1. कहानी संख्या : एक
ख़ुशी और गम
मैं एक दोस्त के साथ मंददर गया ---शिव मंददर. दोनों ने ववधिवत प्राथथना की. चमत्कार हो गया शिव जी खुद
आ गए. बोले," पुत्रों मैं तुम दोनों की भक्तत से आती प्रिन हूँ. मैं तुम दोनों को देने के शलए दो बहुत खुबसरत
चीज लाया हूँ. एक है गम एक है खुिी. तुम दोनों आपस में फै सला कर लो की ककसको तया लेना है. दसरी
बात यह की जो दे रहा हूँ वो शसफथ एक साल के शलए. एक साल के बाद जो जो ले जायेगा वहीीँ वापस करना
पड़ेगा. नहीं तो मेरा गुस्सा तुम लोग जानते हो ."
हम दोनों ने आपस में ववचार ववमिथ ककया. अपने दोस्त को कहा की त ख़ुिी रख ले मैं गम ले लेता हूँ. वो
मेरे दररयाददल पर खब खुि हो गया. बोला, ' यार हो तो तेरे जैसा."
कफर हम शिव जी से ननवेदन ककया की ख़ुिी मेरे दोस्त को दे दीक्जये और गम मुझे. शिव जी को आश्चयथ
हुआ की बात तो बहुत कदिन थी इतनी जल्दी दोनों मन कै से गए. वो तो हम दोनों में फु ट करना चाहते थे
और जो लाये थे वो वापस ले जाने आये थे.
अब चूँकक वो बंिन से बंि गए थे. तो मुझे गम और मेरे दोस्त को खुिी दे दी.
मेरे दोस्त ने तया ककया एक साल में मुझे नहीं मालम. मगर गम जो मेरे साथ रहता था बेचारा गमगीन
रहता था. मुझे उसका गम देखा नहीं गया. खब समझाया. हर पल साथ रखा. पता नहीं तया उसपर असर
हुआ मेरे प्रेम का की उसका रंग बदलने लगा. आजतक ककसी ने प्रेम से उसे अपनाया नहीं था, वो हर के शलए
नफरत की चीज था. उसे िीरे िीरे प्रेम का निा चड़ने लगा. हसने लगा चहकने लगा. मैं िमथ संकट में फूँ स
गया ये गम तो ख़ुिी में बदल गया. एक साल परा होने को थे.
मैं एक साल बाद शमत्र के घर गया बड़ा उदास लगा. मैंने कहा की तया बात है तुम इतने उदास तयूँ हो. बोला
ख़ुिी रोज रोज नयी नयी फरमाइि करते थी. मैं परा नहीं कर पाया. इस्ल्ये वो गम में बदल गया. अब ककस
तरह शिव जी के पास जायुं. मैंने कहा,' जाना तो पड़ेगा. उनके पाूँव पकड़ कर माफ़ी मांग लेंगे.
शिव जी प्रकट हुए. वोले जो ददया था वो दो. हम दोनों डर से चुप. कफर उनका चेहरा िीरे िीरे गुस्सा में प्रकट
होने लगा. हमने ननकाल कर दोनों अपनी अपनी ली चीज वापस कर ददया. बोले मुझसे तुझे तो गम ददया था
वो ख़ुिी कै से हो गया . मेरे पास जबाब नहीं.
तब प्रभु ने कहा पुत्रों दरो मत. राज की बात बताता हूँ. ये दोनों जो ददया था तेरे प्रेम के भखे हैं और अपना
रंग समय समय पर बदलते रहते हैं. पर दोनों हैं एक ही शसतके के दो पहलु. जा आजके बाद तुम दोनों सदा
खुि रहोगे.
2. मैंने कहा भगवन आपके वचन कभी पुरे नहीं होंगे. बोले तयूँ. मैंने कहा आप ने हीं तो कहा की दोनों अपना
रंग बदलते रहते हैं. अगर आपको वरदान हीं देना है तो बस इतना दीक्जये की ख़ुिी और गम दोनों को प्रेम
कर सकूँ इतना ज्ञान दे दीक्जये.
