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ब च्चे काम पर जा रहे हैं / राजशे जोशी 
रचनाकार- राजेश जोशी 
कोहरे से ढँकी सड़क पर बच् चे क प पर रहे ह 
सुबह सुबह 
बच् चे क प पर रहे ह 
हप रे सपय की सबसे भय नक पंक्ति है यह 
भय नक है इसे क्तििरण के तरह क्तिख न 
क्तिख न च क्तहए इसे सि ि की तरह 
क प पर क् यों रहे ह बच् चे? 
क् य तंतकरष म पग क्त र ह ह स रग गंग 
क् य ंगपकों ने ख क्तिय ह 
स रग रं क्तबरं ग ककत बों को 
क् य क िे पह ड़ के नगचे ंब ए ह स रे क्तखि ने 
क् य ककसग भंकंप पग ढह ह ह 
स रे पंरसों की इप रतग 
क् य स रे पैं नस स रे ब गचे र ोरों के गँ न 
खत् प हो ए ह एक एक 
तो किर बच हग क् य है इस ंुक्तनय पग? 
ककतन भय नक होत त र ऐस होत 
भय नक है िेककन इससे भग ज् य ं यह 
कक ह स रग चगजग हस् बप पंि 
पर ंुक्तनय की हज रों सड़कों से ु ते हुए 
बच् चेस बहुत टो े टो े बच् चे 
क प पर रहे ह । 
एक मुट्ठी आजादी मासूमों को भी ममले 
नेहा ममत्तल 
रात के समय नंदानगरी में सन्नाटा छाया हुआ था। पुमलस ने नंदानगरी में बीडी फैक्ट्री पर छापा मारा तथा 
सोलह बच्चों को फैक्ट्री मामलकों के हाथों से छुडवाया। बच्चों की उम्र 5-14 वर्ष थी। गााँव से इन बच्चों को 
उनके माता पपता से खरीद कर शहर के व्यवसायययों को मोटी रकम में बेचा जाता था। 
WD WD 
अनुसंधानकताषओं के अनुसार, भारत में 1 करोड 30 लाख बाल श्रममक ह ैंजो पवमभन्न छोटे-बडे उद्योगों में काम कर रहे 
ह।ैं भारत में वस्तुओं की बढ़ती कीमतें, बेरोजगारी के कारण गााँव में करीब 80 प्रयतशत बच्चों को एक वक्ट्त की रोटी नसीब 
नहीं होती है। इसमलए कम उम्र में ही इन बच्चों को बेहतर भपवष्य के मलए बाहर काम करने के मलए भेजा जाता है ताकक
घर में चूल्हा जल सके। 
चलती बस या रेन पर, पवमभन्न वस्तुओं को लाद कर यह बच्चे ददन भर ग्राहकों के पीछे दौडकर उन्हें बेचते रहते ह।ैं भारत 
में 1.67 प्रयतशत बच्चे घरों में काम करते ह।ैं इनमें से 3.15 प्रयतशत लडककयााँ होती ह।ैं कालीन कंपयनयों में तथा पटाखा 
यनमाषण फैक्ट्क्ट्रयों में बाल श्रममकों को कदठन पररक्ट्स्थयतयों में काम करना पडता है। 
सन 1986 में भारत सरकार ने बाल श्रम कानून लागू ककया क्ट्जसके तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चों को कहीं भी काम 
पर नहीं लगाया जा सकता। परंतु इस कानून का उल्लंघन लगातार ककया जा रहा है। फलस्वरूप, गैरकानूनी तौर पर बाल 
श्रममकों को कम वेतन के मलए असुरक्षित क्ट्स्थयतयों में काम के मलए पववश ककया जाता है। धुाँधली रोशनी में चहारदीवारों 
में कम उम्र के बच्चे काम कर रहे ह।ैं छोटी सी छोटी गलयतयों के मलए इन पर हाथ उठाया जाता है। प्रयतददन पंद्रह से 
अधधक घंटे काम कराया जाता है। अंत में सूखी रोटी दी जाती है। 
स्वतंत्र भारत के इयतहास में बाल श्रम सामाक्ट्जक बुराइयों को दशाषता है। स्वतंत्रता संग्राम सेनायनयों ने कभी सोचा भी न 
होगाकक भारत के मासूम बच्चों को गुलाम बनाकर उनका शोर्ण ककया जाएगा। क्ट्जन हाथों में ककताब होनी चादहए उन 
हाथों पर घाव के यनशान है, तथा सुई और धागे चला रहे ह।ैं कााँच की फैक्ट्री में तेज आाँच के सामने घंटों खडे रहकर उनसे 
काम कराया जाता है। इससे उनके स्वास्थ पर बुरा 
प्रभाव पडता है। अक्ट्सर ये बच्चे हृदय रोग या आाँखों की समस्या से पीडडत हो जाते ह ैं 
कोहरे से ढकी सडक पर सुबह सुबह बच्चे काम पर जा रहे ह ैं 
देखने वाला कोई नहीं उनको इतनी ठण्ड में 
पर कफर भी बच्चे काम पर जा रहे ह ैं 
कोहरे से ढकी सडक पर सुबह सुबह बच्चे काम पर जा रहे ह ैं 
बाल श्रम एक धचंतनीय समस्या है हम प्रयतददन बच्चो को काम करते हुए देखते ह ैंऔर कफर हमें दया भी आती है पर हम कुछ कर नहीं पाते बच्चो को काम पर जाते देख हम कई बार सोचते ह ैंपर यह नहीं समझ सकते की बच्चे काम पर क्ट्यों जा रहे ह ैं 
baherhal बाल श्रम को रोकने के मलए हमें इस मुद्दे को पववरण की तरह नहीं बक्ट्ल्क सवाल के रूप में मलखना होगा क्ट्योंकक पववरण को तो जनता भूल जाती है पर सवाल पर जनता धचंतन करती है में यह सवाल उठाना चाहता हूाँ की आखखर हमारे देश में 
बच्चे खेलने कूदने की उम्र मैं बाल श्रममक क्ट्यों है क्ट्यों हम उनके मलए कुछ नहीं कर सकते यह एक प्रश्न है सोचनीय मुद्दा है बाल श्रम को रोकने के मलए सबसे पहले हमें यनम्न कायष करने होंगे 
१. सबसे पहले हमें बच्चो से उनके काम पर जाने की वजह जाननी होगी 
२. बच्चे श्रममक क्ट्यों है क्ट्या मज़बूरी है 
३. बच्चो को क्ट्यों नहीं पढाया जाता 
हमारा भारत सकल घरेलु उत्पाद दर में प्रगयत कर रहा है आईटी के शेत्र में नए कीयतमषान बना रहा है यह सब ककसकी बदौलत हो रहा है हमारे प्रयतभावान पवद्याधथषयों की वजह से हमारे प्रधानमंत्री को बाल श्रम रोकने की कायष योजना बनानी चादहए मदहला 
एवं बाल पवकास पवभाग को भी इस पर धचंता करनी चादहए आज आप लोग उन बच्चो को देखे जो श्रममक है उनमे भी प्रयतभा है पर यह प्रयतभा तभी यनखरेगी जब उन्हें पढाया जाये 
महान अथषशास्त्री और नोबेल पुरस्कार पवजेता श्री अमत्यष सेन ने कहा है की 
क्ट्जस ददन हमारे देश के बच्चो को पढाया जायेगा और बाल श्रम रुकेगा तभी हमारा भारत सकल घरेलु उत्पाद दर में प्रगयत करेगा 
हमारी सरकार को सोचना चादहए की यह बाल श्रम क्ट्यों हो रहा है क्ट्या वजह है तभी कुछ हो पायेगा तभी बाल श्रम रोका जायेगा और हमारी सरकार कुछ करे तभी यह समस्या ख़तम होगी 
देशदहत में अजय पाण्डेय द्वारा जारी 
बाल मजदूरी देश के मलए अमभशाप 
कई सरकारें बाल मज़दूरों की सही संख्या बताने से बचती ह.ैं ऐसे में वे जब पवशेर् स्कूल खोलने की म़िफाररश करती ह ैंतो उनकी संख्या कम होती है, ताकक उनके द्वारा चलाए जा रहे पवकास कायों और कायषकलापों की पोल न खुल जाए. यह एक बेहद 
महत्वपूणष पहलू है और आज ज़रूरत है कक इन सभी मसलों पर गहनता से पवचार ककया जाए 
यह माना जाता है कक भारत में 14 साल के बच्चों की आबादी पूरी अमेररकी आबादी से भी ज़्यादा है. भारत में कुल श्रम शक्ट्क्ट्त का लगभग 3.6 फीसदी दहस्सा 14 साल से कम उम्र के बच्चों का है. हमारे देश में हर दस बच्चों में से 9 काम करते ह.ैं ये बच्चे 
लगभग 85 फीसदी पारंपररक कृपर् गयतपवधधयों में कायषरत ह,ैं जबकक 9 फीसदी से कम उत्पादन, सेवा और मरम्मती कायों में लगे ह.ैं म़िफष 0.8 फीसदी कारखानों में काम करते ह.ैं 
आमतौर पर बाल मज़दूरी अपवकमसत देशों में व्याप्त पवपवध समस्याओं का नतीजा है. भारत सरकार दूसरे राज्यों के सहयोग से बाल मज़दूरी ख़त्म करने की ददशा में तेज़ी से प्रयासरत है. इस लक्ष्य को हामसल करने के मलए सरकार ने राष्रीय बाल श्रम 
पररयोजना (एनसीएलपी) जैसे महत्वपूणष क़दम उठाए ह.ैं आज यह कहने की ज़रूरत नहीं है कक इस पररयोजना ने इस मामले में काफा़ी अहम काय षककए ह.ैं इस पररयोजना के तहत हज़ारों बच्चों को सुरक्षित बचाया गया है. साथ ही इस पररयोजना के तहत 
चलाए जा रहे पवशेर् स्कूलों में उनका पुनवाषस भी ककया गया है. इन स्कूलों के पाठ्यक्रम भी पवमशष्ट होते ह,ैं ताकक आगे चलकर इन बच्चों को मुख्यधारा के पवद्यालयों में प्रवेश लेन ेमें ककसी तरह की परेशानी न हो. ये बच्चे इन पवशेर् पवद्यालयों में न 
म़िफष बुयनयादी मशिा हामसल करते ह,ैं बक्ट्ल्क उनकी रुधच के मुताबबक़ व्यवसाययक प्रमशिण भी ददया जाता ह.ै राष्रीय बाल श्रम पररयोजना के तहत इन बच्चों के मलए यनयममत रूप से खानपान और धचककत्सकीय सहायता की व्यवस्था है. साथ ही इन्हें 
एक सौ रुपये मामसक वजीफा़ा ददया जाता है. 
