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गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका                       ससतम्फय- 2011




                        NON PROFIT PUBLICATION
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                                   E CIRCULAR
                       गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ससतम्फय 2011
सॊऩादक                 सिॊतन जोशी
                       गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग

सॊऩका                  गुरुत्व कामाारम
                       92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
                       BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
पोन                    91+9338213418, 91+9238328785,
                       gurutva.karyalay@gmail.com,
ईभेर                   gurutva_karyalay@yahoo.in,

                       http://gk.yolasite.com/
वेफ                    http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/

ऩत्रिका प्रस्तुसत      सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
पोटो ग्राफपक्स         सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा
हभाये भुख्म सहमोगी स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक सोफ्टे क इस्डडमा सर)




            ई- जडभ ऩत्रिका                        E HOROSCOPE
      अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया
                                                 Create By Advanced Astrology
         उत्कृ द्श बत्रवष्मवाणी क साथ
                                 े                    Excellent Prediction
              १००+ ऩेज भं प्रस्तुत                       100+ Pages

                            फहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/-

                                GURUTVA KARYALAY
                       92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
                           BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
                         Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785
              Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
अनुक्रभ
                                               गणेश ितुथॉ त्रवशेष
सवाप्रथभ ऩूजनीम कसे फने श्री गणेश?
                 ै                               6      गणेशबुजॊगभ ्                                          32
क्मं शुबकामं भं सवाप्रथभ ऩूजा होती हं गणेशजी     10     भनोवाॊसित परो फक प्रासद्ऱ हे तु ससत्रद्ध प्रद गणऩसत   33
की?                                                     स्तोि
गणेश ऩूजन हे तु शुब भुहूता                       11     सॊकद्शहयणॊ गणेशाद्शकभ ्                               34

सयर त्रवसध से श्री गणेश ऩूजन                     12     गणेश ऩॊच्ियत्नभ ्                                     34
गणेश गामिी भॊि                                   17     एकदडत शयणागसत स्तोिभ ्                                35
अनॊत ितुदाशी व्रत उत्तभ परदामी होता हं ।         18     गणेश ऩूजन से वास्तु दोष सनवायण                        36

गणेशजी को दवाा-दर िढ़ाने का भॊि
           ु                                     19     गणेश वाहन भूषक कसे फना
                                                                        े                                     37

गणेश ऩूजन भं कोन से पर िढाए।
                     ू                           20     गणेश स्तवन                                            38
सॊकटनाशन गणेशस्तोिभ ्                            20     त्रवष्णुकृतॊ गणेशस्तोिभ ्                             38
शाऩ क कायण गणऩसत ऩूजन भं तुरसी सनत्रषद्ध हं ?
     े                                           21     गणऩसतस्तोिभ ्                                         39
गणेश क िभत्कायी भॊि
      े                                          22     ॥श्री त्रवघ्नेद्वयाद्शोत्तय शतनाभस्तोिभ ् ॥           39
गणेश क कल्माणकायी भॊि
      े                                          22     ससत्रद्ध त्रवनामक व्रत त्रवधान                        40
।।गणऩसत अथवाशीषा।।                               25     सॊकद्शहय ितुथॉ व्रत का प्रायॊ ब कफ हुवा               40
गणेश ऩूजन से ग्रहऩीडा दय होती हं ।
                       ू                         26     गणेश कविभ ्                                           41

गणेश ितुथॉ ऩय िॊद्र दशान सनषेध क्मं...           27     गणेशद्रादशनाभस्तोिभ ्।                                41

                                                ऋण भुत्रि त्रवशेष
ऋण हयण श्री गणेश भॊि साधना                       42     ज्मोसतष औय ऋण                                         53

श्रीऋण हयण कतृा गणऩसत स्तोि                      43     भहत्रषा वास्ल्भकी ने सिड़ीभाय को शाऩ फदमा             57

ऋणभोिक भॊगर स्तोि                                43     ज्मोसतष से जान ऋण से भुत्रि कफ सभरेगी?                58

ऋण भोिन भहा गणऩसत स्तोि                          44     सुख-स्भृत्रद्ध क सरमे जाने ऋण(कजा) कफ रे औय कफ दे
                                                                        े                                     60

रार फकताफ से जाने कण                             45

                                                  स्थामी रेख
सॊऩादकीम                                         4      दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका                    79

गुरु ऩुष्माभृत मोग                               65     फदन क िौघफडमे
                                                             े                                                80

भाससक यासश पर                                    66     फदन फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक                   81

ससतम्फय 2011 भाससक ऩॊिाॊग                        71     ग्रह िरन ससतम्फय -2011                                82

ससतम्फय-2011 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय              73     सूिना                                                 90

ससतम्फय 2011 -त्रवशेष मोग                        79     हभाया उद्दे श्म                                       91
सॊऩादकीम
त्रप्रम आस्त्भम

         फॊधु/ फफहन

                      जम गुरुदे व

                                      वक्रतुॊड भहाकाम सूमाकोफट सभप्रब:
                                    सनत्रवघ्नॊ करु भे दे व: सवाकामेषु सवादा
                                          ा     ु
हे रॊफे शयीय औय हाथी सभान भुख वारे गणेशजी, आऩ कयोड़ं सूमा क सभान िभकीरे हं । कृ ऩा कय भेये साये
                            ॊ                              े
काभं भं आने वारी फाधाओॊ त्रवघ्नो को आऩ सदा दय कयते यहं ।
                                            ू

गणऩसत शब्द का अथा हं ।
       गण(सभूह)+ऩसत (स्वाभी) = सभूह क स्वाभी को सेनाऩसत अथाात गणऩसत कहते हं । भानव शयीय भं
                                     े
ऩाॉि ऻानेस्डद्रमाॉ, ऩाॉि कभेस्डद्रमाॉ औय िाय अडत्कयण होते हं । एवॊ इस शत्रिओॊ को जो शत्रिमाॊ सॊिासरत
कयती हं उडहीॊ को िौदह दे वता कहते हं । इन सबी दे वताओॊ क भूर प्रेयक बगवान श्रीगणेश हं ।
                                                        े

       बायतीम सॊस्कृ सत भं प्रत्मेक शुबकामा शुबायॊ ब से ऩूवा बगवान श्री गणेश जी की ऩूजा-अिाना की जाती
हं । इस सरमे मे फकसी बी कामा का शुबायॊ ब कयने से ऩूवा उस कामा का "श्री गणेश कयना" कहाॊ जाता हं ।
प्रत्मक शुब कामा मा अनुद्षान कयने क ऩूवा ‘‘श्री गणेशाम नभ्” भॊि का उच्िायण फकमा जाता हं । बगवान
                                   े
गणेश को सभस्त ससत्रद्धमं क दाता भाना गमा है । क्मोफक सायी ससत्रद्धमाॉ बगवान श्री गणेश भं वास कयती हं ।
                          े

       बगवान श्री गणेश सभस्त त्रवघ्नं को टारने वारे हं , दमा एवॊ कृ ऩा क असत सुदय भहासागय हं , तीनो रोक क
                                                                        े      ॊ                         े
कल्माण हे तु बगवान गणऩसत सफ प्रकाय से मोग्म हं ।

शास्त्रोि विन से इस कल्मुग भं तीव्र पर प्रदान कयने वारे बगवान गणेश औय भाता कारी हं । इस सरमे कहाॊ गमा
हं ।
                                             करा िण्डीत्रवनामकौ
अथाात ्: करमुग भं िण्डी औय त्रवनामक की आयाधना ससत्रद्धदामक औय परदामी होता है ।


धभा शास्त्रोभं ऩॊिदे वं की उऩासना कयने का त्रवधान हं ।
                                    आफदत्मॊ गणनाथॊ ि दे वीॊ रूद्रॊ ि कशवभ ्।
                                                                      े
                                       ऩॊिदै वतसभत्मुि सवाकभासु ऩूजमेत ्।। (शब्दकल्ऩद्रभ)
                                                      ॊ                                ु

बावाथा: - ऩॊिदे वं फक उऩासना का ब्रह्माॊड क ऩॊिबूतं क साथ सॊफध है । ऩॊिबूत ऩृथ्वी, जर, तेज, वामु औय
                                           े         े       ॊ
आकाश से फनते हं । औय ऩॊिबूत क आसधऩत्म क कायण से आफदत्म, गणनाथ(गणेश), दे वी, रूद्र औय कशव मे
                             े         े                                              े
ऩॊिदे व बी ऩूजनीम हं । हय एक तत्त्व का हय एक दे वता स्वाभी हं ।
इस गणेश ितुथॉ क शुब अवसय ऩय आऩ अऩने जीवन भं फदन प्रसतफदन अऩने उद्दे श्म फक ऩूसता हे तु अग्रस्णम
               े
होते यहे आऩकी सकर भनोकाभनाएॊ ऩूणा हो एवॊ आऩक सबी शुब कामा बगवान श्री गणेश क आसशवााद से
                                            े                              े
त्रफना फकसी सॊकट क ऩूणा होते यहे हभायी मफह भॊगर काभना हं ......
                  े


                            ‘मावत स्जवेत सुखभ स्जवेत, ऋणॊ कृ त्वा घृतॊ त्रऩफेत।’
अथाात् जफ तक स्जमो सुख से स्जमो, ऋण रेकय घी त्रऩमो। दे ह क बस्भी बूत हो जाने ऩय दफाया इस सॊसाय
                                                          े                      ु
भं आना कहाॉ से होगा।
      आज क आधुसनक मुग भं ऋण की सभस्मा असभय-भध्मभ-गयीव हय वगा फक हं । ऋण मा कजा ऎसे
          े
शब्द हं स्जसको सुनने भाि से व्मत्रि को उदास, स्खडन मा अवसाद भहसूस होता हं । क्मोफक कजा क फोझ भं
                                                                                        े
दफा हुवा व्मत्रि सदै व भानससक सिॊता औय ऩये शानी भहसूस कयता हं । व्मत्रि हभेशा सोिता यहता हं की सभम
ऩय कजा ना िुका ऩाने ऩय सभाज भं उसका भान-सम्भान व प्रसतद्षा सभट्टी भं सभर जामेगी, रोक नीॊदा हो
जामेगी औय वह सोिता हं की उसे कजा क त्रऩॊड से भुत्रि कफ सभरेगी? वह कजा भुि कफ होगा? व्मत्रि को
                                  े
ना फदन भं िैन सभरता हं औय न ही यात भं शकन सभरता हं । व्मत्रि क यातो की सनॊद हयाभ हो जाती हं ।
                                        ू                     े
      आज सभाज भं व्मत्रि बौसतकता क दौड भं अॊधा हो गमा हं । असभय हो मा गरयव हय व्मत्रि व्मत्रि
                                  े
फदन यात एक कयक फकसी ना फकसी प्रकाय से असधक से असधक भािा भं धन एकत्रित कयना िाहता हं ।
              े
असभय औय असभय फनना िाहता हं औय गयीव असभय फनना िाहता हं । क्मोफक एसा बी नहीॊ हं की कजा ससपा
गयीफ को मा भध्मभ वगॉ रोगो को रेना ऩड़ता हं फडे से फडे असभयं को बी कजा रेना ऩड़ जाता हं ।
      आज ज्मादातय व्मत्रि कजा क भक्कड़ जार भं उरझा हुआ हं ।
                               े                                     आज कोई व्मत्रि धन उधाय दे कय योते
हुवे सभरता हं तो कोई धन रेकय ऩिता ते हुवे आसानी से सभरता हं । 10-20 वषा ऩहरे फकसी से कजाा रेने
क सरए रयस्तेदय-सभि-साहुकाय को ढे यं सभडनतं कयनी होती थीॊ ऩय अफ सभम फदर गमा हं गरी-गरी उधाय
 े
दे ने क सरमे फंक वारे रोन/क्रफडट काडा दे ते फपयते यहते हं ।
       े                    े
      ज्मोसतष भं रारफकताफ क अनुशाय कवर आसथाक ऋण ही भानव जीवन क फाधक नहीॊ हं उसक
                           े        े                         े                े
उऩयाॊत बी त्रऩतृ ऋण, भातृ ऋण, स्त्री ऋण, फहन-फेटी का ऋण, सनदा मी ऋण, अऻान का ऋण, दै त्रव ऋण,
सॊफसध (रयश्तेदायी) का ऋण, स्वऋण आफद ऋण भानव क जीवन भं सुख-सभृत्रद्ध व उडनसत भं फाधक होते हं ।
   ॊ                                         े
आऩ सबी क भागादशान हे तु इस अॊक भं रारफकताफ भं उल्रेस्खत ऋण को त्रवस्तायऩूवाक भझामा जा यहा हं
        े
तथा उनक उऩाम बी फदमे जा यहे हं । बयतीम ऋत्रष-भुसन एवॊ त्रवद्रानो ने अऩने मोगफर व अनुबवो से कजा से
       े
भुत्रि हे तु त्रवसबडन स्तोि, भॊि, मॊि, उऩाम, प्रमोग इत्मादी फतामे हं स्जनका प्रमोग कय व्मत्रि सयरता से
ऋणभुि हो सकता हं । हभायी शुबकाभनाएॊ आऩक साथ हं …..
                                       े

