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स्वास्थ्य और अधिकार
दरअसल कहानी शुरू होती है पिछले साल सितम्बर में
जब सरकार बिल विधानसभा में लेकर आई , लेकिन
विपक्ष के साथ साथ सत्ता पक्ष के भी कु छ विधायकों ने
इसे अधूरा बताया, जिसके बाद बिल को प्रवर समिति
को भेज दिया गया। कमेटी ने कु छ परिवर्तन किये,
और इस साल 21 मार्च को बिल विधानसभा में पास
हुआ । बिल में आर्टिकल 21 और 47 को संवैधानिक
आधार बनाया गया। बिल के अनुसार राजस्थान के
प्रत्येक व्यक्ति के पास स्वास्थ्य के संबंध में कु छ
अधिकार होंगे। इस के मुताबिक राजस्थान के लोगों के
लिए अब से सरकारी अस्पतालों में जाँच, दवा तथा
OPD - IPD सेवाएं निःशुल्क होगी, इमरजेंसी की
स्तिथि में सभी अस्पतालों में, बिना किसी एडवांस पेमेंट
और पुलिस वेरिफिके शन के इलाज करवा सकें गे, रेफर
करने की स्तिथि में मुफ्त एम्बुलेंस का प्रावधान होगा।
साथ ही बीमारी की प्रकृ ति, कारण, के स सम्मरी और
इलाज में आने वाले संभावित खर्च के बारें में जानकारी
ले पाएं गे, उपचार के दौरान गोपनीयता , मानवीय
गरिमा का बर्ताव करना होगा व पुरुष डॉक्टर द्वारा
महिला के इलाज के दौरान महिला की उपस्तिथि
सुनिश्चितकरनी होगी। शिकायत निवारण के लिए
स्वास्थ्य प्राधिकरण का घटन भी इसमें शामिल है इसमें
शामिल है।
बिल सरकार के लिए भी बाध्यताएं निर्धारित करता
है, जैसे, एक पब्लिक हेल्थ का मॉडल तैयार करना और
उसके लिए बजट में उचित प्रावधान करना, दुरी और
'विभिन्न देशों के संविधान, अं तरराष्ट्रीय चार्टर, और
जनभावनाओं के मुताबिक "स्वास्थ्य का अधिकार"
दुनिया के हर इं सान का बुनियादी अधिकार है, जिसके
साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाना
चाहिए । मानवता के हित में इस जनादेश को प्रतिबद्ध
तरीके से लागु करने की बड़ी जिम्मेदारी हमारे कं धों पर
है।' ये बात किसी नेता ने नहीं बल्कि इं डियन मेडिकल
एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर के तन देसाई ने
2017 में कही थी, जब वे WMA के अध्यक्ष के नाते
चीन में पूरी दुनिया के डॉक्टर्स को सम्बोधित कर रहे
थे। तो फिर ऐसा क्या हुआ की पिछले दिनों राजस्थान
सरकार जब ' स्वास्थ्य का अधिकार ' बिल लेकर आई
तो यह संघटन सड़कों पर उतरकर ' नो टू RTH' के नारे
लगाने लगा ?
RTH बिल की सियासी
दास्तान
ये जोड़ा जायेगा की इमरजेंसी में उपचार से जुडी
प्रतिबद्धताएं 50 बेड या उससे अधिक के अस्पताल में
ही होंगी, इमरजेंसी के लिए कहा की दुर्घटना एवं सांप
या जानवर के काटने को ही इमरजेंसी में रखा जायेगा,
यदि इमरजेंसी के बाद इलाज कराने वाला भुगतान
नहीं कर पायेगा तो सरकार उसका पुनर्भरण करेगी।
साथ ही प्रमुख, प्रधान आदि को शिकायत हेतु
निर्धारित प्राधिकरण से हटा कर उसमें सिर्फ डॉक्टर्स
ही रखे जायेंगें। मीणा ने रामायण से वैध सुषेण का
उदहारण देकर इमरजेंसी में त्वरित इलाज की डॉक्टर
की नैतिक जिम्मेदारी पर भी जोर दिया।
मंत्री ने कहा की बिल को एकदम वापस लेने की मांग
सदन का अपमान है। एक कदम आगे बढ़ कर उन्होंने
निजी अस्पतालों पर आरोप लगाते हुए हुए कहा की
चिरं जीवी कार्ड होते भी हॉस्पिटल एडवांस पैसा मांगते
है, इलाज के दौरान मृत्यु होने पर शव देने से मना कर
देते है, और चेतावनी दी की बिल पास होने के बाद ऐसे
अस्पतालों पर कार्यवाही की जाएगी।
वहीँ दूसरी और जन स्वास्थ्य अभियान समेत कई
NGO और सामजिक कारकर्ताओं ने चिकित्सक
संघठनो द्वारा बिल को एं टी प्राइवेट सेक्टर बिल के रूप
में दुस्प्रचारित किये जाने पर चिंता जाहिर की। उन्होंनें
कहा की सरकार द्वारा कई नियमों पर स्पष्टीकरण की
जरुरत तो है पर बिल को पूरी तरह वापस लेने की
मांग अनुचित है।
'जन स्वास्थ्य अभियान ' का मानना है की बिल
पास होने से पहले बातचीत की पूरी प्रक्रिया में आई
एम ए को हिस्सा बनाया गया था, डॉक्टर्स के सारे
सुझाव मान कर कई बदलाव किये गए है जिससे बिल
पहले ही मूल रूप की तुलना में बेहद कमजोर हो गया
है, और उन्हें डर है की कहीं विरोध के दबाव में बिल में
ऐसे बदलाव न कर दिए जाय जिससे इसका महत्व ही
खत्म हो जाए।
निजी अस्पतालों का विरोध भी कु छ मुद्दों से बड़ा हो
कर ' नो टू आर टू एच ' तक पहुं चा। 15 दिन से
ज्यादा चली हड़ताल के बाद अं ततः 4 अप्रेल को
सरकार और डॉक्टर्स के 8 बिंदुओं पर सहमति बनी
और बंद पड़े अस्पताल फिर से शुरू हो पाए। समझौते
के बिंदुओं में मात्र 50 बेड से अधिक वाले अस्पतालों
का ही बिल के दायरें में आना, उनमें से भी जिन
अस्पतालों ने सरकार से कोई अनुदान या रियायती
दरों पर जमीन नहीं ली है उनको आर टू एच से बाहर
रखना, और आं दोलन के दौरान दर्ज के स वापिस लेना
शामिल है।
समझौते के बाद ये बताया जा रहा है की 98
प्रतिशत निजी अस्पताल इस बिल के दायरे में नहीं
आएं गे, पर ये कन्फ्यूज़न बना हुआ है की कोन कोनसे
जनसंख्या घनत्व को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य सेवाएं
उपलब्ध कराना, सभी स्तरों पर गुणवत्ता और सेफ्टी के
लिए मानक निर्धारित करना और पीने के लिए साफ
पानी, साफ सफाई, और पौष्टिक भोजन की आपूर्ति
सुनिश्चित करना। महामारी को नियंत्रित और उपचार
करने करने के उपाय करना भी इसका हिस्सा है।
बिल को लेकर विपक्ष और मीडिया ने ये सवाल भी
लगातार उठाया कि निशुल्क जाँच, इलाज, दवा का
वादा जो सरकार कर रही है वो सरकारी अस्पतालों की
दयनीय स्तिथि से मेल नहीं खाता, वर्तमान संसाधनों
के साथ ' स्वास्थ्य के अधिकार ' का दावा व्यवहारिक
नहीं है। 2020 में कोटा के हॉस्पिटल में बच्चों की
मौत, प्रसूति में जच्चा की मौतों के आं कड़ों समेत कई
उदाहरण विधानसभा की चर्चा के दौरान भी दिए गए।
साथ ही बिल में स्वास्थ्य सेवाओं में जिस आमूलचूल
परिवर्तन का दावा किया गया है उसके लिए उसी
तुलना में बजट आवंटन के प्रावधान को मूल मसौदे में
ही शामिल करने की भी मांग की गयी।
बिल पास करने के साथ ही प्राइवेट अस्पतालों का
जारी विरोध भी तेज हो गया, इं डियन मेडिकल
एसोसिएशन (आई एम ए), यूनाइटेड प्राइवेट
क्लीनिक्स एं ड हॉस्पिटल एसोसिएशन ऑफ़ राजस्थान
(उपचार) और प्राइवेट हॉस्पिटल्स एं ड नर्सिंग होम्स
सोसाइटी आं दोलन का चेहरा बन कर उभरे। शुरू में
प्राइवेट हॉस्पिटल्स की समस्या मुख्य रूप से बिल के
कु छ नियमों से लग रही थी, जैसे की ' इमरजेंसी' को
कै से डिफाइन किया जायेगा। राजेंद्र राठौड़ और
कालीचरण सर्राफ जो प्रवर समिति के सदस्य भी थे,
उन्होंने विधानसभा में कहा की यदि हर्ट पेसेंट आई
हॉस्पिटल में पहुं चा तो वे कै से इलाज दे पाएं गे,
इसलिए ' डेजिगनेटेड ' हेल्थ सेंटर की परिभाषा को भी
स्पष्ट करने की मांग की।
साथ ही प्राइवेट हॉस्पिटल्स जानना चाहते थे की
यदि पेसेंट इमर्जेन्सी ट्रीटमेंट के बाद भुगतान न कर
पाया तो भुगतान कोन करेगा, यदि सरकार करेगी तो
वो प्रक्रिया क्या होगी, और क्या वो प्रक्रिया इतनी
जटिल तो नहीं होगी की राशि के पुनर्भरण में बेहद
लम्बा वक़्त लग जाए।
निजी अस्पतालों का ये भी मानना था की प्रधान
और जिला प्रमुख को प्राधिकरण में शामिल करने से
लालफीताशाही भी बढ़ेगी, इसलिए शिकायत समाधान
की ढेरों प्रक्रियाओं के स्थान पर 'वन - विंडो
मेके निज़्म' की बात की गयी।
स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा ने विधानसभा में
प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा की बिल में सबके सुझाव
मानें गए है, और आश्वासन दिया की बिल के नियमों में
आगे की राह ?
सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे
हाल है, दूर दराज के गांवों में डॉक्टर और हेल्थ
इक्विपमेंट्स की उपलब्धता की स्तिथि दयनीय है।
राजस्थान में प्रति 1000 नवजात शिशुओं में से 35
बच्चों की पांच वर्ष की आयु से पहले ही मृत्यु हो जाती
है, जो की देश की चाइल्ड मोर्टेलिटी रेट 30 से कहीं
ज्यादा है ( नेशनल हेल्थ रिपोर्ट 21-22 के मुताबिक )
। ऐसे में देखना यह है की क्या 'स्वास्थ्य का अधिकार'
के बाद इसके उद्देश्य को पूरा करने के लिए कु छ
मजबूत कदम सरकार द्वारा उठाये जायेंगे या ये सिर्फ
चुनावी फलसफा बन कर रह जायेगा ?
अस्पताल इस इस दायरें में आएं गे। दैनिक भास्कर की
एक रिपोर्ट के अनुसार जयपुर में मात्र 3 ( महात्मा
गांधी, जे एन यु और निम्स मेडिकल कॉलेज ),
उदयपुर में 6, कोटा - नागौर- राजसमंद में एक- एक,
और अधिकांश जिलों में एक भी निजी अस्पताल इस
दायरें में नहीं आएगा।
इस बीच ख़बरें आ रही है मेडिकल टीचर्स का एक और
प्रदर्शन चर्चा में आया है, जिसमे वो मरीज की घर पर
देखने के लिए निर्धारित परामर्श शुल्क में वृद्धि, निजी
अस्पतालों में ऑपरेशन की अनुमति आदि मांगों को
लेकर सरकार पर दबाव बना रहे है।
बाकि दुनिया के हाल ?
हमारे पडोसी देश भूटान की स्वास्थ्य योजनाएं दुनिया भर में मिसाल की तरह देखी जाती है, वहां प्रत्येक नागरिक
का इलाज निःशुल्क है, संसाधनों के आभाव में यदि किसी को भारत के अस्पतालों में रेफे र किया जाये तो उसका
खर्च भी वहां की सरकार ही उठाती है। पडोसी देश श्रीलंका में सब के लिए अनिवार्य बिमा आवश्यक है, जिस से बाद
में इलाज का खर्चा कवर किया जा सके । श्रीलंका समेत करीब तीन दर्जन देशों में अनिवार्य बिमा महं गे इलाज के
बोझ को हल्का करने में कारगर रहा है। चिरं जीवी बिमा योजना भी इसी तर्ज पर लायी गयी थी, पर सबसे बड़ी खामी
यही रही की बहुत सारे निजी अस्पतालों में चिरं जीवी कार्ड स्वीकार ही नहीं किया जाता, जबकि 'यूनिवर्सल हेल्थ
के यर' की सूचि में आने वाले देशों की बिमा योजनाओं को प्रत्येक निजी अस्पताल द्वारा मान्यता देना अनिवार्य है।
कानून के दायरे में निजी अस्पतालों को शामिल करने के लिए सरकार द्वारा दिए गए तर्कों में से एक यह तर्क भी था
की कानून बनने के बाद निजी अस्पतालों की मनमानी पर रोक लगेगी।
आदिवासी राजनीति का उदय
हाल ही के कु छ वर्षों में आदिवासी-प्रदेश बनाने की
करीब एक शतक पुरानी मांग पुनः एक बार फिर से
जोर पकड़ रही है। दक्षिणी राजस्थान में आदिवासी
समुदाय, आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य की
मांग कर रहा है। हालांकि आदिवासी प्रदेश की मांग
ना के वल दक्षिणी राजस्थान से आ रही है अपितु
गुजरात एवं मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाके भी
इसमें शामिल है। हाल ही में हुए गुजरात चुनाव में
भी आदिवासी प्रदेश की मांग सुर्खियों में रही।
राजस्थान के दक्षिणी इलाकों से उठ रही यह मांग,
राजस्थान की राजनीतिक हवा का रुख मोड़ती हुई
नजर आ रही है।
कु छ दिनों पूर्व हो रहे विधायकों से वन टू वन
संवाद के बाद राजस्थान युवा कांग्रेस अध्यक्ष व
डूं गरपुर विधायक गणेश घोघरा ने भील प्रदेश की
मांग पर कहा कि- "भील प्रदेश बनना चाहिए,
जिससे आदिवासियों के हकों की पूर्ति हो सके "।
भील-प्रदेश की मांग को लेकर पिछले कु छ वर्षों में
आदिवासी समुदाय के काफी संघर्ष हुए हैं।भील
प्रदेश की मांग धीरे-धीरे एक "आं दोलन" का रूप ले
रही है, जिसमें दर्जनों स्थानीय भील समूह, कई
नवगठित युवा-मोर्चा, आदिवासियों को सामाजिक
और राजनीतिक रूप से लामबंद कर रहे हैं। अपनी
मांगों को सुनियोजित ढं ग से रखने हेतु विभिन्न
प्रकार के जागरूकता कार्यक्रमों, ग्राम सभाओं ,
चिंतन शिविरों और अन्य स्थानीय बैठकों का
आयोजन किया जा रहा हैं|
भील प्रदेश की उठती मांगों पर विधानसभा के पूर्व
अध्यक्ष और बीजेपी के वरिष्ठ विधायक कै लाश
मेघवाल ने कहा कि दक्षिणी राजस्थान में अब
नक्सलवाद के बीज पहुं च चुके हैं और आदिवासियों
में असंतोष बढ़ रहा है, मेघवाल ने कहा कि इस
असंतोष के कारण दक्षिणी राजस्थान में माओवाद
के बीज भी पनपने लगे हैं |
वहीं दूसरी ओर किरोड़ीलाल मीणा इस पर कहते हैं
कि, "राजस्थान में नक्सलवाद जैसा कु छ भी नहीं
है जैसा कि चित्रित किया गया है। "हमारे
(आदिवासी) अधिकारों के लिए दावा आश्चर्यजनक
नहीं है, यह स्पष्ट रूप से हमारी दयनीय स्थिति के
कारण है। विधायक राजकु मार रोत ने किरोड़ीलाल
के विचार से सहमति जताई। एक स्थानीय चैनल
जन टीवी के साथ एक साक्षात्कार में, राजकु मार
रोत ने कहा, "हमारा पूरा आं दोलन पांचवीं अनुसूची
को लागू करने और अन्य प्राकृ तिक संसाधनों
सहित वन और भूमि अधिकारों के लिए संघर्ष करने
के लिए है। उन्होंने आगे कहा, "अनुसूचित क्षेत्रों में,
अधिकांश खनन कांग्रेस और भाजपा के वरिष्ठ
नेताओं के स्वामित्व में है और जब आदिवासी भूमि,
जंगल और अन्य प्राकृ तिक संसाधनों पर अपने
अधिकारों के लिए दावा करते हैं तो उन्हें नक्सली
के रूप में टैग किया जाता है। राजस्थान के
आदिवासियों को यह भी नहीं पता कि नक्सली
क्या होता है, यह राजस्थान के आदिवासियों के
लिए एक पूरी तरह से नया शब्द और अवधारणा
है।”
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ स्थल पर
राजस्थान के अलावा गुजरात मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र
के हजारो आदिवासी इकट्ठा हुए. जिसमें उन्होंने 14
जिलों को भील प्रदेश बनाने की मांग की थी.
राजनेताओं की इन भाषणों के साथ-साथ
हमें आदिवासियों की वास्तविक
समस्याओं के बारे में भी ज्ञात होना
आवश्यक है। आदिवासी क्षेत्र में सामान्य-
सुविधाएं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, जल,
बिजली आदि आज भी सुनिश्चित नहीं हो
पाई है। अवैध खनन, अनुसूचित क्षेत्रों की
जमीन पर होने वाला सबसे बड़ा धोखा है,
ग्राम-सभा प्रक्रिया का खुले तौर पर
उल्लंघन किया जाता है, क्योंकि
ज्यादातर मामलों में खनन पट्टे और
स्वामित्व, स्थानीय आदिवासियों के नाम
पर होते हैं, जिन्हें फर्जी हस्ताक्षर या
अन्य अवैध तरीकों से इसके बारे में पता
भी नहीं होता है।
ट्राइबल आर्मी के संस्थापक कांति लाल
का कहना है कि, "पानी, आज हमारे
विभाजित होने के मुख्य कारणों में से
एक है। "अगर हमारे राज्य की स्थापना
होती है, तो जल युद्ध समाप्त हो जाएगा
क्योंकि हम पहले अपनी मांगों को पूरा
करेंगे ... प्रचुर मात्रा में पानी हमारी
फसलों, वित्त और शिक्षा को बढ़ावा देगा।
इस प्रकार अवैध खनन से लेकर
सामान्य-जरूरतें जैसे- जल, शिक्षा,
बिजली आदि, भाषा से लेकर संस्कृ ति
तक, आदिवासी-पहचान से लेकर
आदिवासी-अधिकार तक, राजनीतिक
मांगों से राजनीतिक प्रतिनिधित्व तक,
आदि प्रमुख कारक है जो भील प्रदेश की
मांग को और सुदृढ़ कर रहे हैं।
हालांकि अब यह देखना रोचक है कि
राजस्थान विधानसभा चुनाव को मध्य
नजर रखते हुए भाजपा एवं कांग्रेस दोनों
आदिवासी राजनीति पर विशेष नजर रखे
हुए हैं। हाल ही में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी
द्वारा राष्ट्रीय आदिवासी कल्याण सम्मेलन
आयोजित किया जाना, मानगढ़ धाम को
राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा दिलाने का
प्रस्ताव, आदिवासी कल्याण के लिए
विभिन्न प्रकार की योजनाएं लाना आदि
इस बात का संके त है कि आदिवासी
राजनीति, राजस्थान की राजनीति का
एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है।
किं तु अब देखना यह है कि आदिवासियों द्वारा अपने अधिकारों
के लिए संघर्ष, भील-प्रदेश की बढ़ती हुई मांग, उभरते हुए-
भारतीय ट्राईबल पार्टी एवं विभिन्न प्रकार के आदिवासी संगठन,
जैसे भील-प्रदेश आरक्षण समिति, ट्राईबल आर्मी, आदिवासी
परिवार, आदिवासी अनुसूचित संघर्ष मोर्चा आदि किस प्रकार
राजस्थान की राजनीति को एक नई दिशा व दशा देते हैं? क्या
आदिवासी समुदाय के लोगों को उनके अधिकार मिल पाएं गे?
क्या सरकार और पार्टियां पूंजीपतियों द्वारा हो रहे अवैध खनन
और आदिवासियों के शोषण को समाप्त कर पाएं गी? और क्या
यह भील-प्रदेश की मांग के वल चुनाव तक सीमित रह जाएगी
या आदिवासियों को वास्तव में उनके अधिकार मिलेंगे? या
आदिवासियों के लिए उनके अधिकार के वल राजनेताओं के
भाषणों में मृगतृष्णा बन कर रह जाएं गे?
