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अध्याय-1
प्रस्तावना
आज जब सभ्यता क
े चरण प्रगतत की ओर अग्रसर हो रहे हैं, ज्ञान की शाखाएँ ववशेषीकरण और वैववध्य की ओर ववकससत होती
जा रही हैं, वैचाररक साववभौसिकता की आवश्यकता बढ़ती जा रही है तथा संस्कृ तत व िानवता का ववकास होता जा रहा है, तब
पयवटन प्रक्रिया की गतत तीव्र होना स्वाभाववक हैं। इसक
े चरण वतविान िें िांततकारी पररवतवन एवं ववकास की ओर अग्रसर हैं।
यही कारण है क्रक पयवटन िात्र भ्रिण तक ही सीसित नहीं रह गया है, अवपतु यह सािान्य वस्तुओ ं की तरह ब्रिकी और ववज्ञापन
की सािग्री बन गया है, जजसे थोक, फ
ु टकर तथा शासकीय तौर पर कई दे शों िें बेचा जाता है। यही कारण है क्रक कि आय वगव क
े
लोग भी अधिक से अधिक संख्या िें अवकाश क
े ददनों िें देश-ववदेश की यात्रा करते हैं। बैंक्रकं ग क्षेत्र ने भी पयवटन उद्योग िें
अपना स्थान तनसिवत क्रकया है, जैसे पयवटन हेतु िन ऋण क
े रूप िें उपलब्ि कराना, एक क्षेत्र से अन्य क्षेत्र िें िन का सुगि
हस्तांतरण करना आदद। शासकीय तथा तनजी क्षेत्रों द्वारा अनेक उड़ानों, जलयात्राओ ं तथा अन्य िाध्यिों से पयवटन को और
अधिक सरल क्रकया है।
सिस्त सुवविाएँ टेलीफोन, कम्प्यूटरीकृ त आरक्षण, पयवटन वाहन, स्वचासलत िशीनों द्वारा हवाई जहाजों क
े दटकटों की प्राज्त
की सुवविा, होटलों की बहुलता पयवटन उद्योग को और अधिक ववकससत कर रही है। अतः भ्रिण क
े सिस्त उपिि एवं
सहयोगी तत्व भी इसी क
े अंग बन गये है, जजससे पयवटन उद्योग ने वतविान िें एक ववकससत उद्योग का दजाव प्रा्त कर सलया
है। क्रकसी दे श क
े सलए यह अन्य उन्नत उद्योगों की अपे क्षा कहीं अधिक लाभकारी हैं। इसीसलए इस उद्योग को और अधिक
ववकससत करने क
े सलए भारत िें वषव 1991 को प्रथि बार ‘‘पयवटन वषव’’ क
े रूप िें िनाया गया।
िानव प्राचीन काल से ही अन्वेषक स्वभाव का रहा है, जैसे वास्कोडिगािा, कोलम्पबस आदद जजन्हें नवीन स्थानों परीभ्रिण
करना तथा नवीन स्थलों की खोज करने िें रूधच थी इसससलये इन्हें भी कहा जाता है। इसी प्रकार प्राचीन सिय से ही अनेक लोग
व्यवसाय एवं ििव क
े प्रचार-प्रसार हेतु एक स्थान से अन्य स्थान की यात्रा करते थे। आिुतनक युग िे ंं अवकाश, िनोरंजन,
व्यवसाय अथवा अन्य क्रकसी प्रयोजन हेतु एक स्थान से अन्य स्थान पर की गई यात्रा को पयवटन कहा जाता है।
पयवटन उद्योग को सेवा क
े उद्योग क
े रूप िें भी पररभावषत क्रकया गया है, जजसिें िुख्य रूप से अग्रानुसार तीन उप-उद्योगों को
सजम्पिसलत क्रकया गया है -
याब्रत्रयों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाना व ले जाना।
याब्रत्रयों क
े ठहरने हेतु स्थान उपलब्ि कराना, जैसे होटल, लॉज, ििवशाला आदद।
पयवटकों की आवश्यकता पूतत व हेतु खान-पान, िनोरंजन तथा भ्रिण हेतु दटक्रकट बुक्रकं ग या वाहन बुक्रकं ग एवं अन्य
आवश्यक वस्तुओ ं को उपलब्ि कराना।
वतविान िें पयवटन उद्योग ववश्व का सबसे बड़ा उद्योग िाना जाता है। ववश्व िें अनेक दे शों की अथवव्यवस्था िुख्य रूप से
पयवटन पर आिाररत है। भारत पयवटन उद्योग िें असीि संभावनाओ ं वाला देश िाना जाता है, जजसिें ि.प्र. पयवटन उद्योग
उज्जवल संभावनाओ ंवाला प्रदेश है।
िेरे द्वारा शोि हेतु उपरोक्त ववषय का चयन इससलये क्रकया गया क्यो क्रक िुझे यह जानकारी प्रा्त करने िे रूधच है क्रक, क्या
ि.प्र. पयवटन प्रदेश क
े आधथवक ववकास िें िहत्वपूणव योगदान प्रदान कर सकता है? साथ ही िैं इस बात की जानकारी भी प्रा्त
करना चाहता हू क्रक, ि.प्र. पयवटन उद्योग िें ववकास की क्या संभावनाएँ तथा क्या वास्तववकताएँ हैं?
हिारे गौरवपूणव इततहास से लेकर आजादी क
े पश्चात जब शासन की बागिोर हिारे हाथों िे आई तो हिारे राष्ट्रनेताओ ं ने देश क
े
उत्थान तथा ववश्व िें अपनी पहचान बनाने हेतु बल ददया तथा पयवटन उद्योग पर भी बेहद कायव क्रकया है, जजसक
े अंतगवत
नवीन योजनाओ ं का तनिावण क्रकया गया है। उन्हीं का अनुसरण करते हुए हिारी वतविान शासन प्रणाली भी पयवटन उद्योग तथा
इस पर तनभवर दहतग्रादहयों एवं सववसम्पबंधितों क
े दहताथव कई योजनाएँ संचासलत कर रही है जजससे ववश्व िें हिारे दे श, हिारे
राज्य की एक कीतत व स्थावपत हो सक
े तथा दे श-ववदे श से नागररक भारत िे भ्रिण पर आए तथा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से भी
भारतीय िुख्य ववकससत दे शों की कतार िें खड़ा हो सक
े । आज ववदे शी पयवटक भारत िें क
े वल तनिवनता एवं भुखिरी को
तनहारने आते है, जबक्रक सत्य तो यह है क्रक इसक
े अततररक्त भी हिारे देश िें ऐसे कई स्थान है जो क्रक अतुल्य है तदथव शासन ने
‘‘अतुल्य भारत ’’ का नारा ददया है। इसी पररपेक्ष्य िें पयवटन क
े ववकास एवं आधथवक सिृद्धि हेतु क
े न्र शासन ने वषव 2002 िें
एक नीतत बनाई जजसका नाि राष्ट्टीय पयवटन नीतत रखा गया। इन्हीं नीतत तनयिों पयवटन उद्योग िें संभावनाएँ एवं चुनौततयों
को खोजने हेतु िेरे द्वारा अग्रानुसार अध्ययन क्रकया जा रहा है।
भारत एक ववकासशील दे श है। शासन दे श को ववकससत बनाने हेतु तनरंतर प्रयासरत है एवं इस प्रयास का एक दहस्सा पयवटन
उद्योग ववकससत करना है। इसक
े साथ ही तनिवनता एवं ग्रािीण वपछड़ापन भी हिारे देश क
े ववकास की गतत िें एक अवरोि है।
अतः यदद पयवटन उद्योग िें छ
ु पी संभावनाओ ं को तलाशा जाए तथा उन संभावनाओ ंपर और अधिक कायव क्रकया जाए तो दे श से
तनिवनता, बेरोजगारी, ववदेशी िुरा की किी आदद जैसी कई सिस्याओ ंसे एक सीिा तक िुजक्त सिल सकती है। पयवटन उद्योग
पर क
े न्र तथा राज्य शासन द्वारा कई नीतत तनयि तथा योजनाएँ तनसिवत की गई है जैसे िध्यप्रदे श राज्य वन नीतत-1952,
पुनरीक्षक्षत राष्ट्टंंरीय वन नीतत-1998, राष्ट्टंंरीय पयवटन नीतत-2002 (संशोधित), बेि एंि िेकफास्ट योजना, िध्यप्रदे श राज्य
वन नीतत-2005, आदद। उक्त योजनाओ ं का उद्दे श्य देश की ऐततहाससक िरोहर वन्य प्राणी तथा बाग-बगीचों सदहत स्थायी
संपदाओ ं का तनिावण करना, उनका उधचत रख-रखाव करना तथा उनका संरक्षण करना रहा है। साथ ही ग्रािीण क्षेत्रों िें
तनवासरत आधथवक रूप से किजोर पररवारों की आजीववका संसािन आिार को िजबूती देना है। इन योजनाओ ं िे सुझाए गए
कायों िे वन ववनाश, प्राचीन िरोहरों क
े क्षरण आदद ऐसे कारणों को दूर करने का प्रयास क्रकया गया है जो स्थायी तनिवनता को
जन्ि देते है। उक्त योजनाओ ं िें स्थाई सम्पपदाओ ं क
े तनिावण जैसी पररयोजनाओ ं को शासिल करने क
े पीछे शासन की सोच यह
है क्रक रोजगार संवद्विन की प्रक्रिया एक स्थाई आिार पर सतत अववराि चलती रहे साथ ही पयवटन उद्योग तीव्र गतत से
ववकससत हो सक
ें ।
पयवटन का एततहाससक पररचय
सिुरी यात्राऐं-
िध्य युग िें पुतवगासलयों द्वारा कई िहासागरीय यात्राएँ की गयी जजनकों राजक
ु िार हैनरी (1482 ई0) कोलम्पबस
(1492ए0िी0) वास्कोडिगािा (1498ई0), िैगलन (1520 ई0) की यात्राएँ ववशेष िहत्वपूणव रखती है। 1524 िें फ्ांस से
जैक्रकं क्स कादटवयर से सें टलारेंस नदी क्षेत्र की यात्रा की। 1660 ई0 िें इंग्लैण्ि क
े अंग्रेजों ने वजीतनया क्षेत्र की यात्रा की। 17वीं
शताब्दी िे ववकास का क
ु छ कायव वारेततनयस द्वारा क्रकया गया ।
अठारहवी ंं शताब्दी यात्रा ववकास का स्वणव युग कही जा सकती है जजसिें ववशेषकर 1763 से 1793 क
े िध्य 30 वषव तक
यात्रायें की गयी एंव ये यात्रायें अधिकांशतः इटली उस सिय प्रबुद्ि व्यजक्तयों की राजिानी थी। अट्ठारहवीं शताब्दी िें न ससफव
िनाढ् य वगव क
े लोग इटली यात्रा पर आये बजल्क अनेकों, कवव, लेखक तथा बुद्धिजीववयों ने भी इटली यात्रा की
वासशवक अवकाषो का प्रारम्पभ
18वीं शताब्दी िें यूरोप िें वावषवक अवकाशों का प्रारम्पभ क्रकया गया, जो एक िहत्वपूणव घटक बनी जजससे व्यजक्तयों को िात्रा
करने क
े सलए अवसर एंव सिय प्रदान क्रकया तथा इसी क
े कारण 20 वीं शताब्दी िे पयवटन का असािारण ववकास हुआ।
19वीं षताब्दी से यात्रा का ववकास
औद्योधगक ववकास एंव संचार सािनों का ववकास (नये -नये आववष्ट्कार जैसे छपाई िशीन, दूरबीन, क
ै िरा आदद) क
े कारण
हुआ।
19 वीं शाताब्दी क
े अजन्ति चौथाई भाग तक किवचाररयों को अवैततनक अवकाश पर ववचार क्रकया गया तथा ध्यान ददया गया,
तब युरोप क
े क
ु छ कारखानों िें अपने किवचाररयों को सवेतन अवकाश देना आरम्पभ क्रकया।
20वीं शताब्दी क
े प्रारम्पभ होने तक आिुतनक पयवटन की सभी िुख्य ववशेषताएँ भ्रिण क
े रूप िें स्पष्ट्ट होने लगी थी। िानव क
े
स्वभाव िें आनन्द की खोज, सशक्षा, ज्ञान क
े सलए यात्रा, भौततक सम्पपदा एंव सािनों िे वृद्धि, या ा़
त्रा को सािाजजक प्रततष्ट्ठा का
िापदण्ि, िानव को दैतनक कायों िें आराि करने की बढ़ती आवश्यकता, याब्रत्रयों की पररवहन व्यवस्था िें सुिार आदद।
प्रथि ववश्व युद्ि क
े कारण पयवटन
प्रथि ववश्व युद्ि क
े कारण पयवटन ववकास को िक्का लगा, क्योंक्रक पयवटन शाजन्त िें ही ववकास करता है। प्रथि ववश्व युद्ि क
े
पश्चात की अवधि िें पयवटन पुनः ववश्व युद्ि से पहले क
े स्तर को प्रा्त हो गया तथा लोगों िे अन्तरावष्ट्रीय पयवटन की प्रकृ तत
िे पररवतवन एंव क्षेत्र िें असभवृद्धि की।
प्रथि ववश्व युद्ि िें िोटरकार का ववकास हो जाने पर यूरोप तथा अिेररका िें पयवटन को बढ़ावा सिला। इसी क
े साथ-साथ
प्राइवेट तथा साववजतनक सड़क पररवहन व सिक क
े ववकास ने पयवटन िें तेजी से ववकास क्रकया।
नौकरी पे शों से जुिे किवचाररयों को क
ु छ ऐसा अवकाश सिलना आरम्पभ हुआ जजसिें अवकाश अवधि का उन्हें पूणव वेतन भी नही
सिलता था। बाद िें 1938 िें वावषवक संवैततनक अवकाश प्रारम्पभ, हुआ, इससे भी पयवटन का ंे काफी बढ़ावा सिला।
द्ववतीय ववश्वयुद्ि तछि जाने पर पुनः पयवटन को िक्का लगा क्यों क्रक इस सिय िन-जन की अपार क्षतत हुई।
आजादी क
े बाद भारत िे पयवटन ववकास
ववश्व िें भारत एक बहुत ही िहत्वपूणव वैभवशाली पयवटन उद्देसशत स्थान है भारत क
े असीसित भण्िार िें पयाववरण सम्पबन्िी
िनिोहक सम्पपदा, सुन्दरता तथा अटू ट सांस्कृ ततक परम्पपराओ ं की बहुत ही वववविताव तनरन्तरता है। यहाँ की बदलती हुई
िौसिें, जलवायु की वववविता, दहिन्छाददत पववतिालायें, सिुरी तट, सदाबहार, हरा-भरा क
े रल, रणबांक
ु रो और स्वासभिानी
राजाओ ं की भूसि राजस्थान, चार पववत्र िािों की भूसि, ववसभन्न ििो और िासिवक स्थलों का दे श भारत पयवटन की दृजष्ट्ट से
ववश्वभर क
ें पयवटकों को सदा से ही आकवषवत करता रहा है। िोहन जोदिों और हि्पा क
े अवशेष, िावयकालीन कौशाम्पबी, वैशाली
और उज्जैन, अशोककालीन पाटलीपुत्र और नालंदा, िहाराष्ट्र िें अजन्ता एलोरा और एलीफ
ै न्टा की गुफायें, िध्य प्रदे श की
खजुराहो-िूतत वयाँ यहाँ क
े प्रिुख पयवटन आकषवण क
े न्र है। क
ु तुबिीनार, ताजिहल, फतेहपुर सीकरी, लालक्रकला, सारनाथ,
अजिेर शरीफ, बौद्ि गया, राजगीर, नालंदा, इलाहाबाद का संगि, आन्र प्रदेश का भगवान ततरूपतत जी लाखों पयवटकों को
बरबस अपने और आकवषवत करती है।
भारत िे पयवटन का वतविान पररदृश्य
अपनी प्राकृ ततक, सांस्कृ ततक, िासिवक और सदहष्ट्णु ववरासत क
े सलए भारत िें स्वतंत्रता क
े बाद पयवटन क
े क्षेत्र िें बहुत वृद्धि
की है। वतविान िें पयवटन एक उद्योग का रूप ले चुका है। पहले पयवटन को सशक्षा का एक िाध्यि सिझा जाता था। पयवटन
उद्योग क
े साथ-साथ एक ऐसी शाजक्त क
े रूप िे सािने आ रहा है जो ववश्व क
े सांस्कृ ततक एकीकरण िें एक िील को पत्थर
साब्रबत होगा। पयवटन क
े िहत्व को देखते हुए आजादी क
े बाद सरकार ने 1952 िें पयवटन हेतु पला सिुर पार कायावलय न्यूयाकव
िें खोला । 1957 िें फ
ें कफ
ु टव िें भी दूसरा पयवटन कायावलय खुला। टु ररज्ि रैक्रफक िांच क
े स्थान पर पररवहन एंव संचार िंत्रालय
क
े अिीन पयवटन ववभाग की स्थापना की गयी।
1963 िें तत्कालीन ववŸंा सधचव एल0क
े 0 झा की अध्यक्षता िें सरकार ने एक पदाथव ससितत का गठन क्रकया। तत्कासलन
