती है।
 रंग सिफकत्िा का मूल आधार हं की रंगं की रस्श्मर्ां
घनीभूत होती हं।
हृदर् और रत्न: िूर्ा व्र्र् का प्रसतसनसध है। रत्नं मं वह
मास्णक्र् का प्रसतसनसध है। इिसलए व्र्त्रि को िूर्ा को
बल देने के सलए मास्णक्र् धारण करना िाफहए। मास्णक्र्
हृदर् के िभी प्रकार के कष्टं अथवा रोगं को दूर करता
हं। मास्णक्र् की त्रपष्टी और भस्म दोनं औषसध के रूप मं
उपर्ोग मं आते हं।
मास्णक्र् के दोष
1. स्जि मास्णक्र् मं दो रंगं आभा हो उिे धारण करने
िे त्रपता को कष्ट प्राि होता हं। अत: दो रंगं िे र्ुि
मास्णक्र् धारण नहीं करना िाफहए
2. स्जि मास्णक्र् मं मकिी के िमान जाले नजर आते
हो इि प्रकार के मास्णक्र् को धारण करने िे
धारणकताा कई प्रकार के कष्टं िे पीफित हो जाता है
3. गार् के दूध के िमान रंग वाले मास्णक्र् को धारण
करने िे धन का नाश होता हं और ह्रदर् मं
उद्धत्रवग्नता रहती है
4. स्जि मास्णक्र् का रंग धुऐं के िमान हो ऐिे
मास्णक्र् को धारण करने िे त्रवसभडन प्रकार काष्ट
और िंकटो का िामना करना पिता हं।
5. काले रंग का मास्णक्र् धन नाश और अपर्श देने
वाला होता हं।
6. स्जि मास्णक्र् मं दोष हो ऐिे मास्णक्र् को धारण
करने िे त्रवसभडन प्रकार के रोग, व्र्ासध और
आकस्स्मक दुघाटनाओं की िम्भावना असधक रहती हं।
अत: मास्णक्र् धारण करने िे पहले इिके दोषं को
परख लेना िाफहए।
मास्णक्र् के गुण:
 मास्णक्र् रिवधाक, वार्ुनाशक और उदर रोग मं
लाभकारी होता हं।
 मास्णक्र् नेि ज्र्ोसत को बढ़ाने वाला हं तथा अस्ग्न,
कफ, वार्ु तथा त्रपि दोष का शमन करता है।
 मास्णक्र् के भस्म के िेवन िे आर्ु की वृत्रद्ध होती
हं।
 मास्णक्र् मं वात, स़्पि, कफ जसनत रोग को शांत
करने की शत्रि होती हं।
 मास्णक्र् क्षर् रोग, बदन ददा, उदर शूल, िक्षु रोग,
कब्ज आफद रोग को दूर करता हं।
 मास्णक्र् की भस्म शरीर मं उत्पडन होने वाली
उष्णता और जलन को दूर करती हं।
बृहत्िंफहता के अलावा आर्ुवेद के प्रसिद्ध ग्रंथ भाव
प्रकाश, आर्ुवेद प्रकाश एवं रि रत्न िमुछिर् के अनुिार
मास्णक्र् किैले स्वाद का और मीठा रि प्रधान रत्न हं।
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16 नवम्बर 2011
मोती
 सिंतन जोशी
िंद्र का रत्न मोती िंद्र ग्रह के शुभ फलं की प्रासि
हेतु धारण फकर्ा जाता हं। मोती को िंद्र रत्न माना गर्ा
है।
मोती त्रवसभडन भाषाओ मे सनम्न सलस्खत नामो िे जाना
जात है।
फहडदी मे :- मोती, मुिा
िस्कृ त मे :- मुिा, िौम्र्ा, नीरज, तारका, शसशरत्न,
मौत्रिक, तारा, स्वप्निार, इडदुरत्न, मुिाफल, शूसलज,
शोत्रिक, शसशत्रप्रर्, जीवरत्न, त्रबडदुफल, शुत्रिमस्ण,
रिाईभव, िौफकतक, मूवााररद आफद।
िारिी मे :- मुखाररद,
अरबी मे :- मुखाररद,
लेफटन मे :- मागोररटा
अंग्रेजी :- पला
मोती की उत्पत्रि
प्रार्ः मोती स्वेत रंग का ही होता हं। स्वेत रंग
के अलावा गुलाबी, लाल, पीले, नीले, काले, हरे आफद रंगो
मं भी पार्े जाते हं।
मोती एक जैत्रवक रत्न होता है। क्र्ोफक मोती का
सनमााण भी िमुद्र मं िीप/सिप मं होता है। िमुद्र मं एक
त्रवशेष प्रकार का जीव होता हं स्जिे घंघा (मूिेल) नाम
िे जाना जाता हं। र्ह घंघा िीप के अंदर अपना घर
बनाकर रहता है। मोती के त्रवषर् मं एिी माडर्ता है की
जब िंद्रमा स्वासत नक्षि मं होता हं तब पानी की टपकने
वाली बूंद जब घंघे के खुले हुए मुंह मं पिती है तब
मोती का जडम होता है।
लेफकन एिा बहोत कम होत हं।
ज्र्ादातर मोती रेत के कण र्ा कोई िोटे जीव िे
बनते हं। वैज्ञासनक मत िे घंघा के शरीर पर घागे के
िमान अंग होते हं। स्जिकी मदद िे वह अपने
आपको
बिी सशला/ पत्थर पर जलीर् स्थानं मं अपने
आपको सिपकाता हं। घंघा जल मं एक बषा मं दो ऋतु
मं जडम लेते हं। जानकारो की माने तो जो घंघा बिी
सशला का िहारा प्राि कर लेते हं वहीं घंघा इि र्ोग्र्
होता हं की वह मोसत बना िकते हं।
घंघा मांि के दो आवरण के अंदर होता हं स्जिे
मेण्टल कहा जाता हं। र्ह मेण्टल िूक्ष्म ििं िे ढंका
होता हं, स्जिमं एक त्रवशेष प्रकार के कठोर पदाथं के
समश्रण को सनकालने की क्षमता होती हं। र्ह समश्रण
जमा होते-होते धीरे-धीरे िीप का रुप ले लेता हं। र्ह
िीत्रपर्ां हर घंघे को ढंककर रखती हं और उिकी रक्षा
करती हं। घंघा अपनी आवश्र्िा के अनुशार जरुरत
पिने पर िीप को खोलकर अपना भोजन प्राि करके िीप
को पुनः बंध कर लेता हं।
प्रार्ः िीप मं िार पते होती हं। र्ह िारं पते
बहोत धीरे-धीरे बनती हं एवं त्रवसभडन परतं िे पिते हुए
प्रकाश की रस्श्मिे मोती मं िुंदरता आती हं।
घंघा उि फक्रर्ाओं िे अपने सलर्े िीप मं घर
बना लेता हं। जब कोई सभडन पदाथा जैिे रेत के कण र्ा
फकिा, घंघे के शरीर िे लग जाता हं तो घंघा इि कण
िे मुत्रि पाने के सलर्े पूणा कोसशश करता हं और कभी
िफल तो कभी अिफल होता हं। जब घंघा अिफलता
प्राि करता हं, तब घंघा उि कण को िीप मं मौजुद
पदाथो िे उिे ढंकने की कोसशश करता हं और उि पर
परत दर परत िढाता हं। स्जि पदाथा िे िीप बनती हं
उिी पदाथा को वह उि कण पर िढाता हं। िमर् के
िाथ र्ह परते मोसत का पूणा रुप धारण कर लेता हं।
मोती का आकार सभडन-सभडन होते हं। मोती गोल,
अण्िाकार, नािपसत आफद असनर्समत आकार के होता हं।
17 नवम्बर 2011
घंघा ने बनार्े िीप र्ा मेण्टल के त्रबि मं जब कोई
सिपकने वाला कीिा फि कर िेद कर देता हं तब जो
मोती बनते हं वह िीप िे सिपक जाते हं। उन मोतीर्ं
को िीप िे काटकर सनकाल ना पिता हं। इि तरह प्राि
होने वाले मोती िपटे एवं असनर्समत आकार के होते हं।
स्जडहं त्रबल्स्टर पला कहा जाता हं। गोल मोती िे उनका
मूल्र् कम होता हं।
माडर्ता के अनुशार मोती त्रवशेष रुप िे अपने
प्राकृ सतक रूप मं प्राि होता है। मोती घंघे मं गोल,
अण्िाकार अथवा टेढ़ा-मेढ़ा जैिा भी बनता हं, वह उिी
रूप मं उपलब्ध होता हं।
अडर् रत्नं की भांसत इिकी कफटंग तथा पॉसलि
आफद नहीं की जाती हं। मोती को माला मं त्रपरोने के
सलए इनमं सिद्र ही फकर्े जाते हं।
लेफकन आज िमर् के िाथ आधुसनक उपकरणो
एवं नवीनतम तकसनको की मदद िे मोती को पॉसलि
अवश्र् फकर्ा जाता हं। र्फद फकिी मोती का आकार गोल
व अंिाकर र्ा टेढ़ा-मेढ़ा होने के उपरांत उिका कोई एक
फहस्िा नुकीला हो तो उिे काटकर पॉसलि कर उिकी
उपरी परतो को हटा फदर्ा जाता हं। र्ह फक्रर्ा िभी
नुकीले मोती मं िंभव नहीं होती कु ि ही मोतीर्ं मं
िंभव हो पाती हं।
मोती के लाभ:
 त्रवद्वान ज्र्ोसतषीर् के अनुिार स्जन लोगं का मन
अशांत रहता हं और स्जनको असधक क्रोध आता है
उडहं मोती धारण करने िे त्रवशेष लाभ प्राि होते हं।
 मोती मान की एकाग्रता बढ़ाता हं एवं मानसिक शांसत
प्रदान करने मे िहार्क होता हं।
 मोती धारण करने िे व्र्त्रि को मान-प्रसतष्ठा एवं धन,
ऎश्वर्ा एवं वैभव की प्रासि होती हं।
 मोती रोगं को नाश करने मं भी िहार्क होता हं।
 ज्वर मं मोती धारण करना लाभप्रद रहता हं।
 र्ह हृदर् गसत को सनर्ंिण करने मं िहार्क होता
हं।
 मोती आंिशोथ, अल्िर एवं पेट एवं आफद बीमाररर्ं
मं लाभदार्ी होता हं।
 ऐिी माडर्ता है, फक जो व्र्त्रि शुद्ध मोती धारण
करते हं उि पर देवी लक्ष्मी प्रिडन रहती हं और उिे
धन का अभाव नहीं होता।
 मोती दाम्पत्र् िम्बडध मं िुधार लाने मं भी
लाभदार्क होता हं।
 धन प्रासि के सलए पीले रंग की आभा वाला मोती
धारण करना लाभदार्क होता हं।
 बौत्रद्धक क्षमता मं वृत्रद्ध के सलए लाल रंग की आभा
वाला मोती धारण करना लाभदार्क होता हं।
 मान-िम्मान एवं प्रसित्रद्ध के सलर्े िफे द रंग की आभा
वाला मोती धारण करना लाभदार्क होता हं।
 ईश्वरीर् कृ पा प्रासि के सलए नीले रंग की आभा वाला
मोती धारण करना लाभदार्क होता हं।
माडर्ता:
 कांि के सगलाि मं पानी िाल कर उिमं मोती रखा
जाता है. अगर इि पानी िे फकरण सनकल रही हं तो
मोती को अिली िमझा जाता है.
