यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन से सम्बन्धित एक परिचयात्मक अध्ययन है, जिसे विश्वविद्यालय स्तर के एम. ए. शिक्षाशास्त्र विषय के विद्यार्थी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन के प्रति जिज्ञासु लोगों के लिए यत्किंचित् रूप में उपादेय सिद्ध हो सकता है.
2. क्षिषय-प्रिेश
स ांख्य, योग, न्य य, वैशेषिक, मीम ांस और वेद न्त ये िड्दशशन आषततक दशशन म ने ज ते हैं।
इन िड् आषततक दशशनों में मीम ांस दशशन अग्रणी है क्योंषक यह पूणशतः वेदों पर आध ररत है।
मीम ांस दशशन के प्रषतप दक आच यश महषिश जैषमषन हैं ।
महषिश पर सर के षशष्य वेदव्य स (ब दर यण य कृष्ण द्वैप यन) हुए तथ वेदव्य स के षशष्य आच यश
जैषमषन ने 'मीम ांस सूत्र' की रचन की
मीम ांस दशशन क मूल ग्रन्थ मीम ांस सूत्र है।
मीम ांस दशशन सोलह अध्य यों क है, िोडि ध्य यी मीम ांस के रहते हुए भी पठन-प ठन केवल
द्व दश ध्य य क ही होत है।
वततुतः इसक क म कोई नय दशशन प्रततुत करन नहीं, वरन् वैषदक धमश एवां मन्त्रों की षवततृत व्य ख्य
करन है।
भ रतीय दशशन में इसक अत्यन्त महत्त्व है क्योंषक इसी से क्रमशः मीम ांस और वेद न्त दशशन क
षवक स हुआ है । षजसे पूवश मीम ांस और उत्तर मीम ांस भी कह ज त है। पहल कमशक ण्ड पूवश मीम ांस
क मुख्य तो दूसर ज्ञ न क ण्ड उत्तर मीम ांस (वेद न्त) क मुख्य षविय है।
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3. मीमतंसत कत शतक्षददक अर्था
मीम ांस शब्द की उत्पषत्त सांतकृत भ ि के ‘म न्’ ध तु में ‘सन्’ प्रत्यय के योग से हुई है,
षजसक श षब्दक अथश होत है- ‘षजज्ञ स (ज नने की इच्छ )’ य ‘षवच र करन ’ । ह ल ाँषक
षवषभन्न षवद्व नों ने इसके षभन्न-षभन्न अथश बतल ये हैं, जैसे- व्य ख्य करन , समीक्ष करन ,
पूषजत षवच र, पूषजत षजज्ञ स , सांषचत षवच र, खोज, गम्भीर छ नबीन अथव अनुसांध न
सम्बन्धी षवच र इत्य षद ।
मूलतः षकसी वततु के तवरूप क यथ थश षनणशय कर ने की षवषध को मीम ांस कहते हैं अथव
पक्ष-प्रषतपक्ष को लेकर वेद व क्यों के षनणीत अथश के षवच र क न म मीम ांस है ।
श्रुषतयों के परतपर षभन्न मतों की व्य ख्य कर उनको एक त्मक बन ने के षलए षकय ज ने व ल
षवच र मीम ांस कहल त है ।
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4. मीमतंसत दशान की उत्पक्षर्त्, आिश्यकतत एिं क्षिकतस
कमशक ण्ड एवां ज्ञ न के षनरूपण में षदख ई पड़ने व ले आप तत: षवरोधों को दूर करने क लक्ष्य
लेकर मीम ांस दशशन की आवृषत्त हुई है ।
मीम ांस के उद्भव क क रण जनत में कमश और रीषतयों के प्रषत उत्पन्न सांदेह थ ।
ऐस अनुम न षकय ज त है षक मीम ांस श स्त्र क उद्भव उस समय हुआ थ , जब बौद्धों क
वचशतव बढ़त ज रह थ । बौद्धमत के उदय के पश्च त् वैषदक धमश व वैषदक अनुष्ठ नों पर बौद्धों