पयवटन िहातनदेशक को इस ससितत का सधचव बनाया गया। इस ससितत ने पयवटन को बढ़ावा देने क
े ववसभन्न सुझाव ददये।
अध्ययन का उद्देष्ट्य
कसी शोि कायव को सम्पपन्न करने क
े सलए उसक
े उद्देश्यों का तनिावरण करना आवश्यक है। प्रत्ये क िानवीय प्रयास क
े िूल िें
कोई न कोई उद्देश्य अवश्य तनदहत होता है। सभी शोि कायों का िूल उद्देश्य ज्ञान िें वृद्धि करना, अज्ञात की जानकारी प्रा्त
करने क
े प्रयास करना अथवा सम्पबंधित ववषय िें सुिार करना है,
ब्रबना उद्देश्य क
े शोि कायव उस यात्रा क
े सिान है, जजसका गन्तव्य स्थान स्वयं चालक को भी पता नहीं है।
शोिकायव का उद्देश्य िध्यप्रदे श क
े शहिोल जजले िें वतविान पयवटन ववकास की जस्थतत का पता लगाने तथा उसकी
सभावनाओ ंको आँकना तथा ववकास की सिस्यायें तथा उनका तनदान-िागव-दशवन करना इस शोिकायव का उद्दे श्य है। राज्य क
े
तनिावण क
े बाद िें यहाँ की सरकार इस और ववशेष ध्यान दे रही है।
शहिोल जजले िें पयवटन व्ययवसाय की वास्तववक जस्थतत का अवलोकन करना।
शहिोल जजले िें पयवटन व्यवसाय िें रोजगार की संभावनाएँ क
े संबंि िें अध्ययन करना है।
शहिोल जजले िें पयवटन व्यवसाय क
े अन्तगवत होटल एवं रे स्टोरें ट उद्योग, पररवहन उद्योगों क
े सलए तनिावररत
सरकारी नीततयों आदद का अध्ययन करक
े , कसियाँ पता लगा कर उनक
े सिािान प्रस्तुत करना।
शासन द्वारा पयवटन क
े प्रोत्साहन हेतु क्रकये गए प्रयासों का अध्ययन करना।
शहिोल जजले िें पयवटन उद्योग िें सुिार हेतु प्रयास क
े सुझाव प्रस्तुत करना।
इस प्रकार चयतनत शोि कायव का उद्देश्य दे श व सिाज िें सवविान्य िहत्वपूणव स्थान रखने वाले वगव का उनक
े जीवन यापन
करने एवं देश िें पयवटन की जस्थतत सुिारने क
े उद्देश्य से शासन द्वारा चलाये जा रहे ववसभन्न कायवििों तथा दे श िें पयवटन
की जस्थतत को ज्ञात करने क
े सलये ववश्लेषणात्िक अध्ययन कर आवश्यक सुझाव प्रस्तुत करना है।
षोि पररकल्पना
उपकल्पना एक ऐसा पूवव ववचार, तनष्ट्कषव, कथन सािान्यीकरण, अिूतीकरण, अनुिान या प्रस्तावना है। जजसे अनुसंिानकताव
अपनी शोि की सिस्या हेतु तनसिवत करता है और इसकी सत्यता की जॉच करने क
े सलये आवश्यक सूचनाओ ं का संकलन करता
है।
शहिोल जजले िें अभी भी पयवटन स्थल पर बहुत सी सिस्यायें है।
शहिोल जजले िें पयवटन व्यावसाय िें रोजगार की अपार संभावनाएँ है।
शहिोल जजले िें पयवटन व्यावसाय का प्रदेश की अथवव्यवस्था िें िहत्वपूणव योगदान है।
शहिोल जजले िें पयवटन व्यवसाय िें ववतनयोग की अपार संभावनाएँ है।
शहिोल जजले िें पयवटन उद्योग तनरन्तर उन्नतत कर रहा है।
अध्ययन की प्रववधियाँ
प्रस्तुत शोि प्रबन्ि िें िेरे द्वारा संग्रदहत ववसभन्न सिंकों का गहन परीक्षण तथा तनरीक्षण क्रकया गया है साथ ही अशुद्ि तथा
सन्देहास्पद सिंकों की शुद्िता एवं पूणवता की दृजष्ट्ट से ववसभन्न पत्र-पब्रत्रकाओ ं िें प्रकासशत सािग्री, सम्पबजन्ित लोगों से
व्यजक्तगत सम्पपकव तथा ववभाग क
े वररष्ट्ठ अधिकाररयों से आवश्यक िागवदशवन प्रा्त कर ववश्लेषण को शुद्ि, तनष्ट्पक्ष तथा
प्रभावी बनाने का प्रयास क्रकया गया हैं। शोि कायव क
े उद्देश्य की साथवकता को बनाये रखने क
े सलये िेरे द्वारा आवश्यक सिंकों
का पूणव सम्पपादन क्रकया गया है। अध्ययन को व्यवहाररक रूप प्रदान करने की दृजष्ट्ट से वास्तववक संख्याओ ं का प्रयोग क्रकया
गया है जजससे क्रक उन्हें सरल एवं बोिगम्पय बनाया जा सक
े ।
प्रस्ताववत अध्ययन ववश्लेषणात्िक प्रकृ तत का अध्ययन है अतः इस हेतु अग्रसलखखत शोि प्रववधि का प्रयोग क्रकया जाएगा।
उपयुवक्त अध्ययन िें प्राथसिक एवं द्ववतीयक सिंको को शासिल क्रकया जाये गा प्राथसिक सिंक हेतु प्रश्नावली क
े िाध्यि से
आंकड़ों को एकब्रत्रत क्रकया जायेगा साथ ही साथ साक्षात्कार प्रणाली का भी प्रयोग क्रकया जायेगा, साथ ही द्ववतीय सिंक हेतु
ववसभन्न पत्र-पब्रत्रकाओ ं िें प्रकासशत सािग्री, का भी प्रयोग क्रकया जायेगा।
अध्ययन िें तनदशवन प्रणाली का उपयोग करते हुए उद्देश्य पूणव न्यादशव तनदशवन प्रणाली का उपयोग क्रकया जायेगा जो सिग्र िें
से क
ु छ पयवटन स्थलों का चयन कर उसिें क्रियाजन्वत योजना से आंकड़े एकब्रत्रत करने क
े सलए होगा।
प्रस्तुत शोि प्रबन्ि िें अध्ययन की रूपरेखा से सम्पबजन्ित ववसभन्न अध्यायों िें प्रयुक्त सिंकों को सारणीबद्ि क्रकया गया है।
सारणीयन का उपयोग अध्ययन को संक्षक्ष्त एवं पूणव बनाने तथा सम्पबजन्ित तथ्यों को सरल एवं आकषवक बनाने क
े सलए क्रकया
गया है। प्रयुक्त की गई ववसभन्न सारखणयों को उपयुक्त चाटव से भी प्रदसशवत क्रकया गया है।
षोि अध्ययन का िहत्व
वतविान सिय िें पयवटन का िहत्व आधथवक, सािाजजक एंव सांस्कृ ततक सभी दृजष्ट्टकोणों से लगातार बढ़ता जा रहा है। पयवटन
से िानव िें नवीन स्फ
ू तत व का संचार होता है। िानव ने तकनीकी को प्रयोग करक
े अनेक संसािनों का आववष्ट्कार क्रकया। तीव्र
पररवहन क
े सािनों तथा दूरसंचार िाजन्त ने ववश्व को बहुत छोटी इकाई बना ददया। ववदेशी संस्कृ तत िें वषव िे ंंएक बार यात्रा,
िहीने लघु तथा स्ताह क
े अंत िे तनकटति पयवटक िें वषव िें एक बार बिी यात्रा, िहीने िे लघु तथा स्ताह क
े अंत िें
तनकटति पयवटक स्थल पर जाकर िौज-िस्ती कर पुनः स्फ
ू तत व प्रा्त करना परम्पपरा बन गई है। ववकास और सम्पपन्नता जहाँ
तनाव एंव डिप्रे शन जैसी बीिाररयाँ भी इसी नयी सभ्यता की देन है। पयवटक िानव को स्वपनों क
े इस आलोक िें ले जाकर खिा
कर देता है जहाँ िनुष्ट्य क
ु छ पलों घण्टों ददनों क
े सलए अपने तिाि तनाव भरे जीवन को भूल जाता है। दे श व ववदे श क
े लोगों की
बीच आपसी सम्पबन्ि भी िजबूत होते है। आज पयवटन को क्रकसी क्षेत्र क
े ववकास की क
ुँ जी तक िानी जाने लगी है।
साक्षात्कार अनुसूची
ववषय की स्वीकृ तत सिल जाने क
े उपरांत साक्षात्कार अनुसूची का तनिावण क्रकया गया है। यह साक्षात्कार ििांक 1 िें संलग्न है।
साक्षात्कार अनुसूची िें शहिोल नगर िें आने वाले पयवटकों को ववश्वास ददलाने क
े सलये घोषणा पत्र ददया गया है, तथा उन्हें यह
बतलाया गया है प्रस्तुत अध्ययन एवं शैक्षखणक उद्देश्य से क्रकया जा रहा है तथा उसक
े द्वारा प्रा्त जानकारी को पूरी तरह से
गोपनीय रखा जायेगा साथ ही उनसे यह आशा व्यक्त की गयी है क्रक साक्षात्कार अनुसूची िें ददये गये तथ्यों की सही-सही
जानकारी प्रदान करें।
षोि की सीिाऐं
यद्यवप िेरे अध्ययन का ववषय एक सीिा तक तनिावररत है। हर अध्ययन की क
ु छ ववसशष्ट्ट सीिाएं होती है। िेरा प्रस्तुत
अध्ययन भी सीिाओ ं से परे नहीं है। िेरे अध्ययन की पहली सीिा यह है क्रक प्रस्तुत शोि कायव िात्र शहिोल नगर क
े पयवटन
स्थल से सम्पबजन्ित है। िेरे अध्ययन की दूसरी सीिा यह है क्रक िैने ससफव 100 पयवटकों का साक्षात्कार क्रकया है। जहाँ तक
सम्पभव हो सका है उपयुक्त दोनों सीिाओ ं क
े तहत िैने अपने अध्ययन को अधिक वैज्ञातनक और ववश्लेषणात्िक प्रयास क्रकया
है।
अध्ययन की उपादेयता
शोि कायव क
े उद्दे श्यों की साथवकता को बनाए रखने क
े सलये उसका िहत्व तथा उपयोधगता का जानना अत्यंत आवश्यक है,
क्योंक्रक िहत्वहीन तथा अनुपयोगी शोि क्रकसी जस्थतत िें शोि कायव का रूप नहीं ले सकता। ऐसे कायव को क
े वल सिय, श्रि
तथा िन का अपव्यय ही सिझा जा सकता है। अतः यह आवश्यक हो जाता है क्रक शोि कायव करते सिय ववषय क
े िहत्व तथा
उसकी उपयोधगता को ध्यान िें रखा जाये जजससे क्रक शोि प्रबन्ि को सम्पपूणवता प्रदान की जा सक
े एवं राष्ट्ट, सम्पबंधित ववभाग,
संस्था अथवा उपिि को शोि अध्ययन से प्रा्त पररणािों क
े द्वारा ववसभन्न रूपों िें लाभाजन्वत क्रकया जा सक
े ।
िेरा प्रयास रहेगा क्रक शहिोल जजले क
े चयतनत पयवटन क्षेत्रों िें सवेक्षण क
े द्वारा पयवटन उद्योग का ववश्लेषणात्िक अध्ययन
कर पयवटन उद्योग क
े लाभों को ववसभन्न क्षेत्रों तक पहुँचाने िें िदद सिले। जो ग्रािीण पररवार पयवटन उद्योग तथा इससे
सम्पबंधित रोजगार से अनसभज्ञ है, वे भी शोि िें प्रस्तुत सुझावों व तनष्ट्कषो से इनका लाभ उठा सक
े । साथ ही यदद दे श िें पयवटन
उद्योग का उधचत क्रियान्वयन क्रकया जाता है तो दे श व सिाज क
े आधथवक स्तर िें भी सुिार आ सक
े गा। अतः िेरे द्वारा क्रकया
जाने वाला शोि कायव तनजश्चत ही सिाज क
े सलए उपयोगी ससद्ि होगा। यह सववववददत है क्रक शासन द्वारा सािारण व्यजक्त
ववशेषतः वंधचत वगो, तनिवनों तथा ग्रािीण पररवारों क
े सलए अनेक कायविि चलाए जाते है। शासन क
े द्वारा जनता की सेवा
बेहतर ढ़ं ग से करने क
े सलए कई ववभाग बनाए गये हैं। िहत्वपूणव योजनाओ ं ववशेषतः पयवटन उद्योग से सम्पबंधित योजनाओ ं
की ववश्लेषणात्िक जानकारी किवचाररयों तक पहुंचाने िें यह शोि िहत्वपूणव भूसिका का तनववहन करेगा। प्रत्येक ववभाग क
े
कायवकताव, किवचारी एवं अधिकारी इस शोि को साविानी पूववक पढ़कर, सिझकर उधचत रूप से क्रियाजन्वत करते सिय इसका
उपयोग कर सकते हैं। प्रस्तुत शोि का उपयोग कई प्रकार से हो सकता है, जैसे क्रकसी योजना िें किवचारी स्वयं क
े द्वारा क
ु छ
भूसिका अदा की जानी है तो उसी भूसिका को अच्छी तरह सिझने क
े पश्चात उसका तनववहन सफलतापूववक क्रकया जा सक
े , यह
पहली एवं सबसे बिी ा़अतनवायव उपयोधगता है।
अध्याय-2
अध्ययन क्षेत्र रीवा जजले का पररचय
रीवा की भौगोसलक सरंचना
रीवा िध्य प्रवेश क
े उत्तरी पूवी राज्य िे जस्थत है। पहले यह रीवा राज्य िे जस्थत है। पहले यह रीवा राज्य क
े नाि से जाना जाता
था ऐसा िाना जाता है। क्रक रीवा क
े पूवव नाि निवदा नदी क
े पयावयवाची शब्द रेखा से पड़ा है। रीवा जजला का प्राचीन नाि रेवा था।
तथा उसक
े आस-पास क
े भू-भाग को रेवा खंि कहा जाता था। वतविान िे उच्चारण की अशुध्दी क
े कारण इसे रीवा कहा जाने
लगा है। क्रकन्तु अंग्रेजा िे आज भी इसका नाि रेवा (त्िं।) ही सलखा जाता है। रीवा की पहचान भारत िे ही नही अवपतु ववश्व िे
सफ
े द शेर की जन्िस्थल क
े रूप िे प्रससद्ि है।
ऐततहाससक पृष्ट्ठभूसि- रीवा राज्य क
े इततहास ने अनेक युग देखे है। अगर इसक
े अतीत की ओर नजर िाली जाए तो इसकी कई
तस्वीरें सािने आऐगी। सम्राट अशोक द्िारा तनसिवत भरहुत क
े स्तूप (रीवा सतना व गोरगी रीवा शहर से 10 क्रक.िी पूवाव) सांची
है। क्रक यह क्षेत्र ईशा पूवव दूसरी एवं तीसरी शताब्दी िे िहान िौयव साम्राज्य का अंग था। इसक
े बाद इस क्षेत्र िे शुंग वंश का
अधिकार हो गया। ईसा की चौथी एवं पॉचवी शताब्दी िे इसका इततहास अंिकारिय रहा। नविी एवं ग्यारहवी शताब्दी िे इस
क्षेत्र की सत्ता कल्चुररयों क
े हाथ िे रही। इसक
े बाद यह भू-भाग सेगरों, चौहानो, भारसशवों तथा गौड़ राजाओ ं क
े आिीन रहा।
इस प्रकार इस भू-भाग िे एक नवीन राज्य का उदय हुआ जजसे रीवा राज्य कहा गया। बरहवी शताब्दी क
े बाद इस भू-भाग िे
बघेल राजाओ ं की सत्ता का सुत्रपात हुआ। तेरहवी शताब्दी तक यह भू-भाग बघेल वंश की भू सत्ता िे आया तथा स्वतंत्रता पूवव
तक उन्ही को सत्ता क
े आिीन रहा। बघेल राजवंश क
े संस्थापक व्यारदेव गुजरात प्रान्त क
े अदहतवारा जागीर क
े बघेल कस्बे क
े
तनवासी थे। ये गुजरात से तीथव यात्रा क
े उद्देश्य से उत्तर भारत की ओर आए और कसलंजर क
े तनकट िारफ क्रकले पर जो क्रक
वीरान हालत िे था। पर अपना अधिकार स्थावपत क्रकया। रीवा राजदारबार क
े प्रलेखों क
े अनुसार व्यारदेव क
े यहां आने का
सम्पवत 1233- 34 था।
इस प्रकार इस भू-भाग िे एक नवीन राज्य का उदय हुआ जजसे रीवा राज्य कहा गया। बरहवी शताब्दी क
े बाद इस भू-भाग िे
बघेल राजाओ ं की सत्ता का सुत्रपात हुआ। तेरहवी शताब्दी तक यह भू-भाग बघेल वंश की भू सत्ता िे आया तथा स्वतंत्रता पूवव
तक उन्ही को सत्ता क
े आिीन रहा। बघेल राजवंश क
े संस्थापक व्यारदेव गुजरात प्रान्त क
े अदहतवारा जागीर क
े बघेल कस्बे क
े
तनवासी थे। ये गुजरात से तीथव यात्रा क
े उद्देश्य से उत्तर भारत की ओर आए और कसलंजर क
े तनकट िारफ क्रकले पर जो क्रक
वीरान हालत िे था। पर अपना अधिकार स्थावपत क्रकया। रीवा राजदारबार क
