3. अ टबर-िदस बर 2021
foHkkse&Loj
1
संर क एवं
मुख संपादक
सुधा ओम ढ गरा
संपादक
पंकज सुबीर
क़ानूनी सलाहकार
शहरयार अमजद ख़ान (एडवोकट)
तकनीक सहयोग
पा ल िसंह, सनी गो वामी
िडज़ायिनंग
सुनील सूयवंशी, िशवम गो वामी
संपादक य एवं यव थापक य कायालय
पी. सी. लैब, शॉप नं. 2-7
स ाट कॉ लै स बेसमट
बस टड क सामने, सीहोर, म. . 466001
दूरभाष : +91-7562405545
मोबाइल : +91-9806162184
ईमेल : vibhomswar@gmail.com
ऑनलाइन 'िवभोम- वर'
http://www.vibhom.com/vibhomswar.html
फसबुक पर 'िवभोम वर’
https://www.facebook.com/vibhomswar
एक ित : 50 पये (िवदेश हतु 5 डॉलर $5)
सद यता शु क
3000 पये (पाँच वष), 6000 पये (दस वष)
11000 पये (आजीवन सद यता)
बक खाते का िववरण-
Name: Vibhom Swar
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Branch: Sehore (M.P.)
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IFSC Code: BARB0SEHORE
संपादन, काशन एवं संचालन पूणतः अवैतिनक, अ यवसाियक।
पि का म कािशत साम ी लेखक क िनजी िवचार ह। संपादक
तथा काशक का उनसे सहमत होना आव यक नह ह। पि का म
कािशत रचना म य िवचार का पूण उ रदािय व लेखक पर
होगा। पि का जनवरी, अ ैल, जुलाई तथा अ टबर माह म कािशत
होगी। सम त िववाद का याय े सीहोर (म य देश) रहगा।
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101 Guymon Court, Morrisville
NC-27560, USA
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वै क िह दी िचंतन क अंतरा ीय पि का
वष : 6, अंक : 23, ैमािसक : अ टबर-िदस बर 2021
RNI NUMBER : MPHIN/2016/70609
ISSN NUMBER : 2455-9814
आवरण िच
पंकज सुबीर
रखािच
जयंत देशमुख
4. अ टबर-िदस बर 2021
foHkkse&Loj
2
संपादक य 3
िम नामा 5
िव मृित क ार
'परड, कानपुर'
उषा ि य वदा 12
कथा कहानी
म लौट रही
उिमला िशरीष 18
तुम उसे तलाशने मत आना...
सैली बलजीत 21
कजरी का ेम
मुरारी गु ा 24
म ट
सरस दरबारी 26
प े और डािलयाँ
अनीता शमा 30
नाई टी नाईन रोज़ेस
यो सना िसंह 34
िप ू
सुनीता पाठक 37
नई क़लम
वाइड इफ ट
दशना जैन 40
भाषांतर
िश पी
बां ला कहानी
मूल लेखक : स यजीत राय
अनुवाद : सुिच मता दास 42
नववष का बिलदान
चीनी कहानी
लेखक: लू शुन
अनुवाद: िववेक मिण ि पाठी 46
िबना धूप क साये
पंजाबी कहानी
लेखक : तृ ा क. िसंह
अनुवाद : डॉ. जसिव दर कौर िब ा 50
अं ेज़ी किव जॉन ह क किवता का
अनुवाद
अनुवाद- उषा देव 69
यं य
बा बली
सूयकांत नागर 55
कटाई- ठकाई- िपटाई
मदन गु ा सपाट 57
बोध कथा - स ाट, गु और पुतले
कमलेश पा डय 59
सं मरण
डॉ. कवर बेचैन- वो बेचैन मन
डॉ. अ ण ितवारी "गोपाल" 60
लघुकथा
मल भेद
सुभाष चं लखेड़ा 49
आब
मनमोहन चौर 56
दोह
िशवकमार अचन 58
किवताएँ
जेश कानूनगो 65
जावेद आलम ख़ान 66
राजीव कमार ितवारी 67
मनीष कमार यादव 68
ग़ज़ल
िववेक चतुवदी 64
िव ान त 70
गीत
सूय काश िम 71
आिख़री प ा 72
िवभोम- वर सद यता प
यिद आप िवभोम- वर क सद यता लेना चाहते ह, तो सद यता शु क इस कार ह : 3000 पये (पाँच वष), 6000 पये (दस वष)
11000 पये (आजीवन सद यता)। सद यता शु क आप चैक / ा ट ारा िवभोम वर (VIBHOM SWAR) क नाम से भेज
सकते ह। आप सद यता शु क को िवभोम- वर क बक खाते म भी जमा कर सकते ह, बक खाते का िववरण-
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Bank Of Baroda, Branch : Sehore (M.P.), IFSC Code : BARB0SEHORE (Fifth Character is “Zero”)
(िवशेष प से यान द िक आई. एफ. एस. सी. कोड म पाँचवा कर टर अं ेज़ी का अ र 'ओ' नह ह ब क अंक 'ज़ीरो' ह।)
सद यता शु क क साथ नीचे िदये गए िववरण अनुसार जानकारी ईमेल अथवा डाक से हम भेज िजससे आपको पि का भेजी जा सकः
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(यिद सद यता शु क बक खाते म नकद जमा िकया ह तो बक क जमा रसीद डाक से अथवा कन करक ईमेल ारा ेिषत कर।)
संपादक य एवं यव थापक य कायालय : पी. सी. लैब, शॉप नंबर. 3-4-5-6, स ाट कॉ लै स बेसमट, बस टड क
सामने, सीहोर, म. . 466001, दूरभाष : 07562405545, मोबाइल : 09806162184, ईमेल : vibhomswar@gmail.com
इस अंक म
वै क िह दी िचंतन क
अंतरा ीय पि का
वष : 6, अंक : 23,
ैमािसक : अ टबर-िदस बर 2021
5. अ टबर-िदस बर 2021
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3
सुधा ओम ढ गरा
101, गाईमन कोट, मो र वल
नॉथ करोलाइना-27560, यू.एस. ए.
मोबाइल- +1-919-801-0672
ईमेल- sudhadrishti@gmail.com
संपादक य
भारत से मुझे कई िश क क ईमेल एक ऐसी सम या को इिगत करते आए, िजससे म
अनिभ थी। 1982 म शादी क बाद म िवदेश आ गई और उसक बाद देश क हर े म ब त
तेज़ी से प रवतन ए। तबदीली को हर वष देखा पर उसक गहराई को समझ नह पाई।
अिभभावक क सोच, सामािजक मापद ड, िश ा क तरीक़, सरकारी और गैर सरकारी कल
क काय णाली तो पूरी तरह बदल चुक ह। अ यापक क ईमेल से कई बात ऐसी पता चली
ह, जो मेरी क पना से भी पर ह। ग़ैर सरकारी कल म िह दी िश क का वेतन अ य िश क से
कम होता ह। कल क असबली म भी िह दी वाल को थान नह िदया जाता। अगर अ यापक
ब को िह दी का होमवक दे तो अिभभावक ही िह दी का होमवक नह चाहते। वे िह दी क
होम वक का िवरोध करते ह। िश क को ि ंिसपल होमवक देने से मना कर देते ह। अब िश क
िह दी िसखाए तो कसे िसखाए! कल म अगर कोई ब ा िह दी का एक श द भी बोल लेता ह
तो उसे येक श द 5 पये का फाइन हो जाता ह और कई बार माँ-बाप को 50 पये तक
फाइन देना पड़ता ह। िह दी िसफ़ िह दी क ास म बोली जा सकती ह।
यह सब पढ़कर कछ ण क िलए म त ध रह गई। िजस देश म अिधकतर लोग िह दी
बोलते ह। कई देश िह दी भाषी ह; वहाँ िह दी क यह दशा! िकसी िह दी ेमी ने इस तरफ यान
नह िदया। िह दी क सं थाएँ जो िवदेश म आकर िह दी का चार- सार करती ह, अपने ही
देश म उनका इस ओर यान नह गया। मने जब िश क से िनवेदन िकया, वे अपनी सम या
को िकसी थानीय संपादक या प कार से कह, तो उ ह ने बड़ी उदास करने वाली ईमेल भेजी-
''सकड़ संपादक और प कार से संवाद साधा, पर िकसी ने मदद नह क , य िक उनक
ब े, पोते-पोितयाँ, नाते-नाितयाँ सभी इ ह कल म पढ़ते ह। कोई इस िस टम से उलझना नह