प्रभु बोले'" तथास्तु ." लेखक : आिु
कहानी संख्या : दो
तालमेल
आज ददल में बड़ी तमन्ना थी की कुछ उच्च कोदट की रचना शलखुं। मगर हमेिा ये से वक़्त में कुछ हो जाता
है। स्याही ने क़लम से लड़ाई कर ली।उसने क़लम को कहा की तेरी हस्ती तया है। तुम बबना मेरे कुछ नहीं
कर सकता।क़लम को ताव आ गया और बोला तो तुम मेरे सहारे की ज़रूरत नहीं है तो ख़ुद काग़ज़ पर शलख।
इस बात पर काग़ज़ को भी ताव आ गया।तुम लोग दोनों शमल भी जायो मेरे बबना तुम शलखोगे ककसपर। मुझे
भी ग़ुस्सा आ गया तुम लोग हो तो भी तो मैं न शलखुंुु तो तुम लोग ककस काम कें ।मैंने कहा की जबतक
तुम लोग आपस में नशमलोगे तब तक मैं कुछ भी नहीं शलखुंगा। देखते हैं कब जाकर तीनोंुं एक होते हैं तभी
तो शलख पायुंगा।तभी आत्मा से आवाज़ आई की बेवक़फ़ जब तुम इन तीन को नहीं संभाल सकते तो समाज
के शलये तया ख़ाक शलखोगे।
लेखक : आिु
3. कहानी संख्या : तीन
तालमेल
आज ददल में बड़ी तमन्ना थी की कुछ उच्च कोदट की रचना शलखुं। मगर हमेिा ये से वक़्त में कुछ हो जाता
है। स्याही ने क़लम से लड़ाई कर ली।उसने क़लम को कहा की तेरी हस्ती तया है। तुम बबना मेरे कुछ नहीं
कर सकता।क़लम को ताव आ गया और बोला तो तुम मेरे सहारे की ज़रूरत नहीं है तो ख़ुद काग़ज़ पर शलख।
इस बात पर काग़ज़ को भी ताव आ गया।तुम लोग दोनों शमल भी जायो मेरे बबना तुम शलखोगे ककसपर। मुझे
भी ग़ुस्सा आ गया तुम लोग हो तो भी तो मैं न शलखुंुु तो तुम लोग ककस काम कें ।मैंने कहा की जबतक
तुम लोग आपस में नशमलोगे तब तक मैं कुछ भी नहीं शलखुंगा। देखते हैं कब जाकर तीनोंुं एक होते हैं तभी
तो शलख पायुंगा।तभी आत्मा से आवाज़ आई की बेवक़फ़ जब तुम इन तीन को नहीं संभाल सकते तो समाज
के शलये तया ख़ाक शलखोगे।
लेखक : आिु
4. कहानी संख्या : चार
गुलाब के फल और कांटे
==============
गुलाब के फल ने अशभमान से फु लकर कांटे को कहा,'तुम ककस बात पर इतना अकड रखते हो. मुझे देखो
आदमी तो आदमी नततशलयाूँ, भंबरे , मिुमखखयाूँ सब मेरे पास आते हैं. मुझे फलों का राजा कहा गया है.
मुझे लोग आदर से देखते हैं. मैं प्रेम का प्रनतक हीं. और तुम....."
कांटे को यह बात कांटे की तरह चुभ गयी. वो बहुत उदाि रहने लगा. बाग के माली से ये बात कहाूँ
छु पती. वो कांटे के पास जाकर बोला, ' तुम िैयथ रखो कु छ ददन में सब बातें साफ़ हो जाएगी."
फल कु छ ददन के बाद मुरझाने लगे और वो एक ददन जमीं पर धगर पड़ा. आते जाते लोग उसपर पैर
रखकर जाने लगे. कोई भी उसे नहीं पछता. तभी माली आया और कांटे को बोला," अब तुमने सब कु छ
देख शलया न." पहली बार कांटे ने खखलकर हंिा.