के द्व र बहुत आक्षेप षकये ज रहे थे षजससे अनेक शांक एां और षवव द होने लगी थी ।
लोग यह समझने लगे थे षक रीषतयों और कमों क कोई मूल्य नहीं है, हवन, यज्ञ, बषल आषद
कमों से कोई ल भ नहीं है । इससे लोग वैषदक धमश, यज्ञ और बषल आषद षक्रय ओांसे हटने लगे
थे । उस समय वेद की रक्ष के षलए मीम ांस श स्त्र की रचन की गयी ।
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5. मीमतंसत सूत्र यत जैक्षमक्षन सूत्र
आच यश जैषमषन ने 'मीम ांस सूत्र' की रचन की ।
द शशषनक ग्रन्थों में यह सबसे बृहत् है ।
वतशम न क ल में उपलब्ध मीम ांस दशशन में द्व दश अध्य य हैं, अतः इसे ‘द्व दशलक्षणी’ कहते हैं ।
यह ाँ लक्षण शब्द अध्य य व चक है, अतः इसक एक अन्य न म द्व दश ध्य यी भी है ।
यह मीम ांस दशशन क आध र ग्रन्थ है । मूलतः इसको दो प्रक रों (भ गों) में षवभक्त षकय गय है, षजसे उपदेश
और अषतदेश कहते हैं ।
प्रथम भ ग (पूवश िट्क) के अध्य यों में उपदेश क षववेचन है तथ षद्वतीय भ ग (उत्तर िट्क) के छ: अध्य यों में
अषतदेश क षववेचन है ।
एक अन्य आध र पर जैषमषन सूत्र तीन भ गों में षवभक्त है- (1) प्रम ण षवच र (2) तत्व षवच र तथ (3) धमश
षवच र ।
मीम ांस के मूल ग्रन्थ में सूत्रों की सांख्य 2745 बत ई गई है, जबषक वतशम न में उपलब्ध मीम ांस दशशन के
सांतकरणों में यह सांख्य अलग-अलग प ई ज ती है ।
सभी सांतकरणों के समीक्ष त्मक अध्ययन व अनुसन्ध न के ब द सांशोषधत सांतकरण में सूत्रों की सांख्य 2741
तवीक र की गयी है।
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6. प्रमुख मीमतंसक (दतशाक्षनक)
महषिश जैषमषन
शबर तव मी
कुम ररल भट्ट
प्रभ कर षमश्र
मुर री षमश्र
प थशस रषथ षमश्र
उल्लेखनीय है षक आच यश जैषमषन आषद के अषतररक्त उस क ल के आस-प स कुछ और आच यों
ने वैषदक कमशक ण्ड की मीम ांस की थी षजनमें प्रमुख है, आत्रय, आश्मरथ्य, क ष्ण शषजषन, ब दरर,
ऐषतशयन, क मुक यन, ल बुक यन तथ आलेखन आषद षकन्तु इनकी रचन एाँ अनुपलब्ध हैं ।
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7. कु मतररल भट्ट
मीम ांस दशशन की परम्पर में मील के पत्थर कुम ररल भट्ट को ही म न गय है ।
इन्होंने न के वल श बर भ ष्य पर तकश पूणश ग्रन्थ षलखे वरन् आच यश शांकर के सम न बौद्धों के
षवरुद्ध त षकश क षववेचन प्रततुत कर उन्हें पर तत षकय ।
अषभप्र य यह है षक कुम ररल भट्ट ने बड़ी कुशलत से बौद्ध मतों क खण्डन और वैषदक मत
क मण्डन षकय है ।
इस तरह वैषदक धमश की रक्ष में उन्होंने अपन स र जीवन समषपशत कर षदय ।
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8. प्रक्षतपतद्य क्षिषय यत प्रयोजन
मीम ांस दशशन क प्रध न षविय 'धमश' है, धमश की व्य ख्य (षववेचन ) करन ही इस दशशन क मुख्य
प्रयोजन है ।
धमश षजज्ञ स व ल प्रथम सूत्र- अर्थततो धमाक्षजज्ञतसत ।
