लेख़क – डॉ. शशिकान्त भगत, फ़ैकल्टी, नेशनल इंस्टीटूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज्म, अहमदाबाद.
पिता करमचंद गाँधी और पुतली बाई के पुत्र मोहनदास करमचंद गाँधी को जब अखंड भारत और सम्पूर्ण विश्व ‘बापू’ के नाम से पुकारता है तो सभी के जुबां पर कुछ ऐसे शब्द गूँज उठते है जिसमें सत्य और अहिंसा की बयार बहने लगती है| भारत के राष्ट्रपिता, भारत को आजादी दिलवाने में अहम योगदान, सत्य और अहिंसा के प्रेरणा श्रोत, यें सभी शब्द हमारे अंतरात्मा को हमेशा से जगायें रख़ते है|
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी – बापू के सिद्धान्तों की वास्तविकता वर्तमान में भी
1. राष्ट्रपिता महात्मा गााँधी – बािू के सिद्धान्तों की वास्तपवकता वततमान में भी
लेख़क – डॉ. शशशकान्त भगत, फ़ै कल्टी, नेशनल इंस्टीटूट ऑफ़ मास कम्युननके शन एंड जननशलज्म, अहमदाबाद.
पिता करमचंद गााँधी और िुतली बाई के िुत्र मोहनदास करमचंद गााँधी को जब अखंड भारत और सम्िूर्न पिश्ि ‘बािू’ के नाम
से िुकारता है तो सभी के जुबां िर कु छ ऐसे शब्द गूाँज उठते है जजसमें सत्य और अहहंसा की बयार बहने लगती है| भारत के
राष्ट्रपिता, भारत को आजादी हदलिाने में अहम योगदान, सत्य और अहहंसा के प्रेरर्ा श्रोत, यें सभी शब्द हमारे अंतरात्मा
को हमेशा से जगायें रख़ते है|
आज जब उनके बारे में शलखने का मन करता है तो िहला पिमनश उनके द्िारा ित्रकाररता की िाठशाला है करता है जजसमें
बािू ने अख़बार को शसर्न ख़बर तक ही सीशमत रहने हदया उसे मनोरंजन एिं पिज्ञािन में तब्दील नहीं होने हदया| इंडडयन
ओपिननयन (1903), यंग इंडडया (1919), हरीजन (1933) और हररजन बंधु (गुजराती) तथा हररजनसेिक (अंग्रेजी) इसी
कालखंड में शुरू हुई है, सभी अखबारों ने सूचना और संिाद के माध्यम से देश में एकता बनाये रखने में मज़बूती प्रदान की|
प्रेस की आज़ादी लोकतंत्र के सभी िायों को मज़बूत रखने के शलए ककतनी महत्ििूर्न है, इसका संज्ञान बािू ने बख़ूबी से अिने
ित्रकाररता कायनकाल में बताई|इसी का िररर्ाम रहा की सत्याग्रह की लड़ाई हमने ित्रकाररता के सहारे लड़ी|
“ित्रकाररता का मूल मंत्र सेिा करना होता है|”, “ित्रकाररता का मुख्य काम जनता के मन को शशक्षित करना है, उसे िांक्षित
और अिांनछत छािों को संचय करना नहीं होता है|” “अखबारों के तथ्यों को अध्ययन के शलए िढ़ना चाहहए, अखबारों को
स्ितंत्र सोच की आदत को मारने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहहए|”, ये सुिाक्य बािू ने ित्रकाररता के िेत्र में कायन करने
िाले माशलकों और ित्रकारों की दी है जो आज भी उतने ही प्रासंगगक है|
अब आि चाहें तो उन्हें बािू, महात्मा, ित्रकार, नेता, अहहंसा के िुजारी या कर्र सत्याग्रह के देिता कह सकते है जजसके
संघर्न के सहारे उन्होंने भारत को अंग्रेजों से स्ितंत्र कराया| ये नाम िूरी दुननया में शमसाल बन गया जो हमेशा कहते थे बुरा
मत देखो, बुरा मत िुनो, बुरा मत कहो, चाहे जो भी िेत्र हो सच्चाई कभी नहीं हारती और ना ही उसे दबाया या मारा जा
सकता है|
बननया िररिार में जन्म लेने में उनके सोच, कायन में कोई बदलाि नहीं आया| उन्होनें अिनी शादी बचिन में हो जाने के
बाद भी िढ़ाई जारी रखी जो दशानता है की आि अिने लक्ष्य को हााँशसल करने में हो रही बाधाओं को अिसर में िररिनतनत कर
सकते है| यही नहीं अफ्रीका में जो उन्होनें रंगभेद का अत्याचार देखा िो भी बािू जो झकझोर हदया की प्रिासी भारतीयों
को ककस तरह का सुलूक ककया जाता है|
