1. आ वश्यक निवेदि
प्रस्तुत आध्ययि स मग्री, त लिक एँ एवं लित्र आ दद
श्रीमती स रिक ववक स छ बड़ द्व ि तैय ि वकये गए
हैं |
इिक आन्यत्र एवं आन्य भ ष में उपय ेग कििे के
पूवव उिसे आनिव यवत: संपकव कि िें |
3. ग थ 1 : मंगि ििण
• ज े ससद्ध, शुद्ध एवं आकिंक हैं एवं
• जजिके सद गुणरूपी ित ें के भूषण ें क उदय िहत है,
• एेसे श्री जजिेन्रवि िेलमिंर स्व मी क े िमस्क ि किके
• जीव की प्ररूपण क े कहंग ।
ससद्धं सुद्धं पणलमय जजणणंदविणेलमिंदमकिंकं ।
गुणियणभूसणुदयं जीवस्स परूवणं व ेच्छं॥
4. धम्मगुणमग्गण हयम ेह रिबिं जजणं णमंससत्त ।
मग्गणमह हहय िं, ववववहहहय िं भणणस्स म े॥140॥
•आथव - सम्यग्दशवि दद आथव उत्तम क्षम दद धमवरूपी धिुष आ ैि
•ज्ञ ि दद गुणरूपी प्रत्यंि -ड़ ेिी, तथ
•ि ैदह म गवण रूपी ब ण ें से
•जजसिे म ेहरूपी शत्रु के बि-सैन्य क े िष्ट कि ददय है एेसे
श्री जजिेन्रदेव क े िमस्क ि किके
•मैं उस म गवण मह धधक ि क वणवि करूँ ग जजसमें वक आ ैि
भी ववववध आधधक ि ें क आन्तभ वव प य ज त है ॥140॥
5. ज हह व ज सु व जीव , मग्ग्गज्जंते जह तह ददट्ठ।
त आ े ि ेदस ज णे सुयण णे मग्गण ह ेंनत॥141॥
•आथव - प्रविि में जजस प्रक ि से देखे ह ें उसी
प्रक ि से जीव दद पद थ ेों क जजि भ व ें के द्व ि
आथव जजि पय वय ें में ववि ि-आन्वेषण वकय
ज य उिक े ही म गवण कहते हैं।
•उिके ि ैदह भेद हैं एेस समझि ि हहये
॥141॥
6. म गवण वकसे कहते हैं ?
•म गवण शब्द क आथव है — आन्वेषण, ख ेजि
•जजि परिण म ें के द्व ि जीव क आन्वेषण
वकय ज ए आथव जजि पय वय ें में जीव क
आन्वेषण वकय ज ए, उन्हें म गवण कहते हैं ।
7. गइइंददयेसु क ये, ज ेगे वेदे कस यण णे य।
संजमदंसणिेस्स , भववय सम्मत्तसग्णण आ ह िे॥142॥
•आथव - गनत, इग्न्रय, क य, य ेग, वेद, कष य,
ज्ञ ि, संयम, दशवि, िेश्य , भव्यत्व, सम्यक्त्व,
संज्ञी, आ ह ि — ये ि ैदह म गवण एँ हैं ॥142॥
10. स न्ति नििंति म गवण
• वकसी म गवण में वकसी समय एक भी जीव ि
ह े, उस म गवण क े स न्ति म गवण कहते हैं ।
स ंति म गवण
• जजस म गवण में प्रनतसमय जीव प ये ज ते हैं,
जजसमें कभी भी जीव ें क आभ व िहीं ह ेत ,
उसे नििंति म गवण कहते हैं ।
नििंति म गवण
11. उवसम सुहम ह िे, वेगुहियलमस्स णिआपज्जत्ते।
स सणसम्मे लमस्से, स ंतिग मग्गण आट्ठ॥143॥
आथव - उपशम सम्यक्त्व, सूक्ष्मस ंपि य संयम, आ ह िक
क यय ेग, आ ह िकलमश्रक यय ेग, वैविययक
