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हिन्दी परियोजना कायय
By:- Nagendra Kumar Saini
www.fb.com/imnksaini
अनुक्रमणिका
क्रक्रया
क्रक्रया के भेद
• अकमयक क्रक्रया
• सकमयक क्रक्रया
 पूर्यकालिक क्रक्रया
वर्शेषि
वर्शेष्य
वर्शेषि के भेद
• गुिर्ाचक वर्शेषि
• परिमािर्ाचक वर्शेषि
• संख्यार्ाचक वर्शेषि
• संके तर्ाचक अथर्ा सार्यनालमक
वर्शेषि
अनुक्रमणिका
 क्रक्रयावर्शेषि
क्रक्रयावर्शेषि के भेद
• स्थानर्ाचक
• कािर्ाचक
• परिमािर्ाचक
• हदशार्ाचक
• िीततर्ाचक
क्रक्रया
 जजस शब्द अथर्ा शब्द-समूि के द्र्ािा क्रकसी कायय के िोने
अथर्ा क्रकये जाने का बोध िो उसे क्रिया किते िैं।
 जैसे-
• सीता 'नाच ििी िै'।
• बच्चा दूध 'पी ििा िै'।
• सुिेश कॉिेज 'जा ििा िै'।
 इनमें ‘नाच ििी िै’, ‘पी ििा िै’, ‘जा ििा िै’ शब्दों से कायय-
व्यापाि का बोध िो ििा िैं। इन सभी शब्दों से क्रकसी कायय के
किने अथर्ा िोने का बोध िो ििा िै। अतः ये क्रक्रयाएँ िैं।
व्याकिि में क्रक्रया एक वर्कािी शब्द िै।
क्रक्रया के भेद
 क्रक्रया के दो भेद िैं-
 अकमयक क्रक्रया।
 सकमयक क्रक्रया।
अकमयक क्रक्रया
 जजन क्रक्रयाओं का असि कताय पि िी पड़ता िै र्े
अकमयक क्रक्रया कििाती िैं।
 ऐसी अकमयक क्रक्रयाओं को कमय की आर्श्यकता निीं
िोती।
 अकमयक क्रक्रयाओं के उदाििि िैं-
 िाके श िोता िै।
 साँप िेंगता िै।
 बस चिती िै।
सकमयक क्रक्रया
 जजन क्रक्रयाओं का असि कताय पि निीं कमय पि पड़ता
िै, र्ि सकमयक क्रक्रया कििाती िैं।
 इन क्रक्रयाओं में कमय का िोना आर्श्यक िोता िैं।
 उदाििि-
 मैं िेख लिखता िूँ।
 सुिेश लमठाई खाता िै।
 मीिा फि िाती िै।
 भँर्िा फू िों का िस पीता िै।
पूर्यकालिक क्रक्रया
 क्रकसी क्रक्रया से पूर्य यहद कोई दूसिी क्रक्रया प्रयुक्त िोती िै
तो र्ि पूर्यकालिक क्रक्रया कििाती िै।
 जैसे- मैं अभी सोकि उठा िूँ। इसमें ‘उठा िूँ’ क्रक्रया से पूर्य
‘सोकि’ क्रक्रया का प्रयोग िुआ िै। अतः ‘सोकि’ पूर्यकालिक
क्रक्रया िै।
 वर्शेष- पूर्यकालिक क्रक्रया या तो क्रक्रया के सामान्य रूप में
प्रयुक्त िोती िै अथर्ा धातु के अंत में ‘कि’ अथर्ा ‘किके ’
िगा देने से पूर्यकालिक क्रक्रया बन जाती िै। जैसे-
 िाके श दूध पीते िी सो गया।
 िड़क्रकयाँ पुस्तकें पढ़कि जाएँगी।
वर्शेषि
 संज्ञा अथर्ा सर्यनाम शब्दों की वर्शेषता (गुि, दोष,
संख्या, परिमाि आहद) बताने र्ािे शब्द ‘वर्शेषि’
कििाते िैं।
 जैसे - बड़ा, कािा, िंबा, दयािु, भािी, सुन्दि, कायि,
टेढ़ा-मेढ़ा, एक, दो आहद।
 व्याकिि में वर्शेषि एक वर्कािी शब्द िै।
वर्शेष्य
 जजस संज्ञा अथर्ा सर्यनाम शब्द की वर्शेषता बताई
जाए र्ि वर्शेष्य कििाता िै।
 यथा- गीता सुन्दि िै। इसमें ‘सुन्दि’ वर्शेषि िै औि
‘गीता’ वर्शेष्य िै।
 वर्शेषि शब्द वर्शेष्य से पूर्य भी आते िैं औि उसके
