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1
श्रीभद् अभयकथा ननमोजजत प्रवचनाॊश आधारयत
(सॊक्षऺप्त तत्वऻान सायाॊश)
* अभयकथा अभृत फोध *
(सअथथ तीनों बाग सहहत)
तत्वदर्शी सॊत श्री होयाभदेव जी भहायाज वन भें सभाधध अवस्था भें
यचनाकाय
तत्वदशी सॊत श्री होयाभदेव उपथ श्रीदेव जी भहायाज
ग्राभ दफथुवा (भेयठ) वारे
ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ
सॊजम ववहाय गढ योड़, भेयठ, (उ0 प्र0)
2
द्ववतीम सॊस्कयण जनवयी सन् 2013 ई0
भूल्म – रू 100/-
3
श्रीभद् अभयकथा ननमोजजत प्रवचनाॊश आधारयत
सॊक्षऺप्त तत्वऻान सायाॊश
अभयकथा अभृत फोध
(सअथथ तीनो बाग सहहत)
श्री ऩयभऩूज्म श्री सतगुरुदेव श्री 1008 श्री स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस
भहायाज याजमोग भजन्दय
(ऩयभहॊस सत्माथी मभशन, यघुफयऩुया नo-2, हदल्री – 31)
के
श्री चयणों भें सभवऩथत दासानुदास
एवॊ
ऩयभ काव्म यचनाकाय
तत्वदशी सॊत श्री होयाभदेव उपथ श्रीदेव प्रजाऩनत
(ग्राभ व ऩोस्ट दफथुवा, तहसीर सयधना जजरा भेयठ वारे)
सॊस्थाऩक – ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ
सॊजम ववहाय, गढ योड, भेयठ
भो0 08979553493
भें मह
द्ववतीम सॊकमरत सॊस्कयण ववस्ताय सहहत सम्ऩन्न हुआ।
4
सतगुरु ऩयभहॊस श्री होयाभदेव जी की सॊक्षऺप्त जीवन झाॉकी
।। अवतयण।।
श्री सतगुरुदेव सॊत श्री होयाभदेव प्रजाऩनत का जन्भ वव0 सम्वत् 2003
तदानुसाय सन् 1946 ई0 शुब भास कानतथक कृ ष्ण ऩऺ की सप्तभी अहोई का
त्मौहाय हदन गुरुवाय (फृहस्ऩनतवाय) को प्रात् 3.29 फजे ब्रह्भ भूहतथ भें एक
ननधथन प्रजाऩनत ऩरयवाय भें सॊत श्री उभयाव प्रजाऩनत ग्राभ दफथुवा तहसीर
सयधना जजरा भेयठ भें हुआ था। भाता जी का नाभ भाथुयी देवी था। आऩसे ऩूवथ
आऩकी ऩाॉच फहने थी ऩुत्र के अबाव भें भात वऩता फैचेन थे इसके मरमे भात –
वऩता ने भाॉ जगदम्फा की कठोय अयाधना की थी। देवी ने श्री ववष्णु की उऩासना
कयने को कहा। जफ वऩताश्री श्री ववष्णु की बजतत कयने रगे। तफ श्री ववष्णु की
कृ ऩा हुई कक आऩ के घय शीघ्र ही सचखण्डी सॊत का जन्भ होगा कु छ सभम फाद
भात वऩता भें वववाद फन गमा तफ आऩ भात गबथ भें थे। भाता अरग यहने रगी
जजसके सात भाह फाद आऩका जन्भ हुआ घय भें खुशी की रहय दौड गमी फैय
ववयोध बी सभाप्त हो गमा। ऩयन्तु जन्भ के कु छ हदन फाद आऩ फीभाय यहने
रगे। एक हदन आऩकी दशा फहुत चचन्ताजनक हो गई। तत्कार भाता जी ऩास
के शहय भेयठ भें ऩैदर इराज के मरमे रे गई। रौटते वतत गभी भें ववह्वर
ऩैदर भाता ने आऩके भुख से कऩडा उठाकय देखा तो आऩ अचेतन (भृत) थे भाॉ
की चीख ननकर गई भाॉ पू ट पू ट कय योने रगी नन्श्वास व अचेतावस्था देख
भाता ऩागर हो उठी तफ ही अचानक एक छोटी सी रडकी जॊगर भें कहीॊ से आ
टऩकी औय फोरी भाता ! महद तुभ भुझे खाना दो तो तुम्हाया फच्चा जीववत हो
जामेगा। भाता जी ने वामदा ककमा। चरते चरते फच्चा ऩुन् बफल्कु र ठीक हो
गमा। भाॉ जफ कु छ बोजन मरमे खुशी से वहीॊ ऩय आई तो वहाॉ जॊगर भें कन्मा
न होकय एक गाम खडी थी जजसे भाता जी ने बोजन खखरामा। सम्बवत् मह
कोई दैवव शजततस्वरूऩा चभत्काय हदखा गई हो। भहाऩुरुषों का कथन है कक जफ
कोई भहान ववबूनत सॊसाय भें अवतरयत होती है तो देवी देवता बी बेष फदर कय
दशथनाथथ आते हैं। कु छ हदन फाद आऩ दुफाया गम्बीय रूऩ से फीभाय ऩड गमे।
सभस्त उऩचाय असपर यहे ऩैसा ऩास नहीॊ था ऩहरे जैसी अवस्था हो गई भुदाथई
(भूछाथ) चेहये ऩय छा गई साॊस गनत फन्द होने से आऩकी भृत्मु हो गई। तफ घय
भें एक कहय सा छा गमा तमोंकक ऩुत्र रूऩ भें आऩ ही भात वऩता की अके री
सन्तान थी। वऩता जी इतने अधीय हो गमे कक आऩको देखा न गमा औय कु ऐॊ भें
5
डूफने चर ऩडे। एक आदभी ने उन्हे अचानक आकय कु ऐॊ भें चगयने से योका औय
कहा कक तुम्हाया फच्चा ठीक है। भभता भें डूफे हुवे वऩता जी घय आमे औय देखा
कक फच्चे ऩय कपन डार हदमा गमा था, सफ यो यहे थे। अनामास ही एक साधु
जी आमे औय मबऺा भाॉगी। तथा मबऺा के मरमे हठ कयने रगा भाता ने योते
योते बीऺा दे दी। साधु ने बीऺा का आटा कपन के ऊऩय डार हदमा औय कपन
उठाकय फोरे, फच्चा तमों सफको रूरा यहा है जीववत हो जा ? फच्चा तत्कार योने
रगा। सफ भें प्रसन्नता आई ऩयन्तु साधु का कु छ ऩता नहीॊ चरा कहाॉ चरा गमा
? सम्बवत् मह बी कोई देवमोग ही था।
दो0- कबी ककसी बी सॊत का भत कयना अऩभान।
न जाने ककस बेष भें मभर जामें बगवान।।
शर्शऺा एवॊ गृहस्थ जीवन
इसके फाद आऩके वऩताजी आऩको कु छ तीथों के दशथन कयाने ननकरे।
एक फाय जफ आऩ चाय वषथ के थे वहाॉ आऩ एक ताराफ भें चगय गमे, फडी
भुजश्कर से वऩता ने आऩको ढूॊढ कय ननकारा। आऩके फाद एक फहन औय एक
बाई का जन्भ हुआ। वऩता स्वमॊ फीभाय यहते तथा वृद्धा अवस्था भें जैसे तैसे
भजदूयी कयके गृहस्थ चरा यहे थे। ऐसे भें आऩकी इच्छा अनुसाय आऩको
ववद्मारम भें प्रवेश हदरामा गमा। ऩढने भें आऩ तीव्र फुवद्ध तथा भेधावी छात्र
मसद्ध हुवे। वऩता की अवस्था अच्छी न होने के कायण आऩ ज्मादा नहीॊ ऩढ सके
कु र दसवीॊ कऺा ऩास की। आऩ अऩना ऩढाई का फकामा सभम वऩता की भदद
भें रगाते भजदूयी कयके ऩढने जाते यहते थे। आऩकी बजन ऩूजन भें कोई रूचच
नहीॊ थी। ऩत्थय ऩूजा तो बाती ही नहीॊ थी। वऩताजी ने कई फाय आऩको बजन
ध्मान की तयप रगाने का प्रमत्न ककमा ऩयन्तु आऩ शयायती फनते गमे। आऩ के
वऩता ने आऩकी शादी श्री नत्थूयाभ की सुऩुबत्र जगवती देवी से ग्राभ गेझा (भेयठ)
से कय दी। कु छ हदन फाद आऩके वऩता जी ने बववष्मवाणी की कक भैं आज से
अटठायहवें हदन ब्रह्भ भूहतथ भें सॊसाय को छोड दूॉगा। भुझे बगवत गीता रा दो।
एक ऩाठ ननत्म ककमा करूॉ गा। अठायहनें हदन ठीक ऐसा ही हुआ। वऩता जी ने
सभाधी अवस्था भें रीन होकय याभ आ गमे जम याभ कहते हुवे शयीय त्माग
हदमा। आऩको गृहस्थ बाय सम्बारना ऩड गमा फार आमु भें मह एक फडा
धतका रगा। आऩ गृहस्थ बाय उठाने रगे, ववद्मारम का त्माग कयना ऩड गमा।
6
थोडा बजन ध्मान श्री दुगाथ जी का कयने रगे तथा भजदूयी कयके गृहस्थ चराने
भें आऩ रग गमे। आऩने नायामण कवच धायण ककमा तथा आहद शजतत की कृ ऩा
प्राप्त की। औय आहद शजतत ने सदैव आऩकी बुजाओ भें ननवास कयने का
वयदान हदमा।
सन् 1965 ई0 कानतथक ऩूखणथभा को आऩ स्वगीम वऩता की गॊग दीऩ
यस्भ ऩूयी कयके जफ वाऩस रौट यहे थे तफ गॊगा तीय की येती ऩय अनामास ही
एक साधु (अवधूत) रटा धायी छोटा कद फार सपे द (आमु थोडी), ने आऩका हाथ
ऩकड मरमा। उसने आऩ से चवन्नी भाॉगी । आऩने कहा भेये ऩास नहीॊ है आऩने
उसे कोई ठग मा फहरूवऩमा सभझा था अवधूत फोरा बाई की तेये ऩास तीन
रूऩमे दो चवन्नी हैं भैं के वर एक चवन्नी भाॉगता हूॉ महद नहीॊ देगा तो
ऩछतामेगा। आऩको सॊदेह हुआ कक शामद इसने भेये ऩैसे देख मरमे है तमा मह
कोई जादूगय है। ऐसी बमबीत जस्थनत भें आऩने जैसे ही चवन्नी देने को हाथ
फढामा तबी उसने कहा – चवन्नी अऩनी ही भुट्ठी भें फॊद कय रो कपय आऻा
अनुसाय जैसे ही आऩने भुट्ठी खोरी तो चवन्नी बय हथेरी ऩय सपे द ऩानी था।
साधु ने उन्हे अभृत फता कय आऩको ऩीने के मरमे कहा। आऩने डयते डयते हुवे
उसे वऩमा जो अत्मन्त स्वाहदष्ट व भीठा था। कु छ ऩानी आऩकी छाती ऩय
भरवामा। तफ आऩने सभझा मह कोई साधू है। उस अवधूत ने कहा बैमा होयाभ
इसी मभथ्मा एवॊ ववनाश शीर भुद्रा के मरमे झूठ फोर यहे थे। मह तो मूॉ ही ऩानी
हो जाती है भैं जजसे देता हूॉ बॊडाया बय जाता है, औय जफ रेता हूॉ तो सम्ऩदा
मूॉही चरी जाती है। इससे इतना भोह न कयो औय कु कभथ त्माग कय सद्कभथ ऩय
चरो जो तुम्हे कयना है। कपय अवधूत ने आऩको नाभ दान दीऺा दी औय कहा
कक भैं तुम्हे दीऺा देने आमा था सो दे दी है। मह चवन्नी का जर सचखॊड का
अभृत था जो तुभने ऩी मरमा है। बववष्म भें मह यॊग हदखामेगा ग्रन्थ मरखामेगा।
अफ तुभ इसी भॊत्र का एक वषथ घय ऩय ही ध्मानाभ्मास कयो। इससे तुझे ऩूणथ
सतगुरु की तेये घय ऩय ही प्राजप्त होगी। तुभ उनकी चयण शयण भें सतनाभ की
कभाई कयना तुम्हाया भोऺ होगा। तेये शत्रु बी अनेको फनेगें जजसभें तू सत्म के
कायण ववजमी होगा। अफ तू गॊगातीय की तयप दस कदभ भॊत्र जऩता जऩता हुआ
जा कपय भेये ऩास भुडकय आना। आऩ दस कदभ ऩूणथ कयके जैसे ही वाऩस भुडे
तो देखा कक अवधूत गामफ होने रगा आऩ उसकी तयप दौडकय चयणों भें ऩडने
को चगये तो वह अदृश्म हो चुका था। अफ आऩको अवधूत का वैयाग्म हो गमा।
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कपय घय आकय उसी ववचध अनुसाय ध्मानाभ्मास कयना शुरु कय हदमा। साथ साथ
घय का बयण ऩोषण भजदूयी कयना बी जायी यखा आऩने अऩनी छोटी छटी फहन
की शादी जैसे तैसे कय दी। छोटे बाई को गोद भें ऩारा तथा ऩुत्रवत प्माय हदमा
गृहस्थ भें ऩजत्न का सहमोग बी अनुऩभेम यहा। अफ आऩको सफ याभवीय के नाभ
से ऩुकायने रगे।
सतगुरु शभरन एवॊ दीऺा प्राप्प्त
ईश्वय बजतत आऩके रृदम भें जाग चुकी थी। ऻान ऩुष्ऩ खखर चुका था।
ईश्वय बजतत भें जर बफन भीन जैसे अवस्था फन गई थी। ऩयन्तु अवधूत के
ननदेशानुसाय ऩूणथ गुरु की खोज कयना ही रक्ष्म था। जफ कोई साधु सन्त आऩको
कहीॊ मभरता तो आऩ वाताथराऩ कयते ऩयन्तु सन्तुजष्ट नहीॊ हुई। इसी प्रकाय कई
भहीने फीत गमे। एक हदन आऩ भजदूयी ऩय रगे थे कक एक सॊत ग्राभ भें आमे।
आऩ उनके ऩास ऩीछे – ऩीछे चर हदमे। उनसे बी आऩने कापी तकथ ववतकथ ककमे
अन्त भें आऩने तीन प्रश्न औय ककमे।
1.भै आऩको गुरु धायण कय सकता हूॉ मा नहीॊ ?
2.वह ऩयभतत्व तमा है जजसे जान रेने के फाद कु छ शेष जानने मोग्म नहीॊ
यहता?
3.हहयण्मगबथ तमा होता है ?
सुनकय श्री सॊत जी फोरे फेटा सुख गृहस्थी भें है तुम्हायी अबी शादी हुई है सुख
बोगो मशष्म फनना आसान नहीॊ है। आऩने कहा कक भुझे गुरु मभरन की प्मास
रगी है उसे आऩ फुझाने भें सभथथ हो। गुरु बफन जीवन ऐसा है जैसा कक दीऩक
के बफना भहर। सॊत जी ने ऩयभतत्व की व्माख्मा की कपय भूर प्रकृ नत का प्रसॊग
देते हुवे कहा कक मे हहयण्मगबथ तुभ जानना चाहते हो मा देखना ? भैं हदखा बी
सकता हूॉ। इसी वाताथराऩ भें सॊत जी सोने रगे। आऩ उन ऩय दो घॊटे तक ऩॊखा
डुराते यहे जागने ऩय आऩको ऩॊखा कयते हुवे ही ऩामा तफ खुश होकय सॊत जी
साॊम के सभम आऩके ही साथ टहरने ननकरे यास्ते भें ब्रह्भ ऻान चचाथ कयते
कयते फहुत दूय ननकर गमे औय एक फहते गूर के ककनाये रूक कय स्नान ककमा
आऩने उनको स्नान कयामा तथा वस्त्र धोमे कपय फैठकय आऩका सॊत जी ने हाथ
थाभ मरमा। मह श्रावण शुतर एकादशी का हदन था। आऩने कहा गुरुदेव हाथ
छोडने के मरमे न ऩकडना। आऩने बी श्री भहायाज का हाथ ऩकड मरमा। ऩूछने
ऩय आऩने फतामा कक गुरुदेव महद आऩने भुझे छोड हदमा तो भैं आऩका हाथ
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नहीॊ छोडूॊगा। भुझे सॊबारकय ऩकडना भैं अनत दम्बी ऩाऩाचायी अधभ आऩकी
शयण आमा हूॉ ववचाय रेना। स्वाभी जी ने वामदा ककमा कक भै तुभसे अनत
प्रसन्न हुआ हूॉ। भै तुझे वचन देता हूॉ कक तुझे हहयण्मगबथ ही नहीॊ ऩूणथ ऩयभहॊस
ऩद की प्राजप्त कया दूॉगा तेया नाभ है होयाभ “जा हो जा याभ ” भेया आशीवाथद
ग्रहण कय। इस प्रकाय सोरह वषथ की आमु भें आऩने दीऺा धायण की। तीन हदन
आऩके घय ऩय साथ यहकय वे सॊत जी चरे गमे। मे सॊत थे श्री 1008 ब्रह्भदशी
श्री स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस याजमोग भजन्दय हदल्री – 31 की गद्दी
ऩय ववयाजजत। श्री स्वाभी जी की मोग्म मशष्म मभरन की ईच्छा तथा आऩकी ऩूणथ
प्राजप्त की इच्छा आज ऩूणथ हुई थी। कपय आऩने अऩने छोटे बाई की शादी की।
गृहस्थ बाय बी उठाना अननवामथ था। आऩको ध्मान रीन देखकय आऩकी ऩजत्न
बी गुरु – मशष्मा फनकय साथ साथ बजन ध्मान औय भजदूयी कयने रगी।
ध्मानमोग एवॊ प्रकृ तत प्रकोऩ
दीऺा प्राजप्त के फाद आऩने दृढ सॊकल्ऩ मरमा (ऩाऊॉ गा मा मभट जाऊॉ गा)
के साथ ध्मान सभाचध भें बयसक प्रमत्न ककमा औय श्रीगुरु देव के प्रनत आऩका
सभऩथण एक उदाहयण फन गमा। श्रीगुरुदेव की भूनतथ आऩके अन्त्कणथ भें फस
चुकी थी। बजन ध्मान भें इतनी रीनता थी कक सायी सायी यात जफ प्रजा सोती
थी आऩ एक चादय भें मरऩटे ध्मानमोग भें सभामे यहते थे। गुरुदेव को ऩर बय
बी नहीॊ बूरते थे। इसी ऩरयजस्थनत भें थोडी ही आमु भें आऩके साथ ऐसी घटना
घटी कक आऩका रृदम हहर उठा। शामद मह कोई देवी ऩयीऺा थी। आऩ एक
अऩने घेय से घय जा यहे थे अचानक आऩके चचेये बाई की स्त्री ने एक षडमन्त्र
आऩको भयवाने के मरमे यचाकय एक उऩरा आऩ ऩय पें का औय उसने शोय
भचामा। वहीॊ नछऩे हुवे 20 आदभी जो हचथमायो से तैनात फुरामे गमे थे, सफने
एकदभ आऩ ऩय हभरा कय हदमा आऩ ननहत्थे थे राठी ऊऩय फयस यहीॊ थी शोय
सुनकय आऩकी भाता जी आमीॊ तो आऩके चाचा ने उस ऩय प्रहाय कयके मसय
पोड डारा। आऩ उसे फचाने बागे थे कक शोय सुनकय आऩकी ऩजत्न जगवती जो
गबाथवस्था भें थी दौडी आई वह आऩको फचाने रगी कक उस ऩय बी रोहे की छड
से चाचा ने तथा कई गुन्डों ने प्रहाय ककमा जजससे वह फेहोश होकय चगय गई।
आऩने प्राथथना की हे हरय ! हे शजतत ! भेयी यऺा कयो तबी आऩ वऩटते – वऩटते
9
ऩजत्न को कन्धे ऩय राद कय उठाकय घय भें रे गमे। वहाॉ से आऩको फाहय
ननकारा औय राठी फयसने रगी तबी आऩने हभरावय की राठी छीन कय
घभासान मुद्ध ककमा जजससे शत्रु ऩऺ दीवायें कू द कय बागने रगे। तफ जान फची।
कपय आऩने अऩनी ऩजत्न को सम्बारा, भाता को उठामा। अगरे हदन आऩने
ऩॊचामत फुराई जजसभे गाॊव के सबी प्रभुख व्मजततमों को फुराकय वाकात को
स्ऩष्ट कयने की फात यखी। ऩहरे तो उस स्त्री ने आऩको फदनाभ कयने की फात
कही ऩयन्तु वह झूठी मसद्ध हुई। कापी देय ऩॊचामत भें तकथ उठे कपय उस स्त्री व
आऩके चाचा व अन्म गुन्डों को ऩॊचामत ने दोषी भानकय ऩाॊच ऩाॊच जूते रगाने
की सजा दी तथा आऩको ननदोष भाना। आऩ इस षडमन्त्र से फेखफय थे। उस
स्त्री ने सोचा था कक प्रेभी मभरन भें याभवीय रूकावट कयेगा इसमरमे उसे भयवा
देना चाहहमे। सबा ने उन्हे दजण्डत ककमा तथा आऩसे ऺभा भॊगवाई। आऩने अऩने
चाचा से कहा – भुझसे तमा ऺभा भाॊगते हो ऩयभेश्वय से ऺभा भाॊगो। आऩने
चाचा का बी इराज कयामा ऩयन्तु आश्चमथ मह था कक आऩके शयीय ऩय कहीॊ
चोट नहीॊ थी। कु छ हदन फाद उस स्त्री का ऩनत तऩैहदक का फीभाय हुआ औय भय
गमा। इसका बी दोष वह आऩ ऩय देती यही कक याभवीय ने इसे कु छ ककमा है।
इस तयह इस स्त्री ने आऩ ऩय अनेकों अत्माचाय ककमे ऩयन्तु स्वमॊ ही रजज्जत
होती यही। आऩ हरय इच्छा कहकय शान्त फने यहते थे। उधय ध्मानमोग भें
आऩकी सुनतथ नब भण्डरों ऩय तीव्र रूऩ से चर यही थी ध्मानावस्था उत्तभ गनत
ऩय जा यही थी। मशव ववष्णु ऩावथती आहद का साऺात्काय आऩको हुआ तथा
आशीवाथद प्राप्त ककमे। ऩयभात्भा अऩने बततो को इतना कष्ट न जाने तमों देते
हैं ?
