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आ वश्यक निवेदि
प्रस्तुत आध्ययि स मग्री, त लिक एँ एवं लित्र आ दद
श्रीमती स रिक ववक स छ बड़ द्व ि तैय ि वकये गए
हैं |
इिक आन्यत्र एवं आन्य भ ष में उपय ेग कििे के
पूवव उिसे आनिव यवत: संपकव कि िें |
मार्गणा महा-अधिकार
आचार्ग नेममचंद्र मिदिांतचक्रवती
ग थ 1 : मंगि ििण
• ज े ससद्ध, शुद्ध एवं आकिंक हैं एवं
• जजिके सद गुणरूपी ित ें के भूषण ें क उदय िहत है,
• एेसे श्री जजिेन्रवि िेलमिंर स्व मी क े िमस्क ि किके
• जीव की प्ररूपण क े कहंग ।
ससद्धं सुद्धं पणलमय जजणणंदविणेलमिंदमकिंकं ।
गुणियणभूसणुदयं जीवस्स परूवणं व ेच्छं॥
धम्मगुणमग्गण हयम ेह रिबिं जजणं णमंससत्त ।
मग्गणमह हहय िं, ववववहहहय िं भणणस्स म े॥140॥
•आथव - सम्यग्दशवि दद आथव उत्तम क्षम दद धमवरूपी धिुष आ ैि
•ज्ञ ि दद गुणरूपी प्रत्यंि -ड़ ेिी, तथ
•ि ैदह म गवण रूपी ब ण ें से
•जजसिे म ेहरूपी शत्रु के बि-सैन्य क े िष्ट कि ददय है एेसे
श्री जजिेन्रदेव क े िमस्क ि किके
•मैं उस म गवण मह धधक ि क वणवि करूँ ग जजसमें वक आ ैि
भी ववववध आधधक ि ें क आन्तभ वव प य ज त है ॥140॥
ज हह व ज सु व जीव , मग्ग्गज्जंते जह तह ददट्ठ।
त आ े ि ेदस ज णे सुयण णे मग्गण ह ेंनत॥141॥
•आथव - प्रविि में जजस प्रक ि से देखे ह ें उसी
प्रक ि से जीव दद पद थ ेों क जजि भ व ें के द्व ि
आथव जजि पय वय ें में ववि ि-आन्वेषण वकय
ज य उिक े ही म गवण कहते हैं।
•उिके ि ैदह भेद हैं एेस समझि ि हहये
॥141॥
म गवण वकसे कहते हैं ?
•म गवण शब्द क आथव है — आन्वेषण, ख ेजि
•जजि परिण म ें के द्व ि जीव क आन्वेषण
वकय ज ए आथव जजि पय वय ें में जीव क
आन्वेषण वकय ज ए, उन्हें म गवण कहते हैं ।
गइइंददयेसु क ये, ज ेगे वेदे कस यण णे य।
संजमदंसणिेस्स , भववय सम्मत्तसग्णण आ ह िे॥142॥
•आथव - गनत, इग्न्रय, क य, य ेग, वेद, कष य,
ज्ञ ि, संयम, दशवि, िेश्य , भव्यत्व, सम्यक्‍त्व,
संज्ञी, आ ह ि — ये ि ैदह म गवण एँ हैं ॥142॥
14 म गवण यें
1. गनत
2. इग्न्रय
3. क य
4. य ेग
5. वेद
6. कष य
7. ज्ञ ि
8. संयम
9. दशवि
10.िेश्य
11.भव्य
12.सम्यक्‍त्व
13.संज्ञी
14.आ ह ि
िांतर-ननरंतर मार्गणा
स न्ति नििंति म गवण
• वकसी म गवण में वकसी समय एक भी जीव ि
ह े, उस म गवण क े स न्ति म गवण कहते हैं ।
स ंति म गवण
• जजस म गवण में प्रनतसमय जीव प ये ज ते हैं,
जजसमें कभी भी जीव ें क आभ व िहीं ह ेत ,
उसे नििंति म गवण कहते हैं ।
नििंति म गवण
उवसम सुहम ह िे, वेगुहियलमस्स णिआपज्जत्ते।
स सणसम्मे लमस्से, स ंतिग मग्गण आट्ठ॥143॥
आथव - उपशम सम्यक्‍त्व, सूक्ष्मस ंपि य संयम, आ ह िक
क यय ेग, आ ह िकलमश्रक यय ेग, वैविययक
लमश्रक यय ेग, आपय वप्त-िब्ध्यपय वप्त मिुष्य, स स दि
सम्यक्‍त्व आ ैि लमश्र — ये आ ठ स न्ति म गवण एँ हैं
॥143॥
मूि म गवण संबंधी नियम
•स िी मूि म गवण एं नििन्ति ही हैं ।
• य िे गनत म गवण में कभी जीव ें क आभ व िहीं ह ेत ।
• इग्न्रय म गवण में कभी जीव ें क आभ व िहीं ह ेत ।
•इस ही प्रक ि स िी म गवण आ ें में जीव सदैव िहते हैं ।
उत्ति म गवण संबंधी नियम
• पिन्तु म गवण आ ें के उत्ति भेद में आन्ति संभव हैं ।
• जैसे उपशम सम्यक्‍त्व म गवण में आन्ति ह े सकत है,
• य िे वकसी क ि में क ेई भी जीव उपशम सम्यक्‍त्वी ि ह े
। यह संभव है । आथव
• आ ह िक लमश्र में भी वकसी क ि में क ेई भी जीव ि ह े —
यह संभव है ।
• एेसी म गवण स ंति म गवण कहि ती है ।
8 स ंति म गवण
उपशम
सम्यक्‍त्व
सूक्ष्म स म्पि य
आ ह िक
क यय ेग
आ ह िक लमश्र
क यय ेग
वैविययक लमश्र
क यय ेग
िब्ब्ध-आपय वप्त
मिुष्य
स स दि
सम्यक्‍त्व
लमश्र
स ंति म गवण वकस मूि म गवण क भेद है?
स ंति म गवण मूि म गवण
िब्ब्ध-आपय वप्त मिुष्य गनत म गवण
स स दि सम्यक्‍त्व म गवण
लमश्र सम्यक्‍त्व म गवण
उपशम सम्यक्‍त्व सम्यक्‍त्व म गवण
सूक्ष्म-स म्पि य संयम म गवण
आ ह िक य ेग म गवण
आ ह िक लमश्र य ेग म गवण
वैवियक लमश्र य ेग म गवण
सत्त ददण छम्म स , व सपुधत्तं ि ब िस मुुतत्त ।
पल्ल संखं नतणहं, विमविं एगसमय े दु॥144॥
•आथव - उक्त आ ठ आन्तिम गवण आ ें क उत्कृ ष्ट क ि िम से
•स त ददि, छ: महीि , पृथक्‍त्व वषव, पृथक्‍त्व वषव, ब िह
मुहतव आ ैि आन्त की तीि म गवण आ ें क क ि पल्य के
आसंख्य तवें भ ग है।
•आ ैि जघन्य क ि सबक एक समय है ॥144॥
पढमुवसमसहहद ए, वविद वविदीए ि ेद्दस ददवस ।
वविदीए पणणिस , वविहहदक ि े दु ब ेधि े॥145॥
•आथव - प्रथम ेपशम सम्यक्‍त्व सहहत पंिम गुणस्थ ि
क उत्कृ ष्ट वविहक ि ि ैदह ददि आ ैि छठे-स तवें
गुणस्थ ि क उत्कृ ष्ट वविहक ि पंरह ददि समझि
ि हहये ॥145॥
कब तक आन्ति िह सकत है ?