                                                                                      सिॊतन जोशी
6                                             ससतम्फय 2011




                                 सवाप्रथभ ऩूजनीम कसे फने श्री गणेश?
                                                  ै
                                                                                                                  सिॊतन जोशी
             बायतीम सॊस्कृ सत भं प्रत्मेक शुबकामा कयने क ऩूवा
                                                        े           गमा। जफ इस त्रववादने फडा रुऩ धायण कय सरमे तफ
बगवान श्री गणेश जी की ऩूजा की जाती हं इसी सरमे मे                   सबी दे वता अऩने-अऩने फर फुत्रद्धअ क फर ऩय दावे
                                                                                                       े
फकसी बी कामा का शुबायॊ ब कयने से ऩूवा कामा का "श्री                 प्रस्तुत कयने रगे। कोई ऩयीणाभ नहीॊ आता दे ख सफ
गणेश कयना" कहा जाता हं । एवॊ प्रत्मक शुब कामा मा                    दे वताओॊ ने सनणाम सरमा फक िरकय बगवान श्री त्रवष्णु
अनुद्षान कयने क ऩूवा ‘‘श्री गणेशाम नभ्” का उच्िायण
               े                                                    को सनणाामक फना कय उनसे पसरा कयवामा जाम।
                                                                                            ै
फकमा जाता हं । गणेश को सभस्त ससत्रद्धमं को दे ने वारा                      सबी दे व गण त्रवष्णु रोक भे उऩस्स्थत हो गमे,
भाना गमा है । सायी ससत्रद्धमाॉ गणेश भं वास कयती हं ।                बगवान त्रवष्णु ने इस भुद्दे को गॊबीय होते दे ख श्री त्रवष्णु
             इसक ऩीिे भुख्म कायण हं की बगवान श्री गणेश
                े                                                   ने सबी दे वताओॊ को अऩने साथ रेकय सशवरोक भं ऩहुि
सभस्त त्रवघ्नं को टारने वारे हं , दमा एवॊ                                           गमे। सशवजी ने कहा इसका सही सनदान
कृ ऩा क असत सुॊदय भहासागय हं ,
       े                                                                                    सृत्रद्शकताा    ब्रह्माजी   फह   फताएॊगे।
एवॊ तीनो रोक क कल्माण
              े                                                                                    सशवजी श्री त्रवष्णु एवॊ अडम
हे तु      बगवान         गणऩसत                                                                         दे वताओॊ क साथ सभरकय
                                                                                                                 े
सफ प्रकाय से मोग्म हं ।                                                                                    ब्रह्मरोक    ऩहुिं     औय
सभस्त त्रवघ्न फाधाओॊ                                                                                       ब्रह्माजी को सायी फाते
को दय कयने वारे गणेश
    ू                                                                                                      त्रवस्ताय    से      फताकय
त्रवनामक हं । गणेशजी                                                                                       उनसे पसरा कयने का
                                                                                                                 ै
त्रवद्या-फुत्रद्ध   के   अथाह                                                                              अनुयोध फकमा। ब्रह्माजी
सागय एवॊ त्रवधाता हं ।                                                                               ने कहा प्रथभ ऩूजनीम वहीॊ

             बगवान गणेश को सवा                                                                  होगा जो जो ऩूये ब्रह्माण्ड क तीन
                                                                                                                            े

प्रथभ ऩूजे जाने क त्रवषम भं कि
                 े           ु                                                           िक्कय रगाकय सवाप्रथभ रौटे गा।

त्रवशेष रोक कथा प्रिसरत हं । इन त्रवशेष एवॊ रोकत्रप्रम                     सभस्त दे वता ब्रह्माण्ड का िक्कय रगाने क सरए अऩने
                                                                                                                   े
कथाओॊ का वणान महा कय यहं हं ।                                       अऩने वाहनं ऩय सवाय होकय सनकर ऩड़े । रेफकन, गणेशजी

             इस क सॊदबा भं एक कथा है फक भहत्रषा वेद व्मास ने
                 े                                                  का वाहन भूषक था। बरा भूषक ऩय सवाय हो गणेश कसे
                                                                                                               ै

भहाबायत को से फोरकय सरखवामा था, स्जसे स्वमॊ गणेशजी                  ब्रह्माण्ड क तीन िक्कय रगाकय सवाप्रथभ रौटकय सपर
                                                                                े

ने सरखा था। अडम कोई बी इस ग्रॊथ को तीव्रता से सरखने भं              होते। रेफकन गणऩसत ऩयभ त्रवद्या-फुत्रद्धभान एवॊ ितुय थे।

सभथा नहीॊ था।                                                              गणऩसत ने अऩने वाहन भूषक ऩय सवाय हो कय अऩने

सवाप्रथभ कौन ऩूजनीम हो?                                             भाता-त्रऩत फक तीन प्रदस्ऺणा ऩूयी की औय जा ऩहुॉिे सनणाामक
                                                                    ब्रह्माजी क ऩास। ब्रह्माजी ने जफ ऩूिा फक वे क्मं नहीॊ गए
                                                                               े
कथा इस प्रकाय हं : तीनो रोक भं सवाप्रथभ कौन ऩूजनीम
                                                                    ब्रह्माण्ड क िक्कय ऩूये कयने, तो गजाननजी ने जवाफ फदमा फक
                                                                                े
हो?, इस फात को रेकय सभस्त दे वताओॊ भं त्रववाद खडा हो
7                                      ससतम्फय 2011



भाता-त्रऩत भं तीनं रोक, सभस्त ब्रह्माण्ड, सभस्त तीथा,                       उऩस्स्थसत भं भाता ऩावाती ने त्रविाय फकमा फक उनका
सभस्त दे व औय सभस्त ऩुण्म त्रवद्यभान होते हं ।                              स्वमॊ का एक सेवक होना िाफहमे, जो ऩयभ             शुब,

           अत् जफ भंने अऩने भाता-त्रऩत की ऩरयक्रभा ऩूयी कय                  कामाकशर तथा उनकी आऻा का सतत ऩारन कयने भं
                                                                                 ु

री, तो इसका तात्ऩमा है फक भंने ऩूये ब्रह्माण्ड की प्रदस्ऺणा ऩूयी            कबी त्रविसरत न हो। इस प्रकाय सोिकय भाता ऩावाती नं

कय री। उनकी मह तकसॊगत मुत्रि
                 ा                                                                           अऩने भॊगरभम ऩावनतभ शयीय के

स्वीकाय कय री गई औय इस तयह वे सबी                                                            भैर से अऩनी भामा शत्रि से फार

रोक भं सवाभाडम 'सवाप्रथभ ऩूज्म' भाने                                                         गणेश को उत्ऩडन फकमा।

गए।                                                                                                एक सभम जफ भाता ऩावाती
                                                                                             भानसयोवय भं स्नान कय यही थी तफ
           सरॊगऩुयाण क अनुसाय (105।
                      े
                                                                                             उडहंने स्नान स्थर ऩय कोई आ न
15-27) – एक फाय असुयं से िस्त
                                                                                             सक इस हे तु अऩनी भामा से गणेश
                                                                                               े
दे वतागणं द्राया की गई प्राथाना से
                                                                                             को जडभ दे कय 'फार गणेश' को ऩहया
बगवान        सशव    ने    सुय-सभुदाम    को
                                                                                             दे ने क सरए सनमुि कय फदमा।
                                                                                                    े
असबद्श वय दे कय आद्वस्त फकमा। कि
                               ु
                                                भॊि ससद्ध ऩडना गणेश                                इसी दौयान बगवान सशव उधय
ही सभम क ऩद्ळात तीनो रोक क
        े                 े
                                               बगवान श्री गणेश फुत्रद्ध औय सशऺा के           आ जाते हं । गणेशजी सशवजी को योक
दे वासधदे व भहादे व बगवान सशव का
                                               कायक ग्रह फुध क असधऩसत दे वता
                                                              े                              कय कहते हं फक आऩ उधय नहीॊ जा
भाता ऩावाती क सम्भुख ऩयब्रह्म स्वरूऩ
             े
                                               हं । ऩडना गणेश फुध क सकायात्भक
                                                                   े                         सकते हं । मह सुनकय बगवान सशव
           गणेश जी का प्राकट्म हुआ।            प्रबाव को फठाता हं एवॊ नकायात्भक              क्रोसधत हो जाते हं औय गणेश जी को
सवात्रवघ्नेश भोदक त्रप्रम गणऩसतजी का           प्रबाव      को कभ कयता हं ।. ऩडन              यास्ते से हटने का कहते हं फकतु गणेश
                                                                                                                         ॊ
जातकभााफद सॊस्काय क ऩद्ळात ् बगवान
                   े                           गणेश क प्रबाव से व्माऩाय औय धन
                                                     े                                       जी अड़े यहते हं तफ दोनं भं मुद्ध हो
सशव ने अऩने ऩुि को उसका कताव्म                 भं वृत्रद्ध भं वृत्रद्ध होती हं । फच्िो फक    जाता है । मुद्ध क दौयान क्रोसधत होकय
                                                                                                              े
सभझाते हुए आशीवााद फदमा फक जो                  ऩढाई हे तु बी त्रवशेष पर प्रद हं
                                                                                             सशवजी फार गणेश का ससय धड़ से
तुम्हायी ऩूजा फकमे त्रफना ऩूजा ऩाठ,            ऩडना गणेश इस क प्रबाव से फच्िे
                                                             े
                                                                                             अरग कय दे ते हं । सशव क इस कृ त्म
                                                                                                                    े
                                               फक       फुत्रद्ध   कशाग्र
                                                                    ू        होकय    उसके
अनुद्षान      इत्माफद     शुब   कभं     का                                                   का जफ ऩावाती को ऩता िरता है तो वे
                                               आत्भत्रवद्वास भं बी त्रवशेष वृत्रद्ध होती
अनुद्षान     कये गा, उसका       भॊगर    बी                                                   त्रवराऩ औय क्रोध से प्ररम का सृजन
                                               हं । भानससक अशाॊसत को कभ कयने भं
अभॊगर भं ऩरयणत हो जामेगा। जो                                                                 कयते हुए कहती है फक तुभने भेये ऩुि
                                               भदद कयता हं , व्मत्रि द्राया अवशोत्रषत
रोग पर की काभना से ब्रह्मा, त्रवष्णु,                                                        को भाय डारा।
                                               हयी त्रवफकयण शाॊती प्रदान कयती हं ,
इडद्र अथवा अडम दे वताओॊ की बी                                                                      ऩावातीजी क द्ख को दे खकय
                                                                                                             े
                                               व्मत्रि क शायीय क तॊि को सनमॊत्रित
                                                        े       े                                              ु
ऩूजा कयं गे, फकडतु तुम्हायी ऩूजा नहीॊ          कयती         हं ।   स्जगय,     पपड़े , जीब,
                                                                               े             सशवजी ने उऩस्स्थत गणको आदे श दे ते
कयं गे, उडहं तुभ त्रवघ्नं द्राया फाधा          भस्स्तष्क औय तॊत्रिका तॊि इत्माफद योग         हुवे कहा सफसे ऩहरा जीव सभरे, उसका
ऩहुॉिाओगे।                                     भं सहामक होते हं । कीभती ऩत्थय                ससय काटकय इस फारक क धड़ ऩय रगा
                                                                                                                े
जडभ की कथा बी फड़ी योिक है ।                   भयगज क फने होते हं ।
                                                     े                                       दो, तो मह फारक जीत्रवत हो उठे गा।

गणेशजी की ऩौयास्णक कथा                                  Rs.550 से Rs.8200 तक                 सेवको को सफसे ऩहरे हाथी का एक फच्िा

           बगवान         सशव    फक     अन                                                    सभरा। उडहंने उसका ससय राकय फारक
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क धड़ ऩय रगा फदमा, फारक जीत्रवत हो उठा।
 े                                                                     कये इस सरमे बगवान त्रवष्णु अडम दे वताओॊ क साथ भं
                                                                                                                े
       उस अवसय ऩय तीनो दे वताओॊ ने उडहं सबी रोक                        तम फकम फक गणेश सबी भाॊगरीक कामो भं अग्रणीम
भं अग्रऩूज्मता का वय प्रदान फकमा औय उडहं सवा अध्मऺ                     ऩूजे जामंगे एवॊ उनक ऩूजन क त्रफना कोई बी दे वता ऩूजा
                                                                                          े      े
ऩद ऩय त्रवयाजभान फकमा। स्कद ऩुयाण
                          ॊ                                            ग्रहण नहीॊ कयं गे।
ब्रह्मवैवताऩुयाण क अनुसाय (गणऩसतखण्ड) –
                  े                                                            इस ऩय बगवान ् त्रवष्णु ने श्रेद्षतभ उऩहायं से
       सशव-ऩावाती क त्रववाह होने क फाद उनकी कोई
                   े              े                                    बगवान गजानन फक ऩूजा फक औय वयदान फदमा फक
सॊतान नहीॊ हुई, तो सशवजी ने ऩावातीजी से बगवान
                                                                                      सवााग्रे तव ऩूजा ि भमा दत्ता सुयोत्तभ।
त्रवष्णु क शुबपरप्रद ‘ऩुण्मक’ व्रत कयने को कहा ऩावाती
          े
क ‘ऩुण्मक’ व्रत से बगवान त्रवष्णु ने प्रसडन हो कय
 े                                                                                 सवाऩूज्मद्ळ मोगीडद्रो बव वत्सेत्मुवाि तभ ्।।
ऩावातीजी को ऩुि प्रासद्ऱ का वयदान फदमा। ‘ऩुण्मक’ व्रत के                                                          (गणऩसतखॊ. 13। 2)
प्रबाव से ऩावातीजी को एक ऩुि उत्ऩडन हुवा।                              बावाथा: ‘सुयश्रेद्ष! भंने सफसे ऩहरे तुम्हायी ऩूजा फक है ,
       ऩुि जडभ फक फात सुन कय सबी दे व, ऋत्रष,                          अत् वत्स! तुभ सवाऩूज्म तथा मोगीडद्र हो जाओ।’
गॊधवा आफद सफ गण फारक क दशान हे तु ऩधाये । इन दे व
                      े                                                ब्रह्मवैवता ऩुयाण भं ही एक अडम प्रसॊगाडतगात ऩुिवत्सरा
गणो भं शसन भहायाज बी उऩस्स्थत हुवे। फकडतु शसनदे व                      ऩावाती ने गणेश भफहभा का फखान कयते हुए ऩयशुयाभ से
ने ऩत्नी द्राया फदमे गमे शाऩ क कायण फारक का दशान
                              े                                        कहा –
नहीॊ फकमा। ऩयडतु भाता ऩावाती क फाय-फाय कहने ऩय
                              े
                                                                        त्वफद्रधॊ रऺकोफटॊ ि हडतुॊ शिो गणेद्वय्। स्जतेस्डद्रमाणाॊ
शसनदे व नं जेसे फह अऩनी द्रत्रद्श सशशु फारक उऩय ऩडी,
                                           े
                                                                                      प्रवयो नफह हस्डत ि भस्ऺकाभ ्।।
उसी ऺण        फारक गणेश का गदा न धड़ से अरग हो
गमा। भाता ऩावाती क त्रवरऩ कयने ऩय बगवान ् त्रवष्णु
                  े                                                        तेजसा कृ ष्णतुल्मोऽमॊ कृ ष्णाॊद्ळ गणेद्वय्। दे वाद्ळाडमे

