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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
1. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
लंका का ड
ी गणेशाय नमः
ी जानक व लभो वजयते
ी रामच रतमानस
ष ठ सोपान
(लंकाका ड)
लोक
रामं कामा रसे यं भवभयहरणं कालम तेभ संहं
योगी
ं
ानग यं गु ण न धमिजतं नगु णं न वकारम ्।
मायातीतं सु रेशं खलवध नरतं
मवृ दै कदे वं
व दे क दावदातं सर सजनयनं दे वमु व श पम ्।।1।।
शंखे
वाभमतीवसु दरतनु ं शादूलचमा बरं
काल यालकरालभू षणधरं गंगाशशांक यम ्।
काशीशं क लक मषौघशमनं क याणक प मं
ु
नौमी यं ग रजाप तं गु ण न धं क दपहं श करम ्।।2।।
यो ददा त सतां श भु ः कव यम प दुलभम ्।
ै
खलानां द डकृ योऽसौ श करः शं तनोतु मे।।3।।
दो0-लव नमेष परमानु जु ग बरष कलप सर चंड।
भज स न मन ते ह राम को कालु जासु कोदं ड।।
–*–*–
सो0- संधु बचन सु न राम स चव बो ल भु अस कहे उ।
अब बलंबु क ह काम करहु सेतु उतरै कटक ।।
े
ु
सु नहु भानु कल कतु जामवंत कर जो र कह।
ु
े
नाथ नाम तव सेतु नर च ढ़ भव सागर त र हं।।
यह लघु जल ध तरत क त बारा। अस सु न पु न कह पवनक मारा।।
ु
भु ताप बड़वानल भार । सोषेउ थम पयो न ध बार ।।
तब रपु नार
दन जल धारा। भरे उ बहो र भयउ ते हं खारा।।
सु न अ त उक त पवनसु त कर । हरषे क प रघु प त तन हे र ।।
ु
े
2. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
जामवंत बोले दोउ भाई। नल नील ह सब कथा सु नाई।।
राम ताप सु म र मन माह ं। करहु सेतु यास कछ नाह ं।।
ु
बो ल लए क प नकर बहोर । सकल सु नहु बनती कछ मोर ।।
ु
राम चरन पंकज उर धरहू । कौतु क एक भालु क प करहू ।।
धावहु मकट बकट ब था। आनहु बटप ग र ह क जू था।।
े
सु न क प भालु चले क र हू हा। जय रघु बीर ताप समू हा।।
दो0-अ त उतंग ग र पादप ल ल हं ले हं उठाइ।
आ न दे हं नल नील ह रच हं ते सेतु बनाइ।।1।।
–*–*–
सैल बसाल आ न क प दे ह ं। कदुक इव नल नील ते लेह ं।।
ं
दे ख सेतु अ त सु ंदर रचना। बह स कृ पा न ध बोले बचना।।
परम र य उ तम यह धरनी। म हमा अ मत जाइ न हं बरनी।।
क रहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे दयँ परम कलपना।।
सु न कपीस बहु दूत पठाए। मु नबर सकल बो ल लै आए।।
लंग था प ब धवत क र पू जा। सव समान
य मो ह न दूजा।।
सव ोह मम भगत कहावा। सो नर सपनेहु ँ मो ह न पावा।।
संकर बमु ख भग त चह मोर । सो नारक मू ढ़ म त थोर ।।
दो0-संकर
य मम ोह सव ोह मम दास।
ते नर कर ह कलप भ र धोर नरक महु ँ बास।।2।।
–*–*–
जे रामे वर दरसनु क रह हं। ते तनु तिज मम लोक सध रह हं।।
जो गंगाजलु आ न चढ़ाइ ह। सो साजु य मु ि त नर पाइ ह।।
होइ अकाम जो छल तिज सेइ ह। भग त मो र ते ह संकर दे इ ह।।
मम कृ त सेतु जो दरसनु क रह । सो बनु म भवसागर त रह ।।
राम बचन सब क िजय भाए। मु नबर नज नज आ म आए।।
े
ग रजा रघु प त क यह र ती। संतत कर हं नत पर ीती।।
ै
बाँधा सेतु नील नल नागर। राम कृ पाँ जसु भयउ उजागर।।
बू ड़ हं आन ह बोर हं जेई। भए उपल बो हत सम तेई।।
म हमा यह न जल ध कइ बरनी। पाहन गु न न क पन ्ह कइ करनी।।
दो0= ी रघु बीर ताप ते संधु तरे पाषान।
3. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
ते म तमंद जे राम तिज भज हं जाइ भु आन।।3।।
–*–*–
बाँ ध सेतु अ त सु ढ़ बनावा। दे ख कृ पा न ध क मन भावा।।
े
चल सेन कछ बर न न जाई। गज हं मकट भट समु दाई।।
ु
सेतु बंध ढग च ढ़ रघु राई। चतव कृ पाल संधु बहु ताई।।
दे खन कहु ँ भु क ना कदा। गट भए सब जलचर बृंदा।।
ं
मकर न
नाना झष याला। सत जोजन तन परम बसाला।।
अइसेउ एक त ह ह जे खाह ं। एक ह क डर ते प डेराह ं।।
भु ह बलोक हं टर हं न टारे । मन हर षत सब भए सु खारे ।।
त ह क ओट न दे खअ बार । मगन भए ह र प नहार ।।
चला कटक भु आयसु पाई। को क ह सक क प दल बपु लाई।।
ु
दो0-सेतु बंध भइ भीर अ त क प नभ पंथ उड़ा हं।
अपर जलचरि ह ऊपर च ढ़ च ढ़ पार ह जा हं।।4।।
–*–*–
अस कौतु क बलो क वौ भाई। बहँ स चले कृ पाल रघु राई।।
सेन स हत उतरे रघु बीरा। क ह न जाइ क प जू थप भीरा।।
संधु पार भु डेरा क हा। सकल क प ह कहु ँ आयसु द हा।।
खाहु जाइ फल मू ल सु हाए। सु नत भालु क प जहँ तहँ धाए।।
सब त फरे राम हत लागी। रतु अ क रतु काल ग त यागी।।
ु
खा हं मधु र फल बटप हलाव हं। लंका स मु ख सखर चलाव हं।।
जहँ कहु ँ फरत नसाचर पाव हं। घे र सकल बहु नाच नचाव हं।।
दसनि ह का ट ना सका काना। क ह भु सु जसु दे हं तब जाना।।
िज ह कर नासा कान नपाता। त ह रावन ह कह सब बाता।।
सु नत वन बा र ध बंधाना। दस मु ख बो ल उठा अक लाना।।
ु
दो0-बां यो बन न ध नीर न ध जल ध संधु बार स।
स य तोय न ध कप त उद ध पयो ध नद स।।5।।
ं
–*–*–
नज बकलता बचा र बहोर । बहँ स गयउ ह क र भय भोर ।।
मंदोदर ं सु यो भु आयो। कौतु कह ं पाथो ध बँधायो।।
कर ग ह प त ह भवन नज आनी। बोल परम मनोहर बानी।।
4. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
चरन नाइ स अंचलु रोपा। सु नहु बचन पय प रह र कोपा।।
नाथ बय क जे ताह स । बु ध बल स कअ जी त जाह स ।।
तु ह ह रघु प त ह अंतर कसा। खलु ख योत दनकर ह जैसा।।
ै
अ तबल मधु कटभ जे हं मारे । महाबीर द तसु त संघारे ।।
ै
जे हं ब ल बाँ ध सहजभु ज मारा। सोइ अवतरे उ हरन म ह भारा।।
तासु बरोध न क िजअ नाथा। काल करम िजव जाक हाथा।।
दो0-राम ह सौ प जानक नाइ कमल पद माथ।
सु त कहु ँ राज सम प बन जाइ भिजअ रघु नाथ।।6।।
–*–*–
नाथ द नदयाल रघु राई। बाघउ सनमु ख गएँ न खाई।।
चा हअ करन सो सब क र बीते। तु ह सु र असु र चराचर जीते।।
संत कह हं अ स नी त दसानन। चौथपन जाइ ह नृप कानन।।
तासु भजन क िजअ तहँ भता। जो कता पालक संहता।।
सोइ रघु वीर नत अनु रागी। भजहु नाथ ममता सब यागी।।
मु नबर जतनु कर हं जे ह लागी। भू प राजु तिज हो हं बरागी।।
सोइ कोसलधीस रघु राया। आयउ करन तो ह पर दाया।।
ज पय मानहु मोर सखावन। सु जसु होइ तहु ँ पु र अ त पावन।।
दो0-अस क ह नयन नीर भ र ग ह पद क पत गात।
ं
नाथ भजहु रघु नाथ ह अचल होइ अ हवात।।7।।
–*–*–
तब रावन मयसु ता उठाई। कहै लाग खल नज भु ताई।।
सु नु तै
या बृथा भय माना। जग जोधा को मो ह समाना।।
ब न कबेर पवन जम काला। भु ज बल िजतेउँ सकल दगपाला।।
ु
दे व दनु ज नर सब बस मोर। कवन हे तु उपजा भय तोर।।
नाना ब ध ते ह कहे स बु झाई। सभाँ बहो र बैठ सो जाई।।
मंदोदर ं हदयँ अस जाना। काल ब य उपजा अ भमाना।।
सभाँ आइ मं
ह त ह बू झा। करब कवन ब ध रपु स जू झा।।
कह हं स चव सु नु न सचर नाहा। बार बार भु पू छहु काहा।।
कहहु कवन भय क रअ बचारा। नर क प भालु अहार हमारा।।