 समट्टी के बरतन मं गौमूि िालकर उिमं मोती रखा
जाता है. रातभर मोती को इिी बरतन मं रखा जाता
है. िुबह मोती को देखा जाता है. मोती पर इि उपार्
का कोई प्रभाव नहीं पिा हं और मोती अंखि हं तो
मोती को अिली िमझा जाता है.
 मोती को अनाज के भूिे िे जोर िे रगिा जाता है.
मोती के नकली होने पर उिका िूरा हो जाता है.
मोती पर कोई प्रभाव नहीं पि रहा हं तो र्ह मोती
अिली होता है
 इि उपार् के अडतगात मोती को शुद्ध गािे घी मं
कु ि देर के सलर्े रखा जाता है. अगर मोती अिली
होने पर घी के त्रपघलने की िंभावनाएं बनती हं।
मोती के दोष
 र्फद मोती टूटा हुआ हो, तो एिा मोती पहनने िे मन मं
िंिलता व्र्ाकु लता व कष्ट फक वृत्रद्ध होती हं।
18 नवम्बर 2011
 क्र्ा आपके बछिे कु िंगती के सशकार हं?
 क्र्ा आपके बछिे आपका कहना नहीं मान रहे हं?
 क्र्ा आपके बछिे घर मं अशांसत पैदा कर रहे हं?
घर पररवार मं शांसत एवं बछिे को कु िंगती िे िु िाने हेतु बछिे के नाम िे गुरुत्व कार्ाालत द्वारा
शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान िे मंि सिद्ध प्राण-प्रसतत्रष्ठत पूणा िैतडर् र्ुि वशीकरण कवि एवं एि.एन.फिब्बी
बनवाले एवं उिे अपने घर मं स्थात्रपत कर अल्प पूजा, त्रवसध-त्रवधान िे आप त्रवशेष लाभ प्राि कर
िकते हं। र्फद आप तो आप मंि सिद्ध वशीकरण कवि एवं एि.एन.फिब्बी बनवाना िाहते हं, तो िंपका
इि कर िकते हं। GURUTVA KARYALAY
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 र्फद मोती मं िमक न हो तो उि मोती को धारण
करने िे सनधानता आती हं।
 र्फद मोती मं गडढा हो, तो एिा मोती स्वास्थर् एवं धन
िम्पदा को हासन पहुँिाने वाला होता हं।
 र्फद मोती िंि के जैिा आकार हो र्ा उि पर दाग-
धब्बे हो, तो एिा मोती धारण करने िे पुि िे िंबंसधत
कष्ट होता हं।
 र्फद मोती िपटा हो तो, वह मोती िुख िौभाग्र् का
नाश करने वाला व सिंता बढाने वाला होता हं।
 र्फद मोती पर िोटे काले दाग तो, एिा मोती धारण
करने िे स्वास्थर् फक हासन होती हं।
 र्फद मोती पर रेखाएं हो तो, एिा मोती धारण करने िे
र्श एवं ऐश्वर्ा की हासन होती हं।
 र्फद मोती के िारं तरफ गोल रेखा हो तो, एिा मोती
धारण करने िे भर्वधाक तथा स्वास्थर् व हृदर् को हासन
पहुँिाने वाला होता हं।
 र्फद मोती पर लहरदार रेखाएं फदखाई देती हो तो, एिा
मोती धारण करने िे मन मं उफद्वग्नता व धन फक हासन
होती हं।
 र्फद मोती फदखने मं लंबा र्ा बेिौल हो तो, एिा मोती
धारण करने िे बल व बुत्रद्ध की हासन होती हं।
 र्फद मोती पर िाला के िमान धब्बे उभरे हो तो, एिा
मोती धारण करने िे धन-िम्पदा व िौभाग्र् का नष्ट
करने वाला होता हं।
 र्फद मोती की ितह फटी हुई हो हो तो, एिा मोती
धारण करने िे नाना प्रकार के कष्ट होते हं।
 र्फद मोती पर काले रंग की आभा र्ुि हो तो, एिा
मोती धारण करने िे अपर्श फक प्रासि होती हं।
 र्फद मोती तीन कोने वाला हो तो, एिा मोती धारण
करने िे बल एवं बुत्रद्ध का नाश होता हं और नपुंिकता
की वृत्रद्ध होती हं।
 र्फद मोरी ताम्र वणा का हो तो, एिा मोती धारण करने
िे भाई-बहन व पररवार का नाश होता हं।
 र्फद मोती िार कोणं िे र्ुि हो तो, एिा मोती धारण
करने िे पत्नी का नाश होता हं।
 र्फद मोती रि वणा का हो तो, एिा मोती धारण करने िे
िारं तरफ िे त्रवपदा आन पिती हं।
Gurutva jyotish nov 2011
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  • 1. NON PROFIT PUBLICATION गुरुत्व कार्ाालर् द्वारा प्रस्तुत मासिक ई-पत्रिका नवम्बर- 2011 Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com
  • 2. FREE E CIRCULAR गुरुत्व ज्र्ोसतष पत्रिका नवम्बर 2011 िंपादक सिंतन जोशी िंपका गुरुत्व ज्र्ोसतष त्रवभाग गुरुत्व कार्ाालर् 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA फोन 91+9338213418, 91+9238328785, ईमेल gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, वेब http://gk.yolasite.com/ http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ पत्रिका प्रस्तुसत सिंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी फोटो ग्राफफक्ि सिंतन जोशी, स्वस्स्तक आटा हमारे मुख्र् िहर्ोगी स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक िोफ्टेक इस्डिर्ा सल) ई- जडम पत्रिका E HOROSCOPE अत्र्ाधुसनक ज्र्ोसतष पद्धसत द्वारा उत्कृ ष्ट भत्रवष्र्वाणी के िाथ १००+ पेज मं प्रस्तुत Create By Advanced Astrology Excellent Prediction 100+ Pages फहंदी/ English मं मूल्र् माि 750/- GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 3. अनुक्रम रत्न शत्रि त्रवशेष रत्न धारण करने िे िंबंसधत िूिना 6 लहिुसनर्ा 31 रत्नं का अद्भुत रहस्र् 7 फिरोजा एक त्रवलक्षण रत्न 33 रत्नो की उत्पत्रि 9 रत्न एवं रंगं द्वारा रोग सनवारण 35 रत्न धारण िे असभष्ट कार्ासित्रद्ध 11 ग्रह शांसत हेतु करं नवग्रह एवं दान 38 त्रवशेषज्ञ की िलाह िे ही करं रत्न धारण 12 आजीत्रवका और रत्न धारण 36 रत्नो का नामकरण 13 रत्न धारण िे त्रवद्या प्रासि 40 मास्णक्र् 14 िूर्ा रासश िे रत्न 41 मोती 16 अंक ज्र्ोसतष िे जाने शुभ रत्न 42 मूंगा 19 शास्त्रोि त्रवधान िे रत्न धारण िंबंसधत िुझाव 43 पडना 21 िही क्रम मं जफित नवरत्न हीं धारण करं 44 पुखराज 23 नवरत्न जफित श्री र्ंि 45 हीरा 25 रत्न का पूणा प्रभावी काल? 46 नीलम 27 रत्न द्वारा रोग उपिार 48 गोमेद 29 हमारे उत्पाद गणेश लक्ष्मी र्ंि 10 शादी िंबंसधत िमस्र्ा 37 िवा कार्ा सित्रद्ध कवि 52 रासश रत्न 62 मंि सिद्ध दुलाभ िामग्री 26 पढा़ई िंबंसधत िमस्र्ा 39 जैन धमाके त्रवसशष्ट र्ंि 53 मंगलर्ंि िे ऋण मुत्रि 67 भाग्र् लक्ष्मी फदब्बी 27 कनकधारा र्ंि 42 अमोद्य महामृत्र्ुंजर् कवि 55 िवा रोगनाशक र्ंि/ 74 द्वादश महा र्ंि 30 मंिसिद्ध लक्ष्मी र्ंििूसि 43 राशी रत्न एवं उपरत्न 55 मंि सिद्ध कवि 76 मंिसिद्ध स्फफटक श्री र्ंि 32 नवरत्न जफित श्री र्ंि 45 श्रीकृ ष्ण बीिा र्ंि/ कवि 56 YANTRA 77 मंि सिद्ध रूद्राक्ष 34 मंि सिद्ध दैवी र्ंि िूसि 51 राम रक्षा र्ंि 57 GEMS STONE 79 घंटाकणा महावीर िवा सित्रद्ध महार्ंि 54 मंि सिद्ध िामग्री- 67, 68, 69 स्थार्ी और अडर् लेख िंपादकीर् 4 फदन-रात के िौघफिर्े 71 मासिक रासश फल 58 फदन-रात फक होरा - िूर्ोदर् िे िूर्ाास्त तक 72 नवम्बर 2011 मासिक पंिांग 63 ग्रह िलन नवम्बर -2011 73 नवम्बर-2011 मासिक व्रत-पवा-त्र्ौहार 65 िूिना 81 नवम्बर 2011 -त्रवशेष र्ोग 70 हमारा उद्देश्र् 83 दैसनक शुभ एवं अशुभ िमर् ज्ञान तासलका 70