एक फाय आऩ भजदूयी कयने एक चगयजाघय भें गमे वहाॉ आऩने ऩॊद्रह
हदन काभ ककमा था। एक हदन आऩ प्राथथना बवन की दीवाय की ऩुताई कय यहे
थे फहुत ऊॉ चे ऩय एक दीवाय भें फहुत फडी घडी (घन्टा) टॊगी थी जो आऩकी कूॉ ची
रगकय नीचे चगयकय चूय चूय हो गई। तबी सीढी कपसर कय चगयने रगी आऩ
बी नीचे चगय गमे। सपे दी (करी) छरक कय आऩ की आॉखों भें बय गई आॉख भें
जख्भ बय गमा। जैसे तैसे आऩने नर ऩय आॉखे धोई, आऩ जैसे तैसे अॊधे हुवे ही
अऩने घय ऩाॉच कोस ऩैदर चरकय आमे। ऩयन्तु घॊटे की ऺनत ऩूनतथ भें आऩका
हहसाफ योक मरमा गमा था औय आऩकी साईककर बी चगयजे भें फॊद कय दी गई
थी। आऩ ऩैसे से तॊग तो थे ही मह औय गयीफी ऩय भाय हो गई। शाभ को आऩ
10
घय आमे उदास हुवे चुऩ सो गमे। ऩजत्न अधीय हो गई, योने रगी कक अॊधा होने
से अफ गुजाया कै से होगा ! औय ववनती कयने रगी कक हे- प्रबु इन्हे ठीक कयदो।
आऩ यात बय ईसा भसीह को कोसते तथा मशकामत कयते यहे। अगरे हदन जफ
चगयजाघय की ऩुताई कयके बफना भजदूयी मरमे आऩ चरे तो चगयजाघय जो ऩूणथत्
फॊद कय हदमा गमा था का अचानक एक दयवाजा खुरा। जजसभें से एक ऩादयी
फाहय आमे उन्होने आऩसे प्रेभ की फाते की तथा ठेके दाय को सभस्त हहसाफ व
साइककर रौटा देने को कहा औय आऩकी आॉख ऩय हाथ यखा जजससे योशनी आई
औय हदखाई देने रगा। कपय हहसाफ हदरा कय आऩको प्रेभ देते देते वह सॊत वाऩस
चगयजे भें ही सभा गमा। कपय सफ घय चरे गमे। शामद मह कोई ईशा जी की
बेंट होगी।
इस प्रकाय चौदह वषथ (दीऺा के हदन से) सायी सायी यात ध्मान
सभाचधस्थ यहकय आऩने अऩनी ननजधाभ मात्रा अनेकों कष्ट तथा गृहस्थ ऩारन
के साथ साथ तम कयके अरख रोक तक की मात्रा ऩूणथ कय री। 30 – 31 वषथ
की आमु भें इतनी सुतथमात्रा की कभाई कयना एक अनुऩभेम कामथ था। इसी फीच
आऩके श्री गुरुदेव सत्माथी जी का बन्डाया रगा वहाॉ आऩको श्री भहायाज जी ने
अचानक आऩको प्रवचन कयने का आदेश हदमा। जफ आऩ प्रवचन कयने रगे तो
सभस्त सॊत भॊडर आश्चमथ चककत यह गमे। कपय श्री भहायाज जी ने आऩको
प्रसन्न होकय तथा मोग्म मशष्म जानकय जनकल्माणाथथ नाभ दीऺा देने की आऻा
कयके सतगुरु ऩद की ववचध ऩूवथक उऩाचध ऩय सुशोमबत कय हदमा तथा सभस्त
गुरु बाईमों के मरमे बी आऩको सम्बारने का आदेश हदमा। गुरुत्व बाय स्वीकाय
कयके आऩ जगत जीवों को नाभ दान उऩदेश तथा सतसॊग देने भें सतगुरु सेवक
फनकय जुट गमे। अनेकों बततों को आऩने सचखण्ड से जोडने के मरमे ग्रहण
ककमा। अनेकों रृदमों भें आऩने सतनाभ का डॊका फजामा औय ऩूणथ ऩद प्राप्त
कयामा। फहुत से गुरु बाई बी आऩकी शयण भें अऩनी सतनाभ कभाई भें रग
गमे। इसी फीच अनेकों सॊत आऩसे सतसॊग वाताथ कयने आने रगे। ववद्वान बी
आऩके उत्तय ऻान ववऻान व रूहानी प्रवचन सुनकय आश्चमथ भें ऩडने रगे। एक
हदन आऩको ध्मान मोग भें एक हदव्म ज्मोनत ने आऻा दी कक आऩ अऩनी आॉखों
देखा अनुबव भहाकाव्म रूऩ भे मरखो। मह फात सफ सॊत सुनकय आऩसे इस
कामथ को ऩूया कयने ऩय फर देने रगे। आऩने उन सॊत मशष्म जनों के साभने जो
अखण्ड ऻान प्रगट ककमा उसी को भहाकाव्म रूऩ भें मरखना शुरु कय हदमा।
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सयस्वती जजव्हा ऩय ववयाजभान हो गई। ऩयसेवा बूखे प्मासों को बोजन देना
मबखायी ने जो भाॊगा वह दे देना। एक फाय आऩ ध्मानमोगस्थ ननन्द्रा भें चायऩाई
ऩय सो यहे थे ऩास भें यसोई थी जजसकी पशथ चायऩाई जजतनी ऊॉ ची थी अचानक
सुफह उठे तो देखा कक एक सऩथ तीन टुकडे हुवे आऩकी चायऩाई के ऊऩय पन
ककमे यसोई भें कटा ऩडा है, उसे चायऩाई ऩय जाने से ऩहरे अचानक आई ककसी
नोर ने काट डारा था। शीघ्र ही आऩकी ननवाथण मात्रा अनाभी धाभ ऩयभहॊस ऩद
की ऩूणथ हो गई। अगरे वषथ गुरु भॊहदय ऩय सॊत भण्डरी के सभऺ आऩके गुरुदेव
ने कहा कक मशष्मों अफ भैं तुम्हाये साभने एक हीया ऩेश कयता हूॉ। आऩको फुरामा
गमा। आऩने सचखण्ड का सॊदेश तथा कारदेश से सुनतथ को ननकारने का वह
प्रवचन हदमा जजसने सभस्त सॊत सभाज को आश्चमथ चककत कय हदमा।
कु छ हदन फाद आऩ सोमे हुवे थे आऩने स्वऩन भें देखा कक आकाश से
एक गोरा आऩके भकान ऩय चगय यहा है जजसे आऩने दूय पें क हदमा वहीॊ जाकय
वह पट गमा तुयन्त आऩके साभने एक अनत सुन्दय बत्रशूरधायी वऩताम्फय ऩहने
भुकु ट फाॉधे एक देवी प्रगट हुई। आऩने उसे देखकय ववनम ऩूवथक ऩूछा कक “तुभ
कौन हो ” तमों आई हो ? उसने उत्तय हदमा “भेया नाभ होणी है भेया आना
ननष्पर नहीॊ जाता कु छ हदन तुम्हाये ऩास यहूॉगी तुम्हायी ऩयीऺा है। आऩने कहा
देवी तुभ जाओ महाॉ तो भेये ईष्टदेव बगवान का ही आगभन बाता है। वह हॊसती
हुई अदृश्म हो गई। आऩ चौंक कय उठे कपय नीॊद नहीॊ आई। इसमरमे यात्री भें ही
कु छ काव्म यचना शुरु कय दी। इस घटना के कु छ ही हदन फाद प्रकृ नत देवी का
प्रकोऩ शुरु हो गमा। स्वगीम वऩता के सभम से आऩके घय के नीचे नीचे (अन्डय
ग्राउन्ड) एक नारी फाहय ननकरकय खडन्जे आभ भें चगयती थी जजससे कई फाय
आऩका भकान चगय गमा था वऩताजी इसको फॊद कयने भें असपर यहते थे
तमोंकक इसे फॊद कयना आकाश से ताया तोडकय राने जैसा कहठन था। एक फाय
वऩता की इस चचन्ता को देखते हुवे आऩने उन्हे वचन हदमा था कक भैं इसे एक
हदन फॊद कय दूॉगा। अफ वह सभम आ गमा था। एक तयप ध्मान सभाचध व
काव्म यचना गृहस्थ ऩारन तथा ऩयभाथथ सतसॊग आहद तो दूसयी ओय देवव
प्रकोऩ। आऩके घय के नीचे नीचे अनुचचत जो नारी कभजोयी के कायण ननकारी
हुई थी उसका ऩानी जजस खडॊजे ऩय चगयता था वह ऩॊचामत द्वाया ऊॊ चा फनामा
जाने से ऩानी भकान भें रूककय खतया ऩैदा हो गमा। आऩका दुख ककसी ने नहीॊ
सभझा। वववश होकय आऩने उसे बफस्भाय कय हदमा जजसकी सूचना ऩाते ही
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ववऩऺ के सौ आदभी आऩ ऩय टूट ऩडे। नारी खुरने का दफाव डारा ऩयन्तु आऩ
नहीॊ भाने तो उनभें छ् प्रभुख व्मजतत नामक फनकय न्मामाल्म भें चुऩचाऩ दावा
दामय कय आमे उन्होने नारी को खुरवाने का फीडा चाफा। इन छ् व्मजतत
कारूयाभ, हुतभमसॊह, हॊसा, झब्फय व सभम के ऩीछे उनके सौ खानदानी व्मजततमों
के अरावा ग्राभ के असॊख्म व्मजतत बी थे। आऩ अके रे थे। आऩ डटकय भुकाफरा
कयते यहे। इसी फीच ववऩऺ ने एक सबा आऩको ऩीटने की तम कयके फुराई।
आऩने जगदम्फा का स्भयण ककमा जो प्रकट हुई औय आऩकी यऺा कयने का
वामदा व ववजमी बव का वयदान देकय चरी गई। तफ आऩ अके रे सबा भें गमे
ऩयन्तु वहाॉ हभरावय आऩस भें ही रड ऩडे। औय चरे गमे ऩयन्तु ववऩऺ सॊगहठत
हुआ आऩको भायने ऩय तुर गमा। कु छ हदन फाद अचानक ऩुमरस आई। आऩको
आऩके बाई भहावीय व खानदानी बाई चन्दयाभ व खेभचन्द को साथ ही एक यात
जेर जाना ऩडा। वहाॉ चन्दयाभ ने कहा कक अफ तुम्हे (आऩको) अके रा नहीॊ यहने
देंगे चाहे कपय दोफाया जेर ही आना ऩडे। फाहय ननकरकय ववऩऺ से रोहा रूॉगा।
आऩने यातबय चन्दयाभ को ऻानाधाय ऩय सभझामा तथा कहा कक अफ हभ जेर
नहीॊ आमेंगे अफ ववऩऺी दर जेर आमेगा ववजम हभायी होगी धभथ की ववजम
ननजश्चत है तमोंकक ववऩऺ अन्माम से हभाये घयों भें जन फर ऩय गन्दा ऩानी
प्रकृ नत ववरूद्ध बयना चाहता है। रो भैं तुम्हे ववजमी होने का नतरक कयता हूॉ फस
नाभ भात्र को भेये साथ खडे हो जाओ। चन्दयाभ सॊग भें सहामक फन गमा।
आऩ घय ऩय आमे यात्री भें ववऩऺ खुशी भें सबा कयने रगा आऩको बी
फुरवामा गमा जहाॉ आऩको डाॉटा तथा नारी खोरने को वववश ककमा ऩयन्तु
आऩने अन्माम के ववरूद्ध रडना ही श्रेष्ठ सभझा। ववऩऺ आऩ ऩय भायऩीट को
टूटना चाहता था आऩके शब्द उनका प्रहाय योक देते थे। अगरे हदन ववऩऺानुसाय
ऩुमरस आऩको चगयफ्ताय कय रे गई वहाॉ जफ आऩको थानेदाय ने सत्म वचन
उऩदेशों को सुना तो आऩको छोड हदमा औय आऩका दुख सभझा जजसे
धभथऩऺानुसाय आऩकी भदद कयने का वामदा ककमा। गवथ व जनसॊख्मा की
अचधकता से आऩको पॊ साने के षडमन्त्र यचे जाने रगे। आऩके बाई बी घफयाने
रगे। आऩने हहम्भत नहीॊ हायी। एक षडमन्त्र बयी सबा भें जो आऩने ववपर कय
दी ववऩऺी झब्फय ने आऩको क्रोध भें ररकाय कय कहा कक हभ उल्रू को हॊसनी
नहीॊ देंगें अथाथत तुम्हे नारी की खुशी नहीॊ देंगें। आऩने कहा कक जो हॊस होगा
वह हॊसनी रे जामेगा। कपय तो सभस्त ववऩऺ आऩ ऩय झऩट ऩडा। आऩ अके रे
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अडे भुकाफरा कयते यहे जजससे आऩके ववयोधी खानदानी आऩका साहस देखकय
आऩकी सुयऺाथथ आ गमे। आऩने बयी ववऩऺी की सबा भें प्रनतऻा की कक भैंने
ब्रह्भऻान गीता की कसभ है जजन हाथों से नारी फॊद की है अफ उन से नारी
कबी नहीॊ खोरूॉगा औय ऩानी खडॊजे आभ जजस ऩय तुभ नहीॊ फहने देते से ही
ऩानी फहकय जामा कयेगा। भैं ऩानी खडन्जे आभ सेही खोरकय भानूॉगा। जफ कोई
अचधकायी जाॉच के मरमे आता तो आऩके चाचा बी ववऩऺ की सीॊख भें छु ऩे छु ऩे
यहते औय आऩके ववरूद्ध ही फोरते थे जजसका ववऩऺी दर ने पामदा उठाकय एक
षडमन्त्र यचकय आऩको फॊद कयाना चाहा। आऩ स्वमॊ को तथा अऩने बाइमों को
फचाते यहे तथा शत्रुदर की मोजनामें ववपर कयते यहे आऩकी चाची का इसी
दौयान ववऩऺ ने चार चरकय कत्र कया हदमा। चाचा ववऩऺ के साथ मभरता
यहता था उसे ववऩऺ ने आऩके ववरूद्ध थाने भें रयऩोटथ कयने को उकसामा ताकक
आऩ पाॉसी चढ जामें ऩयन्तु ! आऩके चचेये बाई व उसके भाभा ने आऩके चाचा
की आॉखे खोर दी जजससे आऩ सुयक्षऺत फचे। साॉच को आॉच नहीॊ होती है। शत्रु
ऩऺ ने चायों तयप ऐसी जस्थनत ऩैदा की कक आऩ फुयी तयह पॊ सने रगे। आऩ हय
घटना को ईश्वय नाटक मा हरय इच्छा कहते थे। शत्रु दर प्रनतहदन सबा फुराकय
गुप्त षडमन्त्र यचते जजससे आऩके फार फच्चे ऩजत्न सफ ऩयेशान थे। एक हदन
आऩ अऩने खेत भें ऩानी बय यहे थे आऩको ज्वय चढ यहा था थोडी देय भें ऩुमरस
आई औय आऩको गुप्त रूऩ से उठा कय थाना दौयारा भें हवारात भें फन्द कय
हदमा। शत्रु ऩऺ के ककसी दो रयश्तेदायों का अऻात फदभाशों ने कत्र कय हदमा
था। जजसकी साजजश भें आऩ को चगयफ्ताय कया हदमा। कत्र भें पॊ सामा जानकय
आऩ हवारात भें ही ऩयभेश्वय के ध्मान भें रीन हुवे सो गमे। आऩको ध्मान ननॊद्रा
भें अनत सुन्दय शजतत स्वरूऩा भहा तेजऩुॉज ववबूनत जगदम्फा देवी ने ध्मान भें
दशथन देते हुवे कहा कक ऩुत्र घफयाओ नहीॊ तुम्हायी भदद कयने के मरमे भुझे महाॉ
बेजा गमा है, ननदोष की भेये द्वाया यऺा होगी। आऩका ध्मान छू टा। यात्री के 2
फजे थे थोडी देय फाद आऩको ऩुमरस ने फाॉध कय मातनाऐॊ देनी शुरु की। अनेकों
मातना देने ऩय बी आऩको कु छ बी भहसूस नहीॊ हुआ। ववद्मुत के झटके रगामे
तो ववद्मुत गुर हो गई। खम्फे से के बफर टूट कय चगय गमा। कपय दयोगा जी
आऩको हवारात भें फन्द कयके स्वमॊ सो गमे। औय जफ सुफह चौंक कय उठे तो
आऩको ननदोष सभझा। ऩुमरस अचधऺक को आऩके बाईमो ने खफय दी जजस ऩय
दयोगा जी को डाटा गमा तथा आऩको फाइज्जत रयहा कय हदमा गमा। जैसे ही
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आऩ घय आमे तो देखा कक सॊकट ऩय सॊकट था फार फच्चे सफ यो यहे हैं तमोंकक
उसी सभम घय ऩय अचानक कजथ से री गई बैंस भय गई थी आऩने हरय इच्छा
सभझकय सफको सभझामा। इसी फीच ववऩऺ के प्रबाव से नारी खोरने के आदेश
हो गमे आऩकी भदद एक बू0 ऩू0 जजरा जज आगया ने की जो भौके ऩय
न्मामाधीश को रामे। भौंके ऩय बीड हो गई थी कई घटना ऐसी घटी जजससे
न्मामाधीश ने आऩका कदभ धभथमुतत तथा अन्माम के ववरूद्ध औय दाॊतो फीच
जजभ्मा जैसी ऩरयजस्थनत को सभझा था। कपय न्मामाधीश वाऩस चरे गमे। ववऩऺी
दर का कहना था कक याभवीय नारी खोरने के नाभ से एक पावडा जभीन नारी
खोर दी कह कय भायदे तो हभ मुद्ध फन्द कय देंगें तमोंकक गीता की कसभ जरूय
तोडनी है। आऩने इसे स्वीकाय नहीॊ ककमा। इस ऩय ववऩऺ का एक मोद्धा फोरा
कक याभवीय तुझे हभ भृत्मुघाट ऩहुॉचाकय दभ रेंगें। हभायी सौ राठी एक साथ
उठती है औय हभायी फहुत फडी पौज है। इस प्रकाय शत्रुऩऺ का गवथ आकाश को
छू ने रगा आऩके ऩजत्न व फच्चों का कहीॊ फाहय ननकरना बी खतयनाक फन
गमा। फच्चे बूख से तडपने रगे।
