1. आ वश्यक निवेदि
प्रस्तुत आध्ययि स मग्री, त लिक एँ एवं लित्र आ दद
श्रीमती स रिक ववक स छ बड़ द्व ि तैय ि वकये गए
हैं |
इिक आन्यत्र एवं आन्य भ ष में उपय ेग कििे के
पूवव उिसे आनिव यवत: संपकव कि िें |
2. प्ररूपण 7 - इन्द्न्िय म गवण
आ ि यव िेलमिंद ससद् ंतिक्रवतीव
3. आहलमंद जह देव , आववसेसं आहमहंनत मण्णंत ।
ईसंनत एक्कमेक्कं , इंद इव इंददये ज ण॥164॥
❀आर्व - जजस प्रक ि आहलमन्ि देव ें में दूसिे
की आपेक्ष ि िखकि प्रत्येक आपिे-आपिे
क े स्व मी म िते हैं, उसी प्रक ि इन्द्न्िय ँ भी
हैं ॥164॥
4. इन्द्न्िय स्वरूप
“इन्दतीनत इन्ि”- ज े आ ज्ञ आ ैि एेश्वयव व ि है वह इन्ि है आर् वत् आ त्म ही इन्ि
है| आ त्म क े पद र् ेों क े ज ििे में ज े लिंग निलमत्त ह ेत है वह इन्ि क लिंग
इन्द्न्िय कही ज ती है |
ज े गूढ़ पद र्व क ज्ञ ि कि त है, उसे लिंग कहते हैं | आत: ज े सूक्ष्म आ त्म के
आन्द्स्तत्व क ज्ञ ि कि िे में लिंग आर् वत् क िण है वह इन्द्न्िय कहि ती है |
इन्ि शब्द ि मकमव क व िी है| एेसे ि मकमव के द्व ि ज े ििी गई है वह इन्द्न्िय है|
5. मददआ विणखआ ेवसमुत्र्ववसुद्ी हु तज्जब ेह े व ।
भ ववंददयं तु दव्वं, देहुदयजदेहलिण्हं तु॥165॥
❀आर्व - इन्द्न्िय के द े भेद हैं - भ वेन्द्न्िय एवं
िव्येन्द्न्िय।
❀मनतज्ञ ि विण कमव के क्षय ेपशम से उत्पन्न ह ेिे
व िी ववशुद्धद् आर्व उस ववशुद्धद् से उत्पन्न ह ेिे व िे
उपय ेग त्मक ज्ञ ि क े भ वेन्द्न्िय कहते हैं। आ ैि
❀शिीि ि मकमव के उदय से बििेव िे शिीि के लिह्न-
ववशेष क े िव्येन्द्न्िय कहते हैं ॥165॥
6. इन्द्न्िय
िव्येन्द्न्िय
शिीि ि मकमव के उदय से
बििेव िे शिीि के लिह्न-ववशेष
भ वेन्द्न्िय
मनतज्ञ ि विण कमव के क्षय ेपशम से
उत्पन्न ह ेिे व िी ववशुद्धद् आर्व
उस ववशुद्धद् से उत्पन्न ह ेिे व ि
उपय ेग त्मक ज्ञ ि
7. भ वेन्द्न्िय
िब्ब्ि
मनतज्ञ ि विण दद कमव
के क्षय ेपशम से उत्पन्ि
ववशुद्धद्, उघ ड़
उपय ेग
ववशुद्धद् (िब्ब्ि) से
उत्पन्ि प्रवतविरूप ज्ञ ि
11. ज्ञ ि की प्रगट प्र प्त शलि िब्ब्ि
इस शलि क प्रय ेग उपय ेग
इस उपय ेग में सहक िी स िि
िव्य
इन्द्न्िय
िव्य इन्द्न्िय के लिये सहक िी उपकिण
12. फ सिसगंिरूवे, सद्दे ण णं ि लिण्हयं जेससं।
इगगवबनतिदुपंलिंददय, जीव द्धणयभेयलभण्ण आ े॥166॥
❀आर्व - जजि जीव ें के ब ह्य लिह्न (िव्येन्द्न्िय) ह े
आ ैि उसके द्व ि ह ेिे व ि स्पशव, िस, गंि,
रूप, शब्द इि ववषय ें क ज्ञ ि ह े उिक े क्रम