  • 4. िंपादकीर् त्रप्रर् आस्त्मर् बंधु/ बफहन जर् गुरुदेव आज के वैज्ञासनक र्ुग मं रत्नं को धारण करने िे रत्नो मनुष्र् पर पिने वाल शुभ-अशुभ प्रभाव को वैज्ञासनक भी मानते हं। रत्न शब्द का अथा है बेजोि वस्तु। िामाडर्तः इिी सलए हम फकिी त्रवषर् वस्तु र्ा व्र्त्रि को उनके गुणं के आधार पर रत्न शब्द िे िंबोसधत फकर्ा जाता हं। वैज्ञासनक द्रत्रष्टकोण िे िंपूणा िौरमण्िल िूर्ा के कारण अस्स्तत्व मं आर्ा हं। इिसलर्े िभी ग्रह िूर्ा के ईदा- सगदा एक सनस्ित गसत एवं स्थान पर पररक्रमा करते हं। वैफदक ज्र्ोसतष के प्रमुख ग्रंथो मं िूर्ा को त्रवशेष महत्व फदर्ा गर्ा हं। िूर्ा के िंबंध मं िूर्ादेव को िात घोिो के रथ पर त्रवराजमान बतार्ा गर्ा हं। त्रवद्वानो के मत िे िूर्ा के िात घोिे िूर्ा की फकरणं मं स्स्थत िात रंगो का प्रसतसनसधत्व करते हं। इिी प्राकार िौरमण्िल मं स्स्थत नवग्रहं को िात रंगो के प्रतीक माना गर्ा हं। उन ग्रहो के िंबंसधत रंगो का प्रभाव प्रकाश के द्वारा पररवसतात होकर रत्नं के माध्र्म िे हमारे शरीर पर पिता हं। रत्नं मं प्रकाश फकरणो को अवशोत्रषत करके उिे परावसतात करने का प्रमुख गुण होता हं। जानकारो की माने तो रत्नं का िीधा अिकर ग्रहो के स्वभाव एवं कार्ाप्रणाली के अनुशार हमारे शरीर ओर व्र्त्रित्व पर पिता हं। मानव शरीर पंितत्वं एवं िात िक्र िे बना हं। उपर्ुि रत्नं के धारण करने िे मानव शरीर मं पंितत्वं व िातिक्रो को िंतुलन करने के सलर्े िहार्ता प्राि होती हं। स्जििे प्रकार धारणकताा व्र्त्रि के व्र्त्रित्व मं िुधार आता हं। हर रत्न के रंगो का अद्भुत एवं िमत्काररक प्रभाव होता हं स्जस्िे हमारे मानव शरीर िे िभी प्रकार के रोग हेतु उपर्ुि रत्न का िुनाव कर लाभ प्राि फकर्ा जािकता हं। ब्रह्मांि मं व्र्ाि हर रंग इंद्रधनुष के िात रंगं के िंर्ोग िे िंबंध रखता हं, हमारे ऋत्रष-मुसनर्ं ने हजारं िाल पहले खोज सलर्ा की इंद्रधनुष के िात रंग िात ग्रहं के प्रतीक होते हं, एवं इन रंगं का िंबंध ब्रह्मांि के िात ग्रहो िे होता हं जो मनुष्र् पर अपना सनस्ित प्रभाव हर क्षण िालते हं। इि बात को आज का उडनत एवं आधुसनक त्रवज्ञान भी इि बातकी पृत्रष्ट करता हं। ज्र्ोसतष के द्रत्रष्ट कोण िे हर ग्रह का अपना अलग रंग व रत्न हं। हमारे त्रवद्वान ऋत्रष-मुसनर्ं ने रत्नो के मानव प्रभाव जीवन पर पिने वाले शुभ-अशुभ प्रभाव एवं रत्नो की उपर्ोसगता का त्रवस्तृत अध्र्र्न कर जान सलर्ा था। उन ऋत्रष-मुसनर्ं ने अपने र्ोग बल एवं अफद्वसतर् अध्र्र्न िे प्राि ज्ञान को एकत्रित कर त्रवसभडन ग्रंथो एवं शास्त्रो की रिना की। हमारे मागादशान हेतु उन ऋत्रष-मुसनर्ं ने ग्रंथो मं रत्नं के त्रवसभडन उप्र्ोगीता एवं प्रभाव का त्रवस्तृत वणा भी फकर्ा। स्जििे मनुष्र् अपनी आवश्र्िा के अनुशार त्रवसभडन रत्नो के माध्र्म िे अपने कार्ा उद्देश्र् मं िफलता प्राि कर िके । ज्र्ोसतष त्रवद्वान एवं रत्न त्रवशेषज्ञ के मत िे रत्न घारण करने िे जीवन के त्रवसभडन क्षेिं मं इस्छित पररवतान फकर्ा जा िकता हं। क्र्ोफक रत्न त्रवज्ञान एक प्रिीन त्रवद्या हं।
  • 5. रत्नं के त्रवषर् मं मस्ण माला ग्रडथ मं उल्लेख हं:- मास्णक्र्म ् तरणेः िुजात्र्ममलम ् मुिाफलम ् शीतगोमााहेर्स्र् ि त्रवद्रुमो सनगफदतः िौम्र्स्र् गारुत्मतम ्। देवेज्र्स्र् ि पुष्परागमिुरािारूर्ािर् वज्रम ् शनेनीलम ् सनम्मालमडर्र्ोि गफदते गोमेदवैदूर्यर्ाके ॥ अथाात ्: ग्रहं के त्रवपरीत होने पर उडहं शाडत करने के सलए रत्न पहने जाते हं। िूर्ा के त्रवपरीत होने पर सनदोष मास्णक, िडद्र के त्रवपरीत होने पर उिम मोती, मंगल के सलए मूंगा, बधु के सलए पडना, बृहस्पसत के सलए पुखराज, शुक्रर के सलए हीरा, शसन को शाडत करने के सलए नीलम, राहु के सलए गोमेद एंव के तु के त्रवपरीत होने पर लिुसनर्ा घारण करना िाफहए। (मस्ण माला) हमारे ऋत्रष-मुसनर्ो का कथन हं की प्रकृ सत ने मानुष्र् के त्रवसभडन त्रवकारो के सनवारण के सलए कु दरत के असत अनमोल उपहार के रूप मं त्रवत्रवध प्रकार के रत्न प्रदान फकए हं, जो हमं भूसम (रत्नगभाा), िमुद्र (रत्नाकर) आफद त्रवत्रवध स्त्रोतं िे प्राि होते हं। कौफटल्र्जी का कथन हं:- खसनः स्त्रोतः प्रकीणाकं ि र्ोनर्ः। अथाात ्:र्े रत्न हमारे हर त्रवकार को दूर करने मं िक्षम हं। िाहे त्रवकार भौसतक हो र्ा आध्र्ास्त्मक। फकिी रत्न त्रवशेष के बारे मं जानने िे पूवा मूल रत्नं को जानना आवश्र्क है। त्रवद्वानो ने मूल रत्नो फक िंख्र्ा 21 बताई हं। महत्रषा वाराहसमफहर नं भारतीर् प्रासिन ज्र्ोसतष शास्त्र के प्रमुख ग्रंथो मं बृहत्िंफहता की रिना की स्जिमं रत्नो के गुण-दोष का त्रवस्तार िे वणान हं। त्रवद्वानो के मतानुशार अभी तक हुए शोधा कार्ा मं ज्र्ोसतष एवं रत्न शास्त्र मं रुसि रखने वाले लोगो के सलर्े बृहत्िंफहता अत्र्ंत महत्वपूणा एवं प्रामास्णक शास्त्र सिद्ध हुवा हं। क्र्ोफक महत्रषा वाराहसमफहर ने स्जन मुख्र् रत्नं का उल्लेख फकर्ा हं, उििे ज्ञात होता हं की आज हम स्जन प्रमुख रत्नो को जानते हं उन रत्नो को पुरातन काल िे र्ा उििे पूवा िे र्ह रत्न अवश्र् उपलब्ध थे एवं उन रत्नो को त्रवसभडन उद्देश्र् के सलर्े प्रर्ोग मं सलर्ा जाता था। त्रवद्वानो के अनुशार अभी तक प्राि हुवे पुरातन शास्त्र एवं ग्रंथो मं स्जतने रत्नो का वणान समलता हं उि िब िे असधक िंख्र्ा मं रत्नो का उल्लेख बृहत्िंफहता मं फकर्ा गर्ा हं। रत्न त्रवज्ञान असत त्रवशाल एवं अनंत हं उिे फकिी फकताब एवं पत्रिका मं िमाफहत कर पाना अिंभव हं। फफर भी हमने आपको रत्न के त्रवषर् मं असधक िे असधक त्रवशेष जानकारी प्राि हो र्फहं प्रर्ाि फकर्ा हं। जानकार ज्र्ोसतषी िे िलाह प्राि कर ग्रहो के अशुभ प्रभाव को कम करने के सलए रत्न धारण करना िरल एवं अत्र्ासधक लाभ प्रदान करने वाला श्रेष्ठ उपार् सिद्ध हो िकता हं। क्र्ोफक उसित मागा दशान िे धारण फकर्ा गर्ा रत्न शीघ्र एवं सनस्ित शुभ प्रभाव प्रदान करने मं िमथा हं। अतः रत्न धारण करने िे पूवा फकिी कू शल त्रवशेषज्ञ िे परामशा अवश्र् कर ले। आपको अपने कार्ा उद्देश्र् मं त्रवसभडन क्षेि मं सनस्ित िफलता प्राि हो इिी उद्देश्र् िे रत्न शत्रि त्रवशेष अंक को आपके मागादशान हेतु उपलब्ध करवार्ा गर्ा हं। सिंतन जोशी
  • 6. 6 नवम्बर 2011 ***** रत्न धारण करने िे िंबंसधत िूिना*****  पत्रिका मं प्रकासशत रत्न िे िंबंसधत िभी जानकारीर्ां गुरुत्व कार्ाालर् के असधकारं के िाथ ही आरस्क्षत हं।  पत्रिका मं प्रकासशत वस्णात रत्न के प्रभाव को नास्स्तक/अत्रवश्वािु व्र्त्रि माि पठन िामग्री िमझ िकते हं।  रत्न त्रवज्ञान ज्र्ोसतष िे िंबंसधत होने के कारण भारसतर् ज्र्ोसतष शास्त्रं िे प्रेररत होकर रत्नो के प्रभाव की जानकारी दी गई हं।  रत्नो के प्रभाव िे िंबंसधत त्रवषर्ो फक ित्र्ता अथवा प्रामास्णकता पर फकिी भी प्रकार फक स्जडमेदारी कार्ाालर् र्ा िंपादक की नहीं हं।  रत्नो के प्रभाव िे की प्रामास्णकता एवं प्रभाव की स्जडमेदारी लेखक, कार्ाालर् र्ा िंपादक फक नहीं हं और ना हीं प्रामास्णकता एवं प्रभाव की स्जडमेदारी बारे मं जानकारी देने हेतु लेखक, कार्ाालर् र्ा िंपादक फकिी भी प्रकार िे बाध्र् हं।  रत्नो िे िंबंसधत लेखो मं पाठक का अपना त्रवश्वाि होना न होना उनकी इछिा एवं आवश्र्क पर सनधााररत हं। फकिी भी व्र्त्रि त्रवशेष को फकिी भी प्रकार िे इन त्रवषर्ो मं त्रवश्वाि करने ना करने का अंसतम सनणार् स्वर्ं का होगा।  रत्नं की जानकारी िे िंबंसधत पाठक द्वारा फकिी भी प्रकार फक आपिी स्वीकार्ा नहीं होगी।  