भाईसाब से महामहिम
'आपकी खासियत है कि जब आप कै मरे के सामने
जाते है तो हमारी ऐसी की तैसी करने में कोई कमी
नहीं छोड़ते, लेकिन आज के बाद में ना तो आप उधर
वालों के लिए भाईसाब रहेंगे, ना इधर वालों के लिए
विपक्ष के नेता, हमें उम्मीद है कि आप नई जिम्मेदारी
में राजस्थान का मान-सम्मान बढ़ाएं गे।' इन शब्दों के
साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले दिनों
राजस्थान विधानसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद
कटारिया की विदाई देते हुए असम के राज्यपाल पद
पर उनकी नियुक्ति पर बधाई दी। असम में लाखों
मारवाड़ी परिवारों की मौजूदगी इस नियुक्ति को और
अधिक महत्वपूर्ण बना देती है। शिव चरण माथुर और
हरिदेव जोशी के बाद कटारिया असम के तीसरे
राजस्थानी राज्यपाल है। गौरतलब है कि इससे पहले
भी राजस्थान से कई लोग संवैधानिक पदों तक पहुं चे
है। जिनमे , राष्ट्रपति के रूप में प्रतिभा देवी सिंह
पाटिल, उपराष्ट्रपति के रूप में भैरों सिंह शेखावत,
जगदीप धनकड़ और कई राज्यपाल शामिल है।
राजसमंद में जन्में 78 वर्षीय गुलाब चंद कटारिया
आठ बार विधायक और एक बार सांसद रहे।
कटारिया, भैरोंसिंह शेखावत की सरकार में शिक्षा मंत्री,
वसुंधरा राजे सरकार में दो बार गृह मंत्री, भाजपा
राजस्थान के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष के साथ-साथ तीन बार
नेता प्रतिपक्ष भी रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की
पृष्टभूमि से आने वाले कटारिया ने अपनी पहचान
अनुशासित, विचारधारा के प्रति निष्ठावान और साफ
छवि वाले नेता के रूप में बनाई है।
गुलाब चंद कटारिया ने
गुवाहटी में असम के 31वें
राज्यपाल के रूप में
शपथ ली. उन्हें असम के
चीफ जस्टिस संदीप
मेहता ने शपथ दिलाई.
नेता प्रतिपक्ष के रूप में -
नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्होंने सरकार को जमकर
घेरा, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कई बार उनकी प्रशंसा
करते हुए दिखे, पिछले साल ही उन्होंने सदन में कहा
था ' कटारिया जी आप भावुकता में कठोर बातें बोलते
है, आपकी अदा और कारीगिरी ऐसी है कि, आप पत्थर
में भी जान डाल देते है।' चलिए नजर डालते है नेता
प्रतिपक्ष के रूप में विधानसभा में दिए गए उनके कु छ
चर्चि त सम्बोधनों पर।
मार्च 2022, नकल विरोधी विधेयक पर चर्चा के दौरान
-
एं टी चीटिंग बिल पर बोलते हुए कटारिया कई बार
भावुक हुए, उनका वीडियो सोशल मीडिया में जमकर
वायरल हुआ, जिस पर देश भर में चर्चा भी हुई। उन्होंने
कहा कि पिछले 10 सालो में जितने पेपर लीक हुए है
उनकी जाँच करवाइये, आम आदमी करोडो रूपए देकर
पेपर नहीं ले सकता, ये सब बड़े-बड़े पैसे वाले दिग्गज
ले कर जाते है और फिर अपनी कोचिंग संस्थान के
बाहर पोस्टर लगता है, 100 पर्सेंट सिलेक्शन। गरीब
परिवार का वह बच्चा जो अपने बूढ़े मां-बाप को भूखे
मारकर पढ़ता है, जिसके बाद परीक्षा देने जाता है और
परीक्षा देकर रोते हुए लौटता है, क्या दुख नहीं होता है?
हम लोगों को दिल में थोड़ा बहुत भी इन गरीब बच्चों
के लिए, उस बच्चे का क्या होगा जो इसलिए पीड़ा के
साथ पढ़ रहा है, इन सारे पैसे वालों के साथ आपने
सभी नौकरियां के पद बेच दिए हैं. मैं बहुत कड़वा सच
बोल रहा हूं कि पिछले 8 साल में जितनी भी नौकरी पर
लगे हैं उन सब की जांच करा लो, आधा फर्जी मामला
निकलेगा । उन्होंने कहा कि क्या कोई सोचने वाला है
उनके बारे में, इन गरीब परिवारों के बारे में? आखिर
उनका क्या कसूर है उस गरीब के बच्चे का जो भूखा
प्यासा पढता है, घर बेच कर पढता है, और सेलेक्शन नहीं
होता है तो वह जहर खाकर मरता है, कोई उसकी पीड़ा
को समझने वाला नहीं है। मुझे इस पर बोलने की इच्छा
नहीं है, रीट परीक्षा के दौरान शिक्षा संकु ल से पेपर चुराने
वाला कौन है? उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, सिर्फ
कानून से कु छ नहीं होगा, सिस्टम को बदलना होगा।
हमारा दुर्भाग्य है, कि हमने शिक्षा के मंदिर को भ्रष्टाचार
की भट्टी में जला के खाक कर दिया।
फरवरी 2023 -
जल जीवन मिशन की तस्वीर ये है कि, इसके तहत
2024 तक राजस्थान में 1 करोड़ पांच लाख परिवारों को
जल पहुँचाने का लक्ष्य था, पर अब तक 21 लाख ही
कनेक्शन हुए हैं जबकि 11 लाख कनेक्शन योजना शुरू
होने से पहले ही मौजूद थे। लूट, अपहरण, बलात्कार,
नकबजनी और चोरी के प्रकरण 2018 की तुलना में
क्रमशः 36, 34, 38, 32, 28 प्रतिशत बढे हैं। बलात्कार,
महिलों से छेड़छाड़ और महिलाओं के अपहरण के मामले
में राजस्थान पुरे देश में प्रथम स्थान पर है। पोक्सो एक्ट
में जितनी शिकायतें हुई उनमे से सिर्फ 20 प्रतिशत FIR
दर्ज हुई, ये अपराधियों को बचाने की मंशा है।
साम्प्रदायिक हिंसा के सारे रिकॉर्ड टूट गए, करौली,
जोधपुर, और उदयपुर के मामले सबके सामने है।
'घर में नहीं है दाने, बुढ़िया चली भुनाने |'
मार्च 2022, राज्यपाल के अभिभाषण पर
चर्चा के दौरान -
21 - 22 के बजट अनुमान की तुलना में आपने 22
-23 का बजट अनुमान 64 हजार 823 करोड़ रूपये
अधिक रखा, आप 'पूजिगंत प्राप्ति ' यानि कर्जा
लेकर के आप बजट को एडजस्ट करना चाहते है।
पिछले साल आपका अनुमान था कि आप विकास
कार्यों पर 19 हजार करोड़ खर्च करेंगे लेकिन सिर्फ
14 हजार करोड़ खर्च कर पाए। आप ताली पिटवाने
के लिए घोषणा करते है पर बजट उनको सपोर्ट ही
नहीं करता, आपकी हालत ऐसे है जैसे 'घर में नहीं है
दाने, बुढ़िया चली भुनाने।'
फरवरी 2021 -
पिछले साल जितना 'कर राजस्व' आना था उससे 22
हजार करोड़ कम हुआ है, जिसका सीधा असर आने
वाले समय में दिखेगा। राजस्व में ये ट्रेंड दिखा कि
आपने अधिकांश बजट, साल के अं तिम तीन महीने
में एडजस्ट करने की कोशिश की, जिसका अर्थ आप
समझते है कि काम की कोई गुणवत्ता नहीं होगी।
आपने जितना निशुल्क जाँच योजना के लिए
आवंटित किया था, उसमे से मात्र 19 प्रतिशत खर्च
किया। आप भारत में सबसे पहले लॉकडाऊन का
क्रे डिट लेते है, पर प्रधानमंत्री के लॉकडाऊन लगाने
के कदम की निंदा करते है। महं गे पेट्रोल पर आप
कें द्र को दोषी ठहराते है, पर ये नहीं बताते की
राजस्थान पेट्रोल पर देश में सबसे ज्यादा टैक्स
(वेट) लेता है। कनिष्ट अभियंता का पेपर लीक
हुआ, उसका कोई जिम्मेदार नहीं है। लाब्रेरियन
2018, जेइएन 2020 पेपर लीक की वजह से रद्द
हुई, कम से कम जो जिम्मेदार है उसकी तो
पहचानकरों। आप पंचायत सहायक में नौकरी देने
के बात करते हो, और उसे पैसे देते हो 6 हजार, क्या
वो जहर खा कर बच्चों को पालेगा। सीकर, भरतपुर,
अलवर, बांसवाड़ा में विश्विधालय खुलने के बाद
आपने एक शिक्षक की भर्ती नहीं की। पंचायती राज
चुनावों को आपने अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए
अटकाया। हिंदुस्तान में बिजली का दाम हमारे यहां
सबसे ज्यादा है, तब भी जब हम अपनी आवश्कयता
का 97 प्रतिशत उत्पादन स्वयं करते है। हमारी
बिजली कम्पनियाँ 80 हजार करोड़ के घाटे में चल
रही है। जल जीवन मिशन में जितना पैसा आप को
दिया आप उसका आधा पैसा भी खर्च नहीं कर पाए।
अगस्त 2020 -
'आप हमारे कारण घायल नहीं हुए है, आप
घर के झगड़े से घायल हुए है, हमारे सर
पर ठीकरा फोड़ना ठीक नहीं है, आपका
उप मुख़्यमंत्री जब 6 साल पार्टी के लिए
काम कर रहा था अच्छा था, फिर अब कै से
बिगड़ गया। आपको एक महीने पहले ही,
एक प्रस्ताव बना कर राज्यपाल के पास
जाना चाहिए था, कि हमारी सरकार के
बहुमत के बारें में संदेह बन गया है,
इसलिए हम विधानसभा के फ्लोर पर
बहुमत सिद्ध करना चाहते हैं। आपने जो
एक महीना सदन का समय खराब किया
है, जनता उसका हिसाब मांगेंगी। कोरोना
के मरीजों की संख्या बढ़ रही थी, और
आपका ध्यान बाड़ाबंदी पर था। जिस दिन
आप बाड़ाबंदी में गए, उस दिन मरीजों की
संख्या सैंकड़ों में ही थी और आज 56
हजार संक्रमित है, 14 हजार अस्पतालों में
भर्ती है, क्या आप उनके परिवारों को
जवाब दे पाएं गे ? यदि आप गैरकानूनी
तौर पर फ़ोन टेपिंग करते है, तो ये पुलिस
के दुरुपयोग का घृणित कार्य है। आपने
दो बजट प्रस्तुत कर दिए, मेरी चुनौती है,
यदि किसी में मादा है, तो यहां सूची
प्रस्तुत कर दीजिये कि हमने जो पैसा
स्वीकृ त किया था वो कौन-कौन से कामों
में लगा है, वो अभी भी पाइपलाइन में ही
चल रहा है, कहीं टेंडर प्रोसेस में है, कही
काम शुरू हुआ, कहीं नहीं हुआ। जिस