•कम-से-कम आन्तिजघन्य
•आधधक-से-आधधक आन्तिउत्कृ ष्ट
स ंति म गवण आ ें क आंति
मूि म गवण स ंति म गवण
आंति
उत्कृ ष्ट जघन्य
गनत
िब्ब्ध-आपय वप्त
मिुष्य
पल्य / आसंख्य त
,,
,,
सभी क
एक समय
सम्यक्‍त्व
स स दि
लमश्र
उपशम
सम्यक्‍त्व
7 ददि (ितुथव गुणस्थ ि क )
14 ददि (पंिम ,, )
15 ददि /
(आथव 24
ददि)
(छठे-स तवें ,, )
स ंति म गवण आ ें क आंति
मूि म गवण स ंति म गवण
आंति
उत्कृ ष्ट जघन्य
संयम सूक्ष्म स म्पि य 6 महीि
सभी क
एक समय
य ेग आ ह िक वषव पृथक्‍त्व (3-9)
आ ह िक लमश्र ,,
वैवियक लमश्र
12 मुहतव (इतिे क ि तक
क ेई देव / ि िकी उत्पन्ि ि
ह े)
र्नत मार्गणा
गइउदयजपज्ज य िउगइगमणस्स हेउ व ुत गई।
ण ियनतरिक्‍खम णुसदेवगइ त्तत्त य हवे िदुध ॥146॥
•आथव - गनति मकमव के उदय से ह ेिे व िी
जीव की पय वय क े आथव ि ि ें गनतय ें में
गमि कििे के क िण क े गनत कहते हैं।
•उसके ि ि भेद हैं – ििकगनत, नतयोंिगनत,
मिुष्यगनत, देवगनत ॥146॥
गनत
•गनत ि मकमव के उदय से ह ेिे व िी जीव की
पय वय क े गनत कहते हैं ।
•ि ि ें गनतय ें में गमि कििे के क िण क े गनत
कहते हैं ।
•(य िे क िणभूत कमव क े भी गनत कहते हैं ।
पिन्तु यह ँ कमव की वववक्ष िहीं है ।)
गनत
ििक गनत नतयोंि गनत मिुष्य गनत देव गनत
ण िमंनत जद े णणच्चं, दिे खेत्ते य क ि-भ वे य।
आणण ेणणेहहं य जम्ह , तम्ह ते ण िय भणणय ॥147॥
• आथव - ज े रव्य, क्षेत्र, क ि, भ व में
• स्वयं तथ पिस्पि में
• प्रीनत क े प्र प्त िहीं ह ेते
• उिक े ि ित (ि िकी) कहते हैं ॥147॥
ििक गनत वकसे कहते हैं?
•ििक गनत ि म कमव के उदय से
•ह ेिे व िी जीव की आवस्थ -ववशेष क े
•ििक गनत कहते हैं |
•ििक के आन्य ि म
• ि ित, ि िक, नििय, निित
ििक गनत वकसे कहते हैं?
• ि +ित = स्वयं आथव पिस्पि प्रीती क े प्र प्त िहीं ह ेते
• रव्य, क्षेत्र, क ि, भ व में पिस्पि िमते िहीं
ि ित
• िि ि् = प्र णणय ें क े; क यग्न्त= क्‍िेश पुतंि वें, वह
ििक कमव| उस कमव से ज े उत्पन्न ह े, वह ि िक
ि िक
• नि: + आय = जजिक पुणयकमव िि गय हैनििय
• नि + ित = ज े हहंस दद आसमीिीि क य ेों में ित हैंनिित
7 ििक
•ितप्रभ
•शकव ि प्रभ
•ब िुक प्रभ
•पंकप्रभ
•धूमप्रभ
•तमप्रभ
•मह तमप्रभ
नतरियंनत कु दड़िभ वं, सुववउिसणण णणयगट्ट्ठमणण ण ।
आच्चंतप वबुति , तम्ह तेरिच्छय भणणय ॥148॥
• आथव - ज े मि विि क य की कु हिित
क े प्र प्त ह े,
• जजिकी आ ह ि दद ववषयक संज्ञ दूसिे
मिुष्य ें क े आच्छी तिह प्रकि ह े,
• ज े निकृ ष्ट ह ें,
• ज े आज्ञ िी ह ें तथ
• जजिमें आत्यन्त प प क ब ुतल्य प य
ज य उिक े नतयोंि कहते हैं ॥148॥
मणणंनत जद े णणच्चं, मणेण णणउण मणुक्कड़ जम्ह ।
मणणुब्भव य सिे, तम्ह ते म णुस भणणद ॥149॥
•आथव - ज े नित्य ही हेय-उप देय, तत्त्व-आतत्त्व, आ प्त-आि प्त,
धमव-आधमव आ दद क ववि ि किें आ ैि
•शशल्पकि आ दद में भी कु शि ह ें,
•ज े पूव ेवक्त मि के ववषय में उत्कृ ष्ट ह ें आथ वत् ज े मि के द्व ि
गुण-द ेष दद क ववि ि स्मिण आ दद कि सकें , तथ
•युग की आ दद में ज े मिुआ ें से उत्पन्न ह ें
•उिक े मिुष्य कहते हैं ॥149॥
स मणण पंलिंदी, पज्जत्त ज ेणणणी आपज्जत्त ।
नतरिय णि तह वव य, पंलिंददयभंगद े हीण ॥150॥
आथव - नतयोंि ें के प ँि भेद ह ेते हैं। स म न्य नतयोंि,
पंिेग्न्रय नतयोंि, पंिेग्न्रय पय वप्त नतयोंि, य ेनििी नतयोंि
आ ैि आपय वप्त नतयोंि।
•इन्हीं प ँि भेद ें में से पंिेग्न्रय के एक भेद क े छ ेड़कि
ब की के ये ही ि ि भेद मिुष्य ें के ह ेते हैं ॥150॥
5 प्रक ि के नतयोंि
नतयोंि (स म न्य) (1)
पंिेग्न्रय (2)
पय वप्त (3)
पुरुषवेदी, िपुंसकवेदी य ेनििी (स्त्रीवेदी) (4)
आपय वप्त (5)
एकें दरय से ितुरिंदरय
4 प्रक ि के मिुष्य
मिुष्य
स म न्य (1)
पय वप्त (2)
पुरुषवेदी,
िपुंसकवेदी
मिुष्यिी
(3)
आपय वप्त (4)
दीिंनत जद े णणच्चं, गुणेहहं आट्ठेहहं ददिभ वेहहं।
भ संतददिक य , तम्ह ते वग्णणय देव ॥151॥
आथव - ज े देवगनत में ह ेिेव िे य प ये ज िेव िे परिण म ें-
परिणमि ें से सद सुखी िहते हैं आ ैि
•ज े आणणम , महहम आ दद आ ठ गुण ें (ऋणद्धय ें) के द्व ि
सद आप्रनतहतरूप से ववह ि किते हैं आ ैि
•जजिक रूप, ि वणय, य ैवि आ दद सद प्रक शम ि िहत
है,
•उिक े पिम गम में देव कह है ॥151॥
•पववत ें, वि ें, मह समुर ें में ववह ििीड़
•बिव ि ें क े भी जीतिे क भ व िखिववजजगीष
•ववशशष्ट दीनप्त क े ध िण कििद्युनत
•पंि पिमेष्ठी आ दद की वन्दिस्तुनत
•पंिेग्न्रय के ववषय-भ ेग ें से मुददत िहिम ेद
देव गनत
देव
भविव सी व्यंति जय ेनतषी वैम निक
ज इजि मिणभय , संज ेगववज ेगदुक्‍खसणण आ े।
ि ेग ददग य जजस्से, ण संनत स ह ेदद ससद्धगई॥152॥
आथव - एके ग्न्रय से िेकि पंिेग्न्रय तक प ँि प्रक ि की ज नत,
• बुढ प , मिण, भय,
•आनिष्ट संय ेग, इष्ट ववय ेग, इिसे ह ेिे व िे दु:ख,
• आ ह ि दद ववषयक संज्ञ एँ-व ंछ एँ आ ैि
• ि ेग आ दद की व्य धध इत्य दद ववरुद्ध ववषय
•जजस गनत में िहीं प ये ज ते
• उसक े ससद्ध गनत कहते हैं ॥152॥
चारों र्नत की
िंख्र्ाएं
स मणण णेिइय , घणआंगुिववददयमूिगुणसेढी।
ववददय दद व िदसआड़, छत्तत्तदुणणजपदहहद सेढी॥153॥
• आथव - स म न्यतय सम्पूणव ि िवकय ें क प्रम ण घि ंगुि
के दूसिे वगवमूि से गुणणत जगच््रेणी प्रम ण है।
• हद्वतीय दद पृलथववय ें में िहिे व िे-प ये ज िे व िे
ि िवकय ें क प्रम ण िम से आपिे ब िहवें, दशवें,
आ ठवें, छठे, तीसिे आ ैि दूसिे वगवमूि से भक्त जगच््रेणी
प्रम ण समझि ि हहये ॥153॥
ि िवकय ें की संख्य
• घि ंगुि क हद्वतीय मूि जगत् श्रेणी
•
4
घि ंगुि श्रेणी
• उद हिण: म ि वक श्रेणी=65536; घि ंगुि=16
• त े घि ंगुि = 16 = 4 ;
4
घि ंगुि =
4
16 = 2
• त े
4
घि ंगुि श्रेणी = 2 × 65536 = 131072
• एेसे ही व स्तववक गणणत में ज िि
जगतश्रेणी
घनान्गुल
संख्य आ ें सम्बन्धी नियम
• इतिे ि िकी आधधकतम ह े सकते हैं ।
• इतिे ही हमेश ह े यह नियम िहीं है ।
• सभी संख्य आ ें मे यह नियम ज िि । सभी संख्य एं
उत्कृ ष्ि आपेक्ष बत ई हैं ।
छह पृलथववय ें के ि िवकय ें की संख्य
पृथ्वी संख्य पृथ्वी संख्य
हद्वतीय पृथ्वी
श्रे
𝟐 𝟏𝟐
श्रे
पंिम पृथ्वी
श्रे
𝟐 𝟔
श्रे
तीसिी पृथ्वी
श्रे
𝟐 𝟏𝟎
श्रे
छठी पृथ्वी
श्रे
𝟐 𝟑
श्रे
ितुथव पृथ्वी
श्रे
𝟐 𝟖
श्रे
स तवीं पृथ्वी
श्रे
𝟐 𝟐
श्रे
श्रेणी = श्रेणी × श्रेणी
श्रेणी =
22
श्रेणी ×
22
श्रेणी
त े श्रेणी =
22
श्रेणी ×
22
श्रेणी × श्रेणी
इसे सूत्र में िखिे पि:
श्रे
𝟐 𝟐
श्रे
=
22
श्रेणी ×
22
श्रेणी × श्रेणी
𝟐 𝟐
श्रे
=
22
श्रेणी × श्रेणी
स तवे ििक के ि िकी वकतिे?
