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​ काल पापर क
े राजनी तक वचार
[ 1902- 1994 ]
https://probaway.files.wordpress.com/2013/06/karl_popper_12.jp
g?w=529&h=535
वारा- डॉ टर ममता उपा याय
एसो सएट ोफ
े सर, राजनी त व ान
क
ु मार मायावती राजक य म हला नातको र महा व यालय
बादलपुर, गौतम बुध नगर, उ र देश
उ दे य-
तुत क
ं टट से न नां कत उ दे य क ाि त संभा वत है-
● काल पापर क
े वचार क
े संदभ म सामािजक व ान म वै ा नक प ध त
क
े योग क जानकार
● वै ा नक स धांत क
े नमाण म आलोचना मक ि ट क
े योगदान का
व लेषण
● खुले समाज एवं बंद समाज क वशेषताओं क जानकार
● राजनी तक यव था क
े संदभ म काल पॉपर क
े वचार का व लेषण
● समसाम यक राजनी तक यव था क
े व लेषण क मता का वकास
● आलोचना मक अंत ि ट क
े आधार पर वै ा नक राजनी तक स धांत क
े
नमाण क वृ को ो साहन
काल पॉपर बीसवीं शता द क
े आि यन टश दाश नक एवं श ा वद ह , जो
अपनी आलोचना मक ि ट क
े लए जाने जाते ह। पापर मूलतः एक कृ त
वै ा नक ह और राजनी त उनक च का वषय नह ं है, जैसा क उ ह ने वयं
वीकार कया है, कं तु राजनी त क अ ययन प ध त को वै ा नक बनाने म
उनक च अव य रह है और इस संबंध म उ ह ने शा ीय आगमना मक
प ध त को पुनः प रभा षत करने का यास कया है। उनक ि ट म एक
वै ा नक अ ययन कता का काय सु था पत वै ा नक स धांत क स यता को
मा णत करना नह ं है, बि क उसका यास त यगत अ ययन क
े आधार पर उन
स धांत को गलत स ध कर नए वै ा नक स धांत क थापना होना
चा हए।वै ा नक स धांत कभी भी सवमा य, सावभौ मक और अका य नह ं हो
सकते,उनक
े खंडन क गुंजाइश ह उ ह वै ा नक बनाती है। जो वै ा नक स धांत
अं तम होने का दावा करता है वह वै ा नक न होकर ,छ म वै ा नक स धांत
होता है। राजनी तक चंतन क ि ट से उनक
े वचार का क बंदु सवा धकार वाद
राजनी तक यव था का आलोचना मक व लेषण रहा है और उनक छ व एक ऐसे
उदारवाद , जातं वाद वचारक क है, िजनक
े चंतन म पुनजागरण काल क
ता ककता एवं आधु नक मानववाद का सम वय मलता है।उ ह ने जातां क
समाज क
े खुलेपन क
े कारण उसक शंसा क है । े ड रक हाइक, डमैन, जॉज
सोरेन जैसे समसाम यक वचारक पर काल पॉपर का भाव प टतः ि टगोचर
होता है।
जीवन एवं यि त व-
काल पापर का ज म 1902 म वयना क
े एक म यमवग य प रवार म हुआ था।
उनक
े पतामह एक यहूद थे, कं तु समय क
े साथ सां कृ तक सा मीकरण क
या म पापर का प रवार सुधारवाद ईसाई बन गया था। उनक
े पता एक
बै र टर थे । वयना म वयं को था पत करने क
े बाद पॉपर प रवार तेजी क
े साथ
सामािजक त ठा को ा त करने म सफल रहा और वयना क एक बड़ी लॉ क
ं पनी
जो वयना क
े उदारवाद मेयर राइमंड बल वारा संचा लत थी, म काल पापर क
े
पता भागीदार बने । पापर क
े चाचा भी एक बड़े दाश नक थे। 16 वष क उ म
क
ू ल को छोड़ देने वाले पापर को बु धजी वय का माहौल वरासत म मला था।
अपनी युवाव था म पापर मा सवाद क
े त आक षत हुएऔर उस समय
मा सवाद वचारधारा को अपनाने वाल ’ सोशल डेमो े टक वकस पाट ऑफ
ऑि या’ क
े सद य बने । जून 1919 म पाट क
े 8 नेताओं क पु लस वारा ह या
कए जाने क
े बाद काल मा स क
े ‘ ऐ तहा सक भौ तकवाद’ क
े स धांत से उनका
मोहभंग हो गया और उ ह ने इससे छ म वै ा नक स धांत मानकर इस
वचारधारा का याग कर दया और आजीवन सामािजक उदारवाद बने रहे।
अपने जीवन म क
ु छ वष तक उ ह ने ब च क
े लए सु वधाय
उपल ध कराने का काय कया और अल े ड एडलर क ल नक म क
ु छ समय तक
ब च क
े लए काय कया। कई वष तक अ त थ छा क
े प म पढ़ने क
े बाद 1922
म उ ह ने वएना यू नव सट म एक साधारण छा क
े प म वेश लया और
दशन एवं मनो व ान क
े े म अपना अ ययन जार रखा। 1928 म मनो व ान
क
े े म उ ह ने पीएचडी क उपा ध ा त क एवं मा य मक क
ू ल म ग णत एवं
भौ तक व ान क
े अ यापक क
े प म काय कया । 1930 म अपने सहकम अ ना
हे नंगर से उ ह ने ववाह कया । नाजीवाद क
े उदय से भया ांत होकर उ ह ने
रा क
े समय का योग अपनी पहल पु तक ‘द टू फ
ं डामटल ॉ ल स ऑफ द
योर ऑफ नॉलेज’ क
े लेखन म कया, िजसक
े काशन क
े बाद उ ह शै णक
जगत म थान ा त होने क आशा थी, जो उस समय यहूद लोग क
े लए एक
सुर त प रवेश क थापना का मा यम था। हालां क यह पु तक का शत नह ं हो
पाई। 1935 म अ ययन अवकाश लेकर वे ेट टेन चले गए। 1937 म पॉपर
यूजीलड चले गए जहां पर कटरबर यू नव सट कॉलेज म दशन क या याता
बने। यहां रहते हुए उ ह ने सु स ध ंथ ‘ओपन सोसायट एंड इ स एनीमीज’
क रचना क । वतीय व व यु ध क
े बाद ‘लंदन क
ू ल ऑफ़ इकोनॉ म स’ म
उ ह ने र डर क
े पद को सुशो भत कया और 1949 म तकशा और वै ा नक
प ध त क
े ोफ
े सर क
े प म नयु त हुए। 1969 मे उ ह ने शै णक जीवन से
अवकाश ा त कया और आजीवन बौ धक ग त व धय म संल न रहे। सतंबर
1994 म कसर से उनक मृ यु हुई। पॉपर क ह त ल खत पांडु ल पया टैनफोड
यू नव सट म सुर त रखी ग । लेगफ़ोट यू नव सट म काल पॉपर का
पु तकालय है िजसम उनका बहुमू य लेखन सुर त है। अपने जीवन काल म पापर
ने बहुत सारे स मान और पुर कार ा त कए जैसे ‘ यूनाइटेड नेशंस शां त
पुर कार’, ‘ लि पनकॉट अवाड ऑफ अमे रकन पॉल टकल साइंस
एसो सएशन’,इंटरनेशनल एक
े डमी ऑफ यूम नजम वारा पुर कार और टश
महारानी वीन ए लजाबेथ सेक
ं ड वारा द गई ‘नाइटहुड क उपा ध’ आ द।
भाव-
पॉपर क
े चंतन पर सुकरात,अर तु, कांट , डे करट ज़ , शॉपेनहावेर , क गाड,
आइं ट न ,हाइक, रसल, वक, मल , यूम आ द का भाव है।
रचनाएं-
● ओपन सोसायट एंड इ स एनीमीज[ 1945]
● लॉिजक ऑफ साइं ट फक ड कवर [ 1959]
● क
ं जे चर एंड र यूटेशन; द ोथ ऑफ साइं ट फक नॉलेज [ 1963]
● द पावट ऑफ ह टोर सीजम [ 1961]
● ऑ जेि टव नॉलेज; एन इवो यूशनर अ ोच [ 1972]
● अन एंडेड वे ट; एन इंटेले चुअल ऑटोबायो ाफ [ 1976]
मुख राजनी तक वचार-
1. आलोचना मक तकवाद - [ critical rationalism]
पापर क
े सभी वचार का आधार आलोचना मक तक वाद का स धांत है,
िजसक
े अनुसार उ ह ने व ान और वै ा नक प ध त को भं न ि टकोण से
प रभा षत कया है। अपनी आलोचना मक ि ट क
े अनुसार पापर शा ीय ढंग
से व ान को िजस प म प रभा षत कया जाता है, उसे अ वीकार करते ह।
पारंप रक प म वै ा नक प ध त को त यपरक एवं अवलोकन पर आधा रत होने
क
े कारण सवमा य स य क
े प म वीकार कया जाता है और इस प ध त क
े
आधार पर िजन वै ा नक स धांत का नमाण कया जाता है, उ ह अं तम मान
लया जाता है। ाकृ तक व ान क
े स धांत और सामािजक व ान क
े स धांत
दोन क
े वषय म यह स य है। पापर क मा यता है क कोई भी वै ा नक
स धांत अं तम नह ं होता, य क उसक
े खंडन क गुंजाइश हमेशा बनी रहती है
और वा तव म यह वै ा नक वृ का योतक है क कसी स धांत को भ व य म
खं डत कए जाने क संभावना बनी रहे। आइं ट न जैसे वै ा नक को पापर इस लए
स मान देते थे य क वयं आइं ट न ने िजस सापे ता का स धांत दया, उसे
अं तम नह ं माना। पापर यह मानते ह क िजस स धांत म िजतना अ धक
उसका वरोध कए जाने क संभावना होती है, वह उतना ह वै ा नक होता है और
िजस स धांत को अं तम मान लया जाता है, वह छ म वै ा नक स धांत होता
है। अतः सामािजक स धांत कार को भी आलोचना मक वृ को ो सा हत
करते हुए कसी भी सामािजक -राजनी तक स धांत क मा यताओं को खं डत कए
जाने क संभावना तलाशनी चा हए। अपने इस वचार क
े आधार पर पापर ने
सभी च लत सामािजक और ाकृ तक व ान क
े स धांत को ता ककता और
आलोचना क कसौट पर कसने का यास कया।चाहे वह डा वन का ‘ वकासवाद’
हो या ‘सवा धकार वाद यव था’ का बंद समाज। इस कार नए ि टकोण से
व ान और वै ा नक प ध त को प रभा षत कर पापर ने व ान और राजनी त
क एक कृ त ि ट तुत क ।
2. सवा धकार वाद यव था/बंद समाज क आलोचना -
आलोचना मक तक वाद क
े आधार पर पॉपर ने सवा धकार वाद राजनी तक
यव था क आलोचना तुत क है। मूलतः यहूद होने और नाजीवाद और
फासीवाद जैसी सवा धकार वाद यव थाओं का य अनुभव होने क
े कारण
पापर ता कक आधार पर इसक आलोचना करते ह और इससे बंद समाज का नाम
देते ह । अपनी मह वपूण कृ तय ‘पावट ऑफ ह टॉ र सजम’ एवं ‘ओपन
सोसायट एंड इ स एनीमीज’ मे उ ह ने सवा धकार वाद यव था क
