SlideShare une entreprise Scribd logo
1  sur  32
नाम - प्रशाांत ततवारी
अनुक्रमाांक - 33
कक्षा - दसव ां-अ
रस का शाब्ददक अर्थ है 'आनन्द'। काव्य को पढ़ने या
सुनने से ब्िस आनन्द की अनुभूतत होत है, उसे 'रस'
कहा िाता है।
 पाठक या श्रोता के हृदय में ब्थर्त थर्ाय भाव ही
ववभावादद से सांयुक्त होकर रस के रूप में पररणत हो
िाता है।
 रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण तत्व' माना िाता
है।
 शृंगार रस को रसराि या रसपतत कहा गया है। मुख्यत: सांयोग तर्ा
ववप्रलांभ या ववयोग के नाम से दो भागों में ववभाब्ित ककया िाता है,
ककां तु धनांिय आदद कु छ ववद्वान् ववप्रलांभ के पूवाथनुराग भेद को
सांयोग-ववप्रलांभ-ववरदहत पूवाथवथर्ा मानकर अयोग की सांज्ञा देते हैं तर्ा
शेष ववप्रयोग तर्ा सांभोग नाम से दो भेद और करते हैं। सांयोग की
अनेक पररब्थर्ततयों के आधार पर उसे अगणेय मानकर उसे के वल
आश्रय भेद से नायकारदध, नातयकारदध अर्वा उभयारदध, प्रकाशन के
ववचार से प्रच्छन्न तर्ा प्रकाश या थपष्ट और गुप्त तर्ा
प्रकाशनप्रकार के ववचार से सांक्षक्षप्त, सांकीणथ, सांपन्नतर तर्ा
समृद्धधमान नामक भेद ककए िाते हैं तर्ा ववप्रलांभ के पूवाथनुराग या
अभभलाषहेतुक, मान या ईश्र्याहेतुक, प्रवास, ववरह तर्ा करुण वप्रलांभ
नामक भेद ककए गए हैं। शृांगार रस के अांतगथत
नातयकालांकार, ऋतु तर्ा प्रकृ तत का भ वणथन ककया िाता है।
उदाहरण
 सांयोग शृांगार
बतरस लालच लाल की, मुरली धरर लुकाय।
सौंह करे, भौंहतन हँसै, दैन कहै, नदट िाय।
-बबहारी लाल
 ववयोग शृांगार (ववप्रलांभ शृांगार)
तनभसददन बरसत नयन हमारे,
सदा रहतत पावस ऋतु हम पै िब ते थयाम भसधारे॥
-सूरदास
2.हास्य रस
 हास्य रस का स्थायी भाव हास है।
‘साहहत्यदर्पण’ में कहा गया है -
"बागाहदवैकतैश्चेतोववकासो हास इष्यते", अथापत
वाणी, रूर् आहद के ववकारों को देखकर चचत्त का
ववकससत होना ‘हास’ कहा जाता है।
उदाहरण
 तांबूरा ले मांच पर बैठे प्रेमप्रताप, साि भमले पांद्रह
भमनट घांटा भर आलाप।
घांटा भर आलाप, राग में मारा गोता, ध रे-ध रे
खिसक चुके र्े सारे श्रोता। (काका हार्रस )
3. करुण रस
 भरतमुतन के ‘नाट्यशाथर’ में प्रततपाददत आठ नाट्यरसों
में शृांगार और हाथय के अनन्तर तर्ा रौद्र से पूवथ करुण रस की
गणना की गई है। ‘रौद्रात्तु करुणो रस:’ कहकर 'करुण रस' की उत्पवत्त
'रौद्र रस' से मान गई है और उसका वणथ कपोत के सदृश
है तर्ा देवता यमराि बताये गये हैं भरत ने ही करुण रस का
ववशेष वववरण देते हुए उसके थर्ाय भाव का नाम ‘शोक’ ददया
हैI और उसकी उत्पवत्त शापिन्य क्लेश ववतनपात, इष्टिन-ववप्रयोग,
ववभव नाश, वध, बन्धन, ववद्रव अर्ाथत पलायन, अपघात, व्यसन
अर्ाथत आपवत्त आदद ववभावों के सांयोग से थव कार की है। सार् ही
करुण रस के अभभनय में अश्रुपातन, पररदेवन अर्ाथत् ववलाप,
मुिशोषण, वैवर्णयथ, रथतागारता, तन:श्वास, थमृततववलोप आदद
अनुभावों के प्रयोग का तनदेश भ कहा गया है। किर तनवेद, ग्लातन,
धचन्ता, औत्सुक्य, आवेग, मोह, श्रम, भय, ववषाद, दैन्य, व्याधध,
िड़ता, उन्माद, अपथमार, रास, आलथय, मरण, थतम्भ, वेपर्ु,
वेवर्णयथ, अश्रु, थवरभेद आदद की व्यभभचारी या सांचारी भाव के रूप में
पररगखणत ककया है I
उदाहरण
 सोक बबकल सब रोवदहां रान । रूपु स लु बलु तेिु
बिान ॥
करदहां ववलाप अनेक प्रकारा। पररदहां भूभम तल बारदहां
बारा॥(तुलस दास)
4. व र रस
शृांगार के सार् थपधाथ करने वाला व र रस है। शृांगार, रौद्र तर्ा व भत्स के सार्
व र को भ भरत मुतन ने मूल रसों में पररगखणत ककया है। व र रस से
ही अदभुत रस की उत्पवत्त बतलाई गई है। व र रस का 'वणथ' 'थवणथ' अर्वा
'गौर' तर्ा देवता इन्द्र कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकृ तत वालो से सम्बद्ध है
तर्ा इसका थर्ाय भाव ‘उत्साह’ है - ‘अर् व रो नाम
उत्तमप्रकृ ततरुत्साहत्मक:’। भानुदत्त के अनुसार, पूणथतया पररथिु ट ‘उत्साह’
अर्वा सम्पूणथ इब्न्द्रयों का प्रहषथ या उत्िु ल्लता व र रस है - ‘पररपूणथ
उत्साह: सवेब्न्द्रयाणाां प्रहषो वा व र:।’
दहन्दी के आचायथ सोमनार् ने व र रस की पररभाषा की है -
‘िब कववत्त में सुनत ही व्यांग्य होय उत्साह। तहाँ व र रस समखियो चौबबधध के
कववनाह।’ सामान्यत: रौद्र एवां व र रसों की पहचान में कदठनाई होत है।
इसका कारण यह है कक दोनों के उपादान बहुधा एक - दूसरे से भमलते-िुलते
हैं। दोनों के आलम्बन शरु तर्ा उद्दीपन उनकी चेष्टाएँ हैं। दोनों
के व्यभभचाररयों तर्ा अनुभावों में भ सादृश्य हैं। कभ -कभ रौद्रता में व रत्व