से एके न्द्न्िय, द्वीन्द्न्िय, त्रीन्द्न्िय, ितुरिन्द्न्िय,
पंिेन्द्न्िय जीव कहते हैं, आ ैि
❀इिके भी आिेक आव न्ति भेद हैं ॥166॥
13. इन्द्न्िय म गवण के भेद
एके न्द्न्िय द्वीन्द्न्िय त्रीन्द्न्िय ितुरिन्द्न्िय पंिेन्द्न्िय
संज्ञी
आसंज्ञी
14. इंदिय म गवण के भेद ें क स्वरूप
एकें दिय
•जजिके स्पशविरूप ब ह्य लिह्न ह े आ ैि स्पशव संबंिी
ज्ञ ि ह े, उसे एकें दिय कहते हैं |
द्वीन्द्न्िय
•जजिके स्पशवि, िसि रूप ब ह्य लिह्न ह ें आ ैि स्पशव,
िस संबंिी ज्ञ ि ह े, उसे द्वीन्द्न्िय कहते हैं |
त्रीन्द्न्िय
•जजिके स्पशवि, िसि , घ्र णरूप ब ह्य लिह्न ह ें आ ैि
स्पशव, िस, गंि संबंिी ज्ञ ि ह े, उसे त्रीन्द्न्िय कहते
हैं |
15. इंदिय म गवण के भेद ें क स्वरूप
ितुरिन्द्न्िय
•जजिके स्पशवि, िसि , घ्र ण, िक्षुरूप ब ह्य लिह्न ह ें
आ ैि स्पशव, िस, गंि, वणव संबंिी ज्ञ ि ह े, उसे
ितुरिन्द्न्िय कहते हैं |
पंिेन्द्न्िय
•जजिके स्पशवि, िसि , घ्र ण, िक्षु, कणवरूप ब ह्य
लिह्न ह ें आ ैि स्पशव, िस, गंि, वणव, शब्द संबंिी
ज्ञ ि ह े, उसे पंिेन्द्न्िय कहते हैं |
17. एइंददयस्स फु सणं, एक्कं वव य ह ेदद सेसजीव णं।
ह ेंनत कमउन्द्ड़्ढ़य इं, जजब्भ घ णन्द्च्छस ेत्त इं॥167॥
❀आर्व - एके न्द्न्िय जीव के एक स्पशविेन्द्न्िय
ही ह ेती है।
❀शेष जीव ें के क्रम से िसि (जजह्व ), घ्र ण,
िक्षु आ ैि श्र ेत्र बढ़ ज ते हैं ॥167॥
18. इन्द्न्िय ें क क्रम
१ इन्द्न्िय
स्पशवि
२ इन्द्न्िय
• स्पशवि,
िसि
३ इन्द्न्िय
• स्पशवि,
िसि ,
घ्र ण
४ इन्द्न्िय
• स्पशवि,
िसि ,
घ्र ण,
िक्षु
५ इन्द्न्िय
• स्पशवि,
िसि ,
घ्र ण,
िक्षु,
कणव
19. िणुवीसड़दसयकदी, ज ेयणछ द िहीणनतसहस्स ।
आट्ठसहस्स िणूणं, ववसय दुगुण आसन्द्ण्ण त्तत्त॥168॥
❀आर्व - एके न्द्न्िय के स्पशवि, द्वीन्द्न्िय के िसि एवं त्रीन्द्न्िय
के घ्र ण क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र क्रम से ि ि स ै ििुष,
ि ैसठ ििुष, स ै ििुष प्रम ण है।
❀ितुरिन्द्न्िय के िक्षु क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र द े हज ि िव स ै
ि ैवि य ेजि है। आ ैि आ गे आसंज्ञीपयवन्त ववषयक्षेत्र दूि -
दूि बढ़त गय है।
❀आसैिी के श्र ेत्रेन्द्न्िय क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र आ ठ हज ि
ििुष प्रम ण है ॥168॥
20. सन्द्ण्णस्स व ि स ेदे, नतण्हं णव ज ेयण द्धण िक्खुस्स।
सत्तेत िसहस्स , बेसदतेसट्ट्ठमददिेय ॥169॥
