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अनुबम
ूातः ःमरणीय पूÏयपादूातः ःमरणीय पूÏयपादूातः ःमरणीय पूÏयपादूातः ःमरणीय पूÏयपाद
संत ौी आसारामजीसंत ौी आसारामजीसंत ौी आसारामजीसंत ौी आसारामजी
बापू केबापू केबापू केबापू के
स×संगस×संगस×संगस×संग----ूवचनूवचनूवचनूवचन
अनÛय योगअनÛय योगअनÛय योगअनÛय योग
पूÏय बापू का पावन सÛदेशपूÏय बापू का पावन सÛदेशपूÏय बापू का पावन सÛदेशपूÏय बापू का पावन सÛदेश
हम धनवान हɉगे या नहȣं, यशःवी हɉगे या नहȣं, चुनाव जीतɅगे या नहȣं इसमɅ शंका हो
सकती है परंतु भैया ! हम मरɅगे या नहȣं, इसमɅ कोई शंका है ? ǒवमान उड़ने का समय िनǔƱत
होता है, बस चलने का समय िनǔƱत होता है, गाड़ȣ छू टने का समय िनǔƱत होता है परंतु इस
जीवन कȧ गाड़ȣ छू टने का कोई िनǔƱत समय है?
आज तक आपने जगत का जो कु छ जाना है, जो कु छ ूाƯ Ǒकया है.... आज के बाद जो
जानोगे और ूाƯ करोगे, Üयारे भैया ! वह सब मृ×यु के एक हȣ झटके मɅ छू ट जायेगा, जाना
अनजाना हो जायेगा, ूािƯ अूािƯ मɅ बदल जायेगी।
अतः सावधान हो जाओ। अÛतमु[ख होकर अपने अǒवचल आ×मा को, िनजःवǾप के
अगाध आनÛद को, शाƳत शांित को ूाƯ कर लो। Ǒफर तो आप हȣ अǒवनाशी आ×मा हो।
जागो.... उठो.... अपने भीतर सोये हुए िनƱयबल को जगाओ। सव[देश, सव[काल मɅ
सवȾƣम आ×मबल को अǔज[त करो। आ×मा मɅ अथाह सामØय[ है। अपने को दȣन-हȣन मान बैठे
तो ǒवƳ मɅ ऐसी कोई सƣा नहȣं जो तुàहɅ ऊपर उठा सके । अपने आ×मःवǾप मɅ ूितǒƵत हो
गये तो ǒऽलोकȧ मɅ ऐसी कोई हःती नहȣं जो तुàहɅ दबा सके ।
सदा ःमरण रहे Ǒक इधर-उधर भटकती वृǒƣयɉ के साथ तुàहारȣ शǒƠ भी ǒबखरती रहती
है। अतः वृǒƣयɉ को बहकाओ नहȣं। तमाम वृǒƣयɉ को एकǒऽत करके साधना-काल मɅ
आ×मिचÛतन मɅ लगाओ और åयवहार-काल मɅ जो काय[ करते हो उसमɅ लगाओ। दƣिचƣ होकर
हर कोई काय[ करो। सदा शाÛत वृǒƣ धारण करने का अßयास करो। ǒवचारवÛत एवं ूसÛन रहो।
जीवमाऽ को अपना ःवǾप समझो। सबसे ःनेह रखो। Ǒदल को åयापक रखो। आ×मिनƵा मɅ जगे
हुए महापुǽषɉ के स×संग एवं स×साǑह×य से जीवन को भǒƠ एवं वेदाÛत से पुƴ एवं पुलǑकत
करो।
अनुबम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
िनवेदनिनवेदनिनवेदनिनवेदन
हजारɉ-हजारɉ भƠजनɉ, ǔज£ासु साधकɉ के िलये ूातः ःमरणीय पूÏयपाद संत ौी
आसारामजी बापू कȧ जीवन-उƨारक अमृतवाणी िन×य िनरÛतर बहा करती है। ǿदय कȧ गहराई
से उठने वाली उनकȧ योगवाणी ौोताजनɉ के ǿदयɉ मɅ उतर जाती है, उÛहɅ ईƳरȣय आƽाद से
मधुर बना देती है। पूÏयौी कȧ सहज बोल-चाल मɅ ताǔǂवक अनुभव, जीवन कȧ मीमांसा, वेदाÛत
के अनुभूितमूलक मम[ ूकट हो जाया करते हɇ। उनका पावन दश[न और साǔÛनÚय पाकर हजारɉ-
हजारɉ मनुंयɉ के जीवन-उƭान नवपãलǒवत-पुǔंपत हो जाते हɇ। उनकȧ अगाध £ानगंगा से कु छ
आचमन लेकर ूःतुत पुःतक मɅ संकिलत करके आपकȧ सेवा मɅ उपǔःथत करते हुए हम
आनǔÛदत हो रहे हɇ.....।
ǒवनीतǒवनीतǒवनीतǒवनीत,,,,
ौीौीौीौी योग वेदाÛत सेवा सिमितयोग वेदाÛत सेवा सिमितयोग वेदाÛत सेवा सिमितयोग वेदाÛत सेवा सिमित
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
अनुबमअनुबमअनुबमअनुबम
पूÏय बापू का पावन सÛदेश
िनवेदन
अनÛय योग
Ǿिच और आवँयकता
ूािƯ और ूतीित
जीवन-मीमांसा
आǔःतक का जीवन दश[न
मधु संचय
अ£ान को िमटाओ
कǐरये िनत स×संग को
सावधान.....!
तÈय[ताम ्..... मा कु तÈय[ताम्
आǔःतक और नाǔःतक
सुख-दुःख से लाभ उठाओ
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
अनÛय योगअनÛय योगअनÛय योगअनÛय योग
मिय चानÛययोगेन भǒƠरåयिभचाǐरणीमिय चानÛययोगेन भǒƠरåयिभचाǐरणीमिय चानÛययोगेन भǒƠरåयिभचाǐरणीमिय चानÛययोगेन भǒƠरåयिभचाǐरणी ।।।।
ǒववƠदेशसेǒव×वरितज[नसंसǑदǒववƠदेशसेǒव×वरितज[नसंसǑदǒववƠदेशसेǒव×वरितज[नसंसǑदǒववƠदेशसेǒव×वरितज[नसंसǑद ।।।।।।।।
"मुझ परमेƳर मɅ अनÛय योग के Ʈारा अåयिभचाǐरणी भǒƠ तथा एकाÛत और शुƨ देश
मɅ रहने का ःवभाव और ǒवषयासƠ मनुंयɉ के समुदाय मɅ ूेम का न होना (यह £ान है)।"
(भगवɮ गीताः १३-१०)
अनÛय भǒƠ और अåयिभचाǐरणी भǒƠ अगर भगवान मɅ हो जाय, तो भगव×ूािƯ कǑठन
नहȣं है। भगवान ूाणी माऽ का अपना आपा है। जैसे पितोता Ƹी अपने पित के िसवाय अÛय
पुǾष मɅ पितभाव नहȣं रखती, ऐसे हȣ ǔजसको भगव×ूािƯ के िसवाय और कोई सार वःतु नहȣं
Ǒदखती, ऐसा ǔजसका ǒववेक जाग गया है, उसके िलए भगव×ूािƯ सुगम हो जाती है। वाःतव
मɅ, भगव×ूािƯ हȣ सार है। माँ आनÛदमयी कहा करती थी - "हǐरकथा हȣ कथा...... बाकȧ सब
जगåयथा।"
मेरे अनÛय योग Ʈारा अåयिभचाǐरणी भǒƠ का होना, एकाÛत ःथान मɅ रहने का ःवभाव
होना और जन समुदाय मɅ ूीित न होना.... इस ूकार कȧ ǔजसकȧ भǒƠ होती है, उसे £ान मɅ
Ǿिच होती है। ऐसा साधक अÚया×म£ान मɅ िन×य रमण करता है। तǂव£ान के अथ[ःवǾप
परमा×मा को सब जगह देखता है। इस ूकार जो है, वह £ान है। इससे जो ǒवपरȣत है, वह
अ£ान है।
हǐररस को, हǐर£ान को, हǐरǒवौाǔÛत को पाये ǒबना ǔजसको बाकȧ सब åयथ[ åयथा
लगती है, ऐसे साधक कȧ अनÛय भǒƠ जगती है। ǔजसकȧ अनÛय भǒƠ है भगवान मɅ, ǔजसका
अनÛय योग हो गया है उसको जनसंपक[ मɅ Ǿिच नहȣं रहती। सामाÛय इÍछाओं को पूण[ करने
मɅ, सामाÛय भोग भोगने मɅ जो जीवन नƴ करते है, ऐसे लोगɉ मɅ सÍचे भƠ को Ǿिच नहȣं
होती। पहले Ǿिच हुई तब हुई, ǑकÛतु जब अनÛय भǒƠ िमली तो Ǒफर उपरामता आ जायेगी।
åयवहार चलाने के िलए लोगɉ के साथ 'हूँ...हाँ...' कर लेगा, पर भीतर महसूस करेगा Ǒक यह सब
जãदȣ िनपट जाय तो अÍछा।
अनÛय भǒƠ जब ǿदय मɅ ूकट होती है, तब पहले का जो कु छ Ǒकया होता है वह
बेगार-सा लगता है। एकाÛत देश मɅ रहने कȧ Ǿिच होती है। जन-संपक[ से वह दूर भागता है।
आौम मɅ स×संग काय[बम, साधना िशǒवरɅ आǑद को जन-संसग[ नहȣं कहा जा सकता। जो लोग
साधन-भजन के ǒवपरȣत Ǒदशा मɅ जा रहे हɇ, देहाÚयास बढ़ा रहे हɇ, उनका संसग[ साधक के िलए
बाधक है। ǔजससे आ×म£ान िमलता है वह जनसंपक[ तो साधन माग[ का पोषक है। जन-
साधारण के बीच साधक रहता है तो देह कȧ याद आती है, देहाÚयास बढ़ता है, देहािभमान बढ़ता
है। देहािभमान बढ़ने पर साधक परमाथ[ तǂव से Íयुत हो जाता है, परम तǂव मɅ शीय गित नहȣं
कर सकता। ǔजतना देहािभमान, देहाÚयास गलता है, उतना वह आ×मवैभव को पाता है। यहȣ
बात ौीमɮ आƭ शंकराचाय[ ने कहȣः
गिलते देहाÚयासे ǒव£ाते परमा×मिन।गिलते देहाÚयासे ǒव£ाते परमा×मिन।गिलते देहाÚयासे ǒव£ाते परमा×मिन।गिलते देहाÚयासे ǒव£ाते परमा×मिन।
यऽ यऽ मनो याित तऽ तऽ समाधयः।।यऽ यऽ मनो याित तऽ तऽ समाधयः।।यऽ यऽ मनो याित तऽ तऽ समाधयः।।यऽ यऽ मनो याित तऽ तऽ समाधयः।।
जब देहाÚयास गिलत हो जाता है, परमा×मा का £ान हो जाता है, तब जहाँ-जहाँ मन
जाता है, वहाँ-वहाँ समािध का अनुभव होता है, समािध का आनÛद आता है।
देहाÚयास गलाने के िलए हȣ सारȣ साधनाएँ हɇ। परमा×मा-ूािƯ के िलये ǔजसको तड़प
होती है, जो अनÛय भाव से भगवान को भजता है, 'परमा×मा से हम परमा×मा हȣ चाहते हɇ....
और कु छ नहȣं चाहते.....' ऐसी अåयिभचाǐरणी भǒƠ ǔजसके ǿदय मɅ है, उसके ǿदय मɅ भगवान
£ान का ूकाश भर देते हɇ।
जो धन से सुख चाहते हɇ, वैभव से सुख चाहते हɇ, अथवा पǐरौम करके , साधना करके
कु छ पाना चाहते हɇ वे लोग साधना और पǐरौम के बल पर रहते हɇ लेǑकन जो भगवान के बल
पर भी भगवान को पाना चाहते हɇ, भगवान कȧ कृ पा से हȣ भगवान को पाना चाहते हɇ, ऐसे भƠ
अनÛय भƠ हɇ।
गोरा कु àहार भगवान का कȧत[न करते थे। कȧत[न करते-करते देहाÚयास भूल गये। िमÒटȣ
रɉदते-रɉदते िमÒटȣ के साथ बालक भी रɉदा गया। पता नहȣं चला। पƤी कȧ िनगाह पड़ȣ। वह
बोल उठȤः
"आज के बाद मुझे ःपश[ मत करना।"
"अÍछा ठȤक है....।"
भगवान मɅ अनÛय भाव था तो पƤी नाराज हो गई Ǒफर भी Ǒदल को ठेस नहȣं पहुँची।
‘ःपश[ नहȣं करना...’ तो नहȣं करɅगे। पƤी को बड़ा पƱाताप हुआ Ǒक गलती हो गई। अब वंश
कै से चलेगा ? अपने ǒपता से कहकर अपनी बहन कȧ शादȣ करवाई। सब ǒविध सàपÛन करके
जब वर-वधू ǒवदा हो रहे थे, तब ǒपता ने अपने दामाद गोरा कु àहार से कहाः
"मेरȣ पहली बेटȣ को जैसे रखा है, ऐसे हȣ इसको भी रखना।"
"हाँ.. जो आ£ा।"
भगवान से ǔजसका अनÛय योग है, वह तो ःवीकार हȣ कर लेगा। गोरा कु àहार दोनɉ
पǔƤयɉ को समान भाव से देखने लगे। दोनɉ पǔƤयाँ दुःखी होने लगीं। अब इनको कै से समझाएं?
तक[ -ǒवतक[ देकर पित को संसार मɅ लाना चाहती थीं लेǑकन गोरा कु àहार का अनÛय भाव
भगवान मɅ जुड़ चुका था।
आǔखर दोनɉ बहनɉ ने एक राǒऽ को अपने पित का हाथ पकड़कर जबरदःती अपने शरȣर
तक लाया। गोरा कु àहार ने सोचा Ǒक मेरा हाथ अपǒवऽ हो गया। उÛहɉने हाथ को सजा कर दȣ।
भगवान ने अनÛय भाव होना चाǑहए। अनÛय भाव माने : जैसे पितोता Ƹी और Ǒकसी
पुǾष को पितभाव से नहȣं देखती ऐसे हȣ भƠ या साधक भी और Ǒकसी साधन से अपना
कãयाण होगा और Ǒकसी åयǒƠ के बल से अपना मो¢ होगा ऐसा नहȣं सोचता । 'हमɅ तो
भगवान कȧ कृ पा से भगवान के ःवǾप का £ान होगा तभी हमारा कãयाण होगा। भगवान कȧ
कृ पा हȣ एकमाऽ सहारा है, इसके अलावा और Ǒकसी साधन मɅ हम नहȣं ǾकɅ गे.... हे ूभु ! हमɅ
तो के वल तेरȣ कृ पा और तेरे ःवǾप कȧ ूािƯ चाǑहए.... और कु छ नहȣं चाǑहए।' भगवान पर जब
ऐसा अनÛय भाव होता है तब भगवान कृ पा करके भƠ के अÛतःकरण कȧ पतɏ हटाने लगते हɇ।
हमारा अपना आपा कोई गैर नहȣं है, दूर नहȣं है, पराया नहȣं है और भǒवंय मɅ िमलेगा
ऐसा भी नहȣं है। वह अपना राम, अपना आपा अभी है, अपना हȣ है। इस ूकार का बोध सुनने
कȧ और इस बोध मɅ ठहरने कȧ Ǿिच हो जायेगी। अनÛय भाव से भगवान का भजन यह
पǐरणाम लाता है।
अनÛय भाव माने अÛय-अÛय को देखे, पर भीतर से समझे Ǒक इन सबका अǔःतǂव एक
भगवान पर हȣ आधाǐरत है। आँख अÛय को देखती है, कान अÛय को सुनते हɇ, ǔजƾा अÛय को
चखती है, नािसका अÛय को सूँघती है, ×वचा अÛय को ःपश[ करती है। उसके सा¢ी Ǻƴा मन
को जोड़ दो, तो मन एक है। मन के भी अÛय-अÛय ǒवचार हɇ। उनमɅ भी मन का अिधƵान,
आधारभूत अनÛय चैतÛय आ×मा है। उसी आ×मा परमा×मा को पाना है। न मन कȧ चाल मɅ
आना है न इǔÛियɉ के आकष[ण मɅ आना है।
इस ूकार कȧ तरतीो ǔज£ासावाला भƠ, अनÛय योग करने वाला साधक हãकȧ Ǿिचयɉ
और हãकȧ आसǒƠयɉ वाले लोगɉ से अपनी तुलना नहȣं करता।
चैतÛय महाूभु को Ǒकसी ने पूछाः "हǐर का नाम एक बार लेने से Èया लाभ होता है ?"
"एक बार अनÛय भाव से हǐर का नाम ले लɅगे तो सारे पातक नƴ हो जायɅगे।"
"दूसरȣ बार लɅ तो ?"
"दूसरȣ बार लɅगे तो हǐर का आनÛद ूकट होने लगेगा। नाम लो तो अनÛय भाव से लो।
वैसे तो भीखमंगे लोग सारा Ǒदन हǐर का नाम लेते हɇ, ऐसɉ कȧ बात नहȣं है। अनÛय भाव से
के वल एक बार भी हǐर का नाम ले िलया जाये तो सारे पातक नƴ हो जाएँ।
लोग सोचते हɇ Ǒक हम भगवान कȧ भǒƠ करते हɇ Ǒफर भी हमारा बेटा ठȤक नहȣं होता है।
अÛतया[मी भगवान देख रहे हɇ Ǒक यह तो बेटे का भगत है।
'हे भगवान ! मेरे इतने लाख Ǿपये हो जायɅ तो उÛहɅ ǑफÈस करके आराम से भजन
कǾँ गा.....' अथवा 'मेरा इतना पेÛशन हो जाय, Ǒफर मɇ भजन कǾँ गा...' तो आौय ǑफÈस
Ǒडपोǔजट का हुआ अथवा पेÛशन का हुआ। भगवान पर तो आिौत नहȣं हुआ। यह अनÛय भǒƠ
नहȣं है। नरिसंह मेहता ने कहा है:
भɉभɉभɉभɉय सुवाडुं भूखे माǾँ उपरथी माǾंय सुवाडुं भूखे माǾँ उपरथी माǾंय सुवाडुं भूखे माǾँ उपरथी माǾंय सुवाडुं भूखे माǾँ उपरथी माǾं मारमारमारमार ।।।।
एटलुंएटलुंएटलुंएटलुं करतां हǐर भजे तो करȣ नाखुं िनहालकरतां हǐर भजे तो करȣ नाखुं िनहालकरतां हǐर भजे तो करȣ नाखुं िनहालकरतां हǐर भजे तो करȣ नाखुं िनहाल ।।।।।।।।
जीवन मɅ कु छ असुǒवधा आ जाती है तो भगवान से ूाथ[ना करते हɇ- 'यह दुःख दूर को
दो ूभु !' हम भगवान के नहȣं सुǒवधा के भगत हɇ। भगवान का उपयोग भी असुǒवधा हटाने के
िलए करते हɇ। असुǒवधा हट गई, सुǒवधा हो गई तो उसमɅ लेपायमान हो जाते हɇ। सोचते हɇ, बाद
मɅ भजन करɅगे। यह भगवान कȧ अनÛय भǒƠ नहȣं है। भगवान कȧ भǒƠ अनÛय भाव से कȧ
जाय तो तǂव£ान का दश[न होने लगे। आ×म£ान ूाƯ करने कȧ ǔज£ासा जाग उठे। जन-संसग[
से ǒवरǒƠ होने लगे।
एकाÛतवासो लघुभोजनाǑदएकाÛतवासो लघुभोजनाǑदएकाÛतवासो लघुभोजनाǑदएकाÛतवासो लघुभोजनाǑद । मौनं िनराशा करणावरोधः।।। मौनं िनराशा करणावरोधः।।। मौनं िनराशा करणावरोधः।।। मौनं िनराशा करणावरोधः।।
मुनेरसोः संयमनं षडेमुनेरसोः संयमनं षडेमुनेरसोः संयमनं षडेमुनेरसोः संयमनं षडेतेतेतेते । िचƣूसादं जनयǔÛत शीयम ्। िचƣूसादं जनयǔÛत शीयम ्। िचƣूसादं जनयǔÛत शीयम ्। िचƣूसादं जनयǔÛत शीयम ् ।।।।।।।।
'एकाÛत मɅ रहना, अãपाहार, मौन, कोई आशा न रखना, इǔÛिय-संयम और ूाणायाम, ये
छः मुिन को शीय हȣ िचƣूसाद कȧ ूािƯ कराते हɇ।'
एकाÛतवास, इǔÛियɉ को अãप आहार, मौन, साधना मɅ त×परता, आ×मǒवचार मɅ ूवृǒƣ...
