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Module No १
ह िंदी का पाठ्यक्रम, ध्येय तथा
स्वरुप ।
अमोल उबाले
ह िंदी भाषा का स्वरुप।
(कालखिंड की दृष्टीसे )आहदकाल,मध्यकाल,
आधुनिककाल ।
प्रस्ताविा
• ह िंदी शब्द की उत्पति 'सिन्धु' िे जुडी ै। 'सिन्धु' 'सििंध' नदी को
क िे ै। सिन्धु नदी के आि-पाि का क्षेत्र सिन्धु प्रदेश क लािा
ै। ििंस्कृ ि शब्द 'सिन्धु' ईरातनयों के िम्पकक में आकर ह न्दू या
ह िंद ो गया। ईरातनयों द्वारा उच्चाररि ककया गए इि ह िंद शब्द
में ईरानी भाषा का 'एक' प्रत्यय लगने िे 'ह न्दीक' शब्द बना ै
जजिका अर्क ै 'ह िंद का'। यूनानी शब्द 'इिंडडका' या अिंग्रेजी शब्द
'इिंडडया' इिी 'ह न्दीक' के ी ववकसिि रूप ै।
• ह िंदी का िाह त्य 1000 ईिवी िे प्राप्ि ोिा ै। इििे पूवक प्राप्ि िाह त्य अपभ्रिंश में ै इिे
ह िंदी की पूवक पीहिका माना जा िकिा ै। आधुतनक भाषाओिं का जन्म अपभ्रिंश के ववसभन्न
रूपों िे इि प्रकार ुआ ै :
अपभ्रिंश - आधुतनक भाषाएिं
शौरिेनी - पजचचमी ह िंदी, राजस्र्ानी, प ाडी , गुजरािी
पैशाची - ल िंदा, पिंजाबी
ब्राचड - सििंधी
म ाराष्ट्री - मरािी
मगधी - बब ारी, बिंगला, उडीया, अिसमया
• पजचचमी ह िंदी - खडी बोली या कौरवी, बब्रज, ररयाणवी, बुन्देल, कन्नौजी
पूवी ह िंदी - अवधी, बघेली, छत्तीिगढ़ी
राजस्र्ानी - पजचचमी राजस्र्ानी (मारवाडी) पूवी राजस्र्ानी
प ाडी - पजचचमी प ाडी, मध्यविी प ाडी (कु माऊिं नी-गढ़वाली)
बब ारी - भोजपुरी, मागधी, मैथर्ली
ह िंदी भाषा के तीि कालखिंड
आहदकाल
आधुनिककाल
मध्यकाल
आहदकाल (1000-1500)
• अपने प्रारिंसभक दौर में ह िंदी िभी बािों में अपभ्रिंश के ब ुि तनकट र्ी
इिी अपभ्रिंश िे ह िंदी का जन्म ुआ ै। आहद अपभ्रिंश में अ, आ, ई,
उ, उ ऊ, ऐ, औ के वल य ी आि स्वर र्े।ऋ ई, औ, स्वर इिी अवथध
में ह िंदी में जुडे । प्रारिंसभक, 1000 िे 1100 ईिवी के आि-पाि िक
ह िंदी अपभ्रिंश के िमीप ी र्ी। इिका व्याकरण भी अपभ्रिंश के
िामान काम कर र ा र्ा। धीरे-धीरे पररविकन ोिे ुए और 1500
ईिवी आिे-आिे ह िंदी स्वििंत्र रूप िे खडी ुई। 1460 के आि-पाि
देश भाषा में िाह त्य िजकन प्रारिंभ ो चुका ो चुका र्ा। इि अवथध
में दो ा, चौपाई ,छप्पय दो ा, गार्ा आहद छिंदों में रचनाएिं ुई ै। इि
िमय के प्रमुख रचनाकार गोरखनार्, ववद्यापति, नरपति नाल ,
चिंदवरदाई, कबीर आहद ै।
आहदकाल (रचिाये)
दो ा गाथाछप्पय दो ाचौपाई
आहदकाल (रचिाकार )
गोरखिाथ
चिंदवरदाई
कबीर
ववद्यापनत,
िरपनत िाल
दो ा कबीर
• दो ा माबत्रक अद्कधिम छिंद ै। इिके प ले और िीिरे चरण में 13 िर्ा दूिरे
और चौर्े चरण में 11 मात्राएिं ोिी ैं। इि प्रकार प्रत्येक दल में 24 मात्राएिं ोिी
ैं। दूिरे और चौर्े चरण के अिंि में लघु ोना आवचयक ै। दो ा िवकवप्रय छिंद
ै।कबीर के दो ों का ििंकलन।
दुुःख में सुममरि सब करे सुख में करै ि कोय।
जो सुख में सुममरि करे दुुःख का े को ोय ॥(13)
बडा ुआ तो क्या ुआ जैसे पेड़ खजूर।
पिंथी को छाया ि ी फल लागे अनत दूर ॥(14)
साधु ऐसा चाह ए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गह र ै थोथा देई उडाय॥
चौपाई तुलसीदास
• चौपाई माबत्रक िम छन्द का एक भेद ै। प्राकृ ि िर्ा अपभ्रिंश के 16
मात्रा के वणकनात्मक छन्दों के आधार पर ववकसिि ह न्दी का िवकवप्रय
और अपना छन्द ै। गोस्वामी िुलिीदाि ने रामचररिमानि में
चौपाई छन्द का ब ुि अच्छा तनवाक ककया ै। चौपाई में चार चरण
ोिे ैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ ोिी ैं िर्ा अन्ि में गुरु ोिा
ै।
बिंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचच सुबास सरस अिुरागा॥
अममय मूररमय चूरि चारू। समि सकल भव रुज पररवारू॥
छप्पय दो ा
• छप्पय माबत्रक ववषम छन्द ै। 'प्राकृ िपैंगलम्'[1] में इिका लक्षण
और इिके भेद हदये गये ैं।
• छप्पय अपभ्रिंश और ह न्दी में िमान रूप िे वप्रय र ा ै। इिका
प्रयोग ह न्दी के अनेक कववयों ने ककया