ज़ रत ह, अपने देश
म िह दी को समृ
करने और युवा पीढ़ी
म इसे लोकि य
करने क
6. अ टबर-िदस बर 2021
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4
संपादक य
जीवन म आने वाली हर प र थित को
उसी कार लेना चािहए, िजस कार
कमल का प ा पानी को लेता ह। अपने
ऊपर उसे धारण भी करता ह और उससे
अपने आप को भािवत भी नह होने देता
ह। अिधक भार होने पर उसे नीचे िगरा भी
देता ह। धारण करने क यह कला ही
जीवन जीना िसखाती ह।
चाहता।''
िजस समाज म अं ेज़ी बोलना एक ट स िस बल ह, वहाँ ऐसी ईमे स से िनराश नह होना
चािहए, पर म ई। अं ेज़ी क वच व का कारण भी म समझती , रोटी-रोज़ी और साइस क
भाषा िह दी नह बन पाई और युवा पीढ़ी का अं ेज़ी क ित आकषण वाभािवक ह। िजन
कल म अं ेज़ी का बोलबाला ह, च िवदेशी भाषा क प म पढ़ाई जाती ह, वहाँ िह दी का
एक श द बोलने पर फाइन करना िकस मानिसकता को दशाता ह।
भाषाएँ अगर समाज को किठत करने लग तो भिव य म यह कभी भी लाभकारी नह होत ।
भारत ही एक ऐसा देश ह, िजसक अपनी कोई भाषा नह ह।
सबसे यादा ता ुब मुझे होता ह, जब वचुअल सेमीनार, वेिबनार, िवमश, बातचीत म
िह दी क वै क थित, िह दी भाषा का चार- सार और चुनौितयाँ, िवदेश म िह दी, िवदेश
म िह दी पढ़ाने क चुनौितयाँ। लंबी चौड़ी बात क जाती ह, पर देश क भीतर िश ा म, यवहार
म, समाज म िह दी िपछड़ रही ह, उस तरफ िकसी का यान नह जाता। िवदेश म िह दी क
िलए यूँ काम करना चािहए, फलाँ तरीका अपनाना चािहए, अर भाई, िजस देश क भाषा ह, वहाँ
तो उसे थान िदलवाएँ, िवदेश म तो वासी संघष कर रह ह, ब त सी सं थाएँ िह दी क चार-
सार म लगी ह। िवदेश म िह दी िवदेशी भाषा क प म िव िव ालय म पढ़ाई जाती ह। लोग
गव से पढ़ते ह। अमे रका क हर टट क बड़-बड़ शहर म शिनवार-रिववार को छोट ब से
लेकर हाई- कल क ब को िह दी भारतीय समुदाय क क म पढ़ाई जाती ह।
िम ो, ज़ रत ह, अपने देश म िह दी को समृ करने और युवा पीढ़ी म इसे लोकि य करने
क । िवदेश म तो ब त से िह दी- ेमी काय कर रह ह।
जब यह पि का आपक हाथ म आएगी, दीपावली करीब होगी। उ सव क उ साह म इतने
पटाखे मत चलाएँ िक वातावरण दूिषत हो जाए।
दशहरा, दीपावली क िवभोम- वर और िशवना सािह यक क टीम क ओर से अंनत
शुभकामनाएँ एवं बधाइयाँ!! आपक ,
सुधा ओम ढ गरा
7. अ टबर-िदस बर 2021
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बिढ़या अंक क िलये बधाई
'िवभोम- वर' का जुलाई-िसतंबर 2021
अंक ा आ। सुधा जी आपक बात से
सहमत िक अब जीवन शैली पर तकनीक
का बोलबाला रहने वाला ह। यह भी सच ह
िक जहाँ तकनीक जीने का नया तरीका देगी
वह य क पा रवा रक, सामािजक,
सां कितक सरोकार बदलते ए और अिधक
िसमटते चले जाएँगे। अंक अपने आप म ब त
कछ समेट ए ह। ऊषा ि यंवदा जी 'िव मृित
क ार' खोल कर पाठक का हाथ पकड़कर
झर ख से झाँकते ए अपनी य़ाद क
गिलयार म िलये चलती ह। ा पांडय क
"जूठा सेब", िवकश िनझावन क "उसक
मौत", कादंबरी मेहरा क "कौन सुने",
कामे र क "सेहर का सगुन", अ ण अणव
क "देवता", छाया ीवा तव क "स ाटा"
सभी कहािनयाँ अ छी ह। सबसे अिधक
िनकट और िव ासी र त ारा घर क
चारदीवारी म होता से सुअल ए यूज़ कट
स ाई ह। अ णा स बरवाल क कहानी
"अँधेर क बीच" म रोज़ी क माँ ने बेटी पर
बाप क ारा िकये इस घृिणत अपराध को दबा
जाने क बजाए उसक िखलाफ आवाज़
उठाने का िनणय लेकर नई रोशनी िदखाई ह।
सेवक नैयर क कहानी " वािभमान" का
िशवचरण जीवन क इतने किठन दौर से
वािभमान क साथ रा ते क उतार-चढ़ाव को
पार करता आ दोबारा दोहर संघष क जगह
आ मह या का रा ता चुनता िज़ंदगी से भागता
कमज़ोर लगा। "िमशन-एन.पी.ए."- डॉ.
रमेश यादव क कहानी बक क कामकाज,
पीछ क राजनीित, ाचार, मीिडया क
जोड़ तोड़ और खुदगज़ स य समाज क
अस य त वीर पेश करती अ छी कहानी ह।
थोक क भाव म रिज टड लोकािप ट ारा
िकये जाने वाले पु तक िवमोचन और
लोकापण क बिखया उधेड़ता ीकांत आ ट
का यं य "लोकापण" ब त अ छा लगा।
ज़ेबा अ वी का सं मरण "हम भी कमीने-तुम
भी कमीने" ब त कछ कह गया। जो टकड़ म
बँट देश म नफ़रत क शोल क बीच िज़ंदगी
गुज़ारते लोग क मािमक दा तान ह। वाकई
तकलीफ तो यही ह िक िबखरी िज़ंदगी क
उलझे धाग को सुलझाते दोन तरफ क लोग
को वहाँ क लोग ने िदल से वीकारा ही नह
और िज़ंदगी को सुकन िमला नह । सच ही ह
नफ़रत क जड़ इतनी गहरी होती ह तब, जब
उनक िसंचाई दो-तरफा हो और आिख़री
प ा- ब त सही पंकज जी इतनी ज दी या
ह धीर-धीर र मना, धीर सब कछ होए। बिढ़या
अंक क िलये बधाई!!
-मंजु ी, स.
ं कथािबंब, ए-10 बसेरा,
िदन ारी रोड, देवनार, मुंबई-400088
मोबाइल:9819162949
ईमेल:kathabimb@gmail.com
000
मािमक िच ण क साथ कहानी
'िवभोम- वर' क जुलाई-िसतंबर 2021
अंक म अिदित िसंह भदौ रया क कहानी
'आिख़री ख़त' शु आत म कहानी पढ़ते ए
लगा िक यह भी आम कहािनय क तरह
होगी। मन ने अनुमान लगाने का काय शु
कर िदया था िक इसका अंत तो यही होगा,
लेिकन सब कछ धरा का धरा रह गया।
मािमक िच ण क साथ आगे बढ़ती ई
कहानी, न िसफ़ अ त तक बाँधे रहती ह,
ब क एक नई सीख भी देती ह। बदलते समय
क अनुसार लोग कछ हट कर पढ़ना चाहते ह।
शी क बात यह ह िक यह कहानी आपको
िनराश नह करती, अिपतु यह सोचने पर
बा य करती ह िक जो माँ, बेटी नह चाहती थी
वह एक बेटी क िलए िकस तरह से अपनी
खुिशय को कबान कर देती ह।
अ त पढ़कर अंतमन म एक भोजपुरी गाने
का बोल खुद-ब-खुद गुनगुनाने लगा िक,
'दुिनया म सबसे ऊचा माई वाला दज़ा...'
-यश यादव, मुंबई, महारा
000
शानदार खज़ाना
'िवभोम वर' और 'िशवना सािह यक '
मेरी उन ि य पि का म शुमार ह िजनक
नए अंक क बेस ी से ती ा रहती ह। एक
साथ कई नई कहािनय से -ब- करवाती
'िवभोम- वर' ह तो दूसरी तरफ, कािशत ई
िकताब क बार म 'िशवना सािह यक ' िजस
तरह प रचय करवाती ह, उससे उस िकताब
को छने-पढ़ने क इ छा बल हो उठती ह।
कई िकताब ऐसी होती ह िज ह म भी पढ़ चुका
होता , पर जब 'िशवना सािह यक ' म उस
पर िकसी क िलखी समी ा देखता तो मन
यह जानने को उतावला हो उठता ह, िक उस
िकताब क बार म दूसरा या सोचता ह? जो
भाव उस िकताब ने मेर मन पर छोड़ा, या
वैसा ही भाव वह दूसर पर छोड़ पाई ह?