इससे कु छ हȣ Ǒदनɉ मɅ आ×मूसाद कȧ ूािƯ हो जाती है।
हमारȣ भǒƠ अनÛय नहȣं होती, इसिलए समय Ïयादा लग जाता है। कु छ यह कर लूं...
कु छ यह देख लूं... कु छ यह पा लूं.... इस ूकार जीवन-शǒƠ ǒबखर जाती है।
ःवामी रामतीथ[ एक कहानी सुनाया करते थेः
एटलाÛटा नामक ǒवदेशी लड़कȧ दौड़ लगाने मɅ बड़ȣ तेज थी। उसने घोषणा कȧ थी Ǒक जो
युवक मुझे दौड़ मɅ हरा देगा, मɇ अपनी संपǒƣ के साथ उसकȧ हो जाऊं गी। उसके साथ ःपधा[ मɅ
कई युवक उतरे, लेǑकन सब हार गये। सब लोग हारकर लौट जाते थे।
एक युवक ने अपने इƴदेव Ïयुपीटर को ूाथ[ना कȧ। इƴदेव ने उसे युǒƠ बता दȣ। दौड़ने
का Ǒदन िनǔƱत Ǒकया गया। एटलाÛटा बड़ȣ तेजी से दौड़नेवाली लड़कȧ थी। यह युवक ःवÜन मɅ
भी उसकȧ बराबरȣ नहȣं कर सकता था Ǒफर भी देव ने कु छ युǒƠ बता दȣ थी।
दौड़ का ूारंभ हुआ। घड़ȣ भर मɅ एटलाÛटा कहȣं दूर िनकल गई। युवक पीछे रह गया।
एटलाÛटा कु छ आगे गई तो माग[ मɅ सुवण[मुिाएं ǒबखरȣ हुई देखी । सोचा Ǒक युवक पीछे रह
गया है। वह आवे, तब तक मुिाएं बटोर लूं। वह Ǿकȧ... मुिाएं इकÒठȤ कȧ। तब तक युवक
नजदȣक आ गया। वह झट से आगे दौड़ȣ। उसको पीछे कर Ǒदया। और आगे गई तो माग[ मɅ
और सुवण[मुिाएं देखी। वह भी ले ली। उसके पास वजन बढ़ गया। युवक भी तब तक नजदȣक
आ गया था। Ǒफर लड़कȧ ने तेज दौड़ लगाई। आगे गई तो और सुवण[मुिाएँ Ǒदखी। उसने उसे
भी ले ली। इस ूकार एटलाÛटा के पास बोझ बढ़ गया। दौड़ कȧ रÝतार कम हो गई। आǔखर
वह युवक उससे आगे िनकल गया। सारȣ संपǒƣ और राःते मɅ बटोरȣ हुई सुवण[मुिाओं के साथ
एटलाÛटा को उसने जीत िलया।
एटलाÛटा तेज दौड़ने वाली लड़कȧ थी पर उसका Úयान सुवण[मुिाओं मɅ अटकता रहा।
ǒवजेता होने कȧ योÊयता होते हुए भी अनÛय भाव से नहȣं दौड़ पायी, इससे वह हार गई।
ऐसे हȣ मनुंय माऽ मɅ परॄƺ परमा×मा को पाने कȧ योÊयता है। परमा×मा ने मनुंय को
ऐसी बुǒƨ इसीिलए दे रखी है Ǒक उसको आ×मा-परमा×मा के £ान कȧ ǔज£ासा जाग जाय,
आ×मसा¢ा×कार हो जाय। रोटȣ कमाने कȧ और बÍचɉ को पालने कȧ बुǒƨ तो पशु-पǔ¢यɉ को भी
दȣ है। मनुंय कȧ बुǒƨ सारे पशु-प¢ी-ूाणी जगत से ǒवशेष है ताǑक वह बुǒƨदाता का सा¢ा×कार
कर सके । बुǒƨ जहाँ से सƣा-ःफू ित[ लाती है उस परॄƺ-परमा×मा का सा¢ा×कार करके जीव ॄƺ
हो जाय। के वल कु सȸ-टेबल पर बैठकर कलम चलाने के िलए हȣ बुǒƨ नहȣं िमली है। बुǒƨपूव[क
कलम तो भले चलाओ लेǑकन बुǒƨ का उपयोग के वल रोटȣ कमाकर पेट भरना हȣ नहȣं है। कलम
भी चलाओ तो परमा×मा को ǐरझाने के िलये और कु दाली चलाओ तो भी उसीको ǐरझाने के
िलए।
अनुबम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
ǾǾǾǾिच और आवँयकतािच और आवँयकतािच और आवँयकतािच और आवँयकता
ऐसा कोई मनुंय नहȣं िमलेगा, ǔजसके पास कु छ भी योÊयता न हो, जो Ǒकसी को मानता
न हो। हर मनुंय जǾर Ǒकसी न Ǒकसी को मानता है। ऐसा कोई मनुंय नहȣं ǔजसमɅ जानने कȧ
ǔज£ासा न हो। वह कु छ न कु छ जानने कȧ कोिशश तो करता हȣ है। करने कȧ, मानने कȧ और
जानने कȧ यह ःवतः िसƨ पूँजी है हम सबके पास। Ǒकसी के पास थोड़ȣ है तो Ǒकसी के पास
Ïयादा है, लेǑकन है जǾर। खाली कोई भी नहȣं।
हम लोग जो कु छ करते हɇ, अपनी Ǿिच के अनुसार करते हɇ। गलती Èया होती है Ǒक हम
आवँयकता के अनुसार नहȣं करते। Ǿिच के अनुसार मानते हɇ, आवँयकता के अनुसार नहȣं
मानते हɇ। Ǿिच के अनुसार जानते हɇ, आवँयकता के अनुसार नहȣं जानते । बस, यहȣ एक
गलती करते हɇ। इसे अगर हम सुधार लɅ तो Ǒकसी भी ¢ेऽ मɅ आराम से, ǒबãकु ल मजे से सफल
हो सकते हɇ। के वल यह एक बात कृ पा करके जान लो।
एक होती है Ǿिच और दूसरȣ होती है आवँयकता। शरȣर को भोजन करने कȧ आवँयकता
है। वह तÛदुǾःत कै से रहेगा, इसकȧ आवँयकता समझकर आप भोजन करɅ तो आपकȧ बुǒƨ शुƨ
रहेगी। Ǿिच के अनुसार भोजन करɅगे तो बीमारȣ होगी। अगर Ǿिच कȧ आसǒƠ से बÛधायमान
होकर आप भोजन करɅगɅ तो कभी ǽिच के अनुसार भोजन नहȣं िमलेगा और यǑद भोजन िमलेगा
तो Ǿिच नहȣं होगी। ǔजसको Ǿिच हो और वःतु न हो तो Ǒकतना दुःख ! वःतु हो और Ǿिच न
हो तो Ǒकतनी åयथ[ता !
खूब Úयान देना Ǒक हमारे पास जानने कȧ, मानने कȧ और करने कȧ शǒƠ है। इसको
आवँयकता के अनुसार लगा दɅ तो हम आराम से मुƠ हो सकते हɇ और Ǿिच के अनुसार लगा
दɅ तो एक जÛम नहȣं, करोड़ɉ जÛमɉ मɅ भी काम नहȣं बनता। कȧट, पतंग, साधारण मनुंयɉ मɅ
और महापुǾषɉ मɅ इतना हȣ फक[ है Ǒक महापुǾष माँग के अनुसार करते हɇ और साधारण मनुंय
Ǿिच के अनुसार करते हɇ।
जीवन कȧ माँग है योग। जीवन कȧ माँग है शाƳत सुख। जीवन कȧ माँग है अखÖडता।
जीवन कȧ माँग है पूण[ता।
आप मरना नहȣं चाहते, यह जीवन कȧ माँग है। आप अपमान नहȣं चाहते। भले सह लेते
हɇ पर चाहते नहȣं। यह जीवन कȧ माँग है। तो अपमान ǔजसका न हो सके , वह ॄƺ है। अतः
वाःतव मɅ आपको ॄƺ होने कȧ माँग है। आप मुǒƠ चाहते हɇ। जो मुƠ ःवǾप है, उसमɅ अड़चन
आती है काम, बोध आǑद ǒवकारɉ से।
काम एष बोध एष रजोगुणसमुदकाम एष बोध एष रजोगुणसमुदकाम एष बोध एष रजोगुणसमुदकाम एष बोध एष रजोगुणसमुदभवभवभवभव: ।।।।
महाशनो महापाÜमा ǒवƨयेनिमहमहाशनो महापाÜमा ǒवƨयेनिमहमहाशनो महापाÜमा ǒवƨयेनिमहमहाशनो महापाÜमा ǒवƨयेनिमह वैǐरणम ्।।वैǐरणम ्।।वैǐरणम ्।।वैǐरणम ्।।
'रजोगुण से उ×पÛन हुआ यह काम हȣ बोध है। यह बहुत खानेवाला अथा[त ् भोगɉ से कभी
न अघाने वाला और बड़ा पापी है, इसको हȣ तू इस ǒवषय मɅ वैरȣ जान।'
(भगवɮ गीताः ३-३७)
काम और बोध महाशऽु हɇ और इसमɅ ःमृितॅम होता है, ःमृितॅम से बुǒƨनाश होता है।
बुǒƨनाश से सव[नाश हो जाता है। अगर Ǿिच को पोसते हɇ तो ःमृित ¢ीण होती है। ःमृित ¢ीण
हुई तो सव[नाश।
एक लड़के कȧ िनगाह पड़ोस कȧ Ǒकसी लड़कȧ पर गई और लड़कȧ कȧ िनगाह लड़के पर
गई। अब उनकȧ एक दूसरे के ूित Ǿिच हुई। ǒववाह योÊय उॆ है तो माँग भी हुई शादȣ कȧ।
अगर हमने माँग कȧ ओर, कु ल िशƴाचार कȧ ओर Úयान नहȣं Ǒदया और लड़का लड़कȧ को ले
भागा अथवा लड़कȧ लड़के को ले भागी तो मुँह Ǒदखाने के काǒबल नहȣं रहे। Ǒकसी होटल मɅ रहे,
कभी कहाँ रहे – अखबारɉ मɅ नाम छपा गया, 'पुिलस पीछे पड़ेगी,' डर लग गया। इस ूकार Ǿिच
मɅ अÛधे होकर कू दे तो परेशान हुए। अगर ǒववाह योÊय उॆ हो गई है, गृहःथ जीवन कȧ माँग
है, एक दूसरे का ःवभाव िमलता है तो माँ-बाप से कह Ǒदया और माँ-बाप ने खुशी से समझौता
करके दोनɉ कȧ शादȣ करा दȣ। यह हो गई माँग कȧ पूित[ और वह थी Ǿिच कȧ पूित[। Ǿिच कȧ
पूित[ मɅ जब अÛधी दौड़ लगती है तो परेशानी होती है, अपनी और अपने ǐरँतेदारɉ कȧ बदनामी
होती है। ...तो शादȣ करने मɅ बुǒƨ चाǑहए Ǒक Ǿिच कȧ पूित[ के साथ माँग कȧ पूित[ हो।
माँग आसानी से पूरȣ हो सकती है और Ǿिच जãदȣ पूरȣ होती नहȣं। जब होती है तब
िनवृƣ नहȣं होती, अǒपतु और गहरȣ उतरती है अथवा उबान और ǒवषाद मɅ बदलती है। Ǿिच के
अनुसार सदा सब चीजɅ हɉगी नहȣं, Ǿिच के अनुसार सब लोग तुàहारȣ बात मानɅगɅ नहȣं। Ǿिच के
अनुसार सदा तुàहारा शरȣर Ǒटके गा नहȣं। अÛत मɅ Ǿिच बच जायेगी, शरȣर चला जायगा। Ǿिच
बच गई तो कामना बच गई। जातीय सुख कȧ कामना, धन कȧ कामना, सƣा कȧ कामना,
सौÛदय[ कȧ कामना, वाहवाहȣ कȧ कामना, इन कामनाओं से सàमोह होता है। सàमोह से बुǒƨॅम
होता है, बुǒƨॅम से ǒवनाश होता है।
करने कȧ, मानने कȧ और जानने कȧ शǒƠ को अगर Ǿिच के अनुसार लगाते हɇ तो करने
का अंत नहȣं होगा, मानने का अंत नहȣं होगा, जानने का अंत नहȣं होगा। इन तीनɉ योÊयताओं
को आप अगर यथा योÊय जगह पर लगा दɅगे तो आपका जीवन सफल हो जायगा।
अतः यह बात िसƨ है Ǒक आवँयकता पूरȣ करने मɅ शाƸ, गुǾ, समाज और भगवान
आपका सहयोग करɅगे। आपकȧ आवँयकता पूरȣ करने मɅ ूकृ ित भी सहयोग देती है। बेटा माँ कȧ
गोद मɅ आता है, उसकȧ आवँयकता होती है दूध कȧ। ूकृ ित सहयोग देकर दूध तैयार कर देती
है। बेटा बड़ा होता है और उसकȧ आवँयकता होती है दाँतɉ कȧ तो दाँत आ जाते हɇ।
मनुंय कȧ आवँयकता है हवा कȧ, जल कȧ, अÛन कȧ। यह आवँयकता आसानी से
यथायोÊय पूरȣ हो जाती है। आपको अगर Ǿिच है शराब कȧ, अगर उस Ǿिच पूित[ मɅ लगे तो वह
जीवन का ǒवनाश करती है। शरȣर के िलए शराब कȧ आवँयकता नहȣं है। Ǿिच कȧ पूित[
कƴसाÚय है और आवँयकता कȧ पूित[ सहजसाÚय है।
आपके पास जो करने कȧ शǒƠ है, उसे Ǿिच के अनुसार न लगाकर समाज के िलए लगा
दो। अथा[त ् तन को, मन को, धन को, अÛन को, अथवा कु छ भी करने कȧ शǒƠ को 'बहुजन
Ǒहताय, बहुजन सुखाय' मɅ लगा दो।
आपको होगा Ǒक अगर हम अपना जो कु छ है, वह समाज के िलए लगा दɅ तो Ǒफर
हमारȣ आवँयकताएँ कै से पूरȣ हɉगी?
आप समाज के काम मɅ आओगे तो आपकȧ सेवा मɅ सारा समाज त×पर रहेगा। एक
मोटरसाइकल काम मɅ आती है तो उसको संभालने वाले होते हɇ Ǒक नहȣं ? घोड़ा गधा काम मɅ
आता है तो उसको भी ǔखलाने वाले होते हɇ। आप तो मनुंय हो। आप अगर लोगɉ के काम
आओगे तो हजार-हजार लोग आपकȧ आवँयकता पूरȣ करने के िलए लालाियत हो जायɅगे। आप
ǔजतना-ǔजतना अपनी Ǿिच को छोड़ोगे, उतनी उतनी उÛनित करते जाओगे।
जो लोग Ǿिच के अनुसार सेवा करना चाहते हɇ, उनके जीवन मे बरकत नहȣं आती।
ǑकÛतु जो आवँयकता के अनुसार सेवा करते हɇ, उनकȧ सेवा Ǿिच िमटाकर योग बन जाती है।
पितोता Ƹी जंगल मɅ नहȣं जाती, गुफा मɅ नहȣं बैठती। वह अपनी Ǿिच पित कȧ सेवा मɅ लगा
देती है। उसकȧ अपनी Ǿिच बचती हȣ नहȣं है। अतः उसका िचƣ ःवयमेव योग मɅ आ जाता है।
वह जो बोलती है, ऐसा ूकृ ित करने लगती है।
तोटकाचाय[, पूरणपोडा, सलूका-मलूका, बाला-मरदाना जैसे सत ् िशंयɉ ने गुǾ कȧ सेवा मɅ,
गुǾ कȧ दैवी कायɟ मɅ अपने करने कȧ, मानने कȧ और जानने कȧ शǒƠ लगा दȣ तो उनको सहज
मɅ मुǒƠफल िमल गया। गुǾओं को भी ऐसा सहज मɅ नहȣं िमला था जैसा इन िशंयɉ को िमल
गया। ौीमɮ आƭ शंकराचाय[ को गुǾूािƯ के िलए Ǒकतना Ǒकतना पǐरौम करना पड़ा ! कहाँ से
पैदल याऽा करनी पड़ȣ ! £ानूािƯ के िलए भी कै सी-कै सी साधनाएँ करनी पड़ȣ ! जबǑक उनके
िशंय तोटकाचाय[ ने तो के वल अपने गुǾदेव के बत[न माँजते-माँजते हȣ ूाƯåय पा िलया।
अपनी करने कȧ शǒƠ को ःवाथ[ मɅ नहȣं अǒपतु परǑहत मɅ लगाओ तो करना तुàहारा योग
हो जायेगा। मानने कȧ शǒƠ है तो ǒवƳिनयंता को मानो। वह परम सुǿद है और सव[ऽ है, अपना
आपा भी है और ूाणी माऽ का आधार भी है। जो लोग अपने को अनाथ मानते हɇ, वे परमा×मा
का अनादर करते हɇ। जो बहन अपने को ǒवधवा मानती है, वह परमा×मा का अनादर करती है।
अरे ! जगतपित परमा×मा ǒवƭमान होते हुए तू ǒवधवा कै से हो सकती है ? ǒवƳ का नाथ साथ
मɅ होते हुए तुम अनाथ कै से हो सकते हो ? अगर तुम अपने को अनाथ, असहाय, ǒवधवा
इ×याǑद मानते हो तो तुमने अपने मानने कȧ शǒƠ का दुǾपयोग Ǒकया। ǒवƳपित सदा मौजूद है
और तुम आँसू बहाते हो ?