तर्ा व रता में रौद्रवत का आभास भमलता है। इन कारणों से कु छ ववद्वान
रौद्र का अन्तभाथव व र में और कु छ व र का अन्तभाथव रौद्र में करने के
अनुमोदक हैं, लेककन रौद्र रस के थर्ाय भाव क्रोध तर्ा व र रस के थर्ाय
भाव उत्साह में अन्तर थपष्ट है।
उदाहरण
 व र तुम बढ़े चलो, ध र तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो कक भसांह की दहाड़ हो।
तुम कभ रुको नहीां, तुम कभ िुको नहीां॥
(द्वाररका प्रसाद माहेश्वरी)
5. रौद्र रस
काव्यगत रसों में रौद्र रस का महत्त्वपूणथ थर्ान
है। भरत ने ‘नाट्यशाथर’ में शृांगार,
रौद्र, व र तर्ा व भत्स, इन चार रसों को ही
प्रधान माना है, अत: इन्हीां से अन्य रसों की
उत्पवत्त बताय है, यर्ा-‘तेषामुत्पवत्तहेतवच्क्षत्वारो
रसा: शृांगारो रौद्रो व रो व भत्स इतत’ । रौद्र
से करुण रस की उत्पवत्त बताते हुए भरत कहते हैं
कक ‘रौद्रथयैव च यत्कमथ स शेय: करुणो
रस:’ ।रौद्र रस का कमथ ही करुण रस का िनक
होता हैI
उदाहरण
 श्र कृ ष्ण के सुन वचन अिुथन क्षोभ से िलने
लगे।
सब श ल अपना भूल कर करतल युगल मलने
लगे॥
सांसार देिे अब हमारे शरु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर िड़े॥
 (मैधर्लीशरण गुप्त)
6.भयानक रस
भयानक रस दहन्दी काव्य में मान्य नौ रसों में से एक
है। भानुदत्त के अनुसार, ‘भय का पररपोष’ अर्वा
‘सम्पूणथ इब्न्द्रयों का ववक्षोभ’ भयानक रस है। अर्ाथत
भयोत्पादक वथतुओां के दशथन या श्रवण से अर्वा शरु
इत्यादद के ववद्रोहपूणथ आचरण से है, तब वहाँ
भयानक रस होता है। दहन्दी के आचायथ सोमनार् ने
‘रसप यूषतनधध’ में भयानक रस की तनम्न पररभाषा
दी है-
‘सुतन कववत्त में व्यांधग भय िब ही परगट होय। तहीां
भयानक रस बरतन कहै सबै कवव लोय’।
उदाहरण
 उधर गरित भसांधु लहररयाँ कु दटल काल के िालों स ।
चली आ रहीां िे न उगलत िन िै लाये व्यालों - स ॥
(ियशांकर प्रसाद)
7. ब भत्स रस
ब भत्स रस काव्य में मान्य नव रसों में अपना
ववभशष्ट थर्ान रिता है। इसकी ब्थर्तत दु:िात्मक
रसों में मान िात है। इस दृब्ष्ट से करुण, भयानक
तर्ा रौद्र, ये त न रस इसके सहयोग या सहचर
भसद्ध होते हैं। शान्त रस से भ इसकी तनकटता
मान्य है, क्योंकक बहुधा ब भत्सता का दशथन वैराग्य
की प्रेरणा देता है और अन्तत: शान्त रस के थर्ाय
भाव शम का पोषण करता है।
उदाहरण
 भसर पर बैठ्यो काग आँि दोउ िात तनकारत।
ि ांचत ि भदहां थयार अततदह आनांद उर धारत॥
ग ध िाांतघ को िोदद-िोदद कै माँस उपारत।
थवान आांगुररन कादट-कादट कै िात ववदारत॥
(भारतेन्दु)
8. अद्भुत रस
अद्भुत रस ‘ववथमयथय सम्यक्समृद्धधरद्भुत:
सवेब्न्द्रयाणाां ताटथ्यां या’। अर्ाथत ववथमय की
सम्यक समृद्धध अर्वा सम्पूणथ इब्न्द्रयों की तटथर्ता
अदभुत रस है। कहने का अभभप्राय यह है कक िब
ककस रचना में ववथमय 'थर्ाय भाव' इस प्रकार
पूणथतया प्रथिु ट हो कक सम्पूणथ इब्न्द्रयाँ उससे
अभभभाववत होकर तनश्चेष्ट बन िाएँ, तब वहाँ
अद्भुत रस की तनष्पवत्त होत है।
उदाहरण
 अखिल भुवन चर- अचर सब, हरर मुि में लखि मातु।
चककत भई गद्गद् वचन, ववकभसत दृग पुलकातु॥
(सेनापतत)
9. शाांत रस
शान्त रस सादहत्य में प्रभसद्ध नौ रसों में अब्न्तम रस
माना िाता है - "शान्तोऽवप नवमो रस:।" इसका
कारण यह है कक भरतमुतन के ‘नाट्यशाथर’ में, िो
रस वववेचन का आदद स्रोत है, नाट्य रसों के रूप में
के वल आठ रसों का ही वणथन भमलता है। शान्त के
उस रूप में भरतमुतन ने मान्यता प्रदान नहीां की,
ब्िस रूप में शृांगार, व र आदद रसों की, और न उसके
ववभाव, अनुभाव और सांचारी भावों का ही वैसा थपष्ट
तनरूपण ककया।
उदाहरण
 मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बबनभस िाय तछन में, गरब करै क्या इतना॥
(कब र)
10. वात्सल्य रस
 वात्सल्य रस का थर्ाय भाव है। माता-वपता का अपने पुरादद पर िो नैसधगथक थनेह होता है,
उसे ‘वात्सल्य’ कहते हैं। मैकडुगल आदद मनथतत्त्वववदों ने वात्सल्य को प्रधान, मौभलक भावों
में पररगखणत ककया है, व्यावहाररक अनुभव भ यह बताता है कक अपत्य-थनेह दाम्पत्य रस से
र्ोड़ ही कम प्रभववष्णुतावाला मनोभाव है।
 सांथकृ त के प्राच न आचायों ने देवाददववषयक रतत को के वल ‘भाव’ ठहराया है तर्ा वात्सल्य
को इस प्रकार की ‘रतत’ माना है, िो थर्ाय भाव के तुल्य, उनकी दृब्ष्ट में चवणीय नहीां है
 सोमेश्वर भब्क्त एवां वात्सल्य को ‘रतत’ के ही ववशेष रूप मानते हैं - ‘थनेहो
भब्क्तवाथत्सल्यभमतत रतेरेव ववशेष:’, लेककन अपत्य-थनेह की उत्कटता, आथवादन यता,
पुरुषार्ोपयोधगता इत्यादद गुणों पर ववचार करने से प्रत त होता है कक वात्सल्य एक थवतांर