रत्नं िे िंबंसधत लेख हमारे वषो के अनुभव एवं अनुशंधान के आधार पर फदए गए हं। हम फकिी भी व्र्त्रि त्रवशेष द्वारा प्रर्ोग फकर्े जाने वाले रत्न, मंि- र्ंि र्ा अडर् प्रर्ोग र्ा उपार्ोकी स्जडमेदारी नफहं लेते हं। र्ह स्जडमेदारी रत्न, मंि-र्ंि र्ा अडर् प्रर्ोग र्ा उपार्ोको करने वाले व्र्त्रि फक स्वर्ं की होगी। क्र्ोफक इन त्रवषर्ो मं नैसतक मानदंिं , िामास्जक , कानूनी सनर्मं के स्खलाफ कोई व्र्त्रि र्फद नीजी स्वाथा पूसता हेतु प्रर्ोग कताा हं अथवा प्रर्ोग के करने मे िुफट होने पर प्रसतकू ल पररणाम िंभव हं।  रत्नो िे िंबंसधत जानकारी को मान ने िे प्राि होने वाले लाभ, हानी फक स्जडमेदारी कार्ाालर् र्ा िंपादक फक नहीं हं।  हमारे द्वारा पोस्ट फकर्े गर्े िभी मंि-र्ंि र्ा उपार् हमने िैकिोबार स्वर्ं पर एवं अडर् हमारे बंधुगण पर प्रर्ोग फकर्े हं स्जस्िे हमे हर प्रर्ोग र्ा मंि-र्ंि र्ा उपार्ो द्वारा सनस्ित िफलता प्राि हुई हं।  रत्न धारण करने िे पूवा फकिी जानकार ज्र्ोसतषी रत्न त्रवशेज्ञ की िलाह अवश्र्लं।  असधक जानकारी हेतु आप कार्ाालर् मं िंपका कर िकते हं। (िभी त्रववादो के सलर्े के वल भुवनेश्वर डर्ार्ालर् ही माडर् होगा।)
  • 7. 7 नवम्बर 2011 रत्नं का अद्भुत रहस्र्  सिंतन जोशी रत्नो के मानव प्रभाव जीवन पर पिने वाले शुभ- अशुभ प्रभाव एवं रत्नो की उपर्ोसगता को हजारो वषा पूवा हमारे त्रवद्वान ऋत्रष-मुसनर्ं ने अध्र्र्न कर जान सलर्ा था। उन ऋत्रष-मुसनर्ं ने अपने र्ोग बल एवं अफद्वसतर् अध्र्र्न िे प्राि ज्ञान को एकत्रित कर त्रवसभडन ग्रंथो एवं शास्त्रो की रिना की। हमारे मागादशान हेतु उन ऋत्रष- मुसनर्ं ने ग्रंथो मं रत्नं के त्रवसभडन उप्र्ोगीता एवं प्रभाव का त्रवस्तृत वणा भी फकर्ा। स्जििे मनुष्र् अपनी आवश्र्िा के अनुशार त्रवसभडन रत्नो के माध्र्म िे अपने कार्ा उद्देश्र् मं िफलता प्राि कर िके । ज्र्ोसतष त्रवद्वान एवं रत्न त्रवशेषज्ञ के मत िे रत्न घारण करने िे जीवन के त्रवसभडन क्षेिं मं इस्छित पररवतान फकर्ा जा िकता हं। क्र्ोफक रत्न त्रवज्ञान एक प्रिीन त्रवद्या हं। रत्नं के त्रवषर् मं मस्ण माला ग्रडथ मं उल्लेख हं:- मास्णक्र्म ् तरणेः िुजात्र्ममलम ् मुिाफलम ् शीतगोमााहेर्स्र् ि त्रवद्रुमो सनगफदतः िौम्र्स्र् गारुत्मतम ्। देवेज्र्स्र् ि पुष्परागमिुरािारूर्ािर् वज्रम ् शनेनीलम ् सनम्मालमडर्र्ोि गफदते गोमेदवैदूर्यर्ाके ॥ अथाात ्: ग्रहं के त्रवपरीत होने पर उडहं शाडत करने के सलए रत्न पहने जाते हं। िूर्ा के त्रवपरीत होने पर सनदोष मास्णक, िडद्र के त्रवपरीत होने पर उिम मोती, मंगल के सलए मूंगा, बधु के सलए पडना, बृहस्पसत के सलए पुखराज, शुक्रर के सलए हीरा, शसन को शाडत करने के सलए नीलम, राहु के सलए गोमेद एंव के तु के त्रवपरीत होने पर लिुसनर्ा घारण करना िाफहए। (मस्ण माला) धडर्म ् र्श्स्र्मार्ुष्र्म ् श्रीमद् व्र्िनिूदनम ्। हषाणम ् काम्र्मोजस्र्म ् रत्नाभरणधारणम ्॥ ग्रहदृत्रष्टहरम ् पुत्रष्टकरम ् दुःखप्रणाशनम ् । पापदौभााग्र्शमनम ् रत्नाभरणधारणम ्॥ (मस्ण माला) अथाात ्: रत्न जफित आभूषण को घारण करने पर िम्मान, र्श, फदधाार्ु, धन, िुख और धन मं वृत्रद्ध होती है तथा िभी प्रकार की इछिाओं की पूसता होती है। ऐिा करने िे ग्रह के त्रवपरीत प्रभाव कम होते हं शरीर पुष्ठ होता है तथा दुःख, पाप एंव दुभााग्र् का नाश होता हं। रत्नेन शुभेन शुभम ् भवसत नृपाणामसनष्तमशुभेन। र्स्मादतः परीक्ष्र्ं दैवं रत्नासश्रतम ् तज्ज्ञै॥ अथाात ्: शुभ, स्वछि व उिम श्रेणी के रत्न धारण करने िे राजाओं का भाग्र् शुभ तथा असनष्ट कारक रत्न पहनने िे अशुभ भाग्र् होता है। अतः रत्नं की गुणविा पर अवश्र् ध्र्ान देना िाफहए।
  • 8. 8 नवम्बर 2011 अपनी लाल फकताब कुं िली िे उपिार जासनर्े माि RS:- 450 दैवज्ञ को खूब जाँि-परखकर ही रत्न देना िाफहए, क्र्ंफक रत्न मं भाग्र् सनफहत होता है। प्रकृ सत ने मानुष्र् के त्रवसभडन त्रवकारो के सनवारण के सलए कु दरत के असत अनमोल उपहार के रूप मं त्रवत्रवध प्रकार के रत्न प्रदान फकए हं, जो हमं भूसम (रत्नगभाा), िमुद्र (रत्नाकर) आफद त्रवत्रवध स्त्रोतं िे प्राि होते हं। कौफटल्र्जी का कथन हं:- खसनः स्त्रोतः प्रकीणाकं ि र्ोनर्ः। अथाात ्:र्े रत्न हमारे हर त्रवकार को दूर करने मं िक्षम हं। िाहे त्रवकार भौसतक हो र्ा आध्र्ास्त्मक। फकिी रत्न त्रवशेष के बारे मं जानने िे पूवा मूल रत्नं को जानना आवश्र्क है। त्रवद्वानो ने मूल रत्नो फक िंख्र्ा 21 बताई हं। 1) हीरा (वज्र), 2) नीलम (इडद्रनील), 3) पुखराज 4) पडना (मरकत), 5) मास्णक, 6) (रुसधर रत्न, ) 7) वैदुर्ा, लहिुसनर्ा, 8) कटैला, 9) त्रवमलक (िमकीला रत्न) 10) राजमस्ण, 11) स्फफटक, 12) िडद्रकाडतमस्ण, 13) िौगस्डधक, 14) गोमेद, 15) शंखमस्ण, 16) महानील, 17) ब्रह्ममस्ण, 18) ज्र्ोसतरि, 19) िस्र्क, 20) मोती व 21) प्रवाल (मूँगा)। इन २१ रत्नो को भाग्र् वृत्रद्ध हेतु उिम एवं धारण करने र्ोग्र् माना गर्ा हं। िामाडर्तः एिी माडर्ता हं की पृथ्वी िे मूल रूप मं प्राि होने वाले प्रमुख रत्न 21 ही हं। लेफकन 21 मूल रत्नं के अलावा इनके 21 उपरत्न भी हं। त्रवद्वानो के मत िे रत्नं की िंख्र्ा 21 ही होने का कारण है। स्जि प्रकार मनुष्र् को दैफहक, दैत्रवक तथा भौसतक रूप िे तीन तरह की व्र्ासधर्ाँ िस्त करती हं उिी प्रकार िे इडहीं तीन प्रकार की उपलस्ब्धर्ाँ होती हं और इंगला, त्रपंगला और िुषुम्ना इन तीन नाफिर्ं िे इनका उपिार होता है। इिी प्रकार एक-एक ग्रह िे उत्पडन तीनं प्रकार की व्र्ासधर्ं एवं उपलस्ब्धर्ं को आत्मिात ् र्ा परे करने के सलए एक-एक ग्रह को तीन-तीन रत्न प्राि हं। ध्र्ान रहे, ग्रह भी मूल रूप िे माि िात ही हं। िूर्ा, िडद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शसन और राहु एवं के तु की अपनी कोई स्वतडि ििा न होने िे इनकी गणना मूल ग्रहं मं नहीं होती है। इडहं िार्ा ग्रह कहा जाता है। इि प्रकार एक-एक ग्रह के तीन-तीन रत्न के फहिाब िे िात ग्रहं के सलए 21 मूल रत्न सनस्ित हं। अस्तु, र्े मूल रत्न स्जि रूप मं पृथ्वी िे प्राि होते हं, उिके बाद इडहं पररमास्जात करके शुद्ध करना पिता है तथा बाद मं इडहं तराशा जाता है।