ऩुष्ऩबद्रा नदी क अयण्म से एक गजसशशु का भस्तक
                े                                                                    कृ ष्णकरा् ऩूजास्म ऩुयतस्तत्।।

काटकय रामे औय गणेशजी क भस्तक ऩय रगा फदमा।
                      े                                                                      (ब्रह्मवैवताऩु., गणऩसतख., 44। 26-27)
गजभुख रगे होने क कायण कोई गणेश फक उऩेऺा न
                े                                                      बावाथा: स्जतेस्डद्रम ऩुरूषं भं श्रेद्ष गणेश तुभभं जैसे



                                   क्मा आऩ फकसी सभस्मा से ग्रस्त हं ?
  आऩक ऩास अऩनी सभस्माओॊ से िटकाया ऩाने हे तु ऩूजा-अिाना, साधना, भॊि जाऩ इत्माफद कयने का सभम नहीॊ
     े                      ु
  हं ? अफ आऩ अऩनी सभस्माओॊ से फीना फकसी त्रवशेष ऩूजा-अिाना, त्रवसध-त्रवधान क आऩको अऩने कामा भं
                                                                            े
  सपरता प्राद्ऱ कय सक एवॊ आऩको अऩने जीवन क सभस्त सुखो को प्राद्ऱ कयने का भागा प्राद्ऱ हो सक इस सरमे
                     े                    े                                                े
  गुरुत्व कामाारत द्राया हभाया उद्दे श्म शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतडम
  मुि त्रवसबडन प्रकाय क मडि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩक घय तक ऩहोिाने का है ।
                       े                                                े
                                                 GURUTVA KARYALAY
                                      Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA,
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9                                       ससतम्फय 2011



राखं-कयोड़ं जडतुओॊ को भाय डारने की शत्रि है ; ऩयडतु                3. तेज (अस्ग्न) शत्रि (भहे द्वयी)
तुभने भक्खी ऩय बी हाथ नहीॊ उठामा। श्रीकृ ष्ण क अॊश
                                              े                    4. भरूत ् (वामु) सूमा (अस्ग्न)
से उत्ऩडन हुआ वह गणेश तेज भं श्रीकृ ष्ण क ही सभान
                                         े                         5. व्मोभ (आकाश) त्रवष्णु
है । अडम दे वता श्रीकृ ष्ण की कराएॉ हं । इसीसे इसकी
अग्रऩूजा होती है ।
                                                                             बगवान ् श्रीसशव ऩृथ्वी तत्त्व क असधऩसत होने क
                                                                                                            े             े
शास्त्रीम भतसे                                                     कायण उनकी सशवसरॊग क रुऩ भं ऩासथाव-ऩूजा का त्रवधान
                                                                                      े
शास्त्रोभं ऩॊिदे वं की उऩासना कयने का त्रवधान हं ।                 हं । बगवान ् त्रवष्णु क आकाश तत्त्व क असधऩसत होने क
                                                                                          े             े             े

        आफदत्मॊ गणनाथॊ ि दे वीॊ रूद्रॊ ि कशवभ ्।
                                          े                        कायण उनकी शब्दं द्राया स्तुसत कयने का त्रवधान हं ।

           ऩॊिदै वतसभत्मुि सवाकभासु ऩूजमेत ्।।
                          ॊ                                        बगवती दे वी क अस्ग्न तत्त्व का असधऩसत होने क कायण
                                                                                े                              े
                                                                   उनका अस्ग्नकण्ड भं हवनाफद क द्राया ऩूजा कयने का
                                                                               ु              े
                                              (शब्दकल्ऩद्रभ)
                                                          ु
                                                                   त्रवधान हं । श्रीगणेश क जरतत्त्व क असधऩसत होने क
                                                                                          े          े             े
बावाथा: - ऩॊिदे वं फक उऩासना का ब्रह्माॊड क ऩॊिबूतं क
                                           े         े             कायण उनकी सवाप्रथभ ऩूजा कयने का त्रवधान हं , क्मंफक
साथ सॊफॊध है । ऩॊिबूत ऩृथ्वी, जर, तेज, वामु औय आकाश                ब्रह्माॊद भं सवाप्रथभ उत्ऩडन होने वारे जीव तत्त्व ‘जर’ का
से फनते हं । औय ऩॊिबूत क आसधऩत्म क कायण से
                        े         े                                असधऩसत होने क कायण गणेशजी ही प्रथभ ऩूज्म क
                                                                                े                            े
आफदत्म, गणनाथ(गणेश), दे वी, रूद्र औय कशव मे ऩॊिदे व
                                      े                            असधकायी होते हं ।
बी ऩूजनीम हं । हय एक तत्त्व का हय एक दे वता स्वाभी
                                                                   आिामा भनु का कथन है -
हं -
                                                                             “अऩ एि ससजाादौ तासु फीजभवासृजत ्।”
          आकाशस्मासधऩो त्रवष्णुयग्नेद्ळैव भहे द्वयी।
       वामो् सूम् स्ऺतेयीशो जीवनस्म गणासधऩ्।।
                ा                                                                                             (भनुस्भृसत 1)

बावाथा:- क्रभ इस प्रकाय हं भहाबूत असधऩसत                           बावाथा:

1. स्ऺसत (ऩृथ्वी) सशव                                              इस प्रभाण से सृत्रद्श क आफद भं एकभाि वताभान जर का
                                                                                          े
2. अऩ ् (जर) गणेश                                                  असधऩसत गणेश हं ।




                                     ऩसत-ऩत्नी भं करह सनवायण हे तु
   मफद ऩरयवायं भं सुख-सुत्रवधा क सभस्त साधान होते हुए बी िोटी-िोटी फातो भं ऩसत-ऩत्नी क त्रफि भे करह होता
                                े                                                     े
   यहता हं , तो घय क स्जतने सदस्म हो उन सफक नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध
                    े                      े
   प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतडम मुि वशीकयण कवि एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं त्रफना
   फकसी ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मफद आऩ भॊि ससद्ध ऩसत वशीकयण मा ऩत्नी
   वशीकयण एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवाना िाहते हं, तो सॊऩक आऩ कय सकते हं ।
                                                          ा

                                              GURUTVA KARYALAY
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10                                   ससतम्फय 2011




                      क्मं शुबकामं भं सवाप्रथभ ऩूजा होती हं गणेशजी की?

                                                                                               सिॊतन जोशी
गणऩसत शब्द का अथा हं ।

        गण(सभूह)+ऩसत (स्वाभी) = सभूह क स्वाभी को सेनाऩसत अथाात गणऩसत कहते हं । भानव शयीय भं ऩाॉि
                                      े
ऻानेस्डद्रमाॉ, ऩाॉि कभेस्डद्रमाॉ औय िाय अडत्कयण होते हं । एवॊ इस शत्रिओॊ को जो शत्रिमाॊ सॊिासरत कयती हं उडहीॊ को
िौदह दे वता कहते हं । इन सबी दे वताओॊ क भूर प्रेयक हं बगवान श्रीगणेश।
                                       े

बगवान गणऩसत शब्दब्रह्म अथाात ् ओॊकाय क प्रतीक हं , इनकी भहत्व का मह हीॊ भुख्म कायण हं ।
                                      े

        श्रीगणऩत्मथवाशीषा भं वस्णात हं ओॊकाय का ही व्मि स्वरूऩ गणऩसत दे वता हं । इसी कायण सबी प्रकाय क शुब
                                                                                                      े
भाॊगसरक कामं औय दे वता-प्रसतद्षाऩनाओॊ भं बगवान गणऩसत फक प्रथभ ऩूजा फक जाती हं । स्जस प्रकाय से प्रत्मेक भॊि
फक शत्रि को फढाने क सरमे भॊि क आगं ॐ (ओभ ्)
                   े          े                       आवश्मक रगा होता हं । उसी प्रकाय प्रत्मेक शुब भाॊगसरक कामं
क सरमे ऩय बगवान ् गणऩसत की ऩूजा एवॊ स्भयण असनवामा भानी गई हं । इस सबी शास्त्र एवॊ वैफदक धभा, सम्प्रदामं ने
 े
इस प्रािीन ऩयम्ऩया को एक भत से स्वीकाय फकमा हं इसका सदीमं से बगवान गणे श जी क प्रथभ ऩूजन कयने फक
ऩयॊ ऩया का अनुसयण कयते िरे आयहे हं ।

        गणेश जी की ही ऩूजा सफसे ऩहरे क्मं होती है , इसकी ऩौयास्णक कथा इस प्रकाय है -

ऩद्मऩुयाण क अनुसाय (सृत्रद्शखण्ड 61। 1 से 63। 11) –
           े

एक फदन व्मासजी क सशष्म ने अऩने गुरूदे व को प्रणाभ
                े

कयक प्रद्ल फकमा फक गुरूदे व! आऩ भुझे दे वताओॊ क ऩूजन का सुसनस्द्ळत क्रभ फतराइमे। प्रसतफदन फक ऩूजा भं सफसे
   े                                           े
ऩहरे फकसका ऩूजन कयना िाफहमे ?

        तफ व्मासजी ने कहा:     त्रवघ्नं को दय कयने क सरमे सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा कयनी िाफहमे। ऩूवकार भं
                                            ू       े                                             ा
ऩावाती दे वी को दे वताओॊ ने अभृत से तैमाय फकमा हुआ एक फदव्म भोदक फदमा। भोदक दे खकय दोनं फारक (स्कडद
तथा गणेश) भाता से भाॉगने रगे। तफ भाता ने भोदक क प्रबावं का वणान कयते हुए कहा फक तुभ दोनो भं से जो
                                               े
धभााियण क द्राया श्रेद्षता प्राद्ऱ कयक आमेगा, उसी को भं मह भोदक दॉ गी। भाता की ऐसी फात सुनकय स्कडद भमूय ऩय
         े                            े                            ू
आरूढ़ हो कय अल्ऩ भुहूतबय भं सफ तीथं की स्डनान कय सरमा। इधय रम्फोदयधायी गणेशजी भाता-त्रऩता की ऩरयक्रभा
                      ा
कयक त्रऩताजी क सम्भुख खड़े हो गमे। तफ ऩावातीजी ने कहा- सभस्त तीथं भं फकमा हुआ स्डनान, सम्ऩूणा दे वताओॊ को
   े          े
फकमा हुआ नभस्काय, सफ मऻं का अनुद्षान तथा सफ प्रकाय क व्रत, भडि, मोग औय सॊमभ का ऩारन- मे सबी साधन
                                                    े
भाता-त्रऩता क ऩूजन क सोरहवं अॊश क फयाफय बी नहीॊ हो सकते।
             े      े            े

इससरमे मह गणेश सैकड़ं ऩुिं औय सैकड़ं गणं से बी फढ़कय श्रेद्ष है । अत् दे वताओॊ का फनामा हुआ मह भोदक भं
गणेश को ही अऩाण कयती हूॉ। भाता-त्रऩता की बत्रि क कायण ही गणेश जी की प्रत्मेक शुब भॊगर भं सफसे ऩहरे ऩूजा
                                                े
होगी।   तत्ऩद्ळात ् भहादे वजी फोरे- इस गणेश क ही अग्रऩूजन से सम्ऩूणा दे वता प्रसडन हंजाते हं । इस सरमे तुभहं
                                             े
सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा कयनी िाफहमे।
11                               ससतम्फय 2011




                                   गणेश ऩूजन हे तु शुब भुहूता
                                                                                     सिॊतन जोशी
          वैऻासनक ऩद्धसत क अनुसाय ब्रह्माॊड भं सभम व अनॊत आकाश क असतरयि सभस्त वस्तुएॊ
                          े                                     े
भमाादा मुि हं । स्जस प्रकाय सभम का न ही कोई प्रायॊ ब है न ही कोई अॊत है । अनॊत आकाश की बी
सभम की तयह कोई भमाादा नहीॊ है । इसका कहीॊ बी प्रायॊ ब मा अॊत नहीॊहोता। आधुसनक भानव ने इन
दोनं तत्वं को हभेशा सभझने का व अऩने अनुसाय इनभं भ्रभण कयने का प्रमास फकमा हं ऩयडतु उसे
सपरता प्राद्ऱ नहीॊ    हुई है ।
          साभाडमत् भुहूता का अथा है फकसी बी कामा को कयने क सरए सफसे शुब सभम व सतसथ िमन
                                                          े
कयना। कामा ऩूणत् परदामक हो इसक सर, सभस्त ग्रहं व अडम ज्मोसतष तत्वं का तेज इस प्रकाय
              ा               े
कस्डद्रत फकमा जाता है फक वे दष्प्रबावं को त्रवपर कय दे ते हं । वे भनुष्म की जडभ कण्डरी की
 े                           ु                                                   ु
सभस्त फाधाओॊ को हटाने भं व दमोगो को दफाने मा घटाने भं सहामक होते हं ।
                            ु
          शुब भुहूता ग्रहो का ऎसा अनूठा सॊगभ है फक वह कामा कयने वारे व्मत्रि को ऩूणत् सपरता की
                                                                                   ा
ओय अग्रस्त कय दे ता है ।
          फहडद ू धभा भं शुब कामा कवर शुब भुहूता दे खकय फकए जाने का त्रवधान हं । इसी त्रवधान क
                                  े                                                          े
अनुसाय श्रीगणेश ितुथॉ क फदन बगवान श्रीगणेश की स्थाऩना क श्रेद्ष भुहूता आऩकी अनुकरता हे तु
                       े                               े                        ू
दशााने का प्रमास फकमा जा यहा हं । फहडद ू धभा ग्रॊथं क अनुसाय शुब भुहूता दे खकय फकए गए कामा
                                                     े
सनस्द्ळत शुब व सपरता दे ने वारे होते हं ।