इस घटना के कु छ हदन फाद खेभचन्द व यॊजजत जोगी दोंनों दूचधमा थे
भे गोरी चर गई जजसभें ववऩऺ ने यॊजीत की ओट से आऩको चन्दयाभ व
खेभचन्द को पॊ साना चाहा। थाना से ऩुमरस आ गई जजसकी खुशी भें ववऩऺ झूभ
यहा था ऩयन्तु आऩने यात बय भें ऐसी रीरा यची कक आऩके बाईमों के फजाम
यॊजीत को ही चगयफ्ताय कय मरमा गमा। शत्रु ऩऺ अपसोस भें ऩड गमा। फाद भें
आऩने यॊजीत को ननदोष सभझा ऩैयफी की कभी कयके उसे बी न्मामारम से फयी
कया हदमा गमा। तथा ननदेश हदमा कक ककसी के कहने भें आकय ऐसी हयकत
कपय न कयना। कु छ हदन फाद जो आऩके साथी बाई थे। वे घफयाकय अरग हटने
रगे तमोंकक शत्रु ऩऺ ववशार था अऩनी पौज का जोय हदखा यहा था अफ आऩ
अके रे यह गमे। ववऩऺ की भनत ऩय होणी सवाय हुई उन्होने खडॊजों भें ऊॉ चे ऩुस्ते
फाॉध हदमे। फयसात शुरु हो गई। ऩानी भौहल्रे भें बय गमा भकान चगयने रगे
आऩकी ऺनत होने रगी। आऩ वववश हुवे ऩयभेश्वय ध्मान कयके जजराचधकायी से
मभरे जजससे भौंके ऩय ऩुमरस आई औय ववऩऺ के न भानने ऩय खडन्जे का फाॉध
हटाकय ऩानी ननकार हदमा। ववऩऺ सहन न कय सका ऩुमरस से मबड गमा। तीन
दयोगा व मसऩाही नघय गमे ककसी तयह फदनमसॊह दयोगा जाने ककस तयह बाग
ननकरा जजसकी सूचना ऩय तत्कार 90 (नब्फे) जवान ऩी0 ऐ0 सी0 के घटना
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स्थर ऩय आमे। ववऩऺ को चगयफ्ताय कय थाने से चारान द्वाया जेर बेजा गमा।
अफ ऩुमरस द्वाया उनका गवथ चूय चूय हो गमा आऩके बाई ऩुन् साथ देने रगे।
ऩडमन्त्रकारयमों की कई फाय आऩसे भुठबेड हुई ऩयन्तु आऩ ही सपर यहे। उधय
न्मामधीश की रयऩोटथ आऩ के ऩऺ भें होने से आऩको ववजमी घोवषत कय हदमा।
ऩरयणाभ स्वरूऩ अफ ऩुमरस के गरे भें आऩके सॊकट की भारा ऩड गई थी।
आऩको कोई चचन्ता नहीॊ यही। ऩुमरस के स भें सजा का ऩैगाभ हुआ। आऩने ईश्वय
से प्राथथना की कक हे प्रबु भैं ककसी को जेर कयाने के मरमे नहीॊ ऩैदा हुआ हूॉ उन्हे
रयहा कय दो। कु छ देय फाद ववऩऺ हाया हुआ सा भुचरकों ऩय छू टा घय आमा।
ववऩऺ के ऩौरूष ठॊडे हो गमे जजससे आऩसे उन्होने याजीनाभा पै सरा कय मरमा।
इसी फीच कई मशष्मों को आऩने सॊकटों से फचामा तथा काव्म यचना जायी यखी।
कु छ हदन फाद झब्फय मसॊह ववऩऺ का नेता जो फहुत सभझदाय था आऩकी शयण
भें आकय ध्मान भागथ अऩनाकय सतऩथ ऩय चरने रग गमा उसने मशष्मता को
ननबामा। इसी दौयान बफचरा रड़का ववयेन्द्र कु भाय गेंद अरभायी से उतायता हुआ
दूध से गम्बीय रूऩ से जर गमा ऩैसा ऩास नहीॊ था। आऩ अस्ऩतार जा यहे थे
कक श्री याभ चन्द्र ऩेशकाय आऩके मशष्म जजसने भृत्मु ननकटतभ फच्चे को इराज
कयाकय फचामा वह ननत्म साथी यहा।
सतसॊग प्रचाय
इसी फीच श्री भहायाज श्री सतगुरु स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी का
आऩके ऩास सतसॊग प्रचाय का ऩत्र आमा। आऩने इसके मरमे दूय दूय तक सतसॊग
प्रचाय ककमा तथा अनेकों रृदमों भें प्रबु बजतत व ऩयभहॊस याजमोग की मशऺा
दीऺा बय दी। सतसॊग प्रचाय तो दूसयी तयप गृहस्थ भें दैववक प्रकोऩ बी फढते
यहे। आऩकी चचेयी बावज जो आऩसे क्रु द्ध थी ने आऩको जार साझी भें बयकय
पॊ सवाने के मभथ्मा कई षडमन्त्र यचे ववऩऺ के कु छ व्मजतत उसे बडका कय
आऩसे यॊजजश ननकारने की मोजना भें यहते थे। उसने कई फाय अऩने घय भें
स्वमॊ चोयी के इल्जाभ रगाकय बी पॊ सवामा ऩयन्तु सफ षडमॊत्र ननष्पर हुवे।
उसकी एक सहेरी बी उसे बडकाती थी। एक फाय उसने आऩके फीफी फच्चो ऩय
हभरा कय हदमा खुद थाने रयऩोटथ कयाने चरी गई उसका ऩनत पौज भें नौकय था
ऩयन्तु उसे इतनी कभ फुवद्ध थी कक वह वास्तववकता जानने भें असपर था उसने
दयोगा जी को पु सरामा कक वह आऩको थाने राकय भायऩीट कय दे। आऩ एस
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एस ऩी साहफ से मभरे जजसके कायण मह मोजना बी ववपर हो गई। कु छ हदन
फाद ववऩऺ के कु छ फच्चों ने स्कू र से आते वतत अऩनी मोजनानुसाय आऩके फडे
रडके भहेश को फाॉध कय गॊग नहय भें फहा हदमा। कु छ देय फाद स्कू र के कु छ
औय फच्चे आ गमे जजन्होने उसे गॊग नहय से फाहय ननकारा। आऩ कहते थे कक–
ज्मूॉ ववमबषण रॊका फसे जजभ्मा दन्तन छाभ।
त्मूॉ यहनी होयाभ की हयऩर फेरी याभ।।
एक फाय चन्दयाभ को यॊजजस से पॊ साने के मरमे गाॊव के एक अन्म
व्मजतत ने याबत्र भें स्वमॊ गोरी चराकय आऩके व चन्दयाभ के नाभ थाने भें
रयऩोटथ कय दी। आऩको थाने फुरवामा गमा दोंनों ऩऺ वहाॉ भौजूद थे दयोगा जी ने
आऩसे कहा कक गोरी तमो चराई। आऩने कहा दयोगा जी सभस्त सॊसाय का
स्वाभी एक ऩयभेश्वय है उसने अऩने जीवों की सुयऺा के मरमे देवताओॊ को ऺेत्र
फाॉटें हैं आऩ बी उसी तयह इस ऺेत्र के उसी ऩयभेश्वय के जीवो की सुयऺा कयके
ऩयभेश्वय का ही कामथ कयते हैं। मह रयऩोटथ कताथ आऩको ऩयभेश्वय भानकय ऩाॉच
कदभ मह कहकय बयदे कक हे ऩयभेश्वय ! गोरी याभवीय ने व चन्दयाभ ने चराई
है तो हभे जेर बेज दो। भगय गोरी एक चरी दो व्मजतत गोरी चरामें गोरी
एक ही कै सा कभार है। थानेदाय साहफ ने आऩको ननदोष सभझा तथा आऩका
ऻान सतसॊग सुनकय प्रसन्न होकय रयहा कय हदमा। उसने बी ऩाॉच कदभ बयने
को इन्काय कय हदमा था।
इतनी घटना के फाद भैं रेखक आऩकी शयण भें आमा भैंने जो ऻान एवॊ
सुनतथ मात्रा कभाई आऩकी शयण यहकय प्राप्त की उसके मरमे भैं कई कई जन्भों
तक बी आऩका आबायी हूॉ। आऩ अऩने प्रवचन के वर रूहानी सतसॊग सॊस्कृ त बये
श्रोंकों से अरॊकृ त देते थे सुनने वारे भुग्ध हो जाते। दूय दूय से फडे फडे
अचधकायीगण बी आऩके ऩास ऻान प्राजप्त के मरमे आने रगे फहुत से सन्मासी
सॊत बी आऩके ऩास आकय ध्मेम ऩूनतथ के मरमे ठहयते थे। आऩने ग्राभ गेझा भें
एक सौ एक सतसॊग एक स्थान ऩय कयने की प्रनतऻा री औय एक ऩयभहॊस
याजमोग सॊस्था फनाई जजसका अचधक बाय भुझ ऩय सौऩा गमा। भेया ऩूया ऩरयवाय
आऩका दीवाना फन गमा था। आऩ होरी जन्भाष्टभी सफ भनाते तथा ऻान प्रचाय
कयते। एक हदन छ् मशष्मों को जन्भाष्टभी की अधथ यात्री ऩय अभय कथा बी
सुनाई जजसको सुनकय भेये रृदम भें के वर आऩ ही आऩ सभा चुके थे। मही हार
अन्म मशष्मों का बी था। कु छ रोग गुन्डे सतसॊग को चराने नहीॊ देते थे सतसॊग
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भें राठी व ढेरे फयसने की मोजना से आते ऩयन्तु न जाने तमों कोई कु छ नहीॊ
कय ऩामा कई चभत्काय बी हुवे जजसके फाद वे सफ कापी ऩयेशानी खडी कयके ,
ननयाश होकय वास्तववकता को सभझ ऩामे कपय कोई ववयोधी नही हुआ आऩने
101 सतसॊग ऩूणथ कयके मऻ बन्डाया ककमा।
एक फाय भैने ऩूछा कक गुरुदेव आऩने इतनी थोडी सी आमु भें आऩने ऩूणथ
अनाभीधाभ तक की मात्रा कयरी तथा मह भाहाकाव्म हहन्दुत्वसागय अभयकथा बी
मरख हदमा मह कै से हुआ ? आऩने उत्तय हदमा कक – मह मोग मात्रा तो भेयी ऩूवथ भें
ही ऩूणथ थी। इस जन्भ भें तो के वर दोहयामा गमा है। यही फात इस काव्म की – जफ
भैंने अऩनी सुतथमात्रा ऩयभहॊस ऩद अनाभी धाभ तक ऩूणथ कय री तफ एक हदन भैं
ध्मानावस्था भें सुषुजप्त भें होता हुआ तुरयमातीत अवस्था भें ऩहुॉचा तो देखा कक चायों
हदशाओॊ से झन्डे मरमे हुवे अऩने अऩने गुरुओॊ के साथ भॊडमरमाॉ आकास भागथ को जा
यहे है भेये ऩूछने ऩय उन्होने फतामा कक अगभ रोक भें एक ववशार भुततात्भाओॊ का
दयफाय है हभ सफ वहीॊ ऩय जा यहे हैं। ऩयन्तु बफना गुरु के साथ हुवे वहाॉ कोई जाने
का प्रमत्न बी न कये। भैं तुयन्त याजमोग भॊहदय शाहदया अऩने गुरुदेव स्वाभी
याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस भहायाज के ऩास आमा तथा वृतान्त फताकय गुरुदेव
को वहाॉ चरने की ववनती की। भना कयने ऩय आऩने श्री भहायाज जी की इस फात
ऩय यजाफन्दी प्राप्त की कक आऩ उन्हे अऩने कॊ धों ऩय अगभरोक रे चरेंगे। स्वाभी
जी फीभाय थे। आऩने श्री गुरुदेव को कॊ धे ऩय फैठाकय गगन भॊडर को गभन ककमा
हाथ भें अऩने गुरुदेव का झन्डा मरमा। चरते चरते आऩ अगभ दयफाय भें ऩहुॉचे औय
वहाॉ श्री सतगुरुदेव को दयफाय की स्टेज की एक कु सी ऩय फैठामा। आऩके दादा गुरुदेव
ने आऩको प्रेभ से मभरन ककमा। फडे फडे सतगुरुदेव सबी भतों के भुततात्भाओॊ को
उऩदेश देने वहाॉ आमे थे। आऩ स्टेज के आगे श्री सत्माथी जी की आऻानुसाय खडे हो
गमे। आऩकी जजधय नजय जाती वहाॉ तक सॊत भॊण्डमरमाॉ फैठी हदखती थी तथा सफके
झऩ्डे रहया यहे थे। इसी फीच वहाॉ प्रकाश फढने रगा आकाश भें से एक ववशार सूमथ
के सभान प्रकाश ऩुॉज स्टेज की तयप उतयने रगा सफकी दृजष्ट उसी ऩय रगी थी।
स्टेज ऩय आकय वह श्री सत्माथी जी के हाथ भें शॊख फनकय ठहय गमा। शॊख भें से
दूचधमा अभृत की धाय ननकरी जजसे सत्माथी जी ने आऩको वऩरामा। कपय वह प्रकाश
ऩुॉज फनकय आकाश भें जाते जाते ववरीन हो गई। जजसभें से आवाज मह आई कक
“होयाभ” जो अभृत तूने वऩमा है इसे जगत के कल्माण भें रगाना कारदेश के जीवों
के कल्माणाथथ इस अभृत तत्व को काव्म रूऩ भें बय देना काव्म शजतत के मरमे तुझे
अभृत ऩहरे बी मभर चुका है औय अफ बी वऩरामा गमा है। भैने मह काव्म मरखे हैं।
18
इस प्रकाय आऩने अनेकों सन्त मशष्मों को सतरोक अरखरोक तक की चाफी देकय
कृ ताथथ ककमा है। एक फाय जो बी प्रवचन सुनाता वही शास्त्राथथ छोडकय प्रबाववत
हुआ। आऩका मशष्म फन जाना सहज फात थी। सतगुरुदेव का ऩूणथ जीवन चरयत्र तथा
ववऻान ऩढने के मरमे श्रीदेव जीवन चरयत्र को भॊगाकय अवश्म ऩढे।
जम सजच्चदानन्द
सॊत सुदीऩ यस्तोगी (टीकाकाय)
अभृतवाणी से ऩद यचनाॊर्श
आहद अनन्तॊ भहा ज्मोनत ऩुॉजॊ ननवाथणरूऩॊ सोSहभ् सोSहभ्।।
चचदानन्द रूऩॊ ननत्मॊ फोधॊ सत्मॊ शाश्वत सोSहभ् सोSहभ्।।
कताथ न बोतता फॊधॊ न भोऺॊ कभथ यहहतॊ सोSहभ् सोSहभ्।।
जन्भ न भृत्मु धभथ न अधभथ अऺम सनातन सोSहभ् सोSहभ्।।
सगुणॊ न ननगुणॊ ऩयात्ऩयोSहभ् देह यहहतॊ सोSहभ् सोSहभ्।।
ववश्व स्वरूऩॊ यवव शमश धायॊ स्वमॊ प्रकाशॊ सोSहभ् सोSहभ्।।
सुखॊ न दुखॊ न भनचचत्त मुतत मशवोस्वरूऩॊ सोSहभ् सोSहभ्।।
न नाभॊ न रूऩॊ, भुतत सवथदा कार यहहतॊ सोSहभ् सोSहभ्।।
अनन्त ज्मोनत स्तीत्व ऩुॉजॊ अगभ ननत्मॊ सोSहभ् सोSहभ्।।
आत्भस्वरूऩॊ जगदातीतॊ होयाभदेवॊ सोSहभ् सोSहभ्।।
2 – बजन कब्वारी
उठ अॊखखमाॊ खोरकय देख जया –
तेये सय ऩय भौत ववयाज यही।।टेक।।
भृत्मु से भची है खराफरी – सॊसाय भें हो यही चराचरी।।
कोई आज भया कोई कर भया फस भौत की घन्टी फाज यही।।1।।
खामे ऩृथ्वी आकाश ब्रह्भण्ड बी – भौत का ऩेट न बयता कबी।।
याजा यॊक सुय भुनन सफ खामे वो सफके मसय ऩय गाज यही।।2।।
भामा भें तू भौत को बूरा – हवाई ककरे चचनै पू रा पू रा।।
न जाने कफ आजा फुरावा वो तो सफको दे आवाज यही।।3।।
फचने का कु छ साधन कयरे – भौत से ऩहरे ऩाय उतयरे।।
होयाभ अभयखण्ड फासा कयरे भौत वहाॉ ऩय राज यही।।4।।
19
3 – बजन
गुरुदेव कयो अफ भुझ ऩै दमा –
तेये दय ऩय आश रगामे यही।।टेक0।।
कई जन्भ दान तऩ मऻ यचच – कोई कपय बी न उतया ऩाय कबी।।
व्रत उऩवास कय भोऺ न ऩाई राखों जन्भ गॊवाम यही।।1।।
ऩढ – ऩढ ऩोथी न ऩाय मभरा है – वेद ऩुयान भें जीव पॊ सा है।।
भजन्दय जा – जा भैं हाय गई फस ध्मान भें सुतथ सभाम यही।।2।।
बृकु हट घाट ऩै आसन कयके – सुयनत दसवें द्वाय चढी।।
सुष्भन घाट भें उल्टी चढके सचखॊड ज्मोत जगामे यही।।3।।
कार ने कभथ काण्ड यचादी – सचखॊड भागथ फन्द कयादी।।
होयाभ कार का देस त्माग भैं अभय रोक को जाम यही।।4।।
4 – बजन
चर गगन भहर भें देख जया।
वहाॉ जगभग ज्मोत सभावत है।।टे0।।
भूर द्वाय से उठा ऩवन को – उल्टी धाया चढा बजन को।।
भेरूदॊड की ऩौढी चढ के सुष्भन मशखय ऩद ऩावत है।।1।।
नब गॊगा भें सफ भर छु टै – चायों देह जीव की टूटै।
शूरी ऊऩय सेज वऩमा की सुयता कोई सेज बफछावत है।।2।।
स्वगथ नयक सफ देश छौडकै – सचखण्ड खखडकी खोर दौडके ।।
अगखणत सूयज दे ऩरयक्रभा रख – रख सुनतथ हयषावत है।।3।।
बफयरा गुरु कोई बेद फतावे – सुनतथ अरख अनाभ चढावै।।
होयाभदेव मह दे सन्देषा अऩने ननज देस सभावत है।।4।।
5 – बजन
सुन सखी अचयज की कहूॉ –
सॊतो का ऩाय नहहॊ ऩावत है।।टे0।।