बाद भी।
 पूर्य में, जैसे-
 थोड़ा-सा जि िाओ।
 एक मीटि कपड़ा िे आना।
 बाद में, जैसे-
 यि िास्ता िंबा िै।
 खीिा कड़र्ा िै।
वर्शेषि के भेद
 वर्शेषि के चाि भेद िैं-
 गुिर्ाचक।
 परिमािर्ाचक।
 संख्यार्ाचक।
 संके तर्ाचक अथर्ा सार्यनालमक।
गुिर्ाचक वर्शेषि
 जजन वर्शेषि शब्दों से संज्ञा अथर्ा सर्यनाम शब्दों के
गुि-दोष का बोध िो र्े गुिर्ाचक वर्शेषि कििाते िैं।
 जैसे-
 भार्:- अच्छा, बुिा, कायि, र्ीि, डिपोक आहद।
 िंग:-िाि, ििा, पीिा, सफे द, चमकीिा, फीका आहद।
 दशा:- पतिा, सूखा, वपघिा, भािी, गीिा,
अमीि,िोगी,आहद।
 स्थान:- भीतिी, बाििी, पंजाबी, पुिाना, आगामी आहद।
 गुि:- भिा, बुिा, सुन्दि, मीठा, दानी,सच, सीधा आहद।
 हदशा:- उत्तिी, दक्षििी, पूर्ी, पजश्चमी आहद।
परिमािर्ाचक वर्शेषि
 जजन वर्शेषि शब्दों से संज्ञा या सर्यनाम की मात्रा अथर्ा नाप-
तोि का ज्ञान िो र्े परिमािर्ाचक वर्शेषि कििाते िैं।
 परिमािर्ाचक वर्शेषि के दो उपभेद िै-
 तनजश्चत परिमािर्ाचक वर्शेषि- जजन वर्शेषि शब्दों से र्स्तु की
तनजश्चत मात्रा का ज्ञान िो। जैसे-
 (क) मेिे सूट में साढ़े तीन मीटि कपड़ा िगेगा।
 (ख) दस क्रकिो चीनी िे आओ।
 (ग) दो लिटि दूध गिम किो।
 अतनजश्चत परिमािर्ाचक वर्शेषि- जजन वर्शेषि शब्दों से र्स्तु की
अतनजश्चत मात्रा का ज्ञान िो। जैसे-
 (क) थोड़ी-सी नमकीन र्स्तु िे आओ।
 (ख) कु छ आम दे दो।
 (ग) थोड़ा-सा दूध गिम कि दो।
संख्यार्ाचक वर्शेषि
 जजन वर्शेषि शब्दों से संज्ञा या सर्यनाम की संख्या का
बोध िो र्े संख्यार्ाचक वर्शेषि कििाते िैं।
 जैसे - एक, दो, द्वर्तीय, दुगुना, चौगुना, पाँचों आहद।
 संख्यार्ाचक वर्शेषि के दो उपभेद िैं-
 तनजश्चत संख्यार्ाचक वर्शेषि
 जजन वर्शेषि शब्दों से तनजश्चत संख्या का बोध िो।
जैसे- दो पुस्तकें मेिे लिए िे आना।
 अतनजश्चत संख्यार्ाचक वर्शेषि
 जजन वर्शेषि शब्दों से तनजश्चत संख्या का बोध न िो।
जैसे- कु छ बच्चे पाकय में खेि ििे िैं।
संके तर्ाचक अथर्ा सार्यनालमक वर्शेषि
 जो सर्यनाम संके त द्र्ािा संज्ञा या सर्यनाम की
वर्शेषता बतिाते िैं र्े संके तर्ाचक वर्शेषि कििाते
िैं।
 वर्शेष - क्योंक्रक संके तर्ाचक वर्शेषि सर्यनाम शब्दों से
बनते िैं, अतः ये सार्यनालमक वर्शेषि कििाते िैं।
 इन्िें तनदेशक भी किते िैं।
क्रक्रयावर्शेषि
 जजन अवर्कािी शब्दों से क्रक्रया की वर्शेषता का
बोध िोता िै, र्े क्रक्रयावर्शेषि कििाते िैं।
 क्रक्रयावर्शेषि साथयक शब्दों के आठ भेदों में
एक भेद िै।
 व्याकिि में क्रक्रयावर्शेषि एक अवर्कािी
शब्द िै।
क्रक्रयावर्शेषि के भेद
क्रक्रयावर्शेषि के अथय के अनुसाि पाँच भेद िोते
िैं-
1. स्थानर्ाचक
2. कािर्ाचक
3. परिमािर्ाचक
4. हदशार्ाचक
5. िीततर्ाचक।
स्थानर्ाचक