•श्रेणी = श्रेणी × श्रेणी
• श्रेणी =
22
श्रेणी ×
22
श्रेणी
22
श्रेणी =
23
श्रेणी ×
2 𝟑
श्रेणी
तो श्रेणी =
2 𝟑
श्रेणी ×
2 𝟑
श्रेणी ×
22
श्रेणी × श्रेणी
इिे िूत्र में रखने पर:
•
श्रे
𝟐 𝟑
श्रे
=
2 𝟑
श्रेणी
2 𝟑
श्रेणी×
22
श्रेणी × श्रेणी
𝟐 𝟑
श्रे
•=
2 𝟑
श्रेणी ×
22
श्रेणी × श्रेणी
छठे ििक के ि िकी
प िवें ििक के ि िकी
•
2 𝟔
श्रेणी ×
2 𝟓
श्रेणी ×
2 𝟒
श्रेणी ×
2 𝟑
श्रेणी ×
22
श्रेणी × श्रेणी
•
2 𝟖
श्रेणी ×
2 𝟕
श्रेणी ×
2 𝟔
श्रेणी ×
2 𝟓
श्रेणी ×
2 𝟒
श्रेणी ×
2 𝟑
श्रेणी ×
22
श्रेणी × श्रेणी
चौथे नरक के नारकी
तीसिे ििक के ि िकी
210
श्रेणी ×
2 𝟗
श्रेणी ×
2 𝟖
श्रेणी ×
2 𝟕
श्रेणी ×
2 𝟔
श्रेणी ×
2 𝟓
श्रेणी ×
2 𝟒
श्रेणी ×
2 𝟑
श्रेणी ×
22
श्रेणी × श्रेणी
212
श्रेणी ×
211
श्रेणी ×
210
श्रेणी ×
2 𝟗
श्रेणी ×
2 𝟖
श्रेणी ×
2 𝟕
श्रेणी ×
2 𝟔
श्रेणी ×
2 𝟓
श्रेणी ×
2 𝟒
श्रेणी ×
2 𝟑
श्रेणी ×
22
श्रेणी
× श्रेणी
दुसिे ििक के ि िकी
हेट्ट्ठमछप्पुढवीणं ि ससववहीण े दु सिि सी दु।
पढम वणणग्म्ह ि सी, णेिइय णं तु णणदद्दट्ठे॥154॥
•आथव - िीिे की छह पृलथववय ें के ि िवकय ें क
जजति प्रम ण ह े उसक े सम्पूणव ि िक ि शश में से
घि िे पि ज े शेष िहे उति ही प्रथम पृथ्वी के
ि िवकय ें क प्रम ण है ॥154॥
Home-work
•एेसे ही दूसिे ििक से छठे ििक तक की
संख्य पूिी ख ेि कि निक िि ।
प्रथम पृथ्वी के ि िवकय ें की संख्य
प्रथम पृथ्वी के ि िकी = सवव ि िकी — शेष 6 पृथ्वी के ि िकी
= (
4
घ श्रेणी) — (
श्रे
𝟐12
श्रे
+
श्रे
𝟐10
श्रे
+
श्रे
𝟐 𝟖
श्रे
+
श्रे
𝟐 𝟔
श्रे
+
श्रे
𝟐 𝟑
श्रे
+
श्रे
𝟐 𝟐
श्रे
)
= कु छ कम सवव ि िकी
• शेष 6 पृथ्वीय ें के ि िकी वकतिी जगत्श्रेणी प्रम ण ह ेंगे?
• क्य सब लमिकि भी 6 जगत्श्रेणी प्रम ण य उससे
आधधक ह ेंगे?
• इि छह ें पृथ्वीय ें क ज ेड़ िगभग
श्रेणी
𝟐12
श्रेणी
+ ह ेग ।
• य िे 1 जगत्श्रेणी प्रम ण भी िहीं ह े प येग ।
ििक गनत – आल्प-बुतत्व
•स तवें ििक में सबसे कम ि िकी ह ेते हैं ।
•उससे आधधक छठे ििक में,
•उससे आधधक प ँिवे ििक में,
•एेसे िम से आधधक ह ेते-ह ेते सबसे आधधक
ि िकी प्रथम ििक में प ए ज ते हैं ।
संस िी पंिक्‍ख , तप्पुणण नतगददहीणय कमस े।
स मणण पंलिंदी, पंलिंददयपुणणतेरिक्‍ख ॥155॥
• आथव - सम्पूणव जीवि शश में से ससद्धि शश क े घि िे पि संस ि ि शश
क ,
• संस िि शश में से तीि गनत के जीव ें क प्रम ण घि िे पि स म न्य
नतयोंि ें क ,
• सम्पूणव पंिेग्न्रय जीव ें के प्रम ण में से 3 गनत सम्बन्धी जीव ें क
प्रम ण घि िे पि पंिेग्न्रय नतयोंि ें तथ
• संपूणव पय वप्तक ें के प्रम ण में से तीि गनत संबंधी पय वप्त जीव ें क
प्रम ण घि िे पि पय वप्त पंिेग्न्रय नतयोंि ें क प्रम ण प्र प्त ह ेत है
॥155॥
नतयोंि गनत की संख्य - सूत्र
संस ि ि शश •संपूणव जीवि शश — ससद्ध ि शश
नतयोंि
(स म न्य)
•संस ि ि शश — 3 गनत के जीव ें की संख्य
पंिेग्न्रय नतयोंि •पंिेग्न्रय जीव — 3 गनत के जीव ें की संख्य
पंिेग्न्रय
पय वप्तक नतयोंि
•पंिेग्न्रय पय वप्त जीव — 3 गनत के पय वप्तक
जीव ें की संख्य
छस्सयज ेयणकददहदजगपदिं ज ेणणणीण परिम णं।
पुणणूण पंिक्‍ख , नतरियआपज्जत्तपरिसंख ॥156॥
•आथव - छह स ै य ेजि के वगव क जगतप्रति
में भ ग देिे से ज े िब्ध आ वे उति ही
य ेनििी नतयोंि ें क प्रम ण है आ ैि
•पंिेग्न्रय नतयोंि ें में से पय वप्त नतयोंि ें क
प्रम ण घि िे पि ज े शेष िहे उति आपय वप्त
पंिेग्न्रय नतयोंि ें क प्रम ण है ॥156॥
नतयोंि गनत - संख्य
•
जगत् प्रति
(600 य ेजि) 𝟐
य ेनििी नतयोंि
• पंिेग्न्रय नतयोंि — पंिेग्न्रय पय वप्त नतयोंि
• (तीसि सूत्र — ि ैथ सूत्र)
पंिेग्न्रय आपय वप्त
•
जगत् प्रति
൘
प्रति ंगुि
आसंख्य त
पंिेग्न्रय जीव
य ेनििी नतयोंि - संख्य
• 1 य ेजि = 7,68,000 आंगुि
• 600 य ेजि = 600 × 7,68,000 आंगुि
• 600 य ेजि 𝟐
= 600 × 7,68,000 आंगुि × 600 ×
7,68,000 आंगुि
• 600 य ेजि 𝟐
= 4 × 65536 × 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕
प्रति ंगुि
• आथ वत् य ेनििी नतयोंि =
जगत् प्रति
4 × 65536 × 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕 प्रति ंगुि
नतयोंि गनत क आल्प-बुतत्व
•सबसे कम य ेनििी नतयोंि
•उससे आधधक पंिेग्न्रय पय वप्त
•उससे आधधक आपय वप्त पंिेग्न्रय नतयोंि
•उससे आधधक पंिेग्न्रय नतयोंि
•सबसे आधधक सवव नतयोंि
सेढी सूईआंगुिआ ददमतददयपदभ जजदेगूण ।
स मणणमणुसि सी, पंिमकददघणसम पुणण ॥157॥
•आथव - सूच्यंगुि के प्रथम आ ैि तृतीय वगवमूि क जगच््रेणी
में भ ग देिे से ज े शेष िहे उसमें एक घि िे पि ज े शेष
िहे उति स म न्य मिुष्य ि शश क प्रम ण है।
•इसमें से हद्वरूपवगवध ि में उत्पन्न प ँिवें वगव (ब द ि) के
घिप्रम ण पय वप्त मिुष्य ें क प्रम ण है ॥157॥
मिुष्य गनत - संख्य
स िे मिुष्य =
जगत्श्रेणी
सूच्यंगुि
𝟐 𝟑
सूच्यंगुि
− 1
आथ वत् आसंख्य त, पिन्तु जगत्श्रेणी से कम ।
पय वप्त मिुष्य ें की संख्य
(ब द ि)³ = पय वप्त मिुष्य
* ब द ि = (पणट्ठी)²
* ब द ि = (65536)²
त े मिुष्य संख्य = (65536²)³
= (65536)6
आथव (216
) 𝟔
= 296
तििीिमधुगववमिंधूमससि ग ववि ेिभयमेरू।
तिहरिखझस ह ेंनत ुत, म णुसपज्जत्तसंखंक ॥158॥
•आथव - तक ि से िेकि सक ि पयवन्त जजतिे
आक्षि इस ग थ में बत ये हैं, उतिे ही आंक
प्रम ण पय वप्त मिुष्य ें की संख्य है ॥158॥
आक्षि ें से संख्य निक ििे की ववधध
क—1 ि—1 प—1 य—1
ख—2 ठ—2 फ—2 ि—2
ग—3 ड़—3 ब—3 ि—3
घ—4 ढ—4 भ—4 व—4
ड़—5 ण—5 म—5 श—5
ि—6 त—6 ष—6
छ—7 थ—7 स—7
ज—8 द—8 ह—8
झ—9 ध—9
स िे स्वि = 0; ि, ञ = 0; म त्र आ ें क क ेई आंक िहीं
मिुष्य गनत की संख्य
•7,9228162,5142643,3759354,3950336
संख्य प्रम ण पय वप्त मिुष्य है ।
❖=(ब द ि)3
•वकतिे आंक प्रम ण ?
