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प्ररूपणा 9 - याोग मागगणा
आाचायग श्रीनोमीचन्द्र सिद्ाांतचक्रवतीग
पुग्गलवववाइदोहाोदयोण मणवयणकायजुत्तस्ि।
जीवस्ि जा हु ित्ती, कम्मागमकारणां जाोगाो॥216॥
•आर्ग - पुद्गलववपाकी शरीर नामकमग को
उदय िो मन, वचन, काय िो युक्त जीव
की जाो कमाोों को ग्रहण करनो मोां कारणभूत
शक्तक्त है उिकाो याोग कहतो हैां ॥216॥
याोग
भाव याोग
कमग-नाोकमग काो ग्रहण करनो की
जीव की शक्तक्त-ववशोष
रव्य याोग
आात्म-प्रदोशाोां मोां पररस्पन्द्दन
(कम्पन)
मन वचन काय की वक्रया (चोष्टा)
(आांगाोपाांग व शरीर नामकमग को
उदयपूवगक)
इिमोां ननक्तमत्त
•ज्ञानावरणाददक 8 कमगकमग
•ज्ञानावरण आादद 8 कमगरूप हाोनो याोग्य
वगगणा — कामगण वगगणा ।
कमग वगगणा
•आाैदाररक आादद शरीरनाोकमग
•3 शरीररूप हाोनो याोग्य वगगणा — आाहार
वगगणा ।
नाोकमग वगगणा
कमग-नाोकमग का आाना या ग्रहण करना आर्ागत्
कमग-नाोकमग वगगणारूप
पुद्गल स्कां धाोां का कमग
नाोकमगरूप पररणमना
वकि जीव को रव्य-याोग हाोता है ?
1. पुद्गलववपाकी शरीर नामकमग को उदय िहहत
2. मन, वचन, काय को आवलांबन िहहत
मणवयणाणपउत्ती, िच्चािच्चुभयआणुभयत्र्ोिु।
तण्णाम हाोदद तदा, तोहह दु जाोगा हु तज्ाोगा॥217॥
•आर्ग - ित्य, आित्य, उभय, आनुभय इन चार
प्रकार को पदार्ाोों िो जजि पदार्ग काो जाननो या
कहनो को क्तलए जीव को मन, वचन की प्रवृत्तत्त
हाोती है उि िमय मोां मन आाैर वचन का वही
नाम हाोता है आाैर उिको िम्बांध िो उि प्रवृत्तत्त
का भी वही नाम हाोता है ॥217॥
याोग मागगणा को प्रकार
मनाोयाोग (4)
ित्य
आित्य
उभय
आनुभय
वचनयाोग (4)
ित्य
आित्य
उभय
आनुभय
काययाोग (7)
आाैदाररक
आाैदाररक क्तमश्र
वैवक्रययक
वैवक्रययक क्तमश्र
आाहारक
आाहारक क्तमश्र
कामगण
मनाोयाोग
ित्य, आित्य, उभय, आनुभय पदार्ग काो
जाननो की जीव की प्रयत्नरूप प्रवृत्तत्त हाोती है,
उिो ित्य, आित्य, उभय, आनुभय
मनाोयाोग कहतो हैां ।
ित्य मनाोयाोग िो िम्बांधधत 3 बातोां
ित्य पदार्ग
जैिो जल
ित्य मन
ित्य पदार्ग काो
जाननोवाला मन
ित्य मनाोयाोग
ित्य मन
की प्रवृत्तत्त
जैिो जल काो जल जानना ।
िब्भावमणाो िच्चाो, जाो जाोगाो तोण िच्चमणजाोगाो।
तहिवरीआाो माोिाो, जाणुभयां िच्चमाोिाो त्तत्त॥218॥
• आर्ग - िमीचीन भावमन काो (पदार्ग काो जाननो की
शक्तक्तरूप ज्ञान काो) आर्ागत् िमीचीन पदार्ग काो ववषय
करनो वालो मन काो ित्यमन कहतो हैां, आाैर
• उिको द्वारा जाो याोग हाोता है उिकाो ित्यमनाोयाोग
कहतो हैां।
• ित्य िो जाो ववपरीत है उिकाो क्तमथ्या कहतो हैां तर्ा
• ित्य आाैर क्तमथ्या दाोनाोां ही प्रकार को मन काो उभय मन
कहतो हैां। एोिा हो भव्य! तू जान ॥218॥
मन
िमीचीन पदार्ग काो ववषय
करनो वाला मन
ववपरीत पदार्ग काो ववषय
करनो वाला मन
ित्य आाैर आित्य रूप पदार्ग
काो ववषय करनो वाला मन
मनाोयाोग
ित्य-मन को द्वारा जाो याोग
(चोष्टा, प्रवतगन) हाोता है
आित्य-मन को द्वारा जाो याोग
(चोष्टा, प्रवतगन) हाोता है
उभय-मन को द्वारा जाो याोग
हाोता है
ित्य
आित्य
उभय
ण य िच्चमाोिजुत्ताो, जाो दु मणाो िाो आिच्चमाोिमणाो।
जाो जाोगाो तोण हवो, आिच्चमाोिाो दु मणजाोगाो॥219॥
•आर्ग - जाो न ताो ित्य हाो आाैर न मृषा हाो उिकाो
आित्यमृषा मन कहतो हैां आर्ागत् आनुभयरूप पदार्ग
को जाननो की शक्तक्तरूप जाो भावमन है उिकाो
आित्यमृषा कहतो हैां आाैर
•उिको द्वारा जाो याोग हाोता है उिकाो
आित्यमृषामनाोयाोग कहतो हैां ॥219॥
•जाो न ित्य हाो, न आित्य हाो, उिो आनुभय
पदार्ग कहतो हैां ।
आनुभय पदार्ग
•आनुभय पदार्ग काो ववषय करनो वाला मन
आनुभय मन कहलाता है ।
आनुभय मन
•आनुभय मन को द्वारा जाो याोग हाोता है,
उिो आनुभय मनाोयाोग कहतो हैां ।
आनुभय मनाोयाोग
4 मन एवां 4 वचन को ववषयभूत पदार्ग एवां
उनको दृष्टाांत
दृष्टाांत
ित्य ित्यज्ञान गाोचर पदार्ग जल
आित्य क्तमथ्याज्ञान गाोचर पदार्ग मरीक्तचका का जल
उभय उभयज्ञान गाोचर पदार्ग
कमण्डल काो घट कहना
(जल रखनो का काम हाो िकता है इिक्तलयो
ित्य, घट का आाकार नहीां इिक्तलयो आित्य)
आनुभय ननणगय-रहहत पदार्ग
''यह कु छ है'' (ववशोष ज्ञान न हाोनो िो ित्य नहीां,
िामान्द्य ज्ञान हाोनो िो आित्य भी नहीां)
दिववहिच्चो वयणो, जाो जाोगाो िाो दु िच्चवक्तचजाोगाो।
तहिवरीआाो माोिाो, जाणुभयां िच्चमाोिाो त्तत्त॥220॥
•आर्ग - वक्ष्यमाण जनपद आादद दश प्रकार को ित्य
आर्ग को वाचक वचन काो ित्यवचन आाैर उििो
हाोनो वालो याोग - प्रयत्नववशोष काो ित्यवचनयाोग
कहतो हैां तर्ा
•इििो जाो ववपरीत है उिकाो मृषा आाैर
•जाो कु छ ित्य आाैर कु छ मृषा का वाचक है
उिकाो उभयवचनयाोग कहतो हैां। एोिा हो भव्य! तू
िमझ ॥220॥
ित्यवचन िो िम्बांधधत 4 चीजोां
ित्य पदार्ग ित्य वचन
ित्य पदार्ग काो
कहनो वाला वचन
भावित्य
ित्यवचन की
शक्तक्त
ित्य
वचनयाोग
भावित्य की
प्रवृत्तत्त ववशोष
जैिो यह जल है (जल काो जल कहना)
भावित्य वचन क्या है ?
