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नाम : आदित्य ए दिल्लै
कक्षा : नौवीं 'ब’
रोल : 51
के न्द्रीय दवद्यालय कोयम्बटूर
संज्ञा
संज्ञा के भेद-
 व्यक्तिवाचक: राम, भारत, सूयय आक्तद।
 जाक्ततवाचक: बकरी, पहाड़, कं प्यूटर आक्तद।
 भाववाचक : ममता, बुढापा आक्तद।
संस्कृ त एवं संस्कृ त से उत्िन्द्न भाषाओंमें उस अव्यय या शब्ि को उिसर्ग कहते हैं जो कु छ शब्िों के आरंभ में
लर्कर उनके अर्थों का दवस्तार करता अर्थवा उनमें कोई दवशेषता उत्िन्द्न करता है। उिसर्ग = उिसृज् (त्यार्)
+ घञ्। जैसे - अ, अनु, अि, दव, आदि उिसर्ग है।
उपसर्य
उपसर्य और उनके अर्यबोध
 अदत-(आदिक्य) अदतशय, अदतरेक;
 अदि-(मुख्य) अदििदत, अध्यक्ष
 अदि-(वर) अध्ययन, अध्यािन
 अनु-(मार्ुन) अनुक्रम, अनुताि, अनुज;
 अनु-(प्रमाणें) अनुकरण, अनुमोिन.
 अि-(खालीं येणें) अिकषग, अिमान;
 अि-(दवरुद्ध होणें) अिकार, अिजय.
 अदि-(आवरण) अदििान = अच्छािन
 अदभ-(अदिक) अदभनंिन, अदभलाि
 अदभ-(जवळ) अदभमुख, अदभनय
 अदभ-(िुढें) अभ्युत्र्थान, अभ्युिय.
 अव-(खालीं) अवर्णना, अवतरण;
 अव-(अभाव, दवरूद्धता) अवकृ िा, अवर्ुण.
 आ-(िासून, ियंत) आकं ठ, आजन्द्म;
 दन-(अत्यंत) दनमग्न, दनबंि
 दन-(नकार) दनकामी, दनजोर.
 दनर्-(अभाव) दनरंजन, दनराषा
उदूय उपसर्य
 अल - दनदचित, अदन्द्तम – अलदविा
 कम - हीन, र्थोडा, अल्ि - कमदसन, कमअक्ल,
 खुश - श्रेष्ठता के अर्थग में - खुशबू, खुशनसीब, खुशदमजाज
 गैर - दनषेि - गैरहाद़िर गैरकानूनी
 िर - मध्य में - िरम्यान िरअसल
 ना - अभाव - नामुमदकन नामुराि नाकाम
 फ़ी - प्रदत - फ़ीसिी फ़ीआिमी
 ब - से, के , में, अनुसार - बनाम बिस्तूर
 बि - बुरा - बिनाम बिमाश बिदकस्मत
 बर - िर, ऊिर, बाहर - बरकरार बरवक्त
 बा - सदहत - बाकायिा बाकलम बाइज्जत
 दबला - दबना - दबलाव़िह दबलादलहा़ि
 बे - दबना - बेबुदनयाि बेईमान
 ला - दबना, नहीं - लािता लाजबाब
 सर - मुख्य - सरहि सरताज सरकार
प्रत्यय उन शब्िों को कहते हैं जो दकसी अन्द्य शब्ि के अन्द्त में लर्ाये जाते हैं। इनके लर्ाने से
शब्ि के अर्थग में दभन्द्नता या वैदशष्ट्य आ जाता है।
प्रत्यय
 धन + वान = धनवान
 क्तवद्या + वान = क्तवद्वान
 उदार + ता = उदारता
 पक्तडित + ई = पक्तडिताई
 चालाक + ई = चालाकी
 सफल + ता = सफलता
क्तवशेषण
वाक्य में संज्ञा अर्थवा सवगनाम क़ी दवशेषता बताने वाले शब्िों को क्तवशेषण कहते हैं। जैसे - काला
कु त्ता। इस वाक्य में 'काला' दवशेषण है।
क्तवशेषण के प्रकार
दवशेषण के िार प्रकार हैं:-
 र्ुणवािक दवशेषण
 संख्यावािक दवशेषण
 िररमाण-बोिक दवशेषण, और
 सावगनादमक दवशेषण।
समास