लमश्रक यय ेग, आपय वप्त-िब्ध्यपय वप्त मिुष्य, स स दि
सम्यक्त्व आ ैि लमश्र — ये आ ठ स न्ति म गवण एँ हैं
॥143॥
12. मूि म गवण संबंधी नियम
•स िी मूि म गवण एं नििन्ति ही हैं ।
• य िे गनत म गवण में कभी जीव ें क आभ व िहीं ह ेत ।
• इग्न्रय म गवण में कभी जीव ें क आभ व िहीं ह ेत ।
•इस ही प्रक ि स िी म गवण आ ें में जीव सदैव िहते हैं ।
13. उत्ति म गवण संबंधी नियम
• पिन्तु म गवण आ ें के उत्ति भेद में आन्ति संभव हैं ।
• जैसे उपशम सम्यक्त्व म गवण में आन्ति ह े सकत है,
• य िे वकसी क ि में क ेई भी जीव उपशम सम्यक्त्वी ि ह े
। यह संभव है । आथव
• आ ह िक लमश्र में भी वकसी क ि में क ेई भी जीव ि ह े —
यह संभव है ।
• एेसी म गवण स ंति म गवण कहि ती है ।
14. 8 स ंति म गवण
उपशम
सम्यक्त्व
सूक्ष्म स म्पि य
आ ह िक
क यय ेग
आ ह िक लमश्र
क यय ेग
वैविययक लमश्र
क यय ेग
िब्ब्ध-आपय वप्त
मिुष्य
स स दि
सम्यक्त्व
लमश्र
15. स ंति म गवण वकस मूि म गवण क भेद है?
स ंति म गवण मूि म गवण
िब्ब्ध-आपय वप्त मिुष्य गनत म गवण
स स दि सम्यक्त्व म गवण
लमश्र सम्यक्त्व म गवण
उपशम सम्यक्त्व सम्यक्त्व म गवण
सूक्ष्म-स म्पि य संयम म गवण
आ ह िक य ेग म गवण
आ ह िक लमश्र य ेग म गवण
वैवियक लमश्र य ेग म गवण
16. सत्त ददण छम्म स , व सपुधत्तं ि ब िस मुुतत्त ।
पल्ल संखं नतणहं, विमविं एगसमय े दु॥144॥
•आथव - उक्त आ ठ आन्तिम गवण आ ें क उत्कृ ष्ट क ि िम से
•स त ददि, छ: महीि , पृथक्त्व वषव, पृथक्त्व वषव, ब िह
मुहतव आ ैि आन्त की तीि म गवण आ ें क क ि पल्य के
आसंख्य तवें भ ग है।
•आ ैि जघन्य क ि सबक एक समय है ॥144॥
18. कब तक आन्ति िह सकत है ?
•कम-से-कम आन्तिजघन्य
•आधधक-से-आधधक आन्तिउत्कृ ष्ट
19. स ंति म गवण आ ें क आंति
मूि म गवण स ंति म गवण
आंति
उत्कृ ष्ट जघन्य
गनत
िब्ब्ध-आपय वप्त
मिुष्य
पल्य / आसंख्य त
,,
,,
सभी क
एक समय
सम्यक्त्व
स स दि
लमश्र
उपशम
सम्यक्त्व
7 ददि (ितुथव गुणस्थ ि क )
14 ददि (पंिम ,, )
15 ददि /
(आथव 24
ददि)
(छठे-स तवें ,, )
20. स ंति म गवण आ ें क आंति
मूि म गवण स ंति म गवण
आंति
उत्कृ ष्ट जघन्य
संयम सूक्ष्म स म्पि य 6 महीि
सभी क
एक समय
य ेग आ ह िक वषव पृथक्त्व (3-9)
आ ह िक लमश्र ,,
वैवियक लमश्र
12 मुहतव (इतिे क ि तक
क ेई देव / ि िकी उत्पन्ि ि
ह े)
22. गइउदयजपज्ज य िउगइगमणस्स हेउ व ुत गई।
ण ियनतरिक्खम णुसदेवगइ त्तत्त य हवे िदुध ॥146॥