• स्वर नामकमग को उदय िहहत
• भाषा पयागप्‍त िो उत्पन्द्न
• भाषा वगगणा का आालांबन िहहत
• जीव की शक्तक्त-ववशोष
• भाव ित्य वचन है ।
➢इिी प्रकार भाव आित्य वचन, भाव उभय वचन आाैर
भाव आनुभय वचन जानना चाहहए ।
•जाो ित्य न हाो उिो आित्य पदार्ग
कहतो हैां ।
आित्य पदार्ग
•आित्य पदार्ग काो कर्न करनो वाला
वचन आित्य वचन कहलाता है ।
आित्य वचन
•आित्य वचन को द्वारा जाो याोग हाोता
है, उिो आित्य वचनयाोग कहतो हैां ।
आित्य
वचनयाोग
•जाो कु छ ित्य हाो, कु छ आित्य हाो,
उिो उभय पदार्ग कहतो हैां ।
उभय पदार्ग
•उभय पदार्ग काो कर्न करनो वाला
वचन उभय वचन कहलाता है ।
उभय वचन
•उभय वचन को द्वारा जाो याोग हाोता
है, उिो उभय वचनयाोग कहतो हैां ।
उभय
वचनयाोग
जाो णोव िच्चमाोिाो, िाो जाण आिच्चमाोिवक्तचजाोगाो।
आमणाणां जा भािा, िण्णीणामांतणी आादी॥221॥
•आर्ग - जाो न ित्यरूप हाो आाैर न मृषारूप
ही हाो उिकाो आनुभय वचनयाोग कहतो हैां।
•आिांज्ञज्ञयाोां की िमस्त भाषा आाैर िांज्ञज्ञयाोां की
आामन्त्रणी आाददक भाषा आनुभय भाषा कही
जाती है ॥221॥
•जाो न ित्य हाो, न आित्य हाो, उिो
आनुभय पदार्ग कहतो हैां ।
आनुभय पदार्ग
•आनुभय पदार्ग काो कर्न करनो वाला
वचन आनुभय वचन कहलाता है ।
आनुभय वचन
•आनुभय वचन को द्वारा जाो याोग हाोता
है, उिो आनुभय वचनयाोग कहतो हैां ।
आनुभय
वचनयाोग
आनुभय वचन को प्रकार
आिांज्ञज्ञयाोां (2 इांदरयाोां
िो आिांज्ञी पांचोांदरय)
की आनक्षरात्मक भाषा
िांज्ञज्ञयाोां की आामांत्रणी
आादद भाषा
जणवदिम्मददठवणा, णामो रूवो पडुच्चववहारो।
िम्भावणो य भावो, उवमाए दिववहां िच्चां॥222॥
•आर्ग - जनपदित्य, िम्मनतित्य,
स्र्ापनाित्य, नामित्य, रूपित्य,
प्रतीत्यित्य, व्यवहारित्य, िांभावनाित्य,
भावित्य, उपमाित्य, इिप्रकार ित्य को
दश भोद हैां ॥222॥
भत्तां दोवी चांद‍पह-, पदडमा तह य हाोदद जजणदत्ताो।
िोदाो ददग्घाो रज्झदद, कू राोत्तत्त य जां हवो वयणां॥223॥
िक्ाो जांबूदीवां, पल्लट्टदद पाववज्वयणां च।
पल्लाोवमां च कमिाो, जणवदिच्चाददददट्ठांता॥224॥
•आर्ग - उक्त दश प्रकार को ित्यवचन को यो दश
दृष्ाांत हैां। भक्त, दोवी, चन्द्रप्रभ प्रनतमा, जजनदत्त,
श्वोत, दीघग, भात पकाया जाता है, शक्र जम्बूद्वीप
काो पलट िकता है, पापरहहत “यह प्रािुक है”
एोिा वचन आाैर पलयाोपम ॥223-224॥
दि प्रकार को ित्य व उनको दृष्टाांत
क्र. ित्य स्वरूप दृष्टाांत
1
जनपद
आपनो-आपनो दोश मोां मनुष्य
व्यवहार मोां प्रवृत्त वचन
भक्त, भात, भाटु, वांटक, मुकू ड, कु लु,
चाोरू आादद क्तभन्द्न-क्तभन्द्न शब्दाोां िो एक ही
चीज ''भात'' काो कहना
2
िम्मनत
बहुत मनुष्याोां की िम्मनत िो
िवग िाधारण मोां रूढ
पट्टरानी को सिवाय िाधारण स्री काो
दोवी कहना
3
स्र्ापना
वकिी वस्तु मोां वकिी क्तभन्द्न
वस्तु का आाराोप करना
चन्द्रप्रभ की प्रनतमा काो चन्द्रप्रभ कहना
4
नाम
वबना वकिी आपोक्षा व्यवहार
को क्तलयो नाम रखना
जजनोन्द्र नो नहीां ददया है पर ''जजनदत्त''
नाम रखना
5
रूप
पुद्गल को आनोक गुण हाोनो पर
भी रूप की मुख्यता करना
रि, गांधादद रहनो पर भी रूप गुण की
आपोक्षा वकिी मनुष्य काो ''श्वोत'' कहना
दि प्रकार को ित्य व उनको दृष्टाांत
क्र. ित्य स्वरूप दृष्टाांत
6
प्रतीत्य/
आापोसक्षक
वकिी वववसक्षत पदार्ग की आपोक्षा िो
दूिरो पदार्ग का कर्न करना
वकिी छाोटो पदार्ग की आपोक्षा आन्द्य
काो बडा कहना
7
व्यवहार
नैगमादद नयाोां की प्रधानता िो वचन
कहना
चावल पकानो काो ''भात पकाता हां''
एोिा कहना
8
िांभावना
आिांभव बात काो वस्तु को वकिी धमग
को ननरूपण को क्तलयो कहना
इन्द्र जम्बूद्वीप काो उलट िकता है
(यहाां इन्द्र की शक्तक्त बताना है)
9
भाव
इप्न्द्रय आगाोचर पदार्ाोों का सिद्ाांत को
आनुिार ववधध-ननषोध रूप भाव
आयि िो पकायी वस्तु काो प्रािुक
कहना
10
उपमा
वकिी प्रसिद् पदार्ग की िमानता
कहना
धान भरनो को गड्ढोरूप िांख्या काो
पलयाोपम की उपमा दोना
आामांतज्ञण आाणवणी, याचज्ञणया पुच्छणी य पण्णवणी।
पच्चक्खाणी िांियवयणी, इच्छाणुलाोमा य॥225॥
णवमी आणक्खरगदा, आि माोिा हवांनत भािाआाो।
िाोदाराणां जम्हा, वत्तावत्तांििांजणया॥226॥
•आर्ग - आामन्त्रणी, आाज्ञापनी, याचनी, आापृच्छनी,
प्रज्ञापनी, प्रत्याख्यानी, िांशयवचनी, इच्छानुलाोम्नी,
आनक्षरगता यो नव प्रकार की आनुभयात्मक भाषाएँ
हैां,काोांवक इनको िुननोवालो काो व्यक्त आाैर आव्यक्त
दाोनाोां ही आांशाोां का ज्ञान हाोता है ॥225-226॥
9 प्रकार को आनुभय वचन
क्र. वचन स्वरूप दृष्टाांत
1 आामांत्रणी बुलानोरूप हो दोवदत्त ! तुम आाआाो
2 आाज्ञापनी आाज्ञारूप तुम यह काम कराो
3 याचनी माांगनोरूप तुम यह मुझकाो दाो
4 आापृच्छनी प्रश्नरूप यह क्या है ?
5 प्रज्ञापनी ववनतीरूप हो स्वामी ! मोरी यह ववनती है
6 प्रत्याख्यानी त्यागरूप मैां इिका त्याग करता हां
7 िांशयवचनी िांदोहरूप यह बगुलाोां की पांक्तक्त है आर्वा ध्वजा है ?
8
इच्छानुलाोम्नी इच्छारूप मुझकाो भी एोिा ही हाोना चाहहए
9 आनक्षरगता
हद्वप्न्द्रयादद आिांज्ञी
जीवाोां की भाषा
एोिी आाैर भी भाषा, जजििो व्यक्त-आव्यक्त आांश का ज्ञान हाो, वह आनुभय भाषा है ।
प्रश्न: आनक्षर भाषा मोां िामान्द्यपना
भी व्यक्त नहीां है, तब उिो आनुभय
क्याोां कहा ?
उत्तर: आनक्षर भाषा िांको तरूप
वचन है, जजििो वक्ता का हषग-
ववषाद आादद रूप आक्तभप्राय
जाना जाता है । आतः वह
आनुभय भाषा है ।
मणवयणाणां मूलज्ञणक्तमत्तां खलु पुराणदोहउदआाो दु।
माोिुभयाणां मूलज्ञणक्तमत्तां खलु हाोदद आावरणां॥227॥
•आर्ग - ित्य आाैर आनुभय मनाोयाोग तर्ा
वचनयाोग मूल कारण पयागप्‍त आाैर शरीर
नामकमग का उदय है।
•मृषा आाैर उभय मनाोयाोग तर्ा वचनयाोग का
मूल कारण आपना-आपना आावरण कमग है
॥227॥
मन-वचन याोगाोां को आन्द्तरांग कारण
ित्य आाैर आनुभय मनाोयाोग
तर्ा वचनयाोग का मूल कारण
पयागनि आाैर शरीर
नामकमग का उदय है।
मृषा आाैर उभय मनाोयाोग तर्ा
वचनयाोग का मूल कारण
आपना-आपना आावरण कमग
को तीव्र आनुभाग का उदय है
मन-वचन याोगाोां को आन्द्तरांग कारण
•आित्य याोगतीव्रतर आावरण
को उदय िो
•उभय याोगतीव्र आावरण को
उदय िो
दशगन माोह आाैर चाररत्र माोह को उदय को
कारण आित्य आाैर उभय याोग क्याोां नहीां
कहो ?
आित्य व उभय याोग क्तमथ्यादृधष् की तरह
िम्यक्त्वी आाैर िांयमी जीवाोां को भी पाए जातो
हैां । इिक्तलए इनका मुख्य कारण आावरण कमग
का उदय है, माोह नहीां ।
को वली भगवान काो काैन-िा वचनयाोग है ?
आनुभय
को वली को वचन श्राोता को कानाोां मोां
पहुांचनो को पूवग तक
आनक्षररूप
ित्य
को वली को वचन श्राोता को कानाोां मोां
पहुांचनो पर
आक्षररूप
कै िो?
क्या को वली भगवान को
मनाोयाोग है ?
हाां, ित्य आाैर आनुभय मनाोयाोग है ।
उनको आावरण का आभाव है, ताो
मनाोयाोग कै िो ?
मणिहहयाणां वयणां, ददट्ठां त‍पुिक्तमदद िजाोगप्म्ह।
उत्ताो मणाोवयारोज्ञणांददयणाणोण हीणप्म्ह॥228॥
•आर्ग – हमारो जैिो मनिहहत छद्मस्र्
जीवाोां को मनपूवगक ही वचनप्रयाोग हाोता
है। इिक्तलयो इप्न्द्रयज्ञान िो रहहत
ियाोगको वली को भी उपचार िो मन कहा
है ॥228॥
उपचार को हाोनो
मोां दाो कारण हैां
1. ननक्तमत्त 2. प्रयाोजन
मनाोयाोग को उपचार का ननक्तमत्त
जैिो छद्मस्र् को मनाोयाोगपूवगक
वचन व्यापार ददखाई दोता है,
वैिो ही को वली भगवान को वचन
भी मनाोयाोगपूवगक हाोनो चाहहए ।
एोिो उपचार िो को वली को
मनाोयाोग है ।
आांगाोवांगुदयादाो, दिमणट्ठां जजज्ञणांदचांदप्म्ह।
मणवग्गणखांधाणां आागमणादाो दु मणजाोगाो॥229॥
•आर्ग - आाांगाोपाांग नामकमग को उदय िो हृदयस्र्ान मोां
जीवाोां को रव्यमन की ववकसित-प्खलो हुए आष्दल पद्म
को आाकार मोां रचना हुआा करती है। यह रचना जजन
मनाोवगगणाआाोां को द्वारा हुआा करती है उनका आर्ागत्
इि रव्यमन की कारणभूत मनाोवगगणाआाोां का श्री
जजनोन्द्रचन्द्र भगवान ियाोगको वली को भी आागमन हुआा
करता है, इिक्तलयो उनको उपचार िो मनाोयाोग कहा है
॥229॥
मनाोयाोग को उपचार का प्रयाोजन
•रव्यमन को क्तलए मनाोवगगणा का ग्रहण हाोना
यह प्रयाोजन है ।
•तर्ावप मुख्य भावमनाोयाोग का आभाव है आतः
उपचार िो ही मनाोयाोग कहा है, परमार्ग िो
नहीां है ।
आर्वा को वली को वास्तव मोां मनाोयाोग है काोांवक
भावमनाोयाोग
कमग-नाोकमग काो ग्रहण करनो
की शक्तक्तरूप
रव्यमनाोयाोग
मनाोवगगणा का रव्यमन रूप
िो पररणमन
एोिो मनाोयाोग का कायग (उपचार िो) –
जीवाोां पर दया, उपदोश आादद कायग
पुरुमहदुदारुरालां, एयट्ठाो िांववजाण तप्म्ह भवां।
आाोराक्तलयां तमुच्चइ, आाोराक्तलयकायजाोगाो िाो॥230॥
•आर्ग - पुरु, महत्, उदार, उराल, यो िब शब्द एक
ही स्र्ूल आर्ग को वाचक है। उदार मोां जाो हाोय
उिकाो कहतो हैां आाैदाररक । आाैदाररक ही पुद्गल
वपण्ड का िांचयरूप हाोनो िो काय हैां। आाैदाररक
वगगणा को स्कन्द्धाोां का आाैदाररक कायरूप पररणमन
मोां कारण जाो आात्मप्रदोशाोां का पररस्पांद हैां, वह
आाैदाररक काययाोग है ॥230॥
आाैदाररक काय
•उदार, महान, पुरु, स्र्ूल, उराल— यो िभी एकार्गवाची हैां ।
•उदार मोां जाो हाो, उिो आाैदाररक कहतो हैां ।
आाैदाररक
•काय यानो िांचयरूप पुद्गलवपण्डकाय
आाैदाररक शरीर नामकमग को उदय िो उत्पन्द्न हुआा आाैदाररक
शरीर को आाकाररूप स्र्ूल पुद्गल स्कां धाोां का पररणाम
आाैदाररक काय है ।
िूक्ष्म जीवाोां को आाैदाररक शरीर ताो िूक्ष्म
हैां, विर उनकाो आाैदाररक कै िो कहोांगो ?