  • 9. 9 नवम्बर 2011 रत्नो की उत्पत्रि  सिंतन जोशी रत्नं का िंिार असत बहुत प्रािीन एवं अद्द्द्भुत हं। रत्नो की उत्पत्रि के त्रवषर् मं अनेको माडर्ताएं एवं कथाएं हं। वृहद िंफहता, भावप्रकाश, अस्ग्न पुराण, गरुि पुराण, रि रत्न िमुछिर्, आर्ुवेद प्रकाश, देवी भागवत, महाभारत, त्रवष्णु धमोिर आफद गंथो मं रत्नं का वणान फकर्ा गर्ा है। अस्ग्न पुराण: एक बार महाबली अिुरराज वृिािुर ने देवलोक पर आक्रमण कर फदर्ा। तब भगवान श्री त्रवष्णु ने इडद्र को िुझाव फदर्ा की महत्रषा दधीसि की हस्डिर्ं िे वज्र अस्त्र बनार्ा जाए। देवताओं की प्राथाना िुनकर महामुसन दधीसि ने अपना शरीर देवताओं को भेट स्वरुप दे फदर्ा। महत्रषा दधीसि की हस्डिर्ं िे इडद्र देव ने वज्र बनाकर फफर इिी वज्र िे देवताओं ने वृिािुर का वध फकर्ा। इडद्र द्वारा अस्त्र (वज्र) के सनमााण के िमर् दधीसि की अस्स्थर्ं के , जो अस्स्थर्ं के अंश पृथ्वी पर सगरे थे उनिे रत्नं की खानं बन गईं। कु ि त्रवद्वानो के मत िे उि अस्स्थर्ं के अंश पृथ्वी पर सगरने िे हीरे की खाने बन गईं। इि सलए हीरा िबिे असधक कठोर कोई पदाथा हं। िमुद्र मंथन की कथा : पुराण के अनुशार देवताओं और राक्षिं ने जब िमुद्र मंथन फकर्ा तब अमृत कलश प्रकट हुआ तो अिुर उि अमृत को लेकर भाग गए। देवताओं ने उनका पीिा फकर्ा और देवता व राक्षिं मं िीना-झपटी हुई स्जि मं अमृत की कु ि बूंदं िलक कर पृथ्वी पर सगरीं। कालांतर मं अमृत की र्े बूंदं समट्टी मं समलकर रत्नं मं पररवसतात हो गएं। दैत्र्राज बसल की कथा: भगवान त्रवष्णु ने वामन अवतार धारण करके दैत्र्राज बसल िे तीन पग भूसम माँगी। पहले पग मं पूरा ब्रह्मांि, दूिरे पग मं पाताल िफहत िमस्त पृथ्वी पर तीिरे पग मं दैत्र्राज बसल ने वामनजी को अपना शरीर अपाण कर फदर्ा। भगवान त्रवष्णु का पैर बसल के शरीर पर रखते ही बली का शरीर रत्नो का बन गर्ा। उिके बाद मं देवराज इडद्र ने बसल के शरीर के टुकिे़-टुकिे़ कर फदए। बसल के शरीर के टुकिे़ िभी अंगं िे अलग-अलग रंग-रूप व गुण के रत्न बन गए। फफर भगवान सशव ने उन रत्नं को अपने त्रिशूल पर स्थात्रपत करके फफर उन त्रिशूल पर नौ ग्रहं एवं बाहर रासशर्ं का प्रभुत्व स्थात्रपत फकर्ा। इिके बाद उडहँ पृथ्वी पर िार फदशाऑं मं सगरा फदर्ा। फलस्वरूप पृथ्वी पर त्रवसभडन रत्नं के भंिार उत्पडन हो गएं। कु ि त्रवद्वानो के मत िे राजा बसल शरीर के टुकिं िे 21 प्रकार के रत्नं का प्रादुभााव हुआ। तो कु ि त्रवद्वानो का मत हं की राजा बसल शरीर के टुकिं िे 84 प्रकार के रत्नं का प्रादुभााव हुआ था।  जहाँ बसल का रि सगरा वहाँ मास्णक्र् की उत्पत्रि हुई।  जहाँ बसल का मन, दांत सगरा वहाँ मोसत की उत्पत्रि हुई।  जहाँ बसल की अंतफिर्ं सगरी वहाँ मूंगे की उत्पत्रि हुई।  जहाँ बसल का त्रपि सगरा वहाँ पडना की उत्पत्रि हुई।  जहाँ बसल का मांि सगरा वहाँ पुखराज की उत्पत्रि हुई।  जहाँ बसल का हस्डिर्ां सगरी वहाँ हीरे की उत्पत्रि हुई।  जहाँ बसल का नेि सगरी वहाँ सनलम की उत्पत्रि हुई।
  • 10. 10 नवम्बर 2011 आिार्ा वराहसमफहर ने अपने ग्रंथ वृहद्द्िंफहता मं 21 रत्नं की उत्पत्रि का कारक दैत्र्राज बसल को माना हं। उिके पिात देवताओं के कल्र्ाण के सलए अपनी अस्स्थर्ां दान कर देने वाले महत्रषा दधीिी की हस्डिर्ं िे भी अनेक रत्नं की उत्पत्रि हुई। उि कथा को ित्र् मानना आज आज के आधुसनक र्ुग मं कफठन हो जाता हं। आजकी आधुसनक शैक्षस्णक पद्धसत िे सशक्षा ग्रहण कर िूके त्रवद्वान व जानकारो की माने तो र्ह िंभंव ही नही हं, क्र्ोकी की कै िे फकिी के शरीर के सभडन फहस्िे जैिे खून िे मास्णक्र्, दांत िे मोसत, आंत िे मूंगा, त्रपि िे पडना आफद बन िकता हं? मोसत का सनमाण तो िमुद्र मं एक त्रवशेष प्रकार के जीव द्वारा होता हं। मूंगा भी एक प्रकारका जैत्रवक रत्न हं जो िमुद्र मं एक त्रवशेष प्रकार के कीिे होते हं जो अपने सलए घर बनाते हं, उिी को मूंगा कहा जाता हं। इि के अलावा प्रार्ः अडर् िभी रत्न खसनज रत्न हं जो पृथ्वी के गभा िे प्राि होते हं। र्फह कारण हं की उि कथा को ित्र् मानना कफठन हं। क्र्ोफक उिे ित्र् मानने हेतु आज हमारे पाि पर्ााि पुरावे व जानकारीर्ं का अभाव हं। उि कथाओं को पुराणं मं उल्लेस्खत कथा र्ा जानकारी के सलर्े पढीं व मानी जा िकती हं लेफकन वास्तत्रवकता जोिना मुस्श्कल हो िकता हं। क्र्ोफक आज का िमर् वैज्ञासनक सिद्धांतो एवं तथ्र्ो पर आधारीत हो गर्ा हं। आज त्रवज्ञान मं हर फदन नर्े-नर्े शोध कार्ा एवं प्रर्ोग होते हं। स्जिका पररणाम र्ह हं की आज हर पीला फदखने वाला रत्न पुखराज नहीं होता। हर पीला फदखने वाले रत्न जैिे पुखराज, िुनहला, टोपाज़ आफद मं अंतर करने मं िमथा हं। वैज्ञासनक मत िे कोई पत्थर रत्न तब कहलाता हं जब वहं िामाडर् पत्थरो िे अलग कु ि त्रवशेष प्रकार के तत्व र्ुि होता हं तब वहं एक त्रवशेष रत्न कहलाता हं। हर रत्न की एक त्रवशेषताएं होती हं जो उिे अडर् रत्न िे अलग करता हं। वैज्ञासनक मत हं की पृथ्वी के गभा मं अस्ग्न के प्रभाव िे पदाथा के त्रवसभडन तत्व रािार्सनक प्रफक्रर्ा द्वारा रत्न बन जाते हं। र्ही कारण हं की हर रत्न त्रवशेष प्रकार के त्रवसभडन रािार्सनक र्ौसगक मेल िे बनता हं। फकिी एक रािार्सनक तत्व िे रत्न नहीं बन िकता। स्थान की सभडनता िे त्रवत्रवध रािार्सनक तत्वं के िंर्ोग की सभडनता के कारण ही रत्नं के रंग, रूप, कठोरता व िमक मं अंतर होता हं। गणेश लक्ष्मी र्ंि प्राण-प्रसतत्रष्ठत गणेश लक्ष्मी र्ंि को अपने घर-दुकान- ओफफि-फै क्टरी मं पूजन स्थान, गल्ला र्ा अलमारी मं स्थात्रपत करने व्र्ापार मं त्रवशेष लाभ प्राि होता हं। र्ंि के प्रभाव िे भाग्र् मं उडनसत, मान-प्रसतष्ठा एवं व्र्ापर मं वृत्रद्ध होती हं एवं आसथाक स्स्थमं िुधार होता हं। गणेश लक्ष्मी र्ंि को स्थात्रपत करने िे भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी का िंर्ुि आशीवााद प्राि होता हं। Rs.550 िे Rs.8200 तक
  • 11. 11 नवम्बर 2011 ज्र्ोसतष, अंक ज्र्ोसतष के अनुशार लाभदार्क रत्न धारण कर जीवन मे त्रवसभडन क्षेि मं ििलता प्राि की जा िकती हं। रत्न परामशा शुल्क माि Rs:450/- गुरुत्व कार्ाालर् िंपका : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785. रत्न धारण िे असभष्ट कार्ासित्रद्ध  सिंतन जोशी ग्रहं के असनष्ट प्रभाव को दूर करने के सलए हमारे देश मं रत्न धारण करने की प्रणाली प्रािीन काल िे प्रिसलत है। आिार्ा वाराहसमफहर ने बृहत्िंफहता मं रत्नं तथा उनके गुण-दोष का त्रवस्तार िे वणान फकर्ा हं। त्रवद्वानो के मत िे रत्न धारण करने के पीिे वैज्ञासनक रहस्र् सिपा हं। प्रार्ः आजके आधुसनक र्ुग मं िभी लोग इि बात िे भली-भांसत पररसित हं की िौरमंिल की रस्श्मर्ं का प्रभाव रत्नो के रंग, रुप, आकार, प्रकार एवं उिके गुणो को सनरंतर प्रभात्रवत करता रहता हं। इिी कारण एक िमान गुण वाली रस्श्मर्ं के कारक ग्रह के प्रभाव वृत्रद्ध हेतु व्र्त्रि को उिी प्रकार की रस्श्म िे उत्पडन रत्न धारण करवा कर शुभ पररणाम प्राि फकए जाते हं। र्फद प्रसतकू ल प्रभाव के व्र्त्रि को त्रवपरीत प्रभावशाली रस्श्मर्ं मं उत्पडन रत्न धारण करवार्ा जाए, तो वह रत्न व्र्त्रि के सलए अशुभ पररणाम देता हं। र्फह कारण हं रत्न धारण करने िे पूवा जडम कुं िली मं ग्रहो के अनुकू ल एवं प्रसतकू ल प्रभाव को जांि लेना िाफहए। क्र्ोफक रत्नं को धारण करने के सलए कु ि त्रवशेष सिद्धांत होते हं। स्जिका त्रवस्तृत वणान हमारे त्रवद्वान ऋत्रष-मुसनर्ं ने ग्रंथो एवं शास्त्रं मं फकर्ा हं। रत्न धारण का मुख्र् सिद्धांत हं की स्जि ग्रह िे िंबंसधत रत्न धारण फकर्ा जाता हं, उि ग्रह का बल प्राि करना। रत्न का कारक ग्रह (िंबंसधत ग्रह) उि व्र्त्रि की जडम कुं िली िे इि रत्न को धारण करने िे बल प्राि कर लेता हं। रत्न धारण द्वारा िंबंसधत ग्रह फक रस्श्म उि रत्न मं होती हं एवं धारण करने िे व्र्त्रि के शरीर मं प्रवेश करती हं। और ग्रह िे प्राि पीिा एवं कष्टं मं कमी होने लगती हं। रोगं िे बिने हेतु फकि ग्रह का रत्न धारण करना िाफहए इि त्रवषर् मं त्रवद्वानो का मत हं की रोगं िे मुत्रि हेतु लग्नेश अथाात लग्न के स्वामी का ग्रह का रत्न धारण करना उसित होता हं। लग्नेश का रत्न व्र्त्रि के शरीर मं प्रसतरोधक क्षमता मं वृत्रद्ध करता हं स्जििे रोग िे व्र्त्रि को कम िे कम हासन करता हं और जल्द स्वस्थ करने हेतु मदद करता हं एवं भत्रवष्र् मं रोग िे बिाता हं। अतः रोगं के आग्रमण िे बिने हेतु व्र्त्रि को अपने लग्नेश का रत्न अवश्र् पहनना िाफहए। क्र्ोफक प्रसतरोधक क्षमता उिम स्वास्थ्र् का लक्षण हं। कु ि ज्र्ोसतष त्रवद्वानो के मत िे व्र्त्रि की जडम कुं िली मं वतामान िमर् मं स्जि ग्रह की महादशा र्ा अंतरदशा िल रही हो, र्ा जो ग्रह प्रसतकू ल हो उिका रत्न धारण करना िाफहए। ऎिा करने िे ग्रह के असनष्ट प्रभाव मं कमी आती हं और रोग शांत होने लगते हं।