े प्रलेखों क
े अनुसार व्यारदेव क
े यहां आने का
सम्पवत 1233- 34 था। पहले ववन््य प्रदे श िें आठ जजले हुआ करता थे । रीवा, सतना, सीिी, पन्ना, छतरपुर, शहिोल, दततया।
लेक्रकन बाद िें क
ु छ प्रशासतनक कारणो व सुवविा को देखते हुए दततया को शासिल क्रकया गया।
इन्होने अपने परािि से िारफा राज्य राजिानी बनाकर अपने राज्य का ववस्तर कायव प्रारंभ क्रकया। यह राज्य ववन्ि पववत क
े
उत्तरी भाग पर गोहरा क
े नाि से प्रससद्ि है। व्याघ्रदेव की िुत्योपरान्त उनक
े बड़े बेटे कणवदेव ने ससंहासन सम्पहाला। उनका
वववाह रतनपुर क
े हेह्यवंशी राजा सोिदत्त की पुत्री पद्िा क
ु आरी से हुआ जजसिे दहेज िे उन्हे बांिवगढ़ का क्रकला और आस-
पास का प्रदेश प्रा्त हुआ।
कणवदेव ने बांिवगढ़ को अपनी राजिानी बनाया जो क्रक सन 1597 तक ववद्िान रही परन्तु अकबर की सािारज्य ववस्तर का
नीततयो क
े कारण 5 वषो क
े सलए यह भू-भाग बघेल राजाओ ं क
े हाथों से तनकल गया। सन 1602 िे बघेल राजा ववििाददत्य
जजनका शासन काल सन 1503 से सन 1624 ई. तक राजिानी बनाया इस सम्पबन्ि िे कहा जाता है। क्रक एक बार राजा
ववििाददत्य सशकार खेलने क
े उद्दे श्य से उत्तर की ओर आए तो उन्हे बीहर और ब्रबतछया नददयों क
े संगि पर एक अिव तनसिवत
क्रकला सिला जजसे सलीिशाह द्वारा बनवाय गया यह िाना जाता है। राजा ववििददत्य को यह क्रकला और उसक
े आपास का
वातावरण पसंद आया और उन्होने इसे राजिानी बनाने क
े उद्दे श्य से इस क्रकले को बनावाया अस परकोटे क
े अन्दर एक वस्ती
बसायी जो आज भी उपरहटी िोहल्ले क
े रूप िे जानी जाती है।
कालििानुसार राजा जयससंह गद्दी पर बैठे जो एक सुयोग्य शासन थे। परन्तु उस सिय इनक
े राज्य की आधथवक जस्थतत बहुत
अच्छी नही थी जजससे राजा जयससंह का शासन रीवा राज्य ब्रिदटश की सुरक्षा िे चला गया। राजा जयससंह ने अपनी िुत्यु से पूवव
अपने पुत्र ववश्वनाथ ससंह को क
ु ल राजभार सौप ददया था।
रीवा राज्या का आिुतनक काल प्रवतवक ववश्वानाथ ससंह क
े शासन से प्रारंभ हुआ। इसक
े बाद शासन िहाराजा रघुराज ससंह ने
हाथों िे गया जजससे रीवा जजला क
े ववकास की कड़ी प्रारंभ हुई। िहाराजा रघुराज ससंह ने सववप्रथि 1850 िे लक्षिण बाग जस्थत
िंददर का तनिावण कराया जो वतविान िे आज भी अजस्तत्व िे है। इसक
े बाद 1858 िे संस्कृ त िहाववद्यालय एवं 1908 िे
वेंकट भवन का तनिावण कराया गया।
ििानुसार िहाराजा गुलाब ससंह का शासन काल प्रारंभ हुआ। िहाराजा गुलाब ससंह ने अनपे शासन काल िे सशक्षा को सवावधिक
िहत्व ददया। उन्होने 129 प्राथसिक स्क
ू ल, उपिहाध्यसिक स्क
ू ल, 03 हायरसे क
े ण्िरी, 01 िहाववद्यालय, 01 संस्कृ त
पाठशाला, 01 टीचर टेरेतनंग स्क
ू ल तथा कई पुस्तकालयों की स्थापना कराई।
िहाराजा गुलाब ससंह ने कृ षकों की सहायता हेतु सववप्रथि ससंचाई योजना क
े तहत सललजी बांि, बांि बनाया गया। सन 1930-
31 िे स्तादहक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ क्रकया गया। धचक्रकत्सा क
े क्षेत्र िे िदहलाओ ं की सुवविा हेतु जुबली जनाना अस्पताल की
स्थापना की गयी, इन्ही क
े शासन काल िे रीवा, सतना, उिररया िे ताप ववद्युत गृहों का भी तनिावण क्रकया गया। बैंक्रकक क्षेत्र िे
बैंक ऑफ बघेलखण्ि एवं स्टेट गजेदटयर का प्रकाशन इसी शासन काल िे हुआ। सन 1934 िे िहाराजा गुलाब ससंह ने बाल
वववाह पर प्रततबन्ि लगया। साथ ही कई लघु शासन काल क
े अजन्ति वषव िहाराजा गुलाब ससंह ने ऐसी िहान िावत्तकारी घोषण
की थी। जजसे इततहास आज तक भुला नही पाया। भारत िे रीवा ही एक ऐसी ररयासत थी जजसे 16 अक्टूबर 1945 को िहाराजा
गुलाब ससंह ने पूणव उत्तरदायी सरकार द्िारा स्थावपत करने की घोषण की और 16 अक्टूबर 1945 क
े दशहरे क
े पावन ददन रीवा
का शासन रीवावाससयों को सौपते हुए। िहाराजा गुलाब ससंह ने कहा था क्रक रीवा ररिहों का है अस्तु ररिहों का शासन ररिहों क
े
सलए ररतहों द्वारा हो।
िहाराजों गुलाब ससंह अत्यन्त दयालू और अपनी ररिही जनता क
े सल पूणवतया सिवपवत थे। कालिि क
े अनुसार िहाराजा
िातवण्ि ससंह ने 31 जनवरी 1946 से जनवरी 1950 क
े बीच िे म्पयूतनस्पेलटी क
े अधिकार स्थावपत लोगों को सौप ददए। सन
1946 क
े बाद 1947 िे ववध्यप्रदेश का पुनगवठन हुआ और रीवा पुनः राजिानी बना।
सन 1950 तक का काल ववकासशील रहा। इसिे 1969 िे इंजीतनयररंग कॉलेज, सैतनक स्क
ू ल, सन 1969 िे अविेश प्रताप
ससंह ववश्वववद्यालय, सन 1980 िे िेडिकल कॉलेज, कृ वष िहाववद्यालय, कन्या िहाववद्याय, रेडियों स्टे शन, टेलीववजन एवं
औद्योधगक क्षेत्र िे ववन्ध्य टेलीतनक्स, टिस एलेक्रातनक आदद की स्थापना की गई।
भौगोसलक जस्थत :- अपनी प्राकृ ततक जस्थतत क
े कारण िध्यप्रदे श िे रीवा जजला का ववशेष स्थान और प्राकृ ततक संपदाओ ं बहुत
ही िनी है। यह िध्यप्रदे श राज्य क
े उŸंार पूवव िे जस्थत है। रीवा जजला भारत क
े िानधचत्र िे 24 डिग्री, 32 अंक्षाश उŸंारी
अक्षांश तथा 81 डिग्री 24 अंश पूवी दे शान्तर पर जस्थत है। सिुर तल से इसकी ऊ
ं चाई 1045 क्रफट है। इस नगर क
े दक्षक्षण पूवव
की ओर ब्रबतछया और दक्षक्षण पजश्चि से आती हुई बीहर नदी है। रीवा जजला पूवव रीवा ररयासत की राजिानी रहा है। 4 अप्रैल
1948 को रीवा स्टे ट तथा बुंदेलखण्ि की 34 ररयासतों को सिलाकर ववध्यप्रदेश का तनिावण क्रकया गया था। उस सिय
इस नगर को नवतनसिवत प्रदेश की राजिानी बनने का गौरव प्रा्त हुआ था। 1 नवम्पबर 1956 को जब िध्यप्रदे श का तनिावण
हुआ। तब इस नगा को संभागीय िुख्यालय का दजाव प्रा्त हुआ। इस तरह प्रारंम्पभ से ही राजनीतत का क
े न्र रही है। रीवा क
े
दक्षक्षण और पजश्चि िे सतना जजला जस्थत है जबक्रक उŸंार प्रदेश का इलाहाबाद, सिजावपुर तथा बांदा जजला जस्थत है।
जलवायु एवं प्राकृ ततक संरचना
जलवायु- रीवा जजला की जलवायु को हि प्रिुख तीन भागो िे ववभाजजत कर सकते हैः-
नबम्पबर से फरवरी तक शीतकाल
िाचव से जून तक ग्रीष्ट्िकाल
15 जून से अक्टूबर वषावकाल
इस क्षेत्र का ववस्तार ककव रेखा क
े उŸंार िे होने क
े कारण यहां की जलवायु उष्ट्ण कदटबिीय है जजले का अधिकांश तापिाप
114 अंश फरनहाइट क
े लगभग है। यहां औसत वषाव 33.4 इंच है।
प्राकृ ततक सरचंना- रीवा जजले िे िुख्यतः पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्रो की बहुलता है। इसक
े दक्षक्षण िे क
ै िूर पहाड़ी भाग एवं उŸंार
पूवव िे ववन्ध्य श्रेणी है। इन दोनो क
े बीच पठारी क्षेत्र क
े चारों भागों िे ववभाजजत कर सकते है।- ववन्ध्य पहाड़ी, रीवा का पठार,
क
ै िूर की पहाड़ी, तनचला उŸंारी िैदान
रीवा जजले क
े अन्तगवत िुख्यतः टोन्स बीहर, ववतछया नदी बहती है। ये नददयॉ उŸंार पूवाव की ओर गंगा नदी िे सिलता है।
और ऊ
ं चे प्रपात बनाती है।
वषाव- रीवा जजले िे पॉच स्थानो पर वषाव िापी जाती है। रीवा, िऊ
ं गज, गोववन्दगढ़, त्योथर और ससरिौर यहॉ वषाव दक्षक्षण पूवव से
उŸंार पजश्चि की ओर कि होती है जुलाई अगस्त िुख्यतः वषाव क
े िाह है।
तापिान- रीवा जजले िे ददसम्पबर एवं जनवरी िाह िे सवावधिक ठड़ पड़ती है जजसका औसत तापिाप 28.0 डिग्री सेजल्सयस
रहता है िई जून क
े िाह सवावधिक गिी होती है। इस सिय अधिकतर तापिान 46 सेन्टीग्रट रहता है। वषाव की ऋतु निी क
े
कारण घट जाता है।
रीवा जजले की जनसंख्याः- जनसंख्या क्रकसी भी दे श की आधथवक सांस्कृ ततक एवं राजनैततक संरचना को प्रभाववत करती है। रीवा
जजले का इततहास लगभग 400 वषव पुराना है। सन 1981 तक यह लगभग 1000 एकड़ िे आबाद था। परन्तु वतविान िे इसका
क्षेत्रफल लगभग 52.37 वगव िीटर है। रीवा जजला सन 1956 से संभाग का िुख्यालय हैं 12 तहसीलों एवं 9 ववकास खण्िों क
े
दातयत्वों को तनववहन करता है। इसक
े अन्तगवत 9 जनपद पंचायते एवं 827 ग्राि सभाएं है। जजनका वववरण तनम्पन है।
तहसील- हूजूर, िऊगंज, त्योंथर, रायपुर, कचुवसलयान, जवा, हनुिना, गंगेव, ससरिौर, नईगढ़ी, गुढ़, िनगंवा
ववकासखण्ि- रीवा, रायपुर, कचुवसलयान, ससरिौर, जवा, त्योथर, िऊगंज, नईगढ़ी एवं गंगेव
जनपद पंचायत- रीवा, रायपुर कचुवसलयान, गंगेव, त्योथर, जवा, ससरिौर, हनुिना, नईगंढ़ी एवं िऊगंज
जनसंख्या वववरण- रीवा जजले की अधिकांश आबादी गांवो िें तनवास करती है रीवा जजले क
े नगरीय क्षेत्र िे क
ु ल 45 वािव है। सन
2001 की जनगणना क
े रीवा जजले की क
ु ल जनसंख्या 1972333 थी जजसिे पुरूषो की जनसंख्या 1017402 थी। तथा
िदहलाओ की जनसंख्या िे िदहलाओ की अपे क्षा पुरूषों की जनसंख्या अधिक थी। क
ु ल जनसंख्या िे ग्रािीण जनसंख्या
320475 थी। सन 2001 िे रीवा जजले का जनसाक्षरता प्रततशत 62.33ंः था।
वषव 2011 िे रीवा जजले की क
ु ल जनसंख्या 2,363,744 है। जजसिे पुरूषों की जनसंख्या 1224918 है। तथा िदहला ओ ं की
जनसंख्या 1138826 है। सन 2011 की क
ु ल संख्या का सक्षारता प्रततशत 4373.42ंः है।
रीवा िे व्यापार या बैंकः-
रीवा शहर की अधिकांश जनसंख्या गांव से जुड़ी हु ई है तथा उनका िुख्य व्यवसाय कृ वष है। और शहरों िे बैंक होने कारण लोगों
को गांव िे बैंंंकग सुवविा नही सिल पाती है। जजसक
े कारण लोंग बैक्रकं ग प्रणाली से दूर है। इस दूरी को कि करने क
े उद्देश्य से
ग्राहक सेवा क
े न्र बनाये गये है। ताक्रक लोगो को बैक्रकं ग सुवविा प्रा्त करने हेतु शहर पर आधश्रत न रहना पड़े। ग्राहक सेवा क
े न्र
खोलने का उद्देश्य ग्रािीण वगव क
े लोगों को बैकों से जोड़ना तथा सरकार द्िारा चलाई गई योजना ओ को रीवा शहर क
े प्रत्येक
गांव तक पहु चना है। भारतीय स्टेट बैको को 1 जुलाई को स्थापना ददवस िनाया जाता है। भारतीय स्टे ट बैंक 480 कायावलय थे।
रीवा भारतीय स्टे ट बैंक की कई शाखा है। इसकी िुख्य शाखा खन्ना चौराहा िे है। और रीवा िे 105 ग्राहक सेवा क
े न्र है। रीवा िे
बैंक तनम्पनसलखखत है-
रीवा िे बैंक का अधिकांश काि ग्राहक सेवा क
े न्र खुलने से कि हो गये है। जब तक ग्राहक सेवा क
े न्र नही थे। बैंको िे
काफी भीड़ होती थी। ग्राहका और किवचारी दोनो को परेशानी होती थी।
ग्राहक सेवा क
े न्र खुलने से लोगों की भीड़ कि हो गई ग्राहक भी बांट गये। क
ु छ का खाता बैंक िे क
ु छ का ग्राहक सेवा
क
े न्र िे। बैंको से अच्छी सवववस ग्राहक सेवा क
े न्र िे उपलब्ि होनी चादहए।
पैसे का लेन- देन, ि
े डिट कािव, आदद जैसी सभी सुवविा उपलब्ि की जाती है।
रीवा िे बैंको क
े द्िारा ग्राहक सेवा क
े न्र का एक उद्देश्य था। ग्रािीण इलाकों िे बैंको की सुवविा उपलब्ि कराना।
क
ु छ सरकारी योजना द्िारा ग्राहकों को लाभ प्रा्त क्रकया है।
रीवा िे भी अधिकांश जनसंख्या कृ वष का कायव करती है। बैंको िे अधिकांश खाते क्रकसान ऋण योजना िे खाता खुले
हुए होते है। खेती और खाद् क
े सलए क्रकसानों को बैंको से ऋण की सुवविा उपलब्ि कराई जाती है। और ब्याज सदहत लौटाई
जाती है।
ववशेषताएंः- भारतीय स्टेट बैंक िे ग्राहक सेवा क
े न्र की ववशंेषता तनम्पनसलखखत है-
िोबाइल बैंक्रकग सेवा उपयोग क
े सलए ग्राहकों को बैंक िे पंजीकरण करवाना होता है।
िोबाइल बैंक्रकं ग क
े जररए रोजना लेन- देन क
े सलए अधिकति 5 हजार रूपये हस्तांतररत की जा सकती है। जबक्रक
ब्रबल/व्यापाररयों को 10 हजार रूपये तक का भुगतान क्रकया जा सक
े गा। इस तरह प्रतत िाह अधिकति 30 हजार रूपये तक का
लेनदेन क्रकया जा सक
े गा।
यह सेवा तनःशुल्क है। परंतु ग्राहकों को एस.एि.एस/जीपीआरएस कनेजक्टववदट संबंिी शुल्क का वहन स्वंय करना
होगा।
अध्ययन क्षेत्र ससरिौर का पररचय
ससरिौर भारतीय राज्य िध्य प्रदे श िें रीवा जजले का एक कस्बा और नगर पंचायत है। यह रीवा से करीब 42 क्रकलोिीटर दूर है।
ससरिौर वविानसभा तनवावचन क्षेत्र (या ससरिौर) िध्य भारत िें िध्य प्रदेश राज्य क
े 230 वविानसभा (वविान सभा) तनवावचन
क्षेत्रों िें से एक है। (1) यह तनवावचन क्षेत्र 1951 िें तत्कालीन ववंध्य प्रदेश राज्य क
े 48 वविानसभा क्षेत्रों िें से एक क
े रूप िें
अजस्तत्व िें आया।
भूगोल