दो या दो से अक्तधक शब्दों से क्तमलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्यक शब्द को समास कहते हैं।
जैसे - ‘रसोई के क्तलए घर’ इसे हम ‘रसोईघर’ भी कह सकते हैं।
समास के भेद
समास के छः भेद होते हैं:
 अव्ययीभाव
 तत्पुरुष
 क्तद्वर्ु
 द्वन्द्द्व
 बहुव्रीक्तह
 कमयधारय
 अव्ययीभाव समास :
दजस समास का िहला िि प्रिान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे -
यर्थामदत (मदत के अनुसार), आमरण (मृत्यु कर) न् इनमें यर्था और आ अव्यय हैं।
अव्ययीभाव समास क़ी िहिान - इसमें समस्त िि अव्यय बन जाता है अर्थागत समास लर्ाने के बाि
उसका रूि कभी नहीं बिलता है। इसके सार्थ दवभदक्त दिह्न भी नहीं लर्ता। जैसे - ऊिर के समस्त
शब्ि है।
उिाहरण : आजीवन - जीवन-भर , यर्थासामर्थयग - सामर्थयग के अनुसार, यर्थाशदक्त - शदक्त के अनुसार
यर्थादवदि- दवदि के अनुसार
 तत्पुरुष समास
तत्िुरुष समास - दजस समास का उत्तरिि प्रिान हो और िूवगिि र्ौण हो उसे तत्िुरुष समास कहते हैं।
जैसे - तुलसीिासकृ त = तुलसी द्वारा कृ त (रदित)
तत्िुरुष समास के छह भेि हैं-
 कमग तत्िुरुष , उिाहरण - दर्रहकट - दर्रह को काटने वाला
 करण तत्िुरुष , उिाहरण - मनिाहा - मन से िाहा
 संप्रिान तत्िुरुष , उिाहरण - रसोईघर - रसोई के दलए घर
 अिािान तत्िुरुष , उिाहरण - िेशदनकाला - िेश से दनकाला
 संबंि तत्िुरुष , उिाहरण - र्ंर्ाजल - र्ंर्ा का जल
 अदिकरण तत्िुरुष , उिाहरण - नर्रवास - नर्र में वास
 नञ तत्िुरुष समास , उिाहरण -असभ्य- न सभ्य
 कमयधारय समास
दजस समास का उत्तरिि प्रिान हो और िूवगिि व उत्तरिि में दवशेषण-दवशेष्य अर्थवा उिमान-उिमेय
का संबंि हो वह कमगिारय समास कहलाता है।
उिाहरण - िंरमुख - िंर जैसा मुख
िेहलता - िेह रूिी लता
नीलकमल - नीला कमल
सज्जन -सत् जन
िहीबडा - िही में डूबा बडा
 क्तद्वर्ु समास
दजस समास का िूवगिि संख्यावािक दवशेषण हो उसे दद्वर्ु समास कहते हैं। इससे समूह अर्थवा
समाहार का बोि होता है
उिाहरण : नवग्रह - नौ ग्रहों का मसूह
दिलोक - तीनों लोकों का समाहार
नवराि - नौ रादियों का समूह
अठन्द्नी - आठ आनों का समूह
 द्वन्द्द्व समास
दजस समास के िोनों िि प्रिान होते हैं तर्था दवग्रह करने िर ‘और’, अर्थवा, ‘या’, एवं लर्ता है, वह द्वंद्व
समास कहलाता है।
उिाहरण : िाि-िुण्य -िाि और िुण्य
सीता-राम -सीता और राम
खरा-खोटा -खरा और खोटा
रािा-कृ ष्ण -रािा और कृ ष्ण
 बहुव्रीक्तह समास
दजस समास के िोनों िि अप्रिान हों और समस्तिि के अर्थग के अदतररक्त कोई सांके दतक अर्थग प्रिान
हो उसे बहुव्रीदह समास कहते हैं।
उिाहरण : िशानन - िश है आनन (मुख)
नीलकं ठ - नीला है कं ठ (दशव)
िीतांबर - िीले है अम्बर
अलंकार