"मेरे ǒपता जी ःवग[वास हो गये.... मɇ अनाथ हो गया.........।"
"गुǽजी आप चले जायɅगे... हम अनाथ हो जाएँगे....।"
नहȣं नहȣं....। तू वीर ǒपता का पुऽ है। िनभ[य गुǾ का चेला है। तू तो वीरता से कह दे
Ǒक, 'आप आराम से अपनी याऽा करो। हम आपकȧ उƣरǑबया करɅगे और आपके आदशɟ को,
आपके ǒवचारɉ को समाज कȧ सेवा मɅ लगाएँगे ताǑक आपकȧ सेवा हो जाय।' यह सुपुऽ और सत ्
िशंय का कƣ[åय होता है। अपने ःवाथ[ के िलये रोना, यह न पƤी के िलए ठȤक है न पित के
िलए ठȤक है, न पुऽ के िलए ठȤक है न िशंय के िलए ठȤक है और न िमऽ के िलए ठȤक है।
पैगंबर मुहàमद परमा×मा को अपना दोःत मानते थे, जीसस परमा×मा को अपना ǒपता
मानते थे और मीरा परमा×मा को अपना पित मानती थी। परमा×मा को चाहे पित मानो चाहे
दोःत मानो, चाहे ǒपता मानो चाहे बेटा मानो, वह है मौजूद और तुम बोलते हो Ǒक मेरे पास
बेटा नहȣं है.... मेरȣ गोद खाली है। तो तुम ईƳर का अनादर करते हो। तुàहारȣ ǿदय कȧ गोद मɅ
परमा×मा बैठा है, तुàहारȣ इǔÛियɉ कȧ गोद मɅ परमा×मा मɅ बैठा है।
तुम मानते तो हो लेǑकन अपनी Ǿिच के अनुसार मानते हो, इसिलए रोते रहते हो। माँग
के अनुसार मानते हो तो आराम पाते हो। मǑहला आँसू बहा रहȣ है Ǒक Ǿिच के अनुसार बेटा
अपने पास नहȣं रहा। उसकȧ जहाँ आवँयकता थी, परमा×मा ने उसको वहाँ रख िलया ÈयɉǑक
उसकȧ सृǒƴ के वल उस मǑहला कȧ गोद या उसका घर हȣ नहȣं है। सारȣ सृǒƴ, सारा ॄƺाÖड उस
परमा×मा कȧ गोद मɅ है। तो वह बेटा कहȣं भी हो, वह परमा×मा कȧ गोद मɅ हȣ है। अगर हम
Ǿिच के अनुसार मन को बहने देते हɇ तो दुःख बना रहता है।
Ǿिच के अनुसार तुम करते रहोगे तो समय बीत जायगा, Ǿिच नहȣं िमटेगी। यह Ǿिच है
Ǒक जरा-सा पा लɅ..... जरा सा भोग लɅ तो Ǿिच पूरȣ हो जाय। ǑकÛतु ऐसा नहȣं है। भोगने से
Ǿिच गहरȣ उतर जायगी। जगत का ऐसा कोई पदाथ[ नहȣं जो Ǿिचकर हो और िमलता भी रहे।
या तो पदाथ[ नƴ हो जाएगा या उससे उबान आ जाएगी।
Ǿिच को पोसना नहȣं है, िनवृƣ करना है। Ǿिच िनवृƣ हो गई तो काम बन गया, Ǒफर
ईƳर दूर नहȣं रहेगा। हम गलती यह करते हɇ Ǒक Ǿिच के अनुसार सब करते रहते हɇ। पाँच-दस
åयǒƠ हȣ नहȣं, पूरा समाज इसी ढाँचे मɅ चल रहा है। अपनी आवँयकता को ठȤक से समझते
नहȣं और Ǿिच पूरȣ करने मɅ लगे रहते हɇ। ईƳर तो अपना आपा है, अपना ःवǾप है। विशƵजी
महाराज कहते हɇ-
"हे रामजी ! फू ल, पƣे और टहनी तोड़ने मɅ तो पǐरौम है, ǑकÛतु अपने आ×मा-परमा×मा
को जानने मɅ Èया पǐरौम है ? जो अǒवचार से चलते हɇ, उनके िलए संसार सागर तरना महा
कǑठन है, अगàय है। तुम सरȣखे जो बुǒƨमान हɇ उनके िलए संसार सागर गोपद कȧ तरह तरना
आसान है। िशंय मɅ जो सदगुण होने चाǑहए वे तुम मɅ हɇ और गुǾ मɅ जो सामØय[ होना चाǑहए
वह हममɅ है। अब थोड़ा सा ǒवचार करो, तुरÛत बेड़ा पार हो जायगा।"
हमारȣ आवँयकता है योग कȧ और जीते हɇ Ǿिच के अनुसार। कोई हमारȣ बात नहȣं
मानता तो हम गम[ हो जाते हɇ, लड़ने-झगड़ने लगते हɇ। हमारȣ Ǿिच है अहं पोसने कȧ और
आवँयकता है अहं को ǒवसǔज[त करने कȧ। Ǿिच है अनुशासन करने कȧ, कु छ ǒवशेष हुÈम
चलाने कȧ और आवँयकता है सबमɅ छु पे हुए ǒवशेष को पाने कȧ।
आप अपनी आवँयकताएँ पूरȣ करो, Ǿिच को पूरȣ मत करो। जब आवँयकताएँ पूरȣ करने
मɅ लगɅगे तो Ǿिच िमटने लगेगी। Ǿिच िमट जायगी तो शहंशाह हो जाओगे। आपमɅ करने कȧ,
मानने कȧ, जानने कȧ शǒƠ है। Ǿिच के अनुसार उसका उपयोग करते हो तो स×यानाश होता है।
आवँयकता के अनुसार उसका उपयोग करोगे तो बेड़ा पार होगा।
आवँयकता है अपने को जानने कȧ और Ǿिच है लंदन, Ûयूयाक[ , माःको मɅ Èया हुआ,
यह जानने कȧ।
'इसने Èया Ǒकया... उसने Èया Ǒकया.... फलाने कȧ बारात मɅ Ǒकतने लोग थे.... उसकȧ
बहू कै सी आयी....' यह सब जानने कȧ आवँयकता नहȣं है। यह तुàहारȣ Ǿिच है। अगर Ǿिच के
अनुसार मन को भटकाते रहोगे तो मन जीǒवत रहेगा और आवँयकता के अनुसार मन का
उपयोग करोगे तो मन अमनीभाव को ूाƯ होगा। उसके संकãप-ǒवकãप कम हɉगे। बुǒƨ को
पǐरौम कम होगा तो वह मेधावी होगी। Ǿिच है आलःय मɅ और आवँयकता है ःफू ित[ कȧ। Ǿिच
है थोड़ा करके Ïयादा लाभ लेने मɅ और आवँयकता है Ïयादा करके कु छ भी न लेने कȧ। जो भी
िमलेगा वह नाशवान होगा, कु छ भी नहȣं लोगे तो अपना आपा ूकट हो जायगा।
कु छ पाने कȧ, कु छ भोगने कȧ जो Ǿिच है, वहȣ हमɅ सवȶƳर कȧ ूािƯ से वंिचत कर देती
है। आवँयकता है 'नेकȧ कर कु एँ मɅ फɅ क'। लेǑकन Ǿिच होती है, 'नेकȧ थोड़ȣ कǾँ और चमकूँ
Ïयादा। बदȣ बहुत कǾँ और छु पाकर रखूँ।' इसीिलए राःता कǑठन हो गया है। वाःतव मɅ ईƳर-
ूािƯ का राःता राःता हȣ नहȣं है, ÈयɉǑक राःता तब होता है जब कोई चीज वहाँ और हम यहाँ।
दोनɉ के बीच मɅ दूरȣ हो। हकȧकत मɅ ईƳर ऐसा नहȣं है Ǒक हम यहाँ हɉ और ईƳर कहȣं दूर हो।
आपके और ईƳर के बीच एक इंच का भी फासला नहȣं, एक बाल ǔजतना भी अंतर नहȣं लेǑकन
अभागी Ǿिच ने आपको और ईƳर को पराया कर Ǒदया है। जो पराया संसार है, िमटने वाला
शरȣर है, उसको अपना महसूस कराया। यह शरȣर पराया है, आपका नहȣं है। पराया शरȣर अपना
लगता है। मकान है Ƀट-चूने-लÈकड़-प×थर का और पराया है लेǑकन Ǿिच कहती है Ǒक मकान
मेरा है।
ःवामी रामतीथ[ कहते हɇ-
"हे मूख[ मनुंयɉ ! अपना धन, बल व शǒƠ बड़े-बड़े भवन बनाने मɅ मत खचȾ, Ǿिच कȧ
पूित[ मɅ मत खचȾ। अपनी आवँयकता के अनुसार सीधा सादा िनवास ःथान बनाओ और बाकȧ
का अमूãय समय जो आपकȧ असली आवँयकता है योग कȧ, उसमɅ लगाओ। ढेर सारȣ Ǒडजाइनɉ
के वƸɉ कȧ कतारɅ अपनी अलमारȣ मɅ मत रखो लेǑकन तुàहारे Ǒदल कȧ अलमारȣ मɅ आने का
समय बचा लो। ǔजतनी आवँयकता हो उतने हȣ वƸ रखो, बाकȧ का समय योग मɅ लग
जायेगा। योग हȣ तुàहारȣ आवँयकता है। ǒवौाǔÛत तुàहारȣ आवँयकता है। अपने आपको जानना
तुàहारȣ आवँयकता है। जगत कȧ सेवा करना तुàहारȣ आवँयकता है ÈयɉǑक जगत से शरȣर
बना है तो जगत के िलए करोगे तो तुàहारȣ आवँयकता अपने आप पूरȣ हो जायगी।
ईƳर को आवँयकता है तुàहारे Üयार कȧ, जगत को आवँयकता है तुàहारȣ सेवा कȧ और
तुàहɅ आवँयकता है अपने आपको जानने कȧ।
शरȣर को जगत कȧ सेवा मɅ लगा दो, Ǒदल मɅ परमा×मा का Üयार भर दो और बुǒƨ को
अपना ःवǾप जानने मɅ लगा दो। आपका बेड़ा पार हो जायगा। यह सीधा गǔणत है।
मानना, करना और जानना Ǿिच के अनुसार नहȣं बǔãक, आवँयकता के अनुसार हȣ हो
जाना चाǑहए। आवँयकता पूरȣ करने मɅ नहȣं कोई पाप, नहȣं कोई दोष। Ǿिच पूरȣ करने मɅ तो
हमɅ कई हथकं डे अपनाने पड़ते हɇ। जीवन खप जाता है ǑकÛतु Ǿिच ख×म नहȣं होती, बदलती
रहती है। Ǿिचकर पदाथ[ आप भोगते रहɅ तो भोगने का सामØय[ कम हो जायगा और Ǿिच रह
जायगी। देखने कȧ शǒƠ ख×म हो जाय और देखने कȧ इÍछा बनी रहे तो Ǒकतना दुःख होगा !
सुनने कȧ शǒƠ ख×म हो जाय और सुनने कȧ इÍछा बनी रहे तो Ǒकतना दुभा[Êय ! जीने कȧ
शǒƠ ¢ीण हो जाय और जीने कȧ Ǿिच बनी रहे तो Ǒकतना दुःख होगा ! इसिलए मरते समय
दुःख होता है। ǔजनकȧ Ǿिच नहȣं होती उन आ×मरामी पुǾषɉ को Èया दुःख ? ौीकृ ंण को देखते-
देखते भींम ǒपतामह ने ूाण ऊपर चढ़ा Ǒदये। उÛहɅ मरने का कोई दुःख नहȣं।
सूँघने कȧ Ǿिच बनी रहे और नाक काम न करे तो ? याऽा कȧ Ǿिच बनी रहे और पैर
जवाब दे दɅ तो ? पैसɉ कȧ Ǿिच बनी रहे और पैसे न हɉ तो Ǒकतना दुःख ? वाहवाहȣ कȧ Ǿिच है
और वाहवाहȣ न िमली तो ?
अगर Ǿिच के अनुसार वाहवाहȣ िमल भी जाय तो Èया Ǿिच पूरȣ हो जायगी ? नहȣं, और
Ïयादा वाहवाहȣ कȧ इÍछा होगी। हम जानते हȣ हɇ Ǒक ǔजसकȧ वाहवाहȣ होती है उसकȧ िनÛदा भी
होती है। अतः वाहवाहȣ से Ǿिचपूित[ का सुख िमलता है तो िनÛदा से उतना हȣ दुःख होगा। और
इतने हȣ िनÛदा करने वालɉ के ूित अÛयायकारȣ ǒवचार उठɅगे। अÛयायकारȣ ǒवचार ǔजस ǿदय मɅ
उठɅगे, उसी ǿदय को पहले खराब करɅगे। अतः हम अपना हȣ नुकसान करɅगे।
एक होता है अनुशासन, दूसरा होता है बोध। ǔजÛहɅ अपने सुख कȧ कोई Ǿिच नहȣं, जो
सुख देना चाहते हɇ, ǔजÛहɅ अपने भोग कȧ कोई इÍछा नहȣं है, उनकȧ आवँयकता सहज मɅ पूरȣ
होती है। जो दूसरɉ कȧ आवँयकता पूरȣ करने मɅ लगे हɇ, वे अगर डाँटते भी हɇ तो वह अनुशासन
हो जाता है। जो Ǿिचपूित[ के िलए डाँटते हɇ वह बोध हो जाता है। आवँयकतापूित[ के िलए अगर
ǒपटाई भी कर दȣ जाय तो भी ूसाद बन जाता है।
माँ को आवँयकता है बेटे को दवाई ǒपलाने कȧ तो माँ थÜपड़ भी मारती है, झूठ भी
बोलती है, गाली भी देती है Ǒफर भी उसे कोई पाप नहȣं लगता। दूसरा कोई आदमी अपनी Ǿिच
पूित[ के िलए ऐसा हȣ åयवहार उसके बेटे से करे तो देखो, माँ या दूसरे लोग भी उसकȧ कै सी
खबर ले लेते हɇ ! Ǒकसी कȧ आवँयकतापूित[ के िलए Ǒकया हुआ बोध भी अनुशासन बन जाता
है। Ǿिच पूित[ के िलए Ǒकया हुआ बोध कई मुसीबतɅ खड़ȣ कर देता है।
एक ǒवनोदȣ बात है। Ǒकसी जाट ने एक सूदखोर बिनये से सौ Ǿपये उधार िलये थे।
काफȧ समय बीत जाने पर भी जब उसने पैसे नहȣं लौटाये तो बिनया अकु लाकर उसके पास
वसूली के िलए गया।
"भाई ! तू Þयाज मत दे, मूल रकम सौ Ǿपये तो दे दे। Ǒकतना समय हो गया ?"
जाट घुरा[कर बोलाः "तुम मुझे जानते हो न ? मɇ कौन हूँ?"
"इसीिलए तो कहता हूँ Ǒक Þयाज मत दो। के वल सौ Ǿपये दे दो।"
"सौ-वौ नहȣं िमलɅगे। मेरा कहना मानो तो कु छ िमलेगा।"
बिनये ने सोचा Ǒक खाली हाथ लौटने से बेहतर है, जो कु छ िमले वहȣ ले लूँ।
अÍछा, तो तू ǔजतना चाहे उतना दे दे ।
जाट ने कहाः "देखो, मगर आपको पैसे लेने हो तो मेरȣ इतनी सी बात मानो। आपके सौ
ǾपयɅ हɇ ?"
"हाँ"।
"तो सौ के कर दो साठ।"
"ठȤक है, साठ दे दो।"
"ठहरो, मुझे बात पूरȣ कर लेने दो। सौ के कर दो साठ.... आधा कर दो काट.. दस दɅगे...
दस छु ड़ायɅगे और दस के जोड़Ʌगे हाथ। अभी दुकान पर पहुँच जाओ।"
िमला Èया ? बिनया खाली हाथ लौट गया।
ऐसे हȣ मन कȧ जो इÍछाएँ होती हɇ, उसको कहɅगे Ǒक भाई ! इÍछाएँ पूरȣ करɅगे लेǑकन
अभी तो सौ कȧ साठ कर दे, और उसमɅ से आधा काट कर दे। दस इÍछाएँ तेरȣ पूरȣ करɅगे
धमा[नुसार आवँयकता के अनुसार। दस इÍछाओं कȧ तो कोई आवँयकता हȣ नहȣं है और शेष
दस से जोड़Ʌगे हाथ। अभी तो भजन मɅ लगɅगे, औरɉ कȧ आवँयकता पूरȣ करने मɅ लगɅगे।
जो दूसरɉ कȧ आवँयकता पूरȣ करने मɅ लगता है, उसकȧ Ǿिच अपने आप िमटती है और
आवँयकता पूरȣ होने लगती है। आपको पता है Ǒक जब सेठ का नौकर सेठ कȧ आवँयकताएँ
पूरȣ करने लगता है तो उसके रहने कȧ आवँयकता कȧ पूित[ सेठ के घर मɅ हो जाती है। उसकȧ
अÛन-वƸाǑद कȧ आवँयकताएँ पूरȣ होने लगती हɇ। सायवर अपने मािलक कȧ आवँयकता पूरȣ
करता है तो उसकȧ घर चलाने कȧ आवँयकतापूित[ मािलक करता हȣ है। Ǒफर वह आवँयकता
बढ़ा दे और ǒवलासी जीवन जीना चाहे तो गड़बड़ हो जायगी, अÛयथा उसकȧ आवँयकता जो है
उसकȧ पूित[ तो हो हȣ जाती है। आवँयकता पूित[ मɅ और Ǿिच कȧ िनवृǒƣ मɅ लग जाय तो
सायवर भी मुƠ हो सकता है, सेठ भी मुƠ हो सकता है, अनपढ़ भी मुƠ हो सकता है, िशǔ¢त
भी मुƠ हो सकता, िनध[न भी मुƠ हो सकता है, धनवान भी मुƠ हो सकता है, देशी भी मुƠ हो
सकता है, परदेशी भी मुƠ हो सकता है। अरे, डाकू भी मुƠ हो सकता है।
आपके पास £ान है, उस £ान का आदर करो। Ǒफर चाहे गंगा के Ǒकनारे बैठकर आदर
करो या यमुना के Ǒकनारे बैठकर आदर करो या समाज मɅ रहकर आदर करो। £ान का उपयोग
करने कȧ कला का नाम है स×संग।
सबके पास £ान है। वह £ानःवǾप चैतÛय हȣ सबका अपना आपा है। लेǑकन बुǒƨ के
ǒवकास का फक[ है। £ान तो मÍछर के पास भी है। बुǒƨ कȧ मंदता के कारण Ǿिचपूित[ मɅ हȣ
हम जीवन खच[ Ǒकये जाते हɇ। ǔजसको हम जीवन कहते हɇ, वह शरȣर हमारा जीवन नहȣं है।
वाःतव मɅ £ान हȣ हमारा जीवन है, चैतÛय आ×मा हȣ हमारा जीवन है।
ॐकार का जप करने से आपकȧ आवँयकतापूित[ कȧ योÊयता बढ़ती है और Ǿिच कȧ
िनवृǒƣ मɅ मदद िमलती है। इसिलए ॐकार (ूणव) मंऽ सवȾपǐर माना जाता है। हालांǑक संसारȣ
Ǻǒƴ से देखा जाय तो मǑहलाओं को एवं गृहǔःथयɉ को अके ला ॐकार का जप नहȣं करना
चाǑहए, ÈयɉǑक उÛहɉने Ǿिचयɉ को आवँयकता का जामा पहनाकर ऐसा ǒवःतार कर रखा है Ǒक
एकाएक अगर वह सब टूटने लगेगा तो वे लोग घबरा उठɅगे। एक तरफ अपनी पुरानी Ǿिच
खींचेगी और दूसरȣ तरफ अपनी मूलभूत आवँयकता – एकांत कȧ, आ×मसा¢ा×कार कȧ इÍछा
आकǒष[त करेगी। ूणव के अिधक जप से मुǒƠ कȧ इÍछा जोर मारेगी। इससे गृहःथी के इद[-
िगद[ जो Ǿिच पूित[ करने वाले मंडराते रहते हɇ, उन सबको धÈका लगेगा। इसिलए गृहǔःथयɉ को
कहते हɇ Ǒक अके ले ॐ का जप मत करो। ऋǒषयɉ ने Ǒकतना सूआम अÚययन Ǒकया है।
समाज को आपके ूेम कȧ, साÛ×वना कȧ, ःनेह कȧ और िनंकाम कम[ कȧ आवँयकता
है। आपके पास करने कȧ शǒƠ है तो उसे समाज कȧ आवँयकतापूित[ मɅ लगा दो। आपकȧ
आवँयकता माँ, बाप, गुǾ और भगवान पूरȣ कर दɅगे। अÛन, जल और वƸ आसानी से िमल
जायɅगे। पर टेरȣकोटन कपड़ा चाǑहए, पफ-पॉवडर चाǑहए तो यह Ǿिच है। Ǿिच के अनुसार जो
चीजɅ िमलती हɇ, वे हमारȣ हािन करती हɇ। आवँयकतानुसार चीजɅ हमारȣ तÛदुǾःती कȧ भी र¢ा
करती है। जो आदमी Ïयादा बीमार है, उसकȧ बुǒƨ सुमित नहȣं है।
चरक-संǑहता के रचियता ने अपने िशंय को कहा Ǒक तंदुǾःती के िलए भी बुǒƨ चाǑहए।