। चन्द[2], िुलिी[3], के शव[4], नाभादाि [5], भूषण [6], मतिराम [7], िू
दन [8], पद्माकर [9] िर्ा जोधराज म्मीर रािो ने इि छन्द का
प्रयोग ककया ै।
"डडगनत उववि अनत गुववि, सवि पब्बे समुद्रसर।
ब्याल बचधर तेह काल, बबकल हदगपाल चराचर।
हदग्गयन्द लरखरत, परत दसकण्ठ मुक्खभर।
सुर बबमाि ह म भािु, भािु सिंघहटत परस्पर।
चौंकक बबरिंचच शिंकर सह त, कोल कमठ अह कलमल्यौ।
ब्रह्मण्ड खण्ड ककयो चण्ड धुनि, जबह िं राम मशव धिु दल्यौ॥"[10]
गाथा
• वैहदक िाह त्य का य म त्वपूणक शब्द ऋग्वेद की ििंह िा में गीि
या मिंत्र के अर्क में प्रयुक्ि ुआ ै (ऋग्वेद 8. 32.1, 8.71.14)। 'गै'
(गाना) धािु िे तनष्ट्पन्न ोने के कारण गीि ी इिका
व्युत्पवत्तलभ्य िर्ा प्राचीनिम अर्क प्रिीि ोिा ै।
१. स्िुति।
२. व चलोक जजिमें स्वर का तनयम न ो।
३. प्राचीन काल की एक प्रकार की ऐति ासिक रचना जजिमें लोगों के दान, यज्ञाहद का वणकन
ोिा र्ा।
४. आयाक नाम का वृवत्त।
५. एक प्रकार की प्राचीन भाषा जजिमें ििंस्कृ ि के िार् क ीिं क ीिं पाली भाषा के ववकृ ि शब्द भी
समले र िे ैं।
६. चलोक।
७. गीि।
८. कर्ा। वृत्ताि। ाल।
९. बार प्रकार के बौद्ध शास्त्रों में चौर्ा।
१०. पारसियों के कारण धमकग्रिंर् का एक भेद। जैिे,—गार्ा अह्रवैति गार्ा उष्ट्टवैति इत्याहद।
मध्यकाल -(1500-1800 तक)
• इि अवथध में ह िंदी में ब ुि पररविकन ुए। देश पर मुगलों का शािन
ोने के कारन उनकी भाषा का प्रभाव ह िंदी पर पडा। पररणाम य
ुआ की फारिी के लगभग 3500 शब्द, अरबी के 2500 शब्द, पचिों
िे 50 शब्द, िुकी के 125 शब्द ह िंदी की शब्दावली में शासमल ो
गए। यूरोप के िार् व्यापार आहद िे ििंपकक बढ़ र ा र्ा। पररणाम
स्वरूप पुिकगाली, स्पेनी, फ्ािंिीिी और अिंग्रेजी के शब्दों का िमावेश
ह िंदी में ुआ। मुगलों के आथधपत्य का प्रभाव भाषा पर हदखाई पडने
लगा र्ा। मुगल दरबार में फारिी पढ़े-सलखे ववद्वानों को नौकररयािं
समली र्ी पररणामस्वरूप पढ़े-सलखे लोग ह िंदी की वाक्य रचना
फारिी की िर करने लगे। इि अवथध िक आिे-आिे अपभ्रिंश का
पूरा प्रभाव ह िंदी िे िमाप्ि ो गया जो आिंसशक रूप में ज ािं क ीिं शेष
र्ा व भी ह िंदी की प्रकृ ति के अनुिार ढलकर ह िंदी का ह स्िा बन
र ा र्ा।
मध्यकाल -(1500-1800 तक)
• इि अवथध में ह िंदी के स्वर्णकम िाह त्य का िृजन ुआ। भजक्ि
आिंदोलन ने देश की जनिा की मनोभावना को प्रभाववि ककया।
भजक्ि कववयों में अनेक ववद्वान र्े जो ित्िम मुक्ि भाषा का प्रयोग
कर र े र्े। राम और कृ ष्ट्ण जन्म स्र्ान की ब्रज भाषा में काव्य रचना
की गई, जो इि काल के िाह त्य की मुख्यधारा मानी जािी ैं। इिी
अवथध में दर्खनी ह िंदी का रूप िामने आया। वपिंगल, मैथर्ली और
खडी बोली में भी रचनाएिं सलखी जा र ी र्ी। इि काल के मुख्य
कववयों में म ाकवव िुलिीदाि, ििंि िूरदाि, ििंि मीराबाई, मसलक
मो म्मद जायिी, बब ारी, भूषण ैं। इिी कालखिंड में रचा गया
'रामचररिमानि' जैिा ग्रन्र् ववचव में ववख्याि ुआ।
मध्यकाल (रचिाये)
वपिंगल मैचथली
मध्यकाल (रचिाकार )
तुलसीदास
ममलक
मो म्मद
जायसी
सिंत मीराबाई
सिंत सूरदास
बब ारी
भूषण
वपिंगल
• वपिंगल नामक एक भाषा-शैली का जन्म पूवी राजस्र्ान में, ब्रज क्षेत्रीय भाषा-शैली
के उपकरणों को ग्र ण करिे ुआ र्ा। इि भाषा में चारण परिंपरा के
श्रेष्ट्ि िाह त्य की रचना ुई। राजस्र्ान के अनेक चारण कववयों ने इि नाम का
उल्लेख ककया ै।
• 'वपिंगल' शब्द राजस्र्ान और ब्रज के िजम्मसलि क्षेत्र में ववकसिि और चारणों में
प्रचसलि ब्रजी की एक शैली के सलए प्रयुक्ि ुआ ै। वपिंगल का
ििंबिंध शौरिेनी अपभ्रिंश और उिके मध्यविी क्षेत्र िे ै। िूरजमल ने इिका
क्षेत्र हदल्ली और ग्वासलयर के बीच माना ै। इि प्रकार पीछे राजस्र्ान िे
इि शब्द का अतनवायक लगाव न ीिं र ा। य शब्द 'ब्रजभाषा वाचक ो गया। गुरु
गोवविंद सििं के ववथचत्र नाटक में भाषा वपिंगल दी कर्न समलिा ै। इििे इिका
ब्रजभाषा िे अभेद स्पष्ट्ट ो जािा ै।