श्रीगणेश ितुथॉ क सरमे (1 ससतॊफय 2011 गुरुवाय)
                े
प्रात्    6:20 से 7:50 तक    शुब
भध्माह्न्    12:20 से 1:30 तक राब
सॊध्मा्     4:50 से 6:20 तक शुब
अडम शुब सभम
वृस्द्ळक रग्न भं (दोऩहय 11:44 से दोऩहय 1:30 तक ) तथा कब रग्न भं (सॊध्मा 5:52 से सॊध्मा 7: 03
                                                      ुॊ
तक) बगवान श्रीगणेश प्रसतभा की स्थाऩना की जा सकती हं ।
क्मंफक ज्मोसतष क अनुशाय वृस्द्ळक औय कब दोनं स्स्थय रग्न हं । स्स्थय रग्न भं फकमा गमा कोई बी
                े                    ुॊ
शुब कामा स्थाई होता हं ।
त्रवद्रानो क भतानुशाय शुब प्रायॊ ब मासन आधा कामा स्वत् ऩूण।
            े                                             ा
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                                       सयर त्रवसध से श्री गणेश ऩूजन
                                                                                                               त्रवजम ठाकुय
        श्री गणेशजी की ऩूजा से व्मत्रि को फुत्रद्ध, त्रवद्या,     ऩत्रवि कयण:
त्रववेक योग, व्मासध एवॊ सभस्त त्रवध्न-फाधाओॊ का स्वत्             सफसे ऩहरे ऩूजन साभग्री व गणेश प्रसतभा सिि ऩत्रवि
नाश होता है                                                       कयण कयं
        श्री गणेशजी की कृ ऩा प्राद्ऱ होने से व्मत्रि के                   अऩत्रवि् ऩत्रविो वा सवाावस्थाॊ गतो त्रऩ वा।
भुस्श्कर से भुस्श्कर कामा बी आसान हो जाते हं ।                          म् स्भये त ् ऩुण्डयीकाऺॊ स फाह्याभ्मडतय् शुसि्॥
        स्जन    रोगो   को     व्मवसाम-नौकयी     भं    त्रवऩयीत    इस भॊि से शयीय औय ऩूजन साभग्री ऩय जर िीटं इसे
ऩरयणाभ प्राद्ऱ हो यहे हं, ऩारयवारयक तनाव, आसथाक तॊगी,             अॊदय फाहय औय फहाय दोनं शुद्ध हो जाता है
योगं से ऩीड़ा हो यही हो एवॊ व्मत्रि को अथक भेहनत
कयने क उऩयाॊत बी नाकाभमाफी, द:ख, सनयाशा प्राद्ऱ हो
      े                                                           आिभन:
                             ु
यही हो, तो एसे व्मत्रिमो की सभस्मा क सनवायण हे तु
                                    े                                                    ॐ कशवाम नभ:
                                                                                            े
ितुथॉ क फदन मा फुधवाय क फदन श्री गणेशजी की
       े               े                                                                ॐ नायामण नभ:

त्रवशेष ऩूजा-अिाना कयने का त्रवधान शास्त्रं भं फतामा हं ।                                ॐ भध्वामे नभ:

        स्जसक पर से व्मत्रि की फकस्भत फदर जाती हं
             े                                                                     हस्तो प्रऺल्म हसशाकशम नभ :
                                                                                                      े

औय उसे जीवन भं सुख, सभृत्रद्ध एवॊ ऎद्वमा की प्रासद्ऱ होती
                                                                  आसान सुत्रद्ध:
हं । श्री गणेश जी का ऩूजन अरग-अरग उद्दे श्म एवॊ
                                                                      ॐ ऩृथ्वी त्वमा धृता रोका दे त्रव त्व त्रवद्गणुनाधृता्।
काभनाऩूसता हे तु अरग-अरग भॊि व त्रवसध-त्रवधान से
                                                                        त्व ि धायम भा दे त्रव ऩत्रवि करू ि आसनभ॥
                                                                                                      ु        ्
फकमा जाता हं , इस सरमे महाॊ दशााई गई ऩूजन त्रवसध भं
अॊतय होना साभाडम हं ।                                             यऺा भॊि:
        सबी ऩाठको क भागादशान हे तु श्री गणेश जी का
                   े                                                      'अऩक्राभडतु बूतासन त्रऩशािा् सवातो फदशा।
ऩूजन त्रवधान फदमा जा यहा हं ।                                                   सवेषाभवयोधेन ब्रह्मकभा सभायबे।
गणेश ऩूजा:                                                                अऩसऩाडतु ते बूता् मे बूता् बूसभसॊस्स्थता्।
                                                                           मे बूता त्रवनकताायस्ते नद्शडतु सशवाऻमा।'
ऩूजन साभग्री:                                                     इस भॊि से दशं फदशाओॊ भं त्रऩरा सयसं सिटक स्जसेस
                                                                                                          े
ककभ, कसय, ससॊदय, अवीय-गुरार, ऩुष्ऩ औय भारा,
 ुॊ ुॊ े      ू                                                   सभस्त बूत प्रेत फाधाओॊ का सनवायण होता है
िारव,    ऩान,    सुऩायी,    ऩॊिाभृत,    ऩॊिभेवा,     गॊगाजर,
                                                                  स्वस्ती वािन:
त्रफरऩि, धूऩ-दीऩ, नैवैद्य भं रड्डू (रड्डू 3,5,7,11 त्रवषभ
                                                                  स्वस्स्त न इडद्रो वृद्धश्रवा: स्वस्स्त न: ऩूषा त्रवद्ववेदा:।
सॊख्मा भं) मा गूड अथवा सभश्री का प्रसाद रगाएॊ। रंग,
                                                                  स्वस्स्तनस्ता यऺो अरयद्शनेसभ: स्वस्स्त नो फृहस्ऩसतादधात॥
इरामिी, नायीमर, करश, 1 सभटय रार कऩडा, फयक,
                                                                  इस क फाद श्री गणेश जी क भॊगर ऩाठ कयना िाफहए
                                                                      े                  े
इि, जनेऊ, त्रऩरी सयसं, इत्माफद आवश्मक साभग्रीमाॊ।                 जो की इस प्रकाय है
13                                            ससतम्फय 2011



गणेश जी का भॊगर ऩाठ:                                                             रॊफोदयद्ळ त्रवकटो त्रवघ्ननाशो त्रवनामक्।
             सुभुखद्ळैकदडतद्ळ कत्रऩरो गजकणाक:।                                   धुम्रकतुय ् गणाध्मऺो बारिॊद्रो गजानन॥
                                                                                       े
            रम्फोदयद्ळ त्रवकटो त्रवघ्रनाशो त्रवनामक:॥                           द्रादशैतासन नाभासन म् ऩठे च्िणु मादऽत्रऩ॥
                                                                                                             ृ
            धूम्रकतुगणाध्मऺो बारिडद्रो गजानन:।
                  े  ा                                                            त्रवद्यायॊ बे त्रववाहे ि प्रवेशे सनगाभे तथा।
            द्राद्रशैतासन नाभासन म: ऩठे च्िे णुमादत्रऩ॥                         सॊग्राभे सॊकटे िैव त्रवघ्नस्तस्म न जामते॥
            त्रवद्यायम्बे त्रववाहे ि प्रवेशे सनगाभे तथा।                          शुक्राॊफय धयॊ दे वॊ शसशवणं ितुबुजभ ्।
                                                                                                                  ा
           सॊग्राभे सॊकटे िैव त्रवघ्रस्तस्म न जामते॥                            प्रसडन वदनॊ ध्मामेत ् सवा त्रवघ्नोऩशाॊतमे॥
                                                                               जऩेद् गणऩसत स्तोिॊ षस्ड्बभाासे परॊ रबेत ्।
एकाग्रसिन होकय गणेश का ध्मान कयना िाफहए                                          सॊवॊत्सये ण ससत्रद्धॊ ि रबते नाि सॊशम्॥
श्री गणेश का ध्मान कयं :                                                           वक्रतुॊड भहाकाम सूमकोफट सभ प्रब।
                                                                                                      ा
गजाननॊ         बूतगणाफद       सेत्रवतभ ्    कत्रऩत्थ       जम्फूपर               सनत्रवाघ्नॊ करु भे दे व सवा कामेषु सवादा॥
                                                                                              ु
िारुबऺणभ। उभासुतभ ् शोक त्रवनाश कायकभ ् नभासभ
        ्                                                                      असबस्ससताथा ससद्धध्मथं ऩूस्जतो म् सुयासुयै्।
त्रवघ्नेद्वय ऩाद ऩॊकजभ॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम
                      ्                                                          सवा त्रवघ्न हयस्तस्भै गणासधऩतमे नभ्॥
नभ् गणेशॊ ध्मामासभ भॊि का उच्िायण कयं ।                                      त्रवघ्नेद्वयाम वयदाम सुयत्रप्रमाम रॊफोदयाम सकराम
                                                                          जगस्त्धताम। नागाननाम श्रुसतमऻ त्रवबुत्रषताम गौयीसुताम
आह्वानॊ:                                                                                  गणनाथ नभो नभस्ते॥
इस भॊि से श्री गणेश का आहवान कये मा भन ही भन                          ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् गणेशॊ स्भयासभ
भं श्री गणेश जी को ऩधायने क सरमे त्रवनसत कयं । हाथभं
                           े                                          भॊि का उच्िायण कयक ऩुष्ऩ अत्रऩात कयं
                                                                                        े
अऺत रेकय आहवान कयं ।
           आगच्ि बगवडदे व स्थाने िाि स्स्थयो बव                       षोडशोऩिाय गणऩतीऩूजन:
       मावत्ऩूजाॊ करयष्मासभ तावत्वॊ सस्डनधौ बव।।                              अस्मै प्राण् प्रसतद्षडतु अस्मै प्राणा् ऺयडतु ि।
            ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ्                               अस्मै दे वतभिीमा भाभहे सत ि कद्ळन॥
गणेशॊ ध्मामासभ भॊि का उच्िायण कयक अऺते डारदं .....
                                 े
                                                                      आसनॊ:
इस भॊि से श्री गणेश की भूसता मा प्रसतभा ऩय हल्दी मा                   आसन सभत्रऩात कयं । मफद ऩहरे से वस्त्र त्रफिामा हुवा हं
कभकभ से यॊ गे िारव डारं। मफद प्रसतभा क प्रहरे से
 ु ु                                  े                               तो उस स्थान ऩय हल्दी मा कभकभ से यॊ गे अऺत
                                                                                               ु ु
प्राण-प्रसतद्षा हो गई हं तो आवश्मिा नहीॊ हं तफ कवर
                                                े                     डारकय ऩुष्ऩ अत्रऩात कयं ।
सुऩायी ऩय ही िारव डारं।                                                        यम्मॊ सुशोबनॊ फदव्मॊ सवा सौख्म कयॊ शुबभ ्।
                                                                                   आसनॊ ि भमादत्तॊ गृहाण ऩयभेद्वय॥
स्भयण:                                                                        ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् आसनॊ
     हाथभं ऩुष्ऩ रेकय श्री गणेशजी का स्भयण कयं ।                                                 सभऩामासभ॥
           नभस्तस्भै गणेशाम सवा त्रवध्न त्रवनासशने॥                   मफद द्ऴोक ऩढने भं कफठनाई हो तो आसन सभऩाासभ श्री
              कामाायॊबेषु सवेषु ऩूस्जतो म् सुयैयत्रऩ।                 गॊ गणेशाम नभ् का उच्िायण कयते हुवे गणेश जी के
             सुभुखद्ळैक दॊ तद्ळ कत्रऩरो गजकणाक्॥                      ियण धोमे।
14                                               ससतम्फय 2011