यात्री भें वो सूयज देखे – बौय बई कहैं अॊचधमाया।।
20
बफन फादर के बफजरी देखे – बफन दीऩक ज्मोत जगावत है।।1।।
अॊधा होकय जग को देखे – फन्द कान सुनते वाणी।।
बफना साज आवाज जगावे जीवत भौत सभावत है।।2।।
बफन जजभ्मा के वाणी उऩजै उल्टी धाया अभृत ऩीवै।।
बफना ऩॊख आकाश भें उडते कार से बम नहहॊ खावत है।।3।।
वो ननत भयते ननत जीते हैं ब्रह्भाण्ड भें आते जाते हैं।।
होयाभ तो तीनों रोक छोड चौथे के गीत सुनावत हैं।।4।।
6 – बजन
उठ सोSहॊ शब्द ववचाय जया –
तेये स्वाॉसों भें सोहॊ फाज यही।।टे0।।
भारा छोडके बज भनका भनका छोड बजो अजऩा।।
बृकु टी भें तीसया नमन खोर जगभग ज्मोत ववयाज यही।।1।।
हॊ से उठकय सो ऩय जाओ हॊ सो उरटके सोहॊ गावो।।
इतकीस हजाय छ् सो ननत स्वासा सोहॊ सोहॊ गाज यही।।2।।
सोSहॊ धाय भें अभृत फयसे बेद बफना जीव सफ तयसे।।
तू ककस नीॊद भें सोमा ऩडा वो तो याग छत्तीसों साज यही।।3।।
ऩूये गुरु की शयणी भें चर ऩर – ऩर भें यहा सभम ननकर।।
होयाभ कारकी ऩेश नहीॊ जहाॉ सोSहभ् सोSहभ् याज यही।।4।।
7 – बजन
हय यात के वऩछरे ऩहय भें अनभोर घडी एक आती है।।
ऩयरोक की दुननमा रुटती है आनन्द की रहय जगाती है।।टे0।।
जो सोते हैं वो खोते हैं जो जागते हैं वो ऩाते हैं।।
सचखॊड से चगयती है गॊगा अनभोर यतन फहा राती है।।1।।
जो कार के जीव वो सोते हैं गुरुभुखख तो अभृत न्हाते हैं।।
उस अगभधाय भें उरटी चढ सुनतथ सचखॊड को जाती है।।2।।
कोई हॊस के भये कोई योके भये जीवन उसका कु छ होके भये।।
21
जीते जी जो उस ऩहय भये हीयों की खान ऩा जाती है।।3।।
सॊत होयाभ की वाणी मह जो उस ऩहय भें सोते हैं।।
वो रोक ऩयरोक सबी खोते वो दौरत हाथ न आती है।।4।।
8 – बजन
अगय है भोऺ की ईच्छा तो सतगुरु की शयण भें चर।
मभरेगा भोऺ गुरु ऩद भें त्मागके भन के सफ छर फर।।टे0।।
तमा होगा जटा फढाने से मा बस्भी तन यभाने से।।
तमा होगा ऩत्थय ऩूजन से मभरेगा कार ही का छर।।1।।
अगय है स्वगथ की ईच्छा तो कय कभथकाॊड तू साये।।
भोऺ तो सतगुय के ऩद भें गमे हैं राखों नय ननकर।।2।।
ऋवष कभथकाॊड भें पॊ सकय मत्न कय कयके हाये हैं।।
मभरेगा भोऺऩद कै से सजग जहाॉ कार है हय ऩर।।3।।
सॊत होयाभ की वाणी गुरु के शब्द को ध्मावें।।
ननकर कय कार के दय से अरख की ज्मोत भें जा यर।।4।।
9 – बजन
जया कय खोज ननज तन की जो नश्वय बी कहाता है।।
इसी भें स्रोत अभृत का कहीॊ से फह के आता है।।टे0।।
मे ऩाॉचों तत्व की यचना हाड औय भाॊस का ऩुतरा।।
यतन भखण भाखणक का मसॊधु इसी भें जगभगाता है।।1।।
मे नौ दय कामा भें तुभको झरक जो भोह राते हैं।।
इसी भे दसभ का द्वाया खजाना सतगुय हदखाता है।।2।।
ऩवन का फीच भें खम्बा बफना दीऩक के उजजमाया।।
जजसे सतगुय का ईशाया वही मह याज ऩाता है।।3।।
अगय है ईच्छा उस घय की चयण छू सतगुय के चरकय।।
होयाभ जफ कृ ऩा सतगुय की बव फन्धन छू ट जाता है।।4।।
22
10 – बजन
घट घट भें याभ यभता है नहहॊ बफन याभ घट खारी।।
वो कण कण भें सभामा है अजफ है ज्मोनत ननयारी है।।टे0।।
ऋवष भुनन देव नय ककन्नय आऩ ही फन कय आमा है।।
वही नब वामु जर अजग्न वही पर पू र हरयमारी।।1।।
दभकते उसकी ज्मोनत से गगन भें राखों यवव ताये।
रगता बोग शयभाऊॊ वो कयता जग की प्रनतऩारी।।2।।
जर थर नब भें सबी प्राणी सबी भें उसकी ही ज्मोनत।।
वो जो चाहे सोई यचदे कार बी आऻा का ऩारी।।3।।
दास होयाभ उस घय को ऋवष भुनन खोज कय हाये।।
मभरा जफ घट भें ही ऩामा मभरन की याह ननयारी।।4।।
11 – बजन
हदखादे ज्मोत वो अऩनी जजसे घट भें नछऩामा है।
बफना सतगुरु न कोई बी तुम्हाया ऩाय ऩामा है।।टे0।।
कोई कहे काफे भें फसता कोई कै राश भें कहता।
कोई कहै शेष शैय्मा ऩय कोई फैकुॊ ठ भें यहता।।
कोई कहै ब्रह्भा ही ईश्वय जगत उसने यचामा है।।1।।
कोई जड ऩत्थय भें ढूॊढे कोई ननगुथण ननयॊजन भें।
कोई व्रत मऻ तीथथ भें कोई बस्भी बव बॊजन भें।।
कोई कहै मशव ही ईश्वय सबी मशवजी की भामा है।।2।।
कभथ मऻ दान तऩ जजतने स्वगथ फैकु न्ठ तक जावें।।
बोगकय ऩुन्म पर अऩना ऩुनन भृतरोक भें आवें।।
कबी ऊऩय कबी नीचे भामा ने जग नचामा है।।3।।
तुझे भहा कार बी बजते भौत बी काॉऩ जाती है।।
अनन्त भहा ज्मोनत ऩुॊज तू है भन वाणी हाय ऩाती है।।
होयाभ वह ऩयदा भेये सतगुरु ने हटामा है।।4।।
23
12 – बजन
दो0- एक याभ दशयथ नन्दना एक घट आत्भ याभ।
एक ऊॉ काय जग को यचत इक न्माया अरख अनाभ।।
भेया एक सहाया है सतनाभ नभो नभो जम यभते याभ।
अनन्त ज्मोनत ऩुॊज प्रबु को कौहट कौहट भेये प्रणाभ।।टे0।।
जजसकी ऩावन शजतत ऩाकय जर थर अम्फय काॉऩ यहे।
अगखणत बानु ब्रह्भाण्डों भें दे ऩरयक्रभा भाऩ यहे।
जजसके फर से अजग्न प्रज्वर ऩवन दौडता आठो माभ।।1।।
जो कण कण भें फसा हुआ है जो घट घट का अन्तमाथभी।
सकर ववश्व जजसके अॊग अॊग भें सकर चयाचय का स्वाभी।।
जजसके बम से भृत्मु काॉऩे कार बी बजता जजसका नाभ।।2।।
जजसके बम से ब्रह्भा मशव ववष्णु फॊधे सूत्र भें तऩते हैं।
सकर ववश्व का ववधान यचाते औय नाभ उसी का जऩते हैं।।
कार तो तमा भहाकार बी बजता खडे काॊऩते चायों धाभ।।3।।
अरख ननयॊजन बव बम बॊजन जो सफ जग का यखवारा।
देवी देव ब्रह्भाण्ड बूतगण सफ जजसके गर की भारा।।
उस ननयाकाय भहा ज्मोनत ऩुरुष का साॊचा नाभ सुमभय होयाभ।।4।।
13 – बजन
ऩयभप्रबु का धयके ध्मान सभझाऊ अभय कहानी।
कार देश से जजससे छू टके अभय होम जा प्रानी।।टे0।।
प्राण अऩान का कामा भाॊही बृकु टी ताय मभरावै।
येचक ऩूयक कु म्बक कयके कु न्डरी जाम उठावै।।
बृकु टी घाट मशवनेत्र खोर रख ऩावे ज्मोत ननशानी।।1।।
सुष्भना भें प्राण चढाके ऩकडो खझरमभर ताया।
शाभ सडक अगभ ऩॊथ भें ज्मोनतज्मोत अऩाया।।
सुन्न मशखय चढै जफ सुनतथ कय न सके कोई हानी।।2।।
बफन ऩॊख ऩऺी उडो गगन भें कार योक नहहॊ ऩावे।
24
भहाकार बी योक सकै ना जफ सुनतथ सचखॊड जावे।।
अखॊड सभाचध रगा अरख की कामा सुचध बफसयानी।।3।।
होयाभदेव सतगुय की शयणी सुनतथ शब्द कभावै।
चाय आवयण तज भामा के ननश्चम भुजतत ऩावै।।
आऩा अजऩा सजऩा मभटजा ज्मोत भें ज्मोत सभानी।।4।।
14 – बजन
सुन सीभा मह अभय कथा तुझे बजन बेद सभझाऊॉ भैं।
कार देश की ऩये सृजष्ट से अभय रोक दयसाऊॉ भैं।।टे0।।
नहीॊ तहॊ सूयज ताये दभकै बफना दीऩ का उजजमाया।
नहहॊ हदन यैन अनुऩभ ज्मोनत तीन रोक से न्माया।।
ब्रह्भाववष्णु मशव नायद हाये रगा ध्मान इक ऊॉ काया।
बत्ररोके श्वय ऊॉ काय से, आगे सजच्चदानन्द सचखण्ड धाया।।
तऩ मऻ व्रत वाह्म साधन अन्तरय तीथथ कयाऊॉ भैं।।1।।
भुॊड भुॊडा मा धुनन यभा सफ कार से फाजी हाय गमे।
शीत उष्ण जर ऺुधा सह, तन जीणथ कयके डाय गमे।
ऩौथी ऩुयान बेद नहहॊ मभरता नेनत नेनत ऩुकाय गमे।
ऩूणथ गुरु बफन बेद मभराना राखो जन्भ मसधाय गमे।
जजसे मभरे तत्वदशी सतगुरु उसको शीश झुकाऊॉ भैं।।2।।
स्वगथ ऩातार वऩॊड ब्रह्भाण्ड भें साया कार ऩसाया है।
ब्रह्भाववष्णु मशव यचे कार ने सौंऩ हदमा जगबाया है।।
ऩाऩ ऩुन्म कभथकाॊड यचाकय चौयासी चतकय डाया है।
सतऩुरुष के अभयरोक का फन्द ककमा गुप्त द्वाया है।
कार भहाकार की ठाभ ऩये तुझे ज्मोनतऩुॊज सभाऊ भैं।।3।।
सुयनत बेद बजन गभन यस अन्तरय ज्मोनत जान हहमे।
अगभ सडक बृकु टी भध्म भें नतसय नेत्र वऩछान मरमे।।
सुतथ ननयत के फाॊध घुॊघरू सुष्भन गभन प्रस्थान ककमे।
अन्तय जेमोनत ननयन्तय वाणी सुयनत शब्द ऩहचान मरमे।।
होयाभदेव सुऩात्र सॊत से ना कु छ साय नछऩाऊॉ भैं।।4।।
25
यचनाकाय की ओय से सभऩपण
वप्रम ऩाठकगण – मो तो गीता उऩननषद वेद शास्त्रों भें ऩमाथप्त ऻान बया
है ऩयन्तु भोऺ ऩद का ववऻान गोऩनीम होते होते प्राम रुप्त हो गमा है। साया
ववश्व जजतने बी भोऺ के साधन अऩनाता है वे सफ कार का ही छर है। मत्न
कयता हुआ बी जीव फाय फाय वास्तववक ववऻान से अरग हुवा कार देश भें ही
यह जाता है। फडे – फडे ऻानी सॊत बी रूहानी ववऻान के अबाव भें रकीय के
पकीय फने हुवे हैं। जो इसको जान रेता है वह बी सॊत भत की आऻानुसाय इसे
प्रकट नहीॊ कयता गुप्त गुप्त कयने से इसका रोऩ होता जा यहा है। आज अनेकों
ऩॊथ भत है जो भुजतत का साधन वाह्म जगत भें ढूॊढते हैं। आज प्रस्तुत
भहाकाव्म को भुझ जन सेवक ने वतत की जरूयत को ऩूया कयने के मरमे मरखा
है। भैंने अऩने श्री सतगुरुदेव स्वाभी श्री याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस भहायाज
की शयण भें यहकय इस ववऻान को प्रमोगात्भक रूऩ से स्वमॊ आॉखों देखकय
मरखा है। मरखकय मह काव्म अऩने श्री गुरुदेव को सभवऩथत ककमा है। भुझे ऩूणथ
आशा है कक मह भहाकाव्म यचना सचखण्ड का सॊदेश है जो भोऺगाभी आत्भाओॊ
के मरमे एक वयदान है। इसका सहाया रेकय बववष्म भें सतगुरु जन अऩने
मशष्मों को सचखण्ड प्रस्थान कयने का आधाय प्राप्त कयके भुजतत धाभ तक
ऩहुॉचेगें। इस काव्म का प्रसायण जो बी ऩुण्मवान कयेगा वह ऩयभेश्वय सचखण्ड
वासी सतगुरु का वप्रम होगा। मोगीश्वयों द्वाया मह काव्म यचना गुरुस्वरूऩ भें
स्वीकाय की गई है। आशा है कक आने वारे सभम की मह काव्म यचना जरूयत
है। इससे जीवों का कल्माण होगा इसका ननत्म ऩाठ हहन्दुत्व (जहाॉ द्वैत नहीॊ है)
का आधाय है। त्रुहट के मरमे भैं ऺभा प्राथी हूॉ। कु छ भानसी ववद्वान भेयी काव्म
यचनाओॊ से कतयन चुयाकय अऩने को ववद्वान फनामेंगे जफकक उसे प्रमोगात्भक
ऻान का ववऻान नहीॊ होगा।
आत्भऻान से आत्भ साऺात्काय तक की मात्रा का ऩूणथ ऻान ववऻान भेयी
काव्म यचनाऐॊ श्रीभद् अभयकथा भहाकाव्म, श्रीभद् ब्रह्भफोध भहाकाव्म, श्रीभद्
देवकृ त याभामण भहाकाव्म, श्रीभद् श्रीकृ ष्ण चरयत्र भानस तथा श्रीभद ब्रह्भाण्ड
गीता का अवश्म अध्ममन कीजजमे।
हार ऩता्- सॊस्थाऩक एवॊ सतगुरु
ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ (देवकुॊ ज)
सॊजम ववहाय, गढ योड, भेयठ
26
ववषम सूधच
सॊत श्री होयाभदेव जी की सॊक्षऺप्त जीवन झाॊकी - iv
अभृतवाणी से ऩद यचनाॊश (बजन) - xviii
यचनाकाय की ओय से सभऩथण - xxv
बाग – 1
1. स्तुनत - 1
2. जीवात्भा तत्व - 2
3. भन कक्रमा मोग - 7
4. भृत्मु कारगनत - 9
5. अष्टाॊग मोग - 14
6. प्राणावयोध - 22
7. वऩन्ड देश दशथन - 23
8. ब्रह्भाण्ड देश दशथन - 25
9. दमार देश दशथन - 27
10. ननवाथण (हहन्दुत्व ऩद) - 29
11. हदव्म सन्देश - 32
बाग – 2
12. जीव – प्रकृ नत – ब्रह्भ ववऻान - 36
13. रोकऩनत व्मवस्था एवॊ ववश्व यचना - 39
14. मुगान्तय सुतथडौरय - 47
15. कभथ उत्तऩजत्त ववऻान - 51
16. कभथ प्रकृ नत वववेक - 54
17. सॊत सुतथ अवतयण - 61
18. सुनतथ मात्रा सहामक सन्त सतगुरु - 66
बाग – 3
19. अनहद धाया - 72
20. भन - 75
21. ननजज सुतथ मात्रा - 79
22. सतऩुरुष सन्देश - 99
23. तप्तशीरा ननवायण ववऻान - 120
24. सायतत्व सत्मोऩदेश - 124
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अमरकथा अमृत

  • 1. 1 श्रीभद् अभयकथा ननमोजजत प्रवचनाॊश आधारयत (सॊक्षऺप्त तत्वऻान सायाॊश) * अभयकथा अभृत फोध * (सअथथ तीनों बाग सहहत) तत्वदर्शी सॊत श्री होयाभदेव जी भहायाज वन भें सभाधध अवस्था भें यचनाकाय तत्वदशी सॊत श्री होयाभदेव उपथ श्रीदेव जी भहायाज ग्राभ दफथुवा (भेयठ) वारे ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ सॊजम ववहाय गढ योड़, भेयठ, (उ0 प्र0)
  • 2. 2 द्ववतीम सॊस्कयण जनवयी सन् 2013 ई0 भूल्म – रू 100/-
  • 3. 3 श्रीभद् अभयकथा ननमोजजत प्रवचनाॊश आधारयत सॊक्षऺप्त तत्वऻान सायाॊश अभयकथा अभृत फोध (सअथथ तीनो बाग सहहत) श्री ऩयभऩूज्म श्री सतगुरुदेव श्री 1008 श्री स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस भहायाज याजमोग भजन्दय (ऩयभहॊस सत्माथी मभशन, यघुफयऩुया नo-2, हदल्री – 31) के श्री चयणों भें सभवऩथत दासानुदास एवॊ ऩयभ काव्म यचनाकाय तत्वदशी सॊत श्री होयाभदेव उपथ श्रीदेव प्रजाऩनत (ग्राभ व ऩोस्ट दफथुवा, तहसीर सयधना जजरा भेयठ वारे) सॊस्थाऩक – ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ सॊजम ववहाय, गढ योड, भेयठ भो0 08979553493 भें मह द्ववतीम सॊकमरत सॊस्कयण ववस्ताय सहहत सम्ऩन्न हुआ।