ग़ैर सरकारी संगठनों या स्थानीय यनकायों द्वारा चलाए जा रहे ऐसे स्कूल इस पररयोजना के अंतगषत अपना काम भलीभांयत कर रहे ह.ैं हज़ारों बच्चे मुख्य धारा में शाममल हो चुके ह,ैं लेककन अभी भी कई बच्चे बाल मज़दूर की क्ट्ज़ंदगी जीने को मजबूर ह.ैं 
समाज की बेहतरी के मलए इस बीमारी को जड से उखाडना बहुत ज़रूरी है. एनसीएलपी जैसी पररयोजनाओं के सामने कई तरह की समस्याएं ह.ैं यदद हम सभी इन समस्यायों का मूल समाधान चाहते ह ैंतो हमें इन पर गहनता से पवचार करने की ज़रूरत है. 
इस संदभष में सबसे पहली ज़रूरत है 14 साल से कम उम्र के बाल मज़दूरों की पहचान करना. आखख़र वे कौन स ेमापदंड ह,ैं क्ट्जनसे हम 14 साल तक के बाल मज़दूरों की पहचान करते ह ैंऔर जो अंतरराष्रीय स्तर पर भी मान्य हों? क्ट्या हमारा तात्पयष यह 
होता है कक जब बच्चा 14 साल का हो जाए तो उसकी देखभाल की क्ट्जम्मेदारी राज्य की हो जाती है? हम जानते ह ैंकक ग़रीबी में अपना गुज़र-बसर कर रहे बच्चों कोपरवररश की ज़रूरत है. कोई बच्चा जब 14 साल का हो जाता है और ऐसे में सरकार अपना 
सहयोग बंद कर दे तो मुमककन है कक वह एक बार कफर बाल मज़दूरी के दलदल में फंस जाए. यदद सरकार ऐसा करती है तो यह समस्या बनी रह सकती है और बच्चे इस दलदल भरी क्ट्ज़ंदगी से कभी बाहर ही नहीं यनकल पाएंगे. कुछ लोगों का मानना है और
उन्होंने यह प्रस्ताव भी रखा है कक बाल मज़दूरों की पहचान की न्यूनतम आयु बढ़ाकर 18 साल कर देनी चादहए. साथ ही सभी सरकारी सहायताओं मसलन मामसक वजीफा़ा, धचककत्सा सुपवधा और खानपान का सहयोग तब तक जारी रखना चादहए, जब तक 
कक बच्चा 18 साल का न हो जाए. 
यहां बाल श्रम से यनपटने की ददशा में न म़िफष नए मसरे से सोचने की आवश्यकता है, बक्ट्ल्क इसके मलए कायषरत पवमभन्न पररयोजनाओं को पवत्तीय सहायता आवंदटत करने की भी ज़रूरत है. कुछ मामलों में बाल श्रममकों की पहचान की ज़रूरत तो नहीं है, 
लेककन इन पररयोजनाओं में कुछ बुयनयादी संशोधन की आवश्यकता ज़रूर है. इस देश से बाल मज़दूरी ममटाने के मलए अधधक समक्ट्न्वत और सहयोगात्मक रवैया अपनाने की सख्त आवश्यकता है. 
बालक ईश्वर की सवोत्तम कृयत है। उसके पवकास के मलए घर में माता-पपता, पवद्यालय में मशिक और समाज की हर इकाई, बालसेवी संस्थाएाँ एवं प्रेरक सादहत्य की संयुक्ट्त भूममका है। इनमें से एक की भी भूममका पवघदटत होती है तो बालक का सामाक्ट्जक 
दृक्ट्ष्ट से पवकास अवरुद्ध हो जाता है और व्यक्ट्क्ट्तत्व कुंदठत। 
हर बालक अनगढ़ पत्थर की तरह है क्ट्जसमें सुन्दर मूयत षयछपी है, क्ट्जसे मशल्पी की आाँख देख पाती है। वह उसे तराश कर सुन्दर मूयत षमें बदल सकता है। क्ट्योंकक मूयत षपहले से ही पत्थर में मौजूद होती है मशल्पी तो बस उस फालतू पत्थर को क्ट्जससे मूयत ष 
ढकी होती है, एक तरफ कर देता है और सुन्दर मूयत षप्रकट हो जाती है। माता-पपता, मशिक और समाज बालक को इसी प्रकार साँवार कर खूबसूरत व्यक्ट्क्ट्तत्व प्रदान करते ह।ैं 
अपनी बात 
अडतीस वर्ों से यनरंतर अध्यापन कर रही हूाँ क्ट्जसे अपना परम सौभाग्य व ईश्वर का वरदान मानती हूाँ। इन वर्ों में मैंने बहुत कुछ देखा, सोचा-पवचारा, जाना समझा। युवा होते बच्चों से पररचय हुआ। उनके बचपन में लौट कर झााँका। एक अमभभावक के 
रूप में भी जब क्ट्स्थयतयों को जााँचा-परखा तो पाया कक बच्चों के लालन-पालन में हमसे कही ंकमी रह जाती है। कहीं हम उन्हें अयत सुरिा प्रदान कर उनके स्वतंत्र व्यक्ट्क्ट्तत्व के पवकास में बाधक बन जाते ह ैंतो कहीं जरा-जरा सी गलती पर उन्हें अपमायनत 
दंडडत और प्रताडडत कर उनके आत्मपवश्वास को खंडडत करने की भूल कर जाते ह।ैं 
अपनी व्यस्तताओं में यघरे उनके मानमसक, बौद्धधक, रचनात्मक िमताओं को पहचाने की चेष्टा ही नहीं करते। अपनी इच्छाओं, महत्त्वाकांिाओं और सपनों को उन पर थोपने की भारी गलती कर बैठते ह।ैं उनके पवचारों एवं रुधचयों को सम्मान नहीं देते। 
उनके बाल-सुलभ कक्रया-कलापों पर हर समय रोक लगाते ह।ैं कडा अनुशासन रखते ह।ैं हमें चादहए बाल-मनोपवज्ञान को समझें और उन्हें एक सफल व्यक्ट्क्ट्तत्व का स्वामी बनाएाँ। 
बालक ईश्वर की सवोत्तम कृयत है। उसके पवकास के मलए घर में माता-पपता, पवद्यालय में मशिक और समाज की हर इकाई, बालसेवी संस्थाएाँ एवं प्रेरक सादहत्य की संयुक्ट्त भूममका है। इनमें से एक की भी भूममका पवघदटत होती है तो बालक का सामाक्ट्जक 
दृक्ट्ष्ट से पवकास अवरुद्ध हो जाता है और व्यक्ट्क्ट्तत्व कुंदठत। 
पररवार यानी माता-पपता बच्चे के व्यक्ट्क्ट्तत्व यनमाषण की पहली पाठशाला है। उसमें भी ‘मााँ’ की भूममका सबसे महत्त्वपूणष है। अगर माता-पपता अपन ेबालक से प्रेम करते ह ैंऔर उसकी अमभव्यक्ट्क्ट्त भी करते ह,ैं उसके प्रत्येक कायष में रुधच लेते ह,ैं उसकी 
इच्छाओं का सम्मान करते ह ैंतो बालक में उत्तरदाययत्व, सहयोग सद्भावना आदद सामाक्ट्जक गुणों का पवकास होगा और वह समाज के संगठन में सहायता देने वाला एक सफल नागररक बन सकेगा। अगर घर में ईमानदारी सहयोग का वातावरण है तो 
बालक में इन गुणों का पवकास भलीभााँयत होगा, अन्यथा वह सभी नैयतक मूल्यों को ताक पर रखकर मनमानी करेगा। और समाज के प्रयत घणृा का भाव मलये समाज-पवरोधी बन जायेगा। 
बच्चों का नैयतक पवकास उसके पाररवाररक एवं सामाक्ट्जक जीवन से संबंधधत है। जन्म के समय उनका अपना कोई मूल्य, धमष नहीं होता, लेककन क्ट्जस पररवार/समाज में वह जन्म लेता है, वैसा-वैसा उसका पवकास होता है। 
मशिालय के पयाषवरण का भी बालक के मानमसक स्वास््य पर पयाषप्त प्रभाव पडता है। उसका अपने मशिक तथा सहपादठयों से जो सामाक्ट्जक संबंध होता है वह अत्यंत महत्त्वपूणष है। बच्चों को मशिा देने के मलए सबसे पहले तो उन्हें प्यार करना चादहए। 
मशिक जब बच्चों को प्यार करता है, अपना हृदय उन्हें अपपषत करता है, तभी वह उनमें श्रम की खुशी, ममत्रता व मानवीयता की भावनाएाँ भर सकता है। मशिक को बाल हृदय तक पहुाँचना है। उनकी दहत-धचंता उसका महत्त्वपूणष कायष-भार है। वह ऐसा 
वातावरण बनाए पवद्यालय घर बन जाए। 
जहााँ भय न सौहादष हो। केवल तभी वह बच्चों को अपने पररवार, स्कूल और देश से प्रेम करना मसखा सकेगा, उनमें श्रम और ज्ञान पाने की अमभलार्ा जगा सकेगा। बाल हृदय तक पहुाँचना यही है। मशिण का सार है-छात्रों और मशिकों के मन का ममलन। 
सद्भावना और पवश्वास का वातावरण। पररवार जैसा स्नेह और सौहादष। 
बच्चों के प्रकृयत-प्रदत्त गुणों को मुखाररत करना, उनके नैयतक गुणों को पहचानना और साँवारना, उन्हें सच्चे ईमानदार और उच्च आदशों के प्रयत यनष्ठावान नागररक बनाना मशिक का ध्येय है। 
ककसी भी राष्र की प्रगयत ही नहीं वरन।् उनका अक्ट्स्तत्व भी बाल शक्ट्क्ट्त के प्रभावशाली उपयोग में यनदहत है। आज के बालक जो कल के नागररक होंगे, उनकी िमताओं, योग्यताओं का शीघ्र पता लगाकर उनको वैसा प्रमशिण देकर ऐसी ददशा में मोडा 
जाए, क्ट्जससे केवल उन्हें ही आत्म-संतुक्ट्ष्ट न हो वरन ्राष्र की समृद्धध में उनका समुधचत योगदान ममल सके। 
क्ट्या ‘स्कूल’ जाना जरूरी है? 