❖29 आंक प्रम ण संख्य ।
पज्जत्तमणुस्स णं, नतिउत्थ े म णुसीण परिम णं।
स मणण पुणणूण , मणुवआपज्जत्तग ह ेंनत॥159॥
•आथव - पय वप्त मिुष्य ें क जजति प्रम ण है उसमें
तीि ि ैथ ई म िुवषय ें क प्रम ण है।
•स म न्य मिुष्यि शश में से पय वप्तक ें क प्रम ण
घि िे पि ज े शेष िहे उति ही आपय वप्त मिुष्य ें
क प्रम ण है ॥159॥
मिुग्ष्यिी - संख्य
मिुग्ष्यिी = पय वप्त मिुष्य
𝟑
𝟒
2 𝟗𝟔 𝟑
𝟒
= 2 𝟗𝟒
3
य िे कु ि पय वप्त मिुष्य ें क 75% मिुग्ष्यिी है ।
आपय वप्त मिुष्य - संख्य
आपय वप्त मिुष्य = स म न्य मिुष्य — पय वप्त मिुष्य
=
जगत्श्रेणी
सूच्यंगुि
𝟐 𝟑
सूच्यंगुि
− 1 – (ब द ि)³
आथ वत् स म न्य मिुष्य संख्य से कु छ कम
मिुष्य गनत – आल्प-बुतत्व
•सबसे कम पय वप्त पुरुषवेदी, िपुंसक वेदी
मिुष्य
•उससे आधधक पय वप्त मिुग्ष्यिी
•उससे आधधक पय वप्त मिुष्य
•उससे आधधक आपय वप्त मिुष्य
•सबसे आधधक सवव मिुष्य
नतग्णणसयज ेयण णं, वेसदछप्पणण आंगुि णं ि।
कददहदपदिं वेंति, ज ेइससय णं ि परिम णं॥160॥
•आथव - तीि स ै य ेजि के वगव क जगतप्रति में भ ग
देिे से ज े िब्ध आ वे उति व्यन्ति देव ें क प्रम ण है
आ ैि
•256 प्रम ण ंगुि ें के वगव क जगतप्रति में भ ग देिे से
ज े िब्ध आ वे उति जय ेनतवषय ें क प्रम ण है ॥160॥
देवगनत की संख्य
•
जगत् प्रति
(300 य ेजि) 𝟐
व्यंति देव
•
जगत् प्रति
(256 िूच्र्ंर्ुल ) 𝟐
=
जगत् प्रति
65536 प्रति ंगुिजय ेनतषी देव
व्यंति देव - संख्य
• 300 य ेजि 𝟐
= 300 × 7,68,000 आंगुि × 300
× 7,68,000 आंगुि
• 300 य ेजि 𝟐
= 65536 × 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕
प्रति ंगुि
• आथ वत् व्यंति देव =
जगत् प्रति
65536 × 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕 प्रति ंगुि
• य िे व्यंति ें से जय ेनतषी देव 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕
गुणे हैं |
घणआंगुिपढमपदं, तददयपदं सेहढसंगुणं कमस े।
भवणे स ेहम्मदुगे, देव णं ह ेदद परिम णं॥161॥
• आथव - जगच््रेणी के स थ घि ंगुि के प्रथम वगवमूि क
गुण कििे से भविव सी आ ैि
• तृतीय वगवमूि क गुण कििे से स ैधमवहद्वक - स ैधमव
आ ैि एेश ि स्वगव के देव ें क प्रम ण निकित है
॥161॥
देवगनत की संख्य
•श्रेणी x घि ंगुिभविव सी
•श्रेणी x
𝟐 𝟑
घि ंगुि
स ैधमव-
एेश ि
तत्त े एग िणवसगपणिउणणयमूिभ जजद सेढी।
पल्ल संखेज्जददम , पत्तेयं आ णद ददसुि ॥162॥
• आथव - इसके आिंति आपिे (जगच््रेणी के ) ग्य िहवें, िववें,
स तवें, प ंिवें, ि ैथे वगवमूि से भ जजत जगच््रेणी प्रम ण
तीसिे कल्प से िेकि ब िहवें कल्प तक के देव ें क प्रम ण
है।
• आ ित ददक से िेकि आ गे के देव ें क प्रम ण पल्य के
आसंख्य तवें भ ग प्रम ण है ॥162॥
वैम निक देव ें की संख्य
स्वगव संख्य स्वगव संख्य
3-4 स्वगव
श्रे
𝟐 𝟏𝟏
श्रे
9-10 स्वगव
श्रे
𝟐 𝟓
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5-6 स्वगव
श्रे
𝟐 𝟗
श्रे
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श्रे
𝟐 𝟒
श्रे
7-8 स्वगव
श्रे
𝟐 𝟕
श्रे
13-16 स्वगव,
9 ग्रैवेयक,
9 आिुददश
प्रत्येक
पल्र्
अिंख्र्ात
नतगुण सत्तगुण व , सिट्ठ म णुसीपम ण द े।
स मणणदेवि सी, ज ेइससय द े ववसेस हहय ॥163॥
•आथव - म िुवषय ें क जजति प्रम ण है उससे
नतगुि आथव स तगुि सव वथवससणद्ध के देव ें
क प्रम ण है।
•जय ेनतषी देव ें क जजति प्रम ण है उससे कु छ
आधधक सम्पूणव देवि शश क प्रम ण है ॥163॥
देवगनत की संख्य
•मिुग्ष्यिी 3 आथव
•मिुग्ष्यिी 7
सव वथवससणद्ध
•ि ि ें निक य ें क ज ेड़ आथ वत्
•जय ेनतषी देव ें से कु छ आधधक
सवव देव
ि शश
देवगनत क आल्प–बुतत्व
• सबसे कम सव वथवससणद्ध के देव
• 4 आिुत्ति ववम ि के देव
• उिसे आधधक िव आिुददश
• उिसे आधधक िव ग्रैवेयक
• उिसे आधधक आ िण-आच्युत
• एेसे िम से स ैधमव-एेश ि तक आधधक-आधधक
• उससे आधधक भविव सी
• उससे आधधक व्यंति
• सबसे आधधक जय ेनतषी
इि सब संख्य आ ें क े
ज ििे क क्‍य ि भ है
?
