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पतृ पपतृ प
एवंएवं
पतृ दोषपतृ दोष
पतृ पपतृ प
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Mob. : 9431155770, Web : www.jyotishniketan.com
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ा नम्
परम पता परमे र क रे णा एवं पू , गु वर पता, पंिडत भुने र पा ेय के
शुभाशीवाद से इनके ृ त मे हर गृह व् जन सामा हते ु पतृ प एवं पतृ दोष
पु क का न पण करने का यास कर रह ँ पतृ प मे अपने पूवजो का ा कै से
करे और पतृदोषक नवृ तका ववेचनकै सेिकयाजाए| पतृप और पतृदोषमे
कब और कै से कर ा ...इसी वषय पर मूल से नचोड़ को नकाल आम जन
सामा के लाभाथहते ुके लएप रभा षतकरनेका यासिकया ं।
िह धमममा ताहैिकशरीरन होजानेके बादभीआ ाअजर-अमररहतीह।ैू
ंवह अपने काय के भोग भोगने के लए नाना कार क यो नयो म वचरण करती ह।ै
ंशा ो म मृ ोपरातं मनु क अव ा भेद से उसके क ाण के लए समय-समय
ंपरिकएजानेवालेकृ ोका न पण आह।ै
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1
ंसामा त: जीवन म पाप और पु दोनो होते ह। िह मा ता के अनुसार पु काू
फल ग और पाप का फल नक होता ह।ै नक म जीवा ा को ब त यातनाएं भोगनी
ंपड़तीह।पु ा ामनु यो नतथादेवयो नको ा करतीह।ै इनयो नयोके बीच
एकयो नऔरहोतीहैवहहै ते यो न।वायु पमयहजीवा ामनु कामन:शरीर
ह,ै जोअपनेमोहया ेषके कारणइसपृ ीपररहताह।ै पतृयो न ते यो नसेऊपर
हैतथा पतलृ ोकमरहतीह।ै
यह जीवा ा मनु पतृ यो न का मन:शरीर ह,ै जो अपने पा रवा रक मोह के लए
अपने प रवार कुल खानदान से के तभा वत रहता है यही ा प मे अपने
प रवारसे मलनेआतेहै|
ंपतृ दोष मे मने देखा है क मनु के जीवन मे भो तक साधन तो है पर भोग नही है |
ंइ ी संरचनाओ को मने देखा है क सरल उपाए से दोष को नवत करने का यास
ंिकया जोसभीके लएलाभाथहोगे।
तोहमाराभी पतरो तइ ाओअनुकलताके अनुसार ासुमनअपणकरतेह।ै
यही ासुमनअपणकरने व धकाएकअ तलघु याशिकया ँ।
इसके नमाणमेसावधानीबरतीगईहै,िफरभीकराणवसकोई टु ीएवं दोषया
अ कारणवस् टु ी हो गई हो तो मुझे मा करगे और भ व के लए मागदशन
करगे। जससेआगेके अकं मेआव कसुधारकरसकूँ ।
2
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ंपतृ प मे ा का मह : ो ?
ंा 'श ' ा'सेबनाह,ै जो ा का थमअ नवायत हैअथात पतरोके त
ातो होनीहीचािहए।भा पदक पू णमाप क तपदा त थसेअमाव ातक
ंका समय ा या महालय प कहलाता ह।ै इस अव ध के 16 िदन पतरो अथात
ा कमके लए वशेष पसे नधा रत िकएगएह।यहीअव ध पतृप के नामसे
जानीजातीह।ै
वैिदक परंपरा के अनुसार वैवत पुराण म यह नदश है िक इस संसार म आकर जो
स ह पतपृ के दौरानृ
ंअपने पतरो को
ापूवक उनक िदवंगत
त थके िदन तपण,
ंपडदान, तलाजं ल और
ंा णो को भोजन कराते
ह,ै उनको इस जीवन म
सभी सासं ा रक सुख और
भोग ा होते ह।ै वे उ
शु कम के कारणअपनीआ ाके भीतरएकतजे और काशसेआलोिकतहोतेह।ै
मृ ुके उपरातं भी ा करनेवालेसदगृह को गलोक, व ुलोकऔर लोक
क ा होतीह।ै
भारतीय वैिदक वागं मय के अनुसार ेक मनु को इस धरती पर जीवन लेने के
प ात तीन कार के ऋण होते ह। पहला देव ऋण, दसरा ऋ ष ऋण और तीसरा पतृू
ऋण। पतृप के ा यानी16 ा सालके ऐसेसुनहरे िदनह, जनमहमउपरो
ं ंतीनोऋणोसेमु होसकतेह, ा ि यामशा मलहोकर।
महाभारत के संग के अनुसार, मृ ु के उपरातं कण को च गु ने मो देने से
3
इनकार कर िदया था। कण ने कहा िक मने तो अपनी सारी स दा सदैव दान-पु म
ही सम पत क ह,ै िफर मेरे उपर यह कै सा ऋण बचा आ ह।ै च गु ने जवाब िदया
िक राजन, आपने देव ऋण और ऋ ष ऋण तो चुका िदया ह,ै लेिकन आपके उपर अभी
ं ंपतृ ऋण बाक ह।ै जब तक आप इस ऋण से मु नही होगे, तब तक आपको मो
मलना किठन होगा। इसके उपरातं धमराज ने कण को यह व ा दी िक आप 16
ंिदन के लए पुनः पृ ी पर जाइए और अपने ात और अ ात पतरो का ा तपण
ंतथा पड दान व धवत करके आइए। तभी आपको मो यानी ग लोक क ा
होगी।
ंजो लोग दान ा , तपण आिद नही करत,े माता- पता और बडे बजु गु का आदर
ंस ारनहीकरत,े पतगृ णउनसेहमेशानाराजरहतेह।उनक नाराजगीआगेचलकर
पतदृ ोषकाअ भशापबनजातीह।ै पतदृ ोषममाता- पताके साथसाधारणमनमुटाव
सेलेकरउनपरहाथउठाकरआ मणकरनायाउनकामान सकऔरशारी रक पसे
पीिड़तकरनाजसै े धानकारणहोतेह।ै इसके कारणहीवेयाउनके प रवारके अगली
पीढीके अ सद अपनेजीचनमरोगी,दखीऔरमान सकक सेपीिड़तरहतेह।ैु
वे नःसंतानभीहोसकतेह।
ंपतृ प म िकए गए काय से पूवजो क आ ा को शां त ा होती है तथा कता को
पतृ ऋण से मु मलती ह।ै आ ा क अमरता का स ातं तो यं भगवान ी
ंकृ गीतामउपदे शतकरतेह।आ ाजबतकअपनेपरम-आ ासेसंयोगनहीकर
ंलेती, तब तक व भ यो नयो म भटकती रहती है और इस दौरान उसे ा कम म
संतु मलतीह।ै
ंअपनेपूवजोके त हे , वन ता,आदरव ाभावसे हीिकयाजानेवालाकमही
ा ह।ै यह पतृ ऋण से मु पाने का सरल उपाय भी ह।ै इसे पतयृ भी कहा गया
ह।ै हर साल भा पद पू णमा से आ न माह क अमाव ा तक के यह सोलह िदन
ा कम के होते ह। िक ु "गया ा " स ह िदन का होता है जो भा पद पू णमा से
लेकरअ नमासके शु प तपदातकचलताहै|
4
पतृ प सोलह िदन क समयाव ध होती है जसम सनातन धमाला ी िह जनू
ंअपनेपूवजोकोभोजनअपणकरउ धाजं लदेतेह।
द णी भारतीय अमातं प ा के अनुसार पतृ प भा पद के च मास म पड़ता है
औरपूणच माके िदनयापूणच माके एकिदनबाद ार होताह।ै
उ री भारतीय पूण मातं प ा के अनुसार पतृ प अ न के च मास म पड़ता है
औरभा पदमपूणच माके िदनयापूणच माके अगलेिदन ार होताह।ै
यह च मास क सफ एक नामावली है जो इसे अलग-अलग करती ह। पर ु उ री
औरद णीभारतीयलोग ा क व धसमानिदनहीकरतेह।
पतृ प का अ म िदन सव प ू अमाव ा या महालय अमाव ा के नाम से जाना
जाताह।ै पतृप ममहालयअमाव ासबसेमु िदनहोता
मह ष पाराशर के अनसु ार देश, काल तथा पा म ह व ा द व ध से जो कम यव
( तल) व दभ (कुशा) के साथ मं ो ार के साथ ापूवक िकया जाता है वह ा
होताहै।
भारतीय सं ृ त व सनातनधम म पतृ ऋण से मु होने के लए अपनेमाता- पता व
ंप रवार के मृतको के नय मत ा करने क अ नवायता तपािदत क गई ह।ै ा
कमको पतकृ मभीकहागयाहैव पतकृ मसेता य पतपृ ूजाभीह।ै
भा पदक पू णमासेलेकरअमाव ातकऊपरक र तथार के साथ पतृ ाण
पृ ी पर ा रहता ह।ै ा क मूलभूत प रभाषा यह है िक ते और प र के
न म ,उनक आ ाक तृ के लए ापूवकजोअ पतिकयाजाएवह ा ह।ै
मृ ु के बाद दशगा और षोडशी-स प न तक मृत क ते सं ा रहती ह।ै
ंस प नके बादवह पतरोमस लतहोजाताह।ै
पतपृ भर म जो तपण िकया जाता है उससे वह पतृ ाण यं आ ा पत होता ह।ै
पु या उसके नाम से उसका प रवार जो यव तथा चावल का प देता ह,ै उसम से रेत
5
काअशं लेकरवहचं लोकमअ ाणकाऋणचुकादेताह।ै
भा पद क पू णमा से वह च ऊपर क ओर होने लगता ह।ै 16 िदन अपना-अपना
भाग लेकर शु प क तपदा से उसी र के साथ रवाना हो जाता ह।ै इस लए
ंइसको पतपृ कहतेहऔरइसीप म ा करनेसेवह प रोको ा होताह।ै
ंशा ो का नदशानुसार है िक माता- पता आिद के न म उनके नाम और गो का
ंउ ारण कर मं ो ारा जो अ आिद अ पत िकया जाता ह,ै वह उनको ा हो जाता
ह।ै यिद अपने कम के अनुसार उनको देव यो न ा होती है तो वह अमृत प म
उनको ा होताह।ै उ ग वलोक ा होनेपरभो पम,पशुयो नमतणृ प
म, सप यो न म वायु प म, य प म पेय प म, दानव यो न म मासं के प म, ते
यो नम धरके पमऔरमनु यो नमअ आिदके पमउपल होताह।ै
जब प र यह सुनते ह िक ा काल उप त हो गया ह,ै तो वे एक-दसरे का रणू
ंकरते ए मनोनय प से ा ल पर उप त हो जाते ह और ा णो के साथ वायु
पमभोजनकरतेह।यहभीकहागयाहैिकजबसूयक ारा शमआतेहतब प र
ंअपनेपु -पौ ोके यहांआतेह।
वशेषतः आ न-अमाव ा के िदन वे दरवाजे पर आकर बठै जाते ह। यिद उस िदन
ंउनका ा नही िकया जाता तब वे ाप देकर लौट जाते ह। अतः उस िदन प -पु -
फल और जल-तपण से यथाश उनको तृ करना चािहए। आ न कृ
ंअमाव ाकोसव पतृ वजसनीअमाव ाकहतेह।जो पतपृ के पं हिदनो
ंतक ा तपण आिद नही कहते ह वे अमाव ा को ही अपने पतृ के न म ा ािद
ंसंप करते ह। जन पतृ क त थ याद नही हो, उनके न म ा तपण, दान आिद
इसीअमाव ाकोिकयाजाताह।ै
अमाव ाके िदनसभी पतृका वसजनहोताह।ै अमाव ाके िदन पतृअपनेपु ािद
के ार पर प दान एवं ा ािद क आशा म जाते ह। यिद वहां उ प दान या
ंतला लआिदनही मलतीहैतोवेशापदेकरचलेजातेह।अतः ा काप र ाग
ंनहीकरनाचािहए।
6
ा का अ धकार िकसे?
ंा करने के लए मनु ृ त और वैवत जसै े शा ो म यही बताया गया है िक
ंिदवंगत पतरो के प रवार म या तो े पु या क न पु और अगर पु न हो तो
ंधवे ता (नाती), भतीजा, भाजं ा या श ही तलाजं ल और पडदान देने के पा होते
ंह।कईऐसे पतरभीहोतेहै जनके पु संताननहीहोतीहैयािफरजोसंतानहीनहोते
ंह। ऐसे पतरो के त आदर पूवक अगर उनके भाई-भतीज,े भाजं े या अ चाचा-
ंताऊ के प रवार के पु ष सद पतपृ म ापूवक त रखकर पडदान, अ दान
ंऔर व दान करके ा णो से व धपूवक ा कराते है तो पीिड़त आ ा को मो
मलताह।ै
ंमिहलाएं भी ा कर सकती है या नही आजकल इस को भी उठाया जा रहा ह।ै
वैिदकपरंपराके अनुसारमिहलाएं य अनु ान,संक और तआिदतोरखसकती
ंह,ै ा़ कापूराआयोजनऔरखचकरसकतीहैलेिकन ा क व धको यं नही
कर सकती ह।ै वधवा ी अगर संतानहीन हो तो अपने प त के नाम ा का संक
ंरखकर ा णयापुरोिहतप रवारके पु षसद सेही पडदानआिदका वधानपूरा
ं ंकरवासकतीह।ै इसी कार जन पतरोके क ाएं हीवंशपरंपरामहतोउ पतरो
के नाम त रखकर उसके दामाद या धवे त,े नाती आिद ाहमण को बलु ाकर ा कम
ंक नवृ करा सकते ह।ै साध-ु स ो के श गण या श वशेष ा कर सकते
ह।ै
7
ंपतृप म व जत ो है शुभकाय
वैसे यह पूरा १६ िदन पतरो के के नाम सुर त रहता ह।ै शुभ काय ना करने के
ंपीछे यह कारण हो सकता है िक हम पतरो क ृ त से दखी होकर, या उनकेु
जानेके दखमउनक आ ाक शा के लएकोईअ उ वऔरमंगलकायु
कायनहीकर।लेिकनआज
के समय के लहाज से कुछ
ंशुभ काय व जत नही ह।ै
अगर ब त आव क हो तो
शुभ काय िकए जा सकते ह
ंजनमपूजापाठ निहतनही
हो। खरीदारी भी क जा
ंसकती ह।ै ऐसा नही है िक
शुभ काय करने से उनका
फल भा वत होगा। यह
ंके वलहमाराअपने पतरोके तस ानहोताहैिकहम16िदनतकघरमकोई
ंमागं लक आयोजन नही करे। अगर बना इ देव क पूजा रिहत कोई मागं लक
ंआयोजन िकया भी जाए तो उसका कोई बरु ा भाव भी नही होता ह।ै जो लोग
ंअपने घर म पतरो का पूरी ा से पूजन करते ह, त वष ा करते ह, तपण
ंकरते ह, उनके साथ पतरो का आशीवाद भी बना होता ह।ै उनका कोई काम
ं ं ंगलतनहीहोता।उ ीलोगोके साथकोईबरु ीघटनायाअशुभहोताह,ै जो ा
ं ंनही करते या उनके जीतजे ी अपने जीवन म पतरो को ठीक से संतु नही करत।े
ं ंउनके त ाहीन होकर उनका ा नही करत,े तपण नही करत।े या उनसे
नफरतकरतेहै।
8
ं ंये शा ीय संगतत हैक पतृप मे देवताओ क पूजनया देवताओ के स करने
पूवअपने पतरोको स िकयाजायजोअ धकक ाण दऔरसुखकारी ह।ै
ंा प का िह धम ( सनातन धमावल यो) के लए बड़ा मह िदन रहता ह।ैू
ाचीन सनातन धम के अनुसार हमारे पूवज देवतु ह और इस धरा पर हमने जीवन
ंा िकया है और जस कार उ ोने हमारा लालन-पालन कर हम कृताथ िकया है
उससे हम उनके ऋणी ह। समपण और कृत ता क इसी भावना से ा प े रत ह,ै
जोजातकको पतरऋणसेमु मागिदखाताह।ै
ंभा पद क पू णमा से आ न कृ अमाव ा तक सोलह िदनो तक का समय सोलह
ंा या ा प कहलाता ह।ै शा ो म देवकाय से पूव पतृ काय करने का नदश
ंिदया गया ह।ै ा से के वल पतृ ही तृ नही होते अ पतु सम देवी देवता से लेकर
वन तयांतकतृ होतीह।
ग ड़पुराणके अनुसार पतरऋणमु मागरेखा
क देवकुव तसमये ा ंकुलेक सीद त।
ंआयःु पु ान्यशः गक तपु बलं यम।्।
पशून्सौ ं धनं धा ं ा यु ात् पतृपूजनात।्
देवकायाद पसदा पतृकाय व श ते।।
देवता ः पतृणांिहपूवमा ायनं शुभम।्।
ं ंअथात'समयानुसार ा करनेसेकुलमकोईदखीनहीरहता। पतरोक पूजाकरकेु
मनु आय,ु पु , यश, ग, क त, पु , बल, ी, पशु, सुख और धन-धा ा
ं ंकरता ह।ै देवकाय से भी पतकृ ाय का वशेष मह ह।ै देवताओ से पहले पतरो को
स करनाअ धकक ाणकारीऔरसुखकारीह।ै '
ं ं ंशा ो म देवताओ से पहले पतरो को स करना अ धक क ाणकारी कहा गया ह।ै
यहीकारणहै िकदेवपूजनसेपूव पतरपूजनिकएजानेका वधानह।ै
ंदेवताओ से पूव पतृपूजन का वशेष मह
9
पतृतपण और ा व् संक
ा करनेवालेकासासं ा रकजीवनसुखमयबनताहैतथामो क भी ा होतीह।ै
ंऐसी मा ता है िक ा न करने से पतृ धु ा से होकर अपने सगे-संबं धयो को
ंक और शाप देते ह। अपने कम के अनुसार जीव अलग-अलग यो नयो म भोग
ंभोगतेह,जहांमं ो ारासंक तह -क को पतर ा करलेतेह।
ंपतरो के लए ा से िकए गए मु कम को ा कहते ह तथा तृ करने क ि या
ं ं ंऔरदेवताओ, ऋ षयो या पतरो को तंडुल या तल म तजलअ पतकरनेक ि या
ंकोतपणकहतेह।तपणकरनाही पडदानकरनाह।ै
तपण करने के पूव संक अ त आव क है | बना संक के िकए गए देव काय या
पतृकायसवथा थहीह।संक इस कारिकयाजाताह,ै यथा-
'ॐ व ु व ु व ,ु ॐ नम: परमा ने ी पुराण पु षो म ी व ोरा या
वतमान ा ी णो ि तीय पराध ी ेत वराह क े वैव त्
ंम रेअ ा वश ततमे क लयगु े क ल थम चरणे ज ु ीपे भारतवष भरत ख े
ंआयाव ागत ावतक देशे पु देशे (य द वदेश म कही हो तो रेखािं कत के
