1. My Poems
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गुल रही चहक
धड़कन की खनक
स ाँसों की महक
आचाँल में छिप ए
गुल रही चहक
पंख पसर ए
नभ में ि ए
मधुर रंगीले
गीत गुन गुन ए
भोर चढे जो
नीड़ िोड़े
भूले भटको की
स ाँस फिर जोड़े
ममलने की च हत
बििोह की कसक
अहस स से परे
गुल रही चहक
23-06-1999
अनज न थी चहक थी
सुख की खनक थी
अि मभखरे छतनके
उखड़े पंख , भटक सूरज
गगरते त रे जलत जग
सुलगती धरती , टूट आक श
मभखर नीड़
2. धूप
खखड़की की ज ली से िनकर देवदूत सी आयी धूप
श यद मेरे मलए ही इस कमरे में उतर आई धूप
सीलन भरे कमरे को त जगी से भरने आई धूप
मेघो को िू कर और छनखर आई धूप
हर श ख हर पंख पर खिलममल लहर यी धूप
खखड़की की ज ली से िनकर देवदूत सी आयी धूप
श यद मेरे मलए ही इस कमरे में उतर आई धूप
03-07-1999
और फिर एक ददन दरव जे से भीतर आयी धूप
सुनहरी कु ि उजली छनममल आशीष सी धूप
पल भर दिठ्की रोम रोम में सम यी धूप
िंद पड़ी वसुध को पुलक गयी धूप
जीवन की हलचल गभम में भर गयी धूप
और फिर तम बिखेरती ज ने कह ाँ चली गयी धूप
कभी न लौट के आने को भटक कर चली गयी धूप
29/11/2004
3. आक श
मेरे आक श कह ाँ हो तुम
आओ समेट कर ले ज ओ मुिको
मैं भी िरसूाँ
मसचूाँ स्वयं ही को
मेरे आक श
मुिे घुलने दो स्वयं में
फक जीवन वह ाँ है
तुम जह ाँ हो
जीने दो स्वयं में
Promise
Bless me joy,
you Promised ....
Roll me in your arms
Oh its your smell ,
I wanna breathe
These are your wings,
I am flying with,
Baby shelter me,
bring me home,
U promised.....
4. स क्षी तुम
देखते हो र ख उडती है
कै से कु हरे पर जमती है
सहम कर च ाँदनी
दििक गयी िुिते पलो में
जजल दो फिर एक स्पशम में
छनचोड़ दो धुएाँ को
पर िरसो कै से भी
व्योम डरते हो यूाँ भी
ममटते ही हो िह ही चलो
चलो आज ममल ही लो
फिर स्मृछत पथ पर हो लो
रहत अि जह ाँ कोई नहीं पर
स क्षी तुम रहन कवेल तुम
भ गूं भ गती रहूाँ
मशर ये उिलकर
िह पडे .......
चीखूाँ छनशब्ध गुंज दूाँ
िे िड़े िटकर
मभखर पड़े
पर तुम मत आन
डूि ज ओगे ख रे स गर में
खो ज ओगे अंगधय रे में
जुलस ज ओगे , अरे िहरो
दहकते प्रश्नों के गमलय रे में
वह ाँ भी पर
स क्षी तुम रहन कवेल तुम
वसुध धधक रही है
व्योम कह हो
पयोधर फिर िरो
िर िर
पपघलो , िरो , ममटो
वसुध में घुलो
भरो, दर रों में तुम ह ं
स क्षी तुम रहन कवेल तुम
5. अंतहीन खोज (08-12-2004)
खोज अंतहीन खोज
महीन फकरणों के ज लो में
छनजमन हर पथ में
मोर के छनममल छनशब्द में
छनिःशब्द के संगीत में
खोज अंतहीन खोज
पवच रो में भ वो में
स ाँसों से उिते िवंडरो में
त ल कोटर िहरे हर
प नी में
खोज अंतहीन खोज
हर पल हर आय म में
संध्य सवेरे के ग न में
दीप के प्रक श में तम में
खोज अंतहीन खोज
पपघले मन में
िलकते आाँसू में
रेट के कतरों में
प नी की ललक रो में
खोज अंतहीन खोज
6. प्रतीक्ष - 2 (07-11-04)
छनयछत है,
पवड़म्िन है
आिद्ध रह पीड़ सहनी है
मौन को सहेज रख
पल पल जीन है
प्रतीक्ष को
पर जो भी हो
वह है तो तेरी है
के वल तेरी