  • 12. 12 नवम्बर 2011 त्रवशेषज्ञ की िलाह िे ही करं रत्न धारण  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी जानकारो की माने तो अपने व्र्त्रित्व मं सनखार और जीवन मं िफलता के सलए व्र्त्रि को लग्नेश और त्रिकोणेश अथाात पंिमेश और नवमेश के रत्न धारण करने िाफहए। उनकी माने तो लग्नेश, पंिमेश एवं नवमेश के रत्न धारण करने िे भाग्र्ोदर् तीव्र गसत िे होता हं, लेफकन इि त्रवषर् मं मतभेद हं कु ि ज्र्ोसतष का मत है फक र्फद लग्नेश नीि रासश स्स्थत मं स्स्थत हो, र्ा त्रिकोणेश हो, तो उनके रत्न धारण नहीं करने िाफहए। कु ि ज्र्ोसतषी त्रवद्वानो ने अपने अध्र्र्न मं पार्ा हं की र्फद लग्नेश, पंिमेश एवं नवमेश नीि का हो, तबभी उिका रत्न लाभकारी सिद्ध होता हं। महत्रषा वराहसमफहर एवं अडर् प्रािीन आिार्ं ने अपने ग्रंथो मं उल्लेख फकर्ा हं की र्फद जडम कुं िली मं पंि महापुरुष, राजर्ोग बन रहा हो, तो जडम कुं िली मं राज र्ोग बनाने वाले ग्रह का रत्न लाभकारी होता हं। ज्र्ोसतष मं पंि महा पुरुषर्ोग 1) रूिक र्ोग 2) भद्र र्ोग 3) हंि र्ोग 4) मालव्र् र्ोग 5) षष र्ोग र्ह तो िभी ज्र्ोसतषी जानते हं फक र्फद गुरु, शुक्र, बुध, मंगल, र्ा शसन जडम लग्न िे कं द्र मं स्वग्रही, र्ा उछि का हो, तो मंगल िे रूिक, बुध िे भद्र, गुरु िे हंि, शुक्र िे मालव्र् एवं शसन िे शश पंि महापुरुष राजर्ोग बनते है। अतः राजर्ोगकारी ग्रह का रत्न लाभकारी सिद्ध होगा। र्फद फकिी की जडमपत्रिका मं उपर्ुाि पंि महापुरुष राजर्ोग हो, तो उि ग्रह की महादशा मं उिका रत्न धारण करना िाफहएं, जैिे, मंगल िे रूिक र्ोग मं मूंगा, बुध िे भद्र र्ोग मं हरा पडना, गुरु िे हंि र्ोग मं पीला पुखराज, शु़क्र िे मालव्र् र्ोग मं िफे द हीरा, शसन िे शश र्ोग मं नीलम। त्रवद्वानो के अनुशार अष्टेश (अष्टम भाव के स्वामी ग्रह) का रत्न धारण नहीं करना िाफहए। रत्न धारण करते िमर् र्ह िावधानी अवश्र् रखे। 1) मेष लग्न वाले जातक का मंगल अष्टमेश होता है, तो उडहं मूंगा धारण नहीं करना िाफहए। 2) वृष लग्न वाले जातक का गुरु अष्टमेश होता है, तो उडहं पीला पुखराज धारण नहीं करना िाफहए। 3) समथुन लग्न वाले जातक का शसन अष्टमेश होता है, तो उडहं नीलम धारण नहीं करना िाफहए। 4) कका लग्न वाले जातक का शसन अष्टमेश होता है, तो उडहं नीलम धारण नहीं करना िाफहए। 5) सिंह लग्न वाले जातक का गुरु अष्टमेश होता है, तो उडहं पीला पुखराज धारण नहीं करना िाफहए। 6) कडर्ा लग्न वाले जातक का मंगल अष्टमेश होता है, तो उडहं मूंगा धारण नहीं करना िाफहए। 7) तुला लग्न वाले जातक का शुक्र अष्टमेश होता है, तो उडहं हीरा धारण नहीं करना िाफहए। 8) वृस्िक लग्न वाले जातक का बुध अष्टमेश होता है, तो उडहं पडना धारण नहीं करना िाफहए। 9) धनु लग्न वाले जातक का िंद्र अष्टमेश होता है, तो उडहं मोसत धारण नहीं करना िाफहए। 10)मकर लग्न वाले जातक का िूर्ा अष्टमेश होता है, तो उडहं मास्णक धारण नहीं करना िाफहए। 11) कुं भ लग्न वाले जातक का बुध अष्टमेश होता है, तो उडहं पडना धारण नहीं करना िाफहए। 12)मीन लग्न वाले जातक का शुक्र अष्टमेश होता है, तो उडहं हीरा धारण नहीं करना िाफहए। महत्रषार्ं ने अपनी खोज मं पार्ा है फक स्जि रत्न का रंग स्जतना गहरा होगा वह उतना ही लाभकारी होगा। अतः धारण करने िे पूवा इि बात का अवश्र् ध्र्ान रखे।
  • 13. 13 नवम्बर 2011 रत्नो का नामकरण  त्रवजर् ठाकु र महत्रषा वाराहसमफहर नं भारतीर् प्रासिन ज्र्ोसतष शास्त्र के प्रमुख ग्रंथो मं बृहत्िंफहता की रिना की स्जिमं रत्नो के गुण- दोष का त्रवस्तार िे वणान हं। त्रवद्वानो के मतानुशार अभी तक हुए शोधा कार्ा मं ज्र्ोसतष एवं रत्न शास्त्र मं रुसि रखने वाले लोगो के सलर्े बृहत्िंफहता अत्र्ंत महत्वपूणा एवं प्रामास्णक शास्त्र सिद्ध हुवा हं। क्र्ोफक महत्रषा वाराहसमफहर ने स्जन मुख्र् रत्नं का उल्लेख फकर्ा हं, उििे ज्ञात होता हं की आज हम स्जन प्रमुख रत्नो को जानते हं उन रत्नो को पुरातन काल िे र्ा उििे पूवा िे र्ह रत्न अवश्र् उपलब्ध थे एवं उन रत्नो को त्रवसभडन उद्देश्र् के सलर्े प्रर्ोग मं सलर्ा जाता था। त्रवद्वानो के अनुशार अभी तक प्राि हुवे पुरातन शास्त्र एवं ग्रंथो मं स्जतने रत्नो का वणान समलता हं उि िब िे असधक िंख्र्ा मं रत्नो का उल्लेख बृहत्िंफहता मं फकर्ा गर्ा हं। बृहत्िंफहता मं स्जन स्जन रत्नो का वणान फकर्ा गर्ा हं। उन रत्नो को िुख, िमृत्रद्ध, वैभव एवं िंपडनता का िूिक मानागर्ा हं। बृहत्िंफहता मं वस्णात रत्नं की तासलका र्हा प्रस्तुत हं:- 1) वज्र 2) पद्मराज 3) त्रवमलक 4) मरकत 5) वैदूर्ा 6) स्फफटक 7) िौगस्डधक 8) इडद्रनील 9) रुसधर 10) राजमस्ण 11) गोमेद 12) पुष्पराग 13) मुिा 14) िम्र्क 15) शंख 16) कके टक 17) पुलक 18) शसशकाडत 19) महानील 20) ज्र्ोसतरि 21) ब्रह्ममस्ण 22) प्रवाल बृहत्िंफहता के अलावा अडर् कई ग्रडथो मं रत्नो का उल्लेख प्राि होता हं। महत्रषा वाराहसमफहर द्वारा प्राि जानकारी को आधार बनाकर कालांतर मं अडर् त्रवद्वानो मं अपनी रुसि रत्नं की और अग्रस्त की होगी और शोध अध्र्र्न के पिर्ात उिे सलखा होगा। स्जि कारण िमर् के िाथ-िाथ रत्नो की उपर्ोसगता, िंदर्ा, गुण, औषधीर् प्रभाव, दुलाभता आफद िे लोग पररसित होने लगे। पुरातन काल मं रत्न मूल्र्वान होने के कारण िामाडर् वगा लोगो की अपेक्षा के वल िंपडन लोग ही रत्नो का व्र्वहार कर पाते थे। लेफकन िमर् बदला और आज के आधुसनक दौर मं कु दरसत रत्नो के िाथ-िाथ कृ त्रिम रत्न भी िामानर् वगा के लोगो के सलर्े उप्लब्ध होने लगे हं, आज भी बहुमूल्र् एवं फकमती रत्नो की मांग दुसनर्ा भर मं िमर् के िाथ मं बढती जा रही हं। रत्न एवं उपरत्न हमारे र्हां िभी प्रकार के रत्न एवं उपरत्न व्र्ापारी मूल्र् पर उपलब्ध हं। ज्र्ोसतष कार्ा िे जुिे़ बधु/बहन व रत्न व्र्विार् िे जुिे लोगो के सलर्े त्रवशेष मूल्र् पर रत्न व अडर् िामग्रीर्ा व अडर् िुत्रवधाएं उपलब्ध हं। GURUTVA KARYALAY Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