ानपरउसदेश,शहर, ामकानामबोल।)
वतमाने पराभव नाम संव रे द णायने अमकु ऋतौ (ऋतु का नाम)
महामागं दे मासानाम्मासो मेअमकु मासे(महीनेकानाम)अमकु प े(शु
या कृ प का नाम) अमकु तथौ ( त थ का नाम) अमकु वासरे (वार का नाम)
अमकु न े (न का नाम) अमकु रा श मते च े ( जस रा श म च हो का
नाम) अमकु रा श ते सूय (सूय जस रा श म त हो का नाम) अमकु रा श
नते देवगुरौ बृह त (गु जस रा श म त हो का नाम) अमकु गौ ो
(अपनेगौ तथा यं कानाम)अमकु शमा/वमाअहंसम पतृ पतामहानं ांनाना
गौ ाणां पतरानां पासा नवृ पूवकं अ य तृ स ादनाथ ा णु
भोजना कं साकं त ा ं पंचब ल कम च क र े। हाथ म जल लेकर इतना
कहकर जल छोड़। आमा यानी क ा भोजन देने के लए रेखािं कत के ान पर
10
'इदंअ ं भवद ोनम:'कह।
अपनी घर क भाषा म ही ाथना कर- हे पतगृ ण, मेरे पास ा के लए उपयु
ंअ -धन नही है तो के वल ा-भ इसे आप ीकार। हम आपक संतान ह। हम
ं ंआशीवाद द तथा गलं तयो एवं क मयो के लए मा कर तथा पूरा करने क श
दानकर।
।।ॐअयमान तामइदं तलोदकं त ै धानमः।...ॐमृ ोमाअमतृ ं गमय।।
ं ंपतरो म अयमा े ह।ै अयमा पतरो के देव ह। अयमा को णाम। ह!े पता,
पतामह, और पतामह। ह!े माता, मातामह और मातामह आपको भी बारंबार
णाम।आपहममृ ुसेअमृतक ओरलेचल।
ं'हे अ ! हमारे े सनातन य को संप करने वाले पतरो ने जसै े देहातं होने पर े
ं ंऐ य वाले ग को ा िकया है वैसे ही य ो म इन ऋचाओ का पाठ करते ए और
ंसम साधनोसेय करते एहमभीउसीऐ यवान गको ा कर।'-यजवु द
ंतपणउपरातं क ि याएं ह-एक पडदानऔरदसरी ा णभोजन। ा णके मुखू
से देवता ह को तथा पतर क को खाते ह। पतर रण मा से ही ा देश म
ंआते ह तथा भोजनािद ा कर तृ होते ह। एका धक पु हो और वे अलग-अलग
रहते हो तो उन सभी को ा करना चािहए। ा ण भोजन के साथ पंचब ल कम भी
होताह,ै जसका वशेषमह ह।ै
ंशा ोमपाचं तरहक ब लबताईगईह, जसका ा म वशेषमह ह।ै
1.गौब ल
2. ानब ल
3.काकब ल
4.देवािदब ल
5. पपी लकाब ल
ंयहां ब ल से ता य िकसी पशु या प ी क ह ा से नही ह,ै ब ा के िदन जो
भोजन बनाया जाता ह।ै उसम से इनको भी खलाना चािहए। इसे ही ब ल कहा जाता
ह।ै
11
तपण ( ा ) कम क सरल व ध
ंतपण( ा )अनुयायीसभीिह धमावल ीउ े ा पूवजोके तस ी ाू
ंका तीक ह। पतरो के न म व धपूवक जो कम ा से िकया जाता ह,ै उसी को
' ा ' कहते ह। ार वैिदक-पौरा णक त थभा पद शु प क पू णमा से
सव पतृअमाव ाअथातआ नकृ प अमाव ातकअनु ान ा -कममपके
ए चावल, दध और तल को म त करके जो ' प ' बनाते ह। प का अथ हैू
शरीर। यह एक पारंप रक व ास ह,ै िक हर पीढ़ी के भीतर मातकृ ुल तथा पतकृ ुल
ं ंदोनो म पहले क पीिढ़यो के सम त 'गुणसू ' उप त होते ह। यह तीका क
ंअनु ान जन जन लोगो के गुणसू (जी ) ा करने वाले क अपनी देह म ह,
उनक तृ के लएहोताह।ै
अ जानकारी पुराणके अनुसार ा क प रभाषा-'जोकुछउ चतकाल,पा
ंएवं ान के अनुसार उ चत (शा ानुमोिदत) व ध ारा पतरो को ल करके
ंापूवक ा णोकोिदयाजाताह'ै , ा कहलाताह।ै
ं ंा पूवजो के त स ी ा का तीक ह। पतरो के न म व धपूवक जो कम
ा से िकया जाता है उसी को ा कहते ह। ा सं ार म आवाहन, पूजन,
नम ार के उपरा तपण िकया जाता ह।ै जल म दध, जौ, चावल, च न डाल करू
तपण काय म यु करते ह। मल सके , तो गंगा जल भी डाल देना चािहए। तृ के
ंलए तपण िकया जाता ह।ै ग आ ाओ क तृ िकसी पदाथ से, खाने-पहनने
ं ं ंआिद क व ु से नही होती, ोिक लू शरीर के लए ही भौ तक उपकरणो क
आव कता पड़ती ह।ै मरने के बाद लू शरीर समा होकर, के वल सू शरीर ही
ंरहजाताह।ै सू शरीरकोभूख- ास,सद -गम आिदक आव कतानहीरहती,
उसक तृ का वषय कोई, खा पदाथ या हाड़-मासं वाले शरीर के लए उपयु
ंउपकरण नही हो सकत।े सू शरीर म वचारणा, चेतना और भावना क धानता
ंरहती ह,ै इस लए उसम उ ृ भावनाओ से बना अ ःकरण या वातावरण ही
शा दायकहोताह।ै
12
दशा एवं ेरणा इस संसार म लू शरीर वाले को जस कार इ य भोग,
ंवासना,तृ ाएवं अहंकारक पू तमसुख मलताह,ै उसी कार पतरोकासू शरीर
शुभकमसेउ सुग कारसा ादनकरते एतृ काअनुभवकरताह।ै उसक
स तातथाआकां ाकाके ब ाह।ै ाभरे वातावरणके सा म पतरु
अपनी अशा खोकर आन का अनुभव करते ह, ा ही इनक भूख ह,ै इसी से
ंउ तृ होती ह।ै इस लए पतरो क स ता के लए ा एवं तपण िकये जाते ह।
ंइनि याओका व ध- वधानइतनासरलएवं इतनेकमखचकाहैिक नधनसे नधन
भीउसेआसानीसेस करसकताह।ै तपणम धानतयाजलकाही योग
होता ह।ै उसे थोड़ा सुगं धत एवं प रपु बनाने के लए जौ, तल, चावल, दध, फू लू
ंजसै ी दो-चार मागं लक व एु ँ डाली जाती ह। कुशाओ के सहारे जौ क छोटी-सी
अजं लम ो ारपूवकडालनेमा से पतरतृ होजातेह,िक ुइसि याके साथ
आव क ा, कृत ता, स ावना, मे , शुभकामना का सम य अव होना
ंचािहए। यिद ा ल इन भावनाओ के साथ क गयी ह,ै तो तपण का उ े पूरा हो
ंजायेगा, पतरो को आव क तृ मलेगी, िक ु यिद इस कार क कोई ा
ंभावना तपण करने वाले के मन म नही होती और के वल लक र पीटने के मा पानी
इधर-उधरफै लायाजाताह,ै तोइतनेभरसेकोई वशेष योजनपूणनहोगा,इस लए
ंइन पत-ृ कम के करनेवालेयह ानरखिकइनछोटे-छोटेि या-कृ ोकोकरनेके
ं ं ंसाथ-साथिदवंगतआ ाओके उपकारोका रणकर,उनके स णोतथास म केु
त ा कर।
कृत ता तथा स ान क भावना उनके त रख और यह अनुभव कर िक यह
ं ंजलाजं ल जसै े अिकचन उपकरणो के साथ, अपनी ा क अ भ करते ए
ं ंगीय आ ाओ के चरणो पर अपनी स ावना के पु चढ़ा रहा ँ। इस कार क
ं ंभावनाएँ जतनीही बलहोगी, पतरोकोउतनीहीअ धकतृ मलेगी। जस पतर
ंका गवास आ ह,ै उसके िकये ए उपकारो के त कृत ता करना, उसके
अधरू े छोड़े ए पा रवा रक एवं सामा जक उ रदा य को पूरा करने म त र होना
तथाअपने एवं वातावरणकोमंगलमयढाचँ ेमढालनामरणो रसं ारका
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धान योजन ह।ै गृह शु , सूतक नवृ का उ े भी इसी के न म क जाती ह,ै
ं ंिक ु तपण म के वल इ ी एक पतर के लए नही, पूव काल म गुजरे ए अपने
ंप रवार,माताके प रवार,दादीके प रवारके तीन-तीनपीढ़ीके पतरोक तृ काभी
ं ंआयोजनिकयाजाताह।ै इतनाहीनहीइसपृ ीपरअवत रत एसभीमहान्पु षो
क आ ा के त इस अवसर पर ा करते ए अपनी स ावना के ारा तृ
ंकरनेका य िकयाजाताह।ै तपणकोछःभागोम वभ िकयागयाह-ै
देव-तपण
ऋ ष-तपण
िद -मानव-तपण
िद - पत-ृ तपण
यम-तपण
मनु - पत-ृ तपण
ा सं ारकरते ालु
(१) देव तपणम्
देव श याँ ई र क वे महान वभू तयाँ ह, जो मानव-
क ाणमसदा नः ाथभावसे यतनरतह।जल,वाय,ु सूय,
ंअ , च , व त् तथा अवतारी ई र अगं ो क मु आ ाएँु
एवं व ा, बु , श , तभा, क णा, दया, स ता,
ंप व ता जसै ी स वृ याँ सभी देव श यो म आती ह।
ं ंय प ये िदखाई नही देती, तो भी इनके अन उपकार ह। यिद इनका लाभ न मले,
तो मनु के लए जी वत रह सकना भी स व न हो। इनके त कृत ता क भावना
ं ंकरनेके लएयहदेव-तपणिकयाजाताह।ै यजमानदोनोहाथोक अना मका
ंअगँ ु लयोमप व ीधारणकर।
ॐआग ुमहाभागाः, व ेदेवामहाबलाः।
येतपणऽ विहताः,सावधानाभव ुते॥
जल म चावल डाल । कुश-मोटक सीधे ही ल ।। य ोपवीत स (बाय क े पर)
देव तपण
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ंसामा त म रख। तपण के समय अजं ल म जल भरकर सभी अगँ ु लयो के अ
भाग के सहारे अ पत कर। इसे देवतीथ मु ा कहते ह। ेक देवश के लए एक-
एकअजं लजलडाल।पूवा भमुखहोकरदेतेचल।
ॐ ादयोदेवाःआग ुगृ ुएतान्जला लीन।्
ॐ तृ ताम।्
ॐ व ु ृ ताम।्
ॐ ृ ताम।्
ॐ जाप ततृ ताम।्
ॐ देवा ृ ताम।्
ॐ छ ां स तृ ाम।्
ॐ वेदा ृ ाम।्
ॐ ऋषय ृ ाम।्
ॐ पुराणाचाया ृ ाम।्
ॐ ग वा ृ ाम।्
ॐ इतराचाया ृ ाम।्
ॐ संव रः सावयव ृ ाम।्
ॐ दे ृ ाम।्
ॐ अ रस ृ ाम।्
ॐ देवानुगा ृ ाम।्
ॐ नागा ृ ाम।्
ॐ सागरा ृ ाम।्
ॐ पवता ृ ाम।्
ॐ स रत ृ ाम।्
ॐ मनु ा ृ ाम।्
ॐ य ा ृ ाम।्
ॐ र ां स तृ ाम।्
ॐ पशाचा ृ ाम।्
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ॐ सुपणा ृ ाम।्
ॐ भूता न तृ ाम।्
ॐ पशव ृ ाम।्
ॐ वन तय ृ ाम।्
ॐ ओषधय ृ ाम।्
ॐ भूत ामः चतु वध ृ ाम।्
(२) ऋ ष तपण
ंदसरा तपण ऋ षयो के लए ह।ै ास, व स , या व ,ू
का ायन, अ , जमद , गौतम, व ा म , नारद, चरक,
ंसु तु , पा णनी, दधी च आिद ऋ षयो के त ा क
ंअ भ ऋ ष तपण ारा क जाती ह।ै ऋ षयो को भी
ंदेवताओक तरहदेवतीथसेएक-एकअजं लजलिदयाजाताह।ै
नारदमु न
ॐ मरी ािद दशऋषयः आग ु गृ ु एता जला लीन।्
ॐ मरी च ृ ाताम।्
ॐ अ ृ ताम।्
ॐ अं गराः तृ ताम।्
ॐ पुल ृ ताम।्
ॐ व स ृ ताम।्
ॐ तु ृ ताम।्
ॐ व स ृ ताम।्
ॐ चेता ृ ताम।्
ॐ भृगु ृ ताम।्
ॐ नारद ृ ताम।्
(३) द -मनु तपण
ंतीसरा तपण िद मानवो के लए ह।ै जो पूण प से सम जीवन को लोक क ाण
ऋ ष तपण
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ं ंके लए अ पत नही कर सक, पर अपना, अपने प रजनो का भरण-पोषण करते ए
लोकमंगल के लए अ धका धक ाग-ब लदान करते रह,े वे िद मानव ह। राजा
ह र ं , र देव, श व, जनक, पा व, शवाजी, महाराणा ताप, भामाशाह,
तलक जसै े महापु ष इसी ेणी म आते ह। िद मनु तपण उ रा भमुख िकया
ंजाताह।ै जलमजौडाल।जनेऊक क मालाक तरहरख।कुशहाथोमआड़ेकर
ंल। कुशो के म भाग से जल िदया जाता ह।ै अजं ल म जल भरकर क न ा (छोटी
उँगली) क जड़ के पास से जल छोड़, इसे ाजाप तीथ मु ा कहते ह। ेक
स ोधनके साथदो-दोअजं लजलद-
ॐसनकादयःिद मानवाःआग ुगृ ुएता जला लीन।्
ॐसनक ृ ाताम॥् 2॥
ॐसन न ृ ताम॥् 2॥
ॐसनातन ृ ताम॥् 2॥
ॐक पल ृ ताम॥् 2॥
ॐआसु र ृ ताम॥् 2॥
ॐवोढु ृ ताम॥् 2॥
ॐप शख ृ ताम॥् 2॥
(४) द - पतृ-तपण
ं ंचौथा तपण िद पतरो के लए ह।ै जो कोई लोकसेवा एवं तप या तो नही कर सके ,
परअपनाच र हर सेआदशबनायेरह,े उसपरिकसीतरहक आचँ नआनेदी।
ंअनुकरण, पर रा एवं त ा क स पीछे वालो के लए छोड़ गये। ऐसे लोग भी
ंमानव मा के लए व नीय ह, उनका तपण भी ऋ ष एवं िद मानवो क तरह ही
ंापूवक करना चािहए। इसके लए द णा भमुख हो। वामजानु (बायाँ घुटना
मोड़करबठै )जनेऊअपस (दािहनेक ेपरसामा सेउ ी तम)रख।कुशा
दहरे कर ल। जल म तल डाल। अजं ल म जल लेकर दािहने हाथ के अगँ ूठे के सहारेु
जल गराएँ।इसे पतृतीथमु ाकहतेह। ेक पतृकोतीन-तीनअजं लजलद।
ॐक वाडादयो द पतरःआग ुगृ ुएतान्जला लन।्
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ॐक वाडनल ृ ताम।् इदंस तलं जलं (गंगाजलं वा)त ै ाधानमः॥3॥
ॐसोम ृ ताम,् इदंस तलं जलं (गंगाजलं वा)त ै ाधानमः॥3॥
ॐयम ृ ताम,् इदंस तलं जलं (गंगाजलं वा)त ै ाधानमः॥3॥
ॐअयमा ृ ताम।् इदंस तलं जलं (गंगाजलं वा)त ै ाधानमः॥3॥
ॐ अ ा ाः पतर ृ ताम।् इदं स तलं जलं (गंगाजलं वा) ते ः ाधा
नमः॥3॥
ॐसोमपाः पतर ृ ताम।् इदंस तलं जलं (गंगाजलं वा)ते ः ाधानमः॥3॥
ॐबिहषदः पतर ृ ताम।् इदंस तलं जलं (गंगाजलं वा)ते ः ाधानमः॥3॥
(५) यम तपण
ंयम नय ण-क ाश योकोकहतेह।ज -मरणक व ाकरनेवालीश
को यम कहते ह। मृ ु को रण रख, मरने के समय प ा ाप न करना पड़े, इसका
ान रख और उसी कार क अपनी ग त व धयाँ नधा रत कर, तो समझना चािहए
िकयमको स करनेवालातपणिकयाजारहाह।ै रा शासनकोभीयमकहतेह।
अपने शासन को प रपु एवं बनाने के लए ेक नाग रक को, जो क
पालन करता ह,ै उसका रण भी यम तपण ारा िकया जाता ह।ै अपने इ य
न हक ाएवं कुमागपरचलनेसेरोकनेवाले ववेककोयमकहतेह।इसेभी नरंतर
पु करते चलना हर भावनाशील का क ह।ै इन क क ृ त यम-
तपण ाराक जातीह।ै िद पतृतपणक तरह पततृ ीथर्सेतीन-तीनअजं लजल
ंयमोकोभीिदयाजाताह।ै
ॐयमािदचतदु शदेवाःआग ुगृ ुएतान्जला लन।्
ॐयमायनमः॥3॥
ॐधमराजायनमः॥3॥
ॐमृ वेनमः॥3॥
ॐअ कायनमः॥3॥
ॐवैव तायॐकालायनमः॥3॥
ॐसवभूत यायनमः॥3॥
ॐऔद रायनमः॥3॥ु
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ॐद ायनमः॥3॥
ॐनीलायनमः॥3॥
ॐपरमे नेनमः॥3॥
ॐवकृ ोदरायनमः॥3॥
ॐ च ायनमः॥3॥
ॐ च गुपतायनमः॥3॥
ंत ात् न म ोसेयमदेवताकोनम ारकर-
ॐयमायधमराजाय,मृ वेचा कायच।
वैव तायकालाय,सवभूत यायच॥
औद रायद ाय,नीलायपरमे ने।ु
वकृ ोदराय च ाय, च गु ायवैनमः॥
(६) मनु - पतृ-तपण
ंइसके बाद अपने प रवार से स त िदवंगत नर-ना रयो का
मआताह।ै
पता,बाबा,परबाबा,माता,दादी,परदादी।
नाना,परनाना,बढ़ू ेनाना,नानीपरनानी,बढ़ू ीनानी।
पतनी, पु , पु ी, चाचा, ताऊ, मामा, भाई, बआु , मौसी, बिहन, सास, ससुर, गु ,
गु पतनी, श , म आिद।
यहतीनवंशाव लयाँतपणके लएह।ै पहले गो तपणिकयाजाताह-ै
गो ो ाःअ त् पतरःआग ुगृ ुएतान्जला लीन।्
अ ता( पता)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ तामह (दादा) अमुकशमार् अमुकसगो ो प ृ ताम।् इदं स तलं जलं
त ै धानमः॥3॥
euq";&fir`&riZ.k
19
अ पतामहः(परदादा)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।् इदं स तलं
जलं त ै धानमः॥3॥
अ ाता (माता) अमुक देवी दा अमुक सगो ा गाय ी पा तृ ताम।् इदं स तलं
जलं त ै धानमः॥3॥
अ तामही (दादी) अमुक देवी दा अमुक सगो ा सा व ी पा तृ ताम।् इदं
स तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ तामही (परदादी) अमुक देवी दा अमुक सगो ा ल ी पा तृ ताम।् इदं
स तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ ापतनमाता (सौतले ी मा)ँ अमुक देवी दा अमुक सगो ा वसु पा तृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ तपण