सामाǔजक जीवन जीने के िलए भी बुǒƨ चाǑहए और मरने के िलय भी बुǒƨ चाǑहए। मरते समय
भी अगर बुǒƨ का उपयोग Ǒकया जाय Ǒक, 'मौत हो रहȣ है इस देह कȧ, मɇ तो आ×मा चैतÛय
åयापक हूँ।' ॐकार का जप करके मौत का भी सा¢ी बन जायɅ। जो मृ×यु को भी देखता है
उसकȧ मृ×यु नहȣं होती। बोध को देखने वाले हो जाओ तो बोध शांत हो जायेगा। यह बुǒƨ का
उपयोग है। जैसे आप गाड़ȣ चलाते हो और देखते हुए चलाते हो तो खÔडे मɅ नहȣं िगरती और
आँख बÛद करके चलाते हो तो बचती भी नहȣं। ऐसे हȣ बोध आया और हमने बुǒƨ का उपयोग
नहȣं Ǒकया तो बह जायɅगे। काम, लोभ और मोहाǑद आयɅ और सतक[ रहकर बुǒƨ से काम नहȣं
िलया तो ये ǒवकार हमɅ बहा ले जायɅगे।
लोभ आये तो ǒवचारɉ Ǒक आǔखर कब तक इन पद-पदाथɟ को संभालते रहोगे।
आवँयकता तो यह है Ǒक बहुजन-Ǒहताय, बहुजन-सुखाय इनका उपयोग Ǒकया जाये और Ǿिच है
इनका अàबार लगाने कȧ। अगर Ǿिच अनुसार Ǒकया तो मुसीबतɅ पैदा कर लोगे। ऐसे हȣ
आवँयकता है कहȣं पर अनुशासन कȧ और आपने बोध कȧ फू फकार मार Ǒदया तो जाँच करो Ǒक
उस समय आपका ǿदय तपता तो नहȣं। सामने वाले का अǑहत हो जाये तो हो जाये ǑकÛतु
आपकȧ बात अǑडग रहे – यह बोध है। सामने वाला का Ǒहत हो, अǑहत तिनक भी न हो, अगर
यह भावना गहराई मɅ हो तो Ǒफर वह बोध नहȣं, अनुशासन है। अगर जलन महसूस होती है तो
बोध घुस गया। काम बुरा नहȣं है, बोध बुरा नहȣं है, लोभ-मोह और अहंकार बुरा नहȣं है।
धमा[नुकू ल सबकȧ आवँयकता है। अगर बुरा होता तो सृǒƴकता[ बनाता हȣ Èयɉ ? जीवन-ǒवकास
के िलए इनकȧ आवँयकता है। दुःख बुरा नहȣं है। िनÛदा, अपमान, रोग बुरा नहȣं है। रोग आता
है तो सावधान करता है Ǒक Ǿिचयाँ मत बढ़ाओ। बेपरवाहȣ मत करो। अपमान भी िसखाता है Ǒक
मान कȧ इÍछा है, इसिलए दुःख होता है। शुकदेव जी को मान मɅ Ǿिच नहȣं है, इसिलए कोई
लोग अपमान कर रहे हɇ Ǒफर भी उÛहɅ दुःख नहȣं होता। रहुगण राजा Ǒकतना अपमान करते हɇ,
ǑकÛतु जड़भरत शांतिचƣ रहते हɇ।
अपमान का दुःख बताता है Ǒक आपको मान मɅ Ǿिच है। दुःख का भाव बताता है Ǒक
सुख मɅ Ǿिच है। कृ पा करके अपनी Ǿिच परमा×मा मɅ हȣ रखो।
सुख, मान और यश मɅ नहȣं फँ सोगे तो आप ǒबãकु ल ःवतंऽ हो जाओगे। योगी का योग
िसƨ हो जायेगा, तपी का तप और भƠ कȧ भǒƠ सफल हो जायगी। बात अगर जँचती है तो
इसे अपनी बना लेना। तुम दूसरा कु छ नहȣं तो कम से कम अपने अनुभव का तो आदर करो।
आपको Ǿिच अनुसार भोग िमलते हɇ तो भोग भोगते-भोगते आप थक जाते हɇ Ǒक नहȣं ? ऊबान
आ जाती है Ǒक नहȣं ? ... तो इस £ान का आदर करो। योगमाग[ पर चलते हुए या
आवँकतानुसार 'बहुजनǑहताय-बहुजनसुखाय' काम करते हो तो आपको आनÛद आता है। आपका
मन एवं बुǒƨ ǒवकिसत होती है। यह भी आपका अनुभव है। स×संग के बाद आपको यह महसूस
होता है Ǒक बǑढ़या काय[ Ǒकया। शांित, सुख एवं सुमित िमली। ....तो अपने अनुभव कȧ बात को
आप पÈकȧ करके ǿदय कȧ गहराई मɅ उतार लो Ǒक Ǿिच कȧ िनवृǒƣ मɅ हȣ आनÛद है और
आवँयकता तो ःवतः पूरȣ हो जायेगी।
अनुबम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
ूािƯ और ूतीूािƯ और ूतीूािƯ और ूतीूािƯ और ूतीितितितित
जो अपने को शुƨ-बुƨ िनंकलंक नारायणःवǾप मानता है, उसके सारे कãमष िमट जाते
हɇ, ॄƺह×या जैसे पाप भी दूर हो जाते हɇ और अंतरतम चैतÛय ःवǾप का सुख ूकट होने लगता
है। देवताओं से वह पूǔजत होने लगता है। य¢, गंधव[, ǑकÛनर उसके दȣदार करके अपना भाÊय
बना लेते हɇ।
मुिनशादू[ल विशƵजी ौीरामचÛिजी से कहते हɇ- "जीव को अपना परम कãयाण करना हो
तो ूारàभ मɅ दो ूहर (छः घÖटे) आजीǒवका के िनिमƣ यƤ करे और दो ूहर साधुसमागम,
स×शाƸɉ का अवलोकन और परमा×मा का Úयान करɅ। ूारàभ मɅ जब आधा समय Úयान, भजन
और शाƸ ǒवचार मɅ लगायेगा तब उसकȧ अंतरचेतना जागेगी। Ǒफर उसे पूरा समय आ×म-
सा¢ा×कार या ईƳर-ूािƯ मɅ लगा देना चाǑहए।"
ौीकृ ंण ने गीता मɅ भी कहाः
यः×वा×मरितरेव ःयादा×मतृƯƱ मानवःयः×वा×मरितरेव ःयादा×मतृƯƱ मानवःयः×वा×मरितरेव ःयादा×मतृƯƱ मानवःयः×वा×मरितरेव ःयादा×मतृƯƱ मानवः ।।।।
आ×मÛयेव च संतुƴःतःय कायɍ न ǒवƭआ×मÛयेव च संतुƴःतःय कायɍ न ǒवƭआ×मÛयेव च संतुƴःतःय कायɍ न ǒवƭआ×मÛयेव च संतुƴःतःय कायɍ न ǒवƭतेतेतेते ।।।।।।।।
'जो मनुंय आ×मा मɅ हȣ रमण करने वाला और आ×मा मɅ हȣ तृƯ तथा आ×मा मɅ हȣ
संतुƴ हो, उसके िलए कोई कƣ[åय नहȣं है।'
(भगवɮ गीताः ३-१७)
आ×मरित, आ×मतृिƯ और आ×मूीित ǔजसको िमल गई, उसके िलए बाƻ जगत का कोई
कƣ[åय रहता नहȣं। उसका आ×मǒवौांित मɅ रहना हȣ सब जीवɉ का, राƶ का और ǒवƳ का
कãयाण करना है। जो पुǾष ǒवगतःपृहा है, ǒवगतदुःख है, ǒवगतÏवर है, उसके अǔःत×व माऽ से
वातावरण मɅ बहुत-बहुत मधुरता आती है। ूकृ ित उनके अनुकू ल होती है। तरतीो ूारÞधवेग से
उनके जीवन मɅ ूितकू लता आती है तो वे उǑƮÊन नहȣं होते। ऐसे ǔःथतू£ महापुǾष के िनकट
रहने वाले साधक को चाǑहए Ǒक वह Ǒदन का चार भाग कर दे। एक भाग वेदाÛत शाƸ का
ǒवचार करे। एक भाग परमा×मा के Úयान मɅ लगावे। परमा×मा का Úयान कै से ? 'मन को,
इǔÛियɉ को, िचƣ को जो चेतना दे रहा है वह चैतÛय आ×मा मɇ हूँ। मɇ वाःतव मɅ जÛमने-मरने
वाला जड़ शरȣर नहȣं हूँ। ¢ण ¢ण मɅ सुखी-दुखी होने वाला मɇ नहȣ हूँ। बार-बार बदलने वाली
बुǒƨ वृित मɇ नहȣ हूँ। देह मɅ अहं करके जीने वाला जीव मɇ नहȣं हूँ।अंहकार भी मɇ नहȣं हूँ। मɇ इन
सबसे परे, शुƨ-बुƨ सनातन स×य चैतÛय आ×मा हूँ। आनÛद ःवǾप हूँ, शांत ःवǾप हूँ। मɇ बोध
ःवǾप हूँ.... £ान ःवǾप हूँ।' जो ऐसा िचÛतन करता है वह वाःतव मɅ अपने ईƳर×व का िचंतन
करता है, अपने ॄƺ×व का िचंतन करता है। इसी िचÛतन मɅ िनमÊन रहकर अपने िचƣ को
ॄƺमय बना दे।
Ǒफर तीसरा ूहर संतसेवा, सदगुǾसेवा मɅ लगावे। आधी अǒवƭा तो सदगुǾ कȧ सेवा से हȣ
दूर हो जाती है। बाकȧ कȧ आधी अǒवƭा Úयान, जप और शाƸǒवचार इन तीन साधनɉ से दूर
करके जीव मुƠ हो जाता है।
बड़े मɅ बड़ा बÛधन है Ǒक अǒवƭा मɅ रस आ रहा है। इसिलए ईƳर ूािƯ के िलये
छटपटाहट नहȣं होती। अǒवƭा उसे कहते हɇ, जो अǒवƭमान वःतु हो।
वःतुएँ दो हɇ- एक अǒवघमान वःतु और दूसरȣ ǒवƭमान वःतु। अǒवƭमान वःतु ूतीत
होती है। ǒवƭमान वःतु ूाƯ होती है। जो ूतीत होती है, उसमɅ धोखा होता है और जो ूाƯ होती
है, उसमɅ पूण[ता होती है। जैसे, ःवÜन मɅ िभखारȣ को ूतीत होता है Ǒक मɇ राजा हूँ। इÛि को
ःवÜन आ जाय Ǒक मɇ िभखारȣ हूँ। ःवÜन मɅ िभखारȣ होना भी धोखा है, राजा होना भी धोखा है।
धोखे के समय ूतीित सÍची लगती है। ूतीित ऐसे ढंग से होती है Ǒक ूतीित ूािƯ लगती है।
िभखारȣ सोया है सड़ȣ-गली छत के नीचे फटȣ हुई गुदड़ȣ पर। ःवÜन मɅ हो गया राजा। तेजबहादुर
सोया है अपने महल मɅ और ःवÜन मɅ हो गया िभखारȣ। ǔजस समय िभखारȣ होने का ःवÜन
चालू है, उस समय तेजबहादुर को कोई कह दे Ǒक तू िभखारȣ नहȣं है, बादशाह है तो वह नहȣं
मानेगा, ÈयɉǑक ूतीित ूािƯ लगती है। वाःतǒवक ूािƯ हुई नहȣं इसिलए ूतीित ूािƯ लगती है।
वाःतǒवक ूािƯ Èया है ? वे दोनɉ ःवÜन से जाग जायɅ तो अपने को जान लɅ Ǒक वाःतǒवक Èया
हɇ।
नींद मɅ Ǒदखने वाली ःवÜन जगत कȧ माया Ǒहता नाम कȧ नाड़ȣ मɅ Ǒदखती है। जामत कȧ
माया ǒवता नाम कȧ नाड़ȣ मɅ Ǒदखती है। यह के वल ूतीित हो रहȣ है। ूतीित तब तक नहȣं
िमटती, जब तक ूािƯ नहȣं हुई। ूािƯ होती है िन×य वःतु कȧ। ूतीित होती है अिन×य वःतु
कȧ। 'मɇ M.B.B.S. हूँ' यह ूतीित है। मृ×यु का झटका आया, Ǒडमी ख×म हो गई। 'मɇ M.D. हूँ...
मɇ L.L.B. हूँ... मɇ उƭोगपित हूँ, मɇ बड़ा धनवान हूँ... मɇ कं गाल हूँ, मɇ पटेल हूँ... मɇ गुजराती
हूँ... मɇ िसंधी हूँ... मुझे यह समःया है... मुझे यह पाना है.. मुझे यह पकड़ना है.. मुझे यह
छोड़ना है..." ये सब ूतीित है। ूतीित जब तक स×य लगती रहेगी, ूतीित मɅ ूतीित का दश[न
नहȣं होगा, ूतीित मɅ ूािƯ का दश[न होगा, तब तक दुःखɉ का अंत नहȣं आयगा।
कभी न छू टे ǒपÖड दुःखɉ से।कभी न छू टे ǒपÖड दुःखɉ से।कभी न छू टे ǒपÖड दुःखɉ से।कभी न छू टे ǒपÖड दुःखɉ से।
ǔजसे ॄƺ का £ान नहȣं।।ǔजसे ॄƺ का £ान नहȣं।।ǔजसे ॄƺ का £ान नहȣं।।ǔजसे ॄƺ का £ान नहȣं।।
एक दुःख नहȣं, हजार दुःख िमटा दो, Ǒफर भी कोई न कोई दुःख रह जाता है। जब ूािƯ
होती है, तब हजार ǒवËन आ जायɅ Ǒफर भी उǑƮÊन नहȣं करते, सुख मɅ ःपृहा नहȣं कराते।
ूतीित होती है माया मɅ और ूािƯ होती है अपने परॄƺ परमा×मा-ःवभाव कȧ। ूाƯ होने
वाली एक हȣ चीज है, ूाƯ होने वाला एक हȣ तǂव है और वह है परमा×म-तǂव। उसकȧ हȣ
के वल ूािƯ होती है।
ूतीित होती है वृǒƣयɉ से।
आज 20 मई है। अगले वष[ कȧ 20 मई के Ǒदन आपको लगा होगा Ǒक, 'मुझे यह सुख
िमला.... मɇने यह खाया... वह ǒपया... सुबह मɅ चाय िमली.. दोपहर को भोजन िमला....' आǑद
आǑद। लेǑकन अब बताओ, उसमɅ से अब आपके पास कु छ है ? गत वष[ के कई महȣने कȧ २०
तारȣख को जो कु छ सुख-दुःख िमला, मान-अपमान िमला, अरे पूरे मई महȣने मɅ जो कु छ सुख-
दुःख, मान-अपमान िमले वे अभी हɇ ? वह सब ूतीित थी। सब ूतीत होकर बह गया। ूतीित
का सा¢ी Ǻƴा चैतÛय परमा×मा रह गया।
जो रह गया, वह जीवन है और जो बह गया, वह मृ×यु है। एक Ǒदन शरȣर भी बह
जायेगा मृ×यु कȧ धारा मɅ लेǑकन तुम रह जाओगे। अगर अपने को जानोगे तो सदा के िलए
िनबɍध नारायण ःवǾप मɅ ǔःथत हो जाओगे।
जो बाहर से िमलेगा, वह सब ूतीित माऽ होगा। शरȣर भी ूतीित माऽ है Ǒक 'मɇ फलाना
हूँ..... मɇ Ûयायाधीश हूँ......... मɇ उƭोगपित हूँ....' यह åयवहार काल मɅ के वल ूतीित है। 'मɇ
गरȣब हूँ...' यह ूतीित है।
जैसे ःवÜन कȧ चीजɉ को साथ मɅ लेकर आदमी जाग नहȣं सकता, ऐसे हȣ ूतीित को
सÍचा मानकर परमा×म-तǂव मɅ जाग नहȣं सकता। िशवजी पाव[ती से कहते हɇ-
उमा कहɉ मɇ अनुभव अपनाउमा कहɉ मɇ अनुभव अपनाउमा कहɉ मɇ अनुभव अपनाउमा कहɉ मɇ अनुभव अपना ।।।।
स×य हǐर भजन जगत सब सपनास×य हǐर भजन जगत सब सपनास×य हǐर भजन जगत सब सपनास×य हǐर भजन जगत सब सपना ।।।।।।।।
ःवÜन मɅ जो कु छ िमलता है, वह सचमुच मɅ ूाƯ होता है Ǒक िमलने कȧ माऽ ूतीित
होती है ? ूतीित होती है।
बचपन मɅ आपको ǔखलौने िमले थे, सुख-दुःख िमले थे, मान-अपमान िमला था वह ूाƯ
हुआ था Ǒक ूतीत हुआ था ? ूतीत हुआ था। कल जो कु छ सुख-दुःख िमला, वह भी ूतीत
हुआ। ऐसे हȣ आज भी जो कु छ िमलेगा, वह भी ूतीित माऽ होगा।
बचपन भी ूतीित, युवानी भी ूतीित, बुढ़ापा भी ूतीित तो जीवन भी ूतीित और मृ×यु
भी ूतीित। यह वाःतव मɅ ूतीित हो रहȣ है। इस ूतीित को सÍचा मान रहे हɇ.... ूािƯ मान
रहे हɇ, इसिलए ूािƯ पर परदा पड़ा है।
ूािƯ होती है परमा×मा कȧ। ूतीित होती है परमा×मा कȧ माया कȧ। जैसे जल के ऊपर
तरंगे उछलती हɇ, ऐसे हȣ ूािƯ कȧ सƣा से ूतीित कȧ तरंगे उछलती हɇ। तरंग को Ǒकतना भी
संभालकर रखो, लेǑकन तरंग तो तरंग हȣ है। ऐसे हȣ ूतीित को Ǒकतना भी संभालकर रखो,
ूतीित तो ूतीित हȣ है।
अब हमɅ Èया करना चाǑहए ?
ूतीित को जब ूतीित समझɅगे, तब अनुपम लाभ होगा। ूतीित को अगर ठȤक से
ूतीित मान िलया, ूतीित जान िलया तो ूािƯ हो जायेगी अथवा ूािƯ तǂव को ठȤक से जान
िलया तो ूतीित का आकष[ण छू ट जायेगा। ूािƯ मɅ Ǒटक गये तो ूतीित का आकष[ण छू ट
जायेगा।
ूािƯ होती है परमा×मा कȧ और ूतीित होती है माया कȧ। ूतीित मɅ स×यबुǒƨ होने से
उसका आकष[ण रहता है। उसको कहते हɇ वासना। वासना पूण[ करने मɅ कोई बड़ा आदमी ǒवËन
डालता है तो भय लगता है, छोटा आदमी ǒवËन डालता है तो बोध आता है और बराबरȣ का
आदमी ǒवËन डालता है तो ईंया[ होती है।
ूतीित कȧ वासना थोड़ȣ बहुत पूरȣ हुई तो 'और िमल जाय' ऐसी आशा बनती है। Ǒफर
'और िमले... और िमले....' ऐसे लोभ बनता है। ूतीित मɅ स×यबुǒƨ होने से हȣ आशा, तृंणा,
वासना, भय, बोध, ईंया[, उƮेग आǑद सारȣ मुसीबतɅ आती हɇ। ूतीित को स×य मानने मɅ, ूतीित
को ूािƯ मानने मɅ सारे दोष आते हɇ।
भगवान ौी कृ ंण अजु[न से कहते है-
दुःखेंवनुǑƮÊनमनाः सुखेषु ǒवगतःपृहः।दुःखेंवनुǑƮÊनमनाः सुखेषु ǒवगतःपृहः।दुःखेंवनुǑƮÊनमनाः सुखेषु ǒवगतःपृहः।दुःखेंवनुǑƮÊनमनाः सुखेषु ǒवगतःपृहः।
वीतरागभयबोधः ǔःथतधीमु[िनǾÍयते।।वीतरागभयबोधः ǔःथतधीमु[िनǾÍयते।।वीतरागभयबोधः ǔःथतधीमु[िनǾÍयते।।वीतरागभयबोधः ǔःथतधीमु[िनǾÍयते।।
'दुःखɉ कȧ ूािƯ होने पर ǔजसके मन मɅ उƮेग नहȣं होता, सुखɉ कȧ ूािƯ मɅ जो सव[था
िनःःपृह है तथा ǔजसके राग, भय और बोध नƴ हो गये है, ऐसा मुिन ǔःथरबुǒƨ कहा जाता है।'
(भगवɮ गीताः २.५६)
दुःख आये तो मन को उǑƮÊन मत करो। सुख कȧ ःपृहा मत करो।
मुिन माने जो सावधानी से मनन करता है Ǒक ूतीित मɅ कहȣं उलझ तो नहȣं रहा हूँ ?
जो छू टने वाला है, उसको सÍचा समझकर अछू ट से कहȣं बाहर तो नहȣं जा रहा हूँ ? अछू ट मɅ
Ǒटका हूँ या छू टने वाले मɅ उलझ रहा हूँ ? इस ूकार सावधानी से जो मनन करता है, उसकȧ
बुǒƨ ǔःथर हो जाती है। उसकȧ ू£ा ूािƯ मɅ ूितǒƵत हो जाती है, परमा×मामय बन जाती है।
भƠमाल मɅ एक कथा आती है।
अमरदास नाम के एक संत हो गये। वे जब तीन साल के थे, तब माँ कȧ गोद मɅ बैठे-बैठे
कु छ ूư पूछने लगेः
"माँ ! मɇ कौन हूँ ?"
बेटा ! तू मेरा बेटा है ?
"तेरा बेटा कहाँ है?"