कु छ ददन बाद कफर बहार आई. फल नए आये. उसने भी कांटे से यही कहा. मगर कांटे ने कु छ भी न
कहा. बस मुस्करा ददया. फल को अजीब लगा की वो मुस्करा तयूँ रहा है. मगर कांटे ने उसको पीछे की
कहानी जन्बुघ्कर नहीं सुनाई.तयंकक फल इसे बदाथस्स्त नहीं कर सकते वो बहुत नाजुक होते हैं. कांटे ने
अपनी उदारता नहीं खोई. अगर वह फल की तरह उसको जबाब देता तो कफर कोई फल खखलने से डर
जाता.
आिु
5. कहानी संख्या : पांच
शक की बीमारी
एक िहर के एक मुहल्ले में एक औरत रहती थी।वो जल्दी ग़ुस्से में आ जाती थी। आये ददन
घर में पनत के साथ और पड़ोसी के साथ झगड़ा करती रहती थी। लोगों ने तंग आकर कहना
िुरू कर ददया की तेरे अंदर एक बुरी आत्मा घुस गई है। उस औरत को भी ववश्वास हो गया की
सचमुच उसके अंदर एक बुरी आत्मा है। नहीं तो उसका ग़ुस्सा िांत होते हीं उसे बहुत पिचाताप
तयों होता।
बहुत ओझा भगत आये पर बुरी आत्मा को नहीं ननकाल पाये। एक ददन उसका बड़ा बेटा िहर
से पढ़ शलखकर वापस आया।जब उसे यह बात पता चली तो वो समझ गया की कौन इसका
इलाज कर सकता है।
उसने कहा की माूँ एक बहुत पहुूँचा हुया फ़क़ीर है मगर वो डातटर भी है। चलो तुम्हें उसके पास
ले चलते हैं।वह मानशसक डातटर से पहले हीं शमलकर सब बता आया था।
डातटर साहब ने उसे देखते हीं बोले की तेरे अंदर एक नहीं कई बुरी आतमायें हैं। तुमको पता है
न की आत्मा िुयें के ितल के होते हैं। औरत बोली की हाूँ ।
कफर डातटर साहब बोले की पहले तुम्हें बेहोि करना पड़ेगा।वो औरत राज़ी हो गई।
डातटर साहब ने नींद का इंजेतिन दे बेड पर लेटे रहने को कहा।जब वो होि में आई तो डातटर
साहब ने दस िीिे के जार ददखाया क्जसमें िुयें भरे थे।बोले की ककसी तरह उन्होंने बुरी आत्मा
ननकाल दी है।मगर दुबारा कोई बुरी आत्मा न घुसे एक बार हनुमान चालीसा ज़रूर पढ़ना ताकक
दुबारा बुरी आत्मा न घुसे। तब से वो औरत बबलकु ल िीक हो गई।और िांत भी।
आिु
6. कहानी संख्या : छह
दुनिया ककसिे बिायीीं
कु छ ददन पहले स्वगथ में एक सामाक्जक भोज का आयोजन ककया गया।हर िमथ के जनक ईश्वर
को बुलाया गया। काफ़ी भव्य प्रबंि ककया गया। सब स्वगथ वासी पाटी का लुत्फ़ उिा रहे थें
अचानक सब िमथ के वपता आपस में लड़ने लगे। सब यहीं कह रहे थे की दुननया हमने बनाई।
बात तु तु मैं मैं पर आ गई। स्वगथ वासी येसे हीं होि में कहाूँ रहते। सुरा सुन्दरी दोनों उपलब्ि
हो कफर और कया चादहयें कोई । बीच बचाव करने नहीं आया।तो सभी िमथ के लोगों ने कहा की
तयों नहींु िरती पर सबसे बुद्धिमान आदमी की राय ली जायें मगर बुद्धिमान लोग काफ़ी
वववाद करते हैं। सीिी बातों को कदिन कर देते हैं। मुरख लोग को अपने बारे पता नहीं वो
इसका फ़ै सला तया करेगें।आखख़र तय हुया की सीिे सादे लोगों की सशमनत बनाई जाय। सब