ि तीय गो तपण
इसके बाद ि तीय गो मातामह आिद का तपण कर। यहाँ यह भी पहले क भाँ त
ंन ल खत वा ो को तीन-तीन बार पढ़कर तल सिहत जल क तीन-तीन अजं लयाँ
पततृ ीथसेदतथा-
अ ातामहः(नाना)अमुकशमाअमुकसगो ोवसु प ृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ मातामहः(परनाना)अमुकशमार्अमुकसगो ो प ृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ मातामहः(बढ़ू ेपरनाना)अमकु शमार्अमकु सगो ोआिद प ृ ताम।्ृ
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
20
अ ातामही(नानी)अमुक देवीदाअमुकसगो ाल ी पातृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ मातामही(परनानी)अमुक देवीदाअमुकसगो ा पातृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ मातामही(बढ़ू ीपरनानी)अमकु दवे ीदाअमकु सगो ाआिद ा पातृ ताम।्ृ
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
इतर तपण
ंजनकोआव कहै,के वलउ ीके लएतपणकरायाजाए-
अ तनीअमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ तु ः(बटे ा)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।्
इदंअमकु दवे ीदाअमकु सगो ावसु पातृ ताम।् इदंसतलंजलंत ै धानमः॥3॥
स तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ ाः(बटे ी)अमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ तृ ः(चाचा)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ ातलु ः(मामा)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ द ाता(अपनाभाई)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।््
21
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ ापतन ाता(सौतले ाभाई)अमकु शमार्अमकु सगो ोवसु प ृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ तभृ गनी(बआु )अमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ ा ातभृ गनी(मौसी)अमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ दा भ गनी(अपनीबिहन)अमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ ापतनभ गनी (सौतले ी बिहन) अमुक देवी दा अमुक सगो ा वसु पा
तृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ द शुरः( सुर)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ द शुरपतनी(सास)अमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।्ु
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ दआचायपतनीअमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।््
22
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ त् श ःअमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ खाअमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।्
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ दआ पु षः(स ानीयपु ष)अमकु शमार्अमकु सगो ोवसु प ृ ताम।््
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
अ दप तःअमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।््
इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥
न म सेपूवर् व धसे ा णमा क तु के लएजलधारछोड़-
ॐदेवासुरा थाय ा,नागाग वरा साः।
पशाचागु काः स ाः,कू ा ा रवःखगाः॥
जलेचराभू नलया,वा वाधारा ज वः।
ी तमेते या ाशु,म ने ा नु ा खलाः॥
नरके षुसम षे ु,यातनासु◌ु चये ताः।
तषे ामा ायनायैतद,दीयतेस ललं मया॥्
येबा वाऽबा वावा,येऽ ज नबा वाः।
तेसवेर्तृ माया ,ु येचा ोयकां णः।
आ पय ,देव ष पतमृ ानवाः।
23
तृ ु पतरःसवेर्,मातमृ ातामहादयः॥
अतीतकुलकोटीना,ं स ीप नवा सनाम।्
आ भुवना ोकाद,इदम ु तलोदकम।््
येबा वाऽबा वावा,येऽ ज नबा वाः।
तेसवेर्तृ माया ,ु मयाद ने वा रणा॥
व - न ीडन
शु व जल म डुबोएँ और बाहर लाकर म को पढ़ते ए अपस भाव से अपने
बायभागमभू मपरउसव को नचोड़।[2]
ॐयेके चा ुलेजाता,अपु ागो णोमतृ ाः।
तेगृ ुमयाद ं,व न ीडनोदकम॥्
भी तपण
ंअ म भी तपण िकया जाता ह।ै ऐसे परमाथ परायण महामानव, ज ोने उ
ं ंउ े ो के लए अपना वंश चलाने का मोह नही िकया, भी उनके त न ध माने गये
ंह,ऐसीसभी े ा ाओकोजलदानद-
ॐवैया पदगो ाय,साकं ृ त वरायच।
गंगापु ायभी ाय, दा ेऽहं तलोदकम॥्
अपु ायददा ेतत,् स ललं भी वमण॥
24
पतृ प म अ तलाभकारी ये दान
पतपृ ,अमाव ा,बरसीपरदसदानमहादानमानेगएह।
ंिह धम म दान को ब त ही अहम और ज री माना गया ह।ै खासतौर पर प रो कू
स ता के लए हम ा प ,उनक बरसी और अमाव ा को जो भी पूण ा से
ंउनके न मतदानकरतेहैउससेहमअपने प रोकासदैवआशीवाद ा होताहै|
ंपतरो क स ताके लए ा प म िकए जानेवाले दाननके वल कालसप दोष एवं
ंहमारे पतदृ ोषकोख करतेहवरनहमारे जीवनके सभीसंकटोकोदरकरते एहमू
धन,यश, सफलता, दीघ आय,ु पा रवा रक सुख शां त और सम भौ तक सुख
ंसंपदाओको दानकरतेह।ै
ंकहते है प रो के न मत उनके गो तथा नाम का उ ारण करके जो भी व एु ं उ े
ंअ पत क जाती है वह उ उनक यो न के िहसाब से ा होती ह।ै हमारे पतरो के
प रयो नमहोनेपरउ सू पम,देवलोकमहोनेपरअमृत पम,ग व
लोक म होने पर भो प म, पशु यो न म तणृ प म, सप यो न म वायु प म ,य
यो न म पेय प म, दानव यो न म मासँ प म, ते यो न म धर प म, तथा यिद
हमारे प र मनु यो न म हो तो उ े अ धन आिद के प म ा होता ह।ै अथात
ंहमारे ारा िदया गया दान और ा कम कतई न ल नही होता है । पतपृ म हम
वैसे तो कुछ भी अपनी ा से दान कर सकते है लेिकन खासतौर पर नीचे बताये गए
दानमहादानमानेगएह।
1. तल का दान : स ूण ा कम म तल का ब त ही ादा मह ह।ै काले तल
भगवान व ु को अ त य ह।ै ा प म कुछ भी दान करते समय हाथ म काला
ंतल लेकर ही दान करना चािहए। इससे दान का स ूण फल हमारे पतरो को ा
ं ंहोताह।ै प रोके न मत ा मकाले तलोकादानहमारीतथाहमारे पूरे प रवारक
ंहर कारके संकटोसेर ाकरताह।ै
25
ं2. घी का दान : पतरो के ा म गाय के घी को अपनी साम के अनुसार सुपा
ाहमणकोदानदेनाअ ंतहीमंगलकारीमानाजाताह।ै
ं3. ण का दान : ण दान से प रवार मे कलह दर होती ह,ै प रवार के सभी सद ोू
के म आपसी मे और सौहा का वातावरण उ होता है । अगर ण दान
संभव न हो सके तो अपनी ा और साम के अनुसार यथाश धन का दान भी
िकयाजासकताह।
4.अ दान:अ दानम आपकोई भी अनाजका दानदे सकतेहै। यहदानपूण ा
सेसंक सिहतकरनेपरमनु क सभीइ ाएं पूणहोतीहै।
ं ं ं5.व दान :शा ो के अनुसार पतरो को भी हम मनु ो क तरह ही सद , गम का
ंएहसास होता ह।ै इससे बचने हते ु पतरगण अपने वंशजो से व क इ ा रखते ह।
ं ंजो अपने पतरोके न म व कादानकरतेहउनपर पतरोक हमेशाकृपा
ंबनीरहतीह।ै पतरोकोधोतीएवं दप ाकादानकरनासबसेउ ममानागयाह।ै वु
ंदान से यमदतो का भय भी समा हो जाता ह।ै वैसे व दान म आपू
ंधोती,कुरता,गमछा,ब नयान, मालआिदिकसीभीतरहके व ोकादानकरसकते
हैपर ु ानरहेक यहव नएऔर बलकुलसाफहोनेचािहए।
ं6.चादँ ीकादान: ा मचादँ ीके दानकाब त ादामह हैपुराणोम लखाहैिक
ं ं ंपतरो का नवास च के ऊपरी भाग म ह।ै शा ो के अनुसार पतरो को चादं ी क
व एु ं अ त य ह। चादं ी, चावल, दध के दान से से पतर ब त खुश होते ह। इनू
ंव ओु के दान से न के वल वंश क वृ होती है वरन मनु क सभी इ ाएँ भी
अव हीपूणहोतीह।ै
7.भू मदान: ा प मिकसीभीगरीब कोभू मकादान, को ाई
संप औरअतलु वैभवदेताह।ै महाभारतमकहागयाहैिकभूलवशबड़ेसेबड़ापाप
हो जाने पर भू म दान करने से को पाप से मु मल जाती ह।ै भू म दान से
ंदानकता को अ य पु मलता ह।ै ऐसा माना जाता है क िक पतरो के न म भू म
ंदानकरनेसे पतरोको पतरलोकमरहनेके लएउ चत ान मलताह।ै अगरभू म
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का दान संभव न हो तो इसके ान पर पर म ी के कुछ टुकड़े उ चत द णा के साथ
िकसी बतन/ थाली म रखकर िकसी भी यो ा ण को दान िदया जा सकता है ।
ापूवक म ी का दान करने से भी पतर संतु हो जाते ह। भू म दान से यश, मान-
स ानएवं ायीसंप मवृ होतीह।ै
8.गुड़कादान:गुड़के दानसेहमारे पतृअ तशी स होतेहै।इसदानसे
कोधन,सुखसंप क ा होतीहै।
ं9.गौदान:गौदानतोहमेशासेहीसभीदानोम े मानाजाताह।ै लेिकन ा प
मिकयागयागौदानहरसुखऔरऐ य दानकरनेवालामानागयाह।ै ग ड़पुराण
मकहागयाहैिकमृ ुके समयजो गायक पंूछपकड़करगौदानकरतेहउ
ंमृ ु के बाद वैतरणी नदी पार करने म कोई भी परेशानी नही होती ह।ै वैतरणी नदी
यमलोक के रा े म पड़ती है जसम भयानक जीव-ज ु नवास करते ह जो पापी
कोघोरपीड़ादेतेह।इसी लए पतृप मगायकादानकरनेसे पतरब तही
ंस होतेहऔरअपनेवंशजोकोहदयसेआशीवाददेतेह।अगरआपगौदानकरने
मअसमथहोतोअपनीयथाश उसके ानमधनकादानदेसकतेहै।
ं10. नमक का दान: पतरो क स ता के लए नमक के दान का ब त मह ह।ै इस
ंदानके पहले ा णदेवतामअपने पतरोक छ वदेखते एउ पूण ाऔर हे
सेभोजनकराएं औरउसके बादउ दानदे करउनकाआशीवादलेकरउनक संतु
क ाथनाकरते एउनसेअपनेजानेअनजानेमिकयेगएिकसीभीअपराधके लए
मामागं े।
ंतो आप सभी देर न कर इन रंगो से दो ी करके स ाह के ेक िदन के िहसाब से
कपड़े पहनना शु कर न य ही आप अपने अ र नया आ व ास और उजा का
संचारपाएंगे।
ंइनके अ त र आप अपनी ा और साम से अपने प रो के पसंद के फल,
ब र, छाता, च ल, पंखा, म ी का घड़ा आिद का दान भी िकसी यो ा ण को
ंकर सकते ह।ै याद रहे पतरो के न मत िकया जाने वाला दान के वल ाहमण को ही
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ं ंदेनाचािहए ोिकउ ाकाअशं मानाजाताहैऔरउ ीकोदीगयीव ओु का
ही पु ा होता ह।ै आप िकसी गरीब असहाय क मदद तो कर सकते है वह भी
ंब त ही उ म है लेिकन पतरो का दान सदैव यो ा ण को ही द िकसी और को
ं ंनही। पतृप ,अमाव ाऔरअपनेिदवंगतप रजनोक बरसीको ा णकोअपने
ंपतरो का य भोजन पूण ा और आदर देते ए अव कराएँ इससे आप और
ंआपके प रवारपरआपके प रोक सदैवकृपा अव हीबनीरहगे ी।
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VRINDAVAN
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HOTEL VRINDAVAN PALACE
28
पतृप ा मे है ये मह पूण बात
ं ं ंधम ंथोके अनुसार ा के सोलहिदनोमलोगअपने पतरोकोजलदेते
ंह तथा उनक मृ ु त थ पर ा करते ह। ऐसी मा ता है िक पतरो का ऋण ा
ंारा चुकाया जाता ह।ै वष के िकसी भी मास तथा त थ म गवासी ए पतरो के
लए पतपृ क उसी त थको ा िकयाजाताह।ै
पू णमा पर देहातं होने से भा पद शु पू णमा को ा करने का वधान
ह।ै इसीिदनसेमहालय( ा )का ारंभभीमानाजाताह।ै ा काअथहै ासे
जोकुछिदयाजाए। पतपृ म ा करनेसे पतगृ णवषभरतक स रहतेह।धम
ं ंशा ो म कहा गया है िक पतरो का प दान करने वाला गृह दीघाय,ु पु -
पौ ािद, यश, ग, पु , बल, ल ी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धा आिद क
ा करताह।ै
ंा म पतरो को आशा रहती है िक हमारे पु -पौ ािद हम प दान तथा
तलाजं ल दान कर संतु करगे। इसी आशा के साथ वे पतलृ ोक से पृ ीलोक पर
ं ंंआते ह। यही कारण है िक िहद धम शा ो म ेक िहद गृह को पतपृ म ाू ू
अव पसेकरनेके लएकहागयाह।ै
ा सेजड़ु ीकईऐसीबातहजोब तकमलोगजानतेह।मगरयेबात ा करनेसे
ंपूव जान लेना ब त ज री है ोिक कई बार व धपूवक ा न करने से पतृ ाप
भी दे देते ह। आज हम आपको ा से जड़ु ी कुछ वशेष बात बता रहे ह, जो इस
कारह-
1. यंू तो एक आम मा ता है िक जस भी त थ को िकसी मिहला या पु ष का
नधन आ हो उसी त थ को संबं धत का ा िकया जाता ह,ै
लेिकन आपक जानकारी के लए हम आपको ा से जड़ु ी कुछ वशेष
बातबतारहेह,जोइस कारह-
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सौभा वती ीका ा नवमीके िदनिकयाजाताह।ै
यिद कोई सं ासी है तो उसका ा ादशी के िदन
िकयाजाताह।ै
श ाघात या िकसी अ दघटना म मारे गए का ाु
चतदु शीके िदनिकयाजाताह।ै
ंयिदहमअपनेिकसीपूवजके नधनक त थनहीमालूमहोतो
उनका ा अमाव ा के िदन िकया जाता ह।ै इसी लए इसे सव पतृ
अमाव ाभीकहाजाताह।ै
आ न शु क तपदा को भी ा करने का वधान ह।ै
इसिदनदादीऔरनानीका ा िकयाजाताह।ै
2. ा के दौरान यह सात चीज व जत मानी गई- दंतधावन, ता लू भ ण,
तले मदन,उपवास,संभोग,औषधपानऔरपरा भ ण।
ं3. ा म ीलके पा ोका नषेधह।ै
4. ा मरंगीनपु कोभी नषेधमानागयाह।ै
ं5. गंदा और बासा अ , चना, मसूर, गाजर, लौक , कु ड़ा, बगन, हीग,
शलजम,मासं ,लहसुन, ाज,कालानमक,जीराआिदभी ा म न ष
मानेगएह।
6. संक लेकर ा णभोजनकराएं यासीधाइ ािदद। ा णकोद णा
अव द।
7. भोजनकै साह,ै यहनपूछ।
ं8. ा णकोभीभोजनक शंसानहीकरनीचािहए।
9. ा कममगायकाघी,दधयादहीकाममलेनाचािहए।यह ानरखिकू
गाय को ब ा ए २१ िदन से अ धक हो चुके ह। दस िदन के अदं र बछड़े
ंकोज देनेवालीगायके दधकाउपयोग ा कममनहीकरनाचािहए।ू
ं ं10. ा म चादं ी के बतनो का उपयोग व दान पु दायक तो है ही रा सो का
ंनाश करने वाला भी माना गया ह।ै पतरो के लए चादं ी के बतन म सफ
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ंपानीहीिदएजाएतोवहअ यतृ कारकहोताह।ै पतरोके लएअ ,
ंप औरभोजनके बतनभीचादं ीके होतोऔरभी े मानाजाताह।ै
ं ं11. ा म ा ण को भोजन करवाते समय परोसने के बतन दोनो हाथो से