े ऐ तहा सक
वकास और उसक वशेषताओं पर व तारपूवक काश डाला है। इस संबंध म
उनक
े वचार को न नां कत शीषक क
े अंतगत रखा जा सकता है-
● सवा धकारवाद खुले समाज का वरोधी है-
सवा धकार वाद को बंद समाज का दजा देते हुए पॉपर यह मानते ह क ऐसे समाज
म खुले समाज क वशेषताएं नह ं पाई जाती है य क यहाँ आलोचना मक
भावना को हतो सा हत कया जाता है, जो खुले समाज का एक अ नवाय ल ण
होता है। पॉपर यह मानते ह क कसी वषय पर मु त भाव से व लेषण को
ो सा हत करने और नवाचक िज ासाओं को आमं त करने से सामािजक और
राजनी तक ग त ती ग त से होती है और ऐसी यव था म ाकृ तक व ान को
भी समृ ध होने का अवसर ा त होता है। उ लेखनीय है क पॉपर क
े इस वचार
पर 19वीं शता द क
े उदारवाद वचारक जे. एस . मल का भाव दखाई देता है,
िजसने वैचा रक वतं ता को सामािजक ग त क
े लए आव यक बताया था।
● सवा धकार वाद क जड़े ाचीन यूनान म है-
पापर क
े अनुसार नाजीवाद और फासीवाद क
े प म ‘‘सवा धकार वाद बीसवीं
शता द क
े लए कोई अनोखी वचारधारा नह ं है, बि क इसक परंपरा ाचीन है
और यह उतनी ह पुरानी है, िजतनी वयं मानव स यता’’। अपनी पु तक ‘ओपन
सोसाइट ’ म सवा धकार वाद क जड़ को पॉपर ाचीन यूनान म ढूंढते ह। हालां क
पांचवी शता द ईसा पूव क
े लोकताि क एथस नामक नगर रा य म उ ह ने
इ तहास का पहला ‘खुला समाज’ देखा जहां क
े नाग रक अपनी सं थाओं और
मू य क
े त आलोचना मक ि ट रखते थे और इसका सबसे अ छा उदाहरण
सुकरात है। कं तु त यावाद ताकत ने इस आलोचना मक ि ट को क
ु चलकर
कठोर वगगत सोपान एवं आलोचना से परे राजनी तक स ा क थापना कर
एथस को एक जनजातीय समाज म बदल दया, िजसक
े मू य और परंपराओं को
चुनौती नह ं द जा सकती थी।
पापर ने लेटो पर सवा धकार वाद का दाश नक आधार तैयार
करने का आरोप लगाया है। पापर क मा यता है क अपने गु सुकरात क
आलोचना मक ि ट क
े साथ व वासघात करते हुए लेटो ने अपने ंथ ‘ रपि लक’
म एक ऐसी राजनी तक यव था क क पना क , िजसम सामािजक राजनी तक
जीवन पर शासक का नयं ण होगा और समाज क सामािजक आव यकताओं क
े
सम यि तगत वतं ता और अ धकार क ब ल चढ़ा द जाएगी। उ लेखनीय है
क लेटो ने िजस दाश नक शासक क
े नयं ण म आदश रा य क क पना क , वह
वयं अपनी यि तगत वतं ता खोकर, प रवार और संप क
े अ धकार से वं चत
होकर शासन स ा का योग करेगा और सामािजक याय क ाि त क
े लए
समाज क
े सभी वग को वग य दा य व क
े दायरे म रहकर काय करना होगा। पॉपर
यह भी मानते ह क लेटो का यह यूटो पयन वचार क
ु छ अंश तक पाटा क
राजनी तक यव था से भा वत था। वह पाटा जो पेलोपॉ ने शयन यु ध म
एथस का श ु था और जो बंद समाज का एक उदाहरण था । आंत रक ि थरता और
सै नक शि त ा त करना इस रा य का मु य उ दे य था, िजसम हमेशा ह
यि तगत हत क तुलना म सामू हक हत को मुखता दान क गई और
यि त पर समुदाय का कठोर नयं ण था पत कया गया। वहाँ क श ा
यव था का उ दे य भी नाग रक को सै नक श ण दान करना था ता क ऐसे
यो धा तैयार कए जा सक
े जो रा य क
े त वफादार हो। इस कार पॉपर यह
मानते ह क यह कोई संयोग नह ं था क बीसवीं शता द म नाजीवाद और फासीवाद
का वकास हुआ । ये यव थाएं भी कसी न कसी प म पाटा क यव था से
भा वत थीं ।
● ​सवा धकारवाद को पूणतावाद [holism] सारतावाद [ essentialism]
और इ तहासवाद [historicism] जैसी दाश नक धारणाओं ने ो सा हत
कया-
पापर ​क मा यता है क लेटो जैसे दाश नक को बंद समाज का समथक बनाने क
े
पीछे तीन दाश नक धारणाओं का योगदान है। पहल धारणा ‘पूणता ‘ क है िजसक
े
अंतगत यह माना जाता है क कसी भी वषय या व तु को समझने क
े लए उसे
सम या पूण प म देखना आव यक है । यह पूणता एक जै वक संरचना,
पयावरण यव था, अथ यव था या सां कृ तक यव था क
े प म हो सकती है।
लेटो क
े चंतन म पूणता क धारणा उसक
े रा य दशन म मलती है, जब वह रा य
को एक पूण संगठन का दजा देता है और यि तय को उसक
े अंग मानता है। संपूण
रा य से जुड़े होने पर ह यि त का वजूद संभव है, उस से पृथक होकर नह ं। पॉपर
इसे खतरनाक धारणा मानते ह और यह तपा दत करते ह क समूह का वचार
चाहे वह रा य हो, समाज हो, रा हो या जा त हो, सवा धकारवाद को ो सा हत
करने म सहायक है य क इन समूह क
े नाम पर यि त क
े अि त व और उसक
वतं ता को दूसरे दज का बना दया जाता है। नािजय ने अपनी अ याचार नी तय
को यायसंगत ठहराने क
े लए आय जा त क े ठता पर बल दया जब क
सो वयत संघ म सा यवा दय ने वग य हत क र ा क
े लए यि तगत हत क
ब ल दे द ।
सवा धकारवाद को ो सा हत करने वाल दूसर धारणा मेथाडोलॉिजकल
एस शय ल म क है िजसक
े समथक यह मानते ह कसी व तु क वा त वक कृ त
या उसक
े सार त व को ढूंढना व ान का काय है । इस ि टकोण को अपनाते हुए
रा य क वा त वक कृ त को ढूंढने क
े यास म लेटो ने यह पाया क रा य को
समझने क
े लए उसक
े सम व प को समझना ज र है और रा य क वृ
पतन क ओर उ मुख है,अथात नगर रा य थाई नह ं है। इ तहास म एक दन
ऐसा अव य आएगा जब नगर रा य का अि त व समा त हो जाएगा। अतः ऐसे
राजनी तक स धांत क खोज क जानी चा हए, जो इस पतन क या को धीमा
कर सक
े और ऐसी ह खोज क या म लेट क
े वारा दाश नक राजाओं क
े
शासन का स धांत तुत कया गया िजसे पॉपर सवा धकार वाद रा य क सं ा
देते ह।
तीसर दाश नक धारणा ‘ ह टॉ र सजम’ अथात ‘इ तहास परकतावाद
द’ क है, िजसक मा यता है क इ तहास क येक घटना ाकृ तक नयम से
संचा लत होती है,और सामािजक राजनी तक दशन का उ दे य इन नयम क
खोज कर भ व य क
े समाज क
े वषय म अनुमान लगाना है । पापर क मा यता है
क इ तहास वाद क यह वृ भी पुरानी है। पांचवी शता द ईसा पूव म यूनान क
े
नगर रा य क
े संदभ म इसे य त करते हुए माना गया था क रा य म प रवतन
च य ग त से होता है िजसे लेटो ने ‘पतन क
े स धांत’ क
े प म प रभा षत
कया और यह माना क एक आदश राजत वकृ त होकर वग तं म बदलता है
और वग तं जातं म । अंततः यह नरंक
ु श तं म बदलता है। इस कार यह
तीन धारणाएं सवा धकारवाद क
े वकास का आधार बनी।
लेटो क
े समान अर तु क
े चंतन म भी पापर ने सवा धकारवाद क
े
दशन कए। हालां क वे यह मानते ह क लेटो और अर तू क
े चंतन म भेद है।
लेटो ने जहां रा य क
े पतन को उसक वाभा वक वृ माना, वह अर तु ने
रा य म नै तक वकास क संभावना को देखा और उसक या या ‘सो दे यता क
े
स धांत’ क
े आधार पर क तथा यह माना क कसी रा य का वकास उसक
छपी हुई अ वक सत सार वृ वारा नधा रत कया जाता है।
● ह गल एवं मा स क इ तहास परक ि ट क
े कारण आलोचना-
पॉपर् ने ह गल और मा स क
े वचार मे भी सवा धकारवाद क
े दशन कए और इस
कारण वे उनक भी आलोचना करते ह । ह गल और मा स दोन क
े दशन म
इ तहास का क य थान है। पापर ने इन दोन दशन क उनक
े इ तहास परक
ि टकोण क
े कारण आलोचना क है और यह तपा दत कया है क समाज
व ान क
े े म ऐसे दशन का तपादन खतरनाक स ध हो सकता है। ह गल
क
े दशन म इ तहास परक ि ट उसक
े इस वचार म दखाई देती है क इ तहास
का नमाण वचार म अंत वरोध क
े फल व प होता है । दाश नक ,नै तक
,राजनी तक और धा मक वचार इ तहास क ग त को नधा रत करते ह।
मा स का ऐ तहा सक भौ तकवाद ह गल क
े वचार क
े वपर त है, य क मा स
ने यह माना क इ तहास का नधारण आ थक प रि थ तय से होता है। जैसे-जैसे
उ पादन क
े साधन बदलते ह, नई तकनीक का आ व कार होता है, उ पादन क
े
संबंध बदलते ह, वैसे- वैसे इ तहास बदलता है, सामािजक, राजनी तक सं थाएं एवं
धा मक- सां कृ तक वचार उन वग क
े हत को त बं बत करते ह, िजनका
उ पादन क
े साधन पर अ धकार होता है। उ पादन क
े साधन और संबंध समाज को
दो वग म वभ त कर देते ह- साधन ह न और साधन संप न वग। इस वग य
यव था म साधन ह न वग अ याय और शोषण का शकार बनता है। मा स क
मा यता थी क पूंजीवाद उ पादन यव था क
े अंतगत शोषण और अ याय चरम
सीमा पर पहुंच जाता है और उसने भ व यवाणी क क इस शोषण को दूर करने क
े
लए साधन ह न वग म वाभा वक प से वग चेतना उ दत होगी जो अंततः ां त
क
े मा यम से पूंजीवाद को समा त कर सा यवाद समाज क थापना करेगी।
पापर, इ तहास, समाज और राजनी त क
े संबंध म इस कार क थापना एवं