आागो को जाो वैवक्रययक आादद शरीर हैां, उनिो
यह शरीर स्र्ूल है, इिक्तलए आाैदाररक स्र्ूल
शरीर है । तर्ा इि शरीर की एोिी रूढ िांज्ञा
है ।
आाैदाररक काययाोग
आाैदाररक शरीर को आवलम्बन िो
जीव को प्रदोशाोां मोां पररस्पांद का कारणभूत
जाो प्रयत्न हाोता है,
उिो आाैदाररक काययाोग कहतो हैां ।
आाोराक्तलय उत्तत्र्ां, ववजाण क्तमस्िां तु आपररपुण्णां तां।
जाो तोण िांपजाोगाो आाोराक्तलयक्तमस्िजाोगाो िाो॥231॥
•आर्ग - हो भव्य ! एोिा िमझ वक जजि
आाैदाररक शरीर का स्वरूप पहलो बता चुको
है वही शरीर जब तक पूणग नहीां हाो जाता
तब तक क्तमश्र कहा जाता है आाैर उिको द्वारा
हाोनोवालो याोग काो आाैदाररक क्तमश्रकाययाोग
कहतो हैां ॥231॥
आाैदाररक क्तमश्रकाय
आाैदाररक शरीर आांतमुहतग काल तक
आपूणग (आपयागि) हाोता है । उि शरीर
काो आाैदाररक क्तमश्र कहतो हैां ।
कामगण आाैर आाैदाररक वगगणा का
मोल हाोनो िो क्तमश्र कहतो हैां |
आाैदाररक क्तमश्रकाययाोग
आाैदाररक क्तमश्रकाय को िार् जाो
आात्मा का प्रदोश पररस्पन्द्दरूप याोग है,
वह आाैदाररक क्तमश्रकाययाोग है ।
यह याोग शरीर पयागनि की पूणगता ना हाोनो
िो आाैदाररक स्कां धाोां काो पररपूणगरूप िो
शरीररूप पररणमानो मोां आिमर्ग हाोता है ।
भव का प्रर्म िमय
आाैदाररक-क्तमश्र काययाोग
ननवृगत्तत्त-आपयाग‍त
पयाग‍त
* यानो आभी शरीर पयागप्‍त को
आभाव मोां आाैदाररक काययाोग भी
िांभव नहीां है ।
आाैदाररक काययाोग
वकिको हाोगा ?
पयागि मनुष्य आाैर नतयोंचाोां को
आाैदाररक क्तमश्र काययाोग
वकिको हाोगा ?
लब्ब्ध-आपयाग‍त मनुष्य, नतयोंच
ननवृगत्तत्त-आपयाग‍त मनुष्य,
नतयोंच
को वली िमुद्घात को िमय
ववववहगुणइप्ड्ढजुत्तां, ववहक्ररयां वा हु हाोदद वोगुिां।
नतस्िो भवां च णोयां, वोगुहियकायजाोगाो िाो॥232॥
•आर्ग - नाना प्रकार को गुण आाैर ऋज्ञद्याोां िो
युक्त दोव तर्ा नारवकयाोां को शरीर काो वैवक्रययक
आर्वा ववगूवग कहतो हैां आाैर
•इिको द्वारा हाोनो वालो याोग काो वैगूववगक आर्वा
वैवक्रययक काययाोग कहतो हैां ॥232॥
वैवक्रययक काय
वैगूवग भी वववक्रया काो कहा जाता है। जजििो
शरीर का नाम हाोगा - वैगूववगक,वैवक्रययक।
वववक्रया जजिका प्रयाोजन है, वह
वैवक्रययक है।
शुभ-आशुभ प्रकार को गुण आज्ञणमा आादद आनतशयकारी
ऋज्ञद् की महानता िो िहहत दोव-नारवकयाोां को शरीर काो
वैवक्रययक कहतो हैां।
वैवक्रययक काययाोग
वैवक्रययक शरीर को आवलांबन िो
जीव को प्रदोशाोां मोां पररस्पांद का
कारणभूत जाो प्रयत्न हाोता है,
उिो वैवक्रययक काययाोग कहतो हैां ।
बादरतोऊवाऊ, पांक्तचांददयपुण्णगा ववगुिांनत।
आाोराक्तलयां िरीरां, ववगुिण‍पां हवो जोसिां॥233॥
•आर्ग - बादर तोजस्काययक आाैर
वायुकाययक तर्ा िांज्ञी पयाग‍त पांचोप्न्द्रय
नतयगञ्च एवां मनुष्य तर्ा भाोगभूक्तमज
नतयगक् , मनुष्य आपनो-आपनो आाैदाररक
शरीर काो वववक्रयारूप पररणमातो हैां
॥233॥
वकि-वकिका शरीर वववक्रयारूप पाया जाता है ?
िभी दोव, नारकी को ।
बादर पयाग‍त तैजकाययक को ।
बादर पयाग‍त वायुकाययक को ।
कमगभूक्तमया िांज्ञी पांचोप्न्द्रय पयाग‍त मनुष्य व नतयोंच को ।
भाोगभूक्तमया नतयोंच एवां मनुष्य को ।
नाोट: दोव, नारकी काो छाोडकर आन्द्य िभी जीवाोां को वववक्रया पाए जानो का
ननयम नहीां है ।
वववक्रया
पृर्क्
मूल शरीर िो क्तभन्न
वववक्रया करना
आपृर्क्
मूल शरीर काो ही
वववक्रयारूप करना
वकि जीव को कै िी वववक्रया हाोती है?
पृर्क् आपृर्क्
दोव  
नारकी  
भाोगभूक्तमया मनुष्य, नतयोंच  
चक्रवतीग  
शोष कमगभूक्तमया मनुष्य, नतयोंच  
बादर वायु / तोजकाययक  
ववशोष
•आाैदाररक शरीर वालाोां की वववक्रया
आाैदाररक शरीर का ही पररणमन
है।
•आाैदाररक शरीरवालो जीवाोां काो
वैवक्रययक काययाोग नहीां हाोता।
वोगुहिय उत्तत्र्ां, ववजाण क्तमस्िां तु आपररपुण्णां तां।
जाो तोण िांपजाोगाो, वोगुहियक्तमस्िजाोगाो िाो॥234॥
•आर्ग - वैगूववगक का आर्ग वैवक्रययक बताया जा
चुका है। जब तक वह वैवक्रययक शरीर पूणग
नहीां हाोता तब तक उिकाो वैवक्रययक क्तमश्र
कहतो हैां आाैर
•उिको द्वारा हाोनोवालो याोग काो-आात्मप्रदोश
पररस्पन्द्दन काो वैवक्रययक क्तमश्रकाययाोग कहतो
हैां ॥234॥
वैवक्रययक क्तमश्र काय
वैवक्रययक शरीर आांतमुगहतग काल तक
पूणग (पयाग‍त) नहीां हाोता, तब तक
उिो वैवक्रययक क्तमश्र काय कहतो हैां।
कामगण आाैर वैवक्रययक वगगणाआाोां
का मोल हाोनो िो क्तमश्र कहतो हैां।
वैवक्रययक क्तमश्र काययाोग
वैवक्रययक क्तमश्रकाय को िार् जाो
आात्मा को प्रदोशाोां का पररस्पन्द्द है वह
वैवक्रययक क्तमश्र काययाोग है।
भव का प्रर्म िमय
वैवक्रययक क्तमश्र काययाोग
ननवृगत्तत्त आपयाग‍त
पयाग‍त
* यानो आभी शरीर पयागप्‍त को
आभाव मोां वैवक्रययक काययाोग भी
िांभव नहीां है ।
वैवक्रययक क्तमश्रकाययाोग - ववशोष
वैवक्रययक क्तमश्रकाययाोग वकिको हाोगा ?
•दोव, नारकी को ।
कब हाोगा ?
•जन्द्म िो शरीर पयागनि पूणग हाोनो तक
इिका काल वकतना है ?
•आन्द्तमुगहतग मात्र
क्या इि याोग मोां मरण िांभव है ?
•नहीां।
आाहारस्िुदयोण य, पमत्तववरदस्ि हाोदद आाहारां।
आिांजमपररहरणट्ठां, िांदोहववणािणट्ठां च॥235॥
•आर्ग - आिांयम का पररहार करनो को क्तलयो
तर्ा िांदोह काो दूर करनो को क्तलए आाहारक
ऋज्ञद् को धारक छठो गुणस्र्ानवतीग मुनन को
आाहारक शरीर नामकमग को उदय िो आाहारक
शरीर हाोता है ।235॥
आाहारक शरीर
•आाहारक ऋज्ञद्धारी छठो
गुणस्र्ानवतीग मुनन को
वकनको हाोता है
?