षद्वतीय सूत्र में ही सूत्रक र ने धमश क लक्षण बतल य है- चोदनत लिणोऽर्थों धमा: अथ शत् प्रेरण देने
व ल अथश ही धमश है ।
कुम ररल भट्ट ने इसे ‘धमताख्यं क्षिषयं िक्ुं मीमतंसतयताः प्रयोजनम्’ के रूप में अषभव्यक्त षकय है ।
इसषलए धमशज्ञ न ही मीम ांस दशशन क प्रयोजन है ।
इसमें सभी कमों को यज्ञों / मह यज्ञों के अन्तगशत सम वेषशत षकय गय है ।
पूषणशम तथ अम वतय में जो छोटी-छोटी इषिय ाँ की ज ती हैं । इनक न म यज्ञ और अश्वमेध आषद
यज्ञों क न म मह यज्ञ है ।
वैषदक कमश-क ण्ड के पीछे जो षवश्व स षछपे हुए हैं उनक भी द शशषनक समथशन मीम ांस करती है ।
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9. यज्ञ
ब्रह्मयज्ञ - प्र तः और स ांय क ल की सन्ध्य तथ तव ध्य य ।
देियज्ञ - प्र तः और स ांयक ल क हवन ।
क्षपतृयज्ञ - देव और षपतरों की पूज अथ शत् म त , षपत , गुरु आषद की सेव तथ उनके प्रषत
श्रद्ध -भषक्त ।
िक्षल िैश्व देियज्ञ - पक ये हुए अन्न में से अन्य प्र षणयों के षलए भ ग षनक लन ।
अक्षतक्षर्थ यज्ञ - घर पर आये हुए अषतषथयों क सत्क र ।
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10. िेद कत िगीकरण
मन्त्र तथ ब्र ह्मण दोनों को ही 'वेद' शब्द से अषभषहत षकय ज त है, यथ -
'मन्द्त्रब्रतह्मणयोिेदनतमधेयम्' । वेद क वगीकरण प ाँच भ गों में षकय गय है- षवषध, मन्त्र, न मधेय,
षनिेध और अथशव द ।
1. क्षिक्षध- षवषधपरक आदेश वे आदेश है जो व्यषक्त को षवशेि कमश करने के षलए प्रेररत करते हैं त षक
षवशेि फल षमल सके । जैसे- ‘स्िगाकतमो यजेत’ अथ शत् ‘षजन्हें तवगश की क मन हो वे यज्ञ करें’
यह षवषध परक आदेश है ।
2. मन्द्त्र- ये यज्ञकत श को यज्ञ से सम्बषन्धत षवषवध षवियों क तमरण कर ने में उपयोगी षसद्ध होते हैं,
जैसे षक वे देवत , षजन्हें लक्ष्य करके आहुषतय ाँ देनी है ।
3. नतमधेय- न मधेय यज्ञों के न म को कह ज त है दूसरे शब्दों में न मधेय क त त्पयश यज्ञों क व्यषक्त
व चक न म है ।
4. क्षनषेध- षनिेध षवषध क उल्ट है । षवषधव क्य जह ाँ कुछ करने के षलए प्रेररत करते हैं वह ाँ षनिेध
व क्य क्य नहीं करन है ? इसक षनदेश देते हैं, क्योंषक इससे अव ांषछत फल की प्र षि होगी । जैसे-
झूठ नहीं बोलन च षहए, यह एक षनिेध व क्य है । इसके फल से हम सभी पररषचत ही हैं ।
5. अर्थाितद- ये वे व क्य है जो वणशन त्मक है । ये षकसी पद थश के सच्चे गुणों क कथन करते हैं ।
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11. क्षिक्षध के प्रकतर
1. उत्पक्षर्त् क्षिक्षध- षजस व क्य से कमश तवरूप की कत्तशव्यत प्रथमत: षवषदत होती हो उसे उत्पषत्त षवषध
कहते हैं । यह कमश के तवरूप म त्र को बतल ने व ली है । उद हरण थश ‘अक्षननहोत्रं जुहोक्षत’ इस
व क्य से ‘अषननहोत्र न मक होम से इि को प्र ि करन ’ अथश होत है ।
2. क्षिक्षनयोग क्षिक्षध- अांगप्रध न क सम्बन्ध षजस षवषधव क्य से ज्ञ त होत है उसे षवषनयोग षवषध