मैचथली
मैथर्ली भारि के उत्तरी बब ार और नेपाल के िराई क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा ै।
य ह न्द आयक पररवार की िदस्य ै। इिका प्रमुख स्रोि ििंस्कृ ि भाषा ै जजिके
शब्द "ित्िम" वा "िद्भव" रूप में मैथर्ली में प्रयुक्ि ोिे ैं।
मैथर्ली मुख्यया उत्तर-पूवक बब ार की भाषा ै। भारि के िाि जजलों में
(दरभिंगा, मुजफ्फरपुर, मुिंगेर, भागलपुर, ि रिा, पूर्णकया और पटना) और नेपाल के
पाँच जजलों में (रो िाि, िरला ी, िप्िरी, मो िरी और मोरिंग) य बोली जािी
ै। [1]
बँगला, अिसमया और ओडडया के िार् िार् इिकी उत्पवत्त मागधी प्राकृ ि िे ुई ै।
कु छ अिंशों में ये बिंगला और कु छ अिंशों में ह िंदी िे समलिी जुलिी ै।
आधुनिककाल (1800 िे अब िक )
• ह िंदी का आधुतनक काल देश में ुए अनेक पररविकनों का िाक्षी ै।
परििंत्र में र िे ुए देशवािी इिके ववरुद्ध खडे ोने का प्रयाि कर र े
र्े। अिंग्रेजी का प्रभाव देश की भाषा और ििंस्कृ ति पर हदखाई पडने
लगा। अिंग्रेजी शब्दों का प्रचलन ह िंदी के िार् बढ़ने लगा।
मुगलकालीन व्यवस्र्ा िमाप्ि ोने िे अरबी, फारिी के शब्दों के
प्रचलन में थगरावट आई। फारिी िे स्वीकार क, ख, ग, ज, फ ध्वतनयों
का प्रचलन ह िंदी में िमाप्ि ुआ। अपवादस्वरूप क ीिं-क ीिं ज और फ
ध्वतन शेष बची। क, ख, ग ध्वतनयािं क, ख, ग में बदल गई। इि पूरे
कालखिंड को 1800 िे 1850 िक और कफर 1850 िे 1900 िक िर्ा
1900 का 1910 िक और 1950 िे 2000 िक ववभाजजि ककया जा
िकिा ै।
आधुनिककाल (1800 िे अब िक )
• ििंवि 1830 में जन्मे मुिंशी िदािुख लाल तनयाज ने ह िंदी खडी बोली
को प्रयोग में सलया। खडी बोली उि िमय भी अजस्ित्व में र्ी। खडी
बोली या कौरवी का उद्भव शौरिेनी अपभ्रिंश के उत्तरी रूप िे ुआ ै।
इिका क्षेत्र दे रादून का मैदानी भाग, ि ारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरुि
, हदल्ली बबजनौर ,रामपुर ,मुरादाबाद ै। इि बोली में पयाकप्ि लोक
गीि और लोक कर्ाएिं मौजूद ैं। खडी बोली पर ी उदूक, ह न्दुस्िानी
और दक्खनी ह िंदी तनभकर करिी ै। मुिंशी िदा िुखलाल तनयाज के
आलावा इिंशा अल्ला खान इिी अवथध के लेखक ै। इनकी रानी
के िकी की क ानी पुस्िक प्रसिद्ध ै। लल्लूलाल, इि काल खिंड के
एक और प्रसिद्ध लेखक ैं। इनका जन्म ििंवि 1820 में ुआ र्ा
कोलकािा के फोटक ववसलयम कॉलेज के अध्यापक जॉन थगलकिस्ट के
अनुरोध पर लल्लूलाल जी ने पुस्िक 'प्रेम िागर' खडी बोली में सलखी
र्ी।
आधुनिककाल (1800 िे अब िक )
• प्रेम िागर के आलावा सििं ािन बत्तीिी, बेिाल पचीिी, शकुिं िला
नाटक भी इनकी पुस्िकें ैं जो खडी बोली में, ब्रज और उदूक के समथश्रि
रूप में ैं। इिी कालखिंड के एक और लेखक िदल समश्र ैं। इनकी
नथचके िोपाख्यान पुस्िक प्रसिद्ध ै। िदल समश्र ने अरबी और
फारिी के शब्दों का प्रयोग न के बराबर ककया ै। खडी बोली में सलखी
गई इि पुस्िक में ििंस्कृ ि के शब्द अथधक ैं। ििंवि 1860 िे 1914
के बीच के िमय में कालजयी कृ तियािं प्राय: न ीिं समलिी। 1860 के
आिपाि िक ह िंदी गद्य प्राय: अपना तनजचचि स्वरुप ग्र ण कर चुका
र्ा।
आधुनिककाल (1800 िे अब िक )
• इिका लाभ लेने के सलए अिंग्रेजी पादररयों ने ईिाई धमक के प्रचार-प्रिार के सलए
बाईबल का अनुवाद खडी बोली में ककया यद्यवप इनका लक्ष्य अपने धमक का प्रचार-
प्रिार करना र्ा। िर्ावप इिका लाभ ह िंदी को समला देश की िाधारण जनिा अरबी-
फारिी समथश्रि भाषा में अपने पौरार्णक आख्यानों को क िी और िुनिी र्ी। इन
पादररयों ने भी भाषा के इिी समथश्रि रूप का प्रयोग ककया। अब िक 1857 का प ला
स्वििंत्रिा युद्ध लडा चुका र्ा अिः अिंगरेजी शािकों की कू टनीति के ि ारे ह िंदी के
माध्यम िे बाइबबल के धमक उपदेशों का प्रचार-प्रिार खूब ो र ा र्ा। भारिेंदु
ररचचिंद्र ने ह िंदी नवजागरण की नीिंव रखी। उन् ोंने अपनें नाटकों, कवविाओिं,
क ाविों और ककस्िागोई के माध्यम िे ह िंदी भाषा के उत्र्ान के सलए खूब काम