•आाहारक शरीर नामकमग को
उदय िो
काैन-िो कमग िो
?
ज्ञणयखोत्तो को वक्तलदुगववरहो ज्ञणक्मणपहुददकल्लाणो।
परखोतो िांववत्तो, जजणजजणघरवांदणट्ठां च॥236॥
• आर्ग - आपनो क्षोत्र मोां को वली तर्ा श्रुतको वली का आभाव
हाोनो पर वकन्द्तु दूिरो क्षोत्र मोां जहाँ पर वक आाैदाररक
शरीर िो उि िमय पहुँचा नहीां जा िकता, को वली या
श्रुतको वली को ववद्यमान रहनो पर आर्वा तीर्ोंकराोां को
दीक्षा कलयाण आादद तीन कलयाणकाोां मोां िो वकिी को
हाोनो पर तर्ा जजन जजनगृह की वन्द्दना को क्तलयो भी
आाहारक ऋज्ञद्वालो छठो गुणस्र्ानवतीग प्रमत्त मुनन को
आाहारक शरीर नामकमग को उदय िो यह शरीर उत्पन्न
हुआा करता है ॥236॥
क्षोत्र
•जहाां आपनी गमन शक्तक्त
है।
ननजक्षोत्र
•जहाां आपनो आाैदाररक शरीर
की गमन शक्तक्त नहीां है।
परक्षोत्र
आाहारक शरीर कब ननकलता है?
आपनो क्षोत्र मोां को वली-श्रुतको वली का आभाव हाोनो पर एवां परक्षोत्र (जहाां आाैदाररक
शरीर िो नहीां जा िकतो) मोां िद्भाव हाोनो पर
िूक्ष्म आर्ग काो ग्रहण करनो को क्तलयो
िांदोह काो दूर करनो को क्तलयो
आिांयम पररहार होतु
तीर्ोंकराोां को दीक्षादद 3 कलयाणकाोां मोां गमन होतु
जजन एवां जजनगृह की वांदना होतु
उत्तम आांगप्म्ह हवो, धादुववहीणां िुहां आिांहणणां।
िुहिांठाणां धवलां, हत्र्पमाण पित्र्ुदयां॥237॥
•आर्ग - यह आाहारक शरीर रिाददक धातु आाैर
िांहननाोां िो रहहत तर्ा िमचतुरस्र िांस्र्ान िो
युक्त एवां चन्द्रकाांत मज्ञण को िमान श्वोत आाैर
शुभ नामकमग को उदय िो शुभ आवयवाोां िो युक्त
हुआा करता है। यह एक हस्तप्रमाण वाला आाैर
आाहारक शरीर आादद प्रशस्त नामकमाोों को उदय
िो उत्तमाांग शशर मोां िो उत्पन्न हुआा करता है
॥237॥
आाहारक शरीर का स्वरूप
कहाां िो उत्पन्द्न हाोता है उत्तमाांग सिर मोां िो
वकतना बडा 1 हार् प्रमाण
रांग श्वोत वणग
िांस्र्ान िमचतुरस्र
आवयव शुभ नामकमग को उदय िो शुभ
िांहनन आाैर रिादद ि‍त धातु िो रहहत
व्याघात (बाधा) रहहत
न वकिी िो रुकता, न वकिी
काो राोकता है
आिाघादी आांताोमुहुत्तकालट्ट्ठदद जहप्ण्णदरो।
पज्त्तीिांपुण्णो, मरणां वप कदाक्तच िांभवई॥238॥
• आर्ग - वह आाहारक शरीर पर िो आपनी आाैर आपनो िो
पर की बाधा िो रहहत हाोता है; इिी कारण िो वैवक्रययक
शरीर की तरह वज्रशशला आादद मोां िो ननकलनो मोां िमर्ग
हैां।
• उिकी जघन्द्य आाैर उत्कृ ष् ब्स्र्नत आांतमुगहतग काल प्रमाण
हाोती है।
• आाहारक शरीर पयागप्‍त को पूणग हाोनो पर कदाक्तचत्
आाहारक ऋज्ञद्वालो मुनन का मरण भी हाो िकता है
॥238॥
आाहारक शरीर का काल
•आन्द्तमुगहतगजघन्द्य
•आन्द्तमुगहतग (परन्द्तु जघन्द्य
िो ववशोष आधधक)
उत्कृ ष्ट
ववशोष
•क्या आाहारक काययाोगी का मरण
हाो िकता है ?
–हाां, हाो िकता है।
•परन्द्तु आाहारक क्तमश्रकाययाोग मोां
मरण िांभव नहीां है।
आाहरदद आणोण मुणी, िुहुमो आत्र्ो ियस्ि िांदोहो।
गत्ता को वक्तलपािां तम्हा आाहारगाो जाोगाो॥239॥
•आर्ग - छठो गुणस्र्ानवतीग मुनन आपनो काो
िांदोह हाोनो पर इि शरीर को द्वारा को वली को
पाि मोां जाकर िूक्ष्म पदार्ाोों का आाहरण
(ग्रहण) करता है इिक्तलयो इि शरीर को द्वारा
हाोनो वालो याोग काो आाहारक काययाोग कहतो
हैां ॥239॥
आाहारक काययाोग
आाहारक शरीर को आवलांबन िो
जीव को प्रदोशाोां मोां पररस्पांद का
कारणभूत जाो प्रयत्न हाोता है,
उिो आाहारक काययाोग कहतो हैां ।
आाहारयमुत्तत्र्ां, ववजाण क्तमस्िां तु आपररपुण्णां तां।
जाो तोण िांपजाोगाो, आाहारयक्तमस्िजाोगाो िाो॥240॥
•आर्ग - आाहारक शरीर का आर्ग ऊपर बताया
जा चुका है।
•जब तक वह पयाग‍त नहीां हाोता तब तक
उिकाो आाहारकक्तमश्र कहतो हैां आाैर
•उिको द्वारा हाोनो वालो याोग काो आाहारकक्तमश्र
काययाोग कहतो हैां ॥240॥
आाहारकक्तमश्र काय
आाहारक शरीर जब तक पूणग नहीां हाोता,
तब तक उिो आाहारकक्तमश्र कहतो हैां।
क्तमश्र है आर्ागत् आाहार वगगणारूप स्कां धाोां काो
आाहारक शरीररूप पररणमानो मोां आिमर्ग है।
यहाां क्तमश्रपना आाैदाररक वगगणा को
मोल िो है।
आाहारकक्तमश्र काययाोग
इि आाहारकक्तमश्र-काय को िार् जाो आात्म-प्रदोशाोां
का चांचलपना है, उिो आाहारक क्तमश्र काययाोग
कहतो हैां।
* आाहारक क्तमश्र काययाोग
का काल - आन्द्तमुगहतग
आाहारक शरीर प्रारांभ
करनो का प्रर्म िमय
आाहारक क्तमश्र काययाोग
ननवृगत्तत्त आपयाग‍त
पयाग‍त
* यानो आभी शरीर पयागप्‍त को
आभाव मोां आाहारक काययाोग भी
िांभव नहीां है ।
कम्मोव य कम्मभवां, कम्मइयां जाो दु तोण िांजाोगाो ।
कम्मइयकायजाोगाो, इयगववगनतगिमयकालोिु ॥241॥
•आर्ग - ज्ञानावरणाददक आष् कमाोों को िमूह काो
आर्वा कामगणशरीर नामकमग को उदय िो हाोनो
वाली काय काो कामगणकाय कहतो हैां आाैर
•उिको द्वारा हाोनो वालो याोग— कमागकषगण शक्तक्तयुक्त
आात्मप्रदोशाोां को पररस्पन्द्दन काो कामगणकाययाोग
कहतो हैां।
•यह याोग एक दाो आर्वा तीन िमय तक हाोता है
॥241॥
कामगण शरीर
ज्ञानावरणादद 8 कमाोों का स्कां ध
कामगण शरीर नामकमग को उदय िो
जाो शरीर है, वह कामगण शरीर है।
कामगण काययाोग
कामगण शरीर को िार् जाो आात्म-
प्रदोशाोां का चांचलपना है, वह कामगण
काययाोग है।
कामगण काययाोग का काल
कब हाोता है ? वकतना िमय
1) ववग्रह गनत मोां 1 िमय, 2 िमय आर्वा 3 िमय
2) को वली िमुद्घात मोां 3 िमय
कामगण काययाोग काो छाोडकर एक याोग का
उत्कृ ष्ट काल = आांतमुगहतग
वोगुहिय-आाहारयवकररया, ण िमां पमत्तववरदप्म्ह।
जाोगाो वव एक्कालो, एक्ो व य हाोदद ज्ञणयमोण॥242॥
•आर्ग - छठो गुणस्र्ान मोां वैवक्रययक आाैर
आाहारक शरीर की वक्रया युगपत् नहीां हाोती
आाैर याोग भी ननयम िो एक काल मोां एक ही
हाोता है ॥242॥
याोग आाैर प्रवृत्तत्त िम्बन्द्धी ननयम
एक िमय मोां 1 ही याोग हाोता है ।
िांस्कार िो एक िार् तीनाोां याोगाोां की प्रवृत्तत्त दोखी जा
िकती है ।
छठो गुणस्र्ान मोां िांस्कार िो भी वैवक्रययक आाैर आाहारक
की वक्रया एक िार् नहीां हाोती है ।
जोसिां ण िांनत जाोगा, िुहािुहा पुण्णपाविांजणया।
तो हाोांनत आजाोयगजजणा, आणाोवमाणांतबलकक्तलया॥243॥
•आर्ग - जजनको पुण्य आाैर पाप को कारणभूत
शुभाशुभ याोग नहीां हैां उनकाो आयाोयगजजन कहतो
हैां।
•वो आनुपम आाैर आनांत बल िो युक्त हाोतो हैां
॥243॥
आयाोगी जीव
