ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
1. सत्य कड़वाहट या मिठास
भगवान को प्रसन्न करने के लिए श्रीमद्भागवत में तीस िक्षण बताये गये हें लिनके पािन
से सवाात्मा भगवान प्रसन्न होते है। वे तीस िक्षण इस प्रकार है- सत्य, दया, तपस्या, शौच,
लतलतक्षा, आत्म लनरीक्षण, बाह्य इन्द्रियोों का सोंयम, अन्तः इन्द्रियोों का सोंयम, अलहोंसा,
ब्रह्मचया, त्याग, स्वाध्याय, सरिता, सोंतोष, समदृलि, सेवा, सदाचार, सुचेिाओों का पािन,
मौन, आत्मलवचार, सामर्थ्ाानुसार दान, प्रालणयोों में आत्मबुन्द्रि व इिदेव बुन्द्रि, भगवान के
रूप-चररत्र गुणालद का भिन-कीतान, स्मरण, सेवा, यज्ञ, नमस्कार, दास्य सख्य और आत्म
लनवेदन। (श्रीमद्भागवत 7/11/8-12)
उपरोक्त िक्षणोों को पढ़कर भगवान को पाना कलिन नहीों मानना चालहये अलपतु इन
िक्षणोों को पढ़कर इनके पािन करने का प्रयास करना चालहये। यलद आपने इन तीस
िक्षणोों में से लकसी एक मात्र को भी साध लिया तो आत्मा का परमात्मा से लमिन दू र नहीों
है। लकों तु बात मात्र समझने की है। यलद आि हम बात करें प्रथम िक्षण की तो यह है
‘सत्य’ और कहा िाता है लक सत्य तो कड़वा ही होता है। इसके आशय को िानना
अलतआवश्यक है लक अन्ततः सत्य कड़वा क्ोों होता है? और लकसके लिये कड़वा होता
है? बािने वािे के लिये या सुनने वािे के लिये, लकों तु इन दोनोों से अलधक आवश्यक तो
यह है लक सत्य तो सत्य ही होता है। हाों सत्य की किोरता या कड़वेपन को कु छ कम तो
लकया िा सकता है और यही आि के िीवन में प्रदू षण का मुख्य कारण है- हम आपस में
सत्य न तो बोिना चाहते हैं, न ही सुनना और न ही देखना और सत्य की कड़वाहट से
बचने के लिये हम कड़वेपन के रस के प्रभाव से वोंलचत रह िाते हैं। सही अथों में सत्य की
कड़वाहट िीवन में अमृत प्राप्त करने का मागा प्रशस्त करती है। हम, आप सभी इस सत्य
की कड़वाहट ने आपको अपने िीवन में प्रण करने या कु छ कर लदखाने का लदव्यस्वप्न भी
लदया होगा। हम अपने लवद्याियीन लदवसोों में या कहें बाल्यावस्था से ही सत्यकी इस
कड़वाहट से भिी प्रकार से पररलचत हो चुके हैं। कभी परीक्षा पररणाम को िेकर तो कभी
खेि-कू द या मस्ती के कारण िब हमारा परीक्षा पररणाम लबगड़ा तो इमें इस सत्य की
कड़वाहट िगी लकों तु िब हमने इस कड़वाहट को भीतर से िाना तभी हमें ज्ञात हुआ लक
यह पररणाम तो हमारे कम पररश्रम से है और इसे दू र करने का एक ही मागा है अलधक
पररश्रम, और लिर हमने प्रण लकया होगा लक चाहे कु छ भी हो िाये अथक पररश्रम करेंगे
और परीक्षा पररणाम में अच्छे प्राप्ताोंक प्राप्त करके ही रहेंगे। इस पूरे प्रसोंग में हमने
श्रीमद्भागवत में भगवान को मनाने के िो तीस िक्षण हैं उन्हें पूरा लकया होगा। लकसी ने
क्षलणक तो लकसी ने अलधक और लमलश्रत प्रयासो से परीक्षा के अच्छे पररणाम के रूप में
भगवान के आशीवााद रूपी िि की प्रान्द्रप्त भी की होगी। वस्तुतः होता यह है लक हम
2. प्रयासोों से हार मान िेते हें। प्रयास कभी-भी अन्द्रन्तम नहीों होता, अोंत तो पररणाम होता है
लक और सुखद पररणाम तो अथक प्रयासोों के पश्चात् ही प्राप्त होता है। यह हम सब को
लवलदत है तो लिर चूक कहाों हो िाती है? अतः आवश्यकता सत्य से दू र िाने की नहीों,
सत्य की कड़वाहट से भी दू र िाने की नहीों, आवश्यकता तो सत्य को आत्मसात् करने की
है। क्ोोंलक यही वह क्षण होता है िो हमें िीवन में िड़ना लसखाता है। और यह िड़ाई ही
सत्य की कड़वाहट को िीवन की मीिी प्रेरणा बनाती है। मानव इसी सत्य के सामने आने
से भयभीत होता है और भय हम सब उत्पन् करते हैं बाल्यावस्था से ही क्ोोंलक िब हम
आप इस अवस्था में थे तो हमारे बड़े-बुिुगों ने हमें इस भय से पररलचत करवाया था तो
लनश्चय ही अब तो सोंबोंन्ध प्रगाण हो ही चुके हैं। लकों तु नहीों, यही वह समय है िब हमें हमारे
पररवार से, समाि से, देश, लवश्व से व समस्त प्रकृ लत से इस भय को दू र करना होगा
क्ोोंलक महलषा कहते थे- ‘‘िीवन आनन्द है” यह अक्षरश: सत्य है। और िीवन के आनन्द
को प्राप्त करने की राह है ‘‘भावातीत ध्यान।” भावतीत ध्यान के लनयलमत अभ्यास से ही
हम सत्य को आत्मसात करने की प्रेरणा िे पायेंगे। और सत्य की कड़वाहट को िीवन की
मीिी लमिास में पररवलतात करने की आपकी यात्रा का साथी नहीों, सारथी कहना अलधक
उलचत होगा, मात्र ‘भावातीत ध्यान” ही होगा। सत्य बोिने से मन की मिीनता दू र होती है
लिससे मन रूपी दपाण साि हो िाता है और लिर उसमें भगवान के स्वरूप का
प्रलतलबम्ब लदखाई पड़ने िगता है। भगवान के दशान के लिए असत्य से समझौता कदालप
न करें।
ब्रह्मचारी लगरीश
कु िालधपलत, महलषा महेश योगी वैलदक लवश्वलवद्यािय
एवों महालनदेशक, महलषा लवश्व शाोंलत की वैलश्वक रािधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौोंदी, लििा कटनी (पूवा में िबिपुर), मध्य प्रदेश