ससरिौर 24.85°छ 81.38°ि पर जस्थत है । इसकी औसत ऊ
ं चाई 291 िीटर (954 फीट ) है। रीवा का पठार रीवा जजले की
हुजूर, ससरिौर और िऊगंज तहसीलों को कवर करता है। ऊ
ं चाई दक्षक्षण से उत्तर की ओर घटती जाती है।
तिसा या टोंस और उसकी सहायक नददयों पर िहत्वपूणव झरने, जैसे वे रीवा पठार से नीचे आते हैं, वे हैंः ब्रबहड़ नदी पर चचाई
जलप्रपात (127 िी), तिसा की एक सहायक नदी, िहाना नदी पर क
े ओटी जलप्रपात (98 िी) , एक तिसा की सहायक नदी,
ओड्िा नदी पर ओड्िा जलप्रपात (145 िी), बेला नदी की एक सहायक नदी, जो स्वयं तिसा की एक सहायक नदी है, और
तिसा या टोंस पर पुरवा जलप्रपात (70 िी)।
जनसांजख्यकी
2001 की भारत की जनगणना क
े अनुसार, ससरिौर की जनसंख्या 10,938 थी। पुरुष जनसंख्या का 54ंः और िदहलाएं 46ंः
हैं। ससरिौर की औसत साक्षरता दर 60ंः है, जो राष्ट्रीय औसत 59.5ंः से अधिक हैः पुरुष साक्षरता 70ंः है और िदहला
साक्षरता 49ंः है। ससरिौर िें, जनसंख्या का 15ंः 6 साल से कि उम्र क
े हैं।
पररवहन
हवाईजहाज से
प्रयागराज , उत्तर प्रदेश िें तनकटति हवाई अड्िा ।
बस से
ससटी बस स्टैंि ससरिौर िें बस स्टैंि उपलब्ि है।
अध्ययन क्षेत्र सेिररया का पररचय
सेिररया (ंैिउंतपं) भारत क
े िध्य प्रदे श राज्य क
े रीवा जिले िें जस्थत एक नगर और वविानसभा तनवावचनक्षेत्र है। यह इसी
नाि की तहसील का िुख्यालय भी है।
जनसांजख्यकी
भारत की 2011 जनगणना क
े अनुसार सेिररया नगर िें 13,446 लोग बसे हुए थे, जजनिें से 7,031 पुरुष और 6,415 जस्त्रयाँ
थीं। यहाँ क
े 1,799 तनवासी 0-6 वषव क
े बच्चे थे। पूरी सेिररया तहसील क
े सभी नगर व ग्रािों की क
ु ल जनसंख्या 1,56,554
थी।
इततहास
ववन्ध्याचल पववत श्रेणी की गोद िें फ
ै ले हुए ववंध्य प्रदेश क
े िध्य भाग िें बसा हुआ रीवा शहर जो ििुर गान से िुग्ि तथा
बादशाह अकबर क
े नवरत्न जैसे दृ तानसेन एवं बीरबल जैसे िहान ववभूततयों की जन्िस्थली रही है। कलकल करती बीहर एवं
ब्रबतछया नदी क
े आंचल िें बसा हुआ रीवा शहर बघेल वंश क
े शासकों की राजिानी क
े साथ-साथ ववंध्य प्रदेश की भी राजिानी
रही है। ऐततहाससक प्रदे श रीवा ववश्व जगत िें सफ
े द शेरों की िरती क
े रूप िें भी जाना जाता रहा है। रीवा शहर का नाि रेवा नदी
क
े नाि पर पड़ा जो क्रक निवदा नदी का पौराखणक नाि कहलाता है। पुरातन काल से ही यह एक िहत्वपूणव व्यापार िागव रहा है।
जो क्रक कौशाबी, प्रयाग, बनारस, पाटसलपुत्र, इत्यादद को पजश्चिी और दक्षक्षणी भारत को जोड़ता रहा है। बघेल वंष क
े पहले
अन्य शासकों क
े शासनकाल जैसे गु्तकाल कल्चुरर वंश, चन्देल एवं प्रततहार का भी नाि संजोये है।
रीवा ववन्ध्य प्रदे श की राजिानी थी, एवं संभागीय िुख्यालय होने क
े कारण इस क्षेत्र को एक प्रिुख नगर क
े रूप िे जाना जाता
रहा है, तथा संभागीय िुख्यालय क
े साथ ही इस क्षेत्र का एक प्रिुख ऐततहाससक नगर है। रीवा नगर पासलक तनगि सन 1950
क
े पूवव नगर पासलका क
े रूप िें गदठत हु ई थी, जनवरी 1981 िें िध्यप्रदे श शासन द्वारा नगर पासलक तनगि का दजाव प्रदान
क्रकया गया। वतविान िे रीवा शहर िें क
ु ल 45 वािव है, जजसिे 6 वािव अनुसूधचत जातत एवं अनुसूधचत जनजातत क
े सलये आरक्षक्षत
है, जजसिें वािव ििांक 1 एवं 43 अनुसूधचत जनजातत क
े सलये तथा वािव ििांक 28, 38, 39, 40 अनुसूधचत जातत क
े सलये
आरक्षक्षत है।
पूवव षोि अध्ययन
वंदना ससंह (2015) ने अपने अध्ययन िें शोि शीषवक ‘‘दक्षक्षणी छत्तीसगढ़ िें पयवटन एक अध्ययन’’ शीषवक पर शोि क्रकया
इन्होने तनष्ट्कषव िें बताया क्रक दक्षक्षखण छवत्तसगढ़ क
े पयवटन क्षेत्रों की सिस्याओ ं िें नक्सली सिस्या प्रिुख है। कइर प्रससद्ि
पयवटन स्थल नकसली आतंक क
े सो िें आ गये है जजससे पयवटन क्षेत्र का गहरा आिान लगा है सुरक्षा कारणों से ्यवटक इन
क
े न्दोर क
े भ्रिण हेतु नही जाने है। इनय सिस्याओ ं िें सिक िागों की किी असवागिन क
े सािनों की किी आदद है। इन दो
सिास्योओ ं का संबंि ही नक्सली आतंक से है। सुरद्वक्षा संसािनों िें किी, प्रसशक्षक्षन गाइईिों का अभाव उपयुक्त ववपणन
तकनीकों का अभाव ववकास पररयोजाओ ं िें सािुदातयक सहितत का आभव उधचत प्रचार-प्रसार का आभाव इत्यादद पयवटन
क्षेत्र से जुिी अनय सिस्यायेंह ंै।
चौिरी अखखलानंद (2010) ने अपने प्रस्तुत शोि ‘‘रीवा जजले राज्य िें पयवटन स्थ्लों का अध्ययन’’ शीषवक पर अध्यय क्रकया।
इन्होंने अपने तनष्ट्कश्र िें बताया क्रक ््वटन क
े ववकास क
े साथ हरी प्राकृ ततक और सांस्कृ ततक भू-दृश्यों से छेि-छाि भूदृश्य क
े
ववकृ त करक
े पाररस्थैततक असंतुलन पैरदा करती है। भूदृश्य की इसी क
ु प्रबन्ि से बचाकर रचनात्कक व सृजनात्िक प्रबंिन
पैदा करती है। ंींूदृश्यश को और अधिक संरक्षक्षत, सुरजक्ष्त और संविवन करना ही भू-दृयश ंरबन्ि संकल्पना कहा जाता है।
संवायें गुणवत्त और क
ु शलता पयवटन उद्योगक
े प्रिुख ववषय है। इसी की प्राज्त क
े सल ्यवट उद्योग क
े प्रत्येक घटक क
े सलए
प्रसशक्षक्षत एवं क
ु शल श्रिशक्त अपंक्षक्षत है। तीथवस्थल-्यवटक क
े न्दों पर टठहराव वयवस्था क
े अन्तगवत ववसभन्न स्तर क
े
होटठल तथा ििवशालायों आते है। तीथवयात्री-वातावरण या ववशेष व्वस्था की जाती है। इसक
े अन्तगवत देवघर तथ वासुकीनाथ
िें पुसलस (सुरक्षा) सफाई स्वास्थ्य-सेवा जलापूतत व तथा ठहराव क
े रख-रखाव व्यवस्था की जाती है।
संजय क
ु िार जैन (2008) ने अपने प्रस्तुत शेि ‘‘रीवा जजले राज्य का पयवटन भूगोल’’ शीषवक पर अिान क्रकया उन्होने अपनें
अध्ध्न िें पाया क्रक ्यवटक औरा इस उद्योग का स्थानीय पर पड़ने वाल प्राभाव आज बहस का प्रिुख िुद्या है एक आि िारण
क
े अनुसार पयवटन से अर्न्ावष्ट्टीय सिए और सौहादव बढ़ता है। दूसरी तरफ कहव िािले िें यह देशी रीतत ररवाजों ओर जीवन-शैली
को बुरी जरह क्षतत पहुचाता है।
िॉ. िहेन्र नाथ ससंह (2006) ने अपने अध्ययन ‘‘ पयवटन की दृजष्ट्ट िें वाराणसी का ऐततहाससक िहत्व’’ शीषवक पर अध्ययन
क्रकया इन्होंने अपने अध्ययन िें बताया क्रक वाराणसी िें अटठारहवी सदी तक पयवटन क
े प्रभावन एवं िह।त54व पर बहुत
ज्यादा ध्यानकषवण नही होता था िीिी गतत से इसकी शुरूआत उन्नीसवी सदी िें होतीह है। सवतुत्रता क
े ्श्चात भारत अपने
पंचवषीय योजना का िाध्यि से पयवटन क
े ववकास पर अत्यधिक बल दे कर सातवीं पंचवषवय योजना िें पयवटन को औपचाररक
रूप से उद्योग का दजाव ददया।
सशरीष श्रीवास्तव (2002) ने अपने शोि शीषवक ‘‘भारतीय अथवव्यवस्था िें पयवटन उद्योग की आधथकव एवं सांस्कृ ततक
भूसिका’’ का अध्ययन क्रकया। इहोने बअपने अध्ययन िें बअताया क्रक पयवटन कोई नवीन उद्याग नही है। इसका िहत्व प्रचीन
काल से ही सािाक्रक, सांस्कृ तत, राजनैततक, शैक्षक्षक तथा आधथकव क्षेत्र िें रहा है। साा ही अपने जजज्ञासा, जैसे लोगों का रहन-
सहन, तौर-तररीक
े , भाषा एवं संस्कृ तत तथा खाना-पानी को पयवटन क
े सहयोंग से ही ववराि जगाना संभव है।
प्रीतत ससंह(2011) ने अने शोि शीषवक ‘‘ववन्ध्य प्रदे श िें वन्य जीव एवं पयवटन का भू-्याववरणीय’’ पर अध्ययन क्रकया इन्होने
अपने अध्ययन िें बता यश क्रक पयवटन की दृजष्ट्ट से भारत बहुत संभावपूणव राष्ट्र है। परन्तु ववश्व पयवटन की तुलना िें देश
आपेक्षक्षक प्रगततनही कर िाया है। भारत िें पयवटन क
े इतने आकषवण होते हुए भी न तो ्यवटकों की संख्या िें ववशेष बढोत्तरी हुई
है और न ही ववदेशी िुरा अजवन िें ववशेष वृद्धि हो पायी है। अनेक प्रयासों क
े बाद भी संसार क
े क
ु ल ्यवटकों िेंससे एक प्रततशत
से भी कि ्यवटक भारत िें आते है।
अखखलानंद चौिरी(2002) ने शेि शीषवक ‘‘बौद्ि पररथ बौद्ि पररथ क्षेत्र िें पयवटन उद्योग ववकास की संभावाओ ं का
अध्ययन’’ िें शोि क्रकया। इन्होने अपने अध्ययन िें बताया क्रक ्यवट अब न क
े वल िनोरंजन एवं ज्ञानाजवन का एक सािन िात्र
रह गया है। अवपतु आज यह एक अच्छे उद्योग क
े रूप िें उभरकर सािने आया है। इसका प्रिुख कारण है। पयवटन उद्योग क
े
ववकससत करने हेतु सरकारी और तनजी से स्थाओ ं द्वारा क्रकये गये रचतात्िक प्रयास, जजनक
े अंतगवत ववसभन्न आकषवक
पयवटन क
े न्दों का तनिावण एवं ्यवटको को पयवटन क
े दौरान हर प्रकार की सुवविाए उपलब्ि कराना प्रिुख्ख है भारत वषव काफी
लंबे सिय तक इस ददशा िें वपछिा रहा। लेकक्रकन वपछले क
ु छ वषे िें भारत ने इस उद्योग क
े प्रतत सौतेला व्वहोर रहा है।
लेक्रकन वपछले क
ु छ वषें िें भारत ने इस उछोग िें अत्यन्त सराहनीय उन्नतत की है।
जीतेन्र क
ु िार (2012) ने शेि शीषवक ‘‘छत्तीसगढ़ िें राष्ट्टीय उद्यानों एवं अभयारणों का पररजस्थततकी पयवटन एववं नयोजन’’
िें शेि क्रकया । इन्होंने अने अध्ययन िें बताया क्रक छत्तीसगढ सांस्कृ ततक दृजष्ट्ट से प्राचीनकाल से गौरवशाली रहा है छत्तीसगढ़
की रीतत-ररवाज, िेला, त्यौहार, वेश-भूषा ्यवटकों को आकवषवत करते है।
पयवटन का पररचय
भ्रिणशीलता िानव स्वभाव का एक िहत्वपूणव अंग है। प्राचीन काल िें भ्रिण जैवकीय आवश्यकताओ ं की पूतत व क
े सलए क्रकया
जाता था। िानव अपने भोजन तथा अन्य आवश्यकताओ ं की पूतत वभ्रिण करक
े ही करता था। तनवास का स्थान, सािन न होने
से भी यह अपने जीवन को भ्रिणशील बनाये रखा। जब एक स्थान पर उन वस्तुओ ंका अभाव होने लगता था, जजससे वह जीवन
यापन करता था, तो उस स्थान को छोड़कर आगे बढ़ जाता था। उस सिय इस कायव को जीवन की आवश्यकता सिझ कर क्रकया
जा रहा था। बाद िें इसक
े स्वरूप िें पररवतवन अपने आप प्रारम्पभ हो गया और यही भ्रिण राजनीततक, सािाजजक, व्यापाररक,
शैक्षक्षक तथा िासिवक उद्देश्यों की पूतत व क
े सलए क्रकया जाने लगा।
यह भ्रिण ही पयवटन क
े नाि से जाना जाता है। इसक
े ववपरीत ववसभन्न स्वरूप ही इसक
े पयावय बन गये है। प्राचीन काल िें यह
कायव सिस्यात्िक ववषय था, क्योंक्रक उस सिय न तो आवागिन क
े सािनों की सुवविा एवं पयाव्त व्यवस्था ही थी, जो सिय
और िूल्य दो िहत्वपूणव िुद्दे बने थे। अधिक व्यय एवं सिय की अतनजश्चतता क
े कारण ही लोग इससे अपनी रूधच कि ही
ददखाते थे। एक यात्रा िें स्ताह, िहीनों यहाँ तक क्रक वषो का सिय लग जाता था। इस लम्पबे अन्तराल क
े कारण कायव क
े प्रतत
उत्सुकता कि हो जाता था। बाद िें यात्रा को एक संयोजजत व्यवस्था बनाने का प्रयत्न क्रकया गया और इसिें सफलता भी प्रा्त
की गयी। सववप्रथि यात्रायें िासिवक उद्देश्य से ही की जाती थीं। उद्देश्यों की सफलता को देखते हुए सरायों, ििवशालाओ ं, होटलों
तथा अन्य प्रकार क
े आवास स्थलों का ववकास क्रकया जाने लगा और इसक
े साथ ही राजनैततक, व्यवसातयक एवं ज्ञानविवक
यात्राओ ं का प्रचलन बढ़ने लगा।
ववज्ञान और प्रौद्योधगकी क
े ववकास क
े साथ ही साथ औद्योधगकी, आधथवक एवं सािाजजक प्रगतत उच्च आय एवं सिय
सितव्यतयता ने लोगों का ध्यान पयवटन की ओर आकवषवत क्रकया और उच्च सशक्षा क
े प्रसार क
े कारण भी लोगों की रूधच पयवटन
िें बढ़ी। पयवटन िें बढ़ती जन रूधच को दे खते हुए सरकार द्वारा पररवहन क
े सािनों को भी सह सुलभ कराया गया। पयवटकों की
संख्या िें प्रततवषव वृद्धि होती जा रही है। इस ववषय िें (हरे िैन क
े न) की भववष्ट्य वाणी सत्य ससद्ि हुई।
ष्ट्प इपससपवद चिवचसि ंूपसस इि जतंअिसपदह पद जीि लिंत वव 2000ए तंदापदह जवनतपेउ ंेंं वदि वव जीि
संतहिेजए पज दवज जीि संतहिेज पदकनेजतपिे वव जीि ंूवतसकण्ष
सािान्य दृजष्ट्ट से देखा जाय तो पयवटन का अथव है व्यजक्त की एक तनजश्चत स्थान की यात्रा, जजसका उद्देश्य वहाँ क
े िनोरि
दृश्यों का अवलोकन करना अपने सित्रों और ररश्तेदारों क
े यहाँ घूिना और अपने अवकाष को एक यादगार सिय की तरह
व्यतीत करना है। पयवटन का सम्पबन्ि दूसरे शब्दों िें अवकाष को यादगार सिय की तरह व्यतीत करना और अपना सिय
खेलों, ंयून्य स्थान, सिुरों क
े तट पर, नददयों क
े क्रकनारे , झीलों क
े सिीप, िजन्दरों एवं अनेक प्रकार क
े धगरजाघरां िें, टहलकर