❀आर्व - संज्ञी जीव के स्पशवि, िसि , घ्र ण इि तीि
इन्द्न्िय ें में से प्रत्येक क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र ि ै-ि ै
य ेजि है आ ैि
❀श्र ेत्रेन्द्न्िय क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र ब िह य ेजि है तर्
❀िक्षुरिन्द्न्िय क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र सैत िीस हज ि द े
स ै त्रेसठ य ेजि से कु छ आधिक है ॥169॥
21. इन्द्न्िय ें क ववषय क्षेत्र
इन्द्न्िय एके न्द्न्िय द्वीन्द्न्िय त्रीन्द्न्िय ितुरिन्द्न्िय
आसैिी
पंिेन्द्न्िय
सैिी पंिेन्द्न्िय
ििुष में ििुष में ििुष में ििुष में ििुष में य ेजि में
स्पशवि 400 800 1600 3200 6400 9
िसि — 64 128 256 512 9
घ्र ण — — 100 200 400 9
िक्षु — — — 2954 य ेजि 5908 य ेजि 47263
7
20
श्र ेत्र — — — — 8000 12
आर् वत् एक-एक इन्द्न्िय वकति ज ि सकती है?
इन्द्न्िय ें के द्व ि वकतिे दूि तक क ववषय ज्ञ त ह े सकत है?
22. क्य इन्द्न्िय ँ ूकि ही ज िती हैं?
❀िक्षु इन्द्न्िय आ ैि मि वबि ूकि ही ज िते हैं ।
❀पिन्तु शेष 4 इन्द्न्िय ँ पद र् ेों क े स्पशव कि आ ैि वबि स्पशव कि
द ेि ें प्रक ि से ज िती हैं।
❀देखें : िवि पु. 13, पवष्ठ 225
❀देखें : िवि पु. 9, पवष्ठ 159
❀हम आ पके वतवम ि में ज े स म न्य ज्ञ ि है, वह प्र प्यक िी (ूकि
ज ििे व ि ) है । पिन्तु वकसी जीव के ववशेष क्षय ेपशम से वह
वबि पद र् ेों के स्पशव से भी पद र् ेों क े ज ि सकत है | जैसे
िक्रवतीव आ दद क इंदिय-ज्ञ ि
23. पुट्ठं सुणेइ सद्दं, आप्पुट्ठं िेय पस्ससे रूवं ।
गंिं िसं ि फ सं, बद्ं पुट्ठं ि ज ण दद ॥ि. 9/54॥
❀आर्व: िक्षु रूप क े आस्पवष्ट ही ग्रहण किती है, आ ैि
‘ि’ शब्द से मि भी आस्पवष्ट ही वस्तु क े ग्रहण
कित है। शेष इन्द्न्िय ँ गंि, िस आ ैि स्पशव क े बद्
आर् वत् आपिी-आपिी इन्द्न्िय ें में नियलमत आ ैि स्पवष्ट
ग्रहण किती हैं, आ ैि ‘ि’ शब्द से आस्पवष्ट भी ग्रहण
किती हैं। (िवि पु. 9, ग र् 54)
24. नतन्द्ण्णसयसट्ट्ठवविहहद, िक्खं दसमूित दड़दे मूिम्।
णवगुद्धणदे सट्ट्ठहदे, िक्खुप्फ सस्स आद् णं॥170॥
❀आर्व - तीि स ै स ठ कम एक ि ख य ेजि
जम्बूद्वीप के ववष्कम्भ (व्य स, Diameter) क वगव
किि आ ैि
❀उसक दशगुण किके वगवमूि निक िि ,
❀इससे ज े ि शश उत्पन्न ह े उसमें िव क गुण आ ैि
स ठ क भ ग देिे से िक्षुरिन्द्न्िय क उत्कव ष्ट
ववषयक्षेत्र निकित है ॥170॥
25. िक्षु इन्द्न्िय क उत्कव ष्ट क्षेत्र कै से बित है ?