ऩाद्यॊ:                                                     इस क स्थान ऩय ऩम् स्नानभ ् सभऩामासभ गॊ गणेशाम
                                                                े
            उष्णोदक सनभारॊ ि सवा सौगडध सॊमुतभ ्।
                   ॊ                                        नभ् का उच्िायण कये तथा ऩम् क स्थान ऩय दध कहं ,
                                                                                        े          ू
             ऩाद प्रऺारनाथााम दत्तॊ ते प्रसतगृह्यताभ ्॥     दहीॊ कहं , धृतभ ् कहं , भधु कहं , शकया कहं क स्नान
                                                                                                ा       े
ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ऩाद्यॊ सभऩामासभ॥    कयामे।
                                                                          ऩमसस्तु सभुद्भूतॊ भधुयाम्रॊ शसशप्रबभ ् ।
अघ्मं:                                                                 दध्मानीतॊ भमा दे व स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥
आिभनीभं जर, पर, पर, िॊदन, अऺत, दस्ऺणा
             ू                                                             नवनीतसभुत्ऩडनॊ सवासॊतोषकायकभ ् ।
इत्माफद हाथ भं यख कय सनम्न भॊि का उच्िायण कयं ...                      घृतॊ तुभ्मॊ प्रदास्मासभ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥
              अध्मा गृहाण दे वेश गॊध ऩुष्ऩऺतै् सह।                       तरु ऩुष्ऩ सभुत्ऩडनॊ सुस्वादु भधुयॊ भधु ।
            करुणा करु भं दे व गृहाणाध्मै् नभोस्तुते॥
                   ु                                                   तेज् ऩुत्रद्शकयॊ फदव्मॊ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥
ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् अघ्मं सभऩामासभ                    इऺुसायसभुद्भूताॊ शका याॊ ऩुत्रद्शदाॊ शुबाभ ् ।
भॊि का उच्िायण कयक अध्मा की साभग्रीमा अत्रऩात कयदं ।
                  े                                                     भराऩहारयकाॊ फदव्मॊ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥
                                                                          ऩमो दसध धृत िैव भधु ि शका यामुतभ ्।
आिभन:                                                                   ऩॊिाभृत भमानीतॊ सनानाथा प्रसतघृहमताभ॥
             सवा तीथा सभामुि सुगसध सनभार जरभ ्।
                            ॊ   ॊ
              आिम्मताॊ भमा दत्तॊ गृहीत्वा ऩयभेद्वयॊ ॥       वस्त्रॊ:
          ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् आिभनॊ     ऩॊिाभृत स्नान क फाद स्वच्ि कय क वस्त्र ऩहनामे मा
                                                                           े               े
                           सभऩामासभ॥                        सभत्रऩात कयं ।
                                                                        सवा बूषाफदक सौम्मे रोकरज्जा सनवायणे ।
                                                                                   े
स्नानॊ:                                                                  भमोऩऩाफदते तुभ्मॊ वाससी प्रसतगृहीताभ ् ॥
              गॊगा ि मभुना ये वा तुॊगबद्रा सयस्वसत।                 ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् वस्त्रोऩवस्त्रे
             कावेयी सफहता नद्य् सद्य् स्नाथाभत्रऩाता॥                                     सभऩामासभ॥
 ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् स्नानॊ सभऩामासभ
            भॊि का उच्िायण कयते हुवे स्नान कयामे।           मऻोऩवीत
                                                                       ततऩद्ळमात सनम्न भॊि से मऻोऩवीत ऩहनामे
ऩॊिाभृत स्नान:                                                              नवसभस्तॊतुसबमुि त्रिगुणॊ दे वताभमॊ।
तत ऩद्ळमात ऩॊिाभृत से क्रभश् दध, दही, घी, शहद,
                              ू                                             सऩफीतॊ भमा दत्तॊ गृहाण ऩयभेद्वयभ ्॥
शक्कय से स्नान कया कय शुद्धजर मा गॊगाजर से उि                       ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् मऻोऩत्रवतॊ
भॊि से ऩुन् स्वच्ि कयरे।                                                                  सभऩामासभ॥
तत ऩद्ळमात शुद्ध वस्त्र से ऩोि कय प्रसतत्रद्षत कयं ।
                                                            िॊदन:
दध स्नान:
 ू                                                                             ततऩद्ळमात रार िॊदन िढामे।
              काभधेनु सभुत्ऩनॊ सवेषाॊ जीवन ऩयभ ्।                       श्रीखण्ड िडदन फदव्मॊ कशयाफद सुभनीहयभ ्।
                                                                                              े
             ऩावनॊ मऻ हे तुद्ळ ऩम: स्नानाथाभत्रऩातभ ्॥          त्रवरेऩनॊ सुश्रद्ष िडदनॊ प्रसतगृहमतभ ्॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत
                                                                           श्री गणेशाम नभ् ककभॊ सभऩामासभ॥
                                                                                            ुॊ ु
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  • 1. Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका ससतम्फय- 2011 NON PROFIT PUBLICATION
  • 2. FREE E CIRCULAR गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ससतम्फय 2011 सॊऩादक सिॊतन जोशी गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग सॊऩका गुरुत्व कामाारम 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA पोन 91+9338213418, 91+9238328785, gurutva.karyalay@gmail.com, ईभेर gurutva_karyalay@yahoo.in, http://gk.yolasite.com/ वेफ http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ ऩत्रिका प्रस्तुसत सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी पोटो ग्राफपक्स सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा हभाये भुख्म सहमोगी स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक सोफ्टे क इस्डडमा सर) ई- जडभ ऩत्रिका E HOROSCOPE अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया Create By Advanced Astrology उत्कृ द्श बत्रवष्मवाणी क साथ े Excellent Prediction १००+ ऩेज भं प्रस्तुत 100+ Pages फहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/- GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 3. अनुक्रभ गणेश ितुथॉ त्रवशेष सवाप्रथभ ऩूजनीम कसे फने श्री गणेश? ै 6 गणेशबुजॊगभ ् 32 क्मं शुबकामं भं सवाप्रथभ ऩूजा होती हं गणेशजी 10 भनोवाॊसित परो फक प्रासद्ऱ हे तु ससत्रद्ध प्रद गणऩसत 33 की? स्तोि गणेश ऩूजन हे तु शुब भुहूता 11 सॊकद्शहयणॊ गणेशाद्शकभ ् 34 सयर त्रवसध से श्री गणेश ऩूजन 12 गणेश ऩॊच्ियत्नभ ् 34 गणेश गामिी भॊि 17 एकदडत शयणागसत स्तोिभ ् 35 अनॊत ितुदाशी व्रत उत्तभ परदामी होता हं । 18 गणेश ऩूजन से वास्तु दोष सनवायण 36 गणेशजी को दवाा-दर िढ़ाने का भॊि ु 19 गणेश वाहन भूषक कसे फना े 37 गणेश ऩूजन भं कोन से पर िढाए। ू 20 गणेश स्तवन 38 सॊकटनाशन गणेशस्तोिभ ् 20 त्रवष्णुकृतॊ गणेशस्तोिभ ् 38 शाऩ क कायण गणऩसत ऩूजन भं तुरसी सनत्रषद्ध हं ? े 21 गणऩसतस्तोिभ ् 39 गणेश क िभत्कायी भॊि े 22 ॥श्री त्रवघ्नेद्वयाद्शोत्तय शतनाभस्तोिभ ् ॥ 39 गणेश क कल्माणकायी भॊि े 22 ससत्रद्ध त्रवनामक व्रत त्रवधान 40 ।।गणऩसत अथवाशीषा।। 25 सॊकद्शहय ितुथॉ व्रत का प्रायॊ ब कफ हुवा 40 गणेश ऩूजन से ग्रहऩीडा दय होती हं । ू 26 गणेश कविभ ् 41 गणेश ितुथॉ ऩय िॊद्र दशान सनषेध क्मं... 27 गणेशद्रादशनाभस्तोिभ ्। 41 ऋण भुत्रि त्रवशेष ऋण हयण श्री गणेश भॊि साधना 42 ज्मोसतष औय ऋण 53 श्रीऋण हयण कतृा गणऩसत स्तोि 43 भहत्रषा वास्ल्भकी ने सिड़ीभाय को शाऩ फदमा 57 ऋणभोिक भॊगर स्तोि 43 ज्मोसतष से जान ऋण से भुत्रि कफ सभरेगी? 58 ऋण भोिन भहा गणऩसत स्तोि 44 सुख-स्भृत्रद्ध क सरमे जाने ऋण(कजा) कफ रे औय कफ दे े 60 रार फकताफ से जाने कण 45 स्थामी रेख सॊऩादकीम 4 दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 79 गुरु ऩुष्माभृत मोग 65 फदन क िौघफडमे े 80 भाससक यासश पर 66 फदन फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक 81 ससतम्फय 2011 भाससक ऩॊिाॊग 71 ग्रह िरन ससतम्फय -2011 82 ससतम्फय-2011 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 73 सूिना 90 ससतम्फय 2011 -त्रवशेष मोग 79 हभाया उद्दे श्म 91