दो0-सब क बचन वन सु न कह ह त कर जो र।
े
5. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
न त बरोध न क रअ भु म ं ह म त अ त थो र।।8।।
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कह हं स चव सठ ठकरसोहाती। नाथ न पू र आव ए ह भाँती।।
ु
बा र ध ना घ एक क प आवा। तासु च रत मन महु ँ सबु गावा।।
छधा न रह तु ह ह तब काहू । जारत नग कस न ध र खाहू ।।
ु
सु नत नीक आग दुख पावा। स चवन अस मत भु ह सु नावा।।
जे हं बार स बँधायउ हे ला। उतरे उ सेन समेत सु बेला।।
सो भनु मनु ज खाब हम भाई। बचन कह हं सब गाल फलाई।।
ु
तात बचन मम सु नु अ त आदर। ज न मन गु नहु मो ह क र कादर।।
य बानी जे सु न हं जे कहह ं। ऐसे नर नकाय जग अहह ं।।
बचन परम हत सु नत कठोरे । सु न हं जे कह हं ते नर भु थोरे ।।
थम बसीठ पठउ सु नु नीती। सीता दे इ करहु पु न ीती।।
दो0-ना र पाइ फ र जा हं ज तौ न बढ़ाइअ रा र।
ना हं त स मु ख समर म ह तात क रअ ह ठ मा र।।9।।
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यह मत ज मानहु भु मोरा। उभय कार सु जसु जग तोरा।।
सु त सन कह दसकठ रसाई। अ स म त सठ क हं तो ह सखाई।।
ं
े
अबह ं ते उर संसय होई। बेनु मू ल सु त भयहु घमोई।।
सु न पतु गरा प ष अ त घोरा। चला भवन क ह बचन कठोरा।।
हत मत तो ह न लागत कस। काल बबस कहु ँ भेषज जैस।।
ै
सं या समय जा न दससीसा। भवन चलेउ नरखत भु ज बीसा।।
लंका सखर उपर आगारा। अ त ब च तहँ होइ अखारा।।
बैठ जाइ तेह मं दर रावन। लागे कं नर गु न गन गावन।।
बाज हं ताल पखाउज बीना। नृ य कर हं अपछरा बीना।।
दो0-सु नासीर सत स रस सो संतत करइ बलास।
परम बल रपु सीस पर त य प सोच न ास।।10।।
–*–*–
इहाँ सु बेल सैल रघु बीरा। उतरे सेन स हत अ त भीरा।।
सखर एक उतंग अ त दे खी। परम र य सम सु
तहँ त
बसेषी।।
कसलय सु मन सु हाए। ल छमन र च नज हाथ डसाए।।
6. भु
ता पर
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
चर मृदुल मृगछाला। तेह ं आसान आसीन कृ पाला।।
भु कृ त सीस कपीस उछं गा। बाम द हन द स चाप नषंगा।।
दुहु ँ कर कमल सु धारत बाना। कह लंकस मं ल ग काना।।
े
बड़भागी अंगद हनु माना। चरन कमल चापत ब ध नाना।।
भु पाछ ल छमन बीरासन। क ट नषंग कर बान सरासन।।
दो0-ए ह ब ध कृ पा प गु न धाम रामु आसीन।
ध य ते नर ए हं यान जे रहत सदा लयल न।।11(क)।।
पू रब दसा बलो क भु दे खा उ दत मंयक।
कहत सब ह दे खहु स स ह मृगप त स रस असंक।।11(ख)।।
–*–*–
पू रब द स ग रगु हा नवासी। परम ताप तेज बल रासी।।
म त नाग तम कंु भ बदार । स स कसर गगन बन चार ।।
े
बथु रे नभ मु कताहल तारा। न स सु ंदर कर संगारा।।
ु
े
कह भु स स महु ँ मेचकताई। कहहु काह नज नज म त भाई।।
कह सु ग़ीव सु नहु रघु राई। स स महु ँ गट भू म क झाँई।।
ै
मारे उ राहु स स ह कह कोई। उर महँ पर
यामता सोई।।
कोउ कह जब ब ध र त मु ख क हा। सार भाग स स कर ह र ल हा।।
छ सो गट इंद ु उर माह ं। ते ह मग दे खअ नभ प रछाह ं।।
भु कह गरल बंधु स स करा। अ त
े
य नज उर द ह बसेरा।।
बष संजु त कर नकर पसार । जारत बरहवंत नर नार ।।
दो0-कह हनु मंत सु नहु भु स स तु हारा
य दास।
तव मू र त बधु उर बस त सोइ यामता अभास।।12(क)।।
नवा हपारायण।। सातवाँ व ाम
पवन तनय क बचन सु न बहँ से रामु सु जान।
े
दि छन द स अवलो क भु बोले कृ पा नधान।।12(ख)।।
–*–*–
दे खु बभीषन दि छन आसा। घन घंमड दा म न बलासा।।
मधु र मधु र गरजइ घन घोरा। होइ बृि ट ज न उपल कठोरा।।
कहत बभीषन सु नहु कृ पाला। होइ न त ड़त न बा रद माला।।
लंका सखर उपर आगारा। तहँ दसकघर दे ख अखारा।।
ं
7. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
छ मेघडंबर सर धार । सोइ जनु जलद घटा अ त कार ।।
मंदोदर
वन ताटं का। सोइ भु जनु दा मनी दमंका।।
बाज हं ताल मृदं ग अनू पा। सोइ रव मधु र सु नहु सु रभू पा।।
भु मु सु कान समु झ अ भमाना। चाप चढ़ाइ बान संधाना।।
दो0-छ मु क ट ताटं क तब हते एकह ं बान।
ु
सबक दे खत म ह परे मरमु न कोऊ जान।।13(क)।।
अस कौतु क क र राम सर
बसेउ आइ नषंग।
रावन सभा ससंक सब दे ख महा रसभंग।।13(ख)।।
–*–*–
कप न भू म न म त बसेषा। अ स कछ नयन न दे खा।।
ं
ु
सोच हं सब नज दय मझार । असगु न भयउ भयंकर भार ।।
दसमु ख दे ख सभा भय पाई। बह स बचन कह जु गु त बनाई।।
सरउ गरे संतत सु भ जाह । मु कट परे कस असगु न ताह ।।
ु
सयन करहु नज नज गृह जाई। गवने भवन सकल सर नाई।।
मंदोदर सोच उर बसेऊ। जब ते वनपू र म ह खसेऊ।।
सजल नयन कह जु ग कर जोर । सु नहु ानप त बनती मोर ।।
कत राम बरोध प रहरहू । जा न मनु ज ज न हठ मन धरहू ।।
ं
दो0- ब व प रघु बंस म न करहु बचन ब वासु ।
लोक क पना बेद कर अंग अंग त जासु ।।14।।
–*–*–
पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग ब ामा।।
भृक ट बलास भयंकर काला। नयन दवाकर कच घन माला।।
ु
जासु ान अि वनीकमारा। न स अ
ु
दवस नमेष अपारा।।
वन दसा दस बेद बखानी। मा त वास नगम नज बानी।।
अधर लोभ जम दसन कराला। माया हास बाहु दगपाला।।
आनन अनल अंबु प त जीहा। उतप त पालन लय समीहा।।
रोम रािज अ टादस भारा। अि थ सैल स रता नस जारा।।
उदर उद ध अधगो जातना। जगमय भु का बहु कलपना।।
दो0-अहं कार सव बु
अज मन स स च त महान।
मनु ज बास सचराचर प राम भगवान।।15 क।।
8. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
अस बचा र सु नु ानप त भु सन बय
बहाइ।
ी त करहु रघु बीर पद मम अ हवात न जाइ।।15 ख।।
–*–*–
बहँ सा ना र बचन सु न काना। अहो मोह म हमा बलवाना।।
ना र सु भाउ स य सब कहह ं। अवगु न आठ सदा उर रहह ं।।
साहस अनृत चपलता माया। भय अ बबेक असौच अदाया।।
रपु कर प सकल त गावा। अ त बसाल भय मो ह सु नावा।।
सो सब
या सहज बस मोर। समु झ परा साद अब तोर।।
जा नउँ
या तो र चतु राई। ए ह ब ध कहहु मो र भु ताई।।
तव बतकह गू ढ़ मृगलोच न। समु झत सु खद सु नत भय मोच न।।
मंदोद र मन महु ँ अस ठयऊ। पय ह काल बस म त म भयऊ।।
दो0-ए ह ब ध करत बनोद बहु ात गट दसकध।
ं
सहज असंक लंकप त सभाँ गयउ मद अंध।।16(क)।।
सो0-फ लह फरइ न बेत जद प सु धा बरष हं जलद।
ू
मू ख दयँ न चेत ज गु र मल हं बरं च सम।।16(ख)।।
–*–*–
इहाँ ात जागे रघु राई। पू छा मत सब स चव बोलाई।।
कहहु बे ग का क रअ उपाई। जामवंत कह पद स नाई।।
सु नु सब य सकल उर बासी। बु ध बल तेज धम गु न रासी।।
मं कहउँ नज म त अनु सारा। दूत पठाइअ बा लक मारा।।
ु
नीक मं सब क मन माना। अंगद सन कह कृ पा नधाना।।
े
बा लतनय बु ध बल गु न धामा। लंका जाहु तात मम कामा।।
बहु त बु झाइ तु ह ह का कहऊ। परम चतु र म जानत अहऊ।।
ँ
ँ
काजु हमार तासु हत होई। रपु सन करे हु बतकह सोई।।