Home-work
•ि ि ें गनतय ें की संख्य आ ें क े
घिते से बढते िम से जम आ े ।
➢Reference : ग ेम्मिस ि जीवक णड़, सम्यग्ज्ञ ि िंदरक , ग ेम्मिस ि
जीवक ंड़ - िेख लित्र एवं त लिक आ ें में
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  • 1. आ वश्यक निवेदि प्रस्तुत आध्ययि स मग्री, त लिक एँ एवं लित्र आ दद श्रीमती स रिक ववक स छ बड़ द्व ि तैय ि वकये गए हैं | इिक आन्यत्र एवं आन्य भ ष में उपय ेग कििे के पूवव उिसे आनिव यवत: संपकव कि िें |
  • 3. ग थ 1 : मंगि ििण • ज े ससद्ध, शुद्ध एवं आकिंक हैं एवं • जजिके सद गुणरूपी ित ें के भूषण ें क उदय िहत है, • एेसे श्री जजिेन्रवि िेलमिंर स्व मी क े िमस्क ि किके • जीव की प्ररूपण क े कहंग । ससद्धं सुद्धं पणलमय जजणणंदविणेलमिंदमकिंकं । गुणियणभूसणुदयं जीवस्स परूवणं व ेच्छं॥
  • 4. धम्मगुणमग्गण हयम ेह रिबिं जजणं णमंससत्त । मग्गणमह हहय िं, ववववहहहय िं भणणस्स म े॥140॥ •आथव - सम्यग्दशवि दद आथव उत्तम क्षम दद धमवरूपी धिुष आ ैि •ज्ञ ि दद गुणरूपी प्रत्यंि -ड़ ेिी, तथ •ि ैदह म गवण रूपी ब ण ें से •जजसिे म ेहरूपी शत्रु के बि-सैन्य क े िष्ट कि ददय है एेसे श्री जजिेन्रदेव क े िमस्क ि किके •मैं उस म गवण मह धधक ि क वणवि करूँ ग जजसमें वक आ ैि भी ववववध आधधक ि ें क आन्तभ वव प य ज त है ॥140॥
  • 5. ज हह व ज सु व जीव , मग्ग्गज्जंते जह तह ददट्ठ। त आ े ि ेदस ज णे सुयण णे मग्गण ह ेंनत॥141॥ •आथव - प्रविि में जजस प्रक ि से देखे ह ें उसी प्रक ि से जीव दद पद थ ेों क जजि भ व ें के द्व ि आथव जजि पय वय ें में ववि ि-आन्वेषण वकय ज य उिक े ही म गवण कहते हैं। •उिके ि ैदह भेद हैं एेस समझि ि हहये ॥141॥
  • 6. म गवण वकसे कहते हैं ? •म गवण शब्द क आथव है — आन्वेषण, ख ेजि •जजि परिण म ें के द्व ि जीव क आन्वेषण वकय ज ए आथव जजि पय वय ें में जीव क आन्वेषण वकय ज ए, उन्हें म गवण कहते हैं ।
  • 7. गइइंददयेसु क ये, ज ेगे वेदे कस यण णे य। संजमदंसणिेस्स , भववय सम्मत्तसग्णण आ ह िे॥142॥ •आथव - गनत, इग्न्रय, क य, य ेग, वेद, कष य, ज्ञ ि, संयम, दशवि, िेश्य , भव्यत्व, सम्यक्‍त्व, संज्ञी, आ ह ि — ये ि ैदह म गवण एँ हैं ॥142॥
  • 8. 14 म गवण यें 1. गनत 2. इग्न्रय 3. क य 4. य ेग 5. वेद 6. कष य 7. ज्ञ ि 8. संयम 9. दशवि 10.िेश्य 11.भव्य 12.सम्यक्‍त्व 13.संज्ञी 14.आ ह ि
  • 10. स न्ति नििंति म गवण • वकसी म गवण में वकसी समय एक भी जीव ि ह े, उस म गवण क े स न्ति म गवण कहते हैं । स ंति म गवण • जजस म गवण में प्रनतसमय जीव प ये ज ते हैं, जजसमें कभी भी जीव ें क आभ व िहीं ह ेत , उसे नििंति म गवण कहते हैं । नििंति म गवण
  • 11. उवसम सुहम ह िे, वेगुहियलमस्स णिआपज्जत्ते। स सणसम्मे लमस्से, स ंतिग मग्गण आट्ठ॥143॥ आथव - उपशम सम्यक्‍त्व, सूक्ष्मस ंपि य संयम, आ ह िक क यय ेग, आ ह िकलमश्रक यय ेग, वैविययक लमश्रक यय ेग, आपय वप्त-िब्ध्यपय वप्त मिुष्य, स स दि सम्यक्‍त्व आ ैि लमश्र — ये आ ठ स न्ति म गवण एँ हैं ॥143॥
  • 12. मूि म गवण संबंधी नियम •स िी मूि म गवण एं नििन्ति ही हैं । • य िे गनत म गवण में कभी जीव ें क आभ व िहीं ह ेत । • इग्न्रय म गवण में कभी जीव ें क आभ व िहीं ह ेत । •इस ही प्रक ि स िी म गवण आ ें में जीव सदैव िहते हैं ।
  • 13. उत्ति म गवण संबंधी नियम • पिन्तु म गवण आ ें के उत्ति भेद में आन्ति संभव हैं । • जैसे उपशम सम्यक्‍त्व म गवण में आन्ति ह े सकत है, • य िे वकसी क ि में क ेई भी जीव उपशम सम्यक्‍त्वी ि ह े । यह संभव है । आथव • आ ह िक लमश्र में भी वकसी क ि में क ेई भी जीव ि ह े — यह संभव है । • एेसी म गवण स ंति म गवण कहि ती है ।
  • 14. 8 स ंति म गवण उपशम सम्यक्‍त्व सूक्ष्म स म्पि य आ ह िक क यय ेग आ ह िक लमश्र क यय ेग वैविययक लमश्र क यय ेग िब्ब्ध-आपय वप्त मिुष्य स स दि सम्यक्‍त्व लमश्र
  • 15. स ंति म गवण वकस मूि म गवण क भेद है? स ंति म गवण मूि म गवण िब्ब्ध-आपय वप्त मिुष्य गनत म गवण स स दि सम्यक्‍त्व म गवण लमश्र सम्यक्‍त्व म गवण उपशम सम्यक्‍त्व सम्यक्‍त्व म गवण सूक्ष्म-स म्पि य संयम म गवण आ ह िक य ेग म गवण आ ह िक लमश्र य ेग म गवण वैवियक लमश्र य ेग म गवण
  • 16. सत्त ददण छम्म स , व सपुधत्तं ि ब िस मुुतत्त । पल्ल संखं नतणहं, विमविं एगसमय े दु॥144॥ •आथव - उक्त आ ठ आन्तिम गवण आ ें क उत्कृ ष्ट क ि िम से •स त ददि, छ: महीि , पृथक्‍त्व वषव, पृथक्‍त्व वषव, ब िह मुहतव आ ैि आन्त की तीि म गवण आ ें क क ि पल्य के आसंख्य तवें भ ग है। •आ ैि जघन्य क ि सबक एक समय है ॥144॥
  • 17. पढमुवसमसहहद ए, वविद वविदीए ि ेद्दस ददवस । वविदीए पणणिस , वविहहदक ि े दु ब ेधि े॥145॥ •आथव - प्रथम ेपशम सम्यक्‍त्व सहहत पंिम गुणस्थ ि क उत्कृ ष्ट वविहक ि ि ैदह ददि आ ैि छठे-स तवें गुणस्थ ि क उत्कृ ष्ट वविहक ि पंरह ददि समझि ि हहये ॥145॥
  • 18. कब तक आन्ति िह सकत है ? •कम-से-कम आन्तिजघन्य •आधधक-से-आधधक आन्तिउत्कृ ष्ट
  • 19. स ंति म गवण आ ें क आंति मूि म गवण स ंति म गवण आंति उत्कृ ष्ट जघन्य गनत िब्ब्ध-आपय वप्त मिुष्य पल्य / आसंख्य त ,, ,, सभी क एक समय सम्यक्‍त्व स स दि लमश्र उपशम सम्यक्‍त्व 7 ददि (ितुथव गुणस्थ ि क ) 14 ददि (पंिम ,, ) 15 ददि / (आथव 24 ददि) (छठे-स तवें ,, )
  • 20. स ंति म गवण आ ें क आंति मूि म गवण स ंति म गवण आंति उत्कृ ष्ट जघन्य संयम सूक्ष्म स म्पि य 6 महीि सभी क एक समय य ेग आ ह िक वषव पृथक्‍त्व (3-9) आ ह िक लमश्र ,, वैवियक लमश्र 12 मुहतव (इतिे क ि तक क ेई देव / ि िकी उत्पन्ि ि ह े)
  • 22. गइउदयजपज्ज य िउगइगमणस्स हेउ व ुत गई। ण ियनतरिक्‍खम णुसदेवगइ त्तत्त य हवे िदुध ॥146॥ •आथव - गनति मकमव के उदय से ह ेिे व िी जीव की पय वय क े आथव ि ि ें गनतय ें में गमि कििे के क िण क े गनत कहते हैं। •उसके ि ि भेद हैं – ििकगनत, नतयोंिगनत, मिुष्यगनत, देवगनत ॥146॥