❀ एक सूयव क े पूि जंबूद्वीप भ्रमण कििे में 2 ददि िगते हैं—य िे 60 मुहूतव
❀ जंबूद्वीप भ्रमण क क्षेत्र = 𝝅 × D
❀ य िे जंबूद्वीप की परिधि (Circumference)
❀ = 10 99640 य ेजि
❀ = 315089 य ेजि
❀ परिधि निक ििे के लिए 1 ि ख य ेजि में से 360 य ेजि कम वकये
क्य ेंवक जब सूयव जंबूद्वीप के इति आंदि आ कि भ्रमण कित है तब
िक्रवतीव उसे देख प त है ।
❀ ि ेट: 𝝅 क प्रम ण आ गम में 10 म ि है ।
26. िक्षु इन्द्न्िय क उत्कव ष्ट क्षेत्र कै से बित है ?
❀एक सूयव 60 मुहूतव में 315089 य ेजि भ्रमण
कित है,
❀त े 9 मुहूतव में वकति भ्रमण ह ेग ?
❀
315089 य ेजि
60 मुहूतव
9 मुहूतव = 47263
7
20
य ेजि
27. िक्षु इंदिय क यह क्षेत्र कब बित है?
❀ककव संक्र ंनत क े जब 18 मुहूतव क ददि आ ैि
12 मुहूतव की ि त ह ेती है
❀तब िक्रवतीव आय ेध्य में आपिे महि की छत
से
❀निषि पववत पि उददत सूयव के ववम ि में
जजिवबम्ब क दशवि कित है ।
28. िक्खूस ेदं घ णं, जजब्भ य िं मसूिजवण िी।
आनतमुत्तखुिप्पसमं, फ सं तु आणेयसंठ णं॥171॥
आर्व -
मसूि के
सम ि िक्षु
क ,
जव की
ि िी के
सम ि श्र ेत्र
क ,
नति के
फू ि के
सम ि घ्र ण
क तर्
खुिप के
सम ि जजह्व
क आ क ि
है आ ैि
स्पशविेन्द्न्िय
के आिेक
आ क ि हैं
।।१७१।।
29. आंगुिआसंखभ गं, संखेज्जगुणं तद े ववसेसहहयं।
तत्त े आसंखगुद्धणदं, आंगुिसंखेज्जयं तत्तु॥172॥
❀आर्व - आ त्मप्रदेश ें की आपेक्ष िक्षुरिन्द्न्िय क आवग हि
घि ंगुि के आसंख्य तवें भ गप्रम ण है आ ैि
❀इससे संख्य तगुण श्र ेत्रेन्द्न्िय क आवग हि है।
❀श्र ेत्रेन्द्न्िय से पल्य के आसंख्य तवें भ ग आधिक घ्र णेन्द्न्िय
क आवग हि है।
❀घ्र णेन्द्न्िय से पल्य के आसंख्य तवें भ ग गुण िसिेन्द्न्िय क
आवग हि हैं ज े घि ंगुि के संख्य तवें भ गम त्र है ॥172॥
30. सुहमद्धणग ेदआपज्जत्तयस्स ज दस्स तददयसमयन्द्म्ह।
आंगुिआसंखभ गं जहण्णमुक्कस्सयं मच्छे॥173॥
❀आर्व - स्पशविेन्द्न्िय की जघन्य आवग हि घि ंगुि के
आसंख्य तवें भ गप्रम ण है आ ैि यह आवग हि सूक्ष्म
निग ेददय िब्ध्यपय वप्तक के उत्पन्न ह ेिे के तीसिे
समय में ह ेती है।
❀उत्कव ष्ट आवग हि मह मत्स्य के ह ेती है, इसक
प्रम ण संख्य त घि ंगुि है ॥173॥
32. स्पशवि क े छ ेड़कि शेष 4 इन्द्न्िय ें में वकसकी
कम / ज्य द आवग हि
चक्षु श्रोत्र घ्राण रसना
संख्य तगुण