काव्य क़ी शोभा बढाने वाले शब्िों को अलंकार कहते है। दजस प्रकार नारी के सौन्द्ियग को बढाने के
दलए आभूषण होते है,उसी प्रकार भाषा के सौन्द्ियग के उिकरणों को अलंकार कहते है। इसीदलए कहा
र्या है - 'भूषण दबना न सोहई -कदवता ,बदनता दमत्त।'
अलंकार के भेद - इसके तीन भेद होते है -
शब्िालंकार
अर्थागलंकार
दजस अलंकार में शब्िों के प्रयोर् के कारण कोई िमत्कार उिदस्र्थत हो जाता है और उन शब्िों के स्र्थान िर
समानार्थी िूसरे शब्िों के रख िेने से वह िमत्कार समाप्त हो जाता है,वह िर शब्िालंकार माना जाता है।
शब्िालंकार के प्रमुख भेि है –
 अनुप्रास
 यमक
 शलेष
शब्दालंकार:
अनुप्रास
जहााँ स्वर क़ी समानता के दबना भी वणों क़ी बार -बार आवृदत्त होती है ,वहााँ अनुप्रास अलंकार होता है ।
जन रंजन मंजन िनुज मनुज रूि सुर भूि ।
दवश्व बिर इव िृत उिर जोवत सोवत सूि । ।
 यमक
जहााँ एक ही शब्ि अदिक बार प्रयुक्त हो ,लेदकन अर्थग हर बार दभन्द्न हो ,वहााँ यमक अलंकार होता है।
उिाहरण - कनक कनक ते सौर्ुनी ,मािकता अदिकाय ।
वा खाये बौराय नर ,वा िाये बौराय। ।
 श्लेष अलंकार
जहााँ िर ऐसे शब्िों का प्रयोर् हो ,दजनसे एक से अदिक अर्थग दनलकते हो ,वहााँ िर श्लेष अलंकार होता है ।
उिाहरण - दिरजीवो जोरी जुरे क्यों न सनेह र्ंभीर ।
को घदट ये वृष भानुजा ,वे हलिर के बीर। ।
अर्ायलंकार :-
जहााँ अर्थग के माध्यम से काव्य में िमत्कार उत्िन्द्न होता है ,वहााँ अर्थागलंकार होता है । इसके प्रमुख भेि
है - -
 उपमा
 रूपक
 उत्प्रेक्षा
 अक्ततशयोक्ति
उिमा अलंकार
जहााँ िो वस्तुओंमें अन्द्तर रहते हुए भी आकृ दत एवं र्ुण क़ी समता दिखाई जाय ,वहााँ उिमा
अलंकार होता है ।
उिाहरण - सार्र -सा र्ंभीर ह्रिय हो ,
दर्री -सा ऊाँ िा हो दजसका मन।
रूपक अलंकार
जहााँ उिमेय िर उिमान का आरोि दकया जाय ,वहााँ रूिक अलंकार होता है , यानी उिमेय और
उिमान में कोई अन्द्तर न दिखाई िडे ।
उिाहरण - बीती दवभावरी जार् री।
अम्बर -िनघट में डु बों रही ,तारा -घट उषा नार्री ।'
उत्प्रेक्षा अलंकार
जहााँ उिमेय को ही उिमान मान दलया जाता है यानी अप्रस्तुत को प्रस्तुत मानकर वणगन दकया
जाता है। वहा उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहााँ दभन्द्नता में अदभन्द्नता दिखाई जाती है।
उिाहरण - सदख सोहत र्ोिाल के ,उर र्ुंजन क़ी माल
बाहर सोहत मनु दिये,िावानल क़ी ज्वाल । ।
अदतशयोदक्त अलंकार
जहााँ िर लोक -सीमा का अदतक्रमण करके दकसी दवषय का वणगन होता है । वहााँ िर अदतशयोदक्त
अलंकार होता है।
उिाहरण -
हनुमान क़ी िूंछ में लर्न न िायी आदर् ।
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हिंदी व्याकरण

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हिंदी व्याकरण