कहते हैं । यह कमश के अांग तथ प्रध न षवियों की सम्बोधक है । उद हरण थश ‘दध्नत जुहोक्षत’ इस
व क्य से दही से हवन करने क अथश बोषधत होत है । इसमें दषध स धन है और होम स ध्य है । यह ाँ
षवषनयोग षवषध में षवषनयोग शब्द से सम्बन्ध को समझन च षहए । वह सम्बन्ध स ध्य-स धन-भ व,
अांग ांषग भ व अथव शेिशेिी भ व में सम ि होत है ।
3. प्रयोग क्षिक्षध- जो प्रध न और अांग के अनुष्ठ न में क्रम क बोध कर त है उसे प्रयोग षवषध कहते हैं ।
यह कमश से उत्पन्न फल के तव षमत्व की ओर सांकेत करती है । उद हरण थश- प्रय ज षद अांग से
उपकृत प्रध न दशशपूणशम स य ग से तवगश की प्र षि होती है । इसी अषभप्र य से इसक लक्षण षकय
गय है ‘अंगतनतं क्रमिोधको क्षिक्षध: प्रयोगक्षिक्षध:’ ।
4. अक्षधकतर क्षिक्षध- षजस षवषध से कमशजन्य फल क भोक्त कत श को म न ज त हो उसे अषधक र
षवषध कहते हैं । यह प्रयोग की शीघ्रत की बोधक षवषध है । उद हरण थश ‘यजेत स्िगाकतम:’ यह ाँ
जो य गकत श है वही तवगशफल क भोक्त है ।
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12. ज्ञतन कत प्रतमतण्य (स्ित:) यत प्रतमतण्यितद
मीम ांस सत्य को तवत: प्रक श्य म नती है । अषभप्र य यह है षक मीम ांस दशशन तवतः
प्र म ण्यव द क पोिक है, षजसके अनुस र ज्ञ न क प्र म ण्य उस ज्ञ न की उत्प दक स मग्री में
ही षवद्यम न रहत है, कहीं ब हर से नहीं आत (प्रतमतण्यं स्िताः उत्पद्यते) और ज्ञ न उत्पन्न
होते ही उसके प्र म ण्य क षनश्चय भी हो ज त है (प्रतमतण्यं स्ित: ज्ञतयते च) । इस प्रक र ज्ञ न
के प्र म ण्य की उत्पषत्त और ज्ञषि दोनों तवतः है । जैसे- घड़े में जल के होने की पुषि जल क
प्रत्यक्ष करते ही हो ज ती है।
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13. तत्त्ि मीमतंसत
तत्त्वमीम ांस की दृषि से मीम ांसक वततुव द य बहुतत्त्व व द को तवीक र करते हैं ।
मीम ांस दशशन में जगत् एवां आत्म के अषततत्व को तो सत्य तवीक र षकय गय है ।
षकन्तु जगत् के रचषयत के रूप में अथव जीव के कम शध्यक्ष य मोक्ष-प्रद त के रूप में ईश्वर
क कोई अषततत्व नहीं है ।
यद्यषप मीम ांसक अनेक देवत ओां क अषततत्व तवीक र करते हैं षजससे षक उन्हें यज्ञ में
आहुषतय ाँ दी ज सके ।
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14. कमा कत स्िरूप
क्षनत्य कमा: वे कमश षजनको षनत्य षकये ज ने क षवध न षकय गय है, जैसे- ध्य न, पूज , सन्ध्य वन्दन
आषद ।
नैक्षमक्षर्त्क कमा: वे कमश जो षकसी षवशेि अवसर के षनषमत्त षकये ज ते हैं, जैसे- एक दशी व्रत, श्र द्ध
आषद । प्रभ कर इन्हें षनष्क म भ व से करने की सल ह देते हैं, ह ल ाँषक इनसे प प य पुण्य फल नहीं
षमलत केवल ये कत्तशव्य म त्र हैं । परन्तु कुम ररल की दृषि में इनके न करने से प प षमलत है और करने