नरेगा के नाम पर आप अपनी पीठ
थपथपा रहें है, वो तो आपके उप मख्यमंत्री
की मेहनत थी। जिसने मेहनत कर के पुरे
देश में सबसे ज्यादा नरेगा मजदूर लगाने
का काम किया, उनको आपने सर्टीफिके ट
देने की बजाय धक्का मारा।
विवादों में कटारिया -
विवादों से कटारिया का नाता बेहद पुराना है। 2012 में
उन्होंने आदिवासी क्षेत्र में 28 दिनों की लोक जागरण यात्रा
निकालने की घोषणा की थी, जिसके विरोध में तत्कालीन
नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे सिंधिया ने दो दर्जन विधायकों
के साथ इस्तीफा देने के धमकी दे दी थी, और कटारिया को
यात्रा रद्द करनी पड़ी थी। 2013 में CBI ने उन्हें राजस्थान के
गृह मंत्री के रूप में, गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्रीअमित
शाह के साथ, सोहराबु्द्दीन शेख एनकाउं टर के स में आरोपी
बनाकर चार्ज शीट दायर की थी, जिससे वे अन्त्ततः 2015
में बरी हुए। अपने बयानों को लेकर भी कटारिया अक्सर
चर्चाओं और विवादों में रहें है, 2016 में उनके द्वारा पूर्व
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए दिए गए भाषण में गाली
का इस्तेमाल करने पर विवाद हुआ , जिसके बाद शाम को
उन्होंने फे सबुक पर लिखा, 'मैंने भाषण में कु छ भी
दुर्भावनापूर्वक नहीं कहा है। किसी को बुरा लगा हो तो खेद
प्रकट करता हूं ।' लव जिहाद पर विवादित बयां देते हुए
2019 में कटारिया ने कहा था कि हिन्दू एक नहीं हुए तो
राजस्थान के शहर पाकिस्तान बन जायेंगे।
2021 में दीप्ती माहेश्वरी के चुनाव प्रचार के दौरान महाराणा
प्रताप पर उनके विवादित बयान पर उन्हें जान से मारने की
कई धमकियाँ मिली थी, जिसको लेकर उन्हें कई बार
सार्वजानिक रूप से माफ़ी भी मांगी। अप्रेल 2020 में सीता
पर दिए बयां को लेकर और सितम्बर में उनके द्वारा अपने
भाषण में जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल करने पर जमकर
विवाद हुआ, जिसके बाद उन्होंने ट्विटर पर लिखा 'भूल होना
प्रकृ ति है, मान लेना संस्कृ ति है, सुधार लेना प्रगति है और
क्षमा माँग लेना स्वीकृ ति है।पूरे बरस में मेरेद्वारा जाने
अनजाने में,बोलचाल में,आमने सामने आपका मन दुखाया
हो,गलत लगा हो,तो मन वचन और काया से आप सभी को
मिच्छामि दुक्कडम्।' पिछले साल ही उदयपुर के
कन्हैयालाल की हत्या के मुख्य आरोपी रियाज के साथ
कटारिया की तस्वीरें सामने आने के बाद कांग्रेस ने उन पर
सवाल उठाये थे जिस पर उन्होंने कहा की कार्यक्रमों में
बहुत से लोग तस्वीरें खिचवाते है, सिर्फ तस्वीर के आधार पर
आरोप लगाना निराधार है।
किसान से परशुराम
या रूठों की मनुवार
चुनावी वर्ष में राजस्थान बीजेपी में कई बदलाव हुए
हैं। सरकार और संगठन में लगभग 50 वर्षों से
महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे पूर्व नेता प्रतिपक्ष
गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल बना
सक्रिय राजनीति से सम्मानपूर्वक विदाई दे दी गई है।
कटारिया की जगह उनके डिप्टी रहे राजेंद्र राठौड़ को
नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है, और राठौड़ की जगह पूर्व
प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को उनका डिप्टी बना
दिया गया है। पूनिया की जगह उन्हीं की टीम में
उपाध्यक्ष चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी को प्रदेश
अध्यक्ष बनाया गया है ।
सितंबर 2019 में मदन लाल सैनी के निधन के बाद,
कई नामों पर चर्चा हुई, और अं ततः संघ की सहमति
से अध्यक्ष पद पर सतीश पुनिया का नाम फाइनल
हुआ। मीडिया में पुनिया की चर्चा संघ पृष्ठभूमि के
साथ साथ कु शल संघठनकर्ता और कु छ हद तक एं टी
वसुंधरा चेहरे के रूप में हुई जो कार्यकाल के दौरान
छोटे मोटे टकरावों के रूप में बार बार सुर्ख़ियों का
हिस्सा भी रही। किसान परिवार में जन्मे पूनिया
एबीवीपी, युवा मोर्चा तथा प्रदेश संगठन में लंबे समय
से सक्रिय भूमिका में काम कर चुके है।
पुनिया का कार्यकाल 6 माह पूर्व ही समाप्त हो गया
था, लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को एक्सटेंशन
मिलने के साथ ही चर्चा थी कि पूनिया को भी
विधानसभा चुनाव तक एक्सटेंशन मिल गया है। पार्टी
की सभी महत्वपूर्ण संगठनात्मक नियुक्तियां और पार्टी
कार्यक्रमों की सक्रियता इसी और इशारा कर रही थी।
ऐसे में अचानक पूनिया को हटाकर पार्टी ने सभी को
चौंकाया।
राजस्थान के साथ बिहार उड़ीसा दिल्ली के अध्यक्षों
को भी बदला गया लेकिन राजस्थान में चुनाव होने हैं
इसलिए राजस्थान को विशेष रूप से देखा गया।
राजस्थान के साथ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना
और कु छ उत्तरी पूर्वी राज्यों में भी चुनाव होने हैं।
मध्यप्रदेश में संगठन के स्तर पर बदलाव की चर्चा थी
लेकिन बड़े बदलाव देखने को नहीं मिले। वहां भाजपा
का सत्ता में होना भी बदलाव ना होने का कारण हो
सकता है। ठीक इसी तरह तेलंगाना में भी
संगठनात्मक बदलावों की चर्चा सिर्फ चर्चा ही बनी
रही। छत्तीसगढ़ में नेता प्रतिपक्ष, अध्यक्ष, प्रभारी के
साथ ही संगठन में बड़े स्तर पर बदलाव किए हैं, साथ
ही नई प्रदेश कार्य समिति का भी गठन किया गया है।
वहीँ राजस्थान में नवनियुक्त अध्यक्ष सी पी जोशी
लगातार संगठन में बड़े स्तर पर बदलाव की सम्भावना
को नकार रहे है। पार्टी अब जमीनी स्तर पर ज्यादा
बदलाव करने के बजाय पुरानी टीम के मुख्य चेहरे को
बदलकर की चुनाव में जाने की रणनीति पर कार्य
करेगी।
बदलाव के कारण -
जोशी के अध्यक्ष बनने के बाद पुनिया के हटाए जाने
के कारणों पर हर तरफ चर्चा चल पड़ी। कटारिया के
राज्यपाल बनने के बाद मेवाड़ में पार्टी के कोई बड़े
नेता का ना होना और पार्टी के परं परागत ब्राह्मण
वोटरों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की कोशिश को मुख्य
कारण के रूप में देखा गया।
बदलाव से कु छ समय पूर्व ही जयपुर में हुई ब्राह्मण
महापंचायत से भी लोगों ने इस को जोड़कर देखा
और ट्विटर व अन्य सोशल मीडिया पर भी लोगों की
अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं देखने लो मिली।
विवाद से बचने का निकाला तरीका
पूनिया-वसुंधरा के बीच चल रही खींचतान को खत्म
करने और वसुंधरा राजे की नाराजगी को चुनावों से
पहले एकोमोडेट करने के बारें में भी चर्चाएं हुई।
किरोड़ीलाल मीणा भी पूनिया से नाराजगी जाहिर कर रहे
थे और सहयोग नहीं मिलने के आरोप लगा रहे थे। वहीं
पार्टी इन सभी बातों को चुनाव में तूल नहीं देना चाहती
थी जिससे कोई व्यवधान उत्पन्न हो इसलिए पार्टी ने
जोशी को अध्यक्ष बनाकर सभी को संतुलित करने की
कोशिश की, चुनाव पास होने के कारण जोशी के ज्यादा
विरोधी स्वर उठने की भी सम्भावना नहीं है।
नए बने अध्यक्ष सीपी जोशी ने अपने राजनीतिक जीवन
की शुरुआत कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से की
बाद में एबीवीपी ज्वाइन किया, संघ से भी जुड़े, जिला
परिषद सदस्य से होते हुए उप प्रधान बने। पार्टी के
जिला अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए सांसद बने और
सांसद रहते हुए ही युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी बने। जोशी
का नाम मोदी मंत्रिमंडल के लिए भी चर्चाओं में रहा,
लेकिन उन्हें पुनिया की टीम में उपाध्यक्ष के रूप में
जगह मिली और फिर प्रमोशन होते हुए हाल ही में प्रदेश
अध्यक्ष बने।
चूँकि पार्टी चुनाव में अब जोशी के नेतृत्व में ही
जाएगी इसलिए उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
हालाँकि जोशी को हाईकमान के प्रतिनिधि के रूप में ही
देखा जा रहा है, लेकिन गॉसिप्स में लोग जोशी को
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के नजदीकी के रूप में
भी देखते है। अध्यक्ष बनने के साथ ही जोशी को भी
मुख्यमंत्री के दावेदारों के रूप में देखा जा रहा है,
लेकिन जोशी ने हाल ही में दिए कु छ मीडिया इं टरव्यू में
विधानसभा चुनाव लड़ने से भी इं कार कर दिया और
और खुद को सी एम पद की रेस से बहार बताया।
बीजेपी में हाल के ट्रेंड्स के मुताबिक भी अध्यक्ष की
भूमिका मुख्यतः चुनावों तक सिमित रही और अध्यक्ष
को मुख्यमंत्री बनाने से परहेज किया गया।
जोशी के पदभार ग्रहण समारोह में सभी पार्टी नेता
एकजुट नजर आए। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने
कार्यक्रम को ऑनलाइन ही संबोधित किया, पर उनके
करीबी नेता यहां मौजूद रहे जो पूर्वाध्यक्ष के कार्यकाल
में पार्टी कार्यालय से दूरी बनाए हुए थे। कु छ हद तक
पार्टी एकजुट नजर आई लेकिन राजे अभी भी पशोपेश
की स्थिति में है वह धार्मिक कार्यक्रमों में फिर से
सक्रिय नजर आने लगी है लेकिन स्थिति स्पष्ट नहीं
होने पर वे फिर से नाराज हो सकती है और उनके
समर्थक बवाल मचा सकते हैं ।
जोशी को इन सभी नाराजगी को दूर करने के लिए
नए चेहरे के रूप में लाया गया है जिससे चुनाव से
पहले विरोध ना बढ़े और पार्टी को चुनाव में भीतर से
किसी चुनौती का सामना ना करना पड़े।

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  • 1. स्वास्थ्य और अधिकार दरअसल कहानी शुरू होती है पिछले साल सितम्बर में जब सरकार बिल विधानसभा में लेकर आई , लेकिन विपक्ष के साथ साथ सत्ता पक्ष के भी कु छ विधायकों ने इसे अधूरा बताया, जिसके बाद बिल को प्रवर समिति को भेज दिया गया। कमेटी ने कु छ परिवर्तन किये, और इस साल 21 मार्च को बिल विधानसभा में पास हुआ । बिल में आर्टिकल 21 और 47 को संवैधानिक आधार बनाया गया। बिल के अनुसार राजस्थान के प्रत्येक व्यक्ति के पास स्वास्थ्य के संबंध में कु छ अधिकार होंगे। इस के मुताबिक राजस्थान के लोगों के लिए अब से सरकारी अस्पतालों में जाँच, दवा तथा OPD - IPD सेवाएं निःशुल्क होगी, इमरजेंसी की स्तिथि में सभी अस्पतालों में, बिना किसी एडवांस पेमेंट और पुलिस वेरिफिके शन के इलाज करवा सकें गे, रेफर करने की स्तिथि में मुफ्त एम्बुलेंस का प्रावधान होगा। साथ ही बीमारी की प्रकृ ति, कारण, के स सम्मरी और इलाज में आने वाले संभावित खर्च के बारें में जानकारी ले पाएं गे, उपचार के दौरान गोपनीयता , मानवीय गरिमा का बर्ताव करना होगा व पुरुष डॉक्टर द्वारा महिला के इलाज के दौरान महिला की उपस्तिथि सुनिश्चितकरनी होगी। शिकायत निवारण के लिए स्वास्थ्य प्राधिकरण का घटन भी इसमें शामिल है इसमें शामिल है। बिल सरकार के लिए भी बाध्यताएं निर्धारित करता है, जैसे, एक पब्लिक हेल्थ का मॉडल तैयार करना और उसके लिए बजट में उचित प्रावधान करना, दुरी और 'विभिन्न देशों के संविधान, अं तरराष्ट्रीय चार्टर, और जनभावनाओं के मुताबिक "स्वास्थ्य का अधिकार" दुनिया के हर इं सान का बुनियादी अधिकार है, जिसके साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाना चाहिए । मानवता के हित में इस जनादेश को प्रतिबद्ध तरीके से लागु करने की बड़ी जिम्मेदारी हमारे कं धों पर है।' ये बात किसी नेता ने नहीं बल्कि इं डियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर के तन देसाई ने 2017 में कही थी, जब वे WMA के अध्यक्ष के नाते चीन में पूरी दुनिया के डॉक्टर्स को सम्बोधित कर रहे थे। तो फिर ऐसा क्या हुआ की पिछले दिनों राजस्थान सरकार जब ' स्वास्थ्य का अधिकार ' बिल लेकर आई तो यह संघटन सड़कों पर उतरकर ' नो टू RTH' के नारे लगाने लगा ? RTH बिल की सियासी दास्तान
  • 2. ये जोड़ा जायेगा की इमरजेंसी में उपचार से जुडी प्रतिबद्धताएं 50 बेड या उससे अधिक के अस्पताल में ही होंगी, इमरजेंसी के लिए कहा की दुर्घटना एवं सांप या जानवर के काटने को ही इमरजेंसी में रखा जायेगा, यदि इमरजेंसी के बाद इलाज कराने वाला भुगतान नहीं कर पायेगा तो सरकार उसका पुनर्भरण करेगी। साथ ही प्रमुख, प्रधान आदि को शिकायत हेतु निर्धारित प्राधिकरण से हटा कर उसमें सिर्फ डॉक्टर्स ही रखे जायेंगें। मीणा ने रामायण से वैध सुषेण का उदहारण देकर इमरजेंसी में त्वरित इलाज की डॉक्टर की नैतिक जिम्मेदारी पर भी जोर दिया। मंत्री ने कहा की बिल को एकदम वापस लेने की मांग सदन का अपमान है। एक कदम आगे बढ़ कर उन्होंने निजी अस्पतालों पर आरोप लगाते हुए हुए कहा की चिरं जीवी कार्ड होते भी हॉस्पिटल एडवांस पैसा मांगते है, इलाज के दौरान मृत्यु होने पर शव देने से मना कर देते है, और चेतावनी दी की बिल पास होने के बाद ऐसे अस्पतालों पर कार्यवाही की जाएगी। वहीँ दूसरी और जन स्वास्थ्य अभियान समेत कई NGO और सामजिक कारकर्ताओं ने चिकित्सक संघठनो द्वारा बिल को एं टी प्राइवेट सेक्टर बिल के रूप में दुस्प्रचारित किये जाने पर चिंता जाहिर की। उन्होंनें कहा की सरकार द्वारा कई नियमों पर स्पष्टीकरण की जरुरत तो है पर बिल को पूरी तरह वापस लेने की मांग अनुचित है। 'जन स्वास्थ्य अभियान ' का मानना है की बिल पास होने से पहले बातचीत की पूरी प्रक्रिया में आई एम ए को हिस्सा बनाया गया था, डॉक्टर्स के सारे सुझाव मान कर कई बदलाव किये गए है जिससे बिल पहले ही मूल रूप की तुलना में बेहद कमजोर हो गया है, और उन्हें डर है की कहीं विरोध के दबाव में बिल में ऐसे बदलाव न कर दिए जाय जिससे इसका महत्व ही खत्म हो जाए। निजी अस्पतालों का विरोध भी कु छ मुद्दों से बड़ा हो कर ' नो टू आर टू एच ' तक पहुं चा। 15 दिन से ज्यादा चली हड़ताल के बाद अं ततः 4 अप्रेल को सरकार और डॉक्टर्स के 8 बिंदुओं पर सहमति बनी और बंद पड़े अस्पताल फिर से शुरू हो पाए। समझौते के बिंदुओं में मात्र 50 बेड से अधिक वाले अस्पतालों का ही बिल के दायरें में आना, उनमें से भी जिन अस्पतालों ने सरकार से कोई अनुदान या रियायती दरों पर जमीन नहीं ली है उनको आर टू एच से बाहर रखना, और आं दोलन के दौरान दर्ज के स वापिस लेना शामिल है। समझौते के बाद ये बताया जा रहा है की 98 प्रतिशत निजी अस्पताल इस बिल के दायरे में नहीं आएं गे, पर ये कन्फ्यूज़न बना हुआ है की कोन कोनसे जनसंख्या घनत्व को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना, सभी स्तरों पर गुणवत्ता और सेफ्टी के लिए मानक निर्धारित करना और पीने के लिए साफ पानी, साफ सफाई, और पौष्टिक भोजन की आपूर्ति सुनिश्चित करना। महामारी को नियंत्रित और उपचार करने करने के उपाय करना भी इसका हिस्सा है। बिल को लेकर विपक्ष और मीडिया ने ये सवाल भी लगातार उठाया कि निशुल्क जाँच, इलाज, दवा का वादा जो सरकार कर रही है वो सरकारी अस्पतालों की दयनीय स्तिथि से मेल नहीं खाता, वर्तमान संसाधनों के साथ ' स्वास्थ्य के अधिकार ' का दावा व्यवहारिक नहीं है। 2020 में कोटा के हॉस्पिटल में बच्चों की मौत, प्रसूति में जच्चा की मौतों के आं कड़ों समेत कई उदाहरण विधानसभा की चर्चा के दौरान भी दिए गए। साथ ही बिल में स्वास्थ्य सेवाओं में जिस आमूलचूल परिवर्तन का दावा किया गया है उसके लिए उसी तुलना में बजट आवंटन के प्रावधान को मूल मसौदे में ही शामिल करने की भी मांग की गयी। बिल पास करने के साथ ही प्राइवेट अस्पतालों का जारी विरोध भी तेज हो गया, इं डियन मेडिकल एसोसिएशन (आई एम ए), यूनाइटेड प्राइवेट क्लीनिक्स एं ड हॉस्पिटल एसोसिएशन ऑफ़ राजस्थान (उपचार) और प्राइवेट हॉस्पिटल्स एं ड नर्सिंग होम्स सोसाइटी आं दोलन का चेहरा बन कर उभरे। शुरू में प्राइवेट हॉस्पिटल्स की समस्या मुख्य रूप से बिल के कु छ नियमों से लग रही थी, जैसे की ' इमरजेंसी' को कै से डिफाइन किया जायेगा। राजेंद्र राठौड़ और कालीचरण सर्राफ जो प्रवर समिति के सदस्य भी थे, उन्होंने विधानसभा में कहा की यदि हर्ट पेसेंट आई हॉस्पिटल में पहुं चा तो वे कै से इलाज दे पाएं गे, इसलिए ' डेजिगनेटेड ' हेल्थ सेंटर की परिभाषा को भी स्पष्ट करने की मांग की। साथ ही प्राइवेट हॉस्पिटल्स जानना चाहते थे की यदि पेसेंट इमर्जेन्सी ट्रीटमेंट के बाद भुगतान न कर पाया तो भुगतान कोन करेगा, यदि सरकार करेगी तो वो प्रक्रिया क्या होगी, और क्या वो प्रक्रिया इतनी जटिल तो नहीं होगी की राशि के पुनर्भरण में बेहद लम्बा वक़्त लग जाए। निजी अस्पतालों का ये भी मानना था की प्रधान और जिला प्रमुख को प्राधिकरण में शामिल करने से लालफीताशाही भी बढ़ेगी, इसलिए शिकायत समाधान की ढेरों प्रक्रियाओं के स्थान पर 'वन - विंडो मेके निज़्म' की बात की गयी। स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा ने विधानसभा में प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा की बिल में सबके सुझाव मानें गए है, और आश्वासन दिया की बिल के नियमों में