माँ ने उसके िसर पर हाथ रखकर, उसके बाल सहलाते हुए कहाः "यह रहा मेरा बेटा।"
"ये तो िसर और बाल है।"
माँ ने दोनɉ गालɉ को ःपश[ करते हुए कहाः "यह है मेरा गुलड़ू।"
"ये तो गाल हɇ।"
हाथ को छू कर माँ ने कहाः "यह है मेरा बेटा।"
"ये तो हाथ है।"
अमरदास वाःतव मɅ गत जÛम के ूािƯ कȧ ओर चलने वाले साधक रहे हɉगे। इसीिलए
तीन साल कȧ उॆ मɅ ऐसा ूư उठा रहे थे। साधक का ǿदय तो पावन होता है। ǔजसका ǿदय
पावन होता है, वह आदमी अÍछा लगता है। पापी िचƣवाला आदमी आता है, उसको देखकर िचƣ
उǑƮÊन होता है। ौेƵ आ×मा आता है, पुÖया×मा आता है तो उसको देखकर ǿदय पुलǑकत होता
है। इसी बात को तुलसीदासजी ने इस ूकार कहा हैः
एक िमलत दाǾण दुःख देवǑहं।एक िमलत दाǾण दुःख देवǑहं।एक िमलत दाǾण दुःख देवǑहं।एक िमलत दाǾण दुःख देवǑहं।
दूसर ǒबछु ड़त ूाण हरȣदूसर ǒबछु ड़त ूाण हरȣदूसर ǒबछु ड़त ूाण हरȣदूसर ǒबछु ड़त ूाण हरȣ लेवǑहं।।लेवǑहं।।लेवǑहं।।लेवǑहं।।
बू र आदमी आता है तो िचƣ मɅ दुःख होने लगता है। सदगुणी, सÏजन जब हमसे
ǒबछु ड़ता है, दूर होता है, तब मानो हमारे ूाण िलये जा रहा है। अमरदास ऐसा हȣ मधुर बालक
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Ananya yog

  • 2. ूातः ःमरणीय पूÏयपादूातः ःमरणीय पूÏयपादूातः ःमरणीय पूÏयपादूातः ःमरणीय पूÏयपाद संत ौी आसारामजीसंत ौी आसारामजीसंत ौी आसारामजीसंत ौी आसारामजी बापू केबापू केबापू केबापू के स×संगस×संगस×संगस×संग----ूवचनूवचनूवचनूवचन अनÛय योगअनÛय योगअनÛय योगअनÛय योग पूÏय बापू का पावन सÛदेशपूÏय बापू का पावन सÛदेशपूÏय बापू का पावन सÛदेशपूÏय बापू का पावन सÛदेश हम धनवान हɉगे या नहȣं, यशःवी हɉगे या नहȣं, चुनाव जीतɅगे या नहȣं इसमɅ शंका हो सकती है परंतु भैया ! हम मरɅगे या नहȣं, इसमɅ कोई शंका है ? ǒवमान उड़ने का समय िनǔƱत होता है, बस चलने का समय िनǔƱत होता है, गाड़ȣ छू टने का समय िनǔƱत होता है परंतु इस जीवन कȧ गाड़ȣ छू टने का कोई िनǔƱत समय है? आज तक आपने जगत का जो कु छ जाना है, जो कु छ ूाƯ Ǒकया है.... आज के बाद जो जानोगे और ूाƯ करोगे, Üयारे भैया ! वह सब मृ×यु के एक हȣ झटके मɅ छू ट जायेगा, जाना अनजाना हो जायेगा, ूािƯ अूािƯ मɅ बदल जायेगी।
  • 3. अतः सावधान हो जाओ। अÛतमु[ख होकर अपने अǒवचल आ×मा को, िनजःवǾप के अगाध आनÛद को, शाƳत शांित को ूाƯ कर लो। Ǒफर तो आप हȣ अǒवनाशी आ×मा हो। जागो.... उठो.... अपने भीतर सोये हुए िनƱयबल को जगाओ। सव[देश, सव[काल मɅ सवȾƣम आ×मबल को अǔज[त करो। आ×मा मɅ अथाह सामØय[ है। अपने को दȣन-हȣन मान बैठे तो ǒवƳ मɅ ऐसी कोई सƣा नहȣं जो तुàहɅ ऊपर उठा सके । अपने आ×मःवǾप मɅ ूितǒƵत हो गये तो ǒऽलोकȧ मɅ ऐसी कोई हःती नहȣं जो तुàहɅ दबा सके । सदा ःमरण रहे Ǒक इधर-उधर भटकती वृǒƣयɉ के साथ तुàहारȣ शǒƠ भी ǒबखरती रहती है। अतः वृǒƣयɉ को बहकाओ नहȣं। तमाम वृǒƣयɉ को एकǒऽत करके साधना-काल मɅ आ×मिचÛतन मɅ लगाओ और åयवहार-काल मɅ जो काय[ करते हो उसमɅ लगाओ। दƣिचƣ होकर हर कोई काय[ करो। सदा शाÛत वृǒƣ धारण करने का अßयास करो। ǒवचारवÛत एवं ूसÛन रहो। जीवमाऽ को अपना ःवǾप समझो। सबसे ःनेह रखो। Ǒदल को åयापक रखो। आ×मिनƵा मɅ जगे हुए महापुǽषɉ के स×संग एवं स×साǑह×य से जीवन को भǒƠ एवं वेदाÛत से पुƴ एवं पुलǑकत करो। अनुबम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ िनवेदनिनवेदनिनवेदनिनवेदन हजारɉ-हजारɉ भƠजनɉ, ǔज£ासु साधकɉ के िलये ूातः ःमरणीय पूÏयपाद संत ौी आसारामजी बापू कȧ जीवन-उƨारक अमृतवाणी िन×य िनरÛतर बहा करती है। ǿदय कȧ गहराई से उठने वाली उनकȧ योगवाणी ौोताजनɉ के ǿदयɉ मɅ उतर जाती है, उÛहɅ ईƳरȣय आƽाद से मधुर बना देती है। पूÏयौी कȧ सहज बोल-चाल मɅ ताǔǂवक अनुभव, जीवन कȧ मीमांसा, वेदाÛत के अनुभूितमूलक मम[ ूकट हो जाया करते हɇ। उनका पावन दश[न और साǔÛनÚय पाकर हजारɉ- हजारɉ मनुंयɉ के जीवन-उƭान नवपãलǒवत-पुǔंपत हो जाते हɇ। उनकȧ अगाध £ानगंगा से कु छ आचमन लेकर ूःतुत पुःतक मɅ संकिलत करके आपकȧ सेवा मɅ उपǔःथत करते हुए हम आनǔÛदत हो रहे हɇ.....। ǒवनीतǒवनीतǒवनीतǒवनीत,,,, ौीौीौीौी योग वेदाÛत सेवा सिमितयोग वेदाÛत सेवा सिमितयोग वेदाÛत सेवा सिमितयोग वेदाÛत सेवा सिमित ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ अनुबमअनुबमअनुबमअनुबम पूÏय बापू का पावन सÛदेश
  • 4. िनवेदन अनÛय योग Ǿिच और आवँयकता ूािƯ और ूतीित जीवन-मीमांसा आǔःतक का जीवन दश[न मधु संचय अ£ान को िमटाओ कǐरये िनत स×संग को सावधान.....! तÈय[ताम ्..... मा कु तÈय[ताम् आǔःतक और नाǔःतक सुख-दुःख से लाभ उठाओ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ अनÛय योगअनÛय योगअनÛय योगअनÛय योग मिय चानÛययोगेन भǒƠरåयिभचाǐरणीमिय चानÛययोगेन भǒƠरåयिभचाǐरणीमिय चानÛययोगेन भǒƠरåयिभचाǐरणीमिय चानÛययोगेन भǒƠरåयिभचाǐरणी ।।।। ǒववƠदेशसेǒव×वरितज[नसंसǑदǒववƠदेशसेǒव×वरितज[नसंसǑदǒववƠदेशसेǒव×वरितज[नसंसǑदǒववƠदेशसेǒव×वरितज[नसंसǑद ।।।।।।।। "मुझ परमेƳर मɅ अनÛय योग के Ʈारा अåयिभचाǐरणी भǒƠ तथा एकाÛत और शुƨ देश मɅ रहने का ःवभाव और ǒवषयासƠ मनुंयɉ के समुदाय मɅ ूेम का न होना (यह £ान है)।" (भगवɮ गीताः १३-१०) अनÛय भǒƠ और अåयिभचाǐरणी भǒƠ अगर भगवान मɅ हो जाय, तो भगव×ूािƯ कǑठन नहȣं है। भगवान ूाणी माऽ का अपना आपा है। जैसे पितोता Ƹी अपने पित के िसवाय अÛय पुǾष मɅ पितभाव नहȣं रखती, ऐसे हȣ ǔजसको भगव×ूािƯ के िसवाय और कोई सार वःतु नहȣं Ǒदखती, ऐसा ǔजसका ǒववेक जाग गया है, उसके िलए भगव×ूािƯ सुगम हो जाती है। वाःतव मɅ, भगव×ूािƯ हȣ सार है। माँ आनÛदमयी कहा करती थी - "हǐरकथा हȣ कथा...... बाकȧ सब जगåयथा।" मेरे अनÛय योग Ʈारा अåयिभचाǐरणी भǒƠ का होना, एकाÛत ःथान मɅ रहने का ःवभाव होना और जन समुदाय मɅ ूीित न होना.... इस ूकार कȧ ǔजसकȧ भǒƠ होती है, उसे £ान मɅ Ǿिच होती है। ऐसा साधक अÚया×म£ान मɅ िन×य रमण करता है। तǂव£ान के अथ[ःवǾप परमा×मा को सब जगह देखता है। इस ूकार जो है, वह £ान है। इससे जो ǒवपरȣत है, वह अ£ान है।
  • 5. हǐररस को, हǐर£ान को, हǐरǒवौाǔÛत को पाये ǒबना ǔजसको बाकȧ सब åयथ[ åयथा लगती है, ऐसे साधक कȧ अनÛय भǒƠ जगती है। ǔजसकȧ अनÛय भǒƠ है भगवान मɅ, ǔजसका अनÛय योग हो गया है उसको जनसंपक[ मɅ Ǿिच नहȣं रहती। सामाÛय इÍछाओं को पूण[ करने मɅ, सामाÛय भोग भोगने मɅ जो जीवन नƴ करते है, ऐसे लोगɉ मɅ सÍचे भƠ को Ǿिच नहȣं होती। पहले Ǿिच हुई तब हुई, ǑकÛतु जब अनÛय भǒƠ िमली तो Ǒफर उपरामता आ जायेगी। åयवहार चलाने के िलए लोगɉ के साथ 'हूँ...हाँ...' कर लेगा, पर भीतर महसूस करेगा Ǒक यह सब जãदȣ िनपट जाय तो अÍछा। अनÛय भǒƠ जब ǿदय मɅ ूकट होती है, तब पहले का जो कु छ Ǒकया होता है वह बेगार-सा लगता है। एकाÛत देश मɅ रहने कȧ Ǿिच होती है। जन-संपक[ से वह दूर भागता है। आौम मɅ स×संग काय[बम, साधना िशǒवरɅ आǑद को जन-संसग[ नहȣं कहा जा सकता। जो लोग साधन-भजन के ǒवपरȣत Ǒदशा मɅ जा रहे हɇ, देहाÚयास बढ़ा रहे हɇ, उनका संसग[ साधक के िलए बाधक है। ǔजससे आ×म£ान िमलता है वह जनसंपक[ तो साधन माग[ का पोषक है। जन- साधारण के बीच साधक रहता है तो देह कȧ याद आती है, देहाÚयास बढ़ता है, देहािभमान बढ़ता है। देहािभमान बढ़ने पर साधक परमाथ[ तǂव से Íयुत हो जाता है, परम तǂव मɅ शीय गित नहȣं कर सकता। ǔजतना देहािभमान, देहाÚयास गलता है, उतना वह आ×मवैभव को पाता है। यहȣ बात ौीमɮ आƭ शंकराचाय[ ने कहȣः गिलते देहाÚयासे ǒव£ाते परमा×मिन।गिलते देहाÚयासे ǒव£ाते परमा×मिन।गिलते देहाÚयासे ǒव£ाते परमा×मिन।गिलते देहाÚयासे ǒव£ाते परमा×मिन। यऽ यऽ मनो याित तऽ तऽ समाधयः।।यऽ यऽ मनो याित तऽ तऽ समाधयः।।यऽ यऽ मनो याित तऽ तऽ समाधयः।।यऽ यऽ मनो याित तऽ तऽ समाधयः।। जब देहाÚयास गिलत हो जाता है, परमा×मा का £ान हो जाता है, तब जहाँ-जहाँ मन जाता है, वहाँ-वहाँ समािध का अनुभव होता है, समािध का आनÛद आता है। देहाÚयास गलाने के िलए हȣ सारȣ साधनाएँ हɇ। परमा×मा-ूािƯ के िलये ǔजसको तड़प होती है, जो अनÛय भाव से भगवान को भजता है, 'परमा×मा से हम परमा×मा हȣ चाहते हɇ.... और कु छ नहȣं चाहते.....' ऐसी अåयिभचाǐरणी भǒƠ ǔजसके ǿदय मɅ है, उसके ǿदय मɅ भगवान £ान का ूकाश भर देते हɇ। जो धन से सुख चाहते हɇ, वैभव से सुख चाहते हɇ, अथवा पǐरौम करके , साधना करके कु छ पाना चाहते हɇ वे लोग साधना और पǐरौम के बल पर रहते हɇ लेǑकन जो भगवान के बल पर भी भगवान को पाना चाहते हɇ, भगवान कȧ कृ पा से हȣ भगवान को पाना चाहते हɇ, ऐसे भƠ अनÛय भƠ हɇ। गोरा कु àहार भगवान का कȧत[न करते थे। कȧत[न करते-करते देहाÚयास भूल गये। िमÒटȣ रɉदते-रɉदते िमÒटȣ के साथ बालक भी रɉदा गया। पता नहȣं चला। पƤी कȧ िनगाह पड़ȣ। वह बोल उठȤः "आज के बाद मुझे ःपश[ मत करना।"
  • 6. "अÍछा ठȤक है....।" भगवान मɅ अनÛय भाव था तो पƤी नाराज हो गई Ǒफर भी Ǒदल को ठेस नहȣं पहुँची। ‘ःपश[ नहȣं करना...’ तो नहȣं करɅगे। पƤी को बड़ा पƱाताप हुआ Ǒक गलती हो गई। अब वंश कै से चलेगा ? अपने ǒपता से कहकर अपनी बहन कȧ शादȣ करवाई। सब ǒविध सàपÛन करके जब वर-वधू ǒवदा हो रहे थे, तब ǒपता ने अपने दामाद गोरा कु àहार से कहाः "मेरȣ पहली बेटȣ को जैसे रखा है, ऐसे हȣ इसको भी रखना।" "हाँ.. जो आ£ा।" भगवान से ǔजसका अनÛय योग है, वह तो ःवीकार हȣ कर लेगा। गोरा कु àहार दोनɉ पǔƤयɉ को समान भाव से देखने लगे। दोनɉ पǔƤयाँ दुःखी होने लगीं। अब इनको कै से समझाएं? तक[ -ǒवतक[ देकर पित को संसार मɅ लाना चाहती थीं लेǑकन गोरा कु àहार का अनÛय भाव भगवान मɅ जुड़ चुका था। आǔखर दोनɉ बहनɉ ने एक राǒऽ को अपने पित का हाथ पकड़कर जबरदःती अपने शरȣर तक लाया। गोरा कु àहार ने सोचा Ǒक मेरा हाथ अपǒवऽ हो गया। उÛहɉने हाथ को सजा कर दȣ। भगवान ने अनÛय भाव होना चाǑहए। अनÛय भाव माने : जैसे पितोता Ƹी और Ǒकसी पुǾष को पितभाव से नहȣं देखती ऐसे हȣ भƠ या साधक भी और Ǒकसी साधन से अपना कãयाण होगा और Ǒकसी åयǒƠ के बल से अपना मो¢ होगा ऐसा नहȣं सोचता । 'हमɅ तो भगवान कȧ कृ पा से भगवान के ःवǾप का £ान होगा तभी हमारा कãयाण होगा। भगवान कȧ कृ पा हȣ एकमाऽ सहारा है, इसके अलावा और Ǒकसी साधन मɅ हम नहȣं ǾकɅ गे.... हे ूभु ! हमɅ तो के वल तेरȣ कृ पा और तेरे ःवǾप कȧ ूािƯ चाǑहए.... और कु छ नहȣं चाǑहए।' भगवान पर जब ऐसा अनÛय भाव होता है तब भगवान कृ पा करके भƠ के अÛतःकरण कȧ पतɏ हटाने लगते हɇ। हमारा अपना आपा कोई गैर नहȣं है, दूर नहȣं है, पराया नहȣं है और भǒवंय मɅ िमलेगा ऐसा भी नहȣं है। वह अपना राम, अपना आपा अभी है, अपना हȣ है। इस ूकार का बोध सुनने कȧ और इस बोध मɅ ठहरने कȧ Ǿिच हो जायेगी। अनÛय भाव से भगवान का भजन यह पǐरणाम लाता है। अनÛय भाव माने अÛय-अÛय को देखे, पर भीतर से समझे Ǒक इन सबका अǔःतǂव एक भगवान पर हȣ आधाǐरत है। आँख अÛय को देखती है, कान अÛय को सुनते हɇ, ǔजƾा अÛय को चखती है, नािसका अÛय को सूँघती है, ×वचा अÛय को ःपश[ करती है। उसके सा¢ी Ǻƴा मन को जोड़ दो, तो मन एक है। मन के भी अÛय-अÛय ǒवचार हɇ। उनमɅ भी मन का अिधƵान, आधारभूत अनÛय चैतÛय आ×मा है। उसी आ×मा परमा×मा को पाना है। न मन कȧ चाल मɅ आना है न इǔÛियɉ के आकष[ण मɅ आना है। इस ूकार कȧ तरतीो ǔज£ासावाला भƠ, अनÛय योग करने वाला साधक हãकȧ Ǿिचयɉ और हãकȧ आसǒƠयɉ वाले लोगɉ से अपनी तुलना नहȣं करता।
  • 7. चैतÛय महाूभु को Ǒकसी ने पूछाः "हǐर का नाम एक बार लेने से Èया लाभ होता है ?" "एक बार अनÛय भाव से हǐर का नाम ले लɅगे तो सारे पातक नƴ हो जायɅगे।" "दूसरȣ बार लɅ तो ?" "दूसरȣ बार लɅगे तो हǐर का आनÛद ूकट होने लगेगा। नाम लो तो अनÛय भाव से लो। वैसे तो भीखमंगे लोग सारा Ǒदन हǐर का नाम लेते हɇ, ऐसɉ कȧ बात नहȣं है। अनÛय भाव से के वल एक बार भी हǐर का नाम ले िलया जाये तो सारे पातक नƴ हो जाएँ। लोग सोचते हɇ Ǒक हम भगवान कȧ भǒƠ करते हɇ Ǒफर भी हमारा बेटा ठȤक नहȣं होता है। अÛतया[मी भगवान देख रहे हɇ Ǒक यह तो बेटे का भगत है। 'हे भगवान ! मेरे इतने लाख Ǿपये हो जायɅ तो उÛहɅ ǑफÈस करके आराम से भजन कǾँ गा.....' अथवा 'मेरा इतना पेÛशन हो जाय, Ǒफर मɇ भजन कǾँ गा...' तो आौय ǑफÈस Ǒडपोǔजट का हुआ अथवा पेÛशन का हुआ। भगवान पर तो आिौत नहȣं हुआ। यह अनÛय भǒƠ नहȣं है। नरिसंह मेहता ने कहा है: भɉभɉभɉभɉय सुवाडुं भूखे माǾँ उपरथी माǾंय सुवाडुं भूखे माǾँ उपरथी माǾंय सुवाडुं भूखे माǾँ उपरथी माǾंय सुवाडुं भूखे माǾँ उपरथी माǾं मारमारमारमार ।।।। एटलुंएटलुंएटलुंएटलुं करतां हǐर भजे तो करȣ नाखुं िनहालकरतां हǐर भजे तो करȣ नाखुं िनहालकरतां हǐर भजे तो करȣ नाखुं िनहालकरतां हǐर भजे तो करȣ नाखुं िनहाल ।।।।।।।। जीवन मɅ कु छ असुǒवधा आ जाती है तो भगवान से ूाथ[ना करते हɇ- 'यह दुःख दूर को दो ूभु !' हम भगवान के नहȣं सुǒवधा के भगत हɇ। भगवान का उपयोग भी असुǒवधा हटाने के िलए करते हɇ। असुǒवधा हट गई, सुǒवधा हो गई तो उसमɅ लेपायमान हो जाते हɇ। सोचते हɇ, बाद मɅ भजन करɅगे। यह भगवान कȧ अनÛय भǒƠ नहȣं है। भगवान कȧ भǒƠ अनÛय भाव से कȧ जाय तो तǂव£ान का दश[न होने लगे। आ×म£ान ूाƯ करने कȧ ǔज£ासा जाग उठे। जन-संसग[ से ǒवरǒƠ होने लगे। एकाÛतवासो लघुभोजनाǑदएकाÛतवासो लघुभोजनाǑदएकाÛतवासो लघुभोजनाǑदएकाÛतवासो लघुभोजनाǑद । मौनं िनराशा करणावरोधः।।। मौनं िनराशा करणावरोधः।।। मौनं िनराशा करणावरोधः।।। मौनं िनराशा करणावरोधः।। मुनेरसोः संयमनं षडेमुनेरसोः संयमनं षडेमुनेरसोः संयमनं षडेमुनेरसोः संयमनं षडेतेतेतेते । िचƣूसादं जनयǔÛत शीयम ्। िचƣूसादं जनयǔÛत शीयम ्। िचƣूसादं जनयǔÛत शीयम ्। िचƣूसादं जनयǔÛत शीयम ् ।।।।।।।। 'एकाÛत मɅ रहना, अãपाहार, मौन, कोई आशा न रखना, इǔÛिय-संयम और ूाणायाम, ये छः मुिन को शीय हȣ िचƣूसाद कȧ ूािƯ कराते हɇ।' एकाÛतवास, इǔÛियɉ को अãप आहार, मौन, साधना मɅ त×परता, आ×मǒवचार मɅ ूवृǒƣ... इससे कु छ हȣ Ǒदनɉ मɅ आ×मूसाद कȧ ूािƯ हो जाती है। हमारȣ भǒƠ अनÛय नहȣं होती, इसिलए समय Ïयादा लग जाता है। कु छ यह कर लूं... कु छ यह देख लूं... कु छ यह पा लूं.... इस ूकार जीवन-शǒƠ ǒबखर जाती है। ःवामी रामतीथ[ एक कहानी सुनाया करते थेः एटलाÛटा नामक ǒवदेशी लड़कȧ दौड़ लगाने मɅ बड़ȣ तेज थी। उसने घोषणा कȧ थी Ǒक जो युवक मुझे दौड़ मɅ हरा देगा, मɇ अपनी संपǒƣ के साथ उसकȧ हो जाऊं गी। उसके साथ ःपधा[ मɅ कई युवक उतरे, लेǑकन सब हार गये। सब लोग हारकर लौट जाते थे।