ककया। अपने पत्र 'कवववचनिुधा' के माध्यम िे ह िंदी का प्रचार-प्रिार ककया।
गद्य में िदल समश्र, िदािुखलाल,लल्लू लाल आहद लेखकों ने ह िंदी खडीबोली को
स्र्ावपि करने का काम ककया। भारिेंदु ररचचिंद्र ने कवविा को ब्रज भाषा िे मुक्ि
ककया उिे जीवन के यर्ार्क िे जोडा।
आधुनिककाल (1800 िे अब िक )
• िन 1866 की अवथध के लेखकों में पिंडडि बद्रीनारायण चौधरी, पिंडडि प्रिाप
नारायण समश्रल बाबू िोिा राम, िाकु र जगमो न सििं , पिंडडि बाल कृ ष्ट्ण भट्ट,
पिंडडि के शवदाि भट्ट ,पिंडडि अजम्बकादत्त व्याि, पिंडडि राधारमण गोस्वामी आहद
आिे ैं। ह िंदी भाषा और िाह त्य को परमाजजकि करने के उद्देचय िे इि कालखिंड में
अनेक पत्र-पबत्रकाओिं का प्रकाशन प्रारिंभ ुआ। इनमें ररचचन्द्रचजन्द्रका, ह न्दी
बिंगभाषी, उथचिवक्िा, भारि समत्र, िरस्विी, हदनकर प्रकाश आहद।
आधुनिककाल (रचिाये)
िाटकों कववताओिं
क ावतों ककस्सागोई
मध्यकाल (रचिाकार )
पिंडडत
बद्रीिारायण
चौधरी
पिंडडत बाल
कृ ष्ण भट्ट
ठाकु र
जगमो ि मसिं
पिंडडत प्रताप
िारायण ममश्रल
बाबू तोता राम
पिंडडत
राधारमण
गोस्वामी
पिंडडत
अम्म्बकादत्त
व्यास
िाटक
• िाटक, काव्य का एक रूप ै। जो रचना श्रवण द्वारा ी
न ीिं अवपिु दृजष्ट्ट द्वारा भी दशककों के हृदय में रिानुभूति
करािी ै उिे िाटक या दृचय-काव्य क िे ैं। नाटक में
श्रव्य काव्य िे अथधक रमणीयिा ोिी ै। श्रव्य काव्य
ोने के कारण य लोक चेिना िे अपेक्षाकृ ि अथधक
घतनष्ट्ि रूप िे ििंबद्ध ै। नाट्यशास्त्र में लोक चेिना को
नाटक के लेखन और मिंचन की मूल प्रेरणा माना गया ै।
कववताओिं
• कववता अर्ाकि्'काव्यात्मक रचना' (कवव की कृ ति)। काव्य िे ज ाँ
रचना के भावपक्ष और अन्ि:िौंदयक का अथधक बोध ोिा ै, व ाँ
कवविा शब्द के प्रयोग िे प्राय: उिके कलापक्ष और रूपात्मक िौंदयक
को प्रधानिा समलिी ै। काव्य, कवविा, पद्य, इन िीनों शब्दों को
िमागि रूप िे तनम्निर भावजस्र्ति में रखा जािा ै। गद्य पद्य
का ववपक्षी रूप ै, जो छन्दोबद्ध या ववचार िक िीसमि ै। मात्र
छन्दोबद्ध रचना के सलए पद्य शब्द का प्रयोग उथचि ै, परन्िु
कवविा शब्द पद्य िे ऊँ ची जस्र्ति का द्योिक ै और उिमें कवविा
(कवव-कमक), अर्ाकि्काव्यकला को अथधक म त्त्व हदया गया ै।
िामान्यि: िीनों शब्द िमान अर्क में प्रयुक्ि ोिे ैं।
क ावत
क ावत आम बोलचाल में इस्िेमाल ोने वाले उि वाक्यािंश को क िे ैं जजिका
िम्बन्ध ककिी न ककिी पौरार्णक क ानी िे जुडा ुआ ोिा ै। क ीिं क ीिं
इिे मु ावरा अर्वा लोकोजक्ि के रूप में भी जानिे ैं।
क ाविें प्रायः िािंके तिक रूप में ोिी ैं। र्ोडे शब्दों में क ा जाये िो "जीवन के
दीघककाल के अनुभवों को छोटे वाक्य में क ना ी क ाविें ोिी ैं।"
जजि प्रकार िे अलिंकार काव्य के िौन्दयक को बढ़ा देिा ै उिी प्रकार क ाविों का
प्रयोग भाषा के िौन्दयक को बढ़ा देिा ै। बोलचाल की भाषा में क ाविों के प्रयोग
िे वक्िा के कर्न के प्रभाव में वृद्थध ोिी ै और िाह जत्यक भाषा में क ाविों के
प्रयोग िे िाह त्य की श्रीवृद्थध ोिी ै।
प्रायः एक भाषा के क ाविों को अन्य भाषाओिं के द्वारा मूल या बदले ुये रूप में
अपना भी सलया जािा ै।
ककस्सागोई
• ककस्िागोई की शुरुआि कब और क ािं पर ुई इिके बारे में िीक-िीक बिा
पाना िो ििंभव न ीिं ै। के वल अनुमान ी लगाया जा िकिा ै। िभ्यिा
के आरिंसभक दौर में जब मनुष्ट्य ने ककिी अनोखी वस्िु, प्राणी या घटना के
बारे में कु छ बढ़ा-चढ़ाकर, कतिपय रोचक अिंदाज में और लोकरिंजन की
वािंछा के िार् बयान करने की कोसशश की ोगी; िो स्वाभाववक रूप में
बाकी लोगों में उिके क न के प्रति ललक पैदा ुई ोगी। पररणामिः उन
अनुभवों के प्रति िामूह क जजज्ञािा िर्ा उनको रोचक अिंदाज में, बार-बार
िुने-क े जाने की परिंपरा का ववकाि ुआ। उिमें कल्पना का अनुपाि भी
उत्तरोत्तर बढ़िा चला गया। इिी िे लोकिाह त्य और ककस्िागोई की कला
का ववकाि ुआ। अब िवाल उििा ै कक ककस्िा और ककस्िागोई ैं क्या?
