2. वन एवं वन्य प्राणी संसाधन:-
• वन एवं वन्य प्राणी संसाधन मानव जीवन के हमसफर है। वन पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच जैसा है। यह
पाररस्थैलिक िंत्र के लनमााण में महत्वपूणा घटक है।
• भारि में वन संसाधन एक महत्वपूणा संसाधन है।
जैव लवलवधिा :- ककसी भी क्षेत्र में पाए जाने वािे जंिुओं और पादपों की लवलवधिा को उस क्षेत्र की जैव
लवलवधिा कहिे है।
• इन जीवो के आकार िथा कायों में अिग अिग पाए जािे है।
• जैव लवलवधिा के मामिे ने भारि एक सम्पन देश है, लवश्व की िगभग 16 िाख प्रजालियों में से िगभग
8% प्रजालियााँ भारि में पाई जािी है।
वन :-वन उस बडे भाग को कहिे है जो पेड पौधे एवं झालडयााँ द्वारा आच्छाकदि होिे है।वन जैव-
लवलवधिाओं का आवास होिा है।
वन दो प्रकार के होिे है।
(i) प्राकृलिक वन :-वे वन जो स्विः लवकलसि होिे है।
(ii) मानव लनर्माि / वालनकी :- जो वन मानव द्वारा लवकलसि होिे है।
3. प्रशासकीय दृलि से वनो को लनम्ांककि वगों में रखा गया है।
(1) आरलक्षि वन (Reserved Forest):- लजस वन में लशकार और मानव गलिलवलधयों पर पुरी िरह
प्रलिबंध उसे आरलक्षि वन कहिे हैं।
• वन एवं वन्य जीवों के लिए आरलक्षि वनो को सबसे अलधक मूल्यवान माना जािा है।
• देश में आधे से अलधक वन क्षेत्र (िगभग 54%) आरलक्षि वन घोलिि ककए गए है।
(2) रलक्षि वन (Protected Forest):- इस वन क्षेत्र में लवशेि लनयमो के अधीन पशुओं को चराने और
लसलमि रूप में िकडी काटने की सुलवधा दी जािी है। या लजस वन में लशकार और मानव गलिलवलधयों पर
प्रलिबंध हो िेककन उस वन पर लनभार रहने वािे आकदवालसयों पर यह प्रलिबंध िागु नहीं होिे हो, रलक्षि वन
कहिािा है।
• वन लवभाग के अनुसार कुि वन क्षेत्र का िगभग एक लिहाई लहस्सा (29%) रलक्षि वन है।
(3) अवगीकृि वन (Unclassified Forest):-शेि सभी प्रकार के वन और बंजर भूलम जो सरकार व्यलियों
समुदायों के स्वालमत्व में होिे है, अवगीकृि वन कहिािे है।
• इस वनों में िकडी काटने और पशुओं को चराने पर सरकार की ओर से कोई प्रलिबंध नहीं होिा है.
िेककन सरकार इसके लिए शुल्क िेिी है।
• कुि वन क्षेत्र का 17% अवगीकृि वन है।
• आरलक्षि एवं रलक्षि वन का सबसे अलधक लवस्िार मध्यप्रदेश में है जंहा कुि वन क्षेत्र का 75% है।
वन और वन्य जीव संसाधनों के प्रकार और लविरण :-
4. भारि में वन और वन्य जीवन का संरक्षण:- भारि सरकार ने वन्य जीवन (संरक्षण) अलधलनयम 1972 को
प्रभावी रूप से देश के वन्य जीवन की रक्षा करने, जीवों के अवैध लशकार, िस्करी और उनके एवं उनसे
संबंलधि सामान के अवैध व्यापार को लनयंलत्रि करने के उद्देश्य से िागू ककया था। वन्यजीव संरक्षण संबंधी
अलधलनयम,लवधेयक, लनयमों, अलधसूचनाओं और कदशालनदेश भी उपिब्ध कराए गए हैं।
वन िथा वन्य जीवन का संरक्षण आवश्यक है क्योंकक-
• वन अनेक प्रकार के पौधे, जीव जंिु िथा अन्य वन्य-जीवों के लिए आवास प्रदान करिे हैं।
• इससे पाररलस्थलिक संिुिन बना रहिा है िथा सभी को अच्छा जीवन प्राप्त होिा है।
• ये जैव-लवलवधिा, जीन पूि िथा आनुवांलशक संसाधनों का संरक्षण करिे हैं।
• वन ककसी लवशेि स्थान के मौसम संबंधी घटकों को बनाए रखिे हैं, जैसे विाा, िापमान, आर्द्ािा आकद।
• ये हमें बचािे हैं वैलश्वक ऊष्मन से, ग्रीनहाउस प्रभाव से, जो मौसम पररविान का आरभ कर सकिे हैं।
• वन जि, मृदा का संरक्षण करिे हैं िथा सूखा व बाढ़ जैसी समस्याओं को रोकिे हैं।
रेड डेटा बुक :- संकटग्रस्ि प्रजालियों को सूचीबद्ध करने वािी पुस्िक को रेड डाटा बुक कहिे है। इसमें