  • 1. नाम : आदित्य ए दिल्लै कक्षा : नौवीं 'ब’ रोल : 51 के न्द्रीय दवद्यालय कोयम्बटूर
  • 2. संज्ञा संज्ञा के भेद-  व्यक्तिवाचक: राम, भारत, सूयय आक्तद।  जाक्ततवाचक: बकरी, पहाड़, कं प्यूटर आक्तद।  भाववाचक : ममता, बुढापा आक्तद।
  • 3. संस्कृ त एवं संस्कृ त से उत्िन्द्न भाषाओंमें उस अव्यय या शब्ि को उिसर्ग कहते हैं जो कु छ शब्िों के आरंभ में लर्कर उनके अर्थों का दवस्तार करता अर्थवा उनमें कोई दवशेषता उत्िन्द्न करता है। उिसर्ग = उिसृज् (त्यार्) + घञ्। जैसे - अ, अनु, अि, दव, आदि उिसर्ग है। उपसर्य उपसर्य और उनके अर्यबोध  अदत-(आदिक्य) अदतशय, अदतरेक;  अदि-(मुख्य) अदििदत, अध्यक्ष  अदि-(वर) अध्ययन, अध्यािन  अनु-(मार्ुन) अनुक्रम, अनुताि, अनुज;  अनु-(प्रमाणें) अनुकरण, अनुमोिन.  अि-(खालीं येणें) अिकषग, अिमान;  अि-(दवरुद्ध होणें) अिकार, अिजय.  अदि-(आवरण) अदििान = अच्छािन  अदभ-(अदिक) अदभनंिन, अदभलाि  अदभ-(जवळ) अदभमुख, अदभनय  अदभ-(िुढें) अभ्युत्र्थान, अभ्युिय.  अव-(खालीं) अवर्णना, अवतरण;  अव-(अभाव, दवरूद्धता) अवकृ िा, अवर्ुण.  आ-(िासून, ियंत) आकं ठ, आजन्द्म;  दन-(अत्यंत) दनमग्न, दनबंि  दन-(नकार) दनकामी, दनजोर.  दनर्-(अभाव) दनरंजन, दनराषा उदूय उपसर्य  अल - दनदचित, अदन्द्तम – अलदविा  कम - हीन, र्थोडा, अल्ि - कमदसन, कमअक्ल,  खुश - श्रेष्ठता के अर्थग में - खुशबू, खुशनसीब, खुशदमजाज  गैर - दनषेि - गैरहाद़िर गैरकानूनी  िर - मध्य में - िरम्यान िरअसल  ना - अभाव - नामुमदकन नामुराि नाकाम  फ़ी - प्रदत - फ़ीसिी फ़ीआिमी  ब - से, के , में, अनुसार - बनाम बिस्तूर  बि - बुरा - बिनाम बिमाश बिदकस्मत  बर - िर, ऊिर, बाहर - बरकरार बरवक्त  बा - सदहत - बाकायिा बाकलम बाइज्जत  दबला - दबना - दबलाव़िह दबलादलहा़ि  बे - दबना - बेबुदनयाि बेईमान  ला - दबना, नहीं - लािता लाजबाब  सर - मुख्य - सरहि सरताज सरकार
  • 4. प्रत्यय उन शब्िों को कहते हैं जो दकसी अन्द्य शब्ि के अन्द्त में लर्ाये जाते हैं। इनके लर्ाने से शब्ि के अर्थग में दभन्द्नता या वैदशष्ट्य आ जाता है। प्रत्यय  धन + वान = धनवान  क्तवद्या + वान = क्तवद्वान  उदार + ता = उदारता  पक्तडित + ई = पक्तडिताई  चालाक + ई = चालाकी  सफल + ता = सफलता क्तवशेषण वाक्य में संज्ञा अर्थवा सवगनाम क़ी दवशेषता बताने वाले शब्िों को क्तवशेषण कहते हैं। जैसे - काला कु त्ता। इस वाक्य में 'काला' दवशेषण है। क्तवशेषण के प्रकार दवशेषण के िार प्रकार हैं:-  र्ुणवािक दवशेषण  संख्यावािक दवशेषण  िररमाण-बोिक दवशेषण, और  सावगनादमक दवशेषण।