अभी लोकसभा 2019 के चुनाि का माहौल है और जजस तरह से चुनाि प्रचार देश की जनता के सामने रखा जा रहा है ऐसा
लग रहा है कक यह देश का नहीं िाटी का चुनाि है| तब बािू की बातें याद आ रहीं है की देश का नेता कै सा हो, ित्रकाररता
कै सी हो, पिचार कै से हो| स्थाई मान्यताएाँ जैसे स्ि से िूिन सेिा, संचय के िूिन त्याग, और दूसरों के शलए गचंता, बहुत तेज़ी से
समाप्त होती जा रहीं है उसका स्थान स्िाथनिरत, लालच, अिसरिाद, धोखा, चालाकी और झूठ के द्िारा शलया जा रहा है|
रोि-प्रत्यारोि की िररभार्ा आजकल कैं िेन के रूि में हदखाई और बताई जा रही है जजससे मतदाता सही ननर्नय लेनें में
असमंजस में िड़ जाता है की देश के शलए सही नेता कौन है| बािू कायानन्ियन के सहारे कल्िना की िररभार्ा बनाते थे|
अब मैं गााँधी जी उन सिद्धान्तों का ज़िक्र करना चाहूाँगा जो वततमान में भी यथावत है –
1. सत्य – गांधी जी सत्य की ख़ोज अिनी स्ियं की गलनतयों और ख़ुद िर प्रयोग करते हुए सीखने की कोशशश की|
इसीशलए उन्होंने अिनी आत्मकथा का नाम सत्य के प्रयोग रखा है| ककसी भी महत्ििूर्न लड़ाई लड़ने के शलए अिने
2. दुष्ट्टात्माओं, भय और असुरिा जैसे तत्िों िर पिजय िाना है| भगिान को सत्य का प्रतीक बताते हुए अिने मुख
से जो अंनतम शब्द बोले थे िो था ‘हे राम’.
2. अहहंसा – चाहे कोई भी धमन हो ‘अहहंसा’ शब्द का बखूबी जज़क्र ककया गया है| बािू ने अिनी किताब “द स्टोरी ऑफ़
माय एक्सिेररमेंट पिथ ट्रुथ” में अहहंसा के बारे में शलखा है जो उनके जीिन मागन का सम्िूर्न िर्नन है|
3. शाकाहारी रिैया – हहन्दू धमन अथिा जैन धमन शाकाहारी भोजन का सेिन करना सभी अनुयानययों को बताया है|
गांधी जी तो बचिन में मांस खाने का अनुभि शमला था| मूलरूि से गुजराती होने के नाते शाकाहारी भोजन का
सेिन करना घर, िररिार या समाज की िरम्िरा होता है| हम सब आजकल िेजजटेररयन, नॉन-ििेजजटेररयन िाले
िररिार, रेस्टोरेंट या पिज्ञािन देखने. को शमलते है, लेककन गांधी जी शुरू से र्लाहारी अथानत फ्रू टेररयन करते थे
और अिने गचककत्सक की सलाह के बकरी का दूध िीते थे|
4. ब्रह्मचायन – बािू ने ब्रह्मचयन को ईश्िर के िरीब आने और अिने को िहचानने िाला बताया| उन्होंने कहा की
अिनी इजन्ियों के अंतगनत पिचारों, शब्द और कमन िर ननयंत्रर् करना ही सही ब्रह्मचयन की िररभार्ा है|
5. सादगी – एक सामाजजक व्यजक्त होने के नाते व्यजक्त को साधारर् जीिन ही जीना चाहहए| साधारर् जीिन
जीने का मतलब ये नहीं होता की आि जरूरत की चीजों का इस्तेमाल ना करें| बािू ने अिने जीिन को एक
साधारर् जीिन में तब्दील करने के शलए कु छ प्रयोग ककये जैसे की एक हदन का उििास करना, जजससे उनको
आंतररक शांनत शमलती थी| एक और अनूठे प्रयोग आ जजक्र करना चाहूाँगा जजसमें बािू ने 37 साल की आयु से
साढ़े तीन साल तक अखबारों को िढ़ने से इनकार कर हदया जजसके ज़िाब में उनका कहना था कक जगत की आज
जो जस्थर अिस्था है उसने उसे अिनी स्ियं के ई आंतररक अशांनत की तुलना में अगधक भ्रशमत ककया है|
6. पिश्िास – गांधी जी का जन्म हहन्दू धमन में हुआ और उन्होंने अिने सारे शसद्धान्तों की उत्िनत हहंदुत्ि के पिचारों
में रख कर संरची| िासुदेि कु टुंबकम की भािना को मन रखते हुए िे सबको एक समान देखा, समझा और माना,
इसीशलए उन्होंने धमन-िररिर्त्नन के सारे तकों और प्रयासों को अस्िीकृ त ककया|
अंततः मैं अिने इस लेख के सहारे इतना ज़रूर कहना चाहूाँगा की ितनमान समय जो घटनायें हमारे सामने घट रहीं हैं जो
अनैनतक है, असामाजजक है उसे बािू के मूल्यों के सहारे सुलझाया जा सकता है|
-िमाप्त-