सो0- भु अ या ध र सीस चरन बं द अंगद उठे उ।
सोइ गु न सागर ईस राम कृ पा जा पर करहु ।।17(क)।।
वयं स सब काज नाथ मो ह आद
दयउ।
अस बचा र जु बराज तन पु ल कत हर षत हयउ।।17(ख)।।
बं द चरन उर ध र भु ताई। अंगद चलेउ सब ह स नाई।।
भु ताप उर सहज असंका। रन बाँकरा बा लसु त बंका।।
ु
9. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
पु र पैठत रावन कर बेटा। खेलत रहा सो होइ गै भटा।।
बात हं बात करष ब ढ़ आई। जु गल अतु ल बल पु न त नाई।।
ते ह अंगद कहु ँ लात उठाई। ग ह पद पटकउ भू म भवाँई।।
े
न सचर नकर दे ख भट भार । जहँ तहँ चले न सक हं पु कार ।।
एक एक सन मरमु न कहह ं। समु झ तासु बध चु प क र रहह ं।।
भयउ कोलाहल नगर मझार । आवा क प लंका जेह ं जार ।।
अब ध कहा क र ह करतारा। अ त सभीत सब कर हं बचारा।।
बनु पू छ मगु दे हं दखाई। जे ह बलोक सोइ जाइ सु खाई।।
दो0-गयउ सभा दरबार तब सु म र राम पद कज।
ं
संह ठव न इत उत चतव धीर बीर बल पु ंज।।18।।
–*–*–
तु रत नसाचर एक पठावा। समाचार रावन ह जनावा।।
सु नत बहँ स बोला दससीसा। आनहु बो ल कहाँ कर क सा।।
आयसु पाइ दूत बहु धाए। क पकंु जर ह बो ल लै आए।।
अंगद द ख दसानन बस। स हत ान क जल ग र जैस।।
भु जा बटप सर सृंग समाना। रोमावल लता जनु नाना।।
मु ख ना सका नयन अ काना। ग र कदरा खोह अनु माना।।
ं
गयउ सभाँ मन नेक न मु रा। बा लतनय अ तबल बाँकरा।।
ु
ु
उठे सभासद क प कहु ँ दे खी। रावन उर भा
ौध बसेषी।।
दो0-जथा म त गज जू थ महु ँ पंचानन च ल जाइ।
राम ताप सु म र मन बैठ सभाँ स नाइ।।19।।
–*–*–
कह दसकठ कवन त बंदर। म रघु बीर दूत दसकधर।।
ं
ं
मम जनक ह तो ह रह मताई। तव हत कारन आयउँ भाई।।
उ तम कल पु लि त कर नाती। सव बरं च पू जेहु बहु भाँती।।
ु
बर पायहु क हे हु सब काजा। जीतेहु लोकपाल सब राजा।।
नृप अ भमान मोह बस कं बा। ह र आ नहु सीता जगदं बा।।
अब सु भ कहा सु नहु तु ह मोरा। सब अपराध छ म ह भु तोरा।।
दसन गहहु तृन कठ कठार । प रजन स हत संग नज नार ।।
ं
ु
सादर जनकसु ता क र आग। ए ह ब ध चलहु सकल भय याग।।
10. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दो0- नतपाल रघु बंसम न ा ह ा ह अब मो ह।
आरत गरा सु नत भु अभय करै गो तो ह।।20।।
–*–*–
रे क पपोत बोलु संभार । मू ढ़ न जाने ह मो ह सु रार ।।
कहु नज नाम जनक कर भाई। क ह नात मा नऐ मताई।।
े
अंगद नाम बा ल कर बेटा। तास कबहु ँ भई ह भेटा।।
अंगद बचन सु नत सकचाना। रहा बा ल बानर म जाना।।
ु
अंगद तह ं बा ल कर बालक। उपजेहु बंस अनल कल घालक।।
ु
गभ न गयहु यथ तु ह जायहु । नज मु ख तापस दूत कहायहु ।।
अब कहु क सल बा ल कहँ अहई। बहँ स बचन तब अंगद कहई।।
ु
दन दस गएँ बा ल प हं जाई। बू झहु कसल सखा उर लाई।।
े ु
राम बरोध कसल ज स होई। सो सब तो ह सु नाइ ह सोई।।
ु
सु नु सठ भेद होइ मन ताक। ीरघु बीर दय न हं जाक।।
दो0-हम क ल घालक स य तु ह कल पालक दससीस।
ु
ु
अंधउ ब धर न अस कह हं नयन कान तव बीस।।21।
–*–*–
सव बरं च सु र मु न समु दाई। चाहत जासु चरन सेवकाई।।
तासु दूत होइ हम कल बोरा। अइ सहु ँ म त उर बहर न तोरा।।
ु
सु न कठोर बानी क प कर । कहत दसानन नयन तरे र ।।
े
खल तव क ठन बचन सब सहऊ। नी त धम म जानत अहऊ।।
ँ
ँ
कह क प धमसीलता तोर । हमहु ँ सु नी कृ त पर
य चोर ।।
दे खी नयन दूत रखवार । बू ड़ न मरहु धम तधार ।।
कान नाक बनु भ ग न नहार । छमा क ि ह तु ह धम बचार ।।
धमसीलता तव जग जागी। पावा दरसु हमहु ँ बड़भागी।।
दो0-ज न ज प स जड़ जंतु क प सठ बलोक मम बाहु ।
ु
लोकपाल बल बपु ल स स सन हे तु सब राहु ।।22(क)।।
पु न नभ सर मम कर नकर कमलि ह पर क र बास।
सोभत भयउ मराल इव संभु स हत कलास।।22(ख)।।
ै
–*–*–
तु हरे कटक माझ सु नु अंगद। मो सन भ र ह कवन जोधा बद।।
11. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
तव भु ना र बरहँ बलह ना। अनु ज तासु दुख दुखी मल ना।।
तु ह सु ीव कल म दोऊ। अनु ज हमार भी अ त सोऊ।।
ू
ु
जामवंत मं ी अ त बू ढ़ा। सो क होइ अब समरा ढ़ा।।
सि प कर्म जान हं नल नीला। है क प एक महा बलसीला।।
आवा थम नग ज हं जारा। सु नत बचन कह बा लकमारा।।
ु
स य बचन कहु न सचर नाहा। साँचेहु ँ क स क ह पु र दाहा।।
रावन नगर अ प क प दहई। सु न अस बचन स य को कहई।।
जो अ त सु भट सराहे हु रावन। सो सु ीव कर लघु धावन।।
े
चलइ बहु त सो बीर न होई। पठवा खब र लेन हम सोई।।
दो0-स य नग क प जारे उ बनु भु आयसु पाइ।
फ र न गयउ सु ीव प हं ते हं भय रहा लु काइ।।23(क)।।
स य कह ह दसकठ सब मो ह न सु न कछ कोह।
ं
ु
कोउ न हमार कटक अस तो सन लरत जो सोह।।23(ख)।।
ी त बरोध समान सन क रअ नी त अ स आ ह।
ज मृगप त बध मेड़ु कि ह भल क कहइ कोउ ता ह।।23(ग)।।
ज य प लघु ता राम कहु ँ तो ह बध बड़ दोष।
तद प क ठन दसकठ सु नु छ जा त कर रोष।।23(घ)।।
ं
ब
उि त धनु बचन सर दय दहे उ रपु क स।
तउ तर सड़ स ह मनहु ँ काढ़त भट दससीस।।23(ङ)।।
जो
हँ स बोलेउ दसमौ ल तब क प कर बड़ गु न एक।
तपालइ तासु हत करइ उपाय अनेक।।23(छ)।।
–*–*–
ध य क स जो नज भु काजा। जहँ तहँ नाचइ प रह र लाजा।।
ना च क द क र लोग रझाई। प त हत करइ धम नपु नाई।।
ू
अंगद वा मभ त तव जाती। भु गु न कस न कह स ए ह भाँती।।
म गु न गाहक परम सु जाना। तव कटु रट न करउँ न हं काना।।
कह क प तव गु न गाहकताई। स य पवनसु त मो ह सु नाई।।
बन बधं स सु त ब ध पु र जारा। तद प न ते हं कछ कृ त अपकारा।।
ु
सोइ बचा र तव कृ त सु हाई। दसकधर म क ि ह ढठाई।।
ं
12. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दे खेउँ आइ जो कछ क प भाषा। तु हर लाज न रोष न माखा।।
ु
ज अ स म त पतु खाए क सा। क ह अस बचन हँ सा दससीसा।।
पत ह खाइ खातेउँ पु न तोह । अबह ं समु झ परा कछ मोह ।।
ु
बा ल बमल जस भाजन जानी। हतउँ न तो ह अधम अ भमानी।।
कहु रावन रावन जग कते। म नज वन सु ने सु नु जेते।।
े
ब ल ह िजतन एक गयउ पताला। राखेउ बाँ ध ससु ह हयसाला।।
खेल हं बालक मार हं जाई। दया ला ग ब ल द ह छोड़ाई।।
एक बहो र सहसभु ज दे खा। धाइ धरा िज म जंतु बसेषा।।
कौतु क ला ग भवन लै आवा। सो पु लि त मु न जाइ छोड़ावा।।
दो0-एक कहत मो ह सकच अ त रहा बा ल क काँख।
ु
इ ह महु ँ रावन त कवन स य बद ह तिज माख।।24।।
–*–*–
सु नु सठ सोइ रावन बलसीला। हर ग र जान जासु भु ज ल ला।।
जान उमाप त जासु सु राई। पू जेउँ जे ह सर सु मन चढ़ाई।।
सर सरोज नज करि ह उतार । पू जेउँ अ मत बार
पु रार ।।
भु ज ब म जान हं दगपाला। सठ अजहू ँ िज ह क उर साला।।
जान हं द गज उर क ठनाई। जब जब भरउँ जाइ ब रआई।।
िज ह क दसन कराल न फटे । उर लागत मू लक इव टू टे ।।