सामान्य प्रजालियों के लविुप्त होने के खिरे से अवगि ककया जािा है।विामान समय िक कुि 5 रेड डेटा बुक
प्रकालशि हो चूका है।
1. प्रथम बुक : स्िनधारी 2. दूसरी बुक :-पक्षी 3. िीसरी बुक :- मरुस्थिीय उभयचर
4. चौथी बुकः-मछलियां 5. पांचवी बुकः-पौधे - वनस्पलि
5. बाघ पररयोजना (Project Tiger):-
• बाघों को लविुप्त होने से बचाने के लिए बाघ पररयोजना को 1973 में शुरू ककया गया था।
• 20 वीं सदी की शुरुआि में बाघों की कुि आबादी 55000 थी, जो 1973 में घटकर 1827 हो गई।
बाघ की आबादी घटने के कारण :-
• व्यापार के लिए लशकार भोजन के लिए आवश्यक जंगिी उपजालियों की संख्या कम होना लसमटिी
आवास, जनसंख्या में वृलद्ध आकद ।
बाघ पररयोजन की सफििा :-
• बाघ पररयोजना लवश्व की बेहिरीन वन्य जीव पररयोजनाओं में से एक है। शुरू में इससे बहुि सफििा
प्राप्त हुई क्योकक बाघों की संख्या बढ़कर 1985 में 4002 और 1989 में 4334 हो गयी। िेककन 1993
में इसकी संख्या घटकर 3600 िक पहुाँच गई।
• भारि में 37,761 वगा ककमी० पर फै िे हुए 27 बाघ ररजवा है।
भारि में महत्वपूणा बाघ संरक्षण पररयोजना :-
काबेट राष्ट्रीय उयान, सुंदरवन राष्ट्रीय उयान, बांधगढ़ राष्ट्रीय उयान, मानस बाघ ररजवा पेररयार बाघ
ररजवा साररस्का वन्य जीव पशुलवहार
IUCN -International union for the Conservation of Nature and Natural Resources
IUCN ने संकटग्रस्ि प्रजालियों के संरक्षण एवं संवधान की कदशा में काया कर रही है।
IUCN को अब लवश्व संरक्षण संघ (World Conservation Union) भी कहा जािा है।
6. समुदाय और वन संरक्षण :-
• भारिीय समाज में अनेको संस्कृलियााँ है और प्रत्येक संस्कृलि और इसकी कृलियों को संरलक्षि करने के
अपने पारम्पररक िरीके हैं। सामान्यिः झरनों, पहाडी चोरटयों, वृक्षों और पशुओं को पलवत्र मानकर
उनका संरक्षण ककया जािा है।
• भारि देश वन कुछ मानव प्रजालियों का आवास भी है। कुछ स्थानीय समुदाय सरकारी अलधकाररयों के
साथ लमिकर अपने आवासस्थिों के संरक्षण में जुटे हैं क्योंकक इसीसे ही दीघाकाि में उनकी
आवश्यकिाओं की पूर्िा संभव हैं
• सररस्का बाघ ररजवा में राजस्थान के ग्राम के िोग वन्य जीव रक्षण अलधलनयम के िहि् वहााँ से खनन
काया बन्द करवाने हेिु संघिारि हैं।
• अिवर लजिे के 5 गााँव के िोगों लशकार पर प्रलिबन्ध िगाने हेिु स्वयं लनयम कानून बनाये हैं िथा बाहरी
िोगों की घुसपैठ से यहााँ के वन जीवन को बचािे हैं।
• लहमािय में प्रलसद्ध ‘लचपको आन्दोिन’ कई क्षेत्रों में वन कटाई रोकने में ही सफि नहीं रहा वरन् स्थानीय
पौधों की जालियों का प्रयोग करके सामुदालयक नवीकरण अलभयान को सफि बनाया।
• रटहरी के कृिकों ने ‘बीज बचाओ आंदोिन’ और ‘नवदानय’ के द्वारा यह संदेश कदया कक रासायलनक
उवारकों के अभाव में भी लवलवध फसि उत्पादन संभव है।
7. लचपको आंदोिन (Chipko Movement) :- उत्तर प्रदेश के टेहरी-गढ़वाि पवािीय लजिे में सुन्दर िाि
बहुगुणा के नेिृत्व में अनपढ़ जनजालियों द्वारा 1972 में यह आंदोिन प्रारम्भ हुआ था. इस आंदोिन में
स्थानीय िोग ठेकेदारों की कुल्हाडी से हरे-भरे पौधों को काटिे देख उसे बचाने के लिए अपने आगोश में पौधा
को घेर कर इसकी रक्षा करिे थे।
8. Q.1 लवस्िारपूवाक बिाएाँ कक मानव कियाएाँ ककस प्रकार प्राकृलिक वनस्पलिजाि और प्रालणजाि के ह्रास के
कारक हैं?
Ans.मानवीय कियाएाँ लनम् प्रकार से प्राकृलिक वनस्पलि जालि और प्राणी जालि के ह्रास का कारण बनिी हैं
1.