प्रधान भाव है, िो थर्ाय ही समिा िाना चादहए।
 भोि इत्यादद कततपय आचायों ने इसकी सत्ता का प्राधान्य थव कार ककया है।
 ववश्वनार् ने प्रथिु ट चमत्कार के कारण वत्सल रस का थवतांर अब्थतत्व तनरूवपत कर
‘वत्सलता-थनेह’ को इसका थर्ाय भाव थपष्ट रूप से माना है - ‘थर्ाय वत्सलता-थनेह:
पुरार्ालम्बनां मतम्’।
 हषथ, गवथ, आवेग, अतनष्ट की आशांका इत्यादद वात्सल्य के व्यभभचारी भाव हैं। उदाहरण -
 ‘चलत देखि िसुमतत सुि पावै।
ठु मुकक ठु मुकक पग धरन रेंगत, िनन देखि ददिावै’ इसमें के वल वात्सल्य भाव व्यांब्ित है,
थर्ाय का पररथिु टन नहीां हुआ है।
उदाहरण
 ककलकत कान्ह घुटरुवन आवत।
मतनमय कनक नांद के आांगन बबम्ब पकररवे घावत॥
(सूरदास)
11. भब्क्त रस
भरतमुतन से लेकर पब्र्णडतराि िगन्नार् तक सांथकृ त के ककस
प्रमुि काव्याचायथ ने ‘भब्क्त रस’ को रसशाथर के अन्तगथत
मान्यता प्रदान नहीां की। ब्िन ववश्वनार् ने वाक्यां रसात्मकां
काव्यम ् के भसद्धान्त का प्रततपादन ककया और ‘मुतन-वचन’ का
उल्लघांन करते हुए वात्सल्य को नव रसों के समकक्ष साांगोपाांग
थर्ावपत ककया, उन्होंने भ 'भब्क्त' को रस नहीां माना। भब्क्त
रस की भसद्धध का वाथतववक स्रोत काव्यशाथर न होकर
भब्क्तशाथर है, ब्िसमें मुख्यतया ‘ग ता’, ‘भागवत’, ‘शाब्र्णडल्य
भब्क्तसूर’, ‘नारद भब्क्तसूर’, ‘भब्क्त रसायन’ तर्ा
‘हररभब्क्तरसामृतभसन्धु’ प्रभूतत ग्रन्र्ों की गणना की िा सकत
है।
उदाहरण
 राम िपु, राम िपु, राम
िपु बावरे।
घोर भव न र- तनधध,
नाम तनि नाव रे॥
भब्क्तकाल के
प्रमुि कवव
1. म रा बाई
मीराबाई कृ ष्ण-भब्क्त शािा की प्रमुि कवतयर हैं। उनका
िन्म १५०४ ईथव में िोधपुर के पास मेड्ता ग्राम मे हुआ र्ा
कु ड्की में म रा बाई का नतनहाल र्ा। उनके वपता का नाम
रत्नभसांह र्ा। उनके पतत कुां वर भोिराि उदयपुर के महाराणा
साांगा के पुर र्े। वववाह के कु छ समय बाद ही उनके पतत का
देहान्त हो गया। पतत की मृत्यु के बाद उन्हे पतत के सार्
सत करने का प्रयास ककया गया ककन्तु म राां इसके भलए
तैयार नही हुई | वे सांसार की ओर से ववरक्त हो गय ां और
साधु-सांतों की सांगतत में हररकीतथन करते हुए अपना समय
व्यत त करने लग ां। कु छ समय बाद उन्होंने घर का त्याग कर
ददया और त र्ाथटन को तनकल गईं। वे बहुत ददनों
तक वृन्दावन में रहीां और किर द्वाररका चली गईं। िहाँ
सांवत १५६० ईथव में वो भगवान कृ ष्ण कक मूततथ मे समा गई
। म रा बाई ने कृ ष्ण-भब्क्त के थिु ट पदों की रचना की है।
ि वन पररचय
कृ ष्णभब्क्त शािा की दहांदी की महान कवतयर हैं। उनकी कववताओां
में थर पराध नता के प्रत एक गहरी टीस है, िो भब्क्त के रांग में
रांग कर और गहरी हो गय है।म राांबाई का िन्म सांवत ् 1504 में
िोधपुर में कु रकी नामक गाँव में हुआ र्ा। इनका वववाह उदयपुर
के महाराणा कु मार भोिराि के सार् हुआ र्ा। ये बचपन से ही
कृ ष्णभब्क्त में रुधच लेने लग र् ां वववाह के र्ोड़े ही ददन के बाद
उनके पतत का थवगथवास हो गया र्ा। पतत के परलोकवास के बाद
इनकी भब्क्त ददन- प्रततददन बढ़त गई। ये मांददरों में िाकर वहाँ
मौिूद कृ ष्णभक्तों के सामने कृ ष्णि की मूततथ के आगे नाचत
रहत र् ां। म राांबाईका कृ ष्णभब्क्त में नाचना और गाना राि
पररवार को अच्छा नहीां लगा। उन्होंने कई बार म राबाई को ववष
देकर मारने की कोभशश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से
परेशान होकर वह द्वारका और वृांदावन गईं। वह िहाँ िात र् ां,
वहाँ लोगों का सम्मान भमलता र्ा। लोग आपको देववयों के िैसा
प्यार और सम्मान देते र्े। इस दौरान उन्होंने तुलस दास को पर
भलिा र्ा :-
थवब्थत श्र तुलस कु लभूषण दूषन- हरन गोसाई। बारदहां
बार प्रनाम करहूँ अब हरहूँ सोक- समुदाई।। घर के थविन
हमारे िेते सबन्ह उपाधध बढ़ाई। साधु- सग अरु भिन
करत मादहां देत कलेस महाई।। मेरे माता- वपता के समहौ,
हररभक्तन्ह सुिदाई। हमको कहा उधचत कररबो है, सो
भलखिए समिाई।।
म राबाई के पर का िबाव तुलस दास ने इस प्रकार ददया:-
िाके वप्रय न राम बैदेही। सो नर तब्िए कोदट बैरी सम
िद्यवप परम सनेहा।। नाते सबै राम के मतनयत सुह्मद
सुसांख्य िहाँ लौ। अांिन कहा आँखि िो िू टे, बहुतक कहो
कहाां लौ।।
पद
बसौ मोरे नैनन में नांदलाल।
मोहतन मूरतत, साांवरी सूरतत, नैना बने बबसाल।
मोर मुकु ट, मकराकृ त कां ुुडल, अस्र्ण ततलक ददये
भाल।
अधर सुधारस मुरली राितत, उर बैिांत माल।
छु द्र घांदटका कदट तट सोभभत, नूपुर सबद रसाल।
म राां प्रभु सांतन सुिदाई, भगत बछल गोपाल।
समाप्त