आसंख्य तवें भ ग आधिक
आसंख्य तवें भ ग गुण
33. ण वव इंददयकिणजुद , आवगह दीहह ग हय आत्र्े।
णेव य इंददयस ेक्ख , आद्धणंददय णंतण णसुह ॥174॥
❀आर्व - ज े जीव नियम से इन्द्न्िय ें के किण भ ैहें
हटमक िि आ दद व्य प ि, उिसे संयुि िहीं है, इसलिये
ही आवग्रह ददक क्षय ेपशम ज्ञ ि से पद र्व क ग्रहण
(ज िि ) िहीं किते। तर्
❀इन्द्न्ियजनित ववषय-संबंि से उत्पन्न सुख उससे संयुि िहीं
हैं वे आहोंत आ ैि ससद् आतीन्द्न्िय आिंत ज्ञ ि आ ैि आतीन्द्न्िय
आिंत सुख से ववि जम ि ज िि । क्य ेंवक उिक ज्ञ ि
आ ैि सुख शुद् त्मतत्त्व की उपिब्ब्ि से उत्पन्न हुआ है
॥174॥
35. आतीन्द्न्िय
जीव
इन्द्न्ियकिण
(वक्रय ) से िहहत
हैं
आवग्रह दद
क्षय ेपशम ज्ञ ि
द्व ि पद र् ेों क
ग्रहण िहीं है,
आिंत
आतीन्द्न्िय ज्ञ ि
इन्द्न्ियसुख से
िहहत
आिंत
आतीन्द्न्िय सुख
36. र् विसंखवपपीलिय, भमिमणुस्स ददग सभेद जे।
जुगव िमसंखेज्ज , णंत णंत द्धणग ेदभव ॥175॥
❀आर्व - स्र् वि एके न्द्न्िय जीव, शंख आ ददक
द्वीन्द्न्िय, िींटी आ दद त्रीन्द्न्िय, भ्रमि आ दद
ितुरिन्द्न्िय, मिुष्य दद पंिेन्द्न्िय जीव आपिे-आपिे
आंतभेवद ें से सहहत आसंख्य त संख्य त हैं आ ैि
❀निग ेददय जीव आिंत िन्त हैं ॥175॥
37. संक्षेप से एके न्द्न्िय दद जीव ें की संख्य
जीव संख्य
एके न्द्न्िय में निग ेददय आिंत िंत
एके न्द्न्िय में निग ेददय क े छ ेड़कि शेष सवव आसंख्य त संख्य त
द्वीन्द्न्िय आसंख्य त संख्य त
त्रीन्द्न्िय आसंख्य त संख्य त
ितुरिन्द्न्िय आसंख्य त संख्य त
पंिेन्द्न्िय आसंख्य त संख्य त
38. तसहीण े संस िी, एयक्ख त ण संखग भ ग ।
पुण्ण णं परिम णं, संखेज्जददमं आपुण्ण णं॥176॥
❀आर्व - संस ि ि शश में से त्रस ि शश क े घट िे
पि जजति शेष िहे उतिे ही एके न्द्न्िय जीव हैं
आ ैि
❀एके न्द्न्िय जीव ें की ि शश में संख्य त क भ ग
देिे पि एक भ गप्रम ण आपय वप्तक आ ैि शेष
बहुभ गप्रम ण पय वप्तक जीव हैं ॥176॥
39. सवव जीव
संस िी
एके न्द्न्िय
पय वप्त
बहुभ ग
एके न्द्न्िय
संख्य त
(संख्य त – 1)
आपय वप्त
एकभ ग
एके न्द्न्िय
संख्य त
शेष
मुक्त
40. एकें दिय जीव
❀संस िी जीव = सवव जीवि शश – मुक्त जीवि शश
❀एके न्द्न्िय = संस िी जीव – त्रस जीव
❀आपय वप्त एके न्द्न्िय =
एके न्द्न्िय
संख्य त
❀पय वप्त एके न्द्न्िय = शेष बहुभ ग
❀इसे लिखिे क तिीक