साथ ही यह भी जानने क उ सुकता होती ह
िक ऐसा या िवशेष ह जो पढ़ते व मुझसे
छट गया या म वहाँ तक प चने म असमथ
रहा। िकताब पढ़ना ही ब त नह होता, दूसर
उ ह पढ़कर या राय रखते ह, यह जानना भी
ज़ री होता ह, ऐसा मेरा मानना ह।
सुधा ओम ढ गरा जी और पंकज सुबीर
जी का आभार जो मुझे ऐसा शानदार खज़ाना
उपल ध कराते ह।
-सुभाष नीरव, नई िद ी
000
अ ैल-जून अंक म कािशत चौधरी
मदन मोहन समर क कहानी “पानी क
परत” पर खंडवा म चचा
संयोजन- गोिवंद शमा
सम वयक- शैले शरण
चौधरी मदन मोहन समर क
कहानी"पानी क परत" प र य ब क
वा तिवक जीवन क य सम या से
जुड़ी स ी कहानी तीत होती ह।
आस क आगोश म ेम न जाने कहाँ
छ मंतर हो जाता ह, और वासना क दलदल से
जब तक युगल िनकल पाता ह तब तक मासूम
ब ी प र य हो जाती ह। उसका या दोष।
भा य से नानू ह अ यथा तो वह, उ फ,
कहाँ होती? कहानी का िश प अदभुत ह, अंत
तक उ कठा बनी रहती ह, पाठक पूण यान
से िवषय व तु म डबा रहता ह। संप समाज
क उ छखल जीवन शैली और िववाह जैसी
िम नामा
8. अ टबर-िदस बर 2021
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6
सामािजक सं था पर तीखी नज़र का
प रचायक ह लेखक का लेखन। सामािजक
सराकार क उ क रचना। यायपािलका म
ांत थािपत कर सकने यो य िवषय व तु।
-मुनीश िम
000
म ू भंडारी क उप यास 'आपका बंटी' से
लेकर आज तक कई बार तलाक नामक दै य
का समाज पर अ याचार, दंपि क नासमझी
व अधैय और बालमन क यथा को समेटा
आ सािह य िविवध प म सामने आता रहा
ह। परतु समर जी क कहानी 'पानी क परत'
ने इस सम या क एक और परत को
'स यता' क ारा अपने नाना-नानी क यथा
समझते ए अपने अिधकार हतु आवाज़
उठाने क प म खोला ह।
म मी पापा क पास समय न होना लेिकन
ता या क िपता ारा तुरत 'स यता' को बुला
लेना 'स यता' क मन क साथ पाठक क मन
पर भी चोट करता ह। और अंत म यायाधीश
ारा चाजशीट पर आँसु क साथ ह ता र
करना पढ़ने वाल क भी आँख िभगो देता ह।
सचमुच यिद ी-पु ष मातृ व-िपतृ व सुख
का आनंद नह लेना चाहते ह तो उ ह संतान
पैदा करने का और उसक साथ नाइसाफ
करने का कोई अिधकार नह ह और यिद वे
ऐसा करते ह तो ब े ारा आवाज़ उठाना
कदािप ग़लत नह ह। आिख़र वह इसक
सज़ा य भुगते? कथानक इसी संदेश को
इिगत करने म पूरी तरह सफल रहा ह।
-सरोज जैन
000
यह कहानी गहन िचंतन को िववश
करनेवाली ह। एक ब त ही ज़ री िवषय क
कहानी। टटस, फ़शन और आस क िलए
तलाक़ लेनेवाल क कहानी। यहाँ
जीवनसाथी नह चुने जाते ब क पाटनरिशप
क जाती ह। 'तलाक़' िवदेिशय का िदया और
मूख और धूत ारा अपना िलया गया श द।
दुभा य क बात ह िक हमार देश म भी तलाक़
क आवेदन, यायालय म ितिदन आते रहते
ह। आज़ादी क पचह र वष क बाद हम
वतं ता से क आगे िनकलकर वाय हो
गए ह।
बहरहाल कहानी पर बात करते ह। यह
कहानी ऐसी ही पृ भूिम पर बनी ह िजसम
पहले ेमिववाह (यहाँ मुझे ेमिववाह कहना
भी ठीक नह लगता य िक यहाँ न तो ेम ह न
ही िववाह। िसफ़ शारी रक आकषण और एक
संिवदा ह िजसका टटना तो तय ह) होता ह
एक ब ी स यता ज म लेती ह और िफर
तलाक़। कमाल क बात तो ये ह िक स यता
नामक बेटी ने तो ज म िलया लेिकन स यता ने
नह । यहाँ न चाहते ए भी स यता को अपने
माता-िपता क िव यायालय क शरण म
जाना पड़ता ह। यह स यता क मजबूरी ह।
ऐसा नह िक यायालय से समन देने क पूव
उसने अपने माता-िपता से संवाद करने का,
उ ह एक अवसर देने का यास न िकया हो।
कहानी यह समा हो जाती ह। मुझे
लगता ह, कस जीतने क बाद भी स यता क
कपोल पर 'पानी क परत' तो बनी ही रहगी,
य िक उसे अपने माता-िपता क ेह क
चाह ह, लाख पये महीने क नह । इस 'पानी
क परत' क साथ ही उसे जीना ह। कहानी
एक ग भीर न करती ह िक ऐसी स यता
का अपराध या ह?? और उनका भिव य
कसा होगा??
एक अ छी कहानी क िलए साधुवाद।
-वैभव कोठारी
000
िवभोम- वर म कािशत चौधरी मदन
मोहन समर क कहानी "पानी क परत"
आधुिनक िवलािसता पूण जीवन शैली क
माता-िपता से आहत नाबािलग बािलका
"स यता" क मुसीबत क कहानी ह।
माता-िपता अपने शौक, यादा से यादा
कमाने क भागदौड़ और देह सुख क
व छदता क कारण तलाक लेकर छोटी
बािलका स यता को उसक हाल पर छोड़ देते
ह। माता-िपता क सुख से वंिचत स यता को
वृ नाना क घर शरण िमलती ह। िकतु वृ
नाना क अ व थता क चलते आिथक संकट
उ प हो जाता ह। और िफर शु होता ह
बािलका क दय म प र थितय से िव ोह
कर ांितकारी कदम उठाने का आंदोलन।
माता िपता क िव बािलका अपने भरण-
पोषण क िलए यायालय म कस दायर कर
देती ह।
बस यह कहानी का कथानक ह। इस
कहानी क मा यम से िवचारणीय यह ह िक
तलाक शुदा माता-िपता क संतान क पोषण,
सुर ा तथा माता-िपता क नैसिगक ेम क
अभाव क िचंता िफर कौन करगा। इस
अ याधुिनक और पा ा य सं कित जीवी
समाज िकस िदशा म जा रहा ह। प रवार
िबखर रहा ह और इसका क भाव सबसे
अिधक ब क भिव य पर हो रहा ह। यिद
हम अपने आस-पास देखगे तो ऐसे उदाहरण
िमल ही जाएँगे। कहानी ने समाज म या
इस लंत न को बड़ी ताकत से उठाया ह
और पाठक को इसका उ र खोजने क िलए
े रत िकया ह। य िक इसका उ र तो
आिख़र समाज को ही खोजना ह।
यायपािलका से येक करण म याय पाना
इस न का थाई हल नह ह।
कहानी क भाषा म लािल य ह सामािजक
सरोकार क यह कहानी उ क और समाज
को जागृत करने म सफल ई ह।
-रघुवीर शमा
000
कहानी वह होती ह जो पाठक को िचंता म
डाल दे। िचंतन उसक अचेतन मन तक घर
कर जाए और इतने न खड़ कर दे िक उ र
खोजने क िदशा म पाठक खुद ही खो जाए।
िन त ही कहानी िकसी स य को बयाँ करती
ह। कटब यायलय से शु हो कर अतीत म
झाँकती हर एक परत जो संबंध क भी ह और
पीड़ा क भी जो अ ु पानी हो जाते रह बार-
बार लेिकन स म रोक जाते रह। मासूम
स यता का दोष या था? लेिकन दोष था भी।
ज म क साथ ही ार ध का तय हो जाना सभी
क िनयित ह।
दैदी य और कित क भोग िवलािसता,
सोशल मीिडया का असर और उ का
भटकाव सामािजक बंधन तक को लील गया।
हाई ोफ़ाइल जीवन शैली या हर तरह क
अपराध करने क इजाज़त देते ह ? या अपराध
िसफ सामा य ोफ़ाइल वाल क ही होते ह।
9. अ टबर-िदस बर 2021
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7
मािमक य, बूढ़ हो चले नाना नानी क
िज़ मेदारी क ताक़त क टटन ह जो मन क
भी ह, भरोसे क भी और ीण होते शरीर क
भी ह।