  • 23. गनत •गनत ि मकमव के उदय से ह ेिे व िी जीव की पय वय क े गनत कहते हैं । •ि ि ें गनतय ें में गमि कििे के क िण क े गनत कहते हैं । •(य िे क िणभूत कमव क े भी गनत कहते हैं । पिन्तु यह ँ कमव की वववक्ष िहीं है ।)
  • 24. गनत ििक गनत नतयोंि गनत मिुष्य गनत देव गनत
  • 25. ण िमंनत जद े णणच्चं, दिे खेत्ते य क ि-भ वे य। आणण ेणणेहहं य जम्ह , तम्ह ते ण िय भणणय ॥147॥ • आथव - ज े रव्य, क्षेत्र, क ि, भ व में • स्वयं तथ पिस्पि में • प्रीनत क े प्र प्त िहीं ह ेते • उिक े ि ित (ि िकी) कहते हैं ॥147॥
  • 26. ििक गनत वकसे कहते हैं? •ििक गनत ि म कमव के उदय से •ह ेिे व िी जीव की आवस्थ -ववशेष क े •ििक गनत कहते हैं | •ििक के आन्य ि म • ि ित, ि िक, नििय, निित
  • 27. ििक गनत वकसे कहते हैं? • ि +ित = स्वयं आथव पिस्पि प्रीती क े प्र प्त िहीं ह ेते • रव्य, क्षेत्र, क ि, भ व में पिस्पि िमते िहीं ि ित • िि ि् = प्र णणय ें क े; क यग्न्त= क्‍िेश पुतंि वें, वह ििक कमव| उस कमव से ज े उत्पन्न ह े, वह ि िक ि िक • नि: + आय = जजिक पुणयकमव िि गय हैनििय • नि + ित = ज े हहंस दद आसमीिीि क य ेों में ित हैंनिित
  • 28. 7 ििक •ितप्रभ •शकव ि प्रभ •ब िुक प्रभ •पंकप्रभ •धूमप्रभ •तमप्रभ •मह तमप्रभ
  • 29. नतरियंनत कु दड़िभ वं, सुववउिसणण णणयगट्ट्ठमणण ण । आच्चंतप वबुति , तम्ह तेरिच्छय भणणय ॥148॥ • आथव - ज े मि विि क य की कु हिित क े प्र प्त ह े, • जजिकी आ ह ि दद ववषयक संज्ञ दूसिे मिुष्य ें क े आच्छी तिह प्रकि ह े, • ज े निकृ ष्ट ह ें, • ज े आज्ञ िी ह ें तथ • जजिमें आत्यन्त प प क ब ुतल्य प य ज य उिक े नतयोंि कहते हैं ॥148॥
  • 30. मणणंनत जद े णणच्चं, मणेण णणउण मणुक्कड़ जम्ह । मणणुब्भव य सिे, तम्ह ते म णुस भणणद ॥149॥ •आथव - ज े नित्य ही हेय-उप देय, तत्त्व-आतत्त्व, आ प्त-आि प्त, धमव-आधमव आ दद क ववि ि किें आ ैि •शशल्पकि आ दद में भी कु शि ह ें, •ज े पूव ेवक्त मि के ववषय में उत्कृ ष्ट ह ें आथ वत् ज े मि के द्व ि गुण-द ेष दद क ववि ि स्मिण आ दद कि सकें , तथ •युग की आ दद में ज े मिुआ ें से उत्पन्न ह ें •उिक े मिुष्य कहते हैं ॥149॥
  • 31. स मणण पंलिंदी, पज्जत्त ज ेणणणी आपज्जत्त । नतरिय णि तह वव य, पंलिंददयभंगद े हीण ॥150॥ आथव - नतयोंि ें के प ँि भेद ह ेते हैं। स म न्य नतयोंि, पंिेग्न्रय नतयोंि, पंिेग्न्रय पय वप्त नतयोंि, य ेनििी नतयोंि आ ैि आपय वप्त नतयोंि। •इन्हीं प ँि भेद ें में से पंिेग्न्रय के एक भेद क े छ ेड़कि ब की के ये ही ि ि भेद मिुष्य ें के ह ेते हैं ॥150॥
  • 32. 5 प्रक ि के नतयोंि नतयोंि (स म न्य) (1) पंिेग्न्रय (2) पय वप्त (3) पुरुषवेदी, िपुंसकवेदी य ेनििी (स्त्रीवेदी) (4) आपय वप्त (5) एकें दरय से ितुरिंदरय
  • 33. 4 प्रक ि के मिुष्य मिुष्य स म न्य (1) पय वप्त (2) पुरुषवेदी, िपुंसकवेदी मिुष्यिी (3) आपय वप्त (4)
  • 34. दीिंनत जद े णणच्चं, गुणेहहं आट्ठेहहं ददिभ वेहहं। भ संतददिक य , तम्ह ते वग्णणय देव ॥151॥ आथव - ज े देवगनत में ह ेिेव िे य प ये ज िेव िे परिण म ें- परिणमि ें से सद सुखी िहते हैं आ ैि •ज े आणणम , महहम आ दद आ ठ गुण ें (ऋणद्धय ें) के द्व ि सद आप्रनतहतरूप से ववह ि किते हैं आ ैि •जजिक रूप, ि वणय, य ैवि आ दद सद प्रक शम ि िहत है, •उिक े पिम गम में देव कह है ॥151॥
  • 35. •पववत ें, वि ें, मह समुर ें में ववह ििीड़ •बिव ि ें क े भी जीतिे क भ व िखिववजजगीष •ववशशष्ट दीनप्त क े ध िण कििद्युनत •पंि पिमेष्ठी आ दद की वन्दिस्तुनत •पंिेग्न्रय के ववषय-भ ेग ें से मुददत िहिम ेद देव गनत
  • 36. देव भविव सी व्यंति जय ेनतषी वैम निक
  • 37. ज इजि मिणभय , संज ेगववज ेगदुक्‍खसणण आ े। ि ेग ददग य जजस्से, ण संनत स ह ेदद ससद्धगई॥152॥ आथव - एके ग्न्रय से िेकि पंिेग्न्रय तक प ँि प्रक ि की ज नत, • बुढ प , मिण, भय, •आनिष्ट संय ेग, इष्ट ववय ेग, इिसे ह ेिे व िे दु:ख, • आ ह ि दद ववषयक संज्ञ एँ-व ंछ एँ आ ैि • ि ेग आ दद की व्य धध इत्य दद ववरुद्ध ववषय •जजस गनत में िहीं प ये ज ते • उसक े ससद्ध गनत कहते हैं ॥152॥
  • 39. स मणण णेिइय , घणआंगुिववददयमूिगुणसेढी। ववददय दद व िदसआड़, छत्तत्तदुणणजपदहहद सेढी॥153॥ • आथव - स म न्यतय सम्पूणव ि िवकय ें क प्रम ण घि ंगुि के दूसिे वगवमूि से गुणणत जगच््रेणी प्रम ण है। • हद्वतीय दद पृलथववय ें में िहिे व िे-प ये ज िे व िे ि िवकय ें क प्रम ण िम से आपिे ब िहवें, दशवें, आ ठवें, छठे, तीसिे आ ैि दूसिे वगवमूि से भक्त जगच््रेणी प्रम ण समझि ि हहये ॥153॥
  • 40. ि िवकय ें की संख्य • घि ंगुि क हद्वतीय मूि जगत् श्रेणी • 4 घि ंगुि श्रेणी • उद हिण: म ि वक श्रेणी=65536; घि ंगुि=16 • त े घि ंगुि = 16 = 4 ; 4 घि ंगुि = 4 16 = 2 • त े 4 घि ंगुि श्रेणी = 2 × 65536 = 131072 • एेसे ही व स्तववक गणणत में ज िि
  • 42. संख्य आ ें सम्बन्धी नियम • इतिे ि िकी आधधकतम ह े सकते हैं । • इतिे ही हमेश ह े यह नियम िहीं है । • सभी संख्य आ ें मे यह नियम ज िि । सभी संख्य एं उत्कृ ष्ि आपेक्ष बत ई हैं ।
  • 43. छह पृलथववय ें के ि िवकय ें की संख्य पृथ्वी संख्य पृथ्वी संख्य हद्वतीय पृथ्वी श्रे 𝟐 𝟏𝟐 श्रे पंिम पृथ्वी श्रे 𝟐 𝟔 श्रे तीसिी पृथ्वी श्रे 𝟐 𝟏𝟎 श्रे छठी पृथ्वी श्रे 𝟐 𝟑 श्रे ितुथव पृथ्वी श्रे 𝟐 𝟖 श्रे स तवीं पृथ्वी श्रे 𝟐 𝟐 श्रे
  • 44. श्रेणी = श्रेणी × श्रेणी श्रेणी = 22 श्रेणी × 22 श्रेणी त े श्रेणी = 22 श्रेणी × 22 श्रेणी × श्रेणी इसे सूत्र में िखिे पि: श्रे 𝟐 𝟐 श्रे = 22 श्रेणी × 22 श्रेणी × श्रेणी 𝟐 𝟐 श्रे = 22 श्रेणी × श्रेणी स तवे ििक के ि िकी वकतिे?
