Chapter - 4, Forest Society and Colonialism, History, Social Science, Class 9
Everest meri shikar yatra (hindi)
1. इस कहानी की लेखिका बछेंद्री पाल है ।प्रस्तुत लेि में बचेंद्री
पाल ने अपने अभियान का रोमाांचकारी वर्णन ककया है कक 7
माचण को एवरेस्ट अभियान दल ददल्ली से काठमाांडू के भलए
चला।
2. बचेंद्री पाल
इनका जन्म सन 24 मई, 1954 को उत्तराांचल के चमोली जजले के
बमपा गााँव में हुआ।
अत: बचेंद्री को आठवीां से आगे की पढ़ाई का िचण भसलाई-कढ़ाई
करके जुटाना पड़ा। ववषम पररजस्िततयों के बावज़ू द बचेंद्री ने
सांस्कृ त में एम.ए. और किर बी. एड. की भिक्षा हाभसल की। बचेंद्री
को पहाद़्ओां पर चढ़ने िौक़ बचपन से िा। पढ़ाई पू री करके वह
एवरेस्ट अभियान – दल में िाभमल हो गईं।
3.
4.
5.
6. माउांट एवरेस्ट (नेपाली:सगरमािा, सांस्कृ त:देवगगरर,
ततब्बती:चोङ्गमालुङ्गमा) दुतनया की सबसे उांची चोटी है जो
८८४८ मीटर ऊां ची है । इसकी उांचाई का सवणप्रिम पता एक
िारतीय गखर्तज्ञ राधानाि भसकदर ने १८५२ में लगाया िा ।
उस समय सर जॉजण एवरेस्ट उन ददनों िारत के सवेयर
जनरल िे जजनके नाम पर इस चोटी का नाम माउांट एवरेस्ट
रि ददया गया, पहले इसे xv के नाम से जाना जाता िा ।
माउांट एवरेस्ट की ऊाँ चाई उस समय २९,००२ फु ट या ८,८४०
मीटर मापी गई । वैज्ञातनक सवेक्षर्ों में कहा जाता है कक
इसकी ऊां चाई प्रततवषण २ से.मी. के दहसाब से बढ़ रही है ।
नेपाल में इसे स्िानीय लोग सागरमािा नाम से जानते ह ।
7. प्रस्तुत लेि में बचेंद्री पाल ने अपने अभियान का रोमाांचकारी
वर्णन ककया है कक 7 माचण को एवरेस्ट अभियान दल ददल्ली
से काठमाांडू के भलए चला। नमचे बाज़ार से लेखिका ने एवरेस्ट
को तनहारा।
लेखिका ने एवरेस्ट पर एक बड़ा िारी बफण का िू ल देिा। यह
तेज़ हवा के कारर् बनता है। 26 माचण को अभियान दल
पैररच पहुाँचा तो पता चला कक िुांिु दहमपात पर जाने वाले
िेरपा कु भलयों में से बफण खिसकने के कारन एक कु ली की
मॄत्यु हो गई और चार लोग घायल हो गए। बेस कप पहुाँचकर
पता चला कक प्रततकू ल जलवायु के कारर् एक रसोई सहायक
की मृत्यु हो गई है। किर दल को ज़रुरी प्रभिक्षर् ददया गया।
8. 29 अप्रैल को वे 7900 मीटर ऊाँ चाई पर जस्ित बेस कप पहुाँचे
जहााँ तेनजजांग ने लेखिका का हौसला बढ़ाया। 15-16 मई,
1984 को अचानक रात 12:30 बजे कप पर ग्लेभियर टू ट
पड़ा जजससे कप तहस-नहस हो गया , हर व्यजत चोट-ग्रस्त
हुआ।
लेखिका बफण में दब गई िी। उन्हें बफण से तनकाला गया।
किर कु छ ददनों बाद लेखिका साउिकोल कप पहुाँची। वहााँ
उन्होंने पीछे आने वाले सागियों की मदद करके सबको िुि
कर ददया। अगले ददन वह प्रात: ही अांगदोरज़ी के साि भििर
– यात्रा पर तनकली। अिक पररश्रम के बाद वे भििर – कप
पहुाँचे।
9. एक और सािी ल्हाटू के आ जाने से और ऑसीजन आपू ततण
बढ़ जाने से चढ़ाई आसान हो गई। 23 मई , 1984 को
दोपहर 1:07 बजे लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर िड़ी िी।
वह एवरेस्त पर चढ़ने वाली पहली िारतीय मदहला िी।
चोटी पर दो व्यजतयों के साि िड़े होने की ज़गह नहीां िी,
उन्होंने बिण के िावड़े से बिण की िुदाई कर अपने आप को
सुरक्षक्षत ककया। लेखिका ने घुटनों के बल बैठकर ‘सागरमािे’
के ताज को चू मा। किर दुगाण मााँ तिा हनुमान चालीसा को
कपडे में लपेटकर बफण में दबा ददया। अांगदोरज़ी ने उन्हें गले
से लगकर बधाई दी। कनणल िुल्लर ने उन्हें बधाई देते हुए
कहा – म तुम्हरे मात-वपता को बधाई देना चाहू ाँगा। देि को
तुम पर गवण है। अब तुम जो नीचे आओगी , तो तुम्हें एक
नया सांसार देिने को भमलेगा।