  • 4. 4 सतगुरु ऩयभहॊस श्री होयाभदेव जी की सॊक्षऺप्त जीवन झाॉकी ।। अवतयण।। श्री सतगुरुदेव सॊत श्री होयाभदेव प्रजाऩनत का जन्भ वव0 सम्वत् 2003 तदानुसाय सन् 1946 ई0 शुब भास कानतथक कृ ष्ण ऩऺ की सप्तभी अहोई का त्मौहाय हदन गुरुवाय (फृहस्ऩनतवाय) को प्रात् 3.29 फजे ब्रह्भ भूहतथ भें एक ननधथन प्रजाऩनत ऩरयवाय भें सॊत श्री उभयाव प्रजाऩनत ग्राभ दफथुवा तहसीर सयधना जजरा भेयठ भें हुआ था। भाता जी का नाभ भाथुयी देवी था। आऩसे ऩूवथ आऩकी ऩाॉच फहने थी ऩुत्र के अबाव भें भात वऩता फैचेन थे इसके मरमे भात – वऩता ने भाॉ जगदम्फा की कठोय अयाधना की थी। देवी ने श्री ववष्णु की उऩासना कयने को कहा। जफ वऩताश्री श्री ववष्णु की बजतत कयने रगे। तफ श्री ववष्णु की कृ ऩा हुई कक आऩ के घय शीघ्र ही सचखण्डी सॊत का जन्भ होगा कु छ सभम फाद भात वऩता भें वववाद फन गमा तफ आऩ भात गबथ भें थे। भाता अरग यहने रगी जजसके सात भाह फाद आऩका जन्भ हुआ घय भें खुशी की रहय दौड गमी फैय ववयोध बी सभाप्त हो गमा। ऩयन्तु जन्भ के कु छ हदन फाद आऩ फीभाय यहने रगे। एक हदन आऩकी दशा फहुत चचन्ताजनक हो गई। तत्कार भाता जी ऩास के शहय भेयठ भें ऩैदर इराज के मरमे रे गई। रौटते वतत गभी भें ववह्वर ऩैदर भाता ने आऩके भुख से कऩडा उठाकय देखा तो आऩ अचेतन (भृत) थे भाॉ की चीख ननकर गई भाॉ पू ट पू ट कय योने रगी नन्श्वास व अचेतावस्था देख भाता ऩागर हो उठी तफ ही अचानक एक छोटी सी रडकी जॊगर भें कहीॊ से आ टऩकी औय फोरी भाता ! महद तुभ भुझे खाना दो तो तुम्हाया फच्चा जीववत हो जामेगा। भाता जी ने वामदा ककमा। चरते चरते फच्चा ऩुन् बफल्कु र ठीक हो गमा। भाॉ जफ कु छ बोजन मरमे खुशी से वहीॊ ऩय आई तो वहाॉ जॊगर भें कन्मा न होकय एक गाम खडी थी जजसे भाता जी ने बोजन खखरामा। सम्बवत् मह कोई दैवव शजततस्वरूऩा चभत्काय हदखा गई हो। भहाऩुरुषों का कथन है कक जफ कोई भहान ववबूनत सॊसाय भें अवतरयत होती है तो देवी देवता बी बेष फदर कय दशथनाथथ आते हैं। कु छ हदन फाद आऩ दुफाया गम्बीय रूऩ से फीभाय ऩड गमे। सभस्त उऩचाय असपर यहे ऩैसा ऩास नहीॊ था ऩहरे जैसी अवस्था हो गई भुदाथई (भूछाथ) चेहये ऩय छा गई साॊस गनत फन्द होने से आऩकी भृत्मु हो गई। तफ घय भें एक कहय सा छा गमा तमोंकक ऩुत्र रूऩ भें आऩ ही भात वऩता की अके री सन्तान थी। वऩता जी इतने अधीय हो गमे कक आऩको देखा न गमा औय कु ऐॊ भें
  • 5. 5 डूफने चर ऩडे। एक आदभी ने उन्हे अचानक आकय कु ऐॊ भें चगयने से योका औय कहा कक तुम्हाया फच्चा ठीक है। भभता भें डूफे हुवे वऩता जी घय आमे औय देखा कक फच्चे ऩय कपन डार हदमा गमा था, सफ यो यहे थे। अनामास ही एक साधु जी आमे औय मबऺा भाॉगी। तथा मबऺा के मरमे हठ कयने रगा भाता ने योते योते बीऺा दे दी। साधु ने बीऺा का आटा कपन के ऊऩय डार हदमा औय कपन उठाकय फोरे, फच्चा तमों सफको रूरा यहा है जीववत हो जा ? फच्चा तत्कार योने रगा। सफ भें प्रसन्नता आई ऩयन्तु साधु का कु छ ऩता नहीॊ चरा कहाॉ चरा गमा ? सम्बवत् मह बी कोई देवमोग ही था। दो0- कबी ककसी बी सॊत का भत कयना अऩभान। न जाने ककस बेष भें मभर जामें बगवान।। शर्शऺा एवॊ गृहस्थ जीवन इसके फाद आऩके वऩताजी आऩको कु छ तीथों के दशथन कयाने ननकरे। एक फाय जफ आऩ चाय वषथ के थे वहाॉ आऩ एक ताराफ भें चगय गमे, फडी भुजश्कर से वऩता ने आऩको ढूॊढ कय ननकारा। आऩके फाद एक फहन औय एक बाई का जन्भ हुआ। वऩता स्वमॊ फीभाय यहते तथा वृद्धा अवस्था भें जैसे तैसे भजदूयी कयके गृहस्थ चरा यहे थे। ऐसे भें आऩकी इच्छा अनुसाय आऩको ववद्मारम भें प्रवेश हदरामा गमा। ऩढने भें आऩ तीव्र फुवद्ध तथा भेधावी छात्र मसद्ध हुवे। वऩता की अवस्था अच्छी न होने के कायण आऩ ज्मादा नहीॊ ऩढ सके कु र दसवीॊ कऺा ऩास की। आऩ अऩना ऩढाई का फकामा सभम वऩता की भदद भें रगाते भजदूयी कयके ऩढने जाते यहते थे। आऩकी बजन ऩूजन भें कोई रूचच नहीॊ थी। ऩत्थय ऩूजा तो बाती ही नहीॊ थी। वऩताजी ने कई फाय आऩको बजन ध्मान की तयप रगाने का प्रमत्न ककमा ऩयन्तु आऩ शयायती फनते गमे। आऩ के वऩता ने आऩकी शादी श्री नत्थूयाभ की सुऩुबत्र जगवती देवी से ग्राभ गेझा (भेयठ) से कय दी। कु छ हदन फाद आऩके वऩता जी ने बववष्मवाणी की कक भैं आज से अटठायहवें हदन ब्रह्भ भूहतथ भें सॊसाय को छोड दूॉगा। भुझे बगवत गीता रा दो। एक ऩाठ ननत्म ककमा करूॉ गा। अठायहनें हदन ठीक ऐसा ही हुआ। वऩता जी ने सभाधी अवस्था भें रीन होकय याभ आ गमे जम याभ कहते हुवे शयीय त्माग हदमा। आऩको गृहस्थ बाय सम्बारना ऩड गमा फार आमु भें मह एक फडा धतका रगा। आऩ गृहस्थ बाय उठाने रगे, ववद्मारम का त्माग कयना ऩड गमा।
  • 6. 6 थोडा बजन ध्मान श्री दुगाथ जी का कयने रगे तथा भजदूयी कयके गृहस्थ चराने भें आऩ रग गमे। आऩने नायामण कवच धायण ककमा तथा आहद शजतत की कृ ऩा प्राप्त की। औय आहद शजतत ने सदैव आऩकी बुजाओ भें ननवास कयने का वयदान हदमा। सन् 1965 ई0 कानतथक ऩूखणथभा को आऩ स्वगीम वऩता की गॊग दीऩ यस्भ ऩूयी कयके जफ वाऩस रौट यहे थे तफ गॊगा तीय की येती ऩय अनामास ही एक साधु (अवधूत) रटा धायी छोटा कद फार सपे द (आमु थोडी), ने आऩका हाथ ऩकड मरमा। उसने आऩ से चवन्नी भाॉगी । आऩने कहा भेये ऩास नहीॊ है आऩने उसे कोई ठग मा फहरूवऩमा सभझा था अवधूत फोरा बाई की तेये ऩास तीन रूऩमे दो चवन्नी हैं भैं के वर एक चवन्नी भाॉगता हूॉ महद नहीॊ देगा तो ऩछतामेगा। आऩको सॊदेह हुआ कक शामद इसने भेये ऩैसे देख मरमे है तमा मह कोई जादूगय है। ऐसी बमबीत जस्थनत भें आऩने जैसे ही चवन्नी देने को हाथ फढामा तबी उसने कहा – चवन्नी अऩनी ही भुट्ठी भें फॊद कय रो कपय आऻा अनुसाय जैसे ही आऩने भुट्ठी खोरी तो चवन्नी बय हथेरी ऩय सपे द ऩानी था। साधु ने उन्हे अभृत फता कय आऩको ऩीने के मरमे कहा। आऩने डयते डयते हुवे उसे वऩमा जो अत्मन्त स्वाहदष्ट व भीठा था। कु छ ऩानी आऩकी छाती ऩय भरवामा। तफ आऩने सभझा मह कोई साधू है। उस अवधूत ने कहा बैमा होयाभ इसी मभथ्मा एवॊ ववनाश शीर भुद्रा के मरमे झूठ फोर यहे थे। मह तो मूॉ ही ऩानी हो जाती है भैं जजसे देता हूॉ बॊडाया बय जाता है, औय जफ रेता हूॉ तो सम्ऩदा मूॉही चरी जाती है। इससे इतना भोह न कयो औय कु कभथ त्माग कय सद्कभथ ऩय चरो जो तुम्हे कयना है। कपय अवधूत ने आऩको नाभ दान दीऺा दी औय कहा कक भैं तुम्हे दीऺा देने आमा था सो दे दी है। मह चवन्नी का जर सचखॊड का अभृत था जो तुभने ऩी मरमा है। बववष्म भें मह यॊग हदखामेगा ग्रन्थ मरखामेगा। अफ तुभ इसी भॊत्र का एक वषथ घय ऩय ही ध्मानाभ्मास कयो। इससे तुझे ऩूणथ सतगुरु की तेये घय ऩय ही प्राजप्त होगी। तुभ उनकी चयण शयण भें सतनाभ की कभाई कयना तुम्हाया भोऺ होगा। तेये शत्रु बी अनेको फनेगें जजसभें तू सत्म के कायण ववजमी होगा। अफ तू गॊगातीय की तयप दस कदभ भॊत्र जऩता जऩता हुआ जा कपय भेये ऩास भुडकय आना। आऩ दस कदभ ऩूणथ कयके जैसे ही वाऩस भुडे तो देखा कक अवधूत गामफ होने रगा आऩ उसकी तयप दौडकय चयणों भें ऩडने को चगये तो वह अदृश्म हो चुका था। अफ आऩको अवधूत का वैयाग्म हो गमा।
  • 7. 7 कपय घय आकय उसी ववचध अनुसाय ध्मानाभ्मास कयना शुरु कय हदमा। साथ साथ घय का बयण ऩोषण भजदूयी कयना बी जायी यखा आऩने अऩनी छोटी छटी फहन की शादी जैसे तैसे कय दी। छोटे बाई को गोद भें ऩारा तथा ऩुत्रवत प्माय हदमा गृहस्थ भें ऩजत्न का सहमोग बी अनुऩभेम यहा। अफ आऩको सफ याभवीय के नाभ से ऩुकायने रगे। सतगुरु शभरन एवॊ दीऺा प्राप्प्त ईश्वय बजतत आऩके रृदम भें जाग चुकी थी। ऻान ऩुष्ऩ खखर चुका था। ईश्वय बजतत भें जर बफन भीन जैसे अवस्था फन गई थी। ऩयन्तु अवधूत के ननदेशानुसाय ऩूणथ गुरु की खोज कयना ही रक्ष्म था। जफ कोई साधु सन्त आऩको कहीॊ मभरता तो आऩ वाताथराऩ कयते ऩयन्तु सन्तुजष्ट नहीॊ हुई। इसी प्रकाय कई भहीने फीत गमे। एक हदन आऩ भजदूयी ऩय रगे थे कक एक सॊत ग्राभ भें आमे। आऩ उनके ऩास ऩीछे – ऩीछे चर हदमे। उनसे बी आऩने कापी तकथ ववतकथ ककमे अन्त भें आऩने तीन प्रश्न औय ककमे। 1.भै आऩको गुरु धायण कय सकता हूॉ मा नहीॊ ? 2.वह ऩयभतत्व तमा है जजसे जान रेने के फाद कु छ शेष जानने मोग्म नहीॊ यहता? 3.हहयण्मगबथ तमा होता है ? सुनकय श्री सॊत जी फोरे फेटा सुख गृहस्थी भें है तुम्हायी अबी शादी हुई है सुख बोगो मशष्म फनना आसान नहीॊ है। आऩने कहा कक भुझे गुरु मभरन की प्मास रगी है उसे आऩ फुझाने भें सभथथ हो। गुरु बफन जीवन ऐसा है जैसा कक दीऩक के बफना भहर। सॊत जी ने ऩयभतत्व की व्माख्मा की कपय भूर प्रकृ नत का प्रसॊग देते हुवे कहा कक मे हहयण्मगबथ तुभ जानना चाहते हो मा देखना ? भैं हदखा बी सकता हूॉ। इसी वाताथराऩ भें सॊत जी सोने रगे। आऩ उन ऩय दो घॊटे तक ऩॊखा डुराते यहे जागने ऩय आऩको ऩॊखा कयते हुवे ही ऩामा तफ खुश होकय सॊत जी साॊम के सभम आऩके ही साथ टहरने ननकरे यास्ते भें ब्रह्भ ऻान चचाथ कयते कयते फहुत दूय ननकर गमे औय एक फहते गूर के ककनाये रूक कय स्नान ककमा आऩने उनको स्नान कयामा तथा वस्त्र धोमे कपय फैठकय आऩका सॊत जी ने हाथ थाभ मरमा। मह श्रावण शुतर एकादशी का हदन था। आऩने कहा गुरुदेव हाथ छोडने के मरमे न ऩकडना। आऩने बी श्री भहायाज का हाथ ऩकड मरमा। ऩूछने ऩय आऩने फतामा कक गुरुदेव महद आऩने भुझे छोड हदमा तो भैं आऩका हाथ
  • 8. 8 नहीॊ छोडूॊगा। भुझे सॊबारकय ऩकडना भैं अनत दम्बी ऩाऩाचायी अधभ आऩकी शयण आमा हूॉ ववचाय रेना। स्वाभी जी ने वामदा ककमा कक भै तुभसे अनत प्रसन्न हुआ हूॉ। भै तुझे वचन देता हूॉ कक तुझे हहयण्मगबथ ही नहीॊ ऩूणथ ऩयभहॊस ऩद की प्राजप्त कया दूॉगा तेया नाभ है होयाभ “जा हो जा याभ ” भेया आशीवाथद ग्रहण कय। इस प्रकाय सोरह वषथ की आमु भें आऩने दीऺा धायण की। तीन हदन आऩके घय ऩय साथ यहकय वे सॊत जी चरे गमे। मे सॊत थे श्री 1008 ब्रह्भदशी श्री स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस याजमोग भजन्दय हदल्री – 31 की गद्दी ऩय ववयाजजत। श्री स्वाभी जी की मोग्म मशष्म मभरन की ईच्छा तथा आऩकी ऩूणथ प्राजप्त की इच्छा आज ऩूणथ हुई थी। कपय आऩने अऩने छोटे बाई की शादी की। गृहस्थ बाय बी उठाना अननवामथ था। आऩको ध्मान रीन देखकय आऩकी ऩजत्न बी गुरु – मशष्मा फनकय साथ साथ बजन ध्मान औय भजदूयी कयने रगी। ध्मानमोग एवॊ प्रकृ तत प्रकोऩ दीऺा प्राजप्त के फाद आऩने दृढ सॊकल्ऩ मरमा (ऩाऊॉ गा मा मभट जाऊॉ गा) के साथ ध्मान सभाचध भें बयसक प्रमत्न ककमा औय श्रीगुरु देव के प्रनत आऩका सभऩथण एक उदाहयण फन गमा। श्रीगुरुदेव की भूनतथ आऩके अन्त्कणथ भें फस चुकी थी। बजन ध्मान भें इतनी रीनता थी कक सायी सायी यात जफ प्रजा सोती थी आऩ एक चादय भें मरऩटे ध्मानमोग भें सभामे यहते थे। गुरुदेव को ऩर बय बी नहीॊ बूरते थे। इसी ऩरयजस्थनत भें थोडी ही आमु भें आऩके साथ ऐसी घटना घटी कक आऩका रृदम हहर उठा। शामद मह कोई देवी ऩयीऺा थी। आऩ एक अऩने घेय से घय जा यहे थे अचानक आऩके चचेये बाई की स्त्री ने एक षडमन्त्र आऩको भयवाने के मरमे यचाकय एक उऩरा आऩ ऩय पें का औय उसने शोय भचामा। वहीॊ नछऩे हुवे 20 आदभी जो हचथमायो से तैनात फुरामे गमे थे, सफने एकदभ आऩ ऩय हभरा कय हदमा आऩ ननहत्थे थे राठी ऊऩय फयस यहीॊ थी शोय सुनकय आऩकी भाता जी आमीॊ तो आऩके चाचा ने उस ऩय प्रहाय कयके मसय पोड डारा। आऩ उसे फचाने बागे थे कक शोय सुनकय आऩकी ऩजत्न जगवती जो गबाथवस्था भें थी दौडी आई वह आऩको फचाने रगी कक उस ऩय बी रोहे की छड से चाचा ने तथा कई गुन्डों ने प्रहाय ककमा जजससे वह फेहोश होकय चगय गई। आऩने प्राथथना की हे हरय ! हे शजतत ! भेयी यऺा कयो तबी आऩ वऩटते – वऩटते
