1. अंकित िर गया अपनी छवि
उड़ता आया तोता एक,
बैठा खिड़की के छड़ पर |
देिा हमें अपनी सुन्दर गरदन
नचा-नचा कर,
फिर लाल चोंच िोल,
लगा बोलने ममश्री घोल,
उसकी आवाज़ में थी ममठास |
नृत्य-सी रही उसकी चाल,
उसमें ददिी कु छ कहने की चाह,
समझ न पाये हम मीठी बोल,
उड़ गया हरे पंि िै लाकर हो
लाचार,
सीमाहीन गगन में भर-उड़ान,
पर हमारे ददल-ददमाग में कर अंफकत,
अपनी छवव अममट छोड़ |