2. हमारे ऋषिमुनीयों ने मानव जाति को बहुि क
ु छ दिया
है |अनेक रहस्यों को उजागर ककया है | उन्ही रहस्यों में
से एक मुद्रा और बंध की साधना भी है | यह एक
योगगक प्रकार है जो बहुि पररणामकारक और श्रेष्ट
साधना है | इनक
े अभ्यास से साधक को अलौककक
शक्िी प्राप्ि होिी है | यह साधना अति सावधानी पुववक
िथा जिन क
े साथ करनी चादहए l इसललए उगचि
मागविशवन में ही करनी चादहए। यह एक परा कोटी की
योगसाधना है,ऐसा कई योगग्रंथों में ललखा गया है।
3. “मुद्रा“ यह शब्ि मुि धािु से बना है जजसका अथव है
आनंि,हिव,प्रसन्निा प्राप्ि होना l यह एक शारीररक आकृ िीबंि
(posture) है जो,मानलसक भावनाओं को प्रिलशवि करिा है l इस
प्रकार मुद्रा का अभ्यास करने से सुक्ष्म स्िर पर स्पंिनो की
अनुभूति होने पर एक अवणीय आनंि महसूस होिा है l मुद्रा का
अथव गचन्ह, मुहर, पिक,लसक्क
े इत्यािी भी होिा है ककन्िु योग
साधना में आनंदिि होना यही समझना चादहए l मुद्राओं में
कायामुद्रा और असनो की शारीररक जस्िथी समान ही दिखाई िेिी है
ककन्िु िोनों क
े उद्िेश्य में अंिर है आसन से शारीररक
जस्थरिा,दृढ़िा िथा स्वास््य की प्राजप्ि होिी है मुद्रा बंध का मुख्य
उिेश्य सुसुप्ि अवस्था में पड़ी हुई क
ु ण्डललनी शजक्ि का जागरण
करना है l
4. "बध्नाति इति बंध:"शरीरक
े ककसी एक भाग को संकोच करक
े उसे
बााँधना, तनयंत्रिि करना बंध कहलािा है। मुद्रा और बंध का
षवशेििः अंि:स्रावी ग्रंगथयों, नाडीसंस्था िथा प्रमुख नाडीयों पर
गहरा प्रभाव पड़िा है। फलस्वरुप शरीर,मन और भावनाओं पर
आसनों की िुलना में पररणाम शीघ्रिा से होिा है।
मुद्रा और बंध का उल्लेख हठयोग में ककया गया है l हठयोग क
े िो
मुख्य ग्रन्थ हैं हठप्रिीषपका और घेरंडसदहंिा l जजनमें क्रमशः १०
िथा २५ मुद्रा बंध का उल्लेख दिया गया है l
5. • इसक
े अलावा और 3 मुद्राएँ है,जिनका योग से सबंध नही है,लेकीन उन्हे हम
मुद्रा कहते है।
1) रािमुद्रा.
2) करंसी.
3) भावमुद्रा.
6.
7.
8. १) चेहरे की मुद्राएाँ
२) हस्िमुद्रा.
३) कायामुद्रा.
४)अधोमुद्रा.(पेरीफ
े रीयल)३
मुद्रा क
े प्रकार
22. वर्जयय = उच्च रक्तचाप,ह्रदयरोग,ननम्न रक्तचाप,
चक्कर,अजस्िर मनजस्िती वाले ना करे, बाकी सब कर
सकते है।
23. लाभ =
1) ब्रम्हमुद्रा करने से क्र
े ननयल नर्वसय िो गदयन से गुिरती है,अच्छी
माललश होनेसे आँख,कान,नाक,जिर्वहा.स्वस्ि होते है।
2) ववशुद्धध,आज्ञा और सहस्रार चक्रपर प्रभाव पडता है। टोंलशल
तिा डबल चीन ठीक होने मे सहाय्यक.
3)हस्तमुद्रा करने से मानलसक, शारीरीक बबमाररयाँ ठीक होती है।
साधक क
े भीतर की नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मकता को
बढाती है। ध्यान क
े ललए उत्कृ ष्ट।
4)कायामुद्रा करने से अंत:स्रावी ग्रंधियाँ सुचारु रुप से काम करती
है।शरीर पर झुररययाँ नही पडती,र्वयजक्त सदा युवा ददखता है।जस्िरता
प्राप्त होती है।क
ु ण्डललनी शजक्त िागरणमें सहाय्यता लमलती है।
24. 5)पेररफ
े रीयल मुद्रा करने से गुदा प्रदेश क
े रोग समाप्त हो
िातेहै।उिाय उध्वमुखी होती है।
6) मुलबंध क
े ननरंतर अभ्यास से ऊिायशजक्त ऊध्वमुखी बनती
है।ब्रम्हचयय साधनेमें तिा क
ुं डललनी िागरण में सहाय्यक।
7)उड्डडयान बंध सवोत्तम बंध है।इसक
े अभ्यास से वृध्द भी युवा
हो िाता है।उदर प्रदेश क
े अंग कोमल होकर िठराजनन तीव्र होती
है।मृत्यु पर भी वविय पा सकते है।
8) िालंदर बंध से धचत्त लशव जस्िती में पहुँचता है।अनेक
लसद्धधयाँ स्वत: प्राप्त हो िाती है।
9) उपरोक्त सभी बंधों क
े लाभ महाबंध से भी प्राप्त होते ह।।