  • 9. 9 ऩजत्न को कन्धे ऩय राद कय उठाकय घय भें रे गमे। वहाॉ से आऩको फाहय ननकारा औय राठी फयसने रगी तबी आऩने हभरावय की राठी छीन कय घभासान मुद्ध ककमा जजससे शत्रु ऩऺ दीवायें कू द कय बागने रगे। तफ जान फची। कपय आऩने अऩनी ऩजत्न को सम्बारा, भाता को उठामा। अगरे हदन आऩने ऩॊचामत फुराई जजसभे गाॊव के सबी प्रभुख व्मजततमों को फुराकय वाकात को स्ऩष्ट कयने की फात यखी। ऩहरे तो उस स्त्री ने आऩको फदनाभ कयने की फात कही ऩयन्तु वह झूठी मसद्ध हुई। कापी देय ऩॊचामत भें तकथ उठे कपय उस स्त्री व आऩके चाचा व अन्म गुन्डों को ऩॊचामत ने दोषी भानकय ऩाॊच ऩाॊच जूते रगाने की सजा दी तथा आऩको ननदोष भाना। आऩ इस षडमन्त्र से फेखफय थे। उस स्त्री ने सोचा था कक प्रेभी मभरन भें याभवीय रूकावट कयेगा इसमरमे उसे भयवा देना चाहहमे। सबा ने उन्हे दजण्डत ककमा तथा आऩसे ऺभा भॊगवाई। आऩने अऩने चाचा से कहा – भुझसे तमा ऺभा भाॊगते हो ऩयभेश्वय से ऺभा भाॊगो। आऩने चाचा का बी इराज कयामा ऩयन्तु आश्चमथ मह था कक आऩके शयीय ऩय कहीॊ चोट नहीॊ थी। कु छ हदन फाद उस स्त्री का ऩनत तऩैहदक का फीभाय हुआ औय भय गमा। इसका बी दोष वह आऩ ऩय देती यही कक याभवीय ने इसे कु छ ककमा है। इस तयह इस स्त्री ने आऩ ऩय अनेकों अत्माचाय ककमे ऩयन्तु स्वमॊ ही रजज्जत होती यही। आऩ हरय इच्छा कहकय शान्त फने यहते थे। उधय ध्मानमोग भें आऩकी सुनतथ नब भण्डरों ऩय तीव्र रूऩ से चर यही थी ध्मानावस्था उत्तभ गनत ऩय जा यही थी। मशव ववष्णु ऩावथती आहद का साऺात्काय आऩको हुआ तथा आशीवाथद प्राप्त ककमे। ऩयभात्भा अऩने बततो को इतना कष्ट न जाने तमों देते हैं ? एक फाय आऩ भजदूयी कयने एक चगयजाघय भें गमे वहाॉ आऩने ऩॊद्रह हदन काभ ककमा था। एक हदन आऩ प्राथथना बवन की दीवाय की ऩुताई कय यहे थे फहुत ऊॉ चे ऩय एक दीवाय भें फहुत फडी घडी (घन्टा) टॊगी थी जो आऩकी कूॉ ची रगकय नीचे चगयकय चूय चूय हो गई। तबी सीढी कपसर कय चगयने रगी आऩ बी नीचे चगय गमे। सपे दी (करी) छरक कय आऩ की आॉखों भें बय गई आॉख भें जख्भ बय गमा। जैसे तैसे आऩने नर ऩय आॉखे धोई, आऩ जैसे तैसे अॊधे हुवे ही अऩने घय ऩाॉच कोस ऩैदर चरकय आमे। ऩयन्तु घॊटे की ऺनत ऩूनतथ भें आऩका हहसाफ योक मरमा गमा था औय आऩकी साईककर बी चगयजे भें फॊद कय दी गई थी। आऩ ऩैसे से तॊग तो थे ही मह औय गयीफी ऩय भाय हो गई। शाभ को आऩ
  • 10. 10 घय आमे उदास हुवे चुऩ सो गमे। ऩजत्न अधीय हो गई, योने रगी कक अॊधा होने से अफ गुजाया कै से होगा ! औय ववनती कयने रगी कक हे- प्रबु इन्हे ठीक कयदो। आऩ यात बय ईसा भसीह को कोसते तथा मशकामत कयते यहे। अगरे हदन जफ चगयजाघय की ऩुताई कयके बफना भजदूयी मरमे आऩ चरे तो चगयजाघय जो ऩूणथत् फॊद कय हदमा गमा था का अचानक एक दयवाजा खुरा। जजसभें से एक ऩादयी फाहय आमे उन्होने आऩसे प्रेभ की फाते की तथा ठेके दाय को सभस्त हहसाफ व साइककर रौटा देने को कहा औय आऩकी आॉख ऩय हाथ यखा जजससे योशनी आई औय हदखाई देने रगा। कपय हहसाफ हदरा कय आऩको प्रेभ देते देते वह सॊत वाऩस चगयजे भें ही सभा गमा। कपय सफ घय चरे गमे। शामद मह कोई ईशा जी की बेंट होगी। इस प्रकाय चौदह वषथ (दीऺा के हदन से) सायी सायी यात ध्मान सभाचधस्थ यहकय आऩने अऩनी ननजधाभ मात्रा अनेकों कष्ट तथा गृहस्थ ऩारन के साथ साथ तम कयके अरख रोक तक की मात्रा ऩूणथ कय री। 30 – 31 वषथ की आमु भें इतनी सुतथमात्रा की कभाई कयना एक अनुऩभेम कामथ था। इसी फीच आऩके श्री गुरुदेव सत्माथी जी का बन्डाया रगा वहाॉ आऩको श्री भहायाज जी ने अचानक आऩको प्रवचन कयने का आदेश हदमा। जफ आऩ प्रवचन कयने रगे तो सभस्त सॊत भॊडर आश्चमथ चककत यह गमे। कपय श्री भहायाज जी ने आऩको प्रसन्न होकय तथा मोग्म मशष्म जानकय जनकल्माणाथथ नाभ दीऺा देने की आऻा कयके सतगुरु ऩद की ववचध ऩूवथक उऩाचध ऩय सुशोमबत कय हदमा तथा सभस्त गुरु बाईमों के मरमे बी आऩको सम्बारने का आदेश हदमा। गुरुत्व बाय स्वीकाय कयके आऩ जगत जीवों को नाभ दान उऩदेश तथा सतसॊग देने भें सतगुरु सेवक फनकय जुट गमे। अनेकों बततों को आऩने सचखण्ड से जोडने के मरमे ग्रहण ककमा। अनेकों रृदमों भें आऩने सतनाभ का डॊका फजामा औय ऩूणथ ऩद प्राप्त कयामा। फहुत से गुरु बाई बी आऩकी शयण भें अऩनी सतनाभ कभाई भें रग गमे। इसी फीच अनेकों सॊत आऩसे सतसॊग वाताथ कयने आने रगे। ववद्वान बी आऩके उत्तय ऻान ववऻान व रूहानी प्रवचन सुनकय आश्चमथ भें ऩडने रगे। एक हदन आऩको ध्मान मोग भें एक हदव्म ज्मोनत ने आऻा दी कक आऩ अऩनी आॉखों देखा अनुबव भहाकाव्म रूऩ भे मरखो। मह फात सफ सॊत सुनकय आऩसे इस कामथ को ऩूया कयने ऩय फर देने रगे। आऩने उन सॊत मशष्म जनों के साभने जो अखण्ड ऻान प्रगट ककमा उसी को भहाकाव्म रूऩ भें मरखना शुरु कय हदमा।
  • 11. 11 सयस्वती जजव्हा ऩय ववयाजभान हो गई। ऩयसेवा बूखे प्मासों को बोजन देना मबखायी ने जो भाॊगा वह दे देना। एक फाय आऩ ध्मानमोगस्थ ननन्द्रा भें चायऩाई ऩय सो यहे थे ऩास भें यसोई थी जजसकी पशथ चायऩाई जजतनी ऊॉ ची थी अचानक सुफह उठे तो देखा कक एक सऩथ तीन टुकडे हुवे आऩकी चायऩाई के ऊऩय पन ककमे यसोई भें कटा ऩडा है, उसे चायऩाई ऩय जाने से ऩहरे अचानक आई ककसी नोर ने काट डारा था। शीघ्र ही आऩकी ननवाथण मात्रा अनाभी धाभ ऩयभहॊस ऩद की ऩूणथ हो गई। अगरे वषथ गुरु भॊहदय ऩय सॊत भण्डरी के सभऺ आऩके गुरुदेव ने कहा कक मशष्मों अफ भैं तुम्हाये साभने एक हीया ऩेश कयता हूॉ। आऩको फुरामा गमा। आऩने सचखण्ड का सॊदेश तथा कारदेश से सुनतथ को ननकारने का वह प्रवचन हदमा जजसने सभस्त सॊत सभाज को आश्चमथ चककत कय हदमा। कु छ हदन फाद आऩ सोमे हुवे थे आऩने स्वऩन भें देखा कक आकाश से एक गोरा आऩके भकान ऩय चगय यहा है जजसे आऩने दूय पें क हदमा वहीॊ जाकय वह पट गमा तुयन्त आऩके साभने एक अनत सुन्दय बत्रशूरधायी वऩताम्फय ऩहने भुकु ट फाॉधे एक देवी प्रगट हुई। आऩने उसे देखकय ववनम ऩूवथक ऩूछा कक “तुभ कौन हो ” तमों आई हो ? उसने उत्तय हदमा “भेया नाभ होणी है भेया आना ननष्पर नहीॊ जाता कु छ हदन तुम्हाये ऩास यहूॉगी तुम्हायी ऩयीऺा है। आऩने कहा देवी तुभ जाओ महाॉ तो भेये ईष्टदेव बगवान का ही आगभन बाता है। वह हॊसती हुई अदृश्म हो गई। आऩ चौंक कय उठे कपय नीॊद नहीॊ आई। इसमरमे यात्री भें ही कु छ काव्म यचना शुरु कय दी। इस घटना के कु छ ही हदन फाद प्रकृ नत देवी का प्रकोऩ शुरु हो गमा। स्वगीम वऩता के सभम से आऩके घय के नीचे नीचे (अन्डय ग्राउन्ड) एक नारी फाहय ननकरकय खडन्जे आभ भें चगयती थी जजससे कई फाय आऩका भकान चगय गमा था वऩताजी इसको फॊद कयने भें असपर यहते थे तमोंकक इसे फॊद कयना आकाश से ताया तोडकय राने जैसा कहठन था। एक फाय वऩता की इस चचन्ता को देखते हुवे आऩने उन्हे वचन हदमा था कक भैं इसे एक हदन फॊद कय दूॉगा। अफ वह सभम आ गमा था। एक तयप ध्मान सभाचध व काव्म यचना गृहस्थ ऩारन तथा ऩयभाथथ सतसॊग आहद तो दूसयी ओय देवव प्रकोऩ। आऩके घय के नीचे नीचे अनुचचत जो नारी कभजोयी के कायण ननकारी हुई थी उसका ऩानी जजस खडॊजे ऩय चगयता था वह ऩॊचामत द्वाया ऊॊ चा फनामा जाने से ऩानी भकान भें रूककय खतया ऩैदा हो गमा। आऩका दुख ककसी ने नहीॊ सभझा। वववश होकय आऩने उसे बफस्भाय कय हदमा जजसकी सूचना ऩाते ही
  • 12. 12 ववऩऺ के सौ आदभी आऩ ऩय टूट ऩडे। नारी खुरने का दफाव डारा ऩयन्तु आऩ नहीॊ भाने तो उनभें छ् प्रभुख व्मजतत नामक फनकय न्मामाल्म भें चुऩचाऩ दावा दामय कय आमे उन्होने नारी को खुरवाने का फीडा चाफा। इन छ् व्मजतत कारूयाभ, हुतभमसॊह, हॊसा, झब्फय व सभम के ऩीछे उनके सौ खानदानी व्मजततमों के अरावा ग्राभ के असॊख्म व्मजतत बी थे। आऩ अके रे थे। आऩ डटकय भुकाफरा कयते यहे। इसी फीच ववऩऺ ने एक सबा आऩको ऩीटने की तम कयके फुराई। आऩने जगदम्फा का स्भयण ककमा जो प्रकट हुई औय आऩकी यऺा कयने का वामदा व ववजमी बव का वयदान देकय चरी गई। तफ आऩ अके रे सबा भें गमे ऩयन्तु वहाॉ हभरावय आऩस भें ही रड ऩडे। औय चरे गमे ऩयन्तु ववऩऺ सॊगहठत हुआ आऩको भायने ऩय तुर गमा। कु छ हदन फाद अचानक ऩुमरस आई। आऩको आऩके बाई भहावीय व खानदानी बाई चन्दयाभ व खेभचन्द को साथ ही एक यात जेर जाना ऩडा। वहाॉ चन्दयाभ ने कहा कक अफ तुम्हे (आऩको) अके रा नहीॊ यहने देंगे चाहे कपय दोफाया जेर ही आना ऩडे। फाहय ननकरकय ववऩऺ से रोहा रूॉगा। आऩने यातबय चन्दयाभ को ऻानाधाय ऩय सभझामा तथा कहा कक अफ हभ जेर नहीॊ आमेंगे अफ ववऩऺी दर जेर आमेगा ववजम हभायी होगी धभथ की ववजम ननजश्चत है तमोंकक ववऩऺ अन्माम से हभाये घयों भें जन फर ऩय गन्दा ऩानी प्रकृ नत ववरूद्ध बयना चाहता है। रो भैं तुम्हे ववजमी होने का नतरक कयता हूॉ फस नाभ भात्र को भेये साथ खडे हो जाओ। चन्दयाभ सॊग भें सहामक फन गमा। आऩ घय ऩय आमे यात्री भें ववऩऺ खुशी भें सबा कयने रगा आऩको बी फुरवामा गमा जहाॉ आऩको डाॉटा तथा नारी खोरने को वववश ककमा ऩयन्तु आऩने अन्माम के ववरूद्ध रडना ही श्रेष्ठ सभझा। ववऩऺ आऩ ऩय भायऩीट को टूटना चाहता था आऩके शब्द उनका प्रहाय योक देते थे। अगरे हदन ववऩऺानुसाय ऩुमरस आऩको चगयफ्ताय कय रे गई वहाॉ जफ आऩको थानेदाय ने सत्म वचन उऩदेशों को सुना तो आऩको छोड हदमा औय आऩका दुख सभझा जजसे धभथऩऺानुसाय आऩकी भदद कयने का वामदा ककमा। गवथ व जनसॊख्मा की अचधकता से आऩको पॊ साने के षडमन्त्र यचे जाने रगे। आऩके बाई बी घफयाने रगे। आऩने हहम्भत नहीॊ हायी। एक षडमन्त्र बयी सबा भें जो आऩने ववपर कय दी ववऩऺी झब्फय ने आऩको क्रोध भें ररकाय कय कहा कक हभ उल्रू को हॊसनी नहीॊ देंगें अथाथत तुम्हे नारी की खुशी नहीॊ देंगें। आऩने कहा कक जो हॊस होगा वह हॊसनी रे जामेगा। कपय तो सभस्त ववऩऺ आऩ ऩय झऩट ऩडा। आऩ अके रे
  • 13. 13 अडे भुकाफरा कयते यहे जजससे आऩके ववयोधी खानदानी आऩका साहस देखकय आऩकी सुयऺाथथ आ गमे। आऩने बयी ववऩऺी की सबा भें प्रनतऻा की कक भैंने ब्रह्भऻान गीता की कसभ है जजन हाथों से नारी फॊद की है अफ उन से नारी कबी नहीॊ खोरूॉगा औय ऩानी खडॊजे आभ जजस ऩय तुभ नहीॊ फहने देते से ही ऩानी फहकय जामा कयेगा। भैं ऩानी खडन्जे आभ सेही खोरकय भानूॉगा। जफ कोई अचधकायी जाॉच के मरमे आता तो आऩके चाचा बी ववऩऺ की सीॊख भें छु ऩे छु ऩे यहते औय आऩके ववरूद्ध ही फोरते थे जजसका ववऩऺी दर ने पामदा उठाकय एक षडमन्त्र यचकय आऩको फॊद कयाना चाहा। आऩ स्वमॊ को तथा अऩने बाइमों को फचाते यहे तथा शत्रुदर की मोजनामें ववपर कयते यहे आऩकी चाची का इसी दौयान ववऩऺ ने चार चरकय कत्र कया हदमा। चाचा ववऩऺ के साथ मभरता यहता था उसे ववऩऺ ने आऩके ववरूद्ध थाने भें रयऩोटथ कयने को उकसामा ताकक आऩ पाॉसी चढ जामें ऩयन्तु ! आऩके चचेये बाई व उसके भाभा ने आऩके चाचा की आॉखे खोर दी जजससे आऩ सुयक्षऺत फचे। साॉच को आॉच नहीॊ होती है। शत्रु ऩऺ ने चायों तयप ऐसी जस्थनत ऩैदा की कक आऩ फुयी तयह पॊ सने रगे। आऩ हय घटना को ईश्वय नाटक मा हरय इच्छा कहते थे। शत्रु दर प्रनतहदन सबा फुराकय गुप्त षडमन्त्र यचते जजससे आऩके फार फच्चे ऩजत्न सफ ऩयेशान थे। एक हदन आऩ अऩने खेत भें ऩानी बय यहे थे आऩको ज्वय चढ यहा था थोडी देय भें ऩुमरस आई औय आऩको गुप्त रूऩ से उठा कय थाना दौयारा भें हवारात भें फन्द कय हदमा। शत्रु ऩऺ के ककसी दो रयश्तेदायों का अऻात फदभाशों ने कत्र कय हदमा था। जजसकी साजजश भें आऩ को चगयफ्ताय कया हदमा। कत्र भें पॊ सामा जानकय आऩ हवारात भें ही ऩयभेश्वय के ध्मान भें रीन हुवे सो गमे। आऩको ध्मान ननॊद्रा भें अनत सुन्दय शजतत स्वरूऩा भहा तेजऩुॉज ववबूनत जगदम्फा देवी ने ध्मान भें दशथन देते हुवे कहा कक ऩुत्र घफयाओ नहीॊ तुम्हायी भदद कयने के मरमे भुझे महाॉ बेजा गमा है, ननदोष की भेये द्वाया यऺा होगी। आऩका ध्मान छू टा। यात्री के 2 फजे थे थोडी देय फाद आऩको ऩुमरस ने फाॉध कय मातनाऐॊ देनी शुरु की। अनेकों मातना देने ऩय बी आऩको कु छ बी भहसूस नहीॊ हुआ। ववद्मुत के झटके रगामे तो ववद्मुत गुर हो गई। खम्फे से के बफर टूट कय चगय गमा। कपय दयोगा जी आऩको हवारात भें फन्द कयके स्वमॊ सो गमे। औय जफ सुफह चौंक कय उठे तो आऩको ननदोष सभझा। ऩुमरस अचधऺक को आऩके बाईमो ने खफय दी जजस ऩय दयोगा जी को डाटा गमा तथा आऩको फाइज्जत रयहा कय हदमा गमा। जैसे ही