चैतन्य प्रकाश 
राजेश जोशी की एक कपवता है- ‘बच्चे काम पर जा रहे ह’ैं। इस कपवता में वे बच्चों के काम पर जाने पर आपपत्त करते हुए उनके स्कूल जाने की वकालत करते ह।ैं सारी दुयनया के सभ्य समाज बच्चों को स्कूल भेजने पर आमादा है। स्कूल नहीं जाने वाले 
बच्चे पपछडे या वंधचत माने जाते ह।ैं सभ्यता की अब तक उपलब्ध समझ ‘स्कूल’ को ज्ञान, ज्ञान को मशिा और मशिा को स्कूल से जोडकर देखने के मलए मानों प्रयतबध्द है। स्कूलों को ज्ञान का द्वार, पवद्या का केन्द्र, और इधर भारत में मां सरस्वती का 
मंददर मानकर पपवत्रता का दजाष दे ददया गया है। एक लंबे असे से भारत जैसे पवकासशील देशों में पवद्यालयी मशिा यहां के सामाक्ट्जक-आधथषक श्रेणी भेदों को पोपर्त करती नजर आती है। तरह-तरह के पवद्यालय ह ैंऔर तरह-तरह की मशिा। सरकारी 
टाटपट्टी स्कूल से लेकर ककंडर गाडषन तक, सभी तरह के पवद्यालय अमभभावकों की हैमसयत का पररचय देते प्रतीत होते ह।ैं आपका बच्चा कौन से स्कूल में पढ़ रहा है? यह सवाल मशिा की गुणवत्ता के बारे में कम बक्ट्ल्क अमभभावक की सामाक्ट्जक-आधथषक 
क्ट्स्थयत के बारे में ज्यादा जानने की मंशा जादहर करता है। एक बच्चे को तथाकधथत ‘अच्छे’ स्कूल में दाखखला ददलाने में सफल हो जाने वाले अमभभावक लगभग बच्चे की प्रयतभा और व्यक्ट्क्ट्तत्व पवकास इत्यादद का सारा क्ट्जम्मा स्कूलों पर डाल कर स्वयं 
यनभाषर सा अनुभव करते ह।ैं ‘अच्छे’ होन ेकी प्रमसक्ट्ध्द पा रहे या पाना चाह रह ेपवद्यालय भी पवद्याधथषयों के सवाांगीण पवकास का दावा और वादा करना नहीं भूलते ह।ैं कुल जमा, पैसे की कारीगरी इतनी सपाट है कक जैसे भव्य भवन-यनमाषण के ठेके ददए जा
रहे ह,ैं वैसे ही एक छोटे अबोध बच्चे की नैसधगषक, सहज पवकानसशील प्रयतभा और िमता को कृबत्रम रूप से काट-छांट कर, लीप-पोतकर एक रसूखदार इंसान बनान ेकी कवायद जोरों से जारी है, शायद इसी को आज की दुयनया अच्छी और बदढ़या मशिा 
कहती है। 
एक शताब्दी पहले जन्मे पवचारक- लेखक ‘अज्ञेय’ के उपन्यास ‘शेखर एक जीवनी’ की एक पंक्ट्क्ट्त बरबस याद आती है- ‘शेखर स्कूल नहीं गया, इसमलए वह व्यक्ट्क्ट्त बना, टाइप नहीं बना।’ आपने कभी बच्चों की नजर से स्कूल को देखा है? मध्यांतर में या 
पूरी छुट्टी के बाद स्कूल के गेट के बाहर पूरी ताकत से दौडते बच्चों को देखा है? सुबह, सवेरे स्कूल जाते बच्चों के सूने, सपाट और सहमे चेहरे को देखा है? मशिक के किा छोडने के बाद मुक्ट्क्ट्त का अहसास पाने वाले बच्चों की आवाजों की तीव्रता को सुना 
है? क्ट्या बच्चों की शरारतों में प्रकट होन ेवाली मशिकों के प्रयत उनकी प्रयतकक्रयाओं से आप पररधचत ह?ैं क्ट्या स्कूल की छुट्टी की खबर पाकर खुश होने वाले बच्चों में आप कभी शाममल रहे ह?ैं अगर इन सवालों का जवाब आपके भीतर ‘हां’ के रूप में आ रहा 
है तो एक नासमझी और नादानी की ममसाल कहे जा सकन ेवाले इस लगभग बचकाने सवाल को आप मशद्दत से महसूस कर सकते ह-ैं ‘क्ट्या स्कूल जाना जरूरी है? 
बाजार में तब्दील हो रही मशिा-व्यवस्था में यह सवाल अब प्रासंधगक होता जा रहा है। बोखझल पाठयक्रम, नीरस किाएं, खुद से सीखने के बजाय जबरन मसखाने पर जोर देने वाली तमाम मशिण-पध्दयतयां, भय और लोभ पर आधाररत यनयंत्रणकामी 
मशिकीय व्यवहार, एक हॉल में बंद कर, एक ही समय और यनयत अवधध में, एक ही प्रश्न पत्र को मलखखत रूप से हल करवाने वाली आरोपपत परीिा-प्रणाली इत्यादद अनेक आयाम क्ट्या वास्तव में उस मशिा के उद्देश्य को पूररत करने वाले तत्व ह ैंक्ट्जसे 
स्वामी पववेकानंद इस तरह पररभापर्त करते थे- 
बच्चों के व्यक्ट्क्ट्तत्व-यनमाषण में माता-पपता का योगदान 
बच्चे मानवता की ददव्यतम यनधध ह।ैं इनके लालन-पालन में स्नेह एवं मागष दशषन में पववेकपूणष दृक्ट्ष्ट तथा दूरदमशषता की आवश्यकता रहती है। बच्चों के व्यक्ट्क्ट्तत्व यनमाषण में माता-पपता के त्याग, धैयष, साहस, पररश्रम आदद वे सूत्र ह ैंक्ट्जनके द्वारा उनमें 
आत्मपवश्वास भरा जा सकता है। बच्चें के व्यक्ट्क्ट्तत्व-यनमाषण की पहली कायषशाला उसका पररवार है। बच्चों को बाल्यकाल से ही सामान्य सुरिा एवं प्रोत्साहन देना चादहए। संतोर्जनक पाररवाररक जीवन व्यक्ट्क्ट्तत्व के उधचत पवकास के मलए आवश्यक है। 
घर ही ऐसा स्थान है जहााँ बच्चे को यनपुणता प्राप्त होती है। एवं घर तभी एक पूणष घर माना जाता है, जब वे बालक का लालन-पालन इतने उत्तम ढंग से करें कक बच्चे का शारीररक, मानमसक, बौद्धधक एवं सामाक्ट्जक रूप से पूणष पवकास हो। 
माता-पपता बच्चों के व्यक्ट्क्ट्तत्व और चररत्र दोनों को प्रभापवत करने में सवाषधधक महत्त्वपूणष भूममका अदा करते ह।ैं उनके आपसी संबंधों और व्यवहार से बालमन सहज ही जुड जाता है। माता-पपता उसके मलए सुरिा और स्नेह का स्रोत ह।ैं उनके परस्पर 
मधुर संबंध जहााँ बच्चों के चहाँुमुखी पवकास में सहायक होते ह,ैं वहीं उनके आपसी तनावपूणष टूटते ररश्ते उनके पवकास को न केवल अवरूद्ध कर देते ह,ैं 
माता-पपता बच्चों की क्ट्जज्ञासावृपत्त का सदा सम्मान करें। अक्ट्सर ऐसा होता है, समयाभाव के कारण हम बच्चों की समस्याओं, उनके प्रश्नों को न तो पूरे मन से सुन पाते ह ैंऔर उनके कौतूहल को शान्त कर उन्हें संतुष्ट कर पाते ह।ैं कुछ भी पूछने पर उन्हें 
डााँटकर उनकी यनरीिण-िमता को दबा देने का अनजाने में अपराध कर जाते ह।ैं ऐसा करके हम उनके भीतर की सृजानात्मक संभावनाओं को पल्लपवत होने से पूवष ही दममत कर देत ेह।ैं ऐसे बच्चे अक्ट्सर वक्ट्जषत अमभव्यक्ट्क्ट्त तलाशने लगते ह।ैं 
यह सब बच्चों के दहत में नहीं है, माता-पपता का कतषव्य है कक वे बच्चे की हर संभव क्ट्जज्ञासा का शमन करें। क्रोध और खीझ में भर कर नहीं, स्नेह और धैयष के साथ उनकी हर शंका का यथासंभव यनवारण करें। उन्हें समय दें। उन्हें अभय प्रदान करें, ऐसा न 
हो कक माता-पपता के उग्र रूप की परछाईं पकडे बच्चे अपनी ही क्ट्जज्ञासाओं के भाँवर-जाल में डूब जाएाँ। 
अतः लाख कामों में मशगूल होते हुए भी उनसे इस प्राकृयतक अधधकार को न छीनें, जो आपके सभी कतषव्यो से ऊपर है। उन्हें समय और स्नेह दें। उनके साथ बैठें, उनकी परेशायनयों के पवर्य में उनसे बात करते उनकी सहायता करें। बच्चे की किा व 
गृहकायष की कॉपी देखें। मशिक के मलखे नोट पढ़ें। बच्चों के ममत्र बनकर उनके साथ खुलकर बातचीत करें। उन्हें डराएाँ धमकाएाँ नहीं वरन ्सहायता का आश्वासन देकर उन्हें मानमसक उलझन से मुक्ट्त करें। 
ककसी टैस्ट या परीिा में कम अंक पाने पर उन्हें प्रताडडत न करें। कारण की तह तक जाएाँ, न कक पीटकर, अपशब्द बोलकर या डााँटकर उन्हें शारीररक व मानमसक दुःख पहुाँचाएाँ। उनका मनोबल बढ़ाते हुए उन्हें उत्साहवधषक शब्द दें। उन्हें कहें कक वे 
प्रयतभाशाली ह।ैं पुरुर्ाथी ह।ैं एक उन्नत भपवष्य उन्हें पुकार रहा है। उन्हें उनकी प्रयतभा से पररधचत कराएाँ। 
बच्चों की मानमसक, बौद्धधक एवं रचनात्मक िमताओं को पहचानें, अक्ट्सर माता-पपता अपने बच्चों की रुधचयों एवं िमताओं से अनमभज्ञ रहकर उन पर अपनी इच्छाओं, महत्त्वाकांिाओं और सपनों को थोप देने की भारी भूल कर बैठते ह।ैं स्वयं अगर 
डॉक्ट्टर, इंजीयनयर, प्रोफेसर, वकील, आई.ए.एस. अफसर नहीं बन पाए तो अपनी अतप्ृत लालसा को उनमें तलाशना शुरू कर देते ह।ैं अपनी चाहत उन पर लाद कर उनकी बुद्धध को कंुदठत करने की भूल कदापप न करें। उनके अपने सपनें ह ैंक्ट्जन्हें वे पूरा 
करना चाहेंगे। प्रकृयत ने हर व्यक्ट्क्ट्त को एक-एक पवशेर् योग्यता देकर भेजा है। 
बच्चों को अयत लाड-प्यार अथवा अयतररक्ट्त सुरिा प्रदान न करें। अधधक संरिण उनके स्वतंत्र व्यक्ट्क्ट्तत्व पवकास में बाधक बनता है। बच्चों को खेलने और धगरने दीक्ट्जए। धगरकर साँभलना अधधक महत्त्वपूणष है। बचपन में ददनेश जब भी साइककल चलाता, 
उसके पपता साथ ही रहते। एक बार साइककल चलाते वक्ट्त वह धगर गया। 
उसे काफी चोटें आईं और बायें हाथ की हड्डी भी टूट गयी। पपता ने दुबारा साइककल न चलाने का हुक्ट्म दे ददया और साइककल उठाकर ककसी को दे दी। बालमन में चोट का भय सदा के मलए बैठ गया। बचपन में साइककल चलाना तक न सीख पाने के कारण 
स्कूटर और कार चलाने की बात तो वह सोच भी नहीं पाता। इतना ही नहीं ककसी और के साथ स्कूटर या कार में बैठकर चलते समय भी ददनेश सदा तनावग्रस्त रहता है। उसके अवचेतन मन में हर समय दुघषटना की आशंका बनी रहती है। अतः बालक को 
अयतलामलत कर कदठनाइयों से भागने वाला न बनाएाँ अन्यथा वह पूरा जीवन पर-यनभषर एवं दूसरों का मुखापेिी बना रहेगा। 
दुयनया भर में लाखों ऐसे बच्चे ह ैंक्ट्जन्हें अपने बचपन को भुला कही ंन कही ंकाम करना पडता है । ऐसे बच्चों को भी अपना बचपन पूरा जीने का हक है । चलो हम भी ऐसे नन्हे-मुन्ने प्यारे-प्यारे बचपन को संवारने में अपनी आवाज़ उठाएं और बाल-श्रम 
जैसी भयानक सामाक्ट्जक बीमारी को जड से ममटाने में अपना सहयोग दें | 
बच्चे जग की बडी यनयामत 
ऐसी भी क्ट्या आई कयामत 
इनके नन्हे-नन्हे हाथ 
करते रहें काम ददन रात 
जूठन मांजें जूठन खाएं 
खेल कूद मस्ती को भुलाएं
कभी खडे हो सडक ककनारे 
माल बेचने लगें बेचारे 
कभी करते ये जूते साफ़ 
ये कैसा इन संग इंसाफ़ ? 