पकड़ कर लाने चािहए, एक हाथ से लाए अ पा से परोसा आ भोजन
रा सछ नलेतेह।
ं12. ा ण को भोजन मौन रहकर एवं ंजनो क शंसा िकए बगैर करना
ंचािहए ोिक पतरतबतकहीभोजन हणकरतेहजबतक ा णमौन
रहकरभोजनकर।
ं13. जो पतृ श आिद से मारे गए हो उनका ा मु त थ के अ त र
चतदु शीकोभीकरनाचािहए।इससेवे स होतेह।
14. ा गु पसेकरनाचािहए।
15. ा म ा ण को भोजन करवाना आव क ह,ै जो बना ा ण
ंके ा कमकरताह,ै उसके घरम पतरभोजननहीकरत,े ापदेकरलौट
जातेह। ा णहीन ा सेमनु महापापीहोताह।ै
ं16. ा म जौ, कागं नी, मटर और सरसो का उपयोग े रहता ह।ै तल क
ंमा ा अ धक होने पर ा अ य हो जाता ह।ै वा व म तल पशाचो से
ंा क र ाकरतेह।कुशा(एक कारक घास)रा सोसेबचातेह।
ं17. दसरे क भू मपर ा नहीकरनाचािहए। वन,पवत,पु तीथएवं मंिदरू
ं ं ंदसरे क भू म नही माने जाते ोिक इन पर िकसी का ा म नही मानाू
ंगयाह।ै अत:इन ानोपर ा िकयाजासकताह।ै
18. चाहे मनु देवकाय म ा ण का चयन करते समय न सोचे, लेिकन पतृ
ं ंकाय म यो ा ण का ही चयन करना चािहए ोिक ा म पतरो क
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ंतृ ा णो ाराहीहोतीह।ै
19. जो िकसी कारणवश एक ही नगर म रहनी वाली अपनी बिहन,
ंजमाई और भानजे को ा म भोजन नही कराता, उसके यहां पतर के
ंसाथहीदेवताभीअ हणनहीकरत।े
20. ा करते समय यिद कोई भखारी आ जाए तो उसे आदरपूवक भोजन
करवाना चािहए। जो ऐसे समय म घर आए याचक को भगा देता है
ंउसका ा कमपूणनहीमानाजाताऔरउसकाफलभीन होजाताह।ै
ं ं21. शु प म, रा म, यु िदनो (एक ही िदन दो त थयो का योग)म तथा
ं ंअपने ज िदन पर कभी ा नही करना चािहए। धम ंथो के अनुसार
ंसायंकाल का समय रा सो के लए होता ह,ै यह समय सभी काय के लए
ं ंनिदतह।ै अत:शामके समयभी ा कमनहीकरनाचािहए।
ं22. ा म स पतगृ ण मनु ो को पु , धन, व ा, आय,ु आरो , लौिकक
सुख, मो और ग दान करते ह। ा के लए शु प क अपे ा
कृ प े मानागयाह।ै
ं23. रा को रा सी समय माना गया ह।ै अत: रात म ा कम नही करना
ं ं ंचािहए। दोनो सं ाओ के समय भी ा कम नही करना चािहए। िदन के
ंआठवमु त(कुतपकाल)म पतरोके लएिदयागयादानअ यहोताह।ै
24. ा मयेचीजहोनामह पूणह-गंगाजल,दध,शहद,दौिह ,कुशऔरू
तल। के ले के प े पर ा भोजन नषेध ह।ै सोने, चादं ी, कासं े, ताबं े के
पा उ मह।इनके अभावमप लउपयोगक जासकतीह।ै
25. तलु सी से पतगृ ण स होते ह। ऐसी धा मक मा ता है िक पतगृ ण ग ड़
ंपर सवार होकर व ु लोक को चले जाते ह। तलु सी से पड क पूजा करने
से पतरलोग लयकालतकसंतु रहतेह।
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26. रेशमी,कं बल,ऊन,लकड़ी,तणृ ,पण,कुशआिदके आसन े ह।आसन
ंमलोहािकसीभी पम यु नहीहोनाचािहए।
27. चना, मसूर, उड़द, कुलथी, स ,ू मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला
ं ंउड़द, काला नमक, लौक , बड़ी सरसो, काले सरसो क प ी और बासी,
अप व फलयाअ ा म नषेधह।
28. भ व पुराण के अनुसार ा 12 कार के होते ह, जो इस कार ह-
1- न , 2- नै म क, 3- का , 4- वृ , 5- स प न, 6- पावण, 7-
गो ी,8-शु थ,9-कमाग,10-दै वक,11-या ाथ,12-पु यथ
29. ा के मखु अगं इस कारह-
ंतपण-इसमदध, तल,कुशा,पु ,गंध म तजल पतरोकोतृ करनेू
हते ुिदयाजाताह।ै ा प मइसे न करनेका वधानह।ै
ं ंभोजन व प दान- पतरो के न म ा णो को भोजन िदया जाता ह।ै
ा करतेसमयचावलयाजौके प दानभीिकएजातेह।
व दान-व दानदेना ा कामु ल भीह।ै
द णा दान- य क प ी द णा है जब तक भोजन कराकर व और
ं ंद णानहीदीजातीउसकाफलनही मलता।
ं30. ा त थ के पूव ही यथाश व ान ा णो को भोजन के लए बलु ावा
ंद। ा के िदनभोजनके लएआए ा णोकोद णिदशामबठै ाएं।
ं31. पतरो क पसंद का भोजन दध, दही, घी और शहद के साथ अ से बनाएू
ंगए पकवान जसै े खीर आिद ह।ै इस लए ा णो को ऐसे भोजन कराने का
वशेष ानरख।
ं32. तयै ारभोजनमसेगाय,कु ,े कौए,देवताऔरचीटीके लएथोड़ासाभाग
33
नकाल।
इसके बाद हाथ जल, अ त यानी चावल, च न, फू ल और तल लेकर
ंा णोसेसंक ल।
ं33. कु ेऔरकौएके न म नकालाभोजनकु ेऔरकौएकोहीकराएं िकतु
ं ंदेवताऔरचीटीकाभोजनगायको खलासकतेह।इसके बादही ा णो
ंकोभोजनकराएं।पूरीतृ सेभोजनकरानेके बाद ा णोके म कपर
तलक लगाकर यथाश कपड़े, अ और द णा दान कर आशीवाद
पाएं।
ं34. ा णो को भोजन के बाद घर के ार तक पूरे स ान के साथ वदा करके
ं ंआएं। ोिक ऐसा माना जाता है िक ा णो के साथ-साथ पतर लोग भी
ं ं ंचलते ह। ा णो के भोजन के बाद ही अपने प रजनो, दो ो और
ंर दे ारोकोभोजनकराएं।
35. पता का ा पु को ही करना चािहए। पु के न होने पर प ी ा कर
ं ंसकती ह।ै प ी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव म स पडो
( एक ही प रवार के ) को ा करना चािहए। एक से अ धक पु होने पर
सबसेबड़ापु ा करताह।ै
ंइस कारआप पतरोको स करउनकाआशीवादलेकरअपनेक दरू
करसकतेह।यंूभीयह काकत ह,ै जसेपूणकरपूरे प रवारको
सुखी एवं ऐ यवान बना सकते ह। इस बात का वशेष ान रख िक ा
करतेसमयसंक अव ल।
34
पतृदोष होता ा है
आज के इस वतमान प रपे मे यह ब त ही सुनने को आता है क
आपको पतृदोषहै|पर ुयह पतृदोषहोता ाहै?
हमारे पूवज, पतर जो िक अनेक
ंकार क क कारक यो नयो म
अतृ , अशां त, असंतु का
अनुभव करते ह एवं उनक स त या
ंमो िकसी कारणवश नही हो पाता
तो हमसे वे आशा करते ह िक हम
उनक स त या मो का कोई साधन
या उपाय कर जससे उनका अगला ज हो सके एवं उनक स त या मो हो
ंसके । उनक भटकती ई आ ा को संतानो से अनेक आशाएं होती ह एवं यिद
ंउनक उन आशाओ को पूण िकया जाए तो वे आ शवाद देते ह। यिद पतर
असंतु रहे तो संतान क कु ली द षत हो जाती है एवं वे अनेक कार के क ,ू
ं ंपरेशानीयांउ करतेह,ै फल पक ोतथादभा ोकासामनाकरनापडताु
ह।ै
पूवजो का है ऋण
ेक मनु जातक पर
उसके ज के साथ ही तीन कार
के ऋणअथातदेवऋण,ऋ षऋण
औरमातृ पतृऋणअ नवाय पसे
चुकाने बा कारी हो जाते ह।ै
35
ंज के बादइनबा कारीहोनेजानेवालेऋणोसेयिद यासपूवकमु ा
ंन क जाए तो जीवन क ा यो का अथ अधरू ा रह जाता ह।ै ो तष के
ंअनुसार इन दोषो से पीिड़त कंुडली शा पत कंुडली कही जाती ह।ै ऐसे
अपने मातपृ अथात माता के अ त र माना मामा-मामी मौसा-मौसी नाना-
नानी तथा पतृ प अथात दादा-दादी चाचा-चाची ताऊ ताई आिद को क व
दखदेताहैऔरउनक अवहले नाव तर ारकरताह।ैु
ज कु ली म यिद चं पर रा के तु या श न का भाव होता है तो
जातक मातृ ऋण से पीिड़त होता ह।ै च मा मन का त न ध ह है अतः ऐसे
जातक को नर र मान सक
अशां त से भी पीिड़त होना पड़ता
ह।ै ऐसे को मातृ ऋण से
मु के प ात ही जीवन म शां त
मलनीसंभवहोतीह।ै
पतृ ऋण के कारण को
मान त ा के अभाव से पीिड़त
होने के साथ-साथ संतान क ओर से क संतानाभाव संतान का ा खराब
ंहोने या संतान का सदैव बरु ी संग त जसै ी तयो म रहना पड़ता ह।ै यिद संतान
अपंगमान सक पसे व यापीिड़तहैतो कास ूणजीवनउसीपर
के तहोजाताह।ै
ज प ी म यिद सूय पर श न रा -के तु क या यु त ारा भाव हो
तोजातकक कंुडलीम पतृऋणक तमानीजातीह।ै
ंमाता- पता के अ त र हम जीवन म अनेक यो का सहयोग व
ंसहायता ा होती है गाय बकरी आिद पशुओ से दध मलता ह।ै फल फू ल वू
ंअ साधनो से हमारा जीवन सुखमय होता है इ बनाने व इनका जीवन चलाने
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ंमयिदहमनेअपनीओरसेिकसी कारकासहयोगनहीिदयातोइनकाभीऋण
हमारे ऊपर हो जाता ह।ै जनक ाण के काय म च लेकर हम इसऋण से उस
ऋणहोसकतेह।
ंदेव ऋण अथात देवताओ के ऋण से भी हम पीिड़त होते ह। हमारे लए
सव थम देवता ह हमारे माता- पता, पर ु हमारे इ देव का ान भी हमारे
जीवन म मह पूण ह।ै भ व शानदार बंगला बना लेता है अपने
ावसा यक ान का भी व ार कर लेता ह,ै िक ु उस जगत के ामी के
ान के लए सबसे अ म
ंसोचता है या सोचता ही नही है
जसक अनुक ा से सम
ऐ य वैभव व सकल पदाथ
ा होता ह।ै उसके लए घर म
ंकोई ान नही होगा तो
को देव ऋण से पीिड़त होना
पड़ेगा।
नई पीढ़ी क वचारधारा म प रवतन हो जाने के कारण न तो कुल देवता पर
आ ा रही है और न ही लोग भगवान को मानते ह। फल प ई र भी अपनी
अ श सेउ नाना कारके क दानकरतेह।
ऋ ष ऋण के वषय म भी लखना आव क ह।ै जस ऋ ष के गो म हम ज
ह, उसी का तपण करने से हम वं चत हो जाते ह। हम लोग अपने गो को भूल
ंचुके ह। अतः हमारे पूवजो क इतनी उपे ा से उनका ाप हम पीढ़ी दर पीढ़ी
ं ंपरेशानकरेगा।इसमकतईसंदेहनहीकरनाचािहए।जोलोगइनऋणोसेमु
होनेके लएउपायकरतेह,वे ायःअपनेजीवनके हर े मसफलहोजातेह।
ं ं ं ंप रवार म ऋण नही ह,ै रोग नही ह,ै गृह ेश नही ह,ै प ी-प त के वचारो म
सामंज वएक पताहैसंतानेमाता- पताकास ानकरतीह।प रवारके सभी
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लोग पर र मल जलु कर मे से रहते ह। अपने सुख-दख बाटं ते ह। अपनेु
अनुभव एक-दसरे को बताते ह। ऐसा प रवार ही सुखी प रवार होता ह।ै दसरीू ू
ओर, कोई-कोई प रवार तो इतना शा पत होता है िक उसके मन स प रवार क
सं ादीजातीह।ै
ंसारे के सारे सद तीथया ापरजातेहअथवाकहीसैरसपाटेपर मणके लए
नकल जाते ह और गाड़ी क दघटना म सभी एक साथ मृ ु को ा करते ह।ु
पीछे बच जाता है प रवार का कोई एक सद सम जीवन उनका शोक मनाने
के लए।इस कारपूराकापूरावंशहीशा पतहोताह।ै इस कारके लोगकारण
तलाशते ह। जब सुखी थे तब न जाने िकस-िकस का िह ा हड़प लया था। िकस
क संप पर अ धकार जमा लया था। िकसी नधन कमजोर पड़ोसी को दखु
िदया था अथवा अपने वृ माता- पता क अवहले ना और ददशा भी क औरु
उसक आ ा से आह नकलती रही िक जा तरे ा वंश ही समा हो जाए। कोई
पानी देने वाला भी न रहे तरे े वंश म। अतएव अपने सुखी जीवन म भी मनु को
डरकरचलनाचािहए।
मनु को पतृ ऋण उतारने का सतत यास करना चािहए। जस प रवार म कोई
दखी होकर आ ह ा करता है या उसे आ ह ा के लए ववश िकया जाता हैु
तोइसप रवारकाबादम ाहालहोगा इसपर वचारकर।आ ह ाकरना
ं ं ंसरलनहीह,ै अपनेजीवनकोकोईयंूहीतोनही मटादेता,उसक आ ातोवही
भटके गी। वह आप को कै से चैन से सोने देगी, थोड़ा वचार कर। िकसी क ा का
ंअथवा ी का बला ार िकया जाए तो वह आप को ाप ो न देगी, इस पर
वचारकर।वहयिदआ ह ाकरतीह,ै तोकसूरिकसकाह।ै उसक आ ापूरे
ंवंश को ाप देगी। सीधी आ ा के ाप से बचना सहज नही ह।ै आपके वंश को
इसेभुगतनाहीपड़ेगा,यही ते बाधादोषवयही पतृदोषह।ै इसेसमझ।
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पतृदोष के ल ण व् हा नया
यिद िकसी जातक क कंुडली मे प दृ ोष होता है तो उसे अनेक कार क
ंपरेशा नया,ं हा नयां उठानी पडती ह।ै जो लोग अपने पतरो के लए तपण एवं
ंा नही करत,े उ े रा स, भूत- ते , पशाच, डािकनी-शािकनी, हमरा स
आिद व भ कार से पीिडत करते रहते है:-
 घर म कलह, अशां त रहती है।
ं रोग-पीडाएं पीछा नही छोडती है।
 घर म आपसी मतभेद बने रहते है।
 काय म अनेक कार क बाधाएं उ हो जाती है।
 अकाल मृ ु का भय बना रहता है।
 संकट, अनहोनीया,ं अमंगल क आशंका बनी रहती है।
 संतान क ा म वलंब होता है।
 घर म धन का अभाव भी रहता है।
 अनेक कार के महादखोंका सामना करना पडता है।ु
 प रवार एवं सगे-स यो,ं म ोंको भी वशेष क क ा होती है।
 प रवार म अशा , वंश वृ म कावट, आक क बीमारी, धन से
बरकत न होना |
 सभी भौ तक सुखोंके होते ए भी मन असंतु रहना आ द परेशा नयोंसे
ंमु नही मलना |
ंपतृ दोष एक अ बाधा है .ये बाधा पतरो ारा होने के कारण
ंहोती है | पतरो के होने के ब त से कारण हो सकते ह ,आपके आचरण
से,िकसी प रजन ारा क गयी गलती से , ा आिद कम ना करने से ,अं े
कम आिद म ई िकसी िु ट के कारण भी हो सकता है |
39
इसके अलावा मान सक अवसाद, ापार म नु ान ,प र म के अनुसार फल न
मलना ,वैवािहक जीवन म सम ाएं.,कै रअर म सम ाएं या सं म कह तो
ंजीवन के हर े म और उसके प रवार को बाधाओ का सामना करना
ंपड़ता है , पतृ दोष होने पर अनुकूल हो क त ,गोचर ,दशाएं होने पर भी
ं ंशुभ फल नही मल पात,े िकतना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओ क अचना क
ंजाए ,उसका शुभ फल नही मल पाता।
पतृ दोष दो कार से भा वत करता है :-
१.अधोग त .वाले पतरोंके कारण
२. उ ग त वाले पतरोंके कारण
ं ं ंअधोग त वाले पतरो के दोषो का मु कारण प रजनो ारा िकया गया गलत
ंआचरण,प रजनो क अतृ इ ाएं ,जायदाद के त मोह और उसका गलत
ं ंलोगो ारा उपभोग होने पर, ववाहािदम प रजनो ारा गलत नणय .प रवार के
ंिकसी यजन को अकारणक देने पर पतर ु हो जाते ह ,प रवार जनो को
ाप दे देते ह और अपनी श सेनकारा क फल दान करते ह|
ंउ ग त वाले पतर सामा तः पतदृ ोष उ नही करते ,पर ु उनका िकसी
ंभी प म अपमान होने पर अथवा प रवार के पारंप रक री त- रवाजो का
ंनवहन नही करने पर वह पतदृ ोष उ करते ह |
इनके ारा उ पतदृ ोष से क भौ तक एवं आ ा क उ त
ंबलकुल बा धत हो जाती है , िफर चाहे िकतने भी यास ो ना िकये जाएँ
ं,िकतने भी पूजा पाठ ो ना िकये जाएँ,उनका कोई भी काय ये पतदृ ोष सफल
ंनही होने देता |
पतृ दोष नवारण के लए सबसे पहले ये जानना ज़ री होता है िक िकस गृह
के कारण और िकस कार का पतृ दोष उ हो रहा है ?