  • 14. 14 आऩ घय आमे तो देखा कक सॊकट ऩय सॊकट था फार फच्चे सफ यो यहे हैं तमोंकक उसी सभम घय ऩय अचानक कजथ से री गई बैंस भय गई थी आऩने हरय इच्छा सभझकय सफको सभझामा। इसी फीच ववऩऺ के प्रबाव से नारी खोरने के आदेश हो गमे आऩकी भदद एक बू0 ऩू0 जजरा जज आगया ने की जो भौके ऩय न्मामाधीश को रामे। भौंके ऩय बीड हो गई थी कई घटना ऐसी घटी जजससे न्मामाधीश ने आऩका कदभ धभथमुतत तथा अन्माम के ववरूद्ध औय दाॊतो फीच जजभ्मा जैसी ऩरयजस्थनत को सभझा था। कपय न्मामाधीश वाऩस चरे गमे। ववऩऺी दर का कहना था कक याभवीय नारी खोरने के नाभ से एक पावडा जभीन नारी खोर दी कह कय भायदे तो हभ मुद्ध फन्द कय देंगें तमोंकक गीता की कसभ जरूय तोडनी है। आऩने इसे स्वीकाय नहीॊ ककमा। इस ऩय ववऩऺ का एक मोद्धा फोरा कक याभवीय तुझे हभ भृत्मुघाट ऩहुॉचाकय दभ रेंगें। हभायी सौ राठी एक साथ उठती है औय हभायी फहुत फडी पौज है। इस प्रकाय शत्रुऩऺ का गवथ आकाश को छू ने रगा आऩके ऩजत्न व फच्चों का कहीॊ फाहय ननकरना बी खतयनाक फन गमा। फच्चे बूख से तडपने रगे। इस घटना के कु छ हदन फाद खेभचन्द व यॊजजत जोगी दोंनों दूचधमा थे भे गोरी चर गई जजसभें ववऩऺ ने यॊजीत की ओट से आऩको चन्दयाभ व खेभचन्द को पॊ साना चाहा। थाना से ऩुमरस आ गई जजसकी खुशी भें ववऩऺ झूभ यहा था ऩयन्तु आऩने यात बय भें ऐसी रीरा यची कक आऩके बाईमों के फजाम यॊजीत को ही चगयफ्ताय कय मरमा गमा। शत्रु ऩऺ अपसोस भें ऩड गमा। फाद भें आऩने यॊजीत को ननदोष सभझा ऩैयफी की कभी कयके उसे बी न्मामारम से फयी कया हदमा गमा। तथा ननदेश हदमा कक ककसी के कहने भें आकय ऐसी हयकत कपय न कयना। कु छ हदन फाद जो आऩके साथी बाई थे। वे घफयाकय अरग हटने रगे तमोंकक शत्रु ऩऺ ववशार था अऩनी पौज का जोय हदखा यहा था अफ आऩ अके रे यह गमे। ववऩऺ की भनत ऩय होणी सवाय हुई उन्होने खडॊजों भें ऊॉ चे ऩुस्ते फाॉध हदमे। फयसात शुरु हो गई। ऩानी भौहल्रे भें बय गमा भकान चगयने रगे आऩकी ऺनत होने रगी। आऩ वववश हुवे ऩयभेश्वय ध्मान कयके जजराचधकायी से मभरे जजससे भौंके ऩय ऩुमरस आई औय ववऩऺ के न भानने ऩय खडन्जे का फाॉध हटाकय ऩानी ननकार हदमा। ववऩऺ सहन न कय सका ऩुमरस से मबड गमा। तीन दयोगा व मसऩाही नघय गमे ककसी तयह फदनमसॊह दयोगा जाने ककस तयह बाग ननकरा जजसकी सूचना ऩय तत्कार 90 (नब्फे) जवान ऩी0 ऐ0 सी0 के घटना
  • 15. 15 स्थर ऩय आमे। ववऩऺ को चगयफ्ताय कय थाने से चारान द्वाया जेर बेजा गमा। अफ ऩुमरस द्वाया उनका गवथ चूय चूय हो गमा आऩके बाई ऩुन् साथ देने रगे। ऩडमन्त्रकारयमों की कई फाय आऩसे भुठबेड हुई ऩयन्तु आऩ ही सपर यहे। उधय न्मामधीश की रयऩोटथ आऩ के ऩऺ भें होने से आऩको ववजमी घोवषत कय हदमा। ऩरयणाभ स्वरूऩ अफ ऩुमरस के गरे भें आऩके सॊकट की भारा ऩड गई थी। आऩको कोई चचन्ता नहीॊ यही। ऩुमरस के स भें सजा का ऩैगाभ हुआ। आऩने ईश्वय से प्राथथना की कक हे प्रबु भैं ककसी को जेर कयाने के मरमे नहीॊ ऩैदा हुआ हूॉ उन्हे रयहा कय दो। कु छ देय फाद ववऩऺ हाया हुआ सा भुचरकों ऩय छू टा घय आमा। ववऩऺ के ऩौरूष ठॊडे हो गमे जजससे आऩसे उन्होने याजीनाभा पै सरा कय मरमा। इसी फीच कई मशष्मों को आऩने सॊकटों से फचामा तथा काव्म यचना जायी यखी। कु छ हदन फाद झब्फय मसॊह ववऩऺ का नेता जो फहुत सभझदाय था आऩकी शयण भें आकय ध्मान भागथ अऩनाकय सतऩथ ऩय चरने रग गमा उसने मशष्मता को ननबामा। इसी दौयान बफचरा रड़का ववयेन्द्र कु भाय गेंद अरभायी से उतायता हुआ दूध से गम्बीय रूऩ से जर गमा ऩैसा ऩास नहीॊ था। आऩ अस्ऩतार जा यहे थे कक श्री याभ चन्द्र ऩेशकाय आऩके मशष्म जजसने भृत्मु ननकटतभ फच्चे को इराज कयाकय फचामा वह ननत्म साथी यहा। सतसॊग प्रचाय इसी फीच श्री भहायाज श्री सतगुरु स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी का आऩके ऩास सतसॊग प्रचाय का ऩत्र आमा। आऩने इसके मरमे दूय दूय तक सतसॊग प्रचाय ककमा तथा अनेकों रृदमों भें प्रबु बजतत व ऩयभहॊस याजमोग की मशऺा दीऺा बय दी। सतसॊग प्रचाय तो दूसयी तयप गृहस्थ भें दैववक प्रकोऩ बी फढते यहे। आऩकी चचेयी बावज जो आऩसे क्रु द्ध थी ने आऩको जार साझी भें बयकय पॊ सवाने के मभथ्मा कई षडमन्त्र यचे ववऩऺ के कु छ व्मजतत उसे बडका कय आऩसे यॊजजश ननकारने की मोजना भें यहते थे। उसने कई फाय अऩने घय भें स्वमॊ चोयी के इल्जाभ रगाकय बी पॊ सवामा ऩयन्तु सफ षडमॊत्र ननष्पर हुवे। उसकी एक सहेरी बी उसे बडकाती थी। एक फाय उसने आऩके फीफी फच्चो ऩय हभरा कय हदमा खुद थाने रयऩोटथ कयाने चरी गई उसका ऩनत पौज भें नौकय था ऩयन्तु उसे इतनी कभ फुवद्ध थी कक वह वास्तववकता जानने भें असपर था उसने दयोगा जी को पु सरामा कक वह आऩको थाने राकय भायऩीट कय दे। आऩ एस
  • 16. 16 एस ऩी साहफ से मभरे जजसके कायण मह मोजना बी ववपर हो गई। कु छ हदन फाद ववऩऺ के कु छ फच्चों ने स्कू र से आते वतत अऩनी मोजनानुसाय आऩके फडे रडके भहेश को फाॉध कय गॊग नहय भें फहा हदमा। कु छ देय फाद स्कू र के कु छ औय फच्चे आ गमे जजन्होने उसे गॊग नहय से फाहय ननकारा। आऩ कहते थे कक– ज्मूॉ ववमबषण रॊका फसे जजभ्मा दन्तन छाभ। त्मूॉ यहनी होयाभ की हयऩर फेरी याभ।। एक फाय चन्दयाभ को यॊजजस से पॊ साने के मरमे गाॊव के एक अन्म व्मजतत ने याबत्र भें स्वमॊ गोरी चराकय आऩके व चन्दयाभ के नाभ थाने भें रयऩोटथ कय दी। आऩको थाने फुरवामा गमा दोंनों ऩऺ वहाॉ भौजूद थे दयोगा जी ने आऩसे कहा कक गोरी तमो चराई। आऩने कहा दयोगा जी सभस्त सॊसाय का स्वाभी एक ऩयभेश्वय है उसने अऩने जीवों की सुयऺा के मरमे देवताओॊ को ऺेत्र फाॉटें हैं आऩ बी उसी तयह इस ऺेत्र के उसी ऩयभेश्वय के जीवो की सुयऺा कयके ऩयभेश्वय का ही कामथ कयते हैं। मह रयऩोटथ कताथ आऩको ऩयभेश्वय भानकय ऩाॉच कदभ मह कहकय बयदे कक हे ऩयभेश्वय ! गोरी याभवीय ने व चन्दयाभ ने चराई है तो हभे जेर बेज दो। भगय गोरी एक चरी दो व्मजतत गोरी चरामें गोरी एक ही कै सा कभार है। थानेदाय साहफ ने आऩको ननदोष सभझा तथा आऩका ऻान सतसॊग सुनकय प्रसन्न होकय रयहा कय हदमा। उसने बी ऩाॉच कदभ बयने को इन्काय कय हदमा था। इतनी घटना के फाद भैं रेखक आऩकी शयण भें आमा भैंने जो ऻान एवॊ सुनतथ मात्रा कभाई आऩकी शयण यहकय प्राप्त की उसके मरमे भैं कई कई जन्भों तक बी आऩका आबायी हूॉ। आऩ अऩने प्रवचन के वर रूहानी सतसॊग सॊस्कृ त बये श्रोंकों से अरॊकृ त देते थे सुनने वारे भुग्ध हो जाते। दूय दूय से फडे फडे अचधकायीगण बी आऩके ऩास ऻान प्राजप्त के मरमे आने रगे फहुत से सन्मासी सॊत बी आऩके ऩास आकय ध्मेम ऩूनतथ के मरमे ठहयते थे। आऩने ग्राभ गेझा भें एक सौ एक सतसॊग एक स्थान ऩय कयने की प्रनतऻा री औय एक ऩयभहॊस याजमोग सॊस्था फनाई जजसका अचधक बाय भुझ ऩय सौऩा गमा। भेया ऩूया ऩरयवाय आऩका दीवाना फन गमा था। आऩ होरी जन्भाष्टभी सफ भनाते तथा ऻान प्रचाय कयते। एक हदन छ् मशष्मों को जन्भाष्टभी की अधथ यात्री ऩय अभय कथा बी सुनाई जजसको सुनकय भेये रृदम भें के वर आऩ ही आऩ सभा चुके थे। मही हार अन्म मशष्मों का बी था। कु छ रोग गुन्डे सतसॊग को चराने नहीॊ देते थे सतसॊग
  • 17. 17 भें राठी व ढेरे फयसने की मोजना से आते ऩयन्तु न जाने तमों कोई कु छ नहीॊ कय ऩामा कई चभत्काय बी हुवे जजसके फाद वे सफ कापी ऩयेशानी खडी कयके , ननयाश होकय वास्तववकता को सभझ ऩामे कपय कोई ववयोधी नही हुआ आऩने 101 सतसॊग ऩूणथ कयके मऻ बन्डाया ककमा। एक फाय भैने ऩूछा कक गुरुदेव आऩने इतनी थोडी सी आमु भें आऩने ऩूणथ अनाभीधाभ तक की मात्रा कयरी तथा मह भाहाकाव्म हहन्दुत्वसागय अभयकथा बी मरख हदमा मह कै से हुआ ? आऩने उत्तय हदमा कक – मह मोग मात्रा तो भेयी ऩूवथ भें ही ऩूणथ थी। इस जन्भ भें तो के वर दोहयामा गमा है। यही फात इस काव्म की – जफ भैंने अऩनी सुतथमात्रा ऩयभहॊस ऩद अनाभी धाभ तक ऩूणथ कय री तफ एक हदन भैं ध्मानावस्था भें सुषुजप्त भें होता हुआ तुरयमातीत अवस्था भें ऩहुॉचा तो देखा कक चायों हदशाओॊ से झन्डे मरमे हुवे अऩने अऩने गुरुओॊ के साथ भॊडमरमाॉ आकास भागथ को जा यहे है भेये ऩूछने ऩय उन्होने फतामा कक अगभ रोक भें एक ववशार भुततात्भाओॊ का दयफाय है हभ सफ वहीॊ ऩय जा यहे हैं। ऩयन्तु बफना गुरु के साथ हुवे वहाॉ कोई जाने का प्रमत्न बी न कये। भैं तुयन्त याजमोग भॊहदय शाहदया अऩने गुरुदेव स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस भहायाज के ऩास आमा तथा वृतान्त फताकय गुरुदेव को वहाॉ चरने की ववनती की। भना कयने ऩय आऩने श्री भहायाज जी की इस फात ऩय यजाफन्दी प्राप्त की कक आऩ उन्हे अऩने कॊ धों ऩय अगभरोक रे चरेंगे। स्वाभी जी फीभाय थे। आऩने श्री गुरुदेव को कॊ धे ऩय फैठाकय गगन भॊडर को गभन ककमा हाथ भें अऩने गुरुदेव का झन्डा मरमा। चरते चरते आऩ अगभ दयफाय भें ऩहुॉचे औय वहाॉ श्री सतगुरुदेव को दयफाय की स्टेज की एक कु सी ऩय फैठामा। आऩके दादा गुरुदेव ने आऩको प्रेभ से मभरन ककमा। फडे फडे सतगुरुदेव सबी भतों के भुततात्भाओॊ को उऩदेश देने वहाॉ आमे थे। आऩ स्टेज के आगे श्री सत्माथी जी की आऻानुसाय खडे हो गमे। आऩकी जजधय नजय जाती वहाॉ तक सॊत भॊण्डमरमाॉ फैठी हदखती थी तथा सफके झऩ्डे रहया यहे थे। इसी फीच वहाॉ प्रकाश फढने रगा आकाश भें से एक ववशार सूमथ के सभान प्रकाश ऩुॉज स्टेज की तयप उतयने रगा सफकी दृजष्ट उसी ऩय रगी थी। स्टेज ऩय आकय वह श्री सत्माथी जी के हाथ भें शॊख फनकय ठहय गमा। शॊख भें से दूचधमा अभृत की धाय ननकरी जजसे सत्माथी जी ने आऩको वऩरामा। कपय वह प्रकाश ऩुॉज फनकय आकाश भें जाते जाते ववरीन हो गई। जजसभें से आवाज मह आई कक “होयाभ” जो अभृत तूने वऩमा है इसे जगत के कल्माण भें रगाना कारदेश के जीवों के कल्माणाथथ इस अभृत तत्व को काव्म रूऩ भें बय देना काव्म शजतत के मरमे तुझे अभृत ऩहरे बी मभर चुका है औय अफ बी वऩरामा गमा है। भैने मह काव्म मरखे हैं।
  • 18. 18 इस प्रकाय आऩने अनेकों सन्त मशष्मों को सतरोक अरखरोक तक की चाफी देकय कृ ताथथ ककमा है। एक फाय जो बी प्रवचन सुनाता वही शास्त्राथथ छोडकय प्रबाववत हुआ। आऩका मशष्म फन जाना सहज फात थी। सतगुरुदेव का ऩूणथ जीवन चरयत्र तथा ववऻान ऩढने के मरमे श्रीदेव जीवन चरयत्र को भॊगाकय अवश्म ऩढे। जम सजच्चदानन्द सॊत सुदीऩ यस्तोगी (टीकाकाय) अभृतवाणी से ऩद यचनाॊर्श आहद अनन्तॊ भहा ज्मोनत ऩुॉजॊ ननवाथणरूऩॊ सोSहभ् सोSहभ्।। चचदानन्द रूऩॊ ननत्मॊ फोधॊ सत्मॊ शाश्वत सोSहभ् सोSहभ्।। कताथ न बोतता फॊधॊ न भोऺॊ कभथ यहहतॊ सोSहभ् सोSहभ्।। जन्भ न भृत्मु धभथ न अधभथ अऺम सनातन सोSहभ् सोSहभ्।। सगुणॊ न ननगुणॊ ऩयात्ऩयोSहभ् देह यहहतॊ सोSहभ् सोSहभ्।। ववश्व स्वरूऩॊ यवव शमश धायॊ स्वमॊ प्रकाशॊ सोSहभ् सोSहभ्।। सुखॊ न दुखॊ न भनचचत्त मुतत मशवोस्वरूऩॊ सोSहभ् सोSहभ्।। न नाभॊ न रूऩॊ, भुतत सवथदा कार यहहतॊ सोSहभ् सोSहभ्।। अनन्त ज्मोनत स्तीत्व ऩुॉजॊ अगभ ननत्मॊ सोSहभ् सोSहभ्।। आत्भस्वरूऩॊ जगदातीतॊ होयाभदेवॊ सोSहभ् सोSहभ्।। 2 – बजन कब्वारी उठ अॊखखमाॊ खोरकय देख जया – तेये सय ऩय भौत ववयाज यही।।टेक।। भृत्मु से भची है खराफरी – सॊसाय भें हो यही चराचरी।। कोई आज भया कोई कर भया फस भौत की घन्टी फाज यही।।1।। खामे ऩृथ्वी आकाश ब्रह्भण्ड बी – भौत का ऩेट न बयता कबी।। याजा यॊक सुय भुनन सफ खामे वो सफके मसय ऩय गाज यही।।2।। भामा भें तू भौत को बूरा – हवाई ककरे चचनै पू रा पू रा।। न जाने कफ आजा फुरावा वो तो सफको दे आवाज यही।।3।। फचने का कु छ साधन कयरे – भौत से ऩहरे ऩाय उतयरे।। होयाभ अभयखण्ड फासा कयरे भौत वहाॉ ऩय राज यही।।4।।