  • 5. समास दो या दो से अक्तधक शब्दों से क्तमलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्यक शब्द को समास कहते हैं। जैसे - ‘रसोई के क्तलए घर’ इसे हम ‘रसोईघर’ भी कह सकते हैं। समास के भेद समास के छः भेद होते हैं:  अव्ययीभाव  तत्पुरुष  क्तद्वर्ु  द्वन्द्द्व  बहुव्रीक्तह  कमयधारय  अव्ययीभाव समास : दजस समास का िहला िि प्रिान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे - यर्थामदत (मदत के अनुसार), आमरण (मृत्यु कर) न् इनमें यर्था और आ अव्यय हैं। अव्ययीभाव समास क़ी िहिान - इसमें समस्त िि अव्यय बन जाता है अर्थागत समास लर्ाने के बाि उसका रूि कभी नहीं बिलता है। इसके सार्थ दवभदक्त दिह्न भी नहीं लर्ता। जैसे - ऊिर के समस्त शब्ि है। उिाहरण : आजीवन - जीवन-भर , यर्थासामर्थयग - सामर्थयग के अनुसार, यर्थाशदक्त - शदक्त के अनुसार यर्थादवदि- दवदि के अनुसार
  • 6.  तत्पुरुष समास तत्िुरुष समास - दजस समास का उत्तरिि प्रिान हो और िूवगिि र्ौण हो उसे तत्िुरुष समास कहते हैं। जैसे - तुलसीिासकृ त = तुलसी द्वारा कृ त (रदित) तत्िुरुष समास के छह भेि हैं-  कमग तत्िुरुष , उिाहरण - दर्रहकट - दर्रह को काटने वाला  करण तत्िुरुष , उिाहरण - मनिाहा - मन से िाहा  संप्रिान तत्िुरुष , उिाहरण - रसोईघर - रसोई के दलए घर  अिािान तत्िुरुष , उिाहरण - िेशदनकाला - िेश से दनकाला  संबंि तत्िुरुष , उिाहरण - र्ंर्ाजल - र्ंर्ा का जल  अदिकरण तत्िुरुष , उिाहरण - नर्रवास - नर्र में वास  नञ तत्िुरुष समास , उिाहरण -असभ्य- न सभ्य  कमयधारय समास दजस समास का उत्तरिि प्रिान हो और िूवगिि व उत्तरिि में दवशेषण-दवशेष्य अर्थवा उिमान-उिमेय का संबंि हो वह कमगिारय समास कहलाता है। उिाहरण - िंरमुख - िंर जैसा मुख िेहलता - िेह रूिी लता नीलकमल - नीला कमल सज्जन -सत् जन िहीबडा - िही में डूबा बडा
  • 7.  क्तद्वर्ु समास दजस समास का िूवगिि संख्यावािक दवशेषण हो उसे दद्वर्ु समास कहते हैं। इससे समूह अर्थवा समाहार का बोि होता है उिाहरण : नवग्रह - नौ ग्रहों का मसूह दिलोक - तीनों लोकों का समाहार नवराि - नौ रादियों का समूह अठन्द्नी - आठ आनों का समूह  द्वन्द्द्व समास दजस समास के िोनों िि प्रिान होते हैं तर्था दवग्रह करने िर ‘और’, अर्थवा, ‘या’, एवं लर्ता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है। उिाहरण : िाि-िुण्य -िाि और िुण्य सीता-राम -सीता और राम खरा-खोटा -खरा और खोटा रािा-कृ ष्ण -रािा और कृ ष्ण  बहुव्रीक्तह समास दजस समास के िोनों िि अप्रिान हों और समस्तिि के अर्थग के अदतररक्त कोई सांके दतक अर्थग प्रिान हो उसे बहुव्रीदह समास कहते हैं। उिाहरण : िशानन - िश है आनन (मुख) नीलकं ठ - नीला है कं ठ (दशव) िीतांबर - िीले है अम्बर