बेचें फ़ल पर खुद न खाएं 
बोझा कंधों पर उठाएं 
कभी भीख में हाथ बढाएं 
खेतों में जा काम कराएं 
कहां खो गया इनका बचपन ? 
मरा हुआ क्ट्यों इनका मन ? 
भोलेपन पर भारी काम 
बचपन में भी नहीं आराम 
नींद चैन और खेल भी खोया 
छुप-छुप कर ये ककतना रोया 
क्ट्यों न ककसी नें इनको जाना 
प्यारा बचपन न पहचाना 
स्कूल और दोस्तों से दूर 
क्ट्यों भाग्य इनका क्रूर 
आओ ममल अमभयान चलाएं 
बाल-श्रम को जड से ममटाएं 
खो न जाए इनका बचपन 
न रोए कोई नन्हामन 
भर जाए खुमशयों से बचपन 
दुयनया का अनमोल रत्न 
खो न जाए बाल-मुस्कान 
दबें नहीं इनके अरमान 
आओ ममलकर करें पवचार 
इन बच्चों की सुनें पुकार 
जीने का इन्हें भी अधधकार 
न हो बचपन का यतरस्कार 
गया बचपन न लौट के आए 
आओ हम बचपन को बचाएं 
बाल-श्रम को जड से ममटाएं 
आओ ममल अमभयान चलाएं
मत छीनो मुझसे मेरा बचपन 
यह श्याम है इसकी उम्र 12 वर्ष है. यह अपने माता-पपता और चार भाई-बहनों के साथ रहता है. एक वर्ष पहले इसके पपता को लकवा पडा था और तब से वह बबस्तर में ही पडे रहते है. श्याम की माता दूसरे घरों में बतषन धोती ह ैंऔर महीने में दो हजार रुपये 
कमाती ह ैंपरन्तु यह रकम सात लोगों के पररवार का खचाष चलाने के ललए उपयुक्त नहीीं थी अतः श्याम को एक ढाबे में काम करना पडा. उसे अपना स्कूल छोडना पडा और पैसों की खाततर उसे अपना बचपन कुबाषन करना पडा. यह कहानी केवल श्याम की 
नहीीं है. यह दास्तााँ उन करोडों बच्चों की है जिनका बचपन गरीबी के कारण अींधकारमय हो गया है और मजबूरन उन्हें बाल मजदूरी करनी पड रही है. 
बचपन-“खुमशयों का बसेरा” 
बचपन का मतलब होता है मौज-मस्ती और खेल-कूद के ददन, जहााँ बच्चा ककताबों के माध्यम से ज्ञान अन्वेर्ण करता है. बाल अवस्था में बच्चा सुख- 
दुःख से अनजान कभी अपनी ककताबों से भरे बस्ते से जूझता है तो कभी अध्यापक द्वारा ददए गए होमवकष से, कभी खेल के मैदान में कक्रकेट की गेंद से जूझता तो कभी अपने दोस्तों के मनोभावों में बहकर क्रोध का पात्र बनता है. बचपन मासूम होता है, एक 
बच्चे के मलए उसका घर और स्कूल ही उसका संसार होता है. 
जब हम बामलग अवस्था में कदम रखते ह ैंतो जीवन यापन करने के नए आयाम ढूाँढने लगते ह.ैं रोज़ी-रोटी के संसाधनों की प्राक्ट्प्त के मलए हम नौकरी करते ह ैंऔर मौज-मस्ती के ददन क्ट्ज़म्मेदारी में तब्दील हो जाते ह.ैं पररवार का उत्तरदाययत्व आपके कंधों 
पर आ जाता है और आप सामाक्ट्जक बंधनों से बंध जाते ह.ैं तब हम अपने बचपन की तरफ तरसी नजरों से देखते ह ैंऔर सोचते ह ैंकाश “हम भी अगर बच्चे होते”. 
लेककन अगर आप से आपकी बाल्यावस्था छीन ली जाए और आप को रोज़ी-रोटी कमाने के मलए काम करना पडे तो? काम क्ट्या आप को मजदूरी करनी पडे तो? कहााँ रह जाएगा आप का बचपन, खो जाएगी आपकी आज़ादी और आप की क्ट्जंदगी कालकोठरी 
के अाँधेरे में कहीं गुम हो जाएगी. कुछ ऐसे ही फररयाद भारत के उन बाल मजदूरों की है जो हमसे यह गुहार कर रहे ह ैंकक “मत छीनो मुझसे मेरा बचपन”. 
बाल-श्रम “एक अमभशाप” 
आज हमारे देश में एक करोड से भी ज़्यादा बाल श्रममक ह ैंजो दुयनया के ककसी भी देश की तुलना में सबसे अधधक है. यद्यपप हमारा संपवधान 6 से 14 वर्ष के बच्चों को अयनवायष मशिा प्रदान करने की कवायद करता है कफर भी इसके बावज़ूद आज हमारा 
देश इस श्राप से ग्रपर्त है. आज हमारे देश में बाल मजदूर हर िेत्र में पाए जाते ह.ैं बीडी के कारखाने, मशल्पकारी, कारीगरी, होटलों, ढाबों और यहााँ तक की पटाखे बनाने जैसे असुरक्षित कायों में भी बाल श्रममक पाए जाते ह.ैं पवडंबना यह है कक लोगों को पता 
है बाल मज़दूरी समाज पर श्राप है, वह इसका पवरोध भी करते ह ैंपरन्तु मसफष बोलकर या मलखकर. ज़मीनी स्तर पर आप जाएं तो सच्चाई कुछ और है. यहााँ तक कक सरकार की बात करें तो वह बाल मजदूरी के खखलाफ़ नीयतयााँ बनाती है परन्तु ककतनों का 
पालन होता है इसका अंदाज़ा इस बात स ेही लगाया जा सकता है कक 24 साल हो गए बाल मजदूरी यनर्ेधाज्ञां और पवयनयमन कानून को परन्तु अभी तक क्ट्स्थयत वही की वही है. आंकडे बद से बदतर हो गए ह.ैं इतने वर्ों में बाल मजदूरी करने वाले बच्चों की 
धगनती 15 % अधधक हो गई है. 
बाल मज़दूरी के कारण
1979 में सरकार ने गुरुपद्स्वामी सममयत का गठन ककया गया था क्ट्जसका उद्देश्य उन कारणों का पता लगाना था क्ट्जसके कारण बाल मज़दूरी फैलती है. इसके साथ-साथ इस सममयत को बाल मजदूरी को खत्म करने के मलए उधचत उपाय भी सुझाने थे. 
गुरुपद्स्वामी सममयत के मुताबबक बाल मज़दूरी का मुख्य कारण गरीबी है. गरीबी के रहते हमारे देश के अधधकतर पररवार दो वक्ट्त का खाना भी प्राप्त नहीं कर पाते, अतः मज़बूरन अपने पररवार के पालन-पोर्ण हेतु बच्चों को काम-धंधा ढूंढ़ना पडता है, 
क्ट्जसके रहते वह अमशिा का भी मशकार जो जाते ह ैंऔर अंततः बाल मज़दूरी करने पर आधश्रत हो जाते ह.ैं 
वर्ष 2008 की पवडम्बना 
वर्ष 2008 में सरकार ने बाल मज़दूरी को अपराध घोपर्त ककया, क्ट्जसके तहत होटलों, घरों, कारखानों इत्यादद जगहों में काम करने वाले बाल मज़दूरों को मज़दूरी से हटा कर उधचत मशिा का प्रावधान रखा गया. इसके अलावा बाल मज़दूरी को बल देने वाले 
व्यक्ट्क्ट्तयों के खखलाफ़ दंड देने का प्रावधान भी रखा गया. क्ट्जसके तहत बच्चों को मज़दूरी करवा रहे व्यक्ट्क्ट्तयों को दंड के तौर पर कारावास हो सकती थी या उन्हें मुआवजा देना पडता. परन्तु सरकार के इस सराहनीय कदम के बाद भी इस कानून को प्रयतरोध 
का सामना करना पडा. लेककन पवडम्बना देखखये यह पवरोध मामलकों की तरफ़ से ना होकर बाल श्रम से ग्रपर्त पररवारों की तरफ़ से था. इस पवरोध का मुख्य कारण पररवारों की आधथषक तंगी थी क्ट्योंकक अगर उनके घर एक भी व्यक्ट्क्ट्त काम करना बंद कर 
देता है तो इसका मतलब है कक उनके घर की आय कम होना अथाषत खाने की तंगी और गरीबी का बढ़ना. इस हालत में उनके पास इस कानून के खखलाफ़ पवरोध करना ही बचता है. 
परन्तु क्ट्या यह पवरोध सही है? क्ट्या हमें इन नन्हे पररंदों के सपने तोडने का हक है? यह प्रश्न एक समस्या गहराते ह ैंजो कक समाज के प्रयत अमभशाप है. आखखर यह सवाल उन करोडों बच्चों से जुडा है जो अंधकारमय जीवन जी रहे ह.ैं 
इन बाल-मजदूरों को सहानुभूयत की ज़रूरत नहीं है बक्ट्ल्क इनकी समस्या गरीबी के फंदे से जकडी है. अतः एक कतषव्ययनष्ठ सामाक्ट्जक व्यक्ट्क्ट्त होने के नाते यह हमारी क्ट्जम्मेदारी है कक हम गरीबी के कारणों को समझें और इसे हटाने के प्रयत्न करें. 
बाल मज़दूरी तभी खत्म हो सकती है जब इन बाल-मजदूरों को कम वेतन के एवज में अच्छी पढ़ाई ममले क्ट्जससे आगे चलकर वह भी अच्छी नौकरी पाएं या अच्छी क्ट्जंदगी के हकदार बन सकें. अच्छी नौकरी का मतलब है आधथषक तंगी से यनजात जो गरीबी 
भी खत्म करती है. अगर हम गरीबी से यनजात पा लें तो उससे जुडी अनेकों समस्याएं समाप्त हों सकती ह.ैं 
खुमशयों के बसेरे में, मैं भी जीना चाहता हूं 
, 
महसूस करना चाहता हूं 
बचपन की मौज-मस्ती, 
तारों की दटमदटमाहट मैं भी देखना चाहता हूं 
, 
आखखर मैं भी पढ़ना चाहता हूं 
, 
आखखर मैं भी पढ़ना चाहता हूं 
………….. 