  • 19. 19 3 – बजन गुरुदेव कयो अफ भुझ ऩै दमा – तेये दय ऩय आश रगामे यही।।टेक0।। कई जन्भ दान तऩ मऻ यचच – कोई कपय बी न उतया ऩाय कबी।। व्रत उऩवास कय भोऺ न ऩाई राखों जन्भ गॊवाम यही।।1।। ऩढ – ऩढ ऩोथी न ऩाय मभरा है – वेद ऩुयान भें जीव पॊ सा है।। भजन्दय जा – जा भैं हाय गई फस ध्मान भें सुतथ सभाम यही।।2।। बृकु हट घाट ऩै आसन कयके – सुयनत दसवें द्वाय चढी।। सुष्भन घाट भें उल्टी चढके सचखॊड ज्मोत जगामे यही।।3।। कार ने कभथ काण्ड यचादी – सचखॊड भागथ फन्द कयादी।। होयाभ कार का देस त्माग भैं अभय रोक को जाम यही।।4।। 4 – बजन चर गगन भहर भें देख जया। वहाॉ जगभग ज्मोत सभावत है।।टे0।। भूर द्वाय से उठा ऩवन को – उल्टी धाया चढा बजन को।। भेरूदॊड की ऩौढी चढ के सुष्भन मशखय ऩद ऩावत है।।1।। नब गॊगा भें सफ भर छु टै – चायों देह जीव की टूटै। शूरी ऊऩय सेज वऩमा की सुयता कोई सेज बफछावत है।।2।। स्वगथ नयक सफ देश छौडकै – सचखण्ड खखडकी खोर दौडके ।। अगखणत सूयज दे ऩरयक्रभा रख – रख सुनतथ हयषावत है।।3।। बफयरा गुरु कोई बेद फतावे – सुनतथ अरख अनाभ चढावै।। होयाभदेव मह दे सन्देषा अऩने ननज देस सभावत है।।4।। 5 – बजन सुन सखी अचयज की कहूॉ – सॊतो का ऩाय नहहॊ ऩावत है।।टे0।। यात्री भें वो सूयज देखे – बौय बई कहैं अॊचधमाया।।
  • 20. 20 बफन फादर के बफजरी देखे – बफन दीऩक ज्मोत जगावत है।।1।। अॊधा होकय जग को देखे – फन्द कान सुनते वाणी।। बफना साज आवाज जगावे जीवत भौत सभावत है।।2।। बफन जजभ्मा के वाणी उऩजै उल्टी धाया अभृत ऩीवै।। बफना ऩॊख आकाश भें उडते कार से बम नहहॊ खावत है।।3।। वो ननत भयते ननत जीते हैं ब्रह्भाण्ड भें आते जाते हैं।। होयाभ तो तीनों रोक छोड चौथे के गीत सुनावत हैं।।4।। 6 – बजन उठ सोSहॊ शब्द ववचाय जया – तेये स्वाॉसों भें सोहॊ फाज यही।।टे0।। भारा छोडके बज भनका भनका छोड बजो अजऩा।। बृकु टी भें तीसया नमन खोर जगभग ज्मोत ववयाज यही।।1।। हॊ से उठकय सो ऩय जाओ हॊ सो उरटके सोहॊ गावो।। इतकीस हजाय छ् सो ननत स्वासा सोहॊ सोहॊ गाज यही।।2।। सोSहॊ धाय भें अभृत फयसे बेद बफना जीव सफ तयसे।। तू ककस नीॊद भें सोमा ऩडा वो तो याग छत्तीसों साज यही।।3।। ऩूये गुरु की शयणी भें चर ऩर – ऩर भें यहा सभम ननकर।। होयाभ कारकी ऩेश नहीॊ जहाॉ सोSहभ् सोSहभ् याज यही।।4।। 7 – बजन हय यात के वऩछरे ऩहय भें अनभोर घडी एक आती है।। ऩयरोक की दुननमा रुटती है आनन्द की रहय जगाती है।।टे0।। जो सोते हैं वो खोते हैं जो जागते हैं वो ऩाते हैं।। सचखॊड से चगयती है गॊगा अनभोर यतन फहा राती है।।1।। जो कार के जीव वो सोते हैं गुरुभुखख तो अभृत न्हाते हैं।। उस अगभधाय भें उरटी चढ सुनतथ सचखॊड को जाती है।।2।। कोई हॊस के भये कोई योके भये जीवन उसका कु छ होके भये।।
  • 21. 21 जीते जी जो उस ऩहय भये हीयों की खान ऩा जाती है।।3।। सॊत होयाभ की वाणी मह जो उस ऩहय भें सोते हैं।। वो रोक ऩयरोक सबी खोते वो दौरत हाथ न आती है।।4।। 8 – बजन अगय है भोऺ की ईच्छा तो सतगुरु की शयण भें चर। मभरेगा भोऺ गुरु ऩद भें त्मागके भन के सफ छर फर।।टे0।। तमा होगा जटा फढाने से मा बस्भी तन यभाने से।। तमा होगा ऩत्थय ऩूजन से मभरेगा कार ही का छर।।1।। अगय है स्वगथ की ईच्छा तो कय कभथकाॊड तू साये।। भोऺ तो सतगुय के ऩद भें गमे हैं राखों नय ननकर।।2।। ऋवष कभथकाॊड भें पॊ सकय मत्न कय कयके हाये हैं।। मभरेगा भोऺऩद कै से सजग जहाॉ कार है हय ऩर।।3।। सॊत होयाभ की वाणी गुरु के शब्द को ध्मावें।। ननकर कय कार के दय से अरख की ज्मोत भें जा यर।।4।। 9 – बजन जया कय खोज ननज तन की जो नश्वय बी कहाता है।। इसी भें स्रोत अभृत का कहीॊ से फह के आता है।।टे0।। मे ऩाॉचों तत्व की यचना हाड औय भाॊस का ऩुतरा।। यतन भखण भाखणक का मसॊधु इसी भें जगभगाता है।।1।। मे नौ दय कामा भें तुभको झरक जो भोह राते हैं।। इसी भे दसभ का द्वाया खजाना सतगुय हदखाता है।।2।। ऩवन का फीच भें खम्बा बफना दीऩक के उजजमाया।। जजसे सतगुय का ईशाया वही मह याज ऩाता है।।3।। अगय है ईच्छा उस घय की चयण छू सतगुय के चरकय।। होयाभ जफ कृ ऩा सतगुय की बव फन्धन छू ट जाता है।।4।।
  • 22. 22 10 – बजन घट घट भें याभ यभता है नहहॊ बफन याभ घट खारी।। वो कण कण भें सभामा है अजफ है ज्मोनत ननयारी है।।टे0।। ऋवष भुनन देव नय ककन्नय आऩ ही फन कय आमा है।। वही नब वामु जर अजग्न वही पर पू र हरयमारी।।1।। दभकते उसकी ज्मोनत से गगन भें राखों यवव ताये। रगता बोग शयभाऊॊ वो कयता जग की प्रनतऩारी।।2।। जर थर नब भें सबी प्राणी सबी भें उसकी ही ज्मोनत।। वो जो चाहे सोई यचदे कार बी आऻा का ऩारी।।3।। दास होयाभ उस घय को ऋवष भुनन खोज कय हाये।। मभरा जफ घट भें ही ऩामा मभरन की याह ननयारी।।4।। 11 – बजन हदखादे ज्मोत वो अऩनी जजसे घट भें नछऩामा है। बफना सतगुरु न कोई बी तुम्हाया ऩाय ऩामा है।।टे0।। कोई कहे काफे भें फसता कोई कै राश भें कहता। कोई कहै शेष शैय्मा ऩय कोई फैकुॊ ठ भें यहता।। कोई कहै ब्रह्भा ही ईश्वय जगत उसने यचामा है।।1।। कोई जड ऩत्थय भें ढूॊढे कोई ननगुथण ननयॊजन भें। कोई व्रत मऻ तीथथ भें कोई बस्भी बव बॊजन भें।। कोई कहै मशव ही ईश्वय सबी मशवजी की भामा है।।2।। कभथ मऻ दान तऩ जजतने स्वगथ फैकु न्ठ तक जावें।। बोगकय ऩुन्म पर अऩना ऩुनन भृतरोक भें आवें।। कबी ऊऩय कबी नीचे भामा ने जग नचामा है।।3।। तुझे भहा कार बी बजते भौत बी काॉऩ जाती है।। अनन्त भहा ज्मोनत ऩुॊज तू है भन वाणी हाय ऩाती है।। होयाभ वह ऩयदा भेये सतगुरु ने हटामा है।।4।।
  • 23. 23 12 – बजन दो0- एक याभ दशयथ नन्दना एक घट आत्भ याभ। एक ऊॉ काय जग को यचत इक न्माया अरख अनाभ।। भेया एक सहाया है सतनाभ नभो नभो जम यभते याभ। अनन्त ज्मोनत ऩुॊज प्रबु को कौहट कौहट भेये प्रणाभ।।टे0।। जजसकी ऩावन शजतत ऩाकय जर थर अम्फय काॉऩ यहे। अगखणत बानु ब्रह्भाण्डों भें दे ऩरयक्रभा भाऩ यहे। जजसके फर से अजग्न प्रज्वर ऩवन दौडता आठो माभ।।1।। जो कण कण भें फसा हुआ है जो घट घट का अन्तमाथभी। सकर ववश्व जजसके अॊग अॊग भें सकर चयाचय का स्वाभी।। जजसके बम से भृत्मु काॉऩे कार बी बजता जजसका नाभ।।2।। जजसके बम से ब्रह्भा मशव ववष्णु फॊधे सूत्र भें तऩते हैं। सकर ववश्व का ववधान यचाते औय नाभ उसी का जऩते हैं।। कार तो तमा भहाकार बी बजता खडे काॊऩते चायों धाभ।।3।। अरख ननयॊजन बव बम बॊजन जो सफ जग का यखवारा। देवी देव ब्रह्भाण्ड बूतगण सफ जजसके गर की भारा।। उस ननयाकाय भहा ज्मोनत ऩुरुष का साॊचा नाभ सुमभय होयाभ।।4।। 13 – बजन ऩयभप्रबु का धयके ध्मान सभझाऊ अभय कहानी। कार देश से जजससे छू टके अभय होम जा प्रानी।।टे0।। प्राण अऩान का कामा भाॊही बृकु टी ताय मभरावै। येचक ऩूयक कु म्बक कयके कु न्डरी जाम उठावै।। बृकु टी घाट मशवनेत्र खोर रख ऩावे ज्मोत ननशानी।।1।। सुष्भना भें प्राण चढाके ऩकडो खझरमभर ताया। शाभ सडक अगभ ऩॊथ भें ज्मोनतज्मोत अऩाया।। सुन्न मशखय चढै जफ सुनतथ कय न सके कोई हानी।।2।। बफन ऩॊख ऩऺी उडो गगन भें कार योक नहहॊ ऩावे।
  • 24. 24 भहाकार बी योक सकै ना जफ सुनतथ सचखॊड जावे।। अखॊड सभाचध रगा अरख की कामा सुचध बफसयानी।।3।। होयाभदेव सतगुय की शयणी सुनतथ शब्द कभावै। चाय आवयण तज भामा के ननश्चम भुजतत ऩावै।। आऩा अजऩा सजऩा मभटजा ज्मोत भें ज्मोत सभानी।।4।। 14 – बजन सुन सीभा मह अभय कथा तुझे बजन बेद सभझाऊॉ भैं। कार देश की ऩये सृजष्ट से अभय रोक दयसाऊॉ भैं।।टे0।। नहीॊ तहॊ सूयज ताये दभकै बफना दीऩ का उजजमाया। नहहॊ हदन यैन अनुऩभ ज्मोनत तीन रोक से न्माया।। ब्रह्भाववष्णु मशव नायद हाये रगा ध्मान इक ऊॉ काया। बत्ररोके श्वय ऊॉ काय से, आगे सजच्चदानन्द सचखण्ड धाया।। तऩ मऻ व्रत वाह्म साधन अन्तरय तीथथ कयाऊॉ भैं।।1।। भुॊड भुॊडा मा धुनन यभा सफ कार से फाजी हाय गमे। शीत उष्ण जर ऺुधा सह, तन जीणथ कयके डाय गमे। ऩौथी ऩुयान बेद नहहॊ मभरता नेनत नेनत ऩुकाय गमे। ऩूणथ गुरु बफन बेद मभराना राखो जन्भ मसधाय गमे। जजसे मभरे तत्वदशी सतगुरु उसको शीश झुकाऊॉ भैं।।2।। स्वगथ ऩातार वऩॊड ब्रह्भाण्ड भें साया कार ऩसाया है। ब्रह्भाववष्णु मशव यचे कार ने सौंऩ हदमा जगबाया है।। ऩाऩ ऩुन्म कभथकाॊड यचाकय चौयासी चतकय डाया है। सतऩुरुष के अभयरोक का फन्द ककमा गुप्त द्वाया है। कार भहाकार की ठाभ ऩये तुझे ज्मोनतऩुॊज सभाऊ भैं।।3।। सुयनत बेद बजन गभन यस अन्तरय ज्मोनत जान हहमे। अगभ सडक बृकु टी भध्म भें नतसय नेत्र वऩछान मरमे।। सुतथ ननयत के फाॊध घुॊघरू सुष्भन गभन प्रस्थान ककमे। अन्तय जेमोनत ननयन्तय वाणी सुयनत शब्द ऩहचान मरमे।। होयाभदेव सुऩात्र सॊत से ना कु छ साय नछऩाऊॉ भैं।।4।।
  • 25. 25 यचनाकाय की ओय से सभऩपण वप्रम ऩाठकगण – मो तो गीता उऩननषद वेद शास्त्रों भें ऩमाथप्त ऻान बया है ऩयन्तु भोऺ ऩद का ववऻान गोऩनीम होते होते प्राम रुप्त हो गमा है। साया ववश्व जजतने बी भोऺ के साधन अऩनाता है वे सफ कार का ही छर है। मत्न कयता हुआ बी जीव फाय फाय वास्तववक ववऻान से अरग हुवा कार देश भें ही यह जाता है। फडे – फडे ऻानी सॊत बी रूहानी ववऻान के अबाव भें रकीय के पकीय फने हुवे हैं। जो इसको जान रेता है वह बी सॊत भत की आऻानुसाय इसे प्रकट नहीॊ कयता गुप्त गुप्त कयने से इसका रोऩ होता जा यहा है। आज अनेकों ऩॊथ भत है जो भुजतत का साधन वाह्म जगत भें ढूॊढते हैं। आज प्रस्तुत भहाकाव्म को भुझ जन सेवक ने वतत की जरूयत को ऩूया कयने के मरमे मरखा है। भैंने अऩने श्री सतगुरुदेव स्वाभी श्री याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस भहायाज की शयण भें यहकय इस ववऻान को प्रमोगात्भक रूऩ से स्वमॊ आॉखों देखकय मरखा है। मरखकय मह काव्म अऩने श्री गुरुदेव को सभवऩथत ककमा है। भुझे ऩूणथ आशा है कक मह भहाकाव्म यचना सचखण्ड का सॊदेश है जो भोऺगाभी आत्भाओॊ के मरमे एक वयदान है। इसका सहाया रेकय बववष्म भें सतगुरु जन अऩने मशष्मों को सचखण्ड प्रस्थान कयने का आधाय प्राप्त कयके भुजतत धाभ तक ऩहुॉचेगें। इस काव्म का प्रसायण जो बी ऩुण्मवान कयेगा वह ऩयभेश्वय सचखण्ड वासी सतगुरु का वप्रम होगा। मोगीश्वयों द्वाया मह काव्म यचना गुरुस्वरूऩ भें स्वीकाय की गई है। आशा है कक आने वारे सभम की मह काव्म यचना जरूयत है। इससे जीवों का कल्माण होगा इसका ननत्म ऩाठ हहन्दुत्व (जहाॉ द्वैत नहीॊ है) का आधाय है। त्रुहट के मरमे भैं ऺभा प्राथी हूॉ। कु छ भानसी ववद्वान भेयी काव्म यचनाओॊ से कतयन चुयाकय अऩने को ववद्वान फनामेंगे जफकक उसे प्रमोगात्भक ऻान का ववऻान नहीॊ होगा। आत्भऻान से आत्भ साऺात्काय तक की मात्रा का ऩूणथ ऻान ववऻान भेयी काव्म यचनाऐॊ श्रीभद् अभयकथा भहाकाव्म, श्रीभद् ब्रह्भफोध भहाकाव्म, श्रीभद् देवकृ त याभामण भहाकाव्म, श्रीभद् श्रीकृ ष्ण चरयत्र भानस तथा श्रीभद ब्रह्भाण्ड गीता का अवश्म अध्ममन कीजजमे। हार ऩता्- सॊस्थाऩक एवॊ सतगुरु ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ (देवकुॊ ज) सॊजम ववहाय, गढ योड, भेयठ
  • 26. 26 ववषम सूधच सॊत श्री होयाभदेव जी की सॊक्षऺप्त जीवन झाॊकी - iv अभृतवाणी से ऩद यचनाॊश (बजन) - xviii यचनाकाय की ओय से सभऩथण - xxv बाग – 1 1. स्तुनत - 1 2. जीवात्भा तत्व - 2 3. भन कक्रमा मोग - 7 4. भृत्मु कारगनत - 9 5. अष्टाॊग मोग - 14 6. प्राणावयोध - 22 7. वऩन्ड देश दशथन - 23 8. ब्रह्भाण्ड देश दशथन - 25 9. दमार देश दशथन - 27 10. ननवाथण (हहन्दुत्व ऩद) - 29 11. हदव्म सन्देश - 32 बाग – 2 12. जीव – प्रकृ नत – ब्रह्भ ववऻान - 36 13. रोकऩनत व्मवस्था एवॊ ववश्व यचना - 39 14. मुगान्तय सुतथडौरय - 47 15. कभथ उत्तऩजत्त ववऻान - 51 16. कभथ प्रकृ नत वववेक - 54 17. सॊत सुतथ अवतयण - 61 18. सुनतथ मात्रा सहामक सन्त सतगुरु - 66 बाग – 3 19. अनहद धाया - 72 20. भन - 75 21. ननजज सुतथ मात्रा - 79 22. सतऩुरुष सन्देश - 99 23. तप्तशीरा ननवायण ववऻान - 120 24. सायतत्व सत्मोऩदेश - 124