कित और दैदी य इतने अिधक वाथ
कसे हो गए? या सच म माता-िपता क यह
प रभाषा भी हो सकती ह ? अचंिभत करता ह।
हर एक घटना म पाठक को बाँधे रखता
ह। अपने ही मन को टटोलता आ िक सोशल
मीिडया हम भी पंगु ही बना रहा ह। वचुअल
रलेशनिशप यादा हावी होते जा रह ह जो इस
कहानी क पा म प रलि त होता ह। स यता
तो बेटी ह जो कटा ह समाज पर। िबंदास
यवहार िकसे आकिषत करता ह जो वयं ही
संबंध म कमज़ोर हो, बस यही आ
आकषण को ही वा तिवकता मान कर छल
करना और छले जाना जो अंततः ठहरता तो ह
लेिकन तब जब कोई और ऑ शन नह रह
जाता। पानी क परत म भीगी ई यह रचना
मेरी भी आँख कई बार नम कर गई। कलेजा
मुँह को आ गया िक अंत म िव ोह ही ज म
लेता ह। स यता का अिधकार क िलए याय
क शरण म जाना ही शमसार कर देना जैसा ही
ह। मनोिव ान यह कहता ह िक मन क
संतु और संबंध पयाय ह।
बेहद कशलता से बुनी गई कहानी म
दैदी य और कित का खालीपन भी महसूस
होता ह चाह वे वीकार न कर लेिकन नाना
नानी क परव रश भी एक न ही ह। बेटी क
बेटी को सँभालना भी सज़ा पी प र थित ह।
लंबी होने क बावजूद झकझोरने वाली
कहानी। रोचक नही क गी य िक इस तरह
क कहानी का अपना एक वाद होता ह जो
कसैला भी ह और खारा भी। पानी क परत
बार-बार मन को खारा करती रही। अंत म
'पानी क परत' भी फट बाँध क सैलाब क
तरह बह िनकली। िनःश दता ही अंत ह।
-डॉ.र म दुधे
000
शे सिपयर क उ "नाम म या धरा
ह" को सवथा नकारते समर जी क लंबी
कहानी का शीषक, सोचने क अनेक सू ,
वड़ील क अनुभव सार, वै ािनक या यूँ कह
कित क कालच क समु मंथन से िनकले
अमृत एवं िवष दोन को पाठक क सामने
तुत कर देता ह, िजसम हलाहल क
िमक़दार यादा ह।
दैिद य आनंद, कित और स यता क ये
कहानी प रवार नही, उस समाज क कहानी
ह, िजसम, बेलगाम आधुिनकता क रग से
दैदी यमान दैिद य एवं तथाकिथत नारी
वातं य क आड़ म अनुिचत लाभ क
'रचना', कित क बेमेल योग से मािमक सच
'स यता' क िनयित पाठक को पल-पल
िभगोती, आ ोिशत करती, स यता क
समथन म मु याँ उठाने मजबूर कर देती ह।
िबना लगाव, समपण क बेमेल िववाह का
अंत अलगाव से तो होता ही ह, पर अिधक
ासद उनका पुनिववाह कर संतित यु हो
जाना लगता ह। ेिहल पर अश नानी-
नाना क शारी रक से अिधक आिथक
िन पायता, स यता क मन क ठहर पानी को
इतना उ ेिलत करती ह िक, वह सार तटबंध
को तोड़ िव वंसक हो, अपने ज मदाता क
िखलाफ यायालय म जा खड़ी होती ह।
समर जी क सश कलम, समाज म
सव या वृि पर ब त खूब चली, और
िचंतन क अनेकानेक सू म से एक मयादा
क अ य सीमारखा क आव यकता को
आलोिकत कर गई। आधुिनकता िकसी भी
प रवार, समाज, देश को वीकाय होती ह, पर
तटबंध क साथ। हर कह ये तटबंध
आव यक इसिलए होते ह, तािक वे बेलगाम
कोसी और ांगहो नदी का प ले, िबहार
और चीन क भाँित समाज का दुख, ितमान
न बन जाए।
नाम व अथ से सवथा ितकल कथा
नायक न दैिद य ह, न ही आनंद का तीक
और कित न जाने िकस सं कार क रचना ह।
अमीरी, तथाकिथत आधुिनकता क रग म रगे
दो अित वतं युगल का ऊपरी आकषण से
िमलना, जुड़ना िफर अलग हो जाना उस
'स यता' को ज म देता ह जो ऐसी मानिसकता
वाले माता-िपता क संतान होने क कारण
अनाथ सी होकर नाना-नानी क आि त ह।
वैसे भी स यता सं कार को सँभालने का
िज़ मा िपछली, जीण, असहाय, अश पीढ़ी
पर थोप देने का रवाज सिदय से ह।
नई आधारहीन, प र य स यता इतनी
दिमत, िमत होती ह िक उसक दय म पल
रह िव ोह, असंतोष, दमन और िजजीिवषा
ालामुखी क तरह फट जाते ह। यह
िव फोट नाियका स यता, उसक नाना नानी
को राहत, आिथक स बल िदलाता ह और
देवदूत स य उसक सहली क िपता को
िवजय।
यथा- अपे ा क पहाड़ से िनकले
झरने, अिधकारपूवक समु क िवशालता को
त काल पा लेना चाहते ह। या वह नदी जो
िनरतर बहती ह, दुिनया क अविश अपने म
समेटती, शनैः शनैः मीठी होती नदी जानती ह
समु को पाया नह जाता, समु आ जाता
ह। िकतनी गहन गंभीर बात िकतनी सहजता से
समरजी कह गए।
अपना मीठापन, अपने अ त व को खार
पन म समा कर देना ही शायद याग क
उ तम सीमा ह। और यही याग इतनी
सिदय से पु ष, नारी और ब को प रवार
और समाज म प रवितत करता आया ह।
और इसका िवखंडन पानी क वो ठहरी
परत करती ह जो पानी म बने तो जलकभी
और आँख म क तो नफ़रत पैदा कर देती ह।
उ क रचना हतु अिभनंदन।
-राज ी शमा
000
कहानी का क स यता ह। यह स यता
वह स यता ह जो इस आधुिनक दौर म अपने
अ त व क िलये य नशील ह। एक षोडषी
जो अपने माता-िपता क वा तिवक ेह से
वंिचत ह। उसे माँ क ममता का भान नह ह।
वह नाना-नानी क सा य म पली बढ़ी
जबिक माता- िपता अपने अपने दैिहक
आकषण म म त ह। मानिसक सुख शायद
उनक पास नह । न ही वह स यता को िमला।
मदन मोहन िसंह समर क यह कहानी हम
आधुिनक हाई ोफाइल जीवन शैली क
दु भाव से प रिचत कराती ह। जहाँ अपनी
ही संतान क ित संवेदनहीनता हद दज तक
हरान करती ह। कहानी अपने भाषा िश प
10. अ टबर-िदस बर 2021
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और कथानक क अनूठ से बाँधे रखती ह।
उनका िनरी क वभाव, प र थितय का
िव ेषण मनोवै ािनक तर पर करते चलते
ह। एक बेहतरीन कहानी।
-सुधीर देशपांड
000
कहानी " पानी क परत" वैचा रक
पृ भूिम क बेहतरीन कहानी ह, गहर िचंतन
को य करनेवाली सोच को अपने म समेट
ब त-ब त अ छी पानी क परत आधुिनकता
क होड़ म अंधे होते व िबखरते प रवार क
अिभ य ह एक सव यापी िचत
ं ा ह
भौितकवादी व अपने शौक क पूित क कारण
र त क िबखराव क प र थितय को ब त
ही सू मता से परोसती सोच जहाँ तलाक क
आग से प रवार जल जाता ह और उसक
आँच से झुलसती ह न ह बािलका िजसे
आपसी कठा क बिल चढ़ना पड़ता ह।
और ऐसे िवकट समय म बूढ़ नाना का सहारा
नह िमलता तो बािलका क भिव य एक गहरी
िचंता को आवाज़ देता ह। नाना क अ व थ
जीवन व आिथक संकट क प र थित का जो
िच समर जी ने ख चा ह वह समाज को
सोचने म मजबूर करता ह।
पित-प नी क आपसी कलह क कारण
भिव य क अंधकार को तुत िकया ह।
आजकल पा ा य सं कित क गोदी म दम
तोड़ती हमारी सं कित क ित लेखक क
कलम पुरज़ोर तरीक से चीखती ई िदखलाई
देती ह।
हर से उ म कहानी।
-स तोष चौर चुभन।
000
कहानी अित संप अ ा माडन िपता
दैिद य और माँ कित क दािय वहीन पालक
क अपनी बेटी स यता क ित र यवहार
क कथा ह। शारी रक संबंध क भोग को