भ व यवाणी क
े आलोचक ह और उनक मा यता है क ऐसे दशन म न हत
इ तहास परक ि ट कई आधार पर आलो य है।पापर ने इसक आलोचना
न नां कत आधार पर क है-
1. समाज व ान क
े े म भ व य क
े समाज क
े वषय म भ व यवाणी करना
संभव नह ं है य क मानव का ान समय क
े साथ वक सत और प रव तत होता
रहता है और यह ान सामािजक घटनाओं को भा वत करता है ,ऐसी ि थ त म
भ व य म कौन सी सामािजक घटना घटेगी, इसका नि चत अनुमान नह ं लगाया
जा सकता, हालां क इ तहास क
े वकास क वृ को इं गत कया जा सकता है।
जैसे- मानवीय इ तहास म हम यह वृ देखते ह क समय क
े साथ यादा से
यादा वतं ता, समानता, संप एवं बेहतर तकनीक क ाि त क तरफ मानव
का झान रहा है, कं तु पापर यह मानते ह क यह झान भी सामािजक दशाओं पर
नभर करता है । अ धका धक वतं ता क यह वृ कसी महामार क
े आगमन
या ऐसी तकनीक क
े वकास से बा धत हो सकती है जो सव स ावाद सरकार क
े
नमाण म सहायक हो।
2. समाज वै ा नक क इ तहास परक ि ट िजसक
े अंतगत यह माना जाता है क
इ तहास क घटनाएं क
ु छ पूव नि चत ाकृ तक नयम क
े अनुसार घ टत होती
ह,क
े पापर आलोचक ह और उनक मा यता है क सृि ट तो एक खुल यव था है,
िजसे क ह नि चत नयम क
े अंतगत नह ं बांधा जा सकता हैऔर इसी कारण
मानवीय वचार और काय क
े वषय म कोई नि चत भ व यवाणी नह ं क जा
सकती है। ऐसे म य द समाज वै ा नक क ह ं नि चत सामािजक राजनी तक
स धांत क बात करते ह , तो यह नतांत अता कक एवं अ वै ा नक है।
मा सवाद वचारक का यह दोष है क वे मा स वारा था पत स धांत को
याय संगत ठहराने क
े लए समाज क वा त वक दशाओं क उपे ा करते ह
सावभौ मक एवं सवमा य स धांत क
े प म वीकार करते ह। जैसे- मा स क
े इस
स धांत को गलत स ध करने क
े बजाय क पूंजीवाद यव था म मजदूर म वग
चेतना आने क
े साथ ां त वयं संप न होगी,ले नन ने मा सवाद वचार म
सा यवाद दल का स धांत जोड़कर उसे ासं गक बनाने का यास कया और
नवीन वामपं थय ने वकासशील, कृ ष धान अथ यव था वाले देश म मा सवाद
स धांत को ासं गक बनाने क ि ट से सवहारा वग क एक यापक धारणा
सामने रखी। स धांत और त य क
े साथ इस तरह क
े तोड़ मरोड़ क
े य न क
काल पॉपर आलोचना करते ह।
● बंद समाज सामािजक ग त और ान क
े वकास म बाधक-
सवा धकार वाद क
े वषय म अपने अनुभव क
े आधार पर पॉपर ने यह था पत
कया क ऐसा समाज सामािजक ग त एवं ान क
े वकास म बाधक स ध हुआ
है, य य प अनुशासन, एक पता एवं मू यब धता क
े आधार पर समाज को
संग ठत करने म इससे सहायता अव य मल है। पाटा क
े उदाहरण से पापर ने
यह बताया संपूण सामािजक जीवन पर रा य का नयं ण होने क
े कारण पाटा
सै नक शि त क
े प म तो बहुत यादा वक सत हुआ, कं तु बौ धक और
मानवीय सं कृ त क
े वकास क दशा म वह पीछे रह गया। पापर यह मानते ह क
जातं क
े खुले समाज म मनु य अपनी ता कक वृ और वतं ता क
े कारण
कई बार एकाक पड़ जाता है और वह अपने अि त व क
े त चं तत हो जाता है,
कं तु उसक यह ि थ त सामािजक वकास क
े लए आव यक है, य क समाज
और रा य का वकास ान - व ान क
े वतं वकास पर नभर होता है और इनक
े
वतं वकास क
े लए ता कक वृ का होना आव यक है। खुले समाज म ह
ता ककता को ो सा हत कया जाता है, बंद समाज म नह ं, इस लए ऐसा समाज
सम प म सामािजक ग त और ान क
े वकास म बाधक स ध होता है।
3. ​ जातं एवं खुले समाज का समथन-
सवा धकार वाद यव था क बंद समाज क आलोचना करने क
े बाद पापर ने खुले
समाज क वशेषताओं का उ लेख कया हैऔर समसाम यक व व मे खुले समाज
क
े नमाण क
े लए क
ु छ मू य एवं सं थाओं क आव यकता बताई है। उ ह ने
आधु नक जनतां क समाज को खुले समाज क
े प म देखा है और उ हे
राजनी तक दु नया क सव े ठ सं थाओं क
े प म प रभा षत कया है। आधु नक
उदारवाद लोकतं क वशेषता यह है वहां यि तगत वतं ता का मुखता क
े
साथ स मान कया जाता है और ऐसी यव था म अपनी क मय को वयं ह
शां तपूण ढंग से दूर करने क मता है । आ थक समृ ध को ा त करना इसका
एक अ य गुण है। पापर क मा यता है क सभी तरह क
े ान, िजसम सामािजक
दु नया का ान भी सि म लत ह, वै ा नक प ध त से जुड़े हुए ह तथा वतं ता
एवं सामािजक ग त अंततः वै ा नक प ध त को अपनाकर अिजत कए गए ान
पर नभर है । आधु नक लोकतं इससे प र चत है और इसने व ान एवं ान क
े
पर पर संबंध को तेजी क
े साथ आगे बढ़ाने का काय कया है।
[ अ ] यूनतम जातं - [minimalist Democracy]
राजनी तक स धांत क
े इस आधारभूत न क’ शासन कसे करना चा हए’?
पापर ने जातं क
े वषय म एक नया न उठाया क राजनी तक सं थान का
गठन कस कार कया जाए ता क बुरे और अ म शासक वारा समाज को बहुत
यादा नुकसान पहुंचाए जाने से रोका जा सक
े ’’। जातं इस सम या का समाधान
तुत करता है य क यह बुरे शासक से मुि त का एक अ हंसक, सं थागत एवं
नय मत तर का उपल ध कराता है। ‘’ यह तर का नय मत नवाचन का है। पॉपर
यह तपा दत करते ह क जातं मे भुस ा आम जनता म न हत मानी जाती
है, कं तु यवहार म यहां भी शासन सरकार क
े वारा कया जाता है लोग क
े वारा
नह ं, अतः शासक वारा स ा क
े दु पयोग क संभवना यहाँ भी है, फर भी
जात मे समयानुसार नवाचन क यव था ऐसी संभवन को बहुत हद ताक
रोकती है । उ ह ने उदारवाद जातं का समथन न नां कत आधार पर कया
है-
● जातं म नवाचन या क
े मा यम से जनता बुरे शासक पर नयं ण
था पत करती है।
● पापर वदल य यव था को जातं क
े लए अ धक उपयु त मानते ह,
िजसम नवाचन म हारे हुए राजनी तक दल को आ मालोचना का अवसर
मलता है और वह अपनी गल तय से सीखने को ववश होता है िजसक
े
प रणाम व प अ छ नी तय क
े नमाण को ो साहन मलता है। इसक
े
वपर त आनुपा तक त न ध व क णाल क
े अंतगत बहुत सारे दल का
वकास होता है और कसी भी एक राजनी तक दल का सरकार पर नयं ण
नह ं होता, नवाचक क
े लए भी असमंजस क ि थ त होती है। साथ ह
सरकार कम उ रदाई होती है ।
● कसी अ य राजनी तक यव था क तुलना म जातं म सरकार म
प रवतन अ हंसक तर क
े से हो पाता है।
● पापर को आशा है क जनतां क सं थाएं- व व व यालय, ेस ,
राजनी तक दल, सनेमा ,टेल वजन आ द समय क
े साथ आलोचना मक
चचा को ो सा हत कर अ धक ता कक बनेगी और दूसर क
े ि टकोण को
सुनने- समझने क इ छ
ु क बनेगी।
● जनतं म नाग रक का मु य काय बुरे शासक को हटाना है।
[ब ] सावज नक नी त का उ दे य छोटे-छोटे तर पर सामािजक प रवतन होना
चा हए-[ piecemeal social engineering]
जातं म सावज नक नी त क
े नधारण का उ दे य या होना चा हए और
क
ै से उसे याि वत कया जाना चा हए, इस वषय म पॉपर ने समाज म छोटे-छोटे
तर पर प रवतन क ि ट से सावज नक नी तय को नधा रत करने का सुझाव
दया है। उनक
े अनुसार सामािजक सुधार एक समय म एक सं था म प रवतन पर
क त होना चा हए और यह प रवतन यावहा रक तर पर याि वत कए जाने
यो य होना चा हए। इस कार पापर ने सामािजक अ भयां क क एक नई
धारणा तुत क जो उस का प नक सामािजक अ भयां क क धारणा से नतांत
भ न है िजसक
े अंतगत पूण याय, वा त वक समानता और उ चतर स नता
जैसे आकषक कं तु अमूत ल य को ा त करने पर जोर दया जाता है, जैसा क
लेटो एवं काल मा स क
े चंतन वारा करने का यास कया गया। पापर
आधारभूत सामािजक सम याओं जैसे- गर बी, हंसा, बेरोजगार , पयावरण ास,
आय क असमानता को दूर करने पर बल देते ह और ऐसा तभी हो सकता है जब नई
सामािजक सं थाओं का गठन कया जाए एवं व यमान सं थाओं म सुधार लाया
जाए । धीरे-धीरे सं थाओं म सुधार क
े मा यम से ह सामािजक जीवन क बुराइय
को दूर कया जा सकता है। पॉपर क मा यता है क जैसे भौ तक अ भयां क क
े
े म व यमान मशीन क
े कलपुज म प रवतन कर मशीन क
े नए मॉडल का
वकास कया जाता है, जो पहले वाले क तुलना म अ धक क
ु शल एवं भावी होता
है, वैसे ह सामािजक अ भयां क क
े े म सं थाओं म छोटे-छोटे प रवतन करक
े
उ ह एक नया और भावी प दया जा सकता है। प ट है क पापर सामािजक
प रवतन क
े लए न तो लेट क
े दाश नक राजाओं वारा शासन जैसे यूटो पयन
तर क
े म व वास रखते ह और ना ह मा स क तरह ां त क
े हंसक तर क
े म।
उनक यह धारणा माओ से तुंग क ‘ थाई ां त’ क धारणा से भी भ नता रखती
है िजसक
े अंतगत जीवन क