  • 8. एक युवक ने अपने इƴदेव Ïयुपीटर को ूाथ[ना कȧ। इƴदेव ने उसे युǒƠ बता दȣ। दौड़ने का Ǒदन िनǔƱत Ǒकया गया। एटलाÛटा बड़ȣ तेजी से दौड़नेवाली लड़कȧ थी। यह युवक ःवÜन मɅ भी उसकȧ बराबरȣ नहȣं कर सकता था Ǒफर भी देव ने कु छ युǒƠ बता दȣ थी। दौड़ का ूारंभ हुआ। घड़ȣ भर मɅ एटलाÛटा कहȣं दूर िनकल गई। युवक पीछे रह गया। एटलाÛटा कु छ आगे गई तो माग[ मɅ सुवण[मुिाएं ǒबखरȣ हुई देखी । सोचा Ǒक युवक पीछे रह गया है। वह आवे, तब तक मुिाएं बटोर लूं। वह Ǿकȧ... मुिाएं इकÒठȤ कȧ। तब तक युवक नजदȣक आ गया। वह झट से आगे दौड़ȣ। उसको पीछे कर Ǒदया। और आगे गई तो माग[ मɅ और सुवण[मुिाएं देखी। वह भी ले ली। उसके पास वजन बढ़ गया। युवक भी तब तक नजदȣक आ गया था। Ǒफर लड़कȧ ने तेज दौड़ लगाई। आगे गई तो और सुवण[मुिाएँ Ǒदखी। उसने उसे भी ले ली। इस ूकार एटलाÛटा के पास बोझ बढ़ गया। दौड़ कȧ रÝतार कम हो गई। आǔखर वह युवक उससे आगे िनकल गया। सारȣ संपǒƣ और राःते मɅ बटोरȣ हुई सुवण[मुिाओं के साथ एटलाÛटा को उसने जीत िलया। एटलाÛटा तेज दौड़ने वाली लड़कȧ थी पर उसका Úयान सुवण[मुिाओं मɅ अटकता रहा। ǒवजेता होने कȧ योÊयता होते हुए भी अनÛय भाव से नहȣं दौड़ पायी, इससे वह हार गई। ऐसे हȣ मनुंय माऽ मɅ परॄƺ परमा×मा को पाने कȧ योÊयता है। परमा×मा ने मनुंय को ऐसी बुǒƨ इसीिलए दे रखी है Ǒक उसको आ×मा-परमा×मा के £ान कȧ ǔज£ासा जाग जाय, आ×मसा¢ा×कार हो जाय। रोटȣ कमाने कȧ और बÍचɉ को पालने कȧ बुǒƨ तो पशु-पǔ¢यɉ को भी दȣ है। मनुंय कȧ बुǒƨ सारे पशु-प¢ी-ूाणी जगत से ǒवशेष है ताǑक वह बुǒƨदाता का सा¢ा×कार कर सके । बुǒƨ जहाँ से सƣा-ःफू ित[ लाती है उस परॄƺ-परमा×मा का सा¢ा×कार करके जीव ॄƺ हो जाय। के वल कु सȸ-टेबल पर बैठकर कलम चलाने के िलए हȣ बुǒƨ नहȣं िमली है। बुǒƨपूव[क कलम तो भले चलाओ लेǑकन बुǒƨ का उपयोग के वल रोटȣ कमाकर पेट भरना हȣ नहȣं है। कलम भी चलाओ तो परमा×मा को ǐरझाने के िलये और कु दाली चलाओ तो भी उसीको ǐरझाने के िलए। अनुबम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ǾǾǾǾिच और आवँयकतािच और आवँयकतािच और आवँयकतािच और आवँयकता ऐसा कोई मनुंय नहȣं िमलेगा, ǔजसके पास कु छ भी योÊयता न हो, जो Ǒकसी को मानता न हो। हर मनुंय जǾर Ǒकसी न Ǒकसी को मानता है। ऐसा कोई मनुंय नहȣं ǔजसमɅ जानने कȧ ǔज£ासा न हो। वह कु छ न कु छ जानने कȧ कोिशश तो करता हȣ है। करने कȧ, मानने कȧ और जानने कȧ यह ःवतः िसƨ पूँजी है हम सबके पास। Ǒकसी के पास थोड़ȣ है तो Ǒकसी के पास Ïयादा है, लेǑकन है जǾर। खाली कोई भी नहȣं।
  • 9. हम लोग जो कु छ करते हɇ, अपनी Ǿिच के अनुसार करते हɇ। गलती Èया होती है Ǒक हम आवँयकता के अनुसार नहȣं करते। Ǿिच के अनुसार मानते हɇ, आवँयकता के अनुसार नहȣं मानते हɇ। Ǿिच के अनुसार जानते हɇ, आवँयकता के अनुसार नहȣं जानते । बस, यहȣ एक गलती करते हɇ। इसे अगर हम सुधार लɅ तो Ǒकसी भी ¢ेऽ मɅ आराम से, ǒबãकु ल मजे से सफल हो सकते हɇ। के वल यह एक बात कृ पा करके जान लो। एक होती है Ǿिच और दूसरȣ होती है आवँयकता। शरȣर को भोजन करने कȧ आवँयकता है। वह तÛदुǾःत कै से रहेगा, इसकȧ आवँयकता समझकर आप भोजन करɅ तो आपकȧ बुǒƨ शुƨ रहेगी। Ǿिच के अनुसार भोजन करɅगे तो बीमारȣ होगी। अगर Ǿिच कȧ आसǒƠ से बÛधायमान होकर आप भोजन करɅगɅ तो कभी ǽिच के अनुसार भोजन नहȣं िमलेगा और यǑद भोजन िमलेगा तो Ǿिच नहȣं होगी। ǔजसको Ǿिच हो और वःतु न हो तो Ǒकतना दुःख ! वःतु हो और Ǿिच न हो तो Ǒकतनी åयथ[ता ! खूब Úयान देना Ǒक हमारे पास जानने कȧ, मानने कȧ और करने कȧ शǒƠ है। इसको आवँयकता के अनुसार लगा दɅ तो हम आराम से मुƠ हो सकते हɇ और Ǿिच के अनुसार लगा दɅ तो एक जÛम नहȣं, करोड़ɉ जÛमɉ मɅ भी काम नहȣं बनता। कȧट, पतंग, साधारण मनुंयɉ मɅ और महापुǾषɉ मɅ इतना हȣ फक[ है Ǒक महापुǾष माँग के अनुसार करते हɇ और साधारण मनुंय Ǿिच के अनुसार करते हɇ। जीवन कȧ माँग है योग। जीवन कȧ माँग है शाƳत सुख। जीवन कȧ माँग है अखÖडता। जीवन कȧ माँग है पूण[ता। आप मरना नहȣं चाहते, यह जीवन कȧ माँग है। आप अपमान नहȣं चाहते। भले सह लेते हɇ पर चाहते नहȣं। यह जीवन कȧ माँग है। तो अपमान ǔजसका न हो सके , वह ॄƺ है। अतः वाःतव मɅ आपको ॄƺ होने कȧ माँग है। आप मुǒƠ चाहते हɇ। जो मुƠ ःवǾप है, उसमɅ अड़चन आती है काम, बोध आǑद ǒवकारɉ से। काम एष बोध एष रजोगुणसमुदकाम एष बोध एष रजोगुणसमुदकाम एष बोध एष रजोगुणसमुदकाम एष बोध एष रजोगुणसमुदभवभवभवभव: ।।।। महाशनो महापाÜमा ǒवƨयेनिमहमहाशनो महापाÜमा ǒवƨयेनिमहमहाशनो महापाÜमा ǒवƨयेनिमहमहाशनो महापाÜमा ǒवƨयेनिमह वैǐरणम ्।।वैǐरणम ्।।वैǐरणम ्।।वैǐरणम ्।। 'रजोगुण से उ×पÛन हुआ यह काम हȣ बोध है। यह बहुत खानेवाला अथा[त ् भोगɉ से कभी न अघाने वाला और बड़ा पापी है, इसको हȣ तू इस ǒवषय मɅ वैरȣ जान।' (भगवɮ गीताः ३-३७) काम और बोध महाशऽु हɇ और इसमɅ ःमृितॅम होता है, ःमृितॅम से बुǒƨनाश होता है। बुǒƨनाश से सव[नाश हो जाता है। अगर Ǿिच को पोसते हɇ तो ःमृित ¢ीण होती है। ःमृित ¢ीण हुई तो सव[नाश। एक लड़के कȧ िनगाह पड़ोस कȧ Ǒकसी लड़कȧ पर गई और लड़कȧ कȧ िनगाह लड़के पर गई। अब उनकȧ एक दूसरे के ूित Ǿिच हुई। ǒववाह योÊय उॆ है तो माँग भी हुई शादȣ कȧ।
  • 10. अगर हमने माँग कȧ ओर, कु ल िशƴाचार कȧ ओर Úयान नहȣं Ǒदया और लड़का लड़कȧ को ले भागा अथवा लड़कȧ लड़के को ले भागी तो मुँह Ǒदखाने के काǒबल नहȣं रहे। Ǒकसी होटल मɅ रहे, कभी कहाँ रहे – अखबारɉ मɅ नाम छपा गया, 'पुिलस पीछे पड़ेगी,' डर लग गया। इस ूकार Ǿिच मɅ अÛधे होकर कू दे तो परेशान हुए। अगर ǒववाह योÊय उॆ हो गई है, गृहःथ जीवन कȧ माँग है, एक दूसरे का ःवभाव िमलता है तो माँ-बाप से कह Ǒदया और माँ-बाप ने खुशी से समझौता करके दोनɉ कȧ शादȣ करा दȣ। यह हो गई माँग कȧ पूित[ और वह थी Ǿिच कȧ पूित[। Ǿिच कȧ पूित[ मɅ जब अÛधी दौड़ लगती है तो परेशानी होती है, अपनी और अपने ǐरँतेदारɉ कȧ बदनामी होती है। ...तो शादȣ करने मɅ बुǒƨ चाǑहए Ǒक Ǿिच कȧ पूित[ के साथ माँग कȧ पूित[ हो। माँग आसानी से पूरȣ हो सकती है और Ǿिच जãदȣ पूरȣ होती नहȣं। जब होती है तब िनवृƣ नहȣं होती, अǒपतु और गहरȣ उतरती है अथवा उबान और ǒवषाद मɅ बदलती है। Ǿिच के अनुसार सदा सब चीजɅ हɉगी नहȣं, Ǿिच के अनुसार सब लोग तुàहारȣ बात मानɅगɅ नहȣं। Ǿिच के अनुसार सदा तुàहारा शरȣर Ǒटके गा नहȣं। अÛत मɅ Ǿिच बच जायेगी, शरȣर चला जायगा। Ǿिच बच गई तो कामना बच गई। जातीय सुख कȧ कामना, धन कȧ कामना, सƣा कȧ कामना, सौÛदय[ कȧ कामना, वाहवाहȣ कȧ कामना, इन कामनाओं से सàमोह होता है। सàमोह से बुǒƨॅम होता है, बुǒƨॅम से ǒवनाश होता है। करने कȧ, मानने कȧ और जानने कȧ शǒƠ को अगर Ǿिच के अनुसार लगाते हɇ तो करने का अंत नहȣं होगा, मानने का अंत नहȣं होगा, जानने का अंत नहȣं होगा। इन तीनɉ योÊयताओं को आप अगर यथा योÊय जगह पर लगा दɅगे तो आपका जीवन सफल हो जायगा। अतः यह बात िसƨ है Ǒक आवँयकता पूरȣ करने मɅ शाƸ, गुǾ, समाज और भगवान आपका सहयोग करɅगे। आपकȧ आवँयकता पूरȣ करने मɅ ूकृ ित भी सहयोग देती है। बेटा माँ कȧ गोद मɅ आता है, उसकȧ आवँयकता होती है दूध कȧ। ूकृ ित सहयोग देकर दूध तैयार कर देती है। बेटा बड़ा होता है और उसकȧ आवँयकता होती है दाँतɉ कȧ तो दाँत आ जाते हɇ। मनुंय कȧ आवँयकता है हवा कȧ, जल कȧ, अÛन कȧ। यह आवँयकता आसानी से यथायोÊय पूरȣ हो जाती है। आपको अगर Ǿिच है शराब कȧ, अगर उस Ǿिच पूित[ मɅ लगे तो वह जीवन का ǒवनाश करती है। शरȣर के िलए शराब कȧ आवँयकता नहȣं है। Ǿिच कȧ पूित[ कƴसाÚय है और आवँयकता कȧ पूित[ सहजसाÚय है। आपके पास जो करने कȧ शǒƠ है, उसे Ǿिच के अनुसार न लगाकर समाज के िलए लगा दो। अथा[त ् तन को, मन को, धन को, अÛन को, अथवा कु छ भी करने कȧ शǒƠ को 'बहुजन Ǒहताय, बहुजन सुखाय' मɅ लगा दो। आपको होगा Ǒक अगर हम अपना जो कु छ है, वह समाज के िलए लगा दɅ तो Ǒफर हमारȣ आवँयकताएँ कै से पूरȣ हɉगी?
  • 11. आप समाज के काम मɅ आओगे तो आपकȧ सेवा मɅ सारा समाज त×पर रहेगा। एक मोटरसाइकल काम मɅ आती है तो उसको संभालने वाले होते हɇ Ǒक नहȣं ? घोड़ा गधा काम मɅ आता है तो उसको भी ǔखलाने वाले होते हɇ। आप तो मनुंय हो। आप अगर लोगɉ के काम आओगे तो हजार-हजार लोग आपकȧ आवँयकता पूरȣ करने के िलए लालाियत हो जायɅगे। आप ǔजतना-ǔजतना अपनी Ǿिच को छोड़ोगे, उतनी उतनी उÛनित करते जाओगे। जो लोग Ǿिच के अनुसार सेवा करना चाहते हɇ, उनके जीवन मे बरकत नहȣं आती। ǑकÛतु जो आवँयकता के अनुसार सेवा करते हɇ, उनकȧ सेवा Ǿिच िमटाकर योग बन जाती है। पितोता Ƹी जंगल मɅ नहȣं जाती, गुफा मɅ नहȣं बैठती। वह अपनी Ǿिच पित कȧ सेवा मɅ लगा देती है। उसकȧ अपनी Ǿिच बचती हȣ नहȣं है। अतः उसका िचƣ ःवयमेव योग मɅ आ जाता है। वह जो बोलती है, ऐसा ूकृ ित करने लगती है। तोटकाचाय[, पूरणपोडा, सलूका-मलूका, बाला-मरदाना जैसे सत ् िशंयɉ ने गुǾ कȧ सेवा मɅ, गुǾ कȧ दैवी कायɟ मɅ अपने करने कȧ, मानने कȧ और जानने कȧ शǒƠ लगा दȣ तो उनको सहज मɅ मुǒƠफल िमल गया। गुǾओं को भी ऐसा सहज मɅ नहȣं िमला था जैसा इन िशंयɉ को िमल गया। ौीमɮ आƭ शंकराचाय[ को गुǾूािƯ के िलए Ǒकतना Ǒकतना पǐरौम करना पड़ा ! कहाँ से पैदल याऽा करनी पड़ȣ ! £ानूािƯ के िलए भी कै सी-कै सी साधनाएँ करनी पड़ȣ ! जबǑक उनके िशंय तोटकाचाय[ ने तो के वल अपने गुǾदेव के बत[न माँजते-माँजते हȣ ूाƯåय पा िलया। अपनी करने कȧ शǒƠ को ःवाथ[ मɅ नहȣं अǒपतु परǑहत मɅ लगाओ तो करना तुàहारा योग हो जायेगा। मानने कȧ शǒƠ है तो ǒवƳिनयंता को मानो। वह परम सुǿद है और सव[ऽ है, अपना आपा भी है और ूाणी माऽ का आधार भी है। जो लोग अपने को अनाथ मानते हɇ, वे परमा×मा का अनादर करते हɇ। जो बहन अपने को ǒवधवा मानती है, वह परमा×मा का अनादर करती है। अरे ! जगतपित परमा×मा ǒवƭमान होते हुए तू ǒवधवा कै से हो सकती है ? ǒवƳ का नाथ साथ मɅ होते हुए तुम अनाथ कै से हो सकते हो ? अगर तुम अपने को अनाथ, असहाय, ǒवधवा इ×याǑद मानते हो तो तुमने अपने मानने कȧ शǒƠ का दुǾपयोग Ǒकया। ǒवƳपित सदा मौजूद है और तुम आँसू बहाते हो ? "मेरे ǒपता जी ःवग[वास हो गये.... मɇ अनाथ हो गया.........।" "गुǽजी आप चले जायɅगे... हम अनाथ हो जाएँगे....।" नहȣं नहȣं....। तू वीर ǒपता का पुऽ है। िनभ[य गुǾ का चेला है। तू तो वीरता से कह दे Ǒक, 'आप आराम से अपनी याऽा करो। हम आपकȧ उƣरǑबया करɅगे और आपके आदशɟ को, आपके ǒवचारɉ को समाज कȧ सेवा मɅ लगाएँगे ताǑक आपकȧ सेवा हो जाय।' यह सुपुऽ और सत ् िशंय का कƣ[åय होता है। अपने ःवाथ[ के िलये रोना, यह न पƤी के िलए ठȤक है न पित के िलए ठȤक है, न पुऽ के िलए ठȤक है न िशंय के िलए ठȤक है और न िमऽ के िलए ठȤक है।