Contenu connexe

Tendances (20)

PPt on Ras Hindi grammer
PPt on Ras Hindi grammer PPt on Ras Hindi grammer
PPt on Ras Hindi grammer
 
Alankar
AlankarAlankar
Alankar
 
Sanskrit presention
Sanskrit presention Sanskrit presention
Sanskrit presention
 
समास
समाससमास
समास
 
Alankar
AlankarAlankar
Alankar
 
alankar
alankaralankar
alankar
 
Karak ppt
Karak ppt Karak ppt
Karak ppt
 
Shabd vichar
Shabd vicharShabd vichar
Shabd vichar
 
व्याकरण विशेषण
व्याकरण विशेषण व्याकरण विशेषण
व्याकरण विशेषण
 
alankar(अलंकार)
alankar(अलंकार)alankar(अलंकार)
alankar(अलंकार)
 
Hindi presentation on ras
Hindi presentation on rasHindi presentation on ras
Hindi presentation on ras
 
अलंकार
अलंकारअलंकार
अलंकार
 
छंद एक परिचय
छंद  एक  परिचयछंद  एक  परिचय
छंद एक परिचय
 
Vakya bhed hindi
Vakya bhed hindiVakya bhed hindi
Vakya bhed hindi
 
ALANKAR.pptx
ALANKAR.pptxALANKAR.pptx
ALANKAR.pptx
 
samas (2).ppt
samas (2).pptsamas (2).ppt
samas (2).ppt
 
Aalankar
Aalankar Aalankar
Aalankar
 
हिंदी वर्णमाला
हिंदी वर्णमाला हिंदी वर्णमाला
हिंदी वर्णमाला
 
हिन्दी व्याकरण Class 10
हिन्दी व्याकरण Class 10हिन्दी व्याकरण Class 10
हिन्दी व्याकरण Class 10
 
Samas
SamasSamas
Samas
 

En vedette

Prashant tiwari hindi ppt on
Prashant tiwari hindi ppt on Prashant tiwari hindi ppt on
Prashant tiwari hindi ppt on Prashant tiwari
 
Saras hindi vyakran contents
Saras hindi vyakran contentsSaras hindi vyakran contents
Saras hindi vyakran contentsLearnTechDesign
 
रस (काव्य शास्त्र)
रस (काव्य शास्त्र)रस (काव्य शास्त्र)
रस (काव्य शास्त्र)Nand Lal Bagda
 
क्रिया विशेषण
क्रिया विशेषणक्रिया विशेषण
क्रिया विशेषणARJUN RASTOGI
 
Ppt on alankar of xi g
Ppt on alankar of xi gPpt on alankar of xi g
Ppt on alankar of xi gSahil Raturi
 
Present state of tourism in Nepal
Present state of tourism in NepalPresent state of tourism in Nepal
Present state of tourism in NepalPradeep Acharya
 
संस्कृत ( SANSKRIT GAME quiz type)
संस्कृत ( SANSKRIT GAME quiz type)संस्कृत ( SANSKRIT GAME quiz type)
संस्कृत ( SANSKRIT GAME quiz type)Udyan Ojha
 
Culture of Mumbai ppt
Culture of Mumbai pptCulture of Mumbai ppt
Culture of Mumbai pptSumit Rajguru
 
अलंकार
अलंकारअलंकार
अलंकारRubby Sharma
 
Safety poem marathi by C D Sortey
Safety poem  marathi by C D SorteySafety poem  marathi by C D Sortey
Safety poem marathi by C D SorteyMSPGCL
 
वसंत पंचमी
वसंत पंचमीवसंत पंचमी
वसंत पंचमीDrSunita Pamnani
 
India culture
India cultureIndia culture
India cultureJNTU
 
presentation on diwali by shweta
presentation on diwali by shwetapresentation on diwali by shweta
presentation on diwali by shwetaShweta Verma
 

En vedette (20)

Prashant tiwari hindi ppt on
Prashant tiwari hindi ppt on Prashant tiwari hindi ppt on
Prashant tiwari hindi ppt on
 
Saras hindi vyakran contents
Saras hindi vyakran contentsSaras hindi vyakran contents
Saras hindi vyakran contents
 
Presentation1
Presentation1Presentation1
Presentation1
 
रस (काव्य शास्त्र)
रस (काव्य शास्त्र)रस (काव्य शास्त्र)
रस (काव्य शास्त्र)
 
Ras Ppt
Ras PptRas Ppt
Ras Ppt
 
Kriya
KriyaKriya
Kriya
 
festivals of nepal
festivals of nepalfestivals of nepal
festivals of nepal
 
क्रिया विशेषण
क्रिया विशेषणक्रिया विशेषण
क्रिया विशेषण
 
Ppt on alankar of xi g
Ppt on alankar of xi gPpt on alankar of xi g
Ppt on alankar of xi g
 
Hindi Samas
Hindi SamasHindi Samas
Hindi Samas
 
Present state of tourism in Nepal
Present state of tourism in NepalPresent state of tourism in Nepal
Present state of tourism in Nepal
 