जो अवर्कािी शब्द क्रकसी क्रक्रया के व्यापाि-स्थान का बोध किाते िैं, उन्िें
स्थानर्ाचक क्रक्रयावर्शेषि किते िैं।
जैसे- यिाँ, र्िाँ, किाँ, जिाँ, तिाँ, सामने, नीचे, ऊपि, आगे, भीति, बािि
आहद।
कालवाचक
जो अवर्कािी शब्द क्रकसी क्रक्रया के व्यापाि का समय बतिाते िैं, उन्िें
कािर्ाचक क्रक्रयावर्शेषि किते िैं।
जैसे- आज, कि, पिसों, पििे, पीछे, अभी, कभी, सदा, अब तक, अभी-
अभी, िगाताि, बाि-बाि, प्रततहदन आहद।
परिमािर्ाचक
जो अवर्कािी शब्द क्रकसी क्रक्रया के परिमाि अथर्ा तनजश्चत संख्या का बोध
किाते िैं, उन्िें परिमािर्ाचक क्रक्रयावर्शेषि किते िैं।
जैसे- बिुत, अधधक, पूियतया, सर्यथा, कु छ, थोड़ा, काफी, के र्ि, यथेष्ट,
इतना, उतना, क्रकतना, थोड़ा-थोड़ा, तति-तति, एक-एक किके आहद।
दिशावाचक
जो अवर्कािी शब्द क्रकसी क्रक्रया की हदशा का बोध किाते िैं, उन्िें
हदशार्ाचक क्रक्रयावर्शेषि किते िैं।
जैसे- दायें-बायें, इधि-उधि, क्रकधि, एक ओि, चािों तिफ आहद।
िीततर्ाचक
जो अवर्कािी शब्द क्रकसी क्रक्रया की िीतत का बोध किाते िैं, उन्िें िीततर्ाचक
क्रक्रयावर्शेषि किते िैं।
जैसे- सचमुच, ठीक, अर्श्य, कदाधचत्, यथासम्भर्, ऐसे, र्ैसे, सिसा, तेज़,
ठीक, सच, अत:, इसलिए, क्योंक्रक, निीं, मत, कदावप, तो, िो, मात्र, भि
आहद।
धन्यर्ादधन्यर्ाद

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Hindi (Kirya, visheshan, Visheshay)

  • 1. हिन्दी परियोजना कायय By:- Nagendra Kumar Saini www.fb.com/imnksaini
  • 2. अनुक्रमणिका क्रक्रया क्रक्रया के भेद • अकमयक क्रक्रया • सकमयक क्रक्रया  पूर्यकालिक क्रक्रया वर्शेषि वर्शेष्य वर्शेषि के भेद • गुिर्ाचक वर्शेषि • परिमािर्ाचक वर्शेषि • संख्यार्ाचक वर्शेषि • संके तर्ाचक अथर्ा सार्यनालमक वर्शेषि
  • 3. अनुक्रमणिका  क्रक्रयावर्शेषि क्रक्रयावर्शेषि के भेद • स्थानर्ाचक • कािर्ाचक • परिमािर्ाचक • हदशार्ाचक • िीततर्ाचक
  • 4. क्रक्रया  जजस शब्द अथर्ा शब्द-समूि के द्र्ािा क्रकसी कायय के िोने अथर्ा क्रकये जाने का बोध िो उसे क्रिया किते िैं।  जैसे- • सीता 'नाच ििी िै'। • बच्चा दूध 'पी ििा िै'। • सुिेश कॉिेज 'जा ििा िै'।  इनमें ‘नाच ििी िै’, ‘पी ििा िै’, ‘जा ििा िै’ शब्दों से कायय- व्यापाि का बोध िो ििा िैं। इन सभी शब्दों से क्रकसी कायय के किने अथर्ा िोने का बोध िो ििा िै। अतः ये क्रक्रयाएँ िैं। व्याकिि में क्रक्रया एक वर्कािी शब्द िै।
  • 5. क्रक्रया के भेद  क्रक्रया के दो भेद िैं-  अकमयक क्रक्रया।  सकमयक क्रक्रया।
  • 6. अकमयक क्रक्रया  जजन क्रक्रयाओं का असि कताय पि िी पड़ता िै र्े अकमयक क्रक्रया कििाती िैं।  ऐसी अकमयक क्रक्रयाओं को कमय की आर्श्यकता निीं िोती।  अकमयक क्रक्रयाओं के उदाििि िैं-  िाके श िोता िै।  साँप िेंगता िै।  बस चिती िै।