  • 45. •श्रेणी = श्रेणी × श्रेणी • श्रेणी = 22 श्रेणी × 22 श्रेणी 22 श्रेणी = 23 श्रेणी × 2 𝟑 श्रेणी तो श्रेणी = 2 𝟑 श्रेणी × 2 𝟑 श्रेणी × 22 श्रेणी × श्रेणी इिे िूत्र में रखने पर: • श्रे 𝟐 𝟑 श्रे = 2 𝟑 श्रेणी 2 𝟑 श्रेणी× 22 श्रेणी × श्रेणी 𝟐 𝟑 श्रे •= 2 𝟑 श्रेणी × 22 श्रेणी × श्रेणी छठे ििक के ि िकी
  • 46. प िवें ििक के ि िकी • 2 𝟔 श्रेणी × 2 𝟓 श्रेणी × 2 𝟒 श्रेणी × 2 𝟑 श्रेणी × 22 श्रेणी × श्रेणी • 2 𝟖 श्रेणी × 2 𝟕 श्रेणी × 2 𝟔 श्रेणी × 2 𝟓 श्रेणी × 2 𝟒 श्रेणी × 2 𝟑 श्रेणी × 22 श्रेणी × श्रेणी चौथे नरक के नारकी
  • 47. तीसिे ििक के ि िकी 210 श्रेणी × 2 𝟗 श्रेणी × 2 𝟖 श्रेणी × 2 𝟕 श्रेणी × 2 𝟔 श्रेणी × 2 𝟓 श्रेणी × 2 𝟒 श्रेणी × 2 𝟑 श्रेणी × 22 श्रेणी × श्रेणी 212 श्रेणी × 211 श्रेणी × 210 श्रेणी × 2 𝟗 श्रेणी × 2 𝟖 श्रेणी × 2 𝟕 श्रेणी × 2 𝟔 श्रेणी × 2 𝟓 श्रेणी × 2 𝟒 श्रेणी × 2 𝟑 श्रेणी × 22 श्रेणी × श्रेणी दुसिे ििक के ि िकी
  • 48. हेट्ट्ठमछप्पुढवीणं ि ससववहीण े दु सिि सी दु। पढम वणणग्म्ह ि सी, णेिइय णं तु णणदद्दट्ठे॥154॥ •आथव - िीिे की छह पृलथववय ें के ि िवकय ें क जजति प्रम ण ह े उसक े सम्पूणव ि िक ि शश में से घि िे पि ज े शेष िहे उति ही प्रथम पृथ्वी के ि िवकय ें क प्रम ण है ॥154॥
  • 49. Home-work •एेसे ही दूसिे ििक से छठे ििक तक की संख्य पूिी ख ेि कि निक िि ।
  • 50. प्रथम पृथ्वी के ि िवकय ें की संख्य प्रथम पृथ्वी के ि िकी = सवव ि िकी — शेष 6 पृथ्वी के ि िकी = ( 4 घ श्रेणी) — ( श्रे 𝟐12 श्रे + श्रे 𝟐10 श्रे + श्रे 𝟐 𝟖 श्रे + श्रे 𝟐 𝟔 श्रे + श्रे 𝟐 𝟑 श्रे + श्रे 𝟐 𝟐 श्रे ) = कु छ कम सवव ि िकी
  • 51. • शेष 6 पृथ्वीय ें के ि िकी वकतिी जगत्श्रेणी प्रम ण ह ेंगे? • क्य सब लमिकि भी 6 जगत्श्रेणी प्रम ण य उससे आधधक ह ेंगे? • इि छह ें पृथ्वीय ें क ज ेड़ िगभग श्रेणी 𝟐12 श्रेणी + ह ेग । • य िे 1 जगत्श्रेणी प्रम ण भी िहीं ह े प येग ।
  • 52. ििक गनत – आल्प-बुतत्व •स तवें ििक में सबसे कम ि िकी ह ेते हैं । •उससे आधधक छठे ििक में, •उससे आधधक प ँिवे ििक में, •एेसे िम से आधधक ह ेते-ह ेते सबसे आधधक ि िकी प्रथम ििक में प ए ज ते हैं ।
  • 53. संस िी पंिक्‍ख , तप्पुणण नतगददहीणय कमस े। स मणण पंलिंदी, पंलिंददयपुणणतेरिक्‍ख ॥155॥ • आथव - सम्पूणव जीवि शश में से ससद्धि शश क े घि िे पि संस ि ि शश क , • संस िि शश में से तीि गनत के जीव ें क प्रम ण घि िे पि स म न्य नतयोंि ें क , • सम्पूणव पंिेग्न्रय जीव ें के प्रम ण में से 3 गनत सम्बन्धी जीव ें क प्रम ण घि िे पि पंिेग्न्रय नतयोंि ें तथ • संपूणव पय वप्तक ें के प्रम ण में से तीि गनत संबंधी पय वप्त जीव ें क प्रम ण घि िे पि पय वप्त पंिेग्न्रय नतयोंि ें क प्रम ण प्र प्त ह ेत है ॥155॥
  • 54. नतयोंि गनत की संख्य - सूत्र संस ि ि शश •संपूणव जीवि शश — ससद्ध ि शश नतयोंि (स म न्य) •संस ि ि शश — 3 गनत के जीव ें की संख्य पंिेग्न्रय नतयोंि •पंिेग्न्रय जीव — 3 गनत के जीव ें की संख्य पंिेग्न्रय पय वप्तक नतयोंि •पंिेग्न्रय पय वप्त जीव — 3 गनत के पय वप्तक जीव ें की संख्य
  • 55. छस्सयज ेयणकददहदजगपदिं ज ेणणणीण परिम णं। पुणणूण पंिक्‍ख , नतरियआपज्जत्तपरिसंख ॥156॥ •आथव - छह स ै य ेजि के वगव क जगतप्रति में भ ग देिे से ज े िब्ध आ वे उति ही य ेनििी नतयोंि ें क प्रम ण है आ ैि •पंिेग्न्रय नतयोंि ें में से पय वप्त नतयोंि ें क प्रम ण घि िे पि ज े शेष िहे उति आपय वप्त पंिेग्न्रय नतयोंि ें क प्रम ण है ॥156॥
  • 56. नतयोंि गनत - संख्य • जगत् प्रति (600 य ेजि) 𝟐 य ेनििी नतयोंि • पंिेग्न्रय नतयोंि — पंिेग्न्रय पय वप्त नतयोंि • (तीसि सूत्र — ि ैथ सूत्र) पंिेग्न्रय आपय वप्त • जगत् प्रति ൘ प्रति ंगुि आसंख्य त पंिेग्न्रय जीव
  • 57. य ेनििी नतयोंि - संख्य • 1 य ेजि = 7,68,000 आंगुि • 600 य ेजि = 600 × 7,68,000 आंगुि • 600 य ेजि 𝟐 = 600 × 7,68,000 आंगुि × 600 × 7,68,000 आंगुि • 600 य ेजि 𝟐 = 4 × 65536 × 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕 प्रति ंगुि • आथ वत् य ेनििी नतयोंि = जगत् प्रति 4 × 65536 × 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕 प्रति ंगुि
  • 58. नतयोंि गनत क आल्प-बुतत्व •सबसे कम य ेनििी नतयोंि •उससे आधधक पंिेग्न्रय पय वप्त •उससे आधधक आपय वप्त पंिेग्न्रय नतयोंि •उससे आधधक पंिेग्न्रय नतयोंि •सबसे आधधक सवव नतयोंि
  • 59. सेढी सूईआंगुिआ ददमतददयपदभ जजदेगूण । स मणणमणुसि सी, पंिमकददघणसम पुणण ॥157॥ •आथव - सूच्यंगुि के प्रथम आ ैि तृतीय वगवमूि क जगच््रेणी में भ ग देिे से ज े शेष िहे उसमें एक घि िे पि ज े शेष िहे उति स म न्य मिुष्य ि शश क प्रम ण है। •इसमें से हद्वरूपवगवध ि में उत्पन्न प ँिवें वगव (ब द ि) के घिप्रम ण पय वप्त मिुष्य ें क प्रम ण है ॥157॥
  • 60. मिुष्य गनत - संख्य स िे मिुष्य = जगत्श्रेणी सूच्यंगुि 𝟐 𝟑 सूच्यंगुि − 1 आथ वत् आसंख्य त, पिन्तु जगत्श्रेणी से कम ।
  • 61. पय वप्त मिुष्य ें की संख्य (ब द ि)³ = पय वप्त मिुष्य * ब द ि = (पणट्ठी)² * ब द ि = (65536)² त े मिुष्य संख्य = (65536²)³ = (65536)6 आथव (216 ) 𝟔 = 296
