2. एक या एक से अधिक अक्षरों से सार्थक
योग को हम शब्द कहते है। अर्वा वर्णों या
अक्षरों का ऎसा समूह जिसका कोई अर्थ हो,
शब्द कहलाता है। प्रत्येक भाषा को अपना
शब्द समूह होता है। इन शब्दों का प्रयोग
बोलने एवं ललखने में ककया िाता है।
शब्द
3. हहन्दी के शब्दों का वगीकरर्ण मुख्य
रूप में चार आिारों पर ककया िाता
है,
अर्थ के आिार पर
व्युत्पत्ति के आिार पर
उत्पत्ति के आिार पर
वाक्य के प्रयोग के आिार पर
4. अर्थ के दृजटि से वाचक शब्द,लाक्षणर्णक शब्द
और व्यंिक शब्द िैसी तीन भेद हैं।
व्युत्पत्ति के आिार भी तीन भेद है, रूढ,
यौधगक और योगरूढ आहद है।
उत्पत्ति के आिार पर तत्सम, तत्भव, देशि
एवं त्तवदेशी आहद भेद हैं।
5. उत्पत्ति के आिार पर अर्ाथत् तत्सम, तत्भव देशि एवं
त्तवदेशी शब्दों के बारे में त्तवस्तृत अध्ययन ककया िा रही
है।
हहन्दी भाषा के शब्द- समूह को परंपरागत रूप से चार
वगों में बााँिा िाता है।
तत्सम
तद्भव
त्तवदेशी
6. तत्सम
तत्सम से तत् का अर्थ है वह अर्ाथत् संस्कृ त
और सम का अर्थ है समान। अर्ाथत् तत्सम उन
शब्दों तो कहते हैं िो संस्कृ त के समान हों।
उदाहरर्ण के ललए हहन्दी में कृ टर्ण, गृह, कमथ,
हस्त, घर शब्द तत्सम है।
7. तद्भव
तत्भव में भी तत् का अर्थ है वह अर्ाथत्
संस्कृ त और भव का अर्थ है उत्पन्न। अर्ाथत्
तद्भव वे शब्द हैं िो संस्कृ त शब्दों से
उत्पन्न हुए हैं।तत्सम तद्भव
कमथ
आटि
सप्त
हस्त
सपथ
इक्षु
काम
आठ
सात
हार्
सााँप
ईख
8. विदेशी
त्तवदेशी शब्द का मूल अर्थ है ‘अन्य देश की भाषा से
आए हुए शब्द यों ककसी भी अन्य भाषा से आए हुए
शब्द प्रायः त्तवदेशी माने िा सकते हैं। इन्हें आगत शब्द
या गृहहत शब्द (Loan word; वे शब्द िो ककसी अन्य
भाषा से ग्रहर्ण ककए गए हो) कहना कदाधचत् अधिक
उपयुक्त है। हहन्दी में ककताब (अरबी), कैं ची( तुकी),
नमाज़(फारसी), कोि(अग्रेंिी), अनन्नास(पुतथगली) आहद
ऎसे ही शब्द हैं। हहन्दी में समय- समय पर पश्तो, तुकी,
अरबी, फारसी, पुतथगली, अग्रेंिी, फ्ांसीसी, डच तर्ा कई
आिुननक भारतीय भाषाओं के शब्द आए हैं।
9. देशज
देशि का अर्थ है (देश+ ि) िो देश में ही
िन्में हों। िो शब्द न तो तत्सम हों, न
तत्भव और न त्तवदेशी, उन्हें देशि के
कोिी में रख हदया िाता है। देशि
कहलाने वाले शब्द को दो पक्ष में रख
सकता है:
10. अज्ञातव्युत्पत्तिक: जिनकी व्युत्पत्ति का पता न
हो।
िैसे- िट्िू, तेंदुआ, कबड्डी, गडबड, घपला, चंपत,
चूहा, झंझि, झगडा, िीस, ठेठ, र्ोर्ा, पेड़, भुताथ
आहद।
अनुकरर्णात्मक: िो तत्सम, तत्भव, त्तवदेशी नहीं
हैं, तर्ा हहन्दी काल के अनुकरर्णके आिार पर
बनाए गए हैं। इस वगथ के अधिकांश शब्द
ध्वन्यात्मक होते हैं।
िैसे- खड़खड़, भड़भड़, खिखि, िमिम, हड़हड़,