से पूवश प प क न श होत है ।
प्रक्षतक्षषद्ध कमा: वे कमश षजनको करन वेद के द्व र षववषजशत षकय गय है, क्योंषक अशुभ क रक होने
से इनको करने से प प जशन होत है । जैसे- षविदनध शस्त्र से मरे पशु क म ांस वषजशत है ।
कतम्य कमा: वे कमश षजसको षकसी षवशेि इच्छ य क मन की षसषद्ध के षलए षकय ज त है, जैसे-
तवगश की क मन करने व ल यज्ञ करे तथ र ज्य के षवतत र की क मन करने व ल अश्वमेध यज्ञ ।
प्रतयक्षित् कमा: प प कमश करने से जो बुर ई आयी है, उनको रोकने के षलए षकय ज ने व ल कमश ।
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15. शक्षक् (शक्षक्ितद), अपूिा यत कमाितद कत क्षसद्धतन्द्त
मूलतः मीम ांस दशशन अनीश्वरव दी दशशन रह है जो षक ईश्वर की सत्त को तवीक र न म नकर सांस र में
एक अदृि शषक्त की सत्त को तवीक र करत है और इसी शषक्त से क यश उत्पन्न होते हैं । क रण से क यश
उत्पन्न नहीं होत । इस लोक में षकय गय क यश एक अदृि शषक्त क प्र दुभ शव करत है षजसे
मीम ांस क र ‘अपूिा’ कहते हैं । अपूवश क षसद्ध न्त मीम ांसकों क एक अत्यन्त महत्त्वपूणश षसद्ध न्त है ।
मीम ांस के अनुस र अपूवश एक अदृश्य शषक्त है जो कमश-फल क षनण शयक है । अपूवश ही कमश और
कमशफल को ब ांधने व ली श्रृांखल है । यज्ञ षद कमश हम इस लोक में करते हैं तथ इस कमश क फल
तवग शषद परलोक में म नते हैं । कमश तो नि हो ज त है षफर उसके फल की प्र षि कैसे होती है ? यजम न
वतशम न क ल में यज्ञ करत है, परन्तु भषवष्य क ल में उसे तवग शषद फल प्र ि होग , यह ाँ तपि षवरोध
षदखल यी देत है । इसी षवरोध क पररह र करने के षलए मीम ांसक अपूवश को म नते हैं । अपूवश एक
प्रक र की अदृश्य शषक्त है जो कमश करने से उत्पन्न होती है और अपूवश से ही फल उत्पन्न होत है ।
अतः कमश और कमश फल के बीच अपूवश ही म ध्यम है । हम यज्ञ षद कमश इस लोक में करेंगे षजससे अपूवश
न मक अदृश्य शषक्त क उदय होग पुनः वही शषक्त हमें तवग शषद फल देगी ।
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16. ईश्वर क्षिचतर
मीम ांस दशशन ईश्वर के अषततत्व को म नत है य नहीं इसे लेकर षवद्व नों में मतभेद है ।
स म न्यतय मीम ांस दशशन को षनरीश्वरव दी (अनीश्वरव दी) ही समझ ज त है ।
प्र चीन मीम ांस ग्रन्थों के आध र पर ईश्वर की सत्त षबल्कुल अषसद्ध है ।
मीम ांस के अनुस र कमश अपन फल तवयां देते हैं ।
य षज्ञक कमों से अपूवश उत्पन्न होत है तथ अपूवश से तवग शषद फल की प्र षि होती है । इसमें ईश्वर की
आवश्यकत नहीं है ।
षकन्तु कुछ षवद्व नों क षवच र है षक मीम ांस ग्रन्थों में अनेक ऐसे अन्तस शक्ष्य हैं, जो इसे ईश्वरव दी षसद्ध
करते हैं ।
इसके अषतररक्त प्र चीन मीम ांसकों की तुलन में ब द के मीम ांसकों, जैसे- कुम ररल, प्रभ कर, आपदेव,
लौग षक्षभ तकर आषद के ग्रन्थ को देखने से पत चलत है षक वे ईश्वर की सत्त में षवश्व स करते हैं ।