एके न्द्न्िय
संख्य त
(संख्य त – 1)
41. ब दिसुहम तेससं, पुण्ण पुण्णे त्तत्त छहव्वह णं वप।
तक्क यमगण ये, भद्धणज्जम णक्कम े णेय े॥177॥
❀आर्व - एके न्द्न्िय जीव ें के स म न्य से द े भेद हैं — ब दि
आ ैि सूक्ष्म।
❀इसमें भी प्रत्येक के पय वप्तक आ ैि आपय वप्तक के भेद से
द े-द े भेद हैं।
❀इसप्रक ि एके न्द्न्िय ें की छह ि शशय ें की संख्य क क्रम
क यम गवण में कहेंगे वह ँ से ही समझ िेि ॥177॥
42. एके न्द्न्िय
ब दि
पय वप्त आपय वप्त
सूक्ष्म
पय वप्त आपय वप्त
ि ेट: इिकी संख्य क य म गवण में बत एँगे ।
43. वबनतिपम णमसंखेणवहहदपदिंगुिेण हहदपदिं।
हीणकमं पदड़भ ग े, आ वलिय संखभ ग े दु॥178॥
❀आर्व - प्रति ंगुि के आसंख्य तवें भ ग क जगतप्रति में
भ ग देिे से ज े िब्ि आ वे उति स म न्य से त्रसि शश क
प्रम ण है।
❀पिन्तु पूवव-पूवव द्वीन्द्न्िय ददक की आपेक्ष उत्ति ेत्ति
त्रीन्द्न्िय ददक क प्रम ण क्रम से हीि-हीि है आ ैि
❀इसक प्रनतभ गह ि आ विी क आसंख्य तव ँ भ ग है
॥178॥
44. त्रस जीव ें क प्रम ण
❀
जगत् प्रति
൘
प्रति ंगुि
आसंख्य त
= सवव त्रस जीव
❀इिमें भी द्वीन्द्न्िय सव वधिक हैं,
❀उिसे कु छ कम त्रीन्द्न्िय हैं,
❀उिसे कु छ कम ितुरिन्द्न्िय हैं,
❀सबसे कम पंिेन्द्न्िय हैं ।
45. बहुभ गे समभ ग े िउण्णमेदेससमेक्कभ गन्द्म्ह।
उत्तकम े तत्र् वव बहुभ ग े बहुगस्स देआ े दु॥179॥
❀आर्व - त्रसि शश में आ विी के आसंख्य तवें भ ग क भ ग
देकि िब्ि बहुभ ग के सम ि ि ि भ ग किि आ ैि
❀एक-एक भ ग क े द्वीन्द्न्िय दद ि ि ें ही में ववभि कि,
❀शेष एक भ ग में वफि से आ विी के आसंख्य तवें भ ग क
भ ग देि ि हहये आ ैि
❀िब्ि बहुभ ग क े बहुत संख्य व िे क े देि ि हहये।
❀इसप्रक ि आंतपयोंत किि ि हहये॥179॥
46. प्रनतभ ग में ब ँटिे क तिीक
❀ उद हिण—म ि वक सवव त्रस ि शश = 256; एवं
आ विी
आसंख्य त
= 4
❀
त्रस जीव
आ विी
आसंख्य त
=
256
4
= 64 (एक भ ग)
❀ बहुभ ग = सवव ि शश – एक भ ग
192 = 256 − 64
बहुभ ग के ि ि सम ि भ ग कि े ।
❀
192
4
= 48
47. ❀ इसे प्रत्येक जीवि शश में ब ँट द े
❀शेष िहे एकभ ग (64) क े पुि: प्रनतभ ग से भ ग द े ।
❀
64
4
= 16
❀एकभ ग आिग िखकि बहुभ ग द्वीन्द्न्िय क े द े ।
❀ 64 – 16 = 48 (द्वीन्द्न्िय क प्रनतभ ग)
❀शेष एकभ ग क े पुि: प्रनतभ ग से भ ग िग आ े ।
द्वी. त्री. ितु. पंिे.