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  • 1. अध्याय-1 प्रस्तावना आज जब सभ्यता क े चरण प्रगतत की ओर अग्रसर हो रहे हैं, ज्ञान की शाखाएँ ववशेषीकरण और वैववध्य की ओर ववकससत होती जा रही हैं, वैचाररक साववभौसिकता की आवश्यकता बढ़ती जा रही है तथा संस्कृ तत व िानवता का ववकास होता जा रहा है, तब पयवटन प्रक्रिया की गतत तीव्र होना स्वाभाववक हैं। इसक े चरण वतविान िें िांततकारी पररवतवन एवं ववकास की ओर अग्रसर हैं। यही कारण है क्रक पयवटन िात्र भ्रिण तक ही सीसित नहीं रह गया है, अवपतु यह सािान्य वस्तुओ ं की तरह ब्रिकी और ववज्ञापन की सािग्री बन गया है, जजसे थोक, फ ु टकर तथा शासकीय तौर पर कई दे शों िें बेचा जाता है। यही कारण है क्रक कि आय वगव क े लोग भी अधिक से अधिक संख्या िें अवकाश क े ददनों िें देश-ववदेश की यात्रा करते हैं। बैंक्रकं ग क्षेत्र ने भी पयवटन उद्योग िें अपना स्थान तनसिवत क्रकया है, जैसे पयवटन हेतु िन ऋण क े रूप िें उपलब्ि कराना, एक क्षेत्र से अन्य क्षेत्र िें िन का सुगि हस्तांतरण करना आदद। शासकीय तथा तनजी क्षेत्रों द्वारा अनेक उड़ानों, जलयात्राओ ं तथा अन्य िाध्यिों से पयवटन को और अधिक सरल क्रकया है। सिस्त सुवविाएँ टेलीफोन, कम्प्यूटरीकृ त आरक्षण, पयवटन वाहन, स्वचासलत िशीनों द्वारा हवाई जहाजों क े दटकटों की प्राज्त की सुवविा, होटलों की बहुलता पयवटन उद्योग को और अधिक ववकससत कर रही है। अतः भ्रिण क े सिस्त उपिि एवं सहयोगी तत्व भी इसी क े अंग बन गये है, जजससे पयवटन उद्योग ने वतविान िें एक ववकससत उद्योग का दजाव प्रा्त कर सलया है। क्रकसी दे श क े सलए यह अन्य उन्नत उद्योगों की अपे क्षा कहीं अधिक लाभकारी हैं। इसीसलए इस उद्योग को और अधिक ववकससत करने क े सलए भारत िें वषव 1991 को प्रथि बार ‘‘पयवटन वषव’’ क े रूप िें िनाया गया। िानव प्राचीन काल से ही अन्वेषक स्वभाव का रहा है, जैसे वास्कोडिगािा, कोलम्पबस आदद जजन्हें नवीन स्थानों परीभ्रिण करना तथा नवीन स्थलों की खोज करने िें रूधच थी इसससलये इन्हें भी कहा जाता है। इसी प्रकार प्राचीन सिय से ही अनेक लोग व्यवसाय एवं ििव क े प्रचार-प्रसार हेतु एक स्थान से अन्य स्थान की यात्रा करते थे। आिुतनक युग िे ंं अवकाश, िनोरंजन, व्यवसाय अथवा अन्य क्रकसी प्रयोजन हेतु एक स्थान से अन्य स्थान पर की गई यात्रा को पयवटन कहा जाता है। पयवटन उद्योग को सेवा क े उद्योग क े रूप िें भी पररभावषत क्रकया गया है, जजसिें िुख्य रूप से अग्रानुसार तीन उप-उद्योगों को सजम्पिसलत क्रकया गया है - याब्रत्रयों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाना व ले जाना।
  • 2. याब्रत्रयों क े ठहरने हेतु स्थान उपलब्ि कराना, जैसे होटल, लॉज, ििवशाला आदद। पयवटकों की आवश्यकता पूतत व हेतु खान-पान, िनोरंजन तथा भ्रिण हेतु दटक्रकट बुक्रकं ग या वाहन बुक्रकं ग एवं अन्य आवश्यक वस्तुओ ं को उपलब्ि कराना। वतविान िें पयवटन उद्योग ववश्व का सबसे बड़ा उद्योग िाना जाता है। ववश्व िें अनेक दे शों की अथवव्यवस्था िुख्य रूप से पयवटन पर आिाररत है। भारत पयवटन उद्योग िें असीि संभावनाओ ं वाला देश िाना जाता है, जजसिें ि.प्र. पयवटन उद्योग उज्जवल संभावनाओ ंवाला प्रदेश है। िेरे द्वारा शोि हेतु उपरोक्त ववषय का चयन इससलये क्रकया गया क्यो क्रक िुझे यह जानकारी प्रा्त करने िे रूधच है क्रक, क्या ि.प्र. पयवटन प्रदेश क े आधथवक ववकास िें िहत्वपूणव योगदान प्रदान कर सकता है? साथ ही िैं इस बात की जानकारी भी प्रा्त करना चाहता हू क्रक, ि.प्र. पयवटन उद्योग िें ववकास की क्या संभावनाएँ तथा क्या वास्तववकताएँ हैं? हिारे गौरवपूणव इततहास से लेकर आजादी क े पश्चात जब शासन की बागिोर हिारे हाथों िे आई तो हिारे राष्ट्रनेताओ ं ने देश क े उत्थान तथा ववश्व िें अपनी पहचान बनाने हेतु बल ददया तथा पयवटन उद्योग पर भी बेहद कायव क्रकया है, जजसक े अंतगवत नवीन योजनाओ ं का तनिावण क्रकया गया है। उन्हीं का अनुसरण करते हुए हिारी वतविान शासन प्रणाली भी पयवटन उद्योग तथा इस पर तनभवर दहतग्रादहयों एवं सववसम्पबंधितों क े दहताथव कई योजनाएँ संचासलत कर रही है जजससे ववश्व िें हिारे दे श, हिारे राज्य की एक कीतत व स्थावपत हो सक े तथा दे श-ववदे श से नागररक भारत िे भ्रिण पर आए तथा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से भी भारतीय िुख्य ववकससत दे शों की कतार िें खड़ा हो सक े । आज ववदे शी पयवटक भारत िें क े वल तनिवनता एवं भुखिरी को तनहारने आते है, जबक्रक सत्य तो यह है क्रक इसक े अततररक्त भी हिारे देश िें ऐसे कई स्थान है जो क्रक अतुल्य है तदथव शासन ने ‘‘अतुल्य भारत ’’ का नारा ददया है। इसी पररपेक्ष्य िें पयवटन क े ववकास एवं आधथवक सिृद्धि हेतु क े न्र शासन ने वषव 2002 िें एक नीतत बनाई जजसका नाि राष्ट्टीय पयवटन नीतत रखा गया। इन्हीं नीतत तनयिों पयवटन उद्योग िें संभावनाएँ एवं चुनौततयों को खोजने हेतु िेरे द्वारा अग्रानुसार अध्ययन क्रकया जा रहा है। भारत एक ववकासशील दे श है। शासन दे श को ववकससत बनाने हेतु तनरंतर प्रयासरत है एवं इस प्रयास का एक दहस्सा पयवटन उद्योग ववकससत करना है। इसक े साथ ही तनिवनता एवं ग्रािीण वपछड़ापन भी हिारे देश क े ववकास की गतत िें एक अवरोि है। अतः यदद पयवटन उद्योग िें छ ु पी संभावनाओ ं को तलाशा जाए तथा उन संभावनाओ ंपर और अधिक कायव क्रकया जाए तो दे श से तनिवनता, बेरोजगारी, ववदेशी िुरा की किी आदद जैसी कई सिस्याओ ंसे एक सीिा तक िुजक्त सिल सकती है। पयवटन उद्योग पर क े न्र तथा राज्य शासन द्वारा कई नीतत तनयि तथा योजनाएँ तनसिवत की गई है जैसे िध्यप्रदे श राज्य वन नीतत-1952,
  • 3. पुनरीक्षक्षत राष्ट्टंंरीय वन नीतत-1998, राष्ट्टंंरीय पयवटन नीतत-2002 (संशोधित), बेि एंि िेकफास्ट योजना, िध्यप्रदे श राज्य वन नीतत-2005, आदद। उक्त योजनाओ ं का उद्दे श्य देश की ऐततहाससक िरोहर वन्य प्राणी तथा बाग-बगीचों सदहत स्थायी संपदाओ ं का तनिावण करना, उनका उधचत रख-रखाव करना तथा उनका संरक्षण करना रहा है। साथ ही ग्रािीण क्षेत्रों िें तनवासरत आधथवक रूप से किजोर पररवारों की आजीववका संसािन आिार को िजबूती देना है। इन योजनाओ ं िे सुझाए गए कायों िे वन ववनाश, प्राचीन िरोहरों क े क्षरण आदद ऐसे कारणों को दूर करने का प्रयास क्रकया गया है जो स्थायी तनिवनता को जन्ि देते है। उक्त योजनाओ ं िें स्थाई सम्पपदाओ ं क े तनिावण जैसी पररयोजनाओ ं को शासिल करने क े पीछे शासन की सोच यह है क्रक रोजगार संवद्विन की प्रक्रिया एक स्थाई आिार पर सतत अववराि चलती रहे साथ ही पयवटन उद्योग तीव्र गतत से ववकससत हो सक ें । पयवटन का एततहाससक पररचय सिुरी यात्राऐं- िध्य युग िें पुतवगासलयों द्वारा कई िहासागरीय यात्राएँ की गयी जजनकों राजक ु िार हैनरी (1482 ई0) कोलम्पबस (1492ए0िी0) वास्कोडिगािा (1498ई0), िैगलन (1520 ई0) की यात्राएँ ववशेष िहत्वपूणव रखती है। 1524 िें फ्ांस से जैक्रकं क्स कादटवयर से सें टलारेंस नदी क्षेत्र की यात्रा की। 1660 ई0 िें इंग्लैण्ि क े अंग्रेजों ने वजीतनया क्षेत्र की यात्रा की। 17वीं शताब्दी िे ववकास का क ु छ कायव वारेततनयस द्वारा क्रकया गया । अठारहवी ंं शताब्दी यात्रा ववकास का स्वणव युग कही जा सकती है जजसिें ववशेषकर 1763 से 1793 क े िध्य 30 वषव तक यात्रायें की गयी एंव ये यात्रायें अधिकांशतः इटली उस सिय प्रबुद्ि व्यजक्तयों की राजिानी थी। अट्ठारहवीं शताब्दी िें न ससफव िनाढ् य वगव क े लोग इटली यात्रा पर आये बजल्क अनेकों, कवव, लेखक तथा बुद्धिजीववयों ने भी इटली यात्रा की वासशवक अवकाषो का प्रारम्पभ 18वीं शताब्दी िें यूरोप िें वावषवक अवकाशों का प्रारम्पभ क्रकया गया, जो एक िहत्वपूणव घटक बनी जजससे व्यजक्तयों को िात्रा करने क े सलए अवसर एंव सिय प्रदान क्रकया तथा इसी क े कारण 20 वीं शताब्दी िे पयवटन का असािारण ववकास हुआ। 19वीं षताब्दी से यात्रा का ववकास औद्योधगक ववकास एंव संचार सािनों का ववकास (नये -नये आववष्ट्कार जैसे छपाई िशीन, दूरबीन, क ै िरा आदद) क े कारण हुआ।
  • 4. 19 वीं शाताब्दी क े अजन्ति चौथाई भाग तक किवचाररयों को अवैततनक अवकाश पर ववचार क्रकया गया तथा ध्यान ददया गया, तब युरोप क े क ु छ कारखानों िें अपने किवचाररयों को सवेतन अवकाश देना आरम्पभ क्रकया। 20वीं शताब्दी क े प्रारम्पभ होने तक आिुतनक पयवटन की सभी िुख्य ववशेषताएँ भ्रिण क े रूप िें स्पष्ट्ट होने लगी थी। िानव क े स्वभाव िें आनन्द की खोज, सशक्षा, ज्ञान क े सलए यात्रा, भौततक सम्पपदा एंव सािनों िे वृद्धि, या ा़ त्रा को सािाजजक प्रततष्ट्ठा का िापदण्ि, िानव को दैतनक कायों िें आराि करने की बढ़ती आवश्यकता, याब्रत्रयों की पररवहन व्यवस्था िें सुिार आदद। प्रथि ववश्व युद्ि क े कारण पयवटन प्रथि ववश्व युद्ि क े कारण पयवटन ववकास को िक्का लगा, क्योंक्रक पयवटन शाजन्त िें ही ववकास करता है। प्रथि ववश्व युद्ि क े पश्चात की अवधि िें पयवटन पुनः ववश्व युद्ि से पहले क े स्तर को प्रा्त हो गया तथा लोगों िे अन्तरावष्ट्रीय पयवटन की प्रकृ तत िे पररवतवन एंव क्षेत्र िें असभवृद्धि की। प्रथि ववश्व युद्ि िें िोटरकार का ववकास हो जाने पर यूरोप तथा अिेररका िें पयवटन को बढ़ावा सिला। इसी क े साथ-साथ प्राइवेट तथा साववजतनक सड़क पररवहन व सिक क े ववकास ने पयवटन िें तेजी से ववकास क्रकया। नौकरी पे शों से जुिे किवचाररयों को क ु छ ऐसा अवकाश सिलना आरम्पभ हुआ जजसिें अवकाश अवधि का उन्हें पूणव वेतन भी नही सिलता था। बाद िें 1938 िें वावषवक संवैततनक अवकाश प्रारम्पभ, हुआ, इससे भी पयवटन का ंे काफी बढ़ावा सिला। द्ववतीय ववश्वयुद्ि तछि जाने पर पुनः पयवटन को िक्का लगा क्यों क्रक इस सिय िन-जन की अपार क्षतत हुई। आजादी क े बाद भारत िे पयवटन ववकास ववश्व िें भारत एक बहुत ही िहत्वपूणव वैभवशाली पयवटन उद्देसशत स्थान है भारत क े असीसित भण्िार िें पयाववरण सम्पबन्िी िनिोहक सम्पपदा, सुन्दरता तथा अटू ट सांस्कृ ततक परम्पपराओ ं की बहुत ही वववविताव तनरन्तरता है। यहाँ की बदलती हुई िौसिें, जलवायु की वववविता, दहिन्छाददत पववतिालायें, सिुरी तट, सदाबहार, हरा-भरा क े रल, रणबांक ु रो और स्वासभिानी राजाओ ं की भूसि राजस्थान, चार पववत्र िािों की भूसि, ववसभन्न ििो और िासिवक स्थलों का दे श भारत पयवटन की दृजष्ट्ट से ववश्वभर क ें पयवटकों को सदा से ही आकवषवत करता रहा है। िोहन जोदिों और हि्पा क े अवशेष, िावयकालीन कौशाम्पबी, वैशाली और उज्जैन, अशोककालीन पाटलीपुत्र और नालंदा, िहाराष्ट्र िें अजन्ता एलोरा और एलीफ ै न्टा की गुफायें, िध्य प्रदे श की खजुराहो-िूतत वयाँ यहाँ क े प्रिुख पयवटन आकषवण क े न्र है। क ु तुबिीनार, ताजिहल, फतेहपुर सीकरी, लालक्रकला, सारनाथ,
  • 5. अजिेर शरीफ, बौद्ि गया, राजगीर, नालंदा, इलाहाबाद का संगि, आन्र प्रदेश का भगवान ततरूपतत जी लाखों पयवटकों को बरबस अपने और आकवषवत करती है। भारत िे पयवटन का वतविान पररदृश्य अपनी प्राकृ ततक, सांस्कृ ततक, िासिवक और सदहष्ट्णु ववरासत क े सलए भारत िें स्वतंत्रता क े बाद पयवटन क े क्षेत्र िें बहुत वृद्धि की है। वतविान िें पयवटन एक उद्योग का रूप ले चुका है। पहले पयवटन को सशक्षा का एक िाध्यि सिझा जाता था। पयवटन उद्योग क े साथ-साथ एक ऐसी शाजक्त क े रूप िे सािने आ रहा है जो ववश्व क े सांस्कृ ततक एकीकरण िें एक िील को पत्थर साब्रबत होगा। पयवटन क े िहत्व को देखते हुए आजादी क े बाद सरकार ने 1952 िें पयवटन हेतु पला सिुर पार कायावलय न्यूयाकव िें खोला । 1957 िें फ ें कफ ु टव िें भी दूसरा पयवटन कायावलय खुला। टु ररज्ि रैक्रफक िांच क े स्थान पर पररवहन एंव संचार िंत्रालय क े अिीन पयवटन ववभाग की स्थापना की गयी। 1963 िें तत्कालीन ववŸंा सधचव एल0क े 0 झा की अध्यक्षता िें सरकार ने एक पदाथव ससितत का गठन क्रकया। तत्कासलन पयवटन िहातनदेशक को इस ससितत का सधचव बनाया गया। इस ससितत ने पयवटन को बढ़ावा देने क े ववसभन्न सुझाव ददये। अध्ययन का उद्देष्ट्य कसी शोि कायव को सम्पपन्न करने क े सलए उसक े उद्देश्यों का तनिावरण करना आवश्यक है। प्रत्ये क िानवीय प्रयास क े िूल िें कोई न कोई उद्देश्य अवश्य तनदहत होता है। सभी शोि कायों का िूल उद्देश्य ज्ञान िें वृद्धि करना, अज्ञात की जानकारी प्रा्त करने क े प्रयास करना अथवा सम्पबंधित ववषय िें सुिार करना है, ब्रबना उद्देश्य क े शोि कायव उस यात्रा क े सिान है, जजसका गन्तव्य स्थान स्वयं चालक को भी पता नहीं है। शोिकायव का उद्देश्य िध्यप्रदे श क े शहिोल जजले िें वतविान पयवटन ववकास की जस्थतत का पता लगाने तथा उसकी सभावनाओ ंको आँकना तथा ववकास की सिस्यायें तथा उनका तनदान-िागव-दशवन करना इस शोिकायव का उद्दे श्य है। राज्य क े तनिावण क े बाद िें यहाँ की सरकार इस और ववशेष ध्यान दे रही है। शहिोल जजले िें पयवटन व्ययवसाय की वास्तववक जस्थतत का अवलोकन करना। शहिोल जजले िें पयवटन व्यवसाय िें रोजगार की संभावनाएँ क े संबंि िें अध्ययन करना है।