  • 62. तििीिमधुगववमिंधूमससि ग ववि ेिभयमेरू। तिहरिखझस ह ेंनत ुत, म णुसपज्जत्तसंखंक ॥158॥ •आथव - तक ि से िेकि सक ि पयवन्त जजतिे आक्षि इस ग थ में बत ये हैं, उतिे ही आंक प्रम ण पय वप्त मिुष्य ें की संख्य है ॥158॥
  • 63. आक्षि ें से संख्य निक ििे की ववधध क—1 ि—1 प—1 य—1 ख—2 ठ—2 फ—2 ि—2 ग—3 ड़—3 ब—3 ि—3 घ—4 ढ—4 भ—4 व—4 ड़—5 ण—5 म—5 श—5 ि—6 त—6 ष—6 छ—7 थ—7 स—7 ज—8 द—8 ह—8 झ—9 ध—9 स िे स्वि = 0; ि, ञ = 0; म त्र आ ें क क ेई आंक िहीं
  • 64. मिुष्य गनत की संख्य •7,9228162,5142643,3759354,3950336 संख्य प्रम ण पय वप्त मिुष्य है । ❖=(ब द ि)3 •वकतिे आंक प्रम ण ? ❖29 आंक प्रम ण संख्य ।
  • 65. पज्जत्तमणुस्स णं, नतिउत्थ े म णुसीण परिम णं। स मणण पुणणूण , मणुवआपज्जत्तग ह ेंनत॥159॥ •आथव - पय वप्त मिुष्य ें क जजति प्रम ण है उसमें तीि ि ैथ ई म िुवषय ें क प्रम ण है। •स म न्य मिुष्यि शश में से पय वप्तक ें क प्रम ण घि िे पि ज े शेष िहे उति ही आपय वप्त मिुष्य ें क प्रम ण है ॥159॥
  • 66. मिुग्ष्यिी - संख्य मिुग्ष्यिी = पय वप्त मिुष्य 𝟑 𝟒 2 𝟗𝟔 𝟑 𝟒 = 2 𝟗𝟒 3 य िे कु ि पय वप्त मिुष्य ें क 75% मिुग्ष्यिी है ।
  • 67. आपय वप्त मिुष्य - संख्य आपय वप्त मिुष्य = स म न्य मिुष्य — पय वप्त मिुष्य = जगत्श्रेणी सूच्यंगुि 𝟐 𝟑 सूच्यंगुि − 1 – (ब द ि)³ आथ वत् स म न्य मिुष्य संख्य से कु छ कम
  • 68. मिुष्य गनत – आल्प-बुतत्व •सबसे कम पय वप्त पुरुषवेदी, िपुंसक वेदी मिुष्य •उससे आधधक पय वप्त मिुग्ष्यिी •उससे आधधक पय वप्त मिुष्य •उससे आधधक आपय वप्त मिुष्य •सबसे आधधक सवव मिुष्य
  • 69. नतग्णणसयज ेयण णं, वेसदछप्पणण आंगुि णं ि। कददहदपदिं वेंति, ज ेइससय णं ि परिम णं॥160॥ •आथव - तीि स ै य ेजि के वगव क जगतप्रति में भ ग देिे से ज े िब्ध आ वे उति व्यन्ति देव ें क प्रम ण है आ ैि •256 प्रम ण ंगुि ें के वगव क जगतप्रति में भ ग देिे से ज े िब्ध आ वे उति जय ेनतवषय ें क प्रम ण है ॥160॥
  • 70. देवगनत की संख्य • जगत् प्रति (300 य ेजि) 𝟐 व्यंति देव • जगत् प्रति (256 िूच्र्ंर्ुल ) 𝟐 = जगत् प्रति 65536 प्रति ंगुिजय ेनतषी देव
  • 71. व्यंति देव - संख्य • 300 य ेजि 𝟐 = 300 × 7,68,000 आंगुि × 300 × 7,68,000 आंगुि • 300 य ेजि 𝟐 = 65536 × 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕 प्रति ंगुि • आथ वत् व्यंति देव = जगत् प्रति 65536 × 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕 प्रति ंगुि • य िे व्यंति ें से जय ेनतषी देव 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕 गुणे हैं |
  • 72. घणआंगुिपढमपदं, तददयपदं सेहढसंगुणं कमस े। भवणे स ेहम्मदुगे, देव णं ह ेदद परिम णं॥161॥ • आथव - जगच््रेणी के स थ घि ंगुि के प्रथम वगवमूि क गुण कििे से भविव सी आ ैि • तृतीय वगवमूि क गुण कििे से स ैधमवहद्वक - स ैधमव आ ैि एेश ि स्वगव के देव ें क प्रम ण निकित है ॥161॥
  • 73. देवगनत की संख्य •श्रेणी x घि ंगुिभविव सी •श्रेणी x 𝟐 𝟑 घि ंगुि स ैधमव- एेश ि
  • 74. तत्त े एग िणवसगपणिउणणयमूिभ जजद सेढी। पल्ल संखेज्जददम , पत्तेयं आ णद ददसुि ॥162॥ • आथव - इसके आिंति आपिे (जगच््रेणी के ) ग्य िहवें, िववें, स तवें, प ंिवें, ि ैथे वगवमूि से भ जजत जगच््रेणी प्रम ण तीसिे कल्प से िेकि ब िहवें कल्प तक के देव ें क प्रम ण है। • आ ित ददक से िेकि आ गे के देव ें क प्रम ण पल्य के आसंख्य तवें भ ग प्रम ण है ॥162॥
  • 75. वैम निक देव ें की संख्य स्वगव संख्य स्वगव संख्य 3-4 स्वगव श्रे 𝟐 𝟏𝟏 श्रे 9-10 स्वगव श्रे 𝟐 𝟓 श्रे 5-6 स्वगव श्रे 𝟐 𝟗 श्रे 11-12 स्वगव श्रे 𝟐 𝟒 श्रे 7-8 स्वगव श्रे 𝟐 𝟕 श्रे 13-16 स्वगव, 9 ग्रैवेयक, 9 आिुददश प्रत्येक पल्र् अिंख्र्ात
  • 76. नतगुण सत्तगुण व , सिट्ठ म णुसीपम ण द े। स मणणदेवि सी, ज ेइससय द े ववसेस हहय ॥163॥ •आथव - म िुवषय ें क जजति प्रम ण है उससे नतगुि आथव स तगुि सव वथवससणद्ध के देव ें क प्रम ण है। •जय ेनतषी देव ें क जजति प्रम ण है उससे कु छ आधधक सम्पूणव देवि शश क प्रम ण है ॥163॥
  • 77. देवगनत की संख्य •मिुग्ष्यिी 3 आथव •मिुग्ष्यिी 7 सव वथवससणद्ध •ि ि ें निक य ें क ज ेड़ आथ वत् •जय ेनतषी देव ें से कु छ आधधक सवव देव ि शश
  • 78. देवगनत क आल्प–बुतत्व • सबसे कम सव वथवससणद्ध के देव • 4 आिुत्ति ववम ि के देव • उिसे आधधक िव आिुददश • उिसे आधधक िव ग्रैवेयक • उिसे आधधक आ िण-आच्युत • एेसे िम से स ैधमव-एेश ि तक आधधक-आधधक • उससे आधधक भविव सी • उससे आधधक व्यंति • सबसे आधधक जय ेनतषी
  • 79. इि सब संख्य आ ें क े ज ििे क क्‍य ि भ है ?
  • 80. Home-work •ि ि ें गनतय ें की संख्य आ ें क े घिते से बढते िम से जम आ े ।
  • 81. ➢Reference : ग ेम्मिस ि जीवक णड़, सम्यग्ज्ञ ि िंदरक , ग ेम्मिस ि जीवक ंड़ - िेख लित्र एवं त लिक आ ें में Presentation developed by Smt. Sarika Vikas Chhabra ➢For updates / feedback / suggestions, please contact ➢Sarika Jain, sarikam.j@gmail.com ➢www.jainkosh.org ➢: 0731-2410880 , 94066-82889