े सभी े म एक साथ और नरंतर प रवतन करते रहने
क अपील क गई। पॉपर क ि ट म छोटे-छोटे प रवतन का यह तर का को शश
और गलती क या पर आधा रत होने क
े कारण कह ं यादा वै ा नक होता है ।
ाकृ तक व ान म इसी या क
े आधार पर काय कया जाता है। एक स धांत
था पत कया जाता है और उसका पर ण कया जाता है, उसम क मय को तलाश
कर उ ह दूर कया जाता है और एक नया सुधरा हुआ स धांत सामने आता है। यह
च चलता रहता है और मानवता क
े लए अ धक उपयु त स धांत का नमाण
होता रहता है।
[ स ] नकारा मक उपयो गतावाद - [ negative utilitarianism]
सकारा मक उपयो गता वाद स धांत का तपादन करते हुए बथम एवं मल जैसे
वचारको ने ‘ अ धकतम यि तय क
े अ धकतम सुख को’ सावज नक नी तय का
उ दे य बताया था और सुख-दुख मापक स धांत[ felicific calculus] क
े
अनुसार उन काय को करने का नषेध कया था जो दुख कर हो। काल पॉपर ने इस
स धांत का वरोध करते हुए यह तपा दत कया क सावज नक नी तय का
उ दे य दुख नवारण होना चा हए न क स नता म वृ ध य क भौ तक सुख
या स नता म वृ ध क कोई अं तम सीमा नह ं है। एक कार क
े सुख क ाि त
क
े बाद दूसरे सुख क आकां ा बढ़ जाती है। पापर ने इस स धांत को ‘नकारा मक
उपयो गतावाद’ का नाम दया और इसक
े समथन म न नां कत तक दए-
1. नै तक ि ट से मनु य क
े दुख यादा अपील करते ह। कसी दुखी यि त को
देखकर मनु य का मन वत होता है और वह उसक क
ु छ सहायता करक
े संतुि ट
का अनुभव करता है, जब क सामा यतः एक स न यि त क स नता म और
यादा वृ ध करने क चाह नह ं होती है, अतः नै तक ि ट से रा य क
े लए भी
उ चत है क वह सावज नक नी त का नधारण लोग क
े दुख क
े नवारण क
े ल य
को यान म रखते हुए कर। प ट है क राजक य नी तय का नै तक आधार तुत
कर पॉपर ने वयं को लेटो और अर तू जैसे मू यवाद , आदशवाद वचारको क
ेणी म शा मल कर लया।
2. आधु नक युग म स नता एक सै धां तक एवं अवा त वक व तु है।
वा त वक स नता कस व तु को ा त करने या कस काय को करने म है, इसक
े
वषय म कोई सहम त बना पाना क ठन है, कं तु दुख का अनुभव ायः हर यि त
क
े वारा कया जाता है और यह हमेशा से ह मनु य क
े साथ संब ध रहा है ,अतः
दुख कारक प रि थ तय जैसे गर बी, बेरोजगार , स ाधा रयो वारा अ याचार,
यु ध और बीमार आ द वषय पर आसानी से सहम त बनाकर सावज नक नी तय
का नमाण कया जा सकता है।
आलोचना-
काल पोपर् क
े वारा अपने वचार क
े प म मह वपूण तक तुत कए गए ह,
कं तु दाश नक कोहन, हाउस, काल गु ताव हेमपेल , कॉल ऑटो ए पल आ द ने
पोपर् क
े वचार क आलोचना क है। हालां क अपने वचार क आलोचना को
सहजता से वीकार नह ं कया और यह तक दया क ये आलोचनाएं उनक
े
वचार को भल भां त न समझ पाने क
े कारण है। आलोचना क
े मुख आधार
न न वत है-
● आलोचक क ि ट म पॉपर का आलोचना मक तकवाद वै ा नक स धांत
क
े वकास क
े लए पया त नह ं है। पॉपर का तक था क िजस स धांत म
िजतनी अ धक आलोचना क
े मा यम से उसे गलत स ध करने क
संभावना हो ,वह उतना ह वै ा नक स धांत होगा, जब क ‘ वीन दहम
थी सस ‘ क
े अनुसार कोई भी वै ा नक स धांत अनेक प रक पनाओं का
प रणाम होता है और उनम से कसी एक प रक पना का पर ण कर उसको
झूठा स ध कर देना यवहार म संभव नह ं होता । ऐसे म वक प बचता है
क पूरे स धांत को ह गलत स ध कया जाए, कं तु अनुभव यह बताता है
क सम प म कसी स धांत को गलत स ध नह ं कया जा सकता िजस
प म पॉपर सुझाव देते ह । इसका एक अ छा उदाहरण नेप यून और यूरेनस
ह क खोज है िजसक
े मा यम से ‘ सौय मंडल म सात ह क
े स धांत’ को
गलत सा बत कया गया, कं तु सौरमंडल से जुड़े यूटन क
े नयम को गलत
स ध नह ं कया जा सका। इस त य को वयं पापर ने 1934 म अपनी
कृ त ‘लॉिजक ऑफ ड कवर ’ म वीकार कया क एक वै ा नक
आव यक प से अपने वचार का वकास एक नि चत सै धां तक ढांचे क
े
अंतगत ह करता है।
● वै ा नक स धांत क
े पर ण म सांि यक प ध त का योग करते समय
कसी प रक पना को नि चत प से गलत सा बत करना संभव नह ं होता।
● दाश नक जॉन े क मा यता है क य द पापर क
े वै ा नक प ध त क
े
संबंध म वचार को मा यता दान क जाए तो चा स डा वन और अ बट
आइं ट न क
े स धांत वीकाय नह ं हो सकते थे।
● दाश नक और मनोवै ा नक माइकल टर हाक पापर पर यह आरोप लगाते ह
क उ ह ने अपने श क जमन मनोवै ा नक ऑटो से स से वचार हण
कए ह, अतः उनक
े वचार म मौ लकता नह ं है। ऑटो से स क
े वचार
नाजीवाद क
े भय से का शत नह ं हो सक
े थे।
● पापर ने सवा धकार वाद क आलोचना करते हुए समूह क
े वचार को घातक
बताया है। पॉपर का यह वचार आधु नक समुदाय वा दय एवं
बहुसं कृ तवा दय को वीकाय नह ं है, य क वे यि त क
े यि त व क
े
नमाण म समूह एवं सं कृ त क भू मका को क य थान दान करते ह।
इन आलोचनाओं क
े बावजूद पॉपर क
े चंतन म खुले समाज क
े लए जो
आ ह है और वतं ता क
े त जो ती उ क
ं ठा है, उसक
े कारण
समसाम यक राजनी तक चंतन म वे ासं गक बने हुए ह।
References And Suggested Readings
1. Corvi,Roberta,1997,An Introduction to the Thought of Karl
Popper , London,Routledge
2. .Frederic ,Raphel,1999,Popper,New York,Routledge
3. .JeremyShearmur,ThePoliticalThoughtOfKarlPopper,Routle
dge,1996,London
4. Karl Popper, The Open Society And Its Enemies,Princeton
5. Karl Popper,The Logic Of Scientific Discovery
6. Karl Popper On Democracy-From the archives;the open
society and its enemiesrevisited/Democracy in America,
www.economist.com
7. Karl Popper, Stanford Encyclopaedia of
Philosophy,plato.stanford.edu
8. Michael Lessnoff, The Political Philosophy Of Karl
Popper,British Journal Of Political Science,
vol.10,Jan.,1980,Cambridge University Press,http//​www.jstor.org
न-
नबंधा मक
1. जातं एवं खुले समाज क
े संदभ म काल पॉपर क
े वचार का आलोचना मक
मू यांकन क िजए।
2. पॉपर ने सवा धकार वाद राजनी तक यव था क आलोचना कन आधार
पर क है।
3. लेटो ,मा स एवं ह गल क
े वचार क आलोचना पापर ने कन आधार पर
क है, ववेचना क िजए।
व तु न ठ न-
1. पापर ने सवा धकारवाद का दाश नक आधार कसे बताया है।
[ अ ] मा सवाद को [ ब ] लेटो क
े दशन को [ स ] ह गलवाद को [ द ] उ त म
से कसी को नह ं
2. लेटो क
े दशन म सवा धकार वाद न नां कत म से कस दशन को अपनाने क
े
कारण आया ।
[ अ ] पूणतावाद [ ब ] इ तहास वाद [ स ] सारतावाद [ द ] उपरो त सभी
3. काल पॉपर क
े वचार अनुसार न नां कत म से कौन सी यव था बंद समाज का
उदाहरण है।
[ अ ] नाजीवाद [ ब ] पाटा क राजनी तक यव था [ स ] फासीवाद [ द ]
उपयु त सभी
4. पापर वारा राजनी तक स धांत क
े नमाण म कस प ध त को अपनाने पर
जोर दया गया है।
[ अ ] आलोचना मक तक वाद [ ब ] नगमना मक प ध त [ स ] ऐ तहा सक
प ध त [ द ] योगा मक प ध त
5. पापर ने खुले समाज क सं ा कस कार क राजनी तक यव था को दान क
है।
[ अ ] समाजवाद राजनी तक यव था [ ब ] उदारवाद लोकतां क यव था
[ स ] नरंक
ु श तं यव था [ द ] क
ु ल न तं यव था
6. पापर क
े वचार म यूनतम जातं या है।
[ अ ] जनता का शासक को चुनने का अ धकार [ ब ] बुरे शासक को स ा से दूर
रखने क यव था [ स ] कम से कम लोग वारा शासन [ द ] उपयु त सभी
7. पापर ने जातं ीय यव था क शंसा कस आधार पर क है।
[ अ ] शासन म प रवतन शां तपूण और अ हंसक तर क से होना
[ ब ] वतं , ता कक वचार- वमश को ो साहन
[ स ] उपयु त दोन
[ द ] उपयु त म से कोई नह ं
8. पापर ने सावज नक नी त क
े नमाण क
े आधार क
े प म कस स धांत को
तुत कया।
[ अ ] अ धकतम यि तय का अ धकतम सुख
[ब ] दुख नवारण स धांत
[ स ] अ धका धक स नता क ाि त
[ द ] अ पसं यक का क याण
9. पापर ने सामािजक प रवतन हेतु कस रणनी त का सुझाव दया।
[ अ ] सं थाओं म एक-एक कर धीमे- धीमे सुधार
[ब ] सभी सं थाओं म एक साथ सुधार
[ स ] ां त क
े मा यम से प रवतन
[ द ] हंसक ां त क
े मा यम से प रवतन
उ र- 1.ब 2. द 3. द 4.अ 5. ब 6.ब 7. स 8. ब 9. अ

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Karl popper ke rajnitik vichar