संस्कृत ( SANSKRIT GAME quiz type)
संस्कृत ( SANSKRIT GAME quiz type)संस्कृत ( SANSKRIT GAME quiz type)
संस्कृत ( SANSKRIT GAME quiz type)
 
Culture of Mumbai ppt
Culture of Mumbai pptCulture of Mumbai ppt
Culture of Mumbai ppt
 
Mohit dahiya
Mohit dahiya Mohit dahiya
Mohit dahiya
 
अलंकार
अलंकारअलंकार
अलंकार
 
Safety poem marathi by C D Sortey
Safety poem  marathi by C D SorteySafety poem  marathi by C D Sortey
Safety poem marathi by C D Sortey
 
वसंत पंचमी
वसंत पंचमीवसंत पंचमी
वसंत पंचमी
 
Sangya
SangyaSangya
Sangya
 
India culture
India cultureIndia culture
India culture
 
presentation on diwali by shweta
presentation on diwali by shwetapresentation on diwali by shweta
presentation on diwali by shweta
 

Similaire à Prashant tiwari on hindi ras ppt.....

radha-sudha-nidhi-full-book.pdf
radha-sudha-nidhi-full-book.pdfradha-sudha-nidhi-full-book.pdf
radha-sudha-nidhi-full-book.pdfNeerajOjha17
 
वाच्य एवं रस
 वाच्य एवं रस  वाच्य एवं रस
वाच्य एवं रस shivsundarsahoo
 
इकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptxइकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptxUdhavBhandare
 
हिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरणहिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरणAdvetya Pillai
 
तत्पुरुष (विभक्ति, उपपद ऽ नञ्)
तत्पुरुष (विभक्ति, उपपद ऽ नञ्)तत्पुरुष (विभक्ति, उपपद ऽ नञ्)
तत्पुरुष (विभक्ति, उपपद ऽ नञ्)Dev Chauhan
 
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)Neelam Sharma
 
Parada bandha
Parada bandhaParada bandha
Parada bandhaEbinuday
 
शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय Virag Sontakke
 
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...VaidyaSonaliSharma
 
Jaatharini (Kashyap samhita, Revati kalp )
Jaatharini (Kashyap samhita, Revati kalp )Jaatharini (Kashyap samhita, Revati kalp )
Jaatharini (Kashyap samhita, Revati kalp )Dr. Vijay Kumar Pathak
 
Jap mahima
Jap mahimaJap mahima
Jap mahimagurusewa
 
Shri narayanstuti
Shri narayanstutiShri narayanstuti
Shri narayanstutigurusewa
 
Gurutva jyotish nov 2011
Gurutva jyotish nov 2011Gurutva jyotish nov 2011
Gurutva jyotish nov 2011GURUTVAKARYALAY
 
Ram laxman parsuram sanbad
Ram laxman parsuram sanbadRam laxman parsuram sanbad
Ram laxman parsuram sanbadRethik Mukharjee
 

Similaire à Prashant tiwari on hindi ras ppt..... (20)

radha-sudha-nidhi-full-book.pdf
radha-sudha-nidhi-full-book.pdfradha-sudha-nidhi-full-book.pdf
radha-sudha-nidhi-full-book.pdf
 
वाच्य एवं रस
 वाच्य एवं रस  वाच्य एवं रस
वाच्य एवं रस
 
इकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptxइकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptx
 
हिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरणहिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरण
 
Mimansa philosophy
Mimansa philosophyMimansa philosophy
Mimansa philosophy
 
तत्पुरुष (विभक्ति, उपपद ऽ नञ्)
तत्पुरुष (विभक्ति, उपपद ऽ नञ्)तत्पुरुष (विभक्ति, उपपद ऽ नञ्)
तत्पुरुष (विभक्ति, उपपद ऽ नञ्)
 
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
Kavya gun ( kavyapraksh 8 ullas)
 
Parada bandha
Parada bandhaParada bandha
Parada bandha
 
शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय
 
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
tachilya- important topic to understand the deep concepts of samhita and ayur...
 
Jaatharini (Kashyap samhita, Revati kalp )
Jaatharini (Kashyap samhita, Revati kalp )Jaatharini (Kashyap samhita, Revati kalp )
Jaatharini (Kashyap samhita, Revati kalp )
 
bhagwannamjapmahima
bhagwannamjapmahimabhagwannamjapmahima
bhagwannamjapmahima
 
Jap mahima
Jap mahimaJap mahima
Jap mahima
 
alankar
alankaralankar
alankar
 
Days of the Week.pptx
Days of the Week.pptxDays of the Week.pptx
Days of the Week.pptx
 
Shri narayanstuti
Shri narayanstutiShri narayanstuti
Shri narayanstuti
 
ShriNarayanStuti
ShriNarayanStutiShriNarayanStuti
ShriNarayanStuti
 
Gurutva jyotish nov 2011
Gurutva jyotish nov 2011Gurutva jyotish nov 2011
Gurutva jyotish nov 2011
 
Paper 7 criticism
Paper 7 criticismPaper 7 criticism
Paper 7 criticism
 
Ram laxman parsuram sanbad
Ram laxman parsuram sanbadRam laxman parsuram sanbad
Ram laxman parsuram sanbad
 

Prashant tiwari on hindi ras ppt.....