  • 3. आगे की राह ? सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हाल है, दूर दराज के गांवों में डॉक्टर और हेल्थ इक्विपमेंट्स की उपलब्धता की स्तिथि दयनीय है। राजस्थान में प्रति 1000 नवजात शिशुओं में से 35 बच्चों की पांच वर्ष की आयु से पहले ही मृत्यु हो जाती है, जो की देश की चाइल्ड मोर्टेलिटी रेट 30 से कहीं ज्यादा है ( नेशनल हेल्थ रिपोर्ट 21-22 के मुताबिक ) । ऐसे में देखना यह है की क्या 'स्वास्थ्य का अधिकार' के बाद इसके उद्देश्य को पूरा करने के लिए कु छ मजबूत कदम सरकार द्वारा उठाये जायेंगे या ये सिर्फ चुनावी फलसफा बन कर रह जायेगा ? अस्पताल इस इस दायरें में आएं गे। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार जयपुर में मात्र 3 ( महात्मा गांधी, जे एन यु और निम्स मेडिकल कॉलेज ), उदयपुर में 6, कोटा - नागौर- राजसमंद में एक- एक, और अधिकांश जिलों में एक भी निजी अस्पताल इस दायरें में नहीं आएगा। इस बीच ख़बरें आ रही है मेडिकल टीचर्स का एक और प्रदर्शन चर्चा में आया है, जिसमे वो मरीज की घर पर देखने के लिए निर्धारित परामर्श शुल्क में वृद्धि, निजी अस्पतालों में ऑपरेशन की अनुमति आदि मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बना रहे है। बाकि दुनिया के हाल ? हमारे पडोसी देश भूटान की स्वास्थ्य योजनाएं दुनिया भर में मिसाल की तरह देखी जाती है, वहां प्रत्येक नागरिक का इलाज निःशुल्क है, संसाधनों के आभाव में यदि किसी को भारत के अस्पतालों में रेफे र किया जाये तो उसका खर्च भी वहां की सरकार ही उठाती है। पडोसी देश श्रीलंका में सब के लिए अनिवार्य बिमा आवश्यक है, जिस से बाद में इलाज का खर्चा कवर किया जा सके । श्रीलंका समेत करीब तीन दर्जन देशों में अनिवार्य बिमा महं गे इलाज के बोझ को हल्का करने में कारगर रहा है। चिरं जीवी बिमा योजना भी इसी तर्ज पर लायी गयी थी, पर सबसे बड़ी खामी यही रही की बहुत सारे निजी अस्पतालों में चिरं जीवी कार्ड स्वीकार ही नहीं किया जाता, जबकि 'यूनिवर्सल हेल्थ के यर' की सूचि में आने वाले देशों की बिमा योजनाओं को प्रत्येक निजी अस्पताल द्वारा मान्यता देना अनिवार्य है। कानून के दायरे में निजी अस्पतालों को शामिल करने के लिए सरकार द्वारा दिए गए तर्कों में से एक यह तर्क भी था की कानून बनने के बाद निजी अस्पतालों की मनमानी पर रोक लगेगी।
  • 4. आदिवासी राजनीति का उदय हाल ही के कु छ वर्षों में आदिवासी-प्रदेश बनाने की करीब एक शतक पुरानी मांग पुनः एक बार फिर से जोर पकड़ रही है। दक्षिणी राजस्थान में आदिवासी समुदाय, आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य की मांग कर रहा है। हालांकि आदिवासी प्रदेश की मांग ना के वल दक्षिणी राजस्थान से आ रही है अपितु गुजरात एवं मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाके भी इसमें शामिल है। हाल ही में हुए गुजरात चुनाव में भी आदिवासी प्रदेश की मांग सुर्खियों में रही। राजस्थान के दक्षिणी इलाकों से उठ रही यह मांग, राजस्थान की राजनीतिक हवा का रुख मोड़ती हुई नजर आ रही है। कु छ दिनों पूर्व हो रहे विधायकों से वन टू वन संवाद के बाद राजस्थान युवा कांग्रेस अध्यक्ष व डूं गरपुर विधायक गणेश घोघरा ने भील प्रदेश की मांग पर कहा कि- "भील प्रदेश बनना चाहिए, जिससे आदिवासियों के हकों की पूर्ति हो सके "। भील-प्रदेश की मांग को लेकर पिछले कु छ वर्षों में आदिवासी समुदाय के काफी संघर्ष हुए हैं।भील प्रदेश की मांग धीरे-धीरे एक "आं दोलन" का रूप ले रही है, जिसमें दर्जनों स्थानीय भील समूह, कई नवगठित युवा-मोर्चा, आदिवासियों को सामाजिक और राजनीतिक रूप से लामबंद कर रहे हैं। अपनी मांगों को सुनियोजित ढं ग से रखने हेतु विभिन्न प्रकार के जागरूकता कार्यक्रमों, ग्राम सभाओं , चिंतन शिविरों और अन्य स्थानीय बैठकों का आयोजन किया जा रहा हैं| भील प्रदेश की उठती मांगों पर विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और बीजेपी के वरिष्ठ विधायक कै लाश मेघवाल ने कहा कि दक्षिणी राजस्थान में अब नक्सलवाद के बीज पहुं च चुके हैं और आदिवासियों में असंतोष बढ़ रहा है, मेघवाल ने कहा कि इस असंतोष के कारण दक्षिणी राजस्थान में माओवाद के बीज भी पनपने लगे हैं | वहीं दूसरी ओर किरोड़ीलाल मीणा इस पर कहते हैं कि, "राजस्थान में नक्सलवाद जैसा कु छ भी नहीं है जैसा कि चित्रित किया गया है। "हमारे (आदिवासी) अधिकारों के लिए दावा आश्चर्यजनक नहीं है, यह स्पष्ट रूप से हमारी दयनीय स्थिति के कारण है। विधायक राजकु मार रोत ने किरोड़ीलाल के विचार से सहमति जताई। एक स्थानीय चैनल जन टीवी के साथ एक साक्षात्कार में, राजकु मार रोत ने कहा, "हमारा पूरा आं दोलन पांचवीं अनुसूची को लागू करने और अन्य प्राकृ तिक संसाधनों सहित वन और भूमि अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए है। उन्होंने आगे कहा, "अनुसूचित क्षेत्रों में, अधिकांश खनन कांग्रेस और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के स्वामित्व में है और जब आदिवासी भूमि, जंगल और अन्य प्राकृ तिक संसाधनों पर अपने अधिकारों के लिए दावा करते हैं तो उन्हें नक्सली के रूप में टैग किया जाता है। राजस्थान के आदिवासियों को यह भी नहीं पता कि नक्सली क्या होता है, यह राजस्थान के आदिवासियों के लिए एक पूरी तरह से नया शब्द और अवधारणा है।” राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ स्थल पर राजस्थान के अलावा गुजरात मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के हजारो आदिवासी इकट्ठा हुए. जिसमें उन्होंने 14 जिलों को भील प्रदेश बनाने की मांग की थी.
  • 5. राजनेताओं की इन भाषणों के साथ-साथ हमें आदिवासियों की वास्तविक समस्याओं के बारे में भी ज्ञात होना आवश्यक है। आदिवासी क्षेत्र में सामान्य- सुविधाएं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, जल, बिजली आदि आज भी सुनिश्चित नहीं हो पाई है। अवैध खनन, अनुसूचित क्षेत्रों की जमीन पर होने वाला सबसे बड़ा धोखा है, ग्राम-सभा प्रक्रिया का खुले तौर पर उल्लंघन किया जाता है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में खनन पट्टे और स्वामित्व, स्थानीय आदिवासियों के नाम पर होते हैं, जिन्हें फर्जी हस्ताक्षर या अन्य अवैध तरीकों से इसके बारे में पता भी नहीं होता है। ट्राइबल आर्मी के संस्थापक कांति लाल का कहना है कि, "पानी, आज हमारे विभाजित होने के मुख्य कारणों में से एक है। "अगर हमारे राज्य की स्थापना होती है, तो जल युद्ध समाप्त हो जाएगा क्योंकि हम पहले अपनी मांगों को पूरा करेंगे ... प्रचुर मात्रा में पानी हमारी फसलों, वित्त और शिक्षा को बढ़ावा देगा। इस प्रकार अवैध खनन से लेकर सामान्य-जरूरतें जैसे- जल, शिक्षा, बिजली आदि, भाषा से लेकर संस्कृ ति तक, आदिवासी-पहचान से लेकर आदिवासी-अधिकार तक, राजनीतिक मांगों से राजनीतिक प्रतिनिधित्व तक, आदि प्रमुख कारक है जो भील प्रदेश की मांग को और सुदृढ़ कर रहे हैं। हालांकि अब यह देखना रोचक है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव को मध्य नजर रखते हुए भाजपा एवं कांग्रेस दोनों आदिवासी राजनीति पर विशेष नजर रखे हुए हैं। हाल ही में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी द्वारा राष्ट्रीय आदिवासी कल्याण सम्मेलन आयोजित किया जाना, मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा दिलाने का प्रस्ताव, आदिवासी कल्याण के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं लाना आदि इस बात का संके त है कि आदिवासी राजनीति, राजस्थान की राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है। किं तु अब देखना यह है कि आदिवासियों द्वारा अपने अधिकारों के लिए संघर्ष, भील-प्रदेश की बढ़ती हुई मांग, उभरते हुए- भारतीय ट्राईबल पार्टी एवं विभिन्न प्रकार के आदिवासी संगठन, जैसे भील-प्रदेश आरक्षण समिति, ट्राईबल आर्मी, आदिवासी परिवार, आदिवासी अनुसूचित संघर्ष मोर्चा आदि किस प्रकार राजस्थान की राजनीति को एक नई दिशा व दशा देते हैं? क्या आदिवासी समुदाय के लोगों को उनके अधिकार मिल पाएं गे? क्या सरकार और पार्टियां पूंजीपतियों द्वारा हो रहे अवैध खनन और आदिवासियों के शोषण को समाप्त कर पाएं गी? और क्या यह भील-प्रदेश की मांग के वल चुनाव तक सीमित रह जाएगी या आदिवासियों को वास्तव में उनके अधिकार मिलेंगे? या आदिवासियों के लिए उनके अधिकार के वल राजनेताओं के भाषणों में मृगतृष्णा बन कर रह जाएं गे?