आनंद और खुशी का आधार मानने वाले
दयहीन माता-िपता क उपेि त पु ी क
परव रश नाना - नानी करते ह िजनक वृ होने
पर नाितन स यता इस बात को लेकर िचंितत
ह िक वृ होते नाना - नानी उसे कब तक
पालगे। वह अपने माता - िपता से इस सम या
पर बात भी करना चाहती ह िकतु धनांध
पालक क पास उससे बात करने का समय
नह । आिख़रकार स यता अपने खच क माँग
करते ए अदालत का दरवाज़ा खटखटाती ह
जो उिचत भी ह।
माना िक अदालत उसे जीवन िनवाह खच
िदलवा भी देगी लेिकन माता-िपता क यार से
वंिचत स यता क मन क घाव को कोई
अदालत नह भर सकती।
यह कहानी एक सामािजक बुराई को
सामने लाती ह जो अिधक धनी समाज म आम
बात ह। कहानी म उनक लाइफ टाइल,
व छद जीवन क लालसा क कारण ए
तलाक तथा भोग क िलए नए साथी से
पुनिववाह क घटनाएँ कथा क मूल को
पाठक क सम पूर साम य से तुत करती
ह। म ऐसा मानता िक कहानी म िचि त
सम या िनजी सम या ह िजसक समाधान का
समाज क पास तो कोई िवक प ह ही नह ।
कहानी क भाषा और िश प ब त अ छा
ह।
-कअर उदयिसंह अनुज
000
लीगली इस कहानी म यह कमी रह गई ह।
सामा यतः दोन प क सहमित से भी तलाक़
क करण म नाबािलग ब क भिव य को
लेकर िनणय क बाद ही तलाक़ क आ
पा रत होती ह। स यता क भिव य को सुरि त
िकए िबना तलाक़ नह हो सकता था।
-महश जोशी
000
अपनी दैिहक कामना क पूित हतु
आकषण क वशीभूत होकर िकया गया िववाह
वह भी पाटनरिशप मानकर संबध
ं थािपत
करना, अ याधुिनक जीवनशैली क चलन म
आ गया ह। देहाकषण ख म करार भी
ख़ म,प रणाम व प तलाक़।
जबिक िववाह संबंध दैिहक आकषण क
साथ मन क आंत रक िनमलता भी होता ह,
जो संबंध को घनीभूत करता ह।
तुत कहानी पानी क परत ब त ही
संवेदनशील कहानी ह, और यु भाषा एक
तरह से ग किवता क तरह ह।
जब पित-प नी दोन िववाह को अटट
बंधन न मानकर एक अनुबंध मानते ए चलते
ह तो वे इस बात से भी लापरवाह हो जाते ह
िक िववाह क बाद ज म लेने वाले ब े का
या होगा।
इस कहानी क क म पित दैदी य और
प नी कित क पु ी स यता पर कि त ह। दोन
पित-प नी स यता क ित िनम ही ह। जबिक
वह उनक पहली संतान ह। यहाँ कित जो
उसक माँ ह, का स यता क ित खा
यवहार, एक संवेदनशील य को आहत
करता ह। माँ-बाप होते ए भी वह याने
स यता नाना-नानी क पास रहकर बड़ी होती
ह। पूरी कहानी म पु ी स यता क भावना
क परत ह, जो उसक सजल नयन से
छलकती रहती ह। अंततः नाना-नानी क
वृ ाव था देख वह अपने भरण पोषण क
िलए कटब यायालय म अपना अिधकार पाने
क िलए वाद प दािख़ल कर देती ह।
अ याधुिनक और भौितकता क चकाच ध क
ित मोहा धता क इस दौर म युवक-युवती
यह भूल जाते ह िक हमार थक होने से, हमार
ब क जीवन पर इसका या असर होगा।
कहानी ब त ही मािमक और दय को छ
जाती ह।
-अ ण सातले
000
यूँ ही नह सागर िमलता, सागर होना होता
ह नदी को, सीमट क मकान म र ते रत से
भुरभुर हो गए ह ये वा यांश िकतनी गहराई
िलए ह एक तरह से कहानी का िनचोड़ तो
यह िमल जाता ह। झरन क आकलता
त काल सागर िमल जाए और इसी अकलाहट
म कटीले रा त क उलझन म दुगध यु
ठहराव जो पानी क अ त व को समा कर
देता ह।
नदी िकतनी कछ िमठास लेती ह रा ते क
उलझन से लेिकन ेम क पराका ा म वयं
खारी हो जाती ह िबना िकसी संकोच।
य यह आज क पीढ़ी नह सोच पाती
िक ई र द ये देह, यह अथ सभी यथ ह
यिद इनम च र , शालीनता, का स दय नही।
अपनी िज़द, अपने शौक, अपनी व छदता,
11. अ टबर-िदस बर 2021
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वतं ता क खाितर िकतनी स यता क
बिल दगे?
स यता को िनखरने म यूँ भी सिदय ,
वष क नेह, ेम, स मान, परवाह,
देखभाल,क आव यकता होती ह तब कह
एक व थ समाज, प रवार,पीढ़ी का िनमाण
होता ह। य इस तरह स यता को सर राह
उखाड़ कर खरपतवार बनाया जा रहा ह ये
अगर िवषैली हो गई तो प रवार का अ त व
तो समा ही हो जाएगा। र ते मैले हो जाएँगे,
िफर मानव एवं जानवर का भेद समा ।
उ कहानी समाज को एक गहन िचंतन
क ओर ले जाती ह। हम िकतने आधुिनक ए
ह िक हमने अपने आप को भुला िदया। िनरीह
बचपन िजसे नदी से सागर क िवशालता म
त दील होना था, पानी क परत म िसमट गई,
वह भी उस च ान क वजह से जो उसक
ज म का कारक थी। जो अपने म गहन लावा
समेट अंदर ही अंदर एक सुनामी बन कवल
िवनाश का सबब ही बनेगी।
कहानी वा तव म झकझोरने, समाज को
सोचने युवा पीढ़ी क िलए अनेक न छोड़ती
ह, िकसका वरण करगे िवनाश या स यता
का? एक उ क कहानी, कथाकार क
लेखनी को नमन साधुवाद।
-आरती ड गर
000
अ ैल-जून अंक म कािशत सुमन
घई क कहानी “छतरी” पर खंडवा म
चचा
संयोजन- गोिवंद शमा
सम वयक- शैले शरण
मनु य एक सामािजक ाणी ह और
समय-समय पर यह त य िस होता ही रहता
ह। सामािजक जीवन म जब तक मनु य क
अहकार क तु होती रहती ह उसे अपने
जीवन म अ य लोग का मह व ात नह हो
पाता ह लेिकन जब कोई य कह एकाक
हो तब उसे प रवार तथा समाज का मू य ात
होता ह।
इस कहानी म भी कथानायक, वकि त
जीवन जीने क आदी ह लेिकन प नी क मृ यु
क एक लंबे समय उपरांत जब एकाक जीवन
क नीरसता खलने लगती ह,तब भी अपने
प रवार क साथ रहने म उ ह एक बाधा, एक
िहचक अनुभव होती ह।
मंिदर म जाकर धीर-धीर, लोग से सहज
होने और उनसे अपने अहसास बाँटने को
छतरी क आदान- दान क तीक प म
कशलता से यु िकया गया ह।
अंत का एक घुटन भरा दुखांत न होकर
एक उजास भरा सुखांत होना इस कहानी को
इसी कथानक पर बनी अ य कहािनय से
िभ बनाता ह। लेखक महोदय को एक
बिढ़या कहानी क िलए हािदक बधाई।
-ग रमा चौर
000
ी सुमन कमार घई क कहानी पढ़ी।
कहानी का जो ताना-बाना सुर जी क
आसपास बुना गया ह उससे ज़ािहर ह िक
य िकतना भी संप हो, रज़व नेचर का
हो, वय को िविश समझता हो लेिकन
जीवन म एक समय ऐसा आता ह जब वह इस
एकाक पन से ऊबकर सामािजक होना चाहता
ह। लोग से बातचीत करना चाहता ह, िमलना
जुलना चाहता ह। सुर जी इतने स त िमज़ाज
ह िक वे अपने बेट , ब और पोते -
पोितय से भी दूर रह। लेिकन जानबूझकर
अपना नाम पता िलखी छतरी को या ा क
दौरान भूलकर लोग से जुड़ने क शु आत
करते ह और उनक यह सामािजक होने क
यु मंिदर वाले शमा जी से िमलकर पूण
होती ह जहाँ वे अपना छतरी को थाई प से
सभी लोग क उपयोग क िलए छोड़कर
अपनी सामािजक होने क या ा का समापन
करते ह और अपने लेखा ान का उपयोग
मंिदर क िहसाब - िकताब म करक वहाँ समय