चाैदहवोां गुणस्र्ानवतीग एवां
गुणस्र्ानातीत सिद्
पुण्य-पाप को कारणभूत
शुभाशुभ याोगरहहत
आनुपम आाैर आनांत
बलिहहत
➢Reference : गाोम्मटिार जीवकाण्ड, िम्यग्ज्ञान चांदरका,
गाोम्मटिार जीवकाांड - रोखाक्तचत्र एवां ताक्तलकाआाोां मोां
Presentation developed by
Smt. Sarika Vikas Chhabra
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➢: 0731-2410880 , 94066-82889

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  • 1. प्ररूपणा 9 - याोग मागगणा आाचायग श्रीनोमीचन्द्र सिद्ाांतचक्रवतीग
  • 2. पुग्गलवववाइदोहाोदयोण मणवयणकायजुत्तस्ि। जीवस्ि जा हु ित्ती, कम्मागमकारणां जाोगाो॥216॥ •आर्ग - पुद्गलववपाकी शरीर नामकमग को उदय िो मन, वचन, काय िो युक्त जीव की जाो कमाोों को ग्रहण करनो मोां कारणभूत शक्तक्त है उिकाो याोग कहतो हैां ॥216॥
  • 3. याोग भाव याोग कमग-नाोकमग काो ग्रहण करनो की जीव की शक्तक्त-ववशोष रव्य याोग आात्म-प्रदोशाोां मोां पररस्पन्द्दन (कम्पन) मन वचन काय की वक्रया (चोष्टा) (आांगाोपाांग व शरीर नामकमग को उदयपूवगक) इिमोां ननक्तमत्त
  • 4. •ज्ञानावरणाददक 8 कमगकमग •ज्ञानावरण आादद 8 कमगरूप हाोनो याोग्य वगगणा — कामगण वगगणा । कमग वगगणा •आाैदाररक आादद शरीरनाोकमग •3 शरीररूप हाोनो याोग्य वगगणा — आाहार वगगणा । नाोकमग वगगणा
  • 5. कमग-नाोकमग का आाना या ग्रहण करना आर्ागत् कमग-नाोकमग वगगणारूप पुद्गल स्कां धाोां का कमग नाोकमगरूप पररणमना
  • 6. वकि जीव को रव्य-याोग हाोता है ? 1. पुद्गलववपाकी शरीर नामकमग को उदय िहहत 2. मन, वचन, काय को आवलांबन िहहत
  • 7. मणवयणाणपउत्ती, िच्चािच्चुभयआणुभयत्र्ोिु। तण्णाम हाोदद तदा, तोहह दु जाोगा हु तज्ाोगा॥217॥ •आर्ग - ित्य, आित्य, उभय, आनुभय इन चार प्रकार को पदार्ाोों िो जजि पदार्ग काो जाननो या कहनो को क्तलए जीव को मन, वचन की प्रवृत्तत्त हाोती है उि िमय मोां मन आाैर वचन का वही नाम हाोता है आाैर उिको िम्बांध िो उि प्रवृत्तत्त का भी वही नाम हाोता है ॥217॥
  • 8. याोग मागगणा को प्रकार मनाोयाोग (4) ित्य आित्य उभय आनुभय वचनयाोग (4) ित्य आित्य उभय आनुभय काययाोग (7) आाैदाररक आाैदाररक क्तमश्र वैवक्रययक वैवक्रययक क्तमश्र आाहारक आाहारक क्तमश्र कामगण
  • 9. मनाोयाोग ित्य, आित्य, उभय, आनुभय पदार्ग काो जाननो की जीव की प्रयत्नरूप प्रवृत्तत्त हाोती है, उिो ित्य, आित्य, उभय, आनुभय मनाोयाोग कहतो हैां ।
  • 10. ित्य मनाोयाोग िो िम्बांधधत 3 बातोां ित्य पदार्ग जैिो जल ित्य मन ित्य पदार्ग काो जाननोवाला मन ित्य मनाोयाोग ित्य मन की प्रवृत्तत्त जैिो जल काो जल जानना ।
  • 11. िब्भावमणाो िच्चाो, जाो जाोगाो तोण िच्चमणजाोगाो। तहिवरीआाो माोिाो, जाणुभयां िच्चमाोिाो त्तत्त॥218॥ • आर्ग - िमीचीन भावमन काो (पदार्ग काो जाननो की शक्तक्तरूप ज्ञान काो) आर्ागत् िमीचीन पदार्ग काो ववषय करनो वालो मन काो ित्यमन कहतो हैां, आाैर • उिको द्वारा जाो याोग हाोता है उिकाो ित्यमनाोयाोग कहतो हैां। • ित्य िो जाो ववपरीत है उिकाो क्तमथ्या कहतो हैां तर्ा • ित्य आाैर क्तमथ्या दाोनाोां ही प्रकार को मन काो उभय मन कहतो हैां। एोिा हो भव्य! तू जान ॥218॥
  • 12. मन िमीचीन पदार्ग काो ववषय करनो वाला मन ववपरीत पदार्ग काो ववषय करनो वाला मन ित्य आाैर आित्य रूप पदार्ग काो ववषय करनो वाला मन मनाोयाोग ित्य-मन को द्वारा जाो याोग (चोष्टा, प्रवतगन) हाोता है आित्य-मन को द्वारा जाो याोग (चोष्टा, प्रवतगन) हाोता है उभय-मन को द्वारा जाो याोग हाोता है ित्य आित्य उभय
  • 13. ण य िच्चमाोिजुत्ताो, जाो दु मणाो िाो आिच्चमाोिमणाो। जाो जाोगाो तोण हवो, आिच्चमाोिाो दु मणजाोगाो॥219॥ •आर्ग - जाो न ताो ित्य हाो आाैर न मृषा हाो उिकाो आित्यमृषा मन कहतो हैां आर्ागत् आनुभयरूप पदार्ग को जाननो की शक्तक्तरूप जाो भावमन है उिकाो आित्यमृषा कहतो हैां आाैर •उिको द्वारा जाो याोग हाोता है उिकाो आित्यमृषामनाोयाोग कहतो हैां ॥219॥
  • 14. •जाो न ित्य हाो, न आित्य हाो, उिो आनुभय पदार्ग कहतो हैां । आनुभय पदार्ग •आनुभय पदार्ग काो ववषय करनो वाला मन आनुभय मन कहलाता है । आनुभय मन •आनुभय मन को द्वारा जाो याोग हाोता है, उिो आनुभय मनाोयाोग कहतो हैां । आनुभय मनाोयाोग
  • 15. 4 मन एवां 4 वचन को ववषयभूत पदार्ग एवां उनको दृष्टाांत दृष्टाांत ित्य ित्यज्ञान गाोचर पदार्ग जल आित्य क्तमथ्याज्ञान गाोचर पदार्ग मरीक्तचका का जल उभय उभयज्ञान गाोचर पदार्ग कमण्डल काो घट कहना (जल रखनो का काम हाो िकता है इिक्तलयो ित्य, घट का आाकार नहीां इिक्तलयो आित्य) आनुभय ननणगय-रहहत पदार्ग ''यह कु छ है'' (ववशोष ज्ञान न हाोनो िो ित्य नहीां, िामान्द्य ज्ञान हाोनो िो आित्य भी नहीां)
  • 16. दिववहिच्चो वयणो, जाो जाोगाो िाो दु िच्चवक्तचजाोगाो। तहिवरीआाो माोिाो, जाणुभयां िच्चमाोिाो त्तत्त॥220॥ •आर्ग - वक्ष्यमाण जनपद आादद दश प्रकार को ित्य आर्ग को वाचक वचन काो ित्यवचन आाैर उििो हाोनो वालो याोग - प्रयत्नववशोष काो ित्यवचनयाोग कहतो हैां तर्ा •इििो जाो ववपरीत है उिकाो मृषा आाैर •जाो कु छ ित्य आाैर कु छ मृषा का वाचक है उिकाो उभयवचनयाोग कहतो हैां। एोिा हो भव्य! तू िमझ ॥220॥
  • 17. ित्यवचन िो िम्बांधधत 4 चीजोां ित्य पदार्ग ित्य वचन ित्य पदार्ग काो कहनो वाला वचन भावित्य ित्यवचन की शक्तक्त ित्य वचनयाोग भावित्य की प्रवृत्तत्त ववशोष जैिो यह जल है (जल काो जल कहना)
  • 18. भावित्य वचन क्या है ? • स्वर नामकमग को उदय िहहत • भाषा पयागप्‍त िो उत्पन्द्न • भाषा वगगणा का आालांबन िहहत • जीव की शक्तक्त-ववशोष • भाव ित्य वचन है । ➢इिी प्रकार भाव आित्य वचन, भाव उभय वचन आाैर भाव आनुभय वचन जानना चाहहए ।
  • 19. •जाो ित्य न हाो उिो आित्य पदार्ग कहतो हैां । आित्य पदार्ग •आित्य पदार्ग काो कर्न करनो वाला वचन आित्य वचन कहलाता है । आित्य वचन •आित्य वचन को द्वारा जाो याोग हाोता है, उिो आित्य वचनयाोग कहतो हैां । आित्य वचनयाोग
  • 20. •जाो कु छ ित्य हाो, कु छ आित्य हाो, उिो उभय पदार्ग कहतो हैां । उभय पदार्ग •उभय पदार्ग काो कर्न करनो वाला वचन उभय वचन कहलाता है । उभय वचन •उभय वचन को द्वारा जाो याोग हाोता है, उिो उभय वचनयाोग कहतो हैां । उभय वचनयाोग