  • 1. नाम - प्रशाांत ततवारी अनुक्रमाांक - 33 कक्षा - दसव ां-अ
  • 2. रस का शाब्ददक अर्थ है 'आनन्द'। काव्य को पढ़ने या सुनने से ब्िस आनन्द की अनुभूतत होत है, उसे 'रस' कहा िाता है।  पाठक या श्रोता के हृदय में ब्थर्त थर्ाय भाव ही ववभावादद से सांयुक्त होकर रस के रूप में पररणत हो िाता है।  रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण तत्व' माना िाता है।
  • 3.
  • 4.  शृंगार रस को रसराि या रसपतत कहा गया है। मुख्यत: सांयोग तर्ा ववप्रलांभ या ववयोग के नाम से दो भागों में ववभाब्ित ककया िाता है, ककां तु धनांिय आदद कु छ ववद्वान् ववप्रलांभ के पूवाथनुराग भेद को सांयोग-ववप्रलांभ-ववरदहत पूवाथवथर्ा मानकर अयोग की सांज्ञा देते हैं तर्ा शेष ववप्रयोग तर्ा सांभोग नाम से दो भेद और करते हैं। सांयोग की अनेक पररब्थर्ततयों के आधार पर उसे अगणेय मानकर उसे के वल आश्रय भेद से नायकारदध, नातयकारदध अर्वा उभयारदध, प्रकाशन के ववचार से प्रच्छन्न तर्ा प्रकाश या थपष्ट और गुप्त तर्ा प्रकाशनप्रकार के ववचार से सांक्षक्षप्त, सांकीणथ, सांपन्नतर तर्ा समृद्धधमान नामक भेद ककए िाते हैं तर्ा ववप्रलांभ के पूवाथनुराग या अभभलाषहेतुक, मान या ईश्र्याहेतुक, प्रवास, ववरह तर्ा करुण वप्रलांभ नामक भेद ककए गए हैं। शृांगार रस के अांतगथत नातयकालांकार, ऋतु तर्ा प्रकृ तत का भ वणथन ककया िाता है।
  • 5. उदाहरण  सांयोग शृांगार बतरस लालच लाल की, मुरली धरर लुकाय। सौंह करे, भौंहतन हँसै, दैन कहै, नदट िाय। -बबहारी लाल  ववयोग शृांगार (ववप्रलांभ शृांगार) तनभसददन बरसत नयन हमारे, सदा रहतत पावस ऋतु हम पै िब ते थयाम भसधारे॥ -सूरदास
  • 6. 2.हास्य रस  हास्य रस का स्थायी भाव हास है। ‘साहहत्यदर्पण’ में कहा गया है - "बागाहदवैकतैश्चेतोववकासो हास इष्यते", अथापत वाणी, रूर् आहद के ववकारों को देखकर चचत्त का ववकससत होना ‘हास’ कहा जाता है।
  • 7. उदाहरण  तांबूरा ले मांच पर बैठे प्रेमप्रताप, साि भमले पांद्रह भमनट घांटा भर आलाप। घांटा भर आलाप, राग में मारा गोता, ध रे-ध रे खिसक चुके र्े सारे श्रोता। (काका हार्रस )
  • 8. 3. करुण रस  भरतमुतन के ‘नाट्यशाथर’ में प्रततपाददत आठ नाट्यरसों में शृांगार और हाथय के अनन्तर तर्ा रौद्र से पूवथ करुण रस की गणना की गई है। ‘रौद्रात्तु करुणो रस:’ कहकर 'करुण रस' की उत्पवत्त 'रौद्र रस' से मान गई है और उसका वणथ कपोत के सदृश है तर्ा देवता यमराि बताये गये हैं भरत ने ही करुण रस का ववशेष वववरण देते हुए उसके थर्ाय भाव का नाम ‘शोक’ ददया हैI और उसकी उत्पवत्त शापिन्य क्लेश ववतनपात, इष्टिन-ववप्रयोग, ववभव नाश, वध, बन्धन, ववद्रव अर्ाथत पलायन, अपघात, व्यसन अर्ाथत आपवत्त आदद ववभावों के सांयोग से थव कार की है। सार् ही करुण रस के अभभनय में अश्रुपातन, पररदेवन अर्ाथत् ववलाप, मुिशोषण, वैवर्णयथ, रथतागारता, तन:श्वास, थमृततववलोप आदद अनुभावों के प्रयोग का तनदेश भ कहा गया है। किर तनवेद, ग्लातन, धचन्ता, औत्सुक्य, आवेग, मोह, श्रम, भय, ववषाद, दैन्य, व्याधध, िड़ता, उन्माद, अपथमार, रास, आलथय, मरण, थतम्भ, वेपर्ु, वेवर्णयथ, अश्रु, थवरभेद आदद की व्यभभचारी या सांचारी भाव के रूप में पररगखणत ककया है I
  • 9. उदाहरण  सोक बबकल सब रोवदहां रान । रूपु स लु बलु तेिु बिान ॥ करदहां ववलाप अनेक प्रकारा। पररदहां भूभम तल बारदहां बारा॥(तुलस दास)
  • 10. 4. व र रस शृांगार के सार् थपधाथ करने वाला व र रस है। शृांगार, रौद्र तर्ा व भत्स के सार् व र को भ भरत मुतन ने मूल रसों में पररगखणत ककया है। व र रस से ही अदभुत रस की उत्पवत्त बतलाई गई है। व र रस का 'वणथ' 'थवणथ' अर्वा 'गौर' तर्ा देवता इन्द्र कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकृ तत वालो से सम्बद्ध है तर्ा इसका थर्ाय भाव ‘उत्साह’ है - ‘अर् व रो नाम उत्तमप्रकृ ततरुत्साहत्मक:’। भानुदत्त के अनुसार, पूणथतया पररथिु ट ‘उत्साह’ अर्वा सम्पूणथ इब्न्द्रयों का प्रहषथ या उत्िु ल्लता व र रस है - ‘पररपूणथ उत्साह: सवेब्न्द्रयाणाां प्रहषो वा व र:।’ दहन्दी के आचायथ सोमनार् ने व र रस की पररभाषा की है - ‘िब कववत्त में सुनत ही व्यांग्य होय उत्साह। तहाँ व र रस समखियो चौबबधध के कववनाह।’ सामान्यत: रौद्र एवां व र रसों की पहचान में कदठनाई होत है। इसका कारण यह है कक दोनों के उपादान बहुधा एक - दूसरे से भमलते-िुलते हैं। दोनों के आलम्बन शरु तर्ा उद्दीपन उनकी चेष्टाएँ हैं। दोनों के व्यभभचाररयों तर्ा अनुभावों में भ सादृश्य हैं। कभ -कभ रौद्रता में व रत्व तर्ा व रता में रौद्रवत का आभास भमलता है। इन कारणों से कु छ ववद्वान रौद्र का अन्तभाथव व र में और कु छ व र का अन्तभाथव रौद्र में करने के अनुमोदक हैं, लेककन रौद्र रस के थर्ाय भाव क्रोध तर्ा व र रस के थर्ाय भाव उत्साह में अन्तर थपष्ट है।