यतीत करते ह।
छतरी पर नाम पते का टग लगाकर भूलना
और यह उ मीद रखना िक छतरी लौटकर उन
तक अव य आयेगी और वे इस बहाने लोग
से िमलने - जुलने लगगे, यह यु िवदेश म
ही सफल हो सकती ह। हमार देश म यह
योग कभी भी सफल नह हो सकता।
इसीिलए कहानीकार ने कर टर और थान भी
िवदेश ही चुना ह।
कहानी म यह छतरी क योग का नयापन
इसे रोचक बनाता ह। यह रोचकता अंत तक
बनी रहती ह। उ ह बधाई।
-कअर उदयिसंह अनुज
000
यह कहानी िब कल नए आयाम छती ह।
कहानी कनाडा म बसे एक समृ प रवार क
ह। िजसम सुर नाथ वमा एक समृ सी ए ह
जोिक रटायड ह। उनक दो लड़क ह भरा पूरा
प रवार ह। दो वष पहले उनक प नी क मृ यु
हो जाती ह। वे अकले हो जाते ह। वे ब त ही
वािभमानी और अनुशािसत य ह।
रटायरमट क बाद वे वत और अपने
अनुशासन क साथ रहना चाहते ह। उनक
लड़क भी वेल ट ड ह। और माँ क न रहने पर
उ ह अपने साथ रखना चाहते ह। िक तु वमा
जी उनक साथ नह जाते ह। अपने घर म ही
अकले रहने लगते ह। कछ िदन म ही उ ह
अकलापन और बुरा लगने लगता ह। और
बा रश आ जाती ह िजससे बचने क िलए वे
छतरी साथ रखने लगते ह।
असल म यही छतरी इस कहानी क शेडो
हीरो ह। िजसक कारण कई लोग से उनक
मुलाकात होती ह। और अंत म एक ग़रीब
म दर क यव थापक शमा जी से मुलाकात
होती ह। शमा जी म दर क िहसाब िकताब क
बहाने उ ह अपना िदली दो त बना लेते ह। सी
ए होने क नाते वे म दर क िव ीय यव था
सँभाल लेते ह। िजसक बदौलत म दर म
आने वाले उन सभी सैकड़ लोग क वे
अंकल बन जाते ह। शमा जी और वे लोग वमा
जी का पूरा ख़याल रखते ह। उ ह महसूस
होता ह िक जैसे उनका ब त बड़ा प रवार ह।
जो उनक खुशी का कारण ह। एक िदन जब
शमा जी उ ह छतरी साथ ले जाने क याद
िदलाते ह। तब वे कहते ह इसे यह टगी रहने
दो जब िजसको ज़ रत होगी इसका उपयोग
कर िलया करगा।
कहानी क इस अंितम पँ म लेखक ने
ब त गूढ़ अथ डाल कर कहानी को िशखर पर
प चा िदया ह। संदेश यह िक एक अनुभवी
बुि मान और िवशेष िशि त बु ग समाज क
12. अ टबर-िदस बर 2021
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िलए ब त मह वपूण होता ह। यिद समाज
चाह तो उसका अपनी किठनाइय म उिचत
उपयोग कर उसक अनुभव का बेहतर लाभ ले
सकता ह। िवशेष कहन, मनोहारी िश प और
उ े यपूण क य क साथ कहानी पठनीय
और आज क बु ग व ब क िलए
िश ा द ह।
- याम सुंदर ितवारी
000
सुमन कमार घई जी क कहानी एक ऐसे
इसान िजनका नाम सुर द नाथ वमा ह, क
कहानी ह। सुर जी रटायड य ह। दो बेट
ब दोन क दो दो ब े होने क बावजूद वे
अकले रहते ह। प नी का वगवास होने को दो
वष बीत चुक ह। अकले रहने का एक मा
कारण अपनी िनजी वतं ता म िकसी का
ह त ेप उ ह बदा त नह ह। उनक िदनचया
भी एकदम संतुिलत। न िकसी से िनरथक बात
करना और न ही िकसी से मेल मुलाकात। इस
कार हम देख तो यह कहानी उस आदमी क
ह जो वक त होने क साथ ही अ पभाषी
भी ह। अकलेपन और एक सी िदनचया उ ह
नीरस लगने लगती ह। धीर धीर वे अपनी
िदनचया म प रवतन लाते ह, घूमने जाते समय
छतरी िजस पर उनक नाम क िचट लगी ह,
रखने लगते ह।
यही छतरी दूसर लोग से जुड़ने का
मा यम बन जाती ह। अथा छतरी कह भूलने
लगते ह, तो लोग उ ह छतरी उनक छतरी का
यान िदलाते ह। इतना सा संवाद होने पर भी
उ ह ब त अ छा लगने लगता ह। वे छतरी
को हमेशा पास रखने लगते ह, तािक उस
बहाने दूसर से संवाद होता रह। इसी म म वे
नवरा पव पर मंिदर जाते ह, मंिदर बंधक
शमाजी से िझझकते ए चाय क बहाने मेल
मुलाकात होती ह और एक िदन वे मंिदर क
क यूटर म दानरािश इ ाज करने का काम लेते
ए मंिदर जाने को अपनी िदनचया बना लेते
ह, उनक छतरी वह रखने लगते ह तािक
बा रश आने पर वह छतरी िकसी क काम आ
सक।
य अपने विनिमत घेर बंदी से जब
ऊबने लगता ह तब वह वयं छटकारा पाना
चाहता ह, य िक वह समूह म रहने वाला
सामािजक ाणी ह, इसिलए अकलेपन क
सं ास से वह मु होना चाहता ह। सुर नाथ
जी पर कि त यह कहानी अ पभाषी और
वक त इसान को एक ऐसा संदेश देती ह,
जो येक क िलए मह वपूण ह।
-अ ण सातले
000
इस कहानी म कथानक ही िसफ अंतमुखी
वभाव से बाहर आने को लेकर ह। िकतु कई
सारी छोटी-छोटी घटनाएँ रखांिकत करने
यो य ह। पहले तो एकाक पन से ऊबने क
पहले का घटना म और उनक मानिसक
थित। िफर धीर-धीर अकलेपन से बाहर
आने क उप म तथा अंत म उनक खुशी।
यक नन एक बिढ़या मनोवै ािनक कहानी ह
िजसक िजतनी तारीफ क जाए कम ह।
-शैले शरण
000
िकसी को अकलापन काटने को दौड़ता ह
तो िकसी को वही अकलापन बड़ा रास आता
ह। कई लोग अकलेपन को दूर करने दो त क
बीच जाते ह और कछ इसिलये दो त बनाने से
परहज़ रखते ह तािक उनक िनजता म खलल
न पड़। इ ह कारण से सुर नाथ जी ने प नी
क वग िसधारने क बाद बेट क हर तरह से
मनाने क बावजूद उनक साथ जाने को तैयार
नह ए।
भले ही सुर नाथ जी जैसे श स को
अकलेपन क खोल म रहना पसंद हो लेिकन
कभी न कभी उस खोल से बाहर आने का मन
कर ही जाता ह परतु एक आदत से दूसरी
आदत क ओर जाना सहज नह ह। तभी तो वे
चाहकर भी अपने ब क पास न जा सक
और ना ही सीिनयर िसटीजन सं था को अपना
सक।
नवरा पर सुर नाथ जी को प नी का
याद आना, िफर उनका मंिदर जाना, आँकड़
से ेम क वजह से मंिदर क काम से जुड़कर
मंिदर को ही घर जैसा बना लेना यह सब मन
को छ गया।
-दशना जैन
000
संदभ पि का "िवभोम- वर" म कािशत
कथाकार सुमन कमार घई जी क कहानी
"छतरी" मनु य क मन क िव ान पर आधा रत
मनोवै ािनक कहानी ह। भीतर और बाहर क
संिध रखा पर खड़ी यह कहानी अंतमुखी से
बिहमुखी हो जाने क या ा ह। अंतमुखी
य कवल अपने से ही संवाद करता ह,
बाहर वह मा औपचा रक ही रहता ह।
आव यक संि संवाद करने वाले सुर
नाथ जीवन क अंितम पड़ाव पर इस
एकाक पन से िवचिलत हो जाते ह। इस
एकाक पन क कारा से बाहर िनकल वह उस
सुख का अनुभव करना चाहते ह िजससे अभी
तक सवथा वंिचत ही रह ह। ब त
सुिवधाजनक िकतु एकाक िदनचया से
ऊबकर वह एक छतरी क मा यम से
जनजीवन से जुड़ते ह। छतरी पर अपना पता
िलखकर, उसे जानबूझ कर छोड़ा आना और
िफर वापस लाने वाले य से संवाद
थािपत होना जैसी कई घटना क मा यम
से वह बिहमुखी हो जाने का सुख अनुभव कर
स होते ह। कथा क अंत म मंिदर म
ितिदन जाकर, यव था म सहयोगी होकर,
लोग से िमलकर और छतरी को सभी क
उपयोग क िलए देकर वे एकाक पन क