अतः स ांख्य दशशन के सम न मीम ांस क भी क्षनरीश्वर और सेश्वर दो रूप प्रतीत होत है ।
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17. िन्द्धन एिं जगत् कत स्िरुप
मीम ांस दशशन के अनुस र व सन और मोह की इच्छ से षकये गये कमश अनुषचत कमश हैं, जो
मनुष्य के बन्धन क क रण बनते हैं । इनसे मुषक्त ही बन्धन न श क उप य है । वेद षवषहत कमों
के अनुष्ठ न से कमश बन्धन तवत: सम ि हो ज त है । इस हेतु मनुष्य के षलए उषचत कमश क
अनुष्ठ न अभीि है, कमश क पररत्य ग नहीं । अषभप्र य यह है षक कमश करन आवश्यक है ।
तत्त्वज्ञ न की दृषि से मीम ांस जगत् प्रपांच की षनत्यत तवीक र करती है । मीम ांस दशशन के
अनुस र जगत् को षमथ्य नहीं म न ज त , अषपतु वह सत्य है । यह दशशन ब ह्य थश सत्त व दी है ।
इसके अनुस र जगत् के तीन तत्त्व हैं-
शरीर / भोगतयतन- षभन्न-षभन्न आत्म अपने पूवश कमों को भोगती है ।
ज्ञतनेक्षन्द्रय / कमेक्षन्द्रय- सुख-दुःख उपभोग के स धन ।
भोग क्षिषय- व ह्य षविय / वततुएाँ भोग षविय हैं ।
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18. आत्मत कत स्िरुप
मीम ांसक शरीर, मन, इषन्िय एवां बुषद्ध से परे आत्मतत्त्व के अषततत्व को तवीक र करते हैं, जो
शरीर के मृत्यु के ब द भी नहीं मरत , जो कम शनुस र पुनः शरीर ध रण करत है और तब तक इस
सांस र में ब र-ब र आत है, जब तक षक उसे मोक्ष की प्र षि नहीं हो ज ती । मीम ांस दशशन में
आत्म के तवरूप को षनम्नषलषखत रूपों में तवीक र षकय गय है -
1. आत्मत की अमरतत-
2. आत्मत की अनेकतत-
3. आत्मत की चेतनत-
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19. स्िगा और मोि
प्र चीन मीम ांसकों के अनुस र तवगश की प्र षि अथ शत् षनरषतशय आनन्द की प्र षि ही परम लक्ष्य
थ । उनके अनुस र वैषदक कमों क फल तवगश की प्र षि म न गय है ।
परन्तु धीरे-धीरे जब मीम ांस दशशन षवकषसत हुआ तब तवगश के तथ न पर मोक्ष को जीवन क
परम लक्ष्य म न गय ।
सांभवतः इसक क रण तवगश फल की अषनत्यत है। षनरषतशय सुख रूप तवगश षनत्य नहीं है ।
पुण्य के क्षीण होने पर पुन: मृत्युलोक में आकर बन्धन जन्य न न प्रक र के दुःखों को सहन
पड़ेग ।
मीम ांसको के अनुस र इस जगत् के स थ आत्म के सम्बन्ध षवच्छेद को मोक्ष कहते हैं । यथ -
'प्रपञ्चसम्िन्द्धक्षिलयो मोिाः'
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21. भ्रतक्षन्द्त क्षनरूपण (ख्यतक्षतितद)
भ रतीय द शशषनकों ने भ्रम को भी एक प्रक र क ज्ञ न (षमथ्य ज्ञ न ) म नते हुए इसके क रण व
षनव रण की खोज में इसकी गहन व्य ख्य की है । भ रतीय दशशन में यह षसद्ध न्त ख्य षतव द के
न म से षवख्य त है । उल्लेखनीय है षक षवषभन्न दशशनों के ख्य षतव द के अपनी-अपनी
षवशेित ओां के क रण अलग-अलग न म हैं । जह ाँ तक मीम ांस दशशन क प्रश्न है, यह ाँ भी