  • 7. सकमयक क्रक्रया  जजन क्रक्रयाओं का असि कताय पि निीं कमय पि पड़ता िै, र्ि सकमयक क्रक्रया कििाती िैं।  इन क्रक्रयाओं में कमय का िोना आर्श्यक िोता िैं।  उदाििि-  मैं िेख लिखता िूँ।  सुिेश लमठाई खाता िै।  मीिा फि िाती िै।  भँर्िा फू िों का िस पीता िै।
  • 8. पूर्यकालिक क्रक्रया  क्रकसी क्रक्रया से पूर्य यहद कोई दूसिी क्रक्रया प्रयुक्त िोती िै तो र्ि पूर्यकालिक क्रक्रया कििाती िै।  जैसे- मैं अभी सोकि उठा िूँ। इसमें ‘उठा िूँ’ क्रक्रया से पूर्य ‘सोकि’ क्रक्रया का प्रयोग िुआ िै। अतः ‘सोकि’ पूर्यकालिक क्रक्रया िै।  वर्शेष- पूर्यकालिक क्रक्रया या तो क्रक्रया के सामान्य रूप में प्रयुक्त िोती िै अथर्ा धातु के अंत में ‘कि’ अथर्ा ‘किके ’ िगा देने से पूर्यकालिक क्रक्रया बन जाती िै। जैसे-  िाके श दूध पीते िी सो गया।  िड़क्रकयाँ पुस्तकें पढ़कि जाएँगी।
  • 9. वर्शेषि  संज्ञा अथर्ा सर्यनाम शब्दों की वर्शेषता (गुि, दोष, संख्या, परिमाि आहद) बताने र्ािे शब्द ‘वर्शेषि’ कििाते िैं।  जैसे - बड़ा, कािा, िंबा, दयािु, भािी, सुन्दि, कायि, टेढ़ा-मेढ़ा, एक, दो आहद।  व्याकिि में वर्शेषि एक वर्कािी शब्द िै।
  • 10. वर्शेष्य  जजस संज्ञा अथर्ा सर्यनाम शब्द की वर्शेषता बताई जाए र्ि वर्शेष्य कििाता िै।  यथा- गीता सुन्दि िै। इसमें ‘सुन्दि’ वर्शेषि िै औि ‘गीता’ वर्शेष्य िै।  वर्शेषि शब्द वर्शेष्य से पूर्य भी आते िैं औि उसके बाद भी।
  • 11.  पूर्य में, जैसे-  थोड़ा-सा जि िाओ।  एक मीटि कपड़ा िे आना।  बाद में, जैसे-  यि िास्ता िंबा िै।  खीिा कड़र्ा िै।
  • 12. वर्शेषि के भेद  वर्शेषि के चाि भेद िैं-  गुिर्ाचक।  परिमािर्ाचक।  संख्यार्ाचक।  संके तर्ाचक अथर्ा सार्यनालमक।
  • 13. गुिर्ाचक वर्शेषि  जजन वर्शेषि शब्दों से संज्ञा अथर्ा सर्यनाम शब्दों के गुि-दोष का बोध िो र्े गुिर्ाचक वर्शेषि कििाते िैं।  जैसे-  भार्:- अच्छा, बुिा, कायि, र्ीि, डिपोक आहद।  िंग:-िाि, ििा, पीिा, सफे द, चमकीिा, फीका आहद।  दशा:- पतिा, सूखा, वपघिा, भािी, गीिा, अमीि,िोगी,आहद।  स्थान:- भीतिी, बाििी, पंजाबी, पुिाना, आगामी आहद।  गुि:- भिा, बुिा, सुन्दि, मीठा, दानी,सच, सीधा आहद।  हदशा:- उत्तिी, दक्षििी, पूर्ी, पजश्चमी आहद।
  • 14. परिमािर्ाचक वर्शेषि  जजन वर्शेषि शब्दों से संज्ञा या सर्यनाम की मात्रा अथर्ा नाप- तोि का ज्ञान िो र्े परिमािर्ाचक वर्शेषि कििाते िैं।  परिमािर्ाचक वर्शेषि के दो उपभेद िै-  तनजश्चत परिमािर्ाचक वर्शेषि- जजन वर्शेषि शब्दों से र्स्तु की तनजश्चत मात्रा का ज्ञान िो। जैसे-  (क) मेिे सूट में साढ़े तीन मीटि कपड़ा िगेगा।  (ख) दस क्रकिो चीनी िे आओ।  (ग) दो लिटि दूध गिम किो।  अतनजश्चत परिमािर्ाचक वर्शेषि- जजन वर्शेषि शब्दों से र्स्तु की अतनजश्चत मात्रा का ज्ञान िो। जैसे-  (क) थोड़ी-सी नमकीन र्स्तु िे आओ।  (ख) कु छ आम दे दो।  (ग) थोड़ा-सा दूध गिम कि दो।