  • 21. जाो णोव िच्चमाोिाो, िाो जाण आिच्चमाोिवक्तचजाोगाो। आमणाणां जा भािा, िण्णीणामांतणी आादी॥221॥ •आर्ग - जाो न ित्यरूप हाो आाैर न मृषारूप ही हाो उिकाो आनुभय वचनयाोग कहतो हैां। •आिांज्ञज्ञयाोां की िमस्त भाषा आाैर िांज्ञज्ञयाोां की आामन्त्रणी आाददक भाषा आनुभय भाषा कही जाती है ॥221॥
  • 22. •जाो न ित्य हाो, न आित्य हाो, उिो आनुभय पदार्ग कहतो हैां । आनुभय पदार्ग •आनुभय पदार्ग काो कर्न करनो वाला वचन आनुभय वचन कहलाता है । आनुभय वचन •आनुभय वचन को द्वारा जाो याोग हाोता है, उिो आनुभय वचनयाोग कहतो हैां । आनुभय वचनयाोग
  • 23. आनुभय वचन को प्रकार आिांज्ञज्ञयाोां (2 इांदरयाोां िो आिांज्ञी पांचोांदरय) की आनक्षरात्मक भाषा िांज्ञज्ञयाोां की आामांत्रणी आादद भाषा
  • 24. जणवदिम्मददठवणा, णामो रूवो पडुच्चववहारो। िम्भावणो य भावो, उवमाए दिववहां िच्चां॥222॥ •आर्ग - जनपदित्य, िम्मनतित्य, स्र्ापनाित्य, नामित्य, रूपित्य, प्रतीत्यित्य, व्यवहारित्य, िांभावनाित्य, भावित्य, उपमाित्य, इिप्रकार ित्य को दश भोद हैां ॥222॥
  • 25. भत्तां दोवी चांद‍पह-, पदडमा तह य हाोदद जजणदत्ताो। िोदाो ददग्घाो रज्झदद, कू राोत्तत्त य जां हवो वयणां॥223॥ िक्ाो जांबूदीवां, पल्लट्टदद पाववज्वयणां च। पल्लाोवमां च कमिाो, जणवदिच्चाददददट्ठांता॥224॥ •आर्ग - उक्त दश प्रकार को ित्यवचन को यो दश दृष्ाांत हैां। भक्त, दोवी, चन्द्रप्रभ प्रनतमा, जजनदत्त, श्वोत, दीघग, भात पकाया जाता है, शक्र जम्बूद्वीप काो पलट िकता है, पापरहहत “यह प्रािुक है” एोिा वचन आाैर पलयाोपम ॥223-224॥
  • 26. दि प्रकार को ित्य व उनको दृष्टाांत क्र. ित्य स्वरूप दृष्टाांत 1 जनपद आपनो-आपनो दोश मोां मनुष्य व्यवहार मोां प्रवृत्त वचन भक्त, भात, भाटु, वांटक, मुकू ड, कु लु, चाोरू आादद क्तभन्द्न-क्तभन्द्न शब्दाोां िो एक ही चीज ''भात'' काो कहना 2 िम्मनत बहुत मनुष्याोां की िम्मनत िो िवग िाधारण मोां रूढ पट्टरानी को सिवाय िाधारण स्री काो दोवी कहना 3 स्र्ापना वकिी वस्तु मोां वकिी क्तभन्द्न वस्तु का आाराोप करना चन्द्रप्रभ की प्रनतमा काो चन्द्रप्रभ कहना 4 नाम वबना वकिी आपोक्षा व्यवहार को क्तलयो नाम रखना जजनोन्द्र नो नहीां ददया है पर ''जजनदत्त'' नाम रखना 5 रूप पुद्गल को आनोक गुण हाोनो पर भी रूप की मुख्यता करना रि, गांधादद रहनो पर भी रूप गुण की आपोक्षा वकिी मनुष्य काो ''श्वोत'' कहना
  • 27. दि प्रकार को ित्य व उनको दृष्टाांत क्र. ित्य स्वरूप दृष्टाांत 6 प्रतीत्य/ आापोसक्षक वकिी वववसक्षत पदार्ग की आपोक्षा िो दूिरो पदार्ग का कर्न करना वकिी छाोटो पदार्ग की आपोक्षा आन्द्य काो बडा कहना 7 व्यवहार नैगमादद नयाोां की प्रधानता िो वचन कहना चावल पकानो काो ''भात पकाता हां'' एोिा कहना 8 िांभावना आिांभव बात काो वस्तु को वकिी धमग को ननरूपण को क्तलयो कहना इन्द्र जम्बूद्वीप काो उलट िकता है (यहाां इन्द्र की शक्तक्त बताना है) 9 भाव इप्न्द्रय आगाोचर पदार्ाोों का सिद्ाांत को आनुिार ववधध-ननषोध रूप भाव आयि िो पकायी वस्तु काो प्रािुक कहना 10 उपमा वकिी प्रसिद् पदार्ग की िमानता कहना धान भरनो को गड्ढोरूप िांख्या काो पलयाोपम की उपमा दोना
  • 28. आामांतज्ञण आाणवणी, याचज्ञणया पुच्छणी य पण्णवणी। पच्चक्खाणी िांियवयणी, इच्छाणुलाोमा य॥225॥ णवमी आणक्खरगदा, आि माोिा हवांनत भािाआाो। िाोदाराणां जम्हा, वत्तावत्तांििांजणया॥226॥ •आर्ग - आामन्त्रणी, आाज्ञापनी, याचनी, आापृच्छनी, प्रज्ञापनी, प्रत्याख्यानी, िांशयवचनी, इच्छानुलाोम्नी, आनक्षरगता यो नव प्रकार की आनुभयात्मक भाषाएँ हैां,काोांवक इनको िुननोवालो काो व्यक्त आाैर आव्यक्त दाोनाोां ही आांशाोां का ज्ञान हाोता है ॥225-226॥
  • 29. 9 प्रकार को आनुभय वचन क्र. वचन स्वरूप दृष्टाांत 1 आामांत्रणी बुलानोरूप हो दोवदत्त ! तुम आाआाो 2 आाज्ञापनी आाज्ञारूप तुम यह काम कराो 3 याचनी माांगनोरूप तुम यह मुझकाो दाो 4 आापृच्छनी प्रश्नरूप यह क्या है ? 5 प्रज्ञापनी ववनतीरूप हो स्वामी ! मोरी यह ववनती है 6 प्रत्याख्यानी त्यागरूप मैां इिका त्याग करता हां 7 िांशयवचनी िांदोहरूप यह बगुलाोां की पांक्तक्त है आर्वा ध्वजा है ? 8 इच्छानुलाोम्नी इच्छारूप मुझकाो भी एोिा ही हाोना चाहहए 9 आनक्षरगता हद्वप्न्द्रयादद आिांज्ञी जीवाोां की भाषा एोिी आाैर भी भाषा, जजििो व्यक्त-आव्यक्त आांश का ज्ञान हाो, वह आनुभय भाषा है ।
  • 30. प्रश्न: आनक्षर भाषा मोां िामान्द्यपना भी व्यक्त नहीां है, तब उिो आनुभय क्याोां कहा ? उत्तर: आनक्षर भाषा िांको तरूप वचन है, जजििो वक्ता का हषग- ववषाद आादद रूप आक्तभप्राय जाना जाता है । आतः वह आनुभय भाषा है ।
  • 31. मणवयणाणां मूलज्ञणक्तमत्तां खलु पुराणदोहउदआाो दु। माोिुभयाणां मूलज्ञणक्तमत्तां खलु हाोदद आावरणां॥227॥ •आर्ग - ित्य आाैर आनुभय मनाोयाोग तर्ा वचनयाोग मूल कारण पयागप्‍त आाैर शरीर नामकमग का उदय है। •मृषा आाैर उभय मनाोयाोग तर्ा वचनयाोग का मूल कारण आपना-आपना आावरण कमग है ॥227॥
  • 32. मन-वचन याोगाोां को आन्द्तरांग कारण ित्य आाैर आनुभय मनाोयाोग तर्ा वचनयाोग का मूल कारण पयागनि आाैर शरीर नामकमग का उदय है। मृषा आाैर उभय मनाोयाोग तर्ा वचनयाोग का मूल कारण आपना-आपना आावरण कमग को तीव्र आनुभाग का उदय है
  • 33. मन-वचन याोगाोां को आन्द्तरांग कारण •आित्य याोगतीव्रतर आावरण को उदय िो •उभय याोगतीव्र आावरण को उदय िो
  • 34. दशगन माोह आाैर चाररत्र माोह को उदय को कारण आित्य आाैर उभय याोग क्याोां नहीां कहो ? आित्य व उभय याोग क्तमथ्यादृधष् की तरह िम्यक्त्वी आाैर िांयमी जीवाोां को भी पाए जातो हैां । इिक्तलए इनका मुख्य कारण आावरण कमग का उदय है, माोह नहीां ।
  • 35. को वली भगवान काो काैन-िा वचनयाोग है ? आनुभय को वली को वचन श्राोता को कानाोां मोां पहुांचनो को पूवग तक आनक्षररूप ित्य को वली को वचन श्राोता को कानाोां मोां पहुांचनो पर आक्षररूप कै िो?
  • 36. क्या को वली भगवान को मनाोयाोग है ? हाां, ित्य आाैर आनुभय मनाोयाोग है । उनको आावरण का आभाव है, ताो मनाोयाोग कै िो ?