आवरण को उतार फकते ह। यह सब छतरी
का ही कमाल ह। ऐसी छतरी हम सब क पास
होना चािहए।
सहज सरल भाषा और संि
कथोपकथन क मा यम से बुनी गई कहानी
आकषक और पठनीय ह। इस हतु कथाकार
घई जी का हािदक अिभनंदन।
-रघुवीर शमा
000
समी ा क लॉग पि का
कथाच म िवभोम- वर क जुलाई-
िसत बर 2021 क समी ा
िवभोम- वर ने िह दी सािह य जग म
कम समय म याित अिजत क ह। यह
पि का सभी िवधाएँ समेट कथा धान
ैमािसक ह। पि का का संपादक य सुधा
ओम ढ गरा ने िलखा ह। संपादक य म
13. अ टबर-िदस बर 2021
foHkkse&Loj
11
Covid 19 क बाद क थित पर िवचार
िकया गया ह। लॉकडाउन तथा उसक बाद
िगरती ई वै क अथ यव था का हाल
िकसी से िछपा नह ह। सच तो यह ह िक
कोरोना महामारी ने इस सदी क मानव क
जीवन शैली म अमूलचूल प रवतन िकया ह।
सुधा जी ने िलखा ह िक, कोरोना ने एक बात
प कर दी ह, िव क हर य को तरह
तरह क चुनौितय क िलये तैयार रहना
पड़गा। सच ह अ यथा मानव स यता ख़तर म
पड़ जाएगी।
िव मृित क ार उपशीषक क अंतगत
पि का म िस लेिखका उषा ि य वदा का
सं मरण ह। शीषक ह, िश बनलाल क
बहन, रोती नह । शीषक आपको अजीब सा
लगेगा। इसम ऐसा या ह लेिकन सं मरण इस
शीषक क आस-पास घूमती ई िदखाई पड़ती
ह। इसे कहानी क शैली म िलखा गया ह।
उ ह ने इस लंबे तथा भािवत करने वाले
सं मरण को मािमक शैली म िलखा ह। रचना
म अनेक थान पर उषा जी क उप थित
िदखाई पड़ती ह। उनक कहािनय , उप यास
का रसा वादन कराता यह लेख सीखने क
िलये ब त कछ छोड़ता ह। अ छा सं मरण
ह।
पि का म आठ पठनीय तथा भावशाली
कहािनयाँ कािशत क गई ह। कहानी झूठा
सेब को ा पा डय ने िलखा ह। कहानी
आम जीवन क कथा ह। िमसेज़ तनेजा क
इदिगद कहानी रची गई ह। कहानी अ छी एवं
पठनीय ह। िववेक िनझावन ारा िलखी गई
कहानी उसक मौत ब त कछ नया ह।
कहानी का मु य पा इसी िचंता म डबा रहता
ह िक उसे मौत क सज़ा िमलेगी। लेिकन वह
जीना चाहता ह, कछ नया करना चाहता ह।
कहानी पढ़ अ छी लगेगी। अँधेर क बीच
कहानी को अ णा स बरवाल ने िलखा ह।
शहरी जीवन तथा उसक आपाधापी क बीच
से आगे बढ़ती यह कहानी अध
ँ ेर को चीरती
चलती ह। उसक प ा पता चलता ह िक
िसमरन का जीवन कसा गुज़रगा। अ छी
रचना ह। काद बरी मेहरा क िलखी कहानी
कौन सुने? म नया कछ पढ़ने क िलये ह। बड़
प रवार क बेटी सरोज क य व को
उभारती ई यह कहानी नई संवाद शैली क
कारण भािवत करती ह। पढ़ने यो य रचना
ह। िमशन एन.पी.ए. को डॉ. रमेश यादव ने
िलखा ह। भारतीय बिकग यव था से बाहर
िनकलते भिव य का बदला व प इसम ह।
अ छी रचना ह। सेहर का सगुन को कामे र
ने िलखा ह। यह रचना मु लम समाज म
संप होने वाले वैवािहक गितिविधय से
आम जन को प रिचत कराती ह। कहानी म
योग क साथ नयापन ह। सेवक नैयर क
िलखी कहानी वािभमान आजकल क गाँव
को अ शहर म बदलते प रवेश का कथानक
ह। लेखक ने िव तार से बदलते ामीण जीवन
को पाठक क सामने रखा ह। कहानी देवता
को अ ण अणव खर ने िलखा ह। कहानी
सामा य भारतीय प रवार क युवक क भिव य
क िचंता दशाती ह। छाया ीवा तव क
िलखी कहानी स ाटा म िपता क जाने क बाद
माँ क ित बेटी क समपण िदखाई देता ह।
पि का म कहानीकार क पहली कहानी भी
कािशत क जाती ह। पि का िवभोम- वर
का यह यास नए कहानीकार क िलये
संजीवनी का काय करगा। इस अंक म अिदित
िसंह भदौ रया क िलखी पहली कहानी
आिख़री ख़त कािशत क गई ह।
पि का क इस अंक म मलयालम कहानी
का अनुवाद कािशत िकया गया ह।
मलयालम कथाकार कमला दास क िलखी
कहानी यथाथ क र च का िह दी अनुवाद
अनािमका अनु ने िकया ह। कहानी पढ़ने पर
कह से भी नह लगता ह िक यह अनुवाद ह।
कहानी म सरसता ह पाठक को यह सरसता
अ छी लगेगी।
ीकांत आ ट अ छ यं यकार ह। उनक
रचना म पैनापन तथा नवीनता होती ह।
लोकापण यं य म भी वही पैनापन ह।
लोकापण करने वाल क वेशभूषा, कायशैली
तथा ि याकम पर अ छा यं य िकया गया
ह। रचना म हा य क अपे ा यं य अिधक
ह। आप हा य पसंद करते हो तो यह आपक
िलये नह ह। लेिकन यं य क समझदार
पाठक क िलये यह अ छी यं य रचना ह।
इस अंक म एक भावशाली सं मरण ह
िजसका शीषक ह हम भी कमीने तुम भी
कमीने। इस सं मरण क लेिखका ह जेबा
अ वी। पािक तान क लेिखका का सं मरण
भािवत करता ह। वहाँ क जीवन शैली तथा
शहरी वातावरण पर उ ह ने िव तार से िलखा
ह। एक अ य सं मरण वीर जैन ारा िलखा
गया ह। इसका शीषक ह, रामरतन अव थी
जी मेर पहले सािह यक गु म से थे।
लेखक ने अव थी जी क जीवन पर
िव ेषणा मक ढग से काश डाला ह।
गोिवद
ं सेन का लेख ह, शीषक ह रिडयो
का इलाज करते िपता। रिडयो क यह कहानी
िपछली सदी क येक भारतीय प रवार क
कहानी ह। िज ह ने अपने घर म रिडयो क
दशन िकये ह। कसे हम लोग रिडयो क साज
सँभाल करते थे, लेखक गोिवद
ं सेन रोचक
ढग से वणन करते ये बताते ह। एक अ य
लेख शोभा र तोगी ने िलखा ह। िजसका
शीषक ह ज मा मी। भािवत करने वाला
अ छा लेख ह।
इस अंक म िल यांतरण क अंतगत लेख
गािलब ए ड गोएट कािशत िकया गया ह।
यह मूल रचना हाजी लक़ लक़ ारा िलखी
गई ह। इसका िल यांतरण अ तर अली ने
िकया ह। पि का क पाठक को रचना अव य
पसंद आएगी। पि का क इस अंक म
किवताएँ कािशत क गई ह। कथा धान
पि का म इ ह पढ़कर तस ी होती ह िक
किवता क चाहने वाल क कोई कमी नह ह।
इस उपशीषक म पि का क संपादक
पंकज सुबीर क िवचार ह। संपादक य म
कोरोना काल म रचना क काशन पर
िवचार य िकये गए ह। आजकल रचना
क काशन से पहले सोशल मीिडया पर उसे
पो ट करने क परपरा सी चल पड़ी ह। यह
सािह य क िलये अ छा नह ह। उसी तरह
िकसी एक रचना को काशन क िलये अनेक
सं थान म भेजना भी ठीक नह ह। अ छा
संपादक य ह, सािह य ेिमय को
कोरोनाकाल म धैय रखने क सलाह ह।
-अिखलेश शु , इटारसी
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14. अ टबर-िदस बर 2021
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12
उषा ि य वदा
1219 शोर वुड बुलेवाड,
मैिडसन , िव कॉ सन, 53705, यू एस ए
मोबाइल-608-238-3681
ईमेल- unilsson@facstaff.wisc.edu
िव मृित क ार
मेरा बचपन एक दम से ख़ म हो गया- वह हर ि ंट वाली ॉक, मोर पँिखय क आगे पीछ
सुधीर क साथ लुकािछपी का खेल, उस सफ़द मोर क नाचते ए पँख, गम क छ ी म भाई
होरीलाल क साथ पाक रोड क सड़क से टटी फटी, िव वंस रज़ीड सी तक क सुबह क सैर,