बाल श्रम बंद करो का नारा ककया बुलंद 
फ़ोटो देखें 
बाल श्रम बंद करो का नारा ककया बुलंद 
यनज प्रयतयनधध, बोधगया (गया): अंतरराष्रीय अवैध मानव व्यापार ददवस के अवसर पर बुधवार को स्कूली छात्रों ने 'बाल श्रम बंद करो' के नारे को बुलंद ककए। स्कूली छात्रों ने लक्ष्य संस्थान पटना के तत्वावधान में राजकीय मध्य पवद्यालय बगदाहा से 
मानव व्यापार एवं बाल श्रम के पवरूद्ध एक जागरूकता रैली यनकाली। स्कूली छात्रों ने धनावां पंचायत के महादमलत टोलों में भ्रमण कर बाल श्रम बंद करो, मानव व्यापार बंद करो, बच्चों को भेजो स्कूल नहीं तो होगी भारी भूल की आवाज बुलंद कर रहे थे। 
और लोगों से बच्चों को मशक्षित करने की बात कह रहे थे। जागरूकता रैली के आयोजन में मध्य पवद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक सुनील कुमार सुमन का सहयोग प्राप्त हुआ। रैली का नेतत्ृव लक्ष्य कायषकताष मनोज कुमार ने की। इसमें स्कूली बच्चों के 
अलावा मो. नौशाद आलम, माला कुमारी सदहत अन्य शाममल हुए।

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  • 2. घर में चूल्हा जल सके। चलती बस या रेन पर, पवमभन्न वस्तुओं को लाद कर यह बच्चे ददन भर ग्राहकों के पीछे दौडकर उन्हें बेचते रहते ह।ैं भारत में 1.67 प्रयतशत बच्चे घरों में काम करते ह।ैं इनमें से 3.15 प्रयतशत लडककयााँ होती ह।ैं कालीन कंपयनयों में तथा पटाखा यनमाषण फैक्ट्क्ट्रयों में बाल श्रममकों को कदठन पररक्ट्स्थयतयों में काम करना पडता है। सन 1986 में भारत सरकार ने बाल श्रम कानून लागू ककया क्ट्जसके तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चों को कहीं भी काम पर नहीं लगाया जा सकता। परंतु इस कानून का उल्लंघन लगातार ककया जा रहा है। फलस्वरूप, गैरकानूनी तौर पर बाल श्रममकों को कम वेतन के मलए असुरक्षित क्ट्स्थयतयों में काम के मलए पववश ककया जाता है। धुाँधली रोशनी में चहारदीवारों में कम उम्र के बच्चे काम कर रहे ह।ैं छोटी सी छोटी गलयतयों के मलए इन पर हाथ उठाया जाता है। प्रयतददन पंद्रह से अधधक घंटे काम कराया जाता है। अंत में सूखी रोटी दी जाती है। स्वतंत्र भारत के इयतहास में बाल श्रम सामाक्ट्जक बुराइयों को दशाषता है। स्वतंत्रता संग्राम सेनायनयों ने कभी सोचा भी न होगाकक भारत के मासूम बच्चों को गुलाम बनाकर उनका शोर्ण ककया जाएगा। क्ट्जन हाथों में ककताब होनी चादहए उन हाथों पर घाव के यनशान है, तथा सुई और धागे चला रहे ह।ैं कााँच की फैक्ट्री में तेज आाँच के सामने घंटों खडे रहकर उनसे काम कराया जाता है। इससे उनके स्वास्थ पर बुरा प्रभाव पडता है। अक्ट्सर ये बच्चे हृदय रोग या आाँखों की समस्या से पीडडत हो जाते ह ैं कोहरे से ढकी सडक पर सुबह सुबह बच्चे काम पर जा रहे ह ैं देखने वाला कोई नहीं उनको इतनी ठण्ड में पर कफर भी बच्चे काम पर जा रहे ह ैं कोहरे से ढकी सडक पर सुबह सुबह बच्चे काम पर जा रहे ह ैं बाल श्रम एक धचंतनीय समस्या है हम प्रयतददन बच्चो को काम करते हुए देखते ह ैंऔर कफर हमें दया भी आती है पर हम कुछ कर नहीं पाते बच्चो को काम पर जाते देख हम कई बार सोचते ह ैंपर यह नहीं समझ सकते की बच्चे काम पर क्ट्यों जा रहे ह ैं baherhal बाल श्रम को रोकने के मलए हमें इस मुद्दे को पववरण की तरह नहीं बक्ट्ल्क सवाल के रूप में मलखना होगा क्ट्योंकक पववरण को तो जनता भूल जाती है पर सवाल पर जनता धचंतन करती है में यह सवाल उठाना चाहता हूाँ की आखखर हमारे देश में बच्चे खेलने कूदने की उम्र मैं बाल श्रममक क्ट्यों है क्ट्यों हम उनके मलए कुछ नहीं कर सकते यह एक प्रश्न है सोचनीय मुद्दा है बाल श्रम को रोकने के मलए सबसे पहले हमें यनम्न कायष करने होंगे १. सबसे पहले हमें बच्चो से उनके काम पर जाने की वजह जाननी होगी २. बच्चे श्रममक क्ट्यों है क्ट्या मज़बूरी है ३. बच्चो को क्ट्यों नहीं पढाया जाता हमारा भारत सकल घरेलु उत्पाद दर में प्रगयत कर रहा है आईटी के शेत्र में नए कीयतमषान बना रहा है यह सब ककसकी बदौलत हो रहा है हमारे प्रयतभावान पवद्याधथषयों की वजह से हमारे प्रधानमंत्री को बाल श्रम रोकने की कायष योजना बनानी चादहए मदहला एवं बाल पवकास पवभाग को भी इस पर धचंता करनी चादहए आज आप लोग उन बच्चो को देखे जो श्रममक है उनमे भी प्रयतभा है पर यह प्रयतभा तभी यनखरेगी जब उन्हें पढाया जाये महान अथषशास्त्री और नोबेल पुरस्कार पवजेता श्री अमत्यष सेन ने कहा है की क्ट्जस ददन हमारे देश के बच्चो को पढाया जायेगा और बाल श्रम रुकेगा तभी हमारा भारत सकल घरेलु उत्पाद दर में प्रगयत करेगा हमारी सरकार को सोचना चादहए की यह बाल श्रम क्ट्यों हो रहा है क्ट्या वजह है तभी कुछ हो पायेगा तभी बाल श्रम रोका जायेगा और हमारी सरकार कुछ करे तभी यह समस्या ख़तम होगी देशदहत में अजय पाण्डेय द्वारा जारी बाल मजदूरी देश के मलए अमभशाप कई सरकारें बाल मज़दूरों की सही संख्या बताने से बचती ह.ैं ऐसे में वे जब पवशेर् स्कूल खोलने की म़िफाररश करती ह ैंतो उनकी संख्या कम होती है, ताकक उनके द्वारा चलाए जा रहे पवकास कायों और कायषकलापों की पोल न खुल जाए. यह एक बेहद महत्वपूणष पहलू है और आज ज़रूरत है कक इन सभी मसलों पर गहनता से पवचार ककया जाए यह माना जाता है कक भारत में 14 साल के बच्चों की आबादी पूरी अमेररकी आबादी से भी ज़्यादा है. भारत में कुल श्रम शक्ट्क्ट्त का लगभग 3.6 फीसदी दहस्सा 14 साल से कम उम्र के बच्चों का है. हमारे देश में हर दस बच्चों में से 9 काम करते ह.ैं ये बच्चे लगभग 85 फीसदी पारंपररक कृपर् गयतपवधधयों में कायषरत ह,ैं जबकक 9 फीसदी से कम उत्पादन, सेवा और मरम्मती कायों में लगे ह.ैं म़िफष 0.8 फीसदी कारखानों में काम करते ह.ैं आमतौर पर बाल मज़दूरी अपवकमसत देशों में व्याप्त पवपवध समस्याओं का नतीजा है. भारत सरकार दूसरे राज्यों के सहयोग से बाल मज़दूरी ख़त्म करने की ददशा में तेज़ी से प्रयासरत है. इस लक्ष्य को हामसल करने के मलए सरकार ने राष्रीय बाल श्रम पररयोजना (एनसीएलपी) जैसे महत्वपूणष क़दम उठाए ह.ैं आज यह कहने की ज़रूरत नहीं है कक इस पररयोजना ने इस मामले में काफा़ी अहम काय षककए ह.ैं इस पररयोजना के तहत हज़ारों बच्चों को सुरक्षित बचाया गया है. साथ ही इस पररयोजना के तहत चलाए जा रहे पवशेर् स्कूलों में उनका पुनवाषस भी ककया गया है. इन स्कूलों के पाठ्यक्रम भी पवमशष्ट होते ह,ैं ताकक आगे चलकर इन बच्चों को मुख्यधारा के पवद्यालयों में प्रवेश लेन ेमें ककसी तरह की परेशानी न हो. ये बच्चे इन पवशेर् पवद्यालयों में न म़िफष बुयनयादी मशिा हामसल करते ह,ैं बक्ट्ल्क उनकी रुधच के मुताबबक़ व्यवसाययक प्रमशिण भी ददया जाता ह.ै राष्रीय बाल श्रम पररयोजना के तहत इन बच्चों के मलए यनयममत रूप से खानपान और धचककत्सकीय सहायता की व्यवस्था है. साथ ही इन्हें एक सौ रुपये मामसक वजीफा़ा ददया जाता है. ग़ैर सरकारी संगठनों या स्थानीय यनकायों द्वारा चलाए जा रहे ऐसे स्कूल इस पररयोजना के अंतगषत अपना काम भलीभांयत कर रहे ह.ैं हज़ारों बच्चे मुख्य धारा में शाममल हो चुके ह,ैं लेककन अभी भी कई बच्चे बाल मज़दूर की क्ट्ज़ंदगी जीने को मजबूर ह.ैं समाज की बेहतरी के मलए इस बीमारी को जड से उखाडना बहुत ज़रूरी है. एनसीएलपी जैसी पररयोजनाओं के सामने कई तरह की समस्याएं ह.ैं यदद हम सभी इन समस्यायों का मूल समाधान चाहते ह ैंतो हमें इन पर गहनता से पवचार करने की ज़रूरत है. इस संदभष में सबसे पहली ज़रूरत है 14 साल से कम उम्र के बाल मज़दूरों की पहचान करना. आखख़र वे कौन स ेमापदंड ह,ैं क्ट्जनसे हम 14 साल तक के बाल मज़दूरों की पहचान करते ह ैंऔर जो अंतरराष्रीय स्तर पर भी मान्य हों? क्ट्या हमारा तात्पयष यह होता है कक जब बच्चा 14 साल का हो जाए तो उसकी देखभाल की क्ट्जम्मेदारी राज्य की हो जाती है? हम जानते ह ैंकक ग़रीबी में अपना गुज़र-बसर कर रहे बच्चों कोपरवररश की ज़रूरत है. कोई बच्चा जब 14 साल का हो जाता है और ऐसे में सरकार अपना सहयोग बंद कर दे तो मुमककन है कक वह एक बार कफर बाल मज़दूरी के दलदल में फंस जाए. यदद सरकार ऐसा करती है तो यह समस्या बनी रह सकती है और बच्चे इस दलदल भरी क्ट्ज़ंदगी से कभी बाहर ही नहीं यनकल पाएंगे. कुछ लोगों का मानना है और