  • 15. संख्यार्ाचक वर्शेषि  जजन वर्शेषि शब्दों से संज्ञा या सर्यनाम की संख्या का बोध िो र्े संख्यार्ाचक वर्शेषि कििाते िैं।  जैसे - एक, दो, द्वर्तीय, दुगुना, चौगुना, पाँचों आहद।  संख्यार्ाचक वर्शेषि के दो उपभेद िैं-  तनजश्चत संख्यार्ाचक वर्शेषि  जजन वर्शेषि शब्दों से तनजश्चत संख्या का बोध िो। जैसे- दो पुस्तकें मेिे लिए िे आना।  अतनजश्चत संख्यार्ाचक वर्शेषि  जजन वर्शेषि शब्दों से तनजश्चत संख्या का बोध न िो। जैसे- कु छ बच्चे पाकय में खेि ििे िैं।
  • 16. संके तर्ाचक अथर्ा सार्यनालमक वर्शेषि  जो सर्यनाम संके त द्र्ािा संज्ञा या सर्यनाम की वर्शेषता बतिाते िैं र्े संके तर्ाचक वर्शेषि कििाते िैं।  वर्शेष - क्योंक्रक संके तर्ाचक वर्शेषि सर्यनाम शब्दों से बनते िैं, अतः ये सार्यनालमक वर्शेषि कििाते िैं।  इन्िें तनदेशक भी किते िैं।
  • 17. क्रक्रयावर्शेषि  जजन अवर्कािी शब्दों से क्रक्रया की वर्शेषता का बोध िोता िै, र्े क्रक्रयावर्शेषि कििाते िैं।  क्रक्रयावर्शेषि साथयक शब्दों के आठ भेदों में एक भेद िै।  व्याकिि में क्रक्रयावर्शेषि एक अवर्कािी शब्द िै।
  • 18. क्रक्रयावर्शेषि के भेद क्रक्रयावर्शेषि के अथय के अनुसाि पाँच भेद िोते िैं- 1. स्थानर्ाचक 2. कािर्ाचक 3. परिमािर्ाचक 4. हदशार्ाचक 5. िीततर्ाचक।
  • 19. स्थानर्ाचक जो अवर्कािी शब्द क्रकसी क्रक्रया के व्यापाि-स्थान का बोध किाते िैं, उन्िें स्थानर्ाचक क्रक्रयावर्शेषि किते िैं। जैसे- यिाँ, र्िाँ, किाँ, जिाँ, तिाँ, सामने, नीचे, ऊपि, आगे, भीति, बािि आहद। कालवाचक जो अवर्कािी शब्द क्रकसी क्रक्रया के व्यापाि का समय बतिाते िैं, उन्िें कािर्ाचक क्रक्रयावर्शेषि किते िैं। जैसे- आज, कि, पिसों, पििे, पीछे, अभी, कभी, सदा, अब तक, अभी- अभी, िगाताि, बाि-बाि, प्रततहदन आहद।
  • 20. परिमािर्ाचक जो अवर्कािी शब्द क्रकसी क्रक्रया के परिमाि अथर्ा तनजश्चत संख्या का बोध किाते िैं, उन्िें परिमािर्ाचक क्रक्रयावर्शेषि किते िैं। जैसे- बिुत, अधधक, पूियतया, सर्यथा, कु छ, थोड़ा, काफी, के र्ि, यथेष्ट, इतना, उतना, क्रकतना, थोड़ा-थोड़ा, तति-तति, एक-एक किके आहद। दिशावाचक जो अवर्कािी शब्द क्रकसी क्रक्रया की हदशा का बोध किाते िैं, उन्िें हदशार्ाचक क्रक्रयावर्शेषि किते िैं। जैसे- दायें-बायें, इधि-उधि, क्रकधि, एक ओि, चािों तिफ आहद।
  • 21. िीततर्ाचक जो अवर्कािी शब्द क्रकसी क्रक्रया की िीतत का बोध किाते िैं, उन्िें िीततर्ाचक क्रक्रयावर्शेषि किते िैं। जैसे- सचमुच, ठीक, अर्श्य, कदाधचत्, यथासम्भर्, ऐसे, र्ैसे, सिसा, तेज़, ठीक, सच, अत:, इसलिए, क्योंक्रक, निीं, मत, कदावप, तो, िो, मात्र, भि आहद।