  • 6. भाईसाब से महामहिम 'आपकी खासियत है कि जब आप कै मरे के सामने जाते है तो हमारी ऐसी की तैसी करने में कोई कमी नहीं छोड़ते, लेकिन आज के बाद में ना तो आप उधर वालों के लिए भाईसाब रहेंगे, ना इधर वालों के लिए विपक्ष के नेता, हमें उम्मीद है कि आप नई जिम्मेदारी में राजस्थान का मान-सम्मान बढ़ाएं गे।' इन शब्दों के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले दिनों राजस्थान विधानसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया की विदाई देते हुए असम के राज्यपाल पद पर उनकी नियुक्ति पर बधाई दी। असम में लाखों मारवाड़ी परिवारों की मौजूदगी इस नियुक्ति को और अधिक महत्वपूर्ण बना देती है। शिव चरण माथुर और हरिदेव जोशी के बाद कटारिया असम के तीसरे राजस्थानी राज्यपाल है। गौरतलब है कि इससे पहले भी राजस्थान से कई लोग संवैधानिक पदों तक पहुं चे है। जिनमे , राष्ट्रपति के रूप में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, उपराष्ट्रपति के रूप में भैरों सिंह शेखावत, जगदीप धनकड़ और कई राज्यपाल शामिल है। राजसमंद में जन्में 78 वर्षीय गुलाब चंद कटारिया आठ बार विधायक और एक बार सांसद रहे। कटारिया, भैरोंसिंह शेखावत की सरकार में शिक्षा मंत्री, वसुंधरा राजे सरकार में दो बार गृह मंत्री, भाजपा राजस्थान के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष के साथ-साथ तीन बार नेता प्रतिपक्ष भी रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्टभूमि से आने वाले कटारिया ने अपनी पहचान अनुशासित, विचारधारा के प्रति निष्ठावान और साफ छवि वाले नेता के रूप में बनाई है। गुलाब चंद कटारिया ने गुवाहटी में असम के 31वें राज्यपाल के रूप में शपथ ली. उन्हें असम के चीफ जस्टिस संदीप मेहता ने शपथ दिलाई. नेता प्रतिपक्ष के रूप में - नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्होंने सरकार को जमकर घेरा, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कई बार उनकी प्रशंसा करते हुए दिखे, पिछले साल ही उन्होंने सदन में कहा था ' कटारिया जी आप भावुकता में कठोर बातें बोलते है, आपकी अदा और कारीगिरी ऐसी है कि, आप पत्थर में भी जान डाल देते है।' चलिए नजर डालते है नेता प्रतिपक्ष के रूप में विधानसभा में दिए गए उनके कु छ चर्चि त सम्बोधनों पर। मार्च 2022, नकल विरोधी विधेयक पर चर्चा के दौरान - एं टी चीटिंग बिल पर बोलते हुए कटारिया कई बार भावुक हुए, उनका वीडियो सोशल मीडिया में जमकर वायरल हुआ, जिस पर देश भर में चर्चा भी हुई। उन्होंने कहा कि पिछले 10 सालो में जितने पेपर लीक हुए है उनकी जाँच करवाइये, आम आदमी करोडो रूपए देकर पेपर नहीं ले सकता, ये सब बड़े-बड़े पैसे वाले दिग्गज ले कर जाते है और फिर अपनी कोचिंग संस्थान के बाहर पोस्टर लगता है, 100 पर्सेंट सिलेक्शन। गरीब परिवार का वह बच्चा जो अपने बूढ़े मां-बाप को भूखे मारकर पढ़ता है, जिसके बाद परीक्षा देने जाता है और परीक्षा देकर रोते हुए लौटता है, क्या दुख नहीं होता है? हम लोगों को दिल में थोड़ा बहुत भी इन गरीब बच्चों के लिए, उस बच्चे का क्या होगा जो इसलिए पीड़ा के साथ पढ़ रहा है, इन सारे पैसे वालों के साथ आपने सभी नौकरियां के पद बेच दिए हैं. मैं बहुत कड़वा सच
  • 7. बोल रहा हूं कि पिछले 8 साल में जितनी भी नौकरी पर लगे हैं उन सब की जांच करा लो, आधा फर्जी मामला निकलेगा । उन्होंने कहा कि क्या कोई सोचने वाला है उनके बारे में, इन गरीब परिवारों के बारे में? आखिर उनका क्या कसूर है उस गरीब के बच्चे का जो भूखा प्यासा पढता है, घर बेच कर पढता है, और सेलेक्शन नहीं होता है तो वह जहर खाकर मरता है, कोई उसकी पीड़ा को समझने वाला नहीं है। मुझे इस पर बोलने की इच्छा नहीं है, रीट परीक्षा के दौरान शिक्षा संकु ल से पेपर चुराने वाला कौन है? उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, सिर्फ कानून से कु छ नहीं होगा, सिस्टम को बदलना होगा। हमारा दुर्भाग्य है, कि हमने शिक्षा के मंदिर को भ्रष्टाचार की भट्टी में जला के खाक कर दिया। फरवरी 2023 - जल जीवन मिशन की तस्वीर ये है कि, इसके तहत 2024 तक राजस्थान में 1 करोड़ पांच लाख परिवारों को जल पहुँचाने का लक्ष्य था, पर अब तक 21 लाख ही कनेक्शन हुए हैं जबकि 11 लाख कनेक्शन योजना शुरू होने से पहले ही मौजूद थे। लूट, अपहरण, बलात्कार, नकबजनी और चोरी के प्रकरण 2018 की तुलना में क्रमशः 36, 34, 38, 32, 28 प्रतिशत बढे हैं। बलात्कार, महिलों से छेड़छाड़ और महिलाओं के अपहरण के मामले में राजस्थान पुरे देश में प्रथम स्थान पर है। पोक्सो एक्ट में जितनी शिकायतें हुई उनमे से सिर्फ 20 प्रतिशत FIR दर्ज हुई, ये अपराधियों को बचाने की मंशा है। साम्प्रदायिक हिंसा के सारे रिकॉर्ड टूट गए, करौली, जोधपुर, और उदयपुर के मामले सबके सामने है। 'घर में नहीं है दाने, बुढ़िया चली भुनाने |' मार्च 2022, राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान - 21 - 22 के बजट अनुमान की तुलना में आपने 22 -23 का बजट अनुमान 64 हजार 823 करोड़ रूपये अधिक रखा, आप 'पूजिगंत प्राप्ति ' यानि कर्जा लेकर के आप बजट को एडजस्ट करना चाहते है। पिछले साल आपका अनुमान था कि आप विकास कार्यों पर 19 हजार करोड़ खर्च करेंगे लेकिन सिर्फ 14 हजार करोड़ खर्च कर पाए। आप ताली पिटवाने के लिए घोषणा करते है पर बजट उनको सपोर्ट ही नहीं करता, आपकी हालत ऐसे है जैसे 'घर में नहीं है दाने, बुढ़िया चली भुनाने।' फरवरी 2021 - पिछले साल जितना 'कर राजस्व' आना था उससे 22 हजार करोड़ कम हुआ है, जिसका सीधा असर आने वाले समय में दिखेगा। राजस्व में ये ट्रेंड दिखा कि आपने अधिकांश बजट, साल के अं तिम तीन महीने में एडजस्ट करने की कोशिश की, जिसका अर्थ आप समझते है कि काम की कोई गुणवत्ता नहीं होगी। आपने जितना निशुल्क जाँच योजना के लिए आवंटित किया था, उसमे से मात्र 19 प्रतिशत खर्च किया। आप भारत में सबसे पहले लॉकडाऊन का क्रे डिट लेते है, पर प्रधानमंत्री के लॉकडाऊन लगाने के कदम की निंदा करते है। महं गे पेट्रोल पर आप कें द्र को दोषी ठहराते है, पर ये नहीं बताते की राजस्थान पेट्रोल पर देश में सबसे ज्यादा टैक्स (वेट) लेता है। कनिष्ट अभियंता का पेपर लीक हुआ, उसका कोई जिम्मेदार नहीं है। लाब्रेरियन 2018, जेइएन 2020 पेपर लीक की वजह से रद्द हुई, कम से कम जो जिम्मेदार है उसकी तो पहचानकरों। आप पंचायत सहायक में नौकरी देने के बात करते हो, और उसे पैसे देते हो 6 हजार, क्या वो जहर खा कर बच्चों को पालेगा। सीकर, भरतपुर, अलवर, बांसवाड़ा में विश्विधालय खुलने के बाद आपने एक शिक्षक की भर्ती नहीं की। पंचायती राज चुनावों को आपने अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए अटकाया। हिंदुस्तान में बिजली का दाम हमारे यहां सबसे ज्यादा है, तब भी जब हम अपनी आवश्कयता का 97 प्रतिशत उत्पादन स्वयं करते है। हमारी बिजली कम्पनियाँ 80 हजार करोड़ के घाटे में चल रही है। जल जीवन मिशन में जितना पैसा आप को दिया आप उसका आधा पैसा भी खर्च नहीं कर पाए।
  • 8. अगस्त 2020 - 'आप हमारे कारण घायल नहीं हुए है, आप घर के झगड़े से घायल हुए है, हमारे सर पर ठीकरा फोड़ना ठीक नहीं है, आपका उप मुख़्यमंत्री जब 6 साल पार्टी के लिए काम कर रहा था अच्छा था, फिर अब कै से बिगड़ गया। आपको एक महीने पहले ही, एक प्रस्ताव बना कर राज्यपाल के पास जाना चाहिए था, कि हमारी सरकार के बहुमत के बारें में संदेह बन गया है, इसलिए हम विधानसभा के फ्लोर पर बहुमत सिद्ध करना चाहते हैं। आपने जो एक महीना सदन का समय खराब किया है, जनता उसका हिसाब मांगेंगी। कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ रही थी, और आपका ध्यान बाड़ाबंदी पर था। जिस दिन आप बाड़ाबंदी में गए, उस दिन मरीजों की संख्या सैंकड़ों में ही थी और आज 56 हजार संक्रमित है, 14 हजार अस्पतालों में भर्ती है, क्या आप उनके परिवारों को जवाब दे पाएं गे ? यदि आप गैरकानूनी तौर पर फ़ोन टेपिंग करते है, तो ये पुलिस के दुरुपयोग का घृणित कार्य है। आपने दो बजट प्रस्तुत कर दिए, मेरी चुनौती है, यदि किसी में मादा है, तो यहां सूची प्रस्तुत कर दीजिये कि हमने जो पैसा स्वीकृ त किया था वो कौन-कौन से कामों में लगा है, वो अभी भी पाइपलाइन में ही चल रहा है, कहीं टेंडर प्रोसेस में है, कही काम शुरू हुआ, कहीं नहीं हुआ। जिस नरेगा के नाम पर आप अपनी पीठ थपथपा रहें है, वो तो आपके उप मख्यमंत्री की मेहनत थी। जिसने मेहनत कर के पुरे देश में सबसे ज्यादा नरेगा मजदूर लगाने का काम किया, उनको आपने सर्टीफिके ट देने की बजाय धक्का मारा। विवादों में कटारिया - विवादों से कटारिया का नाता बेहद पुराना है। 