40
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  • 1. पतृ पपतृ प एवंएवं पतृ दोषपतृ दोष पतृ पपतृ प एवंएवं पतृ दोषपतृ दोष ¬ loZ fir` nsorkH;ks ue%¬ loZ fir` nsorkH;ks ue%¬ loZ fir` nsorkH;ks ue% ys[kd % iaŒ lqfcey T;ksfr"k fudsru] cjefl;k] fxfjMhg&815301 (>kj[k.M) Mob. : 9431155770, Web : www.jyotishniketan.com
  • 2. Jh Jh 1008 egk e.Mys'ojJh Jh 1008 egk e.Mys'oj Lokeh foosdkuUn iqjh th egkjktLokeh foosdkuUn iqjh th egkjkt ds pj.kksa esa 'kr~&'kr~ ueu~Ads pj.kksa esa 'kr~&'kr~ ueu~A Jh Jh 1008 egk e.Mys'oj Lokeh foosdkuUn iqjh th egkjkt ds pj.kksa esa 'kr~&'kr~ ueu~A
  • 3. ा नम् परम पता परमे र क रे णा एवं पू , गु वर पता, पंिडत भुने र पा ेय के शुभाशीवाद से इनके ृ त मे हर गृह व् जन सामा हते ु पतृ प एवं पतृ दोष पु क का न पण करने का यास कर रह ँ पतृ प मे अपने पूवजो का ा कै से करे और पतृदोषक नवृ तका ववेचनकै सेिकयाजाए| पतृप और पतृदोषमे कब और कै से कर ा ...इसी वषय पर मूल से नचोड़ को नकाल आम जन सामा के लाभाथहते ुके लएप रभा षतकरनेका यासिकया ं। िह धमममा ताहैिकशरीरन होजानेके बादभीआ ाअजर-अमररहतीह।ैू ंवह अपने काय के भोग भोगने के लए नाना कार क यो नयो म वचरण करती ह।ै ंशा ो म मृ ोपरातं मनु क अव ा भेद से उसके क ाण के लए समय-समय ंपरिकएजानेवालेकृ ोका न पण आह।ै tUe frfFk & 17 Qjojh 1943 LoxZokl & 24 twu 2005 ije iwT; firkth T;ksfr"k nSoK LoŒ iaŒ Hkwous'oj ik.Ms; (fxfjMhg) ds Le`fr esa lefiZrA !! Jh fir` nsok;% ue%!! 1
  • 4. ंसामा त: जीवन म पाप और पु दोनो होते ह। िह मा ता के अनुसार पु काू फल ग और पाप का फल नक होता ह।ै नक म जीवा ा को ब त यातनाएं भोगनी ंपड़तीह।पु ा ामनु यो नतथादेवयो नको ा करतीह।ै इनयो नयोके बीच एकयो नऔरहोतीहैवहहै ते यो न।वायु पमयहजीवा ामनु कामन:शरीर ह,ै जोअपनेमोहया ेषके कारणइसपृ ीपररहताह।ै पतृयो न ते यो नसेऊपर हैतथा पतलृ ोकमरहतीह।ै यह जीवा ा मनु पतृ यो न का मन:शरीर ह,ै जो अपने पा रवा रक मोह के लए अपने प रवार कुल खानदान से के तभा वत रहता है यही ा प मे अपने प रवारसे मलनेआतेहै| ंपतृ दोष मे मने देखा है क मनु के जीवन मे भो तक साधन तो है पर भोग नही है | ंइ ी संरचनाओ को मने देखा है क सरल उपाए से दोष को नवत करने का यास ंिकया जोसभीके लएलाभाथहोगे। तोहमाराभी पतरो तइ ाओअनुकलताके अनुसार ासुमनअपणकरतेह।ै यही ासुमनअपणकरने व धकाएकअ तलघु याशिकया ँ। इसके नमाणमेसावधानीबरतीगईहै,िफरभीकराणवसकोई टु ीएवं दोषया अ कारणवस् टु ी हो गई हो तो मुझे मा करगे और भ व के लए मागदशन करगे। जससेआगेके अकं मेआव कसुधारकरसकूँ । 2 & iaŒ lqfcey
  • 5. ंपतृ प मे ा का मह : ो ? ंा 'श ' ा'सेबनाह,ै जो ा का थमअ नवायत हैअथात पतरोके त ातो होनीहीचािहए।भा पदक पू णमाप क तपदा त थसेअमाव ातक ंका समय ा या महालय प कहलाता ह।ै इस अव ध के 16 िदन पतरो अथात ा कमके लए वशेष पसे नधा रत िकएगएह।यहीअव ध पतृप के नामसे जानीजातीह।ै वैिदक परंपरा के अनुसार वैवत पुराण म यह नदश है िक इस संसार म आकर जो स ह पतपृ के दौरानृ ंअपने पतरो को ापूवक उनक िदवंगत त थके िदन तपण, ंपडदान, तलाजं ल और ंा णो को भोजन कराते ह,ै उनको इस जीवन म सभी सासं ा रक सुख और भोग ा होते ह।ै वे उ शु कम के कारणअपनीआ ाके भीतरएकतजे और काशसेआलोिकतहोतेह।ै मृ ुके उपरातं भी ा करनेवालेसदगृह को गलोक, व ुलोकऔर लोक क ा होतीह।ै भारतीय वैिदक वागं मय के अनुसार ेक मनु को इस धरती पर जीवन लेने के प ात तीन कार के ऋण होते ह। पहला देव ऋण, दसरा ऋ ष ऋण और तीसरा पतृू ऋण। पतृप के ा यानी16 ा सालके ऐसेसुनहरे िदनह, जनमहमउपरो ं ंतीनोऋणोसेमु होसकतेह, ा ि यामशा मलहोकर। महाभारत के संग के अनुसार, मृ ु के उपरातं कण को च गु ने मो देने से 3
  • 6. इनकार कर िदया था। कण ने कहा िक मने तो अपनी सारी स दा सदैव दान-पु म ही सम पत क ह,ै िफर मेरे उपर यह कै सा ऋण बचा आ ह।ै च गु ने जवाब िदया िक राजन, आपने देव ऋण और ऋ ष ऋण तो चुका िदया ह,ै लेिकन आपके उपर अभी ं ंपतृ ऋण बाक ह।ै जब तक आप इस ऋण से मु नही होगे, तब तक आपको मो मलना किठन होगा। इसके उपरातं धमराज ने कण को यह व ा दी िक आप 16 ंिदन के लए पुनः पृ ी पर जाइए और अपने ात और अ ात पतरो का ा तपण ंतथा पड दान व धवत करके आइए। तभी आपको मो यानी ग लोक क ा होगी। ंजो लोग दान ा , तपण आिद नही करत,े माता- पता और बडे बजु गु का आदर ंस ारनहीकरत,े पतगृ णउनसेहमेशानाराजरहतेह।उनक नाराजगीआगेचलकर पतदृ ोषकाअ भशापबनजातीह।ै पतदृ ोषममाता- पताके साथसाधारणमनमुटाव सेलेकरउनपरहाथउठाकरआ मणकरनायाउनकामान सकऔरशारी रक पसे पीिड़तकरनाजसै े धानकारणहोतेह।ै इसके कारणहीवेयाउनके प रवारके अगली पीढीके अ सद अपनेजीचनमरोगी,दखीऔरमान सकक सेपीिड़तरहतेह।ैु वे नःसंतानभीहोसकतेह। ंपतृ प म िकए गए काय से पूवजो क आ ा को शां त ा होती है तथा कता को पतृ ऋण से मु मलती ह।ै आ ा क अमरता का स ातं तो यं भगवान ी ंकृ गीतामउपदे शतकरतेह।आ ाजबतकअपनेपरम-आ ासेसंयोगनहीकर ंलेती, तब तक व भ यो नयो म भटकती रहती है और इस दौरान उसे ा कम म संतु मलतीह।ै ंअपनेपूवजोके त हे , वन ता,आदरव ाभावसे हीिकयाजानेवालाकमही ा ह।ै यह पतृ ऋण से मु पाने का सरल उपाय भी ह।ै इसे पतयृ भी कहा गया ह।ै हर साल भा पद पू णमा से आ न माह क अमाव ा तक के यह सोलह िदन ा कम के होते ह। िक ु "गया ा " स ह िदन का होता है जो भा पद पू णमा से लेकरअ नमासके शु प तपदातकचलताहै| 4
  • 7. पतृ प सोलह िदन क समयाव ध होती है जसम सनातन धमाला ी िह जनू ंअपनेपूवजोकोभोजनअपणकरउ धाजं लदेतेह। द णी भारतीय अमातं प ा के अनुसार पतृ प भा पद के च मास म पड़ता है औरपूणच माके िदनयापूणच माके एकिदनबाद ार होताह।ै उ री भारतीय पूण मातं प ा के अनुसार पतृ प अ न के च मास म पड़ता है औरभा पदमपूणच माके िदनयापूणच माके अगलेिदन ार होताह।ै यह च मास क सफ एक नामावली है जो इसे अलग-अलग करती ह। पर ु उ री औरद णीभारतीयलोग ा क व धसमानिदनहीकरतेह। पतृ प का अ म िदन सव प ू अमाव ा या महालय अमाव ा के नाम से जाना जाताह।ै पतृप ममहालयअमाव ासबसेमु िदनहोता मह ष पाराशर के अनसु ार देश, काल तथा पा म ह व ा द व ध से जो कम यव ( तल) व दभ (कुशा) के साथ मं ो ार के साथ ापूवक िकया जाता है वह ा होताहै। भारतीय सं ृ त व सनातनधम म पतृ ऋण से मु होने के लए अपनेमाता- पता व ंप रवार के मृतको के नय मत ा करने क अ नवायता तपािदत क गई ह।ै ा कमको पतकृ मभीकहागयाहैव पतकृ मसेता य पतपृ ूजाभीह।ै भा पदक पू णमासेलेकरअमाव ातकऊपरक र तथार के साथ पतृ ाण पृ ी पर ा रहता ह।ै ा क मूलभूत प रभाषा यह है िक ते और प र के न म ,उनक आ ाक तृ के लए ापूवकजोअ पतिकयाजाएवह ा ह।ै मृ ु के बाद दशगा और षोडशी-स प न तक मृत क ते सं ा रहती ह।ै ंस प नके बादवह पतरोमस लतहोजाताह।ै पतपृ भर म जो तपण िकया जाता है उससे वह पतृ ाण यं आ ा पत होता ह।ै पु या उसके नाम से उसका प रवार जो यव तथा चावल का प देता ह,ै उसम से रेत 5
  • 8. काअशं लेकरवहचं लोकमअ ाणकाऋणचुकादेताह।ै भा पद क पू णमा से वह च ऊपर क ओर होने लगता ह।ै 16 िदन अपना-अपना भाग लेकर शु प क तपदा से उसी र के साथ रवाना हो जाता ह।ै इस लए ंइसको पतपृ कहतेहऔरइसीप म ा करनेसेवह प रोको ा होताह।ै ंशा ो का नदशानुसार है िक माता- पता आिद के न म उनके नाम और गो का ंउ ारण कर मं ो ारा जो अ आिद अ पत िकया जाता ह,ै वह उनको ा हो जाता ह।ै यिद अपने कम के अनुसार उनको देव यो न ा होती है तो वह अमृत प म उनको ा होताह।ै उ ग वलोक ा होनेपरभो पम,पशुयो नमतणृ प म, सप यो न म वायु प म, य प म पेय प म, दानव यो न म मासं के प म, ते यो नम धरके पमऔरमनु यो नमअ आिदके पमउपल होताह।ै जब प र यह सुनते ह िक ा काल उप त हो गया ह,ै तो वे एक-दसरे का रणू ंकरते ए मनोनय प से ा ल पर उप त हो जाते ह और ा णो के साथ वायु पमभोजनकरतेह।यहभीकहागयाहैिकजबसूयक ारा शमआतेहतब प र ंअपनेपु -पौ ोके यहांआतेह। वशेषतः आ न-अमाव ा के िदन वे दरवाजे पर आकर बठै जाते ह। यिद उस िदन ंउनका ा नही िकया जाता तब वे ाप देकर लौट जाते ह। अतः उस िदन प -पु - फल और जल-तपण से यथाश उनको तृ करना चािहए। आ न कृ ंअमाव ाकोसव पतृ वजसनीअमाव ाकहतेह।जो पतपृ के पं हिदनो ंतक ा तपण आिद नही कहते ह वे अमाव ा को ही अपने पतृ के न म ा ािद ंसंप करते ह। जन पतृ क त थ याद नही हो, उनके न म ा तपण, दान आिद इसीअमाव ाकोिकयाजाताह।ै अमाव ाके िदनसभी पतृका वसजनहोताह।ै अमाव ाके िदन पतृअपनेपु ािद के ार पर प दान एवं ा ािद क आशा म जाते ह। यिद वहां उ प दान या ंतला लआिदनही मलतीहैतोवेशापदेकरचलेजातेह।अतः ा काप र ाग ंनहीकरनाचािहए। 6
  • 9. ा का अ धकार िकसे? ंा करने के लए मनु ृ त और वैवत जसै े शा ो म यही बताया गया है िक ंिदवंगत पतरो के प रवार म या तो े पु या क न पु और अगर पु न हो तो ंधवे ता (नाती), भतीजा, भाजं ा या श ही तलाजं ल और पडदान देने के पा होते ंह।कईऐसे पतरभीहोतेहै जनके पु संताननहीहोतीहैयािफरजोसंतानहीनहोते ंह। ऐसे पतरो के त आदर पूवक अगर उनके भाई-भतीज,े भाजं े या अ चाचा- ंताऊ के प रवार के पु ष सद पतपृ म ापूवक त रखकर पडदान, अ दान ंऔर व दान करके ा णो से व धपूवक ा कराते है तो पीिड़त आ ा को मो मलताह।ै ंमिहलाएं भी ा कर सकती है या नही आजकल इस को भी उठाया जा रहा ह।ै वैिदकपरंपराके अनुसारमिहलाएं य अनु ान,संक और तआिदतोरखसकती ंह,ै ा़ कापूराआयोजनऔरखचकरसकतीहैलेिकन ा क व धको यं नही कर सकती ह।ै वधवा ी अगर संतानहीन हो तो अपने प त के नाम ा का संक ंरखकर ा णयापुरोिहतप रवारके पु षसद सेही पडदानआिदका वधानपूरा ं ंकरवासकतीह।ै इसी कार जन पतरोके क ाएं हीवंशपरंपरामहतोउ पतरो के नाम त रखकर उसके दामाद या धवे त,े नाती आिद ाहमण को बलु ाकर ा कम ंक नवृ करा सकते ह।ै साध-ु स ो के श गण या श वशेष ा कर सकते ह।ै 7
  • 10. ंपतृप म व जत ो है शुभकाय वैसे यह पूरा १६ िदन पतरो के के नाम सुर त रहता ह।ै शुभ काय ना करने के ंपीछे यह कारण हो सकता है िक हम पतरो क ृ त से दखी होकर, या उनकेु जानेके दखमउनक आ ाक शा के लएकोईअ उ वऔरमंगलकायु कायनहीकर।लेिकनआज के समय के लहाज से कुछ ंशुभ काय व जत नही ह।ै अगर ब त आव क हो तो शुभ काय िकए जा सकते ह ंजनमपूजापाठ निहतनही हो। खरीदारी भी क जा ंसकती ह।ै ऐसा नही है िक शुभ काय करने से उनका फल भा वत होगा। यह ंके वलहमाराअपने पतरोके तस ानहोताहैिकहम16िदनतकघरमकोई ंमागं लक आयोजन नही करे। अगर बना इ देव क पूजा रिहत कोई मागं लक ंआयोजन िकया भी जाए तो उसका कोई बरु ा भाव भी नही होता ह।ै जो लोग ंअपने घर म पतरो का पूरी ा से पूजन करते ह, त वष ा करते ह, तपण ंकरते ह, उनके साथ पतरो का आशीवाद भी बना होता ह।ै उनका कोई काम ं ं ंगलतनहीहोता।उ ीलोगोके साथकोईबरु ीघटनायाअशुभहोताह,ै जो ा ं ंनही करते या उनके जीतजे ी अपने जीवन म पतरो को ठीक से संतु नही करत।े ं ंउनके त ाहीन होकर उनका ा नही करत,े तपण नही करत।े या उनसे नफरतकरतेहै। 8
  • 11. ं ंये शा ीय संगतत हैक पतृप मे देवताओ क पूजनया देवताओ के स करने पूवअपने पतरोको स िकयाजायजोअ धकक ाण दऔरसुखकारी ह।ै ंा प का िह धम ( सनातन धमावल यो) के लए बड़ा मह िदन रहता ह।ैू ाचीन सनातन धम के अनुसार हमारे पूवज देवतु ह और इस धरा पर हमने जीवन ंा िकया है और जस कार उ ोने हमारा लालन-पालन कर हम कृताथ िकया है उससे हम उनके ऋणी ह। समपण और कृत ता क इसी भावना से ा प े रत ह,ै जोजातकको पतरऋणसेमु मागिदखाताह।ै ंभा पद क पू णमा से आ न कृ अमाव ा तक सोलह िदनो तक का समय सोलह ंा या ा प कहलाता ह।ै शा ो म देवकाय से पूव पतृ काय करने का नदश ंिदया गया ह।ै ा से के वल पतृ ही तृ नही होते अ पतु सम देवी देवता से लेकर वन तयांतकतृ होतीह। ग ड़पुराणके अनुसार पतरऋणमु मागरेखा क देवकुव तसमये ा ंकुलेक सीद त। ंआयःु पु ान्यशः गक तपु बलं यम।्। पशून्सौ ं धनं धा ं ा यु ात् पतृपूजनात।् देवकायाद पसदा पतृकाय व श ते।। देवता ः पतृणांिहपूवमा ायनं शुभम।्। ं ंअथात'समयानुसार ा करनेसेकुलमकोईदखीनहीरहता। पतरोक पूजाकरकेु मनु आय,ु पु , यश, ग, क त, पु , बल, ी, पशु, सुख और धन-धा ा ं ंकरता ह।ै देवकाय से भी पतकृ ाय का वशेष मह ह।ै देवताओ से पहले पतरो को स करनाअ धकक ाणकारीऔरसुखकारीह।ै ' ं ं ंशा ो म देवताओ से पहले पतरो को स करना अ धक क ाणकारी कहा गया ह।ै यहीकारणहै िकदेवपूजनसेपूव पतरपूजनिकएजानेका वधानह।ै ंदेवताओ से पूव पतृपूजन का वशेष मह 9