  • 6. शहिोल जजले िें पयवटन व्यवसाय क े अन्तगवत होटल एवं रे स्टोरें ट उद्योग, पररवहन उद्योगों क े सलए तनिावररत सरकारी नीततयों आदद का अध्ययन करक े , कसियाँ पता लगा कर उनक े सिािान प्रस्तुत करना। शासन द्वारा पयवटन क े प्रोत्साहन हेतु क्रकये गए प्रयासों का अध्ययन करना। शहिोल जजले िें पयवटन उद्योग िें सुिार हेतु प्रयास क े सुझाव प्रस्तुत करना। इस प्रकार चयतनत शोि कायव का उद्देश्य दे श व सिाज िें सवविान्य िहत्वपूणव स्थान रखने वाले वगव का उनक े जीवन यापन करने एवं देश िें पयवटन की जस्थतत सुिारने क े उद्देश्य से शासन द्वारा चलाये जा रहे ववसभन्न कायवििों तथा दे श िें पयवटन की जस्थतत को ज्ञात करने क े सलये ववश्लेषणात्िक अध्ययन कर आवश्यक सुझाव प्रस्तुत करना है। षोि पररकल्पना उपकल्पना एक ऐसा पूवव ववचार, तनष्ट्कषव, कथन सािान्यीकरण, अिूतीकरण, अनुिान या प्रस्तावना है। जजसे अनुसंिानकताव अपनी शोि की सिस्या हेतु तनसिवत करता है और इसकी सत्यता की जॉच करने क े सलये आवश्यक सूचनाओ ं का संकलन करता है। शहिोल जजले िें अभी भी पयवटन स्थल पर बहुत सी सिस्यायें है। शहिोल जजले िें पयवटन व्यावसाय िें रोजगार की अपार संभावनाएँ है। शहिोल जजले िें पयवटन व्यावसाय का प्रदेश की अथवव्यवस्था िें िहत्वपूणव योगदान है। शहिोल जजले िें पयवटन व्यवसाय िें ववतनयोग की अपार संभावनाएँ है। शहिोल जजले िें पयवटन उद्योग तनरन्तर उन्नतत कर रहा है। अध्ययन की प्रववधियाँ प्रस्तुत शोि प्रबन्ि िें िेरे द्वारा संग्रदहत ववसभन्न सिंकों का गहन परीक्षण तथा तनरीक्षण क्रकया गया है साथ ही अशुद्ि तथा सन्देहास्पद सिंकों की शुद्िता एवं पूणवता की दृजष्ट्ट से ववसभन्न पत्र-पब्रत्रकाओ ं िें प्रकासशत सािग्री, सम्पबजन्ित लोगों से व्यजक्तगत सम्पपकव तथा ववभाग क े वररष्ट्ठ अधिकाररयों से आवश्यक िागवदशवन प्रा्त कर ववश्लेषण को शुद्ि, तनष्ट्पक्ष तथा प्रभावी बनाने का प्रयास क्रकया गया हैं। शोि कायव क े उद्देश्य की साथवकता को बनाये रखने क े सलये िेरे द्वारा आवश्यक सिंकों
  • 7. का पूणव सम्पपादन क्रकया गया है। अध्ययन को व्यवहाररक रूप प्रदान करने की दृजष्ट्ट से वास्तववक संख्याओ ं का प्रयोग क्रकया गया है जजससे क्रक उन्हें सरल एवं बोिगम्पय बनाया जा सक े । प्रस्ताववत अध्ययन ववश्लेषणात्िक प्रकृ तत का अध्ययन है अतः इस हेतु अग्रसलखखत शोि प्रववधि का प्रयोग क्रकया जाएगा। उपयुवक्त अध्ययन िें प्राथसिक एवं द्ववतीयक सिंको को शासिल क्रकया जाये गा प्राथसिक सिंक हेतु प्रश्नावली क े िाध्यि से आंकड़ों को एकब्रत्रत क्रकया जायेगा साथ ही साथ साक्षात्कार प्रणाली का भी प्रयोग क्रकया जायेगा, साथ ही द्ववतीय सिंक हेतु ववसभन्न पत्र-पब्रत्रकाओ ं िें प्रकासशत सािग्री, का भी प्रयोग क्रकया जायेगा। अध्ययन िें तनदशवन प्रणाली का उपयोग करते हुए उद्देश्य पूणव न्यादशव तनदशवन प्रणाली का उपयोग क्रकया जायेगा जो सिग्र िें से क ु छ पयवटन स्थलों का चयन कर उसिें क्रियाजन्वत योजना से आंकड़े एकब्रत्रत करने क े सलए होगा। प्रस्तुत शोि प्रबन्ि िें अध्ययन की रूपरेखा से सम्पबजन्ित ववसभन्न अध्यायों िें प्रयुक्त सिंकों को सारणीबद्ि क्रकया गया है। सारणीयन का उपयोग अध्ययन को संक्षक्ष्त एवं पूणव बनाने तथा सम्पबजन्ित तथ्यों को सरल एवं आकषवक बनाने क े सलए क्रकया गया है। प्रयुक्त की गई ववसभन्न सारखणयों को उपयुक्त चाटव से भी प्रदसशवत क्रकया गया है। षोि अध्ययन का िहत्व वतविान सिय िें पयवटन का िहत्व आधथवक, सािाजजक एंव सांस्कृ ततक सभी दृजष्ट्टकोणों से लगातार बढ़ता जा रहा है। पयवटन से िानव िें नवीन स्फ ू तत व का संचार होता है। िानव ने तकनीकी को प्रयोग करक े अनेक संसािनों का आववष्ट्कार क्रकया। तीव्र पररवहन क े सािनों तथा दूरसंचार िाजन्त ने ववश्व को बहुत छोटी इकाई बना ददया। ववदेशी संस्कृ तत िें वषव िे ंंएक बार यात्रा, िहीने लघु तथा स्ताह क े अंत िे तनकटति पयवटक िें वषव िें एक बार बिी यात्रा, िहीने िे लघु तथा स्ताह क े अंत िें तनकटति पयवटक स्थल पर जाकर िौज-िस्ती कर पुनः स्फ ू तत व प्रा्त करना परम्पपरा बन गई है। ववकास और सम्पपन्नता जहाँ तनाव एंव डिप्रे शन जैसी बीिाररयाँ भी इसी नयी सभ्यता की देन है। पयवटक िानव को स्वपनों क े इस आलोक िें ले जाकर खिा कर देता है जहाँ िनुष्ट्य क ु छ पलों घण्टों ददनों क े सलए अपने तिाि तनाव भरे जीवन को भूल जाता है। दे श व ववदे श क े लोगों की बीच आपसी सम्पबन्ि भी िजबूत होते है। आज पयवटन को क्रकसी क्षेत्र क े ववकास की क ुँ जी तक िानी जाने लगी है। साक्षात्कार अनुसूची
  • 8. ववषय की स्वीकृ तत सिल जाने क े उपरांत साक्षात्कार अनुसूची का तनिावण क्रकया गया है। यह साक्षात्कार ििांक 1 िें संलग्न है। साक्षात्कार अनुसूची िें शहिोल नगर िें आने वाले पयवटकों को ववश्वास ददलाने क े सलये घोषणा पत्र ददया गया है, तथा उन्हें यह बतलाया गया है प्रस्तुत अध्ययन एवं शैक्षखणक उद्देश्य से क्रकया जा रहा है तथा उसक े द्वारा प्रा्त जानकारी को पूरी तरह से गोपनीय रखा जायेगा साथ ही उनसे यह आशा व्यक्त की गयी है क्रक साक्षात्कार अनुसूची िें ददये गये तथ्यों की सही-सही जानकारी प्रदान करें। षोि की सीिाऐं यद्यवप िेरे अध्ययन का ववषय एक सीिा तक तनिावररत है। हर अध्ययन की क ु छ ववसशष्ट्ट सीिाएं होती है। िेरा प्रस्तुत अध्ययन भी सीिाओ ं से परे नहीं है। िेरे अध्ययन की पहली सीिा यह है क्रक प्रस्तुत शोि कायव िात्र शहिोल नगर क े पयवटन स्थल से सम्पबजन्ित है। िेरे अध्ययन की दूसरी सीिा यह है क्रक िैने ससफव 100 पयवटकों का साक्षात्कार क्रकया है। जहाँ तक सम्पभव हो सका है उपयुक्त दोनों सीिाओ ं क े तहत िैने अपने अध्ययन को अधिक वैज्ञातनक और ववश्लेषणात्िक प्रयास क्रकया है। अध्ययन की उपादेयता शोि कायव क े उद्दे श्यों की साथवकता को बनाए रखने क े सलये उसका िहत्व तथा उपयोधगता का जानना अत्यंत आवश्यक है, क्योंक्रक िहत्वहीन तथा अनुपयोगी शोि क्रकसी जस्थतत िें शोि कायव का रूप नहीं ले सकता। ऐसे कायव को क े वल सिय, श्रि तथा िन का अपव्यय ही सिझा जा सकता है। अतः यह आवश्यक हो जाता है क्रक शोि कायव करते सिय ववषय क े िहत्व तथा उसकी उपयोधगता को ध्यान िें रखा जाये जजससे क्रक शोि प्रबन्ि को सम्पपूणवता प्रदान की जा सक े एवं राष्ट्ट, सम्पबंधित ववभाग, संस्था अथवा उपिि को शोि अध्ययन से प्रा्त पररणािों क े द्वारा ववसभन्न रूपों िें लाभाजन्वत क्रकया जा सक े । िेरा प्रयास रहेगा क्रक शहिोल जजले क े चयतनत पयवटन क्षेत्रों िें सवेक्षण क े द्वारा पयवटन उद्योग का ववश्लेषणात्िक अध्ययन कर पयवटन उद्योग क े लाभों को ववसभन्न क्षेत्रों तक पहुँचाने िें िदद सिले। जो ग्रािीण पररवार पयवटन उद्योग तथा इससे सम्पबंधित रोजगार से अनसभज्ञ है, वे भी शोि िें प्रस्तुत सुझावों व तनष्ट्कषो से इनका लाभ उठा सक े । साथ ही यदद दे श िें पयवटन उद्योग का उधचत क्रियान्वयन क्रकया जाता है तो दे श व सिाज क े आधथवक स्तर िें भी सुिार आ सक े गा। अतः िेरे द्वारा क्रकया जाने वाला शोि कायव तनजश्चत ही सिाज क े सलए उपयोगी ससद्ि होगा। यह सववववददत है क्रक शासन द्वारा सािारण व्यजक्त ववशेषतः वंधचत वगो, तनिवनों तथा ग्रािीण पररवारों क े सलए अनेक कायविि चलाए जाते है। शासन क े द्वारा जनता की सेवा बेहतर ढ़ं ग से करने क े सलए कई ववभाग बनाए गये हैं। िहत्वपूणव योजनाओ ं ववशेषतः पयवटन उद्योग से सम्पबंधित योजनाओ ं
  • 9. की ववश्लेषणात्िक जानकारी किवचाररयों तक पहुंचाने िें यह शोि िहत्वपूणव भूसिका का तनववहन करेगा। प्रत्येक ववभाग क े कायवकताव, किवचारी एवं अधिकारी इस शोि को साविानी पूववक पढ़कर, सिझकर उधचत रूप से क्रियाजन्वत करते सिय इसका उपयोग कर सकते हैं। प्रस्तुत शोि का उपयोग कई प्रकार से हो सकता है, जैसे क्रकसी योजना िें किवचारी स्वयं क े द्वारा क ु छ भूसिका अदा की जानी है तो उसी भूसिका को अच्छी तरह सिझने क े पश्चात उसका तनववहन सफलतापूववक क्रकया जा सक े , यह पहली एवं सबसे बिी ा़अतनवायव उपयोधगता है। अध्याय-2 अध्ययन क्षेत्र रीवा जजले का पररचय रीवा की भौगोसलक सरंचना रीवा िध्य प्रवेश क े उत्तरी पूवी राज्य िे जस्थत है। पहले यह रीवा राज्य िे जस्थत है। पहले यह रीवा राज्य क े नाि से जाना जाता था ऐसा िाना जाता है। क्रक रीवा क े पूवव नाि निवदा नदी क े पयावयवाची शब्द रेखा से पड़ा है। रीवा जजला का प्राचीन नाि रेवा था। तथा उसक े आस-पास क े भू-भाग को रेवा खंि कहा जाता था। वतविान िे उच्चारण की अशुध्दी क े कारण इसे रीवा कहा जाने लगा है। क्रकन्तु अंग्रेजा िे आज भी इसका नाि रेवा (त्िं।) ही सलखा जाता है। रीवा की पहचान भारत िे ही नही अवपतु ववश्व िे सफ े द शेर की जन्िस्थल क े रूप िे प्रससद्ि है। ऐततहाससक पृष्ट्ठभूसि- रीवा राज्य क े इततहास ने अनेक युग देखे है। अगर इसक े अतीत की ओर नजर िाली जाए तो इसकी कई तस्वीरें सािने आऐगी। सम्राट अशोक द्िारा तनसिवत भरहुत क े स्तूप (रीवा सतना व गोरगी रीवा शहर से 10 क्रक.िी पूवाव) सांची है। क्रक यह क्षेत्र ईशा पूवव दूसरी एवं तीसरी शताब्दी िे िहान िौयव साम्राज्य का अंग था। इसक े बाद इस क्षेत्र िे शुंग वंश का अधिकार हो गया। ईसा की चौथी एवं पॉचवी शताब्दी िे इसका इततहास अंिकारिय रहा। नविी एवं ग्यारहवी शताब्दी िे इस क्षेत्र की सत्ता कल्चुररयों क े हाथ िे रही। इसक े बाद यह भू-भाग सेगरों, चौहानो, भारसशवों तथा गौड़ राजाओ ं क े आिीन रहा। इस प्रकार इस भू-भाग िे एक नवीन राज्य का उदय हुआ जजसे रीवा राज्य कहा गया। बरहवी शताब्दी क े बाद इस भू-भाग िे बघेल राजाओ ं की सत्ता का सुत्रपात हुआ। तेरहवी शताब्दी तक यह भू-भाग बघेल वंश की भू सत्ता िे आया तथा स्वतंत्रता पूवव