  • 4. सॊऩादकीम त्रप्रम आस्त्भम फॊधु/ फफहन जम गुरुदे व वक्रतुॊड भहाकाम सूमाकोफट सभप्रब: सनत्रवघ्नॊ करु भे दे व: सवाकामेषु सवादा ा ु हे रॊफे शयीय औय हाथी सभान भुख वारे गणेशजी, आऩ कयोड़ं सूमा क सभान िभकीरे हं । कृ ऩा कय भेये साये ॊ े काभं भं आने वारी फाधाओॊ त्रवघ्नो को आऩ सदा दय कयते यहं । ू गणऩसत शब्द का अथा हं । गण(सभूह)+ऩसत (स्वाभी) = सभूह क स्वाभी को सेनाऩसत अथाात गणऩसत कहते हं । भानव शयीय भं े ऩाॉि ऻानेस्डद्रमाॉ, ऩाॉि कभेस्डद्रमाॉ औय िाय अडत्कयण होते हं । एवॊ इस शत्रिओॊ को जो शत्रिमाॊ सॊिासरत कयती हं उडहीॊ को िौदह दे वता कहते हं । इन सबी दे वताओॊ क भूर प्रेयक बगवान श्रीगणेश हं । े बायतीम सॊस्कृ सत भं प्रत्मेक शुबकामा शुबायॊ ब से ऩूवा बगवान श्री गणेश जी की ऩूजा-अिाना की जाती हं । इस सरमे मे फकसी बी कामा का शुबायॊ ब कयने से ऩूवा उस कामा का "श्री गणेश कयना" कहाॊ जाता हं । प्रत्मक शुब कामा मा अनुद्षान कयने क ऩूवा ‘‘श्री गणेशाम नभ्” भॊि का उच्िायण फकमा जाता हं । बगवान े गणेश को सभस्त ससत्रद्धमं क दाता भाना गमा है । क्मोफक सायी ससत्रद्धमाॉ बगवान श्री गणेश भं वास कयती हं । े बगवान श्री गणेश सभस्त त्रवघ्नं को टारने वारे हं , दमा एवॊ कृ ऩा क असत सुदय भहासागय हं , तीनो रोक क े ॊ े कल्माण हे तु बगवान गणऩसत सफ प्रकाय से मोग्म हं । शास्त्रोि विन से इस कल्मुग भं तीव्र पर प्रदान कयने वारे बगवान गणेश औय भाता कारी हं । इस सरमे कहाॊ गमा हं । करा िण्डीत्रवनामकौ अथाात ्: करमुग भं िण्डी औय त्रवनामक की आयाधना ससत्रद्धदामक औय परदामी होता है । धभा शास्त्रोभं ऩॊिदे वं की उऩासना कयने का त्रवधान हं । आफदत्मॊ गणनाथॊ ि दे वीॊ रूद्रॊ ि कशवभ ्। े ऩॊिदै वतसभत्मुि सवाकभासु ऩूजमेत ्।। (शब्दकल्ऩद्रभ) ॊ ु बावाथा: - ऩॊिदे वं फक उऩासना का ब्रह्माॊड क ऩॊिबूतं क साथ सॊफध है । ऩॊिबूत ऩृथ्वी, जर, तेज, वामु औय े े ॊ आकाश से फनते हं । औय ऩॊिबूत क आसधऩत्म क कायण से आफदत्म, गणनाथ(गणेश), दे वी, रूद्र औय कशव मे े े े ऩॊिदे व बी ऩूजनीम हं । हय एक तत्त्व का हय एक दे वता स्वाभी हं ।
  • 5. इस गणेश ितुथॉ क शुब अवसय ऩय आऩ अऩने जीवन भं फदन प्रसतफदन अऩने उद्दे श्म फक ऩूसता हे तु अग्रस्णम े होते यहे आऩकी सकर भनोकाभनाएॊ ऩूणा हो एवॊ आऩक सबी शुब कामा बगवान श्री गणेश क आसशवााद से े े त्रफना फकसी सॊकट क ऩूणा होते यहे हभायी मफह भॊगर काभना हं ...... े ‘मावत स्जवेत सुखभ स्जवेत, ऋणॊ कृ त्वा घृतॊ त्रऩफेत।’ अथाात् जफ तक स्जमो सुख से स्जमो, ऋण रेकय घी त्रऩमो। दे ह क बस्भी बूत हो जाने ऩय दफाया इस सॊसाय े ु भं आना कहाॉ से होगा। आज क आधुसनक मुग भं ऋण की सभस्मा असभय-भध्मभ-गयीव हय वगा फक हं । ऋण मा कजा ऎसे े शब्द हं स्जसको सुनने भाि से व्मत्रि को उदास, स्खडन मा अवसाद भहसूस होता हं । क्मोफक कजा क फोझ भं े दफा हुवा व्मत्रि सदै व भानससक सिॊता औय ऩये शानी भहसूस कयता हं । व्मत्रि हभेशा सोिता यहता हं की सभम ऩय कजा ना िुका ऩाने ऩय सभाज भं उसका भान-सम्भान व प्रसतद्षा सभट्टी भं सभर जामेगी, रोक नीॊदा हो जामेगी औय वह सोिता हं की उसे कजा क त्रऩॊड से भुत्रि कफ सभरेगी? वह कजा भुि कफ होगा? व्मत्रि को े ना फदन भं िैन सभरता हं औय न ही यात भं शकन सभरता हं । व्मत्रि क यातो की सनॊद हयाभ हो जाती हं । ू े आज सभाज भं व्मत्रि बौसतकता क दौड भं अॊधा हो गमा हं । असभय हो मा गरयव हय व्मत्रि व्मत्रि े फदन यात एक कयक फकसी ना फकसी प्रकाय से असधक से असधक भािा भं धन एकत्रित कयना िाहता हं । े असभय औय असभय फनना िाहता हं औय गयीव असभय फनना िाहता हं । क्मोफक एसा बी नहीॊ हं की कजा ससपा गयीफ को मा भध्मभ वगॉ रोगो को रेना ऩड़ता हं फडे से फडे असभयं को बी कजा रेना ऩड़ जाता हं । आज ज्मादातय व्मत्रि कजा क भक्कड़ जार भं उरझा हुआ हं । े आज कोई व्मत्रि धन उधाय दे कय योते हुवे सभरता हं तो कोई धन रेकय ऩिता ते हुवे आसानी से सभरता हं । 10-20 वषा ऩहरे फकसी से कजाा रेने क सरए रयस्तेदय-सभि-साहुकाय को ढे यं सभडनतं कयनी होती थीॊ ऩय अफ सभम फदर गमा हं गरी-गरी उधाय े दे ने क सरमे फंक वारे रोन/क्रफडट काडा दे ते फपयते यहते हं । े े ज्मोसतष भं रारफकताफ क अनुशाय कवर आसथाक ऋण ही भानव जीवन क फाधक नहीॊ हं उसक े े े े उऩयाॊत बी त्रऩतृ ऋण, भातृ ऋण, स्त्री ऋण, फहन-फेटी का ऋण, सनदा मी ऋण, अऻान का ऋण, दै त्रव ऋण, सॊफसध (रयश्तेदायी) का ऋण, स्वऋण आफद ऋण भानव क जीवन भं सुख-सभृत्रद्ध व उडनसत भं फाधक होते हं । ॊ े आऩ सबी क भागादशान हे तु इस अॊक भं रारफकताफ भं उल्रेस्खत ऋण को त्रवस्तायऩूवाक भझामा जा यहा हं े तथा उनक उऩाम बी फदमे जा यहे हं । बयतीम ऋत्रष-भुसन एवॊ त्रवद्रानो ने अऩने मोगफर व अनुबवो से कजा से े भुत्रि हे तु त्रवसबडन स्तोि, भॊि, मॊि, उऩाम, प्रमोग इत्मादी फतामे हं स्जनका प्रमोग कय व्मत्रि सयरता से ऋणभुि हो सकता हं । हभायी शुबकाभनाएॊ आऩक साथ हं ….. े सिॊतन जोशी
  • 6. 6 ससतम्फय 2011 सवाप्रथभ ऩूजनीम कसे फने श्री गणेश? ै  सिॊतन जोशी बायतीम सॊस्कृ सत भं प्रत्मेक शुबकामा कयने क ऩूवा े गमा। जफ इस त्रववादने फडा रुऩ धायण कय सरमे तफ बगवान श्री गणेश जी की ऩूजा की जाती हं इसी सरमे मे सबी दे वता अऩने-अऩने फर फुत्रद्धअ क फर ऩय दावे े फकसी बी कामा का शुबायॊ ब कयने से ऩूवा कामा का "श्री प्रस्तुत कयने रगे। कोई ऩयीणाभ नहीॊ आता दे ख सफ गणेश कयना" कहा जाता हं । एवॊ प्रत्मक शुब कामा मा दे वताओॊ ने सनणाम सरमा फक िरकय बगवान श्री त्रवष्णु अनुद्षान कयने क ऩूवा ‘‘श्री गणेशाम नभ्” का उच्िायण े को सनणाामक फना कय उनसे पसरा कयवामा जाम। ै फकमा जाता हं । गणेश को सभस्त ससत्रद्धमं को दे ने वारा सबी दे व गण त्रवष्णु रोक भे उऩस्स्थत हो गमे, भाना गमा है । सायी ससत्रद्धमाॉ गणेश भं वास कयती हं । बगवान त्रवष्णु ने इस भुद्दे को गॊबीय होते दे ख श्री त्रवष्णु इसक ऩीिे भुख्म कायण हं की बगवान श्री गणेश े ने सबी दे वताओॊ को अऩने साथ रेकय सशवरोक भं ऩहुि सभस्त त्रवघ्नं को टारने वारे हं , दमा एवॊ गमे। सशवजी ने कहा इसका सही सनदान कृ ऩा क असत सुॊदय भहासागय हं , े सृत्रद्शकताा ब्रह्माजी फह फताएॊगे। एवॊ तीनो रोक क कल्माण े सशवजी श्री त्रवष्णु एवॊ अडम हे तु बगवान गणऩसत दे वताओॊ क साथ सभरकय े सफ प्रकाय से मोग्म हं । ब्रह्मरोक ऩहुिं औय सभस्त त्रवघ्न फाधाओॊ ब्रह्माजी को सायी फाते को दय कयने वारे गणेश ू त्रवस्ताय से फताकय त्रवनामक हं । गणेशजी उनसे पसरा कयने का ै त्रवद्या-फुत्रद्ध के अथाह अनुयोध फकमा। ब्रह्माजी सागय एवॊ त्रवधाता हं । ने कहा प्रथभ ऩूजनीम वहीॊ बगवान गणेश को सवा होगा जो जो ऩूये ब्रह्माण्ड क तीन े प्रथभ ऩूजे जाने क त्रवषम भं कि े ु िक्कय रगाकय सवाप्रथभ रौटे गा। त्रवशेष रोक कथा प्रिसरत हं । इन त्रवशेष एवॊ रोकत्रप्रम सभस्त दे वता ब्रह्माण्ड का िक्कय रगाने क सरए अऩने े कथाओॊ का वणान महा कय यहं हं । अऩने वाहनं ऩय सवाय होकय सनकर ऩड़े । रेफकन, गणेशजी इस क सॊदबा भं एक कथा है फक भहत्रषा वेद व्मास ने े का वाहन भूषक था। बरा भूषक ऩय सवाय हो गणेश कसे ै भहाबायत को से फोरकय सरखवामा था, स्जसे स्वमॊ गणेशजी ब्रह्माण्ड क तीन िक्कय रगाकय सवाप्रथभ रौटकय सपर े ने सरखा था। अडम कोई बी इस ग्रॊथ को तीव्रता से सरखने भं होते। रेफकन गणऩसत ऩयभ त्रवद्या-फुत्रद्धभान एवॊ ितुय थे। सभथा नहीॊ था। गणऩसत ने अऩने वाहन भूषक ऩय सवाय हो कय अऩने सवाप्रथभ कौन ऩूजनीम हो? भाता-त्रऩत फक तीन प्रदस्ऺणा ऩूयी की औय जा ऩहुॉिे सनणाामक ब्रह्माजी क ऩास। ब्रह्माजी ने जफ ऩूिा फक वे क्मं नहीॊ गए े कथा इस प्रकाय हं : तीनो रोक भं सवाप्रथभ कौन ऩूजनीम ब्रह्माण्ड क िक्कय ऩूये कयने, तो गजाननजी ने जवाफ फदमा फक े हो?, इस फात को रेकय सभस्त दे वताओॊ भं त्रववाद खडा हो
  • 7. 7 ससतम्फय 2011 भाता-त्रऩत भं तीनं रोक, सभस्त ब्रह्माण्ड, सभस्त तीथा, उऩस्स्थसत भं भाता ऩावाती ने त्रविाय फकमा फक उनका सभस्त दे व औय सभस्त ऩुण्म त्रवद्यभान होते हं । स्वमॊ का एक सेवक होना िाफहमे, जो ऩयभ शुब, अत् जफ भंने अऩने भाता-त्रऩत की ऩरयक्रभा ऩूयी कय कामाकशर तथा उनकी आऻा का सतत ऩारन कयने भं ु री, तो इसका तात्ऩमा है फक भंने ऩूये ब्रह्माण्ड की प्रदस्ऺणा ऩूयी कबी त्रविसरत न हो। इस प्रकाय सोिकय भाता ऩावाती नं कय री। उनकी मह तकसॊगत मुत्रि ा अऩने भॊगरभम ऩावनतभ शयीय के स्वीकाय कय री गई औय इस तयह वे सबी भैर से अऩनी भामा शत्रि से फार रोक भं सवाभाडम 'सवाप्रथभ ऩूज्म' भाने गणेश को उत्ऩडन फकमा। गए। एक सभम जफ भाता ऩावाती भानसयोवय भं स्नान कय यही थी तफ सरॊगऩुयाण क अनुसाय (105। े उडहंने स्नान स्थर ऩय कोई आ न 15-27) – एक फाय असुयं से िस्त सक इस हे तु अऩनी भामा से गणेश े दे वतागणं द्राया की गई प्राथाना से को जडभ दे कय 'फार गणेश' को ऩहया बगवान सशव ने सुय-सभुदाम को दे ने क सरए सनमुि कय फदमा। े असबद्श वय दे कय आद्वस्त फकमा। कि ु भॊि ससद्ध ऩडना गणेश इसी दौयान बगवान सशव उधय ही सभम क ऩद्ळात तीनो रोक क े े बगवान श्री गणेश फुत्रद्ध औय सशऺा के आ जाते हं । गणेशजी सशवजी को योक दे वासधदे व भहादे व बगवान सशव का कायक ग्रह फुध क असधऩसत दे वता े कय कहते हं फक आऩ उधय नहीॊ जा भाता ऩावाती क सम्भुख ऩयब्रह्म स्वरूऩ े हं । ऩडना गणेश फुध क सकायात्भक े सकते हं । मह सुनकय बगवान सशव गणेश जी का प्राकट्म हुआ। प्रबाव को फठाता हं एवॊ नकायात्भक क्रोसधत हो जाते हं औय गणेश जी को सवात्रवघ्नेश भोदक त्रप्रम गणऩसतजी का प्रबाव को कभ कयता हं ।. ऩडन यास्ते से हटने का कहते हं फकतु गणेश ॊ जातकभााफद सॊस्काय क ऩद्ळात ् बगवान े गणेश क प्रबाव से व्माऩाय औय धन े जी अड़े यहते हं तफ दोनं भं मुद्ध हो सशव ने अऩने ऩुि को उसका कताव्म भं वृत्रद्ध भं वृत्रद्ध होती हं । फच्िो फक जाता है । मुद्ध क दौयान क्रोसधत होकय े सभझाते हुए आशीवााद फदमा फक जो ऩढाई हे तु बी त्रवशेष पर प्रद हं सशवजी फार गणेश का ससय धड़ से तुम्हायी ऩूजा फकमे त्रफना ऩूजा ऩाठ, ऩडना गणेश इस क प्रबाव से फच्िे े अरग कय दे ते हं । सशव क इस कृ त्म े फक फुत्रद्ध कशाग्र ू होकय उसके अनुद्षान इत्माफद शुब कभं का का जफ ऩावाती को ऩता िरता है तो वे आत्भत्रवद्वास भं बी त्रवशेष वृत्रद्ध होती अनुद्षान कये गा, उसका भॊगर बी त्रवराऩ औय क्रोध से प्ररम का सृजन हं । भानससक अशाॊसत को कभ कयने भं अभॊगर भं ऩरयणत हो जामेगा। जो कयते हुए कहती है फक तुभने भेये ऩुि भदद कयता हं , व्मत्रि द्राया अवशोत्रषत रोग पर की काभना से ब्रह्मा, त्रवष्णु, को भाय डारा। हयी त्रवफकयण शाॊती प्रदान कयती हं , इडद्र अथवा अडम दे वताओॊ की बी ऩावातीजी क द्ख को दे खकय े व्मत्रि क शायीय क तॊि को सनमॊत्रित े े ु ऩूजा कयं गे, फकडतु तुम्हायी ऩूजा नहीॊ कयती हं । स्जगय, पपड़े , जीब, े सशवजी ने उऩस्स्थत गणको आदे श दे ते कयं गे, उडहं तुभ त्रवघ्नं द्राया फाधा भस्स्तष्क औय तॊत्रिका तॊि इत्माफद योग हुवे कहा सफसे ऩहरा जीव सभरे, उसका ऩहुॉिाओगे। भं सहामक होते हं । कीभती ऩत्थय ससय काटकय इस फारक क धड़ ऩय रगा े जडभ की कथा बी फड़ी योिक है । भयगज क फने होते हं । े दो, तो मह फारक जीत्रवत हो उठे गा। गणेशजी की ऩौयास्णक कथा Rs.550 से Rs.8200 तक सेवको को सफसे ऩहरे हाथी का एक फच्िा बगवान सशव फक अन सभरा। उडहंने उसका ससय राकय फारक