• 1900 वीिं िदी का आरिंभ ह न्दी भाषा के ववकाि की दृजष्ट्ट िे ब ुि
म त्वपूणक ै। इि िमय देश में स्वििंत्रिा आिंदोलन प्रारिंभ ुआ र्ा।
राष्ट्र में कई िर के आिंदोलन चल र े र्े। इनमें कु छ गुप्ि और कु छ
प्रकट र्े पर इनका माध्यम ह िंदी ी र्ी अब ह िंदी के वल उत्तर भारि
िक ी िीसमि न ीिं र गई र्ी। ह िंदी अब िक पूरे भारिीय आन्दोलन
की भाषा बन चुकी र्ी। िाह त्य की दृजष्ट्ट िे बािंग्ला, मरािी ह न्दी िे
आगे र्ीिं परन्िु बोलने वालों के सल ाज िे ह न्दी िबिे आगे र्ी।
इिीसलए ह न्दी को राजभाषा बनाने की प ल गािंधीजी िमेि देश के
कई अन्य नेिा भी कर र े र्े। िन 1918 में ह िंदी िाह त्य िम्मलेन
की अध्यक्षिा करिे ुए गािंधी जी ने क ा र्ा की ह िंदी ी देश की
राष्ट्रभाषा ोनी चाह ए। िन 1900 िे लेकर 1950 क ह िंदी के अनेक
रचनाकारों ने इिके ववकाि में योगदान हदया इनमे मुिंशी प्रेमचिंद
,जयशिंकर प्रिाद, माखनलाल चिुवेदी , मैथर्लीशरण गुप्ि,
िुभद्राकु मारी चौ ान, आचायक रामचिंद्र शुक्ल, िूयककान्ि बत्रपािी
तनराला, िुसमत्रानिंदन पन्ि, म ादेवी वमाक आहद।
•
हिंदी भाषा का स्वरुप।  (कालखंड की दृष्टीसे )आदिकाल,मध्यकाल, आधुनिककाल ।

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हिंदी भाषा का स्वरुप। (कालखंड की दृष्टीसे )आदिकाल,मध्यकाल, आधुनिककाल ।

  • 1. Module No १ ह िंदी का पाठ्यक्रम, ध्येय तथा स्वरुप । अमोल उबाले ह िंदी भाषा का स्वरुप। (कालखिंड की दृष्टीसे )आहदकाल,मध्यकाल, आधुनिककाल ।
  • 2. प्रस्ताविा • ह िंदी शब्द की उत्पति 'सिन्धु' िे जुडी ै। 'सिन्धु' 'सििंध' नदी को क िे ै। सिन्धु नदी के आि-पाि का क्षेत्र सिन्धु प्रदेश क लािा ै। ििंस्कृ ि शब्द 'सिन्धु' ईरातनयों के िम्पकक में आकर ह न्दू या ह िंद ो गया। ईरातनयों द्वारा उच्चाररि ककया गए इि ह िंद शब्द में ईरानी भाषा का 'एक' प्रत्यय लगने िे 'ह न्दीक' शब्द बना ै जजिका अर्क ै 'ह िंद का'। यूनानी शब्द 'इिंडडका' या अिंग्रेजी शब्द 'इिंडडया' इिी 'ह न्दीक' के ी ववकसिि रूप ै।
  • 3. • ह िंदी का िाह त्य 1000 ईिवी िे प्राप्ि ोिा ै। इििे पूवक प्राप्ि िाह त्य अपभ्रिंश में ै इिे ह िंदी की पूवक पीहिका माना जा िकिा ै। आधुतनक भाषाओिं का जन्म अपभ्रिंश के ववसभन्न रूपों िे इि प्रकार ुआ ै : अपभ्रिंश - आधुतनक भाषाएिं शौरिेनी - पजचचमी ह िंदी, राजस्र्ानी, प ाडी , गुजरािी पैशाची - ल िंदा, पिंजाबी ब्राचड - सििंधी म ाराष्ट्री - मरािी मगधी - बब ारी, बिंगला, उडीया, अिसमया • पजचचमी ह िंदी - खडी बोली या कौरवी, बब्रज, ररयाणवी, बुन्देल, कन्नौजी पूवी ह िंदी - अवधी, बघेली, छत्तीिगढ़ी राजस्र्ानी - पजचचमी राजस्र्ानी (मारवाडी) पूवी राजस्र्ानी प ाडी - पजचचमी प ाडी, मध्यविी प ाडी (कु माऊिं नी-गढ़वाली) बब ारी - भोजपुरी, मागधी, मैथर्ली
  • 4. ह िंदी भाषा के तीि कालखिंड आहदकाल आधुनिककाल मध्यकाल
  • 5. आहदकाल (1000-1500) • अपने प्रारिंसभक दौर में ह िंदी िभी बािों में अपभ्रिंश के ब ुि तनकट र्ी इिी अपभ्रिंश िे ह िंदी का जन्म ुआ ै। आहद अपभ्रिंश में अ, आ, ई, उ, उ ऊ, ऐ, औ के वल य ी आि स्वर र्े।ऋ ई, औ, स्वर इिी अवथध में ह िंदी में जुडे । प्रारिंसभक, 1000 िे 1100 ईिवी के आि-पाि िक ह िंदी अपभ्रिंश के िमीप ी र्ी। इिका व्याकरण भी अपभ्रिंश के िामान काम कर र ा र्ा। धीरे-धीरे पररविकन ोिे ुए और 1500 ईिवी आिे-आिे ह िंदी स्वििंत्र रूप िे खडी ुई। 1460 के आि-पाि देश भाषा में िाह त्य िजकन प्रारिंभ ो चुका ो चुका र्ा। इि अवथध में दो ा, चौपाई ,छप्पय दो ा, गार्ा आहद छिंदों में रचनाएिं ुई ै। इि िमय के प्रमुख रचनाकार गोरखनार्, ववद्यापति, नरपति नाल , चिंदवरदाई, कबीर आहद ै।
  • 6. आहदकाल (रचिाये) दो ा गाथाछप्पय दो ाचौपाई
  • 8. दो ा कबीर • दो ा माबत्रक अद्कधिम छिंद ै। इिके प ले और िीिरे चरण में 13 िर्ा दूिरे और चौर्े चरण में 11 मात्राएिं ोिी ैं। इि प्रकार प्रत्येक दल में 24 मात्राएिं ोिी ैं। दूिरे और चौर्े चरण के अिंि में लघु ोना आवचयक ै। दो ा िवकवप्रय छिंद ै।कबीर के दो ों का ििंकलन। दुुःख में सुममरि सब करे सुख में करै ि कोय। जो सुख में सुममरि करे दुुःख का े को ोय ॥(13) बडा ुआ तो क्या ुआ जैसे पेड़ खजूर। पिंथी को छाया ि ी फल लागे अनत दूर ॥(14) साधु ऐसा चाह ए जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गह र ै थोथा देई उडाय॥
  • 9. चौपाई तुलसीदास • चौपाई माबत्रक िम छन्द का एक भेद ै। प्राकृ ि िर्ा अपभ्रिंश के 16 मात्रा के वणकनात्मक छन्दों के आधार पर ववकसिि ह न्दी का िवकवप्रय और अपना छन्द ै। गोस्वामी िुलिीदाि ने रामचररिमानि में चौपाई छन्द का ब ुि अच्छा तनवाक ककया ै। चौपाई में चार चरण ोिे ैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ ोिी ैं िर्ा अन्ि में गुरु ोिा ै। बिंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचच सुबास सरस अिुरागा॥ अममय मूररमय चूरि चारू। समि सकल भव रुज पररवारू॥
  • 10.