•आथव - गनति मकमव के उदय से ह ेिे व िी
जीव की पय वय क े आथव ि ि ें गनतय ें में
गमि कििे के क िण क े गनत कहते हैं।
•उसके ि ि भेद हैं – ििकगनत, नतयोंिगनत,
मिुष्यगनत, देवगनत ॥146॥
23. गनत
•गनत ि मकमव के उदय से ह ेिे व िी जीव की
पय वय क े गनत कहते हैं ।
•ि ि ें गनतय ें में गमि कििे के क िण क े गनत
कहते हैं ।
•(य िे क िणभूत कमव क े भी गनत कहते हैं ।
पिन्तु यह ँ कमव की वववक्ष िहीं है ।)
25. ण िमंनत जद े णणच्चं, दिे खेत्ते य क ि-भ वे य।
आणण ेणणेहहं य जम्ह , तम्ह ते ण िय भणणय ॥147॥
• आथव - ज े रव्य, क्षेत्र, क ि, भ व में
• स्वयं तथ पिस्पि में
• प्रीनत क े प्र प्त िहीं ह ेते
• उिक े ि ित (ि िकी) कहते हैं ॥147॥
26. ििक गनत वकसे कहते हैं?
•ििक गनत ि म कमव के उदय से
•ह ेिे व िी जीव की आवस्थ -ववशेष क े
•ििक गनत कहते हैं |
•ििक के आन्य ि म
• ि ित, ि िक, नििय, निित
27. ििक गनत वकसे कहते हैं?
• ि +ित = स्वयं आथव पिस्पि प्रीती क े प्र प्त िहीं ह ेते
• रव्य, क्षेत्र, क ि, भ व में पिस्पि िमते िहीं
ि ित
• िि ि् = प्र णणय ें क े; क यग्न्त= क्िेश पुतंि वें, वह
ििक कमव| उस कमव से ज े उत्पन्न ह े, वह ि िक
ि िक
• नि: + आय = जजिक पुणयकमव िि गय हैनििय
• नि + ित = ज े हहंस दद आसमीिीि क य ेों में ित हैंनिित
30. मणणंनत जद े णणच्चं, मणेण णणउण मणुक्कड़ जम्ह ।
मणणुब्भव य सिे, तम्ह ते म णुस भणणद ॥149॥
•आथव - ज े नित्य ही हेय-उप देय, तत्त्व-आतत्त्व, आ प्त-आि प्त,
धमव-आधमव आ दद क ववि ि किें आ ैि
•शशल्पकि आ दद में भी कु शि ह ें,
•ज े पूव ेवक्त मि के ववषय में उत्कृ ष्ट ह ें आथ वत् ज े मि के द्व ि
गुण-द ेष दद क ववि ि स्मिण आ दद कि सकें , तथ
•युग की आ दद में ज े मिुआ ें से उत्पन्न ह ें
•उिक े मिुष्य कहते हैं ॥149॥
31. स मणण पंलिंदी, पज्जत्त ज ेणणणी आपज्जत्त ।
नतरिय णि तह वव य, पंलिंददयभंगद े हीण ॥150॥
आथव - नतयोंि ें के प ँि भेद ह ेते हैं। स म न्य नतयोंि,
पंिेग्न्रय नतयोंि, पंिेग्न्रय पय वप्त नतयोंि, य ेनििी नतयोंि
आ ैि आपय वप्त नतयोंि।
•इन्हीं प ँि भेद ें में से पंिेग्न्रय के एक भेद क े छ ेड़कि
ब की के ये ही ि ि भेद मिुष्य ें के ह ेते हैं ॥150॥
32. 5 प्रक ि के नतयोंि
नतयोंि (स म न्य) (1)
पंिेग्न्रय (2)
पय वप्त (3)
पुरुषवेदी, िपुंसकवेदी य ेनििी (स्त्रीवेदी) (4)
आपय वप्त (5)
एकें दरय से ितुरिंदरय
33. 4 प्रक ि के मिुष्य