े
ू
जासु चलत डोल त इ म धरनी। चढ़त म त गज िज म लघु तरनी।।
सोइ रावन जग ब दत तापी। सु ने ह न वन अल क लापी।।
दो0-ते ह रावन कहँ लघु कह स नर कर कर स बखान।
रे क प बबर खब खल अब जाना तव यान।।25।।
–*–*–
सु न अंगद सकोप कह बानी। बोलु सँभा र अधम अ भमानी।।
सहसबाहु भु ज गहन अपारा। दहन अनल सम जासु कठारा।।
ु
जासु परसु सागर खर धारा। बू ड़े नृप अग नत बहु बारा।।
तासु गब जे ह दे खत भागा। सो नर य दससीस अभागा।।
राम मनु ज कस रे सठ बंगा। ध वी कामु नद पु न गंगा।।
पसु सुरधेनु क पत
खा। अ न दान अ रस पीयू षा।।
बैनतेय खग अ ह सहसानन। चंताम न पु न उपल दसानन।।
13. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
सु नु म तमंद लोक बैकंु ठा। लाभ क रघु प त भग त अकंु ठा।।
दो0-सेन स हत तब मान म थ बन उजा र पु र जा र।।
कस रे सठ हनु मान क प गयउ जो तव सु त मा र।।26।।
–*–*–
सु नु रावन प रह र चतु राई। भज स न कृ पा संधु रघु राई।।
जौ खल भए स राम कर ोह ।
म
सक रा ख न तोह ।।
मू ढ़ बृथा ज न मार स गाला। राम बयर अस होइ ह हाला।।
तव सर नकर क प ह क आग। प रह हं धर न राम सर लाग।।
े
ते तव सर कदुक सम नाना। खेलह हं भालु क स चौगाना।।
ं
जब हं समर कोप ह रघु नायक। छ टह हं अ त कराल बहु सायक।।
ु
तब क च ल ह अस गाल तु हारा। अस बचा र भजु राम उदारा।।
सु नत बचन रावन परजरा। जरत महानल जनु घृत परा।।
दो0-कंु भकरन अस बंधु मम सु त
स स ा र।
मोर परा म न हं सु ने ह िजतेउँ चराचर झा र।।27।।
–*–*–
सठ साखामृग जो र सहाई। बाँधा संधु इहइ भु ताई।।
नाघ हं खग अनेक बार सा। सू र न हो हं ते सु नु सब क सा।।
मम भु ज सागर बल जल पू रा। जहँ बू ड़े बहु सु र नर सू रा।।
बीस पयो ध अगाध अपारा। को अस बीर जो पाइ ह पारा।।
दगपाल ह म नीर भरावा। भू प सु जस खल मो ह सु नावा।।
ज पै समर सु भट तव नाथा। पु न पु न कह स जासु गु न गाथा।।
तौ बसीठ पठवत क ह काजा। रपु सन ी त करत न हं लाजा।।
े
हर ग र मथन नरखु मम बाहू । पु न सठ क प नज भु ह सराहू ।।
दो0-सू र कवन रावन स रस वकर का ट जे हं सीस।
हु ने अनल अ त हरष बहु बार सा ख गौर स।।28।।
–*–*–
जरत बलोकउँ जब हं कपाला। ब ध क लखे अंक नज भाला।।
े
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नर क कर आपन बध बाँची। हसेउँ जा न ब ध गरा असाँची।।
सोउ मन समु झ ास न हं मोर। लखा बरं च जरठ म त भोर।।
आन बीर बल सठ मम आग। पु न पु न कह स लाज प त यागे।।
14. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
कह अंगद सल ज जग माह ं। रावन तो ह समान कोउ नाह ं।।
लाजवंत तव सहज सु भाऊ। नज मु ख नज गु न कह स न काऊ।।
सर अ सैल कथा चत रह । ताते बार बीस त कह ।।
सो भु जबल राखेउ उर घाल । जीतेहु सहसबाहु ब ल बाल ।।
सु नु म तमंद दे ह अब पू रा। काट सीस क होइअ सू रा।।
इं जा ल कहु क हअ न बीरा। काटइ नज कर सकल सर रा।।
दो0-जर हं पतंग मोह बस भार बह हं खर बृंद।
ते न हं सू र कहाव हं समु झ दे खु म तमंद।।29।।
–*–*–
अब ज न बतबढ़ाव खल करह । सु नु मम बचन मान प रहरह ।।
दसमु ख म न बसीठ ं आयउँ । अस बचा र रघु बीष पठायउँ ।।
बार बार अस कहइ कृ पाला। न हं गजा र जसु बध सृकाला।।
मन महु ँ समु झ बचन भु करे । सहे उँ कठोर बचन सठ तेरे।।
े
ना हं त क र मु ख भंजन तोरा। लै जातेउँ सीत ह बरजोरा।।
जानेउँ तव बल अधम सु रार । सू न ह र आ न ह परनार ।।
त न सचर प त गब बहू ता। म रघु प त सेवक कर दूता।।
ज न राम अपमान ह डरउँ । तो ह दे खत अस कौतु क करऊ।।
ँ
दो0-तो ह पट क म ह सेन ह त चौपट क र तव गाउँ ।
तव जु ब त ह समेत सठ जनकसु त ह लै जाउँ ।।30।।
–*–*–
जौ अस कर तद प न बड़ाई। मु ए ह बध न हं कछ मनु साई।।
ु
कौल कामबस कृ पन बमू ढ़ा। अ त द र अजसी अ त बू ढ़ा।।
सदा रोगबस संतत
ोधी। ब नु बमू ख ु त संत बरोधी।।
तनु पोषक नंदक अघ खानी। जीवन सव सम चौदह ानी।।
अस बचा र खल बधउँ न तोह । अब ज न रस उपजाव स मोह ।।
सु न सकोप कह न सचर नाथा। अधर दसन द स मीजत हाथा।।
रे क प अधम मरन अब चहसी। छोटे बदन बात ब ड़ कहसी।।
कटु ज प स जड़ क प बल जाक। बल ताप बु ध तेज न ताक।।
दो0-अगु न अमान जा न ते ह द ह पता बनबास।
सो दुख अ जु बती बरह पु न न स दन मम ास।।31(क)।।
15. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
िज ह क बल कर गब तो ह अइसे मनु ज अनेक।
े
खाह ं नसाचर दवस न स मू ढ़ समु झु तिज टे क।।31(ख)।।
–*–*–
जब ते हं क ह राम क नंदा। ोधवंत अ त भयउ क पंदा।।
ै
ह र हर नंदा सु नइ जो काना। होइ पाप गोघात समाना।।
कटकटान क पकंु जर भार । दुहु भु जदं ड तम क म ह मार ।।
डोलत धर न सभासद खसे। चले भािज भय मा त से।।
गरत सँभा र उठा दसकधर। भू तल परे मु कट अ त सु ंदर।।
ं
ु
कछ ते हं लै नज सरि ह सँवारे । कछ अंगद भु पास पबारे ।।
ु
ु
आवत मु कट दे ख क प भागे। दनह ं लू क परन ब ध लागे।।
ु
क रावन क र कोप चलाए। क लस चा र आवत अ त धाए।।
ु
कह भु हँ स ज न दयँ डेराहू । लू क न अस न कतु न हं राहू ।।
े
ए कर ट दसकधर करे । आवत बा लतनय क ेरे।।
ं
े
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दो0-तर क पवनसु त कर गहे आ न धरे भु पास।
कौतु क दे ख हं भालु क प दनकर स रस कास।।32(क)।।
उहाँ सको प दसानन सब सन कहत रसाइ।
धरहु क प ह ध र मारहु सु न अंगद मु सु काइ।।32(ख)।।
–*–*–
ए ह ब ध बे ग सू भट सब धावहु । खाहु भालु क प जहँ जहँ पावहु ।।
मकटह न करहु म ह जाई। िजअत धरहु तापस वौ भाई।।
पु न सकोप बोलेउ जु बराजा। गाल बजावत तो ह न लाजा।।
म गर का ट नलज कलघाती। बल बलो क बहर त न हं छाती।।
ु
रे
य चोर कमारग गामी। खल मल रा स मंदम त कामी।।
ु
स यपात ज प स दुबादा। भए स कालबस खल मनु जादा।।
याको फलु पाव हगो आग। बानर भालु चपेटि ह लाग।।
रामु मनु ज बोलत अ स बानी। गर हं न तव रसना अ भमानी।।
ग रह हं रसना संसय नाह ं। सरि ह समेत समर म ह माह ं।।
सो0-सो नर य दसकध बा ल ब यो जे हं एक सर।
ं
बीसहु ँ लोचन अंध धग तव ज म कजा त जड़।।33(क)।।
ु
तब सो नत क यास तृ षत राम सायक नकर।
16. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
तजउँ तो ह ते ह ास कटु ज पक न सचर अधम।।33(ख)।।
मै तव दसन तो रबे लायक। आयसु मो ह न द ह रघु नायक।।
अ स रस हो त दसउ मु ख तोर । लंका ग ह समु महँ बोर ।।
गू ल र फल समान तव लंका। बसहु म य तु ह जंतु असंका।।
म बानर फल खात न बारा। आयसु द ह न राम उदारा।।
जु ग त सु नत रावन मु सु काई। मू ढ़ स ख ह कहँ बहु त झु ठाई।।
बा ल न कबहु ँ गाल अस मारा। म ल तप स ह त भए स लबारा।।
साँचेहु ँ म लबार भु ज बीहा। ज न उपा रउँ तव दस जीहा।।