वह घने फलते ए अमलतास और गुलमोहर – सब समा ।
मुझे समझ नह थी िक या हो रहा ह, य , यह समझ थी; य िक दादा ने एक िदन कहा-
''गाँधी जी 'भारत छोड़ ' आ दोलन शु कर रह ह, म उनसे िमलने जा रहा , या आदेश देते
ह।'' और बस, दादा ग़ायब, बरस -बरस क िलए- सुनने म आता रहा, दादा को अं ेज़ ने
िगर तार कर िलया ह, उ ह फाँसी क सज़ा ई ह, बाद म सुना- आज म क़द-बस एक
स ाटा-दादा िश बन लाल मेर बाल जीवन से लु हो गए।
म फटी-फटी आँख से सबको देखती, िकसी चेहर पर हसी नह , कोई नामल जीवन क
गितिविध नह । कल ब द हो गए, बड़ी बहन कमला इलाहाबाद यूिनविसटी क दूसर छा क
तरह वतं ता सं ाम म शािमल हो गई थ - जुलूस, पुिलस क ित िवरोध, छा क संग कछ
समय जेल, िफर यूिनविसटी ब द हो गई और वह भी घर लौट आ । हमार मकान मािलक ने जो
अं ेज़ भ राय साहब थे, हम घर से िनकाल िदया।
हम सु दर बाग़ क छोट से मकान म आ गए, घर का िकराया, रोज़मरा का ख़च, खाना-
पीना, महरी यह सब कसे चलता था। मुझे मालूम नह था, बस यह जानती थी िक डबल रोटी क
जो पदी होती थी, उसी का टो ट मुझे ना ते म िमलता था। जब बड़ी बहन कमला को सुबह का
अख़बार देने म देर हो जाती तो वह मेर दोन हाथ पकड़कर मेरा िसर दीवार से टकराने लगती।
यह रोज़ होता था, म ह बुि रह जाती थी, मेरी आँख डबडबा आती थ पर आँसू टपकते नह
थे, न जाने उ ह िकस पर ोध था, और उनका गु सा मुझ पर ही य िनकलता था, शायद
‘परड, कानपुर'
उषा ि य वदा
15. अ टबर-िदस बर 2021
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इसिलए िक म सबसे छोटी थी, असहाय,
असमथ मरिग ी-सी। कािमनी मुझसे चार
साल बड़ी थ , पु , भंयकर गु सेवाली
और म वह पु या भाई नह थी िजसका मेर
ज म पर अपे ा थी। ब त बाद म, बरस बाद
मने बड़ी बहन क नवासे को यह बात बताई
और हर चीज़ को ब त ह क-फ क ढग से
लेते ए कहा-''वह जो िज ी दीवार से मेरा
िसर टकराती थ , उसी वजह से मेरी ितभा
फिटत ई। ''
वह चुप रह गया, वह अ य त
ितभाशाली युवक ह और उस समय
टनफ़ड यूिनविसटी से पीऍच.डी कर रहा
था। बचपन म दस महीने क आयु म वह
चारपाई से िसर क बल िगर गया था। और
उसक चीख़ मारकर रोने क आवाज़ से पूरा
घर इक ा हो गया था- उसक माँ ने भी रोते-
रोते उसका िसर सहलाते ए मुझसे कहा,
''आप पर छोड़कर नहाने गई थी, आपसे देखा
भी नह गया।''
मने अपराधभाव से कहा, ''देख तो रही
थी, या मालूम था िक करवट लेकर उधर से
नीचे िगर जाएगा।''
रा ल क ितभाशाली होने का ेय भी म
प रहास म अपनी िनगरानी म िसर क बल
लुढ़कने पर देती रही। पीऍच.डी ो ाम क
िलए रा ल को अमे रका क आठ सव े
यूिनविसटीज़ म एडिमशन िमल गया था।
हावड क बजाय उसने टनफ़ोड को चुना
था- शांत (मेर पित) को िनराशा ई थी, पर वे
चुप रह थे।
तो मेरा बचपन? ख़बर आती रह िक
गाँधी जी िगर तार हो गए ह- देश क बड़-बड़
नेता भी- अब या होगा? सब कछ अंधकार
म, देश क साथ हम सबका जीवन भी।
जब तक दादा पकड़ नह गए, हमार घर
रोज़ आगे-पीछ क दरवाज़े पर िसपाही तैनात
रहता था- िकसी भी समय सी.आई.डी. क
साथ पुिलस तलाशी लेने आ जाती थ ।
हम सबक गाल िपचक गए थे, आँख
उदास और परशान; भिव य एक बड़ा
निच -
कछ महीने पहले भाई होरीलाल का
िववाह हो गया था- भाभी छोट क़द क ,
दुबली-पतली थ - म उनसे िचपक रहती थी,
मुझे ब त अ छी लगती थ ।
यह ज़ािहर था िक होरीलाल क आय म
मेरी माँ और तीन बेिटय का िनवाह मु कल
था।
तब भैया ने माँ को सुझाया िक
िश बनलाल क भाई होने क नाते वह कभी भी
िगर तार हो सकते ह। तब भाभी मायक चली
जाएँगी, अ छा यही होगा िक माँ तीन बेिटय
को लेकर चली जाए, पर कहाँ?
बड़ मामा, हरगुलाम हज़ेला, ताल ाम
गाँव छोड़कर कानपुर म आ बसे थे, उनक
पास गुज़र होनी संभव नह थी। बड़ी मौसी
ह र ार म थी, मौसा जी उदारमना थे, पर
उनक आय सीिमत थी।
माँ रात-रात भर या तो रोती रहती थी या
िफर खाट पर करवट बदलती रहती थ । म
उनक साथ सोती थी, सब देख रही थी मगर
कछ भी समझ नह रही थी। कोई भी नह
समझ रहा था िक आगे या होने वाला ह, हम
तो उस देशभर म चलती वतं ता अिभयान
क आँधी म टट प क तरह थे।
तभी हमारी एक बुआ कछ िदन को आ ,
वह बचपन म ही िवधवा हो गई थ । और सारी
िज़ त, अपमान और वंचना क साथ जेठ क
प रवार क साथ रहती थ - जब ितर कार,
अपमान और घर क सार कामकाज़ से टटने
लगती थ तब अपने एक भतीजे क दया से जो
भारतीय रलवे म गाड था, िबना िटकट िकसी
संबंधी क पास चली जाती थ । वह कभी कह
चार-पाँच िदन से अिधक नह रहती थ , और
उस अविध म वह बड़ी, मँगौड़ी तोड़ती थ ,
कढ़ी, कराल और पतौड़ बनाकर सबको
िखलाती थ - िश बनलाल अपनी इन मौसी
का ब त स मान करते थे, जो उनक नानी क
बहन क बेटी थ - तो एक िदन यह बुआ
अपना सारा जीवन, सारी गृह थी दो थैल म
समेट आ गई- उ ह ने माहौल देखा, परखा
और जीवन भर को वंचना और ितर कार
से उपजे अनुभव से कहा, ''अर भौजी इस
होरीलाल को कौन िगर तार करगा? सीधा-
सादा ह कान का क ा बात म आ गया ह-
यह सब पंच इस ब का ह। वह तु ह और
तु हारी लड़िकय को झेलना नह चाहती।"
माँ क आँख सजल थ - वह चुप रही,
बुआ ने इस बार बड़ी मँगौड़ी नह तोड़ी, बस
धोितय क िकनािटयाँ जोड़कर माँ क मशीन
से दो थैले िसए, उसम अपनी दो धोितयाँ, छद
भरी तौिलया, पान सुपारी क पोटिलयाँ
ाँसफर क और दो तीन िदन बाद चली ग ।
हमार िसर पर तलवार टगी रही, घर म
तनाव भरा स ाटा, हमार बाबा क छोट भाई,
जो बाबू कहलाते थे, प रवार म सबसे संप
रह ह गे। वह िवधुर थे और उ ह ने कानपुर म
परड मुह े म एक िवशाल चौ मंिज़ला
मकान ख़रीदा था। िजसका नाम गणपित
िनवास था। वह स तानहीन और िवधुर ही मर।
उनक बाद उनक सबसे छोट भाई राजबहादुर
घर क कताधता बने और घर उनक पास
आया। उस घर क ट ट मेरी मृित म बसी
ई ह। सामने चार-पाँच दुकान, जो िकराए पर
चढ़ी थी। नीचे क खंड म िकराएदार रहते थे
और महरािजन, महाराज और उनका क ा,
ऊपर क खंड म एक लंबे कमर, उससे
संल न दो कोठ रयाँ, आगे बरामदा और छत।
मुंशी चाचा िजनका नाम लाजपतराय था,
अपनी प नी शांित और छः ब क साथ रहते
थे। उसक बग़ल का बड़ा कमरा, एक कोठरी
और सामने क छत, राजबहादुर क प नी
रामदेवी, िज ह हम छोटी दादी कहते थे, उनक
पास थी।
घर का सबसे बड़ा भाग सँझली दादी क