  • 14. 14 नवम्बर 2011 मास्णक्र्  सिंतन जोशी िूर्ा का रत्न मास्णक्र् िूर्ा ग्रह के शुभ फलं की प्रासि हेतु धारण फकर्ा जाता हं। मास्णक्र् त्रवसभडन भाषाओ मे सनम्न सलस्खत नामो िे जाना जात है। फहडदी मे :- िुस्डन, मास्णक्र्, लाल मस्ण, िस्कृ त मे :- पद्मराग मस्ण, मास्णक्र्म, िोणमल, कु रत्रवंद, विुरत्न, िोगोधक, स्त्रोण्रत्न, रत्ननार्क, लक्ष्मी पुष्प, िारिी मे :- र्ाकू त, अरबी मे :- लाल बदपशकसन लेफटन मे :- रुबी, निा, मास्णक्र् मं लाल रंग की आभा होती हं। मास्णक्र् लाल रंग के अलावा अडर् रंग गुलाबी, काला और नीले रंग की आभा वाले भी पार्े जाते हं। मास्णक्र् खसनज रत्नो मं िे एक रत्न हं। रि के िमान लाल रंग की आभा त्रबखेरने वाला मास्णक्र् असत मूल्र्वान एवं उिम होता हं। बाजार मं बमाा मास्णक्र् की मांग िबिे असधक होती हं। अलग- अलग स्थानं िे प्राि मास्णक्र् के रंगं मं सभडनता होती हं। जानकारो के मत िे बमाा मं मास्णक्र् की खदानं िबिे पुरातन हं। अभी तक प्राि मास्णक्र् मं िबिे उिम मास्णक्र् बमाा िे ही प्राि हुए हं। र्फह कारण हं की बमाा के मास्णक्र् की कीमत और मांग अंतरात्रिर् बाजारो मं िबिे असधक होती है। मास्णक्र् के लाभ:  मास्णक्र् धारण करने िे व्र्त्रि का मन प्रिडन रहाता हं एवं उत्िाह और उमंग मं वृत्रद्ध होती हं।  कु ि त्रवद्वानो के मत िे मास्णक्र् प्रेम बढाने वाला रत्न मानते हं।  मास्णक्र् सनराशा और उदािीनता को दूर करता हं।  मास्णक्र् भूत-प्रेत आफद शुद्र बाधाओं िे मुत्रि फदलाता हं।  मास्णक्र् िंतान िुख की प्रासि हेतु उिम माना गर्ा हं।  मास्णक्र् धारण करने िे आसथाक स्स्थसत मं िुधार होता हं और त्रवसभडन स्तोि िे धन प्राि होता हं।  मास्णक्र् धारण करने व्र्त्रि की िमाज मं मान-िम्मन एवं प्रसतत्रष्ठत मं सनरंतर वृत्रद्ध होती हं।  मास्णक्र् जहर के प्रभाव को कम करता हं एवं जहरीली वस्तु पाि होने पर इिक रंग फीका फदखने लगता हं।  पस्िसम देशं मं ऎिी माडर्ता हं की मास्णक्र् त्रवष को दूर करता हं, मास्णक्र् महामारी जैिे प्लेग आफद िे रक्षा करता हं।  मास्णक्र् धारण करने िे व्र्त्रि के दुख को दूर करता हं।  मन मं नकारात्मक त्रविारं को आने िे रोकता हं।  एिा माना जाता हं की र्फद फकिी व्र्त्रि ने मास्णक्र् धारण फकर्ा हो, तो उि पर त्रवपत्रि आने पर, उिका रंग बदल जाता हं (फीका हो जाता हं) अथाात मास्णक्र् त्रवपत्रिर्ं के आने िे पूवा िंके त देता हं और िंकट टल जाने पर पुन: मास्णक्र् की आभा पूवावत हो जाती हं।
  • 15. 15 नवम्बर 2011 माडर्ता:  जो मास्णक्र् िूर्ा की फकरण पिने िे लाल रंग त्रबखेरता है वह िवोिम होता हं।  उछि कोफट के मास्णक्र् की पहिान है फक मास्णक्र् को दूध मं बार-बार िुबोने िे दूध मे मास्णक्र् की आभा फदखने लगती हं।  अंधेरे कमरे मं रखने पर र्ह िूर्ा के िमान प्रकाशमान होता हं।  मास्णक्र् को कमाल की कली पर रखे तो कली तुरंत ही स्खल उठती हं।  मास्णक्र् को र्फद ििे द मोसतर्ं के बीि रखे तो मोती मास्णक्र् के रंग के हो जाते हं। मास्णक्र् और आध्र्ात्म:  मास्णक्र् पहन कर िूर्ा उपािना करने िे िूर्ा पूजा का फल मं वृत्रद्ध हो जाती है।  रंग सिफकत्िा का मूल आधार हं की रंगं की रस्श्मर्ां घनीभूत होती हं। हृदर् और रत्न: िूर्ा व्र्र् का प्रसतसनसध है। रत्नं मं वह मास्णक्र् का प्रसतसनसध है। इिसलए व्र्त्रि को िूर्ा को बल देने के सलए मास्णक्र् धारण करना िाफहए। मास्णक्र् हृदर् के िभी प्रकार के कष्टं अथवा रोगं को दूर करता हं। मास्णक्र् की त्रपष्टी और भस्म दोनं औषसध के रूप मं उपर्ोग मं आते हं। मास्णक्र् के दोष 1. स्जि मास्णक्र् मं दो रंगं आभा हो उिे धारण करने िे त्रपता को कष्ट प्राि होता हं। अत: दो रंगं िे र्ुि मास्णक्र् धारण नहीं करना िाफहए 2. स्जि मास्णक्र् मं मकिी के िमान जाले नजर आते हो इि प्रकार के मास्णक्र् को धारण करने िे धारणकताा कई प्रकार के कष्टं िे पीफित हो जाता है 3. गार् के दूध के िमान रंग वाले मास्णक्र् को धारण करने िे धन का नाश होता हं और ह्रदर् मं उद्धत्रवग्नता रहती है 4. स्जि मास्णक्र् का रंग धुऐं के िमान हो ऐिे मास्णक्र् को धारण करने िे त्रवसभडन प्रकार काष्ट और िंकटो का िामना करना पिता हं। 5. काले रंग का मास्णक्र् धन नाश और अपर्श देने वाला होता हं। 6. स्जि मास्णक्र् मं दोष हो ऐिे मास्णक्र् को धारण करने िे त्रवसभडन प्रकार के रोग, व्र्ासध और आकस्स्मक दुघाटनाओं की िम्भावना असधक रहती हं। अत: मास्णक्र् धारण करने िे पहले इिके दोषं को परख लेना िाफहए। मास्णक्र् के गुण:  मास्णक्र् रिवधाक, वार्ुनाशक और उदर रोग मं लाभकारी होता हं।  मास्णक्र् नेि ज्र्ोसत को बढ़ाने वाला हं तथा अस्ग्न, कफ, वार्ु तथा त्रपि दोष का शमन करता है।  मास्णक्र् के भस्म के िेवन िे आर्ु की वृत्रद्ध होती हं।  मास्णक्र् मं वात, स़्पि, कफ जसनत रोग को शांत करने की शत्रि होती हं।  मास्णक्र् क्षर् रोग, बदन ददा, उदर शूल, िक्षु रोग, कब्ज आफद रोग को दूर करता हं।  मास्णक्र् की भस्म शरीर मं उत्पडन होने वाली उष्णता और जलन को दूर करती हं। बृहत्िंफहता के अलावा आर्ुवेद के प्रसिद्ध ग्रंथ भाव प्रकाश, आर्ुवेद प्रकाश एवं रि रत्न िमुछिर् के अनुिार मास्णक्र् किैले स्वाद का और मीठा रि प्रधान रत्न हं। Ruby (Old Berma) Ruby–2.25" Rs. 12500 Ruby–3.25" Rs. 15500 Ruby–4.25" Rs. 28000 Ruby-5.25" Rs. 46000 Ruby-6.25" Rs. 82000 ** All Weight In Rati GURUTVA KARYALAY 91 + 9338213418, 91 + 9238328785,
  • 16. 16 नवम्बर 2011 मोती  सिंतन जोशी िंद्र का रत्न मोती िंद्र ग्रह के शुभ फलं की प्रासि हेतु धारण फकर्ा जाता हं। मोती को िंद्र रत्न माना गर्ा है। मोती त्रवसभडन भाषाओ मे सनम्न सलस्खत नामो िे जाना जात है। फहडदी मे :- मोती, मुिा िस्कृ त मे :- मुिा, िौम्र्ा, नीरज, तारका, शसशरत्न, मौत्रिक, तारा, स्वप्निार, इडदुरत्न, मुिाफल, शूसलज, शोत्रिक, शसशत्रप्रर्, जीवरत्न, त्रबडदुफल, शुत्रिमस्ण, रिाईभव, िौफकतक, मूवााररद आफद। िारिी मे :- मुखाररद, अरबी मे :- मुखाररद, लेफटन मे :- मागोररटा अंग्रेजी :- पला मोती की उत्पत्रि प्रार्ः मोती स्वेत रंग का ही होता हं। स्वेत रंग के अलावा गुलाबी, लाल, पीले, नीले, काले, हरे आफद रंगो मं भी पार्े जाते हं। मोती एक जैत्रवक रत्न होता है। क्र्ोफक मोती का सनमााण भी िमुद्र मं िीप/सिप मं होता है। िमुद्र मं एक त्रवशेष प्रकार का जीव होता हं स्जिे घंघा (मूिेल) नाम िे जाना जाता हं। र्ह घंघा िीप के अंदर अपना घर बनाकर रहता है। मोती के त्रवषर् मं एिी माडर्ता है की जब िंद्रमा स्वासत नक्षि मं होता हं तब पानी की टपकने वाली बूंद जब घंघे के खुले हुए मुंह मं पिती है तब मोती का जडम होता है। लेफकन एिा बहोत कम होत हं। ज्र्ादातर मोती रेत के कण र्ा कोई िोटे जीव िे बनते हं। वैज्ञासनक मत िे घंघा के शरीर पर घागे के िमान अंग होते हं। स्जिकी मदद िे वह अपने आपको बिी सशला/ पत्थर पर जलीर् स्थानं मं अपने आपको सिपकाता हं। घंघा जल मं एक बषा मं दो ऋतु मं जडम लेते हं। जानकारो की माने तो जो घंघा बिी सशला का िहारा प्राि कर लेते हं वहीं घंघा इि र्ोग्र् होता हं की वह मोसत बना िकते हं। घंघा मांि के दो आवरण के अंदर होता हं स्जिे मेण्टल कहा जाता हं। र्ह मेण्टल िूक्ष्म ििं िे ढंका