  • 8. 8 ससतम्फय 2011 क धड़ ऩय रगा फदमा, फारक जीत्रवत हो उठा। े कये इस सरमे बगवान त्रवष्णु अडम दे वताओॊ क साथ भं े उस अवसय ऩय तीनो दे वताओॊ ने उडहं सबी रोक तम फकम फक गणेश सबी भाॊगरीक कामो भं अग्रणीम भं अग्रऩूज्मता का वय प्रदान फकमा औय उडहं सवा अध्मऺ ऩूजे जामंगे एवॊ उनक ऩूजन क त्रफना कोई बी दे वता ऩूजा े े ऩद ऩय त्रवयाजभान फकमा। स्कद ऩुयाण ॊ ग्रहण नहीॊ कयं गे। ब्रह्मवैवताऩुयाण क अनुसाय (गणऩसतखण्ड) – े इस ऩय बगवान ् त्रवष्णु ने श्रेद्षतभ उऩहायं से सशव-ऩावाती क त्रववाह होने क फाद उनकी कोई े े बगवान गजानन फक ऩूजा फक औय वयदान फदमा फक सॊतान नहीॊ हुई, तो सशवजी ने ऩावातीजी से बगवान सवााग्रे तव ऩूजा ि भमा दत्ता सुयोत्तभ। त्रवष्णु क शुबपरप्रद ‘ऩुण्मक’ व्रत कयने को कहा ऩावाती े क ‘ऩुण्मक’ व्रत से बगवान त्रवष्णु ने प्रसडन हो कय े सवाऩूज्मद्ळ मोगीडद्रो बव वत्सेत्मुवाि तभ ्।। ऩावातीजी को ऩुि प्रासद्ऱ का वयदान फदमा। ‘ऩुण्मक’ व्रत के (गणऩसतखॊ. 13। 2) प्रबाव से ऩावातीजी को एक ऩुि उत्ऩडन हुवा। बावाथा: ‘सुयश्रेद्ष! भंने सफसे ऩहरे तुम्हायी ऩूजा फक है , ऩुि जडभ फक फात सुन कय सबी दे व, ऋत्रष, अत् वत्स! तुभ सवाऩूज्म तथा मोगीडद्र हो जाओ।’ गॊधवा आफद सफ गण फारक क दशान हे तु ऩधाये । इन दे व े ब्रह्मवैवता ऩुयाण भं ही एक अडम प्रसॊगाडतगात ऩुिवत्सरा गणो भं शसन भहायाज बी उऩस्स्थत हुवे। फकडतु शसनदे व ऩावाती ने गणेश भफहभा का फखान कयते हुए ऩयशुयाभ से ने ऩत्नी द्राया फदमे गमे शाऩ क कायण फारक का दशान े कहा – नहीॊ फकमा। ऩयडतु भाता ऩावाती क फाय-फाय कहने ऩय े त्वफद्रधॊ रऺकोफटॊ ि हडतुॊ शिो गणेद्वय्। स्जतेस्डद्रमाणाॊ शसनदे व नं जेसे फह अऩनी द्रत्रद्श सशशु फारक उऩय ऩडी, े प्रवयो नफह हस्डत ि भस्ऺकाभ ्।। उसी ऺण फारक गणेश का गदा न धड़ से अरग हो गमा। भाता ऩावाती क त्रवरऩ कयने ऩय बगवान ् त्रवष्णु े तेजसा कृ ष्णतुल्मोऽमॊ कृ ष्णाॊद्ळ गणेद्वय्। दे वाद्ळाडमे ऩुष्ऩबद्रा नदी क अयण्म से एक गजसशशु का भस्तक े कृ ष्णकरा् ऩूजास्म ऩुयतस्तत्।। काटकय रामे औय गणेशजी क भस्तक ऩय रगा फदमा। े (ब्रह्मवैवताऩु., गणऩसतख., 44। 26-27) गजभुख रगे होने क कायण कोई गणेश फक उऩेऺा न े बावाथा: स्जतेस्डद्रम ऩुरूषं भं श्रेद्ष गणेश तुभभं जैसे क्मा आऩ फकसी सभस्मा से ग्रस्त हं ? आऩक ऩास अऩनी सभस्माओॊ से िटकाया ऩाने हे तु ऩूजा-अिाना, साधना, भॊि जाऩ इत्माफद कयने का सभम नहीॊ े ु हं ? अफ आऩ अऩनी सभस्माओॊ से फीना फकसी त्रवशेष ऩूजा-अिाना, त्रवसध-त्रवधान क आऩको अऩने कामा भं े सपरता प्राद्ऱ कय सक एवॊ आऩको अऩने जीवन क सभस्त सुखो को प्राद्ऱ कयने का भागा प्राद्ऱ हो सक इस सरमे े े े गुरुत्व कामाारत द्राया हभाया उद्दे श्म शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतडम मुि त्रवसबडन प्रकाय क मडि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩक घय तक ऩहोिाने का है । े े GURUTVA KARYALAY Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA, Call Us : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785, E-mail Us:- gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Visit Us: http://gk.yolasite.com/ ,http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/
  • 9. 9 ससतम्फय 2011 राखं-कयोड़ं जडतुओॊ को भाय डारने की शत्रि है ; ऩयडतु 3. तेज (अस्ग्न) शत्रि (भहे द्वयी) तुभने भक्खी ऩय बी हाथ नहीॊ उठामा। श्रीकृ ष्ण क अॊश े 4. भरूत ् (वामु) सूमा (अस्ग्न) से उत्ऩडन हुआ वह गणेश तेज भं श्रीकृ ष्ण क ही सभान े 5. व्मोभ (आकाश) त्रवष्णु है । अडम दे वता श्रीकृ ष्ण की कराएॉ हं । इसीसे इसकी अग्रऩूजा होती है । बगवान ् श्रीसशव ऩृथ्वी तत्त्व क असधऩसत होने क े े शास्त्रीम भतसे कायण उनकी सशवसरॊग क रुऩ भं ऩासथाव-ऩूजा का त्रवधान े शास्त्रोभं ऩॊिदे वं की उऩासना कयने का त्रवधान हं । हं । बगवान ् त्रवष्णु क आकाश तत्त्व क असधऩसत होने क े े े आफदत्मॊ गणनाथॊ ि दे वीॊ रूद्रॊ ि कशवभ ्। े कायण उनकी शब्दं द्राया स्तुसत कयने का त्रवधान हं । ऩॊिदै वतसभत्मुि सवाकभासु ऩूजमेत ्।। ॊ बगवती दे वी क अस्ग्न तत्त्व का असधऩसत होने क कायण े े उनका अस्ग्नकण्ड भं हवनाफद क द्राया ऩूजा कयने का ु े (शब्दकल्ऩद्रभ) ु त्रवधान हं । श्रीगणेश क जरतत्त्व क असधऩसत होने क े े े बावाथा: - ऩॊिदे वं फक उऩासना का ब्रह्माॊड क ऩॊिबूतं क े े कायण उनकी सवाप्रथभ ऩूजा कयने का त्रवधान हं , क्मंफक साथ सॊफॊध है । ऩॊिबूत ऩृथ्वी, जर, तेज, वामु औय आकाश ब्रह्माॊद भं सवाप्रथभ उत्ऩडन होने वारे जीव तत्त्व ‘जर’ का से फनते हं । औय ऩॊिबूत क आसधऩत्म क कायण से े े असधऩसत होने क कायण गणेशजी ही प्रथभ ऩूज्म क े े आफदत्म, गणनाथ(गणेश), दे वी, रूद्र औय कशव मे ऩॊिदे व े असधकायी होते हं । बी ऩूजनीम हं । हय एक तत्त्व का हय एक दे वता स्वाभी आिामा भनु का कथन है - हं - “अऩ एि ससजाादौ तासु फीजभवासृजत ्।” आकाशस्मासधऩो त्रवष्णुयग्नेद्ळैव भहे द्वयी। वामो् सूम् स्ऺतेयीशो जीवनस्म गणासधऩ्।। ा (भनुस्भृसत 1) बावाथा:- क्रभ इस प्रकाय हं भहाबूत असधऩसत बावाथा: 1. स्ऺसत (ऩृथ्वी) सशव इस प्रभाण से सृत्रद्श क आफद भं एकभाि वताभान जर का े 2. अऩ ् (जर) गणेश असधऩसत गणेश हं । ऩसत-ऩत्नी भं करह सनवायण हे तु मफद ऩरयवायं भं सुख-सुत्रवधा क सभस्त साधान होते हुए बी िोटी-िोटी फातो भं ऩसत-ऩत्नी क त्रफि भे करह होता े े यहता हं , तो घय क स्जतने सदस्म हो उन सफक नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध े े प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतडम मुि वशीकयण कवि एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं त्रफना फकसी ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मफद आऩ भॊि ससद्ध ऩसत वशीकयण मा ऩत्नी वशीकयण एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवाना िाहते हं, तो सॊऩक आऩ कय सकते हं । ा GURUTVA KARYALAY Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
  • 10. 10 ससतम्फय 2011 क्मं शुबकामं भं सवाप्रथभ ऩूजा होती हं गणेशजी की?  सिॊतन जोशी गणऩसत शब्द का अथा हं । गण(सभूह)+ऩसत (स्वाभी) = सभूह क स्वाभी को सेनाऩसत अथाात गणऩसत कहते हं । भानव शयीय भं ऩाॉि े ऻानेस्डद्रमाॉ, ऩाॉि कभेस्डद्रमाॉ औय िाय अडत्कयण होते हं । एवॊ इस शत्रिओॊ को जो शत्रिमाॊ सॊिासरत कयती हं उडहीॊ को िौदह दे वता कहते हं । इन सबी दे वताओॊ क भूर प्रेयक हं बगवान श्रीगणेश। े बगवान गणऩसत शब्दब्रह्म अथाात ् ओॊकाय क प्रतीक हं , इनकी भहत्व का मह हीॊ भुख्म कायण हं । े श्रीगणऩत्मथवाशीषा भं वस्णात हं ओॊकाय का ही व्मि स्वरूऩ गणऩसत दे वता हं । इसी कायण सबी प्रकाय क शुब े भाॊगसरक कामं औय दे वता-प्रसतद्षाऩनाओॊ भं बगवान गणऩसत फक प्रथभ ऩूजा फक जाती हं । स्जस प्रकाय से प्रत्मेक भॊि फक शत्रि को फढाने क सरमे भॊि क आगं ॐ (ओभ ्) े े आवश्मक रगा होता हं । उसी प्रकाय प्रत्मेक शुब भाॊगसरक कामं क सरमे ऩय बगवान ् गणऩसत की ऩूजा एवॊ स्भयण असनवामा भानी गई हं । इस सबी शास्त्र एवॊ वैफदक धभा, सम्प्रदामं ने े इस प्रािीन ऩयम्ऩया को एक भत से स्वीकाय फकमा हं इसका सदीमं से बगवान गणे श जी क प्रथभ ऩूजन कयने फक ऩयॊ ऩया का अनुसयण कयते िरे आयहे हं । गणेश जी की ही ऩूजा सफसे ऩहरे क्मं होती है , इसकी ऩौयास्णक कथा इस प्रकाय है - ऩद्मऩुयाण क अनुसाय (सृत्रद्शखण्ड 61। 1 से 63। 11) – े एक फदन व्मासजी क सशष्म ने अऩने गुरूदे व को प्रणाभ े कयक प्रद्ल फकमा फक गुरूदे व! आऩ भुझे दे वताओॊ क ऩूजन का सुसनस्द्ळत क्रभ फतराइमे। प्रसतफदन फक ऩूजा भं सफसे े े ऩहरे फकसका ऩूजन कयना िाफहमे ? तफ व्मासजी ने कहा: त्रवघ्नं को दय कयने क सरमे सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा कयनी िाफहमे। ऩूवकार भं ू े ा ऩावाती दे वी को दे वताओॊ ने अभृत से तैमाय फकमा हुआ एक फदव्म भोदक फदमा। भोदक दे खकय दोनं फारक (स्कडद तथा गणेश) भाता से भाॉगने रगे। तफ भाता ने भोदक क प्रबावं का वणान कयते हुए कहा फक तुभ दोनो भं से जो े धभााियण क द्राया श्रेद्षता प्राद्ऱ कयक आमेगा, उसी को भं मह भोदक दॉ गी। भाता की ऐसी फात सुनकय स्कडद भमूय ऩय े े ू आरूढ़ हो कय अल्ऩ भुहूतबय भं सफ तीथं की स्डनान कय सरमा। इधय रम्फोदयधायी गणेशजी भाता-त्रऩता की ऩरयक्रभा ा कयक त्रऩताजी क सम्भुख खड़े हो गमे। तफ ऩावातीजी ने कहा- सभस्त तीथं भं फकमा हुआ स्डनान, सम्ऩूणा दे वताओॊ को े े फकमा हुआ नभस्काय, सफ मऻं का अनुद्षान तथा सफ प्रकाय क व्रत, भडि, मोग औय सॊमभ का ऩारन- मे सबी साधन े भाता-त्रऩता क ऩूजन क सोरहवं अॊश क फयाफय बी नहीॊ हो सकते। े े े इससरमे मह गणेश सैकड़ं ऩुिं औय सैकड़ं गणं से बी फढ़कय श्रेद्ष है । अत् दे वताओॊ का फनामा हुआ मह भोदक भं गणेश को ही अऩाण कयती हूॉ। भाता-त्रऩता की बत्रि क कायण ही गणेश जी की प्रत्मेक शुब भॊगर भं सफसे ऩहरे ऩूजा े होगी। तत्ऩद्ळात ् भहादे वजी फोरे- इस गणेश क ही अग्रऩूजन से सम्ऩूणा दे वता प्रसडन हंजाते हं । इस सरमे तुभहं े सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा कयनी िाफहमे।