  • 3. उन्होंने यह प्रस्ताव भी रखा है कक बाल मज़दूरों की पहचान की न्यूनतम आयु बढ़ाकर 18 साल कर देनी चादहए. साथ ही सभी सरकारी सहायताओं मसलन मामसक वजीफा़ा, धचककत्सा सुपवधा और खानपान का सहयोग तब तक जारी रखना चादहए, जब तक कक बच्चा 18 साल का न हो जाए. यहां बाल श्रम से यनपटने की ददशा में न म़िफष नए मसरे से सोचने की आवश्यकता है, बक्ट्ल्क इसके मलए कायषरत पवमभन्न पररयोजनाओं को पवत्तीय सहायता आवंदटत करने की भी ज़रूरत है. कुछ मामलों में बाल श्रममकों की पहचान की ज़रूरत तो नहीं है, लेककन इन पररयोजनाओं में कुछ बुयनयादी संशोधन की आवश्यकता ज़रूर है. इस देश से बाल मज़दूरी ममटाने के मलए अधधक समक्ट्न्वत और सहयोगात्मक रवैया अपनाने की सख्त आवश्यकता है. बालक ईश्वर की सवोत्तम कृयत है। उसके पवकास के मलए घर में माता-पपता, पवद्यालय में मशिक और समाज की हर इकाई, बालसेवी संस्थाएाँ एवं प्रेरक सादहत्य की संयुक्ट्त भूममका है। इनमें से एक की भी भूममका पवघदटत होती है तो बालक का सामाक्ट्जक दृक्ट्ष्ट से पवकास अवरुद्ध हो जाता है और व्यक्ट्क्ट्तत्व कुंदठत। हर बालक अनगढ़ पत्थर की तरह है क्ट्जसमें सुन्दर मूयत षयछपी है, क्ट्जसे मशल्पी की आाँख देख पाती है। वह उसे तराश कर सुन्दर मूयत षमें बदल सकता है। क्ट्योंकक मूयत षपहले से ही पत्थर में मौजूद होती है मशल्पी तो बस उस फालतू पत्थर को क्ट्जससे मूयत ष ढकी होती है, एक तरफ कर देता है और सुन्दर मूयत षप्रकट हो जाती है। माता-पपता, मशिक और समाज बालक को इसी प्रकार साँवार कर खूबसूरत व्यक्ट्क्ट्तत्व प्रदान करते ह।ैं अपनी बात अडतीस वर्ों से यनरंतर अध्यापन कर रही हूाँ क्ट्जसे अपना परम सौभाग्य व ईश्वर का वरदान मानती हूाँ। इन वर्ों में मैंने बहुत कुछ देखा, सोचा-पवचारा, जाना समझा। युवा होते बच्चों से पररचय हुआ। उनके बचपन में लौट कर झााँका। एक अमभभावक के रूप में भी जब क्ट्स्थयतयों को जााँचा-परखा तो पाया कक बच्चों के लालन-पालन में हमसे कही ंकमी रह जाती है। कहीं हम उन्हें अयत सुरिा प्रदान कर उनके स्वतंत्र व्यक्ट्क्ट्तत्व के पवकास में बाधक बन जाते ह ैंतो कहीं जरा-जरा सी गलती पर उन्हें अपमायनत दंडडत और प्रताडडत कर उनके आत्मपवश्वास को खंडडत करने की भूल कर जाते ह।ैं अपनी व्यस्तताओं में यघरे उनके मानमसक, बौद्धधक, रचनात्मक िमताओं को पहचाने की चेष्टा ही नहीं करते। अपनी इच्छाओं, महत्त्वाकांिाओं और सपनों को उन पर थोपने की भारी गलती कर बैठते ह।ैं उनके पवचारों एवं रुधचयों को सम्मान नहीं देते। उनके बाल-सुलभ कक्रया-कलापों पर हर समय रोक लगाते ह।ैं कडा अनुशासन रखते ह।ैं हमें चादहए बाल-मनोपवज्ञान को समझें और उन्हें एक सफल व्यक्ट्क्ट्तत्व का स्वामी बनाएाँ। बालक ईश्वर की सवोत्तम कृयत है। उसके पवकास के मलए घर में माता-पपता, पवद्यालय में मशिक और समाज की हर इकाई, बालसेवी संस्थाएाँ एवं प्रेरक सादहत्य की संयुक्ट्त भूममका है। इनमें से एक की भी भूममका पवघदटत होती है तो बालक का सामाक्ट्जक दृक्ट्ष्ट से पवकास अवरुद्ध हो जाता है और व्यक्ट्क्ट्तत्व कुंदठत। पररवार यानी माता-पपता बच्चे के व्यक्ट्क्ट्तत्व यनमाषण की पहली पाठशाला है। उसमें भी ‘मााँ’ की भूममका सबसे महत्त्वपूणष है। अगर माता-पपता अपन ेबालक से प्रेम करते ह ैंऔर उसकी अमभव्यक्ट्क्ट्त भी करते ह,ैं उसके प्रत्येक कायष में रुधच लेते ह,ैं उसकी इच्छाओं का सम्मान करते ह ैंतो बालक में उत्तरदाययत्व, सहयोग सद्भावना आदद सामाक्ट्जक गुणों का पवकास होगा और वह समाज के संगठन में सहायता देने वाला एक सफल नागररक बन सकेगा। अगर घर में ईमानदारी सहयोग का वातावरण है तो बालक में इन गुणों का पवकास भलीभााँयत होगा, अन्यथा वह सभी नैयतक मूल्यों को ताक पर रखकर मनमानी करेगा। और समाज के प्रयत घणृा का भाव मलये समाज-पवरोधी बन जायेगा। बच्चों का नैयतक पवकास उसके पाररवाररक एवं सामाक्ट्जक जीवन से संबंधधत है। जन्म के समय उनका अपना कोई मूल्य, धमष नहीं होता, लेककन क्ट्जस पररवार/समाज में वह जन्म लेता है, वैसा-वैसा उसका पवकास होता है। मशिालय के पयाषवरण का भी बालक के मानमसक स्वास््य पर पयाषप्त प्रभाव पडता है। उसका अपने मशिक तथा सहपादठयों से जो सामाक्ट्जक संबंध होता है वह अत्यंत महत्त्वपूणष है। बच्चों को मशिा देने के मलए सबसे पहले तो उन्हें प्यार करना चादहए। मशिक जब बच्चों को प्यार करता है, अपना हृदय उन्हें अपपषत करता है, तभी वह उनमें श्रम की खुशी, ममत्रता व मानवीयता की भावनाएाँ भर सकता है। मशिक को बाल हृदय तक पहुाँचना है। उनकी दहत-धचंता उसका महत्त्वपूणष कायष-भार है। वह ऐसा वातावरण बनाए पवद्यालय घर बन जाए। जहााँ भय न सौहादष हो। केवल तभी वह बच्चों को अपने पररवार, स्कूल और देश से प्रेम करना मसखा सकेगा, उनमें श्रम और ज्ञान पाने की अमभलार्ा जगा सकेगा। बाल हृदय तक पहुाँचना यही है। मशिण का सार है-छात्रों और मशिकों के मन का ममलन। सद्भावना और पवश्वास का वातावरण। पररवार जैसा स्नेह और सौहादष। बच्चों के प्रकृयत-प्रदत्त गुणों को मुखाररत करना, उनके नैयतक गुणों को पहचानना और साँवारना, उन्हें सच्चे ईमानदार और उच्च आदशों के प्रयत यनष्ठावान नागररक बनाना मशिक का ध्येय है। ककसी भी राष्र की प्रगयत ही नहीं वरन।् उनका अक्ट्स्तत्व भी बाल शक्ट्क्ट्त के प्रभावशाली उपयोग में यनदहत है। आज के बालक जो कल के नागररक होंगे, उनकी िमताओं, योग्यताओं का शीघ्र पता लगाकर उनको वैसा प्रमशिण देकर ऐसी ददशा में मोडा जाए, क्ट्जससे केवल उन्हें ही आत्म-संतुक्ट्ष्ट न हो वरन ्राष्र की समृद्धध में उनका समुधचत योगदान ममल सके। क्ट्या ‘स्कूल’ जाना जरूरी है? चैतन्य प्रकाश राजेश जोशी की एक कपवता है- ‘बच्चे काम पर जा रहे ह’ैं। इस कपवता में वे बच्चों के काम पर जाने पर आपपत्त करते हुए उनके स्कूल जाने की वकालत करते ह।ैं सारी दुयनया के सभ्य समाज बच्चों को स्कूल भेजने पर आमादा है। स्कूल नहीं जाने वाले बच्चे पपछडे या वंधचत माने जाते ह।ैं सभ्यता की अब तक उपलब्ध समझ ‘स्कूल’ को ज्ञान, ज्ञान को मशिा और मशिा को स्कूल से जोडकर देखने के मलए मानों प्रयतबध्द है। स्कूलों को ज्ञान का द्वार, पवद्या का केन्द्र, और इधर भारत में मां सरस्वती का मंददर मानकर पपवत्रता का दजाष दे ददया गया है। एक लंबे असे से भारत जैसे पवकासशील देशों में पवद्यालयी मशिा यहां के सामाक्ट्जक-आधथषक श्रेणी भेदों को पोपर्त करती नजर आती है। तरह-तरह के पवद्यालय ह ैंऔर तरह-तरह की मशिा। सरकारी टाटपट्टी स्कूल से लेकर ककंडर गाडषन तक, सभी तरह के पवद्यालय अमभभावकों की हैमसयत का पररचय देते प्रतीत होते ह।ैं आपका बच्चा कौन से स्कूल में पढ़ रहा है? यह सवाल मशिा की गुणवत्ता के बारे में कम बक्ट्ल्क अमभभावक की सामाक्ट्जक-आधथषक क्ट्स्थयत के बारे में ज्यादा जानने की मंशा जादहर करता है। एक बच्चे को तथाकधथत ‘अच्छे’ स्कूल में दाखखला ददलाने में सफल हो जाने वाले अमभभावक लगभग बच्चे की प्रयतभा और व्यक्ट्क्ट्तत्व पवकास इत्यादद का सारा क्ट्जम्मा स्कूलों पर डाल कर स्वयं यनभाषर सा अनुभव करते ह।ैं ‘अच्छे’ होन ेकी प्रमसक्ट्ध्द पा रहे या पाना चाह रह ेपवद्यालय भी पवद्याधथषयों के सवाांगीण पवकास का दावा और वादा करना नहीं भूलते ह।ैं कुल जमा, पैसे की कारीगरी इतनी सपाट है कक जैसे भव्य भवन-यनमाषण के ठेके ददए जा