  • 11. उदाहरण  व र तुम बढ़े चलो, ध र तुम बढ़े चलो। सामने पहाड़ हो कक भसांह की दहाड़ हो। तुम कभ रुको नहीां, तुम कभ िुको नहीां॥ (द्वाररका प्रसाद माहेश्वरी)
  • 12. 5. रौद्र रस काव्यगत रसों में रौद्र रस का महत्त्वपूणथ थर्ान है। भरत ने ‘नाट्यशाथर’ में शृांगार, रौद्र, व र तर्ा व भत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, अत: इन्हीां से अन्य रसों की उत्पवत्त बताय है, यर्ा-‘तेषामुत्पवत्तहेतवच्क्षत्वारो रसा: शृांगारो रौद्रो व रो व भत्स इतत’ । रौद्र से करुण रस की उत्पवत्त बताते हुए भरत कहते हैं कक ‘रौद्रथयैव च यत्कमथ स शेय: करुणो रस:’ ।रौद्र रस का कमथ ही करुण रस का िनक होता हैI
  • 13. उदाहरण  श्र कृ ष्ण के सुन वचन अिुथन क्षोभ से िलने लगे। सब श ल अपना भूल कर करतल युगल मलने लगे॥ सांसार देिे अब हमारे शरु रण में मृत पड़े। करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर िड़े॥  (मैधर्लीशरण गुप्त)
  • 14. 6.भयानक रस भयानक रस दहन्दी काव्य में मान्य नौ रसों में से एक है। भानुदत्त के अनुसार, ‘भय का पररपोष’ अर्वा ‘सम्पूणथ इब्न्द्रयों का ववक्षोभ’ भयानक रस है। अर्ाथत भयोत्पादक वथतुओां के दशथन या श्रवण से अर्वा शरु इत्यादद के ववद्रोहपूणथ आचरण से है, तब वहाँ भयानक रस होता है। दहन्दी के आचायथ सोमनार् ने ‘रसप यूषतनधध’ में भयानक रस की तनम्न पररभाषा दी है- ‘सुतन कववत्त में व्यांधग भय िब ही परगट होय। तहीां भयानक रस बरतन कहै सबै कवव लोय’।
  • 15. उदाहरण  उधर गरित भसांधु लहररयाँ कु दटल काल के िालों स । चली आ रहीां िे न उगलत िन िै लाये व्यालों - स ॥ (ियशांकर प्रसाद)
  • 16. 7. ब भत्स रस ब भत्स रस काव्य में मान्य नव रसों में अपना ववभशष्ट थर्ान रिता है। इसकी ब्थर्तत दु:िात्मक रसों में मान िात है। इस दृब्ष्ट से करुण, भयानक तर्ा रौद्र, ये त न रस इसके सहयोग या सहचर भसद्ध होते हैं। शान्त रस से भ इसकी तनकटता मान्य है, क्योंकक बहुधा ब भत्सता का दशथन वैराग्य की प्रेरणा देता है और अन्तत: शान्त रस के थर्ाय भाव शम का पोषण करता है।
  • 17. उदाहरण  भसर पर बैठ्यो काग आँि दोउ िात तनकारत। ि ांचत ि भदहां थयार अततदह आनांद उर धारत॥ ग ध िाांतघ को िोदद-िोदद कै माँस उपारत। थवान आांगुररन कादट-कादट कै िात ववदारत॥ (भारतेन्दु)
  • 18. 8. अद्भुत रस अद्भुत रस ‘ववथमयथय सम्यक्समृद्धधरद्भुत: सवेब्न्द्रयाणाां ताटथ्यां या’। अर्ाथत ववथमय की सम्यक समृद्धध अर्वा सम्पूणथ इब्न्द्रयों की तटथर्ता अदभुत रस है। कहने का अभभप्राय यह है कक िब ककस रचना में ववथमय 'थर्ाय भाव' इस प्रकार पूणथतया प्रथिु ट हो कक सम्पूणथ इब्न्द्रयाँ उससे अभभभाववत होकर तनश्चेष्ट बन िाएँ, तब वहाँ अद्भुत रस की तनष्पवत्त होत है।
  • 19. उदाहरण  अखिल भुवन चर- अचर सब, हरर मुि में लखि मातु। चककत भई गद्गद् वचन, ववकभसत दृग पुलकातु॥ (सेनापतत)
  • 20. 9. शाांत रस शान्त रस सादहत्य में प्रभसद्ध नौ रसों में अब्न्तम रस माना िाता है - "शान्तोऽवप नवमो रस:।" इसका कारण यह है कक भरतमुतन के ‘नाट्यशाथर’ में, िो रस वववेचन का आदद स्रोत है, नाट्य रसों के रूप में के वल आठ रसों का ही वणथन भमलता है। शान्त के उस रूप में भरतमुतन ने मान्यता प्रदान नहीां की, ब्िस रूप में शृांगार, व र आदद रसों की, और न उसके ववभाव, अनुभाव और सांचारी भावों का ही वैसा थपष्ट तनरूपण ककया।
  • 21. उदाहरण  मन रे तन कागद का पुतला। लागै बूँद बबनभस िाय तछन में, गरब करै क्या इतना॥ (कब र)
  • 22. 10. वात्सल्य रस  वात्सल्य रस का थर्ाय भाव है। माता-वपता का अपने पुरादद पर िो नैसधगथक थनेह होता है, उसे ‘वात्सल्य’ कहते हैं। मैकडुगल आदद मनथतत्त्वववदों ने वात्सल्य को प्रधान, मौभलक भावों में पररगखणत ककया है, व्यावहाररक अनुभव भ यह बताता है कक अपत्य-थनेह दाम्पत्य रस से र्ोड़ ही कम प्रभववष्णुतावाला मनोभाव है।  सांथकृ त के प्राच न आचायों ने देवाददववषयक रतत को के वल ‘भाव’ ठहराया है तर्ा वात्सल्य को इस प्रकार की ‘रतत’ माना है, िो थर्ाय भाव के तुल्य, उनकी दृब्ष्ट में चवणीय नहीां है  सोमेश्वर भब्क्त एवां वात्सल्य को ‘रतत’ के ही ववशेष रूप मानते हैं - ‘थनेहो भब्क्तवाथत्सल्यभमतत रतेरेव ववशेष:’, लेककन अपत्य-थनेह की उत्कटता, आथवादन यता, पुरुषार्ोपयोधगता इत्यादद गुणों पर ववचार करने से प्रत त होता है कक वात्सल्य एक थवतांर प्रधान भाव है, िो थर्ाय ही समिा िाना चादहए।  