  • 1. ​ काल पापर क े राजनी तक वचार [ 1902- 1994 ] https://probaway.files.wordpress.com/2013/06/karl_popper_12.jp g?w=529&h=535 वारा- डॉ टर ममता उपा याय एसो सएट ोफ े सर, राजनी त व ान क ु मार मायावती राजक य म हला नातको र महा व यालय बादलपुर, गौतम बुध नगर, उ र देश
  • 2. उ दे य- तुत क ं टट से न नां कत उ दे य क ाि त संभा वत है- ● काल पापर क े वचार क े संदभ म सामािजक व ान म वै ा नक प ध त क े योग क जानकार ● वै ा नक स धांत क े नमाण म आलोचना मक ि ट क े योगदान का व लेषण ● खुले समाज एवं बंद समाज क वशेषताओं क जानकार ● राजनी तक यव था क े संदभ म काल पॉपर क े वचार का व लेषण ● समसाम यक राजनी तक यव था क े व लेषण क मता का वकास ● आलोचना मक अंत ि ट क े आधार पर वै ा नक राजनी तक स धांत क े नमाण क वृ को ो साहन काल पॉपर बीसवीं शता द क े आि यन टश दाश नक एवं श ा वद ह , जो अपनी आलोचना मक ि ट क े लए जाने जाते ह। पापर मूलतः एक कृ त वै ा नक ह और राजनी त उनक च का वषय नह ं है, जैसा क उ ह ने वयं वीकार कया है, कं तु राजनी त क अ ययन प ध त को वै ा नक बनाने म उनक च अव य रह है और इस संबंध म उ ह ने शा ीय आगमना मक प ध त को पुनः प रभा षत करने का यास कया है। उनक ि ट म एक वै ा नक अ ययन कता का काय सु था पत वै ा नक स धांत क स यता को मा णत करना नह ं है, बि क उसका यास त यगत अ ययन क े आधार पर उन स धांत को गलत स ध कर नए वै ा नक स धांत क थापना होना चा हए।वै ा नक स धांत कभी भी सवमा य, सावभौ मक और अका य नह ं हो सकते,उनक े खंडन क गुंजाइश ह उ ह वै ा नक बनाती है। जो वै ा नक स धांत
  • 3. अं तम होने का दावा करता है वह वै ा नक न होकर ,छ म वै ा नक स धांत होता है। राजनी तक चंतन क ि ट से उनक े वचार का क बंदु सवा धकार वाद राजनी तक यव था का आलोचना मक व लेषण रहा है और उनक छ व एक ऐसे उदारवाद , जातं वाद वचारक क है, िजनक े चंतन म पुनजागरण काल क ता ककता एवं आधु नक मानववाद का सम वय मलता है।उ ह ने जातां क समाज क े खुलेपन क े कारण उसक शंसा क है । े ड रक हाइक, डमैन, जॉज सोरेन जैसे समसाम यक वचारक पर काल पॉपर का भाव प टतः ि टगोचर होता है। जीवन एवं यि त व- काल पापर का ज म 1902 म वयना क े एक म यमवग य प रवार म हुआ था। उनक े पतामह एक यहूद थे, कं तु समय क े साथ सां कृ तक सा मीकरण क या म पापर का प रवार सुधारवाद ईसाई बन गया था। उनक े पता एक बै र टर थे । वयना म वयं को था पत करने क े बाद पॉपर प रवार तेजी क े साथ सामािजक त ठा को ा त करने म सफल रहा और वयना क एक बड़ी लॉ क ं पनी जो वयना क े उदारवाद मेयर राइमंड बल वारा संचा लत थी, म काल पापर क े पता भागीदार बने । पापर क े चाचा भी एक बड़े दाश नक थे। 16 वष क उ म क ू ल को छोड़ देने वाले पापर को बु धजी वय का माहौल वरासत म मला था। अपनी युवाव था म पापर मा सवाद क े त आक षत हुएऔर उस समय मा सवाद वचारधारा को अपनाने वाल ’ सोशल डेमो े टक वकस पाट ऑफ ऑि या’ क े सद य बने । जून 1919 म पाट क े 8 नेताओं क पु लस वारा ह या कए जाने क े बाद काल मा स क े ‘ ऐ तहा सक भौ तकवाद’ क े स धांत से उनका
  • 4. मोहभंग हो गया और उ ह ने इससे छ म वै ा नक स धांत मानकर इस वचारधारा का याग कर दया और आजीवन सामािजक उदारवाद बने रहे। अपने जीवन म क ु छ वष तक उ ह ने ब च क े लए सु वधाय उपल ध कराने का काय कया और अल े ड एडलर क ल नक म क ु छ समय तक ब च क े लए काय कया। कई वष तक अ त थ छा क े प म पढ़ने क े बाद 1922 म उ ह ने वएना यू नव सट म एक साधारण छा क े प म वेश लया और दशन एवं मनो व ान क े े म अपना अ ययन जार रखा। 1928 म मनो व ान क े े म उ ह ने पीएचडी क उपा ध ा त क एवं मा य मक क ू ल म ग णत एवं भौ तक व ान क े अ यापक क े प म काय कया । 1930 म अपने सहकम अ ना हे नंगर से उ ह ने ववाह कया । नाजीवाद क े उदय से भया ांत होकर उ ह ने रा क े समय का योग अपनी पहल पु तक ‘द टू फ ं डामटल ॉ ल स ऑफ द योर ऑफ नॉलेज’ क े लेखन म कया, िजसक े काशन क े बाद उ ह शै णक जगत म थान ा त होने क आशा थी, जो उस समय यहूद लोग क े लए एक सुर त प रवेश क थापना का मा यम था। हालां क यह पु तक का शत नह ं हो पाई। 1935 म अ ययन अवकाश लेकर वे ेट टेन चले गए। 1937 म पॉपर यूजीलड चले गए जहां पर कटरबर यू नव सट कॉलेज म दशन क या याता बने। यहां रहते हुए उ ह ने सु स ध ंथ ‘ओपन सोसायट एंड इ स एनीमीज’ क रचना क । वतीय व व यु ध क े बाद ‘लंदन क ू ल ऑफ़ इकोनॉ म स’ म उ ह ने र डर क े पद को सुशो भत कया और 1949 म तकशा और वै ा नक प ध त क े ोफ े सर क े प म नयु त हुए। 1969 मे उ ह ने शै णक जीवन से अवकाश ा त कया और आजीवन बौ धक ग त व धय म संल न रहे। सतंबर 1994 म कसर से उनक मृ यु हुई। पॉपर क ह त ल खत पांडु ल पया टैनफोड यू नव सट म सुर त रखी ग । लेगफ़ोट यू नव सट म काल पॉपर का पु तकालय है िजसम उनका बहुमू य लेखन सुर त है। अपने जीवन काल म पापर ने बहुत सारे स मान और पुर कार ा त कए जैसे ‘ यूनाइटेड नेशंस शां त
  • 5. पुर कार’, ‘ लि पनकॉट अवाड ऑफ अमे रकन पॉल टकल साइंस एसो सएशन’,इंटरनेशनल एक े डमी ऑफ यूम नजम वारा पुर कार और टश महारानी वीन ए लजाबेथ सेक ं ड वारा द गई ‘नाइटहुड क उपा ध’ आ द। भाव- पॉपर क े चंतन पर सुकरात,अर तु, कांट , डे करट ज़ , शॉपेनहावेर , क गाड, आइं ट न ,हाइक, रसल, वक, मल , यूम आ द का भाव है। रचनाएं- ● ओपन सोसायट एंड इ स एनीमीज[ 1945] ● लॉिजक ऑफ साइं ट फक ड कवर [ 1959] ● क ं जे चर एंड र यूटेशन; द ोथ ऑफ साइं ट फक नॉलेज [ 1963] ● द पावट ऑफ ह टोर सीजम [ 1961] ● ऑ जेि टव नॉलेज; एन इवो यूशनर अ ोच [ 1972] ● अन एंडेड वे ट; एन इंटेले चुअल ऑटोबायो ाफ [ 1976] मुख राजनी तक वचार- 1. आलोचना मक तकवाद - [ critical rationalism] पापर क े सभी वचार का आधार आलोचना मक तक वाद का स धांत है, िजसक े अनुसार उ ह ने व ान और वै ा नक प ध त को भं न ि टकोण से प रभा षत कया है। अपनी आलोचना मक ि ट क े अनुसार पापर शा ीय ढंग से व ान को िजस प म प रभा षत कया जाता है, उसे अ वीकार करते ह। पारंप रक प म वै ा नक प ध त को त यपरक एवं अवलोकन पर आधा रत होने क े कारण सवमा य स य क े प म वीकार कया जाता है और इस प ध त क े
  • 6. आधार पर िजन वै ा नक स धांत का नमाण कया जाता है, उ ह अं तम मान लया जाता है। ाकृ तक व ान क े स धांत और सामािजक व ान क े स धांत दोन क े वषय म यह स य है। पापर क मा यता है क कोई भी वै ा नक स धांत अं तम नह ं होता, य क उसक े खंडन क गुंजाइश हमेशा बनी रहती है और वा तव म यह वै ा नक वृ का योतक है क कसी स धांत को भ व य म खं डत कए जाने क संभावना बनी रहे। आइं ट न जैसे वै ा नक को पापर इस लए स मान देते थे य क वयं आइं ट न ने िजस सापे ता का स धांत दया, उसे अं तम नह ं माना। पापर यह मानते ह क िजस स धांत म िजतना अ धक उसका वरोध कए जाने क संभावना होती है, वह उतना ह वै ा नक होता है और िजस स धांत को अं तम मान लया जाता है, वह छ म वै ा नक स धांत होता है। अतः सामािजक स धांत कार को भी आलोचना मक वृ को ो सा हत करते हुए कसी भी सामािजक -राजनी तक स धांत क मा यताओं को खं डत कए जाने क संभावना तलाशनी चा हए। अपने इस वचार क े आधार पर पापर ने सभी च लत सामािजक और ाकृ तक व ान क े स धांत को ता ककता और आलोचना क कसौट पर कसने का यास कया।चाहे वह डा वन का ‘ वकासवाद’ हो या ‘सवा धकार वाद यव था’ का बंद समाज। इस कार नए ि टकोण से व ान और वै ा नक प ध त को प रभा षत कर पापर ने व ान और राजनी त क एक कृ त ि ट तुत क । 2. सवा धकार वाद यव था/बंद समाज क आलोचना - आलोचना मक तक वाद क े आधार पर पॉपर ने सवा धकार वाद राजनी तक यव था क आलोचना तुत क है। मूलतः यहूद होने और नाजीवाद और फासीवाद जैसी सवा धकार वाद यव थाओं का य अनुभव होने क े कारण पापर ता कक आधार पर इसक आलोचना करते ह और इससे बंद समाज का नाम