  • 10. तक उन्ही को सत्ता क े आिीन रहा। बघेल राजवंश क े संस्थापक व्यारदेव गुजरात प्रान्त क े अदहतवारा जागीर क े बघेल कस्बे क े तनवासी थे। ये गुजरात से तीथव यात्रा क े उद्देश्य से उत्तर भारत की ओर आए और कसलंजर क े तनकट िारफ क्रकले पर जो क्रक वीरान हालत िे था। पर अपना अधिकार स्थावपत क्रकया। रीवा राजदारबार क े प्रलेखों क े अनुसार व्यारदेव क े यहां आने का सम्पवत 1233- 34 था। इस प्रकार इस भू-भाग िे एक नवीन राज्य का उदय हुआ जजसे रीवा राज्य कहा गया। बरहवी शताब्दी क े बाद इस भू-भाग िे बघेल राजाओ ं की सत्ता का सुत्रपात हुआ। तेरहवी शताब्दी तक यह भू-भाग बघेल वंश की भू सत्ता िे आया तथा स्वतंत्रता पूवव तक उन्ही को सत्ता क े आिीन रहा। बघेल राजवंश क े संस्थापक व्यारदेव गुजरात प्रान्त क े अदहतवारा जागीर क े बघेल कस्बे क े तनवासी थे। ये गुजरात से तीथव यात्रा क े उद्देश्य से उत्तर भारत की ओर आए और कसलंजर क े तनकट िारफ क्रकले पर जो क्रक वीरान हालत िे था। पर अपना अधिकार स्थावपत क्रकया। रीवा राजदारबार क े प्रलेखों क े अनुसार व्यारदेव क े यहां आने का सम्पवत 1233- 34 था। पहले ववन््य प्रदे श िें आठ जजले हुआ करता थे । रीवा, सतना, सीिी, पन्ना, छतरपुर, शहिोल, दततया। लेक्रकन बाद िें क ु छ प्रशासतनक कारणो व सुवविा को देखते हुए दततया को शासिल क्रकया गया। इन्होने अपने परािि से िारफा राज्य राजिानी बनाकर अपने राज्य का ववस्तर कायव प्रारंभ क्रकया। यह राज्य ववन्ि पववत क े उत्तरी भाग पर गोहरा क े नाि से प्रससद्ि है। व्याघ्रदेव की िुत्योपरान्त उनक े बड़े बेटे कणवदेव ने ससंहासन सम्पहाला। उनका वववाह रतनपुर क े हेह्यवंशी राजा सोिदत्त की पुत्री पद्िा क ु आरी से हुआ जजसिे दहेज िे उन्हे बांिवगढ़ का क्रकला और आस- पास का प्रदेश प्रा्त हुआ। कणवदेव ने बांिवगढ़ को अपनी राजिानी बनाया जो क्रक सन 1597 तक ववद्िान रही परन्तु अकबर की सािारज्य ववस्तर का नीततयो क े कारण 5 वषो क े सलए यह भू-भाग बघेल राजाओ ं क े हाथों से तनकल गया। सन 1602 िे बघेल राजा ववििाददत्य जजनका शासन काल सन 1503 से सन 1624 ई. तक राजिानी बनाया इस सम्पबन्ि िे कहा जाता है। क्रक एक बार राजा ववििाददत्य सशकार खेलने क े उद्दे श्य से उत्तर की ओर आए तो उन्हे बीहर और ब्रबतछया नददयों क े संगि पर एक अिव तनसिवत क्रकला सिला जजसे सलीिशाह द्वारा बनवाय गया यह िाना जाता है। राजा ववििददत्य को यह क्रकला और उसक े आपास का वातावरण पसंद आया और उन्होने इसे राजिानी बनाने क े उद्दे श्य से इस क्रकले को बनावाया अस परकोटे क े अन्दर एक वस्ती बसायी जो आज भी उपरहटी िोहल्ले क े रूप िे जानी जाती है।
  • 11. कालििानुसार राजा जयससंह गद्दी पर बैठे जो एक सुयोग्य शासन थे। परन्तु उस सिय इनक े राज्य की आधथवक जस्थतत बहुत अच्छी नही थी जजससे राजा जयससंह का शासन रीवा राज्य ब्रिदटश की सुरक्षा िे चला गया। राजा जयससंह ने अपनी िुत्यु से पूवव अपने पुत्र ववश्वनाथ ससंह को क ु ल राजभार सौप ददया था। रीवा राज्या का आिुतनक काल प्रवतवक ववश्वानाथ ससंह क े शासन से प्रारंभ हुआ। इसक े बाद शासन िहाराजा रघुराज ससंह ने हाथों िे गया जजससे रीवा जजला क े ववकास की कड़ी प्रारंभ हुई। िहाराजा रघुराज ससंह ने सववप्रथि 1850 िे लक्षिण बाग जस्थत िंददर का तनिावण कराया जो वतविान िे आज भी अजस्तत्व िे है। इसक े बाद 1858 िे संस्कृ त िहाववद्यालय एवं 1908 िे वेंकट भवन का तनिावण कराया गया। ििानुसार िहाराजा गुलाब ससंह का शासन काल प्रारंभ हुआ। िहाराजा गुलाब ससंह ने अनपे शासन काल िे सशक्षा को सवावधिक िहत्व ददया। उन्होने 129 प्राथसिक स्क ू ल, उपिहाध्यसिक स्क ू ल, 03 हायरसे क े ण्िरी, 01 िहाववद्यालय, 01 संस्कृ त पाठशाला, 01 टीचर टेरेतनंग स्क ू ल तथा कई पुस्तकालयों की स्थापना कराई। िहाराजा गुलाब ससंह ने कृ षकों की सहायता हेतु सववप्रथि ससंचाई योजना क े तहत सललजी बांि, बांि बनाया गया। सन 1930- 31 िे स्तादहक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ क्रकया गया। धचक्रकत्सा क े क्षेत्र िे िदहलाओ ं की सुवविा हेतु जुबली जनाना अस्पताल की स्थापना की गयी, इन्ही क े शासन काल िे रीवा, सतना, उिररया िे ताप ववद्युत गृहों का भी तनिावण क्रकया गया। बैंक्रकक क्षेत्र िे बैंक ऑफ बघेलखण्ि एवं स्टेट गजेदटयर का प्रकाशन इसी शासन काल िे हुआ। सन 1934 िे िहाराजा गुलाब ससंह ने बाल वववाह पर प्रततबन्ि लगया। साथ ही कई लघु शासन काल क े अजन्ति वषव िहाराजा गुलाब ससंह ने ऐसी िहान िावत्तकारी घोषण की थी। जजसे इततहास आज तक भुला नही पाया। भारत िे रीवा ही एक ऐसी ररयासत थी जजसे 16 अक्टूबर 1945 को िहाराजा गुलाब ससंह ने पूणव उत्तरदायी सरकार द्िारा स्थावपत करने की घोषण की और 16 अक्टूबर 1945 क े दशहरे क े पावन ददन रीवा का शासन रीवावाससयों को सौपते हुए। िहाराजा गुलाब ससंह ने कहा था क्रक रीवा ररिहों का है अस्तु ररिहों का शासन ररिहों क े सलए ररतहों द्वारा हो। िहाराजों गुलाब ससंह अत्यन्त दयालू और अपनी ररिही जनता क े सल पूणवतया सिवपवत थे। कालिि क े अनुसार िहाराजा िातवण्ि ससंह ने 31 जनवरी 1946 से जनवरी 1950 क े बीच िे म्पयूतनस्पेलटी क े अधिकार स्थावपत लोगों को सौप ददए। सन 1946 क े बाद 1947 िे ववध्यप्रदेश का पुनगवठन हुआ और रीवा पुनः राजिानी बना।
  • 12. सन 1950 तक का काल ववकासशील रहा। इसिे 1969 िे इंजीतनयररंग कॉलेज, सैतनक स्क ू ल, सन 1969 िे अविेश प्रताप ससंह ववश्वववद्यालय, सन 1980 िे िेडिकल कॉलेज, कृ वष िहाववद्यालय, कन्या िहाववद्याय, रेडियों स्टे शन, टेलीववजन एवं औद्योधगक क्षेत्र िे ववन्ध्य टेलीतनक्स, टिस एलेक्रातनक आदद की स्थापना की गई। भौगोसलक जस्थत :- अपनी प्राकृ ततक जस्थतत क े कारण िध्यप्रदे श िे रीवा जजला का ववशेष स्थान और प्राकृ ततक संपदाओ ं बहुत ही िनी है। यह िध्यप्रदे श राज्य क े उŸंार पूवव िे जस्थत है। रीवा जजला भारत क े िानधचत्र िे 24 डिग्री, 32 अंक्षाश उŸंारी अक्षांश तथा 81 डिग्री 24 अंश पूवी दे शान्तर पर जस्थत है। सिुर तल से इसकी ऊ ं चाई 1045 क्रफट है। इस नगर क े दक्षक्षण पूवव की ओर ब्रबतछया और दक्षक्षण पजश्चि से आती हुई बीहर नदी है। रीवा जजला पूवव रीवा ररयासत की राजिानी रहा है। 4 अप्रैल 1948 को रीवा स्टे ट तथा बुंदेलखण्ि की 34 ररयासतों को सिलाकर ववध्यप्रदेश का तनिावण क्रकया गया था। उस सिय इस नगर को नवतनसिवत प्रदेश की राजिानी बनने का गौरव प्रा्त हुआ था। 1 नवम्पबर 1956 को जब िध्यप्रदे श का तनिावण हुआ। तब इस नगा को संभागीय िुख्यालय का दजाव प्रा्त हुआ। इस तरह प्रारंम्पभ से ही राजनीतत का क े न्र रही है। रीवा क े दक्षक्षण और पजश्चि िे सतना जजला जस्थत है जबक्रक उŸंार प्रदेश का इलाहाबाद, सिजावपुर तथा बांदा जजला जस्थत है। जलवायु एवं प्राकृ ततक संरचना जलवायु- रीवा जजला की जलवायु को हि प्रिुख तीन भागो िे ववभाजजत कर सकते हैः- नबम्पबर से फरवरी तक शीतकाल िाचव से जून तक ग्रीष्ट्िकाल 15 जून से अक्टूबर वषावकाल इस क्षेत्र का ववस्तार ककव रेखा क े उŸंार िे होने क े कारण यहां की जलवायु उष्ट्ण कदटबिीय है जजले का अधिकांश तापिाप 114 अंश फरनहाइट क े लगभग है। यहां औसत वषाव 33.4 इंच है। प्राकृ ततक सरचंना- रीवा जजले िे िुख्यतः पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्रो की बहुलता है। इसक े दक्षक्षण िे क ै िूर पहाड़ी भाग एवं उŸंार पूवव िे ववन्ध्य श्रेणी है। इन दोनो क े बीच पठारी क्षेत्र क े चारों भागों िे ववभाजजत कर सकते है।- ववन्ध्य पहाड़ी, रीवा का पठार, क ै िूर की पहाड़ी, तनचला उŸंारी िैदान
  • 13. रीवा जजले क े अन्तगवत िुख्यतः टोन्स बीहर, ववतछया नदी बहती है। ये नददयॉ उŸंार पूवाव की ओर गंगा नदी िे सिलता है। और ऊ ं चे प्रपात बनाती है। वषाव- रीवा जजले िे पॉच स्थानो पर वषाव िापी जाती है। रीवा, िऊ ं गज, गोववन्दगढ़, त्योथर और ससरिौर यहॉ वषाव दक्षक्षण पूवव से उŸंार पजश्चि की ओर कि होती है जुलाई अगस्त िुख्यतः वषाव क े िाह है। तापिान- रीवा जजले िे ददसम्पबर एवं जनवरी िाह िे सवावधिक ठड़ पड़ती है जजसका औसत तापिाप 28.0 डिग्री सेजल्सयस रहता है िई जून क े िाह सवावधिक गिी होती है। इस सिय अधिकतर तापिान 46 सेन्टीग्रट रहता है। वषाव की ऋतु निी क े कारण घट जाता है। रीवा जजले की जनसंख्याः- जनसंख्या क्रकसी भी दे श की आधथवक सांस्कृ ततक एवं राजनैततक संरचना को प्रभाववत करती है। रीवा जजले का इततहास लगभग 400 वषव पुराना है। सन 1981 तक यह लगभग 1000 एकड़ िे आबाद था। परन्तु वतविान िे इसका क्षेत्रफल लगभग 52.37 वगव िीटर है। रीवा जजला सन 1956 से संभाग का िुख्यालय हैं 12 तहसीलों एवं 9 ववकास खण्िों क े दातयत्वों को तनववहन करता है। इसक े अन्तगवत 9 जनपद पंचायते एवं 827 ग्राि सभाएं है। जजनका वववरण तनम्पन है। तहसील- हूजूर, िऊगंज, त्योंथर, रायपुर, कचुवसलयान, जवा, हनुिना, गंगेव, ससरिौर, नईगढ़ी, गुढ़, िनगंवा ववकासखण्ि- रीवा, रायपुर, कचुवसलयान, ससरिौर, जवा, त्योथर, िऊगंज, नईगढ़ी एवं गंगेव जनपद पंचायत- रीवा, रायपुर कचुवसलयान, गंगेव, त्योथर, जवा, ससरिौर, हनुिना, नईगंढ़ी एवं िऊगंज जनसंख्या वववरण- रीवा जजले की अधिकांश आबादी गांवो िें तनवास करती है रीवा जजले क े नगरीय क्षेत्र िे क ु ल 45 वािव है। सन 2001 की जनगणना क े रीवा जजले की क ु ल जनसंख्या 1972333 थी जजसिे पुरूषो की जनसंख्या 1017402 थी। तथा िदहलाओ की जनसंख्या िे िदहलाओ की अपे क्षा पुरूषों की जनसंख्या अधिक थी। क ु ल जनसंख्या िे ग्रािीण जनसंख्या 320475 थी। सन 2001 िे रीवा जजले का जनसाक्षरता प्रततशत 62.33ंः था। वषव 2011 िे रीवा जजले की क ु ल जनसंख्या 2,363,744 है। जजसिे पुरूषों की जनसंख्या 1224918 है। तथा िदहला ओ ं की जनसंख्या 1138826 है। सन 2011 की क ु ल संख्या का सक्षारता प्रततशत 4373.42ंः है। रीवा िे व्यापार या बैंकः-
  • 14. रीवा शहर की अधिकांश जनसंख्या गांव से जुड़ी हु ई है तथा उनका िुख्य व्यवसाय कृ वष है। और शहरों िे बैंक होने कारण लोगों को गांव िे बैंंंकग सुवविा नही सिल पाती है। जजसक े कारण लोंग बैक्रकं ग प्रणाली से दूर है। इस दूरी को कि करने क े उद्देश्य से ग्राहक सेवा क े न्र बनाये गये है। ताक्रक लोगो को बैक्रकं ग सुवविा प्रा्त करने हेतु शहर पर आधश्रत न रहना पड़े। ग्राहक सेवा क े न्र खोलने का उद्देश्य ग्रािीण वगव क े लोगों को बैकों से जोड़ना तथा सरकार द्िारा चलाई गई योजना ओ को रीवा शहर क े प्रत्येक गांव तक पहु चना है। भारतीय स्टेट बैको को 1 जुलाई को स्थापना ददवस िनाया जाता है। भारतीय स्टे ट बैंक 480 कायावलय थे। रीवा भारतीय स्टे ट बैंक की कई शाखा है। इसकी िुख्य शाखा खन्ना चौराहा िे है। और रीवा िे 105 ग्राहक सेवा क े न्र है। रीवा िे बैंक तनम्पनसलखखत है- रीवा िे बैंक का अधिकांश काि ग्राहक सेवा क े न्र खुलने से कि हो गये है। जब तक ग्राहक सेवा क े न्र नही थे। बैंको िे काफी भीड़ होती थी। ग्राहका और किवचारी दोनो को परेशानी होती थी। ग्राहक सेवा क े न्र खुलने से लोगों की भीड़ कि हो गई ग्राहक भी बांट गये। क ु छ का खाता बैंक िे क ु छ का ग्राहक सेवा क े न्र िे। बैंको से अच्छी सवववस ग्राहक सेवा क े न्र िे उपलब्ि होनी चादहए। पैसे का लेन- देन, ि े डिट कािव, आदद जैसी सभी सुवविा उपलब्ि की जाती है। रीवा िे बैंको क े द्िारा ग्राहक सेवा क े न्र का एक उद्देश्य था। ग्रािीण इलाकों िे बैंको की सुवविा उपलब्ि कराना। क ु छ सरकारी योजना द्िारा ग्राहकों को लाभ प्रा्त क्रकया है। रीवा िे भी अधिकांश जनसंख्या कृ वष का कायव करती है। बैंको िे अधिकांश खाते क्रकसान ऋण योजना िे खाता खुले हुए होते है। खेती और खाद् क े सलए क्रकसानों को बैंको से ऋण की सुवविा उपलब्ि कराई जाती है। और ब्याज सदहत लौटाई जाती है। ववशेषताएंः- भारतीय स्टेट बैंक िे ग्राहक सेवा क े न्र की ववशंेषता तनम्पनसलखखत है- िोबाइल बैंक्रकग सेवा उपयोग क े सलए ग्राहकों को बैंक िे पंजीकरण करवाना होता है। िोबाइल बैंक्रकं ग क े जररए रोजना लेन- देन क े सलए अधिकति 5 हजार रूपये हस्तांतररत की जा सकती है। जबक्रक ब्रबल/व्यापाररयों को 10 हजार रूपये तक का भुगतान क्रकया जा सक े गा। इस तरह प्रतत िाह अधिकति 30 हजार रूपये तक का लेनदेन क्रकया जा सक े गा।