मानव अपने स्वाथा के अधीन होकर कभी ईंधन के लिए िो कभी कृलि के लिए वनों को अंधाधुंध काटिा है।
इससे वन्य वनस्पलि िो नि होिी ही है साथ ही वन्य जीवों का प्राकृलिक आवास भी लछन जािा है।
2. जब उयोगों खासकर रसायलनक उयोगों का कुडा-कचरा खुिे स्थानों पर फें का जािा है िब भूलम प्रदुिण
होिा है।
3. वृक्षों के अंधाधुंध कटने से पयाावरण को भी नुकसान पहुाँचिा है, जैसे विाा का कम होना।
4. पशुओं के अलि चारण से भी वनस्पलि जगि को नुकसान पहुाँचिा है क्योंकक इससे प्राकृलिक वनस्पलि पनप
नहीं पािी और वह स्थान धीरे-धीरे बंजर हो जािा है।
9. Ans.भारि में वन्य जीव संरक्षण और रक्षण में लवलभन्न समुदायों ने इस प्रकार योगदान कदया है
1. राजस्थान के िोगों ने 'सररस्का बाघ ररजवा क्षेत्र में होने वािे खनन कायों का लवरोध ककया और सफििा
प्राप्त की।
2. लहमािय क्षेत्र में "लचपको आंदोिन" के द्वारा वृक्षों की अलनयंलत्रि कटाई को रोकने का प्रयास ककया।
3. राजस्थान के अिवर लजिे के पााँच गााँवों ने लमिकर 1200 हैक्टेयर भूलम भैरोंदेव डाकव" सेंचुरी" बनाई है
जहााँ पर कडे कानून बनाकर लशकार, वर्जाि कर कदया गया है िथा बाहरी िोगों की घुसपैठ पर रोक िगाई गई
है।
4. भारिीय धार्माक मान्यिाओं के अनुसार लवलभन्न वृक्षों और पौधों को पलवत्र मानकर पूजा जािा है, जैस
पीपि, वट।
5. भारिीय िोग लवलभन्न पशुओं को पलवत्र मानकर पूजिे हैं क्योंकक वे इन्हें लवलभन्न देवी-देविाओं के साथ
जोडिे हैं, जैसे नाग को लशव के साथ, मोर को कृष्ण के साथ, िंगूर व बंदर को हनुमान जी के साथ है।
6. भारि के लवलभन्न आकदवासी और जनजालि क्षेत्रों में वनों को देवी-देविाओं को समर्पाि करके उन्हें पूजा
जािा है। राजस्थान में इस िरह के क्षेत्रों को 'बणी' कहा जािा है।
Q.2 भारि में लवलभन्न समुदायों ने ककस प्रकार वनों और वन्य जीव संरक्षण और रक्षण में योगदान ककया है?
लवस्िारपूवाक लववेचना करें।
10. Ans. भारि में वन और वन्य जीव संरक्षण में सहयोगी रीलि-ररवाज इस प्रकार हैं
1. भारि के जनजािीय िोग प्रकृलि की पूजा सकदयों से करिे आ रहे हैं। उनके इन लवश्वासों ने लवलभन्न वनों
को मूि एवं कौमय रूप में
बचाकर रखा है, लजन्हें पलवत्र पेडों के झुरमुट (देवी-देविाओं के वन) कहिे हैं। वनों के इन भागों में या िो
वनों के ऐसे बडे भागों में न िो
स्थानीय िोग घुसिे हैं िथा न ही ककसी और को छेडछाड करने देिे। 2. कुछ समाज कुछ लवशेि पेडों की
पूजा करिे हैं और आकदकाि से उनका संरक्षण करिे आ रहे हैं। छोटानागपुर क्षेत्र में मुंडा और संथाि जन-
जालियााँ महुआ और कदंब के पेडों की पूजा करिे हैं। उडीसा और लबहार की जनजालियााँ शादी के समय
इमिी और आम के पेडों की पूजा करिे हैं।
3. कई िोग पीपि और वट की पूजा करिे हैं।
4. भारिीय समाज में अनेकों संस्कृलियााँ हैं और प्रत्येक संस्कृलि में प्रकृलि और इसकी कृलियों को संरलक्षि
करने के अपने पारंपररक िरीके
हैं। भारिीय झरनों, पहाडी चोरटयों, पेडों और पशुओं को पलवत्र मानकर उनका संरक्षण करिे हैं, जैसे वे
मंकदरों या अन्य स्थिों पर बंदरों को लखिािे हैं।
5. राजस्थान के लबश्नोई गााँवों के आस-पास कािे लहरण, चचंकारा, नीिगाय और मोरों के झुंड देखे जािे हैं
जोकक इनके समाज के अलभन्न अंग हैं और इन्हें कोई नुकसान नहीं पहुाँचा सकिा।
Q.3 वन और वन्य जीव संरक्षण में सहयोगी रीलि-ररवाजों पर एक लनबन्ध लिलखए।