मिुष्य
स म न्य (1)
पय वप्त (2)
पुरुषवेदी,
िपुंसकवेदी
मिुष्यिी
(3)
आपय वप्त (4)
34. दीिंनत जद े णणच्चं, गुणेहहं आट्ठेहहं ददिभ वेहहं।
भ संतददिक य , तम्ह ते वग्णणय देव ॥151॥
आथव - ज े देवगनत में ह ेिेव िे य प ये ज िेव िे परिण म ें-
परिणमि ें से सद सुखी िहते हैं आ ैि
•ज े आणणम , महहम आ दद आ ठ गुण ें (ऋणद्धय ें) के द्व ि
सद आप्रनतहतरूप से ववह ि किते हैं आ ैि
•जजिक रूप, ि वणय, य ैवि आ दद सद प्रक शम ि िहत
है,
•उिक े पिम गम में देव कह है ॥151॥
35. •पववत ें, वि ें, मह समुर ें में ववह ििीड़
•बिव ि ें क े भी जीतिे क भ व िखिववजजगीष
•ववशशष्ट दीनप्त क े ध िण कििद्युनत
•पंि पिमेष्ठी आ दद की वन्दिस्तुनत
•पंिेग्न्रय के ववषय-भ ेग ें से मुददत िहिम ेद
देव गनत
39. स मणण णेिइय , घणआंगुिववददयमूिगुणसेढी।
ववददय दद व िदसआड़, छत्तत्तदुणणजपदहहद सेढी॥153॥
• आथव - स म न्यतय सम्पूणव ि िवकय ें क प्रम ण घि ंगुि
के दूसिे वगवमूि से गुणणत जगच््रेणी प्रम ण है।
• हद्वतीय दद पृलथववय ें में िहिे व िे-प ये ज िे व िे
ि िवकय ें क प्रम ण िम से आपिे ब िहवें, दशवें,
आ ठवें, छठे, तीसिे आ ैि दूसिे वगवमूि से भक्त जगच््रेणी
प्रम ण समझि ि हहये ॥153॥
40. ि िवकय ें की संख्य
• घि ंगुि क हद्वतीय मूि जगत् श्रेणी
•
4
घि ंगुि श्रेणी
• उद हिण: म ि वक श्रेणी=65536; घि ंगुि=16
• त े घि ंगुि = 16 = 4 ;
4
घि ंगुि =
4
16 = 2
• त े
4
घि ंगुि श्रेणी = 2 × 65536 = 131072
• एेसे ही व स्तववक गणणत में ज िि
42. संख्य आ ें सम्बन्धी नियम
• इतिे ि िकी आधधकतम ह े सकते हैं ।
• इतिे ही हमेश ह े यह नियम िहीं है ।
• सभी संख्य आ ें मे यह नियम ज िि । सभी संख्य एं
उत्कृ ष्ि आपेक्ष बत ई हैं ।
43. छह पृलथववय ें के ि िवकय ें की संख्य
पृथ्वी संख्य पृथ्वी संख्य
हद्वतीय पृथ्वी
श्रे
𝟐 𝟏𝟐
श्रे
पंिम पृथ्वी
श्रे
𝟐 𝟔
श्रे
तीसिी पृथ्वी
श्रे
𝟐 𝟏𝟎
श्रे
छठी पृथ्वी
श्रे
𝟐 𝟑
श्रे
ितुथव पृथ्वी
श्रे
𝟐 𝟖
श्रे
स तवीं पृथ्वी
श्रे
𝟐 𝟐
श्रे
52. ििक गनत – आल्प-बुतत्व
•स तवें ििक में सबसे कम ि िकी ह ेते हैं ।
•उससे आधधक छठे ििक में,
•उससे आधधक प ँिवे ििक में,
•एेसे िम से आधधक ह ेते-ह ेते सबसे आधधक
ि िकी प्रथम ििक में प ए ज ते हैं ।
53. संस िी पंिक्ख , तप्पुणण नतगददहीणय कमस े।
स मणण पंलिंदी, पंलिंददयपुणणतेरिक्ख ॥155॥
• आथव - सम्पूणव जीवि शश में से ससद्धि शश क े घि िे पि संस ि ि शश