  • 7. देते ह । अपनी मह वपूण कृ तय ‘पावट ऑफ ह टॉ र सजम’ एवं ‘ओपन सोसायट एंड इ स एनीमीज’ मे उ ह ने सवा धकार वाद यव था क े ऐ तहा सक वकास और उसक वशेषताओं पर व तारपूवक काश डाला है। इस संबंध म उनक े वचार को न नां कत शीषक क े अंतगत रखा जा सकता है- ● सवा धकारवाद खुले समाज का वरोधी है- सवा धकार वाद को बंद समाज का दजा देते हुए पॉपर यह मानते ह क ऐसे समाज म खुले समाज क वशेषताएं नह ं पाई जाती है य क यहाँ आलोचना मक भावना को हतो सा हत कया जाता है, जो खुले समाज का एक अ नवाय ल ण होता है। पॉपर यह मानते ह क कसी वषय पर मु त भाव से व लेषण को ो सा हत करने और नवाचक िज ासाओं को आमं त करने से सामािजक और राजनी तक ग त ती ग त से होती है और ऐसी यव था म ाकृ तक व ान को भी समृ ध होने का अवसर ा त होता है। उ लेखनीय है क पॉपर क े इस वचार पर 19वीं शता द क े उदारवाद वचारक जे. एस . मल का भाव दखाई देता है, िजसने वैचा रक वतं ता को सामािजक ग त क े लए आव यक बताया था। ● सवा धकार वाद क जड़े ाचीन यूनान म है- पापर क े अनुसार नाजीवाद और फासीवाद क े प म ‘‘सवा धकार वाद बीसवीं शता द क े लए कोई अनोखी वचारधारा नह ं है, बि क इसक परंपरा ाचीन है और यह उतनी ह पुरानी है, िजतनी वयं मानव स यता’’। अपनी पु तक ‘ओपन सोसाइट ’ म सवा धकार वाद क जड़ को पॉपर ाचीन यूनान म ढूंढते ह। हालां क पांचवी शता द ईसा पूव क े लोकताि क एथस नामक नगर रा य म उ ह ने इ तहास का पहला ‘खुला समाज’ देखा जहां क े नाग रक अपनी सं थाओं और मू य क े त आलोचना मक ि ट रखते थे और इसका सबसे अ छा उदाहरण सुकरात है। कं तु त यावाद ताकत ने इस आलोचना मक ि ट को क ु चलकर कठोर वगगत सोपान एवं आलोचना से परे राजनी तक स ा क थापना कर
  • 8. एथस को एक जनजातीय समाज म बदल दया, िजसक े मू य और परंपराओं को चुनौती नह ं द जा सकती थी। पापर ने लेटो पर सवा धकार वाद का दाश नक आधार तैयार करने का आरोप लगाया है। पापर क मा यता है क अपने गु सुकरात क आलोचना मक ि ट क े साथ व वासघात करते हुए लेटो ने अपने ंथ ‘ रपि लक’ म एक ऐसी राजनी तक यव था क क पना क , िजसम सामािजक राजनी तक जीवन पर शासक का नयं ण होगा और समाज क सामािजक आव यकताओं क े सम यि तगत वतं ता और अ धकार क ब ल चढ़ा द जाएगी। उ लेखनीय है क लेटो ने िजस दाश नक शासक क े नयं ण म आदश रा य क क पना क , वह वयं अपनी यि तगत वतं ता खोकर, प रवार और संप क े अ धकार से वं चत होकर शासन स ा का योग करेगा और सामािजक याय क ाि त क े लए समाज क े सभी वग को वग य दा य व क े दायरे म रहकर काय करना होगा। पॉपर यह भी मानते ह क लेटो का यह यूटो पयन वचार क ु छ अंश तक पाटा क राजनी तक यव था से भा वत था। वह पाटा जो पेलोपॉ ने शयन यु ध म एथस का श ु था और जो बंद समाज का एक उदाहरण था । आंत रक ि थरता और सै नक शि त ा त करना इस रा य का मु य उ दे य था, िजसम हमेशा ह यि तगत हत क तुलना म सामू हक हत को मुखता दान क गई और यि त पर समुदाय का कठोर नयं ण था पत कया गया। वहाँ क श ा यव था का उ दे य भी नाग रक को सै नक श ण दान करना था ता क ऐसे यो धा तैयार कए जा सक े जो रा य क े त वफादार हो। इस कार पॉपर यह मानते ह क यह कोई संयोग नह ं था क बीसवीं शता द म नाजीवाद और फासीवाद का वकास हुआ । ये यव थाएं भी कसी न कसी प म पाटा क यव था से भा वत थीं ।
  • 9. ● ​सवा धकारवाद को पूणतावाद [holism] सारतावाद [ essentialism] और इ तहासवाद [historicism] जैसी दाश नक धारणाओं ने ो सा हत कया- पापर ​क मा यता है क लेटो जैसे दाश नक को बंद समाज का समथक बनाने क े पीछे तीन दाश नक धारणाओं का योगदान है। पहल धारणा ‘पूणता ‘ क है िजसक े अंतगत यह माना जाता है क कसी भी वषय या व तु को समझने क े लए उसे सम या पूण प म देखना आव यक है । यह पूणता एक जै वक संरचना, पयावरण यव था, अथ यव था या सां कृ तक यव था क े प म हो सकती है। लेटो क े चंतन म पूणता क धारणा उसक े रा य दशन म मलती है, जब वह रा य को एक पूण संगठन का दजा देता है और यि तय को उसक े अंग मानता है। संपूण रा य से जुड़े होने पर ह यि त का वजूद संभव है, उस से पृथक होकर नह ं। पॉपर इसे खतरनाक धारणा मानते ह और यह तपा दत करते ह क समूह का वचार चाहे वह रा य हो, समाज हो, रा हो या जा त हो, सवा धकारवाद को ो सा हत करने म सहायक है य क इन समूह क े नाम पर यि त क े अि त व और उसक वतं ता को दूसरे दज का बना दया जाता है। नािजय ने अपनी अ याचार नी तय को यायसंगत ठहराने क े लए आय जा त क े ठता पर बल दया जब क सो वयत संघ म सा यवा दय ने वग य हत क र ा क े लए यि तगत हत क ब ल दे द । सवा धकारवाद को ो सा हत करने वाल दूसर धारणा मेथाडोलॉिजकल एस शय ल म क है िजसक े समथक यह मानते ह कसी व तु क वा त वक कृ त या उसक े सार त व को ढूंढना व ान का काय है । इस ि टकोण को अपनाते हुए रा य क वा त वक कृ त को ढूंढने क े यास म लेटो ने यह पाया क रा य को समझने क े लए उसक े सम व प को समझना ज र है और रा य क वृ पतन क ओर उ मुख है,अथात नगर रा य थाई नह ं है। इ तहास म एक दन ऐसा अव य आएगा जब नगर रा य का अि त व समा त हो जाएगा। अतः ऐसे
  • 10. राजनी तक स धांत क खोज क जानी चा हए, जो इस पतन क या को धीमा कर सक े और ऐसी ह खोज क या म लेट क े वारा दाश नक राजाओं क े शासन का स धांत तुत कया गया िजसे पॉपर सवा धकार वाद रा य क सं ा देते ह। तीसर दाश नक धारणा ‘ ह टॉ र सजम’ अथात ‘इ तहास परकतावाद द’ क है, िजसक मा यता है क इ तहास क येक घटना ाकृ तक नयम से संचा लत होती है,और सामािजक राजनी तक दशन का उ दे य इन नयम क खोज कर भ व य क े समाज क े वषय म अनुमान लगाना है । पापर क मा यता है क इ तहास वाद क यह वृ भी पुरानी है। पांचवी शता द ईसा पूव म यूनान क े नगर रा य क े संदभ म इसे य त करते हुए माना गया था क रा य म प रवतन च य ग त से होता है िजसे लेटो ने ‘पतन क े स धांत’ क े प म प रभा षत कया और यह माना क एक आदश राजत वकृ त होकर वग तं म बदलता है और वग तं जातं म । अंततः यह नरंक ु श तं म बदलता है। इस कार यह तीन धारणाएं सवा धकारवाद क े वकास का आधार बनी। लेटो क े समान अर तु क े चंतन म भी पापर ने सवा धकारवाद क े दशन कए। हालां क वे यह मानते ह क लेटो और अर तू क े चंतन म भेद है। लेटो ने जहां रा य क े पतन को उसक वाभा वक वृ माना, वह अर तु ने रा य म नै तक वकास क संभावना को देखा और उसक या या ‘सो दे यता क े स धांत’ क े आधार पर क तथा यह माना क कसी रा य का वकास उसक छपी हुई अ वक सत सार वृ वारा नधा रत कया जाता है। ● ह गल एवं मा स क इ तहास परक ि ट क े कारण आलोचना- पॉपर् ने ह गल और मा स क े वचार मे भी सवा धकारवाद क े दशन कए और इस कारण वे उनक भी आलोचना करते ह । ह गल और मा स दोन क े दशन म इ तहास का क य थान है। पापर ने इन दोन दशन क उनक े इ तहास परक ि टकोण क े कारण आलोचना क है और यह तपा दत कया है क समाज
  • 11. व ान क े े म ऐसे दशन का तपादन खतरनाक स ध हो सकता है। ह गल क े दशन म इ तहास परक ि ट उसक े इस वचार म दखाई देती है क इ तहास का नमाण वचार म अंत वरोध क े फल व प होता है । दाश नक ,नै तक ,राजनी तक और धा मक वचार इ तहास क ग त को नधा रत करते ह। मा स का ऐ तहा सक भौ तकवाद ह गल क े वचार क े वपर त है, य क मा स ने यह माना क इ तहास का नधारण आ थक प रि थ तय से होता है। जैसे-जैसे उ पादन क े साधन बदलते ह, नई तकनीक का आ व कार होता है, उ पादन क े संबंध बदलते ह, वैसे- वैसे इ तहास बदलता है, सामािजक, राजनी तक सं थाएं एवं धा मक- सां कृ तक वचार उन वग क े हत को त बं बत करते ह, िजनका उ पादन क े साधन पर अ धकार होता है। उ पादन क े साधन और संबंध समाज को दो वग म वभ त कर देते ह- साधन ह न और साधन संप न वग। इस वग य यव था म साधन ह न वग अ याय और शोषण का शकार बनता है। मा स क मा यता थी क पूंजीवाद उ पादन यव था क े अंतगत शोषण और अ याय चरम सीमा पर पहुंच जाता है और उसने भ व यवाणी क क इस शोषण को दूर करने क े लए साधन ह न वग म वाभा वक प से वग चेतना उ दत होगी जो अंततः ां त क े मा यम से पूंजीवाद को समा त कर सा यवाद समाज क थापना करेगी। पापर, इ तहास, समाज और राजनी त क े संबंध म इस कार क थापना एवं भ व यवाणी क े आलोचक ह और उनक मा यता है क ऐसे दशन म न हत इ तहास परक ि ट कई आधार पर आलो य है।पापर ने इसक आलोचना न नां कत आधार पर क है- 1. समाज व ान क े े म भ व य क े समाज क े वषय म भ व यवाणी करना संभव नह ं है य क मानव का ान समय क े साथ वक सत और प रव तत होता रहता है और यह ान सामािजक घटनाओं को भा वत करता है ,ऐसी ि थ त म भ व य म कौन सी सामािजक घटना घटेगी, इसका नि चत अनुमान नह ं लगाया जा सकता, हालां क इ तहास क े वकास क वृ को इं गत कया जा सकता है।