समु झ राम ताप क प कोपा। सभा माझ पन क र पद रोपा।।
ज मम चरन सक स सठ टार । फर हं रामु सीता म हार ।।
सु नहु सु भट सब कह दससीसा। पद ग ह धर न पछारहु क सा।।
इं जीत आ दक बलवाना। हर ष उठे जहँ तहँ भट नाना।।
झपट हं क र बल बपु ल उपाई। पद न टरइ बैठ हं स नाई।।
पु न उ ठ झपटह ं सु र आराती। टरइ न क स चरन ए ह भाँती।।
पु ष कजोगी िज म उरगार । मोह बटप न हं सक हं उपार ।।
ु
दो0-को ट ह मेघनाद सम सु भट उठे हरषाइ।
झपट हं टरै न क प चरन पु न बैठ हं सर नाइ।।34(क)।।
भू म न छाँडत क प चरन दे खत रपु मद भाग।।
को ट ब न ते संत कर मन िज म नी त न याग।।34(ख)।।
–*–*–
क प बल दे ख सकल हयँ हारे । उठा आपु क प क परचारे ।।
गहत चरन कह बा लक मारा। मम पद गह न तोर उबारा।।
ु
गह स न राम चरन सठ जाई। सु नत फरा मन अ त सक चाई।।
ु
भयउ तेजहत ी सब गई। म य दवस िज म स स सोहई।।
संघासन बैठेउ सर नाई। मानहु ँ संप त सकल गँवाई।।
जगदातमा ानप त रामा। तासु बमु ख क म लह ब ामा।।
उमा राम क भृक ट बलासा। होइ ब व पु न पावइ नासा।।
ु
तृन ते क लस क लस तृन करई। तासु दूत पन कहु क म टरई।।
ु
ु
पु न क प कह नी त ब ध नाना। मान न ता ह कालु नअराना।।
17. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
रपु मद म थ भु सु जसु सु नायो। यह क ह च यो बा ल नृप जायो।।
हत न खेत खेलाइ खेलाई। तो ह अब हं का कर बड़ाई।।
थम हं तासु तनय क प मारा। सो सु न रावन भयउ दुखारा।।
जातु धान अंगद पन दे खी। भय याकल सब भए बसेषी।।
ु
दो0- रपु बल धर ष हर ष क प बा लतनय बल पु ंज।
पु लक सर र नयन जल गहे राम पद कज।।35(क)।।
ं
साँझ जा न दसकधर भवन गयउ बलखाइ।
ं
मंदोदर रावन ह बहु र कहा समु झाइ।।(ख)।।
–*–*–
कत समु झ मन तजहु कम तह । सोह न समर तु ह ह रघु प तह ।।
ं
ु
रामानु ज लघु रे ख खचाई। सोउ न हं नाघेहु अ स मनु साई।।
पय तु ह ता ह िजतब सं ामा। जाक दूत कर यह कामा।।
े
े
कौतु क संधु नाघी तव लंका। आयउ क प कहर असंका।।
े
रखवारे ह त ब पन उजारा। दे खत तो ह अ छ ते हं मारा।।
जा र सकल पु र क हे स छारा। कहाँ रहा बल गब तु हारा।।
अब प त मृषा गाल ज न मारहु । मोर कहा कछ दयँ बचारहु ।।
ु
प त रघु प त ह नृप त ज न मानहु । अग जग नाथ अतु ल बल जानहु ।।
बान ताप जान मार चा। तासु कहा न हं माने ह नीचा।।
जनक सभाँ अग नत भू पाला। रहे तु हउ बल अतु ल बसाला।।
भंिज धनु ष जानक बआह । तब सं ाम िजतेहु कन ताह ।।
सु रप त सु त जानइ बल थोरा। राखा िजअत आँ ख ग ह फोरा।।
सू पनखा क ग त तु ह दे खी। तद प दयँ न हं लाज बषेषी।।
ै
दो0-ब ध बराध खर दूषन ह ल लाँ ह यो कबंध।
बा ल एक सर मारयो ते ह जानहु दसकध।।36।।
ं
–*–*–
जे हं जलनाथ बँधायउ हे ला। उतरे भु दल स हत सु बेला।।
का नीक दनकर कल कतू । दूत पठायउ तव हत हे तू ।।
ु
े
सभा माझ जे हं तव बल मथा। क र ब थ महु ँ मृगप त जथा।।
अंगद हनु मत अनु चर जाक। रन बाँकरे बीर अ त बाँक।।
े
ु
े
ते ह कहँ पय पु न पु न नर कहहू । मु धा मान ममता मद बहहू ।।
18. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
अहह कत कृ त राम बरोधा। काल बबस मन उपज न बोधा।।
ं
काल दं ड ग ह काहु न मारा। हरइ धम बल बु
बचारा।।
नकट काल जे ह आवत सा । ते ह म होइ तु हा र ह ना ।।
दो0-दुइ सु त मरे दहे उ पु र अजहु ँ पू र पय दे हु ।
कृ पा संधु रघु नाथ भिज नाथ बमल जसु लेहु ।।37।।
–*–*–
ना र बचन सु न ब सख समाना। सभाँ गयउ उ ठ होत बहाना।।
बैठ जाइ संघासन फल । अ त अ भमान ास सब भू ल ।।
ू
इहाँ राम अंगद ह बोलावा। आइ चरन पंकज स नावा।।
अ त आदर सपीप बैठार । बोले बहँ स कृ पाल खरार ।।
बा लतनय कौतु क अ त मोह । तात स य कहु पू छउँ तोह ।।।
रावनु जातु धान कल ट का। भु ज बल अतु ल जासु जग ल का।।
ु
तासु मु क ट तु ह चा र चलाए। कहहु तात कवनी ब ध पाए।।
ु
सु नु सब य नत सु खकार । मु क ट न हो हं भू प गु न चार ।।
ु
साम दान अ दं ड बभेदा। नृप उर बस हं नाथ कह बेदा।।
नी त धम क चरन सु हाए। अस िजयँ जा न नाथ प हं आए।।
े
दो0-धमह न भु पद बमु ख काल बबस दससीस।
ते ह प रह र गु न आए सु नहु कोसलाधीस।।38(((क)।।
परम चतु रता वन सु न बहँ से रामु उदार।
समाचार पु न सब कहे गढ़ क बा लकमार।।38(ख)।।
े
ु
–*–*–
रपु क समाचार जब पाए। राम स चव सब नकट बोलाए।।
े
लंका बाँक चा र दुआरा। क ह ब ध ला गअ करहु बचारा।।
े
े
तब कपीस र छे स बभीषन। सु म र दयँ दनकर कल भू षन।।
ु
क र बचार त ह मं
ढ़ावा। चा र अनी क प कटक बनावा।।
ु
जथाजोग सेनाप त क हे । जू थप सकल बो ल तब ल हे ।।
भु ताप क ह सब समु झाए। सु न क प संघनाद क र धाए।।
हर षत राम चरन सर नाव हं। ग ह ग र सखर बीर सब धाव हं।।
गज हं तज हं भालु कपीसा। जय रघु बीर कोसलाधीसा।।
जानत परम दुग अ त लंका। भु ताप क प चले असंका।।
19. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
घटाटोप क र चहु ँ द स घेर । मु ख हं नसान बजावह ं भेर ।।
दो0-जय त राम जय ल छमन जय कपीस सु ीव।
गज हं संघनाद क प भालु महा बल सींव।।39।।
–*–*–
लंकाँ भयउ कोलाहल भार । सु ना दसानन अ त अहँ कार ।।
दे खहु बनर ह क र ढठाई। बहँ स नसाचर सेन बोलाई।।
े
आए क स काल क ेरे। छधावंत सब न सचर मेरे।।
े
ु
अस क ह अ हास सठ क हा। गृह बैठे अहार ब ध द हा।।
सु भट सकल चा रहु ँ द स जाहू । ध र ध र भालु क स सब खाहू ।।
उमा रावन ह अस अ भमाना। िज म ट भ खग सू त उताना।।
चले नसाचर आयसु मागी। ग ह कर भं डपाल बर साँगी।।
तोमर मु दर परसु चंडा। सु ल कृ पान प रघ ग रखंडा।।
िज म अ नोपल नकर नहार । धाव हं सठ खग मांस अहार ।।
च च भंग दुख त ह ह न सू झा। त म धाए मनु जाद अबू झा।।
दो0-नानायु ध सर चाप धर जातु धान बल बीर।
कोट कगू रि ह च ढ़ गए को ट को ट रनधीर।।40।।
ँ
–*–*–
कोट कगू रि ह सोह हं कसे। मे क सृंग न जनु घन बैसे।।
ँ
ै
े
बाज हं ढोल नसान जु झाऊ। सु न धु न होइ भटि ह मन चाऊ।।
बाज हं भे र नफ र अपारा। सु न कादर उर जा हं दरारा।।
दे ख ह जाइ क प ह क ठ ा। अ त बसाल तनु भालु सु भ ा।।
े
धाव हं गन हं न अवघट घाटा। पबत फो र कर हं ग ह बाटा।।
कटकटा हं को ट ह भट गज हं। दसन ओठ काट हं अ त तज हं।।
उत रावन इत राम दोहाई। जय त जय त जय पर लराई।।
न सचर सखर समू ह ढहाव हं। क द धर हं क प फ र चलाव हं।।
ू
े
दो0-ध र कधर खंड चंड ककट भालु गढ़ पर डारह ं।
ु
झपट हं चरन ग ह पट क म ह भिज चलत बहु र पचारह ं।।
–*–*–
अ त तरल त न ताप तरप हं तम क गढ़ च ढ़ च ढ़ गए।
क प भालु च ढ़ मं दर ह जहँ तहँ राम जसु गावत भए।।
20. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दो0-एक एक न सचर ग ह पु न क प चले पराइ।