  • 8. अलंकार काव्य क़ी शोभा बढाने वाले शब्िों को अलंकार कहते है। दजस प्रकार नारी के सौन्द्ियग को बढाने के दलए आभूषण होते है,उसी प्रकार भाषा के सौन्द्ियग के उिकरणों को अलंकार कहते है। इसीदलए कहा र्या है - 'भूषण दबना न सोहई -कदवता ,बदनता दमत्त।' अलंकार के भेद - इसके तीन भेद होते है - शब्िालंकार अर्थागलंकार दजस अलंकार में शब्िों के प्रयोर् के कारण कोई िमत्कार उिदस्र्थत हो जाता है और उन शब्िों के स्र्थान िर समानार्थी िूसरे शब्िों के रख िेने से वह िमत्कार समाप्त हो जाता है,वह िर शब्िालंकार माना जाता है। शब्िालंकार के प्रमुख भेि है –  अनुप्रास  यमक  शलेष शब्दालंकार: अनुप्रास जहााँ स्वर क़ी समानता के दबना भी वणों क़ी बार -बार आवृदत्त होती है ,वहााँ अनुप्रास अलंकार होता है । जन रंजन मंजन िनुज मनुज रूि सुर भूि । दवश्व बिर इव िृत उिर जोवत सोवत सूि । ।
  • 9.  यमक जहााँ एक ही शब्ि अदिक बार प्रयुक्त हो ,लेदकन अर्थग हर बार दभन्द्न हो ,वहााँ यमक अलंकार होता है। उिाहरण - कनक कनक ते सौर्ुनी ,मािकता अदिकाय । वा खाये बौराय नर ,वा िाये बौराय। ।  श्लेष अलंकार जहााँ िर ऐसे शब्िों का प्रयोर् हो ,दजनसे एक से अदिक अर्थग दनलकते हो ,वहााँ िर श्लेष अलंकार होता है । उिाहरण - दिरजीवो जोरी जुरे क्यों न सनेह र्ंभीर । को घदट ये वृष भानुजा ,वे हलिर के बीर। । अर्ायलंकार :- जहााँ अर्थग के माध्यम से काव्य में िमत्कार उत्िन्द्न होता है ,वहााँ अर्थागलंकार होता है । इसके प्रमुख भेि है - -  उपमा  रूपक  उत्प्रेक्षा  अक्ततशयोक्ति
  • 10. उिमा अलंकार जहााँ िो वस्तुओंमें अन्द्तर रहते हुए भी आकृ दत एवं र्ुण क़ी समता दिखाई जाय ,वहााँ उिमा अलंकार होता है । उिाहरण - सार्र -सा र्ंभीर ह्रिय हो , दर्री -सा ऊाँ िा हो दजसका मन। रूपक अलंकार जहााँ उिमेय िर उिमान का आरोि दकया जाय ,वहााँ रूिक अलंकार होता है , यानी उिमेय और उिमान में कोई अन्द्तर न दिखाई िडे । उिाहरण - बीती दवभावरी जार् री। अम्बर -िनघट में डु बों रही ,तारा -घट उषा नार्री ।' उत्प्रेक्षा अलंकार जहााँ उिमेय को ही उिमान मान दलया जाता है यानी अप्रस्तुत को प्रस्तुत मानकर वणगन दकया जाता है। वहा उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहााँ दभन्द्नता में अदभन्द्नता दिखाई जाती है। उिाहरण - सदख सोहत र्ोिाल के ,उर र्ुंजन क़ी माल बाहर सोहत मनु दिये,िावानल क़ी ज्वाल । ।
  • 11. अदतशयोदक्त अलंकार जहााँ िर लोक -सीमा का अदतक्रमण करके दकसी दवषय का वणगन होता है । वहााँ िर अदतशयोदक्त अलंकार होता है। उिाहरण - हनुमान क़ी िूंछ में लर्न न िायी आदर् । सर्री लंका जल र्ई ,र्ये दनसािर भादर्। ।