  • 12. पैगंबर मुहàमद परमा×मा को अपना दोःत मानते थे, जीसस परमा×मा को अपना ǒपता मानते थे और मीरा परमा×मा को अपना पित मानती थी। परमा×मा को चाहे पित मानो चाहे दोःत मानो, चाहे ǒपता मानो चाहे बेटा मानो, वह है मौजूद और तुम बोलते हो Ǒक मेरे पास बेटा नहȣं है.... मेरȣ गोद खाली है। तो तुम ईƳर का अनादर करते हो। तुàहारȣ ǿदय कȧ गोद मɅ परमा×मा बैठा है, तुàहारȣ इǔÛियɉ कȧ गोद मɅ परमा×मा मɅ बैठा है। तुम मानते तो हो लेǑकन अपनी Ǿिच के अनुसार मानते हो, इसिलए रोते रहते हो। माँग के अनुसार मानते हो तो आराम पाते हो। मǑहला आँसू बहा रहȣ है Ǒक Ǿिच के अनुसार बेटा अपने पास नहȣं रहा। उसकȧ जहाँ आवँयकता थी, परमा×मा ने उसको वहाँ रख िलया ÈयɉǑक उसकȧ सृǒƴ के वल उस मǑहला कȧ गोद या उसका घर हȣ नहȣं है। सारȣ सृǒƴ, सारा ॄƺाÖड उस परमा×मा कȧ गोद मɅ है। तो वह बेटा कहȣं भी हो, वह परमा×मा कȧ गोद मɅ हȣ है। अगर हम Ǿिच के अनुसार मन को बहने देते हɇ तो दुःख बना रहता है। Ǿिच के अनुसार तुम करते रहोगे तो समय बीत जायगा, Ǿिच नहȣं िमटेगी। यह Ǿिच है Ǒक जरा-सा पा लɅ..... जरा सा भोग लɅ तो Ǿिच पूरȣ हो जाय। ǑकÛतु ऐसा नहȣं है। भोगने से Ǿिच गहरȣ उतर जायगी। जगत का ऐसा कोई पदाथ[ नहȣं जो Ǿिचकर हो और िमलता भी रहे। या तो पदाथ[ नƴ हो जाएगा या उससे उबान आ जाएगी। Ǿिच को पोसना नहȣं है, िनवृƣ करना है। Ǿिच िनवृƣ हो गई तो काम बन गया, Ǒफर ईƳर दूर नहȣं रहेगा। हम गलती यह करते हɇ Ǒक Ǿिच के अनुसार सब करते रहते हɇ। पाँच-दस åयǒƠ हȣ नहȣं, पूरा समाज इसी ढाँचे मɅ चल रहा है। अपनी आवँयकता को ठȤक से समझते नहȣं और Ǿिच पूरȣ करने मɅ लगे रहते हɇ। ईƳर तो अपना आपा है, अपना ःवǾप है। विशƵजी महाराज कहते हɇ- "हे रामजी ! फू ल, पƣे और टहनी तोड़ने मɅ तो पǐरौम है, ǑकÛतु अपने आ×मा-परमा×मा को जानने मɅ Èया पǐरौम है ? जो अǒवचार से चलते हɇ, उनके िलए संसार सागर तरना महा कǑठन है, अगàय है। तुम सरȣखे जो बुǒƨमान हɇ उनके िलए संसार सागर गोपद कȧ तरह तरना आसान है। िशंय मɅ जो सदगुण होने चाǑहए वे तुम मɅ हɇ और गुǾ मɅ जो सामØय[ होना चाǑहए वह हममɅ है। अब थोड़ा सा ǒवचार करो, तुरÛत बेड़ा पार हो जायगा।" हमारȣ आवँयकता है योग कȧ और जीते हɇ Ǿिच के अनुसार। कोई हमारȣ बात नहȣं मानता तो हम गम[ हो जाते हɇ, लड़ने-झगड़ने लगते हɇ। हमारȣ Ǿिच है अहं पोसने कȧ और आवँयकता है अहं को ǒवसǔज[त करने कȧ। Ǿिच है अनुशासन करने कȧ, कु छ ǒवशेष हुÈम चलाने कȧ और आवँयकता है सबमɅ छु पे हुए ǒवशेष को पाने कȧ। आप अपनी आवँयकताएँ पूरȣ करो, Ǿिच को पूरȣ मत करो। जब आवँयकताएँ पूरȣ करने मɅ लगɅगे तो Ǿिच िमटने लगेगी। Ǿिच िमट जायगी तो शहंशाह हो जाओगे। आपमɅ करने कȧ,
  • 13. मानने कȧ, जानने कȧ शǒƠ है। Ǿिच के अनुसार उसका उपयोग करते हो तो स×यानाश होता है। आवँयकता के अनुसार उसका उपयोग करोगे तो बेड़ा पार होगा। आवँयकता है अपने को जानने कȧ और Ǿिच है लंदन, Ûयूयाक[ , माःको मɅ Èया हुआ, यह जानने कȧ। 'इसने Èया Ǒकया... उसने Èया Ǒकया.... फलाने कȧ बारात मɅ Ǒकतने लोग थे.... उसकȧ बहू कै सी आयी....' यह सब जानने कȧ आवँयकता नहȣं है। यह तुàहारȣ Ǿिच है। अगर Ǿिच के अनुसार मन को भटकाते रहोगे तो मन जीǒवत रहेगा और आवँयकता के अनुसार मन का उपयोग करोगे तो मन अमनीभाव को ूाƯ होगा। उसके संकãप-ǒवकãप कम हɉगे। बुǒƨ को पǐरौम कम होगा तो वह मेधावी होगी। Ǿिच है आलःय मɅ और आवँयकता है ःफू ित[ कȧ। Ǿिच है थोड़ा करके Ïयादा लाभ लेने मɅ और आवँयकता है Ïयादा करके कु छ भी न लेने कȧ। जो भी िमलेगा वह नाशवान होगा, कु छ भी नहȣं लोगे तो अपना आपा ूकट हो जायगा। कु छ पाने कȧ, कु छ भोगने कȧ जो Ǿिच है, वहȣ हमɅ सवȶƳर कȧ ूािƯ से वंिचत कर देती है। आवँयकता है 'नेकȧ कर कु एँ मɅ फɅ क'। लेǑकन Ǿिच होती है, 'नेकȧ थोड़ȣ कǾँ और चमकूँ Ïयादा। बदȣ बहुत कǾँ और छु पाकर रखूँ।' इसीिलए राःता कǑठन हो गया है। वाःतव मɅ ईƳर- ूािƯ का राःता राःता हȣ नहȣं है, ÈयɉǑक राःता तब होता है जब कोई चीज वहाँ और हम यहाँ। दोनɉ के बीच मɅ दूरȣ हो। हकȧकत मɅ ईƳर ऐसा नहȣं है Ǒक हम यहाँ हɉ और ईƳर कहȣं दूर हो। आपके और ईƳर के बीच एक इंच का भी फासला नहȣं, एक बाल ǔजतना भी अंतर नहȣं लेǑकन अभागी Ǿिच ने आपको और ईƳर को पराया कर Ǒदया है। जो पराया संसार है, िमटने वाला शरȣर है, उसको अपना महसूस कराया। यह शरȣर पराया है, आपका नहȣं है। पराया शरȣर अपना लगता है। मकान है Ƀट-चूने-लÈकड़-प×थर का और पराया है लेǑकन Ǿिच कहती है Ǒक मकान मेरा है। ःवामी रामतीथ[ कहते हɇ- "हे मूख[ मनुंयɉ ! अपना धन, बल व शǒƠ बड़े-बड़े भवन बनाने मɅ मत खचȾ, Ǿिच कȧ पूित[ मɅ मत खचȾ। अपनी आवँयकता के अनुसार सीधा सादा िनवास ःथान बनाओ और बाकȧ का अमूãय समय जो आपकȧ असली आवँयकता है योग कȧ, उसमɅ लगाओ। ढेर सारȣ Ǒडजाइनɉ के वƸɉ कȧ कतारɅ अपनी अलमारȣ मɅ मत रखो लेǑकन तुàहारे Ǒदल कȧ अलमारȣ मɅ आने का समय बचा लो। ǔजतनी आवँयकता हो उतने हȣ वƸ रखो, बाकȧ का समय योग मɅ लग जायेगा। योग हȣ तुàहारȣ आवँयकता है। ǒवौाǔÛत तुàहारȣ आवँयकता है। अपने आपको जानना तुàहारȣ आवँयकता है। जगत कȧ सेवा करना तुàहारȣ आवँयकता है ÈयɉǑक जगत से शरȣर बना है तो जगत के िलए करोगे तो तुàहारȣ आवँयकता अपने आप पूरȣ हो जायगी। ईƳर को आवँयकता है तुàहारे Üयार कȧ, जगत को आवँयकता है तुàहारȣ सेवा कȧ और तुàहɅ आवँयकता है अपने आपको जानने कȧ।
  • 14. शरȣर को जगत कȧ सेवा मɅ लगा दो, Ǒदल मɅ परमा×मा का Üयार भर दो और बुǒƨ को अपना ःवǾप जानने मɅ लगा दो। आपका बेड़ा पार हो जायगा। यह सीधा गǔणत है। मानना, करना और जानना Ǿिच के अनुसार नहȣं बǔãक, आवँयकता के अनुसार हȣ हो जाना चाǑहए। आवँयकता पूरȣ करने मɅ नहȣं कोई पाप, नहȣं कोई दोष। Ǿिच पूरȣ करने मɅ तो हमɅ कई हथकं डे अपनाने पड़ते हɇ। जीवन खप जाता है ǑकÛतु Ǿिच ख×म नहȣं होती, बदलती रहती है। Ǿिचकर पदाथ[ आप भोगते रहɅ तो भोगने का सामØय[ कम हो जायगा और Ǿिच रह जायगी। देखने कȧ शǒƠ ख×म हो जाय और देखने कȧ इÍछा बनी रहे तो Ǒकतना दुःख होगा ! सुनने कȧ शǒƠ ख×म हो जाय और सुनने कȧ इÍछा बनी रहे तो Ǒकतना दुभा[Êय ! जीने कȧ शǒƠ ¢ीण हो जाय और जीने कȧ Ǿिच बनी रहे तो Ǒकतना दुःख होगा ! इसिलए मरते समय दुःख होता है। ǔजनकȧ Ǿिच नहȣं होती उन आ×मरामी पुǾषɉ को Èया दुःख ? ौीकृ ंण को देखते- देखते भींम ǒपतामह ने ूाण ऊपर चढ़ा Ǒदये। उÛहɅ मरने का कोई दुःख नहȣं। सूँघने कȧ Ǿिच बनी रहे और नाक काम न करे तो ? याऽा कȧ Ǿिच बनी रहे और पैर जवाब दे दɅ तो ? पैसɉ कȧ Ǿिच बनी रहे और पैसे न हɉ तो Ǒकतना दुःख ? वाहवाहȣ कȧ Ǿिच है और वाहवाहȣ न िमली तो ? अगर Ǿिच के अनुसार वाहवाहȣ िमल भी जाय तो Èया Ǿिच पूरȣ हो जायगी ? नहȣं, और Ïयादा वाहवाहȣ कȧ इÍछा होगी। हम जानते हȣ हɇ Ǒक ǔजसकȧ वाहवाहȣ होती है उसकȧ िनÛदा भी होती है। अतः वाहवाहȣ से Ǿिचपूित[ का सुख िमलता है तो िनÛदा से उतना हȣ दुःख होगा। और इतने हȣ िनÛदा करने वालɉ के ूित अÛयायकारȣ ǒवचार उठɅगे। अÛयायकारȣ ǒवचार ǔजस ǿदय मɅ उठɅगे, उसी ǿदय को पहले खराब करɅगे। अतः हम अपना हȣ नुकसान करɅगे। एक होता है अनुशासन, दूसरा होता है बोध। ǔजÛहɅ अपने सुख कȧ कोई Ǿिच नहȣं, जो सुख देना चाहते हɇ, ǔजÛहɅ अपने भोग कȧ कोई इÍछा नहȣं है, उनकȧ आवँयकता सहज मɅ पूरȣ होती है। जो दूसरɉ कȧ आवँयकता पूरȣ करने मɅ लगे हɇ, वे अगर डाँटते भी हɇ तो वह अनुशासन हो जाता है। जो Ǿिचपूित[ के िलए डाँटते हɇ वह बोध हो जाता है। आवँयकतापूित[ के िलए अगर ǒपटाई भी कर दȣ जाय तो भी ूसाद बन जाता है। माँ को आवँयकता है बेटे को दवाई ǒपलाने कȧ तो माँ थÜपड़ भी मारती है, झूठ भी बोलती है, गाली भी देती है Ǒफर भी उसे कोई पाप नहȣं लगता। दूसरा कोई आदमी अपनी Ǿिच पूित[ के िलए ऐसा हȣ åयवहार उसके बेटे से करे तो देखो, माँ या दूसरे लोग भी उसकȧ कै सी खबर ले लेते हɇ ! Ǒकसी कȧ आवँयकतापूित[ के िलए Ǒकया हुआ बोध भी अनुशासन बन जाता है। Ǿिच पूित[ के िलए Ǒकया हुआ बोध कई मुसीबतɅ खड़ȣ कर देता है। एक ǒवनोदȣ बात है। Ǒकसी जाट ने एक सूदखोर बिनये से सौ Ǿपये उधार िलये थे। काफȧ समय बीत जाने पर भी जब उसने पैसे नहȣं लौटाये तो बिनया अकु लाकर उसके पास वसूली के िलए गया।
  • 15. "भाई ! तू Þयाज मत दे, मूल रकम सौ Ǿपये तो दे दे। Ǒकतना समय हो गया ?" जाट घुरा[कर बोलाः "तुम मुझे जानते हो न ? मɇ कौन हूँ?" "इसीिलए तो कहता हूँ Ǒक Þयाज मत दो। के वल सौ Ǿपये दे दो।" "सौ-वौ नहȣं िमलɅगे। मेरा कहना मानो तो कु छ िमलेगा।" बिनये ने सोचा Ǒक खाली हाथ लौटने से बेहतर है, जो कु छ िमले वहȣ ले लूँ। अÍछा, तो तू ǔजतना चाहे उतना दे दे । जाट ने कहाः "देखो, मगर आपको पैसे लेने हो तो मेरȣ इतनी सी बात मानो। आपके सौ ǾपयɅ हɇ ?" "हाँ"। "तो सौ के कर दो साठ।" "ठȤक है, साठ दे दो।" "ठहरो, मुझे बात पूरȣ कर लेने दो। सौ के कर दो साठ.... आधा कर दो काट.. दस दɅगे... दस छु ड़ायɅगे और दस के जोड़Ʌगे हाथ। अभी दुकान पर पहुँच जाओ।" िमला Èया ? बिनया खाली हाथ लौट गया। ऐसे हȣ मन कȧ जो इÍछाएँ होती हɇ, उसको कहɅगे Ǒक भाई ! इÍछाएँ पूरȣ करɅगे लेǑकन अभी तो सौ कȧ साठ कर दे, और उसमɅ से आधा काट कर दे। दस इÍछाएँ तेरȣ पूरȣ करɅगे धमा[नुसार आवँयकता के अनुसार। दस इÍछाओं कȧ तो कोई आवँयकता हȣ नहȣं है और शेष दस से जोड़Ʌगे हाथ। अभी तो भजन मɅ लगɅगे, औरɉ कȧ आवँयकता पूरȣ करने मɅ लगɅगे। जो दूसरɉ कȧ आवँयकता पूरȣ करने मɅ लगता है, उसकȧ Ǿिच अपने आप िमटती है और आवँयकता पूरȣ होने लगती है। आपको पता है Ǒक जब सेठ का नौकर सेठ कȧ आवँयकताएँ पूरȣ करने लगता है तो उसके रहने कȧ आवँयकता कȧ पूित[ सेठ के घर मɅ हो जाती है। उसकȧ अÛन-वƸाǑद कȧ आवँयकताएँ पूरȣ होने लगती हɇ। सायवर अपने मािलक कȧ आवँयकता पूरȣ करता है तो उसकȧ घर चलाने कȧ आवँयकतापूित[ मािलक करता हȣ है। Ǒफर वह आवँयकता बढ़ा दे और ǒवलासी जीवन जीना चाहे तो गड़बड़ हो जायगी, अÛयथा उसकȧ आवँयकता जो है उसकȧ पूित[ तो हो हȣ जाती है। आवँयकता पूित[ मɅ और Ǿिच कȧ िनवृǒƣ मɅ लग जाय तो सायवर भी मुƠ हो सकता है, सेठ भी मुƠ हो सकता है, अनपढ़ भी मुƠ हो सकता है, िशǔ¢त भी मुƠ हो सकता, िनध[न भी मुƠ हो सकता है, धनवान भी मुƠ हो सकता है, देशी भी मुƠ हो सकता है, परदेशी भी मुƠ हो सकता है। अरे, डाकू भी मुƠ हो सकता है। आपके पास £ान है, उस £ान का आदर करो। Ǒफर चाहे गंगा के Ǒकनारे बैठकर आदर करो या यमुना के Ǒकनारे बैठकर आदर करो या समाज मɅ रहकर आदर करो। £ान का उपयोग करने कȧ कला का नाम है स×संग।
  • 16. सबके पास £ान है। वह £ानःवǾप चैतÛय हȣ सबका अपना आपा है। लेǑकन बुǒƨ के ǒवकास का फक[ है। £ान तो मÍछर के पास भी है। बुǒƨ कȧ मंदता के कारण Ǿिचपूित[ मɅ हȣ हम जीवन खच[ Ǒकये जाते हɇ। ǔजसको हम जीवन कहते हɇ, वह शरȣर हमारा जीवन नहȣं है। वाःतव मɅ £ान हȣ हमारा जीवन है, चैतÛय आ×मा हȣ हमारा जीवन है। ॐकार का जप करने से आपकȧ आवँयकतापूित[ कȧ योÊयता बढ़ती है और Ǿिच कȧ िनवृǒƣ मɅ मदद िमलती है। इसिलए ॐकार (ूणव) मंऽ सवȾपǐर माना जाता है। हालांǑक संसारȣ Ǻǒƴ से देखा जाय तो मǑहलाओं को एवं गृहǔःथयɉ को अके ला ॐकार का जप नहȣं करना चाǑहए, ÈयɉǑक उÛहɉने Ǿिचयɉ को आवँयकता का जामा पहनाकर ऐसा ǒवःतार कर रखा है Ǒक एकाएक अगर वह सब टूटने लगेगा तो वे लोग घबरा उठɅगे। एक तरफ अपनी पुरानी Ǿिच खींचेगी और दूसरȣ तरफ अपनी मूलभूत आवँयकता – एकांत कȧ, आ×मसा¢ा×कार कȧ इÍछा आकǒष[त करेगी। ूणव के अिधक जप से मुǒƠ कȧ इÍछा जोर मारेगी। इससे गृहःथी के इद[- िगद[ जो Ǿिच पूित[ करने वाले मंडराते रहते हɇ, उन सबको धÈका लगेगा। इसिलए गृहǔःथयɉ को कहते हɇ Ǒक अके ले ॐ का जप मत करो। ऋǒषयɉ ने Ǒकतना सूआम अÚययन Ǒकया है। समाज को आपके ूेम कȧ, साÛ×वना कȧ, ःनेह कȧ और िनंकाम कम[ कȧ आवँयकता है। आपके पास करने कȧ शǒƠ है तो उसे समाज कȧ आवँयकतापूित[ मɅ लगा दो। आपकȧ आवँयकता माँ, बाप, गुǾ और भगवान पूरȣ कर दɅगे। अÛन, जल और वƸ आसानी से िमल जायɅगे। पर टेरȣकोटन कपड़ा चाǑहए, पफ-पॉवडर चाǑहए तो यह Ǿिच है। Ǿिच के अनुसार जो चीजɅ िमलती हɇ, वे हमारȣ हािन करती हɇ। आवँयकतानुसार चीजɅ हमारȣ तÛदुǾःती कȧ भी र¢ा करती है। जो आदमी Ïयादा बीमार है, उसकȧ बुǒƨ सुमित नहȣं है। चरक-संǑहता के रचियता ने अपने िशंय को कहा Ǒक तंदुǾःती के िलए भी बुǒƨ चाǑहए। सामाǔजक जीवन जीने के िलए भी बुǒƨ चाǑहए और मरने के िलय भी बुǒƨ चाǑहए। मरते समय भी अगर बुǒƨ का उपयोग Ǒकया जाय Ǒक, 'मौत हो रहȣ है इस देह कȧ, मɇ तो आ×मा चैतÛय åयापक हूँ।' ॐकार का जप करके मौत का भी सा¢ी बन जायɅ। जो मृ×यु को भी देखता है उसकȧ मृ×यु नहȣं होती। बोध को देखने वाले हो जाओ तो बोध शांत हो जायेगा। यह बुǒƨ का उपयोग है। जैसे आप गाड़ȣ चलाते हो और देखते हुए चलाते हो तो खÔडे मɅ नहȣं िगरती और आँख बÛद करके चलाते हो तो बचती भी नहȣं। ऐसे हȣ बोध आया और हमने बुǒƨ का उपयोग नहȣं Ǒकया तो बह जायɅगे। काम, लोभ और मोहाǑद आयɅ और सतक[ रहकर बुǒƨ से काम नहȣं िलया तो ये ǒवकार हमɅ बहा ले जायɅगे। लोभ आये तो ǒवचारɉ Ǒक आǔखर कब तक इन पद-पदाथɟ को संभालते रहोगे। आवँयकता तो यह है Ǒक बहुजन-Ǒहताय, बहुजन-सुखाय इनका उपयोग Ǒकया जाये और Ǿिच है इनका अàबार लगाने कȧ। अगर Ǿिच अनुसार Ǒकया तो मुसीबतɅ पैदा कर लोगे। ऐसे हȣ आवँयकता है कहȣं पर अनुशासन कȧ और आपने बोध कȧ फू फकार मार Ǒदया तो जाँच करो Ǒक