ु
ु
ऊपर आपु हे ठ भट गर हं धर न पर आइ।।41।।
–*–*–
राम ताप बल क पजू था। मद हं न सचर सु भट ब था।।
चढ़े दुग पु न जहँ तहँ बानर। जय रघु बीर ताप दवाकर।।
चले नसाचर नकर पराई। बल पवन िज म घन समु दाई।।
हाहाकार भयउ पु र भार । रोव हं बालक आतु र नार ।।
सब म ल दे हं रावन ह गार । राज करत ए हं मृ यु हँ कार ।।
नज दल बचल सु नी ते हं काना। फ र सु भट लंकस रसाना।।
े
े
जो रन बमु ख सु ना म काना। सो म हतब कराल कृ पाना।।
सबसु खाइ भोग क र नाना। समर भू म भए ब लभ ाना।।
उ बचन सु न सकल डेराने। चले
ोध क र सु भट लजाने।।
स मु ख मरन बीर क सोभा। तब त ह तजा ान कर लोभा।।
ै
दो0-बहु आयु ध धर सु भट सब भर हं पचा र पचा र।
याक ल कए भालु क प प रघ सू लि ह मार ।।42।।
ु
–*–*–
भय आतु र क प भागन लागे। ज य प उमा जी तह हं आगे।।
कोउ कह कहँ अंगद हनु मंता। कहँ नल नील दु बद बलवंता।।
नज दल बकल सुना हनु माना। पि छम वार रहा बलवाना।।
मेघनाद तहँ करइ लराई। टू ट न वार परम क ठनाई।।
पवनतनय मन भा अ त
ोधा। गजउ बल काल सम जोधा।।
क द लंक गढ़ ऊपर आवा। ग ह ग र मेघनाद कहु ँ धावा।।
ू
भंजेउ रथ सारथी नपाता। ता ह दय महु ँ मारे स लाता।।
दुसर सू त बकल ते ह जाना। यंदन घा ल तु रत गृह आना।।
दो0-अंगद सु ना पवनसु त गढ़ पर गयउ अकल।
े
रन बाँक रा बा लसु त तर क चढ़े उ क प खेल।।43।।
ु
–*–*–
जु ब
ु
वौ बंदर। राम ताप सु म र उर अंतर।।
रावन भवन चढ़े वौ धाई। कर ह कोसलाधीस दोहाई।।
कलस स हत ग ह भवनु ढहावा। दे ख नसाचरप त भय पावा।।
21. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
ना र बृंद कर पीट हं छाती। अब दुइ क प आए उतपाती।।
क पल ला क र त ह ह डेराव हं। रामचं कर सु जसु सु नाव हं।।
पु न कर ग ह कचन क खंभा। कहे ि ह क रअ उतपात अरं भा।।
ं
े
गिज परे रपु कटक मझार । लागे मद भु ज बल भार ।।
काहु ह लात चपेटि ह कहू । भजहु न राम ह सो फल लेहू ।।
े
दो0-एक एक स मद हं तो र चलाव हं मु ंड।
रावन आग पर हं ते जनु फट हं द ध कंु ड।।44।।
ू
–*–*–
महा महा मु खआ जे पाव हं। ते पद ग ह भु पास चलाव हं।।
कहइ बभीषनु त ह क नामा। दे हं राम त हहू नज धामा।।
े
खल मनु जाद
वजा मष भोगी। पाव हं ग त जो जाचत जोगी।।
उमा राम मृदु चत क नाकर। बयर भाव सु मरत मो ह न सचर।।
दे हं परम ग त सो िजयँ जानी। अस कृ पाल को कहहु भवानी।।
अस भु सु न न भज हं म यागी। नर म तमंद ते परम अभागी।।
अंगद अ हनु मंत बेसा। क ह दुग अस कह अवधेसा।।
लंकाँ वौ क प सोह हं कस। मथ ह संधु दुइ मंदर जैस।।
ै
दो0-भु ज बल रपु दल दलम ल दे ख दवस कर अंत।
कदे जु गल बगत म आए जहँ भगवंत।।45।।
ू
–*–*–
भु पद कमल सीस त ह नाए। दे ख सु भट रघु प त मन भाए।।
राम कृ पा क र जु गल नहारे । भए बगत म परम सु खारे ।।
गए जा न अंगद हनुमाना। फरे भालु मकट भट नाना।।
जातु धान दोष बल पाई। धाए क र दससीस दोहाई।।
न सचर अनी दे ख क प फरे । जहँ तहँ कटकटाइ भट भरे ।।
वौ दल बल पचा र पचार । लरत सु भट न हं मान हं हार ।।
महाबीर न सचर सब कारे । नाना बरन बल मु ख भारे ।।
सबल जु गल दल समबल जोधा। कौतुक करत लरत क र
ोधा।।
ा बट सरद पयोद घनेरे। लरत मनहु ँ मा त क ेरे।।
े
अ नप अकपन अ अ तकाया। बचलत सेन क ि ह इ ह माया।।
ं
भयउ न मष महँ अ त अँ धयारा। बृि ट होइ
धरोपल छारा।।
22. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दो0-दे ख न बड़ तम दसहु ँ द स क पदल भयउ खभार।
एक ह एक न दे खई जहँ तहँ कर हं पु कार।।46।।
–*–*–
सकल मरमु रघु नायक जाना। लए बो ल अंगद हनु माना।।
समाचार सब क ह समु झाए। सु नत को प क पकंु जर धाए।।
पु न कृ पाल हँ स चाप चढ़ावा। पावक सायक सप द चलावा।।
भयउ कास कतहु ँ तम नाह ं। यान उदयँ िज म संसय जाह ं।।
भालु बल मु ख पाइ कासा। धाए हरष बगत म ासा।।
हनू मान अंगद रन गाजे। हाँक सु नत रजनीचर भाजे।।
भागत पट पटक हं ध र धरनी। कर हं भालु क प अ ु त करनी।।
ग ह पद डार हं सागर माह ं। मकर उरग झष ध र ध र खाह ं।।
दो0-कछ मारे कछ घायल कछ गढ़ चढ़े पराइ।
ु
ु
ु
गज हं भालु बल मु ख रपु दल बल बचलाइ।।47।।
–*–*–
नसा जा न क प चा रउ अनी। आए जहाँ कोसला धनी।।
राम कृ पा क र चतवा सबह । भए बगत म बानर तबह ।।
उहाँ दसानन स चव हँ कारे । सब सन कहे स सु भट जे मारे ।।
आधा कटक क प ह संघारा। कहहु बे ग का क रअ बचारा।।
ु
मा यवंत अ त जरठ नसाचर। रावन मातु पता मं ी बर।।
बोला बचन नी त अ त पावन। सु नहु तात कछ मोर सखावन।।
ु
जब ते तु ह सीता ह र आनी। असगु न हो हं न जा हं बखानी।।
बेद पु रान जासु जसु गायो। राम बमु ख काहु ँ न सु ख पायो।।
दो0- हर या छ ाता स हत मधु कटभ बलवान।
ै
जे ह मारे सोइ अवतरे उ कृ पा संधु भगवान।।48(क)।।
मासपारायण, पचीसवाँ व ाम
काल प खल बन दहन गु नागार घनबोध।
सव बरं च जे ह सेव हं तास कवन बरोध।।48(ख)।।
–*–*–
प रह र बय दे हु बैदेह । भजहु कृ पा न ध परम सनेह ।।
ताक बचन बान सम लागे। क रआ मु ह क र जा ह अभागे।।
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23. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
बू ढ़ भए स न त मरतेउँ तोह । अब ज न नयन दे खाव स मोह ।।
ते ह अपने मन अस अनु माना। ब यो चहत ए ह कृ पा नधाना।।
सो उ ठ गयउ कहत दुबादा। तब सकोप बोलेउ घननादा।।
कौतु क ात दे खअहु मोरा। क रहउँ बहु त कह का थोरा।।
सु न सु त बचन भरोसा आवा। ी त समेत अंक बैठावा।।
करत बचार भयउ भनु सारा। लागे क प पु न चहू ँ दुआरा।।
को प क पन ्ह दुघट गढ़ु घेरा। नगर कोलाहलु भयउ घनेरा।।
ब बधायु ध धर न सचर धाए। गढ़ ते पबत सखर ढहाए।।
छं 0-ढाहे मह धर सखर को ट ह ब बध ब ध गोला चले।
घहरात िज म प बपात गजत जनु लय क बादले।।
े
मकट बकट भट जु टत कटत न लटत तन जजर भए।
ग ह सैल ते ह गढ़ पर चलाव हं जहँ सो तहँ न सचर हए।।
दो0-मेघनाद सु न वन अस गढ़ु पु न छका आइ।
उतय बीर दुग त स मु ख च यो बजाइ।।49।।
–*–*–
कहँ कोसलाधीस वौ ाता। ध वी सकल लोक ब याता।।
कहँ नल नील दु बद सु ीवा। अंगद हनू मंत बल सींवा।।
कहाँ बभीषनु ाता ोह । आजु सब ह ह ठ मारउँ ओह ।।
अस क ह क ठन बान संधाने। अ तसय
ोध वन ल ग ताने।।
सर समु ह सो छाड़ै लागा। जनु सप छ धाव हं बहु नागा।।
जहँ तहँ परत दे खअ हं बानर। स मु ख होइ न सक ते ह अवसर।।
े
जहँ तहँ भा ग चले क प र छा। बसर सब ह जु क ईछा।।
ै
सो क प भालु न रन महँ दे खा। क हे स जे ह न ान अवसेषा।।
दो0-दस दस सर सब मारे स परे भू म क प बीर।
संहनाद क र गजा मेघनाद बल धीर।।50।।
–*–*–
दे ख पवनसु त कटक बहाला। ोधवंत जनु धायउ काला।।
महासैल एक तु रत उपारा। अ त रस मेघनाद पर डारा।।
