कुत्ते की पूँछ - http://spiritualworld.co.in
पंडितजी चुपचाप बैठे अपने भविष्य के विषय में चिंतन कर रहे थे| उन्हें पता ही नहीं चला कि कब एक आदमी उनके पास आकर खड़ा हो गया है| जब पंडितजी ने कुछ ध्यान न दिया तो, उसने स्वयं आवाज दी|
"राम-राम पंडितजी|"
पंडितजी चौंक गये|
"क्या बात है, किस सोच में पड़े हो ?"
पंडितजी ने देखा तो देखते ही रह गये| उनके सामने लक्ष्मण खड़ा था|
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2. पंडिडितजी चुपचाप बैठे अपने भविविष्य के िविषय मे िचतन
कर रहे थे| उन्हे पता ही नही चला िक कब एक आदमी
उनके पास आकर खड़ा हो गया है| जब पंडिडितजी ने कुछ
ध्यान न िदया तो, उसने स्वियंड आविाज दी|
"राम-राम पंडिडितजी|“
पंडिडितजी चौंक गये|
"क्या बात है, िकस सोच मे पड़े हो ?“
पंडिडितजी ने देखा तो देखते ही रह गये| उनके सामने
लक्ष्मण खड़ा था|
"लक्ष्मण...तुम...|"
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3. "हांड पंडिडितजी|“
"कब आये ?" -पूछा पंडिडितजी ने|
"बस सीधे आपके पास ही चला आ रहा हंड|" लक्ष्मण
पंडिडितजी के पास बैठ गया|
पंडिडितजी अभवी भवी उसे एकटक देखे जा रहे थे| कोई दो
साल के बाद लक्ष्मण को देखा था| लक्ष्मण िशरडिी का
मशहर बदमाश था| दो साल की सजा भवुगतने के बाद
अब विह जेल से सीधा आ रहा था| लक्ष्मण का इस
दुिनया मे कोई न था| विह एकदम अकेला था|
आविारागदी, चोरी, गुंडडिागदी, छेड़छाड़, मारपीट करना
ही उसके काम थे|
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4. लक्ष्मण बोला - "क्या बात है, बड़े चुपचाप और उदास
से बैठे है आज आप ?“
"हांड|" - पंडिडितजी ने एक गहरी सांडस छोड़ते हुए कहा|
"क्या बात हो गयी ?“
"कुछ न पूछ लक्ष्मण ! इस गांडवि मे एक चमत्कारी बाबा
आया है| उसने मेरा सारा धंडधा-पानी ही चौपट कर
िदया है| अब तो भवूखो मरने की नौबत आ गयी है|“
लक्ष्मण आश्चर्यर से बोला - "कौन है विह ?“
"लोग उसको साई बाबा कहते है|"
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5. "अचछा कहां का है वह ?“
"कया पता ?" पंिडतजी ने कहा - "तुम अपना हालचाल
कहो|“
"बस ! सीधा जेल से छूटते ही यहां चला आ रहा हं|"
लकमण मुसकराया - "यिद तुम कहो तो बाबा को अपना
चमतकार िदखा दूं|" और वह हँसने लगा|
वैसे इससे पहले कई बार लकमण की सहायता से पंिडत
अपने िवरोिधयो को धूल चटवा चुका था|
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6. वह सोचने लगा, सांप की उस चमतकारी घटना के
कारण, जो सवयं उसके साथ घिटत हुई थी, वह भुला न
पा रहा था|
"बोलो पंिडतजी ! कया िवचार है ?“
"कोिशिशि कर लो !“
"कोिशिशि कयो ? मै करके िदखा दूंगा| एक ही िदन मे
छोड़कर भाग जाएगा|" लकमण हँसने लगा|
"जैसी तुम्हारी इचछा|“
"कया मै तुम्हारे िलए इतना छोटा-सा काम नही कर
सकता हं ?" लकमण ने कहा - "आपके तो बहुत
अहसमान है मुझ पर|"
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7. "पंिडत चुप रह गया|“
"कहां रहता है वह चमतकारी बाबा ?“
"दािरकामाई मिसजद मे|“
"कया पता, कभी वह मुसलमान बन जाता है और कभी
िहनदू ! कया है वह, कुछ पता नही|“
"ठीक है, मै देख लूंगा उसे|“
"जरा सावधानी से|" पंिडत बोला - "सुना है, बड़ा
चमतकारी है वह|"
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8. "अचछा-अचछा|" लकमण बोला - "खयाल रखूंगा|“
"ठीक है सुबह-शिाम मेरे यहां आकर खाना खा गया
जाया करो| रात मै बरामदा सोने के िलए है ही|“
लकमण चला गया|
पंिडत िचता मे पड़ गया| कही िफर उसने आतमघाती
कदम तो नही उठा िलया| यिद चमतकार हो गया तो
इस बार साई बाबा उसे माफ नही करेगा| वह परेशिान
था िक आिखर यह साई है कया ?