  • 12. जैसे- मानवीय इ तहास म हम यह वृ देखते ह क समय क े साथ यादा से यादा वतं ता, समानता, संप एवं बेहतर तकनीक क ाि त क तरफ मानव का झान रहा है, कं तु पापर यह मानते ह क यह झान भी सामािजक दशाओं पर नभर करता है । अ धका धक वतं ता क यह वृ कसी महामार क े आगमन या ऐसी तकनीक क े वकास से बा धत हो सकती है जो सव स ावाद सरकार क े नमाण म सहायक हो। 2. समाज वै ा नक क इ तहास परक ि ट िजसक े अंतगत यह माना जाता है क इ तहास क घटनाएं क ु छ पूव नि चत ाकृ तक नयम क े अनुसार घ टत होती ह,क े पापर आलोचक ह और उनक मा यता है क सृि ट तो एक खुल यव था है, िजसे क ह नि चत नयम क े अंतगत नह ं बांधा जा सकता हैऔर इसी कारण मानवीय वचार और काय क े वषय म कोई नि चत भ व यवाणी नह ं क जा सकती है। ऐसे म य द समाज वै ा नक क ह ं नि चत सामािजक राजनी तक स धांत क बात करते ह , तो यह नतांत अता कक एवं अ वै ा नक है। मा सवाद वचारक का यह दोष है क वे मा स वारा था पत स धांत को याय संगत ठहराने क े लए समाज क वा त वक दशाओं क उपे ा करते ह सावभौ मक एवं सवमा य स धांत क े प म वीकार करते ह। जैसे- मा स क े इस स धांत को गलत स ध करने क े बजाय क पूंजीवाद यव था म मजदूर म वग चेतना आने क े साथ ां त वयं संप न होगी,ले नन ने मा सवाद वचार म सा यवाद दल का स धांत जोड़कर उसे ासं गक बनाने का यास कया और नवीन वामपं थय ने वकासशील, कृ ष धान अथ यव था वाले देश म मा सवाद स धांत को ासं गक बनाने क ि ट से सवहारा वग क एक यापक धारणा सामने रखी। स धांत और त य क े साथ इस तरह क े तोड़ मरोड़ क े य न क काल पॉपर आलोचना करते ह। ● बंद समाज सामािजक ग त और ान क े वकास म बाधक-
  • 13. सवा धकार वाद क े वषय म अपने अनुभव क े आधार पर पॉपर ने यह था पत कया क ऐसा समाज सामािजक ग त एवं ान क े वकास म बाधक स ध हुआ है, य य प अनुशासन, एक पता एवं मू यब धता क े आधार पर समाज को संग ठत करने म इससे सहायता अव य मल है। पाटा क े उदाहरण से पापर ने यह बताया संपूण सामािजक जीवन पर रा य का नयं ण होने क े कारण पाटा सै नक शि त क े प म तो बहुत यादा वक सत हुआ, कं तु बौ धक और मानवीय सं कृ त क े वकास क दशा म वह पीछे रह गया। पापर यह मानते ह क जातं क े खुले समाज म मनु य अपनी ता कक वृ और वतं ता क े कारण कई बार एकाक पड़ जाता है और वह अपने अि त व क े त चं तत हो जाता है, कं तु उसक यह ि थ त सामािजक वकास क े लए आव यक है, य क समाज और रा य का वकास ान - व ान क े वतं वकास पर नभर होता है और इनक े वतं वकास क े लए ता कक वृ का होना आव यक है। खुले समाज म ह ता ककता को ो सा हत कया जाता है, बंद समाज म नह ं, इस लए ऐसा समाज सम प म सामािजक ग त और ान क े वकास म बाधक स ध होता है। 3. ​ जातं एवं खुले समाज का समथन- सवा धकार वाद यव था क बंद समाज क आलोचना करने क े बाद पापर ने खुले समाज क वशेषताओं का उ लेख कया हैऔर समसाम यक व व मे खुले समाज क े नमाण क े लए क ु छ मू य एवं सं थाओं क आव यकता बताई है। उ ह ने आधु नक जनतां क समाज को खुले समाज क े प म देखा है और उ हे राजनी तक दु नया क सव े ठ सं थाओं क े प म प रभा षत कया है। आधु नक उदारवाद लोकतं क वशेषता यह है वहां यि तगत वतं ता का मुखता क े साथ स मान कया जाता है और ऐसी यव था म अपनी क मय को वयं ह
  • 14. शां तपूण ढंग से दूर करने क मता है । आ थक समृ ध को ा त करना इसका एक अ य गुण है। पापर क मा यता है क सभी तरह क े ान, िजसम सामािजक दु नया का ान भी सि म लत ह, वै ा नक प ध त से जुड़े हुए ह तथा वतं ता एवं सामािजक ग त अंततः वै ा नक प ध त को अपनाकर अिजत कए गए ान पर नभर है । आधु नक लोकतं इससे प र चत है और इसने व ान एवं ान क े पर पर संबंध को तेजी क े साथ आगे बढ़ाने का काय कया है। [ अ ] यूनतम जातं - [minimalist Democracy] राजनी तक स धांत क े इस आधारभूत न क’ शासन कसे करना चा हए’? पापर ने जातं क े वषय म एक नया न उठाया क राजनी तक सं थान का गठन कस कार कया जाए ता क बुरे और अ म शासक वारा समाज को बहुत यादा नुकसान पहुंचाए जाने से रोका जा सक े ’’। जातं इस सम या का समाधान तुत करता है य क यह बुरे शासक से मुि त का एक अ हंसक, सं थागत एवं नय मत तर का उपल ध कराता है। ‘’ यह तर का नय मत नवाचन का है। पॉपर यह तपा दत करते ह क जातं मे भुस ा आम जनता म न हत मानी जाती है, कं तु यवहार म यहां भी शासन सरकार क े वारा कया जाता है लोग क े वारा नह ं, अतः शासक वारा स ा क े दु पयोग क संभवना यहाँ भी है, फर भी जात मे समयानुसार नवाचन क यव था ऐसी संभवन को बहुत हद ताक रोकती है । उ ह ने उदारवाद जातं का समथन न नां कत आधार पर कया है- ● जातं म नवाचन या क े मा यम से जनता बुरे शासक पर नयं ण था पत करती है। ● पापर वदल य यव था को जातं क े लए अ धक उपयु त मानते ह, िजसम नवाचन म हारे हुए राजनी तक दल को आ मालोचना का अवसर मलता है और वह अपनी गल तय से सीखने को ववश होता है िजसक े प रणाम व प अ छ नी तय क े नमाण को ो साहन मलता है। इसक े
  • 15. वपर त आनुपा तक त न ध व क णाल क े अंतगत बहुत सारे दल का वकास होता है और कसी भी एक राजनी तक दल का सरकार पर नयं ण नह ं होता, नवाचक क े लए भी असमंजस क ि थ त होती है। साथ ह सरकार कम उ रदाई होती है । ● कसी अ य राजनी तक यव था क तुलना म जातं म सरकार म प रवतन अ हंसक तर क े से हो पाता है। ● पापर को आशा है क जनतां क सं थाएं- व व व यालय, ेस , राजनी तक दल, सनेमा ,टेल वजन आ द समय क े साथ आलोचना मक चचा को ो सा हत कर अ धक ता कक बनेगी और दूसर क े ि टकोण को सुनने- समझने क इ छ ु क बनेगी। ● जनतं म नाग रक का मु य काय बुरे शासक को हटाना है। [ब ] सावज नक नी त का उ दे य छोटे-छोटे तर पर सामािजक प रवतन होना चा हए-[ piecemeal social engineering] जातं म सावज नक नी त क े नधारण का उ दे य या होना चा हए और क ै से उसे याि वत कया जाना चा हए, इस वषय म पॉपर ने समाज म छोटे-छोटे तर पर प रवतन क ि ट से सावज नक नी तय को नधा रत करने का सुझाव दया है। उनक े अनुसार सामािजक सुधार एक समय म एक सं था म प रवतन पर क त होना चा हए और यह प रवतन यावहा रक तर पर याि वत कए जाने यो य होना चा हए। इस कार पापर ने सामािजक अ भयां क क एक नई धारणा तुत क जो उस का प नक सामािजक अ भयां क क धारणा से नतांत भ न है िजसक े अंतगत पूण याय, वा त वक समानता और उ चतर स नता जैसे आकषक कं तु अमूत ल य को ा त करने पर जोर दया जाता है, जैसा क लेटो एवं काल मा स क े चंतन वारा करने का यास कया गया। पापर आधारभूत सामािजक सम याओं जैसे- गर बी, हंसा, बेरोजगार , पयावरण ास,