आवत दे ख गयउ नभ सोई। रथ सारथी तु रग सब खोई।।
बार बार पचार हनु माना। नकट न आव मरमु सो जाना।।
24. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
रघु प त नकट गयउ घननादा। नाना भाँ त करे स दुबादा।।
अ
स
आयु ध सब डारे । कौतु कह ं भु का ट नवारे ।।
दे ख ताप मू ढ़ ख सआना। करै लाग माया ब ध नाना।।
िज म कोउ करै ग ड़ स खेला। डरपावै ग ह व प सपेला।।
दो0-जासु बल माया बल सव बरं च बड़ छोट।
ता ह दखावइ न सचर नज माया म त खोट।।51।।
–*–*–
नभ च ढ़ बरष बपु ल अंगारा। म ह ते गट हो हं जलधारा।।
नाना भाँ त पसाच पसाची। मा काटु धु न बोल हं नाची।।
ब टा पू य
धर कच हाड़ा। बरषइ कबहु ँ उपल बहु छाड़ा।।
बर ष धू र क हे स अँ धआरा। सू झ न आपन हाथ पसारा।।
क प अकलाने माया दे ख। सब कर मरन बना ए ह लेख।।
ु
कौतु क दे ख राम मु सु काने। भए सभीत सकल क प जाने।।
एक बान काट सब माया। िज म दनकर हर त मर नकाया।।
कृ पा ि ट क प भालु बलोक। भए बल रन रह हं न रोक।।
े
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दो0-आयसु मा ग राम प हं अंगदा द क प साथ।
ल छमन चले ु
होइ बान सरासन हाथ।।52।।
–*–*–
छतज नयन उर बाहु बसाला। हम ग र नभ तनु कछ एक लाला।।
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इहाँ दसानन सु भट पठाए। नाना अ
स
ग ह धाए।।
भू धर नख बटपायु ध धार । धाए क प जय राम पु कार ।।
भरे सकल जो र ह सन जोर । इत उत जय इ छा न हं थोर ।।
मु ठक ह लात ह दात ह काट हं। क प जयसील मा र पु न डाट हं।।
मा मा ध ध ध मा । सीस तो र ग ह भु जा उपा ।।
अ स रव पू र रह नव खंडा। धाव हं जहँ तहँ ं ड चंडा।।
दे ख हं कौतु क नभ सु र बृंदा। कबहु ँ क बसमय कबहु ँ अनंदा।।
दो0- धर गाड़ भ र भ र ज यो ऊपर धू र उड़ाइ।
जनु अँगार रा स ह पर मृतक धू म र यो छाइ।।53।।
–*–*–
घायल बीर बराज हं कसे। कसु मत कं सु क क त जैसे।।
ै
ु
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25. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
ल छमन मेघनाद वौ जोधा। भर हं परसपर क र अ त
ोधा।।
एक ह एक सकइ न हं जीती। न सचर छल बल करइ अनीती।।
ोधवंत तब भयउ अनंता। भंजेउ रथ सारथी तु रंता।।
नाना ब ध हार कर सेषा। रा छस भयउ ान अवसेषा।।
रावन सु त नज मन अनु माना। संकठ भयउ ह र ह मम ाना।।
बीरघा तनी छा ड़ स साँगी। तेज पु ंज ल छमन उर लागी।।
मु छा भई सि त क लाग। तब च ल गयउ नकट भय याग।।
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दो0-मेघनाद सम को ट सत जोधा रहे उठाइ।
जगदाधार सेष क म उठै चले ख सआइ।।54।।
–*–*–
सु नु ग रजा ोधानल जासू । जारइ भु वन चा रदस आसू ।।
सक सं ाम जी त को ताह । सेव हं सु र नर अग जग जाह ।।
यह कौतू हल जानइ सोई। जा पर कृ पा राम क होई।।
ै
सं या भइ फ र वौ बाहनी। लगे सँभारन नज नज अनी।।
यापक
म अिजत भु वने वर। ल छमन कहाँ बू झ क नाकर।।
तब ल ग लै आयउ हनु माना। अनु ज दे ख भु अ त दुख माना।।
जामवंत कह बैद सु षेना। लंकाँ रहइ को पठई लेना।।
ध र लघु प गयउ हनु मंता। आनेउ भवन समेत तु रंता।।
दो0-राम पदार बंद सर नायउ आइ सु षेन।
कहा नाम ग र औषधी जाहु पवनसु त लेन।।55।।
–*–*–
राम चरन सर सज उर राखी। चला भंजन सु त बल भाषी।।
उहाँ दूत एक मरमु जनावा। रावन कालने म गृह आवा।।
दसमु ख कहा मरमु ते हं सु ना। पु न पु न कालने म स धु ना।।
दे खत तु ह ह नग जे हं जारा। तासु पंथ को रोकन पारा।।
भिज रघु प त क
हत आपना। छाँड़हु नाथ मृषा ज पना।।
नील कज तनु सु ंदर यामा। दयँ राखु लोचना भरामा।।
ं
म त मोर मू ढ़ता यागू । महा मोह न स सू तत जागू ।।
काल याल कर भ छक जोई। सपनेहु ँ समर क जी तअ सोई।।
दो0-सु न दसकठ रसान अ त ते हं मन क ह बचार।
ं
26. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
राम दूत कर मर ब यह खल रत मल भार।।56।।
–*–*–
अस क ह चला र च स मग माया। सर मं दर बर बाग बनाया।।
मा तसु त दे खा सु भ आ म। मु न ह बू झ जल पय जाइ म।।
रा छस कपट बेष तहँ सोहा। मायाप त दूत ह चह मोहा।।
जाइ पवनसु त नायउ माथा। लाग सो कहै राम गु न गाथा।।
होत महा रन रावन राम हं। िजतह हं राम न संसय या म हं।।
इहाँ भएँ म दे खेउँ भाई। यान ि ट बल मो ह अ धकाई।।
मागा जल ते हं द ह कमंडल। कह क प न हं अघाउँ थोर जल।।
सर म जन क र आतु र आवहु । द छा दे उँ यान जे हं पावहु ।।
दो0-सर पैठत क प पद गहा मकर ं तब अक लान।
ु
मार सो ध र दव ्य तनु चल गगन च ढ़ जान।।57।।
–*–*–
क प तव दरस भइउँ न पापा। मटा तात मु नबर कर सापा।।
मु न न होइ यह न सचर घोरा। मानहु स य बचन क प मोरा।।
अस क ह गई अपछरा जबह ं। न सचर नकट गयउ क प तबह ं।।
कह क प मु न गु रद छना लेहू । पाछ हम ह मं तु ह दे हू ।।
सर लंगू र लपे ट पछारा। नज तनु गटे स मरती बारा।।
राम राम क ह छाड़े स ाना। सु न मन हर ष चलेउ हनु माना।।
दे खा सैल न औषध ची हा। सहसा क प उपा र ग र ल हा।।
ग ह ग र न स नभ धावत भयऊ। अवधपु र उपर क प गयऊ।।
दो0-दे खा भरत बसाल अ त न सचर मन अनु मा न।
बनु फर सायक मारे उ चाप वन ल ग ता न।।58।।
–*–*–
परे उ मु छ म ह लागत सायक। सु मरत राम राम रघु नायक।।
सु न
य बचन भरत तब धाए। क प समीप अ त आतु र आए।।
बकल बलो क क स उर लावा। जागत न हं बहु भाँ त जगावा।।
मु ख मल न मन भए दुखार । कहत बचन भ र लोचन बार ।।
जे हं ब ध राम बमुख मो ह क हा। ते हं पु न यह दा न दुख द हा।।
ज मोर मन बच अ काया। ी त राम पद कमल अमाया।।
27. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
तौ क प होउ बगत म सू ला। ज मो पर रघु प त अनु क ला।।
ू
सु नत बचन उ ठ बैठ कपीसा। क ह जय जय त कोसलाधीसा।।
सो0-ल ह क प ह उर लाइ पु ल कत तनु लोचन सजल।
ी त न दयँ समाइ सु म र राम रघु कल तलक।।59।।
ु
तात क सल कहु सु ख नधान क । स हत अनु ज अ मातु जानक ।।
ु
क प सब च रत समास बखाने। भए दुखी मन महु ँ प छताने।।
अहह दै व म कत जग जायउँ । भु क एकहु काज न आयउँ ।।
े
जा न कअवस मन ध र धीरा। पु न क प सन बोले बलबीरा।।
ु
तात गह होइ ह तो ह जाता। काजु नसाइ ह होत भाता।।
चढ़ु मम सायक सैल समेता। पठव तो ह जहँ कृ पा नकता।।
े
सु न क प मन उपजा अ भमाना। मोर भार च ल ह क म बाना।।
राम भाव बचा र बहोर । बं द चरन कह क प कर जोर ।।
दो0-तव ताप उर रा ख भु जेहउँ नाथ तु रंत।
अस क ह आयसु पाइ पद बं द चलेउ हनु मंत।।60(क)।।
भरत बाहु बल सील गु न भु पद ी त अपार।
मन महु ँ जात सराहत पु न पु न पवनक मार।।60(ख)।।
ु
–*–*–
उहाँ राम ल छमन हं नहार । बोले बचन मनु ज अनु सार ।।
अध रा त गइ क प न हं आयउ। राम उठाइ अनु ज उर लायउ।।