इसपर सहमत हो गये।
एक तीन आदमी की सशमनत बनाई गई।उसकाी अध्यक्षता राम को बनाया गया। सशमनत को एक
ददन में ररपोटथ सौंपना थी। सब िमथ के जनक आये। सशमनत के दो सदस्यों ने तरह तरह के
सवाल पुछे ।मगर मामला और उलझता गया। अंत में राम ने पुछा की जो इस दुननया को बनाया
वो उसी तरह ही एक दुननया बनाकर ददखाये।बात एकदम साफ़ हो जायेगी। सब बंगले झाूँकने
लगे। बोले की हम लोगों को । आपस में सलाह ववमिथ का समय दें। राम ने कहा की आप
आराम से सलाह ववमिथ कर आये। वैसे भी आपके नज़र में समय का ककतना ।वैसे आप लोगों
ने हीं मुझे सनझाया है की समय बहुत बलबान है और क़ीमती है।
कु छ देर बाद सब लोल आये और बोले कहम ुसब शमलकर दुननया बनाई। राम ने कफऱ पुछा
अगर दुननया की आप सब शमलकर बना कर ददखायें। मैंने यह सोच कर बोला की आज इस
सबाल का हल ननकाल लेना हीं है ही ।
उसके बाद सब बोले की हम कफर ववचार ववमिथ कर आते हैं पर लौटकर नहीं आये। सशमनत एक
ददन का था वोबबना फ़ै सला ककये भंग कर ददये गये।
आिु
7. कहानी संख्या : सात
एकता में ताक़त
बचपन में एक कहानी सुनी थी. एक वपता जब मर रहा था तो वो पुत्रों को इकठ्िा रहने का
ज्ञान पांच लकड़ड़याूँ मंगवाकर शसखाया था.
अभी कु छ ददन पहले एक वृद्ि आदमी मृत्यु िैया पर था. उसके पांच पुत्र थे, वो आपस में लड़ते
रहते थे. वो जीते जी तो उन लोगों को नहीं समझा पाए सोचा चलो मरते -मरते कु छ प्रयास
ककया जाये. उन्होंने सब पुत्रों को बुलाया और बोला पांच लकड़ी के डंडा लेकर आना.
संस्कार के अनुसार छोटे बेटे को लेन जाना पड़ा. वो रस्ते में यहीं सोचता रहा की वपताजी ने
ऐसे बात तयूँ की. िायद अपनी लकड़ी की अथी खुद देकना कहते है. ऐसे हीं वो उल्टा पुल्टा
सोचता हुआ एक लकड़ी के दुकान के पास गया और दकानदार से बोला की लकड़ी के पांच
मजबत डंडा देना. दकानदार ने सबसे मजबत चार लकड़ो का डंडा ददया. ककसी तरह पसीने से
तर बतर घर लेकर आया और वपता के पास पटक ददया.
लकड़ी के डंडे देख कर हीं वो समझ गया पुरानी कहानी से वो कु छ समझा नहीं सकता. उसने
सब पुत्रों को बारी बारी उसे उिाने को कहा. सब काफी मुक्श्कल से उिा पाए. उसने एक डंडा
हटाकर उिाने को कहा. थोड़ी आसानी से सब ने उिा शलया. ऐसे हीं एक एक लकड़ी उिाने को
कहा तो सबने आसानी से उिा शलया.
तब वृद्ि वपता बोले की जब तुम सब साथ रहोगे तो लोग मुक्श्कल से तुम्हारा सामना कर
पाएंगे. लेककन अलग रहे तो कोई भी तुम्हे उिाकर इिर उिर कर लेगा. बात सब पुत्रों की समझ
में आ गयी.
आिु
8. कहानी संख्या : आि
नेक काम
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मुके ि ने सुरेि से कहा,' आज मैंने एक बहुत नेक काम ककया है .'
सुरेि ने पछा, ' कौन सा नेक काम ककया जरा बता तो सही.'