  • 4. रहे ह,ैं वैसे ही एक छोटे अबोध बच्चे की नैसधगषक, सहज पवकानसशील प्रयतभा और िमता को कृबत्रम रूप से काट-छांट कर, लीप-पोतकर एक रसूखदार इंसान बनान ेकी कवायद जोरों से जारी है, शायद इसी को आज की दुयनया अच्छी और बदढ़या मशिा कहती है। एक शताब्दी पहले जन्मे पवचारक- लेखक ‘अज्ञेय’ के उपन्यास ‘शेखर एक जीवनी’ की एक पंक्ट्क्ट्त बरबस याद आती है- ‘शेखर स्कूल नहीं गया, इसमलए वह व्यक्ट्क्ट्त बना, टाइप नहीं बना।’ आपने कभी बच्चों की नजर से स्कूल को देखा है? मध्यांतर में या पूरी छुट्टी के बाद स्कूल के गेट के बाहर पूरी ताकत से दौडते बच्चों को देखा है? सुबह, सवेरे स्कूल जाते बच्चों के सूने, सपाट और सहमे चेहरे को देखा है? मशिक के किा छोडने के बाद मुक्ट्क्ट्त का अहसास पाने वाले बच्चों की आवाजों की तीव्रता को सुना है? क्ट्या बच्चों की शरारतों में प्रकट होन ेवाली मशिकों के प्रयत उनकी प्रयतकक्रयाओं से आप पररधचत ह?ैं क्ट्या स्कूल की छुट्टी की खबर पाकर खुश होने वाले बच्चों में आप कभी शाममल रहे ह?ैं अगर इन सवालों का जवाब आपके भीतर ‘हां’ के रूप में आ रहा है तो एक नासमझी और नादानी की ममसाल कहे जा सकन ेवाले इस लगभग बचकाने सवाल को आप मशद्दत से महसूस कर सकते ह-ैं ‘क्ट्या स्कूल जाना जरूरी है? बाजार में तब्दील हो रही मशिा-व्यवस्था में यह सवाल अब प्रासंधगक होता जा रहा है। बोखझल पाठयक्रम, नीरस किाएं, खुद से सीखने के बजाय जबरन मसखाने पर जोर देने वाली तमाम मशिण-पध्दयतयां, भय और लोभ पर आधाररत यनयंत्रणकामी मशिकीय व्यवहार, एक हॉल में बंद कर, एक ही समय और यनयत अवधध में, एक ही प्रश्न पत्र को मलखखत रूप से हल करवाने वाली आरोपपत परीिा-प्रणाली इत्यादद अनेक आयाम क्ट्या वास्तव में उस मशिा के उद्देश्य को पूररत करने वाले तत्व ह ैंक्ट्जसे स्वामी पववेकानंद इस तरह पररभापर्त करते थे- बच्चों के व्यक्ट्क्ट्तत्व-यनमाषण में माता-पपता का योगदान बच्चे मानवता की ददव्यतम यनधध ह।ैं इनके लालन-पालन में स्नेह एवं मागष दशषन में पववेकपूणष दृक्ट्ष्ट तथा दूरदमशषता की आवश्यकता रहती है। बच्चों के व्यक्ट्क्ट्तत्व यनमाषण में माता-पपता के त्याग, धैयष, साहस, पररश्रम आदद वे सूत्र ह ैंक्ट्जनके द्वारा उनमें आत्मपवश्वास भरा जा सकता है। बच्चें के व्यक्ट्क्ट्तत्व-यनमाषण की पहली कायषशाला उसका पररवार है। बच्चों को बाल्यकाल से ही सामान्य सुरिा एवं प्रोत्साहन देना चादहए। संतोर्जनक पाररवाररक जीवन व्यक्ट्क्ट्तत्व के उधचत पवकास के मलए आवश्यक है। घर ही ऐसा स्थान है जहााँ बच्चे को यनपुणता प्राप्त होती है। एवं घर तभी एक पूणष घर माना जाता है, जब वे बालक का लालन-पालन इतने उत्तम ढंग से करें कक बच्चे का शारीररक, मानमसक, बौद्धधक एवं सामाक्ट्जक रूप से पूणष पवकास हो। माता-पपता बच्चों के व्यक्ट्क्ट्तत्व और चररत्र दोनों को प्रभापवत करने में सवाषधधक महत्त्वपूणष भूममका अदा करते ह।ैं उनके आपसी संबंधों और व्यवहार से बालमन सहज ही जुड जाता है। माता-पपता उसके मलए सुरिा और स्नेह का स्रोत ह।ैं उनके परस्पर मधुर संबंध जहााँ बच्चों के चहाँुमुखी पवकास में सहायक होते ह,ैं वहीं उनके आपसी तनावपूणष टूटते ररश्ते उनके पवकास को न केवल अवरूद्ध कर देते ह,ैं माता-पपता बच्चों की क्ट्जज्ञासावृपत्त का सदा सम्मान करें। अक्ट्सर ऐसा होता है, समयाभाव के कारण हम बच्चों की समस्याओं, उनके प्रश्नों को न तो पूरे मन से सुन पाते ह ैंऔर उनके कौतूहल को शान्त कर उन्हें संतुष्ट कर पाते ह।ैं कुछ भी पूछने पर उन्हें डााँटकर उनकी यनरीिण-िमता को दबा देने का अनजाने में अपराध कर जाते ह।ैं ऐसा करके हम उनके भीतर की सृजानात्मक संभावनाओं को पल्लपवत होने से पूवष ही दममत कर देत ेह।ैं ऐसे बच्चे अक्ट्सर वक्ट्जषत अमभव्यक्ट्क्ट्त तलाशने लगते ह।ैं यह सब बच्चों के दहत में नहीं है, माता-पपता का कतषव्य है कक वे बच्चे की हर संभव क्ट्जज्ञासा का शमन करें। क्रोध और खीझ में भर कर नहीं, स्नेह और धैयष के साथ उनकी हर शंका का यथासंभव यनवारण करें। उन्हें समय दें। उन्हें अभय प्रदान करें, ऐसा न हो कक माता-पपता के उग्र रूप की परछाईं पकडे बच्चे अपनी ही क्ट्जज्ञासाओं के भाँवर-जाल में डूब जाएाँ। अतः लाख कामों में मशगूल होते हुए भी उनसे इस प्राकृयतक अधधकार को न छीनें, जो आपके सभी कतषव्यो से ऊपर है। उन्हें समय और स्नेह दें। उनके साथ बैठें, उनकी परेशायनयों के पवर्य में उनसे बात करते उनकी सहायता करें। बच्चे की किा व गृहकायष की कॉपी देखें। मशिक के मलखे नोट पढ़ें। बच्चों के ममत्र बनकर उनके साथ खुलकर बातचीत करें। उन्हें डराएाँ धमकाएाँ नहीं वरन ्सहायता का आश्वासन देकर उन्हें मानमसक उलझन से मुक्ट्त करें। ककसी टैस्ट या परीिा में कम अंक पाने पर उन्हें प्रताडडत न करें। कारण की तह तक जाएाँ, न कक पीटकर, अपशब्द बोलकर या डााँटकर उन्हें शारीररक व मानमसक दुःख पहुाँचाएाँ। उनका मनोबल बढ़ाते हुए उन्हें उत्साहवधषक शब्द दें। उन्हें कहें कक वे प्रयतभाशाली ह।ैं पुरुर्ाथी ह।ैं एक उन्नत भपवष्य उन्हें पुकार रहा है। उन्हें उनकी प्रयतभा से पररधचत कराएाँ। बच्चों की मानमसक, बौद्धधक एवं रचनात्मक िमताओं को पहचानें, अक्ट्सर माता-पपता अपने बच्चों की रुधचयों एवं िमताओं से अनमभज्ञ रहकर उन पर अपनी इच्छाओं, महत्त्वाकांिाओं और सपनों को थोप देने की भारी भूल कर बैठते ह।ैं स्वयं अगर डॉक्ट्टर, इंजीयनयर, प्रोफेसर, वकील, आई.ए.एस. अफसर नहीं बन पाए तो अपनी अतप्ृत लालसा को उनमें तलाशना शुरू कर देते ह।ैं अपनी चाहत उन पर लाद कर उनकी बुद्धध को कंुदठत करने की भूल कदापप न करें। उनके अपने सपनें ह ैंक्ट्जन्हें वे पूरा करना चाहेंगे। प्रकृयत ने हर व्यक्ट्क्ट्त को एक-एक पवशेर् योग्यता देकर भेजा है। बच्चों को अयत लाड-प्यार अथवा अयतररक्ट्त सुरिा प्रदान न करें। अधधक संरिण उनके स्वतंत्र व्यक्ट्क्ट्तत्व पवकास में बाधक बनता है। बच्चों को खेलने और धगरने दीक्ट्जए। धगरकर साँभलना अधधक महत्त्वपूणष है। बचपन में ददनेश जब भी साइककल चलाता, उसके पपता साथ ही रहते। एक बार साइककल चलाते वक्ट्त वह धगर गया। उसे काफी चोटें आईं और बायें हाथ की हड्डी भी टूट गयी। पपता ने दुबारा साइककल न चलाने का हुक्ट्म दे ददया और साइककल उठाकर ककसी को दे दी। बालमन में चोट का भय सदा के मलए बैठ गया। बचपन में साइककल चलाना तक न सीख पाने के कारण स्कूटर और कार चलाने की बात तो वह सोच भी नहीं पाता। इतना ही नहीं ककसी और के साथ स्कूटर या कार में बैठकर चलते समय भी ददनेश सदा तनावग्रस्त रहता है। उसके अवचेतन मन में हर समय दुघषटना की आशंका बनी रहती है। अतः बालक को अयतलामलत कर कदठनाइयों से भागने वाला न बनाएाँ अन्यथा वह पूरा जीवन पर-यनभषर एवं दूसरों का मुखापेिी बना रहेगा। दुयनया भर में लाखों ऐसे बच्चे ह ैंक्ट्जन्हें अपने बचपन को भुला कही ंन कही ंकाम करना पडता है । ऐसे बच्चों को भी अपना बचपन पूरा जीने का हक है । चलो हम भी ऐसे नन्हे-मुन्ने प्यारे-प्यारे बचपन को संवारने में अपनी आवाज़ उठाएं और बाल-श्रम जैसी भयानक सामाक्ट्जक बीमारी को जड से ममटाने में अपना सहयोग दें | बच्चे जग की बडी यनयामत ऐसी भी क्ट्या आई कयामत इनके नन्हे-नन्हे हाथ करते रहें काम ददन रात जूठन मांजें जूठन खाएं खेल कूद मस्ती को भुलाएं