2012 में उन्होंने आदिवासी क्षेत्र में 28 दिनों की लोक जागरण यात्रा निकालने की घोषणा की थी, जिसके विरोध में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे सिंधिया ने दो दर्जन विधायकों के साथ इस्तीफा देने के धमकी दे दी थी, और कटारिया को यात्रा रद्द करनी पड़ी थी। 2013 में CBI ने उन्हें राजस्थान के गृह मंत्री के रूप में, गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्रीअमित शाह के साथ, सोहराबु्द्दीन शेख एनकाउं टर के स में आरोपी बनाकर चार्ज शीट दायर की थी, जिससे वे अन्त्ततः 2015 में बरी हुए। अपने बयानों को लेकर भी कटारिया अक्सर चर्चाओं और विवादों में रहें है, 2016 में उनके द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए दिए गए भाषण में गाली का इस्तेमाल करने पर विवाद हुआ , जिसके बाद शाम को उन्होंने फे सबुक पर लिखा, 'मैंने भाषण में कु छ भी दुर्भावनापूर्वक नहीं कहा है। किसी को बुरा लगा हो तो खेद प्रकट करता हूं ।' लव जिहाद पर विवादित बयां देते हुए 2019 में कटारिया ने कहा था कि हिन्दू एक नहीं हुए तो राजस्थान के शहर पाकिस्तान बन जायेंगे। 2021 में दीप्ती माहेश्वरी के चुनाव प्रचार के दौरान महाराणा प्रताप पर उनके विवादित बयान पर उन्हें जान से मारने की कई धमकियाँ मिली थी, जिसको लेकर उन्हें कई बार सार्वजानिक रूप से माफ़ी भी मांगी। अप्रेल 2020 में सीता पर दिए बयां को लेकर और सितम्बर में उनके द्वारा अपने भाषण में जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल करने पर जमकर विवाद हुआ, जिसके बाद उन्होंने ट्विटर पर लिखा 'भूल होना प्रकृ ति है, मान लेना संस्कृ ति है, सुधार लेना प्रगति है और क्षमा माँग लेना स्वीकृ ति है।पूरे बरस में मेरेद्वारा जाने अनजाने में,बोलचाल में,आमने सामने आपका मन दुखाया हो,गलत लगा हो,तो मन वचन और काया से आप सभी को मिच्छामि दुक्कडम्।' पिछले साल ही उदयपुर के कन्हैयालाल की हत्या के मुख्य आरोपी रियाज के साथ कटारिया की तस्वीरें सामने आने के बाद कांग्रेस ने उन पर सवाल उठाये थे जिस पर उन्होंने कहा की कार्यक्रमों में बहुत से लोग तस्वीरें खिचवाते है, सिर्फ तस्वीर के आधार पर आरोप लगाना निराधार है।
  • 9. किसान से परशुराम या रूठों की मनुवार चुनावी वर्ष में राजस्थान बीजेपी में कई बदलाव हुए हैं। सरकार और संगठन में लगभग 50 वर्षों से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल बना सक्रिय राजनीति से सम्मानपूर्वक विदाई दे दी गई है। कटारिया की जगह उनके डिप्टी रहे राजेंद्र राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है, और राठौड़ की जगह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को उनका डिप्टी बना दिया गया है। पूनिया की जगह उन्हीं की टीम में उपाध्यक्ष चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है । सितंबर 2019 में मदन लाल सैनी के निधन के बाद, कई नामों पर चर्चा हुई, और अं ततः संघ की सहमति से अध्यक्ष पद पर सतीश पुनिया का नाम फाइनल हुआ। मीडिया में पुनिया की चर्चा संघ पृष्ठभूमि के साथ साथ कु शल संघठनकर्ता और कु छ हद तक एं टी वसुंधरा चेहरे के रूप में हुई जो कार्यकाल के दौरान छोटे मोटे टकरावों के रूप में बार बार सुर्ख़ियों का हिस्सा भी रही। किसान परिवार में जन्मे पूनिया एबीवीपी, युवा मोर्चा तथा प्रदेश संगठन में लंबे समय से सक्रिय भूमिका में काम कर चुके है। पुनिया का कार्यकाल 6 माह पूर्व ही समाप्त हो गया था, लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को एक्सटेंशन मिलने के साथ ही चर्चा थी कि पूनिया को भी विधानसभा चुनाव तक एक्सटेंशन मिल गया है। पार्टी की सभी महत्वपूर्ण संगठनात्मक नियुक्तियां और पार्टी कार्यक्रमों की सक्रियता इसी और इशारा कर रही थी। ऐसे में अचानक पूनिया को हटाकर पार्टी ने सभी को चौंकाया। राजस्थान के साथ बिहार उड़ीसा दिल्ली के अध्यक्षों को भी बदला गया लेकिन राजस्थान में चुनाव होने हैं इसलिए राजस्थान को विशेष रूप से देखा गया। राजस्थान के साथ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और कु छ उत्तरी पूर्वी राज्यों में भी चुनाव होने हैं। मध्यप्रदेश में संगठन के स्तर पर बदलाव की चर्चा थी लेकिन बड़े बदलाव देखने को नहीं मिले। वहां भाजपा का सत्ता में होना भी बदलाव ना होने का कारण हो सकता है। ठीक इसी तरह तेलंगाना में भी संगठनात्मक बदलावों की चर्चा सिर्फ चर्चा ही बनी रही। छत्तीसगढ़ में नेता प्रतिपक्ष, अध्यक्ष, प्रभारी के साथ ही संगठन में बड़े स्तर पर बदलाव किए हैं, साथ ही नई प्रदेश कार्य समिति का भी गठन किया गया है। वहीँ राजस्थान में नवनियुक्त अध्यक्ष सी पी जोशी लगातार संगठन में बड़े स्तर पर बदलाव की सम्भावना को नकार रहे है। पार्टी अब जमीनी स्तर पर ज्यादा बदलाव करने के बजाय पुरानी टीम के मुख्य चेहरे को बदलकर की चुनाव में जाने की रणनीति पर कार्य करेगी। बदलाव के कारण - जोशी के अध्यक्ष बनने के बाद पुनिया के हटाए जाने के कारणों पर हर तरफ चर्चा चल पड़ी। कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद मेवाड़ में पार्टी के कोई बड़े नेता का ना होना और पार्टी के परं परागत ब्राह्मण वोटरों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की कोशिश को मुख्य कारण के रूप में देखा गया। बदलाव से कु छ समय पूर्व ही जयपुर में हुई ब्राह्मण महापंचायत से भी लोगों ने इस को जोड़कर देखा
  • 10. और ट्विटर व अन्य सोशल मीडिया पर भी लोगों की अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं देखने लो मिली। विवाद से बचने का निकाला तरीका पूनिया-वसुंधरा के बीच चल रही खींचतान को खत्म करने और वसुंधरा राजे की नाराजगी को चुनावों से पहले एकोमोडेट करने के बारें में भी चर्चाएं हुई। किरोड़ीलाल मीणा भी पूनिया से नाराजगी जाहिर कर रहे थे और सहयोग नहीं मिलने के आरोप लगा रहे थे। वहीं पार्टी इन सभी बातों को चुनाव में तूल नहीं देना चाहती थी जिससे कोई व्यवधान उत्पन्न हो इसलिए पार्टी ने जोशी को अध्यक्ष बनाकर सभी को संतुलित करने की कोशिश की, चुनाव पास होने के कारण जोशी के ज्यादा विरोधी स्वर उठने की भी सम्भावना नहीं है। नए बने अध्यक्ष सीपी जोशी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से की बाद में एबीवीपी ज्वाइन किया, संघ से भी जुड़े, जिला परिषद सदस्य से होते हुए उप प्रधान बने। पार्टी के जिला अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए सांसद बने और सांसद रहते हुए ही युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी बने। जोशी का नाम मोदी मंत्रिमंडल के लिए भी चर्चाओं में रहा, लेकिन उन्हें पुनिया की टीम में उपाध्यक्ष के रूप में जगह मिली और फिर प्रमोशन होते हुए हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष बने। चूँकि पार्टी चुनाव में अब जोशी के नेतृत्व में ही जाएगी इसलिए उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। हालाँकि जोशी को हाईकमान के प्रतिनिधि के रूप में ही देखा जा रहा है, लेकिन गॉसिप्स में लोग जोशी को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के नजदीकी के रूप में भी देखते है। अध्यक्ष बनने के साथ ही जोशी को भी मुख्यमंत्री के दावेदारों के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन जोशी ने हाल ही में दिए कु छ मीडिया इं टरव्यू में विधानसभा चुनाव लड़ने से भी इं कार कर दिया और और खुद को सी एम पद की रेस से बहार बताया। बीजेपी में हाल के ट्रेंड्स के मुताबिक भी अध्यक्ष की भूमिका मुख्यतः चुनावों तक सिमित रही और अध्यक्ष को मुख्यमंत्री बनाने से परहेज किया गया। जोशी के पदभार ग्रहण समारोह में सभी पार्टी नेता एकजुट नजर आए। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कार्यक्रम को ऑनलाइन ही संबोधित किया, पर उनके करीबी नेता यहां मौजूद रहे जो पूर्वाध्यक्ष के कार्यकाल में पार्टी कार्यालय से दूरी बनाए हुए थे। कु छ हद तक पार्टी एकजुट नजर आई लेकिन राजे अभी भी पशोपेश की स्थिति में है वह धार्मिक कार्यक्रमों में फिर से सक्रिय नजर आने लगी है लेकिन स्थिति स्पष्ट नहीं होने पर वे फिर से नाराज हो सकती है और उनके समर्थक बवाल मचा सकते हैं । जोशी को इन सभी नाराजगी को दूर करने के लिए नए चेहरे के रूप में लाया गया है जिससे चुनाव से पहले विरोध ना बढ़े और पार्टी को चुनाव में भीतर से किसी चुनौती का सामना ना करना पड़े।