होता हं, स्जिमं एक त्रवशेष प्रकार के कठोर पदाथं के समश्रण को सनकालने की क्षमता होती हं। र्ह समश्रण जमा होते-होते धीरे-धीरे िीप का रुप ले लेता हं। र्ह िीत्रपर्ां हर घंघे को ढंककर रखती हं और उिकी रक्षा करती हं। घंघा अपनी आवश्र्िा के अनुशार जरुरत पिने पर िीप को खोलकर अपना भोजन प्राि करके िीप को पुनः बंध कर लेता हं। प्रार्ः िीप मं िार पते होती हं। र्ह िारं पते बहोत धीरे-धीरे बनती हं एवं त्रवसभडन परतं िे पिते हुए प्रकाश की रस्श्मिे मोती मं िुंदरता आती हं। घंघा उि फक्रर्ाओं िे अपने सलर्े िीप मं घर बना लेता हं। जब कोई सभडन पदाथा जैिे रेत के कण र्ा फकिा, घंघे के शरीर िे लग जाता हं तो घंघा इि कण िे मुत्रि पाने के सलर्े पूणा कोसशश करता हं और कभी िफल तो कभी अिफल होता हं। जब घंघा अिफलता प्राि करता हं, तब घंघा उि कण को िीप मं मौजुद पदाथो िे उिे ढंकने की कोसशश करता हं और उि पर परत दर परत िढाता हं। स्जि पदाथा िे िीप बनती हं उिी पदाथा को वह उि कण पर िढाता हं। िमर् के िाथ र्ह परते मोसत का पूणा रुप धारण कर लेता हं। मोती का आकार सभडन-सभडन होते हं। मोती गोल, अण्िाकार, नािपसत आफद असनर्समत आकार के होता हं।
  • 17. 17 नवम्बर 2011 घंघा ने बनार्े िीप र्ा मेण्टल के त्रबि मं जब कोई सिपकने वाला कीिा फि कर िेद कर देता हं तब जो मोती बनते हं वह िीप िे सिपक जाते हं। उन मोतीर्ं को िीप िे काटकर सनकाल ना पिता हं। इि तरह प्राि होने वाले मोती िपटे एवं असनर्समत आकार के होते हं। स्जडहं त्रबल्स्टर पला कहा जाता हं। गोल मोती िे उनका मूल्र् कम होता हं। माडर्ता के अनुशार मोती त्रवशेष रुप िे अपने प्राकृ सतक रूप मं प्राि होता है। मोती घंघे मं गोल, अण्िाकार अथवा टेढ़ा-मेढ़ा जैिा भी बनता हं, वह उिी रूप मं उपलब्ध होता हं। अडर् रत्नं की भांसत इिकी कफटंग तथा पॉसलि आफद नहीं की जाती हं। मोती को माला मं त्रपरोने के सलए इनमं सिद्र ही फकर्े जाते हं। लेफकन आज िमर् के िाथ आधुसनक उपकरणो एवं नवीनतम तकसनको की मदद िे मोती को पॉसलि अवश्र् फकर्ा जाता हं। र्फद फकिी मोती का आकार गोल व अंिाकर र्ा टेढ़ा-मेढ़ा होने के उपरांत उिका कोई एक फहस्िा नुकीला हो तो उिे काटकर पॉसलि कर उिकी उपरी परतो को हटा फदर्ा जाता हं। र्ह फक्रर्ा िभी नुकीले मोती मं िंभव नहीं होती कु ि ही मोतीर्ं मं िंभव हो पाती हं। मोती के लाभ:  त्रवद्वान ज्र्ोसतषीर् के अनुिार स्जन लोगं का मन अशांत रहता हं और स्जनको असधक क्रोध आता है उडहं मोती धारण करने िे त्रवशेष लाभ प्राि होते हं।  मोती मान की एकाग्रता बढ़ाता हं एवं मानसिक शांसत प्रदान करने मे िहार्क होता हं।  मोती धारण करने िे व्र्त्रि को मान-प्रसतष्ठा एवं धन, ऎश्वर्ा एवं वैभव की प्रासि होती हं।  मोती रोगं को नाश करने मं भी िहार्क होता हं।  ज्वर मं मोती धारण करना लाभप्रद रहता हं।  र्ह हृदर् गसत को सनर्ंिण करने मं िहार्क होता हं।  मोती आंिशोथ, अल्िर एवं पेट एवं आफद बीमाररर्ं मं लाभदार्ी होता हं।  ऐिी माडर्ता है, फक जो व्र्त्रि शुद्ध मोती धारण करते हं उि पर देवी लक्ष्मी प्रिडन रहती हं और उिे धन का अभाव नहीं होता।  मोती दाम्पत्र् िम्बडध मं िुधार लाने मं भी लाभदार्क होता हं।  धन प्रासि के सलए पीले रंग की आभा वाला मोती धारण करना लाभदार्क होता हं।  बौत्रद्धक क्षमता मं वृत्रद्ध के सलए लाल रंग की आभा वाला मोती धारण करना लाभदार्क होता हं।  मान-िम्मान एवं प्रसित्रद्ध के सलर्े िफे द रंग की आभा वाला मोती धारण करना लाभदार्क होता हं।  ईश्वरीर् कृ पा प्रासि के सलए नीले रंग की आभा वाला मोती धारण करना लाभदार्क होता हं। माडर्ता:  कांि के सगलाि मं पानी िाल कर उिमं मोती रखा जाता है. अगर इि पानी िे फकरण सनकल रही हं तो मोती को अिली िमझा जाता है.  समट्टी के बरतन मं गौमूि िालकर उिमं मोती रखा जाता है. रातभर मोती को इिी बरतन मं रखा जाता है. िुबह मोती को देखा जाता है. मोती पर इि उपार् का कोई प्रभाव नहीं पिा हं और मोती अंखि हं तो मोती को अिली िमझा जाता है.  मोती को अनाज के भूिे िे जोर िे रगिा जाता है. मोती के नकली होने पर उिका िूरा हो जाता है. मोती पर कोई प्रभाव नहीं पि रहा हं तो र्ह मोती अिली होता है  इि उपार् के अडतगात मोती को शुद्ध गािे घी मं कु ि देर के सलर्े रखा जाता है. अगर मोती अिली होने पर घी के त्रपघलने की िंभावनाएं बनती हं। मोती के दोष  र्फद मोती टूटा हुआ हो, तो एिा मोती पहनने िे मन मं िंिलता व्र्ाकु लता व कष्ट फक वृत्रद्ध होती हं।
  • 18. 18 नवम्बर 2011  क्र्ा आपके बछिे कु िंगती के सशकार हं?  क्र्ा आपके बछिे आपका कहना नहीं मान रहे हं?  क्र्ा आपके बछिे घर मं अशांसत पैदा कर रहे हं? घर पररवार मं शांसत एवं बछिे को कु िंगती िे िु िाने हेतु बछिे के नाम िे गुरुत्व कार्ाालत द्वारा शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान िे मंि सिद्ध प्राण-प्रसतत्रष्ठत पूणा िैतडर् र्ुि वशीकरण कवि एवं एि.एन.फिब्बी बनवाले एवं उिे अपने घर मं स्थात्रपत कर अल्प पूजा, त्रवसध-त्रवधान िे आप त्रवशेष लाभ प्राि कर िकते हं। र्फद आप तो आप मंि सिद्ध वशीकरण कवि एवं एि.एन.फिब्बी बनवाना िाहते हं, तो िंपका इि कर िकते हं। GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,  र्फद मोती मं िमक न हो तो उि मोती को धारण करने िे सनधानता आती हं।  र्फद मोती मं गडढा हो, तो एिा मोती स्वास्थर् एवं धन िम्पदा को हासन पहुँिाने वाला होता हं।  र्फद मोती िंि के जैिा आकार हो र्ा उि पर दाग- धब्बे हो, तो एिा मोती धारण करने िे पुि िे िंबंसधत कष्ट होता हं।  र्फद मोती िपटा हो तो, वह मोती िुख िौभाग्र् का नाश करने वाला व सिंता बढाने वाला होता हं।  र्फद मोती पर िोटे काले दाग तो, एिा मोती धारण करने िे स्वास्थर् फक हासन होती हं।  र्फद मोती पर रेखाएं हो तो, एिा मोती धारण करने िे र्श एवं ऐश्वर्ा की हासन होती हं।  र्फद मोती के िारं तरफ गोल रेखा हो तो, एिा मोती धारण करने िे भर्वधाक तथा स्वास्थर् व हृदर् को हासन पहुँिाने वाला होता हं।  र्फद मोती पर लहरदार रेखाएं फदखाई देती हो तो, एिा मोती धारण करने िे मन मं उफद्वग्नता व धन फक हासन होती हं।  र्फद मोती फदखने मं लंबा र्ा बेिौल हो तो, एिा मोती धारण करने िे बल व बुत्रद्ध की हासन होती हं।  र्फद मोती पर िाला के िमान धब्बे उभरे हो तो, एिा मोती धारण करने िे धन-िम्पदा व िौभाग्र् का नष्ट करने वाला होता हं।  र्फद मोती की ितह फटी हुई हो हो तो, एिा मोती धारण करने िे नाना प्रकार के कष्ट होते हं।  र्फद मोती पर काले रंग की आभा र्ुि हो तो, एिा मोती धारण करने िे अपर्श फक प्रासि होती हं।  र्फद मोती तीन कोने वाला हो तो, एिा मोती धारण करने िे बल एवं बुत्रद्ध का नाश होता हं और नपुंिकता की वृत्रद्ध होती हं।  र्फद मोरी ताम्र वणा का हो तो, एिा मोती धारण करने िे भाई-बहन व पररवार का नाश होता हं।  र्फद मोती िार कोणं िे र्ुि हो तो, एिा मोती धारण करने िे पत्नी का नाश होता हं।  र्फद मोती रि वणा का हो तो, एिा मोती धारण करने िे िारं तरफ िे त्रवपदा आन पिती हं।