समभ ग 48 48 48 48
50. इसी प्रक ि व स्तववक गद्धणत में किि ि हहए । त े भी
•
जगत् प्रति
൘
प्रति ंगुि
आसंख्य त
प्रत्येक जीव
•
त्रस जीव
4
+
द्वीन्द्न्िय जीव कु ि त्रस जीव ें के ितुर्व भ ग से
कु छ आधिक है ।
•
त्रस जीव
4
−त्रीन्द्न्िय जीव ितुर्व भ ग से कु छ कम हैं य िे
•
त्रस जीव
4
=ितुरिन्द्न्िय जीव कु छ आ ैि कम हैं —
•
त्रस जीव
4
≡पंिेन्द्न्िय जीव कु छ आ ैि कम हैं —
51. नतवबपिपुण्णपम णं, पदिंगुिसंखभ गहहदपदिं।
हीणकमं पुण्णूण , वबनतिपजीव आपज्जत्त ॥180॥
❀आर्व - प्रति ंगुि के संख्य तें भ ग क जगतप्रति में भ ग देिे से
ज े िब्ि आ वे उति ही त्रीन्द्न्िय, द्वीन्द्न्िय, पंिेन्द्न्िय, ितुरिन्द्न्िय में
से प्रत्येक के पय वप्तक क प्रम ण है।
❀पिन्तु यह प्रम ण ‘बहुभ गे समभ ग े' इस ग र् में कहे हुए क्रम
के आिुस ि उत्ति ेत्ति हीि-हीि है।
❀आपिी-आपिी समस्त ि शश में से पय वप्तक ें क प्रम ण घट िे पि
आपय वप्तक द्वीन्द्न्िय, त्रीन्द्न्िय, ितुरिन्द्न्िय, आ ैि पंिेन्द्न्िय जीव ें क
प्रम ण निकित है ॥180॥
52. ❀त्रस जीव ें में पय वप्त जीव =
जगत् प्रति
൘
प्रति ंगुि
संख्य त
❀इसे भी पूव ेवक्त प्रक ि से समभ ग से ब ंटि ,
पिन्तु प्रनतभ ग क क्रम यह िखि —
❀त्रीन्द्न्िय, द्वीन्द्न्िय, पंिेन्द्न्िय, ितुरिन्द्न्िय ।
❀आपिी-आपिी संख्य में से पय वप्त संख्य घट िे
पि आपिी-आपिी आपय वप्त संख्य निकिती है ।
53. त्रस जीव ें की संख्य
कु ि त्रस जीव =
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
असांख्यात
द्वीन्द्न्िय
स म न्य से — प्रत्येक की संख्य =
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
असांख्यात
त्रीन्द्न्िय
ितुरिन्द्न्िय
पंिेन्द्न्िय
ववशेष आपेक्ष : द्वीन्द्न्िय > त्रीन्द्न्िय > ितुरिन्द्न्िय > पंिेन्द्न्िय
54. त्रस पय वप्तक ें की संख्य
कु ि त्रस पय वप्तक =
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
सांख्यात
द्वीन्द्न्िय
स म न्य से — प्रत्येक की संख्य =
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
सांख्यात
त्रीन्द्न्िय
ितुरिन्द्न्िय
पंिेन्द्न्िय
ववशेष आपेक्ष : त्रीन्द्न्िय > द्वीन्द्न्िय > पंिेन्द्न्िय > ितुरिन्द्न्िय
यह ँ भी पूवव के सम ि ही कु ि पय वप्त त्रस जीव 256 म िकि एवं
आ विी
आसंख्य त
= 4 म िकि
द्वीन्द्न्िय ददक पय वप्तक जीव ें की संख्य आपिे क्रम िुस ि निक ि िेि ि हहये ।
55. त्रस आपय वप्त जीव ें की संख्य
कु ि त्रस आपय वप्त जीव =
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
असांख्यात
−
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
सांख्यात
=
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
असांख्यात
द्वीन्द्न्िय आपय वप्त
स म न्य से — प्रत्येक की संख्य =
जगत ् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
असांख्यात
त्रीन्द्न्िय आपय वप्त
ितुरिन्द्न्िय आपय वप्त
पंिेन्द्न्िय आपय वप्त
ववशेष आपेक्ष : द्वीन्द्न्िय > त्रीन्द्न्िय > ितुरिन्द्न्िय > पंिेन्द्न्िय