मुके ि बोला ,' मैंने आज पुए िहर में अपनाना अपना नाम बदनाम कर ददया .'
सुरेि ने पछा, ' इसमें नेक काम तया है ?.'
मुके ि ने जबाब ददया ,' सारे िहर के िैतान पछते पछते मेरे घर पर आ गए .'
सुरेि ने पछा, ' अरे यार इसमें नेक काम तया है .'
मुके ि बोला ' यार जब सारे िैतान मेरे घर पर हैं तो पुरे िहर में िांनत है..'
आिु
9. कहानी संख्या : नौ
सबसे अच्छा पनत
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एक ददन िाम को टहलने एक पाकथ में गया. कु छ सोच रहा था इसशलए गलती से एक बेंच पर
बैि गया क्जसके बगल में तीन मदहलायें बैिी हुई थी.
एक ने कहा ,' मेरे पनत मुझे काफी प्यार करते हैं.शसफथ मेरे हाथ का बना खाना खाते हैं. मैं हीं
रोज चुनाव करती हूँ की तया पहन कर जाएूँ. उनके टाई भी मैं बंिती हूँ. उनके जुटे भी मैं
पोशलि करती हूँ. मेरे बबना वो एक पल भी नहीं रह सकते."
दसरी ने कहा,' मेरे पनत इतने अच्छे हैं की खाना भी घर का खुद बनाते हैं, घर के सब लोगों के
कपडे भी वही साफ़ करते हैं. मैं तो उनके बबना नहीं रह सकती."
तीसरी ने कहा, मेरे पनत तो मेरा इतना ख्याल रखते हैं की हा एक घंटे पर नौकर को फ़ोन कर
पछते हैं की घर पर कोई आया की नहीं और मेंब साहेब घर पर हीं हैं न."
आिु
10. कहानी संख्या : दि
स्वाभिमाि और अभिमाि में अींतर
बाइबल में मन में सात बहुत खतरनाक पापों में से एक अशभमान को बताया गया है.
राज और राके ि दोनों शमत्र थे. दोनों न शसफथ पढने में तेज थे, दोनों फु टवाल के अच्छे खखलाडी
भी थे. दोनों पडोि में रहते थे और एक ही ववद्यालय में एक ही कक्षा के साथ थे. मगर कु छ
बात थी की राज हमेिा राके ि से ज्यादा अंक पाता. खेल में हरदम वो ही प्रथम रहता. राके ि
को जलन नहीं थी अपने शमत्र से , मगर वो यह जरुर सोचता रहता था की उससे आगे बढ़कर
ददखाए.
दोनों एक हीं गाूँव के थे. और ऐसा अतसर होता रहता था की कोई महात्मा ककसी के घर रात को
रुकते और ज्ञान से लोगों को अवगत कराते.
एक ददन एक महात्मा राके ि के घर पर रुके . राके ि को उनसे बात करने का अच्छा मौका
शमला. उसने कहा की मुझे हमेिा राज से अच्छा बनना चाहता हूँ. मगर हर बार मैं हार जाता हूँ.
महात्मा थे कु छ बातें पछी और उनको पता चल गया की समस्या तया है और कै से है. उन्होंने
कहा की तुम सब कु छ भलकर शसफथ अपने अध्ययंन पर ध्यान दो और इसमें कोई कोताही नहीं
करना. तुम यह मान बेिे हो की तुम राज से ककसी बात में कम नहीं हो . यह अशभमान तुम्हे
हमेिा तुम्हे हराता है. तुम यह मान कर चलो की तुम कु छ भी नहीं जानते और इसशलए परी
मेहनत से शसखने का प्रयास करेंगे.
साल का अंनतम परीक्षा नजदीक था. उसने महात्मा के कहे अनुसार अपना सारा ध्यान खुद को
शसखने के शलए लगाया. परीक्षा का पररणाम आया और वो दंग रह गया की राज से उसके नंबर
बहुत ज्यादा थे.----आिुतोष कु मार लेखन का समय 5.15 pm.