  • 11. छप्पय दो ा • छप्पय माबत्रक ववषम छन्द ै। 'प्राकृ िपैंगलम्'[1] में इिका लक्षण और इिके भेद हदये गये ैं। • छप्पय अपभ्रिंश और ह न्दी में िमान रूप िे वप्रय र ा ै। इिका प्रयोग ह न्दी के अनेक कववयों ने ककया । चन्द[2], िुलिी[3], के शव[4], नाभादाि [5], भूषण [6], मतिराम [7], िू दन [8], पद्माकर [9] िर्ा जोधराज म्मीर रािो ने इि छन्द का प्रयोग ककया ै। "डडगनत उववि अनत गुववि, सवि पब्बे समुद्रसर। ब्याल बचधर तेह काल, बबकल हदगपाल चराचर। हदग्गयन्द लरखरत, परत दसकण्ठ मुक्खभर। सुर बबमाि ह म भािु, भािु सिंघहटत परस्पर। चौंकक बबरिंचच शिंकर सह त, कोल कमठ अह कलमल्यौ। ब्रह्मण्ड खण्ड ककयो चण्ड धुनि, जबह िं राम मशव धिु दल्यौ॥"[10]
  • 12. गाथा • वैहदक िाह त्य का य म त्वपूणक शब्द ऋग्वेद की ििंह िा में गीि या मिंत्र के अर्क में प्रयुक्ि ुआ ै (ऋग्वेद 8. 32.1, 8.71.14)। 'गै' (गाना) धािु िे तनष्ट्पन्न ोने के कारण गीि ी इिका व्युत्पवत्तलभ्य िर्ा प्राचीनिम अर्क प्रिीि ोिा ै। १. स्िुति। २. व चलोक जजिमें स्वर का तनयम न ो। ३. प्राचीन काल की एक प्रकार की ऐति ासिक रचना जजिमें लोगों के दान, यज्ञाहद का वणकन ोिा र्ा। ४. आयाक नाम का वृवत्त। ५. एक प्रकार की प्राचीन भाषा जजिमें ििंस्कृ ि के िार् क ीिं क ीिं पाली भाषा के ववकृ ि शब्द भी समले र िे ैं। ६. चलोक। ७. गीि। ८. कर्ा। वृत्ताि। ाल। ९. बार प्रकार के बौद्ध शास्त्रों में चौर्ा। १०. पारसियों के कारण धमकग्रिंर् का एक भेद। जैिे,—गार्ा अह्रवैति गार्ा उष्ट्टवैति इत्याहद।
  • 13. मध्यकाल -(1500-1800 तक) • इि अवथध में ह िंदी में ब ुि पररविकन ुए। देश पर मुगलों का शािन ोने के कारन उनकी भाषा का प्रभाव ह िंदी पर पडा। पररणाम य ुआ की फारिी के लगभग 3500 शब्द, अरबी के 2500 शब्द, पचिों िे 50 शब्द, िुकी के 125 शब्द ह िंदी की शब्दावली में शासमल ो गए। यूरोप के िार् व्यापार आहद िे ििंपकक बढ़ र ा र्ा। पररणाम स्वरूप पुिकगाली, स्पेनी, फ्ािंिीिी और अिंग्रेजी के शब्दों का िमावेश ह िंदी में ुआ। मुगलों के आथधपत्य का प्रभाव भाषा पर हदखाई पडने लगा र्ा। मुगल दरबार में फारिी पढ़े-सलखे ववद्वानों को नौकररयािं समली र्ी पररणामस्वरूप पढ़े-सलखे लोग ह िंदी की वाक्य रचना फारिी की िर करने लगे। इि अवथध िक आिे-आिे अपभ्रिंश का पूरा प्रभाव ह िंदी िे िमाप्ि ो गया जो आिंसशक रूप में ज ािं क ीिं शेष र्ा व भी ह िंदी की प्रकृ ति के अनुिार ढलकर ह िंदी का ह स्िा बन र ा र्ा।
  • 14. मध्यकाल -(1500-1800 तक) • इि अवथध में ह िंदी के स्वर्णकम िाह त्य का िृजन ुआ। भजक्ि आिंदोलन ने देश की जनिा की मनोभावना को प्रभाववि ककया। भजक्ि कववयों में अनेक ववद्वान र्े जो ित्िम मुक्ि भाषा का प्रयोग कर र े र्े। राम और कृ ष्ट्ण जन्म स्र्ान की ब्रज भाषा में काव्य रचना की गई, जो इि काल के िाह त्य की मुख्यधारा मानी जािी ैं। इिी अवथध में दर्खनी ह िंदी का रूप िामने आया। वपिंगल, मैथर्ली और खडी बोली में भी रचनाएिं सलखी जा र ी र्ी। इि काल के मुख्य कववयों में म ाकवव िुलिीदाि, ििंि िूरदाि, ििंि मीराबाई, मसलक मो म्मद जायिी, बब ारी, भूषण ैं। इिी कालखिंड में रचा गया 'रामचररिमानि' जैिा ग्रन्र् ववचव में ववख्याि ुआ।
  • 16. मध्यकाल (रचिाकार ) तुलसीदास ममलक मो म्मद जायसी सिंत मीराबाई सिंत सूरदास बब ारी भूषण
  • 17. वपिंगल • वपिंगल नामक एक भाषा-शैली का जन्म पूवी राजस्र्ान में, ब्रज क्षेत्रीय भाषा-शैली के उपकरणों को ग्र ण करिे ुआ र्ा। इि भाषा में चारण परिंपरा के श्रेष्ट्ि िाह त्य की रचना ुई। राजस्र्ान के अनेक चारण कववयों ने इि नाम का उल्लेख ककया ै। • 'वपिंगल' शब्द राजस्र्ान और ब्रज के िजम्मसलि क्षेत्र में ववकसिि और चारणों में प्रचसलि ब्रजी की एक शैली के सलए प्रयुक्ि ुआ ै। वपिंगल का ििंबिंध शौरिेनी अपभ्रिंश और उिके मध्यविी क्षेत्र िे ै। िूरजमल ने इिका क्षेत्र हदल्ली और ग्वासलयर के बीच माना ै। इि प्रकार पीछे राजस्र्ान िे इि शब्द का अतनवायक लगाव न ीिं र ा। य शब्द 'ब्रजभाषा वाचक ो गया। गुरु गोवविंद सििं के ववथचत्र नाटक में भाषा वपिंगल दी कर्न समलिा ै। इििे इिका ब्रजभाषा िे अभेद स्पष्ट्ट ो जािा ै।