  • 12. पतृतपण और ा व् संक ा करनेवालेकासासं ा रकजीवनसुखमयबनताहैतथामो क भी ा होतीह।ै ंऐसी मा ता है िक ा न करने से पतृ धु ा से होकर अपने सगे-संबं धयो को ंक और शाप देते ह। अपने कम के अनुसार जीव अलग-अलग यो नयो म भोग ंभोगतेह,जहांमं ो ारासंक तह -क को पतर ा करलेतेह। ंपतरो के लए ा से िकए गए मु कम को ा कहते ह तथा तृ करने क ि या ं ं ंऔरदेवताओ, ऋ षयो या पतरो को तंडुल या तल म तजलअ पतकरनेक ि या ंकोतपणकहतेह।तपणकरनाही पडदानकरनाह।ै तपण करने के पूव संक अ त आव क है | बना संक के िकए गए देव काय या पतृकायसवथा थहीह।संक इस कारिकयाजाताह,ै यथा- 'ॐ व ु व ु व ,ु ॐ नम: परमा ने ी पुराण पु षो म ी व ोरा या वतमान ा ी णो ि तीय पराध ी ेत वराह क े वैव त् ंम रेअ ा वश ततमे क लयगु े क ल थम चरणे ज ु ीपे भारतवष भरत ख े ंआयाव ागत ावतक देशे पु देशे (य द वदेश म कही हो तो रेखािं कत के ानपरउसदेश,शहर, ामकानामबोल।) वतमाने पराभव नाम संव रे द णायने अमकु ऋतौ (ऋतु का नाम) महामागं दे मासानाम्मासो मेअमकु मासे(महीनेकानाम)अमकु प े(शु या कृ प का नाम) अमकु तथौ ( त थ का नाम) अमकु वासरे (वार का नाम) अमकु न े (न का नाम) अमकु रा श मते च े ( जस रा श म च हो का नाम) अमकु रा श ते सूय (सूय जस रा श म त हो का नाम) अमकु रा श नते देवगुरौ बृह त (गु जस रा श म त हो का नाम) अमकु गौ ो (अपनेगौ तथा यं कानाम)अमकु शमा/वमाअहंसम पतृ पतामहानं ांनाना गौ ाणां पतरानां पासा नवृ पूवकं अ य तृ स ादनाथ ा णु भोजना कं साकं त ा ं पंचब ल कम च क र े। हाथ म जल लेकर इतना कहकर जल छोड़। आमा यानी क ा भोजन देने के लए रेखािं कत के ान पर 10
  • 13. 'इदंअ ं भवद ोनम:'कह। अपनी घर क भाषा म ही ाथना कर- हे पतगृ ण, मेरे पास ा के लए उपयु ंअ -धन नही है तो के वल ा-भ इसे आप ीकार। हम आपक संतान ह। हम ं ंआशीवाद द तथा गलं तयो एवं क मयो के लए मा कर तथा पूरा करने क श दानकर। ।।ॐअयमान तामइदं तलोदकं त ै धानमः।...ॐमृ ोमाअमतृ ं गमय।। ं ंपतरो म अयमा े ह।ै अयमा पतरो के देव ह। अयमा को णाम। ह!े पता, पतामह, और पतामह। ह!े माता, मातामह और मातामह आपको भी बारंबार णाम।आपहममृ ुसेअमृतक ओरलेचल। ं'हे अ ! हमारे े सनातन य को संप करने वाले पतरो ने जसै े देहातं होने पर े ं ंऐ य वाले ग को ा िकया है वैसे ही य ो म इन ऋचाओ का पाठ करते ए और ंसम साधनोसेय करते एहमभीउसीऐ यवान गको ा कर।'-यजवु द ंतपणउपरातं क ि याएं ह-एक पडदानऔरदसरी ा णभोजन। ा णके मुखू से देवता ह को तथा पतर क को खाते ह। पतर रण मा से ही ा देश म ंआते ह तथा भोजनािद ा कर तृ होते ह। एका धक पु हो और वे अलग-अलग रहते हो तो उन सभी को ा करना चािहए। ा ण भोजन के साथ पंचब ल कम भी होताह,ै जसका वशेषमह ह।ै ंशा ोमपाचं तरहक ब लबताईगईह, जसका ा म वशेषमह ह।ै 1.गौब ल 2. ानब ल 3.काकब ल 4.देवािदब ल 5. पपी लकाब ल ंयहां ब ल से ता य िकसी पशु या प ी क ह ा से नही ह,ै ब ा के िदन जो भोजन बनाया जाता ह।ै उसम से इनको भी खलाना चािहए। इसे ही ब ल कहा जाता ह।ै 11
  • 14. तपण ( ा ) कम क सरल व ध ंतपण( ा )अनुयायीसभीिह धमावल ीउ े ा पूवजोके तस ी ाू ंका तीक ह। पतरो के न म व धपूवक जो कम ा से िकया जाता ह,ै उसी को ' ा ' कहते ह। ार वैिदक-पौरा णक त थभा पद शु प क पू णमा से सव पतृअमाव ाअथातआ नकृ प अमाव ातकअनु ान ा -कममपके ए चावल, दध और तल को म त करके जो ' प ' बनाते ह। प का अथ हैू शरीर। यह एक पारंप रक व ास ह,ै िक हर पीढ़ी के भीतर मातकृ ुल तथा पतकृ ुल ं ंदोनो म पहले क पीिढ़यो के सम त 'गुणसू ' उप त होते ह। यह तीका क ंअनु ान जन जन लोगो के गुणसू (जी ) ा करने वाले क अपनी देह म ह, उनक तृ के लएहोताह।ै अ जानकारी पुराणके अनुसार ा क प रभाषा-'जोकुछउ चतकाल,पा ंएवं ान के अनुसार उ चत (शा ानुमोिदत) व ध ारा पतरो को ल करके ंापूवक ा णोकोिदयाजाताह'ै , ा कहलाताह।ै ं ंा पूवजो के त स ी ा का तीक ह। पतरो के न म व धपूवक जो कम ा से िकया जाता है उसी को ा कहते ह। ा सं ार म आवाहन, पूजन, नम ार के उपरा तपण िकया जाता ह।ै जल म दध, जौ, चावल, च न डाल करू तपण काय म यु करते ह। मल सके , तो गंगा जल भी डाल देना चािहए। तृ के ंलए तपण िकया जाता ह।ै ग आ ाओ क तृ िकसी पदाथ से, खाने-पहनने ं ं ंआिद क व ु से नही होती, ोिक लू शरीर के लए ही भौ तक उपकरणो क आव कता पड़ती ह।ै मरने के बाद लू शरीर समा होकर, के वल सू शरीर ही ंरहजाताह।ै सू शरीरकोभूख- ास,सद -गम आिदक आव कतानहीरहती, उसक तृ का वषय कोई, खा पदाथ या हाड़-मासं वाले शरीर के लए उपयु ंउपकरण नही हो सकत।े सू शरीर म वचारणा, चेतना और भावना क धानता ंरहती ह,ै इस लए उसम उ ृ भावनाओ से बना अ ःकरण या वातावरण ही शा दायकहोताह।ै 12
  • 15. दशा एवं ेरणा इस संसार म लू शरीर वाले को जस कार इ य भोग, ंवासना,तृ ाएवं अहंकारक पू तमसुख मलताह,ै उसी कार पतरोकासू शरीर शुभकमसेउ सुग कारसा ादनकरते एतृ काअनुभवकरताह।ै उसक स तातथाआकां ाकाके ब ाह।ै ाभरे वातावरणके सा म पतरु अपनी अशा खोकर आन का अनुभव करते ह, ा ही इनक भूख ह,ै इसी से ंउ तृ होती ह।ै इस लए पतरो क स ता के लए ा एवं तपण िकये जाते ह। ंइनि याओका व ध- वधानइतनासरलएवं इतनेकमखचकाहैिक नधनसे नधन भीउसेआसानीसेस करसकताह।ै तपणम धानतयाजलकाही योग होता ह।ै उसे थोड़ा सुगं धत एवं प रपु बनाने के लए जौ, तल, चावल, दध, फू लू ंजसै ी दो-चार मागं लक व एु ँ डाली जाती ह। कुशाओ के सहारे जौ क छोटी-सी अजं लम ो ारपूवकडालनेमा से पतरतृ होजातेह,िक ुइसि याके साथ आव क ा, कृत ता, स ावना, मे , शुभकामना का सम य अव होना ंचािहए। यिद ा ल इन भावनाओ के साथ क गयी ह,ै तो तपण का उ े पूरा हो ंजायेगा, पतरो को आव क तृ मलेगी, िक ु यिद इस कार क कोई ा ंभावना तपण करने वाले के मन म नही होती और के वल लक र पीटने के मा पानी इधर-उधरफै लायाजाताह,ै तोइतनेभरसेकोई वशेष योजनपूणनहोगा,इस लए ंइन पत-ृ कम के करनेवालेयह ानरखिकइनछोटे-छोटेि या-कृ ोकोकरनेके ं ं ंसाथ-साथिदवंगतआ ाओके उपकारोका रणकर,उनके स णोतथास म केु त ा कर। कृत ता तथा स ान क भावना उनके त रख और यह अनुभव कर िक यह ं ंजलाजं ल जसै े अिकचन उपकरणो के साथ, अपनी ा क अ भ करते ए ं ंगीय आ ाओ के चरणो पर अपनी स ावना के पु चढ़ा रहा ँ। इस कार क ं ंभावनाएँ जतनीही बलहोगी, पतरोकोउतनीहीअ धकतृ मलेगी। जस पतर ंका गवास आ ह,ै उसके िकये ए उपकारो के त कृत ता करना, उसके अधरू े छोड़े ए पा रवा रक एवं सामा जक उ रदा य को पूरा करने म त र होना तथाअपने एवं वातावरणकोमंगलमयढाचँ ेमढालनामरणो रसं ारका 13
  • 16. धान योजन ह।ै गृह शु , सूतक नवृ का उ े भी इसी के न म क जाती ह,ै ं ंिक ु तपण म के वल इ ी एक पतर के लए नही, पूव काल म गुजरे ए अपने ंप रवार,माताके प रवार,दादीके प रवारके तीन-तीनपीढ़ीके पतरोक तृ काभी ं ंआयोजनिकयाजाताह।ै इतनाहीनहीइसपृ ीपरअवत रत एसभीमहान्पु षो क आ ा के त इस अवसर पर ा करते ए अपनी स ावना के ारा तृ ंकरनेका य िकयाजाताह।ै तपणकोछःभागोम वभ िकयागयाह-ै देव-तपण ऋ ष-तपण िद -मानव-तपण िद - पत-ृ तपण यम-तपण मनु - पत-ृ तपण ा सं ारकरते ालु (१) देव तपणम् देव श याँ ई र क वे महान वभू तयाँ ह, जो मानव- क ाणमसदा नः ाथभावसे यतनरतह।जल,वाय,ु सूय, ंअ , च , व त् तथा अवतारी ई र अगं ो क मु आ ाएँु एवं व ा, बु , श , तभा, क णा, दया, स ता, ंप व ता जसै ी स वृ याँ सभी देव श यो म आती ह। ं ंय प ये िदखाई नही देती, तो भी इनके अन उपकार ह। यिद इनका लाभ न मले, तो मनु के लए जी वत रह सकना भी स व न हो। इनके त कृत ता क भावना ं ंकरनेके लएयहदेव-तपणिकयाजाताह।ै यजमानदोनोहाथोक अना मका ंअगँ ु लयोमप व ीधारणकर। ॐआग ुमहाभागाः, व ेदेवामहाबलाः। येतपणऽ विहताः,सावधानाभव ुते॥ जल म चावल डाल । कुश-मोटक सीधे ही ल ।। य ोपवीत स (बाय क े पर) देव तपण 14
  • 17. ंसामा त म रख। तपण के समय अजं ल म जल भरकर सभी अगँ ु लयो के अ भाग के सहारे अ पत कर। इसे देवतीथ मु ा कहते ह। ेक देवश के लए एक- एकअजं लजलडाल।पूवा भमुखहोकरदेतेचल। ॐ ादयोदेवाःआग ुगृ ुएतान्जला लीन।् ॐ तृ ताम।् ॐ व ु ृ ताम।् ॐ ृ ताम।् ॐ जाप ततृ ताम।् ॐ देवा ृ ताम।् ॐ छ ां स तृ ाम।् ॐ वेदा ृ ाम।् ॐ ऋषय ृ ाम।् ॐ पुराणाचाया ृ ाम।् ॐ ग वा ृ ाम।् ॐ इतराचाया ृ ाम।् ॐ संव रः सावयव ृ ाम।् ॐ दे ृ ाम।् ॐ अ रस ृ ाम।् ॐ देवानुगा ृ ाम।् ॐ नागा ृ ाम।् ॐ सागरा ृ ाम।् ॐ पवता ृ ाम।् ॐ स रत ृ ाम।् ॐ मनु ा ृ ाम।् ॐ य ा ृ ाम।् ॐ र ां स तृ ाम।् ॐ पशाचा ृ ाम।् 15
  • 18. ॐ सुपणा ृ ाम।् ॐ भूता न तृ ाम।् ॐ पशव ृ ाम।् ॐ वन तय ृ ाम।् ॐ ओषधय ृ ाम।् ॐ भूत ामः चतु वध ृ ाम।् (२) ऋ ष तपण ंदसरा तपण ऋ षयो के लए ह।ै ास, व स , या व ,ू का ायन, अ , जमद , गौतम, व ा म , नारद, चरक, ंसु तु , पा णनी, दधी च आिद ऋ षयो के त ा क ंअ भ ऋ ष तपण ारा क जाती ह।ै ऋ षयो को भी ंदेवताओक तरहदेवतीथसेएक-एकअजं लजलिदयाजाताह।ै नारदमु न ॐ मरी ािद दशऋषयः आग ु गृ ु एता जला लीन।् ॐ मरी च ृ ाताम।् ॐ अ ृ ताम।् ॐ अं गराः तृ ताम।् ॐ पुल ृ ताम।् ॐ व स ृ ताम।् ॐ तु ृ ताम।् ॐ व स ृ ताम।् ॐ चेता ृ ताम।् ॐ भृगु ृ ताम।् ॐ नारद ृ ताम।् (३) द -मनु तपण ंतीसरा तपण िद मानवो के लए ह।ै जो पूण प से सम जीवन को लोक क ाण ऋ ष तपण 16
  • 19. ं ंके लए अ पत नही कर सक, पर अपना, अपने प रजनो का भरण-पोषण करते ए लोकमंगल के लए अ धका धक ाग-ब लदान करते रह,े वे िद मानव ह। राजा ह र ं , र देव, श व, जनक, पा व, शवाजी, महाराणा ताप, भामाशाह, तलक जसै े महापु ष इसी ेणी म आते ह। िद मनु तपण उ रा भमुख िकया ंजाताह।ै जलमजौडाल।जनेऊक क मालाक तरहरख।कुशहाथोमआड़ेकर ंल। कुशो के म भाग से जल िदया जाता ह।ै अजं ल म जल भरकर क न ा (छोटी उँगली) क जड़ के पास से जल छोड़, इसे ाजाप तीथ मु ा कहते ह। ेक स ोधनके साथदो-दोअजं लजलद- ॐसनकादयःिद मानवाःआग ुगृ ुएता जला लीन।् ॐसनक ृ ाताम॥् 2॥ ॐसन न ृ ताम॥् 2॥ ॐसनातन ृ ताम॥् 2॥ ॐक पल ृ ताम॥् 2॥ ॐआसु र ृ ताम॥् 2॥ ॐवोढु ृ ताम॥् 2॥ ॐप शख ृ ताम॥् 2॥ (४) द - पतृ-तपण ं ंचौथा तपण िद पतरो के लए ह।ै जो कोई लोकसेवा एवं तप या तो नही कर सके , परअपनाच र हर सेआदशबनायेरह,े उसपरिकसीतरहक आचँ नआनेदी। ंअनुकरण, पर रा एवं त ा क स पीछे वालो के लए छोड़ गये। ऐसे लोग भी ंमानव मा के लए व नीय ह, उनका तपण भी ऋ ष एवं िद मानवो क तरह ही ंापूवक करना चािहए। इसके लए द णा भमुख हो। वामजानु (बायाँ घुटना मोड़करबठै )जनेऊअपस (दािहनेक ेपरसामा सेउ ी तम)रख।कुशा दहरे कर ल। जल म तल डाल। अजं ल म जल लेकर दािहने हाथ के अगँ ूठे के सहारेु जल गराएँ।इसे पतृतीथमु ाकहतेह। ेक पतृकोतीन-तीनअजं लजलद। ॐक वाडादयो द पतरःआग ुगृ ुएतान्जला लन।् 17
  • 20. ॐक वाडनल ृ ताम।् इदंस तलं जलं (गंगाजलं वा)त ै ाधानमः॥3॥ ॐसोम ृ ताम,् इदंस तलं जलं (गंगाजलं वा)त ै ाधानमः॥3॥ ॐयम ृ ताम,् इदंस तलं जलं (गंगाजलं वा)त ै ाधानमः॥3॥ ॐअयमा ृ ताम।् इदंस तलं जलं (गंगाजलं वा)त ै ाधानमः॥3॥ ॐ अ ा ाः पतर ृ ताम।् इदं स तलं जलं (गंगाजलं वा) ते ः ाधा नमः॥3॥ ॐसोमपाः पतर ृ ताम।् इदंस तलं जलं (गंगाजलं वा)ते ः ाधानमः॥3॥ ॐबिहषदः पतर ृ ताम।् इदंस तलं जलं (गंगाजलं वा)ते ः ाधानमः॥3॥ (५) यम तपण ंयम नय ण-क ाश योकोकहतेह।ज -मरणक व ाकरनेवालीश को यम कहते ह। मृ ु को रण रख, मरने के समय प ा ाप न करना पड़े, इसका ान रख और उसी कार क अपनी ग त व धयाँ नधा रत कर, तो समझना चािहए िकयमको स करनेवालातपणिकयाजारहाह।ै रा शासनकोभीयमकहतेह। अपने शासन को प रपु एवं बनाने के लए ेक नाग रक को, जो क पालन करता ह,ै उसका रण भी यम तपण ारा िकया जाता ह।ै अपने इ य न हक ाएवं कुमागपरचलनेसेरोकनेवाले ववेककोयमकहतेह।इसेभी नरंतर पु करते चलना हर भावनाशील का क ह।ै इन क क ृ त यम- तपण ाराक जातीह।ै िद पतृतपणक तरह पततृ ीथर्सेतीन-तीनअजं लजल ंयमोकोभीिदयाजाताह।ै ॐयमािदचतदु शदेवाःआग ुगृ ुएतान्जला लन।् ॐयमायनमः॥3॥ ॐधमराजायनमः॥3॥ ॐमृ वेनमः॥3॥ ॐअ कायनमः॥3॥ ॐवैव तायॐकालायनमः॥3॥ ॐसवभूत यायनमः॥3॥ ॐऔद रायनमः॥3॥ु 18
  • 21. ॐद ायनमः॥3॥ ॐनीलायनमः॥3॥ ॐपरमे नेनमः॥3॥ ॐवकृ ोदरायनमः॥3॥ ॐ च ायनमः॥3॥ ॐ च गुपतायनमः॥3॥ ंत ात् न म ोसेयमदेवताकोनम ारकर- ॐयमायधमराजाय,मृ वेचा कायच। वैव तायकालाय,सवभूत यायच॥ औद रायद ाय,नीलायपरमे ने।ु वकृ ोदराय च ाय, च गु ायवैनमः॥ (६) मनु - पतृ-तपण ंइसके बाद अपने प रवार से स त िदवंगत नर-ना रयो का मआताह।ै पता,बाबा,परबाबा,माता,दादी,परदादी। नाना,परनाना,बढ़ू ेनाना,नानीपरनानी,बढ़ू ीनानी। पतनी, पु , पु ी, चाचा, ताऊ, मामा, भाई, बआु , मौसी, बिहन, सास, ससुर, गु , गु पतनी, श , म आिद। यहतीनवंशाव लयाँतपणके लएह।ै पहले गो तपणिकयाजाताह-ै गो ो ाःअ त् पतरःआग ुगृ ुएतान्जला लीन।् अ ता( पता)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ तामह (दादा) अमुकशमार् अमुकसगो ो प ृ ताम।् इदं स तलं जलं त ै धानमः॥3॥ euq";&fir`&riZ.k 19