  • 37. मणिहहयाणां वयणां, ददट्ठां त‍पुिक्तमदद िजाोगप्म्ह। उत्ताो मणाोवयारोज्ञणांददयणाणोण हीणप्म्ह॥228॥ •आर्ग – हमारो जैिो मनिहहत छद्मस्र् जीवाोां को मनपूवगक ही वचनप्रयाोग हाोता है। इिक्तलयो इप्न्द्रयज्ञान िो रहहत ियाोगको वली को भी उपचार िो मन कहा है ॥228॥
  • 38. उपचार को हाोनो मोां दाो कारण हैां 1. ननक्तमत्त 2. प्रयाोजन
  • 39. मनाोयाोग को उपचार का ननक्तमत्त जैिो छद्मस्र् को मनाोयाोगपूवगक वचन व्यापार ददखाई दोता है, वैिो ही को वली भगवान को वचन भी मनाोयाोगपूवगक हाोनो चाहहए । एोिो उपचार िो को वली को मनाोयाोग है ।
  • 40. आांगाोवांगुदयादाो, दिमणट्ठां जजज्ञणांदचांदप्म्ह। मणवग्गणखांधाणां आागमणादाो दु मणजाोगाो॥229॥ •आर्ग - आाांगाोपाांग नामकमग को उदय िो हृदयस्र्ान मोां जीवाोां को रव्यमन की ववकसित-प्खलो हुए आष्दल पद्म को आाकार मोां रचना हुआा करती है। यह रचना जजन मनाोवगगणाआाोां को द्वारा हुआा करती है उनका आर्ागत् इि रव्यमन की कारणभूत मनाोवगगणाआाोां का श्री जजनोन्द्रचन्द्र भगवान ियाोगको वली को भी आागमन हुआा करता है, इिक्तलयो उनको उपचार िो मनाोयाोग कहा है ॥229॥
  • 41. मनाोयाोग को उपचार का प्रयाोजन •रव्यमन को क्तलए मनाोवगगणा का ग्रहण हाोना यह प्रयाोजन है । •तर्ावप मुख्य भावमनाोयाोग का आभाव है आतः उपचार िो ही मनाोयाोग कहा है, परमार्ग िो नहीां है ।
  • 42. आर्वा को वली को वास्तव मोां मनाोयाोग है काोांवक भावमनाोयाोग कमग-नाोकमग काो ग्रहण करनो की शक्तक्तरूप रव्यमनाोयाोग मनाोवगगणा का रव्यमन रूप िो पररणमन एोिो मनाोयाोग का कायग (उपचार िो) – जीवाोां पर दया, उपदोश आादद कायग
  • 43. पुरुमहदुदारुरालां, एयट्ठाो िांववजाण तप्म्ह भवां। आाोराक्तलयां तमुच्चइ, आाोराक्तलयकायजाोगाो िाो॥230॥ •आर्ग - पुरु, महत्, उदार, उराल, यो िब शब्द एक ही स्र्ूल आर्ग को वाचक है। उदार मोां जाो हाोय उिकाो कहतो हैां आाैदाररक । आाैदाररक ही पुद्गल वपण्ड का िांचयरूप हाोनो िो काय हैां। आाैदाररक वगगणा को स्कन्द्धाोां का आाैदाररक कायरूप पररणमन मोां कारण जाो आात्मप्रदोशाोां का पररस्पांद हैां, वह आाैदाररक काययाोग है ॥230॥
  • 44. आाैदाररक काय •उदार, महान, पुरु, स्र्ूल, उराल— यो िभी एकार्गवाची हैां । •उदार मोां जाो हाो, उिो आाैदाररक कहतो हैां । आाैदाररक •काय यानो िांचयरूप पुद्गलवपण्डकाय आाैदाररक शरीर नामकमग को उदय िो उत्पन्द्न हुआा आाैदाररक शरीर को आाकाररूप स्र्ूल पुद्गल स्कां धाोां का पररणाम आाैदाररक काय है ।
  • 45. िूक्ष्म जीवाोां को आाैदाररक शरीर ताो िूक्ष्म हैां, विर उनकाो आाैदाररक कै िो कहोांगो ? आागो को जाो वैवक्रययक आादद शरीर हैां, उनिो यह शरीर स्र्ूल है, इिक्तलए आाैदाररक स्र्ूल शरीर है । तर्ा इि शरीर की एोिी रूढ िांज्ञा है ।
  • 46. आाैदाररक काययाोग आाैदाररक शरीर को आवलम्बन िो जीव को प्रदोशाोां मोां पररस्पांद का कारणभूत जाो प्रयत्न हाोता है, उिो आाैदाररक काययाोग कहतो हैां ।
  • 47. आाोराक्तलय उत्तत्र्ां, ववजाण क्तमस्िां तु आपररपुण्णां तां। जाो तोण िांपजाोगाो आाोराक्तलयक्तमस्िजाोगाो िाो॥231॥ •आर्ग - हो भव्य ! एोिा िमझ वक जजि आाैदाररक शरीर का स्वरूप पहलो बता चुको है वही शरीर जब तक पूणग नहीां हाो जाता तब तक क्तमश्र कहा जाता है आाैर उिको द्वारा हाोनोवालो याोग काो आाैदाररक क्तमश्रकाययाोग कहतो हैां ॥231॥
  • 48. आाैदाररक क्तमश्रकाय आाैदाररक शरीर आांतमुहतग काल तक आपूणग (आपयागि) हाोता है । उि शरीर काो आाैदाररक क्तमश्र कहतो हैां । कामगण आाैर आाैदाररक वगगणा का मोल हाोनो िो क्तमश्र कहतो हैां | आाैदाररक क्तमश्रकाययाोग आाैदाररक क्तमश्रकाय को िार् जाो आात्मा का प्रदोश पररस्पन्द्दरूप याोग है, वह आाैदाररक क्तमश्रकाययाोग है । यह याोग शरीर पयागनि की पूणगता ना हाोनो िो आाैदाररक स्कां धाोां काो पररपूणगरूप िो शरीररूप पररणमानो मोां आिमर्ग हाोता है ।
  • 49. भव का प्रर्म िमय आाैदाररक-क्तमश्र काययाोग ननवृगत्तत्त-आपयाग‍त पयाग‍त * यानो आभी शरीर पयागप्‍त को आभाव मोां आाैदाररक काययाोग भी िांभव नहीां है ।
  • 50. आाैदाररक काययाोग वकिको हाोगा ? पयागि मनुष्य आाैर नतयोंचाोां को आाैदाररक क्तमश्र काययाोग वकिको हाोगा ? लब्ब्ध-आपयाग‍त मनुष्य, नतयोंच ननवृगत्तत्त-आपयाग‍त मनुष्य, नतयोंच को वली िमुद्घात को िमय
  • 51. ववववहगुणइप्ड्ढजुत्तां, ववहक्ररयां वा हु हाोदद वोगुिां। नतस्िो भवां च णोयां, वोगुहियकायजाोगाो िाो॥232॥ •आर्ग - नाना प्रकार को गुण आाैर ऋज्ञद्याोां िो युक्त दोव तर्ा नारवकयाोां को शरीर काो वैवक्रययक आर्वा ववगूवग कहतो हैां आाैर •इिको द्वारा हाोनो वालो याोग काो वैगूववगक आर्वा वैवक्रययक काययाोग कहतो हैां ॥232॥
  • 52. वैवक्रययक काय वैगूवग भी वववक्रया काो कहा जाता है। जजििो शरीर का नाम हाोगा - वैगूववगक,वैवक्रययक। वववक्रया जजिका प्रयाोजन है, वह वैवक्रययक है। शुभ-आशुभ प्रकार को गुण आज्ञणमा आादद आनतशयकारी ऋज्ञद् की महानता िो िहहत दोव-नारवकयाोां को शरीर काो वैवक्रययक कहतो हैां।
  • 53. वैवक्रययक काययाोग वैवक्रययक शरीर को आवलांबन िो जीव को प्रदोशाोां मोां पररस्पांद का कारणभूत जाो प्रयत्न हाोता है, उिो वैवक्रययक काययाोग कहतो हैां ।
  • 54. बादरतोऊवाऊ, पांक्तचांददयपुण्णगा ववगुिांनत। आाोराक्तलयां िरीरां, ववगुिण‍पां हवो जोसिां॥233॥ •आर्ग - बादर तोजस्काययक आाैर वायुकाययक तर्ा िांज्ञी पयाग‍त पांचोप्न्द्रय नतयगञ्च एवां मनुष्य तर्ा भाोगभूक्तमज नतयगक् , मनुष्य आपनो-आपनो आाैदाररक शरीर काो वववक्रयारूप पररणमातो हैां ॥233॥
  • 55. वकि-वकिका शरीर वववक्रयारूप पाया जाता है ? िभी दोव, नारकी को । बादर पयाग‍त तैजकाययक को । बादर पयाग‍त वायुकाययक को । कमगभूक्तमया िांज्ञी पांचोप्न्द्रय पयाग‍त मनुष्य व नतयोंच को । भाोगभूक्तमया नतयोंच एवां मनुष्य को । नाोट: दोव, नारकी काो छाोडकर आन्द्य िभी जीवाोां को वववक्रया पाए जानो का ननयम नहीां है ।
  • 56. वववक्रया पृर्क् मूल शरीर िो क्तभन्न वववक्रया करना आपृर्क् मूल शरीर काो ही वववक्रयारूप करना
  • 57. वकि जीव को कै िी वववक्रया हाोती है? पृर्क् आपृर्क् दोव   नारकी   भाोगभूक्तमया मनुष्य, नतयोंच   चक्रवतीग   शोष कमगभूक्तमया मनुष्य, नतयोंच   बादर वायु / तोजकाययक  
  • 58. ववशोष •आाैदाररक शरीर वालाोां की वववक्रया आाैदाररक शरीर का ही पररणमन है। •आाैदाररक शरीरवालो जीवाोां काो वैवक्रययक काययाोग नहीां हाोता।
  • 59. वोगुहिय उत्तत्र्ां, ववजाण क्तमस्िां तु आपररपुण्णां तां। जाो तोण िांपजाोगाो, वोगुहियक्तमस्िजाोगाो िाो॥234॥ •आर्ग - वैगूववगक का आर्ग वैवक्रययक बताया जा चुका है। जब तक वह वैवक्रययक शरीर पूणग नहीां हाोता तब तक उिकाो वैवक्रययक क्तमश्र कहतो हैां आाैर •उिको द्वारा हाोनोवालो याोग काो-आात्मप्रदोश पररस्पन्द्दन काो वैवक्रययक क्तमश्रकाययाोग कहतो हैां ॥234॥
  • 60. वैवक्रययक क्तमश्र काय वैवक्रययक शरीर आांतमुगहतग काल तक पूणग (पयाग‍त) नहीां हाोता, तब तक उिो वैवक्रययक क्तमश्र काय कहतो हैां। कामगण आाैर वैवक्रययक वगगणाआाोां का मोल हाोनो िो क्तमश्र कहतो हैां। वैवक्रययक क्तमश्र काययाोग वैवक्रययक क्तमश्रकाय को िार् जाो आात्मा को प्रदोशाोां का पररस्पन्द्द है वह वैवक्रययक क्तमश्र काययाोग है।
  • 61. भव का प्रर्म िमय वैवक्रययक क्तमश्र काययाोग ननवृगत्तत्त आपयाग‍त पयाग‍त * यानो आभी शरीर पयागप्‍त को आभाव मोां वैवक्रययक काययाोग भी िांभव नहीां है ।
  • 62. वैवक्रययक क्तमश्रकाययाोग - ववशोष वैवक्रययक क्तमश्रकाययाोग वकिको हाोगा ? •दोव, नारकी को । कब हाोगा ? •जन्द्म िो शरीर पयागनि पूणग हाोनो तक इिका काल वकतना है ? •आन्द्तमुगहतग मात्र क्या इि याोग मोां मरण िांभव है ? •नहीां।
  • 63. आाहारस्िुदयोण य, पमत्तववरदस्ि हाोदद आाहारां। आिांजमपररहरणट्ठां, िांदोहववणािणट्ठां च॥235॥ •आर्ग - आिांयम का पररहार करनो को क्तलयो तर्ा िांदोह काो दूर करनो को क्तलए आाहारक ऋज्ञद् को धारक छठो गुणस्र्ानवतीग मुनन को आाहारक शरीर नामकमग को उदय िो आाहारक शरीर हाोता है ।235॥
  • 64. आाहारक शरीर •आाहारक ऋज्ञद्धारी छठो गुणस्र्ानवतीग मुनन को वकनको हाोता है ? •आाहारक शरीर नामकमग को उदय िो काैन-िो कमग िो ?