  • 18. मैचथली मैथर्ली भारि के उत्तरी बब ार और नेपाल के िराई क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा ै। य ह न्द आयक पररवार की िदस्य ै। इिका प्रमुख स्रोि ििंस्कृ ि भाषा ै जजिके शब्द "ित्िम" वा "िद्भव" रूप में मैथर्ली में प्रयुक्ि ोिे ैं। मैथर्ली मुख्यया उत्तर-पूवक बब ार की भाषा ै। भारि के िाि जजलों में (दरभिंगा, मुजफ्फरपुर, मुिंगेर, भागलपुर, ि रिा, पूर्णकया और पटना) और नेपाल के पाँच जजलों में (रो िाि, िरला ी, िप्िरी, मो िरी और मोरिंग) य बोली जािी ै। [1] बँगला, अिसमया और ओडडया के िार् िार् इिकी उत्पवत्त मागधी प्राकृ ि िे ुई ै। कु छ अिंशों में ये बिंगला और कु छ अिंशों में ह िंदी िे समलिी जुलिी ै।
  • 19. आधुनिककाल (1800 िे अब िक ) • ह िंदी का आधुतनक काल देश में ुए अनेक पररविकनों का िाक्षी ै। परििंत्र में र िे ुए देशवािी इिके ववरुद्ध खडे ोने का प्रयाि कर र े र्े। अिंग्रेजी का प्रभाव देश की भाषा और ििंस्कृ ति पर हदखाई पडने लगा। अिंग्रेजी शब्दों का प्रचलन ह िंदी के िार् बढ़ने लगा। मुगलकालीन व्यवस्र्ा िमाप्ि ोने िे अरबी, फारिी के शब्दों के प्रचलन में थगरावट आई। फारिी िे स्वीकार क, ख, ग, ज, फ ध्वतनयों का प्रचलन ह िंदी में िमाप्ि ुआ। अपवादस्वरूप क ीिं-क ीिं ज और फ ध्वतन शेष बची। क, ख, ग ध्वतनयािं क, ख, ग में बदल गई। इि पूरे कालखिंड को 1800 िे 1850 िक और कफर 1850 िे 1900 िक िर्ा 1900 का 1910 िक और 1950 िे 2000 िक ववभाजजि ककया जा िकिा ै।
  • 20. आधुनिककाल (1800 िे अब िक ) • ििंवि 1830 में जन्मे मुिंशी िदािुख लाल तनयाज ने ह िंदी खडी बोली को प्रयोग में सलया। खडी बोली उि िमय भी अजस्ित्व में र्ी। खडी बोली या कौरवी का उद्भव शौरिेनी अपभ्रिंश के उत्तरी रूप िे ुआ ै। इिका क्षेत्र दे रादून का मैदानी भाग, ि ारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरुि , हदल्ली बबजनौर ,रामपुर ,मुरादाबाद ै। इि बोली में पयाकप्ि लोक गीि और लोक कर्ाएिं मौजूद ैं। खडी बोली पर ी उदूक, ह न्दुस्िानी और दक्खनी ह िंदी तनभकर करिी ै। मुिंशी िदा िुखलाल तनयाज के आलावा इिंशा अल्ला खान इिी अवथध के लेखक ै। इनकी रानी के िकी की क ानी पुस्िक प्रसिद्ध ै। लल्लूलाल, इि काल खिंड के एक और प्रसिद्ध लेखक ैं। इनका जन्म ििंवि 1820 में ुआ र्ा कोलकािा के फोटक ववसलयम कॉलेज के अध्यापक जॉन थगलकिस्ट के अनुरोध पर लल्लूलाल जी ने पुस्िक 'प्रेम िागर' खडी बोली में सलखी र्ी।
  • 21. आधुनिककाल (1800 िे अब िक ) • प्रेम िागर के आलावा सििं ािन बत्तीिी, बेिाल पचीिी, शकुिं िला नाटक भी इनकी पुस्िकें ैं जो खडी बोली में, ब्रज और उदूक के समथश्रि रूप में ैं। इिी कालखिंड के एक और लेखक िदल समश्र ैं। इनकी नथचके िोपाख्यान पुस्िक प्रसिद्ध ै। िदल समश्र ने अरबी और फारिी के शब्दों का प्रयोग न के बराबर ककया ै। खडी बोली में सलखी गई इि पुस्िक में ििंस्कृ ि के शब्द अथधक ैं। ििंवि 1860 िे 1914 के बीच के िमय में कालजयी कृ तियािं प्राय: न ीिं समलिी। 1860 के आिपाि िक ह िंदी गद्य प्राय: अपना तनजचचि स्वरुप ग्र ण कर चुका र्ा।
  • 22. आधुनिककाल (1800 िे अब िक ) • इिका लाभ लेने के सलए अिंग्रेजी पादररयों ने ईिाई धमक के प्रचार-प्रिार के सलए बाईबल का अनुवाद खडी बोली में ककया यद्यवप इनका लक्ष्य अपने धमक का प्रचार- प्रिार करना र्ा। िर्ावप इिका लाभ ह िंदी को समला देश की िाधारण जनिा अरबी- फारिी समथश्रि भाषा में अपने पौरार्णक आख्यानों को क िी और िुनिी र्ी। इन पादररयों ने भी भाषा के इिी समथश्रि रूप का प्रयोग ककया। अब िक 1857 का प ला स्वििंत्रिा युद्ध लडा चुका र्ा अिः अिंगरेजी शािकों की कू टनीति के ि ारे ह िंदी के माध्यम िे बाइबबल के धमक उपदेशों का प्रचार-प्रिार खूब ो र ा र्ा। भारिेंदु ररचचिंद्र ने ह िंदी नवजागरण की नीिंव रखी। उन् ोंने अपनें नाटकों, कवविाओिं, क ाविों और ककस्िागोई के माध्यम िे ह िंदी भाषा के उत्र्ान के सलए खूब काम ककया। अपने पत्र 'कवववचनिुधा' के माध्यम िे ह िंदी का प्रचार-प्रिार ककया। गद्य में िदल समश्र, िदािुखलाल,लल्लू लाल आहद लेखकों ने ह िंदी खडीबोली को स्र्ावपि करने का काम ककया। भारिेंदु ररचचिंद्र ने कवविा को ब्रज भाषा िे मुक्ि ककया उिे जीवन के यर्ार्क िे जोडा।
  • 23. आधुनिककाल (1800 िे अब िक ) • िन 1866 की अवथध के लेखकों में पिंडडि बद्रीनारायण चौधरी, पिंडडि प्रिाप नारायण समश्रल बाबू िोिा राम, िाकु र जगमो न सििं , पिंडडि बाल कृ ष्ट्ण भट्ट, पिंडडि के शवदाि भट्ट ,पिंडडि अजम्बकादत्त व्याि, पिंडडि राधारमण गोस्वामी आहद आिे ैं। ह िंदी भाषा और िाह त्य को परमाजजकि करने के उद्देचय िे इि कालखिंड में अनेक पत्र-पबत्रकाओिं का प्रकाशन प्रारिंभ ुआ। इनमें ररचचन्द्रचजन्द्रका, ह न्दी बिंगभाषी, उथचिवक्िा, भारि समत्र, िरस्विी, हदनकर प्रकाश आहद।