सकहु न दु खत दे ख मो ह काऊ। बंधु सदा तव मृदुल सु भाऊ।।
मम हत ला ग तजेहु पतु माता। सहे हु ब पन हम आतप बाता।।
सो अनु राग कहाँ अब भाई। उठहु न सु न मम बच बकलाई।।
ज जनतेउँ बन बंधु बछोहू । पता बचन मनतेउँ न हं ओहू ।।
सु त बत ना र भवन प रवारा। हो हं जा हं जग बार हं बारा।।
अस बचा र िजयँ जागहु ताता। मलइ न जगत सहोदर ाता।।
जथा पंख बनु खग अ त द ना। म न बनु फ न क रबर कर ह ना।।
अस मम िजवन बंधु बनु तोह । ज जड़ दै व िजआवै मोह ।।
जैहउँ अवध कवन मु हु लाई। ना र हे तु
य भाइ गँवाई।।
ब अपजस सहतेउँ जग माह ं। ना र हा न बसेष छ त नाह ं।।
28. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
अब अपलोक सोक सु त तोरा। स ह ह नठु र कठोर उर मोरा।।
ु
ु
नज जननी क एक कमारा। तात तासु तु ह ान अधारा।।
े
ु
स पे स मो ह तु ह ह ग ह पानी। सब ब ध सु खद परम हत जानी।।
उत काह दै हउँ ते ह जाई। उ ठ कन मो ह सखावहु भाई।।
बहु ब ध सचत सोच बमोचन।
वत स लल रािजव दल लोचन।।
उमा एक अखंड रघु राई। नर ग त भगत कृ पाल दे खाई।।
सो0- भु लाप सु न कान बकल भए बानर नकर।
आइ गयउ हनु मान िज म क ना महँ बीर रस।।61।।
हर ष राम भटे उ हनु माना। अ त कृ त य भु परम सु जाना।।
तु रत बैद तब क ह उपाई। उ ठ बैठे ल छमन हरषाई।।
दयँ लाइ भु भटे उ ाता। हरषे सकल भालु क प ाता।।
क प पु न बैद तहाँ पहु ँ चावा। जे ह ब ध तब हं ता ह लइ आवा।।
यह बृ तांत दसानन सु नेऊ। अ त बषअद पु न पु न सर धु नेऊ।।
याक ल कंु भकरन प हं आवा। ब बध जतन क र ता ह जगावा।।
ु
जागा न सचर दे खअ कसा। मानहु ँ कालु दे ह ध र बैसा।।
ै
कंु भकरन बू झा कहु भाई। काहे तव मु ख रहे सु खाई।।
कथा कह सब ते हं अ भमानी। जे ह कार सीता ह र आनी।।
तात क प ह सब न सचर मारे । महामहा जोधा संघारे ।।
दुमु ख सु र रपु मनु ज अहार । भट अ तकाय अकपन भार ।।
ं
अपर महोदर आ दक बीरा। परे समर म ह सब रनधीरा।।
दो0-सु न दसकधर बचन तब कंु भकरन बलखान।
ं
जगदं बा ह र आ न अब सठ चाहत क यान।।62।।
–*–*–
भल न क ह त न सचर नाहा। अब मो ह आइ जगाए ह काहा।।
अजहू ँ तात या ग अ भमाना। भजहु राम होइ ह क याना।।
ह दससीस मनु ज रघु नायक। जाक हनू मान से पायक।।
े
अहह बंधु त क ि ह खोटाई। थम हं मो ह न सु नाए ह आई।।
क हे हु भू बरोध ते ह दे वक। सव बरं च सु र जाक सेवक।।
े
नारद मु न मो ह यान जो कहा। कहतेउँ तो ह समय नरबहा।।
29. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
अब भ र अंक भटु मो ह भाई। लोचन सू फल करौ म जाई।।
याम गात सरसी ह लोचन। दे ख जाइ ताप य मोचन।।
दो0-राम प गु न सु मरत मगन भयउ छन एक।
रावन मागेउ को ट घट मद अ म हष अनेक।।63।।
–*–*–
म हष खाइ क र म दरा पाना। गजा ब ाघात समाना।।
कंु भकरन दुमद रन रं गा। चला दुग तिज सेन न संगा।।
दे ख बभीषनु आग आयउ। परे उ चरन नज नाम सु नायउ।।
अनु ज उठाइ दयँ ते ह लायो। रघु प त भक् त जा न मन भायो।।
तात लात रावन मो ह मारा। कहत परम हत मं
बचारा।।
ते हं गला न रघु प त प हं आयउँ । दे ख द न भु क मन भायउँ ।।
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सु नु सु त भयउ कालबस रावन। सो क मान अब परम सखावन।।
ध य ध य त ध य बभीषन। भयहु तात न सचर कल भू षन।।
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बंधु बंस त क ह उजागर। भजेहु राम सोभा सु ख सागर।।
दो0-बचन कम मन कपट तिज भजेहु राम रनधीर।
जाहु न नज पर सू झ मो ह भयउँ कालबस बीर। 64।।
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बंधु बचन सु न चला बभीषन। आयउ जहँ ैलोक बभू षन।।
नाथ भू धराकार सर रा। कंु भकरन आवत रनधीरा।।
एतना क प ह सु ना जब काना। कल कलाइ धाए बलवाना।।
लए उठाइ बटप अ भू धर। कटकटाइ डार हं ता ऊपर।।
को ट को ट ग र सखर हारा। कर हं भालु क प एक एक बारा।।
मु र ् यो न मन तनु टर् यो न टार् यो। िज म गज अक फल न को माय ।।
तब मा तसु त मु ठका ह यो। पर् यो धर न याकल सर धु यो।।
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पु न उ ठ ते हं मारे उ हनु मता। घु मत भू तल परे उ तु रंता।।
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पु न नल नील ह अव न पछारे स। जहँ तहँ पट क पट क भट डारे स।।
चल बल मु ख सेन पराई। अ त भय
सत न कोउ समु हाई।।
दो0-अंगदा द क प मु छत क र समेत सु ीव।
काँख दा ब क पराज कहु ँ चला अ मत बल सींव।।65।।
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30. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
उमा करत रघु प त नरल ला। खेलत ग ड़ िज म अ हगन मीला।।
भृक ट भंग जो काल ह खाई। ता ह क सोहइ ऐ स लराई।।
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जग पाव न क र त ब त रह हं। गाइ गाइ भव न ध नर त रह हं।।
मु छा गइ मा तसु त जागा। सु ीव ह तब खोजन लागा।।
सु ीवहु क मु छा बीती। नबु क गयउ ते ह मृतक तीती।।
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काटे स दसन ना सका काना। गरिज अकास चलउ ते हं जाना।।
गहे उ चरन ग ह भू म पछारा। अ त लाघवँ उ ठ पु न ते ह मारा।।
पु न आयसु भु प हं बलवाना। जय त जय त जय कृ पा नधाना।।
नाक कान काटे िजयँ जानी। फरा
ोध क र भइ मन लानी।।
सहज भीम पु न बनु ु त नासा। दे खत क प दल उपजी ासा।।
दो0-जय जय जय रघु बंस म न धाए क प दै हू ह।
एक ह बार तासु पर छाड़ेि ह ग र त जू ह।।66।।
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कंु भकरन रन रं ग ब ा। स मु ख चला काल जनु ु ा।।
को ट को ट क प ध र ध र खाई। जनु ट ड़ी ग र गु हाँ समाई।।
को ट ह ग ह सर र सन मदा। को ट ह मीिज मलव म ह गदा।।
मु ख नासा वनि ह क ं बाटा। नस र परा हं भालु क प ठाटा।।
रन मद म त नसाचर दपा। ब व
स ह जनु ए ह ब ध अपा।।
मु रे सु भट सब फर हं न फरे । सू झ न नयन सु न हं न हं टे रे।।
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कंु भकरन क प फौज बडार । सु न धाई रजनीचर धार ।।
दे ख राम बकल कटकाई। रपु अनीक नाना ब ध आई।।
दो0-सु नु सु ीव बभीषन अनु ज सँभारे हु सैन।
म दे खउँ खल बल दल ह बोले रािजवनैन।।67।।
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कर सारं ग सािज क ट भाथा। अ र दल दलन चले रघु नाथा।।
थम क ह भु धनु ष टँ कोरा। रपु दल ब धर भयउ सु न सोरा।।
स यसंध छाँड़े सर ल छा। कालसप जनु चले सप छा।।
जहँ तहँ चले बपु ल नाराचा। लगे कटन भट बकट पसाचा।।
कट हं चरन उर सर भु जदं डा। बहु तक बीर हो हं सत खंडा।।
घु म घु म घायल म ह परह ं। उ ठ संभा र सु भट पु न लरह ं।।