क ,
• संस िि शश में से तीि गनत के जीव ें क प्रम ण घि िे पि स म न्य
नतयोंि ें क ,
• सम्पूणव पंिेग्न्रय जीव ें के प्रम ण में से 3 गनत सम्बन्धी जीव ें क
प्रम ण घि िे पि पंिेग्न्रय नतयोंि ें तथ
• संपूणव पय वप्तक ें के प्रम ण में से तीि गनत संबंधी पय वप्त जीव ें क
प्रम ण घि िे पि पय वप्त पंिेग्न्रय नतयोंि ें क प्रम ण प्र प्त ह ेत है
॥155॥
54. नतयोंि गनत की संख्य - सूत्र
संस ि ि शश •संपूणव जीवि शश — ससद्ध ि शश
नतयोंि
(स म न्य)
•संस ि ि शश — 3 गनत के जीव ें की संख्य
पंिेग्न्रय नतयोंि •पंिेग्न्रय जीव — 3 गनत के जीव ें की संख्य
पंिेग्न्रय
पय वप्तक नतयोंि
•पंिेग्न्रय पय वप्त जीव — 3 गनत के पय वप्तक
जीव ें की संख्य
55. छस्सयज ेयणकददहदजगपदिं ज ेणणणीण परिम णं।
पुणणूण पंिक्ख , नतरियआपज्जत्तपरिसंख ॥156॥
•आथव - छह स ै य ेजि के वगव क जगतप्रति
में भ ग देिे से ज े िब्ध आ वे उति ही
य ेनििी नतयोंि ें क प्रम ण है आ ैि
•पंिेग्न्रय नतयोंि ें में से पय वप्त नतयोंि ें क
प्रम ण घि िे पि ज े शेष िहे उति आपय वप्त
पंिेग्न्रय नतयोंि ें क प्रम ण है ॥156॥
56. नतयोंि गनत - संख्य
•
जगत् प्रति
(600 य ेजि) 𝟐
य ेनििी नतयोंि
• पंिेग्न्रय नतयोंि — पंिेग्न्रय पय वप्त नतयोंि
• (तीसि सूत्र — ि ैथ सूत्र)
पंिेग्न्रय आपय वप्त
•
जगत् प्रति
൘
प्रति ंगुि
आसंख्य त
पंिेग्न्रय जीव
59. सेढी सूईआंगुिआ ददमतददयपदभ जजदेगूण ।
स मणणमणुसि सी, पंिमकददघणसम पुणण ॥157॥
•आथव - सूच्यंगुि के प्रथम आ ैि तृतीय वगवमूि क जगच््रेणी
में भ ग देिे से ज े शेष िहे उसमें एक घि िे पि ज े शेष
िहे उति स म न्य मिुष्य ि शश क प्रम ण है।
•इसमें से हद्वरूपवगवध ि में उत्पन्न प ँिवें वगव (ब द ि) के
घिप्रम ण पय वप्त मिुष्य ें क प्रम ण है ॥157॥
60. मिुष्य गनत - संख्य
स िे मिुष्य =
जगत्श्रेणी
सूच्यंगुि
𝟐 𝟑
सूच्यंगुि
− 1
आथ वत् आसंख्य त, पिन्तु जगत्श्रेणी से कम ।
61. पय वप्त मिुष्य ें की संख्य
(ब द ि)³ = पय वप्त मिुष्य
* ब द ि = (पणट्ठी)²
* ब द ि = (65536)²
त े मिुष्य संख्य = (65536²)³
= (65536)6
आथव (216
) 𝟔
= 296
62. तििीिमधुगववमिंधूमससि ग ववि ेिभयमेरू।
तिहरिखझस ह ेंनत ुत, म णुसपज्जत्तसंखंक ॥158॥
•आथव - तक ि से िेकि सक ि पयवन्त जजतिे
आक्षि इस ग थ में बत ये हैं, उतिे ही आंक
प्रम ण पय वप्त मिुष्य ें की संख्य है ॥158॥
69. नतग्णणसयज ेयण णं, वेसदछप्पणण आंगुि णं ि।