  • 65. ज्ञणयखोत्तो को वक्तलदुगववरहो ज्ञणक्मणपहुददकल्लाणो। परखोतो िांववत्तो, जजणजजणघरवांदणट्ठां च॥236॥ • आर्ग - आपनो क्षोत्र मोां को वली तर्ा श्रुतको वली का आभाव हाोनो पर वकन्द्तु दूिरो क्षोत्र मोां जहाँ पर वक आाैदाररक शरीर िो उि िमय पहुँचा नहीां जा िकता, को वली या श्रुतको वली को ववद्यमान रहनो पर आर्वा तीर्ोंकराोां को दीक्षा कलयाण आादद तीन कलयाणकाोां मोां िो वकिी को हाोनो पर तर्ा जजन जजनगृह की वन्द्दना को क्तलयो भी आाहारक ऋज्ञद्वालो छठो गुणस्र्ानवतीग प्रमत्त मुनन को आाहारक शरीर नामकमग को उदय िो यह शरीर उत्पन्न हुआा करता है ॥236॥
  • 66. क्षोत्र •जहाां आपनी गमन शक्तक्त है। ननजक्षोत्र •जहाां आपनो आाैदाररक शरीर की गमन शक्तक्त नहीां है। परक्षोत्र
  • 67. आाहारक शरीर कब ननकलता है? आपनो क्षोत्र मोां को वली-श्रुतको वली का आभाव हाोनो पर एवां परक्षोत्र (जहाां आाैदाररक शरीर िो नहीां जा िकतो) मोां िद्भाव हाोनो पर िूक्ष्म आर्ग काो ग्रहण करनो को क्तलयो िांदोह काो दूर करनो को क्तलयो आिांयम पररहार होतु तीर्ोंकराोां को दीक्षादद 3 कलयाणकाोां मोां गमन होतु जजन एवां जजनगृह की वांदना होतु
  • 68. उत्तम आांगप्म्ह हवो, धादुववहीणां िुहां आिांहणणां। िुहिांठाणां धवलां, हत्र्पमाण पित्र्ुदयां॥237॥ •आर्ग - यह आाहारक शरीर रिाददक धातु आाैर िांहननाोां िो रहहत तर्ा िमचतुरस्र िांस्र्ान िो युक्त एवां चन्द्रकाांत मज्ञण को िमान श्वोत आाैर शुभ नामकमग को उदय िो शुभ आवयवाोां िो युक्त हुआा करता है। यह एक हस्तप्रमाण वाला आाैर आाहारक शरीर आादद प्रशस्त नामकमाोों को उदय िो उत्तमाांग शशर मोां िो उत्पन्न हुआा करता है ॥237॥
  • 69. आाहारक शरीर का स्वरूप कहाां िो उत्पन्द्न हाोता है उत्तमाांग सिर मोां िो वकतना बडा 1 हार् प्रमाण रांग श्वोत वणग िांस्र्ान िमचतुरस्र आवयव शुभ नामकमग को उदय िो शुभ िांहनन आाैर रिादद ि‍त धातु िो रहहत व्याघात (बाधा) रहहत न वकिी िो रुकता, न वकिी काो राोकता है
  • 70. आिाघादी आांताोमुहुत्तकालट्ट्ठदद जहप्ण्णदरो। पज्त्तीिांपुण्णो, मरणां वप कदाक्तच िांभवई॥238॥ • आर्ग - वह आाहारक शरीर पर िो आपनी आाैर आपनो िो पर की बाधा िो रहहत हाोता है; इिी कारण िो वैवक्रययक शरीर की तरह वज्रशशला आादद मोां िो ननकलनो मोां िमर्ग हैां। • उिकी जघन्द्य आाैर उत्कृ ष् ब्स्र्नत आांतमुगहतग काल प्रमाण हाोती है। • आाहारक शरीर पयागप्‍त को पूणग हाोनो पर कदाक्तचत् आाहारक ऋज्ञद्वालो मुनन का मरण भी हाो िकता है ॥238॥
  • 71. आाहारक शरीर का काल •आन्द्तमुगहतगजघन्द्य •आन्द्तमुगहतग (परन्द्तु जघन्द्य िो ववशोष आधधक) उत्कृ ष्ट
  • 72. ववशोष •क्या आाहारक काययाोगी का मरण हाो िकता है ? –हाां, हाो िकता है। •परन्द्तु आाहारक क्तमश्रकाययाोग मोां मरण िांभव नहीां है।
  • 73. आाहरदद आणोण मुणी, िुहुमो आत्र्ो ियस्ि िांदोहो। गत्ता को वक्तलपािां तम्हा आाहारगाो जाोगाो॥239॥ •आर्ग - छठो गुणस्र्ानवतीग मुनन आपनो काो िांदोह हाोनो पर इि शरीर को द्वारा को वली को पाि मोां जाकर िूक्ष्म पदार्ाोों का आाहरण (ग्रहण) करता है इिक्तलयो इि शरीर को द्वारा हाोनो वालो याोग काो आाहारक काययाोग कहतो हैां ॥239॥
  • 74. आाहारक काययाोग आाहारक शरीर को आवलांबन िो जीव को प्रदोशाोां मोां पररस्पांद का कारणभूत जाो प्रयत्न हाोता है, उिो आाहारक काययाोग कहतो हैां ।
  • 75. आाहारयमुत्तत्र्ां, ववजाण क्तमस्िां तु आपररपुण्णां तां। जाो तोण िांपजाोगाो, आाहारयक्तमस्िजाोगाो िाो॥240॥ •आर्ग - आाहारक शरीर का आर्ग ऊपर बताया जा चुका है। •जब तक वह पयाग‍त नहीां हाोता तब तक उिकाो आाहारकक्तमश्र कहतो हैां आाैर •उिको द्वारा हाोनो वालो याोग काो आाहारकक्तमश्र काययाोग कहतो हैां ॥240॥
  • 76. आाहारकक्तमश्र काय आाहारक शरीर जब तक पूणग नहीां हाोता, तब तक उिो आाहारकक्तमश्र कहतो हैां। क्तमश्र है आर्ागत् आाहार वगगणारूप स्कां धाोां काो आाहारक शरीररूप पररणमानो मोां आिमर्ग है। यहाां क्तमश्रपना आाैदाररक वगगणा को मोल िो है। आाहारकक्तमश्र काययाोग इि आाहारकक्तमश्र-काय को िार् जाो आात्म-प्रदोशाोां का चांचलपना है, उिो आाहारक क्तमश्र काययाोग कहतो हैां। * आाहारक क्तमश्र काययाोग का काल - आन्द्तमुगहतग
  • 77. आाहारक शरीर प्रारांभ करनो का प्रर्म िमय आाहारक क्तमश्र काययाोग ननवृगत्तत्त आपयाग‍त पयाग‍त * यानो आभी शरीर पयागप्‍त को आभाव मोां आाहारक काययाोग भी िांभव नहीां है ।
  • 78. कम्मोव य कम्मभवां, कम्मइयां जाो दु तोण िांजाोगाो । कम्मइयकायजाोगाो, इयगववगनतगिमयकालोिु ॥241॥ •आर्ग - ज्ञानावरणाददक आष् कमाोों को िमूह काो आर्वा कामगणशरीर नामकमग को उदय िो हाोनो वाली काय काो कामगणकाय कहतो हैां आाैर •उिको द्वारा हाोनो वालो याोग— कमागकषगण शक्तक्तयुक्त आात्मप्रदोशाोां को पररस्पन्द्दन काो कामगणकाययाोग कहतो हैां। •यह याोग एक दाो आर्वा तीन िमय तक हाोता है ॥241॥
  • 79. कामगण शरीर ज्ञानावरणादद 8 कमाोों का स्कां ध कामगण शरीर नामकमग को उदय िो जाो शरीर है, वह कामगण शरीर है। कामगण काययाोग कामगण शरीर को िार् जाो आात्म- प्रदोशाोां का चांचलपना है, वह कामगण काययाोग है।
  • 80. कामगण काययाोग का काल कब हाोता है ? वकतना िमय 1) ववग्रह गनत मोां 1 िमय, 2 िमय आर्वा 3 िमय 2) को वली िमुद्घात मोां 3 िमय कामगण काययाोग काो छाोडकर एक याोग का उत्कृ ष्ट काल = आांतमुगहतग
  • 81. वोगुहिय-आाहारयवकररया, ण िमां पमत्तववरदप्म्ह। जाोगाो वव एक्कालो, एक्ो व य हाोदद ज्ञणयमोण॥242॥ •आर्ग - छठो गुणस्र्ान मोां वैवक्रययक आाैर आाहारक शरीर की वक्रया युगपत् नहीां हाोती आाैर याोग भी ननयम िो एक काल मोां एक ही हाोता है ॥242॥
  • 82. याोग आाैर प्रवृत्तत्त िम्बन्द्धी ननयम एक िमय मोां 1 ही याोग हाोता है । िांस्कार िो एक िार् तीनाोां याोगाोां की प्रवृत्तत्त दोखी जा िकती है । छठो गुणस्र्ान मोां िांस्कार िो भी वैवक्रययक आाैर आाहारक की वक्रया एक िार् नहीां हाोती है ।
  • 83. जोसिां ण िांनत जाोगा, िुहािुहा पुण्णपाविांजणया। तो हाोांनत आजाोयगजजणा, आणाोवमाणांतबलकक्तलया॥243॥ •आर्ग - जजनको पुण्य आाैर पाप को कारणभूत शुभाशुभ याोग नहीां हैां उनकाो आयाोयगजजन कहतो हैां। •वो आनुपम आाैर आनांत बल िो युक्त हाोतो हैां ॥243॥
  • 84. आयाोगी जीव चाैदहवोां गुणस्र्ानवतीग एवां गुणस्र्ानातीत सिद् पुण्य-पाप को कारणभूत शुभाशुभ याोगरहहत आनुपम आाैर आनांत बलिहहत
  • 85. ➢Reference : गाोम्मटिार जीवकाण्ड, िम्यग्ज्ञान चांदरका, गाोम्मटिार जीवकाांड - रोखाक्तचत्र एवां ताक्तलकाआाोां मोां Presentation developed by Smt. Sarika Vikas Chhabra ➢For updates / feedback / suggestions, please contact ➢Sarika Jain, sarikam.j@gmail.com ➢www.jainkosh.org ➢: 0731-2410880 , 94066-82889