मतभेद है । प्रभ कर क इस सम्बन्ध में षसद्ध न्त अख्य षतव द है जबषक कुम ररल भट्ट क
षवपरीत ख्य षतव द ।
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22. अख्यतक्षतितद- यह प्रभ कर क मत है । प्रभ कर यह ाँ कहते है षक भ्रम व ततव में एक प्रक र
क ज्ञ न ही है । इसमें दोि के वल यह है षक यह अपूणश ज्ञ न है । प्रम समग्र ज्ञ न है जबषक भ्रम
आांषशक और अपूणश ज्ञ न है । इस तरह वे भ्रम को षमथ्य ज्ञ न नहीं अपूणश ज्ञ न कहते हैं । यह
हम रे तमृषत दोि के क रण होती है । अतः भ्रम तमृषत दोि के क रण उत्पन्न भेद-ज्ञ न (शुषक्त
और रजत में भेद) क अभ व है । यह हम र अषववेक है । यह अख्य षत (अज्ञ न) है, षमथ्य
ख्य षत नहीं ।
क्षिपरीत ख्यतक्षतितद- मीम ांसक कुम ररल भट्ट षवपरीत ख्य षतव द को अज्ञ न की व्य ख्य के
षलए प्रततुत करते हैं । उनके अनुस र यह षवपरीत ग्रहण है अथ शत् प्रत्यक्ष वततु के तथ न पर
अन्य वततु क ग्रहण (दशशन) है, जैसे- शुषक्त-रजत भ्रम में शुषक्त क रजत के रूप में षवपरीत
ग्रहण होत है । इसक क रण नेत्र-दोि है । इसक बोध सम्यक् ज्ञ न से हो ज त है ।
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23. मीमतंसत दशान के प्रकतर
मीम ांस दशशन के दो भ ग हैं- ‘पूवश मीम ांस ’ तथ ‘उत्तर मीम ांस ’ । पूवश मीम ांस को ‘मीम ांस ’
और उत्तर मीम ांस को ‘वेद न्त’ कह ज त है । पूवश मीम ांस कमश क षवच र करती है और उत्तर
मीम ांस ज्ञ न क षवच र करती है ।
1. मन्त्र (सांषहत ) + ब्र ह्मण = पूवश मीम ांस
2. आरण्यक + उपषनिद् = उत्तर मीम ांस
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24. मीमतंसत दशान के सम्प्रदतय
1. कुम ररल भट्ट के अनुय यी ‘भ ट्ट मत’ के कहल ते हैं ।
2. प्रभ कर षमश्र के अनुय यी 'गुरु मत’ के कहल ते हैं ।
3. इनके अषतररक्त एक अन्य सम्प्रद य मुर री षमश्र क है, षजसे ‘मुर री मत’ कह ज त है ।
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25. मीमतंसत दशान कत प्रभति
मीम ांस दशशन क प्रभ व षहन्दुओांके जीवन पर सव शषधक पड़ है ।
डॉ. द सगुि षलखते है 'षहन्दुओां के षनत्य-प्रषत के ध षमशक कृत्य, पूज -अनुष्ठ न आषद की
व्यवतथ मीम ांस में की गई है । तमृषत, जो ध षमशक षनयमों क सांकलन है, उसक आध र मीम ांस
दशशन ही है । षब्रषटश क ल में षहन्दुओां के स म षजक जीवन षनयमन के षलए षजस षवषध और
क नून क षनम शण षकय गय है, वह भी इसके द्व र षनरूषपत तमृषत और दशशन के आध र पर ही
हुआ है । उत्तर षधक र एवां सम्पषत्त सम्बन्धी स री व्यवतथ भी इसी दशशन पर आध ररत है ।
डॉ. र ध कृष्णन् भी षलखते हैं 'एक षहन्दू क जीवन वैषदक षनयमों से श षसत है और इसीषलए
षहन्दू षवध न की व्य ख्य के षलए मीम ांस के षनयम महत्त्वपूणश है ।
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