  • 22. अ पतामहः(परदादा)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।् इदं स तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ ाता (माता) अमुक देवी दा अमुक सगो ा गाय ी पा तृ ताम।् इदं स तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ तामही (दादी) अमुक देवी दा अमुक सगो ा सा व ी पा तृ ताम।् इदं स तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ तामही (परदादी) अमुक देवी दा अमुक सगो ा ल ी पा तृ ताम।् इदं स तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ ापतनमाता (सौतले ी मा)ँ अमुक देवी दा अमुक सगो ा वसु पा तृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ तपण ि तीय गो तपण इसके बाद ि तीय गो मातामह आिद का तपण कर। यहाँ यह भी पहले क भाँ त ंन ल खत वा ो को तीन-तीन बार पढ़कर तल सिहत जल क तीन-तीन अजं लयाँ पततृ ीथसेदतथा- अ ातामहः(नाना)अमुकशमाअमुकसगो ोवसु प ृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ मातामहः(परनाना)अमुकशमार्अमुकसगो ो प ृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ मातामहः(बढ़ू ेपरनाना)अमकु शमार्अमकु सगो ोआिद प ृ ताम।्ृ इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ 20
  • 23. अ ातामही(नानी)अमुक देवीदाअमुकसगो ाल ी पातृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ मातामही(परनानी)अमुक देवीदाअमुकसगो ा पातृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ मातामही(बढ़ू ीपरनानी)अमकु दवे ीदाअमकु सगो ाआिद ा पातृ ताम।्ृ इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ इतर तपण ंजनकोआव कहै,के वलउ ीके लएतपणकरायाजाए- अ तनीअमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ तु ः(बटे ा)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।् इदंअमकु दवे ीदाअमकु सगो ावसु पातृ ताम।् इदंसतलंजलंत ै धानमः॥3॥ स तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ ाः(बटे ी)अमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ तृ ः(चाचा)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ ातलु ः(मामा)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ द ाता(अपनाभाई)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।्् 21
  • 24. इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ ापतन ाता(सौतले ाभाई)अमकु शमार्अमकु सगो ोवसु प ृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ तभृ गनी(बआु )अमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ ा ातभृ गनी(मौसी)अमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ दा भ गनी(अपनीबिहन)अमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ ापतनभ गनी (सौतले ी बिहन) अमुक देवी दा अमुक सगो ा वसु पा तृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ द शुरः( सुर)अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ द शुरपतनी(सास)अमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ अमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।्ु इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ दआचायपतनीअमुक देवीदाअमुकसगो ावसु पातृ ताम।्् 22
  • 25. इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ त् श ःअमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ खाअमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ दआ पु षः(स ानीयपु ष)अमकु शमार्अमकु सगो ोवसु प ृ ताम।्् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ अ दप तःअमुकशमार्अमुकसगो ोवसु प ृ ताम।्् इदंस तलं जलं त ै धानमः॥3॥ न म सेपूवर् व धसे ा णमा क तु के लएजलधारछोड़- ॐदेवासुरा थाय ा,नागाग वरा साः। पशाचागु काः स ाः,कू ा ा रवःखगाः॥ जलेचराभू नलया,वा वाधारा ज वः। ी तमेते या ाशु,म ने ा नु ा खलाः॥ नरके षुसम षे ु,यातनासु◌ु चये ताः। तषे ामा ायनायैतद,दीयतेस ललं मया॥् येबा वाऽबा वावा,येऽ ज नबा वाः। तेसवेर्तृ माया ,ु येचा ोयकां णः। आ पय ,देव ष पतमृ ानवाः। 23
  • 26. तृ ु पतरःसवेर्,मातमृ ातामहादयः॥ अतीतकुलकोटीना,ं स ीप नवा सनाम।् आ भुवना ोकाद,इदम ु तलोदकम।्् येबा वाऽबा वावा,येऽ ज नबा वाः। तेसवेर्तृ माया ,ु मयाद ने वा रणा॥ व - न ीडन शु व जल म डुबोएँ और बाहर लाकर म को पढ़ते ए अपस भाव से अपने बायभागमभू मपरउसव को नचोड़।[2] ॐयेके चा ुलेजाता,अपु ागो णोमतृ ाः। तेगृ ुमयाद ं,व न ीडनोदकम॥् भी तपण ंअ म भी तपण िकया जाता ह।ै ऐसे परमाथ परायण महामानव, ज ोने उ ं ंउ े ो के लए अपना वंश चलाने का मोह नही िकया, भी उनके त न ध माने गये ंह,ऐसीसभी े ा ाओकोजलदानद- ॐवैया पदगो ाय,साकं ृ त वरायच। गंगापु ायभी ाय, दा ेऽहं तलोदकम॥् अपु ायददा ेतत,् स ललं भी वमण॥ 24
  • 27. पतृ प म अ तलाभकारी ये दान पतपृ ,अमाव ा,बरसीपरदसदानमहादानमानेगएह। ंिह धम म दान को ब त ही अहम और ज री माना गया ह।ै खासतौर पर प रो कू स ता के लए हम ा प ,उनक बरसी और अमाव ा को जो भी पूण ा से ंउनके न मतदानकरतेहैउससेहमअपने प रोकासदैवआशीवाद ा होताहै| ंपतरो क स ताके लए ा प म िकए जानेवाले दाननके वल कालसप दोष एवं ंहमारे पतदृ ोषकोख करतेहवरनहमारे जीवनके सभीसंकटोकोदरकरते एहमू धन,यश, सफलता, दीघ आय,ु पा रवा रक सुख शां त और सम भौ तक सुख ंसंपदाओको दानकरतेह।ै ंकहते है प रो के न मत उनके गो तथा नाम का उ ारण करके जो भी व एु ं उ े ंअ पत क जाती है वह उ उनक यो न के िहसाब से ा होती ह।ै हमारे पतरो के प रयो नमहोनेपरउ सू पम,देवलोकमहोनेपरअमृत पम,ग व लोक म होने पर भो प म, पशु यो न म तणृ प म, सप यो न म वायु प म ,य यो न म पेय प म, दानव यो न म मासँ प म, ते यो न म धर प म, तथा यिद हमारे प र मनु यो न म हो तो उ े अ धन आिद के प म ा होता ह।ै अथात ंहमारे ारा िदया गया दान और ा कम कतई न ल नही होता है । पतपृ म हम वैसे तो कुछ भी अपनी ा से दान कर सकते है लेिकन खासतौर पर नीचे बताये गए दानमहादानमानेगएह। 1. तल का दान : स ूण ा कम म तल का ब त ही ादा मह ह।ै काले तल भगवान व ु को अ त य ह।ै ा प म कुछ भी दान करते समय हाथ म काला ंतल लेकर ही दान करना चािहए। इससे दान का स ूण फल हमारे पतरो को ा ं ंहोताह।ै प रोके न मत ा मकाले तलोकादानहमारीतथाहमारे पूरे प रवारक ंहर कारके संकटोसेर ाकरताह।ै 25
  • 28. ं2. घी का दान : पतरो के ा म गाय के घी को अपनी साम के अनुसार सुपा ाहमणकोदानदेनाअ ंतहीमंगलकारीमानाजाताह।ै ं3. ण का दान : ण दान से प रवार मे कलह दर होती ह,ै प रवार के सभी सद ोू के म आपसी मे और सौहा का वातावरण उ होता है । अगर ण दान संभव न हो सके तो अपनी ा और साम के अनुसार यथाश धन का दान भी िकयाजासकताह। 4.अ दान:अ दानम आपकोई भी अनाजका दानदे सकतेहै। यहदानपूण ा सेसंक सिहतकरनेपरमनु क सभीइ ाएं पूणहोतीहै। ं ं ं5.व दान :शा ो के अनुसार पतरो को भी हम मनु ो क तरह ही सद , गम का ंएहसास होता ह।ै इससे बचने हते ु पतरगण अपने वंशजो से व क इ ा रखते ह। ं ंजो अपने पतरोके न म व कादानकरतेहउनपर पतरोक हमेशाकृपा ंबनीरहतीह।ै पतरोकोधोतीएवं दप ाकादानकरनासबसेउ ममानागयाह।ै वु ंदान से यमदतो का भय भी समा हो जाता ह।ै वैसे व दान म आपू ंधोती,कुरता,गमछा,ब नयान, मालआिदिकसीभीतरहके व ोकादानकरसकते हैपर ु ानरहेक यहव नएऔर बलकुलसाफहोनेचािहए। ं6.चादँ ीकादान: ा मचादँ ीके दानकाब त ादामह हैपुराणोम लखाहैिक ं ं ंपतरो का नवास च के ऊपरी भाग म ह।ै शा ो के अनुसार पतरो को चादं ी क व एु ं अ त य ह। चादं ी, चावल, दध के दान से से पतर ब त खुश होते ह। इनू ंव ओु के दान से न के वल वंश क वृ होती है वरन मनु क सभी इ ाएँ भी अव हीपूणहोतीह।ै 7.भू मदान: ा प मिकसीभीगरीब कोभू मकादान, को ाई संप औरअतलु वैभवदेताह।ै महाभारतमकहागयाहैिकभूलवशबड़ेसेबड़ापाप हो जाने पर भू म दान करने से को पाप से मु मल जाती ह।ै भू म दान से ंदानकता को अ य पु मलता ह।ै ऐसा माना जाता है क िक पतरो के न म भू म ंदानकरनेसे पतरोको पतरलोकमरहनेके लएउ चत ान मलताह।ै अगरभू म 26
  • 29. का दान संभव न हो तो इसके ान पर पर म ी के कुछ टुकड़े उ चत द णा के साथ िकसी बतन/ थाली म रखकर िकसी भी यो ा ण को दान िदया जा सकता है । ापूवक म ी का दान करने से भी पतर संतु हो जाते ह। भू म दान से यश, मान- स ानएवं ायीसंप मवृ होतीह।ै 8.गुड़कादान:गुड़के दानसेहमारे पतृअ तशी स होतेहै।इसदानसे कोधन,सुखसंप क ा होतीहै। ं9.गौदान:गौदानतोहमेशासेहीसभीदानोम े मानाजाताह।ै लेिकन ा प मिकयागयागौदानहरसुखऔरऐ य दानकरनेवालामानागयाह।ै ग ड़पुराण मकहागयाहैिकमृ ुके समयजो गायक पंूछपकड़करगौदानकरतेहउ ंमृ ु के बाद वैतरणी नदी पार करने म कोई भी परेशानी नही होती ह।ै वैतरणी नदी यमलोक के रा े म पड़ती है जसम भयानक जीव-ज ु नवास करते ह जो पापी कोघोरपीड़ादेतेह।इसी लए पतृप मगायकादानकरनेसे पतरब तही ंस होतेहऔरअपनेवंशजोकोहदयसेआशीवाददेतेह।अगरआपगौदानकरने मअसमथहोतोअपनीयथाश उसके ानमधनकादानदेसकतेहै। ं10. नमक का दान: पतरो क स ता के लए नमक के दान का ब त मह ह।ै इस ंदानके पहले ा णदेवतामअपने पतरोक छ वदेखते एउ पूण ाऔर हे सेभोजनकराएं औरउसके बादउ दानदे करउनकाआशीवादलेकरउनक संतु क ाथनाकरते एउनसेअपनेजानेअनजानेमिकयेगएिकसीभीअपराधके लए मामागं े। ंतो आप सभी देर न कर इन रंगो से दो ी करके स ाह के ेक िदन के िहसाब से कपड़े पहनना शु कर न य ही आप अपने अ र नया आ व ास और उजा का संचारपाएंगे। ंइनके अ त र आप अपनी ा और साम से अपने प रो के पसंद के फल, ब र, छाता, च ल, पंखा, म ी का घड़ा आिद का दान भी िकसी यो ा ण को ंकर सकते ह।ै याद रहे पतरो के न मत िकया जाने वाला दान के वल ाहमण को ही 27
  • 30. ं ंदेनाचािहए ोिकउ ाकाअशं मानाजाताहैऔरउ ीकोदीगयीव ओु का ही पु ा होता ह।ै आप िकसी गरीब असहाय क मदद तो कर सकते है वह भी ंब त ही उ म है लेिकन पतरो का दान सदैव यो ा ण को ही द िकसी और को ं ंनही। पतृप ,अमाव ाऔरअपनेिदवंगतप रजनोक बरसीको ा णकोअपने ंपतरो का य भोजन पूण ा और आदर देते ए अव कराएँ इससे आप और ंआपके प रवारपरआपके प रोक सदैवकृपा अव हीबनीरहगे ी। RoomsRoomsRooms BanquetBanquetBanquet RestaurantRestaurantRestaurant LawnLawnLawn Multicuisine Veg Restaurant VRINDAVAN a blissful experience... Near Savera Chitra Mandir, Giridih (Jharkhand) Ph: 06532-250251/52, 07544080251/52 website: www.hotelvrindavanpalace.in HOTEL VRINDAVAN PALACE 28
  • 31. पतृप ा मे है ये मह पूण बात ं ं ंधम ंथोके अनुसार ा के सोलहिदनोमलोगअपने पतरोकोजलदेते ंह तथा उनक मृ ु त थ पर ा करते ह। ऐसी मा ता है िक पतरो का ऋण ा ंारा चुकाया जाता ह।ै वष के िकसी भी मास तथा त थ म गवासी ए पतरो के लए पतपृ क उसी त थको ा िकयाजाताह।ै पू णमा पर देहातं होने से भा पद शु पू णमा को ा करने का वधान ह।ै इसीिदनसेमहालय( ा )का ारंभभीमानाजाताह।ै ा काअथहै ासे जोकुछिदयाजाए। पतपृ म ा करनेसे पतगृ णवषभरतक स रहतेह।धम ं ंशा ो म कहा गया है िक पतरो का प दान करने वाला गृह दीघाय,ु पु - पौ ािद, यश, ग, पु , बल, ल ी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धा आिद क ा करताह।ै ंा म पतरो को आशा रहती है िक हमारे पु -पौ ािद हम प दान तथा तलाजं ल दान कर संतु करगे। इसी आशा के साथ वे पतलृ ोक से पृ ीलोक पर ं ंंआते ह। यही कारण है िक िहद धम शा ो म ेक िहद गृह को पतपृ म ाू ू अव पसेकरनेके लएकहागयाह।ै ा सेजड़ु ीकईऐसीबातहजोब तकमलोगजानतेह।मगरयेबात ा करनेसे ंपूव जान लेना ब त ज री है ोिक कई बार व धपूवक ा न करने से पतृ ाप भी दे देते ह। आज हम आपको ा से जड़ु ी कुछ वशेष बात बता रहे ह, जो इस कारह- 1. यंू तो एक आम मा ता है िक जस भी त थ को िकसी मिहला या पु ष का नधन आ हो उसी त थ को संबं धत का ा िकया जाता ह,ै लेिकन आपक जानकारी के लए हम आपको ा से जड़ु ी कुछ वशेष बातबतारहेह,जोइस कारह- 29
  • 32. सौभा वती ीका ा नवमीके िदनिकयाजाताह।ै यिद कोई सं ासी है तो उसका ा ादशी के िदन िकयाजाताह।ै श ाघात या िकसी अ दघटना म मारे गए का ाु चतदु शीके िदनिकयाजाताह।ै ंयिदहमअपनेिकसीपूवजके नधनक त थनहीमालूमहोतो उनका ा अमाव ा के िदन िकया जाता ह।ै इसी लए इसे सव पतृ अमाव ाभीकहाजाताह।ै आ न शु क तपदा को भी ा करने का वधान ह।ै इसिदनदादीऔरनानीका ा िकयाजाताह।ै 2. ा के दौरान यह सात चीज व जत मानी गई- दंतधावन, ता लू भ ण, तले मदन,उपवास,संभोग,औषधपानऔरपरा भ ण। ं3. ा म ीलके पा ोका नषेधह।ै 4. ा मरंगीनपु कोभी नषेधमानागयाह।ै ं5. गंदा और बासा अ , चना, मसूर, गाजर, लौक , कु ड़ा, बगन, हीग, शलजम,मासं ,लहसुन, ाज,कालानमक,जीराआिदभी ा म न ष मानेगएह। 6. संक लेकर ा णभोजनकराएं यासीधाइ ािदद। ा णकोद णा अव द। 7. भोजनकै साह,ै यहनपूछ। ं8. ा णकोभीभोजनक शंसानहीकरनीचािहए। 9. ा कममगायकाघी,दधयादहीकाममलेनाचािहए।यह ानरखिकू गाय को ब ा ए २१ िदन से अ धक हो चुके ह। दस िदन के अदं र बछड़े ंकोज देनेवालीगायके दधकाउपयोग ा कममनहीकरनाचािहए।ू ं ं10. ा म चादं ी के बतनो का उपयोग व दान पु दायक तो है ही रा सो का ंनाश करने वाला भी माना गया ह।ै पतरो के लए चादं ी के बतन म सफ 30