भोि इत्यादद कततपय आचायों ने इसकी सत्ता का प्राधान्य थव कार ककया है।  ववश्वनार् ने प्रथिु ट चमत्कार के कारण वत्सल रस का थवतांर अब्थतत्व तनरूवपत कर ‘वत्सलता-थनेह’ को इसका थर्ाय भाव थपष्ट रूप से माना है - ‘थर्ाय वत्सलता-थनेह: पुरार्ालम्बनां मतम्’।  हषथ, गवथ, आवेग, अतनष्ट की आशांका इत्यादद वात्सल्य के व्यभभचारी भाव हैं। उदाहरण -  ‘चलत देखि िसुमतत सुि पावै। ठु मुकक ठु मुकक पग धरन रेंगत, िनन देखि ददिावै’ इसमें के वल वात्सल्य भाव व्यांब्ित है, थर्ाय का पररथिु टन नहीां हुआ है।
  • 23. उदाहरण  ककलकत कान्ह घुटरुवन आवत। मतनमय कनक नांद के आांगन बबम्ब पकररवे घावत॥ (सूरदास)
  • 24. 11. भब्क्त रस भरतमुतन से लेकर पब्र्णडतराि िगन्नार् तक सांथकृ त के ककस प्रमुि काव्याचायथ ने ‘भब्क्त रस’ को रसशाथर के अन्तगथत मान्यता प्रदान नहीां की। ब्िन ववश्वनार् ने वाक्यां रसात्मकां काव्यम ् के भसद्धान्त का प्रततपादन ककया और ‘मुतन-वचन’ का उल्लघांन करते हुए वात्सल्य को नव रसों के समकक्ष साांगोपाांग थर्ावपत ककया, उन्होंने भ 'भब्क्त' को रस नहीां माना। भब्क्त रस की भसद्धध का वाथतववक स्रोत काव्यशाथर न होकर भब्क्तशाथर है, ब्िसमें मुख्यतया ‘ग ता’, ‘भागवत’, ‘शाब्र्णडल्य भब्क्तसूर’, ‘नारद भब्क्तसूर’, ‘भब्क्त रसायन’ तर्ा ‘हररभब्क्तरसामृतभसन्धु’ प्रभूतत ग्रन्र्ों की गणना की िा सकत है।
  • 25. उदाहरण  राम िपु, राम िपु, राम िपु बावरे। घोर भव न र- तनधध, नाम तनि नाव रे॥
  • 27. 1. म रा बाई मीराबाई कृ ष्ण-भब्क्त शािा की प्रमुि कवतयर हैं। उनका िन्म १५०४ ईथव में िोधपुर के पास मेड्ता ग्राम मे हुआ र्ा कु ड्की में म रा बाई का नतनहाल र्ा। उनके वपता का नाम रत्नभसांह र्ा। उनके पतत कुां वर भोिराि उदयपुर के महाराणा साांगा के पुर र्े। वववाह के कु छ समय बाद ही उनके पतत का देहान्त हो गया। पतत की मृत्यु के बाद उन्हे पतत के सार् सत करने का प्रयास ककया गया ककन्तु म राां इसके भलए तैयार नही हुई | वे सांसार की ओर से ववरक्त हो गय ां और साधु-सांतों की सांगतत में हररकीतथन करते हुए अपना समय व्यत त करने लग ां। कु छ समय बाद उन्होंने घर का त्याग कर ददया और त र्ाथटन को तनकल गईं। वे बहुत ददनों तक वृन्दावन में रहीां और किर द्वाररका चली गईं। िहाँ सांवत १५६० ईथव में वो भगवान कृ ष्ण कक मूततथ मे समा गई । म रा बाई ने कृ ष्ण-भब्क्त के थिु ट पदों की रचना की है।
  • 28.
  • 29. ि वन पररचय कृ ष्णभब्क्त शािा की दहांदी की महान कवतयर हैं। उनकी कववताओां में थर पराध नता के प्रत एक गहरी टीस है, िो भब्क्त के रांग में रांग कर और गहरी हो गय है।म राांबाई का िन्म सांवत ् 1504 में िोधपुर में कु रकी नामक गाँव में हुआ र्ा। इनका वववाह उदयपुर के महाराणा कु मार भोिराि के सार् हुआ र्ा। ये बचपन से ही कृ ष्णभब्क्त में रुधच लेने लग र् ां वववाह के र्ोड़े ही ददन के बाद उनके पतत का थवगथवास हो गया र्ा। पतत के परलोकवास के बाद इनकी भब्क्त ददन- प्रततददन बढ़त गई। ये मांददरों में िाकर वहाँ मौिूद कृ ष्णभक्तों के सामने कृ ष्णि की मूततथ के आगे नाचत रहत र् ां। म राांबाईका कृ ष्णभब्क्त में नाचना और गाना राि पररवार को अच्छा नहीां लगा। उन्होंने कई बार म राबाई को ववष देकर मारने की कोभशश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारका और वृांदावन गईं। वह िहाँ िात र् ां, वहाँ लोगों का सम्मान भमलता र्ा। लोग आपको देववयों के िैसा प्यार और सम्मान देते र्े। इस दौरान उन्होंने तुलस दास को पर भलिा र्ा :-
  • 30. थवब्थत श्र तुलस कु लभूषण दूषन- हरन गोसाई। बारदहां बार प्रनाम करहूँ अब हरहूँ सोक- समुदाई।। घर के थविन हमारे िेते सबन्ह उपाधध बढ़ाई। साधु- सग अरु भिन करत मादहां देत कलेस महाई।। मेरे माता- वपता के समहौ, हररभक्तन्ह सुिदाई। हमको कहा उधचत कररबो है, सो भलखिए समिाई।। म राबाई के पर का िबाव तुलस दास ने इस प्रकार ददया:- िाके वप्रय न राम बैदेही। सो नर तब्िए कोदट बैरी सम िद्यवप परम सनेहा।। नाते सबै राम के मतनयत सुह्मद सुसांख्य िहाँ लौ। अांिन कहा आँखि िो िू टे, बहुतक कहो कहाां लौ।।
  • 31. पद बसौ मोरे नैनन में नांदलाल। मोहतन मूरतत, साांवरी सूरतत, नैना बने बबसाल। मोर मुकु ट, मकराकृ त कां ुुडल, अस्र्ण ततलक ददये भाल। अधर सुधारस मुरली राितत, उर बैिांत माल। छु द्र घांदटका कदट तट सोभभत, नूपुर सबद रसाल। म राां प्रभु सांतन सुिदाई, भगत बछल गोपाल।