  • 5. कभी खडे हो सडक ककनारे माल बेचने लगें बेचारे कभी करते ये जूते साफ़ ये कैसा इन संग इंसाफ़ ? बेचें फ़ल पर खुद न खाएं बोझा कंधों पर उठाएं कभी भीख में हाथ बढाएं खेतों में जा काम कराएं कहां खो गया इनका बचपन ? मरा हुआ क्ट्यों इनका मन ? भोलेपन पर भारी काम बचपन में भी नहीं आराम नींद चैन और खेल भी खोया छुप-छुप कर ये ककतना रोया क्ट्यों न ककसी नें इनको जाना प्यारा बचपन न पहचाना स्कूल और दोस्तों से दूर क्ट्यों भाग्य इनका क्रूर आओ ममल अमभयान चलाएं बाल-श्रम को जड से ममटाएं खो न जाए इनका बचपन न रोए कोई नन्हामन भर जाए खुमशयों से बचपन दुयनया का अनमोल रत्न खो न जाए बाल-मुस्कान दबें नहीं इनके अरमान आओ ममलकर करें पवचार इन बच्चों की सुनें पुकार जीने का इन्हें भी अधधकार न हो बचपन का यतरस्कार गया बचपन न लौट के आए आओ हम बचपन को बचाएं बाल-श्रम को जड से ममटाएं आओ ममल अमभयान चलाएं
  • 6. मत छीनो मुझसे मेरा बचपन यह श्याम है इसकी उम्र 12 वर्ष है. यह अपने माता-पपता और चार भाई-बहनों के साथ रहता है. एक वर्ष पहले इसके पपता को लकवा पडा था और तब से वह बबस्तर में ही पडे रहते है. श्याम की माता दूसरे घरों में बतषन धोती ह ैंऔर महीने में दो हजार रुपये कमाती ह ैंपरन्तु यह रकम सात लोगों के पररवार का खचाष चलाने के ललए उपयुक्त नहीीं थी अतः श्याम को एक ढाबे में काम करना पडा. उसे अपना स्कूल छोडना पडा और पैसों की खाततर उसे अपना बचपन कुबाषन करना पडा. यह कहानी केवल श्याम की नहीीं है. यह दास्तााँ उन करोडों बच्चों की है जिनका बचपन गरीबी के कारण अींधकारमय हो गया है और मजबूरन उन्हें बाल मजदूरी करनी पड रही है. बचपन-“खुमशयों का बसेरा” बचपन का मतलब होता है मौज-मस्ती और खेल-कूद के ददन, जहााँ बच्चा ककताबों के माध्यम से ज्ञान अन्वेर्ण करता है. बाल अवस्था में बच्चा सुख- दुःख से अनजान कभी अपनी ककताबों से भरे बस्ते से जूझता है तो कभी अध्यापक द्वारा ददए गए होमवकष से, कभी खेल के मैदान में कक्रकेट की गेंद से जूझता तो कभी अपने दोस्तों के मनोभावों में बहकर क्रोध का पात्र बनता है. बचपन मासूम होता है, एक बच्चे के मलए उसका घर और स्कूल ही उसका संसार होता है. जब हम बामलग अवस्था में कदम रखते ह ैंतो जीवन यापन करने के नए आयाम ढूाँढने लगते ह.ैं रोज़ी-रोटी के संसाधनों की प्राक्ट्प्त के मलए हम नौकरी करते ह ैंऔर मौज-मस्ती के ददन क्ट्ज़म्मेदारी में तब्दील हो जाते ह.ैं पररवार का उत्तरदाययत्व आपके कंधों पर आ जाता है और आप सामाक्ट्जक बंधनों से बंध जाते ह.ैं तब हम अपने बचपन की तरफ तरसी नजरों से देखते ह ैंऔर सोचते ह ैंकाश “हम भी अगर बच्चे होते”. लेककन अगर आप से आपकी बाल्यावस्था छीन ली जाए और आप को रोज़ी-रोटी कमाने के मलए काम करना पडे तो? काम क्ट्या आप को मजदूरी करनी पडे तो? कहााँ रह जाएगा आप का बचपन, खो जाएगी आपकी आज़ादी और आप की क्ट्जंदगी कालकोठरी के अाँधेरे में कहीं गुम हो जाएगी. कुछ ऐसे ही फररयाद भारत के उन बाल मजदूरों की है जो हमसे यह गुहार कर रहे ह ैंकक “मत छीनो मुझसे मेरा बचपन”. बाल-श्रम “एक अमभशाप” आज हमारे देश में एक करोड से भी ज़्यादा बाल श्रममक ह ैंजो दुयनया के ककसी भी देश की तुलना में सबसे अधधक है. यद्यपप हमारा संपवधान 6 से 14 वर्ष के बच्चों को अयनवायष मशिा प्रदान करने की कवायद करता है कफर भी इसके बावज़ूद आज हमारा देश इस श्राप से ग्रपर्त है. आज हमारे देश में बाल मजदूर हर िेत्र में पाए जाते ह.ैं बीडी के कारखाने, मशल्पकारी, कारीगरी, होटलों, ढाबों और यहााँ तक की पटाखे बनाने जैसे असुरक्षित कायों में भी बाल श्रममक पाए जाते ह.ैं पवडंबना यह है कक लोगों को पता है बाल मज़दूरी समाज पर श्राप है, वह इसका पवरोध भी करते ह ैंपरन्तु मसफष बोलकर या मलखकर. ज़मीनी स्तर पर आप जाएं तो सच्चाई कुछ और है. यहााँ तक कक सरकार की बात करें तो वह बाल मजदूरी के खखलाफ़ नीयतयााँ बनाती है परन्तु ककतनों का पालन होता है इसका अंदाज़ा इस बात स ेही लगाया जा सकता है कक 24 साल हो गए बाल मजदूरी यनर्ेधाज्ञां और पवयनयमन कानून को परन्तु अभी तक क्ट्स्थयत वही की वही है. आंकडे बद से बदतर हो गए ह.ैं इतने वर्ों में बाल मजदूरी करने वाले बच्चों की धगनती 15 % अधधक हो गई है. बाल मज़दूरी के कारण
  • 7. 1979 में सरकार ने गुरुपद्स्वामी सममयत का गठन ककया गया था क्ट्जसका उद्देश्य उन कारणों का पता लगाना था क्ट्जसके कारण बाल मज़दूरी फैलती है. इसके साथ-साथ इस सममयत को बाल मजदूरी को खत्म करने के मलए उधचत उपाय भी सुझाने थे. गुरुपद्स्वामी सममयत के मुताबबक बाल मज़दूरी का मुख्य कारण गरीबी है. गरीबी के रहते हमारे देश के अधधकतर पररवार दो वक्ट्त का खाना भी प्राप्त नहीं कर पाते, अतः मज़बूरन अपने पररवार के पालन-पोर्ण हेतु बच्चों को काम-धंधा ढूंढ़ना पडता है, क्ट्जसके रहते वह अमशिा का भी मशकार जो जाते ह ैंऔर अंततः बाल मज़दूरी करने पर आधश्रत हो जाते ह.ैं वर्ष 2008 की पवडम्बना वर्ष 2008 में सरकार ने बाल मज़दूरी को अपराध घोपर्त ककया, क्ट्जसके तहत होटलों, घरों, कारखानों इत्यादद जगहों में काम करने वाले बाल मज़दूरों को मज़दूरी से हटा कर उधचत मशिा का प्रावधान रखा गया. इसके अलावा बाल मज़दूरी को बल देने वाले व्यक्ट्क्ट्तयों के खखलाफ़ दंड देने का प्रावधान भी रखा गया. क्ट्जसके तहत बच्चों को मज़दूरी करवा रहे व्यक्ट्क्ट्तयों को दंड के तौर पर कारावास हो सकती थी या उन्हें मुआवजा देना पडता. परन्तु सरकार के इस सराहनीय कदम के बाद भी इस कानून को प्रयतरोध का सामना करना पडा. लेककन पवडम्बना देखखये यह पवरोध मामलकों की तरफ़ से ना होकर बाल श्रम से ग्रपर्त पररवारों की तरफ़ से था. इस पवरोध का मुख्य कारण पररवारों की आधथषक तंगी थी क्ट्योंकक अगर उनके घर एक भी व्यक्ट्क्ट्त काम करना बंद कर देता है तो इसका मतलब है कक उनके घर की आय कम होना अथाषत खाने की तंगी और गरीबी का बढ़ना. इस हालत में उनके पास इस कानून के खखलाफ़ पवरोध करना ही बचता है. परन्तु क्ट्या यह पवरोध सही है? क्ट्या हमें इन नन्हे पररंदों के सपने तोडने का हक है? यह प्रश्न एक समस्या गहराते ह ैंजो कक समाज के प्रयत अमभशाप है. आखखर यह सवाल उन करोडों बच्चों से जुडा है जो अंधकारमय जीवन जी रहे ह.ैं इन बाल-मजदूरों को सहानुभूयत की ज़रूरत नहीं है बक्ट्ल्क इनकी समस्या गरीबी के फंदे से जकडी है. अतः एक कतषव्ययनष्ठ सामाक्ट्जक व्यक्ट्क्ट्त होने के नाते यह हमारी क्ट्जम्मेदारी है कक हम गरीबी के कारणों को समझें और इसे हटाने के प्रयत्न करें. बाल मज़दूरी तभी खत्म हो सकती है जब इन बाल-मजदूरों को कम वेतन के एवज में अच्छी पढ़ाई ममले क्ट्जससे आगे चलकर वह भी अच्छी नौकरी पाएं या अच्छी क्ट्जंदगी के हकदार बन सकें. अच्छी नौकरी का मतलब है आधथषक तंगी से यनजात जो गरीबी भी खत्म करती है. अगर हम गरीबी से यनजात पा लें तो उससे जुडी अनेकों समस्याएं समाप्त हों सकती ह.ैं खुमशयों के बसेरे में, मैं भी जीना चाहता हूं , महसूस करना चाहता हूं बचपन की मौज-मस्ती, तारों की दटमदटमाहट मैं भी देखना चाहता हूं , आखखर मैं भी पढ़ना चाहता हूं , आखखर मैं भी पढ़ना चाहता हूं ………….. बाल श्रम बंद करो का नारा ककया बुलंद फ़ोटो देखें बाल श्रम बंद करो का नारा ककया बुलंद यनज प्रयतयनधध, बोधगया (गया): अंतरराष्रीय अवैध मानव व्यापार ददवस के अवसर पर बुधवार को स्कूली छात्रों ने 'बाल श्रम बंद करो' के नारे को बुलंद ककए। स्कूली छात्रों ने लक्ष्य संस्थान पटना के तत्वावधान में राजकीय मध्य पवद्यालय बगदाहा से मानव व्यापार एवं बाल श्रम के पवरूद्ध एक जागरूकता रैली यनकाली। स्कूली छात्रों ने धनावां पंचायत के महादमलत टोलों में भ्रमण कर बाल श्रम बंद करो, मानव व्यापार बंद करो, बच्चों को भेजो स्कूल नहीं तो होगी भारी भूल की आवाज बुलंद कर रहे थे। और लोगों से बच्चों को मशक्षित करने की बात कह रहे थे। जागरूकता रैली के आयोजन में मध्य पवद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक सुनील कुमार सुमन का सहयोग प्राप्त हुआ। रैली का नेतत्ृव लक्ष्य कायषकताष मनोज कुमार ने की। इसमें स्कूली बच्चों के अलावा मो. नौशाद आलम, माला कुमारी सदहत अन्य शाममल हुए।