  • 11. 11 ससतम्फय 2011 गणेश ऩूजन हे तु शुब भुहूता  सिॊतन जोशी वैऻासनक ऩद्धसत क अनुसाय ब्रह्माॊड भं सभम व अनॊत आकाश क असतरयि सभस्त वस्तुएॊ े े भमाादा मुि हं । स्जस प्रकाय सभम का न ही कोई प्रायॊ ब है न ही कोई अॊत है । अनॊत आकाश की बी सभम की तयह कोई भमाादा नहीॊ है । इसका कहीॊ बी प्रायॊ ब मा अॊत नहीॊहोता। आधुसनक भानव ने इन दोनं तत्वं को हभेशा सभझने का व अऩने अनुसाय इनभं भ्रभण कयने का प्रमास फकमा हं ऩयडतु उसे सपरता प्राद्ऱ नहीॊ हुई है । साभाडमत् भुहूता का अथा है फकसी बी कामा को कयने क सरए सफसे शुब सभम व सतसथ िमन े कयना। कामा ऩूणत् परदामक हो इसक सर, सभस्त ग्रहं व अडम ज्मोसतष तत्वं का तेज इस प्रकाय ा े कस्डद्रत फकमा जाता है फक वे दष्प्रबावं को त्रवपर कय दे ते हं । वे भनुष्म की जडभ कण्डरी की े ु ु सभस्त फाधाओॊ को हटाने भं व दमोगो को दफाने मा घटाने भं सहामक होते हं । ु शुब भुहूता ग्रहो का ऎसा अनूठा सॊगभ है फक वह कामा कयने वारे व्मत्रि को ऩूणत् सपरता की ा ओय अग्रस्त कय दे ता है । फहडद ू धभा भं शुब कामा कवर शुब भुहूता दे खकय फकए जाने का त्रवधान हं । इसी त्रवधान क े े अनुसाय श्रीगणेश ितुथॉ क फदन बगवान श्रीगणेश की स्थाऩना क श्रेद्ष भुहूता आऩकी अनुकरता हे तु े े ू दशााने का प्रमास फकमा जा यहा हं । फहडद ू धभा ग्रॊथं क अनुसाय शुब भुहूता दे खकय फकए गए कामा े सनस्द्ळत शुब व सपरता दे ने वारे होते हं । श्रीगणेश ितुथॉ क सरमे (1 ससतॊफय 2011 गुरुवाय) े प्रात् 6:20 से 7:50 तक शुब भध्माह्न् 12:20 से 1:30 तक राब सॊध्मा् 4:50 से 6:20 तक शुब अडम शुब सभम वृस्द्ळक रग्न भं (दोऩहय 11:44 से दोऩहय 1:30 तक ) तथा कब रग्न भं (सॊध्मा 5:52 से सॊध्मा 7: 03 ुॊ तक) बगवान श्रीगणेश प्रसतभा की स्थाऩना की जा सकती हं । क्मंफक ज्मोसतष क अनुशाय वृस्द्ळक औय कब दोनं स्स्थय रग्न हं । स्स्थय रग्न भं फकमा गमा कोई बी े ुॊ शुब कामा स्थाई होता हं । त्रवद्रानो क भतानुशाय शुब प्रायॊ ब मासन आधा कामा स्वत् ऩूण। े ा
  • 12. 12 ससतम्फय 2011 सयर त्रवसध से श्री गणेश ऩूजन  त्रवजम ठाकुय श्री गणेशजी की ऩूजा से व्मत्रि को फुत्रद्ध, त्रवद्या, ऩत्रवि कयण: त्रववेक योग, व्मासध एवॊ सभस्त त्रवध्न-फाधाओॊ का स्वत् सफसे ऩहरे ऩूजन साभग्री व गणेश प्रसतभा सिि ऩत्रवि नाश होता है कयण कयं श्री गणेशजी की कृ ऩा प्राद्ऱ होने से व्मत्रि के अऩत्रवि् ऩत्रविो वा सवाावस्थाॊ गतो त्रऩ वा। भुस्श्कर से भुस्श्कर कामा बी आसान हो जाते हं । म् स्भये त ् ऩुण्डयीकाऺॊ स फाह्याभ्मडतय् शुसि्॥ स्जन रोगो को व्मवसाम-नौकयी भं त्रवऩयीत इस भॊि से शयीय औय ऩूजन साभग्री ऩय जर िीटं इसे ऩरयणाभ प्राद्ऱ हो यहे हं, ऩारयवारयक तनाव, आसथाक तॊगी, अॊदय फाहय औय फहाय दोनं शुद्ध हो जाता है योगं से ऩीड़ा हो यही हो एवॊ व्मत्रि को अथक भेहनत कयने क उऩयाॊत बी नाकाभमाफी, द:ख, सनयाशा प्राद्ऱ हो े आिभन: ु यही हो, तो एसे व्मत्रिमो की सभस्मा क सनवायण हे तु े ॐ कशवाम नभ: े ितुथॉ क फदन मा फुधवाय क फदन श्री गणेशजी की े े ॐ नायामण नभ: त्रवशेष ऩूजा-अिाना कयने का त्रवधान शास्त्रं भं फतामा हं । ॐ भध्वामे नभ: स्जसक पर से व्मत्रि की फकस्भत फदर जाती हं े हस्तो प्रऺल्म हसशाकशम नभ : े औय उसे जीवन भं सुख, सभृत्रद्ध एवॊ ऎद्वमा की प्रासद्ऱ होती आसान सुत्रद्ध: हं । श्री गणेश जी का ऩूजन अरग-अरग उद्दे श्म एवॊ ॐ ऩृथ्वी त्वमा धृता रोका दे त्रव त्व त्रवद्गणुनाधृता्। काभनाऩूसता हे तु अरग-अरग भॊि व त्रवसध-त्रवधान से त्व ि धायम भा दे त्रव ऩत्रवि करू ि आसनभ॥ ु ् फकमा जाता हं , इस सरमे महाॊ दशााई गई ऩूजन त्रवसध भं अॊतय होना साभाडम हं । यऺा भॊि: सबी ऩाठको क भागादशान हे तु श्री गणेश जी का े 'अऩक्राभडतु बूतासन त्रऩशािा् सवातो फदशा। ऩूजन त्रवधान फदमा जा यहा हं । सवेषाभवयोधेन ब्रह्मकभा सभायबे। गणेश ऩूजा: अऩसऩाडतु ते बूता् मे बूता् बूसभसॊस्स्थता्। मे बूता त्रवनकताायस्ते नद्शडतु सशवाऻमा।' ऩूजन साभग्री: इस भॊि से दशं फदशाओॊ भं त्रऩरा सयसं सिटक स्जसेस े ककभ, कसय, ससॊदय, अवीय-गुरार, ऩुष्ऩ औय भारा, ुॊ ुॊ े ू सभस्त बूत प्रेत फाधाओॊ का सनवायण होता है िारव, ऩान, सुऩायी, ऩॊिाभृत, ऩॊिभेवा, गॊगाजर, स्वस्ती वािन: त्रफरऩि, धूऩ-दीऩ, नैवैद्य भं रड्डू (रड्डू 3,5,7,11 त्रवषभ स्वस्स्त न इडद्रो वृद्धश्रवा: स्वस्स्त न: ऩूषा त्रवद्ववेदा:। सॊख्मा भं) मा गूड अथवा सभश्री का प्रसाद रगाएॊ। रंग, स्वस्स्तनस्ता यऺो अरयद्शनेसभ: स्वस्स्त नो फृहस्ऩसतादधात॥ इरामिी, नायीमर, करश, 1 सभटय रार कऩडा, फयक, इस क फाद श्री गणेश जी क भॊगर ऩाठ कयना िाफहए े े इि, जनेऊ, त्रऩरी सयसं, इत्माफद आवश्मक साभग्रीमाॊ। जो की इस प्रकाय है
  • 13. 13 ससतम्फय 2011 गणेश जी का भॊगर ऩाठ: रॊफोदयद्ळ त्रवकटो त्रवघ्ननाशो त्रवनामक्। सुभुखद्ळैकदडतद्ळ कत्रऩरो गजकणाक:। धुम्रकतुय ् गणाध्मऺो बारिॊद्रो गजानन॥ े रम्फोदयद्ळ त्रवकटो त्रवघ्रनाशो त्रवनामक:॥ द्रादशैतासन नाभासन म् ऩठे च्िणु मादऽत्रऩ॥ ृ धूम्रकतुगणाध्मऺो बारिडद्रो गजानन:। े ा त्रवद्यायॊ बे त्रववाहे ि प्रवेशे सनगाभे तथा। द्राद्रशैतासन नाभासन म: ऩठे च्िे णुमादत्रऩ॥ सॊग्राभे सॊकटे िैव त्रवघ्नस्तस्म न जामते॥ त्रवद्यायम्बे त्रववाहे ि प्रवेशे सनगाभे तथा। शुक्राॊफय धयॊ दे वॊ शसशवणं ितुबुजभ ्। ा सॊग्राभे सॊकटे िैव त्रवघ्रस्तस्म न जामते॥ प्रसडन वदनॊ ध्मामेत ् सवा त्रवघ्नोऩशाॊतमे॥ जऩेद् गणऩसत स्तोिॊ षस्ड्बभाासे परॊ रबेत ्। एकाग्रसिन होकय गणेश का ध्मान कयना िाफहए सॊवॊत्सये ण ससत्रद्धॊ ि रबते नाि सॊशम्॥ श्री गणेश का ध्मान कयं : वक्रतुॊड भहाकाम सूमकोफट सभ प्रब। ा गजाननॊ बूतगणाफद सेत्रवतभ ् कत्रऩत्थ जम्फूपर सनत्रवाघ्नॊ करु भे दे व सवा कामेषु सवादा॥ ु िारुबऺणभ। उभासुतभ ् शोक त्रवनाश कायकभ ् नभासभ ् असबस्ससताथा ससद्धध्मथं ऩूस्जतो म् सुयासुयै्। त्रवघ्नेद्वय ऩाद ऩॊकजभ॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम ् सवा त्रवघ्न हयस्तस्भै गणासधऩतमे नभ्॥ नभ् गणेशॊ ध्मामासभ भॊि का उच्िायण कयं । त्रवघ्नेद्वयाम वयदाम सुयत्रप्रमाम रॊफोदयाम सकराम जगस्त्धताम। नागाननाम श्रुसतमऻ त्रवबुत्रषताम गौयीसुताम आह्वानॊ: गणनाथ नभो नभस्ते॥ इस भॊि से श्री गणेश का आहवान कये मा भन ही भन ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् गणेशॊ स्भयासभ भं श्री गणेश जी को ऩधायने क सरमे त्रवनसत कयं । हाथभं े भॊि का उच्िायण कयक ऩुष्ऩ अत्रऩात कयं े अऺत रेकय आहवान कयं । आगच्ि बगवडदे व स्थाने िाि स्स्थयो बव षोडशोऩिाय गणऩतीऩूजन: मावत्ऩूजाॊ करयष्मासभ तावत्वॊ सस्डनधौ बव।। अस्मै प्राण् प्रसतद्षडतु अस्मै प्राणा् ऺयडतु ि। ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् अस्मै दे वतभिीमा भाभहे सत ि कद्ळन॥ गणेशॊ ध्मामासभ भॊि का उच्िायण कयक अऺते डारदं ..... े आसनॊ: इस भॊि से श्री गणेश की भूसता मा प्रसतभा ऩय हल्दी मा आसन सभत्रऩात कयं । मफद ऩहरे से वस्त्र त्रफिामा हुवा हं कभकभ से यॊ गे िारव डारं। मफद प्रसतभा क प्रहरे से ु ु े तो उस स्थान ऩय हल्दी मा कभकभ से यॊ गे अऺत ु ु प्राण-प्रसतद्षा हो गई हं तो आवश्मिा नहीॊ हं तफ कवर े डारकय ऩुष्ऩ अत्रऩात कयं । सुऩायी ऩय ही िारव डारं। यम्मॊ सुशोबनॊ फदव्मॊ सवा सौख्म कयॊ शुबभ ्। आसनॊ ि भमादत्तॊ गृहाण ऩयभेद्वय॥ स्भयण: ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् आसनॊ हाथभं ऩुष्ऩ रेकय श्री गणेशजी का स्भयण कयं । सभऩामासभ॥ नभस्तस्भै गणेशाम सवा त्रवध्न त्रवनासशने॥ मफद द्ऴोक ऩढने भं कफठनाई हो तो आसन सभऩाासभ श्री कामाायॊबेषु सवेषु ऩूस्जतो म् सुयैयत्रऩ। गॊ गणेशाम नभ् का उच्िायण कयते हुवे गणेश जी के सुभुखद्ळैक दॊ तद्ळ कत्रऩरो गजकणाक्॥ ियण धोमे।
  • 14. 14 ससतम्फय 2011 ऩाद्यॊ: इस क स्थान ऩय ऩम् स्नानभ ् सभऩामासभ गॊ गणेशाम े उष्णोदक सनभारॊ ि सवा सौगडध सॊमुतभ ्। ॊ नभ् का उच्िायण कये तथा ऩम् क स्थान ऩय दध कहं , े ू ऩाद प्रऺारनाथााम दत्तॊ ते प्रसतगृह्यताभ ्॥ दहीॊ कहं , धृतभ ् कहं , भधु कहं , शकया कहं क स्नान ा े ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ऩाद्यॊ सभऩामासभ॥ कयामे। ऩमसस्तु सभुद्भूतॊ भधुयाम्रॊ शसशप्रबभ ् । अघ्मं: दध्मानीतॊ भमा दे व स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥ आिभनीभं जर, पर, पर, िॊदन, अऺत, दस्ऺणा ू नवनीतसभुत्ऩडनॊ सवासॊतोषकायकभ ् । इत्माफद हाथ भं यख कय सनम्न भॊि का उच्िायण कयं ... घृतॊ तुभ्मॊ प्रदास्मासभ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥ अध्मा गृहाण दे वेश गॊध ऩुष्ऩऺतै् सह। तरु ऩुष्ऩ सभुत्ऩडनॊ सुस्वादु भधुयॊ भधु । करुणा करु भं दे व गृहाणाध्मै् नभोस्तुते॥ ु तेज् ऩुत्रद्शकयॊ फदव्मॊ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् अघ्मं सभऩामासभ इऺुसायसभुद्भूताॊ शका याॊ ऩुत्रद्शदाॊ शुबाभ ् । भॊि का उच्िायण कयक अध्मा की साभग्रीमा अत्रऩात कयदं । े भराऩहारयकाॊ फदव्मॊ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥ ऩमो दसध धृत िैव भधु ि शका यामुतभ ्। आिभन: ऩॊिाभृत भमानीतॊ सनानाथा प्रसतघृहमताभ॥ सवा तीथा सभामुि सुगसध सनभार जरभ ्। ॊ ॊ आिम्मताॊ भमा दत्तॊ गृहीत्वा ऩयभेद्वयॊ ॥ वस्त्रॊ: ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् आिभनॊ ऩॊिाभृत स्नान क फाद स्वच्ि कय क वस्त्र ऩहनामे मा े े सभऩामासभ॥ सभत्रऩात कयं । सवा बूषाफदक सौम्मे रोकरज्जा सनवायणे । े स्नानॊ: भमोऩऩाफदते तुभ्मॊ वाससी प्रसतगृहीताभ ् ॥ गॊगा ि मभुना ये वा तुॊगबद्रा सयस्वसत। ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् वस्त्रोऩवस्त्रे कावेयी सफहता नद्य् सद्य् स्नाथाभत्रऩाता॥ सभऩामासभ॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् स्नानॊ सभऩामासभ भॊि का उच्िायण कयते हुवे स्नान कयामे। मऻोऩवीत ततऩद्ळमात सनम्न भॊि से मऻोऩवीत ऩहनामे ऩॊिाभृत स्नान: नवसभस्तॊतुसबमुि त्रिगुणॊ दे वताभमॊ। तत ऩद्ळमात ऩॊिाभृत से क्रभश् दध, दही, घी, शहद, ू सऩफीतॊ भमा दत्तॊ गृहाण ऩयभेद्वयभ ्॥ शक्कय से स्नान कया कय शुद्धजर मा गॊगाजर से उि ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् मऻोऩत्रवतॊ भॊि से ऩुन् स्वच्ि कयरे। सभऩामासभ॥ तत ऩद्ळमात शुद्ध वस्त्र से ऩोि कय प्रसतत्रद्षत कयं । िॊदन: दध स्नान: ू ततऩद्ळमात रार िॊदन िढामे। काभधेनु सभुत्ऩनॊ सवेषाॊ जीवन ऩयभ ्। श्रीखण्ड िडदन फदव्मॊ कशयाफद सुभनीहयभ ्। े ऩावनॊ मऻ हे तुद्ळ ऩम: स्नानाथाभत्रऩातभ ्॥ त्रवरेऩनॊ सुश्रद्ष िडदनॊ प्रसतगृहमतभ ्॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ककभॊ सभऩामासभ॥ ुॊ ु