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9. लक्ष्मण पंडिडित के पास से उठकर सीधे द्वािरकामाई
मिस्जिद गया| टूटी-फू टी द्वािरका मिस्जिद का कायाकल्प
देखकर वह हैरान रह गया| मिस्जिद मे चहल-पहल थी|
साई बाबा की धूनी जिली हुई थी| वह उनकी धूनी के
पास जिाकर बैठ गया|
साई बाबा के पास उनके िशिष्य बैठे थे| लक्ष्मण ने देखा,
साई बाबा कोई िवशिेष नही है| दुबला-पतला, इकहरा
बदन है| एक ही हाथ मे जिमीन सूंडघ जिाएगा| हांड, चेहरे
पर एक अजिीब-सा आकषर्षक-तेजि अवश्य था|“
साई बाबा ने लक्ष्मण की ओर नजिर उठाकर भी न देखा|
अजिनबी होने के बावजिूद उससे पूछताछ न की|
िशिष्यगण चले गए| लक्ष्मण अकेला बैठा रह गया|
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10. उसकी उपिस्थित की सवर्षथा उपेक्षा कर साई बाबा आँखे
मूंडदकर लेट गए| मौका अच्छा जिानकर, लक्ष्मण बाबा को
धमकी देने के बारे मे िवचार कर रहा था|
इससे पहले िक वह कुछ बोलता, साई बाबा ने स्वयंड
कहा –
"मै जिानता हूंड िक तू मुझे मारने आया है|“
यह बात सुनते ही लक्ष्मण बुरी तरह से चौंक गया| वह
बुरी तरह घबरा गया|
"मार, मार दे मुझे और अपनी इच्छा पूरी कर ले|"
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11. साई बाबा का चेहरा बुरी तरह से तमतमा गया|
लक्ष्मण को काटो तो खून न था| वह काठ के समान जिड
होकर रह गया| साई बाबा का रौद रूप देखकर वह
घबरा गया| उसका शिरीर पसीने से तर-ब-तर हो गया|
"कोई हिथयार लाया है या खाली हाथ आया है?" –
साई बाबा बोले|
वह घबरा गया|
"बोल, जिवाब दे|“
लक्ष्मण पसीने-पसीने हो गया| वह घबराकर साई बाबा
के चरणो पर िगर गया और िगडिगडाने लगा - "क्षमा
कर दो बाबा| क्षमा कर दो|"
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12. "मेरे पैर छोड|“
"जिब तक आप मुझे क्षमा नही करेगे, तब तक मै आपके
पैर नही छोडूंडगा| आप तो अंडतयार्षमी है| मै आपकी
मिहमा को न जिान सका|“
"जिा माफ िकया| नेक आदमी बन|“
लक्ष्मण चुपचाप िसर झुकाकर चला गया|
तब साई बाबा िखलिखलाकर हँस पडे| एकदम बचो के
समान थी उनकी हँसी| यह अंडदाजिा लगाना मुिश्कल था
िक कुछ समय पूवर्ष उनका रूप बेहद रौद हो गया था|
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13. साई बाबा के पास उनका एक िशिष्य
आया, तो वह बड़बड़ा रहे थे - "कुत्ते की
पूँछ क्या भला कभी सीधी हो सकती है ?“
िशिष्य इस बात को समझ न पाया|
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लक्ष्मण ने पंडिडित के पास जाकर हाथ
जोड़कर सारा िकस्सा बताया, तो पंडिडित
का मन ग्लानी, पश्चात्ताप से भर गया| वह
साई बाबा को मान गया| उसने साई बाबा
का िवरोध करना बंडद कर िदया और
उनका परमभक बन गया|