  • 16. आय क असमानता को दूर करने पर बल देते ह और ऐसा तभी हो सकता है जब नई सामािजक सं थाओं का गठन कया जाए एवं व यमान सं थाओं म सुधार लाया जाए । धीरे-धीरे सं थाओं म सुधार क े मा यम से ह सामािजक जीवन क बुराइय को दूर कया जा सकता है। पॉपर क मा यता है क जैसे भौ तक अ भयां क क े े म व यमान मशीन क े कलपुज म प रवतन कर मशीन क े नए मॉडल का वकास कया जाता है, जो पहले वाले क तुलना म अ धक क ु शल एवं भावी होता है, वैसे ह सामािजक अ भयां क क े े म सं थाओं म छोटे-छोटे प रवतन करक े उ ह एक नया और भावी प दया जा सकता है। प ट है क पापर सामािजक प रवतन क े लए न तो लेट क े दाश नक राजाओं वारा शासन जैसे यूटो पयन तर क े म व वास रखते ह और ना ह मा स क तरह ां त क े हंसक तर क े म। उनक यह धारणा माओ से तुंग क ‘ थाई ां त’ क धारणा से भी भ नता रखती है िजसक े अंतगत जीवन क े सभी े म एक साथ और नरंतर प रवतन करते रहने क अपील क गई। पॉपर क ि ट म छोटे-छोटे प रवतन का यह तर का को शश और गलती क या पर आधा रत होने क े कारण कह ं यादा वै ा नक होता है । ाकृ तक व ान म इसी या क े आधार पर काय कया जाता है। एक स धांत था पत कया जाता है और उसका पर ण कया जाता है, उसम क मय को तलाश कर उ ह दूर कया जाता है और एक नया सुधरा हुआ स धांत सामने आता है। यह च चलता रहता है और मानवता क े लए अ धक उपयु त स धांत का नमाण होता रहता है। [ स ] नकारा मक उपयो गतावाद - [ negative utilitarianism] सकारा मक उपयो गता वाद स धांत का तपादन करते हुए बथम एवं मल जैसे वचारको ने ‘ अ धकतम यि तय क े अ धकतम सुख को’ सावज नक नी तय का उ दे य बताया था और सुख-दुख मापक स धांत[ felicific calculus] क े अनुसार उन काय को करने का नषेध कया था जो दुख कर हो। काल पॉपर ने इस
  • 17. स धांत का वरोध करते हुए यह तपा दत कया क सावज नक नी तय का उ दे य दुख नवारण होना चा हए न क स नता म वृ ध य क भौ तक सुख या स नता म वृ ध क कोई अं तम सीमा नह ं है। एक कार क े सुख क ाि त क े बाद दूसरे सुख क आकां ा बढ़ जाती है। पापर ने इस स धांत को ‘नकारा मक उपयो गतावाद’ का नाम दया और इसक े समथन म न नां कत तक दए- 1. नै तक ि ट से मनु य क े दुख यादा अपील करते ह। कसी दुखी यि त को देखकर मनु य का मन वत होता है और वह उसक क ु छ सहायता करक े संतुि ट का अनुभव करता है, जब क सामा यतः एक स न यि त क स नता म और यादा वृ ध करने क चाह नह ं होती है, अतः नै तक ि ट से रा य क े लए भी उ चत है क वह सावज नक नी त का नधारण लोग क े दुख क े नवारण क े ल य को यान म रखते हुए कर। प ट है क राजक य नी तय का नै तक आधार तुत कर पॉपर ने वयं को लेटो और अर तू जैसे मू यवाद , आदशवाद वचारको क ेणी म शा मल कर लया। 2. आधु नक युग म स नता एक सै धां तक एवं अवा त वक व तु है। वा त वक स नता कस व तु को ा त करने या कस काय को करने म है, इसक े वषय म कोई सहम त बना पाना क ठन है, कं तु दुख का अनुभव ायः हर यि त क े वारा कया जाता है और यह हमेशा से ह मनु य क े साथ संब ध रहा है ,अतः दुख कारक प रि थ तय जैसे गर बी, बेरोजगार , स ाधा रयो वारा अ याचार, यु ध और बीमार आ द वषय पर आसानी से सहम त बनाकर सावज नक नी तय का नमाण कया जा सकता है। आलोचना- काल पोपर् क े वारा अपने वचार क े प म मह वपूण तक तुत कए गए ह, कं तु दाश नक कोहन, हाउस, काल गु ताव हेमपेल , कॉल ऑटो ए पल आ द ने पोपर् क े वचार क आलोचना क है। हालां क अपने वचार क आलोचना को सहजता से वीकार नह ं कया और यह तक दया क ये आलोचनाएं उनक े
  • 18. वचार को भल भां त न समझ पाने क े कारण है। आलोचना क े मुख आधार न न वत है- ● आलोचक क ि ट म पॉपर का आलोचना मक तकवाद वै ा नक स धांत क े वकास क े लए पया त नह ं है। पॉपर का तक था क िजस स धांत म िजतनी अ धक आलोचना क े मा यम से उसे गलत स ध करने क संभावना हो ,वह उतना ह वै ा नक स धांत होगा, जब क ‘ वीन दहम थी सस ‘ क े अनुसार कोई भी वै ा नक स धांत अनेक प रक पनाओं का प रणाम होता है और उनम से कसी एक प रक पना का पर ण कर उसको झूठा स ध कर देना यवहार म संभव नह ं होता । ऐसे म वक प बचता है क पूरे स धांत को ह गलत स ध कया जाए, कं तु अनुभव यह बताता है क सम प म कसी स धांत को गलत स ध नह ं कया जा सकता िजस प म पॉपर सुझाव देते ह । इसका एक अ छा उदाहरण नेप यून और यूरेनस ह क खोज है िजसक े मा यम से ‘ सौय मंडल म सात ह क े स धांत’ को गलत सा बत कया गया, कं तु सौरमंडल से जुड़े यूटन क े नयम को गलत स ध नह ं कया जा सका। इस त य को वयं पापर ने 1934 म अपनी कृ त ‘लॉिजक ऑफ ड कवर ’ म वीकार कया क एक वै ा नक आव यक प से अपने वचार का वकास एक नि चत सै धां तक ढांचे क े अंतगत ह करता है। ● वै ा नक स धांत क े पर ण म सांि यक प ध त का योग करते समय कसी प रक पना को नि चत प से गलत सा बत करना संभव नह ं होता। ● दाश नक जॉन े क मा यता है क य द पापर क े वै ा नक प ध त क े संबंध म वचार को मा यता दान क जाए तो चा स डा वन और अ बट आइं ट न क े स धांत वीकाय नह ं हो सकते थे। ● दाश नक और मनोवै ा नक माइकल टर हाक पापर पर यह आरोप लगाते ह क उ ह ने अपने श क जमन मनोवै ा नक ऑटो से स से वचार हण
  • 19. कए ह, अतः उनक े वचार म मौ लकता नह ं है। ऑटो से स क े वचार नाजीवाद क े भय से का शत नह ं हो सक े थे। ● पापर ने सवा धकार वाद क आलोचना करते हुए समूह क े वचार को घातक बताया है। पॉपर का यह वचार आधु नक समुदाय वा दय एवं बहुसं कृ तवा दय को वीकाय नह ं है, य क वे यि त क े यि त व क े नमाण म समूह एवं सं कृ त क भू मका को क य थान दान करते ह। इन आलोचनाओं क े बावजूद पॉपर क े चंतन म खुले समाज क े लए जो आ ह है और वतं ता क े त जो ती उ क ं ठा है, उसक े कारण समसाम यक राजनी तक चंतन म वे ासं गक बने हुए ह। References And Suggested Readings 1. Corvi,Roberta,1997,An Introduction to the Thought of Karl Popper , London,Routledge 2. .Frederic ,Raphel,1999,Popper,New York,Routledge 3. .JeremyShearmur,ThePoliticalThoughtOfKarlPopper,Routle dge,1996,London 4. Karl Popper, The Open Society And Its Enemies,Princeton 5. Karl Popper,The Logic Of Scientific Discovery 6. Karl Popper On Democracy-From the archives;the open society and its enemiesrevisited/Democracy in America, www.economist.com 7. Karl Popper, Stanford Encyclopaedia of Philosophy,plato.stanford.edu
  • 20. 8. Michael Lessnoff, The Political Philosophy Of Karl Popper,British Journal Of Political Science, vol.10,Jan.,1980,Cambridge University Press,http//​www.jstor.org न- नबंधा मक 1. जातं एवं खुले समाज क े संदभ म काल पॉपर क े वचार का आलोचना मक मू यांकन क िजए। 2. पॉपर ने सवा धकार वाद राजनी तक यव था क आलोचना कन आधार पर क है। 3. लेटो ,मा स एवं ह गल क े वचार क आलोचना पापर ने कन आधार पर क है, ववेचना क िजए। व तु न ठ न- 1. पापर ने सवा धकारवाद का दाश नक आधार कसे बताया है। [ अ ] मा सवाद को [ ब ] लेटो क े दशन को [ स ] ह गलवाद को [ द ] उ त म से कसी को नह ं 2. लेटो क े दशन म सवा धकार वाद न नां कत म से कस दशन को अपनाने क े कारण आया । [ अ ] पूणतावाद [ ब ] इ तहास वाद [ स ] सारतावाद [ द ] उपरो त सभी 3. काल पॉपर क े वचार अनुसार न नां कत म से कौन सी यव था बंद समाज का उदाहरण है। [ अ ] नाजीवाद [ ब ] पाटा क राजनी तक यव था [ स ] फासीवाद [ द ] उपयु त सभी 4. पापर वारा राजनी तक स धांत क े नमाण म कस प ध त को अपनाने पर जोर दया गया है।
  • 21. [ अ ] आलोचना मक तक वाद [ ब ] नगमना मक प ध त [ स ] ऐ तहा सक प ध त [ द ] योगा मक प ध त 5. पापर ने खुले समाज क सं ा कस कार क राजनी तक यव था को दान क है। [ अ ] समाजवाद राजनी तक यव था [ ब ] उदारवाद लोकतां क यव था [ स ] नरंक ु श तं यव था [ द ] क ु ल न तं यव था 6. पापर क े वचार म यूनतम जातं या है। [ अ ] जनता का शासक को चुनने का अ धकार [ ब ] बुरे शासक को स ा से दूर रखने क यव था [ स ] कम से कम लोग वारा शासन [ द ] उपयु त सभी 7. पापर ने जातं ीय यव था क शंसा कस आधार पर क है। [ अ ] शासन म प रवतन शां तपूण और अ हंसक तर क से होना [ ब ] वतं , ता कक वचार- वमश को ो साहन [ स ] उपयु त दोन [ द ] उपयु त म से कोई नह ं 8. पापर ने सावज नक नी त क े नमाण क े आधार क े प म कस स धांत को तुत कया। [ अ ] अ धकतम यि तय का अ धकतम सुख [ब ] दुख नवारण स धांत [ स ] अ धका धक स नता क ाि त [ द ] अ पसं यक का क याण 9. पापर ने सामािजक प रवतन हेतु कस रणनी त का सुझाव दया। [ अ ] सं थाओं म एक-एक कर धीमे- धीमे सुधार [ब ] सभी सं थाओं म एक साथ सुधार [ स ] ां त क े मा यम से प रवतन [ द ] हंसक ां त क े मा यम से प रवतन
  • 22. उ र- 1.ब 2. द 3. द 4.अ 5. ब 6.ब 7. स 8. ब 9. अ