  • 15. यह सेवा तनःशुल्क है। परंतु ग्राहकों को एस.एि.एस/जीपीआरएस कनेजक्टववदट संबंिी शुल्क का वहन स्वंय करना होगा। अध्ययन क्षेत्र ससरिौर का पररचय ससरिौर भारतीय राज्य िध्य प्रदे श िें रीवा जजले का एक कस्बा और नगर पंचायत है। यह रीवा से करीब 42 क्रकलोिीटर दूर है। ससरिौर वविानसभा तनवावचन क्षेत्र (या ससरिौर) िध्य भारत िें िध्य प्रदेश राज्य क े 230 वविानसभा (वविान सभा) तनवावचन क्षेत्रों िें से एक है। (1) यह तनवावचन क्षेत्र 1951 िें तत्कालीन ववंध्य प्रदेश राज्य क े 48 वविानसभा क्षेत्रों िें से एक क े रूप िें अजस्तत्व िें आया। भूगोल ससरिौर 24.85°छ 81.38°ि पर जस्थत है । इसकी औसत ऊ ं चाई 291 िीटर (954 फीट ) है। रीवा का पठार रीवा जजले की हुजूर, ससरिौर और िऊगंज तहसीलों को कवर करता है। ऊ ं चाई दक्षक्षण से उत्तर की ओर घटती जाती है। तिसा या टोंस और उसकी सहायक नददयों पर िहत्वपूणव झरने, जैसे वे रीवा पठार से नीचे आते हैं, वे हैंः ब्रबहड़ नदी पर चचाई जलप्रपात (127 िी), तिसा की एक सहायक नदी, िहाना नदी पर क े ओटी जलप्रपात (98 िी) , एक तिसा की सहायक नदी, ओड्िा नदी पर ओड्िा जलप्रपात (145 िी), बेला नदी की एक सहायक नदी, जो स्वयं तिसा की एक सहायक नदी है, और तिसा या टोंस पर पुरवा जलप्रपात (70 िी)। जनसांजख्यकी 2001 की भारत की जनगणना क े अनुसार, ससरिौर की जनसंख्या 10,938 थी। पुरुष जनसंख्या का 54ंः और िदहलाएं 46ंः हैं। ससरिौर की औसत साक्षरता दर 60ंः है, जो राष्ट्रीय औसत 59.5ंः से अधिक हैः पुरुष साक्षरता 70ंः है और िदहला साक्षरता 49ंः है। ससरिौर िें, जनसंख्या का 15ंः 6 साल से कि उम्र क े हैं। पररवहन हवाईजहाज से प्रयागराज , उत्तर प्रदेश िें तनकटति हवाई अड्िा ।
  • 16. बस से ससटी बस स्टैंि ससरिौर िें बस स्टैंि उपलब्ि है। अध्ययन क्षेत्र सेिररया का पररचय सेिररया (ंैिउंतपं) भारत क े िध्य प्रदे श राज्य क े रीवा जिले िें जस्थत एक नगर और वविानसभा तनवावचनक्षेत्र है। यह इसी नाि की तहसील का िुख्यालय भी है। जनसांजख्यकी भारत की 2011 जनगणना क े अनुसार सेिररया नगर िें 13,446 लोग बसे हुए थे, जजनिें से 7,031 पुरुष और 6,415 जस्त्रयाँ थीं। यहाँ क े 1,799 तनवासी 0-6 वषव क े बच्चे थे। पूरी सेिररया तहसील क े सभी नगर व ग्रािों की क ु ल जनसंख्या 1,56,554 थी। इततहास ववन्ध्याचल पववत श्रेणी की गोद िें फ ै ले हुए ववंध्य प्रदेश क े िध्य भाग िें बसा हुआ रीवा शहर जो ििुर गान से िुग्ि तथा बादशाह अकबर क े नवरत्न जैसे दृ तानसेन एवं बीरबल जैसे िहान ववभूततयों की जन्िस्थली रही है। कलकल करती बीहर एवं ब्रबतछया नदी क े आंचल िें बसा हुआ रीवा शहर बघेल वंश क े शासकों की राजिानी क े साथ-साथ ववंध्य प्रदेश की भी राजिानी रही है। ऐततहाससक प्रदे श रीवा ववश्व जगत िें सफ े द शेरों की िरती क े रूप िें भी जाना जाता रहा है। रीवा शहर का नाि रेवा नदी क े नाि पर पड़ा जो क्रक निवदा नदी का पौराखणक नाि कहलाता है। पुरातन काल से ही यह एक िहत्वपूणव व्यापार िागव रहा है। जो क्रक कौशाबी, प्रयाग, बनारस, पाटसलपुत्र, इत्यादद को पजश्चिी और दक्षक्षणी भारत को जोड़ता रहा है। बघेल वंष क े पहले अन्य शासकों क े शासनकाल जैसे गु्तकाल कल्चुरर वंश, चन्देल एवं प्रततहार का भी नाि संजोये है। रीवा ववन्ध्य प्रदे श की राजिानी थी, एवं संभागीय िुख्यालय होने क े कारण इस क्षेत्र को एक प्रिुख नगर क े रूप िे जाना जाता रहा है, तथा संभागीय िुख्यालय क े साथ ही इस क्षेत्र का एक प्रिुख ऐततहाससक नगर है। रीवा नगर पासलक तनगि सन 1950 क े पूवव नगर पासलका क े रूप िें गदठत हु ई थी, जनवरी 1981 िें िध्यप्रदे श शासन द्वारा नगर पासलक तनगि का दजाव प्रदान क्रकया गया। वतविान िे रीवा शहर िें क ु ल 45 वािव है, जजसिे 6 वािव अनुसूधचत जातत एवं अनुसूधचत जनजातत क े सलये आरक्षक्षत
  • 17. है, जजसिें वािव ििांक 1 एवं 43 अनुसूधचत जनजातत क े सलये तथा वािव ििांक 28, 38, 39, 40 अनुसूधचत जातत क े सलये आरक्षक्षत है। पूवव षोि अध्ययन वंदना ससंह (2015) ने अपने अध्ययन िें शोि शीषवक ‘‘दक्षक्षणी छत्तीसगढ़ िें पयवटन एक अध्ययन’’ शीषवक पर शोि क्रकया इन्होने तनष्ट्कषव िें बताया क्रक दक्षक्षखण छवत्तसगढ़ क े पयवटन क्षेत्रों की सिस्याओ ं िें नक्सली सिस्या प्रिुख है। कइर प्रससद्ि पयवटन स्थल नकसली आतंक क े सो िें आ गये है जजससे पयवटन क्षेत्र का गहरा आिान लगा है सुरक्षा कारणों से ्यवटक इन क े न्दोर क े भ्रिण हेतु नही जाने है। इनय सिस्याओ ं िें सिक िागों की किी असवागिन क े सािनों की किी आदद है। इन दो सिास्योओ ं का संबंि ही नक्सली आतंक से है। सुरद्वक्षा संसािनों िें किी, प्रसशक्षक्षन गाइईिों का अभाव उपयुक्त ववपणन तकनीकों का अभाव ववकास पररयोजाओ ं िें सािुदातयक सहितत का आभव उधचत प्रचार-प्रसार का आभाव इत्यादद पयवटन क्षेत्र से जुिी अनय सिस्यायेंह ंै। चौिरी अखखलानंद (2010) ने अपने प्रस्तुत शोि ‘‘रीवा जजले राज्य िें पयवटन स्थ्लों का अध्ययन’’ शीषवक पर अध्यय क्रकया। इन्होंने अपने तनष्ट्कश्र िें बताया क्रक ््वटन क े ववकास क े साथ हरी प्राकृ ततक और सांस्कृ ततक भू-दृश्यों से छेि-छाि भूदृश्य क े ववकृ त करक े पाररस्थैततक असंतुलन पैरदा करती है। भूदृश्य की इसी क ु प्रबन्ि से बचाकर रचनात्कक व सृजनात्िक प्रबंिन पैदा करती है। ंींूदृश्यश को और अधिक संरक्षक्षत, सुरजक्ष्त और संविवन करना ही भू-दृयश ंरबन्ि संकल्पना कहा जाता है। संवायें गुणवत्त और क ु शलता पयवटन उद्योगक े प्रिुख ववषय है। इसी की प्राज्त क े सल ्यवट उद्योग क े प्रत्येक घटक क े सलए प्रसशक्षक्षत एवं क ु शल श्रिशक्त अपंक्षक्षत है। तीथवस्थल-्यवटक क े न्दों पर टठहराव वयवस्था क े अन्तगवत ववसभन्न स्तर क े होटठल तथा ििवशालायों आते है। तीथवयात्री-वातावरण या ववशेष व्वस्था की जाती है। इसक े अन्तगवत देवघर तथ वासुकीनाथ िें पुसलस (सुरक्षा) सफाई स्वास्थ्य-सेवा जलापूतत व तथा ठहराव क े रख-रखाव व्यवस्था की जाती है। संजय क ु िार जैन (2008) ने अपने प्रस्तुत शेि ‘‘रीवा जजले राज्य का पयवटन भूगोल’’ शीषवक पर अिान क्रकया उन्होने अपनें अध्ध्न िें पाया क्रक ्यवटक औरा इस उद्योग का स्थानीय पर पड़ने वाल प्राभाव आज बहस का प्रिुख िुद्या है एक आि िारण क े अनुसार पयवटन से अर्न्ावष्ट्टीय सिए और सौहादव बढ़ता है। दूसरी तरफ कहव िािले िें यह देशी रीतत ररवाजों ओर जीवन-शैली को बुरी जरह क्षतत पहुचाता है। िॉ. िहेन्र नाथ ससंह (2006) ने अपने अध्ययन ‘‘ पयवटन की दृजष्ट्ट िें वाराणसी का ऐततहाससक िहत्व’’ शीषवक पर अध्ययन क्रकया इन्होंने अपने अध्ययन िें बताया क्रक वाराणसी िें अटठारहवी सदी तक पयवटन क े प्रभावन एवं िह।त54व पर बहुत
  • 18. ज्यादा ध्यानकषवण नही होता था िीिी गतत से इसकी शुरूआत उन्नीसवी सदी िें होतीह है। सवतुत्रता क े ्श्चात भारत अपने पंचवषीय योजना का िाध्यि से पयवटन क े ववकास पर अत्यधिक बल दे कर सातवीं पंचवषवय योजना िें पयवटन को औपचाररक रूप से उद्योग का दजाव ददया। सशरीष श्रीवास्तव (2002) ने अपने शोि शीषवक ‘‘भारतीय अथवव्यवस्था िें पयवटन उद्योग की आधथकव एवं सांस्कृ ततक भूसिका’’ का अध्ययन क्रकया। इहोने बअपने अध्ययन िें बअताया क्रक पयवटन कोई नवीन उद्याग नही है। इसका िहत्व प्रचीन काल से ही सािाक्रक, सांस्कृ तत, राजनैततक, शैक्षक्षक तथा आधथकव क्षेत्र िें रहा है। साा ही अपने जजज्ञासा, जैसे लोगों का रहन- सहन, तौर-तररीक े , भाषा एवं संस्कृ तत तथा खाना-पानी को पयवटन क े सहयोंग से ही ववराि जगाना संभव है। प्रीतत ससंह(2011) ने अने शोि शीषवक ‘‘ववन्ध्य प्रदे श िें वन्य जीव एवं पयवटन का भू-्याववरणीय’’ पर अध्ययन क्रकया इन्होने अपने अध्ययन िें बता यश क्रक पयवटन की दृजष्ट्ट से भारत बहुत संभावपूणव राष्ट्र है। परन्तु ववश्व पयवटन की तुलना िें देश आपेक्षक्षक प्रगततनही कर िाया है। भारत िें पयवटन क े इतने आकषवण होते हुए भी न तो ्यवटकों की संख्या िें ववशेष बढोत्तरी हुई है और न ही ववदेशी िुरा अजवन िें ववशेष वृद्धि हो पायी है। अनेक प्रयासों क े बाद भी संसार क े क ु ल ्यवटकों िेंससे एक प्रततशत से भी कि ्यवटक भारत िें आते है। अखखलानंद चौिरी(2002) ने शेि शीषवक ‘‘बौद्ि पररथ बौद्ि पररथ क्षेत्र िें पयवटन उद्योग ववकास की संभावाओ ं का अध्ययन’’ िें शोि क्रकया। इन्होने अपने अध्ययन िें बताया क्रक ्यवट अब न क े वल िनोरंजन एवं ज्ञानाजवन का एक सािन िात्र रह गया है। अवपतु आज यह एक अच्छे उद्योग क े रूप िें उभरकर सािने आया है। इसका प्रिुख कारण है। पयवटन उद्योग क े ववकससत करने हेतु सरकारी और तनजी से स्थाओ ं द्वारा क्रकये गये रचतात्िक प्रयास, जजनक े अंतगवत ववसभन्न आकषवक पयवटन क े न्दों का तनिावण एवं ्यवटको को पयवटन क े दौरान हर प्रकार की सुवविाए उपलब्ि कराना प्रिुख्ख है भारत वषव काफी लंबे सिय तक इस ददशा िें वपछिा रहा। लेकक्रकन वपछले क ु छ वषे िें भारत ने इस उद्योग क े प्रतत सौतेला व्वहोर रहा है। लेक्रकन वपछले क ु छ वषें िें भारत ने इस उछोग िें अत्यन्त सराहनीय उन्नतत की है। जीतेन्र क ु िार (2012) ने शेि शीषवक ‘‘छत्तीसगढ़ िें राष्ट्टीय उद्यानों एवं अभयारणों का पररजस्थततकी पयवटन एववं नयोजन’’ िें शेि क्रकया । इन्होंने अने अध्ययन िें बताया क्रक छत्तीसगढ सांस्कृ ततक दृजष्ट्ट से प्राचीनकाल से गौरवशाली रहा है छत्तीसगढ़ की रीतत-ररवाज, िेला, त्यौहार, वेश-भूषा ्यवटकों को आकवषवत करते है।
  • 20. भ्रिणशीलता िानव स्वभाव का एक िहत्वपूणव अंग है। प्राचीन काल िें भ्रिण जैवकीय आवश्यकताओ ं की पूतत व क े सलए क्रकया जाता था। िानव अपने भोजन तथा अन्य आवश्यकताओ ं की पूतत वभ्रिण करक े ही करता था। तनवास का स्थान, सािन न होने से भी यह अपने जीवन को भ्रिणशील बनाये रखा। जब एक स्थान पर उन वस्तुओ ंका अभाव होने लगता था, जजससे वह जीवन यापन करता था, तो उस स्थान को छोड़कर आगे बढ़ जाता था। उस सिय इस कायव को जीवन की आवश्यकता सिझ कर क्रकया जा रहा था। बाद िें इसक े स्वरूप िें पररवतवन अपने आप प्रारम्पभ हो गया और यही भ्रिण राजनीततक, सािाजजक, व्यापाररक, शैक्षक्षक तथा िासिवक उद्देश्यों की पूतत व क े सलए क्रकया जाने लगा। यह भ्रिण ही पयवटन क े नाि से जाना जाता है। इसक े ववपरीत ववसभन्न स्वरूप ही इसक े पयावय बन गये है। प्राचीन काल िें यह कायव सिस्यात्िक ववषय था, क्योंक्रक उस सिय न तो आवागिन क े सािनों की सुवविा एवं पयाव्त व्यवस्था ही थी, जो सिय और िूल्य दो िहत्वपूणव िुद्दे बने थे। अधिक व्यय एवं सिय की अतनजश्चतता क े कारण ही लोग इससे अपनी रूधच कि ही ददखाते थे। एक यात्रा िें स्ताह, िहीनों यहाँ तक क्रक वषो का सिय लग जाता था। इस लम्पबे अन्तराल क े कारण कायव क े प्रतत उत्सुकता कि हो जाता था। बाद िें यात्रा को एक संयोजजत व्यवस्था बनाने का प्रयत्न क्रकया गया और इसिें सफलता भी प्रा्त की गयी। सववप्रथि यात्रायें िासिवक उद्देश्य से ही की जाती थीं। उद्देश्यों की सफलता को देखते हुए सरायों, ििवशालाओ ं, होटलों तथा अन्य प्रकार क े आवास स्थलों का ववकास क्रकया जाने लगा और इसक े साथ ही राजनैततक, व्यवसातयक एवं ज्ञानविवक यात्राओ ं का प्रचलन बढ़ने लगा। ववज्ञान और प्रौद्योधगकी क े ववकास क े साथ ही साथ औद्योधगकी, आधथवक एवं सािाजजक प्रगतत उच्च आय एवं सिय सितव्यतयता ने लोगों का ध्यान पयवटन की ओर आकवषवत क्रकया और उच्च सशक्षा क े प्रसार क े कारण भी लोगों की रूधच पयवटन िें बढ़ी। पयवटन िें बढ़ती जन रूधच को दे खते हुए सरकार द्वारा पररवहन क े सािनों को भी सह सुलभ कराया गया। पयवटकों की संख्या िें प्रततवषव वृद्धि होती जा रही है। इस ववषय िें (हरे िैन क े न) की भववष्ट्य वाणी सत्य ससद्ि हुई। ष्ट्प इपससपवद चिवचसि ंूपसस इि जतंअिसपदह पद जीि लिंत वव 2000ए तंदापदह जवनतपेउ ंेंं वदि वव जीि संतहिेजए पज दवज जीि संतहिेज पदकनेजतपिे वव जीि ंूवतसकण्ष सािान्य दृजष्ट्ट से देखा जाय तो पयवटन का अथव है व्यजक्त की एक तनजश्चत स्थान की यात्रा, जजसका उद्देश्य वहाँ क े िनोरि दृश्यों का अवलोकन करना अपने सित्रों और ररश्तेदारों क े यहाँ घूिना और अपने अवकाष को एक यादगार सिय की तरह व्यतीत करना है। पयवटन का सम्पबन्ि दूसरे शब्दों िें अवकाष को यादगार सिय की तरह व्यतीत करना और अपना सिय खेलों, ंयून्य स्थान, सिुरों क े तट पर, नददयों क े क्रकनारे , झीलों क े सिीप, िजन्दरों एवं अनेक प्रकार क े धगरजाघरां िें, टहलकर