  • 33. ंपानीहीिदएजाएतोवहअ यतृ कारकहोताह।ै पतरोके लएअ , ंप औरभोजनके बतनभीचादं ीके होतोऔरभी े मानाजाताह।ै ं ं11. ा म ा ण को भोजन करवाते समय परोसने के बतन दोनो हाथो से पकड़ कर लाने चािहए, एक हाथ से लाए अ पा से परोसा आ भोजन रा सछ नलेतेह। ं12. ा ण को भोजन मौन रहकर एवं ंजनो क शंसा िकए बगैर करना ंचािहए ोिक पतरतबतकहीभोजन हणकरतेहजबतक ा णमौन रहकरभोजनकर। ं13. जो पतृ श आिद से मारे गए हो उनका ा मु त थ के अ त र चतदु शीकोभीकरनाचािहए।इससेवे स होतेह। 14. ा गु पसेकरनाचािहए। 15. ा म ा ण को भोजन करवाना आव क ह,ै जो बना ा ण ंके ा कमकरताह,ै उसके घरम पतरभोजननहीकरत,े ापदेकरलौट जातेह। ा णहीन ा सेमनु महापापीहोताह।ै ं16. ा म जौ, कागं नी, मटर और सरसो का उपयोग े रहता ह।ै तल क ंमा ा अ धक होने पर ा अ य हो जाता ह।ै वा व म तल पशाचो से ंा क र ाकरतेह।कुशा(एक कारक घास)रा सोसेबचातेह। ं17. दसरे क भू मपर ा नहीकरनाचािहए। वन,पवत,पु तीथएवं मंिदरू ं ं ंदसरे क भू म नही माने जाते ोिक इन पर िकसी का ा म नही मानाू ंगयाह।ै अत:इन ानोपर ा िकयाजासकताह।ै 18. चाहे मनु देवकाय म ा ण का चयन करते समय न सोचे, लेिकन पतृ ं ंकाय म यो ा ण का ही चयन करना चािहए ोिक ा म पतरो क 31
  • 34. ंतृ ा णो ाराहीहोतीह।ै 19. जो िकसी कारणवश एक ही नगर म रहनी वाली अपनी बिहन, ंजमाई और भानजे को ा म भोजन नही कराता, उसके यहां पतर के ंसाथहीदेवताभीअ हणनहीकरत।े 20. ा करते समय यिद कोई भखारी आ जाए तो उसे आदरपूवक भोजन करवाना चािहए। जो ऐसे समय म घर आए याचक को भगा देता है ंउसका ा कमपूणनहीमानाजाताऔरउसकाफलभीन होजाताह।ै ं ं21. शु प म, रा म, यु िदनो (एक ही िदन दो त थयो का योग)म तथा ं ंअपने ज िदन पर कभी ा नही करना चािहए। धम ंथो के अनुसार ंसायंकाल का समय रा सो के लए होता ह,ै यह समय सभी काय के लए ं ंनिदतह।ै अत:शामके समयभी ा कमनहीकरनाचािहए। ं22. ा म स पतगृ ण मनु ो को पु , धन, व ा, आय,ु आरो , लौिकक सुख, मो और ग दान करते ह। ा के लए शु प क अपे ा कृ प े मानागयाह।ै ं23. रा को रा सी समय माना गया ह।ै अत: रात म ा कम नही करना ं ं ंचािहए। दोनो सं ाओ के समय भी ा कम नही करना चािहए। िदन के ंआठवमु त(कुतपकाल)म पतरोके लएिदयागयादानअ यहोताह।ै 24. ा मयेचीजहोनामह पूणह-गंगाजल,दध,शहद,दौिह ,कुशऔरू तल। के ले के प े पर ा भोजन नषेध ह।ै सोने, चादं ी, कासं े, ताबं े के पा उ मह।इनके अभावमप लउपयोगक जासकतीह।ै 25. तलु सी से पतगृ ण स होते ह। ऐसी धा मक मा ता है िक पतगृ ण ग ड़ ंपर सवार होकर व ु लोक को चले जाते ह। तलु सी से पड क पूजा करने से पतरलोग लयकालतकसंतु रहतेह। 32
  • 35. 26. रेशमी,कं बल,ऊन,लकड़ी,तणृ ,पण,कुशआिदके आसन े ह।आसन ंमलोहािकसीभी पम यु नहीहोनाचािहए। 27. चना, मसूर, उड़द, कुलथी, स ,ू मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला ं ंउड़द, काला नमक, लौक , बड़ी सरसो, काले सरसो क प ी और बासी, अप व फलयाअ ा म नषेधह। 28. भ व पुराण के अनुसार ा 12 कार के होते ह, जो इस कार ह- 1- न , 2- नै म क, 3- का , 4- वृ , 5- स प न, 6- पावण, 7- गो ी,8-शु थ,9-कमाग,10-दै वक,11-या ाथ,12-पु यथ 29. ा के मखु अगं इस कारह- ंतपण-इसमदध, तल,कुशा,पु ,गंध म तजल पतरोकोतृ करनेू हते ुिदयाजाताह।ै ा प मइसे न करनेका वधानह।ै ं ंभोजन व प दान- पतरो के न म ा णो को भोजन िदया जाता ह।ै ा करतेसमयचावलयाजौके प दानभीिकएजातेह। व दान-व दानदेना ा कामु ल भीह।ै द णा दान- य क प ी द णा है जब तक भोजन कराकर व और ं ंद णानहीदीजातीउसकाफलनही मलता। ं30. ा त थ के पूव ही यथाश व ान ा णो को भोजन के लए बलु ावा ंद। ा के िदनभोजनके लएआए ा णोकोद णिदशामबठै ाएं। ं31. पतरो क पसंद का भोजन दध, दही, घी और शहद के साथ अ से बनाएू ंगए पकवान जसै े खीर आिद ह।ै इस लए ा णो को ऐसे भोजन कराने का वशेष ानरख। ं32. तयै ारभोजनमसेगाय,कु ,े कौए,देवताऔरचीटीके लएथोड़ासाभाग 33
  • 36. नकाल। इसके बाद हाथ जल, अ त यानी चावल, च न, फू ल और तल लेकर ंा णोसेसंक ल। ं33. कु ेऔरकौएके न म नकालाभोजनकु ेऔरकौएकोहीकराएं िकतु ं ंदेवताऔरचीटीकाभोजनगायको खलासकतेह।इसके बादही ा णो ंकोभोजनकराएं।पूरीतृ सेभोजनकरानेके बाद ा णोके म कपर तलक लगाकर यथाश कपड़े, अ और द णा दान कर आशीवाद पाएं। ं34. ा णो को भोजन के बाद घर के ार तक पूरे स ान के साथ वदा करके ं ंआएं। ोिक ऐसा माना जाता है िक ा णो के साथ-साथ पतर लोग भी ं ं ंचलते ह। ा णो के भोजन के बाद ही अपने प रजनो, दो ो और ंर दे ारोकोभोजनकराएं। 35. पता का ा पु को ही करना चािहए। पु के न होने पर प ी ा कर ं ंसकती ह।ै प ी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव म स पडो ( एक ही प रवार के ) को ा करना चािहए। एक से अ धक पु होने पर सबसेबड़ापु ा करताह।ै ंइस कारआप पतरोको स करउनकाआशीवादलेकरअपनेक दरू करसकतेह।यंूभीयह काकत ह,ै जसेपूणकरपूरे प रवारको सुखी एवं ऐ यवान बना सकते ह। इस बात का वशेष ान रख िक ा करतेसमयसंक अव ल। 34
  • 37. पतृदोष होता ा है आज के इस वतमान प रपे मे यह ब त ही सुनने को आता है क आपको पतृदोषहै|पर ुयह पतृदोषहोता ाहै? हमारे पूवज, पतर जो िक अनेक ंकार क क कारक यो नयो म अतृ , अशां त, असंतु का अनुभव करते ह एवं उनक स त या ंमो िकसी कारणवश नही हो पाता तो हमसे वे आशा करते ह िक हम उनक स त या मो का कोई साधन या उपाय कर जससे उनका अगला ज हो सके एवं उनक स त या मो हो ंसके । उनक भटकती ई आ ा को संतानो से अनेक आशाएं होती ह एवं यिद ंउनक उन आशाओ को पूण िकया जाए तो वे आ शवाद देते ह। यिद पतर असंतु रहे तो संतान क कु ली द षत हो जाती है एवं वे अनेक कार के क ,ू ं ंपरेशानीयांउ करतेह,ै फल पक ोतथादभा ोकासामनाकरनापडताु ह।ै पूवजो का है ऋण ेक मनु जातक पर उसके ज के साथ ही तीन कार के ऋणअथातदेवऋण,ऋ षऋण औरमातृ पतृऋणअ नवाय पसे चुकाने बा कारी हो जाते ह।ै 35
  • 38. ंज के बादइनबा कारीहोनेजानेवालेऋणोसेयिद यासपूवकमु ा ंन क जाए तो जीवन क ा यो का अथ अधरू ा रह जाता ह।ै ो तष के ंअनुसार इन दोषो से पीिड़त कंुडली शा पत कंुडली कही जाती ह।ै ऐसे अपने मातपृ अथात माता के अ त र माना मामा-मामी मौसा-मौसी नाना- नानी तथा पतृ प अथात दादा-दादी चाचा-चाची ताऊ ताई आिद को क व दखदेताहैऔरउनक अवहले नाव तर ारकरताह।ैु ज कु ली म यिद चं पर रा के तु या श न का भाव होता है तो जातक मातृ ऋण से पीिड़त होता ह।ै च मा मन का त न ध ह है अतः ऐसे जातक को नर र मान सक अशां त से भी पीिड़त होना पड़ता ह।ै ऐसे को मातृ ऋण से मु के प ात ही जीवन म शां त मलनीसंभवहोतीह।ै पतृ ऋण के कारण को मान त ा के अभाव से पीिड़त होने के साथ-साथ संतान क ओर से क संतानाभाव संतान का ा खराब ंहोने या संतान का सदैव बरु ी संग त जसै ी तयो म रहना पड़ता ह।ै यिद संतान अपंगमान सक पसे व यापीिड़तहैतो कास ूणजीवनउसीपर के तहोजाताह।ै ज प ी म यिद सूय पर श न रा -के तु क या यु त ारा भाव हो तोजातकक कंुडलीम पतृऋणक तमानीजातीह।ै ंमाता- पता के अ त र हम जीवन म अनेक यो का सहयोग व ंसहायता ा होती है गाय बकरी आिद पशुओ से दध मलता ह।ै फल फू ल वू ंअ साधनो से हमारा जीवन सुखमय होता है इ बनाने व इनका जीवन चलाने 36
  • 39. ंमयिदहमनेअपनीओरसेिकसी कारकासहयोगनहीिदयातोइनकाभीऋण हमारे ऊपर हो जाता ह।ै जनक ाण के काय म च लेकर हम इसऋण से उस ऋणहोसकतेह। ंदेव ऋण अथात देवताओ के ऋण से भी हम पीिड़त होते ह। हमारे लए सव थम देवता ह हमारे माता- पता, पर ु हमारे इ देव का ान भी हमारे जीवन म मह पूण ह।ै भ व शानदार बंगला बना लेता है अपने ावसा यक ान का भी व ार कर लेता ह,ै िक ु उस जगत के ामी के ान के लए सबसे अ म ंसोचता है या सोचता ही नही है जसक अनुक ा से सम ऐ य वैभव व सकल पदाथ ा होता ह।ै उसके लए घर म ंकोई ान नही होगा तो को देव ऋण से पीिड़त होना पड़ेगा। नई पीढ़ी क वचारधारा म प रवतन हो जाने के कारण न तो कुल देवता पर आ ा रही है और न ही लोग भगवान को मानते ह। फल प ई र भी अपनी अ श सेउ नाना कारके क दानकरतेह। ऋ ष ऋण के वषय म भी लखना आव क ह।ै जस ऋ ष के गो म हम ज ह, उसी का तपण करने से हम वं चत हो जाते ह। हम लोग अपने गो को भूल ंचुके ह। अतः हमारे पूवजो क इतनी उपे ा से उनका ाप हम पीढ़ी दर पीढ़ी ं ंपरेशानकरेगा।इसमकतईसंदेहनहीकरनाचािहए।जोलोगइनऋणोसेमु होनेके लएउपायकरतेह,वे ायःअपनेजीवनके हर े मसफलहोजातेह। ं ं ं ंप रवार म ऋण नही ह,ै रोग नही ह,ै गृह ेश नही ह,ै प ी-प त के वचारो म सामंज वएक पताहैसंतानेमाता- पताकास ानकरतीह।प रवारके सभी 37
  • 40. लोग पर र मल जलु कर मे से रहते ह। अपने सुख-दख बाटं ते ह। अपनेु अनुभव एक-दसरे को बताते ह। ऐसा प रवार ही सुखी प रवार होता ह।ै दसरीू ू ओर, कोई-कोई प रवार तो इतना शा पत होता है िक उसके मन स प रवार क सं ादीजातीह।ै ंसारे के सारे सद तीथया ापरजातेहअथवाकहीसैरसपाटेपर मणके लए नकल जाते ह और गाड़ी क दघटना म सभी एक साथ मृ ु को ा करते ह।ु पीछे बच जाता है प रवार का कोई एक सद सम जीवन उनका शोक मनाने के लए।इस कारपूराकापूरावंशहीशा पतहोताह।ै इस कारके लोगकारण तलाशते ह। जब सुखी थे तब न जाने िकस-िकस का िह ा हड़प लया था। िकस क संप पर अ धकार जमा लया था। िकसी नधन कमजोर पड़ोसी को दखु िदया था अथवा अपने वृ माता- पता क अवहले ना और ददशा भी क औरु उसक आ ा से आह नकलती रही िक जा तरे ा वंश ही समा हो जाए। कोई पानी देने वाला भी न रहे तरे े वंश म। अतएव अपने सुखी जीवन म भी मनु को डरकरचलनाचािहए। मनु को पतृ ऋण उतारने का सतत यास करना चािहए। जस प रवार म कोई दखी होकर आ ह ा करता है या उसे आ ह ा के लए ववश िकया जाता हैु तोइसप रवारकाबादम ाहालहोगा इसपर वचारकर।आ ह ाकरना ं ं ंसरलनहीह,ै अपनेजीवनकोकोईयंूहीतोनही मटादेता,उसक आ ातोवही भटके गी। वह आप को कै से चैन से सोने देगी, थोड़ा वचार कर। िकसी क ा का ंअथवा ी का बला ार िकया जाए तो वह आप को ाप ो न देगी, इस पर वचारकर।वहयिदआ ह ाकरतीह,ै तोकसूरिकसकाह।ै उसक आ ापूरे ंवंश को ाप देगी। सीधी आ ा के ाप से बचना सहज नही ह।ै आपके वंश को इसेभुगतनाहीपड़ेगा,यही ते बाधादोषवयही पतृदोषह।ै इसेसमझ। 38
  • 41. पतृदोष के ल ण व् हा नया यिद िकसी जातक क कंुडली मे प दृ ोष होता है तो उसे अनेक कार क ंपरेशा नया,ं हा नयां उठानी पडती ह।ै जो लोग अपने पतरो के लए तपण एवं ंा नही करत,े उ े रा स, भूत- ते , पशाच, डािकनी-शािकनी, हमरा स आिद व भ कार से पीिडत करते रहते है:-  घर म कलह, अशां त रहती है। ं रोग-पीडाएं पीछा नही छोडती है।  घर म आपसी मतभेद बने रहते है।  काय म अनेक कार क बाधाएं उ हो जाती है।  अकाल मृ ु का भय बना रहता है।  संकट, अनहोनीया,ं अमंगल क आशंका बनी रहती है।  संतान क ा म वलंब होता है।  घर म धन का अभाव भी रहता है।  अनेक कार के महादखोंका सामना करना पडता है।ु  प रवार एवं सगे-स यो,ं म ोंको भी वशेष क क ा होती है।  प रवार म अशा , वंश वृ म कावट, आक क बीमारी, धन से बरकत न होना |  सभी भौ तक सुखोंके होते ए भी मन असंतु रहना आ द परेशा नयोंसे ंमु नही मलना | ंपतृ दोष एक अ बाधा है .ये बाधा पतरो ारा होने के कारण ंहोती है | पतरो के होने के ब त से कारण हो सकते ह ,आपके आचरण से,िकसी प रजन ारा क गयी गलती से , ा आिद कम ना करने से ,अं े कम आिद म ई िकसी िु ट के कारण भी हो सकता है | 39
  • 42. इसके अलावा मान सक अवसाद, ापार म नु ान ,प र म के अनुसार फल न मलना ,वैवािहक जीवन म सम ाएं.,कै रअर म सम ाएं या सं म कह तो ंजीवन के हर े म और उसके प रवार को बाधाओ का सामना करना ंपड़ता है , पतृ दोष होने पर अनुकूल हो क त ,गोचर ,दशाएं होने पर भी ं ंशुभ फल नही मल पात,े िकतना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओ क अचना क ंजाए ,उसका शुभ फल नही मल पाता। पतृ दोष दो कार से भा वत करता है :- १.अधोग त .वाले पतरोंके कारण २. उ ग त वाले पतरोंके कारण ं ं ंअधोग त वाले पतरो के दोषो का मु कारण प रजनो ारा िकया गया गलत ंआचरण,प रजनो क अतृ इ ाएं ,जायदाद के त मोह और उसका गलत ं ंलोगो ारा उपभोग होने पर, ववाहािदम प रजनो ारा गलत नणय .प रवार के ंिकसी यजन को अकारणक देने पर पतर ु हो जाते ह ,प रवार जनो को ाप दे देते ह और अपनी श सेनकारा क फल दान करते ह| ंउ ग त वाले पतर सामा तः पतदृ ोष उ नही करते ,पर ु उनका िकसी ंभी प म अपमान होने पर अथवा प रवार के पारंप रक री त- रवाजो का ंनवहन नही करने पर वह पतदृ ोष उ करते ह | इनके ारा उ पतदृ ोष से क भौ तक एवं आ ा क उ त ंबलकुल बा धत हो जाती है , िफर चाहे िकतने भी यास ो ना िकये जाएँ ं,िकतने भी पूजा पाठ ो ना िकये जाएँ,उनका कोई भी काय ये पतदृ ोष सफल ंनही होने देता | पतृ दोष नवारण के लए सबसे पहले ये जानना ज़ री होता है िक िकस गृह के कारण और िकस कार का पतृ दोष उ हो रहा है ? 40