  • 17. उस समय आपका ǿदय तपता तो नहȣं। सामने वाले का अǑहत हो जाये तो हो जाये ǑकÛतु आपकȧ बात अǑडग रहे – यह बोध है। सामने वाला का Ǒहत हो, अǑहत तिनक भी न हो, अगर यह भावना गहराई मɅ हो तो Ǒफर वह बोध नहȣं, अनुशासन है। अगर जलन महसूस होती है तो बोध घुस गया। काम बुरा नहȣं है, बोध बुरा नहȣं है, लोभ-मोह और अहंकार बुरा नहȣं है। धमा[नुकू ल सबकȧ आवँयकता है। अगर बुरा होता तो सृǒƴकता[ बनाता हȣ Èयɉ ? जीवन-ǒवकास के िलए इनकȧ आवँयकता है। दुःख बुरा नहȣं है। िनÛदा, अपमान, रोग बुरा नहȣं है। रोग आता है तो सावधान करता है Ǒक Ǿिचयाँ मत बढ़ाओ। बेपरवाहȣ मत करो। अपमान भी िसखाता है Ǒक मान कȧ इÍछा है, इसिलए दुःख होता है। शुकदेव जी को मान मɅ Ǿिच नहȣं है, इसिलए कोई लोग अपमान कर रहे हɇ Ǒफर भी उÛहɅ दुःख नहȣं होता। रहुगण राजा Ǒकतना अपमान करते हɇ, ǑकÛतु जड़भरत शांतिचƣ रहते हɇ। अपमान का दुःख बताता है Ǒक आपको मान मɅ Ǿिच है। दुःख का भाव बताता है Ǒक सुख मɅ Ǿिच है। कृ पा करके अपनी Ǿिच परमा×मा मɅ हȣ रखो। सुख, मान और यश मɅ नहȣं फँ सोगे तो आप ǒबãकु ल ःवतंऽ हो जाओगे। योगी का योग िसƨ हो जायेगा, तपी का तप और भƠ कȧ भǒƠ सफल हो जायगी। बात अगर जँचती है तो इसे अपनी बना लेना। तुम दूसरा कु छ नहȣं तो कम से कम अपने अनुभव का तो आदर करो। आपको Ǿिच अनुसार भोग िमलते हɇ तो भोग भोगते-भोगते आप थक जाते हɇ Ǒक नहȣं ? ऊबान आ जाती है Ǒक नहȣं ? ... तो इस £ान का आदर करो। योगमाग[ पर चलते हुए या आवँकतानुसार 'बहुजनǑहताय-बहुजनसुखाय' काम करते हो तो आपको आनÛद आता है। आपका मन एवं बुǒƨ ǒवकिसत होती है। यह भी आपका अनुभव है। स×संग के बाद आपको यह महसूस होता है Ǒक बǑढ़या काय[ Ǒकया। शांित, सुख एवं सुमित िमली। ....तो अपने अनुभव कȧ बात को आप पÈकȧ करके ǿदय कȧ गहराई मɅ उतार लो Ǒक Ǿिच कȧ िनवृǒƣ मɅ हȣ आनÛद है और आवँयकता तो ःवतः पूरȣ हो जायेगी। अनुबम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ूािƯ और ूतीूािƯ और ूतीूािƯ और ूतीूािƯ और ूतीितितितित जो अपने को शुƨ-बुƨ िनंकलंक नारायणःवǾप मानता है, उसके सारे कãमष िमट जाते हɇ, ॄƺह×या जैसे पाप भी दूर हो जाते हɇ और अंतरतम चैतÛय ःवǾप का सुख ूकट होने लगता है। देवताओं से वह पूǔजत होने लगता है। य¢, गंधव[, ǑकÛनर उसके दȣदार करके अपना भाÊय बना लेते हɇ। मुिनशादू[ल विशƵजी ौीरामचÛिजी से कहते हɇ- "जीव को अपना परम कãयाण करना हो तो ूारàभ मɅ दो ूहर (छः घÖटे) आजीǒवका के िनिमƣ यƤ करे और दो ूहर साधुसमागम,
  • 18. स×शाƸɉ का अवलोकन और परमा×मा का Úयान करɅ। ूारàभ मɅ जब आधा समय Úयान, भजन और शाƸ ǒवचार मɅ लगायेगा तब उसकȧ अंतरचेतना जागेगी। Ǒफर उसे पूरा समय आ×म- सा¢ा×कार या ईƳर-ूािƯ मɅ लगा देना चाǑहए।" ौीकृ ंण ने गीता मɅ भी कहाः यः×वा×मरितरेव ःयादा×मतृƯƱ मानवःयः×वा×मरितरेव ःयादा×मतृƯƱ मानवःयः×वा×मरितरेव ःयादा×मतृƯƱ मानवःयः×वा×मरितरेव ःयादा×मतृƯƱ मानवः ।।।। आ×मÛयेव च संतुƴःतःय कायɍ न ǒवƭआ×मÛयेव च संतुƴःतःय कायɍ न ǒवƭआ×मÛयेव च संतुƴःतःय कायɍ न ǒवƭआ×मÛयेव च संतुƴःतःय कायɍ न ǒवƭतेतेतेते ।।।।।।।। 'जो मनुंय आ×मा मɅ हȣ रमण करने वाला और आ×मा मɅ हȣ तृƯ तथा आ×मा मɅ हȣ संतुƴ हो, उसके िलए कोई कƣ[åय नहȣं है।' (भगवɮ गीताः ३-१७) आ×मरित, आ×मतृिƯ और आ×मूीित ǔजसको िमल गई, उसके िलए बाƻ जगत का कोई कƣ[åय रहता नहȣं। उसका आ×मǒवौांित मɅ रहना हȣ सब जीवɉ का, राƶ का और ǒवƳ का कãयाण करना है। जो पुǾष ǒवगतःपृहा है, ǒवगतदुःख है, ǒवगतÏवर है, उसके अǔःत×व माऽ से वातावरण मɅ बहुत-बहुत मधुरता आती है। ूकृ ित उनके अनुकू ल होती है। तरतीो ूारÞधवेग से उनके जीवन मɅ ूितकू लता आती है तो वे उǑƮÊन नहȣं होते। ऐसे ǔःथतू£ महापुǾष के िनकट रहने वाले साधक को चाǑहए Ǒक वह Ǒदन का चार भाग कर दे। एक भाग वेदाÛत शाƸ का ǒवचार करे। एक भाग परमा×मा के Úयान मɅ लगावे। परमा×मा का Úयान कै से ? 'मन को, इǔÛियɉ को, िचƣ को जो चेतना दे रहा है वह चैतÛय आ×मा मɇ हूँ। मɇ वाःतव मɅ जÛमने-मरने वाला जड़ शरȣर नहȣं हूँ। ¢ण ¢ण मɅ सुखी-दुखी होने वाला मɇ नहȣ हूँ। बार-बार बदलने वाली बुǒƨ वृित मɇ नहȣ हूँ। देह मɅ अहं करके जीने वाला जीव मɇ नहȣं हूँ।अंहकार भी मɇ नहȣं हूँ। मɇ इन सबसे परे, शुƨ-बुƨ सनातन स×य चैतÛय आ×मा हूँ। आनÛद ःवǾप हूँ, शांत ःवǾप हूँ। मɇ बोध ःवǾप हूँ.... £ान ःवǾप हूँ।' जो ऐसा िचÛतन करता है वह वाःतव मɅ अपने ईƳर×व का िचंतन करता है, अपने ॄƺ×व का िचंतन करता है। इसी िचÛतन मɅ िनमÊन रहकर अपने िचƣ को ॄƺमय बना दे। Ǒफर तीसरा ूहर संतसेवा, सदगुǾसेवा मɅ लगावे। आधी अǒवƭा तो सदगुǾ कȧ सेवा से हȣ दूर हो जाती है। बाकȧ कȧ आधी अǒवƭा Úयान, जप और शाƸǒवचार इन तीन साधनɉ से दूर करके जीव मुƠ हो जाता है। बड़े मɅ बड़ा बÛधन है Ǒक अǒवƭा मɅ रस आ रहा है। इसिलए ईƳर ूािƯ के िलये छटपटाहट नहȣं होती। अǒवƭा उसे कहते हɇ, जो अǒवƭमान वःतु हो। वःतुएँ दो हɇ- एक अǒवघमान वःतु और दूसरȣ ǒवƭमान वःतु। अǒवƭमान वःतु ूतीत होती है। ǒवƭमान वःतु ूाƯ होती है। जो ूतीत होती है, उसमɅ धोखा होता है और जो ूाƯ होती है, उसमɅ पूण[ता होती है। जैसे, ःवÜन मɅ िभखारȣ को ूतीत होता है Ǒक मɇ राजा हूँ। इÛि को ःवÜन आ जाय Ǒक मɇ िभखारȣ हूँ। ःवÜन मɅ िभखारȣ होना भी धोखा है, राजा होना भी धोखा है।
  • 19. धोखे के समय ूतीित सÍची लगती है। ूतीित ऐसे ढंग से होती है Ǒक ूतीित ूािƯ लगती है। िभखारȣ सोया है सड़ȣ-गली छत के नीचे फटȣ हुई गुदड़ȣ पर। ःवÜन मɅ हो गया राजा। तेजबहादुर सोया है अपने महल मɅ और ःवÜन मɅ हो गया िभखारȣ। ǔजस समय िभखारȣ होने का ःवÜन चालू है, उस समय तेजबहादुर को कोई कह दे Ǒक तू िभखारȣ नहȣं है, बादशाह है तो वह नहȣं मानेगा, ÈयɉǑक ूतीित ूािƯ लगती है। वाःतǒवक ूािƯ हुई नहȣं इसिलए ूतीित ूािƯ लगती है। वाःतǒवक ूािƯ Èया है ? वे दोनɉ ःवÜन से जाग जायɅ तो अपने को जान लɅ Ǒक वाःतǒवक Èया हɇ। नींद मɅ Ǒदखने वाली ःवÜन जगत कȧ माया Ǒहता नाम कȧ नाड़ȣ मɅ Ǒदखती है। जामत कȧ माया ǒवता नाम कȧ नाड़ȣ मɅ Ǒदखती है। यह के वल ूतीित हो रहȣ है। ूतीित तब तक नहȣं िमटती, जब तक ूािƯ नहȣं हुई। ूािƯ होती है िन×य वःतु कȧ। ूतीित होती है अिन×य वःतु कȧ। 'मɇ M.B.B.S. हूँ' यह ूतीित है। मृ×यु का झटका आया, Ǒडमी ख×म हो गई। 'मɇ M.D. हूँ... मɇ L.L.B. हूँ... मɇ उƭोगपित हूँ, मɇ बड़ा धनवान हूँ... मɇ कं गाल हूँ, मɇ पटेल हूँ... मɇ गुजराती हूँ... मɇ िसंधी हूँ... मुझे यह समःया है... मुझे यह पाना है.. मुझे यह पकड़ना है.. मुझे यह छोड़ना है..." ये सब ूतीित है। ूतीित जब तक स×य लगती रहेगी, ूतीित मɅ ूतीित का दश[न नहȣं होगा, ूतीित मɅ ूािƯ का दश[न होगा, तब तक दुःखɉ का अंत नहȣं आयगा। कभी न छू टे ǒपÖड दुःखɉ से।कभी न छू टे ǒपÖड दुःखɉ से।कभी न छू टे ǒपÖड दुःखɉ से।कभी न छू टे ǒपÖड दुःखɉ से। ǔजसे ॄƺ का £ान नहȣं।।ǔजसे ॄƺ का £ान नहȣं।।ǔजसे ॄƺ का £ान नहȣं।।ǔजसे ॄƺ का £ान नहȣं।। एक दुःख नहȣं, हजार दुःख िमटा दो, Ǒफर भी कोई न कोई दुःख रह जाता है। जब ूािƯ होती है, तब हजार ǒवËन आ जायɅ Ǒफर भी उǑƮÊन नहȣं करते, सुख मɅ ःपृहा नहȣं कराते। ूतीित होती है माया मɅ और ूािƯ होती है अपने परॄƺ परमा×मा-ःवभाव कȧ। ूाƯ होने वाली एक हȣ चीज है, ूाƯ होने वाला एक हȣ तǂव है और वह है परमा×म-तǂव। उसकȧ हȣ के वल ूािƯ होती है। ूतीित होती है वृǒƣयɉ से। आज 20 मई है। अगले वष[ कȧ 20 मई के Ǒदन आपको लगा होगा Ǒक, 'मुझे यह सुख िमला.... मɇने यह खाया... वह ǒपया... सुबह मɅ चाय िमली.. दोपहर को भोजन िमला....' आǑद आǑद। लेǑकन अब बताओ, उसमɅ से अब आपके पास कु छ है ? गत वष[ के कई महȣने कȧ २० तारȣख को जो कु छ सुख-दुःख िमला, मान-अपमान िमला, अरे पूरे मई महȣने मɅ जो कु छ सुख- दुःख, मान-अपमान िमले वे अभी हɇ ? वह सब ूतीित थी। सब ूतीत होकर बह गया। ूतीित का सा¢ी Ǻƴा चैतÛय परमा×मा रह गया। जो रह गया, वह जीवन है और जो बह गया, वह मृ×यु है। एक Ǒदन शरȣर भी बह जायेगा मृ×यु कȧ धारा मɅ लेǑकन तुम रह जाओगे। अगर अपने को जानोगे तो सदा के िलए िनबɍध नारायण ःवǾप मɅ ǔःथत हो जाओगे।
  • 20. जो बाहर से िमलेगा, वह सब ूतीित माऽ होगा। शरȣर भी ूतीित माऽ है Ǒक 'मɇ फलाना हूँ..... मɇ Ûयायाधीश हूँ......... मɇ उƭोगपित हूँ....' यह åयवहार काल मɅ के वल ूतीित है। 'मɇ गरȣब हूँ...' यह ूतीित है। जैसे ःवÜन कȧ चीजɉ को साथ मɅ लेकर आदमी जाग नहȣं सकता, ऐसे हȣ ूतीित को सÍचा मानकर परमा×म-तǂव मɅ जाग नहȣं सकता। िशवजी पाव[ती से कहते हɇ- उमा कहɉ मɇ अनुभव अपनाउमा कहɉ मɇ अनुभव अपनाउमा कहɉ मɇ अनुभव अपनाउमा कहɉ मɇ अनुभव अपना ।।।। स×य हǐर भजन जगत सब सपनास×य हǐर भजन जगत सब सपनास×य हǐर भजन जगत सब सपनास×य हǐर भजन जगत सब सपना ।।।।।।।। ःवÜन मɅ जो कु छ िमलता है, वह सचमुच मɅ ूाƯ होता है Ǒक िमलने कȧ माऽ ूतीित होती है ? ूतीित होती है। बचपन मɅ आपको ǔखलौने िमले थे, सुख-दुःख िमले थे, मान-अपमान िमला था वह ूाƯ हुआ था Ǒक ूतीत हुआ था ? ूतीत हुआ था। कल जो कु छ सुख-दुःख िमला, वह भी ूतीत हुआ। ऐसे हȣ आज भी जो कु छ िमलेगा, वह भी ूतीित माऽ होगा। बचपन भी ूतीित, युवानी भी ूतीित, बुढ़ापा भी ूतीित तो जीवन भी ूतीित और मृ×यु भी ूतीित। यह वाःतव मɅ ूतीित हो रहȣ है। इस ूतीित को सÍचा मान रहे हɇ.... ूािƯ मान रहे हɇ, इसिलए ूािƯ पर परदा पड़ा है। ूािƯ होती है परमा×मा कȧ। ूतीित होती है परमा×मा कȧ माया कȧ। जैसे जल के ऊपर तरंगे उछलती हɇ, ऐसे हȣ ूािƯ कȧ सƣा से ूतीित कȧ तरंगे उछलती हɇ। तरंग को Ǒकतना भी संभालकर रखो, लेǑकन तरंग तो तरंग हȣ है। ऐसे हȣ ूतीित को Ǒकतना भी संभालकर रखो, ूतीित तो ूतीित हȣ है। अब हमɅ Èया करना चाǑहए ? ूतीित को जब ूतीित समझɅगे, तब अनुपम लाभ होगा। ूतीित को अगर ठȤक से ूतीित मान िलया, ूतीित जान िलया तो ूािƯ हो जायेगी अथवा ूािƯ तǂव को ठȤक से जान िलया तो ूतीित का आकष[ण छू ट जायेगा। ूािƯ मɅ Ǒटक गये तो ूतीित का आकष[ण छू ट जायेगा। ूािƯ होती है परमा×मा कȧ और ूतीित होती है माया कȧ। ूतीित मɅ स×यबुǒƨ होने से उसका आकष[ण रहता है। उसको कहते हɇ वासना। वासना पूण[ करने मɅ कोई बड़ा आदमी ǒवËन डालता है तो भय लगता है, छोटा आदमी ǒवËन डालता है तो बोध आता है और बराबरȣ का आदमी ǒवËन डालता है तो ईंया[ होती है। ूतीित कȧ वासना थोड़ȣ बहुत पूरȣ हुई तो 'और िमल जाय' ऐसी आशा बनती है। Ǒफर 'और िमले... और िमले....' ऐसे लोभ बनता है। ूतीित मɅ स×यबुǒƨ होने से हȣ आशा, तृंणा, वासना, भय, बोध, ईंया[, उƮेग आǑद सारȣ मुसीबतɅ आती हɇ। ूतीित को स×य मानने मɅ, ूतीित को ूािƯ मानने मɅ सारे दोष आते हɇ।
  • 21. भगवान ौी कृ ंण अजु[न से कहते है- दुःखेंवनुǑƮÊनमनाः सुखेषु ǒवगतःपृहः।दुःखेंवनुǑƮÊनमनाः सुखेषु ǒवगतःपृहः।दुःखेंवनुǑƮÊनमनाः सुखेषु ǒवगतःपृहः।दुःखेंवनुǑƮÊनमनाः सुखेषु ǒवगतःपृहः। वीतरागभयबोधः ǔःथतधीमु[िनǾÍयते।।वीतरागभयबोधः ǔःथतधीमु[िनǾÍयते।।वीतरागभयबोधः ǔःथतधीमु[िनǾÍयते।।वीतरागभयबोधः ǔःथतधीमु[िनǾÍयते।। 'दुःखɉ कȧ ूािƯ होने पर ǔजसके मन मɅ उƮेग नहȣं होता, सुखɉ कȧ ूािƯ मɅ जो सव[था िनःःपृह है तथा ǔजसके राग, भय और बोध नƴ हो गये है, ऐसा मुिन ǔःथरबुǒƨ कहा जाता है।' (भगवɮ गीताः २.५६) दुःख आये तो मन को उǑƮÊन मत करो। सुख कȧ ःपृहा मत करो। मुिन माने जो सावधानी से मनन करता है Ǒक ूतीित मɅ कहȣं उलझ तो नहȣं रहा हूँ ? जो छू टने वाला है, उसको सÍचा समझकर अछू ट से कहȣं बाहर तो नहȣं जा रहा हूँ ? अछू ट मɅ Ǒटका हूँ या छू टने वाले मɅ उलझ रहा हूँ ? इस ूकार सावधानी से जो मनन करता है, उसकȧ बुǒƨ ǔःथर हो जाती है। उसकȧ ू£ा ूािƯ मɅ ूितǒƵत हो जाती है, परमा×मामय बन जाती है। भƠमाल मɅ एक कथा आती है। अमरदास नाम के एक संत हो गये। वे जब तीन साल के थे, तब माँ कȧ गोद मɅ बैठे-बैठे कु छ ूư पूछने लगेः "माँ ! मɇ कौन हूँ ?" बेटा ! तू मेरा बेटा है ? "तेरा बेटा कहाँ है?" माँ ने उसके िसर पर हाथ रखकर, उसके बाल सहलाते हुए कहाः "यह रहा मेरा बेटा।" "ये तो िसर और बाल है।" माँ ने दोनɉ गालɉ को ःपश[ करते हुए कहाः "यह है मेरा गुलड़ू।" "ये तो गाल हɇ।" हाथ को छू कर माँ ने कहाः "यह है मेरा बेटा।" "ये तो हाथ है।" अमरदास वाःतव मɅ गत जÛम के ूािƯ कȧ ओर चलने वाले साधक रहे हɉगे। इसीिलए तीन साल कȧ उॆ मɅ ऐसा ूư उठा रहे थे। साधक का ǿदय तो पावन होता है। ǔजसका ǿदय पावन होता है, वह आदमी अÍछा लगता है। पापी िचƣवाला आदमी आता है, उसको देखकर िचƣ उǑƮÊन होता है। ौेƵ आ×मा आता है, पुÖया×मा आता है तो उसको देखकर ǿदय पुलǑकत होता है। इसी बात को तुलसीदासजी ने इस ूकार कहा हैः एक िमलत दाǾण दुःख देवǑहं।एक िमलत दाǾण दुःख देवǑहं।एक िमलत दाǾण दुःख देवǑहं।एक िमलत दाǾण दुःख देवǑहं। दूसर ǒबछु ड़त ूाण हरȣदूसर ǒबछु ड़त ूाण हरȣदूसर ǒबछु ड़त ूाण हरȣदूसर ǒबछु ड़त ूाण हरȣ लेवǑहं।।लेवǑहं।।लेवǑहं।।लेवǑहं।। बू र आदमी आता है तो िचƣ मɅ दुःख होने लगता है। सदगुणी, सÏजन जब हमसे ǒबछु ड़ता है, दूर होता है, तब मानो हमारे ूाण िलये जा रहा है। अमरदास ऐसा हȣ मधुर बालक