कददहदपदिं वेंति, ज ेइससय णं ि परिम णं॥160॥
•आथव - तीि स ै य ेजि के वगव क जगतप्रति में भ ग
देिे से ज े िब्ध आ वे उति व्यन्ति देव ें क प्रम ण है
आ ैि
•256 प्रम ण ंगुि ें के वगव क जगतप्रति में भ ग देिे से
ज े िब्ध आ वे उति जय ेनतवषय ें क प्रम ण है ॥160॥
70. देवगनत की संख्य
•
जगत् प्रति
(300 य ेजि) 𝟐
व्यंति देव
•
जगत् प्रति
(256 िूच्र्ंर्ुल ) 𝟐
=
जगत् प्रति
65536 प्रति ंगुिजय ेनतषी देव
71. व्यंति देव - संख्य
• 300 य ेजि 𝟐
= 300 × 7,68,000 आंगुि × 300
× 7,68,000 आंगुि
• 300 य ेजि 𝟐
= 65536 × 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕
प्रति ंगुि
• आथ वत् व्यंति देव =
जगत् प्रति
65536 × 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕 प्रति ंगुि
• य िे व्यंति ें से जय ेनतषी देव 81,000 × 𝟏𝟎 𝟕
गुणे हैं |
72. घणआंगुिपढमपदं, तददयपदं सेहढसंगुणं कमस े।
भवणे स ेहम्मदुगे, देव णं ह ेदद परिम णं॥161॥
• आथव - जगच््रेणी के स थ घि ंगुि के प्रथम वगवमूि क
गुण कििे से भविव सी आ ैि
• तृतीय वगवमूि क गुण कििे से स ैधमवहद्वक - स ैधमव
आ ैि एेश ि स्वगव के देव ें क प्रम ण निकित है
॥161॥
74. तत्त े एग िणवसगपणिउणणयमूिभ जजद सेढी।
पल्ल संखेज्जददम , पत्तेयं आ णद ददसुि ॥162॥
• आथव - इसके आिंति आपिे (जगच््रेणी के ) ग्य िहवें, िववें,
स तवें, प ंिवें, ि ैथे वगवमूि से भ जजत जगच््रेणी प्रम ण
तीसिे कल्प से िेकि ब िहवें कल्प तक के देव ें क प्रम ण
है।
• आ ित ददक से िेकि आ गे के देव ें क प्रम ण पल्य के
आसंख्य तवें भ ग प्रम ण है ॥162॥
76. नतगुण सत्तगुण व , सिट्ठ म णुसीपम ण द े।
स मणणदेवि सी, ज ेइससय द े ववसेस हहय ॥163॥
•आथव - म िुवषय ें क जजति प्रम ण है उससे
नतगुि आथव स तगुि सव वथवससणद्ध के देव ें
क प्रम ण है।
•जय ेनतषी देव ें क जजति प्रम ण है उससे कु छ
आधधक सम्पूणव देवि शश क प्रम ण है ॥163॥
77. देवगनत की संख्य
•मिुग्ष्यिी 3 आथव
•मिुग्ष्यिी 7
सव वथवससणद्ध
•ि ि ें निक य ें क ज ेड़ आथ वत्
•जय ेनतषी देव ें से कु छ आधधक
सवव देव
ि शश
78. देवगनत क आल्प–बुतत्व
• सबसे कम सव वथवससणद्ध के देव
• 4 आिुत्ति ववम ि के देव
• उिसे आधधक िव आिुददश
• उिसे आधधक िव ग्रैवेयक
• उिसे आधधक आ िण-आच्युत
• एेसे िम से स ैधमव-एेश ि तक आधधक-आधधक
• उससे आधधक भविव सी
• उससे आधधक व्यंति
• सबसे आधधक जय ेनतषी