  • 25. मध्यकाल (रचिाकार ) पिंडडत बद्रीिारायण चौधरी पिंडडत बाल कृ ष्ण भट्ट ठाकु र जगमो ि मसिं पिंडडत प्रताप िारायण ममश्रल बाबू तोता राम पिंडडत राधारमण गोस्वामी पिंडडत अम्म्बकादत्त व्यास
  • 26. िाटक • िाटक, काव्य का एक रूप ै। जो रचना श्रवण द्वारा ी न ीिं अवपिु दृजष्ट्ट द्वारा भी दशककों के हृदय में रिानुभूति करािी ै उिे िाटक या दृचय-काव्य क िे ैं। नाटक में श्रव्य काव्य िे अथधक रमणीयिा ोिी ै। श्रव्य काव्य ोने के कारण य लोक चेिना िे अपेक्षाकृ ि अथधक घतनष्ट्ि रूप िे ििंबद्ध ै। नाट्यशास्त्र में लोक चेिना को नाटक के लेखन और मिंचन की मूल प्रेरणा माना गया ै।
  • 27. कववताओिं • कववता अर्ाकि्'काव्यात्मक रचना' (कवव की कृ ति)। काव्य िे ज ाँ रचना के भावपक्ष और अन्ि:िौंदयक का अथधक बोध ोिा ै, व ाँ कवविा शब्द के प्रयोग िे प्राय: उिके कलापक्ष और रूपात्मक िौंदयक को प्रधानिा समलिी ै। काव्य, कवविा, पद्य, इन िीनों शब्दों को िमागि रूप िे तनम्निर भावजस्र्ति में रखा जािा ै। गद्य पद्य का ववपक्षी रूप ै, जो छन्दोबद्ध या ववचार िक िीसमि ै। मात्र छन्दोबद्ध रचना के सलए पद्य शब्द का प्रयोग उथचि ै, परन्िु कवविा शब्द पद्य िे ऊँ ची जस्र्ति का द्योिक ै और उिमें कवविा (कवव-कमक), अर्ाकि्काव्यकला को अथधक म त्त्व हदया गया ै। िामान्यि: िीनों शब्द िमान अर्क में प्रयुक्ि ोिे ैं।
  • 28. क ावत क ावत आम बोलचाल में इस्िेमाल ोने वाले उि वाक्यािंश को क िे ैं जजिका िम्बन्ध ककिी न ककिी पौरार्णक क ानी िे जुडा ुआ ोिा ै। क ीिं क ीिं इिे मु ावरा अर्वा लोकोजक्ि के रूप में भी जानिे ैं। क ाविें प्रायः िािंके तिक रूप में ोिी ैं। र्ोडे शब्दों में क ा जाये िो "जीवन के दीघककाल के अनुभवों को छोटे वाक्य में क ना ी क ाविें ोिी ैं।" जजि प्रकार िे अलिंकार काव्य के िौन्दयक को बढ़ा देिा ै उिी प्रकार क ाविों का प्रयोग भाषा के िौन्दयक को बढ़ा देिा ै। बोलचाल की भाषा में क ाविों के प्रयोग िे वक्िा के कर्न के प्रभाव में वृद्थध ोिी ै और िाह जत्यक भाषा में क ाविों के प्रयोग िे िाह त्य की श्रीवृद्थध ोिी ै। प्रायः एक भाषा के क ाविों को अन्य भाषाओिं के द्वारा मूल या बदले ुये रूप में अपना भी सलया जािा ै।
  • 29. ककस्सागोई • ककस्िागोई की शुरुआि कब और क ािं पर ुई इिके बारे में िीक-िीक बिा पाना िो ििंभव न ीिं ै। के वल अनुमान ी लगाया जा िकिा ै। िभ्यिा के आरिंसभक दौर में जब मनुष्ट्य ने ककिी अनोखी वस्िु, प्राणी या घटना के बारे में कु छ बढ़ा-चढ़ाकर, कतिपय रोचक अिंदाज में और लोकरिंजन की वािंछा के िार् बयान करने की कोसशश की ोगी; िो स्वाभाववक रूप में बाकी लोगों में उिके क न के प्रति ललक पैदा ुई ोगी। पररणामिः उन अनुभवों के प्रति िामूह क जजज्ञािा िर्ा उनको रोचक अिंदाज में, बार-बार िुने-क े जाने की परिंपरा का ववकाि ुआ। उिमें कल्पना का अनुपाि भी उत्तरोत्तर बढ़िा चला गया। इिी िे लोकिाह त्य और ककस्िागोई की कला का ववकाि ुआ। अब िवाल उििा ै कक ककस्िा और ककस्िागोई ैं क्या?
  • 30. • 1900 वीिं िदी का आरिंभ ह न्दी भाषा के ववकाि की दृजष्ट्ट िे ब ुि म त्वपूणक ै। इि िमय देश में स्वििंत्रिा आिंदोलन प्रारिंभ ुआ र्ा। राष्ट्र में कई िर के आिंदोलन चल र े र्े। इनमें कु छ गुप्ि और कु छ प्रकट र्े पर इनका माध्यम ह िंदी ी र्ी अब ह िंदी के वल उत्तर भारि िक ी िीसमि न ीिं र गई र्ी। ह िंदी अब िक पूरे भारिीय आन्दोलन की भाषा बन चुकी र्ी। िाह त्य की दृजष्ट्ट िे बािंग्ला, मरािी ह न्दी िे आगे र्ीिं परन्िु बोलने वालों के सल ाज िे ह न्दी िबिे आगे र्ी। इिीसलए ह न्दी को राजभाषा बनाने की प ल गािंधीजी िमेि देश के कई अन्य नेिा भी कर र े र्े। िन 1918 में ह िंदी िाह त्य िम्मलेन की अध्यक्षिा करिे ुए गािंधी जी ने क ा र्ा की ह िंदी ी देश की राष्ट्रभाषा ोनी चाह ए। िन 1900 िे लेकर 1950 क ह िंदी के अनेक रचनाकारों ने इिके ववकाि में योगदान हदया इनमे मुिंशी प्रेमचिंद ,जयशिंकर प्रिाद, माखनलाल चिुवेदी , मैथर्लीशरण गुप्ि, िुभद्राकु मारी चौ ान, आचायक रामचिंद्र शुक्ल, िूयककान्ि बत्रपािी तनराला, िुसमत्रानिंदन पन्ि, म ादेवी वमाक आहद। •